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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका अगस्त- 2014
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E CIRCULAR
ई- जन्भ ऩत्रिकागुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका
अगस्त 2014
सॊऩादक
अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी के साथ
१००+ ऩेज भं प्रस्तुत
सिॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
(ORISSA) INDIA
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
सिॊतन जोशी,
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
पोटो ग्राफपक्स
फहॊदी/ English भं भूल्म भाि 750/-
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
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स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
सोफ्टेक इस्न्डमा सर)
अनुक्रभ
नाग ऩॊिभी का धासभाक भहत्व 7 भनोकाभना ऩूसता हेतु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि 36
ऩुिदा एकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय) 9 कृ ष्ण भॊि 37
ऩुिदा (ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा 12 ऩमूाषण भहाऩवा का भहत्व 38
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा 14 श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि) 39
फहन्दू सॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व 15 देवदशान स्तोिभ ् 40
कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा 17 बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के अद्भुत स्वप्न 41
बायतीम सॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व 21 त्रवसबन्न िभत्कायी जैन भॊि 43
याखी ऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ 23 जैन धभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का … 47
कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान 25 श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन) 48
शॊख ध्वसन से योग बगाएॊ ! 26 अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन) 48
कृ ष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व 29 ॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥ 49
श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय 30 ॥ भहावीय िारीसा ॥ 50
॥ श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥ 31 जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी… 51
त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि 32 गौतभ के वरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी) 52
प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि 33 शीघ्र काभना ऩूसता हेतु इद्श ऩूजन भं कये सही… 56
ब्रह्मा यसित कृ ष्णस्तोि 34 कहीॊ आऩकी कुॊ डरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग… 58
श्रीकृ ष्णाद्शकभ ् 35
स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम 4 दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 87
अगस्त 2014 भाससक ऩॊिाॊग 69 फदन-यात के िौघफडमे 88
अगस्त 2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 74 फदन-यात फक होया 89
अगस्त 2014 -त्रवशेष मोग 87 ग्रह िरन अगस्त -2014 90
हभाये उत्ऩाद
सवा कामा ससत्रद्ध कवि 11 नवयत्न जफित श्री मॊि 74
भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि 16 वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि/ श्री हनुभान मॊि 75
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवि 28 त्रवसबन्न देवताओॊ के मॊि 76
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 34 यासश यत्न 78
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री/भॊि ससद्ध भारा 37 भॊि ससद्ध रूद्राऺ 79
त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि 55 जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी81 81
भॊि ससद्ध बाग्म रक्ष्भी फडब्फी 60 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 82
भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभा 62 अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि 83
भॊि ससद्ध गोभसत िक्र 63 सवा योगनाशक मॊि/कवि 91
हभाये त्रवशेष मॊि/ त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि 64 भॊि ससद्ध कवि सूसि 93
सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका 65 YANTRA LIST 94
द्रादश भहा मॊि 66 Gemstone Price List 96
ऩुरुषाकाय शसन मॊि /शसन तैसतसा मॊि 73 सूिना 97
कृ ष्णॊ वन्दे जगत गुरु
त्रप्रम आस्त्भम
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदेव
यऺाफॊधन अथाात ्प्रेभ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं। यऺाफॊधन के साथ
फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से फाॉधती है।बायतीम सॊस्कृ सत भं आज के बौसतकतावादी सभाज भं बोग औय
स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम् सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं।
बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं। बायतीम सॊस्कृ सत भं
स्त्री को के वर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं।
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह।
न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान्स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह िीणासनष्कृ ता्॥
बावाथा: जो भनुष्म के वर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं भं
रगा देते हं, वे ऩाऩं से छू ट जाते हं, फपय उन्हं ऩाश हाथ भं सरए हुए मभदूतं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो
सकते।
श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है। बगवान
श्रीकृ ष्ण के बगवद गीता भं वस्णात उऩदेश ऩुयातन कार से ही फहन्दु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं। जन्भाद्शभी का
त्मौहाय ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं। श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की
अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ
अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं भनाने की ऩयॊऩया सफदमं से िरी आयही हं।
श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए देश-दुसनमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है। जन्भाद्शभी
के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हं। इस फदन भॊफदयं भं बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई
जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है। बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय
साभग्रीमं से सुसस्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हं।
धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा है।
इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं। श्री इस त्रवशेषाॊक भं
बगवान श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ हेतु बगवान श्री कृ ष्ण के सयर भॊि-द्ऴोक-व्रत-ऩूजन इत्माफद सयर
उऩामोको देने का प्रमास फकमा हं स्जससे साधायण व्मत्रि बी त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकं ।
इस अॊक भं प्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेष से सॊफॊसधत जानकायीमं के त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से
अनुयोध हं, मफद दशाामे गए भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन
भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी,
गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव शास्त्र
एवॊ ग्रॊथं भं वस्णात भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध, उऩामं, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावं का वणान कयने भं बेद
होने ऩय सॊफॊसधत ऩूजन त्रवसध इत्माफद भं सबन्नता एवॊ उसके प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं।
आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो बगवान श्रीकृ ष्ण की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय
ऩय फनी यहे। बगवान श्रीकृ ष्ण से महीॊ प्राथना हं…
जैन फॊधु/फहनं कओ ऩमूाषण भहाऩवा की अनेक-अनेक शुबकाभनाएॊ।
गुरुत्व कामाारम की औय से सबी को "सभच्छाभी दुक्कडभ ्"
सिॊतन जोशी
गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हेतु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकं
का स्वागत हं...
GURUTVA JYOTISH
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गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हेतु फ्रीराॊस
(स्वतॊि) रेखकं का स्वागत हं...
गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं आऩके द्राया
सरखे गमे भॊि, मॊि, तॊि, ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु,
पं गशुई, टैयं, येकी एवॊ अन्म आध्मास्त्भक ऻान वधाक
रेख को प्रकासशत कयने हेतु बेज सकते हं।
मफद आऩ रेखक नहीॊ हं औय आऩके ऩास इन त्रवषमं से सॊफॊसधत ऻान वधाक रेख, शास्त्र, ग्रॊथ इत्माफद की
प्रसत, स्कै न कोऩी मा ई-ऩुस्तक हं तो आऩ उन ऻान वधाक साभग्रीमं को हजायं-राखं ऩाठकं के ऻान वधान,
भागादशान के उद्देश्म से बेज सकते हं...
अऩने रेख के साथ आऩ अऩना नाभ/ऩता/नॊफय दे सकते हं। (*पोटो बी बेज सकते हं।)
कोई बी रेख इत्माफद बेजने से ऩूवा फ्रीराॊस रेखको से अनुयोध हं की गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कय
सनमभ सूसि ई-भेर द्राया प्राद्ऱ कयरे, फपय रेख बेजे
असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं।
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6 अगस्त 2014
***** श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****
 ऩत्रिका भं प्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही
आयस्ऺत हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ
सकते हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण इसे त्रवसबन्न शास्त्रं से
प्रेरयत होकय प्रस्तुत फकमा हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय
की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी
कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी के फाये भं
जानकायी देने हेतु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं। फकसी
बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ
का होगा।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेख से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ
होगी।
 इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय फदए गमे हं। हभ
फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी
नफहॊ रेते हं। मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक
होगी।
 क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी
स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।
 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी
मा हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं।
 हभाये द्राया ऩोस्ट की गई सबी जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म
हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत
सपरता प्राद्ऱ हुई हं।
 असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं।
(सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
7 अगस्त 2014
नाग ऩॊिभी का धासभाक भहत्व
 त्रवजम ठाकु य
नाग ऩॊिभी व्रत श्रावण शुक्र ऩॊिभीको फकमा
जाता है । रेफकन रोकािाय व सॊस्कृ सत- बेद के कायण
नाग ऩॊिभी व्रत को फकसी जगह कृ ष्णऩऺभं बी फकमा
जाता है । इसभे ऩयत्रवद्धा मुि ऩॊिभी री जाती है ।
ऩौयास्णक भान्मता के अनुशाय इस फदन नाग-सऩा को
दूधसे स्त्रान औय ऩूजन कय दूध त्रऩराने से व्रती को ऩुण्म
पर की प्रासद्ऱ होती हं। अऩने घय के भुख्म द्राय के दोनं
ओय गोफयके सऩा फनाकय उनका दही, दूवाा, कु शा, गन्ध,
अऺत, ऩुष्ऩ, भोदक औय भारऩुआ इत्माफदसे ऩूजन कय
ब्राह्मणंको बोजन कयाकय एकबुि व्रत कयनेसे घयभं
सऩंका बम नहीॊ होता है ।
सऩात्रवष दूय कयने हेतु सनम्न सनम्नसरस्खत भॊि
का जऩ कयने का त्रवधान हं।
"ॐ कु रुकु ल्मे हुॊ पद स्वाहा।"
नाग ऩॊिभी की ऩौयास्णक कथा
ऩौयास्णक कथा के अनुशाय
प्रािीन कार भं फकसी नगय के एक
सेठजी के सात ऩुि थे। सातं ऩुिं
के त्रववाह हो िुके थे। सफसे छोटे
ऩुि की ऩत्नी श्रेद्ष िरयि की त्रवदुषी
औय सुशीर थी, रेफकन उसका कोई
बाई नहीॊ था।
एक फदन फिी फहू ने घय रीऩने के सरए ऩीरी
सभट्टी राने हेतु सबी फहुओॊ को साथ िरने को कहा तो
सबी फहू उस के साथ सभट्टी खोदने के औजाय रेकय
िरी गई औय फकसी स्थान ऩय सभट्टी खोदने रगी, तबी
वहाॊ एक सऩा सनकरा, स्जसे फिी फहू खुयऩी से भायने
रगी। मह देखकय छोटी फहू ने फिी फहू को योकते हुए
कहा "भत भायो इस सऩा को? मह फेिाया सनयऩयाध है।"
छोटी फहू के कहने ऩय फिी फहू ने सऩा को नहीॊ
भाया औय सऩा एक ओय जाकय फैठ गमा। तफ छोटी फहू
ने सऩा से कहा "हभ अबी रौट कय आती हं तुभ महाॊ से
कहीॊ जाना भत" इतना कहकय वह सफके साथ सभट्टी
रेकय घय िरी गई औय घय के काभकाज भं पॉ सकय सऩा
से जो वादा फकमा था उसे बूर गई।
उसे दूसये फदन वह फात माद आई तो सफ फहूओॊ
को साथ रेकय वहाॉ ऩहुॉिी औय सऩा को उस स्थान ऩय
फैठा देखकय फोरी "सऩा बैमा नभस्काय!" सऩा ने कहा तू
बैमा कह िुकी है, इससरए तुझे छोि देता हूॊ, नहीॊ तो
झूठे वादे कयने के कायण तुझे अबी डस रेता। छोटी फहू
फोरी बैमा भुझसे बूर हो गई, उसकी ऺभा
भाॉगती हूॊ, तफ सऩा फोरा- अच्छा, तू आज
से भेयी फफहन हुई औय भं तेया बाई
हुआ। तुझे जो भाॊगना हो, भाॉग रे।
वह फोरी- बैमा! भेया कोई नहीॊ है,
अच्छा हुआ जो तू भेया बाई फन गमा।
कु छ फदन व्मतीत होने ऩय वह
सऩा भनुष्म का रूऩ धयकय उसके घय
आमा औय फोरा फक "भेयी फफहन को फुरा
दो, भं उसे रेने आमा हूॉ" सफने कहा फक इसके
तो कोई बाई नहीॊ था! तो वह फोरा- भं दूय के रयश्ते भं
इसका बाई हूॉ, फिऩन भं ही फाहय िरा गमा था। उसके
त्रवद्वास फदराने ऩय घय के रोगं ने छोटी को उसके साथ
बेज फदमा। उसने भागा भं फतामा फक "भं वहीॊ सऩा हूॉ,
इससरए तू डयना नहीॊ औय जहाॊ िरने भं कफठनाई हो
वहाॊ भेया हाथ ऩकि रेना। उसने कहे अनुसाय ही फकमा
नाग ऩॊिभी
त्रवशेष
8 अगस्त 2014
औय इस प्रकाय वह उसके घय ऩहुॊि गई। वहाॉ के धन-
ऐद्वमा को देखकय वह िफकत हो गई।
वह सऩा ऩरयवाय अके साथ आनॊद से यहने रगी।
एक फदन सऩा की भाता ने उससे कहा "भं एक काभ से
फाहय जा यही हूॉ, तू अऩने बाई को ठॊडा दूध त्रऩरा देना।
उसे मह फात ध्मान न यही औय उससे गरसत से गभा दूध
त्रऩरा फदमा, स्जसभं उसका भुहॉ फुयी तयह जर गमा। मह
देखकय सऩा की भाता फहुत क्रोसधत हुई। ऩयॊतु सऩा के
सभझाने ऩय भाॉ िुऩ हो गई। तफ सऩा ने कहा फक फफहन
को अफ उसके घय बेज देना िाफहए। तफ सऩा औय उसके
त्रऩता ने उसे बेट स्वरुऩ फहुत सा सोना, िाॉदी, जवाहयात,
वस्त्र-बूषण आफद देकय उसके घय ऩहुॉिा फदमा।
साथ रामा ढेय साया धन देखकय फिी फहू ने ईषाा
से कहा तुम्हायाॊ बाई तो फिा धनवान है, तुझे तो उससे
औय बी धन राना िाफहए। सऩा ने मह विन सुना तो
सफ वस्तुएॉ सोने की राकय दे दीॊ। मह देखकय फिी फहू
की रारि फढ़ गई उसने फपय कहा "इन्हं झािने की
झािू बी सोने की होनी िाफहए" तफ सऩा ने झाडू बी सोने
की राकय यख दी।
सऩा ने अऩने फफहन को हीया-भस्णमं का एक
अद्भुत हाय फदमा था। उसकी प्रशॊसा उस देश की यानी ने
बी सुनी औय वह याजा से फोरी फक "सेठ की छोटी फहू
का हाय महाॉ आना िाफहए।" याजा ने भॊिी को हुक्भ फदमा
फक उससे वह हाय रेकय शीघ्र उऩस्स्थत हो भॊिी ने सेठजी
से जाकय कहा फक "भहायानीजी ने छोटी फहू का हाय
भॊगवामा हं, तो वह हाय अऩनी फहू से रेकय भुझे दे दो"।
सेठजी ने डय के कायण छोटी फहू से हाय भॊगाकय दे
फदमा।
छोटी फहू को मह फात फहुत फुयी रगी, उसने
अऩने सऩा बाई को माद फकमा औय आने ऩय प्राथाना की-
बैमा ! यानी ने भेया हाय छीन सरमा है, तुभ कु छ ऐसा
कयो फक जफ वह हाय उसके गरे भं यहे, तफ तक के सरए
सऩा फन जाए औय जफ वह भुझे रौटा दे तफ वह ऩुन्
हीयं औय भस्णमं का हो जाए। सऩा ने ठीक वैसा ही
फकमा। जैसे ही यानी ने हाय ऩहना, वैसे ही वह सऩा फन
गमा। मह देखकय यानी िीख ऩिी औय योने रगी।
मह देख कय याजा ने सेठ के ऩास खफय बेजी फक
छोटी फहू को तुयॊत बेजो। सेठजी डय गए फक याजा न
जाने क्मा कयेगा? वे स्वमॊ छोटी फहू को साथ रेकय
उऩस्स्थत हुए। याजा ने छोटी फहू से ऩूछा "तुने क्मा जादू
फकमा है, भं तुझे दण्ड दूॊगा।" छोटी फहू फोरी "याजन !
धृद्शता ऺभा कीस्जए" मह हाय ही ऐसा है फक भेये गरे भं
हीयं औय भस्णमं का यहता है औय दूसये के गरे भं सऩा
फन जाता है। मह सुनकय याजा ने वह सऩा फना हाय उसे
देकय कहा- अबी ऩहनकय फदखाओ। छोटी फहू ने जैसे ही
उसे ऩहना वैसे ही हीयं-भस्णमं का हो गमा।
मह देखकय याजा को उसकी फात का त्रवद्वास हो
गमा औय उसने प्रसन्न होकय उसे बेट भं फहुत सी भुद्राएॊ
बी ऩुयस्काय भं दीॊ। छोटी वह अऩने हाय औय बेट सफहत
घय रौट आई। उसके धन को देखकय फिी फहू ने ईषाा के
कायण उसके ऩसत को ससखामा फक छोटी फहू के ऩास
कहीॊ से धन आमा है। मह सुनकय उसके ऩसत ने अऩनी
ऩत्नी को फुराकय कहा सि-सि फताना फक मह "धन तुझे
कौन देता है?" तफ वह सऩा को माद कयने रगी।
तफ उसी सभम सऩा ने प्रकट होकय कहा मफद
भेयी धभा फफहन के आियण ऩय सॊदेह प्रकट कयेगा तो भं
उसे डॊस रूॉगा। मह सुनकय छोटी फहू का ऩसत फहुत
प्रसन्न हुआ औय उसने सऩा देवता का फिा सत्काय
फकमा। भान्मता हं की उसी फदन से नागऩॊिभी का
त्मोहाय भनामा जाता है औय स्स्त्रमाॉ सऩा को बाई भानकय
उसकी ऩूजा कयती हं।
9 अगस्त 2014
सॊतानप्रासद्ऱ
त्रवशेष
ऩुिदा एकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय)
 सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
ऩौयास्णक कारसे ही फहॊदू धभा भं एकादशी व्रत का
त्रवशेष धासभाक भहत्व यहा है। श्रावण भास के शुक्र ऩऺ
की एकादशी को ऩुिदा एकादशी अथवा ऩत्रविा एकादशी
बी कहते हं। एकादशी के फदन बगवान त्रवष्णु के फदन
काभना ऩूसता के सरए व्रत-ऩूजन फकमा जाता है।
इस वषा ऩुिदा एकादशी 07-अगस्त-2014 गुरुवाय
के फदन है, गुरुवाय को बगवान त्रवष्णु के ऩूजन हेतु श्रेद्ष
भाना जाता हं औय इस वषा ऩुिदा एकादशी औय गुरुवाय
का सॊमोग एक साथ हो यहा हं, जो त्रवद्रानं के भतानुशाय
असत उत्तभ हं। ज्मोसतष गणना के अनुशाय
इस वषा 07-अगस्त-2014 सूमोदम के
सभम कका रग्न होगा, रग्नेश नीि
िॊद्रभा की ऩॊिभ बाव भं भॊगर के
घय भं स्स्थती बी सॊतान प्रासद्ऱ की
इच्छा यखने वारो के सरए उत्तभ
भानी गई हं। उसी के साथ ही इस
फदन फकमा गमा धासभाक ऩूजन-व्रत
इत्माफद आध्मास्त्भक कामा शुब ग्रहं के
प्रबाव से शीघ्र एवॊ त्रवशेष पर प्रदान कयने
वारा ससद्ध होगा क्मोफक उच्ि का गुरु षद्षेश एवॊ बाग्मेश
हो कय रग्न गृह भं स्स्थत होकय ऩॊिभ बाव (सॊतान
गृह), सद्ऱभ बाव (जीवन साथी) एवॊ नवभ बाव(बाग्म
बाग) को देख यहा हं। गुरु के साथ सूमा स्स्थत हं जो
आध्मास्त्भक कामं भं वृत्रद्ध का सॊके त देता हं। सूमा के
साथ फुध का फुधाफदत्म मोग बी त्रवशेष शुबदाम भाना
गमा हं। ऩुि कायक ग्रह वक्री के तु के ऩॊिभ बाव ऩय शुब
दृद्शी सॊतान प्रासद्ऱ हेतु सहामक यहेगी। फकन्तु भॊगर+शसन
की मुसत सॊके त दे यही हं की सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा
यखने वारे दॊऩत्रत्तमं को त्रवशेष सावधानी अवश्म यखनी,
फकसी बी तयह की राऩयवाही, भनभुटाव इत्माफद से
त्रवऩरयत ऩरयणाभ सॊबव हं।
सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा यखने वारे
दॊऩत्रत्तमं को ऩुिदा एकादशी व्रत का
सनमभ ऩारन दशभी सतसथ (6 अगस्त
2014, फुधवाय) की यात्रि से ही शुरु
कयं शुद्ध सित्त से ब्रह्मिमा का ऩारन
कयं। गुरुवाय के फदन सुफह जल्दी
उठकय सनत्मकभा से सनवृत्त होकय
स्वच्छ वस्त्र धायण कय बगवान त्रवष्णु
की प्रसतभा के साभने फैठकय व्रत का
सॊकल्ऩ कयं। व्रत हेतु उऩवास यखं अन्न ग्रहण
नहीॊ कयं, एक मा दो सभम पराहाय कय सकते हं।
तत्ऩद्ळमात बगवान त्रवष्णु का ऩूजन ऩूणा त्रवसध-
त्रवधान से कयं। (मफद स्वमॊ ऩूजन कयने भं असभथा हं
सॊतान गोऩार मॊि
उत्तभ सॊतान प्रासद्ऱ हेतु शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से असबभॊत्रित सॊतान गोऩार मॊि का ऩूजन
एवॊ अनुद्षान त्रवशेष राबप्रद भाना गमा हं।
सॊतान प्रासद्ऱ मॊि एवॊ कवि से सॊफॊसधत असधक जानकायी हेतु गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका
कय सकते हं। Ask Now
10 अगस्त 2014
तो फकसी मोग्म त्रवद्रान ब्राह्मण से बी ऩूजन कयवा सकते
हं।) बगवान त्रवष्णु को शुद्ध जर से स्नान कयाए। फपय
ऩॊिाभृत से स्नान कयाएॊ स्नान के फाद के वर ऩॊिाभृत के
ियणाभृत को व्रती (व्रत कयने वारा) अऩने औय ऩरयवाय
के सबी सदस्मं के अॊगं ऩय सछिके औय उस ियणाभृत
को ऩीए। तत ऩद्ळमात ऩुन् शुद्ध जर से स्नान कयाकय
प्रसतभाक स्वच्छ कऩिे से ऩोछरं। इसके फाद बगवान को
गॊध, ऩुष्ऩ, धूऩ, दीऩ, नैवेद्य आफद ऩूजन साभग्री अत्रऩात
कयं।
त्रवष्णु सहस्त्रनाभ का जऩ कयं एवॊ ऩुिदा एकादशी
व्रत की कथा सुनं। यात को बगवान त्रवष्णु की भूसता के
सभीऩ शमन कयं औय दूसये फदन अथाात द्रादशी 8-
अगस्त-2014 जुराई, शुक्रवाय के फदन त्रवद्रान ब्राह्मणं को
बोजन कयाकय व सप्रेभ दान-दस्ऺणा इत्माफद देकय उनका
आशीवााद प्राद्ऱ कयं। इस प्रकाय ऩत्रविा एकादशी व्रत कयने
से मोग्म सॊतान की प्रासद्ऱ होती है।
त्रवशेष सूिना: ऩुि प्रासद्ऱ का तात्ऩमा के वर उत्तभ
सॊतान की प्रासद्ऱ सभझे। क्मोफक, उऩयोि वस्णात ऩुि प्रासद्ऱ
एकादशी से सॊफॊसधत सबी जानकायी शास्त्रोि वस्णात हं,
अत् व्रत से के वर ऩुि सॊतान की प्रासद्ऱ हो ऐसा नहीॊ हं
इस व्रत से उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ होती हं, िाहे वह
सॊतान ऩुि हो मा कन्मा। आज के आधुसनक मुग भं ऩुि
सॊतान व कन्मा सॊतान भं कोई त्रवशेष पका नहीॊ यहा हं।
कन्मा मा भफहराएॊ बी ऩुि मा ऩुरुष के सभान ही सफर
एवॊ शत्रिशारी हं। अत् के वर ऩुि सॊतान की काभना
कयना व्मथा हं। अत् के वर उत्तभ सॊतान की काभना से
व्रत कये। जानकाय एवॊ त्रवद्रानं के अनुबव के अनुशाय
ऩीछरे कु छ वषो भं उन्हं अऩने अनुशॊधान से मह तथ्म
सभरे हं की के वर ऩुि काभना से की गई असधकतय
साधानाएॊ, व्रत-उऩवास इत्माफद उऩामं से दॊऩत्रत्त को ऩुि
की जगह उत्तभ कन्म सॊतान की प्रासद्ऱ हुवी हं, औय वह
कन्मा सॊतान ऩुि सॊतान से कई असधक फुत्रद्धभान एवॊ
भाता-त्रऩता का नाभ सभाज भं योशन कयने वारी यही हं।
सॊबवत इस मुग भं नायीमं की कभ होती जनसॊख्मा के
कायण इद्वयने बी अऩने सनमभ फदर सरमे हंगे इस सरए
ऩुि काभना के परस्वरुऩ उत्तभ कन्मा सॊतान की प्रासद्ऱ
हो यही होगी।
दस्ऺणावसता शॊख
आकाय रॊफाई भं पाईन सुऩय पाईन स्ऩेशर आकाय रॊफाई भं पाईन सुऩय पाईन स्ऩेशर
0.5" ईंि 180 230 280 4" to 4.5" ईंि 730 910 1050
1" to 1.5" ईंि 280 370 460 5" to 5.5" ईंि 1050 1250 1450
2" to 2.5" ईंि 370 460 640 6" to 6.5" ईंि 1250 1450 1900
3" to 3.5" ईंि 460 550 820 7" to 7.5" ईंि 1550 1850 2100
हभाये महाॊ फिे आकाय के फकभती व भहॊगे शॊख जो आधा रीटय ऩानी औय 1 रीटय ऩानी सभाने की ऺभता वारे
होते हं। आऩके अनुरुध ऩय उऩरब्ध कयाएॊ जा सकते हं। >> Order Now | Ask Now
 स्ऩेशर गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख ऩूयी तयह से सपे द यॊग का होता हं।
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 पाईन गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख दं यॊग का होता हं।
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11 अगस्त 2014
सवा कामा ससत्रद्ध कवि
स्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ
फकमे गमे कामा भं ससत्रद्ध (राब) प्राद्ऱ नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्ध कवि अवश्म
धायण कयना िाफहमे।
कवि के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवि के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के
नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के दु:ख-दारयद्र का
नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते
हं। स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मफद
नौकयी कयता होतो उसभे उन्नसत होती हं।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं सवाजन वशीकयण कवि के सभरे होने की वजह से धायण
कताा की फात का दूसये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवि के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा
भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-
आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-
त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं तॊि यऺा कवि के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दूय
होती हं, साथ ही नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कु प्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस
कवि के प्रबाव से इषाा-द्रेष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दुद्श प्रबावो से यऺा होती हं।
 सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं शिु त्रवजम कवि के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत
सभस्त ऩयेशासनओ से स्वत् ही छु टकाया सभर जाता हं। कवि के प्रबाव से शिु धायण कताा
व्मत्रि का िाहकय कु छ नही त्रफगाि सकते।
अन्म कवि के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये:
फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवि देने नही देना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं।
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12 अगस्त 2014
ऩुिदा (ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
श्रावण : शुक्र ऩऺ
एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं, हे
बगवान! श्रावण शुक्र एकादशी का क्मा नाभ है? इसभं
फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने
से क्मा पर सभरता है ?" व्रत कयने की त्रवसध तथा
इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण
कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ ऩुिदा एकादशी है।
अफ आऩ शाॊसतऩूवाक इस व्रतकी कथा सुसनए। इसके
सुनने भाि से ही वाजऩेमी मऻ / अनन्त मऻ का पर
सभरता है।
द्राऩय मुग के आयॊब भं भफहष्भसत नाभ की एक
नगयी थी, स्जसभं भफहष्भती नाभ का याजा याज्म कयता
था, रेफकन ऩुिहीन होने के कायण याजा को याज्म
सुखदामक नहीॊ रगता था। उसका भानना था फक स्जसके
सॊतान न हो, उसके सरए मह रोक औय ऩयरोक दोनं ही
दु:खदामक होते हं। ऩुि सुख की प्रासद्ऱ के सरए याजा ने
अनेक उऩाम फकए ऩयॊतु याजा को ऩुि की प्रासद्ऱ नहीॊ हुई।
वृद्धावस्था आती देखकय याजा ने प्रजा के
प्रसतसनसधमं को फुरामा औय कहा- हे प्रजाजनं! भेये
खजाने भं अन्माम से उऩाजान फकमा हुआ धन नहीॊ है। न
भंने कबी देवताओॊ तथा ब्राह्मणं का धन छीना है। फकसी
दूसये की धयोहय बी भंने नहीॊ री, प्रजा को ऩुि के सभान
ऩारता यहा। भं अऩयासधमं को ऩुि तथा फाॉधवं की तयह
दॊड देता यहा। कबी फकसी से घृणा नहीॊ की। सफको
सभान भाना है। सज्जनं की सदा ऩूजा कयता हूॉ। इस
प्रकाय धभामुि याज्म कयते हुए बी भेये ऩुि नहीॊ है। सो
भं अत्मॊत दु:ख ऩा यहा हूॉ, इसका क्मा कायण है?
याजा भफहष्भती की इस फात को त्रविायने के सरए
भॊिी तथा प्रजा के प्रसतसनसध वन को गए। वहाॉ फिे-फिे
ऋत्रष-भुसनमं के दशान फकए। याजा की उत्तभ काभना की
ऩूसता के सरए फकसी श्रेद्ष तऩस्वी भुसन को खोजते-फपयते
यहे। एक आश्रभ भं उन्हंने एक अत्मॊत वमोवृद्ध धभा के
ऻाता, फिे तऩस्वी, ऩयभात्भा भं भन रगाए हुए सनयाहाय,
स्जतंद्रीम, स्जतात्भा, स्जतक्रोध, सनातन धभा के गूढ़
तत्वं को जानने वारे, सभस्त शास्त्रं के ऻाता भहात्भा
रोभश भुसन को देखा, स्जनका कल्ऩ के व्मतीत होने ऩय
एक योभ सगयता था।
सफने जाकय ऋत्रष को प्रणाभ फकमा। उन रोगं
को देखकय भुसन ने ऩूछा फक आऩ रोग फकस कायण से
आए हं? सन:सॊदेह भं आऩ रोगं का फहत करूॉ गा। भेया
जन्भ के वर दूसयं के उऩकाय के सरए हुआ है, इसभं
सॊदेह भत कयो।
रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय सफ रोग फोरे-
हे भहषे! आऩ हभायी फात जानने भं ब्रह्मा से बी असधक
सभथा हं। अत: आऩ हभाये इस सॊदेह को दूय कीस्जए।
भफहष्भसत ऩुयी का धभाात्भा याजा भफहष्भती प्रजा का ऩुि
के सभान ऩारन कयता है। फपय बी वह ऩुिहीन होने के
कायण दु:खी है।
उन रोगं ने आगे कहा फक हभ रोग उसकी प्रजा
हं। अत: उसके दु:ख से हभ बी दु:खी हं। आऩके दशान
से हभं ऩूणा त्रवद्वास है फक हभाया मह सॊकट अवश्म दूय
हो जाएगा क्मंफक भहान ऩुरुषं के दशान भाि से अनेक
कद्श दूय हो जाते हं। अफ आऩ कृ ऩा कयके याजा के ऩुि
होने का उऩाम फतराएॉ।
मह वाताा सुनकय ऐसी करुण प्राथाना सुनकय
रोभश ऋत्रष नेि फन्द कयके याजा के ऩूवा जन्भं ऩय
त्रविाय कयने रगे औय याजा के ऩूवा जन्भ का वृत्ताॊत
जानकय कहने रगे फक मह याजा ऩूवा जन्भ भं एक
सनधान वैश्म था। सनधान होने के कायण इसने कई फुये
कभा फकए। मह एक गाॉव से दूसये गाॉव व्माऩाय कयने
जामा कयता था। ज्मेद्ष भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी
के फदन वह दो फदन से बूखा-प्मासा था भध्माह्न के
13 अगस्त 2014
सभम, एक जराशम ऩय जर ऩीने गमा। उसी स्थान ऩय
एक तत्कार की प्रसूता हुई प्मासी गौ जर ऩी यही थी।
याजा ने उस प्मासी गाम को जराशम से जर
ऩीते हुए हटा फदमा औय स्वमॊ जर ऩीने रगा, इसीसरए
याजा को मह दु:ख सहना ऩिा। एकादशी के फदन बूखा
यहने से वह याजा हुआ औय प्मासी गौ को जर ऩीते हुए
हटाने के कायण ऩुि त्रवमोग का दु:ख सहना ऩि यहा है।
ऐसा सुनकय सफ रोग कहने रगे फक हे ऋत्रष! शास्त्रं भं
ऩाऩं का प्रामस्द्ळत बी सरखा है। अत: स्जस प्रकाय याजा
का मह ऩाऩ नद्श हो जाए, आऩ ऐसा उऩाम फताइए।
रोभश भुसन कहने रगे फक श्रावण शुक्र ऩऺ की
एकादशी को स्जसे ऩुिदा एकादशी बी कहते हं, तुभ सफ
रोग व्रत कयो औय यात्रि को जागयण कयो तो इससे याजा
का मह ऩूवा जन्भ का ऩाऩ नद्श हो जाएगा, साथ ही याजा
को ऩुि की अवश्म प्रासद्ऱ होगी। याजा के सभस्त दु्ख
नष्ट हो जामंगे। "रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय
भॊत्रिमं सफहत सायी प्रजा नगय को वाऩस रौट आई औय
जफ श्रावण शुक्र एकादशी आई तो ऋत्रष की आऻानुसाय
सफने ऩुिदा एकादशी का व्रत औय जागयण फकमा।
इसके ऩद्ळात द्रादशी के फदन इसके ऩुण्म का पर याजा
को सभर गमा। उस ऩुण्म के प्रबाव से यानी ने गबा
धायण फकमा औय नौ भहीने के ऩश्िात ् ही उसके एक
अत्मन्त तेजस्वी ऩुियत्न ऩैदा हुआ ।
इससरए हे याजन! इस श्रावण शुक्र एकादशी का
नाभ ऩुिदा ऩिा। अत: सॊतान सुख की इच्छा यखने वारे
भनुष्म को िाफहए के वे त्रवसधऩूवाक श्रावण भास के शुक्र
ऩऺ की एकादशी का व्रत कयं। इसके भाहात्म्म को सुनने
से भनुष्म सफ ऩाऩं से भुि हो जाता है औय इस रोक
भं सॊतान सुख बोगकय ऩयरोक भं स्वगा को प्राद्ऱ होता है।
कथा का उद्देश्म : ऩाऩ कयते सभम हभ मह नहीॊ सोिते
फक हभ क्मा कय यहे है, रेफकन शास्िं से त्रवफदत होता है
फक हभाये द्राया फकमा गमे गमे छोटे मा फडे ऩाऩ से हभं
कष्ट बोगना ऩिता है, अत् हभं ऩाऩ से फिना िाफहए।
क्मंफक ऩाऩ के कायण ऩीछरे जन्भ भं फकमा गमा कभा
का पर दूसये जन्भ भं बी बोगना ऩि सकता हं। इस
सरए हभं िाफहए फक सत्मव्रत का ऩारन कय ईश्वयभं ऩूणा
आस्था एवॊ सनष्ठा यखे औय मह फात सदैव ध्मान यखे
फक फकसी की बी आत्भा को गल्ती से बी कद्श ना हो।
नवयत्न जफित श्री मॊि
शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय
मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं
धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे
भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे
व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं। गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि
ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे
सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ
के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस प्रकाय के नवयत्न जफित
श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं।
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14 अगस्त 2014
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
बाद्रऩद भास कृ ष्णऩऺ की एकादशी
एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं, हे
बगवान! बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी का क्मा नाभ है? इसभं
फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने
से क्मा पर सभरता है? " व्रत कयने की त्रवसध तथा
इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण
कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ अजा एकादशी है।
अफ आऩ शाॊसतऩूवाक इस व्रतकी कथा सुसनए। अजा
एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩाऩं का नाश कयने वारी
हं। जो भनुष्म इस फदन बगवान ऋत्रषके श की ऩूजा कयता
है उसको वैकुॊ ठ की प्रासद्ऱ अवश्म होती है। अफ आऩ
इसकी कथा सुसनए।
प्रािीनकार भं आमोध्मा नगयी भं हरयशिॊद्र
नाभक एक िक्रवतॉ याजा याज्म कयता था। हरयशिॊद्र
अत्मन्त वीय, प्रताऩी तथा सत्मवादी था। एक फाय
दैवमोग से उसने अऩना याज्म स्वप्न भं फकसी ऋत्रष को
दान कय फदमा औय ऩरयस्स्थसतवश के वशीबूत होकय
अऩना साया याज्म व धन त्माग फदमा, साथ ही अऩनी
स्त्री, ऩुि तथा स्वमॊ को बी फेि फदमा।
उसने उस िाण्डार के महाॊ भृतकं के वस्त्र रेने
का काभ फकमा । भगय फकसी प्रकाय से सत्म से त्रविसरत
नहीॊ हुआ। जफ इसी प्रकाय उसे कई वषा फीत गमे तो उसे
अऩने इस कभा ऩय फिा दु्ख हुआ औय वह इससे भुक्त
होने का उऩाम खोजने रगा । कई फाय याजा सिॊता भं
डूफकय अऩने भन भं त्रविाय कयने रगता फक भं कहाॉ
जाऊॉ , क्मा करूॉ , स्जससे भेया उद्धाय हो।
इस प्रकाय याजा को कई वषा फीत गए। एक फदन
याजा इसी सिॊता भं फैठा हुआ था फक फहाॉ गौतभ ऋत्रष
आ गए। याजा ने उन्हं देखकय प्रणाभ फकमा औय अऩनी
सायी दु:खबयी कहानी कह सुनाई। मह फात सुनकय
गौतभ ऋत्रष कहने रगे फक याजन तुम्हाये बाग्म से आज
से सात फदन फाद बाद्रऩद कृ ष्ण ऩऺ की अजा नाभ की
एकादशी आएगी, तुभ त्रवसधऩूवाक व्रत कयो तथा यात्रि को
जागयण कयो।
गौतभ ऋत्रष ने कहा फक इस व्रत के ऩुण्म प्रबाव
से तुम्हाये सभस्त ऩाऩ नद्श हो जाएॉगे। इस प्रकाय याजा
से कहकय गौतभ ऋत्रष उसी सभम अॊतध्माान हो गए।
याजा ने उनके कथनानुसाय एकादशी आने ऩय त्रवसधऩूवाक
व्रत व जागयण फकमा। उस व्रत के प्रबाव से याजा के
सभस्त ऩाऩ नद्श हो गए। स्वगा से फाजे-नगािे फजने रगे
औय ऩुष्ऩं की वषाा होने रगी। उसने अऩने साभने ब्रह्मा,
त्रवष्णु, भहादेवजी तथा इन्द्र आफद देवताओॊ को खिा ऩामा
। उसने अऩने भृतक ऩुि को जीत्रवत औय अऩनी स्त्री को
वस्त्र तथा आबूषणं से मुि देखा। वास्तव भं एक ऋत्रष
ने याजा की ऩयीऺा रेने के सरए मह सफ कौतुक फकमा
था । फकन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रबाव से साया
षडमॊि सभाप्त हो गमा औय व्रत के प्रबाव से याजा को
ऩुन: याज्म सभर गमा। अॊत भं वह अऩने ऩरयवाय सफहत
स्वगा को गमा।
हे याजन! मह सफ अजा एकादशी के प्रबाव से ही
हुआ। अत: जो भनुष्म मत्न के साथ त्रवसधऩूवाक इस व्रत
को कयते हुए यात्रि जागयण कयते हं, उनके सभस्त ऩाऩ
नद्श होकय अॊत भं वे स्वगारोक को प्राद्ऱ होते हं। इस
एकादशी की कथा के श्रवणभाि से अद्वभेध मऻ का पर
प्राद्ऱ होता है।
कथा का उद्देश्म : हभं को ईश्वय के प्रसत ऩूणा आस्था एवॊ
सनष्ठा यखनी िाफहए । त्रवऩरयत ऩरयस्स्थसतमं भं बी हभं
सत्म का भागा नहीॊ छोिना िाफहए।
15 अगस्त 2014
फहन्दू सॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व
 सिॊतन जोशी
श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के
जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है। बगवान श्रीकृ ष्ण
के बगवद गीता भं वस्णात उऩदेश ऩुयातन कार से ही
फहन्दु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं। जन्भाद्शभी का त्मौहाय
ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं।
श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ
की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह
भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के
ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत:
इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं
भनाने की ऩयॊऩया सफदमं से िरी आयही
हं।
श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए देश-
दुसनमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को
त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है।
जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह
फजे तक व्रत यखते हं।
इस फदन भॊफदयं भं
बगवान श्री कृ ष्ण की
त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई जाती
है औय यासरीरा का आमोजन
होता है। बगवान श्री कृ ष्ण की
फार स्वरुऩ प्रसतभा को
त्रवसबन्न शृॊगाय
साभग्रीमं से
सुसस्ज्जत कय
प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को
झूरा झुरामा जाता हं।
धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका
व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा
फतामा है। इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन
नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं।
गौतभीतॊिभं मह उल्रेख है-
उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदािन।
कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िे सतुनयाधभ:।
सनवसेन्नयके घोयेमावदाबूतसम्प्रवभ्॥
अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि-
मथासॊबव उऩिायं से मोगेद्वय कृ ष्ण का
जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक उत्सव सम्ऩन्न
न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कु र न
कयं। जो वैष्णव कृ ष्णाद्शभी के फदन
बोजन कयता है, वह सनद्ळम ही नयाधभ
है। उसे प्ररम होने तक घोय नयक भं
यहना ऩडता है।
इसी सरए जन्भाद्शभी के
फदन बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा
का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन
इत्माफद कयने का त्रवशेष भहत्व
सनातन धभा भं यहा हं।
धभाग्रॊथं भं
जन्भाद्शभी की यात्रि
भं जागयण का
त्रवधान बी फतामा
गमा है। त्रवद्रानं का भत हं की कृ ष्णाद्शभी की यात
भं बगवान श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने
से बि को श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हं।
धभाग्रॊथं भं जन्भाद्शभी के व्रत भं ऩूये फदन उऩवास यखने
का सनमभ है, ऩयॊतु इसभं असभथा रोग पराहाय कय
सकते हं।
16 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि
"श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है। "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है। जो न के वर
दूसये मन्िो से असधक से असधक राब देने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदेभॊद सात्रफत होता है। ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा
िैतन्म मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्ध होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब
एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है। "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रतीम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है।
स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दूय होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन
भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत है। "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भं उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दूय कय
सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है। "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से
सम्फस्न्धत ऩयेशासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है। >> >> >> >> >> Order Now
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बत्रवष्मऩुयाण भं उल्रेख हं
स्जस याद्स मा प्रदेश भं मह व्रत-उत्सव त्रवसध-
त्रवधान से भनामा जाता है, वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा
भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हं
तथा पसर खूफ होती है। जनता सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ कयती
है। इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमं को ऩयभ श्रेम की
प्रासद्ऱ होती है। व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी फनकय इस
रोक भं सफ सुख बोगता है औय अन्त भं वैकुॊ ठ जाता
है। कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी प्रकाय क्रेश
दूय हो जाते हं। उसका दुख-दरयद्रता से उद्धाय होता है।
स्कन्द ऩुयाण भं उल्रेख हं फक जो बी व्मत्रि इस
व्रत के भहत्व को जानकय बी कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत को
नहीॊ कयता, वह भनुष्म जॊगर भं सऩा औय व्माघ्र होता
है।
बत्रवष्म ऩुयाण उल्रेख हं, फक कृ ष्ण जन्भाद्शभी
व्रत को जो भनुष्म नहीॊ कयता, वह क्रू य याऺस होता है।
के वर अद्शभी सतसथ भं ही उऩवास कयना कहा गमा है।
मफद वही सतसथ योफहणी नऺि से मुि हो तो उसे 'जमॊती'
नाभ से सॊफोसधत की जाएगी।
त्रवसबन्न धभाशास्त्रं भं उल्रेख हं, फक जो उत्तभ
भनुष्म है। वे सनस्द्ळत रूऩ से जन्भाद्शभी व्रत को इस
रोक भं कयते हं। उनके ऩास सदैव स्स्थय रक्ष्भी होती है।
इस व्रत के कयने के प्रबाव से उनके सभस्त कामा ससद्ध
होते हं।
मफद आधी यात के सभम योफहणी भं जफ
कृ ष्णाद्शभी हो तो उसभं कृ ष्ण का अिान औय ऩूजन कयने
से तीन जन्भं के ऩाऩं का नाश होता है। भहत्रषा बृगु ने
कहा है- जन्भाद्शभी, योफहणी औय सशवयात्रि मे ऩूवात्रवद्धा ही
कयनी िाफहए तथा सतसथ एवॊ नऺि के अन्त भं ऩायणा
कयं। इसभं के वर योफहणी उऩवास ही ससद्ध है।
शास्त्रकायं नं श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी की यात्रि को
भोहयात्रि कहा है। इस यात भं बगवान श्रीकृ ष्ण का ध्मान,
नाभ अथवा भॊि जऩते हुए जागयण कयने से सॊसाय की
भोह-भामा से आसत्रि दूय होती है। जन्भाद्शभी के व्रत को
व्रतयाज कहाॊ गमा है। क्मोफक, इस व्रत को ऩूणा त्रवसध-
त्रवधान से कयने से भनुष्म को अनेक व्रतं से प्राद्ऱ होने
वारे भहान ऩुण्म का पर के वर इस व्रत के कयने से
प्राद्ऱ हो जाता हं।
17 अगस्त 2014
कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, सॊदीऩ शभाा
एक फाय इॊद्र ने नायद जी से कहा "हे भुसनमं भं
सवाश्रेद्ष, सबी शास्त्रं के ऻाता, हे देव, व्रतं भं उत्तभ उस
व्रत को फताएॉ, स्जस व्रत के कयने से भनुष्मं को भुत्रि,
राब प्राद्ऱ हो तथा उस व्रत से प्रास्णमं को बोग व भोऺ
दोनो की प्रासद्ऱ हो जाए।"
देवयाज इॊद्र के विनं को सुनकय नायद जी ने
कहा "िेता मुग के अॊत भं औय द्राऩय मुग के प्रायॊब
सभम भं धृस्णत कभा को कयने वारा कॊ स नाभ का
एक अत्मॊत ऩाऩी दैत्म हुआ। उस दुद्श व
दुयािायी कॊ स की देवकी नाभ की एक
सुॊदय व सुशीर फहन थी। उस देवकी
के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि कॊ स
का वध कयेगा।"
नायद जी की फातं
सुनकय इॊद्र ने कहा हे प्रबो
"उस दुयािायी कॊ स की कथा
का त्रवस्तायऩूवाक वणान
कीस्जए। क्मा देवकी के गबा से
उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि अऩने भाभा
कॊ स की हत्मा कयेगा! मह
सॊबव है।" इॊद्र की सन्देह बयी फातं
को सुनकय नायदजी ने कहा हे अफदसत ऩुि इॊद्र! एक
सभम की फात है। उस दुद्श कॊ स ने एक ज्मोसतषी से ऩूछा
"भेयी भृत्मु फकस प्रकाय औय फकसके द्राया होगी।"
ज्मोसतषी फोरे "हे दानवं भं श्रेद्ष कॊ स! "वसुदेव की ऩत्नी
देवकी है औय आऩकी फहन बी है। उसी के गबा से
उत्ऩन्न उसका आठवाॊ ऩुि जो फक शिुओॊ को ऩयास्जत
कय इस सॊसाय भं "कृ ष्ण" के नाभ से त्रवख्मात होगा,
वही एक सभम सूमोदम कार भं आऩका वध कयेगा।"
ज्मोसतषी की फातं को सुनकय कॊ स ने कहा "हे दैवज,
अफ आऩ मह फताएॊ फक देवकी का आठवाॊ ऩुि फकस भास
भं फकस फदन भेया वध कयेगा।" ज्मोसतषी फोरे "हे
भहायाज! भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सतसथ को सोरह
कराओॊ से ऩूणा श्रीकृ ष्ण से आऩका मुद्ध होगा। उसी मुद्ध
भं वे आऩका वध कयंगे। इससरए हे भहायाज! आऩ अऩनी
यऺा मत्नऩूवाक कयं।"
इतना फताने के ऩद्ळात नायद जी
ने इॊद्र से कहा "ज्मोसतषी द्राया
फताए गए सभम ऩय ही कॊ स की
भृत्मु कृ ष्ण के हाथ सन्सॊदेह
होगी।" तफ इॊद्र ने कहा "हे
भुसन! उस दुयािायी कॊ स की
कथा का वणान कीस्जए, औय
फताइए फक कृ ष्ण का जन्भ
कै से होगा तथा कॊ स की भृत्मु
कृ ष्ण द्राया फकस प्रकाय होगी।"
इॊद्र की फातं को सुनकय
नायदजी ने ऩुन् कहना प्रायॊब फकमा
"उस दुयािायी कॊ स ने अऩने एक
द्रायऩार से कहा भेयी इस प्राणं से त्रप्रम
फहन देवकी की ऩूणा सुयऺा कयना।" द्रायऩार ने
कहा "ऐसा ही होगा भहायाज।" कॊ स के जाने के ऩद्ळात
उसकी छोटी फहन देवकी दु्स्खत होते हुए जर रेने के
फहाने घिा रेकय ताराफ ऩय गई। उस ताराफ के फकनाये
एक वृऺ के नीिे फैठकय देवकी योने रगी। उसी सभम
एक सुॊदय स्त्री, स्जसका नाभ मशोदा था, उसने आकय
देवकी से त्रप्रम वाणी भं कहा "हे देवी! इस प्रकाय तुभ
क्मं त्रवराऩ कय यही हो। अऩने योने का कायण भुझसे
फताओ।" तफ दुखी देवकी ने मशोदा से कहा "हे फहन!
नीि कभं भं आसि दुयािायी भेया ज्मेद्ष भ्राता कॊ स है।
18 अगस्त 2014
उस दुद्श भ्राता ने भेये कई ऩुिं का वध कय फदमा। इस
सभम भेये गबा भं आठवाॉ ऩुि है। वह इसका बी वध कय
डारेगा, क्मंफक भेये ज्मेद्ष भ्राता को मह बम है फक भेये
अद्शभ ऩुि से उसकी भृत्मु अवश्म होगी।"
देवकी की फातं सुनकय मशोदा ने कहा "हे फहन!
त्रवराऩ भत कयो। भं बी गबावती हूॉ। मफद
भुझे कन्मा हुई तो तुभ अऩने ऩुि के
फदरे उस कन्मा को रे रेना। इस प्रकाय
तुम्हाया ऩुि कॊ स के हाथं भाया नहीॊ जाएगा।"
कॊ स ने वाऩस आकय अऩने
द्रायऩार से ऩूछा "देवकी कहाॉ है?
इस सभम वह फदखाई नहीॊ दे यही
है।" तफ द्रायऩार ने कॊ स से
नम्रवाणी भं कहा "हे भहायाज!
आऩकी फहन जर रेने ताराफ ऩय गई
हुई हं।" मह सुनते ही कॊ स क्रोसधत हो
उठा औय उसने द्रायऩार को उसी स्थान
ऩय जाने को कहा जहाॊ वह गई हुई है।
द्रायऩार की दृत्रद्श ताराफ के ऩास देवकी ऩय
ऩिी। तफ उसने कहा फक "आऩ फकस कायण से
महाॉ आई हं।" उसकी फातं सुनकय देवकी ने कहा फक
"भेये घय भं जर नहीॊ था, भं जर रेने जराशम ऩय आई
हूॉ।" इसके ऩद्ळात देवकी अऩने घय की ओय िरी गई।
कॊ स ने ऩुन् द्रायऩार से कहा फक इस घय भं भेयी
फहन की तुभ ऩूणात् यऺा कयो। अफ कॊ स को इतना बम
रगने रगा फक घय के बीतय दयवाजं भं त्रवशार तारे फॊद
कयवा फदए जैसे कोई कायागाय हो औय दयवाज़े के फाहय
दैत्मं औय याऺसं को ऩहयेदायी के सरए सनमुि कय
फदमा। कॊ स हय प्रकाय से अऩने प्राणं को फिाने के प्रमास
कय यहा था। तफ सबी प्रकाय के शुब भुहूता भं श्री कृ ष्ण
का जन्भ हुआ औय श्रीकृ ष्ण के प्रबाव से ही उसी ऺण
फन्दीगृह के दयवाज़े स्वमॊ खुर गए। द्राय ऩय ऩहया देने
वारे ऩहयेदाय याऺस सबी भूस्च्छात हो गए। देवकी ने उसी
ऺण अऩने ऩसत वसुदेव से कहा "हे स्वाभी! आऩ सनद्रा
का त्माग कयं औय भेये इस ऩुि को गोकु र भं रे जाएॉ,
वहाॉ इस ऩुि को नॊद गोऩ की धभाऩत्नी मशोदा को दे दं।
उस सभम मभुनाजी ऩूणारूऩ से फाढ़ग्रस्त थीॊ, फकन्तु जफ
वसुदेवजी फारक कृ ष्ण को सूऩ भं रेकय मभुनाजी को
ऩाय कयने के सरए उतये उसी ऺण फारक के ियणं का
स्ऩशा होते ही मभुनाजी अऩने ऩूवा स्स्थय
रूऩ भं आ गईं। फकसी प्रकाय वसुदेवजी
गोकु र ऩहुॉिे औय नॊद के घय भं प्रवेश कय
उन्हंने अऩना ऩुि तत्कार उन्हं दे फदमा
औय उसके फदरे भं उनकी कन्मा रे री।
वे तत्कार वहाॊ से वाऩस आकय कॊ स के
फॊदी गृह भं ऩहुॉि गए।
प्रात्कार जफ सबी याऺस
ऩहयेदाय सनद्रा से जागे तो कॊ स ने
द्रायऩार से ऩूछा फक अफ देवकी के
गबा से क्मा हुआ? इस फात का
ऩता रगाकय भुझे फताओ। द्रायऩारं
ने भहायाज की आऻा को भानते हुए
कायागाय भं जाकय देखा तो वहाॉ देवकी
की गोद भं एक कन्मा थी। स्जसे देखकय
द्रायऩारं ने कॊ स को सूसित फकमा, फकन्तु कॊ स
को तो उस कन्मा से बम होने रगा। अत् वह स्वमॊ
कायागाय भं गमा औय उसने देवकी की गोद से कन्मा को
झऩट सरमा औय उसे एक ऩत्थय की िट्टान ऩय ऩटक
फदमा फकन्तु वह कन्मा त्रवष्णु की भामा से आकाश की
ओय िरी गई औय अॊतरयऺ भं जाकय त्रवद्युत के रूऩ भं
ऩरयस्णत हो गई।
बगवान त्रवष्णु ने आकाशवाणी कय कॊ स से कहा
फक "हे दुद्श! तुझे भायने वारा गोकु र भं नॊद के घय भं
उत्ऩन्न हो िुका है औय उसी से तेयी भृत्मु सुसनस्द्ळत है।
भेया नाभ तो वैष्णवी है, भं सॊसाय के कताा बगवान
त्रवष्णु की भामा से उत्ऩन्न हुई हूॉ।" इतना कहकय वह
स्वगा की ओय िरी गई। उस आकाशवाणी को सुनकय
कॊ स क्रोसधत हो उठा। उसने नॊद के घय भं ऩूतना, के शी
19 अगस्त 2014
धन वृत्रद्ध फडब्फी
धन वृत्रद्ध फडब्फी को अऩनी अरभायी, कै श फोक्स, ऩूजा स्थान भं यखने से धन वृत्रद्ध होती हं स्जसभं कारी हल्दी,
रार- ऩीरा-सपे द रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पफटक यत्न, 3 ऩीरी कौडी, 3 सपे द कौडी, गोभती
िक्र, सपे द गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, इॊद्र जार, भामा जार, इत्मादी दुराब वस्तुओॊ को शुब भहुता भं तेजस्वी
भॊि द्राया असबभॊत्रित फकम जाता हं। भूल्म भाि Rs-730 >> Order Now
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नाभक दैत्म, काल्माख्म इत्माफद फरवान याऺसं की
भृत्मु के आघात से कॊ स अत्मसधक बमबीत हो गमा।
उसने द्रायऩारं को आऻा दी फक नॊद को तत्कार भेये
सभऺ उऩस्स्थत कयो। द्रायऩार नॊद को रेकय जफ
उऩस्स्थत हुए तफ कॊ स ने नॊद से कहा फक मफद तुम्हं
अऩने प्राणं को फिाना है तो ऩारयजात के ऩुष्ऩ रे राओ।
मफद तुभ नहीॊ रा ऩाए तो तुम्हाया वध सनस्द्ळत है।
कॊ स की फातं को सुनकय नॊद ने 'ऐसा ही होगा'
कहा औय अऩने घय की ओय िरे गए। घय आकय उन्हंने
सॊऩूणा वृत्ताॊत अऩनी ऩत्नी मशोदा को सुनामा, स्जसे
श्रीकृ ष्ण बी सुन यहे थे। एक फदन श्रीकृ ष्ण अऩने सभिं
के साथ मभुना नदी के फकनाये गंद खेर यहे थे औय
अिानक स्वमॊ ने ही गंद को मभुना भं पं क फदमा। मभुना
भं गंद पं कने का भुख्म उद्देश्म मही था फक वे फकसी
प्रकाय ऩारयजात ऩुष्ऩं को रे आएॉ। अत् वे कदम्फ के
वृऺ ऩय िढ़कय मभुना भं कू द ऩिे।
कृ ष्ण के मभुना भं कू दने का सभािाय 'श्रीधय'
नाभक गोऩार ने मशोदा को सुनामा। मह सुनकय मशोदा
बागती हुई मभुना नदी के फकनाये आ ऩहुॉिीॊ औय उसने
मभुना नदी की प्राथाना कयते हुए कहा- 'हे मभुना! मफद
भं फारक को देखूॉगी तो बाद्रऩद भास की योफहणी मुि
अद्शभी का व्रत अवश्म करूॊ गी, क्मोफक हज़ायं अद्वभेध
मऻ, सहस्रों याजसूम मऻ, दान तीथा औय व्रत कयने से
जो पर प्राद्ऱ होता है, वह सफ कृ ष्णाद्शभी के व्रत को
कयने से प्राद्ऱ हो जाता है।
मह फात नायद ऋत्रष ने इॊद्र से कही। इॊद्र ने कहा-
'हे भुसनमं भं श्रेद्ष नायद! मभुना नदी भं कू दने के फाद
उस फाररूऩी कृ ष्ण ने ऩातार भं जाकय क्मा फकमा? मह
सॊऩूणा वृत्ताॊत बी फताएॉ।' नायद ने कहा- 'हे इॊद्र! ऩातार
भं उस फारक से नागयाज की ऩत्नी ने कहा फक तुभ महाॉ
क्मा कय यहे हो, कहाॉ से आए हो औय महाॉ आने का क्मा
प्रमोजन है?'
नागऩत्नी फोरीॊ- 'हे कृ ष्ण! क्मा तूने द्यूतक्रीिा की
है, स्जसभं अऩना सभस्त धन हाय गमा है। मफद मह फात
ठीक है तो कॊ कि, भुकु ट औय भस्णमं का हाय रेकय
अऩने घय भं िरे जाओ क्मंफक इस सभम भेये स्वाभी
शमन कय यहे हं। मफद वे उठ गए तो वे तुम्हाया बऺण
कय जाएॉगे। नागऩत्नी की फातं सुनकय कृ ष्ण ने कहा हे
कान्ते! भं फकस प्रमोजन से महाॉ आमा हूॉ, वह वृत्ताॊत भं
तुम्हं फताता हूॉ। सभझ रो भं कासरम नाग के भस्तक
को कॊ स के साथ द्यूत भं हाय िुका हूॊ औय वही रेने भं
महाॉ आमा हूॉ। फारक कृ ष्ण की इस फात को सुनकय
नागऩत्नी अत्मॊत क्रोसधत हो उठीॊ औय अऩने सोए हुए
ऩसत को उठाते हुए उसने कहा हे स्वाभी! आऩके घय मह
शिु आमा है। अत् आऩ इसका हनन कीस्जए।
अऩनी स्वासभनी की फातं को सुनकय कासरमा
नाग सनन्द्रावस्था से जाग ऩिा औय फारक कृ ष्ण से मुद्ध
कयने रगा। इस मुद्ध भं कृ ष्ण को भूच्छाा आ गई, उसी
भूछाा को दूय कयने के सरए उन्हंने गरुि का स्भयण
फकमा। स्भयण होते ही गरुि वहाॉ आ गए। श्रीकृ ष्ण अफ
गरुि ऩय िढ़कय कासरमा नाग से मुद्ध कयने रगे औय
उन्हंने कासरम नाग को मुद्ध भं ऩयास्जत कय फदमा।
20 अगस्त 2014
अफ कसरमा नाग ने बरीबाॊसत जान सरमा था फक
भं स्जनसे मुद्ध कय यहा हूॉ, वे बगवान त्रवष्णु के अवताय
श्रीकृ ष्ण ही हं। अत् उन्हंने कृ ष्ण के ियणं भं साद्शाॊग
प्रणाभ फकमा औय ऩारयजात से उत्ऩन्न फहुत से ऩुष्ऩं को
भुकु ट भं यखकय कृ ष्ण को बंट फकमा। जफ कृ ष्ण िरने
को हुए तफ कासरमा नाग की ऩत्नी ने कहा हे स्वाभी! भं
कृ ष्ण को नहीॊ जान ऩाई। हे जनादान भॊि यफहत, फक्रमा
यफहत, बत्रिबाव यफहत भेयी यऺा कीस्जए। हे प्रबु! भेये
स्वाभी भुझे वाऩस दे दं।' तफ श्रीकृ ष्ण ने कहा- 'हे
सत्रऩाणी! दैत्मं भं जो सफसे फरवान है, उस कॊ स के
साभने भं तेये ऩसत को रे जाकय छोि दूॉगा इससरए तुभ
अऩने घय को िरी जाओ। अफ श्रीकृ ष्ण कासरमा नाग के
पन ऩय नृत्म कयते हुए मभुना के ऊऩय आ गए।
फपय कासरमा की पुॊ काय से तीनं रोक
कम्ऩामभान हो गए। अफ कृ ष्ण कॊ स की भथुया नगयी को
िर फदए। वहाॊ कभरऩुष्ऩं को देखकय मभुना के भध्म
जराशम भं वह कासरमा सऩा बी िरा गमा।
इधय कॊ स बी त्रवस्स्भत हो गमा तथा कृ ष्ण
प्रसन्नसित्त होकय गोकु र रौट आए। उनके गोकु र आने
ऩय उनकी भाता मशोदा ने त्रवसबन्न प्रकाय के उत्सव
फकए। अफ इॊद्र ने नायदजी से ऩूछा हे भहाभुने! सॊसाय के
प्राणी फारक श्रीकृ ष्ण के आने ऩय अत्मसधक आनॊफदत
हुए।
फपय बगवान श्रीकृ ष्ण ने कॊ स के भहाफरशारी
बाई िाणूय िाणूय से भल्रमुद्ध की घोषणा की। िाणूय से
भल्रमुद्ध के दौयान श्रीकृ ष्ण ने अऩने ऩैयं को िाणूय के
गरे भं पॉ साकय उसका वध कय फदमा। िाणूय की भृत्मु
के ऩद्ळात उनका भल्रमुद्ध के शी के साथ हुआ। इस मुद्ध
भं श्रीकृ ष्ण औय फरदेव ने असॊख्म दैत्मं का वध फकमा।
फरयाभजी ने अऩने आमुध शस्त्र हर से औय कृ ष्ण ने
सुदशान िक्र से भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सद्ऱभी को
त्रवशार दैत्मं के सभूह का सवानाश फकमा। जफ अन्त भं
के वर दुयािायी कॊ स ही फि गमा तो कृ ष्ण ने कहा- हे
दुद्श, अधभॉ, दुयािायी अफ भं इस भहामुद्ध स्थर ऩय
तुझसे मुद्ध कय तथा तेया वध कय इस सॊसाय को तुझसे
भुि कयाऊॉ गा। मह कहते हुए श्रीकृ ष्ण ने उसके के शं को
ऩकि सरमा औय कॊ स को घुभाकय ऩृथ्वी ऩय ऩटक फदमा,
स्जससे वह भृत्मु को प्राद्ऱ हुआ। कॊ स के भयने ऩय
देवताओॊ ने शॊखघोष व ऩुष्ऩवृत्रद्श की। वहाॊ उऩस्स्थत
सभुदाम श्रीकृ ष्ण की जम-जमकाय कय यहा था। कॊ स की
भृत्मु ऩय नॊद, देवकी, वसुदेव, मशोदा औय इस सॊसाय के
सबी प्रास्णमं ने हषा ऩवा भनामा।
इस कथा को सुनने के ऩद्ळात इॊद्र ने नायदजी से
कहा हे ऋत्रष इस कृ ष्ण जन्भाद्शभी का ऩूणा त्रवधान फताएॊ
एवॊ इसके कयने से क्मा ऩुण्म प्राद्ऱ होता है, इसके कयने
की क्मा त्रवसध है?
नायदजी ने कहा हे इॊद्र! बाद्रऩद भास की
कृ ष्णजन्भाद्शभी को इस व्रत को कयना िाफहए। उस फदन
ब्रह्मिमा आफद सनमभं का ऩारन कयते हुए श्रीकृ ष्ण का
स्थाऩन कयना िाफहए। सवाप्रथभ श्रीकृ ष्ण की भूसता स्वणा
करश के ऊऩय स्थात्रऩत कय िॊदन, धूऩ, ऩुष्ऩ, कभरऩुष्ऩ
आफद से श्रीकृ ष्ण प्रसतभा को वस्त्र इत्माफद से सुसस्ज्जत
कय त्रवसधऩूवाक ऩूजन-अिान कयना िाफहए।
उऩवास की ऩूवा यात्रि को हल्का बोजन कयं औय
ब्रह्मिमा का ऩारन कयना िाफहए।
अद्श रक्ष्भी कवि
Asht Vinayak Kawach, Ashtavi nayak Kavach, Ashta Vi nayak
अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं। स्जस्से भाॊ
रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम
रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं।
भूल्म Rs: 1250 >>Order Now | Ask Now
21 अगस्त 2014
बायतीम सॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व
 सिॊतन जोशी
यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाात ् प्रेभ का फॊधन।
यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं।
यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से
फाॉधती है।
बायतीम सॊस्कृ सत भं आज के बौसतकतावादी
सभाज भं बोग औय स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम्
सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं।
बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता
के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं। बायतीम सॊस्कृ सत भं
स्त्री को के वर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन
कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं।
फकन्तु आजका ऩढा सरखा
आधुसनक व्मत्रि अऩने
आऩको सुधया हुवा भानने
वारे तथा ऩाद्ळात्म
सॊस्कृ सत का अॊधा अनुकयण
कयके , स्त्री को सभानता
फदराने वारी खोखरी बाषा
फोरने वारं को ऩेहर बायत
की ऩायॊऩरयक सॊस्कृ सत को ऩूणा
सभझ रेना िाफह की ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत से तो
के वर सभानता फदराई हो ऩयॊतु बायतीम सॊस्कृ सत ने तो
स्त्री का ऩूजन फकमा हं।
एसे फह नहीॊ कहाजाता हं।
'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति देवता्।
बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है, उसका सम्भान होता है,
वहाॉ देव यभते हं- वहाॉ देवं का सनवास होता है।' ऐसा
बगवान भनु का विन है।
बायतीम सॊस्कृ सत स्त्री की ओय बोग की दृत्रद्श से न
देखकय ऩत्रवि दृत्रद्श से, भाॉ की बावना से देखने का आदेश
देने वारी सवा श्रेद्ष बायतीम सॊस्कृ सत ही हं।
हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवाजो नं बायतीम सॊस्कृ सत
भं यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा
क्मोफक यऺाफॊधन के तौहाय को दृत्रद्श ऩरयवतान के उद्देश्म
से फनामा गमा हो?
फहन द्राया याखी हाथ ऩय फॊधते ही बाई की दृत्रद्श
फदर जाए। याखी फाॉधने वारी फहन की ओय वह त्रवकृ त
दृत्रद्श न देखे, एवॊ अऩनी फहन का यऺण बी वह स्वमॊ
कये। स्जस्से फहन सभाज भं सनबाम होकय घूभ सके ।
त्रवकृ त दृत्रद्श एवॊ भानससकता वारे रोग उसका भजाक
उिाकय नीि वृत्रत्त वारे रोगो को दॊड देकय सफक ससखा
सके हं।
बाई को याखी फाॉधने से ऩहरे फहन
उसके भस्स्तष्क ऩय सतरक
कयती हं। उस सभम फहन बाई
के भस्स्तष्क की ऩूजा नहीॊ
अत्रऩतु बाई के शुद्ध त्रविाय
औय फुत्रद्ध को सनभार कयने हेतु
फकमा जाता हं, सतरक रगाने से
दृत्रद्श ऩरयवतान की अद्भुत प्रफक्रमा
सभाई हुई होती हं।
बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधकय फहन उससे
के वर अऩना यऺण ही नहीॊ िाहती, अऩने साथ-साथ सभस्त
स्त्री जासत के यऺण की काभना यखती हं, इस के साथ फहॊ
अऩना बाई फाह्य शिुओॊ औय अॊतत्रवाकायं ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कये
औय सबी सॊकटो से उससे सुयस्ऺत यहे, मह बावना बी उसभं
सछऩी होती हं। वेदं भं उल्रेख है फक देव औय असुय सॊग्राभ भं
देवं की त्रवजम प्रासद्ऱ फक काभना के सनसभत्त देत्रव इॊद्राणी ने
फहम्भत हाये हुए इॊद्र के हाथ भं फहम्भत फॊधाने हेतु याखी फाॉधी
थी। एवॊ देवताओॊ की त्रवजम से यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू
हुआ। असबभन्मु की यऺा के सनसभत्त कुॊ ताभाता ने उसे याखी
फाॉधी थी।
22 अगस्त 2014
इसी सॊफॊध भं एक औय फकॊ वदॊती प्रससद्ध है फक
देवताओॊ औय असुयं के मुद्ध भं देवताओॊ की त्रवजम को रेकय
कु छ सॊदेह होने रगा। तफ देवयाज इॊद्र ने इस मुद्ध भं प्रभुखता
से बाग सरमा था। देवयाज इॊद्र की ऩत्नी इॊद्राणी श्रावण ऩूस्णाभा
के फदन गुरु फृहस्ऩसत के ऩास गई थी तफ उन्हंने त्रवजम के
सरए यऺाफॊधन फाॉधने का सुझाव फदमा था। जफ देवयाज इॊद्र
याऺसं से मुद्ध कयने िरे तफ उनकी ऩत्नी इॊद्राणी ने इॊद्र के
हाथ भं यऺाफॊधन फाॉधा था, स्जससे इॊद्र त्रवजमी हुए थे।
अनेक ऩुयाणं भं श्रावणी ऩूस्णाभा को ऩुयोफहतं द्राया
फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे ब्राह्मणं
द्राया मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है।
ऩुयाणं भं ऐसी बी भान्मता है फक भहत्रषा दुवाासा ने
ग्रहं के प्रकोऩ से फिने हेतु यऺाफॊधन की व्मवस्था दी थी।
भहाबायत मुग भं बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी ऋत्रषमं को ऩूज्म
भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को आवश्मक भाना था ताफक
ऋत्रषमं के तऩ फर से बिं की यऺा की जा सके ।
ऐसतहाससक कायणं से भध्ममुगीन बायत भं यऺाफॊधन
का ऩवा भनामा जाता था। शामद हभरावयं की वजह से
भफहराओॊ के शीर की यऺा हेतु इस ऩवा की भहत्ता भं इजापा
हुआ हो। तबी भफहराएॉ सगे बाइमं मा भुॉहफोरे बाइमं को
यऺासूि फाॉधने रगीॊ। मह एक धभा-फॊधन था।
यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोफहतं द्राया फकमा जाने वारा
आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे ब्राह्मणं द्राया
मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है।
यऺाफॊधन का एक भॊि बी है, जो ऩॊफडत यऺा-सूि
फाॉधते सभम ऩढ़ते हं :
मेन फद्धो फरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर्।
तेन त्वाॊ प्रसतफध्नासभ यऺे भािर भािर्॥
बत्रवष्मोत्तय ऩुयाण भं याजा फसर (श्रीयाभिरयत भानस के फासर
नहीॊ) स्जस यऺाफॊधन भं फाॉधे गए थे, उसकी कथा अक्सय
उद्धृत की जाती है। फसर के सॊफॊध भं त्रवष्णु के ऩाॉिवं अवताय
(ऩहरा अवताय भानवं भं याभ थे) वाभन की कथा है फक फसर
से सॊकल्ऩ रेकय उन्हंने तीन कदभं भं तीनं रोकं भं
सफकु छ नाऩ सरमा था। वस्तुत् दो ही कदभं भं वाभन रूऩी
त्रवष्णु ने सफकु छ नाऩ सरमा था औय फपय तीसये कदभ,जो
फसर के ससय ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक ऩहुॉिा फदमा
था। रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊऩया तफ से फकसी न फकसी रूऩ
भं त्रवद्यभान थी।
***
असरी 1 भुखी से 14 भुखी रुद्राऺ
गुरुत्व कामाारम भं सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ असरी 1 भुखी से 14 भुखी तक के रुद्राऺ उऩरब्ध
हं। ज्मोसतष कामा से जुडे़ फॊधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न,
उऩयत्न मॊि, रुद्राऺ व अन्म दुराब साभग्रीमाॊ एवॊ अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं। रुद्राऺ के त्रवषम भं
असधक जानकायी के सरए कामाारम भं सॊऩका कयं।
GURUTVA KARYALAY
91+ 9338213418, 91+ 9238328785
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23 अगस्त 2014
याखी ऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
वाभनावताय कथा
ऩोयास्णक कथा के अनुशाय एकफाय सौ मऻ ऩूणा कय
रेने ऩय दानवो के याजा फसर के भन भं स्वगा प्रासद्ऱ की
इच्छा प्रफर हो गई तो इन्द्र का ससॊहासन डोरने रगा। इन्द्र
आफद देवताओॊ ने बगवान त्रवष्णु से यऺा की प्राथाना की।
बगवान ने वाभन अवताय रेकय ब्राह्मण का वेष धायण कय
सरमा औय याजा फसर से सबऺा भाॊगने ऩहुॉि गए। बगवान
त्रवष्णुने फसर से तीन ऩग बूसभ सबऺा भं भाॊग री।
फसर के गुरु शुक्रदेवजी ने ब्राह्मण रुऩ धायण फकए हुए
श्री त्रवष्णु को ऩहिान सरमा औय फसर को इस फाये भं सावधान
कय फदमा फकॊ तु फसर अऩने विन से न फपये औय तीन ऩग
बूसभ दान कय दी।
अफ वाभन रूऩ भं बगवान त्रवष्णु ने एक ऩग भं स्वगा
औय दूसये ऩग भं ऩृथ्वी को नाऩ सरमा। तीसया ऩैय कहाॉ यखं?
फसर के साभने सॊकट उत्ऩन्न हो गमा। मफद वह अऩना विन
नहीॊ सनबाता तो अधभा होता। आस्खयकाय उसने अऩना ससय
बगवान के आगे कय फदमा औय कहा तीसया ऩग आऩ भेये
ससय ऩय यख दीस्जए। वाभन बगवान ने वैसा ही फकमा। ऩैय
यखते ही वह यसातर रोक भं ऩहुॉि गमा।
जफ फारी यसातर भं िरा गमा तफ फसर ने अऩनी
बत्रि के फर से बगवान को यात-फदन अऩने साभने यहने का
विन रे सरमा औय बगवान त्रवष्णु को उनका द्रायऩार फनना
ऩिा। बगवान के यसातर सनवास से ऩयेशान फक मफद स्वाभी
यसातर भं द्रायऩार फन कय सनवास कयंगे तो फैकुॊ ठ रोक का
क्मा होगा? इस सभस्मा के सभाधान के सरए रक्ष्भी जी को
नायद जी ने एक उऩाम सुझामा। रक्ष्भी जी ने याजा फसर के
ऩास जाकय उसे यऺाफन्धन फाॊधकय अऩना बाई फनामा औय
उऩहाय स्वरुऩ अऩने ऩसत बगवान त्रवष्णु को अऩने साथ रे
आमीॊ। उस फदन श्रावण भास की ऩूस्णाभा सतसथ थी मथा यऺा-
फॊधन भनामा जाने रगा।
सयस्वती कवि एवॊ मॊि
उत्तभ सशऺा एवॊ त्रवद्या प्रासद्ऱ के सरमे वॊसत ऩॊिभी ऩय दुराब तेजस्वी भॊि शत्रि द्राया ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म
मुि सयस्वती कवि औय सयस्वती मॊि के प्रमोग से सयरता एवॊ सहजता से भाॊ सयस्वती की कृ ऩा प्राद्ऱ कयं।
भूल्म:280 से 1450 तक >> Order Now
24 अगस्त 2014
बत्रवष्म ऩुयाण की कथा
बत्रवष्म ऩुयाण की एक कथा के अनुसाय एक फाय
देवता औय दानवं भं फायह वषं तक मुद्ध हुआ ऩयन्तु देवता
त्रवजमी नहीॊ हुए। इॊद्र हाय के बम से दु:खी होकय देवगुरु
फृहस्ऩसत के ऩास त्रवभशा हेतु गए। गुरु फृहस्ऩसत के सुझाव ऩय
इॊद्र की ऩत्नी भहायानी शिी ने श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा के फदन
त्रवसध-त्रवधान से व्रत कयके यऺासूि तैमाय फकए
औय स्वास्स्तवािन के साथ ब्राह्मण की उऩस्स्थसत भं इॊद्राणी ने
वह सूि इॊद्र की दाफहनी कराई भं फाॊधा स्जसके परस्वरुऩ
इन्द्र सफहत सभस्त देवताओॊ की दानवं ऩय त्रवजम हुई।
यऺा त्रवधान के सभम सनम्न स्जस भॊि का उच्िायण फकमा
गमा था उस भॊि का आज बी त्रवसधवत ऩारन फकमा जाता है:
"मेन फद्धोफरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर: ।
तेन त्वाभसबफध्नासभ यऺे भा िर भा िर ।।"
इस भॊि का बावाथा है फक दानवं के भहाफरी याजा
फसर स्जससे फाॊधे गए थे, उसी से तुम्हं फाॊधता हूॉ। हे यऺे!
(यऺासूि) तुभ िरामभान न हो, िरामभान न हो।
मह यऺा त्रवधान श्रवण भास की ऩूस्णाभा को प्रात्
कार सॊऩन्न फकमा गमा मथा यऺा-फॊधन अस्स्तत्व भं
आमा औय श्रवण भास की ऩूस्णाभा को भनामा जाने रगा।
भहाबायत सॊफॊधी कथा
भहाबायत कार भं द्रौऩदी द्राया श्री कृ ष्ण को तथा
कु न्ती द्राया असबभन्मु को याखी फाॊधने के वृत्ताॊत सभरते हं।
भहाबायत भं ही यऺाफॊधन से सॊफॊसधत कृ ष्ण औय द्रौऩदी का
एक औय वृत्ताॊत सभरता है। जफ कृ ष्ण ने सुदशान िक्र से
सशशुऩार का वध फकमा तफ उनकी तजानी भं िोट आ गई।
द्रौऩदी ने उस सभम अऩनी सािी पािकय उनकी उॉगरी ऩय
ऩट्टी फाॉध दी। मह श्रावण भास की ऩूस्णाभा का फदन था।
श्रीकृ ष्ण ने फाद भं द्रौऩदी के िीय-हयण के सभम
उनकी राज फिाकय बाई का धभा सनबामा था।।
वास्तु दोष सनवायक मॊि
बवन छोटा होमा फडा मफद बवन भं फकसी कायण से सनभााण भं वास्तु दोष रगयहा हो, तो शास्त्रं भं
उसके सनवायण हेतु वास्तु देवता को प्रसन्न एवॊ सन्तुद्श कयने के सरए अनेक उऩाम का उल्रेख सभरता
हं। उन्हीॊ उऩामो भं से एक हं वास्तु मॊि फक स्थाऩना स्जसे घय-दुकान-ओफपस-पै क्टयी भं स्थात्रऩत
कयने से सॊफॊसधत सभस्त ऩयेशानीओॊ का शभन होकय वास्तु दोष का सनवायण होजाता हं एवॊ बवन भं
सुख सभृत्रद्ध का आगभन होता हं। भूल्म भाि Rs : 730 >> Order Now
25 अगस्त 2014
बाग्म रक्ष्भी फदब्फी
सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक फाधा,
शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩयेशासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ
होसत है, बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), त्रफस्ल्र नार, कारी हल्दी
शॊख, कारी-सफ़े द-रार गुॊजा, इन्द्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दुराब साभग्री
होती है।
भूल्म:- Rs. 1450, 2800, 4600, 6400, 8200, 10900 भं उप्रब्द्ध >> Order Now .
गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
c
कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान
 सिॊतन जोशी
एक फाय फरयाभ सफहत ग्वार फार खेर यहं थे
खेरते-खेरते मशोदा के ऩास ऩहुॉिे औय मशोदाजी से कहा
भाॉ! कृ ष्ण ने आज सभट्टी खाई हं। मशोदा ने कृ ष्ण के
हाथं को ऩकि सरमा औय धभकाने रगी फक तुभने सभट्टी
क्मं खाई! मशोदा को मह बम था फक कहीॊ सभट्टी खाने से
कृ ष्ण कोई योग न रग जाए। भाॉ फक डाॊट से कृ ष्ण तो
इतने बमबीत हो गए थे फक वे भाॉ की ओय आॉख बी नहीॊ
उठा ऩा यहे थे। तफ मशोदा ने कहा तूने एकान्त भं सभट्टी
क्मं खाई! सभट्टी खाते हुए तुजे फरयाभ सफहत औय बी
ग्वार ने देखा हं। कृ ष्ण ने कहा- सभट्टी भंने नहीॊ खाई हं। मे
सबी रोग झुठ फोर यहे हं। मफद आऩको रगता हं भंने सभट्टी खाई हं, तो स्वमॊ भेया भुख देख रे। भाॉ ने कहा मफद
ऐसा है तो तू अऩना भुख खोर। रीरा कयने के सरए फार कृ ष्ण ने अऩना भुख भाॉ के सभऺ खोर फदमा। मशोदा ने जफ
भुख के अॊदय देखते फह उसभं सॊऩूणा त्रवद्व फदखाई ऩिने रगा। अॊतरयऺ, फदशाएॉ, द्रीऩ, ऩवात, सभुद्र, ऩृथ्वी,वामु, त्रवद्युत, ताया
सफहत स्वगारोक, जर, अस्ग्न, वामु, आकाश इत्माफद त्रवसिि सॊऩूणा त्रवद्व एक ही कार भं फदख ऩिा। इतना ही नहीॊ,
मशोदा ने उनके भुख भं ब्रज के साथ स्वमॊ अऩने आऩको बी देखा।
इन फातं से मशोदा को तयह-तयह के तका -त्रवतका होने रगे। क्मा भं स्वप्न देख यही हूॉ! मा देवताओॊ की कोई
भामा हं मा भेयी फुत्रद्ध ही व्माभोह हं मा इस भेये कृ ष्ण का ही कोई स्वाबात्रवक प्रबावऩूणा िभत्काय हं। अन्त भं उन्हंने
मही दृढ़ सनद्ळम फकमा फक अवश्म ही इसी का िभत्काय है औय सनद्ळम ही ईद्वय इसके रूऩ भं अवतरयत हुएॊ हं। तफ
उन्हंने कृ ष्ण की स्तुसत की उस शत्रि स्वरुऩ ऩयब्रह्म को भं नभस्काय कयती हूॉ। कृ ष्ण ने जफ देखा फक भाता मशोदा ने
भेया तत्व ऩूणात् सभझ सरमा हं तफ उन्हंने तुयॊत ऩुि स्नेहभमी अऩनी शत्रि रूऩ भामा त्रफखेय दी स्जससे मशोदा ऺण
भं ही सफकु छ बूर गई। उन्हंने कृ ष्ण को उठाकय अऩनी गोद भं उठा सरमा।
26 अगस्त 2014
शॊख ध्वसन से योग बगाएॊ !
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, फदऩक.ऐस.जोशी
आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा
हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक
प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ
का नाश होता हं।
जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान
वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं,
जो ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ
ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका
भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी
एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ
दोनं तयॊगं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा
देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी
भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय
भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता
हं।
जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ
होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से द्रद्शी गोिय नहीॊ
हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के
प्रबावं को सभझा जा सकता हं।
त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व
ध्वसनमं का छोटे-फिे सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया
प्रबाव ऩिता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ
भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं।
हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-भुसनमं ने अऩने मोगफर एवॊ
अनुसॊधानो का सूक्ष्भ अध्ममन कय के हजायं वषा ऩूवा ही
प्रकृ सत भं सछऩे गृढ़ यहस्मं को जान सरमा था, औय
प्रकृ सत के गृढ़ यहस्मं के ऻान को हभाये ऋत्रष-भुसनमं ने
त्रवसबन्न ग्रॊथं औय शास्त्रं के रुऩ सहेज कय भं प्रदान
फकमा हं। शॊख ध्वसन एवॊ शॊख के त्रवसबन्न राब की शोध
का श्रेम बी हभाये ऋत्रष-भुसनमं को ही जाता हं।
त्रवद्रानं ने शॊख ध्वसन भं सभग्र ब्रह्माॊड को सनफहत
भाना है। उनका भानना हं फक, अस्खर ब्रह्माॊड के सॊस्ऺद्ऱ
रूऩ को प्रकट कयने वारी मफद कोई शत्रि हं तो वह शॊख
ध्वसन है।
ऩौयास्णक कार भं शॊखनाद के भाध्मभ से मुद्धायॊब
की घोषणा औय उत्साहवधान फकमा जाता था।
आध्मास्त्भक कामं भं बी शॊख ध्वसन अऩना त्रवशेष
भहत्व यखती हं।
शास्त्रं भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध भं शॊख
का अत्मसधक उऩमोग हुवा था। मुद्ध के सभम के प्रभुख
भहायसथमं के ऩास जो शॊख थे, उनका उल्रेख इस प्रकाय
फकमा गमा है-
ऩाॊिजन्मॊ रृषीके शो देवदत्तॊ धनञ्जम।
ऩौण्रॊ दध्भौ भहाशॊखॊ बीभकभाा वृकोदय॥
अनन्तत्रवजमभ् याजा कु न्तीऩुिो मुसधत्रद्षय।
नकु र सहदेवद्ळ सुघोषभस्णऩुष्ऩकौ॥
काश्मद्ळ ऩयभेष्वास सशखण्डी ि भहायथ।
धृद्शद्युम्नो त्रवयाटद्ळ सात्मफकद्ळाऩयास्जता्॥
द्रुऩदो द्रौऩदेमाद्ळ सवाश ऩृसथवीऩते।
सौबद्रद्ळ भहाफाहु् शॊखान्दध्भु् ऩृथक्ऩृथक्॥
अथाात ्: श्रीकृ ष्ण बगवान ने ऩाॊिजन्म नाभक, अजुान ने
देवदत्त औय बीभसेन ने ऩंर शॊख फजामा। कुॊ ती ऩुि याजा
मुसधत्रद्षय ने अनन्तत्रवजम शॊख, नकु र ने सुघोष एवॊ
सहदेव ने भस्णऩुष्ऩक नाभक शॊख का नाद फकमा। इसके
अरावा काशीयाज, सशखॊडी, धृद्शद्युम्न, याजा त्रवयाट,
सात्मफक, याजा द्रुऩद, द्रौऩदी के ऩाॉिं ऩुिं औय असबभन्मु
आफद सबी ने अरग-अरग शॊखं का नाद फकमा।
27 अगस्त 2014
भाना जाता हं की मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध बूसभ भं
अद्भुत शौमा औय शत्रि के प्रदशान का आधाय शॊखनाद ही
हं। मही कायण हं की ऩुयातन कार भं मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध
भं शॊखनाद प्रमोग फकमा जाता था। बगवान श्रीकृ ष्ण का
ऩाॊिजन्म नाभक शॊख तो एकदभ अद्भुत औय अफद्रतीम
होने के कायण हीॊ भहाबायत भं त्रवजम का प्रतीक फन
गमा।
रृदम को झॊकृ त कयने, ऩुन् कॊ त्रऩत कयने व
आनस्न्दत कयने भं शॊख ध्वसन का प्रबाव अद्भुत यहा हं।
आज बी जफ फकसी धासभाक कामा मा भाॊगसरक
कामा के दौयान जफ शॊखनाद होता हं तो वहाॊ ऩय
उऩस्स्थत रोगं का तन-भन आनस्न्दत हो जाता हं।
शॊखनाद के त्रवसबन्न प्रबावं का उल्रेख हभं अनेक शास्त्र
एवॊ ग्रॊथं भं सभरता है।
 कु छ कृ त्रषकामा से जुिे रोगं नं अऩने खेतं भं
शॊखनाद द्राया अऩनी पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध कयके
शॊख ध्वसन के भाध्मभ से सपरता प्राद्ऱ की हं।
 त्रवद्रानं का अनुबव हं की पसरं को ऩानी देते सभम
शुब भुहूता भं 108 शॊखोदक (108 शॊखं का जर)
सभरा कय पसर भं देने से पसर के उत्ऩादन भं
वृत्रद्ध होती हं, अनाज के बॊडाय गृह भं कीिं-भकोिे
आफद जीवं से फिाने के सरए प्रसत भॊगरवाय को
शॊखनाद कयना राबप्रद भाना हं।
 शॊखं का जर फनाने हेतु शॊख भं 12 से 24 घॊटे जर
बयकय यखा जाता हं।
 त्रवसबन्न ग्रॊथं एवॊ शास्त्रं भं उल्रेख सभरते हं की
शॊख ध्वसन के प्रबाव से भनुष्म ही नहीॊ वयन ऩशु-
ऩस्ऺमं को बी सम्भोफहत फकमा जा सकता हं।
 तॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की दोष यफहत शॊखनाद की
ध्वसन तयॊग भनुष्म की कुॊ डसरनी एवॊ रुद्रिक्र ऩय
प्रबाव डारती हं व शयीय की सुषुद्ऱ शत्रि जाग्रत होने
रगती हं।
 शास्त्रकायं ने शॊख ध्वसन के अद्भुत प्रबावं का वणा
कयते हुवे फतामा हं की शॊखनाद के प्रबाव से फसधयता
दूय होना सॊबव हं।
 शॊखजर के सनमसभत सेवन से भूकता औय हकराऩन
दूय हो सकता हं।
 मफद गबावसत स्त्री शॊखजर का सनमसभत सेवन कयं तो
होने वारी सॊतान स्वस्थ एवॊ सुॊदय होती हं।
 सनमसभत शॊख ध्वसन का श्रवण कयने से रृदम
अवयोध, रृदम धात (फदर का दौया) नहीॊ होता।
 शॊख पूॉ कने से व्मत्रि के पे पिे शत्रिशारी होते हं,
क्मंफक शॊख पूॉ कने ऩय ऩहरे हवा पे पिं भं जभा
होती हं, फपय उसे भुॉह बयकय शॊख भं पूॉ कते हं। इस
फक्रमा से आॉत, द्वास नरी पे पिे एक साथ काभ कयते हं।
 शॊखनाद सनयॊतय कयने ऩय दभा, खाॉसी, मकृ त आफद
योग जि से नद्श हो जाते हं।
 शॊखजर के सनमसभत सेवन से शीत त्रऩत्त, द्वेत प्रदय,
यि की अल्ऩता आफद योग दूय हो जाते हं।
***
28 अगस्त 2014
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि
फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश
भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दुसयो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं, तफ रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हेतु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩयेशानी से सॊऩन्न हो जाते हं। आज के
बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दूसयो को अऩनी औय खीिने हेतु एक प्रबावशासर िुॊफकत्व को कामभ
यखना असत आवश्मक हो जाता हं। आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस
सरमे सयर उऩाम हं, श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के
धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ
होती हं, स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कं द्र यहता हं।
मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध,
अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती
हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ
सात्रफत हो सकता हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष येखाएॊ, फीज भॊि एवॊ
अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भुत आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं, जो
एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ
स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं!
 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व
ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं।
 त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग
कं फद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय
को प्राद्ऱहोती हं।
 जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना
िाहते हं। उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं।
 ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं।
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श्रीकृ ष्ण फीसा कवि
श्रीकृ ष्ण फीसा कवि को के वर
त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा
जाता हं। कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी
ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो
द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म
मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं।
स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता
व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता
हं। कवि को गरे भं धायण कयने
से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
हं। गरे भं धायण कयने से कवि
हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से
व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं।
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29 अगस्त 2014
कृ ष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व
 सिॊतन जोशी
श्री शुकदेवजी याजा ऩयीस्ऺत ्से कहते हं-
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह।
न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान्स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह
िीणासनष्कृ ता्॥
बावाथा: जो भनुष्म के वर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं
प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं
भं रगा देते हं, वे ऩाऩं से छू ट जाते हं, फपय उन्हं ऩाश
हाथ भं सरए हुए मभदूतं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो
सकते।
अत्रवस्भृसत् कृ ष्णऩदायत्रवन्दमो्
स्ऺणोत्मबद्रस्ण शभॊ तनोसत ि।
सत्वस्म शुत्रद्धॊ ऩयभात्भबत्रिॊ
ऻानॊ ि त्रवऻानत्रवयागमुिभ्॥
बावाथा: श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं का स्भयण सदा फना
यहे तो उसी से ऩाऩं का नाश, कल्माण की प्रासद्ऱ, अन्त्
कयण की शुत्रद्ध, ऩयभात्भा की बत्रि औय वैयाग्ममुि ऻान-
त्रवऻान की प्रासद्ऱ अऩने आऩ ही हो जाती हं।
ऩुॊसाॊ कसरकृ तान्दोषान्द्रव्मदेशात्भसॊबवान्।
सवाान्हरयत सित्तस्थो बगवान्ऩुरुषोत्तभ्॥
बावाथा:बगवान ऩुरुषोत्तभ श्रीकृ ष्ण जफ सित्त भं त्रवयाजते
हं, तफ उनके प्रबाव से कसरमुग के साये ऩाऩ औय द्रव्म,
देश तथा आत्भा के दोष नद्श हो जाते हं।
शय्मासनाटनाराप्रीडास्नानाफदकभासु।
न त्रवदु् सन्तभात्भानॊ वृष्णम् कृ ष्णिेतस्॥
बावाथा: श्रीकृ ष्ण को अऩना सवास्व सभझने वारे बि
श्रीकृ ष्ण भं इतने तन्भम यहते थे फक सोते, फैठते, घूभते,
फपयते, फातिीत कयते, खेरते, स्नान कयते औय बोजन
आफद कयते सभम उन्हं अऩनी सुसध ही नहीॊ यहती थी।
वैयेण मॊ नृऩतम् सशशुऩारऩौण्र-
शाल्वादमो गसतत्रवरासत्रवरोकनाद्यै्।
ध्मामन्त आकृ तसधम् शमनासनादौ
तत्साम्मभाऩुयनुयिसधमाॊ ऩुन् फकभ ्॥
बावाथा: जफ सशशुऩार, शाल्व औय ऩौण्रक आफद याजा
वैयबाव से ही खाते, ऩीते, सोते, उठते, फैठते हय वि श्री
हरय की िार, उनकी सितवन आफद का सिन्तन कयने के
कायण भुि हो गए, तो फपय स्जनका सित्त श्री कृ ष्ण भं
अनन्म बाव से रग यहा है, उन त्रवयि बिं के भुि होने
भं तो सॊदेह ही क्मा हं?
एन् ऩूवाकृ तॊ मत्तद्राजान् कृ ष्णवैरयण्।
जहुस्त्वन्ते तदात्भान् कीट् ऩेशस्कृ तो मथा॥
बावाथा: श्रीकृ ष्ण से द्रेष कयने वारे सभस्त नयऩसतगण
अन्त भं श्री बगवान के स्भयण के प्रबाव से ऩूवा सॊसित
ऩाऩं को नद्श कय वैसे ही बगवद्रूऩ हो जाते हं, जैसे
ऩेशस्कृ त के ध्मान से कीिा तद्रूऩ हो जाता है, अतएव
श्रीकृ ष्ण का स्भयण सदा कयते यहना िाफहए।
त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके -रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ
होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं। एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके -रडकी फक कुॊ डरी का अध्ममन
अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी
प्राद्ऱ कयं।
30 अगस्त 2014
श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय
 सिॊतन जोशी
वसुदेवजी की प्राथाना ऩय मदुओॊ के ऩुयोफहत
भहातऩस्वी गगाािामाजी ब्रज नगयी ऩहुॉिे। उन्हं देखकय
नॊदफाफा अत्मसधक प्रसन्न हुए। उन्हंने हाथ जोिकय
प्रणाभ फकमा औय उन्हं त्रवष्णु तुल्म भानकय उनकी
त्रवसधवत ऩूजा की। इसके ऩद्ळात नॊदजी ने उनसे कहा
आऩ कृ प्मा भेये इन दोनं फच्िं का नाभकयण सॊस्काय
कय दीस्जए।
इस ऩय गगाािामाजी ने कहा फक ऐसा कयने भं
कु छ अििनं हं। भं मदुवॊसशमं का ऩुयोफहत हूॉ, मफद भं
तुम्हाये इन ऩुिं का नाभकयण सॊस्काय कय दूॉ तो रोग
इन्हं देवकी का ही ऩुि भानने रगंगे, क्मंफक कॊ स तो
ऩहरे से फह ऩाऩभम फुत्रद्ध वारा हं। वह सवादा सनयथाक
फातं ही सोिता है। दूसयी ओय तुम्हायी व वसुदेव की
भैिी है।
अफ भुख्म फात मह हं फक देवकी की आठवीॊ
सॊतान रिकी नहीॊ हो सकती क्मंफक मोगभामा ने कॊ स
से मही कहा था अये ऩाऩी भुझे भायने से क्मा पामदा
है? वह सदैव मही सोिता है फक कहीॊ न कहीॊ भुझे
भायने वारा अवश्म उत्ऩन्न हो िुका हं। मफद भं
नाभकयण सॊस्काय कयवा दूॉगा तो भुझे ऩूणा आशा हं फक
वह भेये फच्िं को भाय डारेगा औय हभ रोगं का
अत्मसधक असनद्श कयेगा।
नॊदजी ने गगाािामाजी से कहा मफद ऐसी फात है
तो फकसी एकान्त स्थान भं िरकय त्रवसध ऩूवाक इनके
फद्रजासत सॊस्काय कयवा दीस्जए। इस त्रवषम भं भेये अऩने
आदभी बी न जान सकं गे। नॊद की इन फातं को
सुनकय गगाािामा ने एकान्त भं सछऩकय फच्िे का
नाभकयण कयवा फदमा। नाभकयण कयना तो उन्हं अबीद्श
ही था, इसीसरए वे आए थे।
गगाािामाजी ने वसुदेव से कहा योफहणी का मह
ऩुि गुणं से अऩने रोगं के भन को प्रसन्न कयेगा।
अत् इसका नाभ याभ होगा। इसी नाभ से मह ऩुकाया
जाएगा। इसभं फर की असधकता असधक होगी। इससरए
इसे रोग फर बी कहंगे। मदुवॊसशमं की आऩसी पू ट
सभटाकय उनभं एकता को मह स्थात्रऩत कयेगा, अत्
रोग इसे सॊकषाण बी कहंगे। अत् इसका नाभ फरयाभ
होगा।
अफ उन्हंने मशोदा औय नॊद को रक्ष्म कयके
कहा- मह तुम्हाया ऩुि प्रत्मेक मुग भं अवताय ग्रहण
कयता यहता हं। कबी इसका वणा द्वेत, कबी रार, कबी
ऩीरा होता है। ऩूवा के प्रत्मेक मुगं भं शयीय धायण
कयते हुए इसके तीन वणा हो िुके हं। इस फाय
कृ ष्णवणा का हुआ है, अत् इसका नाभ कृ ष्ण होगा।
तुम्हाया मह ऩुि ऩहरे वसुदेव के महाॉ जन्भा हं, अत्
श्रीभान वासुदेव नाभ से त्रवद्रान रोग ऩुकायंगे।
तुम्हाये ऩुि के नाभ औय रूऩ तो सगनती के ऩये
हं, उनभं से गुण औय कभा अनुरूऩ कु छ को भं जानता
हूॉ। दूसये रोग मह नहीॊ जान सकते। मह तुम्हाये गोऩ
गौ एवॊ गोकु र को आनॊफदत कयता हुआ तुम्हाया
कल्माण कयेगा। इसके द्राया तुभ बायी त्रवऩत्रत्तमं से बी
भुि यहोगे।
इस ऩृथ्वी ऩय जो बगवान भानकय इसकी बत्रि
कयंगे उन्हं शिु बी ऩयास्जत नहीॊ कय सकं गे। स्जस
तयह त्रवष्णु के बजने वारं को असुय नहीॊ ऩयास्जत कय
सकते। मह तुम्हाया ऩुि संदमा, कीसता, प्रबाव आफद भं
त्रवष्णु के सदृश होगा। अत् इसका ऩारन-ऩोषण ऩूणा
सावधानी से कयना। इस प्रकाय कृ ष्ण के त्रवषम भं
आदेश देकय गगाािामा अऩने आश्रभ को िरे गए।
31 अगस्त 2014
॥ श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥
दोहा
फॊशी शोसबत कय भधुय, नीर जरद तन श्माभ।
अरुणअधयजनु त्रफम्फपर, नमनकभरअसबयाभ॥
ऩूणा इन्द्र, अयत्रवन्द भुख, ऩीताम्फय शुब साज।
जम भनभोहन भदन छत्रव, कृ ष्णिन्द्र भहायाज॥
जम मदुनॊदन जम जगवॊदन। जम वसुदेव देवकी नन्दन॥
जम मशुदा सुत नन्द दुराये। जम प्रबु बिन के दृग ताये॥
जम नट-नागय, नाग नथइमा॥ कृ ष्ण कन्हइमा धेनु ियइमा॥
ऩुसन नख ऩय प्रबु सगरयवय धायो। आओ दीनन कद्श सनवायो॥
वॊशी भधुय अधय धरय टेयौ। होवे ऩूणा त्रवनम मह भेयौ॥
आओ हरय ऩुसन भाखन िाखो। आज राज बायत की याखो॥
गोर कऩोर, सिफुक अरुणाये। भृदु भुस्कान भोफहनी डाये॥
यास्जत यास्जव नमन त्रवशारा। भोय भुकु ट वैजन्तीभारा॥
कुॊ डर श्रवण, ऩीत ऩट आछे। कफट फकॊ फकणी काछनी काछे॥
नीर जरज सुन्दयतनु सोहे। छत्रफरस्ख, सुयनय भुसनभन भोहे॥
भस्तक सतरक, अरक घुॉघयारे। आओ कृ ष्ण फाॊसुयी वारे॥
करय ऩम ऩान, ऩूतनफह ताय्मो। अका फका कागासुय भाय्मो॥
भधुवन जरतअसगन जफज्वारा। बैशीतररखतफहॊ नॊदरारा॥
सुयऩसत जफ ब्रज िढ़्मो रयसाई। भूसय धाय वारय वषााई॥
रगत रगत व्रज िहन फहामो। गोवधान नख धारय फिामो॥
रस्ख मसुदा भनभ्रभ असधकाई। भुखभॊह िौदह बुवन फदखाई॥
दुद्श कॊ स असत उधभ भिामो। कोफट कभर जफ पू र भॊगामो॥
नासथ कासरमफहॊ तफ तुभ रीन्हं। ियण सिह्न दै सनबाम कीन्हं॥
करय गोत्रऩन सॊग यास त्रवरासा। सफकी ऩूयण कयी असबराषा॥
के सतक भहा असुय सॊहाय्मो। कॊ सफह के स ऩकफि दै भाय्मो॥
भात-त्रऩता की फस्न्द छु िाई। उग्रसेन कहॉ याज फदराई॥
भफह से भृतक छहं सुत रामो। भातु देवकी शोक सभटामो॥
बौभासुय भुय दैत्म सॊहायी। रामे षट दश सहसकु भायी॥
दै बीभफहॊ तृण िीय सहाया। जयाससॊधु याऺस कहॉ भाया॥
असुय फकासुय आफदक भाय्मो। बिन के तफ कद्श सनवाय्मो॥
दीन सुदाभा के दु्ख टाय्मो। तॊदुर तीन भूॊठ भुख डाय्मो॥
प्रेभ के साग त्रवदुय घय भाॉगे। दुमोधन के भेवा त्मागे॥
रखी प्रेभ की भफहभा बायी। ऐसे श्माभ दीन फहतकायी॥
बायत के ऩायथ यथ हाॉके । सरमे िक्र कय नफहॊ फर थाके ॥
सनज गीता के ऻान सुनाए। बिन रृदम सुधा वषााए॥
भीया थी ऐसी भतवारी। त्रवष ऩी गई फजाकय तारी॥
याना बेजा साॉऩ त्रऩटायी। शारीग्राभ फने फनवायी॥
सनजभामा तुभ त्रवसधफहॊ फदखामो। उय ते सॊशम सकर सभटामो॥
तफ शत सनन्दा करय तत्कारा। जीवन भुि बमो सशशुऩारा॥
जफफहॊ द्रौऩदी टेय रगाई। दीनानाथ राज अफ जाई॥
तुयतफह वसन फने नॊदरारा। फढ़े िीय बै अरय भुॉह कारा॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइमा। डूफत बॊवय फिावइ नइमा॥
'सुन्दयदास' आस उय धायी। दमा दृत्रद्श कीजै फनवायी॥
नाथ सकर भभ कु भसत सनवायो। ऺभहु फेसग अऩयाध हभायो॥
खोरो ऩट अफ दशानदीजै। फोरो कृ ष्ण कन्हइमा की जै॥
दोहा
मह िारीसा कृ ष्ण का, ऩाठ कयै उय धारय।
अद्श ससत्रद्ध नवसनसध पर, रहै ऩदायथ िारय॥
रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री
भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि)श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
मॊि के त्रवषम भं असधक हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
32 अगस्त 2014
त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि
त्रवप्रऩत्न्म ऊिु्
त्वॊ ब्रह्म ऩयभॊ धाभ सनयीहो सनयहॊकृ सत्।
सनगुाणद्ळ सनयाकाय् साकाय् सगुण् स्वमभ् ॥१॥
सास्ऺरूऩद्ळ सनसराद्ऱ् ऩयभात्भा सनयाकृ सत्।
प्रकृ सत् ऩुरुषस्त्वॊ ि कायणॊ ि तमो् ऩयभ् ॥२॥
सृत्रद्शस्स्थत्मॊत त्रवषमे मे ि देवास्त्रम् स्भृता्।
ते त्वदॊशा् सवाफीजा ब्रह्म-त्रवष्णु-भहेद्वया् ॥३॥
मस्म रोम्नाॊ ि त्रववये िाऽस्खरॊ त्रवद्वभीद्वय्।
भहात्रवयाण्भहात्रवष्णुस्तॊ तस्म जनको त्रवबो ॥४॥
तेजस्त्वॊ िाऽत्रऩ तेजस्वी ऻानॊ ऻानी ि तत्ऩय्।
वेदेऽसनवािनीमस्त्वॊ कस्त्वाॊ स्तोतुसभहेद्वय् ॥५॥
भहदाफदसृत्रद्शसूिॊ ऩॊितन्भािभेव ि।
फीजॊ त्वॊ सवाशत्रिनाॊ सवाशत्रिस्वरूऩक् ॥६॥
सवाशिीद्वय् सवा् सवाशक्त्माश्रम् सदा।
त्वभनीह् स्वमॊज्मोसत् सवाानन्द् सनातन् ॥७॥
अहो आकायहीनस्त्वॊ सवात्रवग्रहवानत्रऩ।
सवेस्न्द्रमाणाॊ त्रवषम जानासस नेस्न्द्रमी बवान ् ।८॥
सयस्वती जडीबूता मत ्स्तोिे मस्न्नरूऩणे।
जडीबूतो भहेशद्ळ शेषो धभो त्रवसध् स्वमभ् ॥९॥
ऩावाती कभरा याधा सात्रविी देवसूयत्रऩ। ॥११॥
इसत ऩेतुद्ळ ता त्रवप्रऩत्न्मस्तच्ियणाम्फुजे।
अबमॊ प्रददौ ताभ्म् प्रसन्नवदनेऺण् ॥१२॥
त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ स्तोिॊ ऩूजाकारे ि म् ऩठेत ्। स गसतॊ त्रवप्रऩत्नीनाॊ
रबते नाऽि सॊशम् ॥१३॥
॥ इसत श्रीब्रह्मवैवते त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सभाद्ऱभ्॥
इस श्रीकृ ष्णस्तोि का सनमसभत ऩाठ कयने से
बगवान्श्रीकृ ष्ण अऩने बि ऩय सन्सन्देह
प्रसन्न होते है। मह स्तोि व्मत्रि अबम को
प्रदान कयने वारा हं।
33 अगस्त 2014
प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि
 सिॊतन जोशी
भॊि:-
"ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ प्राण वल्रबाम सौ् सौबाग्मदाम
श्रीकृ ष्णाम स्वाहा।"
त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीप्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊन्िस्म बगवान ्
श्रीवेदव्मास ऋत्रष्,
गामिी छॊद्-, श्रीकृ ष्ण-ऩयभात्भा देवता, क्रीॊ फीजॊ, श्रीॊ शत्रि्,
ऐॊ कीरकॊ , ॐ व्माऩक्, भभ सभस्त-क्रेश-ऩरयहाथं, ितुवागा-
प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोग्।
ऋष्माफद न्मास्- श्रीवेदव्मास ऋषमे नभ् सशयसस, गामिी
छॊदसे नभ् भुखे, श्रीकृ ष्ण ऩयभात्भा देवतामै नभ् रृफद, क्रीॊ
फीजाम नभ् गुह्ये, श्रीॊ शिमे नभ् नाबौ, ऐॊ कीरकाम नभ्
ऩादमो, ॐ व्माऩकाम नभ् सवााङ्गे, भभ सभस्त क्रेश
ऩरयहाथं, ितुवागा प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोगाम
नभ् अॊजरौ।
कय-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ अॊगुद्षाभ्माॊ नभ् प्राणवल्रबाम
तजानीभ्माॊ स्वाहा, सौ् भध्मभाभ्माॊ वषट्, सौबाग्मदाम
अनासभकाभ्माॊ हुॊ श्रीकृ ष्णाम कसनत्रद्षकाभ्माॊ वौषट्, स्वाहा
कयतरकयऩृद्षाभ्माॊ पट्।
अॊग-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ रृदमाम नभ्, प्राण वल्रबाम
सशयसे स्वाहा, सौ् सशखामै वषट्, सौबाग्मदाम सशखामै
कविाम हुॊ, श्रीकृ ष्णाम नेि-िमाम वौषट्, स्वाहा अस्त्राम पट्।
ध्मान्- "कृ ष्णॊ जगन्भऩहन-रुऩ-वणं, त्रवरोक्म
रज्जाऽऽकु सरताॊ स्भयाढ्माभ्।
भधूक-भारा-मुत-कृ ष्ण-देहॊ, त्रवरोक्म िासरॊग्म हरयॊ
स्भयन्तीभ्।।"
बावाथा: सॊसाय को भुग्ध कयने वारे बगवान ् कृ ष्ण के रुऩ-यॊग
को देखकय प्रेभ ऩूणा होकय गोत्रऩमाॉ रज्जाऩूवाक व्माकु र होती
हं औय भन-ही-भन हरय को स्भयण कयती हुई बगवान ् कृ ष्ण
की भधूक-ऩुष्ऩं की भारा से त्रवबुत्रषत देह का आसरॊगन कयती
हं। इस भॊि का त्रवसध-त्रवधान से १,००,००० जाऩ कयने का
त्रवधान हं।
 क्मा आऩके फच्िे कु सॊगती के सशकाय हं?
 क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं?
 क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं?
घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कु सॊगती से छु डाने हेतु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने
घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। >> Ask Now
मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका इस कय सकते हं।
GURUTVA KARYALAY
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34 अगस्त 2014
ब्रह्मा यसित कृ ष्णस्तोि
ब्रह्मोवाि :
यऺ यऺ हये भाॊ ि सनभग्नॊ काभसागये।
दुष्कीसताजरऩूणे ि दुष्ऩाये फहुसॊकटे ॥१॥
बत्रित्रवस्भृसतफीजे ि त्रवऩत्सोऩानदुस्तये।
अतीव सनभारऻानिऺु्-प्रच्छन्नकायणे ॥२॥
जन्भोसभा-सॊगसफहते मोत्रषन्नक्राघसॊकु रे।
यसतस्रोोत्सभामुिे गम्बीये घोय एव ि ॥३॥
प्रथभासृतरूऩे ि ऩरयणाभत्रवषारमे।
मभारमप्रवेशाम भुत्रिद्रायासतत्रवस्तृतौ ॥४॥
फुद्ध्मा तयण्मा त्रवऻानैरुद्धयास्भानत् स्वमभ ्।
स्वमॊ ि त्व कणाधाय् प्रसीद भधुसूदन ॥५॥
भफद्रधा् कसतसिन्नाथ सनमोज्मा बवकभास्ण।
सस्न्त त्रवद्वेश त्रवधमो हे त्रवद्वेद्वय भाधव ॥६॥
न कभाऺेिभेवेद ब्रह्मरोकोऽमभीस्प्सत्।
तथाऽत्रऩ न स्ऩृहा काभे त्वद्भत्रिव्मवधामके ॥७॥
हे नाथ करुणाससन्धो दीनफन्धो कृ ऩाॊ कु रु।
त्वॊ भहेश भहाऻाता दु्स्वप्नॊ भाॊ न दशाम ॥८॥
इत्मुक्त्वा जगताॊ धाता त्रवययाभ सनातन्।
ध्मामॊ ध्मामॊ भत्ऩदाब्जॊ शद्वत ्सस्भाय भासभसत ॥९॥
ब्रह्मणा ि कृ तॊ स्तोिॊ बत्रिमुिद्ळ म् ऩठेत ्।
स िैवाकभात्रवषमे न सनभग्नो बवेद् ध्रुवभ ् ॥१०॥
भभ भामाॊ त्रवसनस्जात्म स ऻानॊ रबते ध्रुवभ ्।
इह रोके बत्रिमुिो भद्भिप्रवयो बवेत ् ॥११॥
॥ इसत श्रीब्रह्मदेवकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सम्ऩूणाभ ्॥
***
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश
बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के कायक ग्रह फुध के असधऩसत
देवता हं। ऩन्ना गणेश फुध के सकायात्भक प्रबाव को फठाता हं एवॊ
नकायात्भक प्रबाव को कभ कयता हं।. ऩन्न गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्ध
भं वृत्रद्ध होती हं। फच्िो फक ऩढाई हेतु बी त्रवशेष पर प्रद हं ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव
से फच्िे फक फुत्रद्ध कू शाग्र होकय उसके आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती हं। भानससक
अशाॊसत को कभ कयने भं भदद कयता हं, व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान
कयती हं, व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित कयती हं। स्जगय, पे पिे, जीब, भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद
योग भं सहामक होते हं। कीभती ऩत्थय भयगज के फने होते हं। Rs.550 से Rs.8200 तक >> Order Now
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वास्तु उऩाम
हेतु सवाश्रेद्ष
35 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध मॊि गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे
त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा के अनुसाय फनवा के भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते है. स्जसे
साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब
प्राद्ऱ कय सकते है. स्जस भे प्रसिन मॊिो सफहत हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनाए गमे मॊि बी सभाफहत है. इसके
अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है. गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि
अखॊफडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 के येट गोल्ड (सोने) भे फनवाए
जाते है. मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कये गुरुत्व कामाारम
Ask Now
श्रीकृ ष्णाद्शकभ्
ऩावात्मुवाि-
कै राससशखये यम्मे गौयी ऩृच्छसत शॊकयभ ्।
ब्रह्माण्डास्खरनाथस्त्वॊ सृत्रद्शसॊहायकायक्॥१॥
त्वभेव ऩूज्मसेरौकै ब्राह्मत्रवष्णुसुयाफदसब्।
सनत्मॊ ऩठसस देवेश कस्म स्तोिॊ भहेद्वय्॥२॥
आद्ळमासभदभत्मन्तॊ जामते भभ शॊकय।
तत्प्राणेश भहाप्राऻ सॊशमॊ सछस्न्ध शॊकय॥३॥
श्री भहादेव उवाि-
धन्मासस कृ तऩुण्मासस ऩावासत प्राणवल्रबे।
यहस्मासतयहस्मॊ ि मत्ऩृच्छसस वयानने॥४॥
स्त्रीस्वबावान्भहादेत्रव ऩुनस्त्वॊ ऩरयऩृच्छसस।
गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥५॥
दत्ते ि ससत्रद्धहासन् स्मात्तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत ्।
इदॊ यहस्मॊ ऩयभॊ ऩुरुषाथाप्रदामकभ ्॥६॥
धनयत्नौघभास्णक्मॊ तुयॊगॊ गजाफदकभ ्।
ददासत स्भयणादेव भहाभोऺप्रदामकभ ्॥७॥
तत्तेऽहॊ सॊप्रवक्ष्मासभ श्रृणुष्वावफहता त्रप्रमे।
मोऽसौ सनयॊजनो देवस्द्ळत्स्वरूऩी जनादान्॥८॥
सॊसायसागयोत्तायकायणाम सदा नृणाभ ्।
श्रीयॊगाफदकरूऩेण िैरोक्मॊ व्माप्म सतद्षसत॥९॥
ततो रोका भहाभूढा त्रवष्णुबत्रित्रववस्जाता्।
सनद्ळमॊ नासधगच्छस्न्त ऩुननाायामणो हरय्॥१०॥
सनयॊजनो सनयाकायो बिानाॊ प्रीसतकाभद्।
वृदावनत्रवहायाम गोऩारॊ रूऩभुद्रहन ्॥११॥
भुयरीवादनाधायी याधामै प्रीसतभावहन ्।
अॊशाॊशेभ्म् सभुन्भील्म ऩूणारूऩकरामुत्॥१२॥
श्रीकृ ष्णिन्द्रो बगवान्नन्दगोऩवयोद्यत्।
धरयणीरूत्रऩणी भाता मशोदानन्ददासमनी॥१३॥
द्राभ्माॊ प्रामासितो नाथो देवक्माॊ वसुदेवत्।
ब्रह्मणाऽभ्मसथातो देवो देवैयत्रऩ सुयेद्वरय॥१४॥
जातोऽवन्माॊ भुकु न्दोऽत्रऩ भुयरीवेदयेसिका।
तमासाद्धा वि्कृ त्वा ततो जातो भहीतरे॥१५॥
सॊसायसायसवास्वॊ श्माभरॊ भहदुज्ज्वरभ ्।
एतज्ज्मोसतयहॊ वेद्यॊ सिन्तमासभ सनातनभ ्॥१६॥
गौयतेजो त्रफना मस्तु श्माभतैज् सभिामेत ्।
जऩेद्रा ध्मामते वात्रऩ स बवेत्ऩातकी सशवे॥१७॥
स ब्रह्महासुयाऩी ि स्वणास्तेमी ि ऩॊिभ्।
एतैदोषैत्रवासरप्मे तेजोबेदान्भहेद्वरय।१८॥
तस्भाज्ज्मोसतयबूद्द्द्रेधा याधाभाधवरूऩकभ ्।
तस्भाफददॊ भहादेत्रव गोऩारेनैव बात्रषतभ ्॥१९॥
दुवााससो भुनेभोहे कासताक्माॊ यासभण्डरे।
तत् ऩृद्शवती याधा सन्देहॊ बेदभात्भन्॥२०॥
सनयॊजनात्सभुत्ऩन्नॊ भमाऽधीतॊ जगन्भसम।
श्रीकृ ष्णेन तत् प्रोिॊ याधामै नायदाम ि॥२१॥
ततो नायदत् सवा त्रवयरा वैष्णवास्तथा।
करौ जानस्न्त देवेसश गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥२२॥
शठाम कृ ऩणामाथ दास्म्बकाम सुयेद्वरय।
ब्रह्महत्माभवाप्नोसत तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत ्॥२३॥
36 अगस्त 2014
भनोकाभना ऩूसता हेतु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि
 सिॊतन जोशी
भूर भॊि :
कृॊ कृ ष्णाम नभ्
मह बगवान कृ ष्ण का भूरभॊि हं। इस भूर भॊि के
सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भं सबी
फाधाओॊ एवॊ कद्शं से भुत्रि सभरती हं एवॊ सुख फक प्रासद्ऱ
होती हं।
सद्ऱदशाऺय भॊि:
ॐ श्रीॊ नभ् श्रीकृ ष्णाम ऩरयऩूणातभाम स्वाहा
मह बगवान कृ ष्ण का सत्तया अऺय का हं। इस भूर भॊि
के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को भॊि ससद्ध हो जाने
के ऩद्ळमात उसे जीवन भं सफकु छ प्राद्ऱ होता हं।
सद्ऱाऺय भॊि:
गोवल्रबाम स्वाहा
इस सात अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से
जीवन भं सबी ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं।
अद्शाऺय भॊि:
गोकु र नाथाम नभ्
इस आठ अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से
व्मत्रि फक सबी इच्छाएॉ एवॊ असबराषाए ऩूणा होती हं।
दशाऺय भॊि:
क्रीॊ ग्रं क्रीॊ श्माभराॊगाम नभ्
इस दशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से सॊऩूणा
ससत्रद्धमं की प्रासद्ऱ होती हं।
द्रादशाऺय भॊि:
ॐ नभो बगवते श्रीगोत्रवन्दाम
इस कृ ष्ण द्रादशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से इद्श
ससद्धी की प्रासद्ऱ होती हं।
तेईस अऺय भॊि:
ॐ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ श्रीकृ ष्णाम गोत्रवॊदाम
गोऩीजन वल्रबाम श्रीॊ श्रीॊ श्री
मह तेईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक
सबी फाधाएॉ स्वत् सभाद्ऱ हो जाती हं।
अट्ठाईस अऺय भॊि:
ॐ नभो बगवते नन्दऩुिाम
आनन्दवऩुषे गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा
मह अट्ठाईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि
को सभस्त असबद्श वस्तुओॊ फक प्रासद्ऱ होती हं।
उन्तीस अऺय भॊि:
रीरादॊड गोऩीजनसॊसिदोदाण्ड
फाररूऩ भेघश्माभ बगवन त्रवष्णो स्वाहा।
मह उन्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से स्स्थय
रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती है।
फत्तीस अऺय भॊि:
नन्दऩुिाम श्माभराॊगाम फारवऩुषे
कृ ष्णाम गोत्रवन्दाम गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा।
मह फत्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक
सभस्त भनोकाभनाएॉ ऩूणा होती हं।
तंतीस अऺय भॊि:
ॐ कृ ष्ण कृ ष्ण भहाकृ ष्ण सवाऻ त्वॊ प्रसीद भे।
यभायभण त्रवद्येश त्रवद्याभाशु प्रमच्छ भे॥
मह तंतीस अऺय के सनमसभत जाऩ कयने से सभस्त
प्रकाय की त्रवद्याएॊ सन्सॊदेह प्राद्ऱ होती हं।
मह श्रीकृ ष्ण के तीव्र प्रबावशारी भॊि हं। इन भॊिं के
सनमसभत जाऩ से व्मत्रि के जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ
सौबाग्म की प्रासद्ऱ होती हं।
37 अगस्त 2014
कृ ष्ण भॊि
बगवान श्री कृ ष्ण से सॊफॊधी भॊि तो शास्त्रं भं बये ऩडे हं।
रेफकन जन साधायण भं कु छ खास भॊिं का ही प्रिरन
औय अत्मासधक भहत्व हं।
ॐ कृ ष्णाम वासुदेवाम हयमे ऩयभात्भने।
प्रणत् क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्॥
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय
स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि के
जीवन भं फकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ आते।
ॐ नभ् बगवते वासुदेवाम कृ ष्णाम
क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय
स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से
आकस्स्भक सॊकट से भुत्रि सभरसत हं।
हये कृ ष्ण हये कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हये हये।
हये याभ हये याभ, याभ-याभ हये हये।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय
स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि को
जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो एवॊ भोऺ प्रासद्ऱ होती हं।
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री भॊि ससद्ध भारा
हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800 स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250
ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800 सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250, त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460
भामा जार- Rs- 251, 551, 751 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280
इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050 हल्दी भारा - Rs- 150, 280
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730
हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111 ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, वैजमॊती भारा Rs- 100,190
गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 1100
(असत दुराब फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं उऩरब्ध)
भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं।
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38 अगस्त 2014
ऩमूाषण का भहत्व
 सिॊतन जोशी
जैन धभा के अनुमामी ऩमूाषण ऩवा को जीव की आत्भ शुत्रद्ध का भागा फताते हं। जैन भुसनजनो के अनुसाय
ऩमूाषण ऩवा इद्श आयाधना औय ऺभा का ऩवा बी हं। ऩमूाषण को भुख्मत: भनुष्म के ऩुनसनभााण का द्योतक भानाजाता हं।
ऩमूाषण भं भनुष्म अऩने सबतय की त्रवकृ सतमं का त्माग कयता हं।
ऩमूाषण के फदनं भं श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ब्रह्मिमा का ऩारन, यात्रि बोज त्माग, ससित्त का त्माग यखते हं। व्रत-
उऩवास, साभसमक-प्रसतक्रभण, प्रविन-श्रवण आफद के भाध्मभ से इन फदनं असघक से असघक सभम धभा ध्मान भं
व्मतीत फकमा जाता हं।
ऩमूाषण के फदन श्रावक-श्रात्रवकाएॊ उऩवास यखते हं औय स्वमॊ के ऩाऩं की आरोिना कयते हुए बत्रवष्म भं उनसे
फिने की प्रसतऻा कयते हं। इसके साथ ही वे िौयासी राख मोसनमं भं त्रवियण कय यहे, सभस्त जीवं से ऺभा भाॉगते
हुए मह सूसित कयते हं फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है।
श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ऩयोऺ रूऩ से वे मह सॊकल्ऩ कयते हं फक वे प्रकृ सत भं कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कयंगे। भन, विन
औय कामा से जानते मा अजानते वे फकसी बी फहॊसा की गसतत्रवसध भं बाग न तो स्वमॊ रंगे, न दूसयं को रेने को
कहंगे औय न रेने वारं का अनुभोदन कयंगे। मह आद्वासन देने के सरए फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है, वे मह
बी घोत्रषत कयते हं फक उन्हंने त्रवद्व के सभस्त जीवं को ऺभा कय फदमा है औय उन जीवं को ऺभा भाॉगने वारे से
डयने की जरूयत नहीॊ है।
ऺभा देने से भनुष्म अन्म सभस्त जीवं को अबमदान देते हं औय उनकी यऺा कयने का सॊकल्ऩ रेते हं। तफ
व्मत्रि सॊमभ औय त्रववेक का अनुसयण कयंगे, आस्त्भक शाॊसत अनुबव कयंगे औय सबी जीवं औय ऩदाथं के प्रसत भैिी
बाव यखंगे। आत्भा तबी शुद्ध यह सकती है जफ वह अऩने सेफाहय हस्तऺेऩ न कये औय फाहयी तत्व से त्रविसरत न हो।
ऺभा-बाव जैन धभा का भूरभॊि है।
जैन धभा भं द्वेताम्फय भूसताऩूजक ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "कल्ऩसूि" ऩढ़ा व सुना जाता हं।
जफफक जैन धभा भं स्थानकवासी ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "अन्तकदृशा सूि" का वािन फकमा जाता हं।
39 अगस्त 2014
श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि)
 सिॊतन जोशी
नवकाय भॊि सभस्त जैन धभाावरॊत्रफमो का भुख्म भॊि है।
नभो अरयहॊताणॊ
नभो ससद्धाणॊ
नभो आमरयमाणॊ
नभो उवज्झामाणॊ
नभो रोएसव्वसाहूणॊ
एसो ऩॊि नभुक्कायो
सव्व ऩावप्ऩणासणो
भॊगराणॊ ि सव्वेससॊ
ऩढभॊ हवई भॊगरॊ
अथा:
भं अरयहॊत बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं ससद्ध बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं आिामा बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं उऩाध्माम बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं रोक भं यहे हुए सबी साधु बगवॊतं को नभन कयता
हूॊ।
इन ऩाॊिं को फकमा हुआ नभस्काय
सबी ऩाऩं को नद्श कयता हं।
एवॊ सबी भॊगरं भं बी
प्रथभ (श्रेद्ष) भॊगर हं।
जैन भुसनमं के भत से नवकाय भहाभॊि जैन धभा
का ससद्ध एवॊ अत्मॊत प्रबावशारी भॊि हं। इस भॊि भं
सभस्त रयत्रद्धमाॉ औय ससत्रद्धमाॉ त्रवद्यभान हं। हय जैन धभा
के अनुमामी नवकाय भॊि का जऩ कयता हं।
नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि भं स्जस
ऩयभेद्षी बगवन्तं की आयाधना की जाती है उन बगवन्तं
भं तऩ, त्माग, सॊमभ, वैयाग्म इत्माफद सास्त्वक गुण होते
हं। नवकाय भॊि के भाध्मभ से अरयहॊत, ससद्ध, आिामा,
उऩाध्माम औय साधु, इन ऩाॉि बगवॊतं को ऩयभ इद्श भाना
हं। इससरमे इनको नभन कयने की त्रवसध को नवकाय
भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि कहा जाता है। वैसे तो
हय भॊि अऩने आऩ भं यहस्म सरमे होता है, ऩयॊतु नवकाय
भहाभॊि तो ऩयभ यहस्मभम हं।
नवकाय भहाभॊि के असत फदव्म प्रताऩ से साधक
के सभस्त दु्ख सुख भं फदर जाता हं।
जैन त्रवद्रानो के भत से नवकाय भॊि के स्भयण,
सिन्तन, भनन औय उच्िायण से ही भनुष्म के जन्भ-
जन्भाॊतयं के ऩाऩं से भुि हो कय उसे शाद्वत सुख प्राद्ऱ
होता हं।
नवकाय भॊि जऩ के राब
40 अगस्त 2014
 जफ कोई व्मत्रि श्रद्धा ऩूणा बाव से नवकाय भॊि का
के वर एक अऺय उच्ियण कयता हं, तो उसके 7
सागयोऩभ स्जतने ऩाऩो का नाश होता हं।
 जफ कोई व्मत्रि "नभो अरयहॊताणॊ" का उच्ियण कयत्ता
हं, तो उसके 50 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।
 जफ कोई व्मत्रि ऩूया नवकाय भॊि जऩता हं, तो उसके
500 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।
 मफद कोई व्मत्रि प्रात् कार उठकय 8 नवकाय भॊि
जऩता हं, तो उसके 4000 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श
होते हं।
 सॊऩूणा नवकाय भॊि की 1 भारा सगनने से 54000
सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।
 (सागयोऩभ अथाात ् स्जसे सगनने भं कफठनाई हो इतने
अयफं वषा।)
 गबावती स्स्त्रमं के सरए इस भॊि का जाऩ कयना फच्िे
के सरमे असत उत्तभ हं।
 जन्भ के सभम मफद फारक के कान भं मह भॊि
सुनामा जामे तो उसे जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ होती
हं।
 मफद फकसी जीव को भृत्मु के सभम नवकाय भॊि
सुनामा जामे तो उसे सदगसत प्राद्ऱ होती हं।
 नवकाय भॊि की भफहभा अनॊत व अऩाय हं इसी सरमे
नवकाय भॊि को शत्रिदामक, त्रवध्नत्रवनाशक, अत्मॊत
प्रबावशारी व िभत्कायी हं।
देवदशान स्तोिभ्
दशानॊ देवदेवस्म, दशानॊ ऩाऩनाशनभ्।
दशानॊ स्वगासोऩानॊ, दशानॊ भोऺसाधनभ्।1।
दशानेन स्जनेन्द्राणाॊ, साधूनाॊ वॊदनेन ि।
न सियॊ सतद्षते ऩाऩॊ, सछद्रहस्ते मथोदकभ्।2।
वीतयागभुखॊ द्रष्ट्वा, ऩद्मयागसभप्रबॊ।
जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ दशानेन त्रवनश्मसत।3।
दशानॊ स्जनसूमास्म, सॊसाय-ध्वान्त-नाशनॊ।
फोधनॊ सित्त-ऩद्मस्म, सभस्ताथा-प्रकाशनभ्।4।
दशानॊ स्जनिॊद्रस्म, सद्धभााभृत-वषाणभ्।
जन्भ-दाह-त्रवनाशाम, वद्धानॊ सुख-वारयधे्।5।
जीवाफद तत्त्व प्रसतऩादकाम, सम्मक्त्व-भुख्माद्श-गुणाणावाम।
प्रशाॊत-रुऩाम फदगम्फयाम, देवासधदेवाम नभो स्जनाम ।6।
सिदानन्दैक-रुऩाम, स्जनाम ऩयभात्भने।
ऩयभात्भ-प्रकाशाम, सनत्मॊ ससद्धात्भने नभ्।7।
अन्मथा शयणॊ नास्स्त, त्वभेव शयणॊ भभ।
तस्भात्कारुण्म-बावेन, यऺ यऺ स्जनेद्वय।8।
न फह िाता न फह िाता, न फह िाता जगत्िमे।
वीतयागात्ऩयो देवो, न बूतो न बत्रवष्मसत ।9।
स्जनेबात्रि् स्जनेबात्रि् स्जनेबात्रि् फदने फदने।
सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु बवे बवे।10।
स्जनधभा - त्रवसनभुािो, भा बवेच्िक्रवत्मात्रऩ।
स्माच्िेटोऽत्रऩ दरयद्रोऽत्रऩ स्जनधभाानुवाससत्।11।
जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ, जन्भ-कोफटभुऩास्जातभ्।
जन्भ-म्रत्मु-जया-योगॊ, हन्मते स्जन-दशानात ्।12।
अद्याबवत्सपरता नमनद्रमस्म,
देव ! त्वदीम ियणाम्फुज वीऺणेन।
अद्य त्रिरोक-सतरकॊ ! प्रसतबासते भे,
सॊसाय-वारयसधयमॊ िुरुक-प्रभाणभ्।13।
41 अगस्त 2014
बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के 16 अद्भुत स्वप्न
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
जैन धभा के 24वे तीथंकय बगवान भहावीय के
जन्भ से ऩूवा आषाढ़ शुक्र षद्षी के फदन उनकी भाता
त्रिशरा नगय भं हो यही अद्द्बुत घटना के फाये भं
सोि यही थीॊ। भाता त्रिशरा उसी फाये भं सोिते-
सोिते गहयी नीॊद भं सो गई। उसी यात्रि के अॊसतभ
प्रहय भं भाता त्रिशरा ने सोरह शुब एवॊ भॊगरकायी
स्वप्न देखे। नीॊद से जागने ऩय यानी त्रिशरा ने
भहायाज ससद्धाथा से अऩने सोहर स्वप्न के त्रवषम भं
ििाा की औय उसका पर जानने की इच्छा प्रकट
की। तफ भहायाजा ससद्धाथा ने भहायानी त्रिशरा द्राया
देखे गए सऩनं की त्रवस्तृत जानकायी ज्मोसतष
त्रवद्रानोकं दी, तफ त्रवद्रानं ने कहाॊ भहायाज भहायानी
ने स्वप्न भं भॊगरभम प्रसतको के दशान फकए हं।
त्रवद्रानं ने यानी से कहा फक वह एक-एक कय
अऩने साये स्वप्न फताएॊ, स्जससे उसी प्रकाय उसका
पर फताते गए। तफ भहायानी त्रिशरा ने अऩने साये
स्वप्न उन्हं एक-एक कय त्रवस्ताय से सुनाएॊ जो इस
प्रकाय हं..
1.
यानी को ऩहरे स्वप्न भं एक असत त्रवशार सपे द यॊग
का हाथी फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ उनके घय एक अद्भुत ऩुि यत्न उत्ऩन्न
होगा।
2.
यानी को दूसये स्वप्न भं एक सपे द यॊग का वृषब
फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि सॊसाय का कल्माण कयने वारा
होगा।
3.
यानी को तीसये स्वप्न भं सपे द यॊग औय रार फारं
वारा ससॊह फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि ससॊह के सभान फरशारी होगा।
4.
यानी को िौथे स्वप्न भं कभर आसन ऩय त्रवयाजभान
रक्ष्भी का असबषेक कयते हुए दो हाथी फदखाई फदमे
थे।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ देवरोक से देवगण आकय उस ऩुि का
असबषेक कयंगे।
5.
यानी को ऩाॊिवं स्वप्न भं दो सुगॊसधत ऩुष्ऩभाराएॊ
फदखाई दी थी।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि धभा प्रिायक होगा औय जन-जन के
सरए कल्माणकायी होगा।
6.
यानी को छठे स्वप्न भं ऩूणा िॊद्रभा फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ उसके जन्भ से तीनं रोक आनॊफदत हंगे
औय वह िॊद्रभा के सभान शीतर व सौम्म होगा।
42 अगस्त 2014
7.
यानी को सातवं स्वप्न भं उदम होता सूमा फदखाई
फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि सूमा के सभान तेजमुि ियौ औय
ऻान का प्रकाश पै राने वारा होगा।
8.
यानी को आठवं स्वप्न भं कभर ऩिं से ढॊके हुए दो
स्वणा करश फदखाई फदमे थे।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि अनेक सनसधमं का स्वाभी होगा।
9.
यानी को नौवं स्वप्न भं सयोवय भं क्रीिा कयती दो
भछसरमाॊ फदखाई दी थी।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि भहाआनॊद का दाता, दुखीका
दुखहताा होगा।
10.
यानी को दसवं स्वप्न भं कभरं से बया सयोवय
फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि शुब रऺणं से मुि एवॊ कभराकाय
ससॊहासन त्रवयाजभान होगा।
11.
यानी को ग्मायहवं स्वप्न भं रहयं उछारता सभुद्र
फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न
का पर फताते हुवे कहाॊ ऩुि बूत-बत्रवष्म-वताभान का
ऻाता होगा।
12.
यानी को फायहवं स्वप्न भं हीये-भोती औय यत्नजस़्डत
स्वणा ससॊहासन फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ ऩुि याज्म का स्वाभी औय प्रजा का
फहतसिॊतक होगा।
13.
यानी को तेयहवं स्वप्न भं देव त्रवभान फदखाई फदमा
था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ इस जन्भ से ऩूवा वह ऩुि स्वगा का देवता
होगा।
14.
यानी को िौदहवं स्वप्न भं ऩृथ्वी को बेद कय
सनकरता नागं के याजा नागेन्द्र का त्रवभान फदखाई
फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि जन्भ से ही त्रिकारदशॉ होगा।
15.
यानी को ऩन्द्रहवं स्वप्न भं यत्नं का ढेय फदखाई फदमा
था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि अनॊत गुणं से सॊऩन्न होगा।
16.
यानी को सोरहवं स्वप्न भं धुआॊयफहत अस्ग्न फदखाई
दी थी।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि साॊसारयक कभं का अॊत कयके भोऺ
(सनवााण) को प्राद्ऱ होगा।
43 अगस्त 2014
त्रवसबन्न िभत्कायी जैन भॊि
 सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
एका अऺय का भॊि :-
ॐ (ओभ्)
ॐ शब्द की ध्वसन ऩाॊिो ऩयभेद्षी नाभं के ऩहरे अऺय को
सभराने ऩय फनती हं।
जैन भुसनमं के भत से अयहन्त का ऩहरा अऺय 'अ'
जो अशयीयी अथाात ससद्ध का 'अ' हं। ओभ शब्द भं
आिामा का 'आ', उऩाध्माम का 'उ', तथा भुसन अथाात साधु
जनो का 'भ्', इस प्रकाय सबी शब्दो को जोडने ॐ फनता
हं।
दो अऺयं का भॊि :-
1. ससद्ध
2. ॐ ह्रीॊ
िाय अऺयं का भॊि :-
1. अयहन्त
2. अ सस साहू
ऩॊिाऺयी भॊि :-
अ सस आ उ सा
षद्शाऺयी भॊि :-
1. अयहन्त ससद्ध
2. अयहन्त सस सा
3. ॐ नभ् ससद्धेभ्म
4. नभोहास्त्सद्धेभ्म्
सद्ऱाऺयी भॊि:-
ॐ श्रीॊ ह्रीॊ अहं नभ्।
अद्शाऺयी भॊि:-
ॐ नभो अरयहॊताणॊ।
सोरह अऺयं का भॊि :-
अयहॊत ससद्ध आइरयमा उवज्झामा साहू
35 अऺयं का भॊि :-
णभो अरयहॊताणॊ, णभो ससद्धाणॊ, णभो आइरयमाणॊ ।
णभो उवज्झामाणॊ, णभो रोए सव्वसाहूणॊ ।।
रघु शास्न्त भॊि:-
ॐ ह्रीभ् अहाभ् अससआउसा सवाशास्न्तभ् कु रु कु रु स्वाहा ।
भनोयथ ससत्रद्धदामक भॊि :-
ॐ ह्रीभ् श्रीभ् अहाभ् नभ् ।
44 अगस्त 2014
योगनाशक भॊि :-
ॐ ऐभ ् ह्रीभ् श्रीभ् कसरकु ण्डदण्डस्वासभने नभ् आयोग्म-
ऩयभेद्वमाभ् कु रु कु रु स्वाहा ।
(योग शाॊसत हेतु उि भन्ि को श्रीऩाद्वानाथ जी की प्रसतभा
के सम्भुख शुद्धता व् सनमभ से 108 फाय जऩ कयना असत
राबदामक होता हं।)
योग सनवायक भॊि :-
ॐ ह्रीॊ सकर-योगहयाम श्री सन्भसत देवाम नभ् ।
योग सनवायक नवकाय भॊि :-
ॐ नभो आभोसफह ऩत्ताणॊ
ॐ नभो खेरोसफह ऩत्ताणॊ
ॐ नभो जेरोसफह ऩत्ताणॊ
ॐ नभो सव्वोसफह ऩत्ताणॊ स्वाहा।
(उि भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से सवा
प्रकाय के योगो की शाॊसत होती हं। योगी व्मत्रि के कद्श भे
न्मूनता आती हं।)
भॊगरदामक भॊि :-
ॐ ह्रीभ ् वये सुवये अससआउसा नभ् स्वाहा ।
(उि भन्ि को एकान्त भं प्रसतफदन 108 फाय धूऩ के साथ,
शुद्ध बावऩूवाक जऩने से असधक राबप्रद होता हं।)
ऐद्वमादामक भॊि :-
ॐ ह्रीभ ् अससआउसा नभ् स्वाहा ।
(उि भन्ि को सूमोदम के सभम ऩूवा फदशा भं भुख कयके
प्रसतफदन 108 फाय जऩ कयने से शीघ्र राबप्राद्ऱ होता हं।)
कल्माणकायी भॊि:-
ॐ अससआ उसा नभ्।
(उि भॊि को ऩूवाासबभुख फेठ कय 1,25,000 जऩ कयने
से शीघ्र परदामी होता हं व शाॊसत प्राद्ऱ होती हं। साधक
के बम, करेश, दु्ख दारयद्र दूय होते हं।
सवाससत्रद्धदामक भॊि :-
ॐ ह्रीॊ क्रीॊ श्री अहं श्री वृषबनाथ तीथंकयाम नभ् ।
(उि भन्ि के प्रसतफदन 108 फाय जऩ से साधक को
सभस्त कामं भं ससत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं।)
भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:-
ॐ ह्रीॊ नभो अरयहॊताणॊ ससध्धाणॊ सूयीणॊ उवजझामाणॊ
साहूणॊ भभ ऋत्रद्ध वृत्रद्ध सभीफहतॊ कु रु कु रु स्वाहा।
(उि भॊि को प्रात् कार भूॊगे की भारा से धुऩ देकय
3200 जऩ कयने से सवा काभनाएॊ ऩूणा होती हं।)
सवाकाभना ऩूयण अहं भॊि:-
ॐ ह्रीॊ अहं नभ्।
(उि भॊि को फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय ऩूवाासबभुख
फेठ कय मथाशत्रि जऩ कयं। 12,500 जऩ ऩूणा होने ऩय
भॊि ससद्ध होता हं। साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होने
रगती हं।)
45 अगस्त 2014
सवाकाभना ऩूयण भॊि:-
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ अहा अससआ उसा नभ्।
(उि भन्ि की प्रसतफदन 1 भारा जऩ कयने से कल्ऩवृऺ
के सभान सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं।
सवा सॊऩत्रत्तदामक त्रिबुवन स्वाभीनी त्रवद्या भॊि:-
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ अससआ उसा िुरु िुरु हुरु हुरु कु रु
कु रु भुरु भुरु इस्च्छमॊइ भे कु रु कु रु स्वाहा।
(फकसी ऩत्रवि स्थान ऩय साधक अऩने सम्भुख ऩाद्वानाथ
बगवान की भूसता/पोटो स्थात्रऩत कयके धूऩ-दीऩ कये।
िभेरी के 24,000 पू र रेकय, हय एक पू र ऩय एक भॊि
का जऩ कयते हुवे पू र को बगवान को अऩाण कयते
जामे। जऩ ऩूये होने ऩय भॊि ससद्ध हो जाता हं। फपय उि
भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कये। जऩ से साधक को
धन, वैबव, सॊतसत, सॊऩत्रत्त, ऩारयवायीक सुख इत्माफद की
प्रासद्ऱ होती हं।
त्रववाद त्रवजम भॊि:-
ॐ हॊ स ॐ ह्रीॊ अहं ऐॊ श्रीॊ अससआ उसा नभ्।
(मफद फकसी से अनावश्मक वाद-त्रववाद हो जामे तो उसभे
जीत हेतु उि भॊि को 21 फाय जऩने के ऩद्ळमात वाद-
त्रववाद कयने ऩय जीत होती हं।)
करेश नाशक भॊि:-
ॐ अहं आससआ उसा नभ्।
(उि भन्ि के सवाराख जऩ कयने से िभत्कायी ऩरयणाभ
प्राद्ऱ होते हं।)
भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:-
ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआ उसा स्वाहा।
(उि भन्ि के सवाराख जऩ ऩूणा होने के ऩद्ळमात
प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से भनोयथ ऩूणा होते हं।)
सवाग्रह शास्न्त भॊि :-
ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआउसा सवा-शास्न्तॊ कु रु कु रु
स्वाहा ।
(उि भन्ि को सूमोदम के सभम जऩ कयने से शीघ्र शुब
परो की प्रासद्ऱ होती हं।)
शास्न्तकायक भॊि :-
1. ॐ ह्रीॊ ऩयभशास्न्त त्रवधामक श्री शास्न्तनाथाम नभ् ।
2. ॐ ह्रीॊ श्री अनॊतानॊत ऩयभससद्धेभ्मो नभ् ।
घॊटाकणा भॊि :-
ॐ ह्रीॊ घॊटाकणो भहावीय, सवाव्मासध-त्रवनाशक् ।
त्रवस्पोटकबमॊ प्राद्ऱे, यऺ यऺ भहाफर् ।1।
मि त्वॊ सतद्षसे देव, सरस्खतोऽऺय-ऩॊत्रिसब् ।
योगास्ति प्रणश्मस्न्त, वात-त्रऩत्त-कपोद्भवा् ।2।
ति याजबमॊ नास्स्त, मस्न्त कणे जऩात्ऺमभ ् ।
शाफकनी बूत वेतारा, याऺसा् प्रबवस्न्त न ।3।
नाकारे भयणॊ तस्म, न ि सऩेण दॊश्मते ।
अस्ग्निौयबमॊ नास्स्त, ॐ श्रीॊ घॊटाकणा !
नभोस्तु ते ! ॐ नय वीय ! ठ् ठ् ठ् स्वाहा ।।
(घॊटाकणा भहावीय का उि भॊि कसरमु भं तत्कार प्रबाव
देने भं सभथा एवॊ िभत्कायी हं इस भन्ि का सनमसभत
21 फाय जऩ कयने से याज-बम, िोय-बम, अस्ग्न औय सऩा
- बम, सफ प्रकाय की बूत-प्रेत-फाधा दूय होतं हं साधक
की सवा त्रवऩत्रत्त का स्वत् ही सनवायण होने रगता हं। )
सवायऺा भॊि :-
नवकाय भॊि के साथ अॊत भं ॐ ह्रीॊ ह्रूॊ पट् जोडकय जऩ
कयने से मह भॊि सवा से आनॊददामक हं औय साधन की
सबी उऩद्रवो से यऺा होती हं।
रक्ष्भी प्रासद्ऱ एवॊ भनोकाभनाऩूणा कयने का भॊि :-
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ऐॊ अहं श्री अ सस आ उ सा नभ् ।
(उि भॊि को प्रात्कार 108 फाय जऩ ने से धन प्रासद्ऱ
होती हं।)
46 अगस्त 2014
रक्ष्भी प्रासद्ऱ भॊि :-
ॐ ह्रीॊ ह्रं अहं नभो अरयहॊताणॊ ह्रीॊ नभ्।
(फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय जऩ शुरु कयं। आसन,
भारा, वस्त्र ऩीरे यखे। 1,25,000 जऩ कयने से रक्ष्भी
प्रसन्न होती हं। फपय मथा शत्रि योज 1 भारा जऩ कयं।)
नवग्रह शास्न्त हेतु भॊि :-
सूमा के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय)
िन्द्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊताण । (10 हजाय)
भॊगर के सरए: ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय)
फुध के सरए: ॐ णभो उवज्झामाण । (10 हजाय)
(गुरु) वृहस्ऩसत के सरए : ॐ णभो आइरयमाणॊ। (10 हजाय)
शुक्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊताणॊ । (10 हजाय)
शसन के सरए: ॐ णभो रोए सव्व साहूणॊ । (10 हजाय)
के तु के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय)
याहू के सरए : ॐ णभो अरयहॊताणॊ, ॐ णभो
ससद्धाणॊ, ॐ णभो आइरयमाणॊ, ॐ णभो उवज्झामाण ॐ
णभो रोए सव्व साहूणॊ, (10 हजाय)
भहाभृत्मुॊजम भन्ि :-
ॐ ह्राॊ णभो अरयहॊताणॊ । ॐ ह्रीॊ णभो ससद्धाणॊ, ॐ ह्रूॊ
णभो आइरयमाणॊ, ॐ ह्रं णभो उवज्झामाणॊ, ॐ ह्र्
णभो रोए सव्वसाहूणॊ, भभ सवा -ग्रहारयद्शान ्
सनवायम सनवायम अऩभृत्मुॊ घातम घातम
सवाशास्न्तॊ कु रु कु रु स्वाहा ।
(उि भन्ि को त्रवसध-त्रवधान से धूऩ-दीऩ जराकय ऩूणा
सनद्षा ऩूवाक इस भॊि का स्वमॊ जाऩ कय सकते
हं मा अन्म द्राया कयवा सकते हं। मफद अन्म व्मत्रि
जाऩ कये तो 'भभ' के स्थान ऩय उस व्मत्रि का नाभ
जोि रं स्जसके सरए जाऩ फकमा जायहा है। ) उि भॊि
का सवा राख जाऩ कयने से ग्रह-फाधा दूय हो जाती है
। जाऩ के अनॊतय दशाॊश आहुसत देकय हवन कयना
िाफहए।
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800
ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250,
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900
भामा जार- Rs- 251, 551, 751
इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050
धनवृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ
Rs-550)
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751
ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181
हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111
नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101,
151, 201,
गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से
1100 (असत दुराब फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं
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47 अगस्त 2014
जैन धभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का सॊस्ऺद्ऱ त्रववयण
क्र तीथंकाय
जन्भ
स्थान
जन्भ
नऺि
भाता
का नाभ
त्रऩता
का नाभ
वैयाग्म
वृऺ
प्रसतक
सिह्न
१ ऋषबदेवजी अमोध्मा उत्तयाषाढ़ा भरूदेवी नासबयाजा वट वृऺ फैर
२ अस्जतनाथजी अमोध्मा योफहणी त्रवजमा स्जतशिु सऩाऩणा वृऺ हाथी
३ सम्बवनाथजी श्रावस्ती ऩूवााषाढ़ा सेना स्जतायी शार वृऺ घोिा
४ असबनन्दनजी अमोध्मा ऩुनवासु ससद्धाथाा सॊवय देवदाय वृऺ फन्दय
५ सुभसतनाथजी अमोध्मा भद्या सुभॊगरा भेधप्रम त्रप्रमॊगु वृऺ िकवा
६ ऩद्मप्रबुजी कौशाम्फीऩुयी सििा सुसीभा धयण त्रप्रमॊगु वृऺ कभर
७ सुऩाद्वानाथजी काशीनगयी त्रवशाखा ऩृथ्वी सुप्रसतद्ष सशयीष वृऺ सासथमा
८ िन्द्रप्रबुजी िॊद्रऩुयी अनुयाधा रक्ष्भण भहासेन नाग वृऺ िन्द्रभा
९ ऩुष्ऩदन्तजी काकन्दी भूर याभा सुग्रीव सार वृऺ भगय
१० शीतरनाथजी बफद्रकाऩुयी ऩूवााषाढ़ा सुनन्दा दृढ़यथ प्रऺ वृऺ कल्ऩवृऺ
११ श्रेमान्सनाथजी ससॊहऩुयी वण त्रवष्णु त्रवष्णुयाज तंदुका वृऺ गंडा
१२ वासुऩुज्मजी िम्ऩाऩुयी शतसबषा जऩा वासुऩुज्म ऩाटरा वृऺ बंसा
१३ त्रवभरनाथजी कास्म्ऩल्म उत्तयाबाद्रऩद शभी कृ तवभाा जम्फू वृऺ शूकय
१४ अनन्तनाथजी त्रवनीता येवती सूवाशमा ससॊहसेन ऩीऩर वृऺ सेही
१५ धभानाथजी यत्नऩुयी ऩुष्म सुव्रता बानुयाजा दसधऩणा वृऺ वज्रदण्ड
१६ शाॊसतनाथजी हस्स्तनाऩुय बयणी ऐयाणी त्रवद्वसेन नन्द वृऺ फहयण
१७ कु न्थुनाथजी हस्स्तनाऩुय कृ त्रत्तका श्रीदेवी सूमा सतरक वृऺ फकया
१८ अयहनाथजी हस्स्तनाऩुय योफहणी सभमा सुदशान आम्र वृऺ भछरी
१९ भस्ल्रनाथजी सभसथरा अस्द्वनी यस्ऺता कु म्ऩ कु म्ऩअशोक वृऺ करश
२० भुसनसुव्रतनाथजी कु शाक्रनगय श्रवण ऩद्मावती सुसभि िम्ऩक वृऺ कछु वा
२१ नसभनाथजी सभसथरा अस्द्वनी वप्रा त्रवजम वकु र वृऺ नीरकभर
२२ नेसभनाथजी शोरयऩुय सििा सशवा सभुद्रत्रवजम भेषश्रृॊग वृऺ शॊख
२३ ऩार्श्रवानाथजी वायाणसी त्रवशाखा वाभादेवी अद्वसेन घव वृऺ सऩा
२४ भहावीयजी कुॊ डरऩुय उत्तयापाल्गुनी त्रिशारा
(त्रप्रमकारयणी)
ससद्धाथा सार वृऺ ससॊह
48 अगस्त 2014
श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन)
अहान्तो बगवत इन्द्रभफहता्, ससद्धाद्ळ ससद्धीद्वया,
आिामाा् स्जनशासनोन्नसतकया्, ऩूज्मा उऩाध्मामका्।
श्रीससद्धान्तसुऩाठका्, भुसनवया यत्निमायाधका्,
ऩञ्िैते ऩयभेत्रद्षन् प्रसतफदनॊ, कु वान्तु न् भॊगरभ्॥1॥
श्रीभन्नम्र - सुयासुयेन्द्र - भुकु ट - प्रद्योत - यत्नप्रबा-
बास्वत्ऩादनखेन्दव् प्रविनाम्बोधीन्दव् स्थासमन्।
मे सवे स्जन-ससद्ध-सूमानुगतास्ते ऩाठका् साधव्
स्तुत्मा मोगीजनैद्ळ ऩञ्िगुयव् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥2॥
सम्मग्दशान-फोध-व्रत्तभभरॊ, यत्निमॊ ऩावनॊ,
भुत्रि श्रीनगयासधनाथ - स्जनऩत्मुिोऽऩवगाप्रद्।
धभा सूत्रिसुधा ि िैत्मभस्खरॊ, िैत्मारमॊ श्रमारमॊ,
प्रोिॊ ि त्रित्रवधॊ ितुत्रवाधभभी, कु वान्तु न् भॊगरभ्॥3॥
नाबेमाफदस्जना् प्रशस्त-वदना् ख्माताद्ळतुत्रवंशसत्,
श्रीभन्तो बयतेद्वय-प्रबृतमो मे िफक्रणो द्रादश।
मे त्रवष्णु-प्रसतत्रवष्णु-राॊगरधया् सद्ऱोत्तयात्रवॊशसत्,
िैकाल्मे प्रसथतास्स्त्रषत्रद्श-ऩुरुषा् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥4॥
मे सवौषध-ऋद्धम् सुतऩसो वृत्रद्धॊगता् ऩञ्ि मे,
मे िाद्शाॉग-भहासनसभत्तकु शरा् मेऽद्शात्रवधाद्ळायणा्।
ऩञ्िऻानधयास्त्रमोऽत्रऩ फसरनो मे फुत्रद्धऋत्रद्धद्वया्,
सद्ऱैते सकरासिाता भुसनवया् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥5॥
ज्मोसतव्मान्तय-बावनाभयग्रहे भेयौ कु राद्रौ स्स्थता्,
जम्फूशाल्भसर-िैत्म-शस्खषु तथा वऺाय-रुप्माफद्रषु।
इक्ष्वाकाय-सगयौ ि कु ण्डराफद द्रीऩे ि नन्दीद्वये,
शैरे मे भनुजोत्तये स्जन-ग्रहा् कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥6॥
कै राशे वृषबस्म सनव्रासतभही वीयस्म ऩावाऩुये,
िम्ऩामाॊ वसुऩूज्मसुस्ज्जनऩते् सम्भेदशैरेऽहाताभ ्।
शेषाणाभत्रऩ िोजामन्तसशखये नेभीद्वयस्माहात्,
सनवााणावनम् प्रससद्धत्रवबवा् कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥7॥
मो गबाावतयोत्सवो बगवताॊ जन्भासबषेकोत्सवो,
मो जात् ऩरयसनष्क्रभेण त्रवबवो म् के वरऻानबाक्।
म् कै वल्मऩुय-प्रवेश-भफहभा सम्ऩफदत् स्वसगासब्
कल्माणासन ि तासन ऩॊि सततॊ कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥8॥
सऩो हायरता बवत्मससरता सत्ऩुष्ऩदाभामते,
सम्ऩद्येत यसामनॊ त्रवषभत्रऩ प्रीसतॊ त्रवधत्ते रयऩु्।
देवा् मास्न्त वशॊ प्रसन्नभनस् फकॊ वा फहु ब्रूभहे,
धभाादेव नबोऽत्रऩ वषासत नगै् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥9॥
इत्थॊ श्रीस्जन-भॊगराद्शकसभदॊ सौबाग्म-सम्ऩत्कयभ्,
कल्माणेषु भहोत्सवेषु सुसधमस्तीथंकयाणाभुष्।
मे श्ररण्वस्न्त ऩठस्न्त तैद्ळ सुजनै् धभााथा-काभात्रवन्ता्,
रक्ष्भीयाश्रमते व्मऩाम-यफहता सनवााण-रक्ष्भीयत्रऩ ॥10॥
अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन)
जगद्गुरुॊ नभस्कृ त्मॊ, श्रुत्वा सद्गुरु-बात्रषतभ ् ।
ग्रहशास्न्तॊ प्रवच्मासभ, रोकोनाॊ सुखहेतवे ।।१।।
स्जनेन्द्रा: खेिया ऻेमा्, ऩूजनीमा त्रवसध् क्रभात ् ।
ऩुष्ऩै त्रवारेऩनै धूाऩै, नैवेद्यैस्तुत्रद्श हेतवे ।।२।।
ऩद्मप्रबस्म भातंड-द्ळन्द्रद्ळन्द्रप्रबस्म ि ।
वासुऩूज्मस्म बूऩुिो, फुधद्ळाद्शस्जनेसशनाभ ्।।३।।
त्रवभरानन्त धभेश ्, शास्न्त् कु न्थ्वयह् नसभ।
वधाभानस्जनेन्द्राणाॊ, ऩादऩद्मभ ् फुधो नभेत ् ।।४।।
ऋषबास्जतसुऩाद्वाा-सासबनन्दनशीतरौ ।
सुभसत् सॊबवस्वाभी, श्रेमाॊसेषु फृहस्ऩसत् ।।५।।
सुत्रवधे् कसथत् शुक्रे , सुव्रतद्ळ शनैद्ळये ।
नेसभनाथो बवेद्राहो् के तु: श्रीभस्ल्रऩाद्वामो् ।।६।।
जन्भरग्नॊ ि यासशॊ ि, मफद ऩीिमस्न्त खेिया् ।
तदा सॊऩूजमेद् धीभान ्, खेियान सह तान ् सतनान ् ।।७।।
आफदत्म सोभ भॊगर, फुध गुरु शुक्रे शसन:।
याहुके तु भेयवाग्रे मा, स्जनऩूजात्रवधामक्॥८॥
स्जनान ् नभोग्नस्त्म फह, ग्रहाणाॊ तुत्रद्शहेतवे।
नभस्कायशतॊ बक्त्मा, जऩेदद्शोत्तयॊ शतभ ् ।।९।।
बद्रफाहुगुरुवााग्भी ऩॊिभ् श्रुतके वरी ।
त्रवद्याप्रसाद:, ऩूणं, ग्रहशास्न्त-त्रवसध-कृ ता ।।१०।।
म् ऩठेत ् प्रातरुत्थाम, शुसिबूात्वा सभाफहत्।
त्रवऩत्रत्ततो बवेच्छाॊसत ऺेभॊ तस्म ऩदे ऩदे॥११॥
49 अगस्त 2014
॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥
सशखरयणी छॊद
मदीमे िैतन्मे भुकु य इव बावास्द्ळदसित:
सभॊ बास्न्त ध्रौव्म व्मम-जसन-रसन्तोऽन्तयफहता:।
जगत्साऺी भागा-प्रकटन ऩयो बानुरयव मो
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भं॥1॥
अताम्रॊ मच्िऺु: कभर-मुगरॊ स्ऩन्द-यफहतॊ
जनान्कोऩाऩामॊ प्रकटमसत वाभ्मन्तयभत्रऩ।
स्पु टॊ भूसतामास्म प्रशसभतभमी वासतत्रवभरा
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥2॥
नभन्नाकं द्रारी-भुकु ट-भस्ण-बा जार जफटरॊ
रसत्ऩादाम्बोज-द्रमसभह मदीमॊ तनुबृताभ्?।
बवज्ज्वारा-शान्त्मै प्रबवसत जरॊ वा स्भृतभत्रऩ
भहावीय स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥3॥
मदच्िाा-बावेन प्रभुफदत-भना ददुाय इह
ऺणादासीत्स्वगॉ गुण-गण-सभृद्ध: सुख-सनसध:।
रबन्ते सद्भिा: सशव-सुख-सभाजॊ फकभुतदा
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥4॥
कनत्स्वणााबासोऽप्मऩगत-तनुऻाान-सनवहो
त्रवसििात्भाप्मेको नृऩसत-वय-ससद्धाथा-तनम:।
अजन्भात्रऩ श्रीभान ्? त्रवगत-बव-यागोद्भुत-गसत?
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥5॥
मदीमा वाग्गॊगा त्रवत्रवध-नम-कल्रोर-त्रवभरा
फृहज्ऻानाभ्बोसबजागसत जनताॊ मा स्नऩमसत।
इदानीभप्मेषा फुध-जन-भयारै ऩरयसिता
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥6॥
असनवाायोद्रेकस्स्त्रबुवन-जमी काभ-सुबट:
कु भायावस्थामाभत्रऩ सनज-फराद्येन त्रवस्जत:
स्पु यस्न्नत्मानन्द-प्रशभ-ऩद-याज्माम स स्जन:
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥7॥
भहाभोहातक-प्रशभन-ऩयाकस्स्भक-सबषक?
सनयाऩेऺो फॊधु त्रवाफदत-भफहभा भॊगरकय:।
शयण्म: साधूनाॊ बव-बमबृताभुत्तभगुणो
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥8॥
भहावीयाद्शकॊ स्तोिॊ बक्त्मा बागेन्दु ना कतभ।
म: मठेच्रणुमाच्िात्रऩ स मासत ऩयभाॊ गसतभ॥9॥
भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश: भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक के रूऩ भं जाना जाता हं। इस के ऩूजन से
जीवन भं सुख सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं।यि सॊिाय को सॊतुसरत कयता हं। भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को ितुय फनाता
हं। फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फिाव होता हं। भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय िेिक जेसे योग भं राब प्राद्ऱ
होता हं। भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक >> Order Now
भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि: भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता
हं, इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी
जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन
से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम,
तॊि भॊि के दुद्श प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दुघाटनाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं। भूल्म भाि Rs- 730
50 अगस्त 2014
॥ भहावीय िारीसा ॥
दोहा
ससद्ध सभूह नभं सदा,
अरु सुभरूॊ अयहन्त ।
सनय आकु र सनवांच्छ हो,
गए रोक के अॊत ॥
भॊगरभम भॊगर कयन,
वधाभान भहावीय ।
तुभ सिॊतत सिॊता सभटे,
हयो सकर बव ऩीय ॥
िौऩाई
जम भहावीय दमा के सागय,
जम श्री सन्भसत ऻान उजागय ।
शाॊत छत्रव भूयत असत प्मायी,
वेष फदगम्फय के तुभ धायी ।
कोफट बानु से असत छत्रफ छाजे,
देखत सतसभय ऩाऩ सफ बाजे ।
भहाफरी अरय कभा त्रवदाये,
जोधा भोह सुबट से भाये ।
काभ क्रोध तस्ज छोिी भामा,
ऺण भं भान कषाम बगामा।
यागी नहीॊ नहीॊ तू द्रेषी,
वीतयाग तू फहत उऩदेशी ।
प्रबु तुभ नाभ जगत भं साॊिा,
सुभयत बागत बूत त्रऩशािा ।
याऺस मऺ डाफकनी बागे,
तुभ सिॊतत बम कोई न रागे ।
भहा शूर को जो तन धाये,
होवे योग असाध्म सनवाये ।
व्मार कयार होम पणधायी,
त्रवष को उगर क्रोध कय बायी ।
भहाकार सभ कयै डसन्ता,
सनत्रवाष कयो आऩ बगवन्ता ।
भहाभत्त गज भद को झायै,
बगै तुयत जफ तुझे ऩुकायै ।
पाय डाढ़ ससॊहाफदक आवै,
ताको हे प्रबु तुही बगावै ।
होकय प्रफर अस्ग्न जो जायै,
तुभ प्रताऩ शीतरता धायै ।
शस्त्र धाय अरय मुद्ध रिन्ता,
तुभ प्रसाद हो त्रवजम तुयन्ता ।
ऩवन प्रिण्ड िरै झकझोया, प्र
बु तुभ हयौ होम बम िोया ।
झाय खण्ड सगरय अटवी भाॊहीॊ,
तुभ त्रफनशयण तहाॊ कोउ नाॊहीॊ ।
वज्रऩात करय घन गयजावै,
भूसरधाय होम तिकावै ।
होम अऩुि दरयद्र सॊताना,
सुसभयत होत कु फेय सभाना ।
फॊदीगृह भं फॉधी जॊजीया,
कठ सुई असन भं सकर शयीया ।
याजदण्ड करय शूर धयावै,
ताफह ससॊहासन तुही त्रफठावै ।
न्मामाधीश याजदयफायी,
त्रवजम कये होम कृ ऩा तुम्हायी ।
जहय हराहर दुद्श त्रऩमन्ता,
अभृत सभ प्रबु कयो तुयन्ता ।
िढ़े जहय, जीवाफद डसन्ता,
सनत्रवाष ऺण भं आऩ कयन्ता ।
एक सहस वसु तुभये नाभा,
जन्भ सरमो कु ण्डरऩुय धाभा ।
ससद्धायथ नृऩ सुत कहराए,
त्रिशरा भात उदय प्रगटाए ।
तुभ जनभत बमो रोक अशोका,
अनहद शब्दबमो सतहुॉरोका ।
इन्द्र ने नेि सहस्रो करय देखा,
सगयी सुभेय फकमो असबषेखा ।
काभाफदक तृष्णा सॊसायी,
तज तुभ बए फार ब्रह्मिायी ।
असथय जान जग असनत त्रफसायी,
फारऩने प्रबु दीऺा धायी ।
शाॊत बाव धय कभा त्रवनाशे,
तुयतफह के वर ऻान प्रकाशे ।
जि-िेतन िम जग के साये,
हस्त येखवत ्? सभ तू सनहाये ।
रोक-अरोक द्रव्म षट जाना,
द्रादशाॊग का यहस्म फखाना ।
ऩशु मऻं का सभटा करेशा,
दमा धभा देकय उऩदेशा ।
अनेकाॊत अऩरयग्रह द्राया,
सवाप्रास्ण सभबाव प्रिाया ।
ऩॊिभ कार त्रवषै स्जनयाई,
िाॊदनऩुय प्रबुता प्रगटाई ।
ऺण भं तोऩसन फाफढ-हटाई,
बिन के तुभ सदा सहाई ।
भूयख नय नफहॊ अऺय ऻाता,
सुभयत ऩॊफडत होम त्रवख्माता ।
सोयठा
कये ऩाठ िारीस फदन
सनत िारीसफहॊ फाय ।
खेवै धूऩ सुगन्ध ऩढ़,
श्री भहावीय अगाय ॥
जनभ दरयद्री होम अरु
स्जसके नफहॊ सन्तान ।
नाभ वॊश जग भं िरे
होम कु फेय सभान ॥
51 अगस्त 2014
जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी त्रवद्या सच्िी है?
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
.
बगवान भहावीय के सभम भं ऩुष्म नाभ का एक
फिा सुप्रससद्ध ज्मोसतषी था। उसका ज्मोसतष ऻान इतना
सटीक यहता था फक ऩुष्मको अऩने ज्मोसतष ऻान ऩय ऩूया
त्रवद्वास था। दूयदेश से रोग उससे ज्मोसतष त्रवद्या के
त्रवषम भं ऩूछने आते थे।
ऩुष्म ज्मोसतषी जो कह देते, वस्तुत् सच्िा ऩि
जाता। ज्मोसतषी त्रवद्या भं वहॊ इतने तेज थे की रोगं के
ऩदसिह्न की येखाएॉ देखकय बी वह रोगं की स्स्थसत फता
सकते थे। ऐसे फफढ़मा कु शाग्र ज्मोसतषी थे।
उन फदनं भं वधाभान (बगवान भहावीय) घय फदन
भं तो भ्रभब कयते औय जैसे सॊध्मा होती, अॊधेया होते ही
एकान्त खोजकय फैठ जाते। थोिी देय आयाभ कय रेते
फपय फैठकय िुऩिाऩ, ध्मान भं स्स्थय हो जाते।
ऩुष्म ज्मोसतषी ने देखा की येत ऩय फकसी के
ऩदसिह्न हं। ऩदसिह्नं को ध्मान से ऩयखा ओय ज्मोसतष
त्रवद्या से जाना की मे तो िक्रवतॉ के ऩदसिह्न हं। िक्रवतॉ
मदी महाॉ से गुजये है तो उनके साथ भं भॊिी होने िाफहए,
ससिव होने िाफहए, अॊगयक्ष्क होने िाफहए, ससऩाही होने
िाफहए। ऩदसिह्न िक्रवतॉ के औय साथ भं कोई औय
ऩदसिह्न नहीॊ मह सम्बव नहीॊ हो सकता।
ऩयॊतु ऩुष्म ज्मोसतषी ऩहूॊिा हुवा ज्मोसतष था
उसको अऩनी ज्मोसतष त्रवद्या ऩय ऩूया बयोसा था। उसकी
नीॊद हयाभ हो गमी। िाॉदनी यात थी इस सरमे जहाॉ तक
िर सका ऩदसिह्न देखता हुआ िरा, फपय कहीॊ रुक कय
आयाभ कय सरमे। फपय सुफह-सुफह जल्दी िरना िारू
फकमा। उसेतो खोजना था, ऩदसिह्न कहाॉ जा यहे हं। देखा
फक त्रफना कोई साधन के , एक व्मत्रि शाॊत बाव भं फैठा
हुआ है। ऩदसिह्न वहीॊ ऩूये होते हं। उसके इदासगदा देखा,
िेहये ऩय देखता यहा। इतने भं भहावीय की आॉख खुरी।
अफतक ज्मोसतषी सिन्ता भं डूफता जा यहा था।
ऩुष्म ज्मोसतषी ने भहावीय से ऩूछा "मे ऩदसिह्न तो आऩके
भारूभ होते हं ?"
भहावीय फोरे: "हाॉ।"
ऩुष्म कहने रगे "भुझे अऩने ज्मोसतष ऩय बयोसा हं।
आज तक भेया ज्मोसतष झूठा नहीॊ ऩिा। ऩदसिह्नं से
रगता है फक आऩ िक्रवतॉ सम्राट हो। रेफकन आऩको
फेहार देखकय दमा आती है फक आऩ सबऺुक हो। भेयी
त्रवद्या आज झूठी कै से ऩिी ?"
भहावीय भुस्कयाकय फोरे् "तुम्हायी त्रवद्या झूठी नहीॊ है,
सच्िी है।
एक फात फताओॊ िक्रवतॉ को क्मा होता है ?"
ऩुष्म फोरे: "उसके ऩास ध्वजा होती है, कोष होता है,
उसके ऩास सैन्म होता है। आऩ तो फेहार हो"
भहावीय फपय भुस्कयाकय फोरे् "धभा की ध्वजा भेये ऩास
है। कऩिे की ध्वजा ही सच्िी ध्वजा नहीॊ है। सच्िी
ध्वजा तो धभा की ध्वजा है। भेये ऩास सदत्रविायरूऩी
सैन्म है जो कु त्रविायं को भाय बगाता है। ऺभा भेयी यानी
है। िक्रवतॉ के आगे िक्र होता है तो सभता भेया िक्र है,
ऻान का प्रकाश भेया िक्र है।
ज्मोसतषी ! क्मा मह जरूयी है फक फाहय का िक्र ही
िक्रवतॉ के ऩास हो ? फाहय की ही ध्वजा हो ? धभा की बी
ध्वजा हो सकती है। धभा का बी कोष हो सकता है।
ध्मान औय ऩुण्मं का बी कोई खजाना होता है।
याजा वह स्जसके ऩास बूसभ हो, सत्ता हो। सुफह जो सोिे
तो शाभ को ऩरयणाभ आ जाम। ऻानयाज्म भं भेयी सनद्षा
है। जो बी भेये भागा भं प्रवेश कयता है, सुफह को ही िरे
तो शाभ को शाॊसत का एहसास हो जाता है, थोिा फहुत
ऩरयणाभ आ जाता है। मह भेयी ऻान की बूसभ है।" जो
ज्मोसतषी हाया हुआ सनयाश होकय जा यहा था वह सन्तुद्श
होकय, सभाधान ऩाकय प्रणाभ कयता हुआ फोरा् "हाॉ
भहायाज ! इस यहस्म का भुझे आज ऩता िरा। भेयी त्रवद्या
बी सच्िी औय आऩका भागा बी सच्िा है।"
52 अगस्त 2014
गौतभ के वरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
111 112 113 121 122 123 131 132 133
211 212 213 221 222 223 231 232 233
311 312 313 321 322 323 331 332 333
उऩय दशााएॊ गमे अॊक शकु नावरी प्रद्लावरी से
उत्तय प्राद्ऱ कयने से ऩूवा शुद्ध एवॊ ऩत्रवि होकय अऩने इद्श
देव का स्भयण कयते हुवे उऩय दशााएॊ गमे अॊक कोद्शको भं
से फकसी एक कोद्शक ऩय अऩनी अॊगुरी अथवा शराका
यखं। स्जस कोद्शक ऩय आऩने अॊगुरी अथवा शराका यखी
हं उस कोद्शक भं अॊफकत सॊख्मा के अनुसाय आऩके अबीद्श
प्रद्ल का हर नीिे क्रभश् अॊको भं फदमा गमा हं।
111: आऩने जो प्रद्ल त्रविाया है वह सपर होगा। तुम्हाये
खयाफ फदनं का नाश होकय अच्छे फदन आए हं। भन की
काभनाएॉ ऩूणा हंगी। त्रवत्रवध प्रकाय की सिॊताएॉ भन भं
यहती हं, वे अफ थोिे फदनं भं नाश हो जाएॉगी। एक सभि
के धोखे को बोग यहे हो। धभा कामा की इच्छा है, ऩयन्तु
ऩाऩकभा से त्रवघ्न आता है। आभदनी से खिा असधक
यहता है। कोई कामा ससद्ध होने को आता है, तो शिु उसभं
त्रवघ्न डार देते हं। दान-ऩुण्म कयो। स्जससे भन की
असबराषा ऩूणा होगी। त्रवयोधी िाहे फकतनी कोसशश कयं,
ऩयन्तु तुम्हायी धायणा अवश्म परीबूत होगी।
112: आऩका अबीद्श प्रद्ल राबदामक है। धन की प्रासद्ऱ
होगी। बाग्मोदम के फदन अफ नजदीक आ गए हं। स्जस
कामा को हाथ भं रोगे, उसभं जम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजन
का सभराऩ होगा। धभा के कामा कयते यहो, स्जससे ऩुण्म
की प्रासद्ऱ होगी तथा सुख बी सभरेगा। भन सिस्न्तत यहता
है। बाइमं से जुदाई होगी। भकान फनाने का इयादा कयते
हो वह ऩाय ऩिेगा। जभीन से तुभको राब होगा।
आभदनी से खिा असधक होता है। तीथं की मािा कयने
की असबराषा है, वह ऩूणा होगी। धासभाक कामा सम्ऩन्न
होगा।
113: आऩका अबीद्श प्रद्ल अच्छा है। तुम्हाये फदर को
आयाभ सभरेगा। सुख-िैन प्राद्ऱ कयोगे। जो कामा भन भं
सोिा है, उसभं त्रवजम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजनं का सभराऩ
होगा। सिन्ता के फदन सनकर िुके हं तथा अफ अच्छे
फदन आए हं। धभा के प्रबाव से सुखी हुए हो तथा आगे
बी सुख प्राद्ऱ कयोगे। कद्श सहन कयते हुए बी दूसये का
कामा कयते हो ऩयन्तु अऩने कामा भं सुस्ती यखते हो।
फुत्रद्ध तेज है, त्रफगिे कामा को बी सुधाय रेते हो। बत्रवष्म
भं राब सभरेगा।
121: आऩका त्रविाया हुआ प्रद्ल राबदामक है। फहुत
फदनं तक दु्ख सहन कयने से सनयाश हो गए हो, फुये
फदन सनकर गए हं औय अफ शुब फदन आए हं। भन की
इच्छाएॉ परीबूत हंगी। स्जतनी रक्ष्भी गॊवाई है उससे बी
असधक प्राद्ऱ कयोगे। स्जस काभ की सिन्ता कयते हो वह
सिन्ता सभट जामेगी, उसभं एक व्मत्रि त्रवघ्न उऩस्स्थत
कयने आमेगा, फकन्तु अन्त भं तुभको सपरता प्राद्ऱ
होगी। बाइमं तथा सम्फस्न्धमं का सनबाव कयते हो,
स्जससे तुम्हायी कीसता फढ़ी है। फदर के उदाय हो, जहाॉ
जाते हो वहाॉ सुख सभरता है।
122: आऩने जो काभ त्रविाया है, उसभं सपरता नहीॊ
सभर ऩाएगी। आऩने आज तक फहुतं का बरा फकमा है।
अशुब कभा के उदम से त्रवघ्न उऩस्स्थत होते हं। जहाॉ
तक फन सके वहाॉ तक धभा कयो। अऩने इद्शदेव की
मथाशत्रि आयाधना तथा भन्ि का जऩ कयो, स्जससे
तकरीप दूय होगी।
53 अगस्त 2014
123: आऩके अबीद्श कामा भं सपरता अवश्म सभरेगी।
इतने ऩाऩकभा के थे तथा आऩने भहान सॊकट उठामे हं।
अफ शुब फदन आए हं। फहुतं का बरा फकमा, फकन्तु
उन्होनं उऩकाय न भाना। धभा के सनसभत्त का सनकारा
हुआ ऩैसा घय भं न यखो। तीथं की मािा कयो, स्जस
स्थान ऩय दु्खी हुए हो, उस स्थान का त्माग कयो, दूसये
स्थान भं जाकय यहो। ऩयदेश भं राब होगा। तुम्हाया फदर
सिन्ता भं डूफा यहता है। अफ शुब कभा का उदम हुआ है।
त्रविाये हुए कामा भं सपरता एवॊ धन प्राद्ऱ होगा।
131: जो फात आऩने सोिी है वह अवश्म ससद्ध होगी,
स्जसका नुकसान हुआ है वह दूय होकय बत्रवष्म भं राब
होगा। धन सभरेगा। तुम्हाये हाथ से धभा के कामा हंगे।
स्जस भनुष्म से भुराकात िाहते हो वह होगी। सिन्ता के
फदन अफ गए हं। धातु, धन, सम्ऩत्रत्त औय कु टुम्फ की
वृत्रद्ध होगी।
132: आज तक तुम्हाये फिे-फिे दुश्भन हुए अफ उनका
जोय नहीॊ िरेगा। भन भं त्रविाये हुए कामं भं सपरता
प्राद्ऱ कयोगे। इज्जत भं वृत्रद्ध होगी। तुम्हाये हाथं से धभा
के कामा हंगे, भन वाॊसछत सुख की प्रासद्ऱ होगी। बाइमं
का सभराऩ होगा। दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुखी हंगे।
133: इतने फदन सॊकट यहा। सिॊसतत कामा अच्छी तयह
से ऩाय न ऩिा, अफ अच्छे फदनं की शुरुआत हुई है, जो
कामा त्रविाया है वह परीबूत होगा, फकसी बी प्रकाय का
त्रवघ्न नहीॊ आमेगा। इद्शदेव के प्रबाव से रक्ष्भी प्राद्ऱ
होगी, त्रप्रमजन से अिानक राब होगा।
211: तुभने भन भं स्जस कामा का त्रविाय फकमा है, वह
सपर नहीॊ होगा। इसके ससवाम कोई दूसया काभ कयो।
तीथं की मािा कयो, स्जससे ऩुण्म का राब हो। दुश्भन
रोग तुभको फाधाएॉ डारते हं।
212: त्रविाया हुआ कामा होगा। प्रेसभका से राब होगा।
कु टुम्फ की वृत्रद्ध होगी। फहुत भुद्दत से त्रविाया हुआ कामा
होगा। दुश्भन तुम्हाये त्रवरुद्ध कोसशश कयंगे, फकन्तु तुम्हाये
सद्भाग्म के आगे उनका जोय नहीॊ िरेगा। तीथं की मािा
कयने की इच्छा है वह हो सके गी। भकान फनाने का तथा
जभीन खयीदने का तुम्हाया इयादा सपर होगा। तुभको
जभीन से राब है। बाग्मफर से कामा ससद्ध हंगे।
213: दु्ख के फदन अफ दूय हो गए हं। सुख के फदन
शुरु हुए हं। फहुत फदनं से कद्श उठा यहे हो, ऩयदेश गए
तो बी सुख की प्रासद्ऱ न हुई, फकन्तु अफ सुख बोगने के
फदन प्राद्ऱ हुए हं। आफरु फढ़ेगी, सॊतान का सुख होगा।
इतने फदनं सभिं तथा कु टुम्फी जनं की तयप से दु्ख
सहन फकमा। जहाॉ तक फना दूसयं का बरा फकमा, ऩयन्तु
उन रोगं ने गुण नहीॊ भाना। शिु रोग ऩग-ऩग ऩय
तैमाय यहते हं, फकन्तु उनका जोय नहीॊ िरता क्मंफक
तुम्हाया बाग्म फरवान ् है। ऩास भं धन थोिा है, फकन्तु
इज्जत अच्छी है, इससरमे स्जतना प्राद्ऱ कयने का त्रविाय
कयोगे उतना प्राद्ऱ कय सकोगे। सभि रोगं से जैसा िाफहए
वैसा सुख नहीॊ है। इज्जत आफरु के सरमे खिा फहुत
कयते हो। तुम्हाया धभा सुधया हुआ है, इससरए धभा ऩय
श्रद्धा यखो।
221: इतने फदन गए वे अच्छे गए, जो जो कामा फकए वे
बी ऩाय ऩि गए, फकन्तु अफ जो कामा फदर भं त्रविाया है
वह ऩाऩ कभा के उदम से ऩूणा नहीॊ होगा। सभि रोग बी
शिु हो जाएॉगे। कु टुम्फ भं अनफन यहेगी, बाई जुदा हंगे।
जो काभ फदर भं त्रविाया है, उसका त्माग कयना ही श्रेद्ष
है। धभा ऩय श्रद्धा यखो, इद्शदेव की सेवा कयो, दान-ऩुण्म के
प्रबाव से सुख सभरेगा।
222: जो काभ भन भं त्रविाया है, उसको छोिकय दूसया
काभ कयो। मफद इस त्रविाये हुए कामा को कयोगे तो सॊकट
उत्ऩन्न होगा, नुकसान होगा, शिु रोग त्रवघ्न उऩस्स्थत
कयंगे। इद्शदेव की सेवा कयो, तीथं ऩय जाओ, स्जससे
दूसये कामा बी सुधयंगे। फदर भं त्रवत्रवध प्रकाय की
सिन्ताओॊ ने वास फकमा है, वह त्रविाये हुए कामा को छोि
देने से दूय होगी।
223: मह सवार अच्छा है, सुख के फदन नजदीक आए
हं। व्माऩाय से धन प्राद्ऱ होगा, ऐशो-आयाभ प्राद्ऱ कयोगे।
ऩत्नी का सुख प्राद्ऱ कयोगे तथा सॊतान की वृत्रद्धहोगी, जो
कामा कयोगे उसभं राब प्राद्ऱ कयोगे। ईभानदायी से काभ
54 अगस्त 2014
कयते हो तो अन्त भं बरा ही होगा। धभा के प्रबाव से
सुखी हंगे, इससरमे धभा को बूरना भत, धभा के कामं भं
सुस्ती यखना ठीक नहीॊ।
231: स्जस कामा के सरए भन भं त्रविाय फकमा है, वह
कामा तीन भास भं होगा। अऩनी स्त्री की तयप से राब
होगा। आज तक कु टुम्फीजनं की तयप से सुख नही
सभरा, फकन्तु बत्रवष्म भं सभरेगा। सॊतानं की वृत्रद्ध होगी।
ससुयार के खिा की सिन्ता है, सो सभट जाएगी। आफरु
के सरए आभदनी से खिा असधक कयना ऩिता है। तीथं
की मािा कयने का इयादा है, फकन्तु त्रवघ्न आता है।
बत्रवष्म भं धभा कामा कय सकोगे। रृदम भं स्जस कामा की
सिन्ता है, वह धभा के प्रबाव से दूय हो जाएगी, इससरए
धभा ऩय श्रद्धा यखो, स्जससे सपरता प्राद्ऱ कय सकोगे।
232: जो काभ त्रविाया है, उसे छोिकय कोई दूसया काभ
कयो। त्रविाये हुए कामा को कयने भं राब नहीॊ है, मफद
कयोगे तो तुभको तुम्हाया स्थान छोिकय दूसये स्थान ऩय
जाना ऩिेगा, कु टुम्फीजनं का त्रवमोग होगा। इससरए
उसित है फक इस कामा को छोि दो। धभा भं होसशमाय
यहना तथा अऩनी शत्रि के अनुसाय दान-ऩुण्म कयना
स्जससे सुख हो।
233: थोिे फदनं भं धन सभरेगा। जो काभ त्रविाया है,
वह ऩूणा होगा। त्रप्रमजनं से सभराऩ होगा। जभीन, जागीय
अथवा भकान से राब होगा। आफरु फढ़ेगी। धभा कामं भं
खिा कयो। उसके प्रताऩ से सुख-िैन यहेगा। याज्मऩऺ से
राब होगा। भन की धायणा ऩूणा होगी। स्त्री की तयप से
सुख है। एक सभम अकस्भात ् राब सभरेगा।
311: मह सवार फहुत ही गयभ है। स्जस कामा का
त्रविाय फकमा है, वह ऩूणा होगा। भुकदभा जीत जाओगे,
व्माऩाय योजगाय भं राब होगा। कीसता फढ़ेगी, याज्म की
तयप से राब होगा। धभा के प्रबाव से सुख सभरा है तथा
बत्रवष्म भं बी सभरेगा। दूसयं के कामा ऩरयश्रभ से ऩूया
कयते हो, फकन्तु अशुब कभा उफदत होने से अऩने कभा भं
उदासीन यहते हो, त्रवदेश मािा होगी औय वहाॉ राब होगा।
धभा ऩय श्रद्धा यखो स्जससे सॊकट दूय हं। अऩने हाथ से
रक्ष्भी प्राद्ऱ कयोगे।
312: जो कामा त्रविाया है उसे छोिकय कोई दूसया काभ
कयो अन्मथा शिु रोग त्रवघ्न डारंगे, दौरत की खयाफी
होगी, घय के भनुष्मं तथा ऩशुओॊ ऩय सॊकट आएगा,
इससरए त्रविाये हुए कामा को छोि देना ही उसित है। धभा
के प्रबाव से सफ कामा सपर होते हं। सनयासश्रतं को
आश्रम दो तथा देवासधदेव का स्भयण कयो स्जससे सुखी
हंगे।
313: मह प्रद्ल अच्छा है। धन तथा स्त्री से सहमोग एवॊ
सुख सभरेगा। सॊतान से सुख सभरेगा। सॊतान होगी,
त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। अभुक भुद्दत की धायी हुई
धायणा सपर होगी। सिन्ता के फदन अफ दूय हुए हं। देव
गुरु तथा धभा की सेवा कयो। दुश्भन रोग सताते हं,
फकन्तु अफ तुम्हाया प्रायब्ध फरवान ् फना है स्जससे इन
रोगं का जोय नहीॊ िरेगा। जभीन से राब होगा। कीसता
के सरए खिा असधक कयना ऩिता है। सभिं से राब
होगा।
321: जभीन, भकान अथवा फाग-फगीिे से राब होगा।
धन प्राद्ऱ कयोगे, स्नेही जन से सभराऩ होगा। फकसी बी
भनुष्म के साथ सभिता होगी औय उसके द्राया धनाफद की
प्रासद्ऱ होगी। ऩुण्म के उदम से इच्छाएॉ ऩयीऩूणा होगी। धभा
का आयाधन कयो। दुश्भन रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय यहंगे,
फकन्तु सन्भुख होने से उनका जोय नहीॊ िरेगा। अऩनी
शत्रि के अनुसाय खिा कयो। भकान फनाने के भनोयथ
परीबूत हंगे। धन ऩैदा कयते हो, फकन्तु खिा असधक
होने से इकट्ठा नहीॊ होता है, त्रऩता से धन थोिा सभरेगा।
स्त्री की तयप से राब होगा। वृद्धावस्था भं धभा के कामा
फन सकते हं।
322: जो कामा आऩने भन भं त्रविाया है, उसभे शिु रोग
त्रवघ्न डारंगे, ऩरयणाभ अच्छा नहीॊ। याज्म की तयप से
नायाजगी होगी मफद सुखी होना िाहते हो, तो त्रविाया
हुआ कामा छोिकय दूसया कामा कयो, तुम्हाये सहमोगी
55 अगस्त 2014
फदर गए हं, उनका त्रवद्वास भत कयना। बजन-ऩूजन,
व्रत-सनमभ भं ध्मान दो।
323: स्जस कामा का भन भं त्रविाय फकमा है, उसभं राब
होगा, इच्छा ऩूणा होगी, स्नेही का सभराऩ होगा, जो जो
सिन्ताएॉ उऩस्स्थत हुई हं, वे सफ दूय हंगी। धभा के कामा
फन सकं गे। फहुत फदनं से ऩयदेश भं दु्ख प्राद्ऱ फकमा है,
फकन्तु अफ दु्ख के फदन गए। तीथामािा होगी। अफ देश
भं जाकय आनन्द प्राद्ऱ कयोगे। धभा के कामं भं रक्ष्म
यखो, स्जससे सफ सुख प्राद्ऱ कयोगे।
331: तुम्हाये भन की सिन्ता सभटेगी। फीभायी की
परयमाद दूय होगी। भन की धायणा ऩूणा होगी। थोिे फदनं
भं ही धन की प्रासद्ऱ होगी। स्नेही का सभराऩ होगा। धभा-
कभा भं ऩैसा खिा कयो, स्जससे ऩरयणाभ भं पामदा होगा।
अच्छे फदन आए हं, ऩाऩकभा से इतने फदन दु्ख प्राद्ऱ
फकमा है, ऩयन्तु अफ वे फीत गए हं।
332: फुये फदन गए अफ अच्छे फदन आए हं। जभीन तथा
धन-दौरत भं जो हासन हुई है, वह सभट जाएगी तथा
बत्रवष्म भं राब होगा। ऩयभेद्वय का ध्मान कयो। रृदम
शुद्ध है, स्जससे भन की सिन्ता जल्दी दूय होगी। ऩयदेश
भं यहे भनुष्म की सिन्ता है सो उसका सभराऩ होगा। धभा
के प्रबाव से सुखी हंगे।
333: इतने फदन सनधान अवस्था भं व्मतीत फकए, फकन्तु
अफ धन प्राद्ऱ होगा तथा भन की धायणा परीबूत होगी।
जीवनसाथी से सुख प्राद्ऱ होगा, तीन भफहने फाद अच्छे
फदन आएॉगे। इद्शदेव की आयाधना कयो। आभदनी से खिा
असधक है, धन इकट्ठा फकमा नहीॊ, सभि की तयप से
धोखा सभरा है, दुश्भन रोग ऩीछे से सनन्दा कयते हं,
फकन्तु साभने आकय फोर नहीॊ सकते। जभीन से राब
होगा। ऩयभेद्वय का जऩ कयो ।
त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि
आज के आधुसनक मुग भं सशऺा प्रासद्ऱ जीवन की भहत्वऩूणा आवश्मकताओॊ भं से एक है। फहन्दू धभा भं त्रवद्या की
असधद्षािी देवी सयस्वती को भाना जाता हं। इस सरए देवी सयस्वती की ऩूजा-अिाना से कृ ऩा प्राद्ऱ कयने से फुत्रद्ध कु शाग्र
एवॊ तीव्र होती है। आज के सुत्रवकससत सभाज भं िायं ओय फदरते ऩरयवेश एवॊ आधुसनकता की दौड भं नमे-नमे खोज
एवॊ सॊशोधन के आधायो ऩय फच्िो के फौसधक स्तय ऩय अच्छे त्रवकास हेतु त्रवसबन्न ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधााएॊ
होती यहती हं, स्जस भं फच्िे का फुत्रद्धभान होना असत आवश्मक हो जाता हं। अन्मथा फच्िा ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ
प्रसतस्ऩधाा भं ऩीछड जाता हं, स्जससे आजके ऩढेसरखे आधुसनक फुत्रद्ध से सुसॊऩन्न रोग फच्िे को भूखा अथवा फुत्रद्धहीन
मा अल्ऩफुत्रद्ध सभझते हं। एसे फच्िो को हीन बावना से देखने रोगो को हभने देखा हं, आऩने बी कई सैकडो फाय
अवश्म देखा होगा? ऐसे फच्िो की फुत्रद्ध को कु शाग्र एवॊ तीव्र हो, फच्िो की फौत्रद्धक ऺभता औय स्भयण शत्रि का त्रवकास
हो इस सरए सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक हो सकता हं। सयस्वती कवि को देवी सयस्वती के ऩयॊभ दूराब तेजस्वी
भॊिो द्राया ऩूणा भॊिससद्ध औय ऩूणा िैतन्ममुि फकमा जाता हं। स्जस्से जो फच्िे भॊि जऩ अथवा ऩूजा-अिाना नहीॊ कय
सकते वह त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सके औय जो फच्िे ऩूजा-अिाना कयते हं, उन्हं देवी सयस्वती की कृ ऩा शीघ्र प्राद्ऱ हो
इस सरमे सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक होता हं। सयस्वती कवि औय मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु
सॊऩका कयं।
सयस्वती कवि : भूल्म: 550 औय 460 सयस्वती मॊि :भूल्म : 370 से 1450 तक
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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56 अगस्त 2014
इद्श ऩूजन भं कये सही भारा का प्रमोग
 स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
साधाना भे भॊि जऩ के सरमे भारा का त्रवशेष भहत्व
होता है। त्रवसबन्न प्रकाय के कामा की ससत्रद्ध हेतु भारा का
िमन अऩने कामा उद्देश्म के अनुशाय कयने से साधक को
अऩने कामा की ससत्रद्ध जल्द प्राद्ऱ होती हं, क्मोकी भारा
का िमन स्जस इद्श की साधना कयनी हो, उस देवता से
सॊफॊसधत ऩदाथा से सनसभात भारा का प्रमोग अत्मासधक
प्रबाव शारी भाना गमा हं।
देवी- देवता फक त्रवषेश कृ ऩा प्रासद्ऱ के सरए उऩमुि भारा
का िमन कयना िाफहए-
रार िॊदन- (यि िॊदन भारा) गणेश, ऩुत्रद्श कभा, दूगाा,
भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए उत्तभ है।
द्वेत िॊदन- (सपे द िॊदन भारा) - रक्ष्भी एवॊ शुक्र ग्रह
फक प्रसन्नता हेतु।
तुरसी- त्रवष्णु, याभ व कृ ष्ण फक ऩूजा अिाना हेत॥
भूॊग- रक्ष्भी, गणेश, हनुभान, भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए
उत्तभ है।
भोती- रक्ष्भी, िॊद्रदेव फक प्रसन्नता हेतु।
कभर गटटा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हेतु।
हल्दी - फगराभुखी एवॊ फृहस्ऩसत (गुरु) फक प्रसन्नता हेतु।
कारी हल्दी- दुबााग्म नाश, भाॊ कारी फक प्रसन्नता हेतु।
स्पफटक - रक्ष्भी, सयस्वती, बैयवी की आयाधना के सरए
श्रेद्ष होती है।
िाॉदी - रक्ष्भी, िॊद्रदेव फक प्रसन्नता हेतु।
रुद्राऺ - सशव, हनुभान फक प्रसन्नता हेतु।
नवयत्न - नवग्रहो फक शाॊसत हेतु।
सुवणा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हेतु।
अकीक - (हकीक) फक भारा का प्रमोग उसके यॊगो के
अनुरुऩ फकमा जाता हं।
रुद्राऺ एवॊ स्पफटक की भारा सबी देवी- देता की ऩूजा
उऩासना भं प्रमोग फकमाजा सकता हं।
त्रवद्रानो ने भतानुशाय रुद्राऺ की भारा सवाश्रेद्ष होती हं।
रुद्राऺ की भारा से भन्ि जाऩ कयने से नवग्रहं के प्रबाव
बी स्वत् शाॊत होने रगते हं औय भनुष्म के अनॊत कोटी
ऩातको का शभन होता हं।
ग्रह शास्न्त हेतु भारा िमन:
1) सूमा के सरए भास्णक्म की भारा, गायनेट, भारा रुद्राऺ,
त्रफल्व की रकिी से फनी की भारा का प्रमोग कयना
राबप्रद होता हं।
2) िन्द्र के सरए भोती, शॊख, सीऩ की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं।
3) भॊगर के सरए भूॊगे मा रार िॊदन की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं।
4) फुध के सरए ऩन्ना मा कु शाभूर की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं।
5) फृहस्ऩसत के सरए हल्दी की भारा का प्रमोग कयना
राबप्रद होता हं।
6) शुक्र के सरए स्पफटक की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद
होता हं।
7) शसन के सरए कारे हकीक मा वैजमन्ती की भारा का
प्रमोग कयना राबप्रद होता हं।
8) याहु के सरए गोभेद मा िन्द की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं।
9) के तु के सरए हसुसनमा मा राजवता की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं।
57 अगस्त 2014
त्रवसबन्न काभना ऩूसता हेतु भारा का िमन
 भारा से भन्ि जऩ कयने का भूर उद्देश्म होता हं, फक
भारा हाथ भं यहने से ध्मान कभ बटकता हं औय भन की
एकाग्रता फढ़ती हं।
 काभना की ऩूसता के सरए िाॊदी की भारा से भॊि जाऩ
कयना िाफहए।
 धन, ऎद्वमा प्रासद्ऱ, ऩयीवाय सुख सभृत्रद्ध एवॊ शाॊती प्रासद्ऱ के
सरए स्पफटक की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
 सभस्त बोगं की प्रासद्ऱ के सरए यि (रार) िन्दन की
भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
 याजससक प्रमोजन तथा आऩदा से भुत्रि के सरए िाॉदी की
भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
 वशीकयण के सरए भोती की भारा से भॊि जाऩ कयना
िाफहए।
 आकषाण के सरए त्रवधुत भारा से भॊि जाऩ कयना
िाफहए।
 सॊतान प्रासद्ऱ के सरए ऩुि जीवा की से भॊि जाऩ कयना
िाफहए।
 असबिाय कभा के सरए कभर गट्टे की भारा से भॊि जाऩ
कयना िाफहए।
 ऩाऩ-नाश व दोष-भुत्रि के सरए कु श-भूर की भारा से
भॊि जाऩ कयना िाफहए।
 त्रवघ्नहयण के सरए हल्दी की भारा से भॊि जाऩ कयना
िाफहए।
 शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण कयने से
राब होता हं।
 नजय हयण हेतु हरयद्र की भारा, नजय होने से फिाव के
सरए व्माघ्र नख की भारा एवॊ शिु त्रवनाश के सरए कभर
गट्टे की भारा धायण फकमा जाता है। इस तयह हय भारा
अऩना अरग-अरग प्रबाव होता है।
 ऩद्म ऩुयाण भं उल्रेख है, फक तुरसी फक भारा गरे भं
धायण कयके बोजन कयने से अद्वभेघ मऻ के सभान पर
सभरता हं।
 तुरसी फक भारा गरे भं धायण कयके स्नान कयने से
सभस्त तीथो के स्नान का पर सभरता हं।
 तुरसी फक भारा गरे भं हो तो साधक को भोऺ की प्रासद्ऱ
होती हं।
 तुरसी की भारा से जऩ कयने से भन एकाग्रसित्त होता हं
औय योगं से बी सुयऺा होती है।
 स्पफटक की भारा शास्न्त कभा औय ऻान प्रासद्ऱ; भाॉ
सयस्वती व बैयवी की आयाधना के सरए श्रेद्ष होती है।
भॊि ससद्ध भारा
स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250
सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640
यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280
भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above
त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190
ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460
कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280
हल्दी भारा - Rs- 150, 280
तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370
नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730
हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730
भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above
वैजमॊती भारा Rs- 100,190
रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं।
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58 अगस्त 2014
कहीॊ आऩकी कुॊ डरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग तो नहीॊ ?
 सिॊतन जोशी
ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से
व्मत्रि को उदास, स्खन्न मा अवसाद भहसूस होता हं।
क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदैव भानससक
सिॊता औय ऩयेशानी भहसूस कयता हं। व्मत्रि हभेशा
सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय
सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर
जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की
उसे कजा के त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि
कफ होगा? व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं औय न
ही यात भं शकू न सभरता हं। व्मत्रि के यातो की सनॊद
हयाभ हो जाती हं।
आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता के दौड भं अॊधा
हो गमा हं। असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि फदन
यात एक कयके फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से
असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं। असभय
औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना
िाहता हं। क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ
को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩिता हं फडे से फडे
असभयं को बी कजा रेना ऩि जाता हं।
व्मत्रि सोिता हं अभुक राख, कयोड सभर जामे
तफ आयभ करुॊगा तफ भं िैन की नीॊद रूॊगा। उस िैन की
नीॊद ऩाने के सरमे ऩहरे कजा रेता हं मह सोि कय
अभुक धन यासश कजा रेता हं की कु छ भहीने सार भं
कजा री धन यासश को दौगुना, िौगुना मा सौगुना कय के
कु छ धन यासश जभा हो जाने ऩय मा भेया उद्देश्म ऩूणा हो
जाने ऩय भं कजा रौटा दुॊगा। रेफकन वास्तत्रवक जीवन भं
कबी-कबी ऎसा होना असधक कफठन हो जाता हं औय
व्मत्रि कजा के दरदर भं ढस जाता हं।
कजा एक एसा जार हं, स्जसभे व्मत्रि मफद एक
फाय पस गमा तो पसता ही िरा जाता हं।
ज्मोसतष शास्त्र के ग्रॊथो भं त्रवसबन्न प्रकाय के
याजमोग, धनमोग आफद त्रवशेष मोगो का उल्रेख सभरता
हं। फकसी जन्भ कुॊ डरी भं त्रवशेष प्रकाय के याजमोग,
धनमोग आफद होने के उऩयाॊत बी व्मत्रि अऩने जीवन भं
आसथाक सभस्मा से िस्त यहता हं। इस का एक प्रभुख
कायण हं जातक कई फाय कजा मा ऋण के फोझ के तरे
दफ जाता हं औय कजा उसका ऩीछा नहीॊ छोडता। भूर तो
भूर व्मत्रि को कजा िुकाने के सरमे कजा रेना ऩडता हं।
स्जसके परस्वरुऩ कजा फदन-प्रसतफदन कभने के फजाम
फढता ही जाता हं औय व्मत्रि अऩने जीवन का असधकतभ
फहसा के वर कजा िुकाते िुकाते व्मसतत कय देता हं।
याजमोग, धनमोग आफद शुब मोग होने ऩय बी ऎसा क्मं
होता हं? क्मो जातक कजा के दरदर भं पसता िरा
जाता हं?
सायावरी, जातकाबयण, स्कॊ द आफद ज्मोसतष के
प्रभुख ग्रॊथो के अनुशाय व्मत्रि की जन्भ कुॊ डरी भं िाहे
फकतने बी याजमोग, धनमोग आफद शुबमोग भौजुद हो
रेफकन मफद कुॊ डरी भं ग्रहो की स्स्थसत मफद अशुब हो तो
जातक को कजा के फोझ से राद देती हं। जफ अशुब ग्रहो
की भहादशा मा अॊतयदशा होती हं तफ कजा भं औय
फढोतयी होती हं।
सूमा:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा यासश के 10 अॊश का सूमा
रग्न भं स्स्थत हो।
59 अगस्त 2014
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा का सूमा नवाॊश बी तुरा
यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष सूमा भेष यासश का हो,
नवाॊश भं तुरा यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं बावं
को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक सूमा के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
िॊद्र:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं वृस्द्ळक यासश के 3 अॊश का िॊद्र
ितुथा बाव भं स्स्थत हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं िॊद्र के कायण के भद्रुभ मोग
फनयहा हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं िॊद्र वृषब यासश का हो औय
नवाॊश भं वृस्द्ळक यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं
बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं िॊद्र वृस्द्ळक
यासश का हो।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक ऋणग्रस्त होता हं।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक िॊद्र के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
भॊगर:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं कका यासश के 28 अॊश का
भॊगर रग्न भं स्स्थत हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं भॊगर कका
यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भकय यासश का भॊगर नवाॊश भं
कका यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं नीि एवॊ वक्री होकय के न्द्र
स्थान मा त्रिकोण भं स्स्थत हं।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक भॊगर के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
फुध:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन यासश के 15 अॊश का फुध
सद्ऱभ बाव भं स्स्थत हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं फुध भीन
यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं कन्मा यासश का फुध नवाॊश भं
भीन यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय
अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन फुध वक्री होकय धन स्थान
भं स्स्थत हं।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक फुध के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
गुरु:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भकय यासश के 5 अॊश का गुरु
नवभ बाव भं स्स्थत हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं गुरु भकय
यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं कका यासश का गुरु नवाॊश भं
नीि का हो।
 गुरु नीि का हो, वक्री हो औय के न्द्र मा त्रिकोण भं
स्स्थत हो।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक गुरु के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
शुक्र:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं कन्मा यासश के 27 अॊश का
शुक्र ऩॊिभ बाव भं स्स्थत हो।
60 अगस्त 2014
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शुक्र कन्मा
यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय अन्म
फकसी बाव भं स्स्थत हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन यासश का शुक्र नवाॊश भं
कन्मा यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं नीि का शुक्र के न्द्र मा त्रिकोण
भं वक्री हो।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक शुक्र के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
शसन:
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश के 20 अॊश का शसन
फद्रसतम बाव भं स्स्थत हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शसन भेष
यासश का हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश का शसन के न्द्र मा
त्रिकोण भं वक्री हो।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा यासश का शसन नवाॊश भं
भेष यासश का हो।
 उि ग्रह स्स्थती से जातक शसन के कायण ऋणग्रस्त
होता हं।
दशा के अनुशाय ऋणग्रस्त होने के मोग
 मफद रग्न से छठे बाव भं सूमा औय िॊद्र स्स्थत हो
उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो सूमा एवॊ िॊद्र की
भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश भं िॊद्र औय भॊगर
स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो िॊद्र व
भॊगर की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं शसन के न्द्र स्थान भं स्स्थत हो,
िॊद्र रग्न भं औय गुरु द्रादश बाव भं स्स्थत हो, तो
जातक हभेशा कजा के दरदर भं पसा यहता हं। .
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह के न्द्र स्थान भं
स्स्थत हो तो जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह तीसये बाव भं स्स्थत
हो द्रादश बाव का स्वाभी दूसये बाव भं हो तो जातक
कजा के िक्कय भं िारू यहता हं।
 मफद िॊद्र शसन के नवाॊश भं मा शसन से मुि हो कय
रग्नेश से द्रद्श हो तो कजा फना यहता हं।
 गुसरका के 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं स्स्थत होने से बी
जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं।
 मफद जातक भं येका नाभ का मोग हो तो बी बी
जातक ऩय कजा फना यहता हं।
 मफद जन्भ कुॊ डरी भं रग्न से 22वाॊ द्रेष्कोण होने ऩय
बी धन घोतक बानो भं हो तो कजा होने की स्स्थते
फनी यहती हं।
 मफद 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं ऩाऩकतायी मोग भं फन
जामे तो बी कजा फनता हं।
 मफद रग्न भं कन्मा का शुक्र, ऩॊिभ बाव भं भकय
का गुरु, एकादश बाव भं कका का भॊगर औय तृतीम
बाव भं वृस्द्ळक का िॊद्र हो तो व्मत्रि हभेशा कजा के
फोझ से रदा यहता हं।
उऩय दशाामी गई दशा भं जातक न िाहते हुए बी
ऋणग्रस्त हो जाता हं। कजा के फोझ से भुत्रि
ऩाने हेतु शास्त्रं भं त्रवसबन्न मॊि, भॊि, तॊि के
अनेक उऩाम फतामे गमे हं स्जसे कयने ऩय व्मत्रि
को शीघ्रता से ऋण के फोझ से छु टकाया सभर
सके ।
***
61 अगस्त 2014
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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62 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभा
ऩायद श्री मॊि ऩायद रक्ष्भी गणेश ऩायद रक्ष्भी नायामण ऩायद रक्ष्भी नायामण
21 Gram से 5.250 Kg तक
उऩरब्ध
100 Gram 121 Gram 100 Gram
ऩायद सशवसरॊग ऩायद सशवसरॊग+नॊफद ऩायद सशवजी ऩायद कारी
21 Gram से 5.250 Kg तक
उऩरब्ध
101 Gram से 5.250 Kg
तक उऩरब्ध
75 Gram 37 Gram
ऩायद दुगाा ऩायद दुगाा ऩायद सयस्वती ऩायद सयस्वती
82 Gram 100 Gram 50 Gram 225 Gram
ऩायद हनुभान 2 ऩायद हनुभान 3 ऩायद हनुभान 1 ऩायद कु फेय
100 Gram 125 Gram 100 Gram 100 Gram
हभायं महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभाएॊ, सशवसरॊग, त्रऩयासभड, भारा एवॊ गुफटका शुद्ध ऩायद भं उऩरब्ध हं।
त्रफना भॊि ससद्ध की हुई ऩायद प्रसतभाएॊ थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं।
ज्मोसतष, यत्न व्मवसाम, ऩूजा-ऩाठ इत्माफद ऺेि से जुडे़ फॊधु/फहन के सरमे हभायं त्रवशेष मॊि, कवि, यत्न, रुद्राऺ व अन्म दुरब
साभग्रीमं ऩय त्रवशेष सुत्रफधाएॊ उऩरब्ध हं। असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं।
63 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध गोभसत िक्र
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 हभायं महाॊ त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्माओॊ के सनवायण हेतु भॊि ससद्ध
गोभसत िक्र भं उऩरब्ध हं।  त्रफना भॊि ससद्ध फकमे हुवे गोभसत िक्र
थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं।
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64 अगस्त 2014
हभाये त्रवशेष मॊि
व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि: हभाये अनुबवं के अनुसाय मह मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ ऩरयवाय भं सुख सभृत्रद्ध हेतु त्रवशेष प्रबावशारी हं।
बूसभराब मॊि: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुिे रोगं के सरए बूसभराब मॊि त्रवशेष राबकायी ससद्ध
हुवा हं।
तॊि यऺा मॊि: फकसी शिु द्राया फकमे गमे भॊि-तॊि आफद के प्रबाव को दूय कयने एवॊ बूत, प्रेत नज़य आफद फुयी शत्रिमं
से यऺा हेतु त्रवशेष प्रबावशारी हं।
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि: अऩने नाभ के अनुसाय ही भनुष्म को आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ हेतु परप्रद हं इस मॊि के
ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राद्ऱ होता हं। िाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-सॊऩत्रत्त
इत्माफद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राद्ऱ हो सकता हं। हभाये वषं के अनुसॊधान एवॊ अनुबवं से हभने आकस्स्भक
धन प्रासद्ऱ मॊि से शेमय ट्रेफडॊग, सोने-िाॊदी के व्माऩाय इत्माफद सॊफॊसधत ऺेि से जुडे रोगो को त्रवशेष रुऩ से आकस्स्भक
धन राब प्राद्ऱ होते देखा हं। आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से त्रवसबन्न स्रोोत से धनराब बी सभर सकता हं।
ऩदौन्नसत मॊि: ऩदौन्नसत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हं। स्जन रोगं को अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेद्ष कामा
कयने ऩय बी नौकयी भं उन्नसत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह त्रवशेष राबप्रद हो सकता हं।
यत्नेद्वयी मॊि: यत्नेद्वयी मॊि हीये-जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना-िाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुडे रोगं के सरए
असधक प्रबावी हं। शेय फाजाय भं सोने-िाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भं सनवेश कयने वारे रोगं के सरए बी त्रवशेष
राबदाम हं।
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग खेती, व्मवसाम मा सनवास स्थान हेतु उत्तभ बूसभ आफद प्राद्ऱ कयना िाहते हं, रेफकन उस
कामा भं कोई ना कोई अििन मा फाधा-त्रवघ्न आते यहते हो स्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हं।
गृह प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग स्वमॊ का घय, दुकान, ओफपस, पै क्टयी आफद के सरए बवन प्राद्ऱ कयना िाहते हं। मथाथा
प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गृह प्रासद्ऱ मॊि त्रवशेष उऩमोगी ससद्ध हो सकता हं।
कै रास धन यऺा मॊि: कै रास धन यऺा मॊि धन वृत्रद्ध एवॊ सुख सभृत्रद्ध हेतु त्रवशेष परदाम हं।
आसथाक राब एवॊ सुख सभृत्रद्ध हेतु 19 दुराब रक्ष्भी मॊि >> Order Now
त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि कनक धाया मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि)
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि >> Order Now
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65 अगस्त 2014
सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका
इस भुफद्रका भं भूॊगे को शुब भुहूता भं त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफं) भं जिवा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध-
त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्धदामक फनाने हेतु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि फकमा
जाता हं। इस भुफद्रका को फकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की फकसी बी उॊगरी भं धायण कय सकते हं।
महॊ भुफद्रका कबी फकसी बी स्स्थती भं अऩत्रवि नहीॊ होती। इस सरए कबी भुफद्रका को उतायने की
आवश्मिा नहीॊ हं। इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हं। धायणकताा
को जीवन भं सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हं औय जीवन भं सबी प्रकाय
की ससत्रद्धमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हं। भूल्म भाि- 6400/- >> Order Now
(नोट: इस भुफद्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हं।)
सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कयं।
ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हेतु
मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफि भे करह होता यहता हं,
तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत
ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-
त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह
नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका आऩ कय सकते हं।
100 से असधक जैन मॊि
हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दुराब एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि,
ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्ध हं।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है। इसके
अरावा आऩकी आवश्मकता अनुसाय आऩके द्राया प्राद्ऱ (सिि, मॊि, फिज़ाईन) के अनुरुऩ मॊि बी फनवाए
जाते है. गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ 22 गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र
ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 के येट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है। मॊि के त्रवषम भे
असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कयं।
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66 अगस्त 2014
द्रादश भहा मॊि
मॊि को असत प्रासिन एवॊ दुराब मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान
द्राया फनामा गमा हं।
 ऩयभ दुराब वशीकयण मॊि,
 बाग्मोदम मॊि
 भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्ध मॊि
 याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि
 गृहस्थ सुख मॊि
 शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि
 सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि
 आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि
 ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदेव मॊि
 योग सनवृत्रत्त मॊि
 साधना ससत्रद्ध मॊि
 शिु दभन मॊि
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा
प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते हं। स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-
त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। >> Order Now
 क्मा आऩके फच्िे कु सॊगती के सशकाय हं?
 क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं?
 क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं?
घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कु सॊगती से छु डाने हेतु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत
द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ
एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ
त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी
फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका इस कय सकते हं।
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68 अगस्त 2014
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69 अगस्त 2014
अगस्त 2014 भाससक ऩॊिाॊग
फद
वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ नऺि सभासद्ऱ मोग सभासद्ऱ कयण सभासद्ऱ
िॊद्र
यासश
सभासद्ऱ
1 शुक्र
श्रावण
शुक्र
ऩॊिभी
15:47:02 उत्तयापाल्गुनी 05:46:06 सशव 09:30:09 फारव 15:47:02 कन्मा -
2 शसन
श्रावण
शुक्र
षद्षी
17:17:36 हस्त 08:05:25 ससद्ध 09:51:21 तैसतर 17:17:36 कन्मा 21:03:00
3 यत्रव
श्रावण
शुक्र
सद्ऱभी
18:09:43 सििा 09:50:58 साध्म 09:45:21 गय 05:49:06 तुरा -
4 सोभ
श्रावण
शुक्र
अद्शभी
18:17:47 स्वाती 10:54:21 शुब 09:05:36 त्रवत्रद्श 06:20:36 तुरा 29:11:00
5 भॊगर
श्रावण
शुक्र
नवभी
17:36:10 त्रवशाखा 11:09:55 शुक्र 07:47:25 फारव 06:03:21 वृस्द्ळक -
6 फुध
श्रावण
शुक्र
दशभी
16:04:51 अनुयाधा 10:37:40 ब्रह्म 05:49:51 गय 16:04:51 वृस्द्ळक -
7 गुरु
श्रावण
शुक्र
एकादशी
13:48:32 जेद्षा 09:17:36 वैधृसत 23:59:47 त्रवत्रद्श 13:48:32 वृस्द्ळक 09:17:00
8 शुक्र
श्रावण
शुक्र द्रादशी-
िमोदशी
10:51:54 भूर 07:15:21 त्रवषकुॊ ब 20:18:09 फारव 10:51:54 धनु -
9 शसन
श्रावण
शुक्र िमोदशी -
ितुदाशी
07:24:20 उत्तयाषाढ़ 25:45:54 प्रीसत 16:14:02 तैसतर 07:24:20 धनु 09:59:00
10 यत्रव
श्रावण
शुक्र
ऩूस्णाभा
23:39:54 श्रवण 22:39:54 आमुष्भान 11:56:46 त्रवत्रद्श 13:38:57 भकय -
11 सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
एकभ
19:45:08 धसनद्षा 19:34:49 सौबाग्म 07:35:46 फारव 09:41:23 भकय 09:06:00
12 भॊगर
बाद्रऩद
कृ ष्ण
फद्रतीमा
16:02:34 शतसबषा 16:42:52 असतगॊड 23:18:30 तैसतर 05:52:15 कुॊ ब -
13 फुध
बाद्रऩद
कृ ष्ण
तृतीमा
12:44:21 ऩूवााबाद्रऩद 14:14:21 सुकभाा 19:39:40 त्रवत्रद्श 12:44:21 कुॊ ब 08:49:00
14 गुरु
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ितुथॉ
09:58:58 उत्तयाबाद्रऩद 12:19:35 धृसत 16:29:54 फारव 09:58:58 भीन -
15 शुक्र
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ऩॊिभी
07:52:57 येवसत 11:05:08 शूर 13:54:49 तैसतर 07:52:57 भीन 11:06:00
70 अगस्त 2014
16 शसन
बाद्रऩद
कृ ष्ण
षद्षी
06:30:59 अस्द्वनी 10:35:41 गॊड 11:55:22 वस्णज 06:30:59 भेष -
17 यत्रव
बाद्रऩद
कृ ष्ण
सद्ऱभी
05:56:50 बयणी 10:53:05 वृत्रद्ध 10:33:24 फव 05:56:50 भेष 17:04:00
18 सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
अद्शभी
06:06:45 कृ सतका 11:53:38 ध्रुव 09:47:04 कौरव 06:06:45 वृष -
19 भॊगर
बाद्रऩद
कृ ष्ण
नवभी
06:57:55 योफहस्ण 13:31:40 व्माघात 09:32:36 गय 06:57:55 वृष 26:33:00
20 फुध
बाद्रऩद
कृ ष्ण
दशभी
08:24:42 भृगसशया 15:42:30 हषाण 09:43:27 त्रवत्रद्श 08:24:42 सभथुन -
21 गुरु
बाद्रऩद
कृ ष्ण
एकादशी
10:16:47 आद्रा 18:15:51 वज्र 10:14:55 फारव 10:16:47 सभथुन -
22 शुक्र
बाद्रऩद
कृ ष्ण
द्रादशी
12:27:38 ऩुनवासु 21:04:11 ससत्रद्ध 10:59:30 तैसतर 12:27:38 सभथुन 14:21:00
23 शसन
बाद्रऩद
कृ ष्ण
िमोदशी
14:49:43 ऩुष्म 24:01:54 व्मसतऩात 11:52:32 वस्णज 14:49:43 कका -
24 यत्रव
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ितुदाशी
17:16:29 आद्ऴेषा 27:02:25 वरयमान 12:51:10 शकु सन 17:16:29 कका 27:02:00
25 सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
अभावस्मा
19:43:15 भघा 30:00:08 ऩरयग्रह 13:48:53 ितुष्ऩाद 06:30:08 ससॊह -
26 भॊगर
बाद्रऩद
शुक्र
एकभ
22:04:24 भघा 06:00:39 सशव 14:43:46 फकस्तुघ्न 08:54:05 ससॊह -
27 फुध
बाद्रऩद
शुक्र
फद्रतीमा
24:16:10 ऩूवाापाल्गुनी 08:50:51 ससद्ध 15:32:06 फारव 11:11:28 ससॊह 15:32:00
28 गुरु
बाद्रऩद
शुक्र
तृतीमा
26:10:07 उत्तयापाल्गुनी 11:30:44 साध्म 16:08:14 तैसतर 13:15:44 कन्मा -
29 शुक्र
बाद्रऩद
शुक्र
ितुथॉ
27:42:30 हस्त 13:50:56 शुब 16:31:15 वस्णज 15:00:19 कन्मा 26:53:00
30 शसन
बाद्रऩद
शुक्र
ऩॊिभी
28:46:45 सििा 15:47:41 शुक्र 16:32:41 फव 16:19:34 तुरा -
31 यत्रव
बाद्रऩद
शुक्र
षद्षी
29:15:23 स्वाती 17:12:34 ब्रह्म 16:08:49 कौरव 17:06:00 तुरा -
71 अगस्त 2014
अगस्त 2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय
फद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ प्रभुख व्रत-त्मोहाय
1 शुक्र श्रावण शुक्र ऩॊिभी 15:47:02
नागऩॊिभी, तऺक ऩूजन, श्रीहनुभद्द्ध्वजायोहण, जाग्रतगौयी ऩूजा (ओडीसा),
वयदरक्ष्भी व्रत, स्कन्दषद्षी व्रत, श्रीकस्ल्क अवताय षद्षी,
2 शसन श्रावण शुक्र षद्षी 17:17:36 -
3 यत्रव श्रावण शुक्र सद्ऱभी 18:09:43
गोस्वाभी तुरसीदास जमन्ती, भोऺ सद्ऱभी, बानु-सद्ऱभी ऩवा (सूमाग्रहण सभान
परदामी), शीतरा सद्ऱभी (गुजयात),
4 सोभ श्रावण शुक्र अद्शभी 18:17:47
श्रावण सोभवाय व्रत, श्रीदुगााद्शभी व्रत, श्रीअन्नऩूणााद्शभी व्रत
5 भॊगर श्रावण शुक्र नवभी 17:36:10
बौभव्रत, भॊगरागौयी ऩूजन, नकु र नवभी, वैधृसत भहाऩात प्रात: 8.37 से यात्रि 8.03
फजे तक,
6 फुध श्रावण शुक्र दशभी 16:04:51 -
7 गुरु श्रावण शुक्र एकादशी 13:48:32
ऩुिदा एकादशी, ऩत्रविा एकादशी व्रत, ऩत्रविा ग्मायस (ऩुत्रद्शभागा), दाभोदय
द्रादशी
8 शुक्र श्रावण शुक्र
द्रादशी-
िमोदशी
10:51:54
प्रदोष व्रत, ऩत्रविा द्रादशी, श्रीधय द्रादशी, श्रावण द्रादशी, श्माभफाफा द्रादशी,
वयद्द्रक्ष्भीव्रत,
9 शसन श्रावण शुक्र
िमोदशी -
ितुदाशी
07:24:20 आखेटक िमोदशी, सशव-ऩत्रविायोऩण, सशव ितुदाशी, अद्वत्थभारुसत-ऩूजन
10 यत्रव श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा 23:39:54
यऺाफन्धन, फदन 1.37 के ऩद्ळमात(बद्रा के उऩयान्त) याखी फाॉधना
शुबपरदामक, स्नान-दान-व्रत हेतु उत्तभ श्रावणी ऩूस्णाभा, ऋग्वेदी-मजुवेदी
श्रावणी, गामिी जमन्ती, हमग्रीव जमन्ती, सॊस्कृ त फदवस, रव-कु श जमन्ती,
फरबद्रऩूजन (ओडीसा), श्रीसत्मनायामण ऩूजा-कथा
11 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण एकभ 19:45:08 बाद्रऩद भं िातुभाास भं दही सनषेध, अशून्मशमन व्रत, गामिी ऩुयद्ळयण प्रायम्ब,
12 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 16:02:34 कज्जरी (कजयी) तीज का जागयण
13 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 12:44:21
कज्जरी (कजयी) तीज, सातुडी तीज, फूढी तीज, सॊकद्शी श्रीगणेशितुथॉ व्रत
(िॊद्रोदम.या.8:40), फहुरा ितुथॉ (भ.प्र), त्रवनामक ितुथॉ व्रत (सभसथराॊिर),
गो-ऩूजन, त्रवशाराऺी दशान (काशी)
14 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण ितुथॉ 09:58:58
15 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊिभी 07:52:57
स्वतन्िता फदवस, यऺाऩॊिभी, कोफकरा ऩॊिभी (जैन), नागऩॊिभी (गुजयात),
िन्द्रषद्षी व्रत, भहत्रषा अयत्रवन्द जमन्ती, गोगा ऩॊिभी
16 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:30:59
ररही छठ, हरषद्षी व्रत. िन्दन षद्षी , शीतरा सद्ऱभी (ओडीसा), वैधृसत
भहाऩात फदन 3.03 से यात्रि 10.36 फजे तक
72 अगस्त 2014
17 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 05:56:50
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (स्भाता), भोहयात्रि, आद्याकारी जमन्ती, दूवााद्शभी व्रत,
काराद्शभी व्रत, सॊत ऻानेद्वय जमन्ती, ससॊह सॊक्रास्न्त प्रात: 6.14 फजे, स्नान-
दान का ऩुण्मकार सूमोदम से फदन 12.38 फजे तक, ससॊहाफद नववषाायम्ब
(के यर)
18 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 06:06:45
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (वैष्णव), गोकु राद्शभी (ब्रज), दही-हाण्डी (भुम्फई),
योफहणी व्रत,
19 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 06:57:55 नन्दोत्सव (ब्रज), श्रीकृ ष्ण योफहणी व्रत, गोगा नवभी
20 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 08:24:42 -
21 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 10:16:47 अजा एकादशी व्रत, जमा एकादशी व्रत, फृहस्ऩसत-ऩूजन
22 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 12:27:38
गोवत्स द्रादशी व्रत, गौ-फछडा फायस, प्रदोष व्रत, जैन ऩमुाषण ऩवा प्रायम्ब
(ितुथॉ ऩऺ), कसरमुगाफद (अद्र्धयात्रिकारीन िमोदशी), ऩुष्म नऺि (यात्रि
09:04:11 से)
23 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 14:49:43
भाससक सशवयात्रि व्रत, अघोय ितुदाशी, सशव ितुदाशी, द्वेताॊफय जैन ऩमुाषण ऩवा
प्रायॊब, सूमा सामन कन्मा यासश भं प्रात: 10.17 फजे, सौय शयद् ऋतु प्रायम्ब,
ऩुष्म नऺि (यात्रि 12:01:54 तक)
24 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण ितुदाशी 17:16:29 त्रऩठोयी अभावस,
25 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अभावस्मा 19:43:15
स्नान-दान-श्राद्ध हेतु उत्तभ सोभवती बाद्रऩदी अभावस्मा, सोभवायी व्रत,
कु शग्रहणी अभावस, रोहागार-स्नान, भहाकार की शाही सवायी (उज्जसमनी),
भौन व्रतायम्ब, कल्ऩसूि वािन (जैन), रस्ब्धत्रवधान व्रत 5 फदन (फद.जै.)
26 भॊगर बाद्रऩद शुक्र एकभ 22:04:24 निव्रत ऩूणा, रुद्रव्रत, भहावीय जन्भोत्सव एवॊ भहावीय जन्भवािन (जैन)
27 फुध बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 24:16:10 नवीन िन्द्र-दशान, भदय टेयेसा जमॊती, तैराधाय तऩ प्रा. (जैन)
28 गुरु बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 26:10:07
हरयतासरका तीज, फडी तीज व्रत, गौयी तीज (ओडीसा), के वडा तीज,
वायाहावताय जमन्ती, त्रिरोक तीज (फदग.जैन), साभवेदी श्रावणी
29 शुक्र बाद्रऩद शुक्र ितुथॉ 27:42:30
ससत्रद्धत्रवनामक (वयदत्रवनामक) ितुथॉ व्रत, श्रीगणेशोत्सव प्रायम्ब (िॊद्र अस्त
या.8:46), िॊद्रदशान सनषेध, िौथ िॊद्र, ऩत्थय िौथ, ढेरा िौथ, िौठ िन्द्र
(सभसथराॊिर), सौबाग्म ितुथॉ व्रत (ऩ.फॊ), सयस्वती ऩूजा (ओडीसा), जैन
सॊवत्सयी (ितुथॉ ऩऺ), वैधृसत भहाऩात देय यात 12.38 से आगाभी प्रात:
7.08 फजे तक
30 शसन बाद्रऩद शुक्र ऩॊिभी 28:46:45
ऋत्रष ऩॊिभी व्रत, सद्ऱत्रषा ऩूजन, गगा जमन्ती, अॊसगया ऋत्रष जमन्ती, यऺाऩॊिभी
(ऩ.फॊ), गुरु ऩॊिभी (ओडीसा), वायाह ऩॊिभी, आकाश ऩॊिभी, ऺभावाणी ऩवा
(जैन), जैन सॊवत्सयी (ऩॊिभी ऩऺ), फदगॊफय जैन ऩमुाषण ऩवा प्रायॊब, दशरऺण
व्रत 10 फदन एवॊ ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फद.जै.)
31 यत्रव बाद्रऩद शुक्र षद्षी 29:15:23
सूमाषद्षी व्रत, रोराका छठ, िॊऩा षद्षी, भन्थनषद्षी (ऩ.फॊ), रसरता षद्षी, फरदेव
छठ (ब्रज), स्कन्दषद्षी व्रत, िॊदनषद्षी (जैन)
73 अगस्त 2014
सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊफडत
ऩुरुषाकाय शसन मॊि
ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हेतु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे)
भं फनामा गमा हं। स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं। मफद जन्भ कुॊ डरी भं
शसन प्रसतकू र होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है, कबी व्मवसाम भं घटा,
नौकयी भं ऩयेशानी, वाहन दुघाटना, गृह क्रेश आफद ऩयेशानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं
प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीिा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थाऩना कयने से
अनेक राब सभरते हं। मफद शसन की ढै़मा मा साढ़ेसाती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना िाफहए।
शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटाके श, जोडो का ददा, फात योग तथा रम्फे सभम
के सबी प्रकाय के योग से ऩयेशान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आफद
के रोगं को ऩदौन्नसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया
शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है। भूल्म: 1050 से 8200 >> Order Now
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शसनग्रह से सॊफॊसधत ऩीडा के सनवायण हेतु त्रवशेष राबकायी मॊि।
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74 अगस्त 2014
नवयत्न जफित श्री मॊि
शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत
भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न
जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि
कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत
स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं धायण
कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी
की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास
होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं।
नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं
की अशुब दशा का धायणकयने वारे व्मत्रि
ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं।
गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो
जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी
प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस प्रकाय के
नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते
हं। Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक >> Order Now
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75 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि
ऩौयास्णक ग्रॊथो भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध के सभम अजुान के यथ के अग्रबाग ऩय भारुसत ध्वज एवॊ
भारुसत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩूणा मुद्ध के दौयान हज़ायं-राखं प्रकाय के आग्नेम अस्त्र-
शस्त्रं का प्रहाय होने के फाद बी अजुान का यथ जया बी ऺसतग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृ ष्ण भारुसत मॊि के इस
अद्भुत यहस्म को जानते थे फक स्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुसत नॊदन कयते हं, वह दुघाटनाग्रस्त कै से हो
सकता हं। वह यथ मा वाहन तो वामुवेग से, सनफाासधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय त्रवजम ऩतका रहयाता हुआ ऩहुॊिेगा।
इसी सरमे श्री कृ ष्ण नं अजुान के यथ ऩय श्री भारुसत मॊि को अॊफकत कयवामा था।
स्जन रोगं के स्कू टय, काय, फस, ट्रक इत्माफद वाहन फाय-फाय दुघाटना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को
नुऺान हो यहा हं! उन्हं हानी एवॊ दुघाटना से यऺा के उद्देश्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससद्ध श्री भारुसत मॊि अवश्म
रगाना िाफहए। जो रोग ट्रान्स्ऩोफटंग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हं उनको श्रीभारुसत मॊि को अऩने वाहन भं अवश्म
स्थात्रऩत कयना िाफहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडं रोगं का अनुबव यहा हं की श्री भारुसत मॊि को स्थात्रऩत
कयने से उनके वाहन असधक फदन तक अनावश्मक खिो से एवॊ दुघाटनाओॊ से सुयस्ऺत यहे हं। हभाया स्वमॊका एवॊ अन्म
त्रवद्रानो का अनुबव यहा हं, की स्जन रोगं ने श्री भारुसत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हं, उन रोगं के वाहन फडी से
फडी दुघाटनाओॊ से सुयस्ऺत यहते हं। उनके वाहनो को कोई त्रवशेष नुक्शान इत्माफद नहीॊ होता हं औय नाहीॊ अनावश्मक
रुऩ से उसभं खयाफी आसत हं।
वास्तु प्रमोग भं भारुसत मॊि: मह भारुसत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है। मफद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा उस
ऩय कोई वाद-त्रववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उसित भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुसत मॊि का
प्रमोग फकमा जा सकता हं। इस भारुसत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा त्रववादभुि हो जाएगी। इस सरमे
मह मॊि दोहयी शत्रि से मुि है।
भारुसत मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं। भूल्म Rs- 255 से 10900 तक
श्री हनुभान मॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमादेव ने ब्रह्मा जी के आदेश ऩय हनुभान
जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भं हनुभान को सबी शास्त्र का ऩूणा
ऻान दूॉगा। स्जससे मह तीनोरोक भं सवा श्रेद्ष विा हंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भं इन्हं भहायत हाससर होगी औय इनके
सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषं की त्रवसबन्न फीभारयमं
दूय होती हं, इस मॊि भं अद्भुत शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा,
नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दूय कयने भं अत्मन्त राबकायी हं। अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श कयता
हं। श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, िोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन
स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हं औय ससत्रद्ध प्रदान कयने भं सऺभ हं।
श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं। भूल्म Rs- 730 से 10900 तक
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76 अगस्त 2014
त्रवसबन्न देवताओॊ के मॊि
गणेश मॊि भहाभृत्मुॊजम मॊि याभ यऺा मॊि याज
गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) भहाभृत्मुॊजम कवि मॊि याभ मॊि
गणेश ससद्ध मॊि भहाभृत्मुॊजम ऩूजन मॊि द्रादशाऺय त्रवष्णु भॊि ऩूजन मॊि
एकाऺय गणऩसत मॊि भहाभृत्मुॊजम मुि सशव खप्ऩय भाहा सशव मॊि त्रवष्णु फीसा मॊि
हरयद्रा गणेश मॊि सशव ऩॊिाऺयी मॊि गरुड ऩूजन मॊि
कु फेय मॊि सशव मॊि सिॊताभणी मॊि याज
श्री द्रादशाऺयी रुद्र ऩूजन मॊि अफद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि सिॊताभणी मॊि
दत्तािम मॊि नृससॊह ऩूजन मॊि स्वणााकषाणा बैयव मॊि
दत्त मॊि ऩॊिदेव मॊि हनुभान ऩूजन मॊि
आऩदुद्धायण फटुक बैयव मॊि सॊतान गोऩार मॊि हनुभान मॊि
फटुक मॊि श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि सॊकट भोिन मॊि
व्मॊकटेश मॊि कृ ष्ण फीसा मॊि वीय साधन ऩूजन मॊि
कातावीमााजुान ऩूजन मॊि सवा काभ प्रद बैयव मॊि दस्ऺणाभूसता ध्मानभ ् मॊि
भनोकाभना ऩूसता एवॊ कद्श सनवायण हेतु त्रवशेष मॊि
व्माऩाय वृत्रद्ध कायक मॊि अभृत तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि िम ताऩंसे भुत्रि दाता फीसा मॊि
व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि त्रवजमयाज ऩॊिदशी मॊि भधुभेह सनवायक मॊि
व्माऩाय वधाक मॊि त्रवद्यामश त्रवबूसत याज सम्भान प्रद ससद्ध फीसा मॊि ज्वय सनवायण मॊि
व्माऩायोन्नसत कायी ससद्ध मॊि सम्भान दामक मॊि योग कद्श दरयद्रता नाशक मॊि
बाग्म वधाक मॊि सुख शाॊसत दामक मॊि योग सनवायक मॊि
स्वस्स्तक मॊि फारा मॊि तनाव भुि फीसा मॊि
सवा कामा फीसा मॊि फारा यऺा मॊि त्रवद्युत भानस मॊि
कामा ससत्रद्ध मॊि गबा स्तम्बन मॊि गृह करह नाशक मॊि
सुख सभृत्रद्ध मॊि ऩुि प्रासद्ऱ मॊि करेश हयण फत्रत्तसा मॊि
सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि प्रसूता बम नाशक मॊि वशीकयण मॊि
सवा सुख दामक ऩंसफठमा मॊि प्रसव-कद्शनाशक ऩॊिदशी मॊि भोफहसन वशीकयण मॊि
ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि शाॊसत गोऩार मॊि कणा त्रऩशािनी वशीकयण मॊि
सवा ससत्रद्ध मॊि त्रिशूर फीशा मॊि वाताारी स्तम्बन मॊि
साफय ससत्रद्ध मॊि ऩॊिदशी मॊि (फीसा मॊि मुि िायं प्रकायके ) वास्तु मॊि
शाफयी मॊि फेकायी सनवायण मॊि श्री भत्स्म मॊि
ससद्धाश्रभ मॊि षोडशी मॊि वाहन दुघाटना नाशक मॊि
ज्मोसतष तॊि ऻान त्रवऻान प्रद ससद्ध फीसा मॊि अडसफठमा मॊि प्रेत-फाधा नाशक मॊि
ब्रह्माण्ड साफय ससत्रद्ध मॊि अस्सीमा मॊि बूतादी व्मासधहयण मॊि
कु ण्डसरनी ससत्रद्ध मॊि ऋत्रद्ध कायक मॊि कद्श सनवायक ससत्रद्ध फीसा मॊि
क्रास्न्त औय श्रीवधाक िंतीसा मॊि भन वाॊसछत कन्मा प्रासद्ऱ मॊि बम नाशक मॊि
श्री ऺेभ कल्माणी ससत्रद्ध भहा मॊि त्रववाहकय मॊि स्वप्न बम सनवायक मॊि
77 अगस्त 2014
ऻान दाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कु दृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि
भॊि ससद्ध त्रवशेष दैवी मॊि सूसि
आद्य शत्रि दुगाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि
भहान शत्रि दुगाा मॊि (अॊफाजी मॊि) सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩूणा फीज भॊि सफहत)
नव दुगाा मॊि कारी मॊि
नवाणा मॊि (िाभुॊडा मॊि) श्भशान कारी ऩूजन मॊि
नवाणा फीसा मॊि दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि
िाभुॊडा फीसा मॊि ( नवग्रह मुि) सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध मॊि
त्रिशूर फीसा मॊि खोफडमाय मॊि
फगरा भुखी मॊि खोफडमाय फीसा मॊि
फगरा भुखी ऩूजन मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि
याज याजेद्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि
भॊि ससद्ध त्रवशेष रक्ष्भी मॊि सूसि
श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी गणेश मॊि
श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि
श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
अॊकात्भक फीसा मॊि
ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस
(Gold Plated)
ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस
(Silver Plated)
ताम्र ऩि ऩय
(Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
460
820
1650
2350
3600
6400
10800
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
370
640
1090
1650
2800
5100
8200
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
255
460
730
1090
1900
3250
6400
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
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78 अगस्त 2014
यासश यत्न
भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश:
भूॊगा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना
Red Coral
(Special)
Diamond
(Special)
Green Emerald
(Special)
Naturel Pearl
(Special)
Ruby
(Old Berma)
(Special)
Green Emerald
(Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
** All Weight In Rati
All Diamond are Full
White Colour.
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
तुरा यासश: वृस्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कुॊ ब यासश: भीन यासश:
हीया भूॊगा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज
Diamond
(Special)
Red Coral
(Special)
Y.Sapphire
(Special)
B.Sapphire
(Special)
B.Sapphire
(Special)
Y.Sapphire
(Special)
10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 1050 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000
20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 1250 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000
30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000
40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 1800 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000
50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 2100 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000
All Diamond are Full
White Colour.
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्ध
हं। >> Order Now
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79 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध दुराब साभग्री
हत्था जोडी- Rs- 550 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251
ससमाय ससॊगी- Rs- 730 दस्ऺणावतॉ शॊख-Rs-550-2100 इन्द्र जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख-Rs- 550 से 1450 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
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भॊि ससद्ध रूद्राऺ
Rudraksh List
Rate In
Indian Rupee
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Indian Rupee
एकभुखी रूद्राऺ (नेऩार) 730 to 3700 नौ भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 1900 to 4600
दो भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 280 दस भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 2350 to 5500
तीन भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 280 ग्मायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 2800 to 5500
िाय भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 190 फायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 3700 to 7300
ऩॊि भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 370 तेयह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 5500 to 14500
छह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 190 िौदह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 21000 to 41500
सात भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 460 to 730 गौयीशॊकय रूद्राऺ (नेऩार) 3700 to 14500
आठ भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 1900 to 460 गणेश रुद्राऺ (नेऩार) 730 to 1450
* भूल्म भं अॊतय रुद्राऺ के आकाय औय गुणवत्ता के अनुसाय अरग-अरग होते हं। उऩयोि भूल्म छोटे से फिे आकाय
के अनुरुऩ दशाामे गमे हं। कबी-कबी सॊबात्रवत हं की छोटे आकाय के उत्तभ गुणवत्ता वारे रुद्राऺ असधक भूल्म भं प्राद्ऱ
हो सकते हं।
त्रवशेष सूिना: फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय, रूद्राऺ भूल्म, फदन-फ-फदन फदरते यहते है, स्जस कायण हभायी भूल्म
सूिी भं बी फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय ऩरयवतान होते यहते हं, कृ प्मा रुद्राऺ के सरए अऩना बुगतान बेजने से
ऩहरे रुद्राऺ के नमी भूल्म सूिी हेतु हभ से सॊऩका कयं।
रुद्राऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
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80 अगस्त 2014
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि
फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश
भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दुसयो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं, तफ रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हेतु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩयेशानी से सॊऩन्न हो जाते हं। आज के
बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दूसयो को अऩनी औय खीिने हेतु एक प्रबावशासर िुॊफकत्व को कामभ
यखना असत आवश्मक हो जाता हं। आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस
सरमे सयर उऩाम हं, श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के
धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ
होती हं, स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कं द्र यहता हं।
मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध,
अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती
हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ
सात्रफत हो सकता हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष येखाएॊ, फीज भॊि एवॊ
अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भुत आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं।
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं, जो
एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ
स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं!
 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व
ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं।
 त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग
कं फद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय
को प्राद्ऱहोती हं।
 जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना
िाहते हं। उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं।
 ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं।
भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now
श्रीकृ ष्ण फीसा कवि
श्रीकृ ष्ण फीसा कवि को के वर
त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा
जाता हं। कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी
ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो
द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म
मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं।
स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता
व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता
हं। कवि को गरे भं धायण कयने
से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता
हं। गरे भं धायण कयने से कवि
हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से
व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र
एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं।
भूरम भाि: 1900 >>Order Now
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81 अगस्त 2014
जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी
श्री िौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत िभत्कायी मॊि श्री एकाऺी नारयमेय मॊि
श्री िोफीस तीथंकय मॊि सवातो बद्र मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि
सिॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्धअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि)
सिॊताभणी मॊि (ऩंसफठमा मॊि) ऋत्रष भॊडर मॊि
सिॊताभणी िक्र मॊि जगदवल्रब कय मॊि
श्री िक्रे द्वयी मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध सभृत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि
(अनुबव ससद्ध सॊऩूणा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)
त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि
श्री ऩद्मावती मॊि ऺुद्रो ऩद्रव सननााशन मॊि
श्री ऩद्मावती फीसा मॊि फृहच्िक्र मॊि
श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्रंकाय मॊि वॊध्मा शब्दाऩह मॊि
ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि
श्री धयणेन्द्र ऩद्मावती मॊि काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि रधुदेव कु र मॊि
बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक) नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि
भस्णबद्र मॊि उवसग्गहयॊ मॊि
श्री मॊि श्री ऩॊि भॊगर भहाश्रृत स्कॊ ध मॊि
श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि ह्रीॊकाय भम फीज भॊि
श्री रक्ष्भीकय मॊि वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि
रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि त्रवद्या मॊि
भहात्रवजम मॊि सौबाग्मकय मॊि
त्रवजमयाज मॊि डाफकनी, शाफकनी, बम सनवायक मॊि
त्रवजम ऩतका मॊि बूताफद सनग्रह कय मॊि
त्रवजम मॊि ज्वय सनग्रह कय मॊि
ससद्धिक्र भहामॊि शाफकनी सनग्रह कय मॊि
दस्ऺण भुखाम शॊख मॊि आऩत्रत्त सनवायण मॊि
दस्ऺण भुखाम मॊि शिुभुख स्तॊबन मॊि
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
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82 अगस्त 2014
घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि को स्थाऩीत
कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं। सवा
प्रकाय के योग बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण होता हं।
जहयीरे औय फहॊसक प्राणीॊ से सॊफॊसधत बम दूय होते हं।
अस्ग्न बम, िोयबम आफद दूय होते हं।
दुद्श व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे बम
से मॊि के प्रबाव से दूय हो जाते हं।
मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध,
ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हं। साधक की
सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं।
मफद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय
वशीकयण, भायण, उच्िाटन इत्माफद जादू-टोने वारे
प्रमोग फकमे गमं होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नद्श
हो जाते हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो
यऺण होता हं।
कु छ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका
मॊि से जुडे अद्द्द्भुत अनुबव यहे हं। मफद घय भं श्री
घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत फकमा हं औय मफद
कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुसित कभा
कयके फकसी बी उद्देश्म से साधक को ऩयेशान कयने का प्रमास कयता हं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩूणा
ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हं, कबी-कबी शिु के द्राया फकमा गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय
उरट वाय होते देखा हं। भूल्म:- Rs. 1650 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now
सॊऩका कयं। GURUTVA KARYALAY
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83 अगस्त 2014
अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान
ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हं इस
सरए कवि अत्मॊत प्रबावशारी होता हं। >> Order Now
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि
कवि फनवाने हेतु:
अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ,
गोि, एक नमा पोटो बेजे
याशी यत्न एवॊ उऩयत्न
त्रवशेष मॊि
हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-िाॊफद-
ताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुसाय
फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी
आवश्मक फडजाईन के अनुसाय २२ गेज
शुद्ध ताम्फे भं अखॊफडत फनाने की त्रवशेष
सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं।
सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरफट के
असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध हं।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं। ज्मोसतष कामा से जुडे़
फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म
सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं।
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अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम
कवि
दस्ऺणा भाि: 10900
84 अगस्त 2014
गणेश रक्ष्भी मॊि
प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दुकान-ओफपस-पै क्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत
कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ व्माऩाय भं वृत्रद्ध होती
हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय होता हं। गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान गणेश औय देवी रक्ष्भी का
सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं। Rs.730 से Rs.10900 तक
भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि
भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता हं, इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण
भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर
मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की
कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दुद्श प्रबा,
बूत-प्रेत बम, वाहन दुघाटनाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं। भूल्म भाि Rs- 730
कु फेय मॊि
कु फेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतृक सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ फक काभना कयने वारे
व्मत्रि के सरमे कु फेय मॊि अत्मन्त सपरता दामक होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं। कु फेय मॊि के ऩूजन से एकासधक
स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊिम होता हं।
ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस
(Gold Plated)
ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस
(Silver Plated)
ताम्र ऩि ऩय
(Copper)
साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
460
820
1650
2350
3600
6400
10800
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
370
640
1090
1650
2800
5100
8200
1” X 1”
2” X 2”
3” X 3”
4” X 4”
6” X 6”
9” X 9”
12” X12”
255
460
730
1090
1900
3250
6400
GURUTVA KARYALAY
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85 अगस्त 2014
नवयत्न जफित श्री मॊि
शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न
जफित श्री मॊि कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को
अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं। नवग्रह को
श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं। गरे भं होने के
कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा
जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई
औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस
प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं।
अद्श रक्ष्भी कवि
अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना
यहता हं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-
गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी
रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि: Rs-1250
भॊि ससद्ध व्माऩाय वृत्रद्ध कवि
व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय भं शीघ्र उन्नसत के सरए उत्तभ हं। िाहं कोई बी व्माऩाय हो अगय उसभं राब के स्थान ऩय
फाय-फाय हासन हो यही हं। फकसी प्रकाय से व्माऩाय भं फाय-फाय फाधाएॊ उत्ऩन्न हो यही हो! तो सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत
भॊि ससद्ध ऩूणा िैतन्म मुि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थात्रऩत कयने से शीघ्र ही व्माऩाय भं वृत्रद्ध
एवॊ सनतन्तय राब प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि: Rs.730 & 1050
भॊगर मॊि
(त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता हं, इस के असतरयि व्मत्रि को
ऋण भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि Rs- 730
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86 अगस्त 2014
त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके -रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ
होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं। एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके -रडकी फक कुॊ डरी का अध्ममन
अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ
कयं।
सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा
क्मा आऩके रडके -रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं? फच्िो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ
एवॊ भेहनत का उसित पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके -रडकी की कुॊ डरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय
उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से
जनकायी प्राद्ऱ कयं।
क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं?
आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छु टकाया ऩाने हेतु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ हं?
अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ
कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत
द्राया हभाया उद्देश्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि त्रवसबन्न प्रकाय के
मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं।
ज्मोसतष सॊफॊसधत त्रवशेष ऩयाभशा
ज्मोसत त्रवऻान, अॊक ज्मोसतष, वास्तु एवॊ आध्मास्त्भक ऻान सं सॊफॊसधत त्रवषमं भं हभाये 30 वषो से असधक वषा के
अनुबवं के साथ ज्मोसतस से जुडे नमे-नमे सॊशोधन के आधाय ऩय आऩ अऩनी हय सभस्मा के सयर सभाधान प्राद्ऱ कय
सकते हं। >> Order Now
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ओनेक्स
जो व्मत्रि ऩन्ना धायण कयने भे असभथा हो उन्हं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना िाफहए।
उच्ि सशऺा प्रासद्ऱ हेतु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हेतु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे छोटी
उॊगरी मा रॉके ट फनवा कय गरे भं धायण कयं। ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण
शत्रि का त्रवकास होता हं। >> Order Now
87 अगस्त 2014
अगस्त 2014 -त्रवशेष मोग
कामा ससत्रद्ध मोग
6 सूमोदम से प्रात: 10:36 तक 21 सामॊ 6.14 से 22 अगस्त को यात्रि 9.03 तक
14 फदन 12:19 से 16 अगस्त को सूमोदम तक 27 सूमोदम से यात्रि 12.14 तक
18 फदन 11:52 से यातबय 30 फदन 3.46 से यातबय
20 सूमोदम से फदन 3:41 तक - -
त्रिऩुष्कय मोग (तीनगुना पर दामक) फद्रऩुष्कय मोग (दौ गुना पर दामक )
31 यात्रि 5:14 से सूमोदम तक 2 सामॊ 5.16 से 3 अगस्त को प्रात: 9.49 तक
त्रवघ्नकायक बद्रा
3 सामॊ 6:09 से 4 अगस्त को प्रात: 6.13 तक 16 प्रात: 6.30 से सामॊ 6.11 तक
6 यात 2:56 से 7 अगस्त को फदन 1:47 तक 19 सामॊ 7:40 से 20 अगस्त को प्रात: 8:23 तक
9 यात 3:35 से 10 अगस्त को फदन 1:37 तक 23 फदन 2:48 से 24 अगस्त को प्रात: 4:02 तक
12 यात 2:23 से 13 अगस्त को फदन 12:44 तक 29 फदन 2:56 से देय यात 3:42 तक
मोग पर :
 कामा ससत्रद्ध मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं, एसा शास्त्रोि विन हं।
 त्रिऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं।
 फद्रऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं।
 शास्त्रोि भत से त्रवघ्नकायक बद्रा मा बद्रा मोग भं शुब कामा कयना वस्जात हं।
दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका
गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब)
वाय सभम अवसध सभम अवसध सभम अवसध
यत्रववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शुक्रवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शसनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
88 अगस्त 2014
फदन के िौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
06:00 से 07:30 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार
07:30 से 09:00 िर कार उद्रेग अभृत योग राब शुब
09:00 से 10:30 राब शुब िर कार उद्रेग अभृत योग
10:30 से 12:00 अभृत योग राब शुब िर कार उद्रेग
12:00 से 01:30 कार उद्रेग अभृत योग राब शुब िर
01:30 से 03:00 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब
03:00 से 04:30 योग राब शुब िर कार उद्रेग अभृत
04:30 से 06:00 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार
यात के िौघफडमे
सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय
06:00 से 07:30 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब
07:30 से 09:00 अभृत योग राब शुब िर कार उद्रेग
09:00 से 10:30 िर कार उद्रेग अभृत योग राब शुब
10:30 से 12:00 योग राब शुब िर कार उद्रेग अभृत
12:00 से 01:30 कार उद्रेग अभृत योग राब शुब िर
01:30 से 03:00 राब शुब िर कार उद्रेग अभृत योग
03:00 से 04:30 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार
04:30 से 06:00 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब
शास्त्रोि भत के अनुशाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भं सपरता
प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हं। इस सरमे दैसनक शुब सभम िौघफिमा देखकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं।
नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के िौघफिमे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हं। प्रत्मेक िौघफिमे फक अवसध 1
घॊटा 30 सभसनट अथाात डेढ़ घॊटा होती हं। सभम के अनुसाय िौघफिमे को शुबाशुब तीन बागं भं फाॊटा जाता हं, जो क्रभश् शुब,
भध्मभ औय अशुब हं।
िौघफडमे के स्वाभी ग्रह * हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का
िौघफिमा उत्तभ भाना जाता हं।
* हय कामा के सरमे िर/कार/योग/उद्रेग
का िौघफिमा उसित नहीॊ भाना जाता।
शुब िौघफडमा भध्मभ िौघफडमा अशुब िौघफिमा
िौघफडमा स्वाभी ग्रह िौघफडमा स्वाभी ग्रह िौघफडमा स्वाभी ग्रह
शुब गुरु िय शुक्र उद्बेग सूमा
अभृत िॊद्रभा कार शसन
राब फुध योग भॊगर
89 अगस्त 2014
फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक
वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ
यत्रववाय सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन
सोभवाय िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
भॊगरवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र
फुधवाय फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर
गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
शुक्रवाय शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु
शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र
यात फक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक
यत्रववाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध
सोभवाय शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु
भॊगरवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र
फुधवाय सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन
गुरुवाय िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा
शुक्रवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र
शसनवाय फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर
होया भुहूता को कामा ससत्रद्ध के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अिूक भाना जाता हं, फदन-यात के २४ घॊटं भं शुब-अशुब सभम
को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्ध के सरए प्रमोग कयना िाफहमे।
त्रवद्रानो के भत से इस्च्छत कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का िुनाव कयने से त्रवशेष राब
प्राद्ऱ होता हं।
 सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं।
 िॊद्रभा फक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं।
 भॊगर फक होया कोटा-किेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं।
 फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं।
 गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं।
 शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं।
 शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं।
90 अगस्त 2014
ग्रह िरन अगस्त -2014
Day Sun Mon Ma Me Jup Ven Sat Rah Ket Ua Nep Plu
1 03:14:37 05:09:52 06:09:05 03:06:02 03:09:23 02:22:09 06:22:40 05:27:54 11:27:54 11:22:24 10:12:51 08:17:34
2 03:15:35 05:22:00 06:09:37 03:08:06 03:09:36 02:23:22 06:22:42 05:27:53 11:27:53 11:22:23 10:12:50 08:17:32
3 03:16:32 06:04:23 06:10:11 03:10:10 03:09:50 02:24:35 06:22:43 05:27:53 11:27:53 11:22:23 10:12:49 08:17:31
4 03:17:30 06:17:05 06:10:44 03:12:15 03:10:03 02:25:48 06:22:44 05:27:53 11:27:53 11:22:22 10:12:47 08:17:30
5 03:18:27 07:00:10 06:11:17 03:14:21 03:10:16 02:27:01 06:22:46 05:27:52 11:27:52 11:22:22 10:12:46 08:17:28
6 03:19:25 07:13:43 06:11:51 03:16:26 03:10:30 02:28:14 06:22:47 05:27:50 11:27:50 11:22:21 10:12:44 08:17:27
7 03:20:22 07:27:44 06:12:25 03:18:30 03:10:43 02:29:27 06:22:49 05:27:46 11:27:46 11:22:20 10:12:43 08:17:26
8 03:21:20 08:12:15 06:12:59 03:20:35 03:10:56 03:00:40 06:22:50 05:27:39 11:27:39 11:22:19 10:12:41 08:17:25
9 03:22:17 08:27:10 06:13:33 03:22:38 03:11:09 03:01:53 06:22:52 05:27:30 11:27:30 11:22:19 10:12:40 08:17:24
10 03:23:15 09:12:23 06:14:08 03:24:40 03:11:22 03:03:07 06:22:54 05:27:21 11:27:21 11:22:18 10:12:38 08:17:22
11 03:24:12 09:27:42 06:14:42 03:26:42 03:11:36 03:04:20 06:22:56 05:27:12 11:27:12 11:22:17 10:12:37 08:17:21
12 03:25:10 10:12:57 06:15:17 03:28:42 03:11:49 03:05:33 06:22:58 05:27:05 11:27:05 11:22:16 10:12:35 08:17:20
13 03:26:07 10:27:57 06:15:52 04:00:41 03:12:02 03:06:46 06:23:00 05:26:59 11:26:59 11:22:15 10:12:34 08:17:19
14 03:27:05 11:12:35 06:16:27 04:02:39 03:12:15 03:08:00 06:23:03 05:26:56 11:26:56 11:22:14 10:12:32 08:17:18
15 03:28:02 11:26:45 06:17:03 04:04:35 03:12:28 03:09:13 06:23:05 05:26:56 11:26:56 11:22:13 10:12:31 08:17:17
16 03:29:00 00:10:28 06:17:38 04:06:30 03:12:41 03:10:27 06:23:07 05:26:56 11:26:56 11:22:11 10:12:29 08:17:16
17 03:29:58 00:23:45 06:18:14 04:08:24 03:12:54 03:11:40 06:23:10 05:26:57 11:26:57 11:22:10 10:12:27 08:17:15
18 04:00:55 01:06:38 06:18:50 04:10:16 03:13:07 03:12:54 06:23:13 05:26:57 11:26:57 11:22:09 10:12:26 08:17:14
19 04:01:53 01:19:11 06:19:26 04:12:07 03:13:20 03:14:07 06:23:15 05:26:55 11:26:55 11:22:08 10:12:24 08:17:13
20 04:02:51 02:01:30 06:20:02 04:13:56 03:13:33 03:15:21 06:23:18 05:26:51 11:26:51 11:22:06 10:12:23 08:17:12
21 04:03:49 02:13:37 06:20:39 04:15:44 03:13:46 03:16:34 06:23:21 05:26:46 11:26:46 11:22:05 10:12:21 08:17:11
22 04:04:46 02:25:36 06:21:15 04:17:31 03:13:59 03:17:48 06:23:24 05:26:38 11:26:38 11:22:04 10:12:19 08:17:10
23 04:05:44 03:07:30 06:21:52 04:19:16 03:14:12 03:19:02 06:23:27 05:26:28 11:26:28 11:22:02 10:12:18 08:17:09
24 04:06:42 03:19:22 06:22:29 04:21:00 03:14:24 03:20:15 06:23:30 05:26:19 11:26:19 11:22:01 10:12:16 08:17:08
25 04:07:40 04:01:13 06:23:06 04:22:42 03:14:37 03:21:29 06:23:33 05:26:10 11:26:10 11:21:59 10:12:14 08:17:08
26 04:08:38 04:13:05 06:23:43 04:24:24 03:14:50 03:22:43 06:23:37 05:26:02 11:26:02 11:21:58 10:12:13 08:17:07
27 04:09:36 04:25:00 06:24:21 04:26:03 03:15:03 03:23:57 06:23:40 05:25:55 11:25:55 11:21:56 10:12:11 08:17:06
28 04:10:34 05:06:59 06:24:58 04:27:42 03:15:15 03:25:11 06:23:44 05:25:51 11:25:51 11:21:55 10:12:09 08:17:05
29 04:11:32 05:19:05 06:25:36 04:29:19 03:15:28 03:26:25 06:23:47 05:25:50 11:25:50 11:21:53 10:12:08 08:17:05
30 04:12:30 06:01:21 06:26:14 05:00:55 03:15:40 03:27:38 06:23:51 05:25:49 11:25:49 11:21:51 10:12:06 08:17:04
31 04:13:28 06:13:49 06:26:52 05:02:29 03:15:53 03:28:52 06:23:55 05:25:50 11:25:50 11:21:50 10:12:04 08:17:03
91 अगस्त 2014
सवा योगनाशक मॊि/कवि
भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबन्न सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हं।
उसित उऩिाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं, रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी
असाध्म होजाते हं, मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं। हजायो राखो रुऩमे खिा कयने ऩय बी असधक
राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं, एसी
स्स्थती भं राब प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दूसये डॉक्टय के िक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं।
बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हेतु त्रवसबन्न आमुवेय औषधो के असतरयि
मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो
वषा ऩूवा फकमा था। फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदनिमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय
ग्रहण कयता हं, एसे व्मत्रि को त्रवसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं। रेफकन आज के
फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते फदख जाते हं। क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन
हं। एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भं
व्मत्रि योग दूय कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं। इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कु शर जानकाय से
मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म
कय सकता हं।
ज्मोसतष त्रवद्या के कु शर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को
उजागय कय सकते हं। ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं, जहा
आधुसनक सिफकत्सा शास्त्र अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जि) को ऩकड कय उसका
सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्ध होता हं।
हय व्मत्रि भं रार यॊगकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं, स्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्ध तयीके से होता
यहता हं। जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं
स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩन्न होते हं। एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं। स्जस्से योगो
के होने के कायण व्मत्रि के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गोिय स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं।
सवा योग सनवायण कवि एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जन्भाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ
ऩीफडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवाक फकमा जासकता हं। जेसे हय व्मत्रि को
ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं फठक उसी प्रकाय कवि एवॊ मॊि के भाध्मभ
से ब्रह्माॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव
को कभ कय योग भुि कयने हेतु सहामता सभरती हं।
योग सनवायण हेतु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं। स्जस्से फहन्दू सॊस्कृ सत का प्राम् हय
व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसित हं।
92 अगस्त 2014
कवि के राब :
 एसा शास्त्रोि विन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय
फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं।
 ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग
िाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं।
 जन्भाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकू रता से योग उतऩन्न होते हं।
 कु छ योग सॊक्रभण से होते हं एवॊ कु छ योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩन्न होते हं।
कवि एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ
कयने हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं।
 आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं, स्जसका उऩिाय ओऩयेशन औय दवासे बी
कफठन हो जाता हं। कु छ योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग फहिफकिाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे
योगो को योकने हेतु एवॊ उसके उऩिाय हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं।
 प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हं। स्जसके साथ
अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩिाय हेतु सवायोगनाशक कवि एवॊ मॊि परप्रद
होता हं।
 स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जन्भ रेते हं, तफ उसकी भाता
के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं। उऩिाय हेतु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं।
 स्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सिॊता भं
उऩिाय हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं।
नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि एवॊ मॊि के फाये भं असधक
जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
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93 अगस्त 2014
भॊि ससद्ध कवि
भॊि ससद्ध कवि को त्रवशेष प्रमोजन भं उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भं शुब
फदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कवि तैमाय कयने के सरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।
 क्मं िुने भॊि ससद्ध कवि?  उऩमोग भं आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ  कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ  कोई फुया प्रबाव नहीॊ
भॊि ससद्ध कवि सूसि
अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि 10900 श्रात्रऩत मोग सनवायण कवि 1900 तॊि यऺा 730
याज याजेद्वयी कवि 11000 * सवा जन वशीकयण 1450 शिु त्रवजम 730
सवा कामा ससत्रद्ध कवि 4600 ससत्रद्ध त्रवनामक कवि 1450 त्रववाह फाधा सनवायण 730
श्रीघॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्धप्रद कवि 6400 सकर सम्भान प्रासद्ऱ कवि 1450 व्माऩय वृत्रद्ध 730
सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि 6400 आकषाण वृत्रद्ध कवि 1450 सवा योग सनवायण 730
दस भहा त्रवद्या कवि 6400 वशीकयण नाशक कवि 1450 योजगाय वृत्रद्ध 730
नवदुगाा शत्रि कवि 6400 प्रीसत नाशक कवि 1450 भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक 640
यसामन ससत्रद्ध कवि 6400 िॊडार मोग सनवायण कवि 1450 काभना ऩूसता 640
ऩॊिदेव शत्रि कवि 6400 ग्रहण मोग सनवायण कवि 1450 त्रवयोध नाशक 640
सुवणा रक्ष्भी कवि 4600 अद्श रक्ष्भी 1250 त्रवघ्न फाधा सनवायण 550
स्वणााकषाण बैयव कवि 4600 भाॊगसरक मोग सनवायण कवि 1250 नज़य यऺा 550
*त्रवरऺण सकर याज वशीकयण कवि 3250 सॊतान प्रासद्ऱ 1250 योजगाय प्रासद्ऱ 550
कारसऩा शाॊसत कवि 2800 स्ऩे- व्माऩय वृत्रद्ध 1050 दुबााग्म नाशक 460
इद्श ससत्रद्ध कवि 2800 कामा ससत्रद्ध 1050 * वशीकयण (2-3 व्मत्रिके सरए) 1050
ऩयदेश गभन औय राब प्रासद्ऱ कवि 2350 आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ 1050 * ऩत्नी वशीकयण 640
श्रीदुगाा फीसा कवि 1900 स्वस्स्तक फीसा कवि 1050 * ऩसत वशीकयण 640
अद्श त्रवनामक कवि 1900 हॊस फीसा कवि 1050 सयस्वती (कऺा +10 के सरए) 550
त्रवष्णु फीसा कवि 1900 स्वप्न बम सनवायण कवि 1050 सयस्वती (कऺा 10 तकके सरए) 460
याभबद्र फीसा कवि 1900 नवग्रह शाॊसत 910 * वशीकयण ( 1 व्मत्रि के सरए) 640
कु फेय फीसा कवि 1900 बूसभ राब 910 ससद्ध सूमा कवि 550
गरुड फीसा कवि 1900 काभ देव 910 ससद्ध िॊद्र कवि 550
ससॊह फीसा कवि 1900 ऩदं उन्नसत 910 ससद्ध भॊगर कवि 550
नवााण फीसा कवि 1900 ऋण भुत्रि 910 ससद्ध फुध कवि 550
सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध कवि 1900 सुदशान फीसा कवि 910 ससद्ध गुरु कवि 550
याभ यऺा कवि 1900 भहा सुदशान कवि 910 ससद्ध शुक्र कवि 550
हनुभान कवि 1900 त्रिशूर फीसा कवि 910 ससद्ध शसन कवि 550
बैयव यऺा कवि 1900 धन प्रासद्ऱ 820 ससद्ध याहु कवि 550
शसन सािेसाती औय ढ़ैमा कद्श सनवायण कवि 1900 ससद्ध के तु कवि 550
उऩयोि कवि के अरावा अन्म सभस्मा त्रवशेष के सभाधान हेतु एवॊ उद्देश्म ऩूसता हेतु कवि का सनभााण फकमा जाता हं। कवि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु
सॊऩका कयं। *कवि भाि शुब कामा मा उद्देश्म के सरमे >> Order Now
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94 अगस्त 2014
GURUTVA KARYALAY
YANTRA LIST EFFECTS
Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -
Shastrokt Yantra
11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga
12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
26
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
95 अगस्त 2014
YANTRA LIST EFFECTS
43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets
44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA)
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
69
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE
MAHALAKSHAMI YANTRA)
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose
Yantra Available @:- Rs- 255, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..
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96 अगस्त 2014
Gemstone Price List
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़े द ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) 100.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (भास्णक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (फभाा भास्णक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) 75.00 90.00 12.00 180.00 280.00 & above
Red Coral (4 यसत से उऩय)(रार भूॊगा) 120.00 150.00 190.00 280.00 550.00 & above
White Coral (सफ़े द भूॊगा) 20.00 28.00 42.00 51.00 90.00 & above
Cat’s Eye (रहसुसनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उफडसा रहसुसनमा) 460.00 640.00 1050.00 2800.00 5500.00 & above
Gomed (गोभेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जयकन) 350.00 450.00 550.00 640.00 910.00 & above
Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (फफ़योजा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Golden Topaz (सुनहरा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above
Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) 60.00 120.00 280.00 460.00 640.00 & above
Blue Topaz (नीरा टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़े द टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटेरा) 20.00 30.00 45.00 60.00 120.00 & above
Opal (उऩर) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गायनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुभारीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुमाकान्त भस्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above
Green Onyx (ओनेक्स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओनेक्स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (राजवात) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (िन्द्रकान्त भस्ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (स्फ़फटक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फफ़यॊगी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (भयगि) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (हीया)
(.05 to .20 Cent )
50.00
(Per Cent )
100.00
(Per Cent )
200.00
(PerCent )
370.00
(Per Cent)
460.00 & above
(Per Cent )
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Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
97 अगस्त 2014
सूिना
 ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं।
 रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रविायो से सहभत हं।
 नास्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं।
 ऩत्रिका भं प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा
घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं।
 प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण
मफद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि
एक सॊमोग हं।
 प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं। इस कायण इन त्रवषमो फक
सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।
 अन्म रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
फक नहीॊ हं। औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भं जानकायी देने हेतु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी
प्रकाय से फाध्म हं।
 ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना
त्रवद्वास होना आवश्मक हं। फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने
का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।
 ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हं। हभ फकसी बी व्मत्रि
त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं।
 मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक
भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग
के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।
 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं
स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं।
 ऩाठकं फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं। ऩाठकं को एक रेख के ऩून्
प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं।
 असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं।
(सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
98 अगस्त 2014
FREE
E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका अगस्त -2014
सॊऩादक
सिॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
INDIA
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99 अगस्त 2014
हभाया उद्देश्म
त्रप्रम आस्त्भम
फॊधु/ फफहन
जम गुरुदेव
जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हं। वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊब हो जाता हं, बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि
जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता हं, औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोफक
बावनाए फह बवसागय हं, स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनफहत हं। उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय
सपरता हं। सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हं। ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदैव आऩ के साथ हं। आऩ
अऩने कामा-उद्देश्म एवॊ अनुकू रता हेतु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दुराब भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सिज वस्तु का हभंशा
प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्देश्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध
प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं।
सूमा की फकयणे उस घय भं प्रवेश कयाऩाती हं।
जीस घय के स्खिकी दयवाजे खुरे हं।
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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
100 अगस्त 2014
AUG
2014

GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014

  • 1.
    NON PROFIT PUBLICATION गुरुत्वकामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका अगस्त- 2014 Our Web Site: www.gurutvajyotish.com Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com
  • 2.
    FREE E CIRCULAR ई- जन्भऩत्रिकागुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका अगस्त 2014 सॊऩादक अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी के साथ १००+ ऩेज भं प्रस्तुत सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA पोन E HOROSCOPE 91+9338213418, 91+9238328785, ईभेर gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Create By Advanced Astrology Excellent Prediction 100+ Pages >> Order Now | Call Now | Email US वेफ www.gurutvakaryalay.com http://gk.yolasite.com/ www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स फहॊदी/ English भं भूल्म भाि 750/- सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टेक इस्न्डमा सर)
  • 3.
    अनुक्रभ नाग ऩॊिभी काधासभाक भहत्व 7 भनोकाभना ऩूसता हेतु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि 36 ऩुिदा एकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय) 9 कृ ष्ण भॊि 37 ऩुिदा (ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा 12 ऩमूाषण भहाऩवा का भहत्व 38 अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा 14 श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि) 39 फहन्दू सॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व 15 देवदशान स्तोिभ ् 40 कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा 17 बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के अद्भुत स्वप्न 41 बायतीम सॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व 21 त्रवसबन्न िभत्कायी जैन भॊि 43 याखी ऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ 23 जैन धभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का … 47 कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान 25 श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन) 48 शॊख ध्वसन से योग बगाएॊ ! 26 अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन) 48 कृ ष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व 29 ॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥ 49 श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय 30 ॥ भहावीय िारीसा ॥ 50 ॥ श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥ 31 जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी… 51 त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि 32 गौतभ के वरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी) 52 प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि 33 शीघ्र काभना ऩूसता हेतु इद्श ऩूजन भं कये सही… 56 ब्रह्मा यसित कृ ष्णस्तोि 34 कहीॊ आऩकी कुॊ डरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग… 58 श्रीकृ ष्णाद्शकभ ् 35 स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 87 अगस्त 2014 भाससक ऩॊिाॊग 69 फदन-यात के िौघफडमे 88 अगस्त 2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 74 फदन-यात फक होया 89 अगस्त 2014 -त्रवशेष मोग 87 ग्रह िरन अगस्त -2014 90 हभाये उत्ऩाद सवा कामा ससत्रद्ध कवि 11 नवयत्न जफित श्री मॊि 74 भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि 16 वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि/ श्री हनुभान मॊि 75 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवि 28 त्रवसबन्न देवताओॊ के मॊि 76 भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 34 यासश यत्न 78 भॊि ससद्ध दुराब साभग्री/भॊि ससद्ध भारा 37 भॊि ससद्ध रूद्राऺ 79 त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि 55 जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी81 81 भॊि ससद्ध बाग्म रक्ष्भी फडब्फी 60 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 82 भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभा 62 अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि 83 भॊि ससद्ध गोभसत िक्र 63 सवा योगनाशक मॊि/कवि 91 हभाये त्रवशेष मॊि/ त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि 64 भॊि ससद्ध कवि सूसि 93 सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका 65 YANTRA LIST 94 द्रादश भहा मॊि 66 Gemstone Price List 96 ऩुरुषाकाय शसन मॊि /शसन तैसतसा मॊि 73 सूिना 97
  • 4.
    कृ ष्णॊ वन्देजगत गुरु त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदेव यऺाफॊधन अथाात ्प्रेभ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं। यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से फाॉधती है।बायतीम सॊस्कृ सत भं आज के बौसतकतावादी सभाज भं बोग औय स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम् सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं। बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं। बायतीम सॊस्कृ सत भं स्त्री को के वर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं। सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह। न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान्स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह िीणासनष्कृ ता्॥ बावाथा: जो भनुष्म के वर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं भं रगा देते हं, वे ऩाऩं से छू ट जाते हं, फपय उन्हं ऩाश हाथ भं सरए हुए मभदूतं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो सकते। श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है। बगवान श्रीकृ ष्ण के बगवद गीता भं वस्णात उऩदेश ऩुयातन कार से ही फहन्दु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं। जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं। श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं भनाने की ऩयॊऩया सफदमं से िरी आयही हं। श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए देश-दुसनमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है। जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हं। इस फदन भॊफदयं भं बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है। बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय साभग्रीमं से सुसस्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हं। धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा है। इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं। श्री इस त्रवशेषाॊक भं बगवान श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ हेतु बगवान श्री कृ ष्ण के सयर भॊि-द्ऴोक-व्रत-ऩूजन इत्माफद सयर उऩामोको देने का प्रमास फकमा हं स्जससे साधायण व्मत्रि बी त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकं ।
  • 5.
    इस अॊक भंप्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेष से सॊफॊसधत जानकायीमं के त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं, मफद दशाामे गए भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव शास्त्र एवॊ ग्रॊथं भं वस्णात भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध, उऩामं, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावं का वणान कयने भं बेद होने ऩय सॊफॊसधत ऩूजन त्रवसध इत्माफद भं सबन्नता एवॊ उसके प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं। आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो बगवान श्रीकृ ष्ण की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे। बगवान श्रीकृ ष्ण से महीॊ प्राथना हं… जैन फॊधु/फहनं कओ ऩमूाषण भहाऩवा की अनेक-अनेक शुबकाभनाएॊ। गुरुत्व कामाारम की औय से सबी को "सभच्छाभी दुक्कडभ ्" सिॊतन जोशी गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हेतु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकं का स्वागत हं... GURUTVA JYOTISH Monthly Astrology E-Magazines. Non Profitable Publication by Public Intrest A Part of GURUTVA KARYALAY गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हेतु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकं का स्वागत हं... गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं आऩके द्राया सरखे गमे भॊि, मॊि, तॊि, ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, पं गशुई, टैयं, येकी एवॊ अन्म आध्मास्त्भक ऻान वधाक रेख को प्रकासशत कयने हेतु बेज सकते हं। मफद आऩ रेखक नहीॊ हं औय आऩके ऩास इन त्रवषमं से सॊफॊसधत ऻान वधाक रेख, शास्त्र, ग्रॊथ इत्माफद की प्रसत, स्कै न कोऩी मा ई-ऩुस्तक हं तो आऩ उन ऻान वधाक साभग्रीमं को हजायं-राखं ऩाठकं के ऻान वधान, भागादशान के उद्देश्म से बेज सकते हं... अऩने रेख के साथ आऩ अऩना नाभ/ऩता/नॊफय दे सकते हं। (*पोटो बी बेज सकते हं।) कोई बी रेख इत्माफद बेजने से ऩूवा फ्रीराॊस रेखको से अनुयोध हं की गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कय सनमभ सूसि ई-भेर द्राया प्राद्ऱ कयरे, फपय रेख बेजे असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us: gurutva.karyalay@gmail.com | chintan_n_joshi@yahoo.co.in
  • 6.
    6 अगस्त 2014 *****श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****  ऩत्रिका भं प्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण इसे त्रवसबन्न शास्त्रं से प्रेरयत होकय प्रस्तुत फकमा हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी के फाये भं जानकायी देने हेतु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं। फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेख से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय फदए गमे हं। हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं। मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी।  क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।  श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं।  हभाये द्राया ऩोस्ट की गई सबी जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं।  असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं। (सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
  • 7.
    7 अगस्त 2014 नागऩॊिभी का धासभाक भहत्व  त्रवजम ठाकु य नाग ऩॊिभी व्रत श्रावण शुक्र ऩॊिभीको फकमा जाता है । रेफकन रोकािाय व सॊस्कृ सत- बेद के कायण नाग ऩॊिभी व्रत को फकसी जगह कृ ष्णऩऺभं बी फकमा जाता है । इसभे ऩयत्रवद्धा मुि ऩॊिभी री जाती है । ऩौयास्णक भान्मता के अनुशाय इस फदन नाग-सऩा को दूधसे स्त्रान औय ऩूजन कय दूध त्रऩराने से व्रती को ऩुण्म पर की प्रासद्ऱ होती हं। अऩने घय के भुख्म द्राय के दोनं ओय गोफयके सऩा फनाकय उनका दही, दूवाा, कु शा, गन्ध, अऺत, ऩुष्ऩ, भोदक औय भारऩुआ इत्माफदसे ऩूजन कय ब्राह्मणंको बोजन कयाकय एकबुि व्रत कयनेसे घयभं सऩंका बम नहीॊ होता है । सऩात्रवष दूय कयने हेतु सनम्न सनम्नसरस्खत भॊि का जऩ कयने का त्रवधान हं। "ॐ कु रुकु ल्मे हुॊ पद स्वाहा।" नाग ऩॊिभी की ऩौयास्णक कथा ऩौयास्णक कथा के अनुशाय प्रािीन कार भं फकसी नगय के एक सेठजी के सात ऩुि थे। सातं ऩुिं के त्रववाह हो िुके थे। सफसे छोटे ऩुि की ऩत्नी श्रेद्ष िरयि की त्रवदुषी औय सुशीर थी, रेफकन उसका कोई बाई नहीॊ था। एक फदन फिी फहू ने घय रीऩने के सरए ऩीरी सभट्टी राने हेतु सबी फहुओॊ को साथ िरने को कहा तो सबी फहू उस के साथ सभट्टी खोदने के औजाय रेकय िरी गई औय फकसी स्थान ऩय सभट्टी खोदने रगी, तबी वहाॊ एक सऩा सनकरा, स्जसे फिी फहू खुयऩी से भायने रगी। मह देखकय छोटी फहू ने फिी फहू को योकते हुए कहा "भत भायो इस सऩा को? मह फेिाया सनयऩयाध है।" छोटी फहू के कहने ऩय फिी फहू ने सऩा को नहीॊ भाया औय सऩा एक ओय जाकय फैठ गमा। तफ छोटी फहू ने सऩा से कहा "हभ अबी रौट कय आती हं तुभ महाॊ से कहीॊ जाना भत" इतना कहकय वह सफके साथ सभट्टी रेकय घय िरी गई औय घय के काभकाज भं पॉ सकय सऩा से जो वादा फकमा था उसे बूर गई। उसे दूसये फदन वह फात माद आई तो सफ फहूओॊ को साथ रेकय वहाॉ ऩहुॉिी औय सऩा को उस स्थान ऩय फैठा देखकय फोरी "सऩा बैमा नभस्काय!" सऩा ने कहा तू बैमा कह िुकी है, इससरए तुझे छोि देता हूॊ, नहीॊ तो झूठे वादे कयने के कायण तुझे अबी डस रेता। छोटी फहू फोरी बैमा भुझसे बूर हो गई, उसकी ऺभा भाॉगती हूॊ, तफ सऩा फोरा- अच्छा, तू आज से भेयी फफहन हुई औय भं तेया बाई हुआ। तुझे जो भाॊगना हो, भाॉग रे। वह फोरी- बैमा! भेया कोई नहीॊ है, अच्छा हुआ जो तू भेया बाई फन गमा। कु छ फदन व्मतीत होने ऩय वह सऩा भनुष्म का रूऩ धयकय उसके घय आमा औय फोरा फक "भेयी फफहन को फुरा दो, भं उसे रेने आमा हूॉ" सफने कहा फक इसके तो कोई बाई नहीॊ था! तो वह फोरा- भं दूय के रयश्ते भं इसका बाई हूॉ, फिऩन भं ही फाहय िरा गमा था। उसके त्रवद्वास फदराने ऩय घय के रोगं ने छोटी को उसके साथ बेज फदमा। उसने भागा भं फतामा फक "भं वहीॊ सऩा हूॉ, इससरए तू डयना नहीॊ औय जहाॊ िरने भं कफठनाई हो वहाॊ भेया हाथ ऩकि रेना। उसने कहे अनुसाय ही फकमा नाग ऩॊिभी त्रवशेष
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    8 अगस्त 2014 औयइस प्रकाय वह उसके घय ऩहुॊि गई। वहाॉ के धन- ऐद्वमा को देखकय वह िफकत हो गई। वह सऩा ऩरयवाय अके साथ आनॊद से यहने रगी। एक फदन सऩा की भाता ने उससे कहा "भं एक काभ से फाहय जा यही हूॉ, तू अऩने बाई को ठॊडा दूध त्रऩरा देना। उसे मह फात ध्मान न यही औय उससे गरसत से गभा दूध त्रऩरा फदमा, स्जसभं उसका भुहॉ फुयी तयह जर गमा। मह देखकय सऩा की भाता फहुत क्रोसधत हुई। ऩयॊतु सऩा के सभझाने ऩय भाॉ िुऩ हो गई। तफ सऩा ने कहा फक फफहन को अफ उसके घय बेज देना िाफहए। तफ सऩा औय उसके त्रऩता ने उसे बेट स्वरुऩ फहुत सा सोना, िाॉदी, जवाहयात, वस्त्र-बूषण आफद देकय उसके घय ऩहुॉिा फदमा। साथ रामा ढेय साया धन देखकय फिी फहू ने ईषाा से कहा तुम्हायाॊ बाई तो फिा धनवान है, तुझे तो उससे औय बी धन राना िाफहए। सऩा ने मह विन सुना तो सफ वस्तुएॉ सोने की राकय दे दीॊ। मह देखकय फिी फहू की रारि फढ़ गई उसने फपय कहा "इन्हं झािने की झािू बी सोने की होनी िाफहए" तफ सऩा ने झाडू बी सोने की राकय यख दी। सऩा ने अऩने फफहन को हीया-भस्णमं का एक अद्भुत हाय फदमा था। उसकी प्रशॊसा उस देश की यानी ने बी सुनी औय वह याजा से फोरी फक "सेठ की छोटी फहू का हाय महाॉ आना िाफहए।" याजा ने भॊिी को हुक्भ फदमा फक उससे वह हाय रेकय शीघ्र उऩस्स्थत हो भॊिी ने सेठजी से जाकय कहा फक "भहायानीजी ने छोटी फहू का हाय भॊगवामा हं, तो वह हाय अऩनी फहू से रेकय भुझे दे दो"। सेठजी ने डय के कायण छोटी फहू से हाय भॊगाकय दे फदमा। छोटी फहू को मह फात फहुत फुयी रगी, उसने अऩने सऩा बाई को माद फकमा औय आने ऩय प्राथाना की- बैमा ! यानी ने भेया हाय छीन सरमा है, तुभ कु छ ऐसा कयो फक जफ वह हाय उसके गरे भं यहे, तफ तक के सरए सऩा फन जाए औय जफ वह भुझे रौटा दे तफ वह ऩुन् हीयं औय भस्णमं का हो जाए। सऩा ने ठीक वैसा ही फकमा। जैसे ही यानी ने हाय ऩहना, वैसे ही वह सऩा फन गमा। मह देखकय यानी िीख ऩिी औय योने रगी। मह देख कय याजा ने सेठ के ऩास खफय बेजी फक छोटी फहू को तुयॊत बेजो। सेठजी डय गए फक याजा न जाने क्मा कयेगा? वे स्वमॊ छोटी फहू को साथ रेकय उऩस्स्थत हुए। याजा ने छोटी फहू से ऩूछा "तुने क्मा जादू फकमा है, भं तुझे दण्ड दूॊगा।" छोटी फहू फोरी "याजन ! धृद्शता ऺभा कीस्जए" मह हाय ही ऐसा है फक भेये गरे भं हीयं औय भस्णमं का यहता है औय दूसये के गरे भं सऩा फन जाता है। मह सुनकय याजा ने वह सऩा फना हाय उसे देकय कहा- अबी ऩहनकय फदखाओ। छोटी फहू ने जैसे ही उसे ऩहना वैसे ही हीयं-भस्णमं का हो गमा। मह देखकय याजा को उसकी फात का त्रवद्वास हो गमा औय उसने प्रसन्न होकय उसे बेट भं फहुत सी भुद्राएॊ बी ऩुयस्काय भं दीॊ। छोटी वह अऩने हाय औय बेट सफहत घय रौट आई। उसके धन को देखकय फिी फहू ने ईषाा के कायण उसके ऩसत को ससखामा फक छोटी फहू के ऩास कहीॊ से धन आमा है। मह सुनकय उसके ऩसत ने अऩनी ऩत्नी को फुराकय कहा सि-सि फताना फक मह "धन तुझे कौन देता है?" तफ वह सऩा को माद कयने रगी। तफ उसी सभम सऩा ने प्रकट होकय कहा मफद भेयी धभा फफहन के आियण ऩय सॊदेह प्रकट कयेगा तो भं उसे डॊस रूॉगा। मह सुनकय छोटी फहू का ऩसत फहुत प्रसन्न हुआ औय उसने सऩा देवता का फिा सत्काय फकमा। भान्मता हं की उसी फदन से नागऩॊिभी का त्मोहाय भनामा जाता है औय स्स्त्रमाॉ सऩा को बाई भानकय उसकी ऩूजा कयती हं।
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    9 अगस्त 2014 सॊतानप्रासद्ऱ त्रवशेष ऩुिदाएकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय)  सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी ऩौयास्णक कारसे ही फहॊदू धभा भं एकादशी व्रत का त्रवशेष धासभाक भहत्व यहा है। श्रावण भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी को ऩुिदा एकादशी अथवा ऩत्रविा एकादशी बी कहते हं। एकादशी के फदन बगवान त्रवष्णु के फदन काभना ऩूसता के सरए व्रत-ऩूजन फकमा जाता है। इस वषा ऩुिदा एकादशी 07-अगस्त-2014 गुरुवाय के फदन है, गुरुवाय को बगवान त्रवष्णु के ऩूजन हेतु श्रेद्ष भाना जाता हं औय इस वषा ऩुिदा एकादशी औय गुरुवाय का सॊमोग एक साथ हो यहा हं, जो त्रवद्रानं के भतानुशाय असत उत्तभ हं। ज्मोसतष गणना के अनुशाय इस वषा 07-अगस्त-2014 सूमोदम के सभम कका रग्न होगा, रग्नेश नीि िॊद्रभा की ऩॊिभ बाव भं भॊगर के घय भं स्स्थती बी सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा यखने वारो के सरए उत्तभ भानी गई हं। उसी के साथ ही इस फदन फकमा गमा धासभाक ऩूजन-व्रत इत्माफद आध्मास्त्भक कामा शुब ग्रहं के प्रबाव से शीघ्र एवॊ त्रवशेष पर प्रदान कयने वारा ससद्ध होगा क्मोफक उच्ि का गुरु षद्षेश एवॊ बाग्मेश हो कय रग्न गृह भं स्स्थत होकय ऩॊिभ बाव (सॊतान गृह), सद्ऱभ बाव (जीवन साथी) एवॊ नवभ बाव(बाग्म बाग) को देख यहा हं। गुरु के साथ सूमा स्स्थत हं जो आध्मास्त्भक कामं भं वृत्रद्ध का सॊके त देता हं। सूमा के साथ फुध का फुधाफदत्म मोग बी त्रवशेष शुबदाम भाना गमा हं। ऩुि कायक ग्रह वक्री के तु के ऩॊिभ बाव ऩय शुब दृद्शी सॊतान प्रासद्ऱ हेतु सहामक यहेगी। फकन्तु भॊगर+शसन की मुसत सॊके त दे यही हं की सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा यखने वारे दॊऩत्रत्तमं को त्रवशेष सावधानी अवश्म यखनी, फकसी बी तयह की राऩयवाही, भनभुटाव इत्माफद से त्रवऩरयत ऩरयणाभ सॊबव हं। सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा यखने वारे दॊऩत्रत्तमं को ऩुिदा एकादशी व्रत का सनमभ ऩारन दशभी सतसथ (6 अगस्त 2014, फुधवाय) की यात्रि से ही शुरु कयं शुद्ध सित्त से ब्रह्मिमा का ऩारन कयं। गुरुवाय के फदन सुफह जल्दी उठकय सनत्मकभा से सनवृत्त होकय स्वच्छ वस्त्र धायण कय बगवान त्रवष्णु की प्रसतभा के साभने फैठकय व्रत का सॊकल्ऩ कयं। व्रत हेतु उऩवास यखं अन्न ग्रहण नहीॊ कयं, एक मा दो सभम पराहाय कय सकते हं। तत्ऩद्ळमात बगवान त्रवष्णु का ऩूजन ऩूणा त्रवसध- त्रवधान से कयं। (मफद स्वमॊ ऩूजन कयने भं असभथा हं सॊतान गोऩार मॊि उत्तभ सॊतान प्रासद्ऱ हेतु शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से असबभॊत्रित सॊतान गोऩार मॊि का ऩूजन एवॊ अनुद्षान त्रवशेष राबप्रद भाना गमा हं। सॊतान प्रासद्ऱ मॊि एवॊ कवि से सॊफॊसधत असधक जानकायी हेतु गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं। Ask Now
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    10 अगस्त 2014 तोफकसी मोग्म त्रवद्रान ब्राह्मण से बी ऩूजन कयवा सकते हं।) बगवान त्रवष्णु को शुद्ध जर से स्नान कयाए। फपय ऩॊिाभृत से स्नान कयाएॊ स्नान के फाद के वर ऩॊिाभृत के ियणाभृत को व्रती (व्रत कयने वारा) अऩने औय ऩरयवाय के सबी सदस्मं के अॊगं ऩय सछिके औय उस ियणाभृत को ऩीए। तत ऩद्ळमात ऩुन् शुद्ध जर से स्नान कयाकय प्रसतभाक स्वच्छ कऩिे से ऩोछरं। इसके फाद बगवान को गॊध, ऩुष्ऩ, धूऩ, दीऩ, नैवेद्य आफद ऩूजन साभग्री अत्रऩात कयं। त्रवष्णु सहस्त्रनाभ का जऩ कयं एवॊ ऩुिदा एकादशी व्रत की कथा सुनं। यात को बगवान त्रवष्णु की भूसता के सभीऩ शमन कयं औय दूसये फदन अथाात द्रादशी 8- अगस्त-2014 जुराई, शुक्रवाय के फदन त्रवद्रान ब्राह्मणं को बोजन कयाकय व सप्रेभ दान-दस्ऺणा इत्माफद देकय उनका आशीवााद प्राद्ऱ कयं। इस प्रकाय ऩत्रविा एकादशी व्रत कयने से मोग्म सॊतान की प्रासद्ऱ होती है। त्रवशेष सूिना: ऩुि प्रासद्ऱ का तात्ऩमा के वर उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ सभझे। क्मोफक, उऩयोि वस्णात ऩुि प्रासद्ऱ एकादशी से सॊफॊसधत सबी जानकायी शास्त्रोि वस्णात हं, अत् व्रत से के वर ऩुि सॊतान की प्रासद्ऱ हो ऐसा नहीॊ हं इस व्रत से उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ होती हं, िाहे वह सॊतान ऩुि हो मा कन्मा। आज के आधुसनक मुग भं ऩुि सॊतान व कन्मा सॊतान भं कोई त्रवशेष पका नहीॊ यहा हं। कन्मा मा भफहराएॊ बी ऩुि मा ऩुरुष के सभान ही सफर एवॊ शत्रिशारी हं। अत् के वर ऩुि सॊतान की काभना कयना व्मथा हं। अत् के वर उत्तभ सॊतान की काभना से व्रत कये। जानकाय एवॊ त्रवद्रानं के अनुबव के अनुशाय ऩीछरे कु छ वषो भं उन्हं अऩने अनुशॊधान से मह तथ्म सभरे हं की के वर ऩुि काभना से की गई असधकतय साधानाएॊ, व्रत-उऩवास इत्माफद उऩामं से दॊऩत्रत्त को ऩुि की जगह उत्तभ कन्म सॊतान की प्रासद्ऱ हुवी हं, औय वह कन्मा सॊतान ऩुि सॊतान से कई असधक फुत्रद्धभान एवॊ भाता-त्रऩता का नाभ सभाज भं योशन कयने वारी यही हं। सॊबवत इस मुग भं नायीमं की कभ होती जनसॊख्मा के कायण इद्वयने बी अऩने सनमभ फदर सरमे हंगे इस सरए ऩुि काभना के परस्वरुऩ उत्तभ कन्मा सॊतान की प्रासद्ऱ हो यही होगी। दस्ऺणावसता शॊख आकाय रॊफाई भं पाईन सुऩय पाईन स्ऩेशर आकाय रॊफाई भं पाईन सुऩय पाईन स्ऩेशर 0.5" ईंि 180 230 280 4" to 4.5" ईंि 730 910 1050 1" to 1.5" ईंि 280 370 460 5" to 5.5" ईंि 1050 1250 1450 2" to 2.5" ईंि 370 460 640 6" to 6.5" ईंि 1250 1450 1900 3" to 3.5" ईंि 460 550 820 7" to 7.5" ईंि 1550 1850 2100 हभाये महाॊ फिे आकाय के फकभती व भहॊगे शॊख जो आधा रीटय ऩानी औय 1 रीटय ऩानी सभाने की ऺभता वारे होते हं। आऩके अनुरुध ऩय उऩरब्ध कयाएॊ जा सकते हं। >> Order Now | Ask Now  स्ऩेशर गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख ऩूयी तयह से सपे द यॊग का होता हं।  सुऩय पाईन गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख पीके सपे द यॊग का होता हं।  पाईन गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख दं यॊग का होता हं। GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 | Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    11 अगस्त 2014 सवाकामा ससत्रद्ध कवि स्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ फकमे गमे कामा भं ससत्रद्ध (राब) प्राद्ऱ नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्ध कवि अवश्म धायण कयना िाफहमे। कवि के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवि के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के दु:ख-दारयद्र का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते हं। स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मफद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नसत होती हं।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं सवाजन वशीकयण कवि के सभरे होने की वजह से धायण कताा की फात का दूसये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवि के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)- आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)- त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं तॊि यऺा कवि के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दूय होती हं, साथ ही नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कु प्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कवि के प्रबाव से इषाा-द्रेष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दुद्श प्रबावो से यऺा होती हं।  सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं शिु त्रवजम कवि के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत सभस्त ऩयेशासनओ से स्वत् ही छु टकाया सभर जाता हं। कवि के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का िाहकय कु छ नही त्रफगाि सकते। अन्म कवि के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये: फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवि देने नही देना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Website: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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    12 अगस्त 2014 ऩुिदा(ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी श्रावण : शुक्र ऩऺ एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं, हे बगवान! श्रावण शुक्र एकादशी का क्मा नाभ है? इसभं फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने से क्मा पर सभरता है ?" व्रत कयने की त्रवसध तथा इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ ऩुिदा एकादशी है। अफ आऩ शाॊसतऩूवाक इस व्रतकी कथा सुसनए। इसके सुनने भाि से ही वाजऩेमी मऻ / अनन्त मऻ का पर सभरता है। द्राऩय मुग के आयॊब भं भफहष्भसत नाभ की एक नगयी थी, स्जसभं भफहष्भती नाभ का याजा याज्म कयता था, रेफकन ऩुिहीन होने के कायण याजा को याज्म सुखदामक नहीॊ रगता था। उसका भानना था फक स्जसके सॊतान न हो, उसके सरए मह रोक औय ऩयरोक दोनं ही दु:खदामक होते हं। ऩुि सुख की प्रासद्ऱ के सरए याजा ने अनेक उऩाम फकए ऩयॊतु याजा को ऩुि की प्रासद्ऱ नहीॊ हुई। वृद्धावस्था आती देखकय याजा ने प्रजा के प्रसतसनसधमं को फुरामा औय कहा- हे प्रजाजनं! भेये खजाने भं अन्माम से उऩाजान फकमा हुआ धन नहीॊ है। न भंने कबी देवताओॊ तथा ब्राह्मणं का धन छीना है। फकसी दूसये की धयोहय बी भंने नहीॊ री, प्रजा को ऩुि के सभान ऩारता यहा। भं अऩयासधमं को ऩुि तथा फाॉधवं की तयह दॊड देता यहा। कबी फकसी से घृणा नहीॊ की। सफको सभान भाना है। सज्जनं की सदा ऩूजा कयता हूॉ। इस प्रकाय धभामुि याज्म कयते हुए बी भेये ऩुि नहीॊ है। सो भं अत्मॊत दु:ख ऩा यहा हूॉ, इसका क्मा कायण है? याजा भफहष्भती की इस फात को त्रविायने के सरए भॊिी तथा प्रजा के प्रसतसनसध वन को गए। वहाॉ फिे-फिे ऋत्रष-भुसनमं के दशान फकए। याजा की उत्तभ काभना की ऩूसता के सरए फकसी श्रेद्ष तऩस्वी भुसन को खोजते-फपयते यहे। एक आश्रभ भं उन्हंने एक अत्मॊत वमोवृद्ध धभा के ऻाता, फिे तऩस्वी, ऩयभात्भा भं भन रगाए हुए सनयाहाय, स्जतंद्रीम, स्जतात्भा, स्जतक्रोध, सनातन धभा के गूढ़ तत्वं को जानने वारे, सभस्त शास्त्रं के ऻाता भहात्भा रोभश भुसन को देखा, स्जनका कल्ऩ के व्मतीत होने ऩय एक योभ सगयता था। सफने जाकय ऋत्रष को प्रणाभ फकमा। उन रोगं को देखकय भुसन ने ऩूछा फक आऩ रोग फकस कायण से आए हं? सन:सॊदेह भं आऩ रोगं का फहत करूॉ गा। भेया जन्भ के वर दूसयं के उऩकाय के सरए हुआ है, इसभं सॊदेह भत कयो। रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय सफ रोग फोरे- हे भहषे! आऩ हभायी फात जानने भं ब्रह्मा से बी असधक सभथा हं। अत: आऩ हभाये इस सॊदेह को दूय कीस्जए। भफहष्भसत ऩुयी का धभाात्भा याजा भफहष्भती प्रजा का ऩुि के सभान ऩारन कयता है। फपय बी वह ऩुिहीन होने के कायण दु:खी है। उन रोगं ने आगे कहा फक हभ रोग उसकी प्रजा हं। अत: उसके दु:ख से हभ बी दु:खी हं। आऩके दशान से हभं ऩूणा त्रवद्वास है फक हभाया मह सॊकट अवश्म दूय हो जाएगा क्मंफक भहान ऩुरुषं के दशान भाि से अनेक कद्श दूय हो जाते हं। अफ आऩ कृ ऩा कयके याजा के ऩुि होने का उऩाम फतराएॉ। मह वाताा सुनकय ऐसी करुण प्राथाना सुनकय रोभश ऋत्रष नेि फन्द कयके याजा के ऩूवा जन्भं ऩय त्रविाय कयने रगे औय याजा के ऩूवा जन्भ का वृत्ताॊत जानकय कहने रगे फक मह याजा ऩूवा जन्भ भं एक सनधान वैश्म था। सनधान होने के कायण इसने कई फुये कभा फकए। मह एक गाॉव से दूसये गाॉव व्माऩाय कयने जामा कयता था। ज्मेद्ष भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी के फदन वह दो फदन से बूखा-प्मासा था भध्माह्न के
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    13 अगस्त 2014 सभम,एक जराशम ऩय जर ऩीने गमा। उसी स्थान ऩय एक तत्कार की प्रसूता हुई प्मासी गौ जर ऩी यही थी। याजा ने उस प्मासी गाम को जराशम से जर ऩीते हुए हटा फदमा औय स्वमॊ जर ऩीने रगा, इसीसरए याजा को मह दु:ख सहना ऩिा। एकादशी के फदन बूखा यहने से वह याजा हुआ औय प्मासी गौ को जर ऩीते हुए हटाने के कायण ऩुि त्रवमोग का दु:ख सहना ऩि यहा है। ऐसा सुनकय सफ रोग कहने रगे फक हे ऋत्रष! शास्त्रं भं ऩाऩं का प्रामस्द्ळत बी सरखा है। अत: स्जस प्रकाय याजा का मह ऩाऩ नद्श हो जाए, आऩ ऐसा उऩाम फताइए। रोभश भुसन कहने रगे फक श्रावण शुक्र ऩऺ की एकादशी को स्जसे ऩुिदा एकादशी बी कहते हं, तुभ सफ रोग व्रत कयो औय यात्रि को जागयण कयो तो इससे याजा का मह ऩूवा जन्भ का ऩाऩ नद्श हो जाएगा, साथ ही याजा को ऩुि की अवश्म प्रासद्ऱ होगी। याजा के सभस्त दु्ख नष्ट हो जामंगे। "रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय भॊत्रिमं सफहत सायी प्रजा नगय को वाऩस रौट आई औय जफ श्रावण शुक्र एकादशी आई तो ऋत्रष की आऻानुसाय सफने ऩुिदा एकादशी का व्रत औय जागयण फकमा। इसके ऩद्ळात द्रादशी के फदन इसके ऩुण्म का पर याजा को सभर गमा। उस ऩुण्म के प्रबाव से यानी ने गबा धायण फकमा औय नौ भहीने के ऩश्िात ् ही उसके एक अत्मन्त तेजस्वी ऩुियत्न ऩैदा हुआ । इससरए हे याजन! इस श्रावण शुक्र एकादशी का नाभ ऩुिदा ऩिा। अत: सॊतान सुख की इच्छा यखने वारे भनुष्म को िाफहए के वे त्रवसधऩूवाक श्रावण भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी का व्रत कयं। इसके भाहात्म्म को सुनने से भनुष्म सफ ऩाऩं से भुि हो जाता है औय इस रोक भं सॊतान सुख बोगकय ऩयरोक भं स्वगा को प्राद्ऱ होता है। कथा का उद्देश्म : ऩाऩ कयते सभम हभ मह नहीॊ सोिते फक हभ क्मा कय यहे है, रेफकन शास्िं से त्रवफदत होता है फक हभाये द्राया फकमा गमे गमे छोटे मा फडे ऩाऩ से हभं कष्ट बोगना ऩिता है, अत् हभं ऩाऩ से फिना िाफहए। क्मंफक ऩाऩ के कायण ऩीछरे जन्भ भं फकमा गमा कभा का पर दूसये जन्भ भं बी बोगना ऩि सकता हं। इस सरए हभं िाफहए फक सत्मव्रत का ऩारन कय ईश्वयभं ऩूणा आस्था एवॊ सनष्ठा यखे औय मह फात सदैव ध्मान यखे फक फकसी की बी आत्भा को गल्ती से बी कद्श ना हो। नवयत्न जफित श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं। गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं। Rs: 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 से असधक >> OrderNow | Ask Now GURUTVA KARYALAY : Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
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    14 अगस्त 2014 अजा(जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी बाद्रऩद भास कृ ष्णऩऺ की एकादशी एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं, हे बगवान! बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी का क्मा नाभ है? इसभं फकस देवता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने से क्मा पर सभरता है? " व्रत कयने की त्रवसध तथा इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ अजा एकादशी है। अफ आऩ शाॊसतऩूवाक इस व्रतकी कथा सुसनए। अजा एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩाऩं का नाश कयने वारी हं। जो भनुष्म इस फदन बगवान ऋत्रषके श की ऩूजा कयता है उसको वैकुॊ ठ की प्रासद्ऱ अवश्म होती है। अफ आऩ इसकी कथा सुसनए। प्रािीनकार भं आमोध्मा नगयी भं हरयशिॊद्र नाभक एक िक्रवतॉ याजा याज्म कयता था। हरयशिॊद्र अत्मन्त वीय, प्रताऩी तथा सत्मवादी था। एक फाय दैवमोग से उसने अऩना याज्म स्वप्न भं फकसी ऋत्रष को दान कय फदमा औय ऩरयस्स्थसतवश के वशीबूत होकय अऩना साया याज्म व धन त्माग फदमा, साथ ही अऩनी स्त्री, ऩुि तथा स्वमॊ को बी फेि फदमा। उसने उस िाण्डार के महाॊ भृतकं के वस्त्र रेने का काभ फकमा । भगय फकसी प्रकाय से सत्म से त्रविसरत नहीॊ हुआ। जफ इसी प्रकाय उसे कई वषा फीत गमे तो उसे अऩने इस कभा ऩय फिा दु्ख हुआ औय वह इससे भुक्त होने का उऩाम खोजने रगा । कई फाय याजा सिॊता भं डूफकय अऩने भन भं त्रविाय कयने रगता फक भं कहाॉ जाऊॉ , क्मा करूॉ , स्जससे भेया उद्धाय हो। इस प्रकाय याजा को कई वषा फीत गए। एक फदन याजा इसी सिॊता भं फैठा हुआ था फक फहाॉ गौतभ ऋत्रष आ गए। याजा ने उन्हं देखकय प्रणाभ फकमा औय अऩनी सायी दु:खबयी कहानी कह सुनाई। मह फात सुनकय गौतभ ऋत्रष कहने रगे फक याजन तुम्हाये बाग्म से आज से सात फदन फाद बाद्रऩद कृ ष्ण ऩऺ की अजा नाभ की एकादशी आएगी, तुभ त्रवसधऩूवाक व्रत कयो तथा यात्रि को जागयण कयो। गौतभ ऋत्रष ने कहा फक इस व्रत के ऩुण्म प्रबाव से तुम्हाये सभस्त ऩाऩ नद्श हो जाएॉगे। इस प्रकाय याजा से कहकय गौतभ ऋत्रष उसी सभम अॊतध्माान हो गए। याजा ने उनके कथनानुसाय एकादशी आने ऩय त्रवसधऩूवाक व्रत व जागयण फकमा। उस व्रत के प्रबाव से याजा के सभस्त ऩाऩ नद्श हो गए। स्वगा से फाजे-नगािे फजने रगे औय ऩुष्ऩं की वषाा होने रगी। उसने अऩने साभने ब्रह्मा, त्रवष्णु, भहादेवजी तथा इन्द्र आफद देवताओॊ को खिा ऩामा । उसने अऩने भृतक ऩुि को जीत्रवत औय अऩनी स्त्री को वस्त्र तथा आबूषणं से मुि देखा। वास्तव भं एक ऋत्रष ने याजा की ऩयीऺा रेने के सरए मह सफ कौतुक फकमा था । फकन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रबाव से साया षडमॊि सभाप्त हो गमा औय व्रत के प्रबाव से याजा को ऩुन: याज्म सभर गमा। अॊत भं वह अऩने ऩरयवाय सफहत स्वगा को गमा। हे याजन! मह सफ अजा एकादशी के प्रबाव से ही हुआ। अत: जो भनुष्म मत्न के साथ त्रवसधऩूवाक इस व्रत को कयते हुए यात्रि जागयण कयते हं, उनके सभस्त ऩाऩ नद्श होकय अॊत भं वे स्वगारोक को प्राद्ऱ होते हं। इस एकादशी की कथा के श्रवणभाि से अद्वभेध मऻ का पर प्राद्ऱ होता है। कथा का उद्देश्म : हभं को ईश्वय के प्रसत ऩूणा आस्था एवॊ सनष्ठा यखनी िाफहए । त्रवऩरयत ऩरयस्स्थसतमं भं बी हभं सत्म का भागा नहीॊ छोिना िाफहए।
  • 15.
    15 अगस्त 2014 फहन्दूसॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व  सिॊतन जोशी श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है। बगवान श्रीकृ ष्ण के बगवद गीता भं वस्णात उऩदेश ऩुयातन कार से ही फहन्दु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं। जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं। श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं भनाने की ऩयॊऩया सफदमं से िरी आयही हं। श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए देश- दुसनमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है। जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हं। इस फदन भॊफदयं भं बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है। बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय साभग्रीमं से सुसस्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हं। धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा है। इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं। गौतभीतॊिभं मह उल्रेख है- उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदािन। कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िे सतुनयाधभ:। सनवसेन्नयके घोयेमावदाबूतसम्प्रवभ्॥ अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि- मथासॊबव उऩिायं से मोगेद्वय कृ ष्ण का जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक उत्सव सम्ऩन्न न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कु र न कयं। जो वैष्णव कृ ष्णाद्शभी के फदन बोजन कयता है, वह सनद्ळम ही नयाधभ है। उसे प्ररम होने तक घोय नयक भं यहना ऩडता है। इसी सरए जन्भाद्शभी के फदन बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा का त्रवसध-त्रवधान से ऩूजन इत्माफद कयने का त्रवशेष भहत्व सनातन धभा भं यहा हं। धभाग्रॊथं भं जन्भाद्शभी की यात्रि भं जागयण का त्रवधान बी फतामा गमा है। त्रवद्रानं का भत हं की कृ ष्णाद्शभी की यात भं बगवान श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने से बि को श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हं। धभाग्रॊथं भं जन्भाद्शभी के व्रत भं ऩूये फदन उऩवास यखने का सनमभ है, ऩयॊतु इसभं असभथा रोग पराहाय कय सकते हं।
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    16 अगस्त 2014 भॊिससद्ध स्पफटक श्री मॊि "श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है। "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है। जो न के वर दूसये मन्िो से असधक से असधक राब देने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदेभॊद सात्रफत होता है। ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्ध होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है। "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रतीम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है। स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दूय होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत है। "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भं उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दूय कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है। "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्न्धत ऩयेशासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है। >> >> >> >> >> Order Now गुरुत्व कामाारम भे "श्री मॊि" 12 ग्राभ से 2250 Gram (2.25Kg) तक फक साइज भे उप्रब्ध है . भूल्म:- प्रसत ग्राभ Rs. 12.50 से Rs.28.00 GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com बत्रवष्मऩुयाण भं उल्रेख हं स्जस याद्स मा प्रदेश भं मह व्रत-उत्सव त्रवसध- त्रवधान से भनामा जाता है, वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हं तथा पसर खूफ होती है। जनता सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ कयती है। इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमं को ऩयभ श्रेम की प्रासद्ऱ होती है। व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी फनकय इस रोक भं सफ सुख बोगता है औय अन्त भं वैकुॊ ठ जाता है। कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी प्रकाय क्रेश दूय हो जाते हं। उसका दुख-दरयद्रता से उद्धाय होता है। स्कन्द ऩुयाण भं उल्रेख हं फक जो बी व्मत्रि इस व्रत के भहत्व को जानकय बी कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत को नहीॊ कयता, वह भनुष्म जॊगर भं सऩा औय व्माघ्र होता है। बत्रवष्म ऩुयाण उल्रेख हं, फक कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत को जो भनुष्म नहीॊ कयता, वह क्रू य याऺस होता है। के वर अद्शभी सतसथ भं ही उऩवास कयना कहा गमा है। मफद वही सतसथ योफहणी नऺि से मुि हो तो उसे 'जमॊती' नाभ से सॊफोसधत की जाएगी। त्रवसबन्न धभाशास्त्रं भं उल्रेख हं, फक जो उत्तभ भनुष्म है। वे सनस्द्ळत रूऩ से जन्भाद्शभी व्रत को इस रोक भं कयते हं। उनके ऩास सदैव स्स्थय रक्ष्भी होती है। इस व्रत के कयने के प्रबाव से उनके सभस्त कामा ससद्ध होते हं। मफद आधी यात के सभम योफहणी भं जफ कृ ष्णाद्शभी हो तो उसभं कृ ष्ण का अिान औय ऩूजन कयने से तीन जन्भं के ऩाऩं का नाश होता है। भहत्रषा बृगु ने कहा है- जन्भाद्शभी, योफहणी औय सशवयात्रि मे ऩूवात्रवद्धा ही कयनी िाफहए तथा सतसथ एवॊ नऺि के अन्त भं ऩायणा कयं। इसभं के वर योफहणी उऩवास ही ससद्ध है। शास्त्रकायं नं श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी की यात्रि को भोहयात्रि कहा है। इस यात भं बगवान श्रीकृ ष्ण का ध्मान, नाभ अथवा भॊि जऩते हुए जागयण कयने से सॊसाय की भोह-भामा से आसत्रि दूय होती है। जन्भाद्शभी के व्रत को व्रतयाज कहाॊ गमा है। क्मोफक, इस व्रत को ऩूणा त्रवसध- त्रवधान से कयने से भनुष्म को अनेक व्रतं से प्राद्ऱ होने वारे भहान ऩुण्म का पर के वर इस व्रत के कयने से प्राद्ऱ हो जाता हं।
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    17 अगस्त 2014 कृष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, सॊदीऩ शभाा एक फाय इॊद्र ने नायद जी से कहा "हे भुसनमं भं सवाश्रेद्ष, सबी शास्त्रं के ऻाता, हे देव, व्रतं भं उत्तभ उस व्रत को फताएॉ, स्जस व्रत के कयने से भनुष्मं को भुत्रि, राब प्राद्ऱ हो तथा उस व्रत से प्रास्णमं को बोग व भोऺ दोनो की प्रासद्ऱ हो जाए।" देवयाज इॊद्र के विनं को सुनकय नायद जी ने कहा "िेता मुग के अॊत भं औय द्राऩय मुग के प्रायॊब सभम भं धृस्णत कभा को कयने वारा कॊ स नाभ का एक अत्मॊत ऩाऩी दैत्म हुआ। उस दुद्श व दुयािायी कॊ स की देवकी नाभ की एक सुॊदय व सुशीर फहन थी। उस देवकी के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि कॊ स का वध कयेगा।" नायद जी की फातं सुनकय इॊद्र ने कहा हे प्रबो "उस दुयािायी कॊ स की कथा का त्रवस्तायऩूवाक वणान कीस्जए। क्मा देवकी के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि अऩने भाभा कॊ स की हत्मा कयेगा! मह सॊबव है।" इॊद्र की सन्देह बयी फातं को सुनकय नायदजी ने कहा हे अफदसत ऩुि इॊद्र! एक सभम की फात है। उस दुद्श कॊ स ने एक ज्मोसतषी से ऩूछा "भेयी भृत्मु फकस प्रकाय औय फकसके द्राया होगी।" ज्मोसतषी फोरे "हे दानवं भं श्रेद्ष कॊ स! "वसुदेव की ऩत्नी देवकी है औय आऩकी फहन बी है। उसी के गबा से उत्ऩन्न उसका आठवाॊ ऩुि जो फक शिुओॊ को ऩयास्जत कय इस सॊसाय भं "कृ ष्ण" के नाभ से त्रवख्मात होगा, वही एक सभम सूमोदम कार भं आऩका वध कयेगा।" ज्मोसतषी की फातं को सुनकय कॊ स ने कहा "हे दैवज, अफ आऩ मह फताएॊ फक देवकी का आठवाॊ ऩुि फकस भास भं फकस फदन भेया वध कयेगा।" ज्मोसतषी फोरे "हे भहायाज! भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सतसथ को सोरह कराओॊ से ऩूणा श्रीकृ ष्ण से आऩका मुद्ध होगा। उसी मुद्ध भं वे आऩका वध कयंगे। इससरए हे भहायाज! आऩ अऩनी यऺा मत्नऩूवाक कयं।" इतना फताने के ऩद्ळात नायद जी ने इॊद्र से कहा "ज्मोसतषी द्राया फताए गए सभम ऩय ही कॊ स की भृत्मु कृ ष्ण के हाथ सन्सॊदेह होगी।" तफ इॊद्र ने कहा "हे भुसन! उस दुयािायी कॊ स की कथा का वणान कीस्जए, औय फताइए फक कृ ष्ण का जन्भ कै से होगा तथा कॊ स की भृत्मु कृ ष्ण द्राया फकस प्रकाय होगी।" इॊद्र की फातं को सुनकय नायदजी ने ऩुन् कहना प्रायॊब फकमा "उस दुयािायी कॊ स ने अऩने एक द्रायऩार से कहा भेयी इस प्राणं से त्रप्रम फहन देवकी की ऩूणा सुयऺा कयना।" द्रायऩार ने कहा "ऐसा ही होगा भहायाज।" कॊ स के जाने के ऩद्ळात उसकी छोटी फहन देवकी दु्स्खत होते हुए जर रेने के फहाने घिा रेकय ताराफ ऩय गई। उस ताराफ के फकनाये एक वृऺ के नीिे फैठकय देवकी योने रगी। उसी सभम एक सुॊदय स्त्री, स्जसका नाभ मशोदा था, उसने आकय देवकी से त्रप्रम वाणी भं कहा "हे देवी! इस प्रकाय तुभ क्मं त्रवराऩ कय यही हो। अऩने योने का कायण भुझसे फताओ।" तफ दुखी देवकी ने मशोदा से कहा "हे फहन! नीि कभं भं आसि दुयािायी भेया ज्मेद्ष भ्राता कॊ स है।
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    18 अगस्त 2014 उसदुद्श भ्राता ने भेये कई ऩुिं का वध कय फदमा। इस सभम भेये गबा भं आठवाॉ ऩुि है। वह इसका बी वध कय डारेगा, क्मंफक भेये ज्मेद्ष भ्राता को मह बम है फक भेये अद्शभ ऩुि से उसकी भृत्मु अवश्म होगी।" देवकी की फातं सुनकय मशोदा ने कहा "हे फहन! त्रवराऩ भत कयो। भं बी गबावती हूॉ। मफद भुझे कन्मा हुई तो तुभ अऩने ऩुि के फदरे उस कन्मा को रे रेना। इस प्रकाय तुम्हाया ऩुि कॊ स के हाथं भाया नहीॊ जाएगा।" कॊ स ने वाऩस आकय अऩने द्रायऩार से ऩूछा "देवकी कहाॉ है? इस सभम वह फदखाई नहीॊ दे यही है।" तफ द्रायऩार ने कॊ स से नम्रवाणी भं कहा "हे भहायाज! आऩकी फहन जर रेने ताराफ ऩय गई हुई हं।" मह सुनते ही कॊ स क्रोसधत हो उठा औय उसने द्रायऩार को उसी स्थान ऩय जाने को कहा जहाॊ वह गई हुई है। द्रायऩार की दृत्रद्श ताराफ के ऩास देवकी ऩय ऩिी। तफ उसने कहा फक "आऩ फकस कायण से महाॉ आई हं।" उसकी फातं सुनकय देवकी ने कहा फक "भेये घय भं जर नहीॊ था, भं जर रेने जराशम ऩय आई हूॉ।" इसके ऩद्ळात देवकी अऩने घय की ओय िरी गई। कॊ स ने ऩुन् द्रायऩार से कहा फक इस घय भं भेयी फहन की तुभ ऩूणात् यऺा कयो। अफ कॊ स को इतना बम रगने रगा फक घय के बीतय दयवाजं भं त्रवशार तारे फॊद कयवा फदए जैसे कोई कायागाय हो औय दयवाज़े के फाहय दैत्मं औय याऺसं को ऩहयेदायी के सरए सनमुि कय फदमा। कॊ स हय प्रकाय से अऩने प्राणं को फिाने के प्रमास कय यहा था। तफ सबी प्रकाय के शुब भुहूता भं श्री कृ ष्ण का जन्भ हुआ औय श्रीकृ ष्ण के प्रबाव से ही उसी ऺण फन्दीगृह के दयवाज़े स्वमॊ खुर गए। द्राय ऩय ऩहया देने वारे ऩहयेदाय याऺस सबी भूस्च्छात हो गए। देवकी ने उसी ऺण अऩने ऩसत वसुदेव से कहा "हे स्वाभी! आऩ सनद्रा का त्माग कयं औय भेये इस ऩुि को गोकु र भं रे जाएॉ, वहाॉ इस ऩुि को नॊद गोऩ की धभाऩत्नी मशोदा को दे दं। उस सभम मभुनाजी ऩूणारूऩ से फाढ़ग्रस्त थीॊ, फकन्तु जफ वसुदेवजी फारक कृ ष्ण को सूऩ भं रेकय मभुनाजी को ऩाय कयने के सरए उतये उसी ऺण फारक के ियणं का स्ऩशा होते ही मभुनाजी अऩने ऩूवा स्स्थय रूऩ भं आ गईं। फकसी प्रकाय वसुदेवजी गोकु र ऩहुॉिे औय नॊद के घय भं प्रवेश कय उन्हंने अऩना ऩुि तत्कार उन्हं दे फदमा औय उसके फदरे भं उनकी कन्मा रे री। वे तत्कार वहाॊ से वाऩस आकय कॊ स के फॊदी गृह भं ऩहुॉि गए। प्रात्कार जफ सबी याऺस ऩहयेदाय सनद्रा से जागे तो कॊ स ने द्रायऩार से ऩूछा फक अफ देवकी के गबा से क्मा हुआ? इस फात का ऩता रगाकय भुझे फताओ। द्रायऩारं ने भहायाज की आऻा को भानते हुए कायागाय भं जाकय देखा तो वहाॉ देवकी की गोद भं एक कन्मा थी। स्जसे देखकय द्रायऩारं ने कॊ स को सूसित फकमा, फकन्तु कॊ स को तो उस कन्मा से बम होने रगा। अत् वह स्वमॊ कायागाय भं गमा औय उसने देवकी की गोद से कन्मा को झऩट सरमा औय उसे एक ऩत्थय की िट्टान ऩय ऩटक फदमा फकन्तु वह कन्मा त्रवष्णु की भामा से आकाश की ओय िरी गई औय अॊतरयऺ भं जाकय त्रवद्युत के रूऩ भं ऩरयस्णत हो गई। बगवान त्रवष्णु ने आकाशवाणी कय कॊ स से कहा फक "हे दुद्श! तुझे भायने वारा गोकु र भं नॊद के घय भं उत्ऩन्न हो िुका है औय उसी से तेयी भृत्मु सुसनस्द्ळत है। भेया नाभ तो वैष्णवी है, भं सॊसाय के कताा बगवान त्रवष्णु की भामा से उत्ऩन्न हुई हूॉ।" इतना कहकय वह स्वगा की ओय िरी गई। उस आकाशवाणी को सुनकय कॊ स क्रोसधत हो उठा। उसने नॊद के घय भं ऩूतना, के शी
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    19 अगस्त 2014 धनवृत्रद्ध फडब्फी धन वृत्रद्ध फडब्फी को अऩनी अरभायी, कै श फोक्स, ऩूजा स्थान भं यखने से धन वृत्रद्ध होती हं स्जसभं कारी हल्दी, रार- ऩीरा-सपे द रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पफटक यत्न, 3 ऩीरी कौडी, 3 सपे द कौडी, गोभती िक्र, सपे द गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, इॊद्र जार, भामा जार, इत्मादी दुराब वस्तुओॊ को शुब भहुता भं तेजस्वी भॊि द्राया असबभॊत्रित फकम जाता हं। भूल्म भाि Rs-730 >> Order Now GURUTVA KARYALAY: Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, नाभक दैत्म, काल्माख्म इत्माफद फरवान याऺसं की भृत्मु के आघात से कॊ स अत्मसधक बमबीत हो गमा। उसने द्रायऩारं को आऻा दी फक नॊद को तत्कार भेये सभऺ उऩस्स्थत कयो। द्रायऩार नॊद को रेकय जफ उऩस्स्थत हुए तफ कॊ स ने नॊद से कहा फक मफद तुम्हं अऩने प्राणं को फिाना है तो ऩारयजात के ऩुष्ऩ रे राओ। मफद तुभ नहीॊ रा ऩाए तो तुम्हाया वध सनस्द्ळत है। कॊ स की फातं को सुनकय नॊद ने 'ऐसा ही होगा' कहा औय अऩने घय की ओय िरे गए। घय आकय उन्हंने सॊऩूणा वृत्ताॊत अऩनी ऩत्नी मशोदा को सुनामा, स्जसे श्रीकृ ष्ण बी सुन यहे थे। एक फदन श्रीकृ ष्ण अऩने सभिं के साथ मभुना नदी के फकनाये गंद खेर यहे थे औय अिानक स्वमॊ ने ही गंद को मभुना भं पं क फदमा। मभुना भं गंद पं कने का भुख्म उद्देश्म मही था फक वे फकसी प्रकाय ऩारयजात ऩुष्ऩं को रे आएॉ। अत् वे कदम्फ के वृऺ ऩय िढ़कय मभुना भं कू द ऩिे। कृ ष्ण के मभुना भं कू दने का सभािाय 'श्रीधय' नाभक गोऩार ने मशोदा को सुनामा। मह सुनकय मशोदा बागती हुई मभुना नदी के फकनाये आ ऩहुॉिीॊ औय उसने मभुना नदी की प्राथाना कयते हुए कहा- 'हे मभुना! मफद भं फारक को देखूॉगी तो बाद्रऩद भास की योफहणी मुि अद्शभी का व्रत अवश्म करूॊ गी, क्मोफक हज़ायं अद्वभेध मऻ, सहस्रों याजसूम मऻ, दान तीथा औय व्रत कयने से जो पर प्राद्ऱ होता है, वह सफ कृ ष्णाद्शभी के व्रत को कयने से प्राद्ऱ हो जाता है। मह फात नायद ऋत्रष ने इॊद्र से कही। इॊद्र ने कहा- 'हे भुसनमं भं श्रेद्ष नायद! मभुना नदी भं कू दने के फाद उस फाररूऩी कृ ष्ण ने ऩातार भं जाकय क्मा फकमा? मह सॊऩूणा वृत्ताॊत बी फताएॉ।' नायद ने कहा- 'हे इॊद्र! ऩातार भं उस फारक से नागयाज की ऩत्नी ने कहा फक तुभ महाॉ क्मा कय यहे हो, कहाॉ से आए हो औय महाॉ आने का क्मा प्रमोजन है?' नागऩत्नी फोरीॊ- 'हे कृ ष्ण! क्मा तूने द्यूतक्रीिा की है, स्जसभं अऩना सभस्त धन हाय गमा है। मफद मह फात ठीक है तो कॊ कि, भुकु ट औय भस्णमं का हाय रेकय अऩने घय भं िरे जाओ क्मंफक इस सभम भेये स्वाभी शमन कय यहे हं। मफद वे उठ गए तो वे तुम्हाया बऺण कय जाएॉगे। नागऩत्नी की फातं सुनकय कृ ष्ण ने कहा हे कान्ते! भं फकस प्रमोजन से महाॉ आमा हूॉ, वह वृत्ताॊत भं तुम्हं फताता हूॉ। सभझ रो भं कासरम नाग के भस्तक को कॊ स के साथ द्यूत भं हाय िुका हूॊ औय वही रेने भं महाॉ आमा हूॉ। फारक कृ ष्ण की इस फात को सुनकय नागऩत्नी अत्मॊत क्रोसधत हो उठीॊ औय अऩने सोए हुए ऩसत को उठाते हुए उसने कहा हे स्वाभी! आऩके घय मह शिु आमा है। अत् आऩ इसका हनन कीस्जए। अऩनी स्वासभनी की फातं को सुनकय कासरमा नाग सनन्द्रावस्था से जाग ऩिा औय फारक कृ ष्ण से मुद्ध कयने रगा। इस मुद्ध भं कृ ष्ण को भूच्छाा आ गई, उसी भूछाा को दूय कयने के सरए उन्हंने गरुि का स्भयण फकमा। स्भयण होते ही गरुि वहाॉ आ गए। श्रीकृ ष्ण अफ गरुि ऩय िढ़कय कासरमा नाग से मुद्ध कयने रगे औय उन्हंने कासरम नाग को मुद्ध भं ऩयास्जत कय फदमा।
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    20 अगस्त 2014 अफकसरमा नाग ने बरीबाॊसत जान सरमा था फक भं स्जनसे मुद्ध कय यहा हूॉ, वे बगवान त्रवष्णु के अवताय श्रीकृ ष्ण ही हं। अत् उन्हंने कृ ष्ण के ियणं भं साद्शाॊग प्रणाभ फकमा औय ऩारयजात से उत्ऩन्न फहुत से ऩुष्ऩं को भुकु ट भं यखकय कृ ष्ण को बंट फकमा। जफ कृ ष्ण िरने को हुए तफ कासरमा नाग की ऩत्नी ने कहा हे स्वाभी! भं कृ ष्ण को नहीॊ जान ऩाई। हे जनादान भॊि यफहत, फक्रमा यफहत, बत्रिबाव यफहत भेयी यऺा कीस्जए। हे प्रबु! भेये स्वाभी भुझे वाऩस दे दं।' तफ श्रीकृ ष्ण ने कहा- 'हे सत्रऩाणी! दैत्मं भं जो सफसे फरवान है, उस कॊ स के साभने भं तेये ऩसत को रे जाकय छोि दूॉगा इससरए तुभ अऩने घय को िरी जाओ। अफ श्रीकृ ष्ण कासरमा नाग के पन ऩय नृत्म कयते हुए मभुना के ऊऩय आ गए। फपय कासरमा की पुॊ काय से तीनं रोक कम्ऩामभान हो गए। अफ कृ ष्ण कॊ स की भथुया नगयी को िर फदए। वहाॊ कभरऩुष्ऩं को देखकय मभुना के भध्म जराशम भं वह कासरमा सऩा बी िरा गमा। इधय कॊ स बी त्रवस्स्भत हो गमा तथा कृ ष्ण प्रसन्नसित्त होकय गोकु र रौट आए। उनके गोकु र आने ऩय उनकी भाता मशोदा ने त्रवसबन्न प्रकाय के उत्सव फकए। अफ इॊद्र ने नायदजी से ऩूछा हे भहाभुने! सॊसाय के प्राणी फारक श्रीकृ ष्ण के आने ऩय अत्मसधक आनॊफदत हुए। फपय बगवान श्रीकृ ष्ण ने कॊ स के भहाफरशारी बाई िाणूय िाणूय से भल्रमुद्ध की घोषणा की। िाणूय से भल्रमुद्ध के दौयान श्रीकृ ष्ण ने अऩने ऩैयं को िाणूय के गरे भं पॉ साकय उसका वध कय फदमा। िाणूय की भृत्मु के ऩद्ळात उनका भल्रमुद्ध के शी के साथ हुआ। इस मुद्ध भं श्रीकृ ष्ण औय फरदेव ने असॊख्म दैत्मं का वध फकमा। फरयाभजी ने अऩने आमुध शस्त्र हर से औय कृ ष्ण ने सुदशान िक्र से भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सद्ऱभी को त्रवशार दैत्मं के सभूह का सवानाश फकमा। जफ अन्त भं के वर दुयािायी कॊ स ही फि गमा तो कृ ष्ण ने कहा- हे दुद्श, अधभॉ, दुयािायी अफ भं इस भहामुद्ध स्थर ऩय तुझसे मुद्ध कय तथा तेया वध कय इस सॊसाय को तुझसे भुि कयाऊॉ गा। मह कहते हुए श्रीकृ ष्ण ने उसके के शं को ऩकि सरमा औय कॊ स को घुभाकय ऩृथ्वी ऩय ऩटक फदमा, स्जससे वह भृत्मु को प्राद्ऱ हुआ। कॊ स के भयने ऩय देवताओॊ ने शॊखघोष व ऩुष्ऩवृत्रद्श की। वहाॊ उऩस्स्थत सभुदाम श्रीकृ ष्ण की जम-जमकाय कय यहा था। कॊ स की भृत्मु ऩय नॊद, देवकी, वसुदेव, मशोदा औय इस सॊसाय के सबी प्रास्णमं ने हषा ऩवा भनामा। इस कथा को सुनने के ऩद्ळात इॊद्र ने नायदजी से कहा हे ऋत्रष इस कृ ष्ण जन्भाद्शभी का ऩूणा त्रवधान फताएॊ एवॊ इसके कयने से क्मा ऩुण्म प्राद्ऱ होता है, इसके कयने की क्मा त्रवसध है? नायदजी ने कहा हे इॊद्र! बाद्रऩद भास की कृ ष्णजन्भाद्शभी को इस व्रत को कयना िाफहए। उस फदन ब्रह्मिमा आफद सनमभं का ऩारन कयते हुए श्रीकृ ष्ण का स्थाऩन कयना िाफहए। सवाप्रथभ श्रीकृ ष्ण की भूसता स्वणा करश के ऊऩय स्थात्रऩत कय िॊदन, धूऩ, ऩुष्ऩ, कभरऩुष्ऩ आफद से श्रीकृ ष्ण प्रसतभा को वस्त्र इत्माफद से सुसस्ज्जत कय त्रवसधऩूवाक ऩूजन-अिान कयना िाफहए। उऩवास की ऩूवा यात्रि को हल्का बोजन कयं औय ब्रह्मिमा का ऩारन कयना िाफहए। अद्श रक्ष्भी कवि Asht Vinayak Kawach, Ashtavi nayak Kavach, Ashta Vi nayak अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं। भूल्म Rs: 1250 >>Order Now | Ask Now
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    21 अगस्त 2014 बायतीमसॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व  सिॊतन जोशी यऺाफॊधन- यऺाफॊधन अथाात ् प्रेभ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं। यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से फाॉधती है। बायतीम सॊस्कृ सत भं आज के बौसतकतावादी सभाज भं बोग औय स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम् सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं। बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं। बायतीम सॊस्कृ सत भं स्त्री को के वर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं। फकन्तु आजका ऩढा सरखा आधुसनक व्मत्रि अऩने आऩको सुधया हुवा भानने वारे तथा ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत का अॊधा अनुकयण कयके , स्त्री को सभानता फदराने वारी खोखरी बाषा फोरने वारं को ऩेहर बायत की ऩायॊऩरयक सॊस्कृ सत को ऩूणा सभझ रेना िाफह की ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत से तो के वर सभानता फदराई हो ऩयॊतु बायतीम सॊस्कृ सत ने तो स्त्री का ऩूजन फकमा हं। एसे फह नहीॊ कहाजाता हं। 'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति देवता्। बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है, उसका सम्भान होता है, वहाॉ देव यभते हं- वहाॉ देवं का सनवास होता है।' ऐसा बगवान भनु का विन है। बायतीम सॊस्कृ सत स्त्री की ओय बोग की दृत्रद्श से न देखकय ऩत्रवि दृत्रद्श से, भाॉ की बावना से देखने का आदेश देने वारी सवा श्रेद्ष बायतीम सॊस्कृ सत ही हं। हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवाजो नं बायतीम सॊस्कृ सत भं यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा क्मोफक यऺाफॊधन के तौहाय को दृत्रद्श ऩरयवतान के उद्देश्म से फनामा गमा हो? फहन द्राया याखी हाथ ऩय फॊधते ही बाई की दृत्रद्श फदर जाए। याखी फाॉधने वारी फहन की ओय वह त्रवकृ त दृत्रद्श न देखे, एवॊ अऩनी फहन का यऺण बी वह स्वमॊ कये। स्जस्से फहन सभाज भं सनबाम होकय घूभ सके । त्रवकृ त दृत्रद्श एवॊ भानससकता वारे रोग उसका भजाक उिाकय नीि वृत्रत्त वारे रोगो को दॊड देकय सफक ससखा सके हं। बाई को याखी फाॉधने से ऩहरे फहन उसके भस्स्तष्क ऩय सतरक कयती हं। उस सभम फहन बाई के भस्स्तष्क की ऩूजा नहीॊ अत्रऩतु बाई के शुद्ध त्रविाय औय फुत्रद्ध को सनभार कयने हेतु फकमा जाता हं, सतरक रगाने से दृत्रद्श ऩरयवतान की अद्भुत प्रफक्रमा सभाई हुई होती हं। बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधकय फहन उससे के वर अऩना यऺण ही नहीॊ िाहती, अऩने साथ-साथ सभस्त स्त्री जासत के यऺण की काभना यखती हं, इस के साथ फहॊ अऩना बाई फाह्य शिुओॊ औय अॊतत्रवाकायं ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कये औय सबी सॊकटो से उससे सुयस्ऺत यहे, मह बावना बी उसभं सछऩी होती हं। वेदं भं उल्रेख है फक देव औय असुय सॊग्राभ भं देवं की त्रवजम प्रासद्ऱ फक काभना के सनसभत्त देत्रव इॊद्राणी ने फहम्भत हाये हुए इॊद्र के हाथ भं फहम्भत फॊधाने हेतु याखी फाॉधी थी। एवॊ देवताओॊ की त्रवजम से यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू हुआ। असबभन्मु की यऺा के सनसभत्त कुॊ ताभाता ने उसे याखी फाॉधी थी।
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    22 अगस्त 2014 इसीसॊफॊध भं एक औय फकॊ वदॊती प्रससद्ध है फक देवताओॊ औय असुयं के मुद्ध भं देवताओॊ की त्रवजम को रेकय कु छ सॊदेह होने रगा। तफ देवयाज इॊद्र ने इस मुद्ध भं प्रभुखता से बाग सरमा था। देवयाज इॊद्र की ऩत्नी इॊद्राणी श्रावण ऩूस्णाभा के फदन गुरु फृहस्ऩसत के ऩास गई थी तफ उन्हंने त्रवजम के सरए यऺाफॊधन फाॉधने का सुझाव फदमा था। जफ देवयाज इॊद्र याऺसं से मुद्ध कयने िरे तफ उनकी ऩत्नी इॊद्राणी ने इॊद्र के हाथ भं यऺाफॊधन फाॉधा था, स्जससे इॊद्र त्रवजमी हुए थे। अनेक ऩुयाणं भं श्रावणी ऩूस्णाभा को ऩुयोफहतं द्राया फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे ब्राह्मणं द्राया मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है। ऩुयाणं भं ऐसी बी भान्मता है फक भहत्रषा दुवाासा ने ग्रहं के प्रकोऩ से फिने हेतु यऺाफॊधन की व्मवस्था दी थी। भहाबायत मुग भं बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी ऋत्रषमं को ऩूज्म भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को आवश्मक भाना था ताफक ऋत्रषमं के तऩ फर से बिं की यऺा की जा सके । ऐसतहाससक कायणं से भध्ममुगीन बायत भं यऺाफॊधन का ऩवा भनामा जाता था। शामद हभरावयं की वजह से भफहराओॊ के शीर की यऺा हेतु इस ऩवा की भहत्ता भं इजापा हुआ हो। तबी भफहराएॉ सगे बाइमं मा भुॉहफोरे बाइमं को यऺासूि फाॉधने रगीॊ। मह एक धभा-फॊधन था। यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोफहतं द्राया फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है। मे ब्राह्मणं द्राया मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है। यऺाफॊधन का एक भॊि बी है, जो ऩॊफडत यऺा-सूि फाॉधते सभम ऩढ़ते हं : मेन फद्धो फरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर्। तेन त्वाॊ प्रसतफध्नासभ यऺे भािर भािर्॥ बत्रवष्मोत्तय ऩुयाण भं याजा फसर (श्रीयाभिरयत भानस के फासर नहीॊ) स्जस यऺाफॊधन भं फाॉधे गए थे, उसकी कथा अक्सय उद्धृत की जाती है। फसर के सॊफॊध भं त्रवष्णु के ऩाॉिवं अवताय (ऩहरा अवताय भानवं भं याभ थे) वाभन की कथा है फक फसर से सॊकल्ऩ रेकय उन्हंने तीन कदभं भं तीनं रोकं भं सफकु छ नाऩ सरमा था। वस्तुत् दो ही कदभं भं वाभन रूऩी त्रवष्णु ने सफकु छ नाऩ सरमा था औय फपय तीसये कदभ,जो फसर के ससय ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक ऩहुॉिा फदमा था। रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊऩया तफ से फकसी न फकसी रूऩ भं त्रवद्यभान थी। *** असरी 1 भुखी से 14 भुखी रुद्राऺ गुरुत्व कामाारम भं सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ असरी 1 भुखी से 14 भुखी तक के रुद्राऺ उऩरब्ध हं। ज्मोसतष कामा से जुडे़ फॊधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न, उऩयत्न मॊि, रुद्राऺ व अन्म दुराब साभग्रीमाॊ एवॊ अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं। रुद्राऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरए कामाारम भं सॊऩका कयं। GURUTVA KARYALAY 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Website: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com |
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    23 अगस्त 2014 याखीऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी वाभनावताय कथा ऩोयास्णक कथा के अनुशाय एकफाय सौ मऻ ऩूणा कय रेने ऩय दानवो के याजा फसर के भन भं स्वगा प्रासद्ऱ की इच्छा प्रफर हो गई तो इन्द्र का ससॊहासन डोरने रगा। इन्द्र आफद देवताओॊ ने बगवान त्रवष्णु से यऺा की प्राथाना की। बगवान ने वाभन अवताय रेकय ब्राह्मण का वेष धायण कय सरमा औय याजा फसर से सबऺा भाॊगने ऩहुॉि गए। बगवान त्रवष्णुने फसर से तीन ऩग बूसभ सबऺा भं भाॊग री। फसर के गुरु शुक्रदेवजी ने ब्राह्मण रुऩ धायण फकए हुए श्री त्रवष्णु को ऩहिान सरमा औय फसर को इस फाये भं सावधान कय फदमा फकॊ तु फसर अऩने विन से न फपये औय तीन ऩग बूसभ दान कय दी। अफ वाभन रूऩ भं बगवान त्रवष्णु ने एक ऩग भं स्वगा औय दूसये ऩग भं ऩृथ्वी को नाऩ सरमा। तीसया ऩैय कहाॉ यखं? फसर के साभने सॊकट उत्ऩन्न हो गमा। मफद वह अऩना विन नहीॊ सनबाता तो अधभा होता। आस्खयकाय उसने अऩना ससय बगवान के आगे कय फदमा औय कहा तीसया ऩग आऩ भेये ससय ऩय यख दीस्जए। वाभन बगवान ने वैसा ही फकमा। ऩैय यखते ही वह यसातर रोक भं ऩहुॉि गमा। जफ फारी यसातर भं िरा गमा तफ फसर ने अऩनी बत्रि के फर से बगवान को यात-फदन अऩने साभने यहने का विन रे सरमा औय बगवान त्रवष्णु को उनका द्रायऩार फनना ऩिा। बगवान के यसातर सनवास से ऩयेशान फक मफद स्वाभी यसातर भं द्रायऩार फन कय सनवास कयंगे तो फैकुॊ ठ रोक का क्मा होगा? इस सभस्मा के सभाधान के सरए रक्ष्भी जी को नायद जी ने एक उऩाम सुझामा। रक्ष्भी जी ने याजा फसर के ऩास जाकय उसे यऺाफन्धन फाॊधकय अऩना बाई फनामा औय उऩहाय स्वरुऩ अऩने ऩसत बगवान त्रवष्णु को अऩने साथ रे आमीॊ। उस फदन श्रावण भास की ऩूस्णाभा सतसथ थी मथा यऺा- फॊधन भनामा जाने रगा। सयस्वती कवि एवॊ मॊि उत्तभ सशऺा एवॊ त्रवद्या प्रासद्ऱ के सरमे वॊसत ऩॊिभी ऩय दुराब तेजस्वी भॊि शत्रि द्राया ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सयस्वती कवि औय सयस्वती मॊि के प्रमोग से सयरता एवॊ सहजता से भाॊ सयस्वती की कृ ऩा प्राद्ऱ कयं। भूल्म:280 से 1450 तक >> Order Now
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    24 अगस्त 2014 बत्रवष्मऩुयाण की कथा बत्रवष्म ऩुयाण की एक कथा के अनुसाय एक फाय देवता औय दानवं भं फायह वषं तक मुद्ध हुआ ऩयन्तु देवता त्रवजमी नहीॊ हुए। इॊद्र हाय के बम से दु:खी होकय देवगुरु फृहस्ऩसत के ऩास त्रवभशा हेतु गए। गुरु फृहस्ऩसत के सुझाव ऩय इॊद्र की ऩत्नी भहायानी शिी ने श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा के फदन त्रवसध-त्रवधान से व्रत कयके यऺासूि तैमाय फकए औय स्वास्स्तवािन के साथ ब्राह्मण की उऩस्स्थसत भं इॊद्राणी ने वह सूि इॊद्र की दाफहनी कराई भं फाॊधा स्जसके परस्वरुऩ इन्द्र सफहत सभस्त देवताओॊ की दानवं ऩय त्रवजम हुई। यऺा त्रवधान के सभम सनम्न स्जस भॊि का उच्िायण फकमा गमा था उस भॊि का आज बी त्रवसधवत ऩारन फकमा जाता है: "मेन फद्धोफरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर: । तेन त्वाभसबफध्नासभ यऺे भा िर भा िर ।।" इस भॊि का बावाथा है फक दानवं के भहाफरी याजा फसर स्जससे फाॊधे गए थे, उसी से तुम्हं फाॊधता हूॉ। हे यऺे! (यऺासूि) तुभ िरामभान न हो, िरामभान न हो। मह यऺा त्रवधान श्रवण भास की ऩूस्णाभा को प्रात् कार सॊऩन्न फकमा गमा मथा यऺा-फॊधन अस्स्तत्व भं आमा औय श्रवण भास की ऩूस्णाभा को भनामा जाने रगा। भहाबायत सॊफॊधी कथा भहाबायत कार भं द्रौऩदी द्राया श्री कृ ष्ण को तथा कु न्ती द्राया असबभन्मु को याखी फाॊधने के वृत्ताॊत सभरते हं। भहाबायत भं ही यऺाफॊधन से सॊफॊसधत कृ ष्ण औय द्रौऩदी का एक औय वृत्ताॊत सभरता है। जफ कृ ष्ण ने सुदशान िक्र से सशशुऩार का वध फकमा तफ उनकी तजानी भं िोट आ गई। द्रौऩदी ने उस सभम अऩनी सािी पािकय उनकी उॉगरी ऩय ऩट्टी फाॉध दी। मह श्रावण भास की ऩूस्णाभा का फदन था। श्रीकृ ष्ण ने फाद भं द्रौऩदी के िीय-हयण के सभम उनकी राज फिाकय बाई का धभा सनबामा था।। वास्तु दोष सनवायक मॊि बवन छोटा होमा फडा मफद बवन भं फकसी कायण से सनभााण भं वास्तु दोष रगयहा हो, तो शास्त्रं भं उसके सनवायण हेतु वास्तु देवता को प्रसन्न एवॊ सन्तुद्श कयने के सरए अनेक उऩाम का उल्रेख सभरता हं। उन्हीॊ उऩामो भं से एक हं वास्तु मॊि फक स्थाऩना स्जसे घय-दुकान-ओफपस-पै क्टयी भं स्थात्रऩत कयने से सॊफॊसधत सभस्त ऩयेशानीओॊ का शभन होकय वास्तु दोष का सनवायण होजाता हं एवॊ बवन भं सुख सभृत्रद्ध का आगभन होता हं। भूल्म भाि Rs : 730 >> Order Now
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    25 अगस्त 2014 बाग्मरक्ष्भी फदब्फी सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग, व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩयेशासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ होसत है, बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), त्रफस्ल्र नार, कारी हल्दी शॊख, कारी-सफ़े द-रार गुॊजा, इन्द्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दुराब साभग्री होती है। भूल्म:- Rs. 1450, 2800, 4600, 6400, 8200, 10900 भं उप्रब्द्ध >> Order Now . गुरुत्व कामाारम सॊऩका : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 c कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान  सिॊतन जोशी एक फाय फरयाभ सफहत ग्वार फार खेर यहं थे खेरते-खेरते मशोदा के ऩास ऩहुॉिे औय मशोदाजी से कहा भाॉ! कृ ष्ण ने आज सभट्टी खाई हं। मशोदा ने कृ ष्ण के हाथं को ऩकि सरमा औय धभकाने रगी फक तुभने सभट्टी क्मं खाई! मशोदा को मह बम था फक कहीॊ सभट्टी खाने से कृ ष्ण कोई योग न रग जाए। भाॉ फक डाॊट से कृ ष्ण तो इतने बमबीत हो गए थे फक वे भाॉ की ओय आॉख बी नहीॊ उठा ऩा यहे थे। तफ मशोदा ने कहा तूने एकान्त भं सभट्टी क्मं खाई! सभट्टी खाते हुए तुजे फरयाभ सफहत औय बी ग्वार ने देखा हं। कृ ष्ण ने कहा- सभट्टी भंने नहीॊ खाई हं। मे सबी रोग झुठ फोर यहे हं। मफद आऩको रगता हं भंने सभट्टी खाई हं, तो स्वमॊ भेया भुख देख रे। भाॉ ने कहा मफद ऐसा है तो तू अऩना भुख खोर। रीरा कयने के सरए फार कृ ष्ण ने अऩना भुख भाॉ के सभऺ खोर फदमा। मशोदा ने जफ भुख के अॊदय देखते फह उसभं सॊऩूणा त्रवद्व फदखाई ऩिने रगा। अॊतरयऺ, फदशाएॉ, द्रीऩ, ऩवात, सभुद्र, ऩृथ्वी,वामु, त्रवद्युत, ताया सफहत स्वगारोक, जर, अस्ग्न, वामु, आकाश इत्माफद त्रवसिि सॊऩूणा त्रवद्व एक ही कार भं फदख ऩिा। इतना ही नहीॊ, मशोदा ने उनके भुख भं ब्रज के साथ स्वमॊ अऩने आऩको बी देखा। इन फातं से मशोदा को तयह-तयह के तका -त्रवतका होने रगे। क्मा भं स्वप्न देख यही हूॉ! मा देवताओॊ की कोई भामा हं मा भेयी फुत्रद्ध ही व्माभोह हं मा इस भेये कृ ष्ण का ही कोई स्वाबात्रवक प्रबावऩूणा िभत्काय हं। अन्त भं उन्हंने मही दृढ़ सनद्ळम फकमा फक अवश्म ही इसी का िभत्काय है औय सनद्ळम ही ईद्वय इसके रूऩ भं अवतरयत हुएॊ हं। तफ उन्हंने कृ ष्ण की स्तुसत की उस शत्रि स्वरुऩ ऩयब्रह्म को भं नभस्काय कयती हूॉ। कृ ष्ण ने जफ देखा फक भाता मशोदा ने भेया तत्व ऩूणात् सभझ सरमा हं तफ उन्हंने तुयॊत ऩुि स्नेहभमी अऩनी शत्रि रूऩ भामा त्रफखेय दी स्जससे मशोदा ऺण भं ही सफकु छ बूर गई। उन्हंने कृ ष्ण को उठाकय अऩनी गोद भं उठा सरमा।
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    26 अगस्त 2014 शॊखध्वसन से योग बगाएॊ !  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, फदऩक.ऐस.जोशी आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ का नाश होता हं। जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान वामुभॊडर भं कु छ त्रवशेष प्रकाय की तयॊगे उत्ऩन्न होती हं, जो ब्रह्माॊड की कु छ अन्म तयॊगं के साथ सभरकय अल्ऩ ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं। उनका भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी एक तयॊग को जफ दूसयी अनुकू र तयॊगं प्राद्ऱ होती हं तफ दोनं तयॊगं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा देने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊगे उठने रगती हं, औय भनुष्म अऩने कामा उद्देश्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता हं। जानकायं का भानना हं की तयॊगे इतनी शूक्ष्भ होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से द्रद्शी गोिय नहीॊ हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊतय प्रमोग से ही इन तयॊगं के प्रबावं को सभझा जा सकता हं। त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व ध्वसनमं का छोटे-फिे सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया प्रबाव ऩिता हं। उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं। हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-भुसनमं ने अऩने मोगफर एवॊ अनुसॊधानो का सूक्ष्भ अध्ममन कय के हजायं वषा ऩूवा ही प्रकृ सत भं सछऩे गृढ़ यहस्मं को जान सरमा था, औय प्रकृ सत के गृढ़ यहस्मं के ऻान को हभाये ऋत्रष-भुसनमं ने त्रवसबन्न ग्रॊथं औय शास्त्रं के रुऩ सहेज कय भं प्रदान फकमा हं। शॊख ध्वसन एवॊ शॊख के त्रवसबन्न राब की शोध का श्रेम बी हभाये ऋत्रष-भुसनमं को ही जाता हं। त्रवद्रानं ने शॊख ध्वसन भं सभग्र ब्रह्माॊड को सनफहत भाना है। उनका भानना हं फक, अस्खर ब्रह्माॊड के सॊस्ऺद्ऱ रूऩ को प्रकट कयने वारी मफद कोई शत्रि हं तो वह शॊख ध्वसन है। ऩौयास्णक कार भं शॊखनाद के भाध्मभ से मुद्धायॊब की घोषणा औय उत्साहवधान फकमा जाता था। आध्मास्त्भक कामं भं बी शॊख ध्वसन अऩना त्रवशेष भहत्व यखती हं। शास्त्रं भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध भं शॊख का अत्मसधक उऩमोग हुवा था। मुद्ध के सभम के प्रभुख भहायसथमं के ऩास जो शॊख थे, उनका उल्रेख इस प्रकाय फकमा गमा है- ऩाॊिजन्मॊ रृषीके शो देवदत्तॊ धनञ्जम। ऩौण्रॊ दध्भौ भहाशॊखॊ बीभकभाा वृकोदय॥ अनन्तत्रवजमभ् याजा कु न्तीऩुिो मुसधत्रद्षय। नकु र सहदेवद्ळ सुघोषभस्णऩुष्ऩकौ॥ काश्मद्ळ ऩयभेष्वास सशखण्डी ि भहायथ। धृद्शद्युम्नो त्रवयाटद्ळ सात्मफकद्ळाऩयास्जता्॥ द्रुऩदो द्रौऩदेमाद्ळ सवाश ऩृसथवीऩते। सौबद्रद्ळ भहाफाहु् शॊखान्दध्भु् ऩृथक्ऩृथक्॥ अथाात ्: श्रीकृ ष्ण बगवान ने ऩाॊिजन्म नाभक, अजुान ने देवदत्त औय बीभसेन ने ऩंर शॊख फजामा। कुॊ ती ऩुि याजा मुसधत्रद्षय ने अनन्तत्रवजम शॊख, नकु र ने सुघोष एवॊ सहदेव ने भस्णऩुष्ऩक नाभक शॊख का नाद फकमा। इसके अरावा काशीयाज, सशखॊडी, धृद्शद्युम्न, याजा त्रवयाट, सात्मफक, याजा द्रुऩद, द्रौऩदी के ऩाॉिं ऩुिं औय असबभन्मु आफद सबी ने अरग-अरग शॊखं का नाद फकमा।
  • 27.
    27 अगस्त 2014 भानाजाता हं की मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध बूसभ भं अद्भुत शौमा औय शत्रि के प्रदशान का आधाय शॊखनाद ही हं। मही कायण हं की ऩुयातन कार भं मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध भं शॊखनाद प्रमोग फकमा जाता था। बगवान श्रीकृ ष्ण का ऩाॊिजन्म नाभक शॊख तो एकदभ अद्भुत औय अफद्रतीम होने के कायण हीॊ भहाबायत भं त्रवजम का प्रतीक फन गमा। रृदम को झॊकृ त कयने, ऩुन् कॊ त्रऩत कयने व आनस्न्दत कयने भं शॊख ध्वसन का प्रबाव अद्भुत यहा हं। आज बी जफ फकसी धासभाक कामा मा भाॊगसरक कामा के दौयान जफ शॊखनाद होता हं तो वहाॊ ऩय उऩस्स्थत रोगं का तन-भन आनस्न्दत हो जाता हं। शॊखनाद के त्रवसबन्न प्रबावं का उल्रेख हभं अनेक शास्त्र एवॊ ग्रॊथं भं सभरता है।  कु छ कृ त्रषकामा से जुिे रोगं नं अऩने खेतं भं शॊखनाद द्राया अऩनी पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध कयके शॊख ध्वसन के भाध्मभ से सपरता प्राद्ऱ की हं।  त्रवद्रानं का अनुबव हं की पसरं को ऩानी देते सभम शुब भुहूता भं 108 शॊखोदक (108 शॊखं का जर) सभरा कय पसर भं देने से पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध होती हं, अनाज के बॊडाय गृह भं कीिं-भकोिे आफद जीवं से फिाने के सरए प्रसत भॊगरवाय को शॊखनाद कयना राबप्रद भाना हं।  शॊखं का जर फनाने हेतु शॊख भं 12 से 24 घॊटे जर बयकय यखा जाता हं।  त्रवसबन्न ग्रॊथं एवॊ शास्त्रं भं उल्रेख सभरते हं की शॊख ध्वसन के प्रबाव से भनुष्म ही नहीॊ वयन ऩशु- ऩस्ऺमं को बी सम्भोफहत फकमा जा सकता हं।  तॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की दोष यफहत शॊखनाद की ध्वसन तयॊग भनुष्म की कुॊ डसरनी एवॊ रुद्रिक्र ऩय प्रबाव डारती हं व शयीय की सुषुद्ऱ शत्रि जाग्रत होने रगती हं।  शास्त्रकायं ने शॊख ध्वसन के अद्भुत प्रबावं का वणा कयते हुवे फतामा हं की शॊखनाद के प्रबाव से फसधयता दूय होना सॊबव हं।  शॊखजर के सनमसभत सेवन से भूकता औय हकराऩन दूय हो सकता हं।  मफद गबावसत स्त्री शॊखजर का सनमसभत सेवन कयं तो होने वारी सॊतान स्वस्थ एवॊ सुॊदय होती हं।  सनमसभत शॊख ध्वसन का श्रवण कयने से रृदम अवयोध, रृदम धात (फदर का दौया) नहीॊ होता।  शॊख पूॉ कने से व्मत्रि के पे पिे शत्रिशारी होते हं, क्मंफक शॊख पूॉ कने ऩय ऩहरे हवा पे पिं भं जभा होती हं, फपय उसे भुॉह बयकय शॊख भं पूॉ कते हं। इस फक्रमा से आॉत, द्वास नरी पे पिे एक साथ काभ कयते हं।  शॊखनाद सनयॊतय कयने ऩय दभा, खाॉसी, मकृ त आफद योग जि से नद्श हो जाते हं।  शॊखजर के सनमसभत सेवन से शीत त्रऩत्त, द्वेत प्रदय, यि की अल्ऩता आफद योग दूय हो जाते हं। ***
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    28 अगस्त 2014 श्रीकृष्ण फीसा मॊि फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दुसयो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं, तफ रोग उसकी सहामता एवॊ सेवा हेतु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩयेशानी से सॊऩन्न हो जाते हं। आज के बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दूसयो को अऩनी औय खीिने हेतु एक प्रबावशासर िुॊफकत्व को कामभ यखना असत आवश्मक हो जाता हं। आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हं, श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती हं, स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कं द्र यहता हं। मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष येखाएॊ, फीज भॊि एवॊ अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भुत आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं, जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं!  श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं।  त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग कं फद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय को प्राद्ऱहोती हं।  जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना िाहते हं। उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं।  ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं। भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now श्रीकृ ष्ण फीसा कवि श्रीकृ ष्ण फीसा कवि को के वर त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा जाता हं। कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं। स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता हं। कवि को गरे भं धायण कयने से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हं। गरे भं धायण कयने से कवि हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं। भूरम भाि: 1900 >>Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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    29 अगस्त 2014 कृष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व  सिॊतन जोशी श्री शुकदेवजी याजा ऩयीस्ऺत ्से कहते हं- सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह। न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान्स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह िीणासनष्कृ ता्॥ बावाथा: जो भनुष्म के वर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं भं रगा देते हं, वे ऩाऩं से छू ट जाते हं, फपय उन्हं ऩाश हाथ भं सरए हुए मभदूतं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो सकते। अत्रवस्भृसत् कृ ष्णऩदायत्रवन्दमो् स्ऺणोत्मबद्रस्ण शभॊ तनोसत ि। सत्वस्म शुत्रद्धॊ ऩयभात्भबत्रिॊ ऻानॊ ि त्रवऻानत्रवयागमुिभ्॥ बावाथा: श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं का स्भयण सदा फना यहे तो उसी से ऩाऩं का नाश, कल्माण की प्रासद्ऱ, अन्त् कयण की शुत्रद्ध, ऩयभात्भा की बत्रि औय वैयाग्ममुि ऻान- त्रवऻान की प्रासद्ऱ अऩने आऩ ही हो जाती हं। ऩुॊसाॊ कसरकृ तान्दोषान्द्रव्मदेशात्भसॊबवान्। सवाान्हरयत सित्तस्थो बगवान्ऩुरुषोत्तभ्॥ बावाथा:बगवान ऩुरुषोत्तभ श्रीकृ ष्ण जफ सित्त भं त्रवयाजते हं, तफ उनके प्रबाव से कसरमुग के साये ऩाऩ औय द्रव्म, देश तथा आत्भा के दोष नद्श हो जाते हं। शय्मासनाटनाराप्रीडास्नानाफदकभासु। न त्रवदु् सन्तभात्भानॊ वृष्णम् कृ ष्णिेतस्॥ बावाथा: श्रीकृ ष्ण को अऩना सवास्व सभझने वारे बि श्रीकृ ष्ण भं इतने तन्भम यहते थे फक सोते, फैठते, घूभते, फपयते, फातिीत कयते, खेरते, स्नान कयते औय बोजन आफद कयते सभम उन्हं अऩनी सुसध ही नहीॊ यहती थी। वैयेण मॊ नृऩतम् सशशुऩारऩौण्र- शाल्वादमो गसतत्रवरासत्रवरोकनाद्यै्। ध्मामन्त आकृ तसधम् शमनासनादौ तत्साम्मभाऩुयनुयिसधमाॊ ऩुन् फकभ ्॥ बावाथा: जफ सशशुऩार, शाल्व औय ऩौण्रक आफद याजा वैयबाव से ही खाते, ऩीते, सोते, उठते, फैठते हय वि श्री हरय की िार, उनकी सितवन आफद का सिन्तन कयने के कायण भुि हो गए, तो फपय स्जनका सित्त श्री कृ ष्ण भं अनन्म बाव से रग यहा है, उन त्रवयि बिं के भुि होने भं तो सॊदेह ही क्मा हं? एन् ऩूवाकृ तॊ मत्तद्राजान् कृ ष्णवैरयण्। जहुस्त्वन्ते तदात्भान् कीट् ऩेशस्कृ तो मथा॥ बावाथा: श्रीकृ ष्ण से द्रेष कयने वारे सभस्त नयऩसतगण अन्त भं श्री बगवान के स्भयण के प्रबाव से ऩूवा सॊसित ऩाऩं को नद्श कय वैसे ही बगवद्रूऩ हो जाते हं, जैसे ऩेशस्कृ त के ध्मान से कीिा तद्रूऩ हो जाता है, अतएव श्रीकृ ष्ण का स्भयण सदा कयते यहना िाफहए। त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके -रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं। एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके -रडकी फक कुॊ डरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं।
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    30 अगस्त 2014 श्रीकृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय  सिॊतन जोशी वसुदेवजी की प्राथाना ऩय मदुओॊ के ऩुयोफहत भहातऩस्वी गगाािामाजी ब्रज नगयी ऩहुॉिे। उन्हं देखकय नॊदफाफा अत्मसधक प्रसन्न हुए। उन्हंने हाथ जोिकय प्रणाभ फकमा औय उन्हं त्रवष्णु तुल्म भानकय उनकी त्रवसधवत ऩूजा की। इसके ऩद्ळात नॊदजी ने उनसे कहा आऩ कृ प्मा भेये इन दोनं फच्िं का नाभकयण सॊस्काय कय दीस्जए। इस ऩय गगाािामाजी ने कहा फक ऐसा कयने भं कु छ अििनं हं। भं मदुवॊसशमं का ऩुयोफहत हूॉ, मफद भं तुम्हाये इन ऩुिं का नाभकयण सॊस्काय कय दूॉ तो रोग इन्हं देवकी का ही ऩुि भानने रगंगे, क्मंफक कॊ स तो ऩहरे से फह ऩाऩभम फुत्रद्ध वारा हं। वह सवादा सनयथाक फातं ही सोिता है। दूसयी ओय तुम्हायी व वसुदेव की भैिी है। अफ भुख्म फात मह हं फक देवकी की आठवीॊ सॊतान रिकी नहीॊ हो सकती क्मंफक मोगभामा ने कॊ स से मही कहा था अये ऩाऩी भुझे भायने से क्मा पामदा है? वह सदैव मही सोिता है फक कहीॊ न कहीॊ भुझे भायने वारा अवश्म उत्ऩन्न हो िुका हं। मफद भं नाभकयण सॊस्काय कयवा दूॉगा तो भुझे ऩूणा आशा हं फक वह भेये फच्िं को भाय डारेगा औय हभ रोगं का अत्मसधक असनद्श कयेगा। नॊदजी ने गगाािामाजी से कहा मफद ऐसी फात है तो फकसी एकान्त स्थान भं िरकय त्रवसध ऩूवाक इनके फद्रजासत सॊस्काय कयवा दीस्जए। इस त्रवषम भं भेये अऩने आदभी बी न जान सकं गे। नॊद की इन फातं को सुनकय गगाािामा ने एकान्त भं सछऩकय फच्िे का नाभकयण कयवा फदमा। नाभकयण कयना तो उन्हं अबीद्श ही था, इसीसरए वे आए थे। गगाािामाजी ने वसुदेव से कहा योफहणी का मह ऩुि गुणं से अऩने रोगं के भन को प्रसन्न कयेगा। अत् इसका नाभ याभ होगा। इसी नाभ से मह ऩुकाया जाएगा। इसभं फर की असधकता असधक होगी। इससरए इसे रोग फर बी कहंगे। मदुवॊसशमं की आऩसी पू ट सभटाकय उनभं एकता को मह स्थात्रऩत कयेगा, अत् रोग इसे सॊकषाण बी कहंगे। अत् इसका नाभ फरयाभ होगा। अफ उन्हंने मशोदा औय नॊद को रक्ष्म कयके कहा- मह तुम्हाया ऩुि प्रत्मेक मुग भं अवताय ग्रहण कयता यहता हं। कबी इसका वणा द्वेत, कबी रार, कबी ऩीरा होता है। ऩूवा के प्रत्मेक मुगं भं शयीय धायण कयते हुए इसके तीन वणा हो िुके हं। इस फाय कृ ष्णवणा का हुआ है, अत् इसका नाभ कृ ष्ण होगा। तुम्हाया मह ऩुि ऩहरे वसुदेव के महाॉ जन्भा हं, अत् श्रीभान वासुदेव नाभ से त्रवद्रान रोग ऩुकायंगे। तुम्हाये ऩुि के नाभ औय रूऩ तो सगनती के ऩये हं, उनभं से गुण औय कभा अनुरूऩ कु छ को भं जानता हूॉ। दूसये रोग मह नहीॊ जान सकते। मह तुम्हाये गोऩ गौ एवॊ गोकु र को आनॊफदत कयता हुआ तुम्हाया कल्माण कयेगा। इसके द्राया तुभ बायी त्रवऩत्रत्तमं से बी भुि यहोगे। इस ऩृथ्वी ऩय जो बगवान भानकय इसकी बत्रि कयंगे उन्हं शिु बी ऩयास्जत नहीॊ कय सकं गे। स्जस तयह त्रवष्णु के बजने वारं को असुय नहीॊ ऩयास्जत कय सकते। मह तुम्हाया ऩुि संदमा, कीसता, प्रबाव आफद भं त्रवष्णु के सदृश होगा। अत् इसका ऩारन-ऩोषण ऩूणा सावधानी से कयना। इस प्रकाय कृ ष्ण के त्रवषम भं आदेश देकय गगाािामा अऩने आश्रभ को िरे गए।
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    31 अगस्त 2014 ॥श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥ दोहा फॊशी शोसबत कय भधुय, नीर जरद तन श्माभ। अरुणअधयजनु त्रफम्फपर, नमनकभरअसबयाभ॥ ऩूणा इन्द्र, अयत्रवन्द भुख, ऩीताम्फय शुब साज। जम भनभोहन भदन छत्रव, कृ ष्णिन्द्र भहायाज॥ जम मदुनॊदन जम जगवॊदन। जम वसुदेव देवकी नन्दन॥ जम मशुदा सुत नन्द दुराये। जम प्रबु बिन के दृग ताये॥ जम नट-नागय, नाग नथइमा॥ कृ ष्ण कन्हइमा धेनु ियइमा॥ ऩुसन नख ऩय प्रबु सगरयवय धायो। आओ दीनन कद्श सनवायो॥ वॊशी भधुय अधय धरय टेयौ। होवे ऩूणा त्रवनम मह भेयौ॥ आओ हरय ऩुसन भाखन िाखो। आज राज बायत की याखो॥ गोर कऩोर, सिफुक अरुणाये। भृदु भुस्कान भोफहनी डाये॥ यास्जत यास्जव नमन त्रवशारा। भोय भुकु ट वैजन्तीभारा॥ कुॊ डर श्रवण, ऩीत ऩट आछे। कफट फकॊ फकणी काछनी काछे॥ नीर जरज सुन्दयतनु सोहे। छत्रफरस्ख, सुयनय भुसनभन भोहे॥ भस्तक सतरक, अरक घुॉघयारे। आओ कृ ष्ण फाॊसुयी वारे॥ करय ऩम ऩान, ऩूतनफह ताय्मो। अका फका कागासुय भाय्मो॥ भधुवन जरतअसगन जफज्वारा। बैशीतररखतफहॊ नॊदरारा॥ सुयऩसत जफ ब्रज िढ़्मो रयसाई। भूसय धाय वारय वषााई॥ रगत रगत व्रज िहन फहामो। गोवधान नख धारय फिामो॥ रस्ख मसुदा भनभ्रभ असधकाई। भुखभॊह िौदह बुवन फदखाई॥ दुद्श कॊ स असत उधभ भिामो। कोफट कभर जफ पू र भॊगामो॥ नासथ कासरमफहॊ तफ तुभ रीन्हं। ियण सिह्न दै सनबाम कीन्हं॥ करय गोत्रऩन सॊग यास त्रवरासा। सफकी ऩूयण कयी असबराषा॥ के सतक भहा असुय सॊहाय्मो। कॊ सफह के स ऩकफि दै भाय्मो॥ भात-त्रऩता की फस्न्द छु िाई। उग्रसेन कहॉ याज फदराई॥ भफह से भृतक छहं सुत रामो। भातु देवकी शोक सभटामो॥ बौभासुय भुय दैत्म सॊहायी। रामे षट दश सहसकु भायी॥ दै बीभफहॊ तृण िीय सहाया। जयाससॊधु याऺस कहॉ भाया॥ असुय फकासुय आफदक भाय्मो। बिन के तफ कद्श सनवाय्मो॥ दीन सुदाभा के दु्ख टाय्मो। तॊदुर तीन भूॊठ भुख डाय्मो॥ प्रेभ के साग त्रवदुय घय भाॉगे। दुमोधन के भेवा त्मागे॥ रखी प्रेभ की भफहभा बायी। ऐसे श्माभ दीन फहतकायी॥ बायत के ऩायथ यथ हाॉके । सरमे िक्र कय नफहॊ फर थाके ॥ सनज गीता के ऻान सुनाए। बिन रृदम सुधा वषााए॥ भीया थी ऐसी भतवारी। त्रवष ऩी गई फजाकय तारी॥ याना बेजा साॉऩ त्रऩटायी। शारीग्राभ फने फनवायी॥ सनजभामा तुभ त्रवसधफहॊ फदखामो। उय ते सॊशम सकर सभटामो॥ तफ शत सनन्दा करय तत्कारा। जीवन भुि बमो सशशुऩारा॥ जफफहॊ द्रौऩदी टेय रगाई। दीनानाथ राज अफ जाई॥ तुयतफह वसन फने नॊदरारा। फढ़े िीय बै अरय भुॉह कारा॥ अस अनाथ के नाथ कन्हइमा। डूफत बॊवय फिावइ नइमा॥ 'सुन्दयदास' आस उय धायी। दमा दृत्रद्श कीजै फनवायी॥ नाथ सकर भभ कु भसत सनवायो। ऺभहु फेसग अऩयाध हभायो॥ खोरो ऩट अफ दशानदीजै। फोरो कृ ष्ण कन्हइमा की जै॥ दोहा मह िारीसा कृ ष्ण का, ऩाठ कयै उय धारय। अद्श ससत्रद्ध नवसनसध पर, रहै ऩदायथ िारय॥ रक्ष्भी मॊि श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि)श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि मॊि के त्रवषम भं असधक हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now
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    32 अगस्त 2014 त्रवप्रऩत्नीकृत श्रीकृ ष्णस्तोि त्रवप्रऩत्न्म ऊिु् त्वॊ ब्रह्म ऩयभॊ धाभ सनयीहो सनयहॊकृ सत्। सनगुाणद्ळ सनयाकाय् साकाय् सगुण् स्वमभ् ॥१॥ सास्ऺरूऩद्ळ सनसराद्ऱ् ऩयभात्भा सनयाकृ सत्। प्रकृ सत् ऩुरुषस्त्वॊ ि कायणॊ ि तमो् ऩयभ् ॥२॥ सृत्रद्शस्स्थत्मॊत त्रवषमे मे ि देवास्त्रम् स्भृता्। ते त्वदॊशा् सवाफीजा ब्रह्म-त्रवष्णु-भहेद्वया् ॥३॥ मस्म रोम्नाॊ ि त्रववये िाऽस्खरॊ त्रवद्वभीद्वय्। भहात्रवयाण्भहात्रवष्णुस्तॊ तस्म जनको त्रवबो ॥४॥ तेजस्त्वॊ िाऽत्रऩ तेजस्वी ऻानॊ ऻानी ि तत्ऩय्। वेदेऽसनवािनीमस्त्वॊ कस्त्वाॊ स्तोतुसभहेद्वय् ॥५॥ भहदाफदसृत्रद्शसूिॊ ऩॊितन्भािभेव ि। फीजॊ त्वॊ सवाशत्रिनाॊ सवाशत्रिस्वरूऩक् ॥६॥ सवाशिीद्वय् सवा् सवाशक्त्माश्रम् सदा। त्वभनीह् स्वमॊज्मोसत् सवाानन्द् सनातन् ॥७॥ अहो आकायहीनस्त्वॊ सवात्रवग्रहवानत्रऩ। सवेस्न्द्रमाणाॊ त्रवषम जानासस नेस्न्द्रमी बवान ् ।८॥ सयस्वती जडीबूता मत ्स्तोिे मस्न्नरूऩणे। जडीबूतो भहेशद्ळ शेषो धभो त्रवसध् स्वमभ् ॥९॥ ऩावाती कभरा याधा सात्रविी देवसूयत्रऩ। ॥११॥ इसत ऩेतुद्ळ ता त्रवप्रऩत्न्मस्तच्ियणाम्फुजे। अबमॊ प्रददौ ताभ्म् प्रसन्नवदनेऺण् ॥१२॥ त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ स्तोिॊ ऩूजाकारे ि म् ऩठेत ्। स गसतॊ त्रवप्रऩत्नीनाॊ रबते नाऽि सॊशम् ॥१३॥ ॥ इसत श्रीब्रह्मवैवते त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सभाद्ऱभ्॥ इस श्रीकृ ष्णस्तोि का सनमसभत ऩाठ कयने से बगवान्श्रीकृ ष्ण अऩने बि ऩय सन्सन्देह प्रसन्न होते है। मह स्तोि व्मत्रि अबम को प्रदान कयने वारा हं।
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    33 अगस्त 2014 प्राणेद्वयश्रीकृ ष्ण भॊि  सिॊतन जोशी भॊि:- "ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ प्राण वल्रबाम सौ् सौबाग्मदाम श्रीकृ ष्णाम स्वाहा।" त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीप्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊन्िस्म बगवान ् श्रीवेदव्मास ऋत्रष्, गामिी छॊद्-, श्रीकृ ष्ण-ऩयभात्भा देवता, क्रीॊ फीजॊ, श्रीॊ शत्रि्, ऐॊ कीरकॊ , ॐ व्माऩक्, भभ सभस्त-क्रेश-ऩरयहाथं, ितुवागा- प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोग्। ऋष्माफद न्मास्- श्रीवेदव्मास ऋषमे नभ् सशयसस, गामिी छॊदसे नभ् भुखे, श्रीकृ ष्ण ऩयभात्भा देवतामै नभ् रृफद, क्रीॊ फीजाम नभ् गुह्ये, श्रीॊ शिमे नभ् नाबौ, ऐॊ कीरकाम नभ् ऩादमो, ॐ व्माऩकाम नभ् सवााङ्गे, भभ सभस्त क्रेश ऩरयहाथं, ितुवागा प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अॊजरौ। कय-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ अॊगुद्षाभ्माॊ नभ् प्राणवल्रबाम तजानीभ्माॊ स्वाहा, सौ् भध्मभाभ्माॊ वषट्, सौबाग्मदाम अनासभकाभ्माॊ हुॊ श्रीकृ ष्णाम कसनत्रद्षकाभ्माॊ वौषट्, स्वाहा कयतरकयऩृद्षाभ्माॊ पट्। अॊग-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ रृदमाम नभ्, प्राण वल्रबाम सशयसे स्वाहा, सौ् सशखामै वषट्, सौबाग्मदाम सशखामै कविाम हुॊ, श्रीकृ ष्णाम नेि-िमाम वौषट्, स्वाहा अस्त्राम पट्। ध्मान्- "कृ ष्णॊ जगन्भऩहन-रुऩ-वणं, त्रवरोक्म रज्जाऽऽकु सरताॊ स्भयाढ्माभ्। भधूक-भारा-मुत-कृ ष्ण-देहॊ, त्रवरोक्म िासरॊग्म हरयॊ स्भयन्तीभ्।।" बावाथा: सॊसाय को भुग्ध कयने वारे बगवान ् कृ ष्ण के रुऩ-यॊग को देखकय प्रेभ ऩूणा होकय गोत्रऩमाॉ रज्जाऩूवाक व्माकु र होती हं औय भन-ही-भन हरय को स्भयण कयती हुई बगवान ् कृ ष्ण की भधूक-ऩुष्ऩं की भारा से त्रवबुत्रषत देह का आसरॊगन कयती हं। इस भॊि का त्रवसध-त्रवधान से १,००,००० जाऩ कयने का त्रवधान हं।  क्मा आऩके फच्िे कु सॊगती के सशकाय हं?  क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं?  क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं? घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कु सॊगती से छु डाने हेतु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध- त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। >> Ask Now मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका इस कय सकते हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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    34 अगस्त 2014 ब्रह्मायसित कृ ष्णस्तोि ब्रह्मोवाि : यऺ यऺ हये भाॊ ि सनभग्नॊ काभसागये। दुष्कीसताजरऩूणे ि दुष्ऩाये फहुसॊकटे ॥१॥ बत्रित्रवस्भृसतफीजे ि त्रवऩत्सोऩानदुस्तये। अतीव सनभारऻानिऺु्-प्रच्छन्नकायणे ॥२॥ जन्भोसभा-सॊगसफहते मोत्रषन्नक्राघसॊकु रे। यसतस्रोोत्सभामुिे गम्बीये घोय एव ि ॥३॥ प्रथभासृतरूऩे ि ऩरयणाभत्रवषारमे। मभारमप्रवेशाम भुत्रिद्रायासतत्रवस्तृतौ ॥४॥ फुद्ध्मा तयण्मा त्रवऻानैरुद्धयास्भानत् स्वमभ ्। स्वमॊ ि त्व कणाधाय् प्रसीद भधुसूदन ॥५॥ भफद्रधा् कसतसिन्नाथ सनमोज्मा बवकभास्ण। सस्न्त त्रवद्वेश त्रवधमो हे त्रवद्वेद्वय भाधव ॥६॥ न कभाऺेिभेवेद ब्रह्मरोकोऽमभीस्प्सत्। तथाऽत्रऩ न स्ऩृहा काभे त्वद्भत्रिव्मवधामके ॥७॥ हे नाथ करुणाससन्धो दीनफन्धो कृ ऩाॊ कु रु। त्वॊ भहेश भहाऻाता दु्स्वप्नॊ भाॊ न दशाम ॥८॥ इत्मुक्त्वा जगताॊ धाता त्रवययाभ सनातन्। ध्मामॊ ध्मामॊ भत्ऩदाब्जॊ शद्वत ्सस्भाय भासभसत ॥९॥ ब्रह्मणा ि कृ तॊ स्तोिॊ बत्रिमुिद्ळ म् ऩठेत ्। स िैवाकभात्रवषमे न सनभग्नो बवेद् ध्रुवभ ् ॥१०॥ भभ भामाॊ त्रवसनस्जात्म स ऻानॊ रबते ध्रुवभ ्। इह रोके बत्रिमुिो भद्भिप्रवयो बवेत ् ॥११॥ ॥ इसत श्रीब्रह्मदेवकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सम्ऩूणाभ ्॥ *** भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के कायक ग्रह फुध के असधऩसत देवता हं। ऩन्ना गणेश फुध के सकायात्भक प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक प्रबाव को कभ कयता हं।. ऩन्न गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं। फच्िो फक ऩढाई हेतु बी त्रवशेष पर प्रद हं ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फच्िे फक फुत्रद्ध कू शाग्र होकय उसके आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती हं। भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं भदद कयता हं, व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं, व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित कयती हं। स्जगय, पे पिे, जीब, भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग भं सहामक होते हं। कीभती ऩत्थय भयगज के फने होते हं। Rs.550 से Rs.8200 तक >> Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com www.gurutvajyotish.com and gurutvakaryalay.blogspot.com वास्तु उऩाम हेतु सवाश्रेद्ष
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    35 अगस्त 2014 भॊिससद्ध मॊि गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा के अनुसाय फनवा के भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते है. स्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते है. स्जस भे प्रसिन मॊिो सफहत हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनाए गमे मॊि बी सभाफहत है. इसके अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है. गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 के येट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है. मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कये गुरुत्व कामाारम Ask Now श्रीकृ ष्णाद्शकभ् ऩावात्मुवाि- कै राससशखये यम्मे गौयी ऩृच्छसत शॊकयभ ्। ब्रह्माण्डास्खरनाथस्त्वॊ सृत्रद्शसॊहायकायक्॥१॥ त्वभेव ऩूज्मसेरौकै ब्राह्मत्रवष्णुसुयाफदसब्। सनत्मॊ ऩठसस देवेश कस्म स्तोिॊ भहेद्वय्॥२॥ आद्ळमासभदभत्मन्तॊ जामते भभ शॊकय। तत्प्राणेश भहाप्राऻ सॊशमॊ सछस्न्ध शॊकय॥३॥ श्री भहादेव उवाि- धन्मासस कृ तऩुण्मासस ऩावासत प्राणवल्रबे। यहस्मासतयहस्मॊ ि मत्ऩृच्छसस वयानने॥४॥ स्त्रीस्वबावान्भहादेत्रव ऩुनस्त्वॊ ऩरयऩृच्छसस। गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥५॥ दत्ते ि ससत्रद्धहासन् स्मात्तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत ्। इदॊ यहस्मॊ ऩयभॊ ऩुरुषाथाप्रदामकभ ्॥६॥ धनयत्नौघभास्णक्मॊ तुयॊगॊ गजाफदकभ ्। ददासत स्भयणादेव भहाभोऺप्रदामकभ ्॥७॥ तत्तेऽहॊ सॊप्रवक्ष्मासभ श्रृणुष्वावफहता त्रप्रमे। मोऽसौ सनयॊजनो देवस्द्ळत्स्वरूऩी जनादान्॥८॥ सॊसायसागयोत्तायकायणाम सदा नृणाभ ्। श्रीयॊगाफदकरूऩेण िैरोक्मॊ व्माप्म सतद्षसत॥९॥ ततो रोका भहाभूढा त्रवष्णुबत्रित्रववस्जाता्। सनद्ळमॊ नासधगच्छस्न्त ऩुननाायामणो हरय्॥१०॥ सनयॊजनो सनयाकायो बिानाॊ प्रीसतकाभद्। वृदावनत्रवहायाम गोऩारॊ रूऩभुद्रहन ्॥११॥ भुयरीवादनाधायी याधामै प्रीसतभावहन ्। अॊशाॊशेभ्म् सभुन्भील्म ऩूणारूऩकरामुत्॥१२॥ श्रीकृ ष्णिन्द्रो बगवान्नन्दगोऩवयोद्यत्। धरयणीरूत्रऩणी भाता मशोदानन्ददासमनी॥१३॥ द्राभ्माॊ प्रामासितो नाथो देवक्माॊ वसुदेवत्। ब्रह्मणाऽभ्मसथातो देवो देवैयत्रऩ सुयेद्वरय॥१४॥ जातोऽवन्माॊ भुकु न्दोऽत्रऩ भुयरीवेदयेसिका। तमासाद्धा वि्कृ त्वा ततो जातो भहीतरे॥१५॥ सॊसायसायसवास्वॊ श्माभरॊ भहदुज्ज्वरभ ्। एतज्ज्मोसतयहॊ वेद्यॊ सिन्तमासभ सनातनभ ्॥१६॥ गौयतेजो त्रफना मस्तु श्माभतैज् सभिामेत ्। जऩेद्रा ध्मामते वात्रऩ स बवेत्ऩातकी सशवे॥१७॥ स ब्रह्महासुयाऩी ि स्वणास्तेमी ि ऩॊिभ्। एतैदोषैत्रवासरप्मे तेजोबेदान्भहेद्वरय।१८॥ तस्भाज्ज्मोसतयबूद्द्द्रेधा याधाभाधवरूऩकभ ्। तस्भाफददॊ भहादेत्रव गोऩारेनैव बात्रषतभ ्॥१९॥ दुवााससो भुनेभोहे कासताक्माॊ यासभण्डरे। तत् ऩृद्शवती याधा सन्देहॊ बेदभात्भन्॥२०॥ सनयॊजनात्सभुत्ऩन्नॊ भमाऽधीतॊ जगन्भसम। श्रीकृ ष्णेन तत् प्रोिॊ याधामै नायदाम ि॥२१॥ ततो नायदत् सवा त्रवयरा वैष्णवास्तथा। करौ जानस्न्त देवेसश गोऩनीमॊ प्रमत्नत्॥२२॥ शठाम कृ ऩणामाथ दास्म्बकाम सुयेद्वरय। ब्रह्महत्माभवाप्नोसत तस्भाद्यत्नेन गोऩमेत ्॥२३॥
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    36 अगस्त 2014 भनोकाभनाऩूसता हेतु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि  सिॊतन जोशी भूर भॊि : कृॊ कृ ष्णाम नभ् मह बगवान कृ ष्ण का भूरभॊि हं। इस भूर भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भं सबी फाधाओॊ एवॊ कद्शं से भुत्रि सभरती हं एवॊ सुख फक प्रासद्ऱ होती हं। सद्ऱदशाऺय भॊि: ॐ श्रीॊ नभ् श्रीकृ ष्णाम ऩरयऩूणातभाम स्वाहा मह बगवान कृ ष्ण का सत्तया अऺय का हं। इस भूर भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को भॊि ससद्ध हो जाने के ऩद्ळमात उसे जीवन भं सफकु छ प्राद्ऱ होता हं। सद्ऱाऺय भॊि: गोवल्रबाम स्वाहा इस सात अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से जीवन भं सबी ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं। अद्शाऺय भॊि: गोकु र नाथाम नभ् इस आठ अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक सबी इच्छाएॉ एवॊ असबराषाए ऩूणा होती हं। दशाऺय भॊि: क्रीॊ ग्रं क्रीॊ श्माभराॊगाम नभ् इस दशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से सॊऩूणा ससत्रद्धमं की प्रासद्ऱ होती हं। द्रादशाऺय भॊि: ॐ नभो बगवते श्रीगोत्रवन्दाम इस कृ ष्ण द्रादशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से इद्श ससद्धी की प्रासद्ऱ होती हं। तेईस अऺय भॊि: ॐ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ श्रीकृ ष्णाम गोत्रवॊदाम गोऩीजन वल्रबाम श्रीॊ श्रीॊ श्री मह तेईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक सबी फाधाएॉ स्वत् सभाद्ऱ हो जाती हं। अट्ठाईस अऺय भॊि: ॐ नभो बगवते नन्दऩुिाम आनन्दवऩुषे गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा मह अट्ठाईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को सभस्त असबद्श वस्तुओॊ फक प्रासद्ऱ होती हं। उन्तीस अऺय भॊि: रीरादॊड गोऩीजनसॊसिदोदाण्ड फाररूऩ भेघश्माभ बगवन त्रवष्णो स्वाहा। मह उन्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से स्स्थय रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती है। फत्तीस अऺय भॊि: नन्दऩुिाम श्माभराॊगाम फारवऩुषे कृ ष्णाम गोत्रवन्दाम गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा। मह फत्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक सभस्त भनोकाभनाएॉ ऩूणा होती हं। तंतीस अऺय भॊि: ॐ कृ ष्ण कृ ष्ण भहाकृ ष्ण सवाऻ त्वॊ प्रसीद भे। यभायभण त्रवद्येश त्रवद्याभाशु प्रमच्छ भे॥ मह तंतीस अऺय के सनमसभत जाऩ कयने से सभस्त प्रकाय की त्रवद्याएॊ सन्सॊदेह प्राद्ऱ होती हं। मह श्रीकृ ष्ण के तीव्र प्रबावशारी भॊि हं। इन भॊिं के सनमसभत जाऩ से व्मत्रि के जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ सौबाग्म की प्रासद्ऱ होती हं।
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    37 अगस्त 2014 कृष्ण भॊि बगवान श्री कृ ष्ण से सॊफॊधी भॊि तो शास्त्रं भं बये ऩडे हं। रेफकन जन साधायण भं कु छ खास भॊिं का ही प्रिरन औय अत्मासधक भहत्व हं। ॐ कृ ष्णाम वासुदेवाम हयमे ऩयभात्भने। प्रणत् क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्॥ इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि के जीवन भं फकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ आते। ॐ नभ् बगवते वासुदेवाम कृ ष्णाम क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्। इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से आकस्स्भक सॊकट से भुत्रि सभरसत हं। हये कृ ष्ण हये कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हये हये। हये याभ हये याभ, याभ-याभ हये हये। इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो एवॊ भोऺ प्रासद्ऱ होती हं। भॊि ससद्ध दुराब साभग्री भॊि ससद्ध भारा हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800 स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800 सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250, त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190 भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460 भामा जार- Rs- 251, 551, 751 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280 इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050 हल्दी भारा - Rs- 150, 280 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550) तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370 घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730 हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730 रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111 ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, वैजमॊती भारा Rs- 100,190 गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450 गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 1100 (असत दुराब फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं उऩरब्ध) भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | gurutvakaryalay.blogspot.com
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    38 अगस्त 2014 ऩमूाषणका भहत्व  सिॊतन जोशी जैन धभा के अनुमामी ऩमूाषण ऩवा को जीव की आत्भ शुत्रद्ध का भागा फताते हं। जैन भुसनजनो के अनुसाय ऩमूाषण ऩवा इद्श आयाधना औय ऺभा का ऩवा बी हं। ऩमूाषण को भुख्मत: भनुष्म के ऩुनसनभााण का द्योतक भानाजाता हं। ऩमूाषण भं भनुष्म अऩने सबतय की त्रवकृ सतमं का त्माग कयता हं। ऩमूाषण के फदनं भं श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ब्रह्मिमा का ऩारन, यात्रि बोज त्माग, ससित्त का त्माग यखते हं। व्रत- उऩवास, साभसमक-प्रसतक्रभण, प्रविन-श्रवण आफद के भाध्मभ से इन फदनं असघक से असघक सभम धभा ध्मान भं व्मतीत फकमा जाता हं। ऩमूाषण के फदन श्रावक-श्रात्रवकाएॊ उऩवास यखते हं औय स्वमॊ के ऩाऩं की आरोिना कयते हुए बत्रवष्म भं उनसे फिने की प्रसतऻा कयते हं। इसके साथ ही वे िौयासी राख मोसनमं भं त्रवियण कय यहे, सभस्त जीवं से ऺभा भाॉगते हुए मह सूसित कयते हं फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है। श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ऩयोऺ रूऩ से वे मह सॊकल्ऩ कयते हं फक वे प्रकृ सत भं कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कयंगे। भन, विन औय कामा से जानते मा अजानते वे फकसी बी फहॊसा की गसतत्रवसध भं बाग न तो स्वमॊ रंगे, न दूसयं को रेने को कहंगे औय न रेने वारं का अनुभोदन कयंगे। मह आद्वासन देने के सरए फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है, वे मह बी घोत्रषत कयते हं फक उन्हंने त्रवद्व के सभस्त जीवं को ऺभा कय फदमा है औय उन जीवं को ऺभा भाॉगने वारे से डयने की जरूयत नहीॊ है। ऺभा देने से भनुष्म अन्म सभस्त जीवं को अबमदान देते हं औय उनकी यऺा कयने का सॊकल्ऩ रेते हं। तफ व्मत्रि सॊमभ औय त्रववेक का अनुसयण कयंगे, आस्त्भक शाॊसत अनुबव कयंगे औय सबी जीवं औय ऩदाथं के प्रसत भैिी बाव यखंगे। आत्भा तबी शुद्ध यह सकती है जफ वह अऩने सेफाहय हस्तऺेऩ न कये औय फाहयी तत्व से त्रविसरत न हो। ऺभा-बाव जैन धभा का भूरभॊि है। जैन धभा भं द्वेताम्फय भूसताऩूजक ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "कल्ऩसूि" ऩढ़ा व सुना जाता हं। जफफक जैन धभा भं स्थानकवासी ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "अन्तकदृशा सूि" का वािन फकमा जाता हं।
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    39 अगस्त 2014 श्रीनवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि)  सिॊतन जोशी नवकाय भॊि सभस्त जैन धभाावरॊत्रफमो का भुख्म भॊि है। नभो अरयहॊताणॊ नभो ससद्धाणॊ नभो आमरयमाणॊ नभो उवज्झामाणॊ नभो रोएसव्वसाहूणॊ एसो ऩॊि नभुक्कायो सव्व ऩावप्ऩणासणो भॊगराणॊ ि सव्वेससॊ ऩढभॊ हवई भॊगरॊ अथा: भं अरयहॊत बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। भं ससद्ध बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। भं आिामा बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। भं उऩाध्माम बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। भं रोक भं यहे हुए सबी साधु बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। इन ऩाॊिं को फकमा हुआ नभस्काय सबी ऩाऩं को नद्श कयता हं। एवॊ सबी भॊगरं भं बी प्रथभ (श्रेद्ष) भॊगर हं। जैन भुसनमं के भत से नवकाय भहाभॊि जैन धभा का ससद्ध एवॊ अत्मॊत प्रबावशारी भॊि हं। इस भॊि भं सभस्त रयत्रद्धमाॉ औय ससत्रद्धमाॉ त्रवद्यभान हं। हय जैन धभा के अनुमामी नवकाय भॊि का जऩ कयता हं। नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि भं स्जस ऩयभेद्षी बगवन्तं की आयाधना की जाती है उन बगवन्तं भं तऩ, त्माग, सॊमभ, वैयाग्म इत्माफद सास्त्वक गुण होते हं। नवकाय भॊि के भाध्मभ से अरयहॊत, ससद्ध, आिामा, उऩाध्माम औय साधु, इन ऩाॉि बगवॊतं को ऩयभ इद्श भाना हं। इससरमे इनको नभन कयने की त्रवसध को नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि कहा जाता है। वैसे तो हय भॊि अऩने आऩ भं यहस्म सरमे होता है, ऩयॊतु नवकाय भहाभॊि तो ऩयभ यहस्मभम हं। नवकाय भहाभॊि के असत फदव्म प्रताऩ से साधक के सभस्त दु्ख सुख भं फदर जाता हं। जैन त्रवद्रानो के भत से नवकाय भॊि के स्भयण, सिन्तन, भनन औय उच्िायण से ही भनुष्म के जन्भ- जन्भाॊतयं के ऩाऩं से भुि हो कय उसे शाद्वत सुख प्राद्ऱ होता हं। नवकाय भॊि जऩ के राब
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    40 अगस्त 2014 जफ कोई व्मत्रि श्रद्धा ऩूणा बाव से नवकाय भॊि का के वर एक अऺय उच्ियण कयता हं, तो उसके 7 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩो का नाश होता हं।  जफ कोई व्मत्रि "नभो अरयहॊताणॊ" का उच्ियण कयत्ता हं, तो उसके 50 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।  जफ कोई व्मत्रि ऩूया नवकाय भॊि जऩता हं, तो उसके 500 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।  मफद कोई व्मत्रि प्रात् कार उठकय 8 नवकाय भॊि जऩता हं, तो उसके 4000 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।  सॊऩूणा नवकाय भॊि की 1 भारा सगनने से 54000 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं।  (सागयोऩभ अथाात ् स्जसे सगनने भं कफठनाई हो इतने अयफं वषा।)  गबावती स्स्त्रमं के सरए इस भॊि का जाऩ कयना फच्िे के सरमे असत उत्तभ हं।  जन्भ के सभम मफद फारक के कान भं मह भॊि सुनामा जामे तो उसे जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं।  मफद फकसी जीव को भृत्मु के सभम नवकाय भॊि सुनामा जामे तो उसे सदगसत प्राद्ऱ होती हं।  नवकाय भॊि की भफहभा अनॊत व अऩाय हं इसी सरमे नवकाय भॊि को शत्रिदामक, त्रवध्नत्रवनाशक, अत्मॊत प्रबावशारी व िभत्कायी हं। देवदशान स्तोिभ् दशानॊ देवदेवस्म, दशानॊ ऩाऩनाशनभ्। दशानॊ स्वगासोऩानॊ, दशानॊ भोऺसाधनभ्।1। दशानेन स्जनेन्द्राणाॊ, साधूनाॊ वॊदनेन ि। न सियॊ सतद्षते ऩाऩॊ, सछद्रहस्ते मथोदकभ्।2। वीतयागभुखॊ द्रष्ट्वा, ऩद्मयागसभप्रबॊ। जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ दशानेन त्रवनश्मसत।3। दशानॊ स्जनसूमास्म, सॊसाय-ध्वान्त-नाशनॊ। फोधनॊ सित्त-ऩद्मस्म, सभस्ताथा-प्रकाशनभ्।4। दशानॊ स्जनिॊद्रस्म, सद्धभााभृत-वषाणभ्। जन्भ-दाह-त्रवनाशाम, वद्धानॊ सुख-वारयधे्।5। जीवाफद तत्त्व प्रसतऩादकाम, सम्मक्त्व-भुख्माद्श-गुणाणावाम। प्रशाॊत-रुऩाम फदगम्फयाम, देवासधदेवाम नभो स्जनाम ।6। सिदानन्दैक-रुऩाम, स्जनाम ऩयभात्भने। ऩयभात्भ-प्रकाशाम, सनत्मॊ ससद्धात्भने नभ्।7। अन्मथा शयणॊ नास्स्त, त्वभेव शयणॊ भभ। तस्भात्कारुण्म-बावेन, यऺ यऺ स्जनेद्वय।8। न फह िाता न फह िाता, न फह िाता जगत्िमे। वीतयागात्ऩयो देवो, न बूतो न बत्रवष्मसत ।9। स्जनेबात्रि् स्जनेबात्रि् स्जनेबात्रि् फदने फदने। सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु बवे बवे।10। स्जनधभा - त्रवसनभुािो, भा बवेच्िक्रवत्मात्रऩ। स्माच्िेटोऽत्रऩ दरयद्रोऽत्रऩ स्जनधभाानुवाससत्।11। जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ, जन्भ-कोफटभुऩास्जातभ्। जन्भ-म्रत्मु-जया-योगॊ, हन्मते स्जन-दशानात ्।12। अद्याबवत्सपरता नमनद्रमस्म, देव ! त्वदीम ियणाम्फुज वीऺणेन। अद्य त्रिरोक-सतरकॊ ! प्रसतबासते भे, सॊसाय-वारयसधयमॊ िुरुक-प्रभाणभ्।13।
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    41 अगस्त 2014 बगवानभहावीय की भाता त्रिशरा के 16 अद्भुत स्वप्न  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी जैन धभा के 24वे तीथंकय बगवान भहावीय के जन्भ से ऩूवा आषाढ़ शुक्र षद्षी के फदन उनकी भाता त्रिशरा नगय भं हो यही अद्द्बुत घटना के फाये भं सोि यही थीॊ। भाता त्रिशरा उसी फाये भं सोिते- सोिते गहयी नीॊद भं सो गई। उसी यात्रि के अॊसतभ प्रहय भं भाता त्रिशरा ने सोरह शुब एवॊ भॊगरकायी स्वप्न देखे। नीॊद से जागने ऩय यानी त्रिशरा ने भहायाज ससद्धाथा से अऩने सोहर स्वप्न के त्रवषम भं ििाा की औय उसका पर जानने की इच्छा प्रकट की। तफ भहायाजा ससद्धाथा ने भहायानी त्रिशरा द्राया देखे गए सऩनं की त्रवस्तृत जानकायी ज्मोसतष त्रवद्रानोकं दी, तफ त्रवद्रानं ने कहाॊ भहायाज भहायानी ने स्वप्न भं भॊगरभम प्रसतको के दशान फकए हं। त्रवद्रानं ने यानी से कहा फक वह एक-एक कय अऩने साये स्वप्न फताएॊ, स्जससे उसी प्रकाय उसका पर फताते गए। तफ भहायानी त्रिशरा ने अऩने साये स्वप्न उन्हं एक-एक कय त्रवस्ताय से सुनाएॊ जो इस प्रकाय हं.. 1. यानी को ऩहरे स्वप्न भं एक असत त्रवशार सपे द यॊग का हाथी फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ उनके घय एक अद्भुत ऩुि यत्न उत्ऩन्न होगा। 2. यानी को दूसये स्वप्न भं एक सपे द यॊग का वृषब फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि सॊसाय का कल्माण कयने वारा होगा। 3. यानी को तीसये स्वप्न भं सपे द यॊग औय रार फारं वारा ससॊह फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि ससॊह के सभान फरशारी होगा। 4. यानी को िौथे स्वप्न भं कभर आसन ऩय त्रवयाजभान रक्ष्भी का असबषेक कयते हुए दो हाथी फदखाई फदमे थे। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ देवरोक से देवगण आकय उस ऩुि का असबषेक कयंगे। 5. यानी को ऩाॊिवं स्वप्न भं दो सुगॊसधत ऩुष्ऩभाराएॊ फदखाई दी थी। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि धभा प्रिायक होगा औय जन-जन के सरए कल्माणकायी होगा। 6. यानी को छठे स्वप्न भं ऩूणा िॊद्रभा फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ उसके जन्भ से तीनं रोक आनॊफदत हंगे औय वह िॊद्रभा के सभान शीतर व सौम्म होगा।
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    42 अगस्त 2014 7. यानीको सातवं स्वप्न भं उदम होता सूमा फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि सूमा के सभान तेजमुि ियौ औय ऻान का प्रकाश पै राने वारा होगा। 8. यानी को आठवं स्वप्न भं कभर ऩिं से ढॊके हुए दो स्वणा करश फदखाई फदमे थे। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि अनेक सनसधमं का स्वाभी होगा। 9. यानी को नौवं स्वप्न भं सयोवय भं क्रीिा कयती दो भछसरमाॊ फदखाई दी थी। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि भहाआनॊद का दाता, दुखीका दुखहताा होगा। 10. यानी को दसवं स्वप्न भं कभरं से बया सयोवय फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि शुब रऺणं से मुि एवॊ कभराकाय ससॊहासन त्रवयाजभान होगा। 11. यानी को ग्मायहवं स्वप्न भं रहयं उछारता सभुद्र फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ ऩुि बूत-बत्रवष्म-वताभान का ऻाता होगा। 12. यानी को फायहवं स्वप्न भं हीये-भोती औय यत्नजस़्डत स्वणा ससॊहासन फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ ऩुि याज्म का स्वाभी औय प्रजा का फहतसिॊतक होगा। 13. यानी को तेयहवं स्वप्न भं देव त्रवभान फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ इस जन्भ से ऩूवा वह ऩुि स्वगा का देवता होगा। 14. यानी को िौदहवं स्वप्न भं ऩृथ्वी को बेद कय सनकरता नागं के याजा नागेन्द्र का त्रवभान फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि जन्भ से ही त्रिकारदशॉ होगा। 15. यानी को ऩन्द्रहवं स्वप्न भं यत्नं का ढेय फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि अनॊत गुणं से सॊऩन्न होगा। 16. यानी को सोरहवं स्वप्न भं धुआॊयफहत अस्ग्न फदखाई दी थी। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि साॊसारयक कभं का अॊत कयके भोऺ (सनवााण) को प्राद्ऱ होगा।
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    43 अगस्त 2014 त्रवसबन्निभत्कायी जैन भॊि  सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी एका अऺय का भॊि :- ॐ (ओभ्) ॐ शब्द की ध्वसन ऩाॊिो ऩयभेद्षी नाभं के ऩहरे अऺय को सभराने ऩय फनती हं। जैन भुसनमं के भत से अयहन्त का ऩहरा अऺय 'अ' जो अशयीयी अथाात ससद्ध का 'अ' हं। ओभ शब्द भं आिामा का 'आ', उऩाध्माम का 'उ', तथा भुसन अथाात साधु जनो का 'भ्', इस प्रकाय सबी शब्दो को जोडने ॐ फनता हं। दो अऺयं का भॊि :- 1. ससद्ध 2. ॐ ह्रीॊ िाय अऺयं का भॊि :- 1. अयहन्त 2. अ सस साहू ऩॊिाऺयी भॊि :- अ सस आ उ सा षद्शाऺयी भॊि :- 1. अयहन्त ससद्ध 2. अयहन्त सस सा 3. ॐ नभ् ससद्धेभ्म 4. नभोहास्त्सद्धेभ्म् सद्ऱाऺयी भॊि:- ॐ श्रीॊ ह्रीॊ अहं नभ्। अद्शाऺयी भॊि:- ॐ नभो अरयहॊताणॊ। सोरह अऺयं का भॊि :- अयहॊत ससद्ध आइरयमा उवज्झामा साहू 35 अऺयं का भॊि :- णभो अरयहॊताणॊ, णभो ससद्धाणॊ, णभो आइरयमाणॊ । णभो उवज्झामाणॊ, णभो रोए सव्वसाहूणॊ ।। रघु शास्न्त भॊि:- ॐ ह्रीभ् अहाभ् अससआउसा सवाशास्न्तभ् कु रु कु रु स्वाहा । भनोयथ ससत्रद्धदामक भॊि :- ॐ ह्रीभ् श्रीभ् अहाभ् नभ् ।
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    44 अगस्त 2014 योगनाशकभॊि :- ॐ ऐभ ् ह्रीभ् श्रीभ् कसरकु ण्डदण्डस्वासभने नभ् आयोग्म- ऩयभेद्वमाभ् कु रु कु रु स्वाहा । (योग शाॊसत हेतु उि भन्ि को श्रीऩाद्वानाथ जी की प्रसतभा के सम्भुख शुद्धता व् सनमभ से 108 फाय जऩ कयना असत राबदामक होता हं।) योग सनवायक भॊि :- ॐ ह्रीॊ सकर-योगहयाम श्री सन्भसत देवाम नभ् । योग सनवायक नवकाय भॊि :- ॐ नभो आभोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो खेरोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो जेरोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो सव्वोसफह ऩत्ताणॊ स्वाहा। (उि भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से सवा प्रकाय के योगो की शाॊसत होती हं। योगी व्मत्रि के कद्श भे न्मूनता आती हं।) भॊगरदामक भॊि :- ॐ ह्रीभ ् वये सुवये अससआउसा नभ् स्वाहा । (उि भन्ि को एकान्त भं प्रसतफदन 108 फाय धूऩ के साथ, शुद्ध बावऩूवाक जऩने से असधक राबप्रद होता हं।) ऐद्वमादामक भॊि :- ॐ ह्रीभ ् अससआउसा नभ् स्वाहा । (उि भन्ि को सूमोदम के सभम ऩूवा फदशा भं भुख कयके प्रसतफदन 108 फाय जऩ कयने से शीघ्र राबप्राद्ऱ होता हं।) कल्माणकायी भॊि:- ॐ अससआ उसा नभ्। (उि भॊि को ऩूवाासबभुख फेठ कय 1,25,000 जऩ कयने से शीघ्र परदामी होता हं व शाॊसत प्राद्ऱ होती हं। साधक के बम, करेश, दु्ख दारयद्र दूय होते हं। सवाससत्रद्धदामक भॊि :- ॐ ह्रीॊ क्रीॊ श्री अहं श्री वृषबनाथ तीथंकयाम नभ् । (उि भन्ि के प्रसतफदन 108 फाय जऩ से साधक को सभस्त कामं भं ससत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं।) भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:- ॐ ह्रीॊ नभो अरयहॊताणॊ ससध्धाणॊ सूयीणॊ उवजझामाणॊ साहूणॊ भभ ऋत्रद्ध वृत्रद्ध सभीफहतॊ कु रु कु रु स्वाहा। (उि भॊि को प्रात् कार भूॊगे की भारा से धुऩ देकय 3200 जऩ कयने से सवा काभनाएॊ ऩूणा होती हं।) सवाकाभना ऩूयण अहं भॊि:- ॐ ह्रीॊ अहं नभ्। (उि भॊि को फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय ऩूवाासबभुख फेठ कय मथाशत्रि जऩ कयं। 12,500 जऩ ऩूणा होने ऩय भॊि ससद्ध होता हं। साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होने रगती हं।)
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    45 अगस्त 2014 सवाकाभनाऩूयण भॊि:- ॐ ह्रीॊ श्रीॊ अहा अससआ उसा नभ्। (उि भन्ि की प्रसतफदन 1 भारा जऩ कयने से कल्ऩवृऺ के सभान सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं। सवा सॊऩत्रत्तदामक त्रिबुवन स्वाभीनी त्रवद्या भॊि:- ॐ ह्रीॊ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ अससआ उसा िुरु िुरु हुरु हुरु कु रु कु रु भुरु भुरु इस्च्छमॊइ भे कु रु कु रु स्वाहा। (फकसी ऩत्रवि स्थान ऩय साधक अऩने सम्भुख ऩाद्वानाथ बगवान की भूसता/पोटो स्थात्रऩत कयके धूऩ-दीऩ कये। िभेरी के 24,000 पू र रेकय, हय एक पू र ऩय एक भॊि का जऩ कयते हुवे पू र को बगवान को अऩाण कयते जामे। जऩ ऩूये होने ऩय भॊि ससद्ध हो जाता हं। फपय उि भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कये। जऩ से साधक को धन, वैबव, सॊतसत, सॊऩत्रत्त, ऩारयवायीक सुख इत्माफद की प्रासद्ऱ होती हं। त्रववाद त्रवजम भॊि:- ॐ हॊ स ॐ ह्रीॊ अहं ऐॊ श्रीॊ अससआ उसा नभ्। (मफद फकसी से अनावश्मक वाद-त्रववाद हो जामे तो उसभे जीत हेतु उि भॊि को 21 फाय जऩने के ऩद्ळमात वाद- त्रववाद कयने ऩय जीत होती हं।) करेश नाशक भॊि:- ॐ अहं आससआ उसा नभ्। (उि भन्ि के सवाराख जऩ कयने से िभत्कायी ऩरयणाभ प्राद्ऱ होते हं।) भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:- ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआ उसा स्वाहा। (उि भन्ि के सवाराख जऩ ऩूणा होने के ऩद्ळमात प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से भनोयथ ऩूणा होते हं।) सवाग्रह शास्न्त भॊि :- ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआउसा सवा-शास्न्तॊ कु रु कु रु स्वाहा । (उि भन्ि को सूमोदम के सभम जऩ कयने से शीघ्र शुब परो की प्रासद्ऱ होती हं।) शास्न्तकायक भॊि :- 1. ॐ ह्रीॊ ऩयभशास्न्त त्रवधामक श्री शास्न्तनाथाम नभ् । 2. ॐ ह्रीॊ श्री अनॊतानॊत ऩयभससद्धेभ्मो नभ् । घॊटाकणा भॊि :- ॐ ह्रीॊ घॊटाकणो भहावीय, सवाव्मासध-त्रवनाशक् । त्रवस्पोटकबमॊ प्राद्ऱे, यऺ यऺ भहाफर् ।1। मि त्वॊ सतद्षसे देव, सरस्खतोऽऺय-ऩॊत्रिसब् । योगास्ति प्रणश्मस्न्त, वात-त्रऩत्त-कपोद्भवा् ।2। ति याजबमॊ नास्स्त, मस्न्त कणे जऩात्ऺमभ ् । शाफकनी बूत वेतारा, याऺसा् प्रबवस्न्त न ।3। नाकारे भयणॊ तस्म, न ि सऩेण दॊश्मते । अस्ग्निौयबमॊ नास्स्त, ॐ श्रीॊ घॊटाकणा ! नभोस्तु ते ! ॐ नय वीय ! ठ् ठ् ठ् स्वाहा ।। (घॊटाकणा भहावीय का उि भॊि कसरमु भं तत्कार प्रबाव देने भं सभथा एवॊ िभत्कायी हं इस भन्ि का सनमसभत 21 फाय जऩ कयने से याज-बम, िोय-बम, अस्ग्न औय सऩा - बम, सफ प्रकाय की बूत-प्रेत-फाधा दूय होतं हं साधक की सवा त्रवऩत्रत्त का स्वत् ही सनवायण होने रगता हं। ) सवायऺा भॊि :- नवकाय भॊि के साथ अॊत भं ॐ ह्रीॊ ह्रूॊ पट् जोडकय जऩ कयने से मह भॊि सवा से आनॊददामक हं औय साधन की सबी उऩद्रवो से यऺा होती हं। रक्ष्भी प्रासद्ऱ एवॊ भनोकाभनाऩूणा कयने का भॊि :- ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ऐॊ अहं श्री अ सस आ उ सा नभ् । (उि भॊि को प्रात्कार 108 फाय जऩ ने से धन प्रासद्ऱ होती हं।)
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    46 अगस्त 2014 रक्ष्भीप्रासद्ऱ भॊि :- ॐ ह्रीॊ ह्रं अहं नभो अरयहॊताणॊ ह्रीॊ नभ्। (फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय जऩ शुरु कयं। आसन, भारा, वस्त्र ऩीरे यखे। 1,25,000 जऩ कयने से रक्ष्भी प्रसन्न होती हं। फपय मथा शत्रि योज 1 भारा जऩ कयं।) नवग्रह शास्न्त हेतु भॊि :- सूमा के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय) िन्द्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊताण । (10 हजाय) भॊगर के सरए: ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय) फुध के सरए: ॐ णभो उवज्झामाण । (10 हजाय) (गुरु) वृहस्ऩसत के सरए : ॐ णभो आइरयमाणॊ। (10 हजाय) शुक्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊताणॊ । (10 हजाय) शसन के सरए: ॐ णभो रोए सव्व साहूणॊ । (10 हजाय) के तु के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ । (10 हजाय) याहू के सरए : ॐ णभो अरयहॊताणॊ, ॐ णभो ससद्धाणॊ, ॐ णभो आइरयमाणॊ, ॐ णभो उवज्झामाण ॐ णभो रोए सव्व साहूणॊ, (10 हजाय) भहाभृत्मुॊजम भन्ि :- ॐ ह्राॊ णभो अरयहॊताणॊ । ॐ ह्रीॊ णभो ससद्धाणॊ, ॐ ह्रूॊ णभो आइरयमाणॊ, ॐ ह्रं णभो उवज्झामाणॊ, ॐ ह्र् णभो रोए सव्वसाहूणॊ, भभ सवा -ग्रहारयद्शान ् सनवायम सनवायम अऩभृत्मुॊ घातम घातम सवाशास्न्तॊ कु रु कु रु स्वाहा । (उि भन्ि को त्रवसध-त्रवधान से धूऩ-दीऩ जराकय ऩूणा सनद्षा ऩूवाक इस भॊि का स्वमॊ जाऩ कय सकते हं मा अन्म द्राया कयवा सकते हं। मफद अन्म व्मत्रि जाऩ कये तो 'भभ' के स्थान ऩय उस व्मत्रि का नाभ जोि रं स्जसके सरए जाऩ फकमा जायहा है। ) उि भॊि का सवा राख जाऩ कयने से ग्रह-फाधा दूय हो जाती है । जाऩ के अनॊतय दशाॊश आहुसत देकय हवन कयना िाफहए। भॊि ससद्ध दुराब साभग्री हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800 ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800 त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250, भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 भामा जार- Rs- 251, 551, 751 इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050 धनवृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550) घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 नाग के शय: 11 ग्राभ, Rs-111 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 1100 (असत दुराब फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं उऩरब्ध) भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | gurutvakaryalay.blogspot.com
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    47 अगस्त 2014 जैनधभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का सॊस्ऺद्ऱ त्रववयण क्र तीथंकाय जन्भ स्थान जन्भ नऺि भाता का नाभ त्रऩता का नाभ वैयाग्म वृऺ प्रसतक सिह्न १ ऋषबदेवजी अमोध्मा उत्तयाषाढ़ा भरूदेवी नासबयाजा वट वृऺ फैर २ अस्जतनाथजी अमोध्मा योफहणी त्रवजमा स्जतशिु सऩाऩणा वृऺ हाथी ३ सम्बवनाथजी श्रावस्ती ऩूवााषाढ़ा सेना स्जतायी शार वृऺ घोिा ४ असबनन्दनजी अमोध्मा ऩुनवासु ससद्धाथाा सॊवय देवदाय वृऺ फन्दय ५ सुभसतनाथजी अमोध्मा भद्या सुभॊगरा भेधप्रम त्रप्रमॊगु वृऺ िकवा ६ ऩद्मप्रबुजी कौशाम्फीऩुयी सििा सुसीभा धयण त्रप्रमॊगु वृऺ कभर ७ सुऩाद्वानाथजी काशीनगयी त्रवशाखा ऩृथ्वी सुप्रसतद्ष सशयीष वृऺ सासथमा ८ िन्द्रप्रबुजी िॊद्रऩुयी अनुयाधा रक्ष्भण भहासेन नाग वृऺ िन्द्रभा ९ ऩुष्ऩदन्तजी काकन्दी भूर याभा सुग्रीव सार वृऺ भगय १० शीतरनाथजी बफद्रकाऩुयी ऩूवााषाढ़ा सुनन्दा दृढ़यथ प्रऺ वृऺ कल्ऩवृऺ ११ श्रेमान्सनाथजी ससॊहऩुयी वण त्रवष्णु त्रवष्णुयाज तंदुका वृऺ गंडा १२ वासुऩुज्मजी िम्ऩाऩुयी शतसबषा जऩा वासुऩुज्म ऩाटरा वृऺ बंसा १३ त्रवभरनाथजी कास्म्ऩल्म उत्तयाबाद्रऩद शभी कृ तवभाा जम्फू वृऺ शूकय १४ अनन्तनाथजी त्रवनीता येवती सूवाशमा ससॊहसेन ऩीऩर वृऺ सेही १५ धभानाथजी यत्नऩुयी ऩुष्म सुव्रता बानुयाजा दसधऩणा वृऺ वज्रदण्ड १६ शाॊसतनाथजी हस्स्तनाऩुय बयणी ऐयाणी त्रवद्वसेन नन्द वृऺ फहयण १७ कु न्थुनाथजी हस्स्तनाऩुय कृ त्रत्तका श्रीदेवी सूमा सतरक वृऺ फकया १८ अयहनाथजी हस्स्तनाऩुय योफहणी सभमा सुदशान आम्र वृऺ भछरी १९ भस्ल्रनाथजी सभसथरा अस्द्वनी यस्ऺता कु म्ऩ कु म्ऩअशोक वृऺ करश २० भुसनसुव्रतनाथजी कु शाक्रनगय श्रवण ऩद्मावती सुसभि िम्ऩक वृऺ कछु वा २१ नसभनाथजी सभसथरा अस्द्वनी वप्रा त्रवजम वकु र वृऺ नीरकभर २२ नेसभनाथजी शोरयऩुय सििा सशवा सभुद्रत्रवजम भेषश्रृॊग वृऺ शॊख २३ ऩार्श्रवानाथजी वायाणसी त्रवशाखा वाभादेवी अद्वसेन घव वृऺ सऩा २४ भहावीयजी कुॊ डरऩुय उत्तयापाल्गुनी त्रिशारा (त्रप्रमकारयणी) ससद्धाथा सार वृऺ ससॊह
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    48 अगस्त 2014 श्रीभॊगराद्शक स्तोि (जैन) अहान्तो बगवत इन्द्रभफहता्, ससद्धाद्ळ ससद्धीद्वया, आिामाा् स्जनशासनोन्नसतकया्, ऩूज्मा उऩाध्मामका्। श्रीससद्धान्तसुऩाठका्, भुसनवया यत्निमायाधका्, ऩञ्िैते ऩयभेत्रद्षन् प्रसतफदनॊ, कु वान्तु न् भॊगरभ्॥1॥ श्रीभन्नम्र - सुयासुयेन्द्र - भुकु ट - प्रद्योत - यत्नप्रबा- बास्वत्ऩादनखेन्दव् प्रविनाम्बोधीन्दव् स्थासमन्। मे सवे स्जन-ससद्ध-सूमानुगतास्ते ऩाठका् साधव् स्तुत्मा मोगीजनैद्ळ ऩञ्िगुयव् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥2॥ सम्मग्दशान-फोध-व्रत्तभभरॊ, यत्निमॊ ऩावनॊ, भुत्रि श्रीनगयासधनाथ - स्जनऩत्मुिोऽऩवगाप्रद्। धभा सूत्रिसुधा ि िैत्मभस्खरॊ, िैत्मारमॊ श्रमारमॊ, प्रोिॊ ि त्रित्रवधॊ ितुत्रवाधभभी, कु वान्तु न् भॊगरभ्॥3॥ नाबेमाफदस्जना् प्रशस्त-वदना् ख्माताद्ळतुत्रवंशसत्, श्रीभन्तो बयतेद्वय-प्रबृतमो मे िफक्रणो द्रादश। मे त्रवष्णु-प्रसतत्रवष्णु-राॊगरधया् सद्ऱोत्तयात्रवॊशसत्, िैकाल्मे प्रसथतास्स्त्रषत्रद्श-ऩुरुषा् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥4॥ मे सवौषध-ऋद्धम् सुतऩसो वृत्रद्धॊगता् ऩञ्ि मे, मे िाद्शाॉग-भहासनसभत्तकु शरा् मेऽद्शात्रवधाद्ळायणा्। ऩञ्िऻानधयास्त्रमोऽत्रऩ फसरनो मे फुत्रद्धऋत्रद्धद्वया्, सद्ऱैते सकरासिाता भुसनवया् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥5॥ ज्मोसतव्मान्तय-बावनाभयग्रहे भेयौ कु राद्रौ स्स्थता्, जम्फूशाल्भसर-िैत्म-शस्खषु तथा वऺाय-रुप्माफद्रषु। इक्ष्वाकाय-सगयौ ि कु ण्डराफद द्रीऩे ि नन्दीद्वये, शैरे मे भनुजोत्तये स्जन-ग्रहा् कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥6॥ कै राशे वृषबस्म सनव्रासतभही वीयस्म ऩावाऩुये, िम्ऩामाॊ वसुऩूज्मसुस्ज्जनऩते् सम्भेदशैरेऽहाताभ ्। शेषाणाभत्रऩ िोजामन्तसशखये नेभीद्वयस्माहात्, सनवााणावनम् प्रससद्धत्रवबवा् कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥7॥ मो गबाावतयोत्सवो बगवताॊ जन्भासबषेकोत्सवो, मो जात् ऩरयसनष्क्रभेण त्रवबवो म् के वरऻानबाक्। म् कै वल्मऩुय-प्रवेश-भफहभा सम्ऩफदत् स्वसगासब् कल्माणासन ि तासन ऩॊि सततॊ कु वान्तु न् भॊगरभ ्॥8॥ सऩो हायरता बवत्मससरता सत्ऩुष्ऩदाभामते, सम्ऩद्येत यसामनॊ त्रवषभत्रऩ प्रीसतॊ त्रवधत्ते रयऩु्। देवा् मास्न्त वशॊ प्रसन्नभनस् फकॊ वा फहु ब्रूभहे, धभाादेव नबोऽत्रऩ वषासत नगै् कु वान्तु न् भॊगरभ्॥9॥ इत्थॊ श्रीस्जन-भॊगराद्शकसभदॊ सौबाग्म-सम्ऩत्कयभ्, कल्माणेषु भहोत्सवेषु सुसधमस्तीथंकयाणाभुष्। मे श्ररण्वस्न्त ऩठस्न्त तैद्ळ सुजनै् धभााथा-काभात्रवन्ता्, रक्ष्भीयाश्रमते व्मऩाम-यफहता सनवााण-रक्ष्भीयत्रऩ ॥10॥ अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन) जगद्गुरुॊ नभस्कृ त्मॊ, श्रुत्वा सद्गुरु-बात्रषतभ ् । ग्रहशास्न्तॊ प्रवच्मासभ, रोकोनाॊ सुखहेतवे ।।१।। स्जनेन्द्रा: खेिया ऻेमा्, ऩूजनीमा त्रवसध् क्रभात ् । ऩुष्ऩै त्रवारेऩनै धूाऩै, नैवेद्यैस्तुत्रद्श हेतवे ।।२।। ऩद्मप्रबस्म भातंड-द्ळन्द्रद्ळन्द्रप्रबस्म ि । वासुऩूज्मस्म बूऩुिो, फुधद्ळाद्शस्जनेसशनाभ ्।।३।। त्रवभरानन्त धभेश ्, शास्न्त् कु न्थ्वयह् नसभ। वधाभानस्जनेन्द्राणाॊ, ऩादऩद्मभ ् फुधो नभेत ् ।।४।। ऋषबास्जतसुऩाद्वाा-सासबनन्दनशीतरौ । सुभसत् सॊबवस्वाभी, श्रेमाॊसेषु फृहस्ऩसत् ।।५।। सुत्रवधे् कसथत् शुक्रे , सुव्रतद्ळ शनैद्ळये । नेसभनाथो बवेद्राहो् के तु: श्रीभस्ल्रऩाद्वामो् ।।६।। जन्भरग्नॊ ि यासशॊ ि, मफद ऩीिमस्न्त खेिया् । तदा सॊऩूजमेद् धीभान ्, खेियान सह तान ् सतनान ् ।।७।। आफदत्म सोभ भॊगर, फुध गुरु शुक्रे शसन:। याहुके तु भेयवाग्रे मा, स्जनऩूजात्रवधामक्॥८॥ स्जनान ् नभोग्नस्त्म फह, ग्रहाणाॊ तुत्रद्शहेतवे। नभस्कायशतॊ बक्त्मा, जऩेदद्शोत्तयॊ शतभ ् ।।९।। बद्रफाहुगुरुवााग्भी ऩॊिभ् श्रुतके वरी । त्रवद्याप्रसाद:, ऩूणं, ग्रहशास्न्त-त्रवसध-कृ ता ।।१०।। म् ऩठेत ् प्रातरुत्थाम, शुसिबूात्वा सभाफहत्। त्रवऩत्रत्ततो बवेच्छाॊसत ऺेभॊ तस्म ऩदे ऩदे॥११॥
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    49 अगस्त 2014 ॥भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥ सशखरयणी छॊद मदीमे िैतन्मे भुकु य इव बावास्द्ळदसित: सभॊ बास्न्त ध्रौव्म व्मम-जसन-रसन्तोऽन्तयफहता:। जगत्साऺी भागा-प्रकटन ऩयो बानुरयव मो भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भं॥1॥ अताम्रॊ मच्िऺु: कभर-मुगरॊ स्ऩन्द-यफहतॊ जनान्कोऩाऩामॊ प्रकटमसत वाभ्मन्तयभत्रऩ। स्पु टॊ भूसतामास्म प्रशसभतभमी वासतत्रवभरा भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥2॥ नभन्नाकं द्रारी-भुकु ट-भस्ण-बा जार जफटरॊ रसत्ऩादाम्बोज-द्रमसभह मदीमॊ तनुबृताभ्?। बवज्ज्वारा-शान्त्मै प्रबवसत जरॊ वा स्भृतभत्रऩ भहावीय स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥3॥ मदच्िाा-बावेन प्रभुफदत-भना ददुाय इह ऺणादासीत्स्वगॉ गुण-गण-सभृद्ध: सुख-सनसध:। रबन्ते सद्भिा: सशव-सुख-सभाजॊ फकभुतदा भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥4॥ कनत्स्वणााबासोऽप्मऩगत-तनुऻाान-सनवहो त्रवसििात्भाप्मेको नृऩसत-वय-ससद्धाथा-तनम:। अजन्भात्रऩ श्रीभान ्? त्रवगत-बव-यागोद्भुत-गसत? भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥5॥ मदीमा वाग्गॊगा त्रवत्रवध-नम-कल्रोर-त्रवभरा फृहज्ऻानाभ्बोसबजागसत जनताॊ मा स्नऩमसत। इदानीभप्मेषा फुध-जन-भयारै ऩरयसिता भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥6॥ असनवाायोद्रेकस्स्त्रबुवन-जमी काभ-सुबट: कु भायावस्थामाभत्रऩ सनज-फराद्येन त्रवस्जत: स्पु यस्न्नत्मानन्द-प्रशभ-ऩद-याज्माम स स्जन: भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥7॥ भहाभोहातक-प्रशभन-ऩयाकस्स्भक-सबषक? सनयाऩेऺो फॊधु त्रवाफदत-भफहभा भॊगरकय:। शयण्म: साधूनाॊ बव-बमबृताभुत्तभगुणो भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥8॥ भहावीयाद्शकॊ स्तोिॊ बक्त्मा बागेन्दु ना कतभ। म: मठेच्रणुमाच्िात्रऩ स मासत ऩयभाॊ गसतभ॥9॥ भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश: भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक के रूऩ भं जाना जाता हं। इस के ऩूजन से जीवन भं सुख सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं।यि सॊिाय को सॊतुसरत कयता हं। भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को ितुय फनाता हं। फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फिाव होता हं। भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय िेिक जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं। भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक >> Order Now भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि: भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता हं, इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दुद्श प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दुघाटनाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं। भूल्म भाि Rs- 730
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    50 अगस्त 2014 ॥भहावीय िारीसा ॥ दोहा ससद्ध सभूह नभं सदा, अरु सुभरूॊ अयहन्त । सनय आकु र सनवांच्छ हो, गए रोक के अॊत ॥ भॊगरभम भॊगर कयन, वधाभान भहावीय । तुभ सिॊतत सिॊता सभटे, हयो सकर बव ऩीय ॥ िौऩाई जम भहावीय दमा के सागय, जम श्री सन्भसत ऻान उजागय । शाॊत छत्रव भूयत असत प्मायी, वेष फदगम्फय के तुभ धायी । कोफट बानु से असत छत्रफ छाजे, देखत सतसभय ऩाऩ सफ बाजे । भहाफरी अरय कभा त्रवदाये, जोधा भोह सुबट से भाये । काभ क्रोध तस्ज छोिी भामा, ऺण भं भान कषाम बगामा। यागी नहीॊ नहीॊ तू द्रेषी, वीतयाग तू फहत उऩदेशी । प्रबु तुभ नाभ जगत भं साॊिा, सुभयत बागत बूत त्रऩशािा । याऺस मऺ डाफकनी बागे, तुभ सिॊतत बम कोई न रागे । भहा शूर को जो तन धाये, होवे योग असाध्म सनवाये । व्मार कयार होम पणधायी, त्रवष को उगर क्रोध कय बायी । भहाकार सभ कयै डसन्ता, सनत्रवाष कयो आऩ बगवन्ता । भहाभत्त गज भद को झायै, बगै तुयत जफ तुझे ऩुकायै । पाय डाढ़ ससॊहाफदक आवै, ताको हे प्रबु तुही बगावै । होकय प्रफर अस्ग्न जो जायै, तुभ प्रताऩ शीतरता धायै । शस्त्र धाय अरय मुद्ध रिन्ता, तुभ प्रसाद हो त्रवजम तुयन्ता । ऩवन प्रिण्ड िरै झकझोया, प्र बु तुभ हयौ होम बम िोया । झाय खण्ड सगरय अटवी भाॊहीॊ, तुभ त्रफनशयण तहाॊ कोउ नाॊहीॊ । वज्रऩात करय घन गयजावै, भूसरधाय होम तिकावै । होम अऩुि दरयद्र सॊताना, सुसभयत होत कु फेय सभाना । फॊदीगृह भं फॉधी जॊजीया, कठ सुई असन भं सकर शयीया । याजदण्ड करय शूर धयावै, ताफह ससॊहासन तुही त्रफठावै । न्मामाधीश याजदयफायी, त्रवजम कये होम कृ ऩा तुम्हायी । जहय हराहर दुद्श त्रऩमन्ता, अभृत सभ प्रबु कयो तुयन्ता । िढ़े जहय, जीवाफद डसन्ता, सनत्रवाष ऺण भं आऩ कयन्ता । एक सहस वसु तुभये नाभा, जन्भ सरमो कु ण्डरऩुय धाभा । ससद्धायथ नृऩ सुत कहराए, त्रिशरा भात उदय प्रगटाए । तुभ जनभत बमो रोक अशोका, अनहद शब्दबमो सतहुॉरोका । इन्द्र ने नेि सहस्रो करय देखा, सगयी सुभेय फकमो असबषेखा । काभाफदक तृष्णा सॊसायी, तज तुभ बए फार ब्रह्मिायी । असथय जान जग असनत त्रफसायी, फारऩने प्रबु दीऺा धायी । शाॊत बाव धय कभा त्रवनाशे, तुयतफह के वर ऻान प्रकाशे । जि-िेतन िम जग के साये, हस्त येखवत ्? सभ तू सनहाये । रोक-अरोक द्रव्म षट जाना, द्रादशाॊग का यहस्म फखाना । ऩशु मऻं का सभटा करेशा, दमा धभा देकय उऩदेशा । अनेकाॊत अऩरयग्रह द्राया, सवाप्रास्ण सभबाव प्रिाया । ऩॊिभ कार त्रवषै स्जनयाई, िाॊदनऩुय प्रबुता प्रगटाई । ऺण भं तोऩसन फाफढ-हटाई, बिन के तुभ सदा सहाई । भूयख नय नफहॊ अऺय ऻाता, सुभयत ऩॊफडत होम त्रवख्माता । सोयठा कये ऩाठ िारीस फदन सनत िारीसफहॊ फाय । खेवै धूऩ सुगन्ध ऩढ़, श्री भहावीय अगाय ॥ जनभ दरयद्री होम अरु स्जसके नफहॊ सन्तान । नाभ वॊश जग भं िरे होम कु फेय सभान ॥
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    51 अगस्त 2014 जफभहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी त्रवद्या सच्िी है?  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी . बगवान भहावीय के सभम भं ऩुष्म नाभ का एक फिा सुप्रससद्ध ज्मोसतषी था। उसका ज्मोसतष ऻान इतना सटीक यहता था फक ऩुष्मको अऩने ज्मोसतष ऻान ऩय ऩूया त्रवद्वास था। दूयदेश से रोग उससे ज्मोसतष त्रवद्या के त्रवषम भं ऩूछने आते थे। ऩुष्म ज्मोसतषी जो कह देते, वस्तुत् सच्िा ऩि जाता। ज्मोसतषी त्रवद्या भं वहॊ इतने तेज थे की रोगं के ऩदसिह्न की येखाएॉ देखकय बी वह रोगं की स्स्थसत फता सकते थे। ऐसे फफढ़मा कु शाग्र ज्मोसतषी थे। उन फदनं भं वधाभान (बगवान भहावीय) घय फदन भं तो भ्रभब कयते औय जैसे सॊध्मा होती, अॊधेया होते ही एकान्त खोजकय फैठ जाते। थोिी देय आयाभ कय रेते फपय फैठकय िुऩिाऩ, ध्मान भं स्स्थय हो जाते। ऩुष्म ज्मोसतषी ने देखा की येत ऩय फकसी के ऩदसिह्न हं। ऩदसिह्नं को ध्मान से ऩयखा ओय ज्मोसतष त्रवद्या से जाना की मे तो िक्रवतॉ के ऩदसिह्न हं। िक्रवतॉ मदी महाॉ से गुजये है तो उनके साथ भं भॊिी होने िाफहए, ससिव होने िाफहए, अॊगयक्ष्क होने िाफहए, ससऩाही होने िाफहए। ऩदसिह्न िक्रवतॉ के औय साथ भं कोई औय ऩदसिह्न नहीॊ मह सम्बव नहीॊ हो सकता। ऩयॊतु ऩुष्म ज्मोसतषी ऩहूॊिा हुवा ज्मोसतष था उसको अऩनी ज्मोसतष त्रवद्या ऩय ऩूया बयोसा था। उसकी नीॊद हयाभ हो गमी। िाॉदनी यात थी इस सरमे जहाॉ तक िर सका ऩदसिह्न देखता हुआ िरा, फपय कहीॊ रुक कय आयाभ कय सरमे। फपय सुफह-सुफह जल्दी िरना िारू फकमा। उसेतो खोजना था, ऩदसिह्न कहाॉ जा यहे हं। देखा फक त्रफना कोई साधन के , एक व्मत्रि शाॊत बाव भं फैठा हुआ है। ऩदसिह्न वहीॊ ऩूये होते हं। उसके इदासगदा देखा, िेहये ऩय देखता यहा। इतने भं भहावीय की आॉख खुरी। अफतक ज्मोसतषी सिन्ता भं डूफता जा यहा था। ऩुष्म ज्मोसतषी ने भहावीय से ऩूछा "मे ऩदसिह्न तो आऩके भारूभ होते हं ?" भहावीय फोरे: "हाॉ।" ऩुष्म कहने रगे "भुझे अऩने ज्मोसतष ऩय बयोसा हं। आज तक भेया ज्मोसतष झूठा नहीॊ ऩिा। ऩदसिह्नं से रगता है फक आऩ िक्रवतॉ सम्राट हो। रेफकन आऩको फेहार देखकय दमा आती है फक आऩ सबऺुक हो। भेयी त्रवद्या आज झूठी कै से ऩिी ?" भहावीय भुस्कयाकय फोरे् "तुम्हायी त्रवद्या झूठी नहीॊ है, सच्िी है। एक फात फताओॊ िक्रवतॉ को क्मा होता है ?" ऩुष्म फोरे: "उसके ऩास ध्वजा होती है, कोष होता है, उसके ऩास सैन्म होता है। आऩ तो फेहार हो" भहावीय फपय भुस्कयाकय फोरे् "धभा की ध्वजा भेये ऩास है। कऩिे की ध्वजा ही सच्िी ध्वजा नहीॊ है। सच्िी ध्वजा तो धभा की ध्वजा है। भेये ऩास सदत्रविायरूऩी सैन्म है जो कु त्रविायं को भाय बगाता है। ऺभा भेयी यानी है। िक्रवतॉ के आगे िक्र होता है तो सभता भेया िक्र है, ऻान का प्रकाश भेया िक्र है। ज्मोसतषी ! क्मा मह जरूयी है फक फाहय का िक्र ही िक्रवतॉ के ऩास हो ? फाहय की ही ध्वजा हो ? धभा की बी ध्वजा हो सकती है। धभा का बी कोष हो सकता है। ध्मान औय ऩुण्मं का बी कोई खजाना होता है। याजा वह स्जसके ऩास बूसभ हो, सत्ता हो। सुफह जो सोिे तो शाभ को ऩरयणाभ आ जाम। ऻानयाज्म भं भेयी सनद्षा है। जो बी भेये भागा भं प्रवेश कयता है, सुफह को ही िरे तो शाभ को शाॊसत का एहसास हो जाता है, थोिा फहुत ऩरयणाभ आ जाता है। मह भेयी ऻान की बूसभ है।" जो ज्मोसतषी हाया हुआ सनयाश होकय जा यहा था वह सन्तुद्श होकय, सभाधान ऩाकय प्रणाभ कयता हुआ फोरा् "हाॉ भहायाज ! इस यहस्म का भुझे आज ऩता िरा। भेयी त्रवद्या बी सच्िी औय आऩका भागा बी सच्िा है।"
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    52 अगस्त 2014 गौतभके वरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी 111 112 113 121 122 123 131 132 133 211 212 213 221 222 223 231 232 233 311 312 313 321 322 323 331 332 333 उऩय दशााएॊ गमे अॊक शकु नावरी प्रद्लावरी से उत्तय प्राद्ऱ कयने से ऩूवा शुद्ध एवॊ ऩत्रवि होकय अऩने इद्श देव का स्भयण कयते हुवे उऩय दशााएॊ गमे अॊक कोद्शको भं से फकसी एक कोद्शक ऩय अऩनी अॊगुरी अथवा शराका यखं। स्जस कोद्शक ऩय आऩने अॊगुरी अथवा शराका यखी हं उस कोद्शक भं अॊफकत सॊख्मा के अनुसाय आऩके अबीद्श प्रद्ल का हर नीिे क्रभश् अॊको भं फदमा गमा हं। 111: आऩने जो प्रद्ल त्रविाया है वह सपर होगा। तुम्हाये खयाफ फदनं का नाश होकय अच्छे फदन आए हं। भन की काभनाएॉ ऩूणा हंगी। त्रवत्रवध प्रकाय की सिॊताएॉ भन भं यहती हं, वे अफ थोिे फदनं भं नाश हो जाएॉगी। एक सभि के धोखे को बोग यहे हो। धभा कामा की इच्छा है, ऩयन्तु ऩाऩकभा से त्रवघ्न आता है। आभदनी से खिा असधक यहता है। कोई कामा ससद्ध होने को आता है, तो शिु उसभं त्रवघ्न डार देते हं। दान-ऩुण्म कयो। स्जससे भन की असबराषा ऩूणा होगी। त्रवयोधी िाहे फकतनी कोसशश कयं, ऩयन्तु तुम्हायी धायणा अवश्म परीबूत होगी। 112: आऩका अबीद्श प्रद्ल राबदामक है। धन की प्रासद्ऱ होगी। बाग्मोदम के फदन अफ नजदीक आ गए हं। स्जस कामा को हाथ भं रोगे, उसभं जम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। धभा के कामा कयते यहो, स्जससे ऩुण्म की प्रासद्ऱ होगी तथा सुख बी सभरेगा। भन सिस्न्तत यहता है। बाइमं से जुदाई होगी। भकान फनाने का इयादा कयते हो वह ऩाय ऩिेगा। जभीन से तुभको राब होगा। आभदनी से खिा असधक होता है। तीथं की मािा कयने की असबराषा है, वह ऩूणा होगी। धासभाक कामा सम्ऩन्न होगा। 113: आऩका अबीद्श प्रद्ल अच्छा है। तुम्हाये फदर को आयाभ सभरेगा। सुख-िैन प्राद्ऱ कयोगे। जो कामा भन भं सोिा है, उसभं त्रवजम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजनं का सभराऩ होगा। सिन्ता के फदन सनकर िुके हं तथा अफ अच्छे फदन आए हं। धभा के प्रबाव से सुखी हुए हो तथा आगे बी सुख प्राद्ऱ कयोगे। कद्श सहन कयते हुए बी दूसये का कामा कयते हो ऩयन्तु अऩने कामा भं सुस्ती यखते हो। फुत्रद्ध तेज है, त्रफगिे कामा को बी सुधाय रेते हो। बत्रवष्म भं राब सभरेगा। 121: आऩका त्रविाया हुआ प्रद्ल राबदामक है। फहुत फदनं तक दु्ख सहन कयने से सनयाश हो गए हो, फुये फदन सनकर गए हं औय अफ शुब फदन आए हं। भन की इच्छाएॉ परीबूत हंगी। स्जतनी रक्ष्भी गॊवाई है उससे बी असधक प्राद्ऱ कयोगे। स्जस काभ की सिन्ता कयते हो वह सिन्ता सभट जामेगी, उसभं एक व्मत्रि त्रवघ्न उऩस्स्थत कयने आमेगा, फकन्तु अन्त भं तुभको सपरता प्राद्ऱ होगी। बाइमं तथा सम्फस्न्धमं का सनबाव कयते हो, स्जससे तुम्हायी कीसता फढ़ी है। फदर के उदाय हो, जहाॉ जाते हो वहाॉ सुख सभरता है। 122: आऩने जो काभ त्रविाया है, उसभं सपरता नहीॊ सभर ऩाएगी। आऩने आज तक फहुतं का बरा फकमा है। अशुब कभा के उदम से त्रवघ्न उऩस्स्थत होते हं। जहाॉ तक फन सके वहाॉ तक धभा कयो। अऩने इद्शदेव की मथाशत्रि आयाधना तथा भन्ि का जऩ कयो, स्जससे तकरीप दूय होगी।
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    53 अगस्त 2014 123:आऩके अबीद्श कामा भं सपरता अवश्म सभरेगी। इतने ऩाऩकभा के थे तथा आऩने भहान सॊकट उठामे हं। अफ शुब फदन आए हं। फहुतं का बरा फकमा, फकन्तु उन्होनं उऩकाय न भाना। धभा के सनसभत्त का सनकारा हुआ ऩैसा घय भं न यखो। तीथं की मािा कयो, स्जस स्थान ऩय दु्खी हुए हो, उस स्थान का त्माग कयो, दूसये स्थान भं जाकय यहो। ऩयदेश भं राब होगा। तुम्हाया फदर सिन्ता भं डूफा यहता है। अफ शुब कभा का उदम हुआ है। त्रविाये हुए कामा भं सपरता एवॊ धन प्राद्ऱ होगा। 131: जो फात आऩने सोिी है वह अवश्म ससद्ध होगी, स्जसका नुकसान हुआ है वह दूय होकय बत्रवष्म भं राब होगा। धन सभरेगा। तुम्हाये हाथ से धभा के कामा हंगे। स्जस भनुष्म से भुराकात िाहते हो वह होगी। सिन्ता के फदन अफ गए हं। धातु, धन, सम्ऩत्रत्त औय कु टुम्फ की वृत्रद्ध होगी। 132: आज तक तुम्हाये फिे-फिे दुश्भन हुए अफ उनका जोय नहीॊ िरेगा। भन भं त्रविाये हुए कामं भं सपरता प्राद्ऱ कयोगे। इज्जत भं वृत्रद्ध होगी। तुम्हाये हाथं से धभा के कामा हंगे, भन वाॊसछत सुख की प्रासद्ऱ होगी। बाइमं का सभराऩ होगा। दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुखी हंगे। 133: इतने फदन सॊकट यहा। सिॊसतत कामा अच्छी तयह से ऩाय न ऩिा, अफ अच्छे फदनं की शुरुआत हुई है, जो कामा त्रविाया है वह परीबूत होगा, फकसी बी प्रकाय का त्रवघ्न नहीॊ आमेगा। इद्शदेव के प्रबाव से रक्ष्भी प्राद्ऱ होगी, त्रप्रमजन से अिानक राब होगा। 211: तुभने भन भं स्जस कामा का त्रविाय फकमा है, वह सपर नहीॊ होगा। इसके ससवाम कोई दूसया काभ कयो। तीथं की मािा कयो, स्जससे ऩुण्म का राब हो। दुश्भन रोग तुभको फाधाएॉ डारते हं। 212: त्रविाया हुआ कामा होगा। प्रेसभका से राब होगा। कु टुम्फ की वृत्रद्ध होगी। फहुत भुद्दत से त्रविाया हुआ कामा होगा। दुश्भन तुम्हाये त्रवरुद्ध कोसशश कयंगे, फकन्तु तुम्हाये सद्भाग्म के आगे उनका जोय नहीॊ िरेगा। तीथं की मािा कयने की इच्छा है वह हो सके गी। भकान फनाने का तथा जभीन खयीदने का तुम्हाया इयादा सपर होगा। तुभको जभीन से राब है। बाग्मफर से कामा ससद्ध हंगे। 213: दु्ख के फदन अफ दूय हो गए हं। सुख के फदन शुरु हुए हं। फहुत फदनं से कद्श उठा यहे हो, ऩयदेश गए तो बी सुख की प्रासद्ऱ न हुई, फकन्तु अफ सुख बोगने के फदन प्राद्ऱ हुए हं। आफरु फढ़ेगी, सॊतान का सुख होगा। इतने फदनं सभिं तथा कु टुम्फी जनं की तयप से दु्ख सहन फकमा। जहाॉ तक फना दूसयं का बरा फकमा, ऩयन्तु उन रोगं ने गुण नहीॊ भाना। शिु रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय यहते हं, फकन्तु उनका जोय नहीॊ िरता क्मंफक तुम्हाया बाग्म फरवान ् है। ऩास भं धन थोिा है, फकन्तु इज्जत अच्छी है, इससरमे स्जतना प्राद्ऱ कयने का त्रविाय कयोगे उतना प्राद्ऱ कय सकोगे। सभि रोगं से जैसा िाफहए वैसा सुख नहीॊ है। इज्जत आफरु के सरमे खिा फहुत कयते हो। तुम्हाया धभा सुधया हुआ है, इससरए धभा ऩय श्रद्धा यखो। 221: इतने फदन गए वे अच्छे गए, जो जो कामा फकए वे बी ऩाय ऩि गए, फकन्तु अफ जो कामा फदर भं त्रविाया है वह ऩाऩ कभा के उदम से ऩूणा नहीॊ होगा। सभि रोग बी शिु हो जाएॉगे। कु टुम्फ भं अनफन यहेगी, बाई जुदा हंगे। जो काभ फदर भं त्रविाया है, उसका त्माग कयना ही श्रेद्ष है। धभा ऩय श्रद्धा यखो, इद्शदेव की सेवा कयो, दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुख सभरेगा। 222: जो काभ भन भं त्रविाया है, उसको छोिकय दूसया काभ कयो। मफद इस त्रविाये हुए कामा को कयोगे तो सॊकट उत्ऩन्न होगा, नुकसान होगा, शिु रोग त्रवघ्न उऩस्स्थत कयंगे। इद्शदेव की सेवा कयो, तीथं ऩय जाओ, स्जससे दूसये कामा बी सुधयंगे। फदर भं त्रवत्रवध प्रकाय की सिन्ताओॊ ने वास फकमा है, वह त्रविाये हुए कामा को छोि देने से दूय होगी। 223: मह सवार अच्छा है, सुख के फदन नजदीक आए हं। व्माऩाय से धन प्राद्ऱ होगा, ऐशो-आयाभ प्राद्ऱ कयोगे। ऩत्नी का सुख प्राद्ऱ कयोगे तथा सॊतान की वृत्रद्धहोगी, जो कामा कयोगे उसभं राब प्राद्ऱ कयोगे। ईभानदायी से काभ
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    54 अगस्त 2014 कयतेहो तो अन्त भं बरा ही होगा। धभा के प्रबाव से सुखी हंगे, इससरमे धभा को बूरना भत, धभा के कामं भं सुस्ती यखना ठीक नहीॊ। 231: स्जस कामा के सरए भन भं त्रविाय फकमा है, वह कामा तीन भास भं होगा। अऩनी स्त्री की तयप से राब होगा। आज तक कु टुम्फीजनं की तयप से सुख नही सभरा, फकन्तु बत्रवष्म भं सभरेगा। सॊतानं की वृत्रद्ध होगी। ससुयार के खिा की सिन्ता है, सो सभट जाएगी। आफरु के सरए आभदनी से खिा असधक कयना ऩिता है। तीथं की मािा कयने का इयादा है, फकन्तु त्रवघ्न आता है। बत्रवष्म भं धभा कामा कय सकोगे। रृदम भं स्जस कामा की सिन्ता है, वह धभा के प्रबाव से दूय हो जाएगी, इससरए धभा ऩय श्रद्धा यखो, स्जससे सपरता प्राद्ऱ कय सकोगे। 232: जो काभ त्रविाया है, उसे छोिकय कोई दूसया काभ कयो। त्रविाये हुए कामा को कयने भं राब नहीॊ है, मफद कयोगे तो तुभको तुम्हाया स्थान छोिकय दूसये स्थान ऩय जाना ऩिेगा, कु टुम्फीजनं का त्रवमोग होगा। इससरए उसित है फक इस कामा को छोि दो। धभा भं होसशमाय यहना तथा अऩनी शत्रि के अनुसाय दान-ऩुण्म कयना स्जससे सुख हो। 233: थोिे फदनं भं धन सभरेगा। जो काभ त्रविाया है, वह ऩूणा होगा। त्रप्रमजनं से सभराऩ होगा। जभीन, जागीय अथवा भकान से राब होगा। आफरु फढ़ेगी। धभा कामं भं खिा कयो। उसके प्रताऩ से सुख-िैन यहेगा। याज्मऩऺ से राब होगा। भन की धायणा ऩूणा होगी। स्त्री की तयप से सुख है। एक सभम अकस्भात ् राब सभरेगा। 311: मह सवार फहुत ही गयभ है। स्जस कामा का त्रविाय फकमा है, वह ऩूणा होगा। भुकदभा जीत जाओगे, व्माऩाय योजगाय भं राब होगा। कीसता फढ़ेगी, याज्म की तयप से राब होगा। धभा के प्रबाव से सुख सभरा है तथा बत्रवष्म भं बी सभरेगा। दूसयं के कामा ऩरयश्रभ से ऩूया कयते हो, फकन्तु अशुब कभा उफदत होने से अऩने कभा भं उदासीन यहते हो, त्रवदेश मािा होगी औय वहाॉ राब होगा। धभा ऩय श्रद्धा यखो स्जससे सॊकट दूय हं। अऩने हाथ से रक्ष्भी प्राद्ऱ कयोगे। 312: जो कामा त्रविाया है उसे छोिकय कोई दूसया काभ कयो अन्मथा शिु रोग त्रवघ्न डारंगे, दौरत की खयाफी होगी, घय के भनुष्मं तथा ऩशुओॊ ऩय सॊकट आएगा, इससरए त्रविाये हुए कामा को छोि देना ही उसित है। धभा के प्रबाव से सफ कामा सपर होते हं। सनयासश्रतं को आश्रम दो तथा देवासधदेव का स्भयण कयो स्जससे सुखी हंगे। 313: मह प्रद्ल अच्छा है। धन तथा स्त्री से सहमोग एवॊ सुख सभरेगा। सॊतान से सुख सभरेगा। सॊतान होगी, त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। अभुक भुद्दत की धायी हुई धायणा सपर होगी। सिन्ता के फदन अफ दूय हुए हं। देव गुरु तथा धभा की सेवा कयो। दुश्भन रोग सताते हं, फकन्तु अफ तुम्हाया प्रायब्ध फरवान ् फना है स्जससे इन रोगं का जोय नहीॊ िरेगा। जभीन से राब होगा। कीसता के सरए खिा असधक कयना ऩिता है। सभिं से राब होगा। 321: जभीन, भकान अथवा फाग-फगीिे से राब होगा। धन प्राद्ऱ कयोगे, स्नेही जन से सभराऩ होगा। फकसी बी भनुष्म के साथ सभिता होगी औय उसके द्राया धनाफद की प्रासद्ऱ होगी। ऩुण्म के उदम से इच्छाएॉ ऩयीऩूणा होगी। धभा का आयाधन कयो। दुश्भन रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय यहंगे, फकन्तु सन्भुख होने से उनका जोय नहीॊ िरेगा। अऩनी शत्रि के अनुसाय खिा कयो। भकान फनाने के भनोयथ परीबूत हंगे। धन ऩैदा कयते हो, फकन्तु खिा असधक होने से इकट्ठा नहीॊ होता है, त्रऩता से धन थोिा सभरेगा। स्त्री की तयप से राब होगा। वृद्धावस्था भं धभा के कामा फन सकते हं। 322: जो कामा आऩने भन भं त्रविाया है, उसभे शिु रोग त्रवघ्न डारंगे, ऩरयणाभ अच्छा नहीॊ। याज्म की तयप से नायाजगी होगी मफद सुखी होना िाहते हो, तो त्रविाया हुआ कामा छोिकय दूसया कामा कयो, तुम्हाये सहमोगी
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    55 अगस्त 2014 फदरगए हं, उनका त्रवद्वास भत कयना। बजन-ऩूजन, व्रत-सनमभ भं ध्मान दो। 323: स्जस कामा का भन भं त्रविाय फकमा है, उसभं राब होगा, इच्छा ऩूणा होगी, स्नेही का सभराऩ होगा, जो जो सिन्ताएॉ उऩस्स्थत हुई हं, वे सफ दूय हंगी। धभा के कामा फन सकं गे। फहुत फदनं से ऩयदेश भं दु्ख प्राद्ऱ फकमा है, फकन्तु अफ दु्ख के फदन गए। तीथामािा होगी। अफ देश भं जाकय आनन्द प्राद्ऱ कयोगे। धभा के कामं भं रक्ष्म यखो, स्जससे सफ सुख प्राद्ऱ कयोगे। 331: तुम्हाये भन की सिन्ता सभटेगी। फीभायी की परयमाद दूय होगी। भन की धायणा ऩूणा होगी। थोिे फदनं भं ही धन की प्रासद्ऱ होगी। स्नेही का सभराऩ होगा। धभा- कभा भं ऩैसा खिा कयो, स्जससे ऩरयणाभ भं पामदा होगा। अच्छे फदन आए हं, ऩाऩकभा से इतने फदन दु्ख प्राद्ऱ फकमा है, ऩयन्तु अफ वे फीत गए हं। 332: फुये फदन गए अफ अच्छे फदन आए हं। जभीन तथा धन-दौरत भं जो हासन हुई है, वह सभट जाएगी तथा बत्रवष्म भं राब होगा। ऩयभेद्वय का ध्मान कयो। रृदम शुद्ध है, स्जससे भन की सिन्ता जल्दी दूय होगी। ऩयदेश भं यहे भनुष्म की सिन्ता है सो उसका सभराऩ होगा। धभा के प्रबाव से सुखी हंगे। 333: इतने फदन सनधान अवस्था भं व्मतीत फकए, फकन्तु अफ धन प्राद्ऱ होगा तथा भन की धायणा परीबूत होगी। जीवनसाथी से सुख प्राद्ऱ होगा, तीन भफहने फाद अच्छे फदन आएॉगे। इद्शदेव की आयाधना कयो। आभदनी से खिा असधक है, धन इकट्ठा फकमा नहीॊ, सभि की तयप से धोखा सभरा है, दुश्भन रोग ऩीछे से सनन्दा कयते हं, फकन्तु साभने आकय फोर नहीॊ सकते। जभीन से राब होगा। ऩयभेद्वय का जऩ कयो । त्रवद्या प्रासद्ऱ हेतु सयस्वती कवि औय मॊि आज के आधुसनक मुग भं सशऺा प्रासद्ऱ जीवन की भहत्वऩूणा आवश्मकताओॊ भं से एक है। फहन्दू धभा भं त्रवद्या की असधद्षािी देवी सयस्वती को भाना जाता हं। इस सरए देवी सयस्वती की ऩूजा-अिाना से कृ ऩा प्राद्ऱ कयने से फुत्रद्ध कु शाग्र एवॊ तीव्र होती है। आज के सुत्रवकससत सभाज भं िायं ओय फदरते ऩरयवेश एवॊ आधुसनकता की दौड भं नमे-नमे खोज एवॊ सॊशोधन के आधायो ऩय फच्िो के फौसधक स्तय ऩय अच्छे त्रवकास हेतु त्रवसबन्न ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधााएॊ होती यहती हं, स्जस भं फच्िे का फुत्रद्धभान होना असत आवश्मक हो जाता हं। अन्मथा फच्िा ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधाा भं ऩीछड जाता हं, स्जससे आजके ऩढेसरखे आधुसनक फुत्रद्ध से सुसॊऩन्न रोग फच्िे को भूखा अथवा फुत्रद्धहीन मा अल्ऩफुत्रद्ध सभझते हं। एसे फच्िो को हीन बावना से देखने रोगो को हभने देखा हं, आऩने बी कई सैकडो फाय अवश्म देखा होगा? ऐसे फच्िो की फुत्रद्ध को कु शाग्र एवॊ तीव्र हो, फच्िो की फौत्रद्धक ऺभता औय स्भयण शत्रि का त्रवकास हो इस सरए सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक हो सकता हं। सयस्वती कवि को देवी सयस्वती के ऩयॊभ दूराब तेजस्वी भॊिो द्राया ऩूणा भॊिससद्ध औय ऩूणा िैतन्ममुि फकमा जाता हं। स्जस्से जो फच्िे भॊि जऩ अथवा ऩूजा-अिाना नहीॊ कय सकते वह त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सके औय जो फच्िे ऩूजा-अिाना कयते हं, उन्हं देवी सयस्वती की कृ ऩा शीघ्र प्राद्ऱ हो इस सरमे सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक होता हं। सयस्वती कवि औय मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। सयस्वती कवि : भूल्म: 550 औय 460 सयस्वती मॊि :भूल्म : 370 से 1450 तक GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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    56 अगस्त 2014 इद्शऩूजन भं कये सही भारा का प्रमोग  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी साधाना भे भॊि जऩ के सरमे भारा का त्रवशेष भहत्व होता है। त्रवसबन्न प्रकाय के कामा की ससत्रद्ध हेतु भारा का िमन अऩने कामा उद्देश्म के अनुशाय कयने से साधक को अऩने कामा की ससत्रद्ध जल्द प्राद्ऱ होती हं, क्मोकी भारा का िमन स्जस इद्श की साधना कयनी हो, उस देवता से सॊफॊसधत ऩदाथा से सनसभात भारा का प्रमोग अत्मासधक प्रबाव शारी भाना गमा हं। देवी- देवता फक त्रवषेश कृ ऩा प्रासद्ऱ के सरए उऩमुि भारा का िमन कयना िाफहए- रार िॊदन- (यि िॊदन भारा) गणेश, ऩुत्रद्श कभा, दूगाा, भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए उत्तभ है। द्वेत िॊदन- (सपे द िॊदन भारा) - रक्ष्भी एवॊ शुक्र ग्रह फक प्रसन्नता हेतु। तुरसी- त्रवष्णु, याभ व कृ ष्ण फक ऩूजा अिाना हेत॥ भूॊग- रक्ष्भी, गणेश, हनुभान, भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए उत्तभ है। भोती- रक्ष्भी, िॊद्रदेव फक प्रसन्नता हेतु। कभर गटटा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हेतु। हल्दी - फगराभुखी एवॊ फृहस्ऩसत (गुरु) फक प्रसन्नता हेतु। कारी हल्दी- दुबााग्म नाश, भाॊ कारी फक प्रसन्नता हेतु। स्पफटक - रक्ष्भी, सयस्वती, बैयवी की आयाधना के सरए श्रेद्ष होती है। िाॉदी - रक्ष्भी, िॊद्रदेव फक प्रसन्नता हेतु। रुद्राऺ - सशव, हनुभान फक प्रसन्नता हेतु। नवयत्न - नवग्रहो फक शाॊसत हेतु। सुवणा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हेतु। अकीक - (हकीक) फक भारा का प्रमोग उसके यॊगो के अनुरुऩ फकमा जाता हं। रुद्राऺ एवॊ स्पफटक की भारा सबी देवी- देता की ऩूजा उऩासना भं प्रमोग फकमाजा सकता हं। त्रवद्रानो ने भतानुशाय रुद्राऺ की भारा सवाश्रेद्ष होती हं। रुद्राऺ की भारा से भन्ि जाऩ कयने से नवग्रहं के प्रबाव बी स्वत् शाॊत होने रगते हं औय भनुष्म के अनॊत कोटी ऩातको का शभन होता हं। ग्रह शास्न्त हेतु भारा िमन: 1) सूमा के सरए भास्णक्म की भारा, गायनेट, भारा रुद्राऺ, त्रफल्व की रकिी से फनी की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 2) िन्द्र के सरए भोती, शॊख, सीऩ की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 3) भॊगर के सरए भूॊगे मा रार िॊदन की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 4) फुध के सरए ऩन्ना मा कु शाभूर की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 5) फृहस्ऩसत के सरए हल्दी की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 6) शुक्र के सरए स्पफटक की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 7) शसन के सरए कारे हकीक मा वैजमन्ती की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 8) याहु के सरए गोभेद मा िन्द की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं। 9) के तु के सरए हसुसनमा मा राजवता की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं।
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    57 अगस्त 2014 त्रवसबन्नकाभना ऩूसता हेतु भारा का िमन  भारा से भन्ि जऩ कयने का भूर उद्देश्म होता हं, फक भारा हाथ भं यहने से ध्मान कभ बटकता हं औय भन की एकाग्रता फढ़ती हं।  काभना की ऩूसता के सरए िाॊदी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  धन, ऎद्वमा प्रासद्ऱ, ऩयीवाय सुख सभृत्रद्ध एवॊ शाॊती प्रासद्ऱ के सरए स्पफटक की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  सभस्त बोगं की प्रासद्ऱ के सरए यि (रार) िन्दन की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  याजससक प्रमोजन तथा आऩदा से भुत्रि के सरए िाॉदी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  वशीकयण के सरए भोती की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  आकषाण के सरए त्रवधुत भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  सॊतान प्रासद्ऱ के सरए ऩुि जीवा की से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  असबिाय कभा के सरए कभर गट्टे की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  ऩाऩ-नाश व दोष-भुत्रि के सरए कु श-भूर की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  त्रवघ्नहयण के सरए हल्दी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।  शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण कयने से राब होता हं।  नजय हयण हेतु हरयद्र की भारा, नजय होने से फिाव के सरए व्माघ्र नख की भारा एवॊ शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण फकमा जाता है। इस तयह हय भारा अऩना अरग-अरग प्रबाव होता है।  ऩद्म ऩुयाण भं उल्रेख है, फक तुरसी फक भारा गरे भं धायण कयके बोजन कयने से अद्वभेघ मऻ के सभान पर सभरता हं।  तुरसी फक भारा गरे भं धायण कयके स्नान कयने से सभस्त तीथो के स्नान का पर सभरता हं।  तुरसी फक भारा गरे भं हो तो साधक को भोऺ की प्रासद्ऱ होती हं।  तुरसी की भारा से जऩ कयने से भन एकाग्रसित्त होता हं औय योगं से बी सुयऺा होती है।  स्पफटक की भारा शास्न्त कभा औय ऻान प्रासद्ऱ; भाॉ सयस्वती व बैयवी की आयाधना के सरए श्रेद्ष होती है। भॊि ससद्ध भारा स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 सपे द िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280 भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280 हल्दी भारा - Rs- 150, 280 तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above नवयॊगी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730 हकीक भारा (सात यॊग) Rs- 190 280, 460, 730 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above वैजमॊती भारा Rs- 100,190 रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450 भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं। >> Order Now
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    58 अगस्त 2014 कहीॊआऩकी कुॊ डरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग तो नहीॊ ?  सिॊतन जोशी ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से व्मत्रि को उदास, स्खन्न मा अवसाद भहसूस होता हं। क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदैव भानससक सिॊता औय ऩयेशानी भहसूस कयता हं। व्मत्रि हभेशा सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की उसे कजा के त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि कफ होगा? व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं औय न ही यात भं शकू न सभरता हं। व्मत्रि के यातो की सनॊद हयाभ हो जाती हं। आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता के दौड भं अॊधा हो गमा हं। असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि फदन यात एक कयके फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं। असभय औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना िाहता हं। क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩिता हं फडे से फडे असभयं को बी कजा रेना ऩि जाता हं। व्मत्रि सोिता हं अभुक राख, कयोड सभर जामे तफ आयभ करुॊगा तफ भं िैन की नीॊद रूॊगा। उस िैन की नीॊद ऩाने के सरमे ऩहरे कजा रेता हं मह सोि कय अभुक धन यासश कजा रेता हं की कु छ भहीने सार भं कजा री धन यासश को दौगुना, िौगुना मा सौगुना कय के कु छ धन यासश जभा हो जाने ऩय मा भेया उद्देश्म ऩूणा हो जाने ऩय भं कजा रौटा दुॊगा। रेफकन वास्तत्रवक जीवन भं कबी-कबी ऎसा होना असधक कफठन हो जाता हं औय व्मत्रि कजा के दरदर भं ढस जाता हं। कजा एक एसा जार हं, स्जसभे व्मत्रि मफद एक फाय पस गमा तो पसता ही िरा जाता हं। ज्मोसतष शास्त्र के ग्रॊथो भं त्रवसबन्न प्रकाय के याजमोग, धनमोग आफद त्रवशेष मोगो का उल्रेख सभरता हं। फकसी जन्भ कुॊ डरी भं त्रवशेष प्रकाय के याजमोग, धनमोग आफद होने के उऩयाॊत बी व्मत्रि अऩने जीवन भं आसथाक सभस्मा से िस्त यहता हं। इस का एक प्रभुख कायण हं जातक कई फाय कजा मा ऋण के फोझ के तरे दफ जाता हं औय कजा उसका ऩीछा नहीॊ छोडता। भूर तो भूर व्मत्रि को कजा िुकाने के सरमे कजा रेना ऩडता हं। स्जसके परस्वरुऩ कजा फदन-प्रसतफदन कभने के फजाम फढता ही जाता हं औय व्मत्रि अऩने जीवन का असधकतभ फहसा के वर कजा िुकाते िुकाते व्मसतत कय देता हं। याजमोग, धनमोग आफद शुब मोग होने ऩय बी ऎसा क्मं होता हं? क्मो जातक कजा के दरदर भं पसता िरा जाता हं? सायावरी, जातकाबयण, स्कॊ द आफद ज्मोसतष के प्रभुख ग्रॊथो के अनुशाय व्मत्रि की जन्भ कुॊ डरी भं िाहे फकतने बी याजमोग, धनमोग आफद शुबमोग भौजुद हो रेफकन मफद कुॊ डरी भं ग्रहो की स्स्थसत मफद अशुब हो तो जातक को कजा के फोझ से राद देती हं। जफ अशुब ग्रहो की भहादशा मा अॊतयदशा होती हं तफ कजा भं औय फढोतयी होती हं। सूमा:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा यासश के 10 अॊश का सूमा रग्न भं स्स्थत हो।
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    59 अगस्त 2014 मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा का सूमा नवाॊश बी तुरा यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष सूमा भेष यासश का हो, नवाॊश भं तुरा यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।  उि ग्रह स्स्थती से जातक सूमा के कायण ऋणग्रस्त होता हं। िॊद्र:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं वृस्द्ळक यासश के 3 अॊश का िॊद्र ितुथा बाव भं स्स्थत हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं िॊद्र के कायण के भद्रुभ मोग फनयहा हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं िॊद्र वृषब यासश का हो औय नवाॊश भं वृस्द्ळक यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं िॊद्र वृस्द्ळक यासश का हो।  उि ग्रह स्स्थती से जातक ऋणग्रस्त होता हं।  उि ग्रह स्स्थती से जातक िॊद्र के कायण ऋणग्रस्त होता हं। भॊगर:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं कका यासश के 28 अॊश का भॊगर रग्न भं स्स्थत हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं भॊगर कका यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भकय यासश का भॊगर नवाॊश भं कका यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं नीि एवॊ वक्री होकय के न्द्र स्थान मा त्रिकोण भं स्स्थत हं।  उि ग्रह स्स्थती से जातक भॊगर के कायण ऋणग्रस्त होता हं। फुध:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन यासश के 15 अॊश का फुध सद्ऱभ बाव भं स्स्थत हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं फुध भीन यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं कन्मा यासश का फुध नवाॊश भं भीन यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन फुध वक्री होकय धन स्थान भं स्स्थत हं।  उि ग्रह स्स्थती से जातक फुध के कायण ऋणग्रस्त होता हं। गुरु:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भकय यासश के 5 अॊश का गुरु नवभ बाव भं स्स्थत हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं गुरु भकय यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं कका यासश का गुरु नवाॊश भं नीि का हो।  गुरु नीि का हो, वक्री हो औय के न्द्र मा त्रिकोण भं स्स्थत हो।  उि ग्रह स्स्थती से जातक गुरु के कायण ऋणग्रस्त होता हं। शुक्र:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं कन्मा यासश के 27 अॊश का शुक्र ऩॊिभ बाव भं स्स्थत हो।
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    60 अगस्त 2014 मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शुक्र कन्मा यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भीन यासश का शुक्र नवाॊश भं कन्मा यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं नीि का शुक्र के न्द्र मा त्रिकोण भं वक्री हो।  उि ग्रह स्स्थती से जातक शुक्र के कायण ऋणग्रस्त होता हं। शसन:  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश के 20 अॊश का शसन फद्रसतम बाव भं स्स्थत हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शसन भेष यासश का हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश का शसन के न्द्र मा त्रिकोण भं वक्री हो।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं तुरा यासश का शसन नवाॊश भं भेष यासश का हो।  उि ग्रह स्स्थती से जातक शसन के कायण ऋणग्रस्त होता हं। दशा के अनुशाय ऋणग्रस्त होने के मोग  मफद रग्न से छठे बाव भं सूमा औय िॊद्र स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो सूमा एवॊ िॊद्र की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं भेष यासश भं िॊद्र औय भॊगर स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो िॊद्र व भॊगर की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं शसन के न्द्र स्थान भं स्स्थत हो, िॊद्र रग्न भं औय गुरु द्रादश बाव भं स्स्थत हो, तो जातक हभेशा कजा के दरदर भं पसा यहता हं। .  मफद जन्भ कुॊ डरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह के न्द्र स्थान भं स्स्थत हो तो जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह तीसये बाव भं स्स्थत हो द्रादश बाव का स्वाभी दूसये बाव भं हो तो जातक कजा के िक्कय भं िारू यहता हं।  मफद िॊद्र शसन के नवाॊश भं मा शसन से मुि हो कय रग्नेश से द्रद्श हो तो कजा फना यहता हं।  गुसरका के 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं स्स्थत होने से बी जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं।  मफद जातक भं येका नाभ का मोग हो तो बी बी जातक ऩय कजा फना यहता हं।  मफद जन्भ कुॊ डरी भं रग्न से 22वाॊ द्रेष्कोण होने ऩय बी धन घोतक बानो भं हो तो कजा होने की स्स्थते फनी यहती हं।  मफद 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं ऩाऩकतायी मोग भं फन जामे तो बी कजा फनता हं।  मफद रग्न भं कन्मा का शुक्र, ऩॊिभ बाव भं भकय का गुरु, एकादश बाव भं कका का भॊगर औय तृतीम बाव भं वृस्द्ळक का िॊद्र हो तो व्मत्रि हभेशा कजा के फोझ से रदा यहता हं। उऩय दशाामी गई दशा भं जातक न िाहते हुए बी ऋणग्रस्त हो जाता हं। कजा के फोझ से भुत्रि ऩाने हेतु शास्त्रं भं त्रवसबन्न मॊि, भॊि, तॊि के अनेक उऩाम फतामे गमे हं स्जसे कयने ऩय व्मत्रि को शीघ्रता से ऋण के फोझ से छु टकाया सभर सके । ***
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    61 अगस्त 2014 GURUTVAKARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Website: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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    62 अगस्त 2014 भॊिससद्ध ऩायद प्रसतभा ऩायद श्री मॊि ऩायद रक्ष्भी गणेश ऩायद रक्ष्भी नायामण ऩायद रक्ष्भी नायामण 21 Gram से 5.250 Kg तक उऩरब्ध 100 Gram 121 Gram 100 Gram ऩायद सशवसरॊग ऩायद सशवसरॊग+नॊफद ऩायद सशवजी ऩायद कारी 21 Gram से 5.250 Kg तक उऩरब्ध 101 Gram से 5.250 Kg तक उऩरब्ध 75 Gram 37 Gram ऩायद दुगाा ऩायद दुगाा ऩायद सयस्वती ऩायद सयस्वती 82 Gram 100 Gram 50 Gram 225 Gram ऩायद हनुभान 2 ऩायद हनुभान 3 ऩायद हनुभान 1 ऩायद कु फेय 100 Gram 125 Gram 100 Gram 100 Gram हभायं महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभाएॊ, सशवसरॊग, त्रऩयासभड, भारा एवॊ गुफटका शुद्ध ऩायद भं उऩरब्ध हं। त्रफना भॊि ससद्ध की हुई ऩायद प्रसतभाएॊ थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं। ज्मोसतष, यत्न व्मवसाम, ऩूजा-ऩाठ इत्माफद ऺेि से जुडे़ फॊधु/फहन के सरमे हभायं त्रवशेष मॊि, कवि, यत्न, रुद्राऺ व अन्म दुरब साभग्रीमं ऩय त्रवशेष सुत्रफधाएॊ उऩरब्ध हं। असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं।
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    63 अगस्त 2014 भॊिससद्ध गोभसत िक्र Premium Quality Very Rare Gomati Chakra Big Size 1 Weight 36 Gram Gomti... 30% Off Offer Price : Rs. 820.00 Rs. 574.00 Premium Quality Very Rare Gomati Chakra Big Size 1 Weight 27 Gram Gomti... 30% Off Offer Price : Rs. 640.00 Rs. 448.00 Premium Quality Very Rare Gomati Chakra Big Size 1 Weight 21 Gram Gomti... 30% Off Offer Price : Rs. 550.00 Rs. 385.00 Premium Quality Very Rare Gomati Chakra Big Size 1 Weight 18 Gram Gomti... 30% Off Offer Price : Rs. 501.00 Rs. 350.70 Premium Q 11 PCS Very Rare Gomati Chakra Big Each 1 Weight 7 Gram 30% Off Offer Price: Rs. 1100.00 Rs. 770.00 Premium Q 11 PCS Very Rare Gomati Chakra Big Each 1 Weight 6 Gram ... 30% Off Offer Price: Rs. 910.00 Rs. 637.00 Premium Q Very Rare Gomati Chakra Big Size Weight 11 Gram ... 30% Off Offer Price: Rs. 460.00 Rs. 322.00 Premium Q Very Rare Gomati Chakra Big Size Weight 10 Gram ... 30% Off Offer Price: Rs. 251.00 Rs. 175.70 Premium Q Very Rare Gomati Chakra Big 8 Gram ... 30% Off Offer Price: Rs. 151.00 Rs. 105.70 Premium Q Gomati Chakra 7pcs Big Each 4.5Gram 30% Off Offer Price: Rs. 251.00 Rs. 175.70 Premium Q 3 PCS Very Rare Gomati Chakra 7 Gram Each.. 30% Off Offer Price: Rs. 251.00 Rs. 175.70 Rakt Gunja 51 Pcs + Free 11 Pcs Gomti Chakra... 30% Off Offer Price: Rs. 221.00 Rs. 154.70 Gomti Chakra 11 Pcs+11 Pcs Rakt Gunja+11 White Cowrie.. 30% Off Offer Price: Rs. 201.00 Rs. 140.70 Gomti Chakra 11 Pcs Gomati Chakra Sudarshan Chakra...... 30% Off Offer Price: Rs. 101.00 Rs. 70.70  हभायं महाॊ त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्माओॊ के सनवायण हेतु भॊि ससद्ध गोभसत िक्र भं उऩरब्ध हं।  त्रफना भॊि ससद्ध फकमे हुवे गोभसत िक्र थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं। GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785. Email Us: gurutva_karyalay@yahoo.in gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us:www.gurutvakaryalay.com
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    64 अगस्त 2014 हभायेत्रवशेष मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि: हभाये अनुबवं के अनुसाय मह मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ ऩरयवाय भं सुख सभृत्रद्ध हेतु त्रवशेष प्रबावशारी हं। बूसभराब मॊि: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुिे रोगं के सरए बूसभराब मॊि त्रवशेष राबकायी ससद्ध हुवा हं। तॊि यऺा मॊि: फकसी शिु द्राया फकमे गमे भॊि-तॊि आफद के प्रबाव को दूय कयने एवॊ बूत, प्रेत नज़य आफद फुयी शत्रिमं से यऺा हेतु त्रवशेष प्रबावशारी हं। आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि: अऩने नाभ के अनुसाय ही भनुष्म को आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ हेतु परप्रद हं इस मॊि के ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राद्ऱ होता हं। िाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-सॊऩत्रत्त इत्माफद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राद्ऱ हो सकता हं। हभाये वषं के अनुसॊधान एवॊ अनुबवं से हभने आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से शेमय ट्रेफडॊग, सोने-िाॊदी के व्माऩाय इत्माफद सॊफॊसधत ऺेि से जुडे रोगो को त्रवशेष रुऩ से आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ होते देखा हं। आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से त्रवसबन्न स्रोोत से धनराब बी सभर सकता हं। ऩदौन्नसत मॊि: ऩदौन्नसत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हं। स्जन रोगं को अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेद्ष कामा कयने ऩय बी नौकयी भं उन्नसत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह त्रवशेष राबप्रद हो सकता हं। यत्नेद्वयी मॊि: यत्नेद्वयी मॊि हीये-जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना-िाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुडे रोगं के सरए असधक प्रबावी हं। शेय फाजाय भं सोने-िाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भं सनवेश कयने वारे रोगं के सरए बी त्रवशेष राबदाम हं। बूसभ प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग खेती, व्मवसाम मा सनवास स्थान हेतु उत्तभ बूसभ आफद प्राद्ऱ कयना िाहते हं, रेफकन उस कामा भं कोई ना कोई अििन मा फाधा-त्रवघ्न आते यहते हो स्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए बूसभ प्रासद्ऱ मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हं। गृह प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग स्वमॊ का घय, दुकान, ओफपस, पै क्टयी आफद के सरए बवन प्राद्ऱ कयना िाहते हं। मथाथा प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गृह प्रासद्ऱ मॊि त्रवशेष उऩमोगी ससद्ध हो सकता हं। कै रास धन यऺा मॊि: कै रास धन यऺा मॊि धन वृत्रद्ध एवॊ सुख सभृत्रद्ध हेतु त्रवशेष परदाम हं। आसथाक राब एवॊ सुख सभृत्रद्ध हेतु 19 दुराब रक्ष्भी मॊि >> Order Now त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि कनक धाया मॊि श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि) श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि अॊकात्भक फीसा मॊि श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) रक्ष्भी गणेश मॊि धनदा मॊि >> Order Now GURUTVA KARYALAY :Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
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    65 अगस्त 2014 सवाससत्रद्धदामकभुफद्रका इस भुफद्रका भं भूॊगे को शुब भुहूता भं त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफं) भं जिवा कय उसे शास्त्रोि त्रवसध- त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्धदामक फनाने हेतु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि फकमा जाता हं। इस भुफद्रका को फकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की फकसी बी उॊगरी भं धायण कय सकते हं। महॊ भुफद्रका कबी फकसी बी स्स्थती भं अऩत्रवि नहीॊ होती। इस सरए कबी भुफद्रका को उतायने की आवश्मिा नहीॊ हं। इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हं। धायणकताा को जीवन भं सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हं औय जीवन भं सबी प्रकाय की ससत्रद्धमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हं। भूल्म भाि- 6400/- >> Order Now (नोट: इस भुफद्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हं।) सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कयं। ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हेतु मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफि भे करह होता यहता हं, तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध- त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका आऩ कय सकते हं। 100 से असधक जैन मॊि हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दुराब एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्ध हं। हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है। इसके अरावा आऩकी आवश्मकता अनुसाय आऩके द्राया प्राद्ऱ (सिि, मॊि, फिज़ाईन) के अनुरुऩ मॊि बी फनवाए जाते है. गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ 22 गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 के येट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है। मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हेतु सम्ऩका कयं। GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    66 अगस्त 2014 द्रादशभहा मॊि मॊि को असत प्रासिन एवॊ दुराब मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनामा गमा हं।  ऩयभ दुराब वशीकयण मॊि,  बाग्मोदम मॊि  भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्ध मॊि  याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि  गृहस्थ सुख मॊि  शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि  सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि  आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि  ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदेव मॊि  योग सनवृत्रत्त मॊि  साधना ससत्रद्ध मॊि  शिु दभन मॊि उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते हं। स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अिाना- त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। >> Order Now  क्मा आऩके फच्िे कु सॊगती के सशकाय हं?  क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं?  क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं? घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कु सॊगती से छु डाने हेतु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं। मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं, तो सॊऩका इस कय सकते हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    69 अगस्त 2014 अगस्त2014 भाससक ऩॊिाॊग फद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ नऺि सभासद्ऱ मोग सभासद्ऱ कयण सभासद्ऱ िॊद्र यासश सभासद्ऱ 1 शुक्र श्रावण शुक्र ऩॊिभी 15:47:02 उत्तयापाल्गुनी 05:46:06 सशव 09:30:09 फारव 15:47:02 कन्मा - 2 शसन श्रावण शुक्र षद्षी 17:17:36 हस्त 08:05:25 ससद्ध 09:51:21 तैसतर 17:17:36 कन्मा 21:03:00 3 यत्रव श्रावण शुक्र सद्ऱभी 18:09:43 सििा 09:50:58 साध्म 09:45:21 गय 05:49:06 तुरा - 4 सोभ श्रावण शुक्र अद्शभी 18:17:47 स्वाती 10:54:21 शुब 09:05:36 त्रवत्रद्श 06:20:36 तुरा 29:11:00 5 भॊगर श्रावण शुक्र नवभी 17:36:10 त्रवशाखा 11:09:55 शुक्र 07:47:25 फारव 06:03:21 वृस्द्ळक - 6 फुध श्रावण शुक्र दशभी 16:04:51 अनुयाधा 10:37:40 ब्रह्म 05:49:51 गय 16:04:51 वृस्द्ळक - 7 गुरु श्रावण शुक्र एकादशी 13:48:32 जेद्षा 09:17:36 वैधृसत 23:59:47 त्रवत्रद्श 13:48:32 वृस्द्ळक 09:17:00 8 शुक्र श्रावण शुक्र द्रादशी- िमोदशी 10:51:54 भूर 07:15:21 त्रवषकुॊ ब 20:18:09 फारव 10:51:54 धनु - 9 शसन श्रावण शुक्र िमोदशी - ितुदाशी 07:24:20 उत्तयाषाढ़ 25:45:54 प्रीसत 16:14:02 तैसतर 07:24:20 धनु 09:59:00 10 यत्रव श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा 23:39:54 श्रवण 22:39:54 आमुष्भान 11:56:46 त्रवत्रद्श 13:38:57 भकय - 11 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण एकभ 19:45:08 धसनद्षा 19:34:49 सौबाग्म 07:35:46 फारव 09:41:23 भकय 09:06:00 12 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 16:02:34 शतसबषा 16:42:52 असतगॊड 23:18:30 तैसतर 05:52:15 कुॊ ब - 13 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 12:44:21 ऩूवााबाद्रऩद 14:14:21 सुकभाा 19:39:40 त्रवत्रद्श 12:44:21 कुॊ ब 08:49:00 14 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण ितुथॉ 09:58:58 उत्तयाबाद्रऩद 12:19:35 धृसत 16:29:54 फारव 09:58:58 भीन - 15 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊिभी 07:52:57 येवसत 11:05:08 शूर 13:54:49 तैसतर 07:52:57 भीन 11:06:00
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    70 अगस्त 2014 16शसन बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:30:59 अस्द्वनी 10:35:41 गॊड 11:55:22 वस्णज 06:30:59 भेष - 17 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 05:56:50 बयणी 10:53:05 वृत्रद्ध 10:33:24 फव 05:56:50 भेष 17:04:00 18 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 06:06:45 कृ सतका 11:53:38 ध्रुव 09:47:04 कौरव 06:06:45 वृष - 19 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 06:57:55 योफहस्ण 13:31:40 व्माघात 09:32:36 गय 06:57:55 वृष 26:33:00 20 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 08:24:42 भृगसशया 15:42:30 हषाण 09:43:27 त्रवत्रद्श 08:24:42 सभथुन - 21 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 10:16:47 आद्रा 18:15:51 वज्र 10:14:55 फारव 10:16:47 सभथुन - 22 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 12:27:38 ऩुनवासु 21:04:11 ससत्रद्ध 10:59:30 तैसतर 12:27:38 सभथुन 14:21:00 23 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 14:49:43 ऩुष्म 24:01:54 व्मसतऩात 11:52:32 वस्णज 14:49:43 कका - 24 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण ितुदाशी 17:16:29 आद्ऴेषा 27:02:25 वरयमान 12:51:10 शकु सन 17:16:29 कका 27:02:00 25 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अभावस्मा 19:43:15 भघा 30:00:08 ऩरयग्रह 13:48:53 ितुष्ऩाद 06:30:08 ससॊह - 26 भॊगर बाद्रऩद शुक्र एकभ 22:04:24 भघा 06:00:39 सशव 14:43:46 फकस्तुघ्न 08:54:05 ससॊह - 27 फुध बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 24:16:10 ऩूवाापाल्गुनी 08:50:51 ससद्ध 15:32:06 फारव 11:11:28 ससॊह 15:32:00 28 गुरु बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 26:10:07 उत्तयापाल्गुनी 11:30:44 साध्म 16:08:14 तैसतर 13:15:44 कन्मा - 29 शुक्र बाद्रऩद शुक्र ितुथॉ 27:42:30 हस्त 13:50:56 शुब 16:31:15 वस्णज 15:00:19 कन्मा 26:53:00 30 शसन बाद्रऩद शुक्र ऩॊिभी 28:46:45 सििा 15:47:41 शुक्र 16:32:41 फव 16:19:34 तुरा - 31 यत्रव बाद्रऩद शुक्र षद्षी 29:15:23 स्वाती 17:12:34 ब्रह्म 16:08:49 कौरव 17:06:00 तुरा -
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    71 अगस्त 2014 अगस्त2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय फद वाय भाह ऩऺ सतसथ सभासद्ऱ प्रभुख व्रत-त्मोहाय 1 शुक्र श्रावण शुक्र ऩॊिभी 15:47:02 नागऩॊिभी, तऺक ऩूजन, श्रीहनुभद्द्ध्वजायोहण, जाग्रतगौयी ऩूजा (ओडीसा), वयदरक्ष्भी व्रत, स्कन्दषद्षी व्रत, श्रीकस्ल्क अवताय षद्षी, 2 शसन श्रावण शुक्र षद्षी 17:17:36 - 3 यत्रव श्रावण शुक्र सद्ऱभी 18:09:43 गोस्वाभी तुरसीदास जमन्ती, भोऺ सद्ऱभी, बानु-सद्ऱभी ऩवा (सूमाग्रहण सभान परदामी), शीतरा सद्ऱभी (गुजयात), 4 सोभ श्रावण शुक्र अद्शभी 18:17:47 श्रावण सोभवाय व्रत, श्रीदुगााद्शभी व्रत, श्रीअन्नऩूणााद्शभी व्रत 5 भॊगर श्रावण शुक्र नवभी 17:36:10 बौभव्रत, भॊगरागौयी ऩूजन, नकु र नवभी, वैधृसत भहाऩात प्रात: 8.37 से यात्रि 8.03 फजे तक, 6 फुध श्रावण शुक्र दशभी 16:04:51 - 7 गुरु श्रावण शुक्र एकादशी 13:48:32 ऩुिदा एकादशी, ऩत्रविा एकादशी व्रत, ऩत्रविा ग्मायस (ऩुत्रद्शभागा), दाभोदय द्रादशी 8 शुक्र श्रावण शुक्र द्रादशी- िमोदशी 10:51:54 प्रदोष व्रत, ऩत्रविा द्रादशी, श्रीधय द्रादशी, श्रावण द्रादशी, श्माभफाफा द्रादशी, वयद्द्रक्ष्भीव्रत, 9 शसन श्रावण शुक्र िमोदशी - ितुदाशी 07:24:20 आखेटक िमोदशी, सशव-ऩत्रविायोऩण, सशव ितुदाशी, अद्वत्थभारुसत-ऩूजन 10 यत्रव श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा 23:39:54 यऺाफन्धन, फदन 1.37 के ऩद्ळमात(बद्रा के उऩयान्त) याखी फाॉधना शुबपरदामक, स्नान-दान-व्रत हेतु उत्तभ श्रावणी ऩूस्णाभा, ऋग्वेदी-मजुवेदी श्रावणी, गामिी जमन्ती, हमग्रीव जमन्ती, सॊस्कृ त फदवस, रव-कु श जमन्ती, फरबद्रऩूजन (ओडीसा), श्रीसत्मनायामण ऩूजा-कथा 11 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण एकभ 19:45:08 बाद्रऩद भं िातुभाास भं दही सनषेध, अशून्मशमन व्रत, गामिी ऩुयद्ळयण प्रायम्ब, 12 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण फद्रतीमा 16:02:34 कज्जरी (कजयी) तीज का जागयण 13 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण तृतीमा 12:44:21 कज्जरी (कजयी) तीज, सातुडी तीज, फूढी तीज, सॊकद्शी श्रीगणेशितुथॉ व्रत (िॊद्रोदम.या.8:40), फहुरा ितुथॉ (भ.प्र), त्रवनामक ितुथॉ व्रत (सभसथराॊिर), गो-ऩूजन, त्रवशाराऺी दशान (काशी) 14 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण ितुथॉ 09:58:58 15 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण ऩॊिभी 07:52:57 स्वतन्िता फदवस, यऺाऩॊिभी, कोफकरा ऩॊिभी (जैन), नागऩॊिभी (गुजयात), िन्द्रषद्षी व्रत, भहत्रषा अयत्रवन्द जमन्ती, गोगा ऩॊिभी 16 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण षद्षी 06:30:59 ररही छठ, हरषद्षी व्रत. िन्दन षद्षी , शीतरा सद्ऱभी (ओडीसा), वैधृसत भहाऩात फदन 3.03 से यात्रि 10.36 फजे तक
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    72 अगस्त 2014 17यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण सद्ऱभी 05:56:50 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (स्भाता), भोहयात्रि, आद्याकारी जमन्ती, दूवााद्शभी व्रत, काराद्शभी व्रत, सॊत ऻानेद्वय जमन्ती, ससॊह सॊक्रास्न्त प्रात: 6.14 फजे, स्नान- दान का ऩुण्मकार सूमोदम से फदन 12.38 फजे तक, ससॊहाफद नववषाायम्ब (के यर) 18 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अद्शभी 06:06:45 श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (वैष्णव), गोकु राद्शभी (ब्रज), दही-हाण्डी (भुम्फई), योफहणी व्रत, 19 भॊगर बाद्रऩद कृ ष्ण नवभी 06:57:55 नन्दोत्सव (ब्रज), श्रीकृ ष्ण योफहणी व्रत, गोगा नवभी 20 फुध बाद्रऩद कृ ष्ण दशभी 08:24:42 - 21 गुरु बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी 10:16:47 अजा एकादशी व्रत, जमा एकादशी व्रत, फृहस्ऩसत-ऩूजन 22 शुक्र बाद्रऩद कृ ष्ण द्रादशी 12:27:38 गोवत्स द्रादशी व्रत, गौ-फछडा फायस, प्रदोष व्रत, जैन ऩमुाषण ऩवा प्रायम्ब (ितुथॉ ऩऺ), कसरमुगाफद (अद्र्धयात्रिकारीन िमोदशी), ऩुष्म नऺि (यात्रि 09:04:11 से) 23 शसन बाद्रऩद कृ ष्ण िमोदशी 14:49:43 भाससक सशवयात्रि व्रत, अघोय ितुदाशी, सशव ितुदाशी, द्वेताॊफय जैन ऩमुाषण ऩवा प्रायॊब, सूमा सामन कन्मा यासश भं प्रात: 10.17 फजे, सौय शयद् ऋतु प्रायम्ब, ऩुष्म नऺि (यात्रि 12:01:54 तक) 24 यत्रव बाद्रऩद कृ ष्ण ितुदाशी 17:16:29 त्रऩठोयी अभावस, 25 सोभ बाद्रऩद कृ ष्ण अभावस्मा 19:43:15 स्नान-दान-श्राद्ध हेतु उत्तभ सोभवती बाद्रऩदी अभावस्मा, सोभवायी व्रत, कु शग्रहणी अभावस, रोहागार-स्नान, भहाकार की शाही सवायी (उज्जसमनी), भौन व्रतायम्ब, कल्ऩसूि वािन (जैन), रस्ब्धत्रवधान व्रत 5 फदन (फद.जै.) 26 भॊगर बाद्रऩद शुक्र एकभ 22:04:24 निव्रत ऩूणा, रुद्रव्रत, भहावीय जन्भोत्सव एवॊ भहावीय जन्भवािन (जैन) 27 फुध बाद्रऩद शुक्र फद्रतीमा 24:16:10 नवीन िन्द्र-दशान, भदय टेयेसा जमॊती, तैराधाय तऩ प्रा. (जैन) 28 गुरु बाद्रऩद शुक्र तृतीमा 26:10:07 हरयतासरका तीज, फडी तीज व्रत, गौयी तीज (ओडीसा), के वडा तीज, वायाहावताय जमन्ती, त्रिरोक तीज (फदग.जैन), साभवेदी श्रावणी 29 शुक्र बाद्रऩद शुक्र ितुथॉ 27:42:30 ससत्रद्धत्रवनामक (वयदत्रवनामक) ितुथॉ व्रत, श्रीगणेशोत्सव प्रायम्ब (िॊद्र अस्त या.8:46), िॊद्रदशान सनषेध, िौथ िॊद्र, ऩत्थय िौथ, ढेरा िौथ, िौठ िन्द्र (सभसथराॊिर), सौबाग्म ितुथॉ व्रत (ऩ.फॊ), सयस्वती ऩूजा (ओडीसा), जैन सॊवत्सयी (ितुथॉ ऩऺ), वैधृसत भहाऩात देय यात 12.38 से आगाभी प्रात: 7.08 फजे तक 30 शसन बाद्रऩद शुक्र ऩॊिभी 28:46:45 ऋत्रष ऩॊिभी व्रत, सद्ऱत्रषा ऩूजन, गगा जमन्ती, अॊसगया ऋत्रष जमन्ती, यऺाऩॊिभी (ऩ.फॊ), गुरु ऩॊिभी (ओडीसा), वायाह ऩॊिभी, आकाश ऩॊिभी, ऺभावाणी ऩवा (जैन), जैन सॊवत्सयी (ऩॊिभी ऩऺ), फदगॊफय जैन ऩमुाषण ऩवा प्रायॊब, दशरऺण व्रत 10 फदन एवॊ ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फद.जै.) 31 यत्रव बाद्रऩद शुक्र षद्षी 29:15:23 सूमाषद्षी व्रत, रोराका छठ, िॊऩा षद्षी, भन्थनषद्षी (ऩ.फॊ), रसरता षद्षी, फरदेव छठ (ब्रज), स्कन्दषद्षी व्रत, िॊदनषद्षी (जैन)
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    73 अगस्त 2014 सॊऩूणाप्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊफडत ऩुरुषाकाय शसन मॊि ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हेतु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे) भं फनामा गमा हं। स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं। मफद जन्भ कुॊ डरी भं शसन प्रसतकू र होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है, कबी व्मवसाम भं घटा, नौकयी भं ऩयेशानी, वाहन दुघाटना, गृह क्रेश आफद ऩयेशानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीिा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हं। मफद शसन की ढै़मा मा साढ़ेसाती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना िाफहए। शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटाके श, जोडो का ददा, फात योग तथा रम्फे सभम के सबी प्रकाय के योग से ऩयेशान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आफद के रोगं को ऩदौन्नसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है। भूल्म: 1050 से 8200 >> Order Now सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊफडत शसन तैसतसा मॊि शसनग्रह से सॊफॊसधत ऩीडा के सनवायण हेतु त्रवशेष राबकायी मॊि। भूल्म: 550 से 8200 >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    74 अगस्त 2014 नवयत्नजफित श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायणकयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं। गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं। Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक >> Order Now असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। GURUTVA KARYALAY 92/3BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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    75 अगस्त 2014 भॊिससद्ध वाहन दुघाटना नाशक भारुसत मॊि ऩौयास्णक ग्रॊथो भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध के सभम अजुान के यथ के अग्रबाग ऩय भारुसत ध्वज एवॊ भारुसत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩूणा मुद्ध के दौयान हज़ायं-राखं प्रकाय के आग्नेम अस्त्र- शस्त्रं का प्रहाय होने के फाद बी अजुान का यथ जया बी ऺसतग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृ ष्ण भारुसत मॊि के इस अद्भुत यहस्म को जानते थे फक स्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुसत नॊदन कयते हं, वह दुघाटनाग्रस्त कै से हो सकता हं। वह यथ मा वाहन तो वामुवेग से, सनफाासधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय त्रवजम ऩतका रहयाता हुआ ऩहुॊिेगा। इसी सरमे श्री कृ ष्ण नं अजुान के यथ ऩय श्री भारुसत मॊि को अॊफकत कयवामा था। स्जन रोगं के स्कू टय, काय, फस, ट्रक इत्माफद वाहन फाय-फाय दुघाटना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को नुऺान हो यहा हं! उन्हं हानी एवॊ दुघाटना से यऺा के उद्देश्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससद्ध श्री भारुसत मॊि अवश्म रगाना िाफहए। जो रोग ट्रान्स्ऩोफटंग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हं उनको श्रीभारुसत मॊि को अऩने वाहन भं अवश्म स्थात्रऩत कयना िाफहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडं रोगं का अनुबव यहा हं की श्री भारुसत मॊि को स्थात्रऩत कयने से उनके वाहन असधक फदन तक अनावश्मक खिो से एवॊ दुघाटनाओॊ से सुयस्ऺत यहे हं। हभाया स्वमॊका एवॊ अन्म त्रवद्रानो का अनुबव यहा हं, की स्जन रोगं ने श्री भारुसत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हं, उन रोगं के वाहन फडी से फडी दुघाटनाओॊ से सुयस्ऺत यहते हं। उनके वाहनो को कोई त्रवशेष नुक्शान इत्माफद नहीॊ होता हं औय नाहीॊ अनावश्मक रुऩ से उसभं खयाफी आसत हं। वास्तु प्रमोग भं भारुसत मॊि: मह भारुसत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है। मफद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा उस ऩय कोई वाद-त्रववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उसित भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुसत मॊि का प्रमोग फकमा जा सकता हं। इस भारुसत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा त्रववादभुि हो जाएगी। इस सरमे मह मॊि दोहयी शत्रि से मुि है। भारुसत मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं। भूल्म Rs- 255 से 10900 तक श्री हनुभान मॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमादेव ने ब्रह्मा जी के आदेश ऩय हनुभान जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भं हनुभान को सबी शास्त्र का ऩूणा ऻान दूॉगा। स्जससे मह तीनोरोक भं सवा श्रेद्ष विा हंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भं इन्हं भहायत हाससर होगी औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषं की त्रवसबन्न फीभारयमं दूय होती हं, इस मॊि भं अद्भुत शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा, नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दूय कयने भं अत्मन्त राबकायी हं। अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श कयता हं। श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, िोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हं औय ससत्रद्ध प्रदान कयने भं सऺभ हं। श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं। भूल्म Rs- 730 से 10900 तक GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, >> Order Now
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    76 अगस्त 2014 त्रवसबन्नदेवताओॊ के मॊि गणेश मॊि भहाभृत्मुॊजम मॊि याभ यऺा मॊि याज गणेश मॊि (सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) भहाभृत्मुॊजम कवि मॊि याभ मॊि गणेश ससद्ध मॊि भहाभृत्मुॊजम ऩूजन मॊि द्रादशाऺय त्रवष्णु भॊि ऩूजन मॊि एकाऺय गणऩसत मॊि भहाभृत्मुॊजम मुि सशव खप्ऩय भाहा सशव मॊि त्रवष्णु फीसा मॊि हरयद्रा गणेश मॊि सशव ऩॊिाऺयी मॊि गरुड ऩूजन मॊि कु फेय मॊि सशव मॊि सिॊताभणी मॊि याज श्री द्रादशाऺयी रुद्र ऩूजन मॊि अफद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि सिॊताभणी मॊि दत्तािम मॊि नृससॊह ऩूजन मॊि स्वणााकषाणा बैयव मॊि दत्त मॊि ऩॊिदेव मॊि हनुभान ऩूजन मॊि आऩदुद्धायण फटुक बैयव मॊि सॊतान गोऩार मॊि हनुभान मॊि फटुक मॊि श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि सॊकट भोिन मॊि व्मॊकटेश मॊि कृ ष्ण फीसा मॊि वीय साधन ऩूजन मॊि कातावीमााजुान ऩूजन मॊि सवा काभ प्रद बैयव मॊि दस्ऺणाभूसता ध्मानभ ् मॊि भनोकाभना ऩूसता एवॊ कद्श सनवायण हेतु त्रवशेष मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध कायक मॊि अभृत तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि िम ताऩंसे भुत्रि दाता फीसा मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि त्रवजमयाज ऩॊिदशी मॊि भधुभेह सनवायक मॊि व्माऩाय वधाक मॊि त्रवद्यामश त्रवबूसत याज सम्भान प्रद ससद्ध फीसा मॊि ज्वय सनवायण मॊि व्माऩायोन्नसत कायी ससद्ध मॊि सम्भान दामक मॊि योग कद्श दरयद्रता नाशक मॊि बाग्म वधाक मॊि सुख शाॊसत दामक मॊि योग सनवायक मॊि स्वस्स्तक मॊि फारा मॊि तनाव भुि फीसा मॊि सवा कामा फीसा मॊि फारा यऺा मॊि त्रवद्युत भानस मॊि कामा ससत्रद्ध मॊि गबा स्तम्बन मॊि गृह करह नाशक मॊि सुख सभृत्रद्ध मॊि ऩुि प्रासद्ऱ मॊि करेश हयण फत्रत्तसा मॊि सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि प्रसूता बम नाशक मॊि वशीकयण मॊि सवा सुख दामक ऩंसफठमा मॊि प्रसव-कद्शनाशक ऩॊिदशी मॊि भोफहसन वशीकयण मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि शाॊसत गोऩार मॊि कणा त्रऩशािनी वशीकयण मॊि सवा ससत्रद्ध मॊि त्रिशूर फीशा मॊि वाताारी स्तम्बन मॊि साफय ससत्रद्ध मॊि ऩॊिदशी मॊि (फीसा मॊि मुि िायं प्रकायके ) वास्तु मॊि शाफयी मॊि फेकायी सनवायण मॊि श्री भत्स्म मॊि ससद्धाश्रभ मॊि षोडशी मॊि वाहन दुघाटना नाशक मॊि ज्मोसतष तॊि ऻान त्रवऻान प्रद ससद्ध फीसा मॊि अडसफठमा मॊि प्रेत-फाधा नाशक मॊि ब्रह्माण्ड साफय ससत्रद्ध मॊि अस्सीमा मॊि बूतादी व्मासधहयण मॊि कु ण्डसरनी ससत्रद्ध मॊि ऋत्रद्ध कायक मॊि कद्श सनवायक ससत्रद्ध फीसा मॊि क्रास्न्त औय श्रीवधाक िंतीसा मॊि भन वाॊसछत कन्मा प्रासद्ऱ मॊि बम नाशक मॊि श्री ऺेभ कल्माणी ससत्रद्ध भहा मॊि त्रववाहकय मॊि स्वप्न बम सनवायक मॊि
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    77 अगस्त 2014 ऻानदाता भहा मॊि रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि कु दृत्रद्श नाशक मॊि कामा कल्ऩ मॊि रग्न मोग मॊि श्री शिु ऩयाबव मॊि दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि दरयद्रता त्रवनाशक मॊि शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि भॊि ससद्ध त्रवशेष दैवी मॊि सूसि आद्य शत्रि दुगाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि) सयस्वती मॊि भहान शत्रि दुगाा मॊि (अॊफाजी मॊि) सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩूणा फीज भॊि सफहत) नव दुगाा मॊि कारी मॊि नवाणा मॊि (िाभुॊडा मॊि) श्भशान कारी ऩूजन मॊि नवाणा फीसा मॊि दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि िाभुॊडा फीसा मॊि ( नवग्रह मुि) सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध मॊि त्रिशूर फीसा मॊि खोफडमाय मॊि फगरा भुखी मॊि खोफडमाय फीसा मॊि फगरा भुखी ऩूजन मॊि अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि याज याजेद्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि एकाॊऺी श्रीपर मॊि भॊि ससद्ध त्रवशेष रक्ष्भी मॊि सूसि श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि) भहारक्ष्भमै फीज मॊि श्री मॊि (भॊि यफहत) भहारक्ष्भी फीसा मॊि श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत) रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि श्री मॊि (फीसा मॊि) रक्ष्भी दाता फीसा मॊि श्री मॊि श्री सूि मॊि रक्ष्भी गणेश मॊि श्री मॊि (कु भा ऩृद्षीम) ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि रक्ष्भी फीसा मॊि कनक धाया मॊि श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि) वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि) अॊकात्भक फीसा मॊि ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस (Gold Plated) ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस (Silver Plated) ताम्र ऩि ऩय (Copper) साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 460 820 1650 2350 3600 6400 10800 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 370 640 1090 1650 2800 5100 8200 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 255 460 730 1090 1900 3250 6400 मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    78 अगस्त 2014 यासशयत्न भेष यासश: वृषब यासश: सभथुन यासश: कका यासश: ससॊह यासश: कन्मा यासश: भूॊगा हीया ऩन्ना भोती भाणेक ऩन्ना Red Coral (Special) Diamond (Special) Green Emerald (Special) Naturel Pearl (Special) Ruby (Old Berma) (Special) Green Emerald (Special) 5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 ** All Weight In Rati All Diamond are Full White Colour. ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati तुरा यासश: वृस्द्ळक यासश: धनु यासश: भकय यासश: कुॊ ब यासश: भीन यासश: हीया भूॊगा ऩुखयाज नीरभ नीरभ ऩुखयाज Diamond (Special) Red Coral (Special) Y.Sapphire (Special) B.Sapphire (Special) B.Sapphire (Special) Y.Sapphire (Special) 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 1050 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 1250 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 1800 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 2100 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 All Diamond are Full White Colour. ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati * उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्ध हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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    79 अगस्त 2014 भॊिससद्ध दुराब साभग्री हत्था जोडी- Rs- 550 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251 ससमाय ससॊगी- Rs- 730 दस्ऺणावतॉ शॊख-Rs-550-2100 इन्द्र जार- Rs- 251 त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख-Rs- 550 से 1450 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251 GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com >> Order Now भॊि ससद्ध रूद्राऺ Rudraksh List Rate In Indian Rupee Rudraksh List Rate In Indian Rupee एकभुखी रूद्राऺ (नेऩार) 730 to 3700 नौ भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 1900 to 4600 दो भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 280 दस भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 2350 to 5500 तीन भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 280 ग्मायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 2800 to 5500 िाय भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 190 फायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 3700 to 7300 ऩॊि भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 370 तेयह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 5500 to 14500 छह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 55 to 190 िौदह भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 21000 to 41500 सात भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 460 to 730 गौयीशॊकय रूद्राऺ (नेऩार) 3700 to 14500 आठ भुखी रूद्राऺ (नेऩार) 1900 to 460 गणेश रुद्राऺ (नेऩार) 730 to 1450 * भूल्म भं अॊतय रुद्राऺ के आकाय औय गुणवत्ता के अनुसाय अरग-अरग होते हं। उऩयोि भूल्म छोटे से फिे आकाय के अनुरुऩ दशाामे गमे हं। कबी-कबी सॊबात्रवत हं की छोटे आकाय के उत्तभ गुणवत्ता वारे रुद्राऺ असधक भूल्म भं प्राद्ऱ हो सकते हं। त्रवशेष सूिना: फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय, रूद्राऺ भूल्म, फदन-फ-फदन फदरते यहते है, स्जस कायण हभायी भूल्म सूिी भं बी फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय ऩरयवतान होते यहते हं, कृ प्मा रुद्राऺ के सरए अऩना बुगतान बेजने से ऩहरे रुद्राऺ के नमी भूल्म सूिी हेतु हभ से सॊऩका कयं। रुद्राऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY, 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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    80 अगस्त 2014 श्रीकृष्ण फीसा मॊि फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दुसयो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं, तफ रोग उसकी सहामता एवॊ सेवा हेतु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩयेशानी से सॊऩन्न हो जाते हं। आज के बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दूसयो को अऩनी औय खीिने हेतु एक प्रबावशासर िुॊफकत्व को कामभ यखना असत आवश्मक हो जाता हं। आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हं, श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती हं, स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कं द्र यहता हं। मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष येखाएॊ, फीज भॊि एवॊ अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भुत आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं। श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं, जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं!  श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं।  त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग कं फद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय को प्राद्ऱहोती हं।  जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना िाहते हं। उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं।  ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं। भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now श्रीकृ ष्ण फीसा कवि श्रीकृ ष्ण फीसा कवि को के वर त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा जाता हं। कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं। स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता हं। कवि को गरे भं धायण कयने से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हं। गरे भं धायण कयने से कवि हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं। भूरम भाि: 1900 >>Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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    81 अगस्त 2014 जैनधभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी श्री िौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत िभत्कायी मॊि श्री एकाऺी नारयमेय मॊि श्री िोफीस तीथंकय मॊि सवातो बद्र मॊि कल्ऩवृऺ मॊि सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि सिॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्धअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि) सिॊताभणी मॊि (ऩंसफठमा मॊि) ऋत्रष भॊडर मॊि सिॊताभणी िक्र मॊि जगदवल्रब कय मॊि श्री िक्रे द्वयी मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि ऋत्रद्ध ससत्रद्ध सभृत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि (अनुबव ससद्ध सॊऩूणा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि) त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि श्री ऩद्मावती मॊि ऺुद्रो ऩद्रव सननााशन मॊि श्री ऩद्मावती फीसा मॊि फृहच्िक्र मॊि श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्रंकाय मॊि वॊध्मा शब्दाऩह मॊि ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि श्री धयणेन्द्र ऩद्मावती मॊि काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि रधुदेव कु र मॊि बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक) नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि भस्णबद्र मॊि उवसग्गहयॊ मॊि श्री मॊि श्री ऩॊि भॊगर भहाश्रृत स्कॊ ध मॊि श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि ह्रीॊकाय भम फीज भॊि श्री रक्ष्भीकय मॊि वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि त्रवद्या मॊि भहात्रवजम मॊि सौबाग्मकय मॊि त्रवजमयाज मॊि डाफकनी, शाफकनी, बम सनवायक मॊि त्रवजम ऩतका मॊि बूताफद सनग्रह कय मॊि त्रवजम मॊि ज्वय सनग्रह कय मॊि ससद्धिक्र भहामॊि शाफकनी सनग्रह कय मॊि दस्ऺण भुखाम शॊख मॊि आऩत्रत्त सनवायण मॊि दस्ऺण भुखाम मॊि शिुभुख स्तॊबन मॊि मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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    82 अगस्त 2014 घॊटाकणाभहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि को स्थाऩीत कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं। सवा प्रकाय के योग बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण होता हं। जहयीरे औय फहॊसक प्राणीॊ से सॊफॊसधत बम दूय होते हं। अस्ग्न बम, िोयबम आफद दूय होते हं। दुद्श व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे बम से मॊि के प्रबाव से दूय हो जाते हं। मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध, ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हं। साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं। मफद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय वशीकयण, भायण, उच्िाटन इत्माफद जादू-टोने वारे प्रमोग फकमे गमं होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नद्श हो जाते हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो यऺण होता हं। कु छ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि से जुडे अद्द्द्भुत अनुबव यहे हं। मफद घय भं श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत फकमा हं औय मफद कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुसित कभा कयके फकसी बी उद्देश्म से साधक को ऩयेशान कयने का प्रमास कयता हं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩूणा ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हं, कबी-कबी शिु के द्राया फकमा गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते देखा हं। भूल्म:- Rs. 1650 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now सॊऩका कयं। GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
  • 83.
    83 अगस्त 2014 अभोघभहाभृत्मुॊजम कवि अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हं इस सरए कवि अत्मॊत प्रबावशारी होता हं। >> Order Now अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि कवि फनवाने हेतु: अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, गोि, एक नमा पोटो बेजे याशी यत्न एवॊ उऩयत्न त्रवशेष मॊि हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-िाॊफद- ताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुसाय फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी आवश्मक फडजाईन के अनुसाय २२ गेज शुद्ध ताम्फे भं अखॊफडत फनाने की त्रवशेष सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं। सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरफट के असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध हं। हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं। ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि दस्ऺणा भाि: 10900
  • 84.
    84 अगस्त 2014 गणेशरक्ष्भी मॊि प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दुकान-ओफपस-पै क्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ व्माऩाय भं वृत्रद्ध होती हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय होता हं। गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान गणेश औय देवी रक्ष्भी का सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं। Rs.730 से Rs.10900 तक भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता हं, इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दुद्श प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दुघाटनाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं। भूल्म भाि Rs- 730 कु फेय मॊि कु फेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतृक सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ फक काभना कयने वारे व्मत्रि के सरमे कु फेय मॊि अत्मन्त सपरता दामक होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं। कु फेय मॊि के ऩूजन से एकासधक स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊिम होता हं। ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस (Gold Plated) ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस (Silver Plated) ताम्र ऩि ऩय (Copper) साईज भूल्म साईज भूल्म साईज भूल्म 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 460 820 1650 2350 3600 6400 10800 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 370 640 1090 1650 2800 5100 8200 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12” 255 460 730 1090 1900 3250 6400 GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com >> Order Now
  • 85.
    85 अगस्त 2014 नवयत्नजफित श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं। सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉके ट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं। व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं। नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं। गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊदु शयीय को रगते हं, वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं। इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं। जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं। इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं। अद्श रक्ष्भी कवि अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं। स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)- गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि: Rs-1250 भॊि ससद्ध व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय भं शीघ्र उन्नसत के सरए उत्तभ हं। िाहं कोई बी व्माऩाय हो अगय उसभं राब के स्थान ऩय फाय-फाय हासन हो यही हं। फकसी प्रकाय से व्माऩाय भं फाय-फाय फाधाएॊ उत्ऩन्न हो यही हो! तो सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत भॊि ससद्ध ऩूणा िैतन्म मुि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थात्रऩत कयने से शीघ्र ही व्माऩाय भं वृत्रद्ध एवॊ सनतन्तय राब प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि: Rs.730 & 1050 भॊगर मॊि (त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब देता हं, इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हेतु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं। त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं। भूल्म भाि Rs- 730 >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com
  • 86.
    86 अगस्त 2014 त्रववाहसॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके -रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं। एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके -रडकी फक कुॊ डरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं। सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके -रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं? फच्िो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उसित पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके -रडकी की कुॊ डरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं। क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं? आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छु टकाया ऩाने हेतु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ हं? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्देश्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि त्रवसबन्न प्रकाय के मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं। ज्मोसतष सॊफॊसधत त्रवशेष ऩयाभशा ज्मोसत त्रवऻान, अॊक ज्मोसतष, वास्तु एवॊ आध्मास्त्भक ऻान सं सॊफॊसधत त्रवषमं भं हभाये 30 वषो से असधक वषा के अनुबवं के साथ ज्मोसतस से जुडे नमे-नमे सॊशोधन के आधाय ऩय आऩ अऩनी हय सभस्मा के सयर सभाधान प्राद्ऱ कय सकते हं। >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com ओनेक्स जो व्मत्रि ऩन्ना धायण कयने भे असभथा हो उन्हं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना िाफहए। उच्ि सशऺा प्रासद्ऱ हेतु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हेतु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे छोटी उॊगरी मा रॉके ट फनवा कय गरे भं धायण कयं। ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण शत्रि का त्रवकास होता हं। >> Order Now
  • 87.
    87 अगस्त 2014 अगस्त2014 -त्रवशेष मोग कामा ससत्रद्ध मोग 6 सूमोदम से प्रात: 10:36 तक 21 सामॊ 6.14 से 22 अगस्त को यात्रि 9.03 तक 14 फदन 12:19 से 16 अगस्त को सूमोदम तक 27 सूमोदम से यात्रि 12.14 तक 18 फदन 11:52 से यातबय 30 फदन 3.46 से यातबय 20 सूमोदम से फदन 3:41 तक - - त्रिऩुष्कय मोग (तीनगुना पर दामक) फद्रऩुष्कय मोग (दौ गुना पर दामक ) 31 यात्रि 5:14 से सूमोदम तक 2 सामॊ 5.16 से 3 अगस्त को प्रात: 9.49 तक त्रवघ्नकायक बद्रा 3 सामॊ 6:09 से 4 अगस्त को प्रात: 6.13 तक 16 प्रात: 6.30 से सामॊ 6.11 तक 6 यात 2:56 से 7 अगस्त को फदन 1:47 तक 19 सामॊ 7:40 से 20 अगस्त को प्रात: 8:23 तक 9 यात 3:35 से 10 अगस्त को फदन 1:37 तक 23 फदन 2:48 से 24 अगस्त को प्रात: 4:02 तक 12 यात 2:23 से 13 अगस्त को फदन 12:44 तक 29 फदन 2:56 से देय यात 3:42 तक मोग पर :  कामा ससत्रद्ध मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं, एसा शास्त्रोि विन हं।  त्रिऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं।  फद्रऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं। एसा शास्त्रोि विन हं।  शास्त्रोि भत से त्रवघ्नकायक बद्रा मा बद्रा मोग भं शुब कामा कयना वस्जात हं। दैसनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका गुसरक कार (शुब) मभ कार (अशुब) याहु कार (अशुब) वाय सभम अवसध सभम अवसध सभम अवसध यत्रववाय 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00 सोभवाय 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 भॊगरवाय 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30 फुधवाय 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30 गुरुवाय 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 शुक्रवाय 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00 शसनवाय 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
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    88 अगस्त 2014 फदनके िौघफडमे सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय 06:00 से 07:30 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार 07:30 से 09:00 िर कार उद्रेग अभृत योग राब शुब 09:00 से 10:30 राब शुब िर कार उद्रेग अभृत योग 10:30 से 12:00 अभृत योग राब शुब िर कार उद्रेग 12:00 से 01:30 कार उद्रेग अभृत योग राब शुब िर 01:30 से 03:00 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब 03:00 से 04:30 योग राब शुब िर कार उद्रेग अभृत 04:30 से 06:00 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार यात के िौघफडमे सभम यत्रववाय सोभवाय भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय शुक्रवाय शसनवाय 06:00 से 07:30 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब 07:30 से 09:00 अभृत योग राब शुब िर कार उद्रेग 09:00 से 10:30 िर कार उद्रेग अभृत योग राब शुब 10:30 से 12:00 योग राब शुब िर कार उद्रेग अभृत 12:00 से 01:30 कार उद्रेग अभृत योग राब शुब िर 01:30 से 03:00 राब शुब िर कार उद्रेग अभृत योग 03:00 से 04:30 उद्रेग अभृत योग राब शुब िर कार 04:30 से 06:00 शुब िर कार उद्रेग अभृत योग राब शास्त्रोि भत के अनुशाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भं सपरता प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हं। इस सरमे दैसनक शुब सभम िौघफिमा देखकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं। नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के िौघफिमे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हं। प्रत्मेक िौघफिमे फक अवसध 1 घॊटा 30 सभसनट अथाात डेढ़ घॊटा होती हं। सभम के अनुसाय िौघफिमे को शुबाशुब तीन बागं भं फाॊटा जाता हं, जो क्रभश् शुब, भध्मभ औय अशुब हं। िौघफडमे के स्वाभी ग्रह * हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का िौघफिमा उत्तभ भाना जाता हं। * हय कामा के सरमे िर/कार/योग/उद्रेग का िौघफिमा उसित नहीॊ भाना जाता। शुब िौघफडमा भध्मभ िौघफडमा अशुब िौघफिमा िौघफडमा स्वाभी ग्रह िौघफडमा स्वाभी ग्रह िौघफडमा स्वाभी ग्रह शुब गुरु िय शुक्र उद्बेग सूमा अभृत िॊद्रभा कार शसन राब फुध योग भॊगर
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    89 अगस्त 2014 फदनफक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक वाय 1.घॊ 2.घॊ 3.घॊ 4.घॊ 5.घॊ 6.घॊ 7.घॊ 8.घॊ 9.घॊ 10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ यत्रववाय सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन सोभवाय िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा भॊगरवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र फुधवाय फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर गुरुवाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध शुक्रवाय शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु शसनवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र यात फक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक यत्रववाय गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध सोभवाय शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगरवाय शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुधवाय सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरुवाय िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्रवाय भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसनवाय फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर सूमा शुक्र फुध िॊद्र शसन गुरु भॊगर होया भुहूता को कामा ससत्रद्ध के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अिूक भाना जाता हं, फदन-यात के २४ घॊटं भं शुब-अशुब सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्ध के सरए प्रमोग कयना िाफहमे। त्रवद्रानो के भत से इस्च्छत कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का िुनाव कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं।  सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं।  िॊद्रभा फक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं।  भॊगर फक होया कोटा-किेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं।  फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं।  गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं।  शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं।  शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं।
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    90 अगस्त 2014 ग्रहिरन अगस्त -2014 Day Sun Mon Ma Me Jup Ven Sat Rah Ket Ua Nep Plu 1 03:14:37 05:09:52 06:09:05 03:06:02 03:09:23 02:22:09 06:22:40 05:27:54 11:27:54 11:22:24 10:12:51 08:17:34 2 03:15:35 05:22:00 06:09:37 03:08:06 03:09:36 02:23:22 06:22:42 05:27:53 11:27:53 11:22:23 10:12:50 08:17:32 3 03:16:32 06:04:23 06:10:11 03:10:10 03:09:50 02:24:35 06:22:43 05:27:53 11:27:53 11:22:23 10:12:49 08:17:31 4 03:17:30 06:17:05 06:10:44 03:12:15 03:10:03 02:25:48 06:22:44 05:27:53 11:27:53 11:22:22 10:12:47 08:17:30 5 03:18:27 07:00:10 06:11:17 03:14:21 03:10:16 02:27:01 06:22:46 05:27:52 11:27:52 11:22:22 10:12:46 08:17:28 6 03:19:25 07:13:43 06:11:51 03:16:26 03:10:30 02:28:14 06:22:47 05:27:50 11:27:50 11:22:21 10:12:44 08:17:27 7 03:20:22 07:27:44 06:12:25 03:18:30 03:10:43 02:29:27 06:22:49 05:27:46 11:27:46 11:22:20 10:12:43 08:17:26 8 03:21:20 08:12:15 06:12:59 03:20:35 03:10:56 03:00:40 06:22:50 05:27:39 11:27:39 11:22:19 10:12:41 08:17:25 9 03:22:17 08:27:10 06:13:33 03:22:38 03:11:09 03:01:53 06:22:52 05:27:30 11:27:30 11:22:19 10:12:40 08:17:24 10 03:23:15 09:12:23 06:14:08 03:24:40 03:11:22 03:03:07 06:22:54 05:27:21 11:27:21 11:22:18 10:12:38 08:17:22 11 03:24:12 09:27:42 06:14:42 03:26:42 03:11:36 03:04:20 06:22:56 05:27:12 11:27:12 11:22:17 10:12:37 08:17:21 12 03:25:10 10:12:57 06:15:17 03:28:42 03:11:49 03:05:33 06:22:58 05:27:05 11:27:05 11:22:16 10:12:35 08:17:20 13 03:26:07 10:27:57 06:15:52 04:00:41 03:12:02 03:06:46 06:23:00 05:26:59 11:26:59 11:22:15 10:12:34 08:17:19 14 03:27:05 11:12:35 06:16:27 04:02:39 03:12:15 03:08:00 06:23:03 05:26:56 11:26:56 11:22:14 10:12:32 08:17:18 15 03:28:02 11:26:45 06:17:03 04:04:35 03:12:28 03:09:13 06:23:05 05:26:56 11:26:56 11:22:13 10:12:31 08:17:17 16 03:29:00 00:10:28 06:17:38 04:06:30 03:12:41 03:10:27 06:23:07 05:26:56 11:26:56 11:22:11 10:12:29 08:17:16 17 03:29:58 00:23:45 06:18:14 04:08:24 03:12:54 03:11:40 06:23:10 05:26:57 11:26:57 11:22:10 10:12:27 08:17:15 18 04:00:55 01:06:38 06:18:50 04:10:16 03:13:07 03:12:54 06:23:13 05:26:57 11:26:57 11:22:09 10:12:26 08:17:14 19 04:01:53 01:19:11 06:19:26 04:12:07 03:13:20 03:14:07 06:23:15 05:26:55 11:26:55 11:22:08 10:12:24 08:17:13 20 04:02:51 02:01:30 06:20:02 04:13:56 03:13:33 03:15:21 06:23:18 05:26:51 11:26:51 11:22:06 10:12:23 08:17:12 21 04:03:49 02:13:37 06:20:39 04:15:44 03:13:46 03:16:34 06:23:21 05:26:46 11:26:46 11:22:05 10:12:21 08:17:11 22 04:04:46 02:25:36 06:21:15 04:17:31 03:13:59 03:17:48 06:23:24 05:26:38 11:26:38 11:22:04 10:12:19 08:17:10 23 04:05:44 03:07:30 06:21:52 04:19:16 03:14:12 03:19:02 06:23:27 05:26:28 11:26:28 11:22:02 10:12:18 08:17:09 24 04:06:42 03:19:22 06:22:29 04:21:00 03:14:24 03:20:15 06:23:30 05:26:19 11:26:19 11:22:01 10:12:16 08:17:08 25 04:07:40 04:01:13 06:23:06 04:22:42 03:14:37 03:21:29 06:23:33 05:26:10 11:26:10 11:21:59 10:12:14 08:17:08 26 04:08:38 04:13:05 06:23:43 04:24:24 03:14:50 03:22:43 06:23:37 05:26:02 11:26:02 11:21:58 10:12:13 08:17:07 27 04:09:36 04:25:00 06:24:21 04:26:03 03:15:03 03:23:57 06:23:40 05:25:55 11:25:55 11:21:56 10:12:11 08:17:06 28 04:10:34 05:06:59 06:24:58 04:27:42 03:15:15 03:25:11 06:23:44 05:25:51 11:25:51 11:21:55 10:12:09 08:17:05 29 04:11:32 05:19:05 06:25:36 04:29:19 03:15:28 03:26:25 06:23:47 05:25:50 11:25:50 11:21:53 10:12:08 08:17:05 30 04:12:30 06:01:21 06:26:14 05:00:55 03:15:40 03:27:38 06:23:51 05:25:49 11:25:49 11:21:51 10:12:06 08:17:04 31 04:13:28 06:13:49 06:26:52 05:02:29 03:15:53 03:28:52 06:23:55 05:25:50 11:25:50 11:21:50 10:12:04 08:17:03
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    91 अगस्त 2014 सवायोगनाशक मॊि/कवि भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबन्न सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हं। उसित उऩिाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं, रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी असाध्म होजाते हं, मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं। हजायो राखो रुऩमे खिा कयने ऩय बी असधक राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं, एसी स्स्थती भं राब प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दूसये डॉक्टय के िक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं। बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हेतु त्रवसबन्न आमुवेय औषधो के असतरयि मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था। फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदनिमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हं, एसे व्मत्रि को त्रवसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं। रेफकन आज के फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते फदख जाते हं। क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन हं। एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भं व्मत्रि योग दूय कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं। इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कु शर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हं। ज्मोसतष त्रवद्या के कु शर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को उजागय कय सकते हं। ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं, जहा आधुसनक सिफकत्सा शास्त्र अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जि) को ऩकड कय उसका सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्ध होता हं। हय व्मत्रि भं रार यॊगकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं, स्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्ध तयीके से होता यहता हं। जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩन्न होते हं। एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं। स्जस्से योगो के होने के कायण व्मत्रि के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गोिय स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं। सवा योग सनवायण कवि एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जन्भाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ ऩीफडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवाक फकमा जासकता हं। जेसे हय व्मत्रि को ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं फठक उसी प्रकाय कवि एवॊ मॊि के भाध्मभ से ब्रह्माॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुि कयने हेतु सहामता सभरती हं। योग सनवायण हेतु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं। स्जस्से फहन्दू सॊस्कृ सत का प्राम् हय व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसित हं।
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    92 अगस्त 2014 कविके राब :  एसा शास्त्रोि विन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं।  ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग िाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं।  जन्भाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकू रता से योग उतऩन्न होते हं।  कु छ योग सॊक्रभण से होते हं एवॊ कु छ योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩन्न होते हं। कवि एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ कयने हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं।  आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं, स्जसका उऩिाय ओऩयेशन औय दवासे बी कफठन हो जाता हं। कु छ योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग फहिफकिाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे योगो को योकने हेतु एवॊ उसके उऩिाय हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं।  प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हं। स्जसके साथ अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩिाय हेतु सवायोगनाशक कवि एवॊ मॊि परप्रद होता हं।  स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जन्भ रेते हं, तफ उसकी भाता के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं। उऩिाय हेतु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं।  स्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सिॊता भं उऩिाय हेतु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं। नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि एवॊ मॊि के फाये भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। >> Order Now Declaration Notice  We do not accept liability for any out of date or incorrect information.  We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit,  If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange.  We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information about our any other clients' transactions with us.  Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings of the natural and spiritual world.  Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.  Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our Article dose not produce any bad energy. Our Goal  Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door step.
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    93 अगस्त 2014 भॊिससद्ध कवि भॊि ससद्ध कवि को त्रवशेष प्रमोजन भं उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भं शुब फदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कवि तैमाय कयने के सरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।  क्मं िुने भॊि ससद्ध कवि?  उऩमोग भं आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ  कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ  कोई फुया प्रबाव नहीॊ भॊि ससद्ध कवि सूसि अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि 10900 श्रात्रऩत मोग सनवायण कवि 1900 तॊि यऺा 730 याज याजेद्वयी कवि 11000 * सवा जन वशीकयण 1450 शिु त्रवजम 730 सवा कामा ससत्रद्ध कवि 4600 ससत्रद्ध त्रवनामक कवि 1450 त्रववाह फाधा सनवायण 730 श्रीघॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्धप्रद कवि 6400 सकर सम्भान प्रासद्ऱ कवि 1450 व्माऩय वृत्रद्ध 730 सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि 6400 आकषाण वृत्रद्ध कवि 1450 सवा योग सनवायण 730 दस भहा त्रवद्या कवि 6400 वशीकयण नाशक कवि 1450 योजगाय वृत्रद्ध 730 नवदुगाा शत्रि कवि 6400 प्रीसत नाशक कवि 1450 भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक 640 यसामन ससत्रद्ध कवि 6400 िॊडार मोग सनवायण कवि 1450 काभना ऩूसता 640 ऩॊिदेव शत्रि कवि 6400 ग्रहण मोग सनवायण कवि 1450 त्रवयोध नाशक 640 सुवणा रक्ष्भी कवि 4600 अद्श रक्ष्भी 1250 त्रवघ्न फाधा सनवायण 550 स्वणााकषाण बैयव कवि 4600 भाॊगसरक मोग सनवायण कवि 1250 नज़य यऺा 550 *त्रवरऺण सकर याज वशीकयण कवि 3250 सॊतान प्रासद्ऱ 1250 योजगाय प्रासद्ऱ 550 कारसऩा शाॊसत कवि 2800 स्ऩे- व्माऩय वृत्रद्ध 1050 दुबााग्म नाशक 460 इद्श ससत्रद्ध कवि 2800 कामा ससत्रद्ध 1050 * वशीकयण (2-3 व्मत्रिके सरए) 1050 ऩयदेश गभन औय राब प्रासद्ऱ कवि 2350 आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ 1050 * ऩत्नी वशीकयण 640 श्रीदुगाा फीसा कवि 1900 स्वस्स्तक फीसा कवि 1050 * ऩसत वशीकयण 640 अद्श त्रवनामक कवि 1900 हॊस फीसा कवि 1050 सयस्वती (कऺा +10 के सरए) 550 त्रवष्णु फीसा कवि 1900 स्वप्न बम सनवायण कवि 1050 सयस्वती (कऺा 10 तकके सरए) 460 याभबद्र फीसा कवि 1900 नवग्रह शाॊसत 910 * वशीकयण ( 1 व्मत्रि के सरए) 640 कु फेय फीसा कवि 1900 बूसभ राब 910 ससद्ध सूमा कवि 550 गरुड फीसा कवि 1900 काभ देव 910 ससद्ध िॊद्र कवि 550 ससॊह फीसा कवि 1900 ऩदं उन्नसत 910 ससद्ध भॊगर कवि 550 नवााण फीसा कवि 1900 ऋण भुत्रि 910 ससद्ध फुध कवि 550 सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध कवि 1900 सुदशान फीसा कवि 910 ससद्ध गुरु कवि 550 याभ यऺा कवि 1900 भहा सुदशान कवि 910 ससद्ध शुक्र कवि 550 हनुभान कवि 1900 त्रिशूर फीसा कवि 910 ससद्ध शसन कवि 550 बैयव यऺा कवि 1900 धन प्रासद्ऱ 820 ससद्ध याहु कवि 550 शसन सािेसाती औय ढ़ैमा कद्श सनवायण कवि 1900 ससद्ध के तु कवि 550 उऩयोि कवि के अरावा अन्म सभस्मा त्रवशेष के सभाधान हेतु एवॊ उद्देश्म ऩूसता हेतु कवि का सनभााण फकमा जाता हं। कवि के त्रवषम भं असधक जानकायी हेतु सॊऩका कयं। *कवि भाि शुब कामा मा उद्देश्म के सरमे >> Order Now GURUTVA KARYALAY Call Us - 9338213418, 9238328785, Our Website:- www.gurutvakaryalay.com and www.gurutvajyotish.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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    94 अगस्त 2014 GURUTVAKARYALAY YANTRA LIST EFFECTS Our Splecial Yantra 1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles 2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development 3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits 4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite 5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits 6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion 7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery 8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained 9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House 10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA - Shastrokt Yantra 11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga 12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies 13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi 14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck 15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending 16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha 17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta 18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending 19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth 20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth 21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh 22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection 23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri 24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman 25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending 26 JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA For Astrology & Spritual Knowlage 27 KALI YANTRA Blessing of Kali 28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition 29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga 30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami 31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA - 32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work 33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work 34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna 35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth) 36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage 37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh 38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health 39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva 40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition 41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl 42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
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    95 अगस्त 2014 YANTRALIST EFFECTS 43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets 44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets 45  SURYA YANTRA Good effect of Sun 46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon 47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars 48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury 49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter 50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus 51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn 52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu 53  KETU YANTRA Good effect of Ketu 54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending 55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending 56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov 57 RAM YANTRA Blessing of Ram 58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi 59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending 60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending 61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition 62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition 63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education) 64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & Peace 66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending 68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending 69 VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE MAHALAKSHAMI YANTRA) Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All Successes 70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending 71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning 72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose 74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female 75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband 76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife 77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose Yantra Available @:- Rs- 255, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above….. >> Order Now GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 09338213418, 09238328785 Email Us:- chintan_n_joshi@yahoo.co.in, gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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    96 अगस्त 2014 GemstonePrice List NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL Emerald (ऩन्ना) 200.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above Yellow Sapphire (ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above Blue Sapphire (नीरभ) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above White Sapphire (सफ़े द ऩुखयाज) 550.00 1200.00 1900.00 2800.00 4600.00 & above Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) 100.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above Ruby (भास्णक) 100.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above Ruby Berma (फभाा भास्णक) 5500.00 6400.00 8200.00 10000.00 21000.00 & above Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above Pearl (भोसत) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) 75.00 90.00 12.00 180.00 280.00 & above Red Coral (4 यसत से उऩय)(रार भूॊगा) 120.00 150.00 190.00 280.00 550.00 & above White Coral (सफ़े द भूॊगा) 20.00 28.00 42.00 51.00 90.00 & above Cat’s Eye (रहसुसनमा) 25.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above Cat’s Eye Orissa (उफडसा रहसुसनमा) 460.00 640.00 1050.00 2800.00 5500.00 & above Gomed (गोभेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above Zarakan (जयकन) 350.00 450.00 550.00 640.00 910.00 & above Aquamarine (फेरुज) 210.00 320.00 410.00 550.00 730.00 & above Lolite (नीरी) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above Turquoise (फफ़योजा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above Golden Topaz (सुनहरा) 15.00 30.00 45.00 60.00 90.00 & above Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) 60.00 120.00 280.00 460.00 640.00 & above Blue Topaz (नीरा टोऩज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above White Topaz (सफ़े द टोऩज) 60.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above Amethyst (कटेरा) 20.00 30.00 45.00 60.00 120.00 & above Opal (उऩर) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above Garnet (गायनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above Tourmaline (तुभारीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above Star Ruby (सुमाकान्त भस्ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above Black Star (कारा स्टाय) 15.00 30.00 45.00 60.00 100.00 & above Green Onyx (ओनेक्स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above Real Onyx (ओनेक्स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above Lapis (राजवात) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above Moon Stone (िन्द्रकान्त भस्ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above Rock Crystal (स्फ़फटक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above Kidney Stone (दाना फफ़यॊगी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above Tiger Eye (टाइगय स्टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above Jade (भयगि) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above Sun Stone (सन ससताया) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above Diamond (हीया) (.05 to .20 Cent ) 50.00 (Per Cent ) 100.00 (Per Cent ) 200.00 (PerCent ) 370.00 (Per Cent) 460.00 & above (Per Cent ) >> Order Now Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
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    97 अगस्त 2014 सूिना ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं।  रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रविायो से सहभत हं।  नास्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं।  ऩत्रिका भं प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं।  प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण मफद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि एक सॊमोग हं।  प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं। इस कायण इन त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं।  अन्म रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं। औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भं जानकायी देने हेतु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं।  ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं। फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।  ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हं। हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं।  मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊडं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हेतु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकू र ऩरयणाभ सॊबव हं।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं।  ऩाठकं फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं। ऩाठकं को एक रेख के ऩून् प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं।  असधक जानकायी हेतु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं। (सबी त्रववादो के सरमे के वर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
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    98 अगस्त 2014 FREE ECIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका अगस्त -2014 सॊऩादक सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785 ईभेर gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, वेफ www.gurutvakaryalay.com www.gurutvajyotish.com http://gk.yolasite.com/ www.gurutvakaryalay.blogspot.com
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    99 अगस्त 2014 हभायाउद्देश्म त्रप्रम आस्त्भम फॊधु/ फफहन जम गुरुदेव जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हं। वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊब हो जाता हं, बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता हं, औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोफक बावनाए फह बवसागय हं, स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनफहत हं। उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय सपरता हं। सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हं। ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदैव आऩ के साथ हं। आऩ अऩने कामा-उद्देश्म एवॊ अनुकू रता हेतु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दुराब भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सिज वस्तु का हभंशा प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्देश्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं। सूमा की फकयणे उस घय भं प्रवेश कयाऩाती हं। जीस घय के स्खिकी दयवाजे खुरे हं। GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Visit Us: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com | www.gurutvakaryalay.blogspot.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION) (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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