10. आिाय = लेकर
प्रस्ििण्डान् = ित्थर के टुकड़ो को
सविनोिम ् = हँसी मजाक
आलिन्िी = बाि करिी हुई
अजायि = िैिा हुई
अशिहहिौ = कहे गये है
11.
12. सोढुम ् = सहने में
उत्िीड़ड़िानाम् = सिाए गए का
अश्ांिम ् = बबना थके हुए
महहयिे = बढ़-चढ़कर हैं
िधबध्िम ् = कवििा के रूि में
गहनािबोधाय = गहराई से समाजने
(गहन+अिबोधाय) के शलए
13.
14.
15. उनकी कु छ कवििाएं तननन शलखिि हे।:-
1
ज्ञान नहीं विद्या नहीं,उसे अस्जषि करने की स्जज्ञासा नहीं
बुद्धध होकर िी जो उस िर चले नहीं,उसे इंसान कहे क्या?
िे िो ईश्िर बबना काम ककए बैठे बबठाए िाट िर
ढ़ोर डगर िी एसा किी करिा नहीं
स्जसका कोई विचार-अस्िार नहीं,उसे इंसान कहे क्या?
िूसरों की मिि ना करे सेिा त्याग िया माया ममिा आहि
स्जसके िास ये सद्गुण नहीं,उसे इंसान कहे क्या?
ििु ििी,बंिर आिमी जन्म मृत्यु सबको ही
इस बाि का ज्ञान स्जसे नहीं,उसे इंसान कहे क्या?
16. 2
काम करना है जो आज, उसे अब कर ित्काल।
जो करना है िोिहर में, उसे कर अब आकार।
कु छ िणों के बाि का कायष,अिी करो िूरा ज़ोर लगाकर।
हो गया कायष समाप्ि या नहीं,मौि नहीं िूछिी आकार।
(सावित्रीबाई फु ले की यह कवििाएं मराठी िार्ा के
प्रशसद्ध कवि िेिर ििार द्िारा मराठी से हहन्िी में
अनूहिि है)
इनके अतिररक्ि सावित्रीबाई फु ले की और कई सारी
कवििाएं प्रशसद्ध है