1. BANARAS HINDU UNIVERSITY
VARANASI
P.G. Diploma in Yoga Education
Topic: षटकर्म क्रिया
Submitted to : Dr. Shashikant Dwivedi
Submitted by : Ravikant Chaurasiya (PGDYE1)
3. नेति क्रिया से करें मनुष्य रूपी
यंर की सफाई
नाससका हमारे शरीर का मुख्य प्राण मार्ग है इससलए हमें शुद्ध प्राणवायु लेने क
े सलए
इस नाससका रुपी मार्ग का शोधन करना बहुि ही जरुरी है। इसी मार्ग क
े कमजोर होने
से असहहष्णुिा (एलजी) पूरे शरीर में पैदा हो जािी है।
इस क्रिया क
े करने से नजला-जुकाम, कफ, सायनोसाइहटस, अतनद्रा, चेहरे क
े पक्षाघाि,
मस्स्त्िष्क में जाने वाले रक्ि की शुद्धध आहद लाभ प्राप्ि होिे है।
इस शोधन क्रिया क
े बाद नाससका मार्ग पुरी िरह से शुद्ध हो जािा है िथा प्राणवायु
पूरी मारा में शरीर में पहुचने लर्िी है।
नेति क्रिया कई प्रकार की होिी है जैसे रबर नेति या सूर नेति, जल नेति, दुग्ध नेति,
घृि नेति, िेल नेति आहद। लेक्रकन नेति क्रिया मुख्यि दो प्रकार की होिी है सूर नेति
व जल नेति।
रबड़ की नली एक बहुि ही सुलभ व आसानी से प्राप्ि होने वाली नेति है। इसका एक
ससरा र्ोल बराबर में तिद्र होकर आर्े से बंद होिा है िथा दूसरा ससरा खुला होिा है।
इसको भी र्मग पानी में धोकर सरसों का िेल लर्ाकर आसानी से धीरे-धीरे नाससका क
े
अंदर प्रववष्ठ करे और उसी प्रकार िजगनी व मध्यमा क
े द्वारा मुख क
े अंदर से बाहर
तनकाल लें और दूध बबलोने जैसी क्रिया करे।
4. नेति क्रिया क
े दौरान बरिे सावधातनयाां
इस क्रिया को धीरे-धीरे करे क्योंक्रक नाससका क
े अंदर र्ुलाब की पंखुड़ी जैसा
कोमल मार्ग है।
पहली बार सूर नेति करने से पहले और सूरनेति करने क
े बाद में दोनों नाससका
तिद्रों में बादाम रोर्न, सरसों का िेल या र्ऊ घृि अवश्य नाससका में डालना
चाहहए।
नेति क्रिया क
े लाभ
नेति कपाल की शोधक, कमल जैसे आंखों की ज्योति को बढाने वाली एवं क
ं ठ क
े
ऊपर क
े समस्त्ि रोर्ों को दूर करने वाली है।
साधारण रुप से यह क्रिया जुकाम, खांसी, नजला एवं अन्य कफववकारों को दूर
करिी है। नेति क्रिया का उद्देश्य क
े वल नाससका मार्ग की शुद्धध ही नहीं बस्कक
इसमें स्स्त्थि श्लेषमा झिकली को बाह्य वािावरण में होने वाले बदलाव धूल, धुआं,
र्मी, ठंड िथा कीटाणु आहद को सहन करने में पूरी िरह सक्षम बनाना है।
यह क्रिया नाक व क
ं ठ क
े अन्दर की र्ंदर्ी को बाहर तनकाल कर नाक की नली
को साफ करिी है। इस क्रिया क
े तनयसमि करने से क
ं धे से ऊपर क
े सभी रोर्
समाप्ि हो जािे है।
5. कपालभाति
कपालभाति क्रिया योर् में षटकमग अथवा हठयोर् की एक क्रिया है।
संस्त्कृ ि में कपाल का अथग होिा है माथा या ललाट और भाति का अथग होिा है िेज़।
कपालभाति क्रिया को तनयसमि रूप से करने पर मुख पर आंिररक िेज उत्पन्न होिा
है।
कपालभाति क्रिया करने की ववधध
1. कपालभाति क्रिया करने क
े सलए सबसे पहले सीधे खड़े होकर दोनों पांवों में करीब 15 इंच का फासला
रखें।
2. अब सामने की िरफ िुककर दोनों हाथ पीिे ले जाए और हाथों की उंर्सलयों को आपस में फ
ं सा कर
रखे।
3. पहले बाई िरफ र्दगन को िुका कर जोर से श्वास को बाहर तनकाले।
4. अब स्त्वास लेिे हुए एक दाहहनी और र्दगन को िुका कर श्वास को बाहर तनकाले।
5. इस प्रकार दोनों और करीब दस-दस बार इस क्रिया को करें।
6. कपालभाति क्रिया में स्त्वास ध्वतन क
े साथ होना चाहहए।
7. स्त्वाभाववक रूप से नाक क
े नथुनो में कफनुमा मैले द्रव का स्राव होिा रहिा है। क्रकं िु बाहरी हवा लर्ने
से वह सूख जािा है और नाससका तिद्रों में धचपक जािा है। जल नेति क्रिया से यह मुलायम होकर
नाससका दीवारों से अलर् होकर कपालभाति क्रिया में बाहर फ
ें क हदया जािा है।
6. कपालभाति क्रिया क
े लाभ
i. कपालभािी से नाक की नली में जमा मैल का अंश व समट्टी क
े जमा कण बाहर
तनकल जािे हैं।
ii. श्वास नसलका की स्त्वास ग्रहण करने की व तनकालने की क्षमिा बढ जािी है।
आर्े इससे प्राणायाम करने में सुववधा होिी हैं।
iii. इस क्रिया से र्ले की खराश, सूजन, ससरददग, एवं कफ जैसी िकलीफ
ें दूर हो जािी
है।
iv. कपालभाति क्रिया करने से माथे और चेहरे पर चमक आिी हैं।
v. कपालभाति क्रिया करने से हृदय, फ
े फड़े िथा थायराइड संबंधी ववकार दूर होिे
हैं।और श्वास र्हरी बनिी है।
vi. कपालभाति क्रिया में पेट क
े बार-बार अंदर जाने से आंिररक अंर्ों पर दबाव बनिा
है स्जससे अमाशय, यकृ ि, क्रकडनी और पेनक्रियाज की सेहि सही बनी रहिी है।
vii. कपालभाति क्रिया रक्ि को शुद्ध करिी है िथा रक्ि में ऑक्सीजन की मारा को
बढािी है स्जससे शरीर ऊजागवान बना रहिा है।
viii. कपालभाति क्रिया करने का सबसे बड़ा लाभ यह होिा है क्रक यह आपक
े फ
े फड़ों की
क्षमिा में वृद्धध करिा है स्जससे आपकी स्त्वास्त््य लंबी और र्हरी बनिी है।
7. कपालभाति क्रिया करिे समय सावधानी
i. जलनेति करिे समय नमक का पानी काम में सलया जािा है क्रकं िु नमक से
शुष्किा आिी है। अिः शुष्किा को दूर करने क
े सलए कपालभाति क्रिया क
े
पश्चाि क
ु ि घी की बूंदे नाससका में डालनी चाहहए।
ii. समर्ी क
े रोधर्यों, हतनगया और कमर ददग क
े रोधर्यों को कपालभाति क्रकया नहीं
करनी चाहहए।
iii. महहलाओं को र्भागवस्त्था और र्भागवस्त्था क
े िुरंि बाद कपालभाति क्रिया नहीं
करनी चाहहए।
iv. कपाल भाति क्रिया पूणग होने क
े पश्चाि थोड़ी देर ध्यान की अवस्त्था में बैठे रहना
चाहहये।
v. पीसलया और हृदय रोर् से ग्रस्त्ि रोधर्यों को यह क्रिया नहीं करनी चाहहए।
vi. बुखार, दस्त्ि और अत्यधधक कमजोरी होने की स्स्त्थति में कपालभाति क्रिया नहीं
करनी चाहहए ।
vii. प्रदूषण युक्ि वािावरण जैसे की धूल, धुआ, दुर्ंध युक्ि और र्मग वािावरण में
कपालभाति क्रिया नहीं करनी चाहहए।
viii. कपालभािी खाना खाने से पहले करें। खाना खाने क
े 4 घंटे क
े बाद िक
कपालभाति क्रिया ना करें।
8. वस्त्रधौति
‘वस्त्र’ का अथग है कपड़ा। पेट एवं भोजन नली को कपड़े से साफ करने की क्रिया
वस्त्रधौति है। वस्त्रधौति एक अत्यंि लाभकारी शोधन योर् क्रिया है जो पुरे शरीर
को साफ करिे हुए शरीर से ववषैले पदाथग को बाहर तनकालने में मदद करिा है।
शरीर से हातनकारक पदाथग को वस्त्र क
े मदद से तनकाला जािा है।
योधर्क ग्रन्थ हठप्रदीवपका में वस्त्रधौति को इस िरह से दशागया र्या है।
चिुरङ्र्ुलववस्त्िारं हस्त्िपंचदशायिम्।
र्ुरुपहदष्टमार्ेण ससक्िं वस्त्रं शनैग्रगसेि्।
पुनः प्रत्याहरेच्चैिदुहदिं धौतिकमग िि्।। – ह.प्र. 2/24
र्ीले कपड़े की चार अंर्ुल (लर्भर् 4-5 सेंटीमीटर) चौड़ी और 15 हाथ (लर्भर् 6 मीटर)
लंबी पट्टी को धीरे-धीरे तनर्ला जािा है और उसक
े बाद बाहर तनकाल सलया जािा है। इसे
धौति (आंिररक शोधन) कहिे हैं।
9. वस्त्रधौति की ववधध
i. सबसे पहले आप बारीक मुलायम सूिी कपड़े का िीन से िह इंच िक चौड़ा और आठ र्ज लंबा टुकड़ा लें।
ii. कपड़े को पानी और साबुन से अच्िी िरह से धो लें।
iii. उसक
े बाद इसे पांच समनट िक पानी में उबालें।
iv. ठीक से तनचोड़ें िथा साफ स्त्थान पर सुखा लें।
v. कार्ासन में बैठें।
vi. मुंह को पूरा खोलकर कपड़े का एक ससरा र्ले क
े भीिर ले जाएं, दूसरा ससरा जीभ पर फ
ै लाएं और अंर्ुसलयों
को इस िरह बाहर लाएं क्रक कपड़ा उसी िरह रहे।
vii. जीभ हहलाकर कपड़े को धीरे-धीरे तनर्लना आरंभ करें।
viii. यहद कपड़ा र्ले में फ
ं स जािा है और नीचे नहीं जािा है िो एक घूंट र्मग पानी पी लें क्रकं िु अधधक पानी
नहीं वपएं क्योंक्रक पेट में कपड़ा भरना है, पानी नहीं।
ix. कपड़ा तनर्लिे रहें और वमन नहीं होने दें।
x. जब दो-तिहाई कपड़ा तनर्ल लें थोड़ा कपड़ा मुंह से बाहर लटकिा रहने दें।
xi. अब आप खड़े हो जाएं िथा हाथों को घुटनों पर रखें और पेट को बाईं ओर से इस प्रकार घुमािे हुए नौली
क्रिया करें, जैसे क्रकसी समक्सर में सामग्री को मथा जािा है।
xii. दाईं ओर से भी यही क्रिया दोहराएं।
xiii. कपड़ा बाहर तनकालने क
े सलए बाहरी िोर पकड़ें और धीरे धीरे बाहर खींच लें। यहद कोई कहठनाई हो रही
हो िो क
ु ि पानी वपए और क
ु ि कपड़ा तनर्लकर उसे वापस खींचना आरंभ करें। इसक
े करने से कपड़ा
सीधा हो जाएर्ा और आसानी से बाहर आ जाएर्ा।
10. वस्त्रधौति क
े लाभ
खांसी :खांसी क
े सलए यह तनहायि ही लाभदायक योर्ाभ्यास है।
ब्रॉन्काइहटस :ब्रॉन्काइहटस क
े मरीज़ों को इसका अभ्यास करनी चाहहए।
अपच :अपच से सम्बंधधि रोधर्यों क
े सलए यह बहुि फायेदमंद योर्ाभ्यास है।
कफ :कफ को कम करने क
े सलए यह बहुि लाभदायक है।
दमा :दमा क
े उपचार क
े सलए बहुि ही मुफीद योर्ाभ्यास है।
पाचन रस :पाचन रस क
े स्राव एवं पाचन क्रिया को मजबूि बनाने में मदद करिा है।
शस्क्िशाली शरीर :शरीर व्याघ्र क
े शरीर क
े समान शस्क्िशाली हो जािा है।
वजन कम करने में :यह शरीर से अतिररक्ि वसा को दूर करिी है।
कमर पिली करने में:कमर पिली और िािी चौड़ी करने क
े सलए यह उम्दा योर्ाभ्यास है।
अवसशष्ट पदाथग को तनकालने में:अवसशष्ट पदाथग तनकलने क
े कारण अपच की स्स्त्थति का उपचार
वस्त्रधौति सावधातनयाां
ध्यान रहे क्रक कपड़ा िालु से स्त्पशग नहीं करे और जीभ पर ही रहे।
पहले हदन क
े वल आधा र्ज कपड़ा तनर्ला जाना चाहहए।
यहद कपड़ा तनर्लिे समय उलटी करने की जरा सी इच्िा भी होिी है िो मुंह बंद कर लें िथा अपनी
पूरी इच्िा शस्क्ि से उसे रोक
ें ।
वपत्त की समस्त्या से पीड़ड़ि रोधर्यों को र्मग पानी क
े बजाय दूध में कपड़ा सभर्ोना चाहहए।
यहद तनर्लिे समय वमन की इच्िा लर्ािार हो िो कपड़े में शहद लर्ाया जा सकिा है।
लर्भर् आठ इंच कपड़ा मुंह से बाहर लटकिा रहना चाहहए िाक्रक उसे आसानी से खींचा जा सक
े ।यहद
कपड़ा बाहर नहीं आिा है िो अधधक से अधधक पानी पी लें।
इस क्रिया को भोजन करने क
े िीन घंटे बाद िथा चार घंटे क
े भीिर ही करना चाहहए।
इस क्रिया क
े िुरंि बाद दूध और चावल की खीर का सेवन करना चाहहए।
अमाशय/आंर क
े अकसर, हतनगया, उच्च रक्िचाप िथा हृदय रोर् से पीड़ड़ि व्यस्क्ियों को यह क्रिया नहीं
करनी चाहहए।
11. नौली क्रिया
नौली क्रिया में पेट क
े मध्य भार् की मांसपेसशयों को मथानी की भांति संचासलि
क्रकया जािा है। यह क्रिया क
ु ि कहठन अवश्य है क्रकं िु तनरंिर अभ्यास से आप इसे
अच्िी िरह से कर सकिे हैं नौली क्रिया करिे समय आपकी आंखें पेट की ओर
होनी चाहहए। नौली क्रिया षटकमों क
े शुद्धधकरण की चौथी क्रिया है। जठरास्ग्न को
बढाने वाली इस क्रिया में पेट की मांसपेसशयों की मासलश हो जािी हैं िथा उदर क्रक
क्रियाशीलिा में वृद्धध होिी हैं।
नौली क्रिया क
े अत्यधधक अभ्यास से क
ुं डसलनी जार्रण होिा है इस कारण नौली
क्रिया को शस्क्िचासलनी भी कहिे हैं। नौली क्रिया का पूणग अभ्यास करने पर शरीर
में एक शस्क्िशाली योर् बल का प्रसार होिा है स्जसक
े द्वारा बस्त्िी क्रिया और
शंखप्रक्षालन ससद्ध हो जािी है। और शरीर ववकार रहहि शुद्ध और कांतिमान होकर
चमकने लर्िा है।
12. नौली क्रिया करने की ववधध
I. सवगप्रथम दोनों पाव फ
ै लािे हुए और घुटनों को थोड़ा मोड़िे हुए खड़े हो जाए।
II. अब अपने दोनों हाथों को सामने की िरफ लाए और घुटनों व दोनों जंघाओ पर रख ले।
III. ध्यान रहे क्रक दोनों पाव क
े बीच थोड़ा अंिर हो और हाथ घुटनों पर ही हो।
IV. आप पहले उड्ड़डयानबंध का अभ्यास करें। श्वास को बाहर िोड़िे हुए पेट को बार-बार फ
ु लाए
और धचपकाए।
V. अब पेट क
े दानों और दाएं बाएं नौली क्रिया का अभ्यास करें। इसक
े सलए दाई और की हथेली
पर जोर डालिे हुए नौली को दाएं िरफ लाए िथा बाई हथेली पर जोर डालिे हुए नौली को
पेट क
े बाई और लाऐ।
VI. ध्यान रहे क्रक नौली क्रिया की समस्त्ि क्रियाए श्वास िोड़िे हुए ही की जािी हैं।
नौली क्रिया करने की अन्य ववधधयाां।
• उड्ड़डयानबंध
• वामननौली
• दक्षक्षण नौली
• मध्यमा नौली
उड्डियानबांध – उधर िथा पेट की आंिों को अंदर की िरफ खींचने की प्रक्रिया को उदड्ड़डयानबंध नौली कहा
जािा है। इस क्रिया में उधर को स्जिना हो सक
े उिना अंदर की िरफ खींचिे हैं
वार्ननौली – उद्ड्ड़डयानबंध क्रिया क
े पश्चाि नौली को बीच में से ढीला िोड़िे हैं और क्रफर इसे बाई ओर ले
जािे हैं।
दक्षिण नौली – वामननौली क
े पश्चाि दक्षक्षण नौली की क्रिया की जािी है इसमें उदर को दाई ओर ले जािे हैं
ध्यान रहे क्रक उदर अंदर की िरफ खींचा हुआ रहे
र्ध्यर्ा नौली – इस क्रिया में नौली को बाएं से दाएं ओर ले जािे हैं और क्रफर दाई से बाई ओर लािे हैं
13. नौली क्रिया क
े लाभ
1. नौली क्रिया करने से कब्ज की समस्त्या दूर होिी है िथा मोटापा घटिा है।
2. महहलाओं में माससक धमग संबंधी ववकार दूर होिे हैं
3. नौली क्रिया करने से व्यस्क्ि को भूख अधधक लर्िी है अथागि भूख में वृद्धध होिी है।
4. इससे मंदास्ग्न दूर होिी है। वायु र्ोला जैसी बीमारी पास िक नहीं फटकिी है।
5. नौली क्रिया र्ैस एससड़डटी को खत्म करने क
े साथ-साथ पेट की मांसपेसशयों को मजबूि बनािी है।
और आंिों क
े सलए भी फायदेमंद है।
6. इससे मूर ववकार दूर होिे हैंaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa]और बार बार पेशाब जाने की समस्त्या से ि
ु टकारा
समलिा है।
7. यह क्रिया तिकली ,यकृ ि और पेट से संबंधधि बीमाररयों में राहि हदलािी है। इससे समस्त्ि प्रकार
क
े पेट की समस्त्या और वायु ववकार दूर हो जािे हैं।
8. नौली क्रिया करने से क
ुं डसलनी शस्क्ि का जार्रण होिा है। स्जससे शरीर कांतिमय बनिा है और
शरीर में िेज उत्पन्न होिा है।
9. नौली क्रिया करने से उदरर्ि मांसपेसशयों की क्रियाशीलिा बढिी है स्जससे वहां पर रक्ि का
संचार सही रहिा है।
नौली क्रिया करने का सर्य और अवधध।
नौली क्रिया को करने क
े सलए प्रािः काल का समय सबसे उपयुक्ि माना र्या है। प्रािः काल ब्रह्म
मुहूिग में उठकर शौच आहद से तनवृि होने क
े पश्चाि नौली क्रिया करनी चाहहए।
नौली क्रिया को कब और क्रकिनी देर करें।
इस क्रिया को 10 से 15 बार दोहराना चाहहए। अथवा आपक
े पेट की मांसपेसशयों में स्जिनी क्षमिा
है उसक
े अनुरूप इस क्रिया को कर सकिे हैं।
14. नौली क्रिया करिे समय सावधातनयां
आंिों क
े ववकार या सूजन की अवस्त्था में योर् क
े अभ्याससयो को नौली
क्रिया नहीं करनी चाहहए। अन्यथा लाभ की जर्ह हातन होने की आशंका
बनी रहिी है।
नौली क्रिया करिे समय हमेशा पेट को खाली रखें खाना खाने क
े बाद नौली
क्रिया कभी भी ना करेंA
र्भागवस्त्था अथवा माससक’धमग में महहलाओं को नौली क्रिया नहीं करनी
चाहहए।
यहद व्यस्क्ि को पेट से संबंधधि कोई ववकार है अथवा ऑपरेशन की स्स्त्थति
में नौली क्रिया नहीं करनी चाहहए।
यहद र्ुदे अथवा वपत्ताशय में पथरी हो िो नौली क्रिया का अभ्यास ना करे।
शुरुआि में जब आप नौली क्रिया सीख रहे हो िब इसे क्रकसी ववशेषज्ञ की
देखरेख में ही करें।
15. बस्त्िी क्रिया
हठ योर् क
े दौरान एतनमा करने की क्रिया को बस्त्िी क्रिया कहा जािा है। यह क्रिया
उदर और मलाशय क
े शोधन की क्रिया होिी है।
बस्त्िी क्रिया से आंिो से मल पूणग रूप से साफ हो जािा है। बस्त्िी क्रिया उदर
सम्बन्धी बीमाररयो को दूर करने में सहायक होिी है।
बस्त्िी क्रिया को दो प्रकार से क्रकया जािा है जल बस्त्िी और स्त्थल बस्त्िी।
बस्त्िी क्रिया का उद्देश्य शरीर से ववष को हटाना और शरीर को ठंडा करना होिा है।
इस क्रिया को करने से नींद अच्िी आिी है साथ ही आलस्त्य भी दूर हो जािा है।
16. बस्त्िी क्रिया क्रक ववधध
i. इस क्रिया को करने क
े सलए एक टब लीस्जये स्जसमे आप
आसानी से बैठ सक
े ।
ii. पानी इिना होना चाहहए क्रक पानी नासभ िक पहुंच जाना
चाहहए।
iii. इसक
े बाद उस टब में उत्कटासन में पंजो क
े बल बैठ जाए
और उड्ड़डयान बंध करिे हुए अथागि पेट क
े अन्दर खीचिे
हुए आंिो का आक
ुं चन करे।
iv. इसक
े बाद 1 सेक
ं ड रुक
े और क्रफर से खीचे। ऐसा करने से
पानी आंिो िक पहुुँच जािा है।
v. जब पानी आंिो में भर जाए िो पेट को नौली क्रिया द्वारा
4 -5 बार दाये व बाये घुमाये।
vi. अब आंिो में भरे पानी को र्ुदा द्वार से बाहर तनकाल दे ।
17. बस्त्िी क्रिया क
े फायदे
वस्स्त्ि क्रिया क
े द्वारा वाि, वपत्त, कफ से सम्बंधधि रोर् दूर हो जािे है।
यह चेहरे पर कांति लािा है और चमक को बढािा है।
कब्ज़ रोर् ठीक हो जािा है।
बस्त्िी क्रिया व्यस्क्ि को पूणग आरोग्यिा देिी है। यह शरीर की आयु और िेज
को बढािी है।
यह क्रिया यौन कमज़ोरी को दूर करिी है । साथ ही शारीररक दुबगलिा को भी
दूर करने में मदद करिी है।
बस्त्िी क्रिया की सावधानी
इस क्रिया को प्रसशक्षक क्रक उपस्स्त्थति में ही करे।
पानीसाफहोना चाहहए
18. राटक क्रिया
राटक क्रिया ध्यान की एक ववशेष प्रक्रिया है। इसमें ध्यान का मूल आधार एकाग्रिा है और
उसका चरमलक्ष्य साधक, साधन और साध्य की बरपुटी का ववलय भी।
राटक क्रिया करने क
े कई ववधान हैं और उनक
े अलर्-अलर् र्ुण भी हैं। योर् शास्त्रों में क्रकसी
वस्त्िु या इष्ट देविा की मूतिग पर दृस्ष्ट स्स्त्थर करने को राटक कमग कहा र्या है।
राटक की पूरी ववधध
i. अंधेरे कमरे में अक
े ले ध्यान की सहज मुद्रा अथागि सुखासन में बैठ जाएं। ससर िथा पीठ को सीधा रखें।
१० से पंद्रह लंबी र्हरी सांस ले, इससे मन में चल रहे इधर उधर क
े ववचार बंद हो जाएंर्े िथा आप पूणग
रूप से विगमान में आ जाएंर्े।
ii. हदया जलाकर क्रकसी ऊ
ं चे स्त्थान पर रखें, ऊ
ं चाई इिनी हो क्रक आपक
े नेरों क
े बराबर में जलिी हुई लौ हो।
हदए को आंखों से दो से ढाई फ
ु ट की दूरी पर रखें।
iii. आंखें बंद कर क
ु ि लंबी सांस लेने क
े बाद आंखों को खोलें िथा ध्यान को जलिी हुई लौ पर हटका दें।
खास ध्यान यह दें क्रक नज़रे हदए पर िथा मन में ववचार क
ु ि और चल रहे हैं, ऐसा ना हो। आपका पूरा
ध्यान हदए की लौ पर रखें।
iv. राटक िब िक एकटक देखिे रहें जब िक आंखें थक ना जाए या क्रफर उनमें पानी आ जाए। शुरू में शायद
आप कम समय िक टकटकी लर्ा सक
ें क्रकन्िु तनरंिर अभ्यास से अवधध बढिी जाएर्ी।
v. एक हदन में, एक समय में कम से कम ५-१० बार इसका आभास करें। इस अभ्यास को िब िक जारी रखें
जब िक आप सामान्यिः १०-१५ समनट िक आंखों को खुला रख सक
ें ।
vi. सबसे महत्वपूणग है क्रक बबना पलक
ें िपकाए क्रकिनी देर िक आपका ध्यान हदए की लौ पर रहिा है। इस
बाि का खास ध्यान रखें, क्योंक्रक यही आपक
े Growth का हहसाब बिािा है।
19. राटक क्रिया क
े लाभ
नेरों क
े रोर् नष्ट होिे हैं।
दृस्ष्ट िीव्र होकर दूरदसशगनी बन जािी है।
िंद्रा, तनद्रा व आलस्त्य दूर भार्िे हैं ।
धचत्तवृवत्त सूक्ष्म लक्ष्य में स्स्त्थर होिी है।
एकाग्रिा व स्स्त्थरिा आिी है।
राटक करिे समय सावधातनयां
राटक क्रिया करने से पहले अतनवायग रूप से योग्य सशक्षक/र्ुरु से संपक
ग करें।
राटक साधना का र्ुप्ि रूप से, अंधेरे में िथा एकांि में करें।
स्जन्हें नेर सम्बन्धी कोई र्ंभीर बीमारी है, इसे शुरू करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह
ज़रूर लें।
यहद कमरे में पंखा चलाना हो िो दीए को इस प्रकार रखें क्रक पंखे क्रक हवा उसे प्रभाववि ना
करे।
राटक का प्रयोर् कर जीवन में उसका संपूणग लाभ लेने क
े सलए कम से कम २१ हदन िक
लर्ािार साधना करें।