1. • प्रस्तुत करता :-
श्रीमतत ररतु
सहायक प्रवक्ता, हहिंदी-ववभाग
राजकीय महाववद्यालय
रायपुर रानी ,पिंचकु ला(हररयाणा)
PRESENTATION - प्रस्तुततकरण
नविंबर 18-23 हदसम्बर,2020
गुरुदक्षिता
फै कल्टी इिंडक्शन प्रोग्राम-3
मानव सिंसाधन ववकास कें द्र गुरु जम्भेश्वर ववज्ञान एविं
प्रौदयोगगकी ववश्वववद्यालय,हहसार
2. अनुवाद का स्वरुप एविं महत्व
अनुवाद का अर्थ :- ककसी भाषा में कही या ललखी गयी बात का ककसी दूसरी भाषा में
सार्थक पररवतथन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कायथ बहुत पुराने समय से
होता आया है।
सिंस्कृ त में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग लशष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कर्न,
समर्थन के ललए प्रयुक्त कर्न, आवृवि जैसे कई सिंदभों में ककया गया है। सिंस्कृ त के ’वद्‘
धातु से ’अनुवाद‘ शब्द का तनमाथण हुआ है। ’वद्‘ का अर्थ है बोलना। ’वद्‘ धातु में
'अ' प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक सिंज्ञा में इसका पररवततथत रूप है 'वाद' जजसका अर्थ है-
'कहने की किया' या 'कही हुई बात'। 'वाद' में 'अनु' उपसगथ उपसगथ जोड़कर 'अनुवाद' शब्द
बना है, जजसका अर्थ है, प्राप्त कर्न को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोतनयर
ववललयम्स ने अँग्रेजी शब्द टािंंिंसलेशन (translation) के पयाथय के रूप में ककया। इसके बाद
ही 'अनुवाद' शब्द का प्रयोग एक भाषा में ककसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी
भाषा में पुनः प्रस्तुतत के सिंदभथ में ककया |
3. अनुवाद की परिभाषा
साधारणत: अनुवाद कमथ में हम एक भाषा में व्यक्त ववचारों को दूसरी भाषा में व्यक्त करते हैं। अनुवाद कमथ के ममथज्ञ
ववलभन्न मनीवषयों द्वारा प्रततपाहदत अलग-अलग शब्दों में पररभावषत ककए हैं। अनुवाद के पूणथ स्वरूप को समझने के ललए
यहाँ कु छ महत्त्वपूणथ पररभाषाओिं का उल्लेख ककया जा रहा है :-
भाितीय चिन्तन में अनुवाद की परिभाषा:-
1.देवेन्रनाथ शमाा :-ववचारों को एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपान्तररत करना अनुवाद है|
2.भोलानाथ:-ककसी भाषा में प्राप्त सामग्री को दूसरी भाषा में भाषािंतरण करना अनुवाद है,दुसरे शब्दों में व्यक्त ववचारों को यर्ा सिंभव ओर सहज
अलभव्यजक्त द्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है|
3.बालेन्दु शेखि : अनुवाद एक भाषा समुदाय के ववचार और अनुभव सामग्री को दूसरी भाषा समुदाय की शब्दावली में लगभग यर्ावत् सम्प्रेवषत
करने की सोद्देश्यपूणथ प्रकिया है।’
4.िीतािानी पालीवाल : ‘स्रोत-भाषा में व्यक्त प्रतीक व्यवस्र्ा को लक्ष्य-भाषा की सहज प्रतीक व्यवस्र्ा में रूपान्तररत करने का कायथ अनुवाद है।’
5.फॉिेस्टन : ‘एक भाषा की पाठ्य सामग्री के तत्त्वों को दूसरी भाषा में स्र्ानान्तररत कर देना अनुवाद कहलाता है। यह ध्यातव्य है कक हम तत्त्व
या कथ्य को सिंरचना (रूप) से हमेशा अलग नहीिं कर सकते हैं।’
6.हैललडे : ‘अनुवाद एक सम्बन्ध है जो दो या दो से अगधक पाठों के बीच होता है, ये पाठ समान जस्र्तत में समान प्रकायथ सम्पाहदत करते हैं।’
7.न्यूमाका : ‘अनुवाद एक लशल्प है, जजसमें एकभाषा में व्यक्त सन्देश के स्र्ान पर दूसरी भाषा के उसी सन्देश को प्रस्तुत करने का प्रयास ककया
जाता है।’
4. अनुवाद के क्षेत्र
आज की दुननया में अनुवाद का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। शायद ही कोई क्षेत्र बिा हो जजसमें अनुवाद की उपादेयता को
लसद्ध न ककया जा सके । इसललए यह कहना अनतशयोजतत न होगी कक आधुननक युग के जजतने भी क्षेत्र हैं सबके सब
अनुवाद के भी क्षेत्र हैं, िाहे न्यायालय हो या कायाालय, ववज्ञान एवं प्रौद्योचगकी हो या लशक्षा, संिाि हो या पत्रकारिता, साहहत्य
का हो या सांस्कृ नतक सम्बन्ध। इन सभी क्षेत्रों में अनुवाद की महत्ता एवं उपादेयता को सहज ही देखा-पिखा जा सकता है।
अनुवाद के क्षेत्र इस प्रकाि है :-
• न्यायालय
• सिकािी कायाालय
• ववज्ञान एवं प्रौद्योचगकी
• लशक्षा
• जनसंिाि
• साहहत्य
• अन्तिााष्ट्रीय सम्बन्ध
• संस्कृ नत
• ववज्ञापन
5. अनुवाद के प्रकार
• शब्दानुवाद : स्रोत-भाषा के शब्द एविं शब्द िम को उसी प्रकार लक्ष्य-भाषा में रूपान्तररत करना शब्दानुवाद कहलाता है।
• भावानुवाद : साहहजत्यक कृ ततयों के सन्दभथ में भावानुवाद का ववशेष महत्त्व होता है। इस प्रकार के अनुवाद में मूल-भाषा के भावों,
ववचारों एविं सन्देशों को लक्ष्य-भाषा में रूपान्तररत ककया जाता है।
• छायानुवाद : अनुवाद लसद्धान्त में छाया शब्द का प्रयोग अतत प्राचीन है। इसमें मूल-पाठ की अर्थ छाया को ग्रहण कर अनुवाद
ककया जाता है। छायानुवाद में शब्दों, भावों तर्ा सिंकल्पनाओिं के सिंकललत प्रभाव को लक्ष्य-भाषा में रूपान्तररत ककया जाता है।
• सािानुवाद : सारानुवाद का अर्थ होता है ककसी भी ववस्तृत ववचार अर्वा सामग्री का सिंिेप में अनुवाद प्रस्तुत करना। लम्बी
रचनाओिं, राजनैततक भाषणों, प्रततवेदनों आहद व्यावहाररक कायथ के अनुवाद के ललए सारानुवाद काफी उपयोगी लसद्ध होता है।
• व्याख्यानुवाद : व्याख्यानुवाद को भाष्यानुवाद भी कहते हैं। इस प्रकार के अनुवाद में अनुवादक मूल सामग्री के सार्-सार् उसकी
व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। व्याख्यानुवाद में अनुवादक का व्यजक्तत्व महत्त्वपूणथ होता है। और कई जगहों में तो अनुवादक का
व्यजक्तत्व एविं ववचार मूल रचना पर हावी हो जाता है। बाल गिंगाधर ततलक द्वारा ककया गया ‘गीता’ का अनुवाद इसका उत्कृ ष्ट
उदाहरण है।
• आशु अनुवाद : आशु अनुवाद को वाताथनुवाद भी कहते हैं। दो लभन्न भाषाओिं, भावों एविं ववचारों का तात्काललक अनुवाद आशु अनुवाद
कहलाता है। आज जैसे ववलभन्न देश एक दूसरे के परस्पर समीप आ रहे हैं इस प्रकार के तात्काललक अनुवाद का महत्त्व बढ़ रहा
है। ववलभन्न भाषा-भाषी प्रदेशों एविं देशों के बीच राजनैततक, आगर्थक एविं सािंस्कृ ततक महत्त्व के िेत्रों में आशु अनुवाद का सहारा
ललया जाता है।
•
6. आदशा अनुवाद : आदशथ अनुवाद को सटीक अनुवाद भी कहा जाता है। इसमें अनुवादक आचायथ की भूलमका तनभाता है
तर्ा स्रोत-भाषा की मूल सामग्री का अनुवाद अर्थ एविं अलभव्यजक्त सहहत लक्ष्य-भाषा में तनकटतम एविं स्वाभाववक
समानार्ों द्वारा करता है। आदशथ अनुवाद में अनुवादक तटस्र् रहता है तर्ा उसके भावों एविं ववचारों की छाया
अनूहदत सामग्री पर नहीिं पड़ती। रामचररतमानस, भगवद्गीता, कु रआन आहद धालमथक ग्रन्र्ों के सटीक अनुवाद इसके
उत्कृ ष्ट उदाहरण हैं।
• रूपान्तिण : आधुतनक युग में रूपान्तरण का महत्त्व बढ़ रहा है। रूपान्तरण में स्रोत-भाषा की ककसी रचना का
अन्य ववधा(साहहत्य रूप) में रूपान्तरण कर हदया जाता है। सिंचार माध्यमों के बढ़ते हुए प्रभाव एविं उसकी
लोकवप्रयता को देखते हुए कववता, कहानी आहद साहहत्य रूपों का नाट्यानुवाद ववशेष रूप से प्रचललत हो रहा
है। ऐसे अनुवादों में अनुवादक की अपनी रुगच एविं कृ तत की लोकवप्रयता महत्त्वपूणथ होती है। जैनेन्द्र,
कमलेश्वर, अमृता प्रीतम, भीष्म साहनी आहद की कहातनयों के रेडडयो रूपान्तर प्रस्तुत ककए जा चुके हैं।
‘कामायनी’ महाकाव्य का नाट्य रूपान्तर काफी चगचथत हुआ है।
• भाषा की ककसी रचना का अन्य ववधा(साहहत्य रूप) में रूपान्तरण कर हदया जाता है। सिंचार माध्यमों के
बढ़ते हुए प्रभाव एविं उसकी लोकवप्रयता को देखते हुए कववता, कहानी आहद साहहत्य रूपों का नाट्यानुवाद
ववशेष रूप से प्रचललत हो रहा है। ऐसे अनुवादों में अनुवादक की अपनी रुगच एविं कृ तत की लोकवप्रयता
महत्त्वपूणथ होती है। जैनेन्द्र, कमलेश्वर, अमृता प्रीतम, भीष्म साहनी आहद की कहातनयों के रेडडयो रूपान्तर
प्रस्तुत ककए जा चुके हैं। ‘कामायनी’ महाकाव्य का नाट्य रूपान्तर काफी चगचथत हुआ है।
7. अनुवादक के गुण:-
• 1. अच्छे अनुवादक को भाषाओिं का समुगचत ज्ञान होना चाहहए।
• 2. अच्छे अनुवादक को सिंबिंगधत ववषय का सिंपूणथ ज्ञान होना चाहहए।
• 3. अच्छे अनुवादक के पास अपने ववचार होने चाहहए।
• 4. अच्छे अनुवादक में वैयाकरण का ज्ञान होना चाहहए।
• 5. अच्छे अनुवादक में प्रमाणणकता व मौललकता के गुण हें
• 6.शब्दावली का ज्ञान,
• 7.ववराम गचन्हों का पूणथ ज्ञान,
• 8.भावों पर पकड़ और
• 9.समग्र पाठ्य को एकरूपता प्रदान करने की िमता।
• 10.अनुवादक का व्यजक्तत्व सहज और सरल होना चाहहए |
8. अनुवाद का महत्व
• बीसवीिं सदी को अनुवाद का युग कहा गया है। यद्यवप अनुवाद सबसे प्राचीन व्यवसाय या व्यवसायों में से एक कहलाता है तर्ावप उसे जो महत्त्व बीसवीिं सदी में प्राप्त
हुआ वह उससे पहले उसे नहीिं लमला ऐसा माना जाता है। वतथमान यग में अगधकतर राष्रों में यहद एक भाषा प्रधान है तो एक या अगधक भाषाएँ गौण पद पर हदखाई
देती हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही राजनीततक-प्रशासतनक इकाई की सीमा के अन्तगथत भाषायी बहुसिंख्यक भी रहते हैं और भाषायी अल्पसिंख्यक भी। लोकतन्त्र में सब लोगों
का प्रशासन में समान रूप से भाग लेने का अगधकार तभी सार्थक माना जाता है, जब उनके सार् उनकी भाषा के माध्यम से सम्पकथ ककया जाए। इससे बहुभावषकता की
जस्र्तत उत्पन्न होती है और उसके सिंरिण की प्रकिया में अनुवाद कायथ का आश्रय लेना अतनवायथ हो जाता है।
• इसके अततररक्त अन्तराथष्रीय स्तर पर ववलभन्न राष्रों के बीच राजनीततक, आगर्थक, वैज्ञातनक और प्रौद्योगगक तर्ा साहहजत्यक और सािंस्कृ ततक स्तर पर बढ़ते हुए
आदान-प्रदान के कारण अनुवाद कायथ की अतनवायथता और महिा की नई चेतना प्रबल रूप से ववकलसत होती हुई हदखती है। उिर-आधुतनक युग में अनुवाद की महिा व
उपादेयता को ववश्वभर में स्वीकारा जा चुका है। वैहदक युग के ‘पुन: कर्न’ से लेकर आज के ‘रािंसलेशन’ तक आते-आते अनुवाद अपने स्वरूप और अर्थ में बदलाव
लाने के सार्-सार् अपने बहुमुखी व बहुआयामी प्रयोजन को लसद्ध कर चुका है। प्राचीन काल में ‘स्वािंत: सुखाय’ माना जाने वाला अनुवाद कमथ आज सिंगहठत व्यवसाय
का मुख्य आधार बन गया है।आज ववश्वभर में अनुवाद की आवश्यकता जीवन के हर िेत्र में ककसी-न-ककसी रूप में अवश्य महसूस की जा रही है और इस तरह
अनुवाद आज के जीवन की अतनवायथ आवश्यकता बन गया है।
• बीसवीिं शताब्दी के अवसान और इक्कीसवीिं सदी के स्वागत के बीच आज जीवन का कोई भी ऐसा िेत्र नहीिं है जहाँ पर हम गचन्तन और व्यवहार के स्तर पर अनुवाद
के आग्रही न हों। अनुवाद के महत्त्व को तनम्नललणखत बबिंदुओिं द्वारा स्पष्ट ककया जा रहा है-
9. • राष्रीय एकता में अनुवाद की आवश्यकता |
• सिंस्कृ तत के ववकास में अनुवाद की आवश्यकता |
• साहहत्य के अध्ययन में अनुवाद की आवश्यकता |
• व्यवसाय के रूप में अनुवाद की आवश्यकता |
• ज्ञान-ववज्ञान के िेत्रों में अनुवाद की आवश्यकता |
• धमथ प्रचार और अनुवाद |
• मीडडया औि लसनेमा के क्षेत्र में अनुवाद की आवश्यकता|
• डबबंग के क्षेत्र में अनुवाद की आवश्यकता|
• ननष्ट्कषातः कहा जा सकता है कक अनुवाद ववश्व-सिंस्कृ तत, ववश्व-बिंधुत्व, एकता और समरसता स्र्ावपत करने का एक ऐसा सेतु है जजसके
माध्यम से ववश्व ज्ञान-ववज्ञान के िेत्र में िेत्रीयतावाद के सिंकु गचत एविं सीलमत दायरे से बाहर तनकल कर मानवीय एविं भावात्मक
एकता के के न्द्र बबन्दु तक पहुँच सकता है और यही अनुवाद की आवश्यकता और उपयोगगता का सशस्त एविं प्रत्यि प्रमाण है।बीसवीिं
शताब्दी में देशों के बीच की दूररयाँ कम होने के पररणामस्वरूप ववलभन्न वैचाररक धरातलों और आगर्थक, औद्योगगक स्तरों पर
पारस्पररक भावषक ववतनमय बढ़ा है और इस ववतनमय के सार्-सार् अनुवाद का प्रयोग और अगधक ककया जाने लगा है। आज के
वैज्ञातनक युग में अनुवाद बहुत महत्त्वपूणथ हो गया है। यहद हमें दूसरे देशों के सार् किं धे से किं धा लमलाकर चलना है तो हमें उनके यहाँ
ववज्ञान के िेत्र में, सामाजजक एविं सािंस्कृ ततक िेत्र में हुई प्रगतत की जानकारी होनी चाहहए और यह जानकारी हमें अनुवाद के माध्यम
से लमलती है।सिंचार माध्यमों में गततशीलता बढ़ाने का कायथ अनुवाद द्वारा ही सम्भव हो सका है तर्ा गाँव से लेकर महानगरों तक जो
भी अद्यतन सूचनाएँ हैं वे अनुवाद के माध्यम से एक सार् सबों तक पहुँच रही हैं। कहने की आवश्यकता नहीिं कक अनुवाद ने आज
पूरे ववश्व को एक सूत्र में वपरो हदया है।
•
10. अनुवाद की परम्परा
• अनुवाद की परम्परा बहुत पुरानी है। बेबल के मीनार (Tower of Babel) की कर्ा प्रलसद्ध ही है, जो इस तथ्य की ओर सङ्के त करती है कक,
मानव समाज में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। यह तकथ सङ्गत रूप से अनुमान ककया जा सकता है कक पारस्पररक सम्पकथ की सामाजजक
अतनवायथता के कारण अनुवाद व्यवहार का जन्म भी बहुत पहले हो गया होगा। परन्तु जहाँ तक ललणखत प्रमाणों का सम्बन्ध है,
• अनुवाद परम्परा के आरजम्भक बबन्दु का प्रमाण ईसा से तीन सहस्र वषथ पहले प्राचीन लमस्र के राज्य में, द्ववभावषक लशलालेखों के रूप में
लमलता है।
• तत्पश्चात् ईसा से तीन सौ वषथ पूवथ रोमन लोगों के ग्रीक लोगों के सम्पकथ में आने पर ग्रीक से लैहटन में अनुवाद हुए।
• बारहवीिं शताब्दी में स्पेन में इस्लाम के सार् सम्पकथ होने पर यूरोपीय भाषाओिं में अरबी से अनुवाद हुए।
• बृहत् स्तर पर अनुवाद तभी होता है, जब दो लभन्न भाषाभाषी समुदायों में दीर्थकाल पयथन्त सम्पकथ बना रहे तर्ा उसे सन्तुललत करने के
प्रयास के अन्तगथत अल्प ववकलसत सिंस्कृ तत के लोग सुववकलसत सिंस्कृ तत के लोगों के साहहत्य का अनुवाद कर अपने साहहत्य को समृद्ध करें।
ग्रीक से लैहटन में और अरबी से यूरोपीय भाषाओिं में प्रचर अनुवाद इसी प्रवृवि के पररणाम माने जाते हैं। अनुवाद कायथ को इततहास की
प्रवृवियों की दृजष्ट से दो भागों में ववभाजजत ककजा जाता है - प्राचीन और आधुतनक।
11. प्रािीन पिम्पिा
प्राचीन युग में मुख्यतः तीन प्रकार की रचनाओँ के अनुवाद प्राप्त होते हैं। क्योंकक इन तीन िेत्रों में ही प्रायः ग्रन्र्ों की रचना
होती र्ी। वें िेत्र हैं - साहहत्य, दशथन और धमथ। साहहजत्यक रचनाओिं में ग्रीक
के इललयड और ओडेसी, सिंस्कृ त के रामायण और महाभारत ऐसे ग्रन्र् हैं, जजनका व्यापक स्तर अनुवाद हुआ। दाशथतनक रचनाओिं
में प्लेटो के सिंवाद, अनुवाद की दृजष्ट से लोकवप्रय हुए। धालमथक रचनाओिं में बाइबबल के सबसे अगधक अनुवाद पाए जाते हैं।
आधुननक पिम्पिा
• आधुतनक युग में अनुवाद का िेत्र ववस्तृत हो गया है। उपयुथक्त तीन के
अततररक्त ववज्ञान, प्रौद्योगगकी, गचककत्साशास्त्र, प्रशासन, कू टनीतत, ववगध, जनसम्पकथ (समाचार पत्र इत्याहद) तर्ा
अन्य अनेक िेत्रों के ग्रन्र्ों और रचनाओिं का अनवाद भी होने लगा है। प्राचीन युग के अनुवादों की तुलना में
आधुतनक युग के अनुवाद द्ववपिीय (बहुपिीय) रूप में होते हैं। आधुतनक युग में अनुवाद का आगर्थक और
राजनीततक महत्त्व भी प्रततजष्ठत हो गया है। ववलभन्न राष्रों के मध्य राजनीततक, आगर्थक और सािंस्कृ ततक
अनुबन्धों के प्रपत्र के द्ववभावषक पाठ तैयार ककए जाते हैं। बहुराष्रीय सिंस्र्ाओिं को एक से अगधक भाषाओिं का
प्रयोग करना पड़ता है। सिंयुक्त राष्र में प्रत्येक कायथ पाँच या छः भाषाओिं में ककया जाता है। इन सब में अतनवायथ
रूप से अनुवाद की आवश्यकता होती है।
• इस जस्र्तत का औगचत्य भी है। आधुतनक युग में हुई औद्योगगक, प्रौद्योगगक, आगर्थक और राजनीततक िाजन्त के
फलस्वरूप ववश्व के राष्रों में एक-दूसरे के तनकट सम्पकथ की आवश्यकता की चेतना का अतीव शीघ्र ववकास हुआ,
उसके कारण अनुवाद को यह महत्त्व लमलना स्वाभाववक माना जाता है। यही कारण है कक यहद प्राचीन युग की
प्रेरक शजक्त अनुवादक की व्यजक्तगत रुगच अगधक र्ी, तो आधुतनक युग में अनुवाद की सामाजजक-आगर्थक-
राजनीततक आवश्यकता एक प्रबल प्रेरक शजक्त बनकर सामने आई है। इस जस्र्तत के अनेक उदाहरण लमलते हैं।
भाषायी अल्पसिंख्यक वगथ के लेखकों की रचनाएँ दूसरी भाषाओिं में अनूहदत होकर अगधक पढ़ी जाती हैं। अपेिाकृ त
छोटे तर्ा बहुभाषी राष्रों को अपने देश के भीतर ही ववलभन्न भाषाभाषी समुदायों के मध्य सम्पकथ स्र्ावपत करने
की समस्या का सामना करना पड़ता है।
12. तनष्कषथ:-
• अत; कहा जा सकता है की आज के युग में अनुवाद का अत्यगधक योगदान है|
सरकारी कायथलय से लेकर ववश्व सिंस्कृ तत तर्ा अिंतराथष्टीय सम्बन्धों में अनुवाद का
स्र्ान महत्वपूणथ है आज के वैज्ञातनक युग में अनुवाद बहुत महत्त्वपूणथ हो
गया है। यहद हमें दूसरे देशों के सार् किं धे से किं धा लमलाकर चलना है
तो हमें उनके यहाँ ववज्ञान के िेत्र में, सामाजजक एविं सािंस्कृ ततक िेत्र में
हुई प्रगतत की जानकारी होनी चाहहए और यह जानकारी हमें अनुवाद
के माध्यम से लमलती है| अनुवाद के माध्यम से हम मानवीय एविं
भावात्मक एकता के के न्द्र बबन्दु तक पहुँच सकता है और यही अनुवाद
की आवश्यकता और उपयोगगता का सशस्त एविं प्रत्यि प्रमाण है।