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भाव
स्थायी भाव क
े साथ ववभाव, अनुभाव और संचारी भाव क
े संयोग से प्राप्त चामत्ािरक आनंद-
ववशेष को रस कहते हैं।
(१) संचारी भाव/व्यभभचारी भाव - संचारी का अथथ है- साथ साथ संचरण करने वाला अथाथत् साथ-
साथ चलने वाला। संचारी भाव वकसी न वकसी स्थायी भाव क
े साथ प्रकट होते हैं। ये
क्षवणक,अस्थायी और परावित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये वकसी एक स्थायी
भाव क
े साथ न रहकर सभी क
े साथ संचरण करते हैं , इसवलए इन्हें व्यवभचारी भाव भी कहा जाता
है।
* संचारी भाव या व्यभभचारी भाव 33 होते हैं :--
१- अपस्मार(मतूर्ाथ) १२- चपलता २३- लज्जा
२- अमतषथ(असहन) १३- वचन्ता २४- ववबोध
३- अलसता १४- जड़ता २५- ववतक
थ
४- अववहत्था(गुप्तभाव) १५- दैन्य २६- व्यावध
५- आवेग १६- धृवत २७- ववषाद
६- असूया १७- वनद्रा २८- शंका
७- उग्रता १८- वनवेद(शमत) २९- िमत
८- उन्माद १९- मतवत ३०- संत्रास
९- औत्सुक्य २०- मतद ३१- स्मृवत
१०- गवथ २१- मतरण ३२- स्वप्न
११- ग्लावन २२- मतोह ३३- हषथ
अनुभाव
अनुभाव का अथथ है- वकसी भाव क
े उत्पन्न होने क
े बाद उत्पन्न होने वाला
भाव।तात्पयथ यह वक जब वकसी क
े हृदय मतें कोई भाव उत्पन्न होता है और
उत्पन्न भावों क
े पिरणामत स्वरूप वह जो चेष्टा करता है या उसमतें जो
वियात्मकता आती है , उस चेष्टा या वियात्मकता को अनुभाव कहते हैं।
जैसे - िोध का भाव जगने पर.....
कााँपना , दााँत पीसना,मतुट्ठी भींचना,गुराथना,आाँखें लाल हो जाना आवद
अनुभाव हैं।
अनुभाव दो प्रकार क
े होते हैं :-
(अ) साधारण अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब
आिय (वजसक
े मतन मतें भाव उत्पन्न हुआ है) जान- बूझ कर
यत्नपूवथक कोई चेष्टा , अवभनय अथवा विया करता है,तब ऐसे
अनुभाव को साधारण या यत्नज अनुभाव कहते हैं।
जैसे :- बहुत प्रेमत उमतड़ने पर गले लगाना
िोध आने पर धक्का देना आवद साधारण या यत्नज अनुभाव हैं।
(आ) - सात्विक अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब आिय
(वजसक
े मतन मतें भाव उत्पन्न हुआ है) द्वारा अनजाने मतें अनायास, वबना
कोई यत्न वकए स्वाभाववक रूप से कोई चेष्टा अथवा विया होती है,तब
ऐसे अनुभाव को सात्विक या अयत्नज अनुभाव कहते हैं।
जैसे - डर से जड़वत् हो जाना , पसीने पसीने होना , कााँपना
चीख पड़ना , हकलाना और रोना आवद सात्विक या अयत्नज अनुभाव हैं।
रस
1. शंगार रस
जब नायक और नावयका मतें एक आिय तथा दू सरा आलम्बन हो अथवा
प्राक
ृ वतक उपादान , कोई क
ृ वत अथवा वकसी का गायन-वादन आलंबन
हो और दशथक, पाठक या िोता आिय हो और वे ववभाव, सम्बत्वित
अनुभाव और संचारीभाव से पिरपुष्ट हों , वहााँ रवत नामतक स्थायीभाव
सविय हो जाता है, रवत क
े सविय होने से शंगार रस की उत्पवि होती
है।
शंगार रस क
े दो भेद होते हैं -
(क) संयोग शंगार (ख) ववयोग शंगार ।
(क) संयोग शंगार - जहााँ आलंबन और आिय क
े बीच परस्पर मतेल-
वमतलाप और प्रेमतपूणथ वातावरण हो , वहााँ संयोग शंगार होता है ।
स्थायी भाव - रवत
संचारी भाव - लज्जा , वजज्ञासा ,उत्सुकता आवद ।
आलंबन - नायक , नावयका , गायन - वादन ,
क
ृ वत अथवा प्राक
ृ वतक उपादान ।
आश्रय - नायक , नावयका , िोता या दशथक ।
उद्दीपन - व्याप्त सौन्दयथ आवद ।
अनुभाव - नायक , नावयका , िोता या दशथक का
मतुग्ध होना , पुलवकत होना आवद।
जैसे -
ये रेशमती जुल्फ
ें , ये शरबती आाँखें
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
ये रेशमती जुल्फ
ें , ये शरबती आाँखें
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
जो ये आाँखे शरमत से, झुक जाएं गी
सारी बातें यहीं बस, रुक जाएं गी
जो ये आाँखे शरमत से, झुक जाएं गी
सारी बातें यहीं बस, रुक जाएं गी
चुप रहना ये अफसाना,
कोई इनको ना बतलाना वक
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
जुल्फ
ें मतग़रूर इतनी, हो जाएं गी
वदल तो तड़पाएं गी, जी को तरसाएं गी
जुल्फ
ें मतग़रूर इतनी, हो जाएं गी
वदल तो तड़पाएं गी, जी को तरसाएं गी
ये कर देंगी दीवाना,
कोई इनको ना बतलाना वक
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
ववशेष-
* इसमतें नावयका आलंबन है।
* नायक आिय हैं।
* नावयका की आाँखें और जुल्फ
ें आवद उद्दीपन है,
* आाँखों का शरबती होना , झुकना ,जुल्फों का मतग़रूर होना
और वदल को तड़पाना आवद अनुभाव है।
* आाँख झुकते ही बातों क रुक जाना , आाँखों क
े अफसाने को
र्ु पाना , जुल्फों पर दीवाना होना आवद संचारी भाव है।
(ख) भवयोग शंगार - जहााँ आलंबन और आिय क
े बीच
परस्पर दू री ,ववरह अथवा तनावपूणथ वातावरण हो , वहााँ
ववयोग शंगार होता है ।
स्थायी भाव - रवत
संचारी भाव - उदासी , दुख, वनराशा आवद ।
आलंबन - ववरहाक
ु ल नायक-नावयका , उदास गायन-वादन
, दुखड़ी क
ृ वत अथवा ववनष्ट प्राक
ृ वतक उपादान ।
आश्रय - ववरहाक
ु ल नायक-नावयका ,उदास िोता या दुखी
दशथक ।
उद्दीपन - व्याप्त दुखदायी कारण और वातावरण आवद ।
अनुभाव - नायक , नावयका , िोता या दशथक का हतास ,
उदास और वनरास होना आवद।
जैसे -
लगी आज सावन की विर वो झड़ी है
लगी आज सावन की विर वो झड़ी है
वही आग विर सीने मतें जल पड़ी है
लगी आज सावन की ...
विर वो झड़ी है
क
ु र् ऐसे ही वदन थे वो जब हमत वमतले थे
चमतन मतें नहीं ि
ू ल वदल मतें त्वखले थे
वही तो है मतौसमत मतगर रुत नहीं वो
मतेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है
लगी आज सावन की ...
कोई काश वदल पे बस हाथ रख दे
मतेरे वदल क
े टुकड़ों को एक साथ रख दे
मतगर यह हैं ख्वाबों ख्यालों की बातें
कभी टू ट कर चीज कोई जुड़ी है
लगी आज सावन की ..
भवशेष-
* इसमतें नावयका आलंबन है।
* ववरहाक
ु ल नायक आिय हैं।
* सावन की झड़ी , ववरह , नावयका की याद आवद
उद्दीपन है|
* बीते वदनों को याद करना , मतौसमत को देख दुखी होना
, रोना , टू टे वदल क
े न जुड़ पाने का अफसोस करना
और वनरास हताश तथा उदास आवद होना अनुभाव है।
* उदासी , दुख और वनराशा आवद संचारी भाव है।
2. वीर रस
स्थायी भाव उत्साह जब ववभाव , संबंवधत अनुभावों
और संचारी भावों क
े सहयोग से पिरपुष्ट होता है, तब
वीर रस की उत्पवि होती है ।
स्थायी भाव - उत्साह
संचारी भाव - गवथ, हषथ, रोमतांच, आवेग, ग्लावन
आलंबन - शत्रु, दीन, संघषथ
आश्रय - उत्साही व्यत्वि
उद्दीपन - सेना, रणभेरी, शत्रु की बातें, जयकार,
समतथथन आवद ।
अनुभाव - दहाड़, रोंगटे खड़े होना, आिमतण, हुाँकार
आवद।
अपनी तलवार दुधारी ले,
भूखे नाहर सा टू ट पड़ा ।
कल कल मतच गया अचानक दल,
अविन क
े घन सा ि
ू ट पड़ा ।
राणा की जय, राणा की जय,
वह आगे बढ़ता चला गया ।
राणा प्रताप की जय करता ,
राणा तक चढ़ता चला गया ।
रख वलया र्त्र अपने सर पर,
राणा प्रताप मतस्तक से ले ।
ले सवणथ पताका जूझ पड़ा ,
रण भीमत कला अंतक से ले ।
झाला को राणा जान मतुगल ,
विर टू ट पड़े थे झाला पर ।
वमतट गया वीर जैसे वमतटता ,
परवाना दीपक ज्वाला पर ।
झाला ने राणा रक्षा की ,
रख वदया देश क
े पानी को ।
र्ोड़ा राणा क
े साथ साथ ,
अपनी भी अमतर कहानी को ।
भवशेष -
* इसमतें मतुगल सेना आलंबन है।
* राणा प्रताप का सेनापवत झाला आिय है।
* देश-भत्वि , वीरता , त्याग और बवलदान आवद
संचारी भाव है।
* राणा की जय- जयकार , भीषण मतार-काट , हुाँकार
भरना , मतुगलों को भ्रवमतत करना आवद उद्दीपन है।
* शत्रुओं पर टू ट पड़ना , राणा प्रताप का र्त्र अपने
सर पर रख लेना , अपना बवलदान देना आवद अनुभाव
है।
3. करूण रस
आलंबन क
े दुख हावन अथवा मतृत्यु क
े शोक से उत्पन्न दया अथवा
सहानुभूवत क
े कारण आिय मतें इस की उत्पवि होती है।
स्थायी - शोक
संचारी - ग्लावन, मतोह, स्मृवत, वचंता, दैन्य, ववषाद, उन्माद ।
आलंबन - अपनों का मतरण, दुरावस्था, गरीब, अपावहज, दुघथटना, आवद।
आश्रय - शोक - ग्रस्त व्यत्वि ।
उद्दीपन - आघात करने वाला, हावनकताथ, अपनों की याद, दुघथटना आवद।
अनुभाव - रोना-धोना, वगड़वगड़ाना, आह, वच्ार, प्रलाप, र्ाती पीटना।
जैसे -
वह आता--
दो टू क कलेजे क
े करता पर्ताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों वमतलकर हैं एक,
चल रहा लक
ु वटया टेक,
मतुट्ठी भर दाने को-- भूख वमतटाने को
मतुाँह िटी पुरानी झोली का ि
ै लाता--
दो टू क कलेजे क
े करता पर्ताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ ि
ै लाये,
बायें से वे मतलते हुए पेट को चलते ,
और दावहना दया दृवष्ट-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य ववधाता से क्या पाते ?
घूाँट आाँसुओं क
े पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पिल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे क
ु िे भी हैं अड़े हुए।
भवशेष-
* इसमतें भीखमतंगा आलंबन है।
* कवव का हृदय आिय है।
* भीखमतंगे और उसक
े बच्चों की दुरावस्था उद्दीपन है ।
* िटी झोली ि
ै लाना, लक
ु वटया टेककर चलना, पेट मतलना ,
क
ु िे द्वारा हाथ से पिल र्ीन लेना अनुभाव है।
* गरीबी, बदहाली, दीनता आवद संचारी भाव है।
4. हास्य रस
जहााँ भकन्ीं भवभचत्र त्वस्थभतयों या पररत्वस्थभतयों द्वारा हाँसी उत्पन्न होती हो,
वहााँ हास्य रस होती है।
स्थायी - हास
संचारी - खुशी, प्रसन्नता, चंचलता, चपलता, उत्सुकता |
आलंबन - वववचत्र त्वस्थवत, बात, वेश, आक
ृ वत भाषा, हावभाव, कायथ आवद।
आश्रय - हाँसाने वाले, पात्र (जोकर, अवभनेता), दशथक, िोता।
उद्दीपन - हाँसाने वाले क
े हाव-भाव, बातें, वियाएाँ , चेष्टाएाँ , त्वस्थवतयााँ, यादें आवद।
अनुभाव - ठहाका, पेट वहलना, दााँत वदखना, पेट पकड़ना, मतुाँह लाल होना,
चेहरा चमतकना, आाँखों मतें पानी आना आवद।
जैसे
-
बकिरया वर्ल्थ वार करना चाहती है,
शेर से तकरार करना चाहती है,
मतोदी जी क
े राज मतें बकरी - पड़ोसी,
मतें-मतें-मतें वमतवमतयार करना चाहती है।
भवशेष -
* इसमतें पड़ोसी बकरी आलंबन है।
* कवव का हृदय आिय है।
* बकरी की अवस्था उद्दीपन है।
* वर्ल्थ वार की चाह तैयारी और वमतवमतयार करना अनुभाव है।
5. रौद्र रस
जहााँ िोध, वैर ,अपमतान अथवा प्रवतशोध का भाव वभन्न-वभन्न संचारी भावों,ववभावों और
अनुभावों क
े कारण िमतश: बढ़ते हुए सीमता पार कर जाए वहााँ रौद्र-रस अवभव्यत्वि होता
है।
स्थायी - िोध
संचारी - गवथ, घमतंड, अमतषथ, आवेग, उग्रता आवद।
आलंबन - शत्रु, ववरोधी, अपराधी, िोध का कारण।
आश्रय - िोवधत व्यत्वि ।
उद्दीपन - शत्रुतापूणथ कायथ, ववरोध, अपमतान, कटुवचन, आज्ञा का उल्लंघन, वनयमत-भंग
आवद।
अनुभाव - आाँखें लाल होना, कााँपना, ललकारना , हुाँकारना , शस्त्र उठाना, कठोर वाणी,
गुराथना, हााँिना, चीखना आवद।
कौरव क्र
ू रता
अभभमन्यु का वध
अजुुन रोष
प्रभतज्ञा पूभतु
उस काल मतारे िोध क
े तन कााँपने उसका लगा,
मतानों हवा क
े वेग से सोता हुआ सागर जगा ।
मतुख-बाल-रवव-समत लाल होकर ज्वाल सा बोवधत हुआ,
प्रलयाथथ उनक
े वमतस वहााँ , क्या काल ही िोवधत हुआ?
युग-नेत्र उनक
े जो अभी थे पूणथ जल की धार-से,
अब रोष क
े मतारे हुए , वे दहकते अंगार - से ।
वनश्चय अरुवणमता-वमतस अनल की जल उठी वह ज्वाल ही,
तब तो दृगों का जल गया शोकािु जल त्ाल ही ।
साक्षी रहे संसार , करता हाँ प्रवतज्ञा पाथथ मतैं ,
पूरा करू
ाँ गा कायथ सब , कथानुसार यथाथथ मतैं ।
जो एक बालक को कपट से मतार हाँसते हैाँ अभी,
वे शत्रु सिर शोक-सागर-मतग्न दीखेंगे सभी
भवशेष -
* इसमतें अवभमतन्यु क
े हत्यारे कौरव आलंबन है।
* अजुथन (पाथथ) आिय है।
* कौरवों का कपट , युद्ध क
े वनयमत तोड़ना , अवभमतन्यु का वध ,
अधमतथ आवद उद्दीपन है,
* आाँखें लाल होना, कााँपना, हुाँकारना, कठोर वाणी, अनुभाव है।
शोकािु , प्रवतज्ञा , उग्रता आवद संचारी भाव है।
अन्य उदाहरण -
हरर ने भीषण हाँकार भकया,
अपना स्वरूप भवस्तार भकया,
डगमग डगमग भदग्गज डोले,
भगवान क
ु भपत हो कर बोले।
जंजीर बढ़ा अब साध मुझे,
हां हां दुयोधन ! बााँध मुझे,
याचना नहीं अब रण होगा,
जीवन जय या की मरण होगा।
टकरायेंगे नक्षत्र भनखर,
बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर,
फन शेषनाग का डोलेगा
,
भवकराल काल मुंह
खोलेगा।
6. भयानक रस
जहााँ भकन्ींपररत्वस्थभतयों वश भय का भाव अभभव्यक्त हो, वहााँ
भयानक रस होता है।
स्थायी - भय
संचारी - वचंता, हावन, आशंका, त्रास आवद।
आलंबन - सन्नाटा, शत्रु-सामतर्थ्थ
आश्रय - भयभीत व्यत्वि
उद्दीपन - दुघथटना, पागलपन, मतूखथता, शत्रु की चेष्टा, भयानक दृश्य आवद।
अनुभाव - कााँपना, पसीना होना, चेहरा पीला होना, वचल्लाना, रोना आवद।
जैसे-
हय–रूण्ड वगरे¸गज–मतुण्ड वगरे¸
कट–कट अवनी पर शुण्ड वगरे।
लड़ते – लड़ते अिर झुण्ड वगरे¸
भू पर हय ववकल वबतुण्ड वगरे।।
वचंग्घाड़ भगा भय से हाथी¸
लेकर अंक
ु श वपलवान वगरा।
झटका लग गया¸ िटी झालर¸
हौदा वगर गया¸ वनशान वगरा।।
कोई नत – मतुख बेजान वगरा¸
करवट कोई उिान वगरा।
रण – बीच अवमतत भीषणता से¸
लड़ते – लड़ते बलवान वगरा।।
क्षण भीषण हलचल मतचा–मतचा
राणा – कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रि पीने को यह
रण – चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।
भवशेष -
* इसमतें मतुगल बादशाह अकबर और उसकी सेना आलंबन है।
* मतेवाड़ क
े सरी राणा प्रताप की तलवार आिय हैं।
* मतुगलों का कपट , भयानक युद्ध , मतुगल सेना का संहार ,
हाथी-घोड़े और शत्रुओं का कटना आवद उद्दीपन है।
* हावथयों का वचंग्घाड़ना , घोड़ों का वहनवहनाना, शत्रुओं का
चीखना-पुकारना , तलवार का चमतकना आवद अनुभाव है।
* प्रचण्ड-प्रहार , शत्रुओं की हताशा, उग्रता आवद संचारी भाव
है।
7. वीभत्स रस
जहााँ वकसी वस्तु, व्यत्वि, स्थान या दृश्य को देखकर घृणा (जुगुत्सा) मतन मतें उत्पन्न हो, वहााँ
वीभत्स रस होता हो।
स्थायी - जुगुत्सा (घृणा) ।
आलंबन - रि, क्षत-ववक्षत शव, वबजवबजाती नावलयााँ आवद।
आश्रय - ि
ै ली हुई गंदगी और सड़ांध, घृणा उत्पन्न करने वाले दृश्य आवद वजसमतें घृणा का
भाव जगे।
उद्दीपन - जख्म िरसना, लाश सड़ना, अंग गलना, नोंचना, घसीटना, िड़िड़ाना,
र्टपटाना ।
अनुभाव - वधक्कारना, थूकना, वमतन करना, भौं वसकोड़ना, नाक बंद करना, मतुाँह घुमताना,
आाँख मतूाँदना आवद।
संचारी - मतोह, ग्लावन, शोक, ववषाद, आवेग, जड़ता, उन्माद ।
जैसे-
सुभट-सरीर नीर-चारी भारी-भारी तहााँ,
सूरवन उर्ाहु , क
ू र कादर डरत हैं ।
ि
े किर-ि
े किर ि
े रु िािर-िािर पेट खात,
काक - क
ं क बालक कोलाहलु करत हैं।
भवशेष -
* इसमतें वीरों क
े क्षत-ववक्षत शव आलंबन है।
* कवव का हृदय आिय है ।
* शव की दुरावस्था, वघसटना ,पेट िटना, आवद उद्दीपन है।
* उर्ाह , क
ू र कादर का डरना, फ
े करना और काक तथा क
ं क
क
े बालकों का कोलाहल करना अनुभाव है।
* ि
े कर - ि
े कर कर पेट िाड़ना और जीव-जन्तुओं मतें शव को
हवथयाने की मतारामतारी, उनका कलह - कोलाहल आवद संचारी
भाव है।
८.अद् भुत रस
जहााँ सुनी अथवा अनसुनी वस्तु/ व्यत्वि / स्थान क
े वववचत्र
एवं आश्चयथजनक रूप को देखकर
ववस्मय हो, वहााँ अद् भुत रस होता है।
स्थायी - ववस्मय ।
संचारी - औत्सुक्य, आवेग, हषथ, गवथ, मतोह, ववतक
थ ।
आलंबन - वववचत्र वस्तु, असामतान्य घटना, ववलक्षण
दृश्य।
आश्रय - ववत्वस्मत या आश्चयथचवकत व्यत्वि ।
उद्दीपन - वस्तु की वववचत्रता, घटना की
नवीनता, दृश्य की ववलक्षणता ।
अनुभाव - मतुाँह िाड़ना, आाँखें बड़ी करना,
भौंह तानना, स्तंवभत होना, जड़वत होना, गद्गद
होना, चुप हो जाना, मतुाँह ताकना, रोमतांवचत होना
आवद ।
जैसे-
सेना – नायक राणा क
े भी
रण देख – देखकर चाह भरे ।
मतेवाड़ – वसपाही लड़ते थे
दू ने – वतगुने उत्साह भरे ।।
क्षण मतार वदया कर कोड़े से
रण वकया उतर कर घोड़े से ।
राणा रण–कौशल वदखा वदया
चढ़ गया उतर कर घोड़े से ।।
क्षण उर्ल गया अिर घोड़े
पर¸
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर ।
वैरी – दल से लड़ते – लड़ते
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर ।।
भवशेष -
* इसमतें राणा प्रताप आलंबन है।
* सैवनकों का हृदय आिय है ।
* युद्ध करते - करते घोड़े से उतरना-चढ़ना , दुश्मन क
े घोड़े पर उर्ल कर
चढ़ जाना, लड़ते-लड़ते घोड़े पर खड़ा हो जाना आवद उद्दीपन है।
* सैवनकों और सेना नायकों का आश्चयथ और चाह भरी नजरों से देखना
अनुभाव है।
* राणा क
े सैवनकों मतें गवथ , दुगुना उत्साह , उनका रण-कौशल, मतातृभूवमत क
े
प्रवत अनुराग आवद संचारी भाव है।
9. शांत रस
जहााँ सांसािरक इच्छाओं क
े शमतन का आनंद हो अथवा सांसािरकता क
े प्रवत वैराग्य भाव
जगता हो, वहााँ शांत रस होता है।
स्थायी - वैराग्य ।
संचारी - हषथ,ग्लावन,धृवत,क्षमता,ववबोध,दैन्य ।
आलंबन - सांसािरक क्षण-भंगुरता , ईिरीय ज्ञान, परोपकार, ईिर पूजा आवद ।
आश्रय - वजसक
े मतन मतें वैराग्य उत्पन्न हो ।
उद्दीपन - संत वचन, प्रवचन, संत - समतागमत, तीथाथटन, सत्संग ।
अनुभाव - आाँखें मतूाँदना, अिु बहाना, ईिर भजना, ध्यानस्थ होना आवद ।
जीवन जहााँ खत्म हो जाता !
उठते-वगरते,
जीवन-पथ पर
चलते-चलते,
पवथक पहुाँच कर,
इस जीवन क
े चौराहे पर,
क्षणभर रुक कर,
सूनी दृवष्ट डाल सम्मुख जब पीर्े
अपने नयन घुमताता !
जीवन वहााँ ख़त्म हो जाता !
भवशेष -
* इसमतें पवथक का जीवन आलंबन है।
* कवव का हृदय आिय है ।
* जीवन-पथ , चौराहा, सूनी दृवष्ट आवद उद्दीपन है।
* चलते-चलते रूकना और सूनी नजरों से पीर्े मतुड़-मतुड़
देखना अनुभाव है।
* जीवन की क्षण भंगुरता का ज्ञान, दृवष्ट मतें सूनापन , मतृत्यु-
बोध आवद संचारी भाव है।
10. वात्सल्य रस
जब अपने या पराए बालक को देखकर या सुनकर उसक
े प्रभत मन में एक सहज
आकषुण या बाल-रभत का भाव उमड़ता हो वहााँ वात्सल्य रस होता है।
स्थायी - संतान प्रेमत या बाल - रवत ।
संचारी - हषथ, मतोद, चपलता, आवेग, औत्सुक्य, मतोह ।
आलंबन - बालक क
े वचताकषथक हाव - भाव, बोली एवं रूप - सौंदयथ ।
आश्रय - मताता, वपता, दशथक, िोता, पाठक ।
उद्दीपन - बाल सुलभ िीड़ा, बातें, चाल, चेष्टाएाँ , तुतलाना, वजद ।
अनुभाव - गोद मतें सोना, प्यार जताना, गले लगाना, चूमतना, बाहों मतें भरना, उसी क
े
समतान बोलना, साथ मतें खेलना आवद ।
जैसे -
चलत देत्वख जसुमतवत सुख पावै।
ठु मतवक-ठु मतवक पग धरवन रेंगत, जननी देत्वख वदखावै।
देहिर लौं चवल जात, बहुिर वििर-वििर इतवहं कौ आवै।
वगिर-वगिर परत,बनत नवहं लााँघत सुर-मतुवन सोच करावै।
भवशेष -
* इसमतें िीक
ृ ष्ण आलंबन है।
* यशोदा मतैया का हृदय आिय है ।
* घुटनों क
े बल चलना , अपनी परर्ांई पकडने की चेष्टा करना
,वकलकारी मतार कर हाँसना आवद उद्दीपन है।
* खुश होना , दू सरों को देखाना, बार-बार नन्द बाबा को बुला
लाना अनुभाव है।
* ठु मतकना , वकलकारी , चपलता आवद संचारी भाव है।
11. भत्वक्त रस
जहााँ ईश्वर क
े प्रभत श्रद्धा और प्रेम का भाव हो,वहााँ भत्वक्त रस होता
है।
स्थायी - ईिर प्रेमत ।
संचारी - वववोध, वचंता, संत्रास, धृवत, दैन्य, अलसता ।
आलंबन - ईिर क
ृ पा, दया, मतवहमता ।
आश्रय - भि ।
उद्दीपन - मतंवदर , मतूवतथ आवद ।
अनुभाव - ध्यान लगाना, मताला जपना, आाँखें मतूाँदना, कीतथन करना, रोना,
वसर झुकाना आवद ।
जैसे -
मतेरो मतन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उवड़ जहाज कौ पंर्ी पुवन जहाज पै आवै॥
कमतलनैन कौ र्ांवड़ मतहातमत और देव को ध्यावै।
परमतगंग कों र्ांवड़ वपयासो दुमतथवत क
ू प खनावै॥
वजन मतधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-िल
खावै।
सूरदास, प्रभु कामतधेनु तवज र्े री कौन दुहावै॥
भवशेष -
* इसमतें िीक
ृ ष्ण की भत्वि आलंबन है।
* कवव सूरदास का हृदय आिय है ।
* िीक
ृ ष्ण का रूप-सौन्दयथ , उनकी उदारता , भि-वत्सलता आवद
उद्दीपन है।
* िीक
ृ ष्ण की भत्वि , उनक
े प्रवत गहन लगाव , वकसी और की भत्वि न
करना, िीक
ृ ष्ण को सवथिेष्ठ बताना , वकसी और क
े शरणागत न होना तथा
क
ृ ष्ण क
े समतक्ष पूणथ-समतपथण करना अनुभाव है।
* धैयथपूवथक िीक
ृ ष्ण की भत्वि , िीक
ृ ष्ण की वदव्यता का बोध आवद
संचारी भाव है।

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Hindi grammar me Ras kise kahate Hain jane

  • 1. भाव स्थायी भाव क े साथ ववभाव, अनुभाव और संचारी भाव क े संयोग से प्राप्त चामत्ािरक आनंद- ववशेष को रस कहते हैं। (१) संचारी भाव/व्यभभचारी भाव - संचारी का अथथ है- साथ साथ संचरण करने वाला अथाथत् साथ- साथ चलने वाला। संचारी भाव वकसी न वकसी स्थायी भाव क े साथ प्रकट होते हैं। ये क्षवणक,अस्थायी और परावित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये वकसी एक स्थायी भाव क े साथ न रहकर सभी क े साथ संचरण करते हैं , इसवलए इन्हें व्यवभचारी भाव भी कहा जाता है। * संचारी भाव या व्यभभचारी भाव 33 होते हैं :-- १- अपस्मार(मतूर्ाथ) १२- चपलता २३- लज्जा २- अमतषथ(असहन) १३- वचन्ता २४- ववबोध ३- अलसता १४- जड़ता २५- ववतक थ ४- अववहत्था(गुप्तभाव) १५- दैन्य २६- व्यावध ५- आवेग १६- धृवत २७- ववषाद ६- असूया १७- वनद्रा २८- शंका ७- उग्रता १८- वनवेद(शमत) २९- िमत ८- उन्माद १९- मतवत ३०- संत्रास ९- औत्सुक्य २०- मतद ३१- स्मृवत १०- गवथ २१- मतरण ३२- स्वप्न ११- ग्लावन २२- मतोह ३३- हषथ
  • 2. अनुभाव अनुभाव का अथथ है- वकसी भाव क े उत्पन्न होने क े बाद उत्पन्न होने वाला भाव।तात्पयथ यह वक जब वकसी क े हृदय मतें कोई भाव उत्पन्न होता है और उत्पन्न भावों क े पिरणामत स्वरूप वह जो चेष्टा करता है या उसमतें जो वियात्मकता आती है , उस चेष्टा या वियात्मकता को अनुभाव कहते हैं। जैसे - िोध का भाव जगने पर..... कााँपना , दााँत पीसना,मतुट्ठी भींचना,गुराथना,आाँखें लाल हो जाना आवद अनुभाव हैं।
  • 3. अनुभाव दो प्रकार क े होते हैं :- (अ) साधारण अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब आिय (वजसक े मतन मतें भाव उत्पन्न हुआ है) जान- बूझ कर यत्नपूवथक कोई चेष्टा , अवभनय अथवा विया करता है,तब ऐसे अनुभाव को साधारण या यत्नज अनुभाव कहते हैं। जैसे :- बहुत प्रेमत उमतड़ने पर गले लगाना िोध आने पर धक्का देना आवद साधारण या यत्नज अनुभाव हैं।
  • 4. (आ) - सात्विक अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब आिय (वजसक े मतन मतें भाव उत्पन्न हुआ है) द्वारा अनजाने मतें अनायास, वबना कोई यत्न वकए स्वाभाववक रूप से कोई चेष्टा अथवा विया होती है,तब ऐसे अनुभाव को सात्विक या अयत्नज अनुभाव कहते हैं। जैसे - डर से जड़वत् हो जाना , पसीने पसीने होना , कााँपना चीख पड़ना , हकलाना और रोना आवद सात्विक या अयत्नज अनुभाव हैं।
  • 5. रस 1. शंगार रस जब नायक और नावयका मतें एक आिय तथा दू सरा आलम्बन हो अथवा प्राक ृ वतक उपादान , कोई क ृ वत अथवा वकसी का गायन-वादन आलंबन हो और दशथक, पाठक या िोता आिय हो और वे ववभाव, सम्बत्वित अनुभाव और संचारीभाव से पिरपुष्ट हों , वहााँ रवत नामतक स्थायीभाव सविय हो जाता है, रवत क े सविय होने से शंगार रस की उत्पवि होती है। शंगार रस क े दो भेद होते हैं - (क) संयोग शंगार (ख) ववयोग शंगार । (क) संयोग शंगार - जहााँ आलंबन और आिय क े बीच परस्पर मतेल- वमतलाप और प्रेमतपूणथ वातावरण हो , वहााँ संयोग शंगार होता है ।
  • 6. स्थायी भाव - रवत संचारी भाव - लज्जा , वजज्ञासा ,उत्सुकता आवद । आलंबन - नायक , नावयका , गायन - वादन , क ृ वत अथवा प्राक ृ वतक उपादान । आश्रय - नायक , नावयका , िोता या दशथक । उद्दीपन - व्याप्त सौन्दयथ आवद । अनुभाव - नायक , नावयका , िोता या दशथक का मतुग्ध होना , पुलवकत होना आवद।
  • 7. जैसे - ये रेशमती जुल्फ ें , ये शरबती आाँखें इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी ये रेशमती जुल्फ ें , ये शरबती आाँखें इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी जो ये आाँखे शरमत से, झुक जाएं गी सारी बातें यहीं बस, रुक जाएं गी जो ये आाँखे शरमत से, झुक जाएं गी सारी बातें यहीं बस, रुक जाएं गी चुप रहना ये अफसाना, कोई इनको ना बतलाना वक इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी जुल्फ ें मतग़रूर इतनी, हो जाएं गी वदल तो तड़पाएं गी, जी को तरसाएं गी जुल्फ ें मतग़रूर इतनी, हो जाएं गी वदल तो तड़पाएं गी, जी को तरसाएं गी ये कर देंगी दीवाना, कोई इनको ना बतलाना वक इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी इन्हें देख कर जी रहे हैं सभी
  • 8. ववशेष- * इसमतें नावयका आलंबन है। * नायक आिय हैं। * नावयका की आाँखें और जुल्फ ें आवद उद्दीपन है, * आाँखों का शरबती होना , झुकना ,जुल्फों का मतग़रूर होना और वदल को तड़पाना आवद अनुभाव है। * आाँख झुकते ही बातों क रुक जाना , आाँखों क े अफसाने को र्ु पाना , जुल्फों पर दीवाना होना आवद संचारी भाव है।
  • 9. (ख) भवयोग शंगार - जहााँ आलंबन और आिय क े बीच परस्पर दू री ,ववरह अथवा तनावपूणथ वातावरण हो , वहााँ ववयोग शंगार होता है । स्थायी भाव - रवत संचारी भाव - उदासी , दुख, वनराशा आवद । आलंबन - ववरहाक ु ल नायक-नावयका , उदास गायन-वादन , दुखड़ी क ृ वत अथवा ववनष्ट प्राक ृ वतक उपादान । आश्रय - ववरहाक ु ल नायक-नावयका ,उदास िोता या दुखी दशथक । उद्दीपन - व्याप्त दुखदायी कारण और वातावरण आवद । अनुभाव - नायक , नावयका , िोता या दशथक का हतास , उदास और वनरास होना आवद।
  • 10. जैसे - लगी आज सावन की विर वो झड़ी है लगी आज सावन की विर वो झड़ी है वही आग विर सीने मतें जल पड़ी है लगी आज सावन की ... विर वो झड़ी है क ु र् ऐसे ही वदन थे वो जब हमत वमतले थे चमतन मतें नहीं ि ू ल वदल मतें त्वखले थे वही तो है मतौसमत मतगर रुत नहीं वो मतेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है लगी आज सावन की ... कोई काश वदल पे बस हाथ रख दे मतेरे वदल क े टुकड़ों को एक साथ रख दे मतगर यह हैं ख्वाबों ख्यालों की बातें कभी टू ट कर चीज कोई जुड़ी है लगी आज सावन की ..
  • 11. भवशेष- * इसमतें नावयका आलंबन है। * ववरहाक ु ल नायक आिय हैं। * सावन की झड़ी , ववरह , नावयका की याद आवद उद्दीपन है| * बीते वदनों को याद करना , मतौसमत को देख दुखी होना , रोना , टू टे वदल क े न जुड़ पाने का अफसोस करना और वनरास हताश तथा उदास आवद होना अनुभाव है। * उदासी , दुख और वनराशा आवद संचारी भाव है।
  • 12. 2. वीर रस स्थायी भाव उत्साह जब ववभाव , संबंवधत अनुभावों और संचारी भावों क े सहयोग से पिरपुष्ट होता है, तब वीर रस की उत्पवि होती है । स्थायी भाव - उत्साह संचारी भाव - गवथ, हषथ, रोमतांच, आवेग, ग्लावन आलंबन - शत्रु, दीन, संघषथ आश्रय - उत्साही व्यत्वि उद्दीपन - सेना, रणभेरी, शत्रु की बातें, जयकार, समतथथन आवद । अनुभाव - दहाड़, रोंगटे खड़े होना, आिमतण, हुाँकार आवद।
  • 13. अपनी तलवार दुधारी ले, भूखे नाहर सा टू ट पड़ा । कल कल मतच गया अचानक दल, अविन क े घन सा ि ू ट पड़ा । राणा की जय, राणा की जय, वह आगे बढ़ता चला गया । राणा प्रताप की जय करता , राणा तक चढ़ता चला गया । रख वलया र्त्र अपने सर पर, राणा प्रताप मतस्तक से ले । ले सवणथ पताका जूझ पड़ा , रण भीमत कला अंतक से ले । झाला को राणा जान मतुगल , विर टू ट पड़े थे झाला पर । वमतट गया वीर जैसे वमतटता , परवाना दीपक ज्वाला पर । झाला ने राणा रक्षा की , रख वदया देश क े पानी को । र्ोड़ा राणा क े साथ साथ , अपनी भी अमतर कहानी को ।
  • 14. भवशेष - * इसमतें मतुगल सेना आलंबन है। * राणा प्रताप का सेनापवत झाला आिय है। * देश-भत्वि , वीरता , त्याग और बवलदान आवद संचारी भाव है। * राणा की जय- जयकार , भीषण मतार-काट , हुाँकार भरना , मतुगलों को भ्रवमतत करना आवद उद्दीपन है। * शत्रुओं पर टू ट पड़ना , राणा प्रताप का र्त्र अपने सर पर रख लेना , अपना बवलदान देना आवद अनुभाव है।
  • 15. 3. करूण रस आलंबन क े दुख हावन अथवा मतृत्यु क े शोक से उत्पन्न दया अथवा सहानुभूवत क े कारण आिय मतें इस की उत्पवि होती है। स्थायी - शोक संचारी - ग्लावन, मतोह, स्मृवत, वचंता, दैन्य, ववषाद, उन्माद । आलंबन - अपनों का मतरण, दुरावस्था, गरीब, अपावहज, दुघथटना, आवद। आश्रय - शोक - ग्रस्त व्यत्वि । उद्दीपन - आघात करने वाला, हावनकताथ, अपनों की याद, दुघथटना आवद। अनुभाव - रोना-धोना, वगड़वगड़ाना, आह, वच्ार, प्रलाप, र्ाती पीटना।
  • 16. जैसे - वह आता-- दो टू क कलेजे क े करता पर्ताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों वमतलकर हैं एक, चल रहा लक ु वटया टेक, मतुट्ठी भर दाने को-- भूख वमतटाने को मतुाँह िटी पुरानी झोली का ि ै लाता-- दो टू क कलेजे क े करता पर्ताता पथ पर आता। साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ ि ै लाये, बायें से वे मतलते हुए पेट को चलते , और दावहना दया दृवष्ट-पाने की ओर बढ़ाये। भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य ववधाता से क्या पाते ? घूाँट आाँसुओं क े पीकर रह जाते। चाट रहे जूठी पिल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे क ु िे भी हैं अड़े हुए।
  • 17. भवशेष- * इसमतें भीखमतंगा आलंबन है। * कवव का हृदय आिय है। * भीखमतंगे और उसक े बच्चों की दुरावस्था उद्दीपन है । * िटी झोली ि ै लाना, लक ु वटया टेककर चलना, पेट मतलना , क ु िे द्वारा हाथ से पिल र्ीन लेना अनुभाव है। * गरीबी, बदहाली, दीनता आवद संचारी भाव है।
  • 18. 4. हास्य रस जहााँ भकन्ीं भवभचत्र त्वस्थभतयों या पररत्वस्थभतयों द्वारा हाँसी उत्पन्न होती हो, वहााँ हास्य रस होती है। स्थायी - हास संचारी - खुशी, प्रसन्नता, चंचलता, चपलता, उत्सुकता | आलंबन - वववचत्र त्वस्थवत, बात, वेश, आक ृ वत भाषा, हावभाव, कायथ आवद। आश्रय - हाँसाने वाले, पात्र (जोकर, अवभनेता), दशथक, िोता। उद्दीपन - हाँसाने वाले क े हाव-भाव, बातें, वियाएाँ , चेष्टाएाँ , त्वस्थवतयााँ, यादें आवद। अनुभाव - ठहाका, पेट वहलना, दााँत वदखना, पेट पकड़ना, मतुाँह लाल होना, चेहरा चमतकना, आाँखों मतें पानी आना आवद।
  • 19. जैसे - बकिरया वर्ल्थ वार करना चाहती है, शेर से तकरार करना चाहती है, मतोदी जी क े राज मतें बकरी - पड़ोसी, मतें-मतें-मतें वमतवमतयार करना चाहती है। भवशेष - * इसमतें पड़ोसी बकरी आलंबन है। * कवव का हृदय आिय है। * बकरी की अवस्था उद्दीपन है। * वर्ल्थ वार की चाह तैयारी और वमतवमतयार करना अनुभाव है।
  • 20. 5. रौद्र रस जहााँ िोध, वैर ,अपमतान अथवा प्रवतशोध का भाव वभन्न-वभन्न संचारी भावों,ववभावों और अनुभावों क े कारण िमतश: बढ़ते हुए सीमता पार कर जाए वहााँ रौद्र-रस अवभव्यत्वि होता है। स्थायी - िोध संचारी - गवथ, घमतंड, अमतषथ, आवेग, उग्रता आवद। आलंबन - शत्रु, ववरोधी, अपराधी, िोध का कारण। आश्रय - िोवधत व्यत्वि । उद्दीपन - शत्रुतापूणथ कायथ, ववरोध, अपमतान, कटुवचन, आज्ञा का उल्लंघन, वनयमत-भंग आवद। अनुभाव - आाँखें लाल होना, कााँपना, ललकारना , हुाँकारना , शस्त्र उठाना, कठोर वाणी, गुराथना, हााँिना, चीखना आवद।
  • 21. कौरव क्र ू रता अभभमन्यु का वध अजुुन रोष प्रभतज्ञा पूभतु उस काल मतारे िोध क े तन कााँपने उसका लगा, मतानों हवा क े वेग से सोता हुआ सागर जगा । मतुख-बाल-रवव-समत लाल होकर ज्वाल सा बोवधत हुआ, प्रलयाथथ उनक े वमतस वहााँ , क्या काल ही िोवधत हुआ? युग-नेत्र उनक े जो अभी थे पूणथ जल की धार-से, अब रोष क े मतारे हुए , वे दहकते अंगार - से । वनश्चय अरुवणमता-वमतस अनल की जल उठी वह ज्वाल ही, तब तो दृगों का जल गया शोकािु जल त्ाल ही । साक्षी रहे संसार , करता हाँ प्रवतज्ञा पाथथ मतैं , पूरा करू ाँ गा कायथ सब , कथानुसार यथाथथ मतैं । जो एक बालक को कपट से मतार हाँसते हैाँ अभी, वे शत्रु सिर शोक-सागर-मतग्न दीखेंगे सभी
  • 22. भवशेष - * इसमतें अवभमतन्यु क े हत्यारे कौरव आलंबन है। * अजुथन (पाथथ) आिय है। * कौरवों का कपट , युद्ध क े वनयमत तोड़ना , अवभमतन्यु का वध , अधमतथ आवद उद्दीपन है, * आाँखें लाल होना, कााँपना, हुाँकारना, कठोर वाणी, अनुभाव है। शोकािु , प्रवतज्ञा , उग्रता आवद संचारी भाव है।
  • 23. अन्य उदाहरण - हरर ने भीषण हाँकार भकया, अपना स्वरूप भवस्तार भकया, डगमग डगमग भदग्गज डोले, भगवान क ु भपत हो कर बोले। जंजीर बढ़ा अब साध मुझे, हां हां दुयोधन ! बााँध मुझे, याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा। टकरायेंगे नक्षत्र भनखर, बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर, फन शेषनाग का डोलेगा , भवकराल काल मुंह खोलेगा।
  • 24. 6. भयानक रस जहााँ भकन्ींपररत्वस्थभतयों वश भय का भाव अभभव्यक्त हो, वहााँ भयानक रस होता है। स्थायी - भय संचारी - वचंता, हावन, आशंका, त्रास आवद। आलंबन - सन्नाटा, शत्रु-सामतर्थ्थ आश्रय - भयभीत व्यत्वि उद्दीपन - दुघथटना, पागलपन, मतूखथता, शत्रु की चेष्टा, भयानक दृश्य आवद। अनुभाव - कााँपना, पसीना होना, चेहरा पीला होना, वचल्लाना, रोना आवद।
  • 25. जैसे- हय–रूण्ड वगरे¸गज–मतुण्ड वगरे¸ कट–कट अवनी पर शुण्ड वगरे। लड़ते – लड़ते अिर झुण्ड वगरे¸ भू पर हय ववकल वबतुण्ड वगरे।। वचंग्घाड़ भगा भय से हाथी¸ लेकर अंक ु श वपलवान वगरा। झटका लग गया¸ िटी झालर¸ हौदा वगर गया¸ वनशान वगरा।। कोई नत – मतुख बेजान वगरा¸ करवट कोई उिान वगरा। रण – बीच अवमतत भीषणता से¸ लड़ते – लड़ते बलवान वगरा।। क्षण भीषण हलचल मतचा–मतचा राणा – कर की तलवार बढ़ी। था शोर रि पीने को यह रण – चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।
  • 26. भवशेष - * इसमतें मतुगल बादशाह अकबर और उसकी सेना आलंबन है। * मतेवाड़ क े सरी राणा प्रताप की तलवार आिय हैं। * मतुगलों का कपट , भयानक युद्ध , मतुगल सेना का संहार , हाथी-घोड़े और शत्रुओं का कटना आवद उद्दीपन है। * हावथयों का वचंग्घाड़ना , घोड़ों का वहनवहनाना, शत्रुओं का चीखना-पुकारना , तलवार का चमतकना आवद अनुभाव है। * प्रचण्ड-प्रहार , शत्रुओं की हताशा, उग्रता आवद संचारी भाव है।
  • 27. 7. वीभत्स रस जहााँ वकसी वस्तु, व्यत्वि, स्थान या दृश्य को देखकर घृणा (जुगुत्सा) मतन मतें उत्पन्न हो, वहााँ वीभत्स रस होता हो। स्थायी - जुगुत्सा (घृणा) । आलंबन - रि, क्षत-ववक्षत शव, वबजवबजाती नावलयााँ आवद। आश्रय - ि ै ली हुई गंदगी और सड़ांध, घृणा उत्पन्न करने वाले दृश्य आवद वजसमतें घृणा का भाव जगे। उद्दीपन - जख्म िरसना, लाश सड़ना, अंग गलना, नोंचना, घसीटना, िड़िड़ाना, र्टपटाना । अनुभाव - वधक्कारना, थूकना, वमतन करना, भौं वसकोड़ना, नाक बंद करना, मतुाँह घुमताना, आाँख मतूाँदना आवद। संचारी - मतोह, ग्लावन, शोक, ववषाद, आवेग, जड़ता, उन्माद ।
  • 28. जैसे- सुभट-सरीर नीर-चारी भारी-भारी तहााँ, सूरवन उर्ाहु , क ू र कादर डरत हैं । ि े किर-ि े किर ि े रु िािर-िािर पेट खात, काक - क ं क बालक कोलाहलु करत हैं।
  • 29. भवशेष - * इसमतें वीरों क े क्षत-ववक्षत शव आलंबन है। * कवव का हृदय आिय है । * शव की दुरावस्था, वघसटना ,पेट िटना, आवद उद्दीपन है। * उर्ाह , क ू र कादर का डरना, फ े करना और काक तथा क ं क क े बालकों का कोलाहल करना अनुभाव है। * ि े कर - ि े कर कर पेट िाड़ना और जीव-जन्तुओं मतें शव को हवथयाने की मतारामतारी, उनका कलह - कोलाहल आवद संचारी भाव है।
  • 30. ८.अद् भुत रस जहााँ सुनी अथवा अनसुनी वस्तु/ व्यत्वि / स्थान क े वववचत्र एवं आश्चयथजनक रूप को देखकर ववस्मय हो, वहााँ अद् भुत रस होता है। स्थायी - ववस्मय । संचारी - औत्सुक्य, आवेग, हषथ, गवथ, मतोह, ववतक थ । आलंबन - वववचत्र वस्तु, असामतान्य घटना, ववलक्षण दृश्य। आश्रय - ववत्वस्मत या आश्चयथचवकत व्यत्वि ।
  • 31. उद्दीपन - वस्तु की वववचत्रता, घटना की नवीनता, दृश्य की ववलक्षणता । अनुभाव - मतुाँह िाड़ना, आाँखें बड़ी करना, भौंह तानना, स्तंवभत होना, जड़वत होना, गद्गद होना, चुप हो जाना, मतुाँह ताकना, रोमतांवचत होना आवद । जैसे-
  • 32. सेना – नायक राणा क े भी रण देख – देखकर चाह भरे । मतेवाड़ – वसपाही लड़ते थे दू ने – वतगुने उत्साह भरे ।। क्षण मतार वदया कर कोड़े से रण वकया उतर कर घोड़े से । राणा रण–कौशल वदखा वदया चढ़ गया उतर कर घोड़े से ।। क्षण उर्ल गया अिर घोड़े पर¸ क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर । वैरी – दल से लड़ते – लड़ते क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर ।।
  • 33. भवशेष - * इसमतें राणा प्रताप आलंबन है। * सैवनकों का हृदय आिय है । * युद्ध करते - करते घोड़े से उतरना-चढ़ना , दुश्मन क े घोड़े पर उर्ल कर चढ़ जाना, लड़ते-लड़ते घोड़े पर खड़ा हो जाना आवद उद्दीपन है। * सैवनकों और सेना नायकों का आश्चयथ और चाह भरी नजरों से देखना अनुभाव है। * राणा क े सैवनकों मतें गवथ , दुगुना उत्साह , उनका रण-कौशल, मतातृभूवमत क े प्रवत अनुराग आवद संचारी भाव है।
  • 34. 9. शांत रस जहााँ सांसािरक इच्छाओं क े शमतन का आनंद हो अथवा सांसािरकता क े प्रवत वैराग्य भाव जगता हो, वहााँ शांत रस होता है। स्थायी - वैराग्य । संचारी - हषथ,ग्लावन,धृवत,क्षमता,ववबोध,दैन्य । आलंबन - सांसािरक क्षण-भंगुरता , ईिरीय ज्ञान, परोपकार, ईिर पूजा आवद । आश्रय - वजसक े मतन मतें वैराग्य उत्पन्न हो । उद्दीपन - संत वचन, प्रवचन, संत - समतागमत, तीथाथटन, सत्संग । अनुभाव - आाँखें मतूाँदना, अिु बहाना, ईिर भजना, ध्यानस्थ होना आवद ।
  • 35. जीवन जहााँ खत्म हो जाता ! उठते-वगरते, जीवन-पथ पर चलते-चलते, पवथक पहुाँच कर, इस जीवन क े चौराहे पर, क्षणभर रुक कर, सूनी दृवष्ट डाल सम्मुख जब पीर्े अपने नयन घुमताता ! जीवन वहााँ ख़त्म हो जाता !
  • 36. भवशेष - * इसमतें पवथक का जीवन आलंबन है। * कवव का हृदय आिय है । * जीवन-पथ , चौराहा, सूनी दृवष्ट आवद उद्दीपन है। * चलते-चलते रूकना और सूनी नजरों से पीर्े मतुड़-मतुड़ देखना अनुभाव है। * जीवन की क्षण भंगुरता का ज्ञान, दृवष्ट मतें सूनापन , मतृत्यु- बोध आवद संचारी भाव है।
  • 37. 10. वात्सल्य रस जब अपने या पराए बालक को देखकर या सुनकर उसक े प्रभत मन में एक सहज आकषुण या बाल-रभत का भाव उमड़ता हो वहााँ वात्सल्य रस होता है। स्थायी - संतान प्रेमत या बाल - रवत । संचारी - हषथ, मतोद, चपलता, आवेग, औत्सुक्य, मतोह । आलंबन - बालक क े वचताकषथक हाव - भाव, बोली एवं रूप - सौंदयथ । आश्रय - मताता, वपता, दशथक, िोता, पाठक । उद्दीपन - बाल सुलभ िीड़ा, बातें, चाल, चेष्टाएाँ , तुतलाना, वजद । अनुभाव - गोद मतें सोना, प्यार जताना, गले लगाना, चूमतना, बाहों मतें भरना, उसी क े समतान बोलना, साथ मतें खेलना आवद ।
  • 38. जैसे - चलत देत्वख जसुमतवत सुख पावै। ठु मतवक-ठु मतवक पग धरवन रेंगत, जननी देत्वख वदखावै। देहिर लौं चवल जात, बहुिर वििर-वििर इतवहं कौ आवै। वगिर-वगिर परत,बनत नवहं लााँघत सुर-मतुवन सोच करावै।
  • 39. भवशेष - * इसमतें िीक ृ ष्ण आलंबन है। * यशोदा मतैया का हृदय आिय है । * घुटनों क े बल चलना , अपनी परर्ांई पकडने की चेष्टा करना ,वकलकारी मतार कर हाँसना आवद उद्दीपन है। * खुश होना , दू सरों को देखाना, बार-बार नन्द बाबा को बुला लाना अनुभाव है। * ठु मतकना , वकलकारी , चपलता आवद संचारी भाव है।
  • 40. 11. भत्वक्त रस जहााँ ईश्वर क े प्रभत श्रद्धा और प्रेम का भाव हो,वहााँ भत्वक्त रस होता है। स्थायी - ईिर प्रेमत । संचारी - वववोध, वचंता, संत्रास, धृवत, दैन्य, अलसता । आलंबन - ईिर क ृ पा, दया, मतवहमता । आश्रय - भि । उद्दीपन - मतंवदर , मतूवतथ आवद । अनुभाव - ध्यान लगाना, मताला जपना, आाँखें मतूाँदना, कीतथन करना, रोना, वसर झुकाना आवद ।
  • 41. जैसे - मतेरो मतन अनत कहां सुख पावै। जैसे उवड़ जहाज कौ पंर्ी पुवन जहाज पै आवै॥ कमतलनैन कौ र्ांवड़ मतहातमत और देव को ध्यावै। परमतगंग कों र्ांवड़ वपयासो दुमतथवत क ू प खनावै॥ वजन मतधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-िल खावै। सूरदास, प्रभु कामतधेनु तवज र्े री कौन दुहावै॥
  • 42. भवशेष - * इसमतें िीक ृ ष्ण की भत्वि आलंबन है। * कवव सूरदास का हृदय आिय है । * िीक ृ ष्ण का रूप-सौन्दयथ , उनकी उदारता , भि-वत्सलता आवद उद्दीपन है। * िीक ृ ष्ण की भत्वि , उनक े प्रवत गहन लगाव , वकसी और की भत्वि न करना, िीक ृ ष्ण को सवथिेष्ठ बताना , वकसी और क े शरणागत न होना तथा क ृ ष्ण क े समतक्ष पूणथ-समतपथण करना अनुभाव है। * धैयथपूवथक िीक ृ ष्ण की भत्वि , िीक ृ ष्ण की वदव्यता का बोध आवद संचारी भाव है।