2. ज्ञानेश्वरी
ॐ नमोजी आद्या । वेद प्रतिपाद्या ॥
जय जय स्वसंवेद्या । आत्मरूपा ॥१॥
ॐ रूप और गणेश का रूप संि ज्ञानेश्वर महाराज ने बिाया
है।
अकार चरण युगुल । उकार उदर ववशाल ॥
मकार महामंडल । मस्िकाकारें ॥३॥
हे तिन्ही एकवटले। िेथें शब्दब्रह्म कवळलें॥
3. ओमित्येकाक्षरं ब्रह्ि व्याहरन्मामनुस्मरन ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम ॥ ८-१३ ॥
योगधारणेि स्स्थर होऊन जो पुरुष ॐ या एक अक्षर रूप ब्रह्माचा उच्चार करीि आणण
त्याचे अथथस्वरूप तनगुथण ब्रह्म जो मी आहे
Bhagwat Gita
प्रणवः सवववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ ७-८ ॥
सवथ वेदांिील ओंकार आहे, आकाशािील शब्द आणण पुरुषािील पुरुषत्व आहे.
4. बौद्ध-दशथन में "ॐ मणणपद्मेहुम" का प्रयोग
जप एवं उपासना के ललए प्रचुरिा से होिा है।
इस मंत्र के अनुसार ॐ को "मणणपुर" चक्र में
अवस्स्थि माना जािा है।
5. •Arihantas, (Tirthankars or Jinas), the
pure souls, the saints.
•Siddhas, liberated souls who are beyond
birth and death
•Acharyas, leaders of Jain congregations
•Upadhyays, initiated monks and nuns
•Sadhus and Sadhvis, male and female
laypersons (householders)
6. Patanjal Yogasutrani
िस्य वाचकः प्रणवः॥१.२७॥
िस्य - उस (ईश्वर का)
वाचक - वाचक (नाम)
प्रणव: - प्रणव अथाथि ॐ कार है ।
उस ईश्वर का वाचक (नाम) प्रणव अथाथि ॐ कार है ।
प्रणव शब्द का अथथ है–
प्रकषेणनूयिे स्िूयिे अनेन इति, नौति स्िौति इति वा प्रणव:।
गुरु नानक ने ॐ के महत्वको प्रतिपाददि करिे हुए ललखा है —
ओम सिनाम किाथ पुरुष तनभौं तनवेर अकालमूिथयानी ॐ सत्यनाम जपनेवाला पुरुष
तनभथय, बैर-रदहि एवं "अकाल-पुरुष के " सदृश हो जािा है।
"ॐ" ब्रह्माण्ड का नाद है एवं मनुष्य के अन्िर में स्स्थि ईश्वर का प्रिीक।
7. Recitation of
िज्जपः िदथथभावनम ॥२८॥
taj-japaḥ tad-artha-bhāvanam ॥28॥
Repetition of OM (with this meaning) leads to contemplation.
||28||
tat = that; whose; being
japa = repetition
tat = whose; being
artha = meaning
bhāvanam = (acc. from bhāvana) feeling; devotion;
contemplation
8. Chitta vikshepa (Nine Antaray) Obsticle
ििः प्रत्यक्चेिनाधधगमोऽप्यन्िरायाभवश्च ॥२९॥
Through this practice, the immutable self is revealed and all obstacles (antaraya) are removed.
||29||
tataḥ = from this; from this practice
pratyak = the inner; the inward
cetanā = the true self; drashtu
adhi =
gamḥ = become manifest; reveal; attain
api = also
antarāyaḥ = (antarāya) obstacle
abhāvaḥ = (abhava) absence; disappearance; elimination
ca = and
9. Bhakta Vaman “Onkarashtakam”
संििं िैलधारैव दीर्थर्ंटा तननादवि
दीर्थ प्रणवमुच्यायथ गंभीर शंखनादवि
िेल की धारा स्जस िरह मुलायम अखंङ दीर्थ काल र्ंटे आवाज
गंभीर शंखनादवि
10. Four Types Of Chanting (Japa)
Vaikhari- Loudly
Madhyama-Medium
Para-Lower
Pashyanti-Mumbed
Mandukya Upnishad
विथमान काल Present Time
भूिकाल Past Time
भववष्यकाल Future Time
13. ब्रह्मप्रास्प्ि के ललए तनददथष्ट ववलभन्न साधनों में प्रणवोपासना मुख्य
है। मुण्डकोपतनषद् में ललखा है:
प्रणवो धनु:शरोह्यात्मा ब्रह्मिल्लक्ष्यमुच्यिे।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेि ॥-(मुन्डकोपतनषद्-मुन्डक २ खन्ड २
श्लोक-४)
अथाथिः- प्रणव धनुषै, आत्मा बाण है और ब्रह्म उसका लक्ष्य कहा जािा है।
उसका सावधानी पूवथक भेदन करना चादहए और बाण के समान िन्मय हो
जाना चादहए।। ४।।
15. ॐकारं बबन्दुसंयुक्िंतनत्यं ध्यायस्न्ि योधगन:
कामदं मोक्षदं चैवॐकाराय नमो नम:
ओमकार के रूप में हमारे हृदय के के न्र में रहिा है
स्जस पर योधगयों का तनरन्िर ध्यान रहिा है
जो हमारर सभी इच्छाओं की पूतिथ करिा है
जो अपने भक्िों को मुस्क्ि देिा है