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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका                           ददसम्फय- 2011




 रुद्राऺ की उत्ऩत्रि

 रुद्राऺ क त्रवसबन्न राब
          े

 रुद्राऺ धायण से काभनाऩूसता

 रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ?

 रुद्राऺ धायण कयने क सॊक्षऺद्ऱ त्रवसध
                    े

 1 से 14भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब

 रुद्राऺ क त्रवषम भं त्रवशेष जानकायी
          े




                                 NON PROFIT PUBLICATION
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                                      E CIRCULAR
                       गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ददसम्फय 2011
सॊऩादक                 सिॊतन जोशी
                       गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग

सॊऩका                  गुरुत्व कामाारम
                       92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                       BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
पोन                    91+9338213418, 91+9238328785,
                       gurutva.karyalay@gmail.com,
ईभेर                   gurutva_karyalay@yahoo.in,

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वेफ                    http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

ऩत्रिका प्रस्तुसत      सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी
पोटो ग्रादपक्यस        सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी (स्वक्षस्तक सोफ्टे क इक्षन्डमा सर)




            ई- जन्भ ऩत्रिका                       E HOROSCOPE
      अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्चसत द्राया
                                                 Create By Advanced Astrology
         उत्कृ ष्ट बत्रवष्मवाणी क साथ
                                 े                    Excellent Prediction
              १००+ ऩेज भं प्रस्तुत                       100+ Pages

                            दहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-

                                GURUTVA KARYALAY
                       92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                           BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
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अनुक्रभ
                                                       रुद्राऺ शत्रि त्रवशेष
रुद्राऺ की उत्ऩत्रि                                          6         रुद्राऺ धायण कयं सावधासनमं क साथ।
                                                                                                   े                           29

रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ?                      8         रुद्राऺ धायण कयने क सॊक्षऺद्ऱ त्रवसध
                                                                                          े                                    30

1 से 14 भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब                        10        रुद्राऺ क त्रवषम भं त्रवशेष जानकायी
                                                                                े                                              31

रुद्राऺ क त्रवसबन्न राब
         े                                                   21        असरी 1 भुखी से 14 भुखी रुद्राऺ                          20
जन्भ नऺि एवॊ यासश से रुद्राऺ िमन                             23        भॊि ससद्च रूद्राऺ                                       33
रुद्राऺ धायण से काभनाऩूसता                                   25

                                                             अन्म रेख
स्पदटक श्रीमॊि                                               28        ऩॊिभुखी हनुभान का ऩूजन उिभ परदामी हं                    40

आॊखो से व्मत्रित्व                                           32        हनुभान फाहुक क ऩाठ योग व कष्ट दय कयता हं
                                                                                                      ू                        41

सशव क दस प्रभुख अवताय
     े                                                       34        गौ सेवा का भहत्व                                        42
श्रीकृ ष्ण की पोटो से सभमाओॊ का सभाधान                       35        भारा का भहत्व                                           44

बाग्म रक्ष्भी ददब्फी                                         36        उऩवास एवॊ ज्मोसतष                                       45

हनुभानजी क ऩूजन से कामाससत्रद्च
          े                                                  37        िेहये ऩय सतर का प्रबाव                                  47

वास्तु: भानससक अशाॊसत सनवायण उऩाम                            39

                                                          हभाये उत्ऩाद
भॊि ससद्च ऩन्ना गणेश         10   द्रादश भहा मॊि                  24   भॊि ससद्च दै वी मॊि सूसि     49    याभ यऺा मॊि            55

गणेश रक्ष्भी मॊि             12   भॊि ससद्च रूद्राऺ               33   सवा कामा ससत्रद्च कवि        50    यासश यत्न              60

भॊि ससद्च दरब साभग्री
           ु ा               18   बाग्म रक्ष्भी ददब्फी            38   जैन धभाक त्रवसशष्ट मॊि
                                                                               े                    51    सवा योगनाशक मॊि/       72

शादी सॊफसधत सभस्मा
        ॊ                    15   दक्षऺणावसता शॊख                 38   अभोद्य भहाभृत्मुजम कवि
                                                                                       ॊ            53    भॊि ससद्च कवि          74

ऩढा़ई सॊफसधत सभस्मा
         ॊ                   16   भॊिससद्च रक्ष्भी मॊिसूसि        49   याशी यत्न एवॊ उऩयत्न         53    YANTRA                 75

भॊिससद्च स्पदटक श्री मॊि     17   नवयत्न जदित श्री मॊि            48   श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि/ कवि     54    GEMS STONE             77

घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्च भहामॊि                                52   भॊि ससद्च साभग्री-                                 65, 66, 67

                                                      स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम                                                     4         ददन-यात क िौघदडमे
                                                                                े                                              69

भाससक यासश पर                                                56        ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक                 70

ददसम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग                                    61        ग्रह िरन ददसम्फय -2011                                  71

ददसम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय                          63        सूिना                                                   79

ददसम्फय 2011 -त्रवशेष मोग                                    68        हभाया उद्ङे श्म                                         81

दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका                           68
सॊऩादकीम
त्रप्रम आक्षत्भम

            फॊध/ फदहन
               ु

                          जम गुरुदे व
         रुद्राऺ को बगवान सशव का प्रसतक भाना जाता है । रुद्राऺ की उत्ऩत्रि बगवान सशव क अश्रु से हुइथी इस सरमे इसे
                                                                                      े
रुद्राऺ कह जाता है । रुद्र का अथा है सशव औय अऺ का अथा है आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना।
         रूद्र+अऺ   शब्द का सॊमोग रूद्राऺ कहराता है । रुद्र का अथा है । बगवान सशव का यौद्र रूऩ औय अऺ का अथा है
आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना।
         रुद्राऺ की उत्ऩत्रि क त्रवषम भं अनेको कथाएॊ धभा ग्रॊथो भं उल्रेक्षखत हं सरकन प्रभुख कथा क अनुशाय बगवान
                              े                                                     े             े
सशव ने सैकडं हजाय वषो तक अॊतर्धमाान यहे । जफ बगवान सशव ने र्धमान ऩूणा होने क फाद जफ सशवजी ने अऩने नेि
                                                                            े
खोरे, तो उनक नेि से आॊसुओॊ की धाया सनकरने रगी।
            े
                                          तेनाश्रुत्रफॊदसबजााता भत्मे रुद्राऺबूरुहा्।
                                                        ु
उस नेि से सनकरे अश्रृ त्रफॊद ु से बूरोक भं रुद्राऺ क वृऺ उत्ऩन्न हो गए। बूरोक ऩय जहाॊ-जहाॊ बी अश्रु फुॊदे सगये , उनसे
                                                    े
अॊकयण पट ऩडा! फाद भं मही रुद्राऺ क वृऺ फन गए। काराॊतय भं मही रुद्राऺ सशव बिो क त्रप्रम फन कय सभग्र त्रवश्व
   ु   ू                          े                                           े
भं व्माद्ऱ हो गए। बिं ऩय कृ ऩा कयने क सरए सशवजी क अश्रुत्रफॊद ु रुद्राऺ क रुऩ भं व्माद्ऱ हो गमे औय रुद्राऺ क नाभ से
                                     े           े                       े                                  े
त्रवख्मात हो गए। रुद्र क अऺ से प्रकट होने क कायण धभाग्रॊथो भं रुद्राऺ को साऺात सशव का सरॊगात्भक स्वरुऩ भाना
                        े                  े
गमा हं । त्रवद्रानो का कथ हं की रुद्राऺ भं एक त्रवसशष्ट प्रकाय की ददव्म उजाा शत्रि सभादहत होती हं । प्राम् सबी
ग्रॊथकायं व त्रवद्रानो ने रुद्राऺ को असह्य ऩाऩं को नाश कयने वारा भाना हं ।
इस सरए सशव भाहा ऩुयाण भं उल्रेख दकमा गमा हं ।

                      सशवत्रप्रमतभो ऻेमो रुद्राऺ् ऩयऩावन्। दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥
अथाात:      रुद्राऺ अत्मॊत ऩत्रवि, शॊकय बगवान का असत त्रप्रम हं । उसक दशान, स्ऩशा व जऩ द्राया सवा ऩाऩं का नाश
                                                                     े
होता हं ।
                                              रुद्राऺ धायणाने सवा द्खनाश्
                                                                   ु
अथाात: रुद्राऺ असॊखम द्खं का नाश कयने वारा हं ।
                      ु


रुद्राऺ क त्रवषम भं जावारोऩसनषद भं स्वमॊ बगवान कारग्नी का कथन हं :
         े
                         तदरुद्राऺे वाक्षग्वषमे कृ ते दशगोप्रदानेन मत्परभवाप्नोसत तत्परभश्नुते ।
                                कये ण स्ऩृष्टवा धायणभािेण दद्रसहस्त्र गोप्रदान पर बवसत ।
                                   कणामोधाामभाणे एकादश सहस्त्र गोप्रदानपरॊ बवसत ।
                                            ा
                        एकादश रुद्रत्वॊ ि गच्छसत । सशयसस धामाभाणे कोदट ग्रोप्रदान परॊ बवसत ।
अथाात: रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से दश गोदान (गाम का दान) का पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ का स्ऩशा कयने व धायण
                     े
कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । दोनो कानो ऩय रुद्राऺ धायण कयने से ग्माया हजाय
गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । गरे भं रुद्राऺ धायण कयने से कयोडो़ गोदान (गाम का दान) का पर
सभरता हं ।
रुद्राऺ को धायण कयने क त्रवषम भं त्रवद्रानो का कथन हं की त्रवशेषकय बगवान सशव क बिो क सरमे तो रुद्राऺ
                             े                                                       े     े
को धायण कयना ऩयभ आश्मक हं । इसी सरए कहाॊ गमा हं की..
                 वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्रिभुत्रिपरेप्सुसब्। सशवबित्रवशेषेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥
                                                                  ै ा
                           सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्त्रीशूद्राणाॊ। सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥
सबी आश्रभं (ब्रह्मिायी, वानप्रस्थ, गृहस्थ औय सॊन्मासी) एवॊ वणं तथा स्त्री औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण कयना
िादहमे, मह सशवजी की आऻा है !

रुद्राऺ को धायण कयने से प्राद्ऱ होने वारे राब क त्रवषम भं त्रवसबन्न राब फतामे गए हं ।
                                               े
                                      रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे ि त्रिऩुण्ड्रकभ ्।
                                   स िाण्ड्डारोऽत्रऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणंिभो बवेत ्॥
अथाात् क्षजसक शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय त्रिऩुण्ड्ड हो, वह िाण्ड्डार बी हो तो सफ वणं भं उिभ ऩूजनीम हं ।
             े


जो भनुष्म सनमभानुशाय सहस्त्ररुद्राऺ धायण कयता हं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हं ।

                                    उक्षच्छष्टो वा त्रवकभो वा भुक्यतो वा सवाऩातक्।
                                                                                ै
                                        भुच्मते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥
अथाात् जो भनुष्म उक्षच्छष्ट अथवा अऩत्रवि यहते हं मा फुये कभा कयने वार व अनेक प्रकाय क ऩाऩं से मुि वह भनुष्म
                                                                                     े
                                        ू
रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩं से छट जाते हं ।

                                       कण्ड्ठे रुद्राऺभादाम सिमते मदद वा खय्।
                                      सोऽत्रऩरुद्रत्वभाप्नोसत दक ऩुनबुत्रव भानव्।
                                                                ॊ     ा
अथाात् कण्ड्ठ भं रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा) बी भृत्मु को प्राद्ऱ हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को प्राद्ऱ होता हं ,
तो ऩृथ्वीरोक क जो भनुष्म हं उनक फाये भं तो कहना ही क्यमा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मं को स्वगा-प्रासद्ऱ व रोक
              े                े
ऩयरोक सुधायने क सरए रुद्राऺ अवश्म धायण कयने मोग्म हं ।
               े
                                    रुद्राऺॊ भस्तक धृत्वा सशय् स्नानॊ कयोसत म्।
                                                  े
                                      गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥
अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयक जो भनुष्म ससय से स्नान कयता हं उसे गॊगा स्नान क सभान ऩयभ ऩत्रवि
                                   े                                               े
स्नान का पर प्राद्ऱ होता हं तथा वह भनुष्म सभस्त ऩाऩं से भुि हो जाता हं इसभं सॊशम नहीॊ हं ।

       रुद्राऺ का प्रमोग ऩूजा-ऩाठ, जऩ-तऩ इत्मादद धासभाक कामं भं तो अवश्म सपरता प्रदान कयता हं । इस के
अरावा रुद्राऺ औषधीम गुणं से बी बयऩूय होता हं । रुद्राऺ कई योगं भं आयाभ ऩहूॊिाने भं त्रवशेष राबदामक ससद्च होता
हं । इसक अरावा रुद्राऺ का प्रमोग ग्रह दोष क सनवायण क सरए, अऩने त्रवसबन्न उद्ङे श्म औय भनोकाभनाओॊ की ऩूसता क
        े                                  े        े                                                      े
सरए व त्रवसबन्न सभस्माओॊ क सनवायण क सरए ज्मोसतष क जानकाय रुद्राऺ धायण कयने की सराह दे ते है । आऩक
                          े        े             े                                               े
भागादशान क सरए हभने इस रुद्राऺ शत्रि त्रवशेष अॊक भं रुद्राऺ से सॊफॊसधत असधक से असधक उऩमोगी जानकायी प्रदान
          े
कयने का प्रमास दकमा हं ।   दपय बी रुद्राऺ धायण कयने से ऩूवा दकसी कशर त्रवशेषऻ से ऩयाभशा अवश्म कय रे।
                                                                  ू




                                                                                                  सिॊतन जोशी
6                                                ददसम्फय 2011




                                                     रुद्राऺ की उत्ऩत्रि
                                                                                                                         सिॊतन जोशी
                                                                         श्रीभदबागवत,       दे वी    बागवत,        भुण्ड्डकोऩसनषद,   बगवत
        रुद्रस्म अक्षऺ रुद्राऺ:, अक्ष्मुऩरक्षऺतभ ्                       कभाऩुयाण, ऋग्वेद, मजुवद, अथवावेद, ऩायस्कय ग्रहसूि,
                                                                                               े
                     अश्रु, तज्जन्म: वृऺ:।                               त्रवष्णुधभा सूि, सभयाॊगण सूिधाय, माऻवरक्यम स्भृसत,

     ऩुटाभ्माॊ िारुिऺुभ्मां ऩसतता जरत्रफॊदव्।                            सनत्मािाय प्रदीऩ, वैददक दे वता कल्माण आदद उऩसनषदो एवॊ
                                                                         तन्ि भन्ि आदद ग्रन्थो भे सभरता है । त्रवद्रानो क भत से
                                                                                                                         े
     तिाश्रुत्रफन्दवो जाता वृऺा रुद्राऺसॊऻका्॥
                                  .
                                                                         रुद्राऺ की उत्ऩत्रि क सॊफॊध भं त्रवसबन्न ग्रॊथो भं त्रवसबन्न
                                                                                              े
                                                                         ऩौयाक्षणक कथाएॊ प्रिसरत हं ।
        रुद्राऺ को बगवान सशव का प्रसतक भाना जाता है ।
रुद्राऺ की उत्ऩत्रि बगवान सशव क अश्रु से हुइथी इस सरमे
                               े
                                                                         एक कथा क अनुसाय:
                                                                                 े
इसे रुद्राऺ कह जाता है । रुद्र का अथा है सशव औय अऺ का
                                                                         एक फाय बगवान सशव ने सैकडं हजाय वषो तक
अथा है आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना।
                                                                            अॊतर्धमाान यहे । जफ बगवान सशव ने र्धमान ऩूणा होने
        रूद्र+अऺ       शब्द का सॊमोग रूद्राऺ
                                                                                   क फाद जफ सशवजी ने अऩने नेि खोरे , तो
                                                                                    े
कहराता है । रुद्र का अथा है । बगवान
                                                                                         उनक नेि से आॊसुओॊ की धाया सनकरने
                                                                                            े
सशव का यौद्र रूऩ औय अऺ का अथा है                     रुद्राऺ बगवान सशव को
                                                                                            रगी। सशवजी क नेिं से सनकरी महॊ
                                                                                                        े
आॉख । दोनो को सभराकय रुद्राऺ                         प्रसन्न कयने क सरए
                                                                   े
                                                                                              ददव्म अश्रु-फूॊद बूरोक ऩय सगयी, बूरोक
फना ।                                                त्रवशेष रुऩ से परदामी
                                                                                               ऩय जहाॊ-जहाॊ बी अश्रु फुॊदे सगये , उनसे
        रुद्राऺ बगवान सशव              को            ससद्च होता हं । ऩुयाणं भं
                                                                                               अॊकयण पट ऩडा! फाद भं मही रुद्राऺ
                                                                                                  ु   ू
प्रसन्न कयने क सरए त्रवशेष रुऩ
              े                                      रुद्राऺ की भदहभा का
                                                        त्रवस्ताय से वणान दकमा                 क वृऺ फन गए। काराॊतय भं मही
                                                                                                े
से परदामी ससद्च होता हं ।
                                                         गमा है । रुद्राऺ धायण                 रुद्राऺ सशव बिो क त्रप्रम फन कय
                                                                                                                े
        धभाग्रॊथं,    शास्त्रं    व
                                                        कयने से सौबाग्म प्राद्ऱ              सभग्र त्रवश्व भं व्माद्ऱ हो गए।
ऩुयाणं भं रुद्राऺ की भदहभा
                                                         होता है ।
का त्रवस्ताय से वणान दकमा गमा
                                                                                     दसयी कथा क अनुशाय:
                                                                                      ू        े
है । महाॊ ऩाठको क भागादशान क सरए
                 े          े
कछ प्रभुख ग्रॊथो भं उल्रेक्षखत रुद्राऺ से
 ु                                                                                      एक फाय सती क त्रऩता दऺ प्रजाऩसत ने
                                                                                                    े

सॊफॊसधत जानकायीमाॊ दी जा यही हं ।                                        अऩने महाॊ मऻ का आमोजन दकमा। हवन कयते सभम

        रुद्राऺ क गुणो का त्रवस्तृत वणान सरॊगऩुयाण,
                 े                                                       दऺने बगवान सशव का अऩभान कय ददमा। सशवजी के

भत्स्मऩुयाण,     स्कदऩुयाण,
                    ॊ                 सशवभहाऩुयाण,   ऩदभऩुयाण,           अऩभान ऩय क्रोसधत होकय सशव की ऩत्नी सती ने स्वमॊ

भहाकार       सॊदहता       भन्ि,       भहाणाव    सनणाम     ससन्धु,        को अक्षग्नकड भं सभादहत कयसरमा। सती का जरा शयीय
                                                                                    ुॊ

फृहज्जाफारोऩसनषद, कासरकाऩुयाण, रूद्राऺ जफरोऩसनषद,                        दे ख कय सशव अत्मॊत क्रोसधत हो गए।

वायाह ऩुयाण, त्रवष्णुधभंिय ऩुयाण, सशवतत्त्व यत्नाकाय,                             बगवान सशव ने उन्भत दक बाॊसत सती क जरे
                                                                                                                   े

फारोऩसनषद, रुद्रऩुयाण, काठक सॊदहता, कात्मामनी तॊि,                       हुए शयीय को कधे ऩय यख वे सबी ददशाओॊ भं भ्रभण
                                                                                      ॊ
                                                                         कयने    रगे।    सृत्रष्ट   व्माकर
                                                                                                         ु    हो     उठी   बमानक     सॊकट
7                                           ददसम्फय 2011



उऩक्षस्थत दे खकय सृत्रष्ट क ऩारक बगवान त्रवष्णु आगे
                           े                                  अथाात: हे षडानन (छह वारा) स्कदजी ! तुभ सुनो,
                                                                                           ॊ
फढ़े । उन्हं ने बगवान सशव दक फेसुधी भं अऩने िक्र से           ऩूवकार भं
                                                                 ा          त्रिऩुय नाभक एक भहान               शत्रिशारी व
सती क एक-एक अॊग को काट-काट कय सगयाने रगे।
     े                                                        ऩयाक्रभी दै त्मं का याजा हुआ था। त्रिऩुय को जीतने भं
धयती ऩय इक्यमावन स्थानं भं सती क अॊग कट-कटकय
                                े                             दे व-दानव भं से कोई बी सभथा नहीॊ था।
सगये । जफ सती क साये अॊग कट कय सगय गए, तो
               े                                                     उसने अऩने ऩयाक्रभ से सॊऩूणा दे वरोक को जीर
बगवान सशव ऩुन् अऩने आऩ भं वाऩस आए। तफ सशवजी                   सरमा। तफ ब्रह्मा, त्रवष्णुअ, इन्द्रादद सबी दे व एवॊ भुसन गण
क नेिं से आॊसू सनकरे औय उससे रुद्राऺ क वृऺ
 े                                    े                       भेये ऩास आए औय दै त्मयाज त्रिऩुय को भायने की प्राथना
उत्ऩन्न हो गए।                                                की। तफ भैने त्रिऩुय को भायने का सनक्षितम दकमा।
       कछ त्रवद्रानो का भानना हं सशवजी ने सती का
        ु                                                     रेदकन त्रिऩुय को हभ त्रिदे वं से अनेक वय प्राद्ऱ थे,
ऩासथाव शयीय अऩने कधे रेकय सॊऩूणा ब्रह्माॊड को बस्भ कय
                  ॊ                                           इससरए मुद्च भं एक हजाय ददव्म वषं तक का रम्फा
दे ने क उद्ङे श्म से ताॊडव नृत्म कयने रगे। सती का जरा
       े                                                      सभम रगा।
शयीय धीये -धीये ऩूये ब्रह्माॊड भं त्रफखय ने रगा। अॊत भं              तफ भंने त्रफजरी क सभान िभकदाय एवॊ ददव्म
                                                                                      े
ससप उनक दे ह की बस्भ ही सशवजी क शयीय ऩय यह
   ा   े                       े                              तेजमुि काराक्षग्न नाभक अभोद्य शस्त्र से त्रिऩुय ऩय तीव्र
गई, क्षजसे दे ख कय सशवजी यो ऩडे उस सभम जो आॊसू                प्रकाय दकमी। उस ददव्म शस्त्र की ददव्म त्रवस्पोटक िभक
उनकी आॊखं से सगये , वही ऩृथ्वी ऩय रुद्राऺ क वृऺ फने।
                                           े                  को दे खने भं दकसी क बी नेि दे ख ने भं सभथाता नहीॊ
                                                                                 े
                                                              थी उसी सभम कछ ऺण क सरए भेये नेि फॊद यहे ।
                                                                          ु     े
स्कद ऩुयाण की कथा:
   ॊ                                                          मोगभामा की अद्भत रीरासे जफ भैने अऩने दोनं नेिो
                                                                             ु
एक फाय बगवान कासताक ने अऩने त्रऩता बगवान सशवजी                को खोरा तफ नेिं से स्वत् ही अश्रु की कछ फुॊदे सगयी।
                                                                                                    ु
से ऩूछा:- हे त्रऩता श्री ! मह रुद्राऺ कमा हं ?                          तेनाश्रुत्रफॊदसबजााता भत्मे रुद्राऺबूरुहा्।
                                                                                      ु
रुद्राऺ को धायाण कयना इस रोक औय ऩयरोक भं श्रेष्ठ              उस नेि से सनकरे अश्रृ त्रफॊद ु से बूरोक भं रुद्राऺ क वृऺ
                                                                                                                  े
क्यमं भाना जाता हं ?                                          उत्ऩन्न हो गए।
       रुद्राऺ क दकतने भुख होते हं ? उसक कौन से भॊि
                े                       े                            बिं ऩय कृ ऩा कयने क सरए एवॊ सॊसायका
                                                                                        े
हं ? भनुष्म रुद्राऺ को दकस प्रकाय धायण कयं ? कृ ऩा कय         कल्माण हो इस रक्ष्म से भेये मे अश्रुत्रफॊद ु रुद्राऺ क रुऩ
                                                                                                                    े
मह सफ आऩ भुझे त्रवस्ताय से सभझाए?                             भं व्माद्ऱ हो गमे औय रुद्राऺ क नाभ से त्रवख्मात हो गए,
                                                                                            े
       सशव जी फोरे हे षडानन रुद्राऺ की उत्ऩत्रि का            मे षडानन रुद्राऺ को धायण कयने से भहाऩुण्ड्म प्राद्ऱ होता
वणान भं तुम्हं सॊक्षऺद्ऱ भं फता यहा हूॊ।                      हं । इसभं तसनक बी सॊदेह नहीॊ है । दपय भंने रुद्राऺ को
शॊकय उवाि:                                                    त्रवष्णु बिं तथा िायं वगं क रोगो को फाॊट ददए।
                                                                                         े
         श्रृणु षण्ड्भुख तत्त्वेन कथमासभ सभासत्।              सशवजी फोरे बूरोक ऩय अऩने बिो क कल्माणाथा भंने
                                                                                            े
         त्रिऩुयो नाभ दै त्मेन्द्र् ऩूवाभासीत्सुदजम:॥
                                                 ु ा          रुद्राऺ को सबन्न स्थानो भं रुद्राऺ क अॊकय उगा कय
                                                                                                  े   ु
                                                              उन्हं उत्ऩन्न दकमा।


         गुरुत्व कामाारम द्राया यत्न एवॊ रुद्राऺ ऩयाभशा
                        भाि RS:- 450
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                                 रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ?
                                                                                                         सिॊतन जोशी
         रुद्र क अऺ से प्रकट होने क कायण रुद्राऺ को
                े                  े                         हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । गरे भं
साऺात सशव का सरॊगात्भक स्वरुऩ भाना गमा हं । त्रवद्रानो       रुद्राऺ धायण कयने से कयोडो़ गोदान (गाम का दान) का
का कथ हं की रुद्राऺ भं एक त्रवसशष्ट प्रकाय की ददव्म          पर सभरता हं ।
उजाा शत्रि सभादहत होती हं । प्राम् सबी ग्रॊथकायं व                   अरग-अरग यॊ गं क रुद्राऺ भं अरग-अरग प्रकाय
                                                                                    े
त्रवद्रानो ने रुद्राऺ को असह्य ऩाऩं को नाश कयने वारा         की शत्रिमाॊ सनदहत होती हं । इस सरमे यॊ गो क अनुसाय
                                                                                                        े
भाना हं ।                                                    रुद्राऺ का प्रबाव भनुष्म ऩय ऩिता हं ।
इस सरए सशव भाहा ऩुयाण भं उल्रेख दकमा गमा हं ।                      ब्राह्मणा् ऺत्रिमा् वैश्मा् शूद्राश्िेसत सशवाऻमा ।
                                                                  वृऺा जाता् ऩृसथव्माॊ तु तज्जातीमो् शुबाऺभ् ।
             सशवत्रप्रमतभो ऻेमो रुद्राऺ् ऩयऩावन्।                   श्वेतास्तु ब्राह्मण ऻेमा् ऺत्रिमा यक्यतवणाका् ॥
         दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥                ऩीता् वैश्मास्तु त्रवऻेमा् कृ ष्णा् शूद्रा उदाह्रुता् ॥
अथाात:      रुद्राऺ अत्मॊत ऩत्रवि, शॊकय बगवान का असत
                                                             अन्म श्रोक भं उल्रेख हं :
त्रप्रम हं । उसक दशान, स्ऩशा व जऩ द्राया सवा ऩाऩं का
                े
                                                                   ब्राह्मणा् ऺत्रिमा वैश्मा् शूद्रा जाता भभाऻमा ॥
नाश होता हं ।
                                                                  रुद्राऺास्ते ऩृसथव्माॊ तु तज्जातीमा् शुबाऺका् ॥
                रुद्राऺ धायणाने सवा द्खनाश्
                                     ु
                                                                     श्वेतयिा् ऩीतकृ ष्णा वणााऻेमा् क्रभाद्बुधै् ॥
अथाात: रुद्राऺ असॊखम द्खं का नाश कयने वारा हं ।
                      ु
                                                                    स्वजातीमॊ नृसबधाामं रुद्राऺॊ वणात् क्रभात ् ॥

रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से गोदा का पर प्राद्ऱ होता हं ।
              े
                                                             श्वेत यॊ ग: सपद यॊ ग वारे रुद्राऺ भं साक्षत्त्वक उजाामुि ब्रह्म
                                                                           े
रुद्राऺ क त्रवषम भं रुद्राऺ जावारोऩसनषद भं स्वमॊ
         े
                                                             स्वरुऩ शत्रि सभादहत होती हं । इस सरए ब्राह्मण को श्वेत
बगवान कारग्नी का कथन हं :
                                                             वणा का रुद्राऺ धायण कयना िादहए।
                                                             यिवणॉम (ताि क सभान आबामुि) : यि यॊ ग की
                                                                          े
            तदरुद्राऺे वाक्षग्वषमे कृ ते दशगोप्रदानेन
                                                             आबामुि रुद्राऺ भं याजसी उजाामुि शिुसॊहायक शत्रि
              मत्परभवाप्नोसत तत्परभश्नुते ।
                                                             सभादहत होती हं । इस सरए ऺत्रिम को यिवणॉम रुद्राऺ
             कये ण स्ऩृष्टवा धायणभािेण दद्रसहस्त्र
                                                             धायण कयना िादहए।
                    गोप्रदान पर बवसत ।
                                                             ऩीतवणॉम (काॊिन मा ऩीरी आबामुि) : ऩीरे यॊ ग की
  कणामोधाामभाणे एकादश सहस्त्र गोप्रदानपरॊ बवसत ।
           ा
                                                             आबामुि रुद्राऺ भं याजसी व ताभसी दोनं प्रकाय की
                 एकादश रुद्रत्वॊ ि गच्छसत ।
                                                             सॊमुि उजाा शत्रि सभादहत होती हं । इस सरए वैश्म को
      सशयसस धामाभाणे कोदट ग्रोप्रदान परॊ बवसत ।
                                                             ऩीतवणॉम रुद्राऺ धायण कयना िादहए।
अथाात: रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से दश गोदान (गाम का
                     े
                                                             कृ ष्णवणॉम: कारे यॊ ग की आबामुि रुद्राऺ भं ताभसी
दान) का पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ का स्ऩशा कयने व
                                                             उजाामुि सेवा व सभऩाणात्भक शत्रि सभादहत होती हं ।
धायण कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का पर
                                                             इस सरए शूद्र को कृ ष्णवणॉम रुद्राऺ धायण कयना िादहए।
सभरता हं । दोनो कानो ऩय रुद्राऺ धायण कयने से ग्माया
9                                            ददसम्फय 2011



मह शास्त्रं भे उल्रेक्षखत त्रवद्रान ऋत्रषमं का सनदे श है दक       ऩूजनीम हं ।
भनुष्म को अऩने वणा क अनुरूऩ श्वेत, यि, ऩीत औय
                    े                                             अबि हो मा बि हो, नीॊि से नीि व्मत्रि बी मदी
कृ ष्ण वणा क रुद्राऺ धायण कयने िादहए। त्रवशेषकय
            े                                                     रुद्राऺ को धायण कयता हं , तो वह सभस्त ऩातको के
बगवान सशव क बिो क सरमे तो रुद्राऺ को धायण
           े     े                                                भुि हो जाता हं ।
कयना ऩयभ आश्मक हं ।                                                       जो भनुष्म सनमभानुशाय सहस्त्ररुद्राऺ धायण कयता
                                                                  हं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हं ।
       वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्रिभुत्रिपरेप्सुसब् ॥
                                                                         उक्षच्छष्टो वा त्रवकभो वा भुक्यतो वा सवाऩातक्।
                                                                                                                     ै
         सशवबित्रवशेषेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥
              ै ा
                                                                               भुच्मते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥
              सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्त्रीशूद्राणाॊ।
                                                                  अथाात् जो भनुष्म उक्षच्छष्ट अथवा अऩत्रवि यहते हं मा फुये
             सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥
                                                                  कभा कयने वार व अनेक प्रकाय क ऩाऩं से मुि वह
                                                                                              े
सबी आश्रभं (ब्रह्मिायी, वानप्रस्थ, गृहस्थ औय सॊन्मासी)
                                                                                                                 ू
                                                                  भनुष्म रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩं से छट
एवॊ वणं तथा स्त्री औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण कयना
                                                                  जाते हं ।
िादहमे, मह सशवजी की आऻा है !
       रुद्राऺ को तीनं रोकं भं ऩूजनीम हं । रुद्राऺ के                         कण्ड्ठे रुद्राऺभादाम सिमते मदद वा खय्।
स्ऩशा से रऺ गुणा तथा रुद्राऺ की भारा धायण कयने से                             सोऽत्रऩरुद्रत्वभाप्नोसत दक ऩुनबुत्रव भानव्।
                                                                                                        ॊ     ा
कयोि गुना पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ की भारा से भॊि             अथाात् कण्ड्ठ भं रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा) बी
जऩ कयने से अनॊत कोदट पर की प्रासद्ऱ होती हं ।                     भृत्मु को प्राद्ऱ हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को प्राद्ऱ
       क्षजस प्रकाय सभस्त रोक भं सशवजी वॊदनीम एवॊ                 होता हं , तो ऩृथ्वीरोक क जो भनुष्म हं उनक फाये भं तो
                                                                                          े                े
ऩूजनीम हं उसी प्रकाय रुद्राऺ को धायण कयने वारा                    कहना ही क्यमा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मं को स्वगा-
व्मत्रि सॊसाय भं वॊदन मोग्म हं ।                                  प्रासद्ऱ व रोक ऩयरोक सुधायने क सरए रुद्राऺ अवश्म
                                                                                                े
                                                                  धायण कयने मोग्म हं ।

रुद्राऺ धायण परभ ्                                                       रुद्राऺॊ भस्तक धृत्वा सशय् स्नानॊ कयोसत म्।
                                                                                       े
                                                                              गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥
        रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे ि त्रिऩुण्ड्रकभ ्।
                                                                  अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयक जो भनुष्म
                                                                                                     े
     स िाण्ड्डारोऽत्रऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणंिभो बवेत ्॥
                                                                  ससय से स्नान कयता हं उसे गॊगा स्नान क सभान ऩयभ
                                                                                                       े
अथाात् क्षजसक शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय
             े
                                                                  ऩत्रवि स्नान का पर प्राद्ऱ होता हं तथा वह भनुष्म
त्रिऩुण्ड्ड हो, वह िाण्ड्डार बी हो तो सफ वणं भं उिभ
                                                                  सभस्त ऩाऩं से भुि हो जाता हं इसभं सॊशम नहीॊ हं ।



                                                     यत्न एवॊ उऩयत्न
 हभाये महाॊ सबी प्रकाय क यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यत्न
                        े

 व्मवसाम से जुडे रोगो क सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।
                       े

                        गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785.
                                            ा
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                                1 से 14 भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब

                                                                                  सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी
                                                                 क्षजस स्थान ऩय एकभुखी रुद्राऺ होता हं वहाॊ से
एक भुखी:                                                          सभस्त प्रकाय क उऩद्रवो का नाश होता हं ।
                                                                                े
                                                                 एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने से अॊत्कयण भं ददव्म-
                                                                  ऻान का सॊिाय होता हं ।
                                                                 बगवान सशव का विन हं की एकभुखी रुद्राऺ धायण
                                                                  कयने से ब्रह्महत्मा व ऩाऩं का नाश कयने वारा हं ।
                                                                 एकभुखी रुद्राऺ सवा प्रकाय दक अबीष्ट ससत्रद्चमं को
                                                                  प्रदान कयने वारा हं ।
                                                                 एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने से धायण कताा भं
                                                                  साक्षत्त्वक उजाा भं वृत्रद्च कयने भं सहामक, भोऺ प्रदान
                                                                  कयने सभथा हं ।
                                                                 एकभुखी रुद्राऺ धभा, अथा, काभ औय भोऺ प्रदान
                                                                  कयने वारा होता हं ।
एक भुखी रुद्राऺ साऺात ब्रह्म स्वरुऩ हं ।
                                                             एक भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-
   एक भुखी रुद्राऺ काजू क सभान अथाात अधािद्राकाय
                          े               ॊ
    स्वरुऩ भं प्राद्ऱ होते हं । एक भुखी रुद्राऺ गोर आकाय
                                                                                ॐ एॊ हॊ औॊ ऎ ॐ॥
    भं सयरता से प्राद्ऱ नहीॊ होता हं । क्यमोदक गोराकाय भं
    सभरना दरब भानागमा हं । फडे
           ु ा                             सौबाग्म दकसी           भॊि ससद्च ऩन्ना गणेश
    भनुष्म को गोर एक भुखी रुद्राऺ क दशान एवॊ प्राद्ऱ
                                   े                         बगवान श्री गणेश फुत्रद्च औय सशऺा के
    से होता हं ।                                             कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता हं ।
                                                                            े
   इस सरए एकभुखी रुद्राऺ बोग व भोऺ प्रदान कयने              ऩन्ना गणेश फुध क सकायात्भक प्रबाव
                                                                             े
    वारा हं ।                                                को फठाता हं एवॊ नकायात्भक प्रबाव को
   जो भनुष्म ने एकभुखी रुद्राऺ धायण दकमा हो उस              कभ कयता हं ।. ऩन्न गणेश क प्रबाव से
                                                                                      े
    ऩय भाॊ रक्ष्भी हभेशा कृ ऩा वषााती हं । मा क्षजस घय भं    व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्च भं वृत्रद्च होती

    एकभुखी रुद्राऺ का ऩूजन होता हं वहाॊ रक्ष्भी का           हं । फच्िो दक ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं ऩन्ना गणेश
                                                             इस    के   प्रबाव से फच्िे    दक    फुत्रद्च   कशाग्र होकय उसक
                                                                                                             ू             े
    स्थाई वास होता हं ।
                                                             आत्भत्रवश्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्च होती हं । भानससक अशाॊसत को
   एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने वारे भनुष्म क घय भं
                                          े
                                                             कभ कयने भं भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत हयी त्रवदकयण
    धन-धान्म, सुख-सभृत्रद्च-वैबव, भान-सम्भान प्रसतष्ठा भं
                                                             शाॊती प्रदान कयती हं , व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित
                                                                                             े       े
    वृत्रद्च कयने वारा हं ।
                                                             कयती हं । क्षजगय, पपिे , जीब, भक्षस्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्मादद
                                                                                े
   एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने वारे भनुष्म की सबी              योग भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय भयगज क फने होते हं ।
                                                                                                      े
    प्रकाय की भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं ।                      .                                  Rs.550 से Rs.8200 तक
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दोभुखी रुद्राऺ:                                                     दहस्टीरयमा, फूये स्वप्न आदद से यऺा होती हं । साथा
                                                                    ही एक रुद्राऺ को गबावती स्त्री क त्रफस्तय ऩय तदकए
                                                                                                    े
                                                                    क नीिे एक दडक्षब्फ भं यखने से असधक राब प्राद्ऱ
                                                                     े
                                                                    होता हं ।
                                                                    दो भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-
                                                                                      ॐ ऺीॊ ह्रीॊ ऺं व्रीॊ ॐ॥

                                                                तीन भुखी रुद्राऺ:




   दो    भुखी        रुद्राऺ     फादाभ क सभान आकाय
                                         े
    भं व गोराकाय स्वरुऩ दोनो स्वरुऩं भं प्राद्ऱ होता हं ।
   दो भुखी रुद्राऺ साऺात अद्चा नायीश्वय का स्वरुऩ हं ।
    कछ ग्रॊथो भं दो भुख वारे रुद्राऺ को दे व दे वेश्वय कहा
     ु
    गमा हं ।
   सशव-शत्रि की सनयॊ तय कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु दोभुखी रुद्राऺ
    त्रवशेष राबकायी होता हं ।
   दो भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भानससक शाॊसत प्राद्ऱ
    होकय ताभससक प्रवृत्रिमं का नाश होता हं ।                       तीन      भुखी      रुद्राऺ      थोडा रॊफे आकाय भं व
   दो भुखी रुद्राऺ धायण कताा को आर्धमाक्षत्भक उन्नसत               गोराकाय स्वरुऩ दोनो स्वरुऩं भं प्राद्ऱ होता हं ।
    क सरए सहामता प्रदान कयता हं ।
     े                                                             तीन भुखी रुद्राऺ साऺात अक्षग्न का स्वरुऩ हं ।
   दो   भुखी    रुद्राऺ   धायण   कयने   से   उदय   सॊफॊसधत        तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से गॊसबय फीभारयमं से
    सभस्माओॊ से भुत्रि सभरती हं ।                                   यऺा होती हं ।
   दो भुखी रुद्राऺ आकक्षस्भक दघटनाओॊ से यऺा कयने
                               ु ा                                 मदद कोई रम्फे सभम से योगग्रस्त हं तो उसक तीन
                                                                                                            े
    भं सहामक ससद्च होता हं ।                                        भुखी रुद्राऺ धायण कयने से योग से शीघ्र भुत्रि
   दो भुखी रुद्राऺ धायण कयने से गौ हत्मा क ऩाऩं का
                                           े                        सभरती हं ।
    नाश कयता हं ।                                                  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयना ऩीसरमा क योगी क
                                                                                                       े      े
   दो भुखी रुद्राऺ से अनेक प्रकाय की व्मासधमाॊ स्वत्               सरए अत्मासधक राबकायी होता हं ।
    ही शाॊत हो जाती हं ।                                           तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से स्पसता, कामाऺभता
                                                                                                     ू
   दो भुखी रुद्राऺ भनुष्म की भनोकाभनाओॊ को ऩूणा                    भं वृत्रद्च होती हं ।
    कयने वारा एवॊ शुब पर प्रदान कयने वारा हं ।                     जानकायं क भतानुशाय तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने
                                                                             े
   मदद दो भुखी रुद्राऺ को गबावती स्त्री अऩनी कभय ऩय                से स्त्री हत्मा इत्मादद ऩाऩं का नाश होता हं । कछ
                                                                                                                   ु
    मा बुजा ऩय धायण कयती हं तो गबाावस्था क नौ
                                          े                         त्रवद्रानो का भत हं की तीन भुखी रुद्राऺ ब्रह्म हत्मा के
    भदहने तक उसकी अनजाने बम, तोने-तोटक, फेहोशी,
                                      े                             ऩाऩ को नाश कयने भं बी सभथा हं ।
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   तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से शत ज्वय दय होता
                                           ू                  िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से वाणी भं सभठास
    हं ।                                                       आती हं ।
   तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अद्भत त्रवद्या की
                                      ु                       िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भानससक त्रवकाय दय
                                                                                                             ू
    प्रासद्ऱ होती हं ।                                         होते हं ।
   तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयना भॊदफुत्रद्च फच्िं के           त्रवद्रानो का कथन है की िाय भुखी रुद्राऺ क दशान
                                                                                                         े
    फौसधक त्रवकास क सरए अत्मॊत राबदामक ससद्च होता
                   े                                           एवॊ स्ऩशा से धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन िायं
    हं ।                                                       ऩुरुषाथो की शीघ्र प्रासद्ऱ होती हं ।
   सनम्न यििाऩ को दय कयने भं बी तीन भुखी रुद्राऺ
                    ू                                         िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से जीव हत्मा क ऩाऩं
                                                                                                        े
    धायण कयना राबदामक होता हं ।                                का नाश होता हं ।
   तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अक्षग्नदे व की कृ ऩा        िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से ददव्म ऻान की प्रासद्ऱ
    प्राद्ऱ होती हं ।                                          होती हं ।
   तीन भुखी रुद्राऺ से अक्षग्न बम से यऺण होता हं ।           िाय भुखी रुद्राऺ को अबीष्ट ससत्रद्चमं को प्राद्ऱ कयने भं
                                                               सहामक व कल्माणकायी हं ।
तीनभुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-                    िाय भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-
                         ॐ यॊ हूॊ ह्रीॊ हूॊ ओॊ॥                                   ॐ व्राॊ क्राॊ ताॊ हाॊ ई॥

िाय भुखी रुद्राऺ:
                                                                                  गणेश रक्ष्भी मॊि




                                                              प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दकान-
                                                                                                              ु
                                                              ओदपस-पक्यटयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी
                                                                    ै
                                                              भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता
   िाय भुखी रुद्राऺ साऺात ब्रह्मा का स्वरुऩ हं ।
                                                              हं । मॊि क प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतष्ठा
                                                                        े
   िाय भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से फौसधक शत्रि का
                                                              एवॊ व्माऩय भं वृत्रद्च होती हं एवॊ आसथाक क्षस्थभं सुधाय
    त्रवकास होता हं ।
                                                              होता हं । गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से
   त्रवद्यार्धममन कयने वारे फच्िो क फौसधक त्रवकास एवॊ
                                    े
                                                              बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद
    स्भयण शत्रि क त्रवकास क सरए िाय भुखी रुद्राऺ
                 े         े
    उिभ परदासम ससद्च होता हं ।
                                                              प्राद्ऱ होता हं ।          Rs.550 से Rs.8200 तक
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ऩॊि भुखी रुद्राऺ:                                                   से यऺा होती हं ।
                                                                   त्रवष क प्रबाव को कभ कयने भं ऩॊिभुखी रुद्राऺ असत
                                                                           े
                                                                    राबदामक हं ।
                                                                   भहाऩुरुषो का कथन हं की ऩॊिभुखी रुद्राऺ धायण
                                                                    कयने से ऩयस्त्री गभन, अबक्ष्म बोजन का बऺण
                                                                    कयने क ऩाऩं से भुत्रि सभरती हं । सिि का शुत्रद्च
                                                                          े
                                                                    कयण हो जाता हं ।
                                                                   ऩॊिभुखी रुद्राऺ को ऩॊितत्त्वं का प्रतीक भानाजाता हं ।
                                                                   ऩॊि भुखी रुद्राऺ को शास्त्रकायं ने आमुवद्चा क एवॊ
                                                                    सवाकल्माणकायी व भॊगरप्रदामक भाना हं ।
                                                                   ऩॊि भुखी रुद्राऺ अबीष्ट कामो की ससत्रद्च हे तु राबदाम
                                                                    होता हं ।
   ऩॊि भुखी रुद्राऺ साऺात काराक्षग्न का स्वरुऩ हं ।            जन साभान्म भं एसी भ्रभक धायणाएॊ हं की ऩॊि भुखी
   ऩॊि भुखी रुद्राऺ धायण कयने से सबी प्रकाय के                 रुद्राऺ सस्ता एवॊ आसानी से सभरने क कायण मह
                                                                                                  े
    असनष्ट एवॊ कश्टो से भुत्रि सभरती हं ।                       असधक राबकायी नहीॊ होता। रेदकन वास्तत्रवकता इससे
   ऩॊि भुखी रुद्राऺ भनोवाॊसित पर प्राद्ऱ कयने हे तु            ऩये हं जानकायं का भत हं की ऩॊिभुखी सवाासधक
    उिभ हं ।                                                    राबकायक होता हं । भनुष्म को अऩने उद्ङे श्म की ऩूसता हे तु
   ऩॊिभुखी रुद्राऺ धायण कयने से सुख-शाॊसत प्राद्ऱ होती हं ।    आवश्मिा क अनुशाय रुद्राऺ धायण कयना िादहए।
                                                                         े
   ऩॊि भुखी रुद्राऺ शिु बम से यऺा कयने क सरए बी
                                         े                      ऩॊि भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-
    राबदामक भानाजाता हं ।
                                                                                ॐ ह्राॊ आॊ क्ष्म्मं स्वाहा॥
   ऩॊि भुखी रुद्राऺ धायण कयने से जहयीरे जीव-जॊतुओॊ


        क्यमा आऩक फच्िे कसॊगती क सशकाय हं ?
                  े       ु      े

        क्यमा आऩक फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ?
                  े

        क्यमा आऩक फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ?
                  े
                                     ु         ु
    घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कसॊगती से छडाने हे तु फच्िे क नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-
                                                                 े
    त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.दडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने
    घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ तो आऩ भॊि
    ससद्च वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.दडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩक इस कय सकते हं ।
                                                               ा

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14                                        ददसम्फय 2011



छ् भुखी रुद्राऺ:                                                          छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से शिु ऩऺ ऩय त्रवजम
                                                                           प्राद्ऱ कयने भं सपरता प्राद्ऱ होती हं ।
                                                                          इस सरए इसे शिुजम रुद्राऺ कहाॊ जाता हं ।
                                                                                         ॊ
                                                                          छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से सबी प्रकाय की
                                                                           अबीष्ट ससत्रद्चमाॊ प्रासद्ऱ भं सहामता सभरती हं ।


                                                                       छ् भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-
                                                                                       ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्यरीॊ सं ऎॊ॥

                                                                       सात भुखी रुद्राऺ:


   छ् भुखी रुद्राऺ साऺात कासताकम का स्वरुऩ हं । कछ
                                े                 ु
    त्रवद्रानो क भत से छ् भुखी रुद्राऺ गणेशजी का
                े
    प्रसतक हं ।
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भाता ऩावाती शीघ्र
    प्रसन्न होती हं ।
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से त्रवद्या प्रासद्ऱ भं
    सपरता         प्राद्ऱ   होती   हं ।   अत्   छ्   भुखी   रुद्राऺ
    त्रवद्यासथामं क सरए उिभ यहता हं ।
                   े
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से वाक शत्रि भं
    सनऩुणता आती हं ।                                                      सात भुखी रुद्राऺ सद्ऱ भातृकाओॊ का साऺात स्वरुऩ
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से व्मवसामीक कामं भं                         भाना जाता हं । इसे शास्त्रं भं अनॊग स्वरुऩ बी कहा
    राब प्राद्ऱ होता हं ।                                                  गमा हं ।
   छ् भुखी रुद्राऺ से भनुष्मको बौसतक सुख-सॊऩन्नता                        सात भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से सबी प्रकाय के
    प्राद्ऱ होती हं ।                                                      योग शाॊत हो जाते हं ।
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने दारयद्र्मता दय होती हं ।
                                           ू                              सात भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से दीधाामु की प्रासद्ऱ
   जानकायं नं छ् भुखी रुद्राऺ को धायण कयना भूच्छाा                        होती हं ।
    जैसी फीभायी भं राबदामक फतामा हं ।                                     सात भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अबीष्ट ससत्रद्चमाॊ प्राद्ऱ
   छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अऩाय शत्रि प्राद्ऱ                        होती हं ।
    होती हं व भनुष्मकी सकर इच्छाओॊ की ऩूसता होती                          भहाऩुरुषो का का कथन हं की सात भुखी रुद्राऺ
    हं ।                                                                   धायण कयने से सोने की िोयी, गौवध जैसे अनेक
   भाहाऩुरुषो का कथन हं की छ् भुखी रुद्राऺ धायण                           ऩाऩं को नाश होता हं ।
    कयने से भ्रूणहत्मा आदद ऩाऩं का सनवायण होता हं ।
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  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका ददसम्फय- 2011 रुद्राऺ की उत्ऩत्रि रुद्राऺ क त्रवसबन्न राब े रुद्राऺ धायण से काभनाऩूसता रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ? रुद्राऺ धायण कयने क सॊक्षऺद्ऱ त्रवसध े 1 से 14भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब रुद्राऺ क त्रवषम भं त्रवशेष जानकायी े NON PROFIT PUBLICATION
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ददसम्फय 2011 सॊऩादक सिॊतन जोशी गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग सॊऩका गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईभेर gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेफ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्रादपक्यस सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी (स्वक्षस्तक सोफ्टे क इक्षन्डमा सर) ई- जन्भ ऩत्रिका E HOROSCOPE अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्चसत द्राया Create By Advanced Astrology उत्कृ ष्ट बत्रवष्मवाणी क साथ े Excellent Prediction १००+ ऩेज भं प्रस्तुत 100+ Pages दहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रभ रुद्राऺ शत्रि त्रवशेष रुद्राऺ की उत्ऩत्रि 6 रुद्राऺ धायण कयं सावधासनमं क साथ। े 29 रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ? 8 रुद्राऺ धायण कयने क सॊक्षऺद्ऱ त्रवसध े 30 1 से 14 भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब 10 रुद्राऺ क त्रवषम भं त्रवशेष जानकायी े 31 रुद्राऺ क त्रवसबन्न राब े 21 असरी 1 भुखी से 14 भुखी रुद्राऺ 20 जन्भ नऺि एवॊ यासश से रुद्राऺ िमन 23 भॊि ससद्च रूद्राऺ 33 रुद्राऺ धायण से काभनाऩूसता 25 अन्म रेख स्पदटक श्रीमॊि 28 ऩॊिभुखी हनुभान का ऩूजन उिभ परदामी हं 40 आॊखो से व्मत्रित्व 32 हनुभान फाहुक क ऩाठ योग व कष्ट दय कयता हं ू 41 सशव क दस प्रभुख अवताय े 34 गौ सेवा का भहत्व 42 श्रीकृ ष्ण की पोटो से सभमाओॊ का सभाधान 35 भारा का भहत्व 44 बाग्म रक्ष्भी ददब्फी 36 उऩवास एवॊ ज्मोसतष 45 हनुभानजी क ऩूजन से कामाससत्रद्च े 37 िेहये ऩय सतर का प्रबाव 47 वास्तु: भानससक अशाॊसत सनवायण उऩाम 39 हभाये उत्ऩाद भॊि ससद्च ऩन्ना गणेश 10 द्रादश भहा मॊि 24 भॊि ससद्च दै वी मॊि सूसि 49 याभ यऺा मॊि 55 गणेश रक्ष्भी मॊि 12 भॊि ससद्च रूद्राऺ 33 सवा कामा ससत्रद्च कवि 50 यासश यत्न 60 भॊि ससद्च दरब साभग्री ु ा 18 बाग्म रक्ष्भी ददब्फी 38 जैन धभाक त्रवसशष्ट मॊि े 51 सवा योगनाशक मॊि/ 72 शादी सॊफसधत सभस्मा ॊ 15 दक्षऺणावसता शॊख 38 अभोद्य भहाभृत्मुजम कवि ॊ 53 भॊि ससद्च कवि 74 ऩढा़ई सॊफसधत सभस्मा ॊ 16 भॊिससद्च रक्ष्भी मॊिसूसि 49 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 53 YANTRA 75 भॊिससद्च स्पदटक श्री मॊि 17 नवयत्न जदित श्री मॊि 48 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि/ कवि 54 GEMS STONE 77 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्च भहामॊि 52 भॊि ससद्च साभग्री- 65, 66, 67 स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 ददन-यात क िौघदडमे े 69 भाससक यासश पर 56 ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 70 ददसम्फय 2011 भाससक ऩॊिाॊग 61 ग्रह िरन ददसम्फय -2011 71 ददसम्फय-2011 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 63 सूिना 79 ददसम्फय 2011 -त्रवशेष मोग 68 हभाया उद्ङे श्म 81 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 68
  • 4. सॊऩादकीम त्रप्रम आक्षत्भम फॊध/ फदहन ु जम गुरुदे व रुद्राऺ को बगवान सशव का प्रसतक भाना जाता है । रुद्राऺ की उत्ऩत्रि बगवान सशव क अश्रु से हुइथी इस सरमे इसे े रुद्राऺ कह जाता है । रुद्र का अथा है सशव औय अऺ का अथा है आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना। रूद्र+अऺ शब्द का सॊमोग रूद्राऺ कहराता है । रुद्र का अथा है । बगवान सशव का यौद्र रूऩ औय अऺ का अथा है आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना। रुद्राऺ की उत्ऩत्रि क त्रवषम भं अनेको कथाएॊ धभा ग्रॊथो भं उल्रेक्षखत हं सरकन प्रभुख कथा क अनुशाय बगवान े े े सशव ने सैकडं हजाय वषो तक अॊतर्धमाान यहे । जफ बगवान सशव ने र्धमान ऩूणा होने क फाद जफ सशवजी ने अऩने नेि े खोरे, तो उनक नेि से आॊसुओॊ की धाया सनकरने रगी। े तेनाश्रुत्रफॊदसबजााता भत्मे रुद्राऺबूरुहा्। ु उस नेि से सनकरे अश्रृ त्रफॊद ु से बूरोक भं रुद्राऺ क वृऺ उत्ऩन्न हो गए। बूरोक ऩय जहाॊ-जहाॊ बी अश्रु फुॊदे सगये , उनसे े अॊकयण पट ऩडा! फाद भं मही रुद्राऺ क वृऺ फन गए। काराॊतय भं मही रुद्राऺ सशव बिो क त्रप्रम फन कय सभग्र त्रवश्व ु ू े े भं व्माद्ऱ हो गए। बिं ऩय कृ ऩा कयने क सरए सशवजी क अश्रुत्रफॊद ु रुद्राऺ क रुऩ भं व्माद्ऱ हो गमे औय रुद्राऺ क नाभ से े े े े त्रवख्मात हो गए। रुद्र क अऺ से प्रकट होने क कायण धभाग्रॊथो भं रुद्राऺ को साऺात सशव का सरॊगात्भक स्वरुऩ भाना े े गमा हं । त्रवद्रानो का कथ हं की रुद्राऺ भं एक त्रवसशष्ट प्रकाय की ददव्म उजाा शत्रि सभादहत होती हं । प्राम् सबी ग्रॊथकायं व त्रवद्रानो ने रुद्राऺ को असह्य ऩाऩं को नाश कयने वारा भाना हं । इस सरए सशव भाहा ऩुयाण भं उल्रेख दकमा गमा हं । सशवत्रप्रमतभो ऻेमो रुद्राऺ् ऩयऩावन्। दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥ अथाात: रुद्राऺ अत्मॊत ऩत्रवि, शॊकय बगवान का असत त्रप्रम हं । उसक दशान, स्ऩशा व जऩ द्राया सवा ऩाऩं का नाश े होता हं । रुद्राऺ धायणाने सवा द्खनाश् ु अथाात: रुद्राऺ असॊखम द्खं का नाश कयने वारा हं । ु रुद्राऺ क त्रवषम भं जावारोऩसनषद भं स्वमॊ बगवान कारग्नी का कथन हं : े तदरुद्राऺे वाक्षग्वषमे कृ ते दशगोप्रदानेन मत्परभवाप्नोसत तत्परभश्नुते । कये ण स्ऩृष्टवा धायणभािेण दद्रसहस्त्र गोप्रदान पर बवसत । कणामोधाामभाणे एकादश सहस्त्र गोप्रदानपरॊ बवसत । ा एकादश रुद्रत्वॊ ि गच्छसत । सशयसस धामाभाणे कोदट ग्रोप्रदान परॊ बवसत । अथाात: रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से दश गोदान (गाम का दान) का पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ का स्ऩशा कयने व धायण े कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । दोनो कानो ऩय रुद्राऺ धायण कयने से ग्माया हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । गरे भं रुद्राऺ धायण कयने से कयोडो़ गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं ।
  • 5. रुद्राऺ को धायण कयने क त्रवषम भं त्रवद्रानो का कथन हं की त्रवशेषकय बगवान सशव क बिो क सरमे तो रुद्राऺ े े े को धायण कयना ऩयभ आश्मक हं । इसी सरए कहाॊ गमा हं की.. वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्रिभुत्रिपरेप्सुसब्। सशवबित्रवशेषेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥ ै ा सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्त्रीशूद्राणाॊ। सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥ सबी आश्रभं (ब्रह्मिायी, वानप्रस्थ, गृहस्थ औय सॊन्मासी) एवॊ वणं तथा स्त्री औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण कयना िादहमे, मह सशवजी की आऻा है ! रुद्राऺ को धायण कयने से प्राद्ऱ होने वारे राब क त्रवषम भं त्रवसबन्न राब फतामे गए हं । े रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे ि त्रिऩुण्ड्रकभ ्। स िाण्ड्डारोऽत्रऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणंिभो बवेत ्॥ अथाात् क्षजसक शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय त्रिऩुण्ड्ड हो, वह िाण्ड्डार बी हो तो सफ वणं भं उिभ ऩूजनीम हं । े जो भनुष्म सनमभानुशाय सहस्त्ररुद्राऺ धायण कयता हं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हं । उक्षच्छष्टो वा त्रवकभो वा भुक्यतो वा सवाऩातक्। ै भुच्मते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥ अथाात् जो भनुष्म उक्षच्छष्ट अथवा अऩत्रवि यहते हं मा फुये कभा कयने वार व अनेक प्रकाय क ऩाऩं से मुि वह भनुष्म े ू रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩं से छट जाते हं । कण्ड्ठे रुद्राऺभादाम सिमते मदद वा खय्। सोऽत्रऩरुद्रत्वभाप्नोसत दक ऩुनबुत्रव भानव्। ॊ ा अथाात् कण्ड्ठ भं रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा) बी भृत्मु को प्राद्ऱ हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को प्राद्ऱ होता हं , तो ऩृथ्वीरोक क जो भनुष्म हं उनक फाये भं तो कहना ही क्यमा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मं को स्वगा-प्रासद्ऱ व रोक े े ऩयरोक सुधायने क सरए रुद्राऺ अवश्म धायण कयने मोग्म हं । े रुद्राऺॊ भस्तक धृत्वा सशय् स्नानॊ कयोसत म्। े गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥ अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयक जो भनुष्म ससय से स्नान कयता हं उसे गॊगा स्नान क सभान ऩयभ ऩत्रवि े े स्नान का पर प्राद्ऱ होता हं तथा वह भनुष्म सभस्त ऩाऩं से भुि हो जाता हं इसभं सॊशम नहीॊ हं । रुद्राऺ का प्रमोग ऩूजा-ऩाठ, जऩ-तऩ इत्मादद धासभाक कामं भं तो अवश्म सपरता प्रदान कयता हं । इस के अरावा रुद्राऺ औषधीम गुणं से बी बयऩूय होता हं । रुद्राऺ कई योगं भं आयाभ ऩहूॊिाने भं त्रवशेष राबदामक ससद्च होता हं । इसक अरावा रुद्राऺ का प्रमोग ग्रह दोष क सनवायण क सरए, अऩने त्रवसबन्न उद्ङे श्म औय भनोकाभनाओॊ की ऩूसता क े े े े सरए व त्रवसबन्न सभस्माओॊ क सनवायण क सरए ज्मोसतष क जानकाय रुद्राऺ धायण कयने की सराह दे ते है । आऩक े े े े भागादशान क सरए हभने इस रुद्राऺ शत्रि त्रवशेष अॊक भं रुद्राऺ से सॊफॊसधत असधक से असधक उऩमोगी जानकायी प्रदान े कयने का प्रमास दकमा हं । दपय बी रुद्राऺ धायण कयने से ऩूवा दकसी कशर त्रवशेषऻ से ऩयाभशा अवश्म कय रे। ू सिॊतन जोशी
  • 6. 6 ददसम्फय 2011 रुद्राऺ की उत्ऩत्रि  सिॊतन जोशी श्रीभदबागवत, दे वी बागवत, भुण्ड्डकोऩसनषद, बगवत रुद्रस्म अक्षऺ रुद्राऺ:, अक्ष्मुऩरक्षऺतभ ् कभाऩुयाण, ऋग्वेद, मजुवद, अथवावेद, ऩायस्कय ग्रहसूि, े अश्रु, तज्जन्म: वृऺ:। त्रवष्णुधभा सूि, सभयाॊगण सूिधाय, माऻवरक्यम स्भृसत, ऩुटाभ्माॊ िारुिऺुभ्मां ऩसतता जरत्रफॊदव्। सनत्मािाय प्रदीऩ, वैददक दे वता कल्माण आदद उऩसनषदो एवॊ तन्ि भन्ि आदद ग्रन्थो भे सभरता है । त्रवद्रानो क भत से े तिाश्रुत्रफन्दवो जाता वृऺा रुद्राऺसॊऻका्॥ . रुद्राऺ की उत्ऩत्रि क सॊफॊध भं त्रवसबन्न ग्रॊथो भं त्रवसबन्न े ऩौयाक्षणक कथाएॊ प्रिसरत हं । रुद्राऺ को बगवान सशव का प्रसतक भाना जाता है । रुद्राऺ की उत्ऩत्रि बगवान सशव क अश्रु से हुइथी इस सरमे े एक कथा क अनुसाय: े इसे रुद्राऺ कह जाता है । रुद्र का अथा है सशव औय अऺ का एक फाय बगवान सशव ने सैकडं हजाय वषो तक अथा है आॉख। दोनो को सभराकय रुद्राऺ फना। अॊतर्धमाान यहे । जफ बगवान सशव ने र्धमान ऩूणा होने रूद्र+अऺ शब्द का सॊमोग रूद्राऺ क फाद जफ सशवजी ने अऩने नेि खोरे , तो े कहराता है । रुद्र का अथा है । बगवान उनक नेि से आॊसुओॊ की धाया सनकरने े सशव का यौद्र रूऩ औय अऺ का अथा है रुद्राऺ बगवान सशव को रगी। सशवजी क नेिं से सनकरी महॊ े आॉख । दोनो को सभराकय रुद्राऺ प्रसन्न कयने क सरए े ददव्म अश्रु-फूॊद बूरोक ऩय सगयी, बूरोक फना । त्रवशेष रुऩ से परदामी ऩय जहाॊ-जहाॊ बी अश्रु फुॊदे सगये , उनसे रुद्राऺ बगवान सशव को ससद्च होता हं । ऩुयाणं भं अॊकयण पट ऩडा! फाद भं मही रुद्राऺ ु ू प्रसन्न कयने क सरए त्रवशेष रुऩ े रुद्राऺ की भदहभा का त्रवस्ताय से वणान दकमा क वृऺ फन गए। काराॊतय भं मही े से परदामी ससद्च होता हं । गमा है । रुद्राऺ धायण रुद्राऺ सशव बिो क त्रप्रम फन कय े धभाग्रॊथं, शास्त्रं व कयने से सौबाग्म प्राद्ऱ सभग्र त्रवश्व भं व्माद्ऱ हो गए। ऩुयाणं भं रुद्राऺ की भदहभा होता है । का त्रवस्ताय से वणान दकमा गमा दसयी कथा क अनुशाय: ू े है । महाॊ ऩाठको क भागादशान क सरए े े कछ प्रभुख ग्रॊथो भं उल्रेक्षखत रुद्राऺ से ु एक फाय सती क त्रऩता दऺ प्रजाऩसत ने े सॊफॊसधत जानकायीमाॊ दी जा यही हं । अऩने महाॊ मऻ का आमोजन दकमा। हवन कयते सभम रुद्राऺ क गुणो का त्रवस्तृत वणान सरॊगऩुयाण, े दऺने बगवान सशव का अऩभान कय ददमा। सशवजी के भत्स्मऩुयाण, स्कदऩुयाण, ॊ सशवभहाऩुयाण, ऩदभऩुयाण, अऩभान ऩय क्रोसधत होकय सशव की ऩत्नी सती ने स्वमॊ भहाकार सॊदहता भन्ि, भहाणाव सनणाम ससन्धु, को अक्षग्नकड भं सभादहत कयसरमा। सती का जरा शयीय ुॊ फृहज्जाफारोऩसनषद, कासरकाऩुयाण, रूद्राऺ जफरोऩसनषद, दे ख कय सशव अत्मॊत क्रोसधत हो गए। वायाह ऩुयाण, त्रवष्णुधभंिय ऩुयाण, सशवतत्त्व यत्नाकाय, बगवान सशव ने उन्भत दक बाॊसत सती क जरे े फारोऩसनषद, रुद्रऩुयाण, काठक सॊदहता, कात्मामनी तॊि, हुए शयीय को कधे ऩय यख वे सबी ददशाओॊ भं भ्रभण ॊ कयने रगे। सृत्रष्ट व्माकर ु हो उठी बमानक सॊकट
  • 7. 7 ददसम्फय 2011 उऩक्षस्थत दे खकय सृत्रष्ट क ऩारक बगवान त्रवष्णु आगे े अथाात: हे षडानन (छह वारा) स्कदजी ! तुभ सुनो, ॊ फढ़े । उन्हं ने बगवान सशव दक फेसुधी भं अऩने िक्र से ऩूवकार भं ा त्रिऩुय नाभक एक भहान शत्रिशारी व सती क एक-एक अॊग को काट-काट कय सगयाने रगे। े ऩयाक्रभी दै त्मं का याजा हुआ था। त्रिऩुय को जीतने भं धयती ऩय इक्यमावन स्थानं भं सती क अॊग कट-कटकय े दे व-दानव भं से कोई बी सभथा नहीॊ था। सगये । जफ सती क साये अॊग कट कय सगय गए, तो े उसने अऩने ऩयाक्रभ से सॊऩूणा दे वरोक को जीर बगवान सशव ऩुन् अऩने आऩ भं वाऩस आए। तफ सशवजी सरमा। तफ ब्रह्मा, त्रवष्णुअ, इन्द्रादद सबी दे व एवॊ भुसन गण क नेिं से आॊसू सनकरे औय उससे रुद्राऺ क वृऺ े े भेये ऩास आए औय दै त्मयाज त्रिऩुय को भायने की प्राथना उत्ऩन्न हो गए। की। तफ भैने त्रिऩुय को भायने का सनक्षितम दकमा। कछ त्रवद्रानो का भानना हं सशवजी ने सती का ु रेदकन त्रिऩुय को हभ त्रिदे वं से अनेक वय प्राद्ऱ थे, ऩासथाव शयीय अऩने कधे रेकय सॊऩूणा ब्रह्माॊड को बस्भ कय ॊ इससरए मुद्च भं एक हजाय ददव्म वषं तक का रम्फा दे ने क उद्ङे श्म से ताॊडव नृत्म कयने रगे। सती का जरा े सभम रगा। शयीय धीये -धीये ऩूये ब्रह्माॊड भं त्रफखय ने रगा। अॊत भं तफ भंने त्रफजरी क सभान िभकदाय एवॊ ददव्म े ससप उनक दे ह की बस्भ ही सशवजी क शयीय ऩय यह ा े े तेजमुि काराक्षग्न नाभक अभोद्य शस्त्र से त्रिऩुय ऩय तीव्र गई, क्षजसे दे ख कय सशवजी यो ऩडे उस सभम जो आॊसू प्रकाय दकमी। उस ददव्म शस्त्र की ददव्म त्रवस्पोटक िभक उनकी आॊखं से सगये , वही ऩृथ्वी ऩय रुद्राऺ क वृऺ फने। े को दे खने भं दकसी क बी नेि दे ख ने भं सभथाता नहीॊ े थी उसी सभम कछ ऺण क सरए भेये नेि फॊद यहे । ु े स्कद ऩुयाण की कथा: ॊ मोगभामा की अद्भत रीरासे जफ भैने अऩने दोनं नेिो ु एक फाय बगवान कासताक ने अऩने त्रऩता बगवान सशवजी को खोरा तफ नेिं से स्वत् ही अश्रु की कछ फुॊदे सगयी। ु से ऩूछा:- हे त्रऩता श्री ! मह रुद्राऺ कमा हं ? तेनाश्रुत्रफॊदसबजााता भत्मे रुद्राऺबूरुहा्। ु रुद्राऺ को धायाण कयना इस रोक औय ऩयरोक भं श्रेष्ठ उस नेि से सनकरे अश्रृ त्रफॊद ु से बूरोक भं रुद्राऺ क वृऺ े क्यमं भाना जाता हं ? उत्ऩन्न हो गए। रुद्राऺ क दकतने भुख होते हं ? उसक कौन से भॊि े े बिं ऩय कृ ऩा कयने क सरए एवॊ सॊसायका े हं ? भनुष्म रुद्राऺ को दकस प्रकाय धायण कयं ? कृ ऩा कय कल्माण हो इस रक्ष्म से भेये मे अश्रुत्रफॊद ु रुद्राऺ क रुऩ े मह सफ आऩ भुझे त्रवस्ताय से सभझाए? भं व्माद्ऱ हो गमे औय रुद्राऺ क नाभ से त्रवख्मात हो गए, े सशव जी फोरे हे षडानन रुद्राऺ की उत्ऩत्रि का मे षडानन रुद्राऺ को धायण कयने से भहाऩुण्ड्म प्राद्ऱ होता वणान भं तुम्हं सॊक्षऺद्ऱ भं फता यहा हूॊ। हं । इसभं तसनक बी सॊदेह नहीॊ है । दपय भंने रुद्राऺ को शॊकय उवाि: त्रवष्णु बिं तथा िायं वगं क रोगो को फाॊट ददए। े श्रृणु षण्ड्भुख तत्त्वेन कथमासभ सभासत्। सशवजी फोरे बूरोक ऩय अऩने बिो क कल्माणाथा भंने े त्रिऩुयो नाभ दै त्मेन्द्र् ऩूवाभासीत्सुदजम:॥ ु ा रुद्राऺ को सबन्न स्थानो भं रुद्राऺ क अॊकय उगा कय े ु उन्हं उत्ऩन्न दकमा। गुरुत्व कामाारम द्राया यत्न एवॊ रुद्राऺ ऩयाभशा भाि RS:- 450
  • 8. 8 ददसम्फय 2011 रुद्राऺ धायण कयना क्यमं कल्माणकायी हं ?  सिॊतन जोशी रुद्र क अऺ से प्रकट होने क कायण रुद्राऺ को े े हजाय गोदान (गाम का दान) का पर सभरता हं । गरे भं साऺात सशव का सरॊगात्भक स्वरुऩ भाना गमा हं । त्रवद्रानो रुद्राऺ धायण कयने से कयोडो़ गोदान (गाम का दान) का का कथ हं की रुद्राऺ भं एक त्रवसशष्ट प्रकाय की ददव्म पर सभरता हं । उजाा शत्रि सभादहत होती हं । प्राम् सबी ग्रॊथकायं व अरग-अरग यॊ गं क रुद्राऺ भं अरग-अरग प्रकाय े त्रवद्रानो ने रुद्राऺ को असह्य ऩाऩं को नाश कयने वारा की शत्रिमाॊ सनदहत होती हं । इस सरमे यॊ गो क अनुसाय े भाना हं । रुद्राऺ का प्रबाव भनुष्म ऩय ऩिता हं । इस सरए सशव भाहा ऩुयाण भं उल्रेख दकमा गमा हं । ब्राह्मणा् ऺत्रिमा् वैश्मा् शूद्राश्िेसत सशवाऻमा । वृऺा जाता् ऩृसथव्माॊ तु तज्जातीमो् शुबाऺभ् । सशवत्रप्रमतभो ऻेमो रुद्राऺ् ऩयऩावन्। श्वेतास्तु ब्राह्मण ऻेमा् ऺत्रिमा यक्यतवणाका् ॥ दशानात्स्ऩशानाज्जाप्मात्सवाऩाऩहय् स्भृत्॥ ऩीता् वैश्मास्तु त्रवऻेमा् कृ ष्णा् शूद्रा उदाह्रुता् ॥ अथाात: रुद्राऺ अत्मॊत ऩत्रवि, शॊकय बगवान का असत अन्म श्रोक भं उल्रेख हं : त्रप्रम हं । उसक दशान, स्ऩशा व जऩ द्राया सवा ऩाऩं का े ब्राह्मणा् ऺत्रिमा वैश्मा् शूद्रा जाता भभाऻमा ॥ नाश होता हं । रुद्राऺास्ते ऩृसथव्माॊ तु तज्जातीमा् शुबाऺका् ॥ रुद्राऺ धायणाने सवा द्खनाश् ु श्वेतयिा् ऩीतकृ ष्णा वणााऻेमा् क्रभाद्बुधै् ॥ अथाात: रुद्राऺ असॊखम द्खं का नाश कयने वारा हं । ु स्वजातीमॊ नृसबधाामं रुद्राऺॊ वणात् क्रभात ् ॥ रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से गोदा का पर प्राद्ऱ होता हं । े श्वेत यॊ ग: सपद यॊ ग वारे रुद्राऺ भं साक्षत्त्वक उजाामुि ब्रह्म े रुद्राऺ क त्रवषम भं रुद्राऺ जावारोऩसनषद भं स्वमॊ े स्वरुऩ शत्रि सभादहत होती हं । इस सरए ब्राह्मण को श्वेत बगवान कारग्नी का कथन हं : वणा का रुद्राऺ धायण कयना िादहए। यिवणॉम (ताि क सभान आबामुि) : यि यॊ ग की े तदरुद्राऺे वाक्षग्वषमे कृ ते दशगोप्रदानेन आबामुि रुद्राऺ भं याजसी उजाामुि शिुसॊहायक शत्रि मत्परभवाप्नोसत तत्परभश्नुते । सभादहत होती हं । इस सरए ऺत्रिम को यिवणॉम रुद्राऺ कये ण स्ऩृष्टवा धायणभािेण दद्रसहस्त्र धायण कयना िादहए। गोप्रदान पर बवसत । ऩीतवणॉम (काॊिन मा ऩीरी आबामुि) : ऩीरे यॊ ग की कणामोधाामभाणे एकादश सहस्त्र गोप्रदानपरॊ बवसत । ा आबामुि रुद्राऺ भं याजसी व ताभसी दोनं प्रकाय की एकादश रुद्रत्वॊ ि गच्छसत । सॊमुि उजाा शत्रि सभादहत होती हं । इस सरए वैश्म को सशयसस धामाभाणे कोदट ग्रोप्रदान परॊ बवसत । ऩीतवणॉम रुद्राऺ धायण कयना िादहए। अथाात: रुद्राऺ शब्द क उच्िायण से दश गोदान (गाम का े कृ ष्णवणॉम: कारे यॊ ग की आबामुि रुद्राऺ भं ताभसी दान) का पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ का स्ऩशा कयने व उजाामुि सेवा व सभऩाणात्भक शत्रि सभादहत होती हं । धायण कयने से दो हजाय गोदान (गाम का दान) का पर इस सरए शूद्र को कृ ष्णवणॉम रुद्राऺ धायण कयना िादहए। सभरता हं । दोनो कानो ऩय रुद्राऺ धायण कयने से ग्माया
  • 9. 9 ददसम्फय 2011 मह शास्त्रं भे उल्रेक्षखत त्रवद्रान ऋत्रषमं का सनदे श है दक ऩूजनीम हं । भनुष्म को अऩने वणा क अनुरूऩ श्वेत, यि, ऩीत औय े अबि हो मा बि हो, नीॊि से नीि व्मत्रि बी मदी कृ ष्ण वणा क रुद्राऺ धायण कयने िादहए। त्रवशेषकय े रुद्राऺ को धायण कयता हं , तो वह सभस्त ऩातको के बगवान सशव क बिो क सरमे तो रुद्राऺ को धायण े े भुि हो जाता हं । कयना ऩयभ आश्मक हं । जो भनुष्म सनमभानुशाय सहस्त्ररुद्राऺ धायण कयता हं उसे दे वगण बी वॊदन कयते हं । वणैस्तु तत्परॊ धामं बुत्रिभुत्रिपरेप्सुसब् ॥ उक्षच्छष्टो वा त्रवकभो वा भुक्यतो वा सवाऩातक्। ै सशवबित्रवशेषेण सशवमो् प्रीतमे सदा ॥ ै ा भुच्मते सवाऩाऩेभ्मो रुद्राऺस्ऩशानेन वै॥ सवााश्रभाणाॊवणाानाॊ स्त्रीशूद्राणाॊ। अथाात् जो भनुष्म उक्षच्छष्ट अथवा अऩत्रवि यहते हं मा फुये सशवाऻमा धामाा: सदै व रुद्राऺा:॥ कभा कयने वार व अनेक प्रकाय क ऩाऩं से मुि वह े सबी आश्रभं (ब्रह्मिायी, वानप्रस्थ, गृहस्थ औय सॊन्मासी) ू भनुष्म रुद्राऺ का स्ऩशा कयते ही सभस्त ऩाऩं से छट एवॊ वणं तथा स्त्री औय शूद्र को सदै व रुद्राऺ धायण कयना जाते हं । िादहमे, मह सशवजी की आऻा है ! रुद्राऺ को तीनं रोकं भं ऩूजनीम हं । रुद्राऺ के कण्ड्ठे रुद्राऺभादाम सिमते मदद वा खय्। स्ऩशा से रऺ गुणा तथा रुद्राऺ की भारा धायण कयने से सोऽत्रऩरुद्रत्वभाप्नोसत दक ऩुनबुत्रव भानव्। ॊ ा कयोि गुना पर प्राद्ऱ होता हं । रुद्राऺ की भारा से भॊि अथाात् कण्ड्ठ भं रुद्राऺ को धायण कय मदद खय(गधा) बी जऩ कयने से अनॊत कोदट पर की प्रासद्ऱ होती हं । भृत्मु को प्राद्ऱ हो जाए तो वह बी रुद्र तत्व को प्राद्ऱ क्षजस प्रकाय सभस्त रोक भं सशवजी वॊदनीम एवॊ होता हं , तो ऩृथ्वीरोक क जो भनुष्म हं उनक फाये भं तो े े ऩूजनीम हं उसी प्रकाय रुद्राऺ को धायण कयने वारा कहना ही क्यमा! आथाात ् सवा साॊसारयक भनुष्मं को स्वगा- व्मत्रि सॊसाय भं वॊदन मोग्म हं । प्रासद्ऱ व रोक ऩयरोक सुधायने क सरए रुद्राऺ अवश्म े धायण कयने मोग्म हं । रुद्राऺ धायण परभ ् रुद्राऺॊ भस्तक धृत्वा सशय् स्नानॊ कयोसत म्। े गॊगास्नानॊपरॊ तस्म जामते नाि सॊशम्॥ रुद्राऺा मस्म गोिेषु रराटे ि त्रिऩुण्ड्रकभ ्। अथाात् रुद्राऺ को भस्तक ऩय धायण कयक जो भनुष्म े स िाण्ड्डारोऽत्रऩ सम्म्ऩूज्म् सवावणंिभो बवेत ्॥ ससय से स्नान कयता हं उसे गॊगा स्नान क सभान ऩयभ े अथाात् क्षजसक शयीय ऩय रुद्राऺ हो औय रराट ऩय े ऩत्रवि स्नान का पर प्राद्ऱ होता हं तथा वह भनुष्म त्रिऩुण्ड्ड हो, वह िाण्ड्डार बी हो तो सफ वणं भं उिभ सभस्त ऩाऩं से भुि हो जाता हं इसभं सॊशम नहीॊ हं । यत्न एवॊ उऩयत्न हभाये महाॊ सबी प्रकाय क यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यत्न े व्मवसाम से जुडे रोगो क सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं । े गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785. ा
  • 10. 10 ददसम्फय 2011 1 से 14 भुखी रुद्राऺ धायण कयने से राब  सिॊतन जोशी, स्वक्षस्तक.ऎन.जोशी  क्षजस स्थान ऩय एकभुखी रुद्राऺ होता हं वहाॊ से एक भुखी: सभस्त प्रकाय क उऩद्रवो का नाश होता हं । े  एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने से अॊत्कयण भं ददव्म- ऻान का सॊिाय होता हं ।  बगवान सशव का विन हं की एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने से ब्रह्महत्मा व ऩाऩं का नाश कयने वारा हं ।  एकभुखी रुद्राऺ सवा प्रकाय दक अबीष्ट ससत्रद्चमं को प्रदान कयने वारा हं ।  एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने से धायण कताा भं साक्षत्त्वक उजाा भं वृत्रद्च कयने भं सहामक, भोऺ प्रदान कयने सभथा हं ।  एकभुखी रुद्राऺ धभा, अथा, काभ औय भोऺ प्रदान कयने वारा होता हं । एक भुखी रुद्राऺ साऺात ब्रह्म स्वरुऩ हं । एक भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:-  एक भुखी रुद्राऺ काजू क सभान अथाात अधािद्राकाय े ॊ स्वरुऩ भं प्राद्ऱ होते हं । एक भुखी रुद्राऺ गोर आकाय ॐ एॊ हॊ औॊ ऎ ॐ॥ भं सयरता से प्राद्ऱ नहीॊ होता हं । क्यमोदक गोराकाय भं सभरना दरब भानागमा हं । फडे ु ा सौबाग्म दकसी भॊि ससद्च ऩन्ना गणेश भनुष्म को गोर एक भुखी रुद्राऺ क दशान एवॊ प्राद्ऱ े बगवान श्री गणेश फुत्रद्च औय सशऺा के से होता हं । कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता हं । े  इस सरए एकभुखी रुद्राऺ बोग व भोऺ प्रदान कयने ऩन्ना गणेश फुध क सकायात्भक प्रबाव े वारा हं । को फठाता हं एवॊ नकायात्भक प्रबाव को  जो भनुष्म ने एकभुखी रुद्राऺ धायण दकमा हो उस कभ कयता हं ।. ऩन्न गणेश क प्रबाव से े ऩय भाॊ रक्ष्भी हभेशा कृ ऩा वषााती हं । मा क्षजस घय भं व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्च भं वृत्रद्च होती एकभुखी रुद्राऺ का ऩूजन होता हं वहाॊ रक्ष्भी का हं । फच्िो दक ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फच्िे दक फुत्रद्च कशाग्र होकय उसक ू े स्थाई वास होता हं । आत्भत्रवश्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्च होती हं । भानससक अशाॊसत को  एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने वारे भनुष्म क घय भं े कभ कयने भं भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत हयी त्रवदकयण धन-धान्म, सुख-सभृत्रद्च-वैबव, भान-सम्भान प्रसतष्ठा भं शाॊती प्रदान कयती हं , व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित े े वृत्रद्च कयने वारा हं । कयती हं । क्षजगय, पपिे , जीब, भक्षस्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्मादद े  एकभुखी रुद्राऺ धायण कयने वारे भनुष्म की सबी योग भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय भयगज क फने होते हं । े प्रकाय की भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं । . Rs.550 से Rs.8200 तक
  • 11. 11 ददसम्फय 2011 दोभुखी रुद्राऺ: दहस्टीरयमा, फूये स्वप्न आदद से यऺा होती हं । साथा ही एक रुद्राऺ को गबावती स्त्री क त्रफस्तय ऩय तदकए े क नीिे एक दडक्षब्फ भं यखने से असधक राब प्राद्ऱ े होता हं । दो भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:- ॐ ऺीॊ ह्रीॊ ऺं व्रीॊ ॐ॥ तीन भुखी रुद्राऺ:  दो भुखी रुद्राऺ फादाभ क सभान आकाय े भं व गोराकाय स्वरुऩ दोनो स्वरुऩं भं प्राद्ऱ होता हं ।  दो भुखी रुद्राऺ साऺात अद्चा नायीश्वय का स्वरुऩ हं । कछ ग्रॊथो भं दो भुख वारे रुद्राऺ को दे व दे वेश्वय कहा ु गमा हं ।  सशव-शत्रि की सनयॊ तय कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु दोभुखी रुद्राऺ त्रवशेष राबकायी होता हं ।  दो भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भानससक शाॊसत प्राद्ऱ होकय ताभससक प्रवृत्रिमं का नाश होता हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ थोडा रॊफे आकाय भं व  दो भुखी रुद्राऺ धायण कताा को आर्धमाक्षत्भक उन्नसत गोराकाय स्वरुऩ दोनो स्वरुऩं भं प्राद्ऱ होता हं । क सरए सहामता प्रदान कयता हं । े  तीन भुखी रुद्राऺ साऺात अक्षग्न का स्वरुऩ हं ।  दो भुखी रुद्राऺ धायण कयने से उदय सॊफॊसधत  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से गॊसबय फीभारयमं से सभस्माओॊ से भुत्रि सभरती हं । यऺा होती हं ।  दो भुखी रुद्राऺ आकक्षस्भक दघटनाओॊ से यऺा कयने ु ा  मदद कोई रम्फे सभम से योगग्रस्त हं तो उसक तीन े भं सहामक ससद्च होता हं । भुखी रुद्राऺ धायण कयने से योग से शीघ्र भुत्रि  दो भुखी रुद्राऺ धायण कयने से गौ हत्मा क ऩाऩं का े सभरती हं । नाश कयता हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयना ऩीसरमा क योगी क े े  दो भुखी रुद्राऺ से अनेक प्रकाय की व्मासधमाॊ स्वत् सरए अत्मासधक राबकायी होता हं । ही शाॊत हो जाती हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से स्पसता, कामाऺभता ू  दो भुखी रुद्राऺ भनुष्म की भनोकाभनाओॊ को ऩूणा भं वृत्रद्च होती हं । कयने वारा एवॊ शुब पर प्रदान कयने वारा हं ।  जानकायं क भतानुशाय तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने े  मदद दो भुखी रुद्राऺ को गबावती स्त्री अऩनी कभय ऩय से स्त्री हत्मा इत्मादद ऩाऩं का नाश होता हं । कछ ु मा बुजा ऩय धायण कयती हं तो गबाावस्था क नौ े त्रवद्रानो का भत हं की तीन भुखी रुद्राऺ ब्रह्म हत्मा के भदहने तक उसकी अनजाने बम, तोने-तोटक, फेहोशी, े ऩाऩ को नाश कयने भं बी सभथा हं ।
  • 12. 12 ददसम्फय 2011  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से शत ज्वय दय होता ू  िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से वाणी भं सभठास हं । आती हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अद्भत त्रवद्या की ु  िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भानससक त्रवकाय दय ू प्रासद्ऱ होती हं । होते हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयना भॊदफुत्रद्च फच्िं के  त्रवद्रानो का कथन है की िाय भुखी रुद्राऺ क दशान े फौसधक त्रवकास क सरए अत्मॊत राबदामक ससद्च होता े एवॊ स्ऩशा से धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन िायं हं । ऩुरुषाथो की शीघ्र प्रासद्ऱ होती हं ।  सनम्न यििाऩ को दय कयने भं बी तीन भुखी रुद्राऺ ू  िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से जीव हत्मा क ऩाऩं े धायण कयना राबदामक होता हं । का नाश होता हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अक्षग्नदे व की कृ ऩा  िाय भुखी रुद्राऺ धायण कयने से ददव्म ऻान की प्रासद्ऱ प्राद्ऱ होती हं । होती हं ।  तीन भुखी रुद्राऺ से अक्षग्न बम से यऺण होता हं ।  िाय भुखी रुद्राऺ को अबीष्ट ससत्रद्चमं को प्राद्ऱ कयने भं सहामक व कल्माणकायी हं । तीनभुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:- िाय भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:- ॐ यॊ हूॊ ह्रीॊ हूॊ ओॊ॥ ॐ व्राॊ क्राॊ ताॊ हाॊ ई॥ िाय भुखी रुद्राऺ: गणेश रक्ष्भी मॊि प्राण-प्रसतत्रष्ठत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दकान- ु ओदपस-पक्यटयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी ै भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता  िाय भुखी रुद्राऺ साऺात ब्रह्मा का स्वरुऩ हं । हं । मॊि क प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतष्ठा े  िाय भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से फौसधक शत्रि का एवॊ व्माऩय भं वृत्रद्च होती हं एवॊ आसथाक क्षस्थभं सुधाय त्रवकास होता हं । होता हं । गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से  त्रवद्यार्धममन कयने वारे फच्िो क फौसधक त्रवकास एवॊ े बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद स्भयण शत्रि क त्रवकास क सरए िाय भुखी रुद्राऺ े े उिभ परदासम ससद्च होता हं । प्राद्ऱ होता हं । Rs.550 से Rs.8200 तक
  • 13. 13 ददसम्फय 2011 ऩॊि भुखी रुद्राऺ: से यऺा होती हं ।  त्रवष क प्रबाव को कभ कयने भं ऩॊिभुखी रुद्राऺ असत े राबदामक हं ।  भहाऩुरुषो का कथन हं की ऩॊिभुखी रुद्राऺ धायण कयने से ऩयस्त्री गभन, अबक्ष्म बोजन का बऺण कयने क ऩाऩं से भुत्रि सभरती हं । सिि का शुत्रद्च े कयण हो जाता हं ।  ऩॊिभुखी रुद्राऺ को ऩॊितत्त्वं का प्रतीक भानाजाता हं ।  ऩॊि भुखी रुद्राऺ को शास्त्रकायं ने आमुवद्चा क एवॊ सवाकल्माणकायी व भॊगरप्रदामक भाना हं ।  ऩॊि भुखी रुद्राऺ अबीष्ट कामो की ससत्रद्च हे तु राबदाम होता हं ।  ऩॊि भुखी रुद्राऺ साऺात काराक्षग्न का स्वरुऩ हं । जन साभान्म भं एसी भ्रभक धायणाएॊ हं की ऩॊि भुखी  ऩॊि भुखी रुद्राऺ धायण कयने से सबी प्रकाय के रुद्राऺ सस्ता एवॊ आसानी से सभरने क कायण मह े असनष्ट एवॊ कश्टो से भुत्रि सभरती हं । असधक राबकायी नहीॊ होता। रेदकन वास्तत्रवकता इससे  ऩॊि भुखी रुद्राऺ भनोवाॊसित पर प्राद्ऱ कयने हे तु ऩये हं जानकायं का भत हं की ऩॊिभुखी सवाासधक उिभ हं । राबकायक होता हं । भनुष्म को अऩने उद्ङे श्म की ऩूसता हे तु  ऩॊिभुखी रुद्राऺ धायण कयने से सुख-शाॊसत प्राद्ऱ होती हं । आवश्मिा क अनुशाय रुद्राऺ धायण कयना िादहए। े  ऩॊि भुखी रुद्राऺ शिु बम से यऺा कयने क सरए बी े ऩॊि भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:- राबदामक भानाजाता हं । ॐ ह्राॊ आॊ क्ष्म्मं स्वाहा॥  ऩॊि भुखी रुद्राऺ धायण कयने से जहयीरे जीव-जॊतुओॊ  क्यमा आऩक फच्िे कसॊगती क सशकाय हं ? े ु े  क्यमा आऩक फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ? े  क्यमा आऩक फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ? े ु ु घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कसॊगती से छडाने हे तु फच्िे क नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध- े त्रवधान से भॊि ससद्च प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.दडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मदद आऩ तो आऩ भॊि ससद्च वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.दडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩक इस कय सकते हं । ा GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 14. 14 ददसम्फय 2011 छ् भुखी रुद्राऺ:  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से शिु ऩऺ ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कयने भं सपरता प्राद्ऱ होती हं ।  इस सरए इसे शिुजम रुद्राऺ कहाॊ जाता हं । ॊ  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से सबी प्रकाय की अबीष्ट ससत्रद्चमाॊ प्रासद्ऱ भं सहामता सभरती हं । छ् भुखी रुद्राऺ को धायण कयने का भन्ि:- ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्यरीॊ सं ऎॊ॥ सात भुखी रुद्राऺ:  छ् भुखी रुद्राऺ साऺात कासताकम का स्वरुऩ हं । कछ े ु त्रवद्रानो क भत से छ् भुखी रुद्राऺ गणेशजी का े प्रसतक हं ।  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से भाता ऩावाती शीघ्र प्रसन्न होती हं ।  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से त्रवद्या प्रासद्ऱ भं सपरता प्राद्ऱ होती हं । अत् छ् भुखी रुद्राऺ त्रवद्यासथामं क सरए उिभ यहता हं । े  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से वाक शत्रि भं सनऩुणता आती हं ।  सात भुखी रुद्राऺ सद्ऱ भातृकाओॊ का साऺात स्वरुऩ  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से व्मवसामीक कामं भं भाना जाता हं । इसे शास्त्रं भं अनॊग स्वरुऩ बी कहा राब प्राद्ऱ होता हं । गमा हं ।  छ् भुखी रुद्राऺ से भनुष्मको बौसतक सुख-सॊऩन्नता  सात भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से सबी प्रकाय के प्राद्ऱ होती हं । योग शाॊत हो जाते हं ।  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने दारयद्र्मता दय होती हं । ू  सात भुखी रुद्राऺ को धायण कयने से दीधाामु की प्रासद्ऱ  जानकायं नं छ् भुखी रुद्राऺ को धायण कयना भूच्छाा होती हं । जैसी फीभायी भं राबदामक फतामा हं ।  सात भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अबीष्ट ससत्रद्चमाॊ प्राद्ऱ  छ् भुखी रुद्राऺ धायण कयने से अऩाय शत्रि प्राद्ऱ होती हं । होती हं व भनुष्मकी सकर इच्छाओॊ की ऩूसता होती  भहाऩुरुषो का का कथन हं की सात भुखी रुद्राऺ हं । धायण कयने से सोने की िोयी, गौवध जैसे अनेक  भाहाऩुरुषो का कथन हं की छ् भुखी रुद्राऺ धायण ऩाऩं को नाश होता हं । कयने से भ्रूणहत्मा आदद ऩाऩं का सनवायण होता हं ।