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गु    व कायालय            ारा     तुत मािसक ई-प का                          जुलाई- 2011




 गु मं        के       भाव से ई    दशन               ीम आ         शंकराचायक सदगु
                                                                           े

 गु      ाथना                                                       ीकृ ण क गु सेवा


 दे व ष नारद ने एक म लाह                                        स     गु    क याग से
                                                                             े
 को अपना गु              बनाया                                        द र ता आती ह


 मं     क जप से अलौ कक
         े                                                       गु मं     के       भाव से
 िस      या        ा    होती ह                                                  ई    दशन


 जब दवासाजी ने
     ु
      ी कृ ण क प र ाली।




                                  NON PROFIT PUBLICATION
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                                         E CIRCULAR
                          गु       व    योितष प का जुलाई 2011
संपादक               िचंतन जोशी
                     गु        व   योितष वभाग

संपक                 गु        व कायालय
                     92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                     BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन                  91+9338213418, 91+9238328785,
                     gurutva.karyalay@gmail.com,
ईमेल                 gurutva_karyalay@yahoo.in,

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वेब                  http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

प का       तुित      िचंतन जोशी,         व तक.ऎन.जोशी
फोटो     ाफ स        िचंतन जोशी,         व तक आट
हमारे मु य सहयोगी     व तक.ऎन.जोशी           ( व तक सो टे क इ डया िल)




           ई- ज म प का                                  E HOROSCOPE
      अ याधुिनक      योितष प ित                ारा Create By Advanced Astrology
         उ कृ     भ व यवाणी क साथ
                             े                                 Excellent Prediction
             १००+ पेज म                तुत                              100+ Pages

                               हं द / English म मू य मा 750/-
                                   GURUTVA KARYALAY
                     92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
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3                                  जुलाई 2011




                                                            वशेष लेख
गु          ाथना                                                5        ािभषेक से कामनापूित                           33
जब दवासाजी ने
    ु                        ी कृ ण क प र ाली।                  7        ािभषेक तो                                     35

गु मं क भाव से ई दशन
       े                                                    11      सोमवार को िशवपूजन का मह व           या ह?          36
गु मं क भाव से र ा
       े                                                    13      िशव कृ पा हे तु उ म      ावण मास                   37
गु मं          क जप से अलौ कक िस
                े                           या   ा   होती               ावण मास क सोमवार
                                                                                 े                 त से भौितक क ो से
                                                            14                                                         40
ह                                                                   मु       िमलती ह
आ ण क गु भ                                                  18      आ या मक उ नित हे तु उ म चातुमास             त      41
स         गु   क याग से द र ता आती ह
                े                                           19          य िशव को     य ह बेल प ?                       43
मं        जप से         ा    हवा शा
                              ु       ान                    21          ावण सोमवार     त कसे कर?
                                                                                          ै                            45
एकल य क गु भ                                                22           ा   धारण से कामनापूित                         46
     ीकृ ण क गु सेवा                                        23      एक मुखी से 12 मुखी         ा    धारण करने क लाभ
                                                                                                               े       48
दे व ष नारद ने एक म लाह को अपना गु
                                                            25      चातुमास म मांगिलक काय व जत ह।                      50
बनाया
     ीम        आ   शंकराचाय सदगु                            27


                                                                अनु म
संपादक य                                                    4       मं िस साम ी                                        67
गुव कम ्                                                    6       जुलाई 2011 - वशेष योग                              68
     ीकृ ण बीसा यं                                          10      दै िनक शुभ एवं अशुभ समय        ान तािलका           68
     ी गु      तो म ्                                       31       दन-रात क चौघ डये
                                                                             े                                         69
ह तरे खा           ान                                       32       दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक                 70
सव काय िस                   कवच                             51           ह चलन जुलाई -2011                             71
राम र ा यं                                                  42      सव रोगनाशक यं /कवच                                 72
 व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं                              53      मं िस कवच                                          74
मं िस प ना गणेश                                             53      YANTRA LIST                                        75
मं िस साम ी                                                 54      GEM STONE                                          77
मािसक रािश फल                                               57      BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION                      78
रािश र                                                      61      सूचना                                              79
जुलाई 2011 मािसक पंचांग                                     60      हमारा उ े य                                        81
जुलाई -2011 मािसक त-पव- यौहार                               64
4                                       जुलाई 2011




                                                               संपादक य
     य आ मय

               बंधु/ ब हन

                                   जय गु दे व
महापु षो क मतानुशार य
          े                                को अपने जीवन म पूण ता कसी स ु             गु    क शरण म जाने से          ा   हो सकती ह।
भारतीय धमशा ो म गु को                         व प कहां गया ह।
 कसी स          गु     के   ा     होने पर य      क सभी धम-अधम, पाप-पु य आ द समा
                                                  े                                                 हो जाते ह।
                                                 य य     मरणमा ेण            ानमु प ते    वयम ् ।
                                                   सः एव सवस प ः त मा संपूजये                 गु म् ।।
अथात: जनके              मरण मा        से     ान अपने आप      कट होने लगता है और वे ह सव स पदा                    प ह, अतः    ी गु दे व क
पूजा करनी चा हए।
हमारे ऋ ष मुिन क मतानुशार गु
                े                             उसे मानना चा हये जो
                                 ेरकः सूचक ैव वाचको दशक तथा । िश को बोधक ैव षडे ते गुरवः                   मृ ताः ॥
अथात:          ेरणा दे नेवाले, सूचन दे नेवाले, सच बतानेवाले, सह रा ता दखानेवाले, िश ण दे नेवाले, और बोध करानेवाले ये
सब गु          समान ह।
गु श द क प रभाषा श दो म िलखना या बताना एक मूख ता ह एक ओछापन ह।                                       यो क गु     क म हमा अनंत ह
अपार ह। इस िलये क बरजी ने िलखा ह।
                            गु    गो वंद दोनो खड़े काक लागू पांव, गु
                                                     े                         बिलहार आपने गो वंद दयो बताए।
गु        क तुलना कसी अ य से करना कभी भी संभव नह ं ह। इस िलये शा                              कहते ह।
                     ा तो नैव         भुवनजठरे स रो ानदातुः पश े
                                                 ु                              कल यः स नयित यदहो           व ताम मसारम ् ।
           न    पश वं तथा प ि तचरगुणयुगे स ु ः              वीयिश ये वीयं सा यं वधते भवित िन पम तेवालौ ककोऽ प ॥
अथात: तीन लोक, वग, पृ वी, पाताल म                      ान दे नेवाले गु       क िलए कोई उपमा नह ं दखाई दे ती । गु
                                                                              े                                             को पारसम ण
क जैसा मानते है , तो वह ठ क नह ं है , कारण पारसम ण कवल लोहे को सोना बनाता है , पर
 े                                                  े                                                             वयं जैसा न ह बनाता !
स ु        तो अपने चरण का आ य लेनेवाले िश य को अपने जैसा बना दे ता है ; इस िलए गु दे व क िलए कोई उपमा न ह
                                                                                        े
है , गु    तो अलौ कक है ।
इस किलयुग म धम क नाम पर गु क नाम का ठ गी चोला पहनने वालो क भी कमी नह ं ह इस िलये शा ो म
                े           े
िलखा ह।
                            सवािभला षणः सवभो जनः सप र हाः । अ                   चा रणो िम योपदे शा गुरवो न तु ॥
अथात: अिभलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, सं ह करनेवाले,                            चय का पालन न करनेवाले, और िम या उपदे श
करनेवाले, गु          न ह होते है ।

                                                                                                                        िचंतन जोशी
5                            जुलाई 2011




                                               गु         ाथना
                                                                                         िचंतन जोशी

                                    गु        ा ु व णुः गु दवो महे रः ।
                                 गु ः सा ात ् परं      त मै ी गुरवे नमः ॥

     भावाथ: गु       ा ह, गु     व णु ह, गु     ह शंकर ह; गु   ह सा ात ् पर   ह; एसे स ु को नमन ।

                                   यानमूलं गु मू ितः पूजामूलम गु र पदम।
                                                                      ्

                                  मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृ पा।।

भावाथ: गु   क मूित    यान का मूल कारण है , गु             क चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत क
                                                           े                                  े
सम त मं     का और गु     क कृ पा मो            ाि   का मूल कारण ह।

                                  अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।
                                                               ्

                                   त पदं दिशतं येन त मै ीगुरवे नमः।।

                          वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु             सखा वमेव।

                               वमेव व ा       वणं वमेव वमेव सव मम दे व दे व।।


                                         ानंदं परमसुखदं कवलं
                                                         े       ानमूित
                                  ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ् ।
                                  एक िन यं वमलमचलं सवधीसा
                                    ं                                 भुतं
                                  भावातीतं      गुणर हतं स ु ं तं नमािम ॥

 भावाथ:     ा क आनंद प परम ् सुख प,
               े                               ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस"
 इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और                       गुणर हत -
                                     ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
6                                          जुलाई 2011




                                              गुव कम्
शर रं सु पं तथा वा कल ,
                      ं         अर ये न वा व य गेहे न काय,                    (५) जन महानुभाव क चरण कमल
                                                                                               े
यश ा िच ं धनं मे तु यम।
                      ्         न दे हे मनो वतते मे वन य।                     भूम डल क राजा-महाराजाओं से िन य
                                                                                      े
मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े           मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                                                    े                         पू जत रहते ह , कतु उनका मन य द गु
                                                                                              ं
ततः क ततः क ततः क ततः कम॥१॥
     ं     ं     ं      ्       ततः क ततः क ततः क ततः कम॥८॥
                                     ं     ं     ं      ्                     क ीचरण क ित आस
                                                                               े      े                न हो तो इस
कल ं धनं पु पौ ा दसव,           गुरोर क यः पठे पुरायदे ह ,
                                       ं                                      सदभा य से या लाभ?

गृ हो बा धवाः सवमेत     जातम।
                            ्   यितभूपित     चार च गेह ।                      (६) दानवृ      क ताप से जनक क ित
                                                                                              े
मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े                                                         चारो दशा म या हो, अित उदार गु क
                                लमे ा छताथं पदं       सं ,
                                                         ं
ततः क ततः क ततः क ततः कम॥२॥
     ं     ं     ं      ्                                                     सहज कृ पा       से ज ह संसार क सारे
                                                                                                            े
                                गुरो   वा ये मनो य य ल नम॥९॥
                                                         ्
षड़ं गा दवेदो मुखे शा   व ा,                                                   सुख-ए य ह तगत ह , कतु उनका मन
                                                                                                 ं
                                ॥इित    ीमद आ शंकराचाय वरिचतम्
क व वा द ग ं सुप ं करोित।       गुव कम ् संपूण म॥
                                                ्                             य द गु क ीचरण म आस भाव न
                                                                                      े

मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े           भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी              रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?

ततः क ततः क ततः क ततः कम॥३॥
     ं     ं     ं      ्       भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म
                                                                              (७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य,
                                व त रत हो, सुमे पवत क तु य अपार
                                                     े
वदे शेषु मा यः वदे शेषु ध यः,                                                   ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत
                                धन हो, कतु गु क ीचरण म य द मन
                                        ं      े
सदाचारवृ ेषु म ो न चा यः।                                                     न होता हो, फर भी गु क ीचरण क ित
                                                                                                   े      े
                                आस     न हो तो इन सार उपल धय से
मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े            या लाभ?                                      आस      न बन पाया हो तो मन क इस

ततः क ततः क ततः क ततः कम॥४॥
     ं     ं     ं      ्       (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कटु ं ब, गृ ह
                                                           ु                  अटलता से या लाभ?

  माम डले भूपभूपलबृ दै ः,       एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो
                                                                              (८) जनका मन वन या अपने वशाल
                                कतु गु क ीचरण म य द मन आस
                                 ं      े                                 न
सदा से वतं य य पादार व दम।
                         ्                                                    भवन म, अपने काय या शर र म तथा
                                हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ?
मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े                                                         अमू य भ डार म आस       न हो, पर गु के
                                (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा       ज ह
ततः क ततः क ततः क ततः कम॥५॥
     ं     ं     ं      ्                                                      ीचरण म भी वह मन आस         न हो पाये
                                कठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क
                                 ं
यशो मे गतं द ु दान तापात ्,      ितभा हो, कतु उनका मन य द गु क
                                           ं                  े               तो इन सार अनास       य का या लाभ?

जग     तु सव करे य     सादात।
                            ्    ीचरण क ित आस
                                       े                न हो तो इन
                                                                              (९) जो यित, राजा,    चार एवं गृ ह थ इस
                                सदगुण से या लाभ?
मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े                                                         गु अ क का पठन-पाठन करता है और
                                (४) ज ह वदे श म समान आदर िमलता
ततः क ततः क ततः क ततः कम॥६॥
     ं     ं     ं      ्                                                     जसका मन गु क वचन म आस
                                                                                          े                   है , वह
                                हो, अपने दे श म जनका िन य जय-
न भोगे न योगे न वा वा जराजौ,                                                  पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं
                                जयकार से वागत कया जाता हो और
न क तामुखे नैव व ेषु िच म।
                         ्      जसक समान दसरा कोई सदाचार भ
                                   े      ू                                        पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह

मन ेन ल नं गुरोरि प ,
                    े           नह ं, य द उनका भी मन गु क ीचरण क
                                                         े      े             िन    त है ।
                                 ित आस     न हो तो सदगुण से या लाभ?
ततः क ततः क ततः क ततः कम॥७॥
     ं     ं     ं      ्
                                                                                               ***
7                                    जुलाई 2011




                                 जब दवासाजी ने
                                     ु                            ी कृ ण क प र ाली।
                                                                                                          िचंतन जोशी
       ह द ु शा ो क अनुशार दवासाजी
                   े        ु                   ानी महापु ष       म ऐसा भी रख द जए। घर का सामान उठाकर दे नेवाला
होने क साथ ह अ तीय योगबल क
      े                   े                    वामी थे   जस       कोई िमल जाये तो आप दोगे, आप उठा तो नह ं सकोगे।
कारण समय-समय पर दवासाजी अपनी योगलीला रचते
                 ु                                                आप चाह तो घर को भी जला द तो भी हमारे मन म
रहते थे। एक बार दवासाजी ने
                 ु                       ी कृ ण क साथ
                                                 े                कभी दःख नह ं होगा।
                                                                       ु
योगलीला रचने का मन बनाया।                                         महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।"
       एक बार दवासाजी ने चुनौती द क , ह कोई जो
               ु                                                          दवासा ऋ ष अितिथ बनकर आये, अितिथ बनकर
                                                                           ु
मुझे अितिथ रखने को तैयार हो।           ी कृ ण ने दे खा तो         उनको तो करनी थी कछ लीला। अितिथ स कार म कह ं
                                                                                   ु
दवासा जी ! आज तो दवासा जी को अितिथ रखने क
 ु                ु                                               कछ चूक हो जाये तो दवासाजी िच लाव, झूठ कसे बोल?
                                                                   ु                 ु                   ै
चुनौती िमल रह है ।                                                यहाँ तो सब ठ क-ठाक था।
           ीकृ णजी आये और बोलेः "महाराज ! आप                              दवासाजी बोलेः "तो हम अभी जायगे और थोड़
                                                                           ु
आइये, हमारे अितिथ बिनये।"                                         दे र म वापस आयगे। हमारे जो भगत ह गे उनको भी
       दवासाजी बोलेः "अितिथ तो बन जाऊ पर मेर
        ु                                                         साथ लायगे। भोजन तैयार हो।"
शत है ।"                                                                  दवासाजी जाय, आय तो भोजन तैयार िमले।
                                                                           ु
'म जब आऊ-जाऊ, जो चाहँू , जहाँ चाहँू ,
        ँ   ँ                                    जतना चाहँू        कसी को बाँट, बँटवाय, कछ भी कर। फर भी दे खा क
                                                                                         ु
खाऊ, जनको चाहँू खलाऊ, जनको जो चाहँू दे दँ, जो भी
   ँ                ँ                    ू                        ' ीकृ ण कसी भी गलती म नह ं आते परं तु मुझे लाना
लुटाऊ, जतना भी लुटाऊ, कछ भी क ँ ,
     ँ              ँ  ु                                          है ।
                मुझे न कोई रोक न कोई टोक। बाहर
                              े         े                                  अब मुझे     ीकृ ण को अथवा        मणी को अ छा
                  से तो      या मन से भी कोई मुझे                 नह ं लगे ऐसा कछ करना है । शत है क 'ना' बोल दगे
                                                                                ु
                     रोकगा-टोकगा तो शाप
                        े     े                  दँ गा। सुन
                                                    ू             अथवा अंदर से भी कछ बोल दगे तो फर म शाप दँ गा।'
                                                                                   ु                        ू
                                ले,   कान खोल कर!        जो               दवासाजी
                                                                           ु           ीकृ ण को शाप दे ने का मौका ढँू ढ रहे
                            मुझे अितिथ रखता है , तो               थे। सती अनुसूयाजी क पु
                                                                                     े         दवासा ऋ ष कसे ह!
                                                                                                ु         ै
                            सामने आ जाय।'                                 एक दन दोपहर क समय दवासाजी वचार करने
                                                                                       े     ु
                            "महाराज ! आपने जो कह ं                लगे क 'सब चल रहा है । जो माँगता हंू, तैयार िमलता
                      वे   सभी शत       वीकार ह और जो             है । जो माँगता हँू    ीकृ ण या तो     कट कर दे ते ह या
                     आप    भूल गये ह या जतनी भी                    फर िस      क बल से
                                                                               े             कट कर दे ते ह। सब िस       याँ
                  और       शत     ह    वे भी    वीकार ह।"         इनक पास मौजूद ह, 64 कलाओं क जानकार ह।
                                                                     े                       े
                 महाराज! ये तो ठ क है परं तु घर का                        अब ऐसा कछ कया जाएं क
                                                                                  ु                        ीकृ ण नाराज हो
                 सामान      कसी को दे दँ,
                                        ू         कसी को          जाय।'
                  दलाऊ, चाहे जलाऊ...।
                      ँ          ँ                                        दवासाजी ने घर का सारा लकड़
                                                                           ु                                    का सामान
                     ीकृ ण बोलेः "महाराज ! अपनी शत                इक ठा कया। फर आग लगा द और बोलेः "होली रे
8                                जुलाई 2011



                                  होली कृ ण ! दे खो,                  अ छ लगती है ? आप कस समय             या माँगगे? यह तो
                                  होली जल रह है ।"                    आपक मन म आयेगा न? मन म आयेगा, उसक गहराई
                                                                         े
                                    ीकृ ण       बोलेः     "हाँ,       म तो हम ह।"
                                  गु जी     !     होली       रे               दवासाजी खीर खा रहे ह। दे खा क
                                                                               ु                                  मणी हँ स
                                  होली"                               रह है । "अरे !   य हँ सी?   मणी?"
                                  दवासाजी बोलेः अरे ,
                                   ु                                  "गु जी ! आप तो महान ह, पर तु आपका िश य भी
                                  कृ ण ! तेरा ये सब                   कम नह ं है । आप माँगेगे खीर यह जानकर उ ह ने पहले
                                  लकड़       का          सामान         से ह कह दया क खीर का कड़ाह तैयार रखो।
                                  जल रहा है !                         थोड़ बनाते तो डाँट पड़ती आप आयगे और ढे र सार
                                    ीकृ ण          बोलेः"हाँ,         खीर माँगेगे तो इस कड़ाहे म खीर भी ढे र सार है । जैसा
                                  गु जी !        मेर     सार          आपने माँगा, वैसा हमारे      भु ने पहले से ह    तैयार
                                  सृ याँ        कई        बार         रखवाया है । इस बात क हँ सी आती है ।"
जलती ह, कई बार बनती ह, गु जी ! होली रे होली !"                        "हाँ, बड़ हँ सी आरह ह तुझे सफलता दखती है अपने
"कृ ण ! तेरे   दय म चोट नह ं लगती है ?"                                 भु क ?" इधर आ ।
"आप गु ओं का        साद है तो मुझे चोट    य लगेगी?"                                मणीजी आयीं तो दवासाजी ने
                                                                                                  ु               मणी क
'अ छा !      ीकृ ण दवासाजी क झांसे म फसे नह , और
                    ु       े         ँ     ं                         चोट पकड़ और उनक मुँह पर झुठ खीर मल द ।
                                                                                    े
उपर से हँ स रहे ह। एक        दन दवासा जी बोलेः "हम
                                 ु                                            अब कोई पित कसे दे खे
                                                                                          ै           क कोई बाबा उसक
नहाने जा रहे ह।"                                                      प ी क चोट पकड़ कर उस क मुहं पर झुठ खीर मल
                                                                                           े
कृ णः "गु जी ! आप आयगे तो आपक िलए भोजन
                             े                             या         रहा है ? थोड़ा बहत कछ तो होगा क 'यह
                                                                                      ु  ु                       या?' अगर
होगा?"                                                                  ीकृ ण क चेहरे पर थोड़ भी िशकन आयेगी तो सेवा
                                                                               े
दवासाजी बोले: "हम नहाकर आयगे तब जो इ छा होगी
 ु                                                                    सब न     और शाप दँ गा, शाप।' यह शत थी।
                                                                                         ू
बोल दगे, वह भोजन दे दे ना।                                                    दवासाजी ने
                                                                               ु           ीकृ ण क ओर दे खा तो    ीकृ ण के
दवासा जी मन ह मन म सोच रहे थे 'पहले बोलकर
 ु                                                                    चेहरे पर िशकन नह ं है । अ दर से कोई रोष नह ं है ।   ी
जायगे तो सब तैयार िमलेगा। आकर ऐसी चीज माँगूगा                         कृ ण    य -क- य खड़े ह।
                                                                                  े
जो घर म तैयार न हो। कृ ण लेने जायगे या मँगवायगे                               " ी कृ ण ! कसी लगती है ये
                                                                                          ै                  मणी?"
तो म     ठ जाऊगा'
              ँ                                                               "हाँ, गु जी ! जैसी आप चाहते ह, वैसी ह लगती
दवासा जी नहाकर आये और बोलेः "मुझे ढे र सार खीर
 ु                                                                    है ।"
खानी है ।"                                                                    अगर 'अ छ लगती है ' बोल जो वो है नह ं और
 ीकृ ण बड़ा कड़ाह भरकर ले आयेः "ली जए, गु जी !"                         'ठ क नह ं लगती' बोल तो गलती िनकाल दे । इसिलए
दवासाजी बोले: "अरे , तुमको कसे पता चला?"
 ु                          ै                                           ीकृ ण ने कहाः "गु जी ! जैसा आप चाहते ह, वैसी
         आप यह बोलनेवाले ह, मुझे पता चल गया तो                        लगती है ।"
मने तैयार करक रखवा
             े             दया। जहाँ से आपका             वचार                 दवासाजी ने दे खा क प ी को ऐसा कया तो भी
                                                                               ु
उठता है वहाँ तो म रहता हँू । आपको कौन-सी चीज                          कृ ण म कोई फक नह ं पड़ा।        मणी तो अधािगनी है ।
9                                 जुलाई 2011



कृ ण को कछ गड़बड़ कर तो
         ु                             मणी क चेहरे पर
                                            े                   या ह यह बाबा जानते ह।
िशकन पड़े गी ऐसा सोचकर कृ ण को बुलायाः
                                                                         ा रका क लोग इक ठे हो गये, चौराहे पर रथ
                                                                                े
"कृ ण ! यह खीर बहत अ छ है ।"
                 ु
                                                               आ गया है फर भी         ीकृ ण को कोई फक नह ं पड़ रहा
"हाँ, गु जी ! अ छ है ।"
                                                               है ? दवासाजी उतरे और जैस, घोड़े को पुचकारते ह वैसे
                                                                     ु                 े
"तो फर        या दे खते हो? खाओ।"
                                                               ह पुचकारते हए पूछाः " य
                                                                           ु                  मणी ! कसा रहा?"
                                                                                                     ै
  ीकृ ण ने खीर खायी।
                                                               "गु जी आनंद है ।"
"इतना ह        नह ं, सारे शर र को खीर लगाओ। जैसे
                                                               "कृ ण ! कसा रहा?"
                                                                        ै
मुलतानी िम ट लगाते ह ऐसे पूरे शर र को लगाओ।
                                                               "जैसा आपको अ छा लगता है , वैसा ह अ छा है ।"
घुँघराले बाल म लगाओ। सब जगह लगाओ।"
                                                               दवासाजी ने
                                                                ु             ीकृ ण से कहाः "कृ ण ! म तु हार सेवा
"हाँ, गु जी।"
                                                               पर, समता पर, सजगता पर, सूझबूझ पर             स न हँू ।
"कसे लग रहे हो, कृ ण?"
  ै
                                                               प र थितयाँ सब माया म ह और म मायातीत हँू ,
"गु जी, जैसा आप चाहते ह वैसा।"
                                                               तु हार ये समझ इतनी ब ढ़या है क इससे म बहत खुश
                                                                                                      ु
दवासा जी ने दे खा क 'अभी-भी ये नह ं फसे।
 ु                                   ँ         या क ँ ?'
                                                               हँू । तुम जो वरदान माँगना चाहो, माँग लो। परंतु दे खो
फर बोलेः
                                                               कृ ण ! तुमने एक गलती क । मने कहा खीर चुपड़ो,
"मुझे रथ म बैठना है , रथ मँगवाओ। नहाना नह , ऐसे
                                          ं
                                                               तुमने खीर सारे शर र पर चुपड़ पर हे क है या ! पैर के
ह चलो।" रथ मँगवाया।
                                                               तलुओं पर नह ं चुपड़ । तु हारा सारा शर र अब व काय
दवासाजी बोलेः "घोड़े हटा दो।" घोड़े हटा दये गये। "म
 ु
                                                               हो गया है । इस शर र पर अब कोई हिथयार सफल नह ं
रथ म बैठूँगा। एक तरफ           मणी, एक तरफ      ी कृ ण,
                                                               होगा, परं तु पैर क तलुओं का
                                                                                 े                 याल करना। पैर के
रथ खींचेगे।"
                                                               तलुओं म कोई बाण न लगे,       य क तुमने वहाँ मेर जूठ
दवासाजी को हआ 'अब तो ना बोलगे क ऐसी
 ु          ु                                      थित
                                                               खीर नह ं लगायी है ।"
म? खीर लगी हई है ,
            ु              मणी क मुँह पर भी खीर लगी
                                े
                                                               पौरा णक कथा क अनुशार:
                                                                            े               ीकृ ण को िशकार ने मृ ग
हई है ।'
 ु
                                                               जानकर बाण मारा और पैर क तलुए म लगा। और जगह
                                                                                      े
           परं तु दोन ने रथ खींचा। जैस, घोड़े को चलाते ह
                                      े
                                                               लगता तो कोई असर नह ं होता। यु            क मैदान म
                                                                                                         े
ऐसे दवासाजी ने
     ु               ी कृ ण और       मणी को चलाया। रथ
                                                                ीकृ ण अजु न का रथ चला रहे थे वहाँ पर श ु प         के
चौराहे पर पहँु चा। लोग क भीड़ इक ठ हो गयी              क
                                                               बाण का उन पर कोई वशेष         भाव नह ं पड़ा था।
' ीकृ ण कौन-से बाबा क च कर म आ गये?'
                     े
                                                               दवासाजीः " या चा हए, कृ ण?"
                                                                ु
           लोग ने दे खा क 'यह       या ! दवासाजी रथ पर
                                          ु
                                                               "गु जी ! आप      स न रह।"
बैठे ह। खीर और पसीने से तरबतर              ी कृ ण और
                                                               "म तो     स न हँू , परं तु कृ ण ! जहाँ कोई तु हारा नाम
    मणी जी दोन रथ हाँक रहे ह? मुँह पर, सवाग पर
                                                               लेगा वहाँ भी आनंद हो जायेगा, वरदान दे ता हँू ." ीकृ ण
खीर लगी हई है ?'
         ु
                                                               का नाम लेते ह आनंद हो जाता है ।         ीकृ ण का नाम
उस नजारे खो दे खने वाले लोग को           ीकृ ण पर तरस
                                                               लेने से    स नता िमलेगी - ये दवासा ऋ ष क वचन
                                                                                             ु         े
आया क "कसे बाबा क चककर म आ गये ह?"
        ै        े
                                                               अभी तक       कृ ित स य कर रह है ।
अब ये बाबा       या ह यह    ीकृ ण जानते ह और      ीकृ ण
10                                           जुलाई 2011




                                                             ीकृ ण बीसा यं
          कसी भी य              का जीवन तब आसान बन जाता ह जब उसक चार और का माहोल उसक अनु प उसक वश
                                                                े                   े         े
म ह । जब कोई य                  का आकषण दसरो क उपर एक चु बक य
                                         ु    े                                    भाव डालता ह, तब          लोग उसक सहायता एवं
सेवा हे तु त पर होते है और उसके                 ायः सभी काय बना अिधक क                व परे शानी से संप न हो जाते ह। आज के
भौितकता वा द युग म हर                य      क िलये दसरो को अपनी और खीचने हे तु एक
                                             े      ू                                                 भावशािल चुंबक व को कायम
रखना अित आव यक हो जाता ह। आपका आकषण और य                                      व आपक चारो ओर से लोग को आक षत करे इस
                                                                                   े
िलये सरल उपाय ह,                ीकृ ण बीसा यं ।        यो क भगवान         ी कृ ण एक अलौ कव एवं दवय चुंबक य                   य        व के
धनी थे। इसी कारण से               ीकृ ण बीसा यं     क पूजन एवं दशन से आकषक य
                                                     े                                           व    ा    होता ह।
            ीकृ ण बीसा यं         क साथ
                                   े        य     को         ढ़ इ छा श      एवं उजा    ा
होती ह, ज से य              हमेशा एक भीड म हमेशा आकषण का क                     रहता ह।
                                                                                                     ीकृ ण बीसा कवच
          य द कसी य             को अपनी      ितभा व आ म व ास के             तर म वृ ,
अपने िम ो व प रवारजनो क बच म र तो म सुधार करने क ई छा होती
                       े                                                                         ीकृ ण     बीसा    कवच      को       कवल
                                                                                                                                      े

ह उनक िलये
     े                  ीकृ ण बीसा यं       का पूजन एक सरल व सुलभ मा यम                     वशेष शुभ मुहु त म िनमाण कया

सा बत हो सकता ह।                                                                            जाता ह। कवच को व ान कमकांड

            ीकृ ण बीसा यं        पर अं कत श        शाली वशेष रे खाएं, बीज मं          एवं    ाहमण          ारा शुभ मुहु त म शा ो

अंको से          य      को अ      त आंत रक श           यां    ा   होती ह जो    य      को    विध- वधान से विश             तेज वी मं ो
                                  ु
सबसे आगे एवं सभी                े ो म अ    णय बनाने म सहायक िस              होती ह।          ारा िस         ाण- ित त पूण चैत य

            ीकृ ण बीसा यं        क पूजन व िनयिमत दशन क मा यम से भगवान
                                  े                   े                                     यु       करक िनमाण कया जाता ह।
                                                                                                        े

 ीकृ ण का आशीवाद ा कर समाज म वयं का अ तीय                            थान    था पत कर।       जस क फल
                                                                                                े                  व प धारण करता

            ीकृ ण बीसा यं         अलौ कक         ांड य उजा का संचार करता ह, जो               य        को शी       पूण लाभ        ा   होता

एक        ाकृ        मा यम से    य       क भीतर स भावना, समृ , सफलता, उ म
                                          े                                                 ह। कवच को गले म धारण करने

 वा       य, योग और        यान क िलये एक श
                                े                       शाली मा यम ह!                       से वहं अ यंत             भाव शाली होता

               ीकृ ण बीसा यं     क पूजन से य
                                   े                         क सामा जक मान-स मान व
                                                              े                             ह। गले म धारण करने से कवच

           पद- ित ा म वृ          होती ह।                                                   हमेशा         दय क पास रहता ह ज से
                                                                                                              े

           व ानो क मतानुशार
                   े                  ीकृ ण बीसा यं           क म यभाग पर
                                                               े               यान योग       य        पर उसका लाभ अित ती

           क त करने से य              क चेतना श              जा त होकर शी     उ च     तर    एवं शी          ात होने लगता ह।
                                                                                                                    मूलय मा : 1900
           को ा होती ह ।
          जो पु ष और म हला अपने साथी पर अपना                       भाव डालना चाहते ह और उ ह अपनी और आक षत करना
           चाहते ह। उनक िलये
                       े              ीकृ ण बीसा यं           उ म उपाय िस     हो सकता ह।
          पित-प ी म आपसी            म क वृ       और सुखी दा प य जीवन क िलये
                                                                       े                    ीकृ ण बीसा यं          लाभदायी होता ह।
                                                                                   मू य:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उ ल
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11                                          जुलाई 2011




                                        गु मं के             भाव से ई              दशन
                                                                                                                  व तक.ऎन.जोशी

         व ानो क अनुशार शा ो
                े                        उ लेख ह क कोई                 "सं यासी बोले नह ं ....पहले उनक दशन करो फर उनक
                                                                                                      े              े
भी मं    िन    त      प से अपना    भाव अव य रखते ह।                    शा    पर ट का िलखो। लो यह मं । छः मह ने इसका
         जस      कार पानी म ककड़-प थर डालने से उसम
                             ं                                         अनु ान करो। भगवान             कट ह गे। उनसे          ेरणा िमले
तरं गे उठती ह उसी        कार से मं जप के       भाव से हमारे            फर लेखनकाय का         ारं भ करो।"
भीतर आ या मक तरं ग उ प न होती ह। जो हमारे                              मं   दे कर बाबाजी चले गये।         ी मधुसूदनजी ने अनु ान
इद-िगद सू म            प से एक सुर ा                                                    शु     कया। अनु ान क छः मह ने पूण
                                                                                                            े
कवच जैसा           कािशत वलय (अथात                    गणेश ल मी यं                      हो गये ले कन              ीकृ ण क दशन न
                                                                                                                         े
ओरा) का िनमाण होता ह। उन ओरा                                                            हए। 'अनु ान म कछ
                                                                                         ु             ु                   ु ट रह गई
                                               ाण- ित त गणेश ल मी यं को
का सू म जगत म उसका            भाव पड़ता                                                  होगी' ऐसा सोचकर             ी मधुसूदनजी ने
                                              अपने        घर-दकान-ओ फस-फ टर
                                                              ु         ै
है । जो खुली आंखो से सामा य         य                                                   दसरे
                                                                                         ू      छः मह ने म दसरा अनु ान
                                                                                                            ू
                                              म पूजन थान, ग ला या अलमार
को उसका         भाव     दखाई नह ं दे ता।                                                कया फर भी              ीकृ ण दशन न हए।
                                                                                                                            ु
                                              म था पत करने यापार म वशेष
उस सुर ा        कवच से         य        को                                                       दो     बार       अनु ान    के    उरांत
                                              लाभ     ा    होता ह। यं क भाव से
                                                                       े
नकारा मक        भावी जीव व श            या                                              असफलता            ा    होने पर      ी मधुसूदन
                                              भा य म उ नित, मान- ित ा एवं
उसक पास नह ं आ सकतीं।
   े                                                                                    क िच
                                                                                         े            म       लािन हो गई। सोचा
                                               यापर म वृ          होती ह एवं आिथक
         ीमदभगवदगीता           क     ' ी                                                कः ' कसी अजनबी बाबाजी क कहने
                                                                                                               े
मधुसूदनी ट का' चिलत एवं मह वपूण                    थम सुधार होता ह। गणेश ल मी           से     मने     बारह       मास      बगाड़    दये
ट काओं म से एक ह। इस ट का के                  यं    को     था पत करने से भगवान          अनु ान म।
रचियता        ी मधुसूदन सर वतीजी जब           गणेश और दे वी ल मी का संयु                सबम            माननेवाला म 'हे कृ ण ...हे
संक प करक लेखनकाय क िलए बैठे
         े         े                          आशीवाद ा होता ह।                          भगवान ...दशन दो ...दशन दो...' ऐसे
ह   थे   क एक तेज वी आभा िलये                                                           मेरा िगड़िगड़ाना ?
                                                    Rs.550 से Rs.8200 तक
परमहं स सं यासी अचानक घर का             ार                                              जो      ीकृ ण क           आ मा है वह       मेर
खोलकर भीतर आये और बोलेः "अरे मधुसूदन! तू गीता                          आ मा है । उसी आ मा म म त रहता तो ठ क रहता।
पर ट का िलखता है तो गीताकार से िमला भी है क ऐसे                         ीकृ ण आये नह ं और पूरा वष भी चला गया। अब                    या
ह कलम उठाकर बैठ गया है ? तूने कभी भगवान                   ीकृ ण        ट का िलखना ?"
क दशन
 े            कये ह     क ऐसे ह     उनक वचन
                                       े             पर ट का                   वे ऊब गये। अब न ट का िलख सकते ह न तीसरा
िलखने लग गया?"                                                         अनु ान कर सकते ह। चले गये या ा करने को तीथ म।
         ी मधुसूदनजी तो थे वेदा ती, अ ै तवाद । वे                      वहाँ पहँु चे तो सामने से एक चमार आ रहा था। उस
बोलेः "दशन तो नह ं कये। िनराकार              -परमा मा सबम              चमार ने इनको पहली बार दे खा और                ी मधुसूदनजी ने
एक ह है ।       ीकृ ण के     प म उनका दशन करने का                      भी चमार को पहली बार दे खा।
हमारा    योजन भी नह ं है । हम तो कवल उनक गीता
                                  े                                    चमार ने कहाः "बस, वामीजी! थक गये न दो अनु ान
का अथ     प     करना है ।"                                             करक?"
                                                                          े
12                                           जुलाई 2011



 ीमधुसूदन       वामी च क ! सोचाः "अरे मने अनु ान कये,
                        े                                                          ी मधुसूदनजी ने कहाः "नह ं दखा।"
यह मेरे िसवा और कोई जानता नह । इस चमार को कसे
                             ं             ै                                      चमार ने कहाः "म उसे रोज बुलाता हँू , रोज दे खता हँू ।
पता चला?"                                                                         ठह रये, म बुलाता हँू , उसे।" वह गया एक तरफ और
वे चमार से बोलेः "तेरे को कसे पता चला?", "कसे भी
                           ै               ै                                      अपनी विध करक उस भूत को बुलाया, भूत से बात क
                                                                                              े
पता चला। बात स ची करता हँू                     क नह ं ? दो अनु ान                 और वापस आकर बोलाः
करक थककर आये हो। ऊब गये, तभी
   े                                                                                               "बाबा जी ! वह भूत बोलता है                   क
इधर आये हो। बोलो, सच क नह ?"
                          ं                                                                        मधुसूदन        वामी ने       य ह मेरा नाम
"भाई ! तू भी अ तयामी गु              जैसा लग                                                         मरण        कया, तो म         खंचकर आने
रहा है । सच बता, तूने कसे जाना ?"
                       ै                                                                           लगा। ले कन उनक कर ब जाने से मेरे
                                                                                                                 े
" वामी जी ! म अ तयामी भी नह ं                                                                      को आग जैसी तपन लगी। उनका तेज
और गु      भी नह । म तो हँू जाित का
                 ं                                                                                 मेरे    से     सहा    नह ं    गया।       उ ह ने
चमार। मने भूत को अपने वश म                                                                         सकारा मक श            ओं का अनु ान कया
कया है । मेरे भूत ने बतायी आपके                                                                    है तो उनका आ या मक ओज इतना
अ तःकरण क बात।"                                                                                    बढ़ गया है            क हमारे जैसे तु छ
 ी   मधुसूदनजी        बोले       "भाई ! दे ख
                                                     मं          िस        प ना गणेश               श      यां उनक कर ब खड़े
                                                                                                                 े                      नह ं रह
 ीकृ ण क तो दशन नह ं हए, कोई
        े             ु                              भगवान            ी गणेश बु     और िश ा के     सकते। अब तुम मेर ओर से उनको
बात नह ।
       ं        णव का जप            कया, कोई         कारक         ह बुध क अिधपित दे वता
                                                                         े                         हाथ जोड़कर            ाथना करना क वे फर
दशन नह ं हए। गाय ी का जप कया,
          ु                                          ह। प ना गणेश बुध क सकारा मक
                                                                       े                           से अनु ान कर तो सब                ितब ध दर
                                                                                                                                            ू
दशन नह ं हए। अब तू अपने भूत का                        भाव को बठाता ह एवं नकारा मक                  हो     जायगे     और      भगवान           ीकृ ण
          ु
                                                      भाव        को     कम करता ह।. प न
ह दशन करा दे , चल।"                                                                                िमलगे। बाद म जो गीता क                    ट का
                                                     गणेश के          भाव से यापार और धन
चमार ने कहाः " वामी जी ! मेरा भूत                                                                  िलखगे। वह बहत
                                                                                                               ु            िस    होगी।"
                                                     म वृ        म वृ       होती ह। ब चो क
तो तीन         दन क अंदर ह
                   े                   दशन दे                                                        ी मधुसूदन जी ने             फर से अनु ान
                                                     पढाई हे तु भी          वशेष फल        द ह
सकता है ।        72घ टे म ह            वह आ                                                         कया, भगवान            ीकृ ण क दशन हए
                                                                                                                                 े     ु
                                                     प ना गणेश इस के                भाव से ब चे
जायेगा।    लो    यह     मं        और    उसक          क      बु          कशा
                                                                         ू         होकर    उसके
                                                                                                   और बाद म भगवदगीता पर ट का
विध।"                                                आ म व ास म भी वशेष वृ                 होती    िलखी।        आज भी वह ' ी मधुसूदनी
          ी मधुसूदनजी ने चमार                  ारा   ह। मानिसक अशांित को कम करने म                 ट का' क नाम से पूरे
                                                                                                          े                      व      म     िस
बताई गई पूण विध जाप कया। एक                          मदद करता ह, य                  ारा अवशो षत    है ।
दन बीता, दसरा बीता, तीसरा भी बीत
          ू                                          हर     व करण शांती           दान करती ह,                   ज ह स       भा य से गु मं
गया और चौथा शु          हो गया।         72घ टे        य      क शार र क तं को िनयं त
                                                              े       े                            िमला है और वहं पूण िन ा व व ास
तो पूरे हो गये। भूत आया नह ं। गये                    करती        ह।      जगर,       फफड़े , जीभ,
                                                                                     े             से विध- वधान से उसका जप करता
                                                     म त क और तं का तं इ या द रोग
चमार      के     पास।        ी     मधुसूदनजी                                                       है । उसे सभी         कार क िस या           वतः
                                                     म सहायक होते ह। क मती प थर
बोलेः " ी कृ ण क दशन तो नह ं हए
                े             ु                                                                      ा     हो जाती ह। उसे नकारा मक
                                                     मरगज क बने होते ह।
                                                           े
मुझे तेरा भूत भी नह ं दखता?" चमार                                                                  श      यां व    भावीजीव क         नह ं पहंू चा
ने कहाः " वामी जी! दखना चा हए।"                             Rs.550 से Rs.8200 तक                   सकते।
13                                                जुलाई 2011




                                  गु मं के          भाव से र ा
                                                                                                          व तक.ऎन.जोशी

        ' क द पुराण' के   ो र ख ड म उ लेख है ः           भी   आपने            शराब   पीनेवाली        वे याओं   के   साथ   और
काशी नरे श क क या कलावती क साथ मथुरा क दाशाह
                          े           े                  कलटाओं क साथ भोग भोगे ह।"
                                                          ु      े
नामक राजा का ववाह हआ।
                   ु                                               राजाः "तु ह इस बात का पता कसे चल गया?"
                                                                                              ै
        ववाह क बाद राजा ने अपनी प ी को बुलाया
              े                                                    प ीः "नाथ !           दय शु         होता है तो यह      याल
और संसार- यवहार     थापीत करने क बात कह ं परं तु          वतः आ जाता है ।"
प ी ने इ कार कर दया। तब राजा ने जबद ती करने                        राजा       भा वत हआ और रानी से बोलाः "तुम मुझे
                                                                                     ु
क बात कह ।                                               भी भगवान िशव का वह मं                  दे दो।"
        प ी ने कहाः " ी क साथ संसार- यवहार करना
                         े                                         रानीः "आप मेरे पित ह। म आपक गु                    नह ं बन
हो तो बल- योग नह , यार
                 ं        नेह- योग करना चा हए।           सकती। हम दोन गगाचाय महाराज क पास चलते ह।"
                                                                                     े
        प ी ने कहाः नाथ ! म आपक प ी हँू , फर भी                    दोन गगाचायजी क पास गये और उनसे
                                                                                 े                                        ाथना
आप मेरे साथ बल- योग करक संसार- यवहार न कर।"
                       े                                 क । उ ह ने           नाना द से प व          हो, यमुना तट पर अपने
        आ खर वह राजा था। प ी क बात सुनी-अनसुनी           िशव व प के             यान म बैठकर राजा-रानी को              ीपात से
करक प ी क नजद क गया।
   े     े                   य   ह उसने प ी का           पावन कया। फर िशवमं                 दे कर अपनी शांभवी द           ा से
 पश     कया   य ह उसक शर र म
                     े            व ुत जैसा करं ट        राजा पर श            पात कया। व ानो क मतानुशार कथा मे
                                                                                              े
लगा। उसका      पश करते ह राजा का अंग-अंग जलने            उ लेख ह क दे खते-ह -दे खते सैकडो तु छ परमाणु राजा
लगा। वह दर हटा और बोलाः " या बात है ? तुम इतनी
         ू                                               क शर र से िनकल-िनकलकर पलायन कर गये।
                                                          े
सु दर और कोमल हो फर भी तु हारे शर र के     पश से
मुझे जलन होने लगी?"                                                              या आप जानते ह?
        प ीः "नाथ ! मने बा यकाल म दवासा ऋ ष से
                                   ु                       महाभारत क रचना इसी गु                      पू णमा क दन पूण
                                                                                                               े
गु मं   िलया था। वह जपने से मेर सा वक ऊजा का                  हई थी।
                                                               ु
वकास हआ है ।
      ु                                                      व      क सु िस
                                                                      े               आष        ंथ      सू का लेखन काय
        जैस, रात और दोपहर एक साथ नह ं रहते उसी
           े                                                  गु     पू णमा क आरं भ कया गया था।
                                                                             े
तरह आपने शराब पीने वाली वे याओं क साथ और
                                 े
                                                           दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु
कलटाओं क साथ जो संसार-भोग भोगा ह, उससे आपक
 ु      े                                 े
                                                              पू णमा क दन कया था। इस िलये इस दन वेद
                                                                      े
पाप क कण आपक शर र म, मन म, बु
     े      े                        म अिधक है
                                                               यास का पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा
और मने जो मं जप कया है उसक कारण मेरे शर र म
                          े
                                                              को यासपू णमा भी कहा जाता ह।
ओज, तेज, आ या मक कण अिधक ह। इसिलए म
                                                             व ानो क मत मे गु
                                                                     े                           पू णमा क दन गु
                                                                                                         े                का
आपक नजद क नह ं आती थी ब क आपसे थोड़ दर
   े                                ू
                                                              पूजन कर नेसे वषभर क पव मनाने क समान
                                                                                 े          े
रहकर आपसे      ाथना करती थी। आप बु मान ह बलवान
                                                              फल          ा    होता ह।
ह, यश वी ह धम क बात भी आपने सुन रखी है । फर
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  • 2. FREE E CIRCULAR गु व योितष प का जुलाई 2011 संपादक िचंतन जोशी गु व योितष वभाग संपक गु व कायालय 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईमेल gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेब http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी फोटो ाफ स िचंतन जोशी, व तक आट हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी ( व तक सो टे क इ डया िल) ई- ज म प का E HOROSCOPE अ याधुिनक योितष प ित ारा Create By Advanced Astrology उ कृ भ व यवाणी क साथ े Excellent Prediction १००+ पेज म तुत 100+ Pages हं द / English म मू य मा 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. 3 जुलाई 2011 वशेष लेख गु ाथना 5 ािभषेक से कामनापूित 33 जब दवासाजी ने ु ी कृ ण क प र ाली। 7 ािभषेक तो 35 गु मं क भाव से ई दशन े 11 सोमवार को िशवपूजन का मह व या ह? 36 गु मं क भाव से र ा े 13 िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास 37 गु मं क जप से अलौ कक िस े या ा होती ावण मास क सोमवार े त से भौितक क ो से 14 40 ह मु िमलती ह आ ण क गु भ 18 आ या मक उ नित हे तु उ म चातुमास त 41 स गु क याग से द र ता आती ह े 19 य िशव को य ह बेल प ? 43 मं जप से ा हवा शा ु ान 21 ावण सोमवार त कसे कर? ै 45 एकल य क गु भ 22 ा धारण से कामनापूित 46 ीकृ ण क गु सेवा 23 एक मुखी से 12 मुखी ा धारण करने क लाभ े 48 दे व ष नारद ने एक म लाह को अपना गु 25 चातुमास म मांगिलक काय व जत ह। 50 बनाया ीम आ शंकराचाय सदगु 27 अनु म संपादक य 4 मं िस साम ी 67 गुव कम ् 6 जुलाई 2011 - वशेष योग 68 ीकृ ण बीसा यं 10 दै िनक शुभ एवं अशुभ समय ान तािलका 68 ी गु तो म ् 31 दन-रात क चौघ डये े 69 ह तरे खा ान 32 दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक 70 सव काय िस कवच 51 ह चलन जुलाई -2011 71 राम र ा यं 42 सव रोगनाशक यं /कवच 72 व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं 53 मं िस कवच 74 मं िस प ना गणेश 53 YANTRA LIST 75 मं िस साम ी 54 GEM STONE 77 मािसक रािश फल 57 BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION 78 रािश र 61 सूचना 79 जुलाई 2011 मािसक पंचांग 60 हमारा उ े य 81 जुलाई -2011 मािसक त-पव- यौहार 64
  • 4. 4 जुलाई 2011 संपादक य य आ मय बंधु/ ब हन जय गु दे व महापु षो क मतानुशार य े को अपने जीवन म पूण ता कसी स ु गु क शरण म जाने से ा हो सकती ह। भारतीय धमशा ो म गु को व प कहां गया ह। कसी स गु के ा होने पर य क सभी धम-अधम, पाप-पु य आ द समा े हो जाते ह। य य मरणमा ेण ानमु प ते वयम ् । सः एव सवस प ः त मा संपूजये गु म् ।। अथात: जनके मरण मा से ान अपने आप कट होने लगता है और वे ह सव स पदा प ह, अतः ी गु दे व क पूजा करनी चा हए। हमारे ऋ ष मुिन क मतानुशार गु े उसे मानना चा हये जो ेरकः सूचक ैव वाचको दशक तथा । िश को बोधक ैव षडे ते गुरवः मृ ताः ॥ अथात: ेरणा दे नेवाले, सूचन दे नेवाले, सच बतानेवाले, सह रा ता दखानेवाले, िश ण दे नेवाले, और बोध करानेवाले ये सब गु समान ह। गु श द क प रभाषा श दो म िलखना या बताना एक मूख ता ह एक ओछापन ह। यो क गु क म हमा अनंत ह अपार ह। इस िलये क बरजी ने िलखा ह। गु गो वंद दोनो खड़े काक लागू पांव, गु े बिलहार आपने गो वंद दयो बताए। गु क तुलना कसी अ य से करना कभी भी संभव नह ं ह। इस िलये शा कहते ह। ा तो नैव भुवनजठरे स रो ानदातुः पश े ु कल यः स नयित यदहो व ताम मसारम ् । न पश वं तथा प ि तचरगुणयुगे स ु ः वीयिश ये वीयं सा यं वधते भवित िन पम तेवालौ ककोऽ प ॥ अथात: तीन लोक, वग, पृ वी, पाताल म ान दे नेवाले गु क िलए कोई उपमा नह ं दखाई दे ती । गु े को पारसम ण क जैसा मानते है , तो वह ठ क नह ं है , कारण पारसम ण कवल लोहे को सोना बनाता है , पर े े वयं जैसा न ह बनाता ! स ु तो अपने चरण का आ य लेनेवाले िश य को अपने जैसा बना दे ता है ; इस िलए गु दे व क िलए कोई उपमा न ह े है , गु तो अलौ कक है । इस किलयुग म धम क नाम पर गु क नाम का ठ गी चोला पहनने वालो क भी कमी नह ं ह इस िलये शा ो म े े िलखा ह। सवािभला षणः सवभो जनः सप र हाः । अ चा रणो िम योपदे शा गुरवो न तु ॥ अथात: अिभलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, सं ह करनेवाले, चय का पालन न करनेवाले, और िम या उपदे श करनेवाले, गु न ह होते है । िचंतन जोशी
  • 5. 5 जुलाई 2011 गु ाथना  िचंतन जोशी गु ा ु व णुः गु दवो महे रः । गु ः सा ात ् परं त मै ी गुरवे नमः ॥ भावाथ: गु ा ह, गु व णु ह, गु ह शंकर ह; गु ह सा ात ् पर ह; एसे स ु को नमन । यानमूलं गु मू ितः पूजामूलम गु र पदम। ् मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृ पा।। भावाथ: गु क मूित यान का मूल कारण है , गु क चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत क े े सम त मं का और गु क कृ पा मो ाि का मूल कारण ह। अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम। ् त पदं दिशतं येन त मै ीगुरवे नमः।। वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु सखा वमेव। वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे व दे व।। ानंदं परमसुखदं कवलं े ानमूित ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ् । एक िन यं वमलमचलं सवधीसा ं भुतं भावातीतं गुणर हतं स ु ं तं नमािम ॥ भावाथ: ा क आनंद प परम ् सुख प, े ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस" इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और गुणर हत - ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
  • 6. 6 जुलाई 2011 गुव कम् शर रं सु पं तथा वा कल , ं अर ये न वा व य गेहे न काय, (५) जन महानुभाव क चरण कमल े यश ा िच ं धनं मे तु यम। ् न दे हे मनो वतते मे वन य। भूम डल क राजा-महाराजाओं से िन य े मन ेन ल नं गुरोरि प , े मन ेन ल नं गुरोरि प , े पू जत रहते ह , कतु उनका मन य द गु ं ततः क ततः क ततः क ततः कम॥१॥ ं ं ं ् ततः क ततः क ततः क ततः कम॥८॥ ं ं ं ् क ीचरण क ित आस े े न हो तो इस कल ं धनं पु पौ ा दसव, गुरोर क यः पठे पुरायदे ह , ं सदभा य से या लाभ? गृ हो बा धवाः सवमेत जातम। ् यितभूपित चार च गेह । (६) दानवृ क ताप से जनक क ित े मन ेन ल नं गुरोरि प , े चारो दशा म या हो, अित उदार गु क लमे ा छताथं पदं सं , ं ततः क ततः क ततः क ततः कम॥२॥ ं ं ं ् सहज कृ पा से ज ह संसार क सारे े गुरो वा ये मनो य य ल नम॥९॥ ् षड़ं गा दवेदो मुखे शा व ा, सुख-ए य ह तगत ह , कतु उनका मन ं ॥इित ीमद आ शंकराचाय वरिचतम् क व वा द ग ं सुप ं करोित। गुव कम ् संपूण म॥ ् य द गु क ीचरण म आस भाव न े मन ेन ल नं गुरोरि प , े भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ? ततः क ततः क ततः क ततः कम॥३॥ ं ं ं ् भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म (७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य, व त रत हो, सुमे पवत क तु य अपार े वदे शेषु मा यः वदे शेषु ध यः, ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत धन हो, कतु गु क ीचरण म य द मन ं े सदाचारवृ ेषु म ो न चा यः। न होता हो, फर भी गु क ीचरण क ित े े आस न हो तो इन सार उपल धय से मन ेन ल नं गुरोरि प , े या लाभ? आस न बन पाया हो तो मन क इस ततः क ततः क ततः क ततः कम॥४॥ ं ं ं ् (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कटु ं ब, गृ ह ु अटलता से या लाभ? माम डले भूपभूपलबृ दै ः, एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो (८) जनका मन वन या अपने वशाल कतु गु क ीचरण म य द मन आस ं े न सदा से वतं य य पादार व दम। ् भवन म, अपने काय या शर र म तथा हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ? मन ेन ल नं गुरोरि प , े अमू य भ डार म आस न हो, पर गु के (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा ज ह ततः क ततः क ततः क ततः कम॥५॥ ं ं ं ् ीचरण म भी वह मन आस न हो पाये कठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क ं यशो मे गतं द ु दान तापात ्, ितभा हो, कतु उनका मन य द गु क ं े तो इन सार अनास य का या लाभ? जग तु सव करे य सादात। ् ीचरण क ित आस े न हो तो इन (९) जो यित, राजा, चार एवं गृ ह थ इस सदगुण से या लाभ? मन ेन ल नं गुरोरि प , े गु अ क का पठन-पाठन करता है और (४) ज ह वदे श म समान आदर िमलता ततः क ततः क ततः क ततः कम॥६॥ ं ं ं ् जसका मन गु क वचन म आस े है , वह हो, अपने दे श म जनका िन य जय- न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं जयकार से वागत कया जाता हो और न क तामुखे नैव व ेषु िच म। ् जसक समान दसरा कोई सदाचार भ े ू पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह मन ेन ल नं गुरोरि प , े नह ं, य द उनका भी मन गु क ीचरण क े े िन त है । ित आस न हो तो सदगुण से या लाभ? ततः क ततः क ततः क ततः कम॥७॥ ं ं ं ् ***
  • 7. 7 जुलाई 2011 जब दवासाजी ने ु ी कृ ण क प र ाली।  िचंतन जोशी ह द ु शा ो क अनुशार दवासाजी े ु ानी महापु ष म ऐसा भी रख द जए। घर का सामान उठाकर दे नेवाला होने क साथ ह अ तीय योगबल क े े वामी थे जस कोई िमल जाये तो आप दोगे, आप उठा तो नह ं सकोगे। कारण समय-समय पर दवासाजी अपनी योगलीला रचते ु आप चाह तो घर को भी जला द तो भी हमारे मन म रहते थे। एक बार दवासाजी ने ु ी कृ ण क साथ े कभी दःख नह ं होगा। ु योगलीला रचने का मन बनाया। महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।" एक बार दवासाजी ने चुनौती द क , ह कोई जो ु दवासा ऋ ष अितिथ बनकर आये, अितिथ बनकर ु मुझे अितिथ रखने को तैयार हो। ी कृ ण ने दे खा तो उनको तो करनी थी कछ लीला। अितिथ स कार म कह ं ु दवासा जी ! आज तो दवासा जी को अितिथ रखने क ु ु कछ चूक हो जाये तो दवासाजी िच लाव, झूठ कसे बोल? ु ु ै चुनौती िमल रह है । यहाँ तो सब ठ क-ठाक था। ीकृ णजी आये और बोलेः "महाराज ! आप दवासाजी बोलेः "तो हम अभी जायगे और थोड़ ु आइये, हमारे अितिथ बिनये।" दे र म वापस आयगे। हमारे जो भगत ह गे उनको भी दवासाजी बोलेः "अितिथ तो बन जाऊ पर मेर ु साथ लायगे। भोजन तैयार हो।" शत है ।" दवासाजी जाय, आय तो भोजन तैयार िमले। ु 'म जब आऊ-जाऊ, जो चाहँू , जहाँ चाहँू , ँ ँ जतना चाहँू कसी को बाँट, बँटवाय, कछ भी कर। फर भी दे खा क ु खाऊ, जनको चाहँू खलाऊ, जनको जो चाहँू दे दँ, जो भी ँ ँ ू ' ीकृ ण कसी भी गलती म नह ं आते परं तु मुझे लाना लुटाऊ, जतना भी लुटाऊ, कछ भी क ँ , ँ ँ ु है । मुझे न कोई रोक न कोई टोक। बाहर े े अब मुझे ीकृ ण को अथवा मणी को अ छा से तो या मन से भी कोई मुझे नह ं लगे ऐसा कछ करना है । शत है क 'ना' बोल दगे ु रोकगा-टोकगा तो शाप े े दँ गा। सुन ू अथवा अंदर से भी कछ बोल दगे तो फर म शाप दँ गा।' ु ू ले, कान खोल कर! जो दवासाजी ु ीकृ ण को शाप दे ने का मौका ढँू ढ रहे मुझे अितिथ रखता है , तो थे। सती अनुसूयाजी क पु े दवासा ऋ ष कसे ह! ु ै सामने आ जाय।' एक दन दोपहर क समय दवासाजी वचार करने े ु "महाराज ! आपने जो कह ं लगे क 'सब चल रहा है । जो माँगता हंू, तैयार िमलता वे सभी शत वीकार ह और जो है । जो माँगता हँू ीकृ ण या तो कट कर दे ते ह या आप भूल गये ह या जतनी भी फर िस क बल से े कट कर दे ते ह। सब िस याँ और शत ह वे भी वीकार ह।" इनक पास मौजूद ह, 64 कलाओं क जानकार ह। े े महाराज! ये तो ठ क है परं तु घर का अब ऐसा कछ कया जाएं क ु ीकृ ण नाराज हो सामान कसी को दे दँ, ू कसी को जाय।' दलाऊ, चाहे जलाऊ...। ँ ँ दवासाजी ने घर का सारा लकड़ ु का सामान ीकृ ण बोलेः "महाराज ! अपनी शत इक ठा कया। फर आग लगा द और बोलेः "होली रे
  • 8. 8 जुलाई 2011 होली कृ ण ! दे खो, अ छ लगती है ? आप कस समय या माँगगे? यह तो होली जल रह है ।" आपक मन म आयेगा न? मन म आयेगा, उसक गहराई े ीकृ ण बोलेः "हाँ, म तो हम ह।" गु जी ! होली रे दवासाजी खीर खा रहे ह। दे खा क ु मणी हँ स होली" रह है । "अरे ! य हँ सी? मणी?" दवासाजी बोलेः अरे , ु "गु जी ! आप तो महान ह, पर तु आपका िश य भी कृ ण ! तेरा ये सब कम नह ं है । आप माँगेगे खीर यह जानकर उ ह ने पहले लकड़ का सामान से ह कह दया क खीर का कड़ाह तैयार रखो। जल रहा है ! थोड़ बनाते तो डाँट पड़ती आप आयगे और ढे र सार ीकृ ण बोलेः"हाँ, खीर माँगेगे तो इस कड़ाहे म खीर भी ढे र सार है । जैसा गु जी ! मेर सार आपने माँगा, वैसा हमारे भु ने पहले से ह तैयार सृ याँ कई बार रखवाया है । इस बात क हँ सी आती है ।" जलती ह, कई बार बनती ह, गु जी ! होली रे होली !" "हाँ, बड़ हँ सी आरह ह तुझे सफलता दखती है अपने "कृ ण ! तेरे दय म चोट नह ं लगती है ?" भु क ?" इधर आ । "आप गु ओं का साद है तो मुझे चोट य लगेगी?" मणीजी आयीं तो दवासाजी ने ु मणी क 'अ छा ! ीकृ ण दवासाजी क झांसे म फसे नह , और ु े ँ ं चोट पकड़ और उनक मुँह पर झुठ खीर मल द । े उपर से हँ स रहे ह। एक दन दवासा जी बोलेः "हम ु अब कोई पित कसे दे खे ै क कोई बाबा उसक नहाने जा रहे ह।" प ी क चोट पकड़ कर उस क मुहं पर झुठ खीर मल े कृ णः "गु जी ! आप आयगे तो आपक िलए भोजन े या रहा है ? थोड़ा बहत कछ तो होगा क 'यह ु ु या?' अगर होगा?" ीकृ ण क चेहरे पर थोड़ भी िशकन आयेगी तो सेवा े दवासाजी बोले: "हम नहाकर आयगे तब जो इ छा होगी ु सब न और शाप दँ गा, शाप।' यह शत थी। ू बोल दगे, वह भोजन दे दे ना। दवासाजी ने ु ीकृ ण क ओर दे खा तो ीकृ ण के दवासा जी मन ह मन म सोच रहे थे 'पहले बोलकर ु चेहरे पर िशकन नह ं है । अ दर से कोई रोष नह ं है । ी जायगे तो सब तैयार िमलेगा। आकर ऐसी चीज माँगूगा कृ ण य -क- य खड़े ह। े जो घर म तैयार न हो। कृ ण लेने जायगे या मँगवायगे " ी कृ ण ! कसी लगती है ये ै मणी?" तो म ठ जाऊगा' ँ "हाँ, गु जी ! जैसी आप चाहते ह, वैसी ह लगती दवासा जी नहाकर आये और बोलेः "मुझे ढे र सार खीर ु है ।" खानी है ।" अगर 'अ छ लगती है ' बोल जो वो है नह ं और ीकृ ण बड़ा कड़ाह भरकर ले आयेः "ली जए, गु जी !" 'ठ क नह ं लगती' बोल तो गलती िनकाल दे । इसिलए दवासाजी बोले: "अरे , तुमको कसे पता चला?" ु ै ीकृ ण ने कहाः "गु जी ! जैसा आप चाहते ह, वैसी आप यह बोलनेवाले ह, मुझे पता चल गया तो लगती है ।" मने तैयार करक रखवा े दया। जहाँ से आपका वचार दवासाजी ने दे खा क प ी को ऐसा कया तो भी ु उठता है वहाँ तो म रहता हँू । आपको कौन-सी चीज कृ ण म कोई फक नह ं पड़ा। मणी तो अधािगनी है ।
  • 9. 9 जुलाई 2011 कृ ण को कछ गड़बड़ कर तो ु मणी क चेहरे पर े या ह यह बाबा जानते ह। िशकन पड़े गी ऐसा सोचकर कृ ण को बुलायाः ा रका क लोग इक ठे हो गये, चौराहे पर रथ े "कृ ण ! यह खीर बहत अ छ है ।" ु आ गया है फर भी ीकृ ण को कोई फक नह ं पड़ रहा "हाँ, गु जी ! अ छ है ।" है ? दवासाजी उतरे और जैस, घोड़े को पुचकारते ह वैसे ु े "तो फर या दे खते हो? खाओ।" ह पुचकारते हए पूछाः " य ु मणी ! कसा रहा?" ै ीकृ ण ने खीर खायी। "गु जी आनंद है ।" "इतना ह नह ं, सारे शर र को खीर लगाओ। जैसे "कृ ण ! कसा रहा?" ै मुलतानी िम ट लगाते ह ऐसे पूरे शर र को लगाओ। "जैसा आपको अ छा लगता है , वैसा ह अ छा है ।" घुँघराले बाल म लगाओ। सब जगह लगाओ।" दवासाजी ने ु ीकृ ण से कहाः "कृ ण ! म तु हार सेवा "हाँ, गु जी।" पर, समता पर, सजगता पर, सूझबूझ पर स न हँू । "कसे लग रहे हो, कृ ण?" ै प र थितयाँ सब माया म ह और म मायातीत हँू , "गु जी, जैसा आप चाहते ह वैसा।" तु हार ये समझ इतनी ब ढ़या है क इससे म बहत खुश ु दवासा जी ने दे खा क 'अभी-भी ये नह ं फसे। ु ँ या क ँ ?' हँू । तुम जो वरदान माँगना चाहो, माँग लो। परंतु दे खो फर बोलेः कृ ण ! तुमने एक गलती क । मने कहा खीर चुपड़ो, "मुझे रथ म बैठना है , रथ मँगवाओ। नहाना नह , ऐसे ं तुमने खीर सारे शर र पर चुपड़ पर हे क है या ! पैर के ह चलो।" रथ मँगवाया। तलुओं पर नह ं चुपड़ । तु हारा सारा शर र अब व काय दवासाजी बोलेः "घोड़े हटा दो।" घोड़े हटा दये गये। "म ु हो गया है । इस शर र पर अब कोई हिथयार सफल नह ं रथ म बैठूँगा। एक तरफ मणी, एक तरफ ी कृ ण, होगा, परं तु पैर क तलुओं का े याल करना। पैर के रथ खींचेगे।" तलुओं म कोई बाण न लगे, य क तुमने वहाँ मेर जूठ दवासाजी को हआ 'अब तो ना बोलगे क ऐसी ु ु थित खीर नह ं लगायी है ।" म? खीर लगी हई है , ु मणी क मुँह पर भी खीर लगी े पौरा णक कथा क अनुशार: े ीकृ ण को िशकार ने मृ ग हई है ।' ु जानकर बाण मारा और पैर क तलुए म लगा। और जगह े परं तु दोन ने रथ खींचा। जैस, घोड़े को चलाते ह े लगता तो कोई असर नह ं होता। यु क मैदान म े ऐसे दवासाजी ने ु ी कृ ण और मणी को चलाया। रथ ीकृ ण अजु न का रथ चला रहे थे वहाँ पर श ु प के चौराहे पर पहँु चा। लोग क भीड़ इक ठ हो गयी क बाण का उन पर कोई वशेष भाव नह ं पड़ा था। ' ीकृ ण कौन-से बाबा क च कर म आ गये?' े दवासाजीः " या चा हए, कृ ण?" ु लोग ने दे खा क 'यह या ! दवासाजी रथ पर ु "गु जी ! आप स न रह।" बैठे ह। खीर और पसीने से तरबतर ी कृ ण और "म तो स न हँू , परं तु कृ ण ! जहाँ कोई तु हारा नाम मणी जी दोन रथ हाँक रहे ह? मुँह पर, सवाग पर लेगा वहाँ भी आनंद हो जायेगा, वरदान दे ता हँू ." ीकृ ण खीर लगी हई है ?' ु का नाम लेते ह आनंद हो जाता है । ीकृ ण का नाम उस नजारे खो दे खने वाले लोग को ीकृ ण पर तरस लेने से स नता िमलेगी - ये दवासा ऋ ष क वचन ु े आया क "कसे बाबा क चककर म आ गये ह?" ै े अभी तक कृ ित स य कर रह है । अब ये बाबा या ह यह ीकृ ण जानते ह और ीकृ ण
  • 10. 10 जुलाई 2011 ीकृ ण बीसा यं कसी भी य का जीवन तब आसान बन जाता ह जब उसक चार और का माहोल उसक अनु प उसक वश े े े म ह । जब कोई य का आकषण दसरो क उपर एक चु बक य ु े भाव डालता ह, तब लोग उसक सहायता एवं सेवा हे तु त पर होते है और उसके ायः सभी काय बना अिधक क व परे शानी से संप न हो जाते ह। आज के भौितकता वा द युग म हर य क िलये दसरो को अपनी और खीचने हे तु एक े ू भावशािल चुंबक व को कायम रखना अित आव यक हो जाता ह। आपका आकषण और य व आपक चारो ओर से लोग को आक षत करे इस े िलये सरल उपाय ह, ीकृ ण बीसा यं । यो क भगवान ी कृ ण एक अलौ कव एवं दवय चुंबक य य व के धनी थे। इसी कारण से ीकृ ण बीसा यं क पूजन एवं दशन से आकषक य े व ा होता ह। ीकृ ण बीसा यं क साथ े य को ढ़ इ छा श एवं उजा ा होती ह, ज से य हमेशा एक भीड म हमेशा आकषण का क रहता ह। ीकृ ण बीसा कवच य द कसी य को अपनी ितभा व आ म व ास के तर म वृ , अपने िम ो व प रवारजनो क बच म र तो म सुधार करने क ई छा होती े ीकृ ण बीसा कवच को कवल े ह उनक िलये े ीकृ ण बीसा यं का पूजन एक सरल व सुलभ मा यम वशेष शुभ मुहु त म िनमाण कया सा बत हो सकता ह। जाता ह। कवच को व ान कमकांड ीकृ ण बीसा यं पर अं कत श शाली वशेष रे खाएं, बीज मं एवं ाहमण ारा शुभ मुहु त म शा ो अंको से य को अ त आंत रक श यां ा होती ह जो य को विध- वधान से विश तेज वी मं ो ु सबसे आगे एवं सभी े ो म अ णय बनाने म सहायक िस होती ह। ारा िस ाण- ित त पूण चैत य ीकृ ण बीसा यं क पूजन व िनयिमत दशन क मा यम से भगवान े े यु करक िनमाण कया जाता ह। े ीकृ ण का आशीवाद ा कर समाज म वयं का अ तीय थान था पत कर। जस क फल े व प धारण करता ीकृ ण बीसा यं अलौ कक ांड य उजा का संचार करता ह, जो य को शी पूण लाभ ा होता एक ाकृ मा यम से य क भीतर स भावना, समृ , सफलता, उ म े ह। कवच को गले म धारण करने वा य, योग और यान क िलये एक श े शाली मा यम ह! से वहं अ यंत भाव शाली होता  ीकृ ण बीसा यं क पूजन से य े क सामा जक मान-स मान व े ह। गले म धारण करने से कवच पद- ित ा म वृ होती ह। हमेशा दय क पास रहता ह ज से े  व ानो क मतानुशार े ीकृ ण बीसा यं क म यभाग पर े यान योग य पर उसका लाभ अित ती क त करने से य क चेतना श जा त होकर शी उ च तर एवं शी ात होने लगता ह। मूलय मा : 1900 को ा होती ह ।  जो पु ष और म हला अपने साथी पर अपना भाव डालना चाहते ह और उ ह अपनी और आक षत करना चाहते ह। उनक िलये े ीकृ ण बीसा यं उ म उपाय िस हो सकता ह।  पित-प ी म आपसी म क वृ और सुखी दा प य जीवन क िलये े ीकृ ण बीसा यं लाभदायी होता ह। मू य:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उ ल GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 11. 11 जुलाई 2011 गु मं के भाव से ई दशन  व तक.ऎन.जोशी व ानो क अनुशार शा ो े उ लेख ह क कोई "सं यासी बोले नह ं ....पहले उनक दशन करो फर उनक े े भी मं िन त प से अपना भाव अव य रखते ह। शा पर ट का िलखो। लो यह मं । छः मह ने इसका जस कार पानी म ककड़-प थर डालने से उसम ं अनु ान करो। भगवान कट ह गे। उनसे ेरणा िमले तरं गे उठती ह उसी कार से मं जप के भाव से हमारे फर लेखनकाय का ारं भ करो।" भीतर आ या मक तरं ग उ प न होती ह। जो हमारे मं दे कर बाबाजी चले गये। ी मधुसूदनजी ने अनु ान इद-िगद सू म प से एक सुर ा शु कया। अनु ान क छः मह ने पूण े कवच जैसा कािशत वलय (अथात गणेश ल मी यं हो गये ले कन ीकृ ण क दशन न े ओरा) का िनमाण होता ह। उन ओरा हए। 'अनु ान म कछ ु ु ु ट रह गई ाण- ित त गणेश ल मी यं को का सू म जगत म उसका भाव पड़ता होगी' ऐसा सोचकर ी मधुसूदनजी ने अपने घर-दकान-ओ फस-फ टर ु ै है । जो खुली आंखो से सामा य य दसरे ू छः मह ने म दसरा अनु ान ू म पूजन थान, ग ला या अलमार को उसका भाव दखाई नह ं दे ता। कया फर भी ीकृ ण दशन न हए। ु म था पत करने यापार म वशेष उस सुर ा कवच से य को दो बार अनु ान के उरांत लाभ ा होता ह। यं क भाव से े नकारा मक भावी जीव व श या असफलता ा होने पर ी मधुसूदन भा य म उ नित, मान- ित ा एवं उसक पास नह ं आ सकतीं। े क िच े म लािन हो गई। सोचा यापर म वृ होती ह एवं आिथक ीमदभगवदगीता क ' ी कः ' कसी अजनबी बाबाजी क कहने े मधुसूदनी ट का' चिलत एवं मह वपूण थम सुधार होता ह। गणेश ल मी से मने बारह मास बगाड़ दये ट काओं म से एक ह। इस ट का के यं को था पत करने से भगवान अनु ान म। रचियता ी मधुसूदन सर वतीजी जब गणेश और दे वी ल मी का संयु सबम माननेवाला म 'हे कृ ण ...हे संक प करक लेखनकाय क िलए बैठे े े आशीवाद ा होता ह। भगवान ...दशन दो ...दशन दो...' ऐसे ह थे क एक तेज वी आभा िलये मेरा िगड़िगड़ाना ? Rs.550 से Rs.8200 तक परमहं स सं यासी अचानक घर का ार जो ीकृ ण क आ मा है वह मेर खोलकर भीतर आये और बोलेः "अरे मधुसूदन! तू गीता आ मा है । उसी आ मा म म त रहता तो ठ क रहता। पर ट का िलखता है तो गीताकार से िमला भी है क ऐसे ीकृ ण आये नह ं और पूरा वष भी चला गया। अब या ह कलम उठाकर बैठ गया है ? तूने कभी भगवान ीकृ ण ट का िलखना ?" क दशन े कये ह क ऐसे ह उनक वचन े पर ट का वे ऊब गये। अब न ट का िलख सकते ह न तीसरा िलखने लग गया?" अनु ान कर सकते ह। चले गये या ा करने को तीथ म। ी मधुसूदनजी तो थे वेदा ती, अ ै तवाद । वे वहाँ पहँु चे तो सामने से एक चमार आ रहा था। उस बोलेः "दशन तो नह ं कये। िनराकार -परमा मा सबम चमार ने इनको पहली बार दे खा और ी मधुसूदनजी ने एक ह है । ीकृ ण के प म उनका दशन करने का भी चमार को पहली बार दे खा। हमारा योजन भी नह ं है । हम तो कवल उनक गीता े चमार ने कहाः "बस, वामीजी! थक गये न दो अनु ान का अथ प करना है ।" करक?" े
  • 12. 12 जुलाई 2011 ीमधुसूदन वामी च क ! सोचाः "अरे मने अनु ान कये, े ी मधुसूदनजी ने कहाः "नह ं दखा।" यह मेरे िसवा और कोई जानता नह । इस चमार को कसे ं ै चमार ने कहाः "म उसे रोज बुलाता हँू , रोज दे खता हँू । पता चला?" ठह रये, म बुलाता हँू , उसे।" वह गया एक तरफ और वे चमार से बोलेः "तेरे को कसे पता चला?", "कसे भी ै ै अपनी विध करक उस भूत को बुलाया, भूत से बात क े पता चला। बात स ची करता हँू क नह ं ? दो अनु ान और वापस आकर बोलाः करक थककर आये हो। ऊब गये, तभी े "बाबा जी ! वह भूत बोलता है क इधर आये हो। बोलो, सच क नह ?" ं मधुसूदन वामी ने य ह मेरा नाम "भाई ! तू भी अ तयामी गु जैसा लग मरण कया, तो म खंचकर आने रहा है । सच बता, तूने कसे जाना ?" ै लगा। ले कन उनक कर ब जाने से मेरे े " वामी जी ! म अ तयामी भी नह ं को आग जैसी तपन लगी। उनका तेज और गु भी नह । म तो हँू जाित का ं मेरे से सहा नह ं गया। उ ह ने चमार। मने भूत को अपने वश म सकारा मक श ओं का अनु ान कया कया है । मेरे भूत ने बतायी आपके है तो उनका आ या मक ओज इतना अ तःकरण क बात।" बढ़ गया है क हमारे जैसे तु छ ी मधुसूदनजी बोले "भाई ! दे ख मं िस प ना गणेश श यां उनक कर ब खड़े े नह ं रह ीकृ ण क तो दशन नह ं हए, कोई े ु भगवान ी गणेश बु और िश ा के सकते। अब तुम मेर ओर से उनको बात नह । ं णव का जप कया, कोई कारक ह बुध क अिधपित दे वता े हाथ जोड़कर ाथना करना क वे फर दशन नह ं हए। गाय ी का जप कया, ु ह। प ना गणेश बुध क सकारा मक े से अनु ान कर तो सब ितब ध दर ू दशन नह ं हए। अब तू अपने भूत का भाव को बठाता ह एवं नकारा मक हो जायगे और भगवान ीकृ ण ु भाव को कम करता ह।. प न ह दशन करा दे , चल।" िमलगे। बाद म जो गीता क ट का गणेश के भाव से यापार और धन चमार ने कहाः " वामी जी ! मेरा भूत िलखगे। वह बहत ु िस होगी।" म वृ म वृ होती ह। ब चो क तो तीन दन क अंदर ह े दशन दे ी मधुसूदन जी ने फर से अनु ान पढाई हे तु भी वशेष फल द ह सकता है । 72घ टे म ह वह आ कया, भगवान ीकृ ण क दशन हए े ु प ना गणेश इस के भाव से ब चे जायेगा। लो यह मं और उसक क बु कशा ू होकर उसके और बाद म भगवदगीता पर ट का विध।" आ म व ास म भी वशेष वृ होती िलखी। आज भी वह ' ी मधुसूदनी ी मधुसूदनजी ने चमार ारा ह। मानिसक अशांित को कम करने म ट का' क नाम से पूरे े व म िस बताई गई पूण विध जाप कया। एक मदद करता ह, य ारा अवशो षत है । दन बीता, दसरा बीता, तीसरा भी बीत ू हर व करण शांती दान करती ह, ज ह स भा य से गु मं गया और चौथा शु हो गया। 72घ टे य क शार र क तं को िनयं त े े िमला है और वहं पूण िन ा व व ास तो पूरे हो गये। भूत आया नह ं। गये करती ह। जगर, फफड़े , जीभ, े से विध- वधान से उसका जप करता म त क और तं का तं इ या द रोग चमार के पास। ी मधुसूदनजी है । उसे सभी कार क िस या वतः म सहायक होते ह। क मती प थर बोलेः " ी कृ ण क दशन तो नह ं हए े ु ा हो जाती ह। उसे नकारा मक मरगज क बने होते ह। े मुझे तेरा भूत भी नह ं दखता?" चमार श यां व भावीजीव क नह ं पहंू चा ने कहाः " वामी जी! दखना चा हए।" Rs.550 से Rs.8200 तक सकते।
  • 13. 13 जुलाई 2011 गु मं के भाव से र ा  व तक.ऎन.जोशी ' क द पुराण' के ो र ख ड म उ लेख है ः भी आपने शराब पीनेवाली वे याओं के साथ और काशी नरे श क क या कलावती क साथ मथुरा क दाशाह े े कलटाओं क साथ भोग भोगे ह।" ु े नामक राजा का ववाह हआ। ु राजाः "तु ह इस बात का पता कसे चल गया?" ै ववाह क बाद राजा ने अपनी प ी को बुलाया े प ीः "नाथ ! दय शु होता है तो यह याल और संसार- यवहार थापीत करने क बात कह ं परं तु वतः आ जाता है ।" प ी ने इ कार कर दया। तब राजा ने जबद ती करने राजा भा वत हआ और रानी से बोलाः "तुम मुझे ु क बात कह । भी भगवान िशव का वह मं दे दो।" प ी ने कहाः " ी क साथ संसार- यवहार करना े रानीः "आप मेरे पित ह। म आपक गु नह ं बन हो तो बल- योग नह , यार ं नेह- योग करना चा हए। सकती। हम दोन गगाचाय महाराज क पास चलते ह।" े प ी ने कहाः नाथ ! म आपक प ी हँू , फर भी दोन गगाचायजी क पास गये और उनसे े ाथना आप मेरे साथ बल- योग करक संसार- यवहार न कर।" े क । उ ह ने नाना द से प व हो, यमुना तट पर अपने आ खर वह राजा था। प ी क बात सुनी-अनसुनी िशव व प के यान म बैठकर राजा-रानी को ीपात से करक प ी क नजद क गया। े े य ह उसने प ी का पावन कया। फर िशवमं दे कर अपनी शांभवी द ा से पश कया य ह उसक शर र म े व ुत जैसा करं ट राजा पर श पात कया। व ानो क मतानुशार कथा मे े लगा। उसका पश करते ह राजा का अंग-अंग जलने उ लेख ह क दे खते-ह -दे खते सैकडो तु छ परमाणु राजा लगा। वह दर हटा और बोलाः " या बात है ? तुम इतनी ू क शर र से िनकल-िनकलकर पलायन कर गये। े सु दर और कोमल हो फर भी तु हारे शर र के पश से मुझे जलन होने लगी?" या आप जानते ह? प ीः "नाथ ! मने बा यकाल म दवासा ऋ ष से ु  महाभारत क रचना इसी गु पू णमा क दन पूण े गु मं िलया था। वह जपने से मेर सा वक ऊजा का हई थी। ु वकास हआ है । ु  व क सु िस े आष ंथ सू का लेखन काय जैस, रात और दोपहर एक साथ नह ं रहते उसी े गु पू णमा क आरं भ कया गया था। े तरह आपने शराब पीने वाली वे याओं क साथ और े  दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु कलटाओं क साथ जो संसार-भोग भोगा ह, उससे आपक ु े े पू णमा क दन कया था। इस िलये इस दन वेद े पाप क कण आपक शर र म, मन म, बु े े म अिधक है यास का पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा और मने जो मं जप कया है उसक कारण मेरे शर र म े को यासपू णमा भी कहा जाता ह। ओज, तेज, आ या मक कण अिधक ह। इसिलए म  व ानो क मत मे गु े पू णमा क दन गु े का आपक नजद क नह ं आती थी ब क आपसे थोड़ दर े ू पूजन कर नेसे वषभर क पव मनाने क समान े े रहकर आपसे ाथना करती थी। आप बु मान ह बलवान फल ा होता ह। ह, यश वी ह धम क बात भी आपने सुन रखी है । फर