1. Presented by-
Name- khilesh kumar dahariya
roll no- 121
subject- philosophical perspective of education
B.Ed- I Semester
Submitted to-
Dr. lata mishra ma’am
2. श्री अरविन्द जी: एकीक
ृ त विक्षा
(Shri Aurobindo ji: integral education)
3. जीिन पररचय
जीिन दिशन
विक्षा दिशन
विक्षा दिशन क
े आधारभूत विद्धान्त
विक्षा की अिधारणा
विक्षा क
े उद्देश्य
पाठ्यक्रम
विक्षण पद्धवत
बालक का स्थान
विक्षक का स्थान
श्री अरविन्द जी क
े विक्षा दिशन का मूल्ाांकन
4. जीिन पररचय
श्री अरविन्द घोष जी का जन्म 15 अगस्त िन्न 1872 ई को भारत क
े प्रविद्ध नगर कोलकत्ता में हुआ था।
इनक
े वपता ने इनको क
े िल 6 िषश की आयु में ही इांग्लैंड भेज वदया था वजििे िे क
ृ विम अांग्रेज बन जाये।
श्री अरविन्द ने िहााँ पर विक्षा प्राप्त करते हुए महान लेखकोां एिांम कवियोां को मौवलक रचनाओां का अध्धयन
करने क
े वलए ग्रीक तथा लैविन भाषा पर ही पूणश अवधकार प्राप्त नही वकया अवपतु फ्र
ें च, जमशन तथा इिेवलयन
आवद अनेक यूरोवपयन भाषायोां को भी िीखा।
14 िषश तक आयु में उन्हीने इांग्लैंड में रहते हुए वििुद्ध पाश्चात्य विक्षा प्राप्त की।
िन 1890 ई में श्री अरविन्द भारतीय विविल िविशि की परीक्षा उतीणश हुए, परन्तु घुड़सििारी में िम्मिवलत न
होने क
े कारण उन्होांने अपने आप को अनुपयुक्त पाया और िन 1893ई में भारत लौि आये।
5. जीिन पररचय
– भारत आने पर श्री अरविांद ने 13 िषश तक बड़सौदा क
े गायकिाड क
े यहाां नौकरी वकया इिी बीच उन्होांने
िांस्क
ृ त था अन्य भाषाओां को िीख कर अपने भािी जीिन की तैयारी की।
– राजनीवत कायों में भाग लेने क
े कारण कई बार जेल भी गए परांतु जल्द ही छोड़स वदए गए ।
– एक वदन अलीपुर जेल में उन्होांने स्वप्न में ईश्वरी आत्मा का दिशन वकया।
– अतः जेल िे छ
ू िते ही उन्होांने िन 1915 ईस्वी िे अपनी अपनी राजनीवतक गवतविवधयाां छोड़स दी और
आध्याम्मत्मक जीिन व्यतीत करने क
े वलए फ्र
ें च उपवनिेि पाांवडचेरी में चले गए जहााँ एक आश्रम बनाया।
– यह आश्रम अब भी श्री अरविन्द आश्रम क
े नाम िे प्रविद्ध है।
– इि प्रकार इिकी अरविांद जी राजनीवत कायशकताश िे एक दािशवनक बन गए और दािशवनक रुप में उन्होांने
जनता क
े िामने विक्षा,धमश,योग तथा ब्रह्मचयश आवद विषय पर अपने विचार प्रस्तुत वकये। 5 वदिांबर िन
1950 ई में श्री अरविांद जी का स्वगशिाि हो गया।
6. जीिन -दिशन
श्री अरविन्द जी आदिशिादी थे
उनक
े दिशन का आधार उपवनषद का िेदान्त था
िे जीिन मे आध्याम्मत्मक िाधना, योग तथा ब्रह्मचयश को
वििेष महत्व देते हुए विकाि क
े विद्धान्त में विश्वाि
करते थे।
उन्होांने बताया वक विकाि का लक्ष्य क
े िल एक ही है
और िह है- िांिार मे वदव्य- िम्मक्त अथिा पूणश एिां अखांड
चेतना को प्राप्त करना।
7. विक्षा दिशन
श्री अरविांद एक महान दािशवनक क
े िाथ उच्च कोवि क
े
विक्षािास्त्री भी थे| उन्होांने मानि जावत को ििोच्च
आध्याम्मत्मक विकाि का मागश वदखाया| इिी दृवि िे उन्हें
मानि क
े िच्चे धैयश दाता की िांज्ञा भी दी जाती है|
उन्होांने स्वयां वलखा है- िच्ची और िास्तविक विक्षा िह है,
जो मानि की अांतवनशवहत िमस्त िम्मक्तयोां को विकवित
करक
े उिे िफल बनाने में िहायता प्रदान करती है।
8. विक्षा दिशन की आधारभूत विद्धाांत
विक्षा मातृभाषा क
े माध्यम िे दी जानी चावहए।
विक्षा बालक प्रधान होनी चावहए।
विक्षा बालक की मनोिृवत्तयोां तथा मनोिैज्ञावनक पररम्मस्थवतयोां क
े अनुिार
होनी चावहए।
विक्षा को बालक में वछपी हुई िम्मक्तयोां का विकाि करना चावहए।
विक्षा को बालक की िारीररक िुम्मद्ध करनी चावहए।
विक्षा को चेतना का विकाि करना चावहए विक्षा को मानि क
े अन्तःकरण
का विकाि करना चावहए।
विक्षा को ज्ञानेम्मियोां को प्रविवक्षत करना चावहए।
विक्षा का आधार ब्रम्हचयश होना चावहए।
विक्षा क
े विषय रोचक होने चावहए।
विक्षा में धावमशक पुि अिश्य होना चावहए िरन भ्रिाचार फ
ै लेगा।
9. विक्षा की अिधारणा
श्री अरविांद जी भारत की प्रचवलत विक्षा क
े विरोधी थे। िे
कहते थे वक स्वतांिता प्राप्त करने क
े पश्चात भारतीय विक्षा
की रूपरेखा में पररितशन तो अिश्य आ गया है, परांतु िह
अभी भी बालको क
े मम्मस्तष्क, आत्मा तथा चररि एिां रािर
की आिश्यकताओ क
े अनुिार नहीांहै।
िह स्वयां वलखते हैं- " िच्ची विक्षा को मिीन िे बना हुआ
िूत नहीांहोना चावहए अवपतु इिको मानि क
े मम्मस्तष्क तथा
आत्मा की िम्मक्तयोां का वनमाशण अथिा जीवित उत्कषश
करना चावहए।"
10. विक्षा क
े उद्देश्य
िारीररक विकाि और िुम्मद्ध
गज्ञानेम्मियो का विकाि
मानविक विकाि
नैवतकता का विकाि
अन्तःकरण का विकाि
आध्याम्मत्मक विकाि
"विक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चावहए- विकवित होने िाली
आत्मा का विकाि करना, जो उिमें ििोत्तम है, उिे व्यक्त
करना तथा उिे श्रेि कायश करने क
े वलए पूणश बनाना।"
11. पाठ्यक्रम
श्री अरविांद जी ने बालक की िमस्त िम्मक्तयोां को विकवित करने क
े वलए
स्वतांि िातािरण का िमथशन वकया तथा पाठ्यक्रम में बालक रुवचयोां क
े
अनुिार, उन िभी विषयो को िम्मिवलत करने का िुझाि प्रस्तुत वकया,
वजनमे िैवक्षक अवभव्यम्मक्त तथा वक्रयािीलता क
े गुण विद्यमान हो।
पाठ्यक्रम क
े वनमाशण हेतु वनम्नवलम्मखत विद्धान्त प्रस्तुत वकये है-
पाठ्यक्रम रोचक हो
पाठ्यक्रम में उन िभी विषयो को स्थान वदया जाए, वजनमे बौम्मद्धक तथा
आध्यम्मत्मक विकाि हो िक
े
पाठ्यक्रम क
े विषयोां में बालक को आकवषशत करने की िम्मक्त हो।
पाठ्यक्रम क
े विषयोां में जीिन की वक्रयािीलता क
े गुण होने चावहए
पाठ्यक्रम को विश्व ज्ञान में बालक की रुवच उत्पन्न करनी चावहए
12. उपयुक्त विद्धाांतो क
े आधार पर श्री अरविांद जी ने बालक क
े
पूणश विकाि हेतु विक्षा क
े विवभन्न स्तरोां पर पाठ्यक्रम क
े
अांतगशत वनम्न विषयो को िम्मिवलत वकया है-
1. प्राथवमक स्तर- मातृभाषा, अांग्रेजी, फ़्र
ें च, िावहत्य, रािर ीय इवतहाि वचिकला
िामान्य विज्ञान िमावजक विज्ञान तथा गवणत
2. माध्यवमक स्तर- मातृभाषा,अांग्रेजी, फ्र
ें च, गवणत, कला, विज्ञान, भौवतक-विज्ञान
िनस्पवत-विज्ञान, स्वास्थ्य-विज्ञान, िरीर-विज्ञान तथा िामावजक विषय
3. विश्वविद्यालय स्तर- भारत तथा पाश्चात्य दिशन, िभ्यता का इवतहाि,अांग्रेजी
िावहत्य, फ्र
ें च िावहत्य, िमाजिास्त्र, मनोविज्ञान, विज्ञान का इवतहाि, गवणत
,रिायन िास्त्र,भौवतक िास्त्र, जीि विज्ञान, विश्व एकीकरण तथा अांतररािर ीय िांबांध।
4. व्यििावयक विक्षा- वचिकारी, फोिोग्राफी, विलाई, िूची विल्प कायश, विल्प
कला िांबांधी ड
र ाइांग,आिुवलवप, क
ु िीर उद्योग,काष्ठ कला, िामान्य मैक
े वनकल तथा
इलेम्मरर कल इांजीवनयररांग, उपचारण, भारतीय तथा यूरोपीय िांगीत, अवभनय तथा
नृत्य।
13. विक्षा पद्धवत
बालक की स्वतांिता
बालक क
े प्रवत प्रेम तथा िहानुभूवत
मातृभाषा द्वारा विक्षा
विक्षा बालक की रूवच क
े अनुिार
स्वप्रयत्न तथा स्वानुभि द्वारा विक्षा
करक
े िीखने पर बल
परस्पर िहयोग द्वारा विक्षा
विक्षा बालक की प्रक
ृ वत क
े अनुिार
14. बालक का स्थान
श्री अरविांद जी क
े अनुिार प्रत्येक पालक मैं व्यम्मक्तगत क्षमताएां एिां
विलक्षण होती है।
बालक को माता-वपता अथिा विक्षक की इच्छा अनुक
ू ल ढालना
अांधविश्वाि तथा जांगलीपन है, माता वपता इििे बड़सी भूल और कोई नहीां
कर िकते वक िह पहले िे ही इि बात की व्यिस्था करें वक उनक
े पुि में
विविि गुणोां, क्षमताओां तथा विचारोां का विकाि होगा। प्रक
ृ वत को स्वयां
अपने धमश का त्याग करने क
े वलए बाध्य करना उिे स्थाई हावन पहुांचाना
है, उिक
े विकाि को व्यूत्क
ृ त करना तथा उिकी पूणशता को दू वषत
करना है।"
15. विक्षक का स्थान
विक्षक वनदेिक अथिा स्वामी नहीां है अवपतु िह क
े िल
िहायक तथा पथ प्रदिशक है । उिका कायश िुझाि देना है न
वक ज्ञान को थोपना। िह बालक क
े मम्मस्तष्क को प्रविवक्षत नहीां
करता अवपतु िह उिे िीखने की प्रवक्रया में िहायता तथा
प्रेरणा देकर यह बताता है वक िह अपने ज्ञान क
े िाधनोां को
वकि प्रकार िमृद्ध बना िकता है। िह छाि को ज्ञान नहीां देता
अवपतु िह उिे यह बताता है वक ज्ञान को क
ै िे प्राप्त वकया जा
िकता है।िह बालक क
े अांतवनशवहत ज्ञान को बाहर नहीां
वनकलता अवपतु िह उिे क
े िल यह बताता है वक ज्ञान कहाां है
और उिको बाहर लाने क
े वलए वकि प्रकार की आदत डाली
जा िकती है।
16. श्री अरविांद जी क
े विक्षा दिशन का
मूल्ाांकन
अरविांद जी का विक्षा दिशन मनुष्य की िमस्त िम्मक्तयोां क
े
उत्कषश तथा अवधक िे अवधक पूणश विकाि क
े विद्धाांत पर
आधाररत है विक्षा क
े क्षेि में उनक
े विचार यह विद्ध करते
हैं वक श्री अरविांद जी हमारे देि क
े प्रमुख तथा प्रविद्ध
विक्षा िाम्मस्त्रयोां मे िे थे।