Today, In India has moving Strengthen growth Period. So can be find here as a mobilized through entrepreneurship in india.. new word originated, Called "Dalit Capitalism"
News of each village of India. you can get all news of each people and all villager of India as well you get breaking news. now Jan josh will help to all people who is facing challenges to live their life. the team is doing help to each and uplifting victims.
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“नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्य” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 7, APRIL 2019. (UGC Journal No. 48514)
http://oldror.lbp.world/UploadedData/8188.pdf
Mithilesh written first_e_book_शुरुआत_shuruaat_initiative_mithilesh2020_writerMithilesh
... लिखने का शौक मुझे कब लगा, यह कुछ ठीक याद नहीं है, परन्तु मेरे पिताजी मुझे खूब पत्र भेजते थे. वह आर्मी से रिटायर हैं, और जब वह सेवा में थे, तब मैं अपने भाइयों के साथ घर से दूर पढाई करता था. पहले हॉस्टल में, फिर रूम लेकर आगे की पढाई के समय में पिताजी का पत्र बड़ा सम्बल था. बड़े लम्बे-लम्बे पत्र और छोटी-छोटी लिखावट में ऐसा प्रतीत होता था कि वह बहुत कुछ हमें बताना चाहते हैं. मुझे विश्वास है कि लेखन की आदत तभी से लगी होगी और समयानुसार इसमें सुधार आता गया. पढाई के बाद दिल्ली में उत्तम साहित्यकारों का सानिध्य मिला, जिसमें गुरुवर डॉ.विनोद बब्बर का नाम प्रमुख है. यह सभी लेख मेरी वेबसाइट (www.mithilesh2020.com) पर संकलित हैं और समय-समय पर जागरण, नवभारत टाइम्स इत्यादि ऑनलाइन माध्यमों के साथ विभिन्न छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं. लेखनी में रोज नए शब्दों से परिचय होता है और विभिन्न शब्दों के अर्थ विभिन्न प्रकार से प्रयोग हुए दीखते हैं. सीखने के क्रम में अपने भाई, अपनी पत्नी को अपने लेख पढ़वा लेता हूँ, और दो चार शुभचिंतक फेसबुक पर उत्साह बढ़ाते रहते हैं. आप सभी का आशीर्वाद मेरे उत्साह को कई गुणा बढ़ा देगा, ऐसा मुझे विश्वास है. यदि एक भी लेख आप पढ़ें और उसमें कहीं सटीकता लगे तो अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत कराएं.
आपका अपना-
मिथिलेश.
Honor Killing: Unmasking a Brutal RealityNayi goonj
This concise document exposes the harsh reality of honor killings, a deeply disturbing practice prevalent in certain cultural contexts. It defines honor killing as the brutal act of murdering individuals, often women, who are perceived to have brought shame or dishonor to their families. This submission provides a glimpse into the cultural, social, and historical factors that fuel this phenomenon, highlighting the urgent need for awareness, dialogue, and action to eliminate this grave violation of human rights. Together, let us confront and challenge the roots of honor killing to create a more just and inclusive society for all.
“नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्य” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 7, APRIL 2019. (UGC Journal No. 48514)
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Mithilesh written first_e_book_शुरुआत_shuruaat_initiative_mithilesh2020_writerMithilesh
... लिखने का शौक मुझे कब लगा, यह कुछ ठीक याद नहीं है, परन्तु मेरे पिताजी मुझे खूब पत्र भेजते थे. वह आर्मी से रिटायर हैं, और जब वह सेवा में थे, तब मैं अपने भाइयों के साथ घर से दूर पढाई करता था. पहले हॉस्टल में, फिर रूम लेकर आगे की पढाई के समय में पिताजी का पत्र बड़ा सम्बल था. बड़े लम्बे-लम्बे पत्र और छोटी-छोटी लिखावट में ऐसा प्रतीत होता था कि वह बहुत कुछ हमें बताना चाहते हैं. मुझे विश्वास है कि लेखन की आदत तभी से लगी होगी और समयानुसार इसमें सुधार आता गया. पढाई के बाद दिल्ली में उत्तम साहित्यकारों का सानिध्य मिला, जिसमें गुरुवर डॉ.विनोद बब्बर का नाम प्रमुख है. यह सभी लेख मेरी वेबसाइट (www.mithilesh2020.com) पर संकलित हैं और समय-समय पर जागरण, नवभारत टाइम्स इत्यादि ऑनलाइन माध्यमों के साथ विभिन्न छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं. लेखनी में रोज नए शब्दों से परिचय होता है और विभिन्न शब्दों के अर्थ विभिन्न प्रकार से प्रयोग हुए दीखते हैं. सीखने के क्रम में अपने भाई, अपनी पत्नी को अपने लेख पढ़वा लेता हूँ, और दो चार शुभचिंतक फेसबुक पर उत्साह बढ़ाते रहते हैं. आप सभी का आशीर्वाद मेरे उत्साह को कई गुणा बढ़ा देगा, ऐसा मुझे विश्वास है. यदि एक भी लेख आप पढ़ें और उसमें कहीं सटीकता लगे तो अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत कराएं.
आपका अपना-
मिथिलेश.
Honor Killing: Unmasking a Brutal RealityNayi goonj
This concise document exposes the harsh reality of honor killings, a deeply disturbing practice prevalent in certain cultural contexts. It defines honor killing as the brutal act of murdering individuals, often women, who are perceived to have brought shame or dishonor to their families. This submission provides a glimpse into the cultural, social, and historical factors that fuel this phenomenon, highlighting the urgent need for awareness, dialogue, and action to eliminate this grave violation of human rights. Together, let us confront and challenge the roots of honor killing to create a more just and inclusive society for all.
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
कबीरदास
जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी
पिता का नाम : नीरू
माता का नाम : नीमा
पत्नी का नाम : लोई
बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी
मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश
ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ॥
रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिन्दी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने मे अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।
प्रस्तुत पाठ जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया था, ऐसे ही सैनिकों के हृदय की आवाज बयान करता है, जिन्हें अपने किए–धरे पर नाज है। इसी के साथ उन्हें अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं। चूँकि जिनसे उन्हें ये अ्पेक्षाएँ हैं वे देश वासी और कोई नहीं, हम और आप ही हैं, इसलिए आइए, इसे पढ़कर अपने आप से पूछें कि हम उनकी अपेक्षाएँ पूरी कर रहे हैं या नहीं?
पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार पारद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
पाठ योजना
कक्षा :
दिनांक :
पाठ का नाम : कबीर की साखी
सर्वप्रथम विद्यार्थियों को कबीरदास का परिचय देते हुए उनके काव्य पाठ ’ साखी ’ का भाव एंव व्याख्यान निम्नलिखित रुप से बताया जाएगा।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
“Her Identity and Emancipation” - Gelaxy International Inter disciplinary Research Journal
(ISSN 2347-6915) - GIIRJ, Vol.2(1), January, 2014, PP-142-143.
http://internationaljournals.co.in/pdf/GIIRJ/2014/January/11.pdf
“निर्मलवर्मा का परिचय एवं साहित्य दृष्टि” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 5, February 2019. (UGC Journal No. 48514)
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More from Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com (20)
1. श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में चित्रित राजनीतत स्थितत
डॉ.ए.सी.वी.रामकु मार,
पूववसहायक प्राध्यापक, हहिंदी ववभाग,
तममलनाडु कें द्रीय ववश्वववद्यालय,
तममलनाडु, भारत।
www.thehindiacademy.com
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ABSTRACT: प्रजातंत्र देश में कोई भी हो स्वतंत्र रूप से जीना, उनके जीवन में कह ं बाधा न
पड़ना आदद। देश में रहनेवाले जनता की रक्षा के ललए राजनीतत व्यवस्था स्थापपत हुई। देश की
जनता के ललए उनकी सुरक्षा के ललए ह संपवधान है। लेककन आज नेतागण इस ददशा में न
सोचकर अपने स्वाथथ की परततथ के ललए जी रहे है। स्वाथथ के कारण समाज के प्रतत अपने दातय्व
भी भरल रहे है। राजनैततक नेतागण देश को आगे बढाने के अलावा पतनोन्मुख ददशा की ओर ले
जा रहे है। देश की स्स्थतत ऐसे ह रहने से आगे बढाने में तकल फ पहुुँचते हैं। इस स्स्थतत में
बदलाव लाने की कोलशश श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में प्रस्तुत ककया हैं।
KEYWORDS: राजनीततक स्स्थतत, सामास्जक अव्यवस्था, अंध स्तावाद, मानवीय सम्बंध,
स्वाथथपरकता, भ्रष्टता एवं कतथव्यपवमुखता आदद।
श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में चित्रित राजनीतत स्थितत
Pramana Research Journal
Volume 9, Issue 3, 2019
ISSN NO: 2249-2976
https://pramanaresearch.org/717
2. समाज को सुचारू रूप से चलाने के ललए तनयमों की आवश्यकता है। राजनीतत इस
आवश्यकता की परततथ करती है। जनता के प्रतततनधध के रूप में संपवधान में बैठे नेतागण देश को
पवकास पथ पर ले जाने के ललए पवलभन्न योजनाओं को बनाकर अमल कराते हैं। देश का
पवकास हर एक नागररक का कतथव्य होने पर भी नेताओं की स्जम्मेदार अधधक मानी जाती है।
उनके ककसी भी तनणथय से देश के पवकास में बाधा नह ं पडना चादहये। प्रजातंत्र देश में कोई भी
हो स्वतंत्र रूप से जीना, उनके जीवन में कह ं बाधा न पड़ना आदद। देश में रहनेवाले जनता की
रक्षा के ललए राजनीतत व्यवस्था स्थापपत हुई। देश की जनता के ललए उनकी सुरक्षा के ललए ह
संपवधान है। लेककन आज नेतागण इस ददशा में न सोचकर अपने स्वाथथ की परततथ के ललए जी रहे
है। राजनीतत की यह काल अजगर-सी सवथग्रादहणी छाया जीवन के तमाम अच्छे मरल्यों को
ग्रलसत करती गई और गाुँव भी उसके प्रभाव से अछर ते न रह सके । गाुँव के जीवन की इस टरटती
हुई र ढ और बदलते हुए जीवन-मरल्यों को, उसकी पवसंगततयों और पवदरषताओं को प्रभापवत
करनेवाले राजनीततक स्स्थतत से आज डर रहे है। गाुँव की राजनैततक स्जंदगी की एक जीवन्त
सच्चाई श्रीलाल शुक्ल के प्रमुख उपन्यास 'राग दरबार ’ में देख सकते है। रूप्पन के बुआ के
लड़के रंगनाथ कहा कक "देखो दादा, यह तो पॉमलहिक्स है। इसमें बडा-बडा कमीनापन िलता है।
यह तो कु छ भी नहीिं हुआ। वपताजी स्जस राथते में है उसमें इससे भी आगे कु छ करना पडता है।
दुश्मन को जैसे भी हो, तनत करना िाहहए। यह न चितकर पाएँगे तो खुद चित हो जाएँगे और
फिर बैठे िरन की पुडडया बाँधा करेंगे और कोई िका को भी न पूछेगा।''1 इन पंस्क्तयों से
आजकल की राजनैततक स्स्थतत का यथाथथ धचत्रण ददखाया है। इस प्रकार की राजनैततक स्स्थतत
को व्यंग्य करते हुए श्रीलाल शुक्ल ‘राग दरबार ' उपन्यास में रंगनाथ के माध्यम से समझाया
कक "ड्राइवर साहब तुम्हारा चगयर तो त्रबलकु ल अपने देश की हुकू मत जैसा है”।2
चुनाव के समय नेता अपने जातत या समाज में प्रततस्ष्ठत बडे आदमी के नाम लेकर
प्रचार के माध्यम से रूप में फायदा उगते हैं। उस बडे आदमी के नाम से जनता पहले से ह
पररधचत रहने के कारण से उस नेता के प्रचार में फायदा होते है। आजकल ऐसी ह स्स्थतत इस
समाज में देख रहे हैं। श्रीलाल शुक्ल ‘बबस्रामपुर का संत’ उपन्यास में कुं वर जयंती प्रसाद भी
अपने भाई के नाम रखकर चुनाव में प्रवेश करता है। बड़े भाई के नाम ह प्रचार का साधन
बनाकर चुनाव में शालमल होते है। इसका धचत्रण इस प्रकार है कक – “बडे प्यार से कुिं वर जयती
प्रसाद मसिंह के गुब्बारे की हवा तनकालते हुए उन्होंने कहा, जयिंती देखो, मेरा अिंदाजा सही तनकला
Pramana Research Journal
Volume 9, Issue 3, 2019
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3. न? अब तुम हदल्ली की तनगाह में िढ़ गये हो। वैसे तुम फकस काम के मलए अमेरीका जा रहे
हो, तुम उससे भी बडी स्जम्मेदाररयों के लायक हो। पर तुम्हारे इस िुनाव से तुम्हारी योग्यता
का कोई सम्बन्ध नहीिं है। असली िीज है तुम्हारे बडे भैया। वे समाजवादी पािी के होकर सरकार
के जोरदार ववरोचधयों में चगने जाते है। और सरकार की ओर से इसका जवाब यही हो सकता है
फक तुम्हें खीिंिकर अपनी ओर बैठा लें।“3 इस प्रकार समाज में आजकल राजनीततक कारथवाई चल
रहे हैं। इसका वास्तपवक धचत्रण श्रीलाल शुक्ल अपने उपन्यास में मालमथक ढंग से प्रस्तुत ककया
है।
आजकल के नेताओं की र तत बबलकु ल बदल गई। बदलती हुई समाज में व्यस्क्त स्वाथथ
भावनाओं से कु स्टटत होकर समाज को लरट रहे है। स्वाथथ के कारण समाज के प्रतत अपने
दातय्व भी भरल रहे है। राजनीततक व्यवस्था भी स्वाथथ के कारण कललपषत हो गया। नेतागण
आज समाज को लरट रहे है। राजनीततक नेता अपने देश के जनता को सम दृस्ष्ट से देखना
चादहए। अपनी स्वाथथ की परततथ के ललए ककस प्रकार राजनीततक खेल खेल रहे हैं, इसका धचत्रण
'राग दरबार ’ उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल ने इस प्रकार प्रस्तुत ककया है कक – “उनके नेता होने का
सबसे बडा आधार यह िा फक वे सब को एक तनगाह से देखते िे। िाने में दारोगा और हवालात
में बैठा हुआ िोर - दोनों उनकी तनगाह में एक िे। उसी तरह इम्तहान में नकल करनेवाला
ववद्यािी और कॉमलज के वप्रिंमसपल उनकी तनगाह में एक िे। वे सब को दयनीय समझते िे,
सबका काम करते िे, सब से काम लेते िे। उनकी इज्जत िी फक पूिंजीवाद के प्रतीक दुकानदार
उनके हाि सामान बेिते नहीिं, अवपवत करते िे और शोषण के प्रतीक इक्के वाले उन्हें शहर तक
पहुँिाकर फकराया नहीिं, आशीवावद माँगते िे। उनकी नेताचगरी का प्रारस्म्भक और अिंततम क्षेि वहाँ
का कॉमलज िा, जहाँ उनका इशारा पाकर सैकडों ववद्यािी ततल का ताड बना सकते िे और
जरूरत पडे तो उस पर िढ़ भी सकते िे”।4 नेतागण अपने कायो के ललए सरकार के नाम पर
लगा देते थे। कु छ भी करने दो, वह काम राष्र-सेवा के नाम ललखा देते थे। यह भी एक प्रकार
से लरटने की तर का है। इसका धचत्रण ‘बबस्रामपुर का संत’ उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल इस प्रकार
प्रस्तुत ककया है कक “मुख्य मिंत्रियों को प्रधानमिंिी से ममलने के मलए अब घिंिों और कभी-कभी
कई हदनों तक हहलगे रहना पडा िा। पर इस तरह त्रबताया गया समय प्रतीक्षा के खाने में नहीिं,
राष्ट्र-सेवा के नाम मलखा जाता िा।”5 पररे समाज के सामने नेतागण रहकर भी सब कर रहे हैं।
चुनाव के समय वोट पाने के ललए झरठी सबरतें देकर अपनी ओर आकपषथत कर अपना काम पररा
Pramana Research Journal
Volume 9, Issue 3, 2019
ISSN NO: 2249-2976
https://pramanaresearch.org/719
4. कर डालते है। वोट पाने के ललए पैसे और शराब की बोतलें देकर पररे जनता के खरन पी रहे है।
ऐसे खरन खींचने वाले मच्छरों के बारे में श्रीलाल शुक्ल 'राग दरबार ' उपन्यास में रामाधीन के
शब्दों में समझाया कक –
“सनीिरा क्या कह रहा िा?
वोि माँग रहा िा।
तुमने क्या कहा?
कह हदया फक ले जाओ। मुझे कौन वोि का अिार रखना है।
वोि उसे दोगे तो अपना भला-बुरा समझकर,
ऊिं िा-नीिा देखकर देना।
सब देख मलया है। तुम माँगते हो तो तुम्हीिं ले जाओ।....
स्जसे कहोगे, उसी को दे देंगे। हम तो,
तुम्हारे हुकु म के गुलाम है।......''6
इस प्रकार की दयनीय स्स्थतत में आजकल की राजनीतत है। आजकल के नेतागण पररे
राजनैततक करवट बदला रहे है। उनकी यह र तत से देश के ललए लाभ तो बाद की बात है परन्तु
ज्यादा हातन हो रहा है। समाज में स्स्थत पवलभन्न राजनीततक कु रूपताओं का नग्न धचत्रण करके
श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यासों में सच्चा एवं यथाथथ भारतीय समाज को ददखाया हैं।
राजनैततक नेता चुनाव के समय जनता के पास जाकर ऐसे भाषण देते है कक उनके प्रतत
पवश्वास, भरोसा आ जाय। उनके यह भाषण चुनाव के बाद भी भाषण जैसा ह रह जाते है। पररे
समाज को झरठी भरोसा ददलाकर अपने आप खुशी मनाते है। राजनैततक नेता लोग अपनी
स्वाथथपरता के कारण अनावश्यक पवषयों में जनता को बढकाकर जनता, प्रान्त, राज्य एवं राष्र
के प्रतत भी अन्याय करने के ललए भी तैयार हो रहे है। अपनी भाषण शस्क्त से अच्छे या
राष्रदहत कायों के ललए उपयोग न करके बुराई के ललए उपयोग कर रहे है। इसका धचत्रण
उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल ने इस प्रकार धचबत्रत ककया है कक - "एक नेता झिकदार मसर,
मिकदार कमर और हिौंडे की तरह िलते नाजुक हािों से शहर के इस नए हहथसे में मजदरों के
शोषण पर भाषण दे रहा िा। जाहहर..... भाषण सुनने के बाद..... भाषण उगलनेवाले नेता और
मिंि पर बैठे लोगों की शक्ल ही बता रही िी फक ये बोलने वालों की कौम के हैं, करनेवालों में से
नहीिं। यह भी मालूम हो गया िा फक मजदूरों की ववपदा का हवाला वह मसिव उदाहरण के मलए,
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5. उपमा और रूपक अलिंकारों का ववधान रिाने के मलए, दे रहा है।“7 उनकी जो बातें पररे जनता को
हवा में उड़ा देती है। उनकी हर एक बात पर जनता को पवश्वास कम हो गयी है। समाज में जो
तनम्न वगथ जनता जैसे मजदरर, ककसान आदद गर बों को छोटे-छोटे सुपवधाएुँ ददलाने की बातें
कहने पर भी यह बात भाषण तक ह सीलमत हो रहे है। इसका जीवंत धचत्रण ‘पहला पड़ाव’
उपन्यास में परमा्मा जी के संदभथ में समझाया कक “परमात्मा जी को हमें इस यूतनयन का
दूसरा सिंरक्षक बनाकर उन्हें उसे परम पुनीत काम में जोतने की कोमशश करनी िाहहए स्जसे
गाँधीवादी सुधारकों से लेकर सरकारी प्रिारक तक रिनात्मक कायवक्रम' कहते हैं : मजदूरों के
मलए छोिा-सा औषधालय, उनके बच्िों के मलए छोिा-सा थकू ल (आश्रमनुमा, ताफक इमारत के
अभाव पर कोई उिंगली न उठाए) प्रौढ़ों की मशक्षा के मलए एक शत्रिशाला स्जसमें न प्रौढ होंगे, न
मशक्षा होगी, जो सरकारी अनुदान के मलए मसिव एक छोिे से सोख्ते का काम करेगी जैसा फक
ऐसी लगभग सभी शालाएँ कर रही हैं और स्जसके सहारे यूतनयन के दूसरे रिनात्मक कायवक्रम
िलेंगे।"8 ऐसे ह ककसानों के प्रतत सहानुभरतत बातें, उनके भलाई के अलावा शोषण आजकल की
तनयतत है। ‘राग-दरबार ' उपन्यास में इसका जीवंत धचत्रण लमलता है। “उन हदनों गाँव में लेक्िर
मुख्य ववषय खेती िा। इसका यह अिव कदावपत नहीिं फक पहले कु छ और िा। वाथतव में वपछले
कई सालों से गाँव वालों को िु सलाकर बताया जा रहा िा फक भारतवषव एक खेततहर देश है। गािंव
वाले इसका ववरोध नहीिं करते िे, पर प्रत्येक वक्ता शुरू से यह मानकर िलता िा फक गाँव वाले
इसका ववरोध करेंगे। ममसाल के मलए, समथया िी फक भारत वषव एक खेततहर देश है और
फकसान बदमाशी के कारण अचधक अन्न नहीिं उपजाते।''9 अपनी गलततयों को दरसरों पर आरोप
करना आज एक तर का हो गया। राजनीततक नेता अपने भाषण में देनेवाले योजनाएुँ चालर करते
है, लेककन वह तो शुरूवात में ह रह जाते है। इसके संदभथ में 'राग दरबार ' उपन्यास में श्रीलाल
शुक्ल ने प्रस्तुत ककया है कक “मैदान के एक कोने पर वन-सिंरक्षण, वृक्षारोपण आहद की कु छ
योजनाएँ भी िालू की गयी िीिं। वे िलीिं िा नहीिं, यह बहस की बात है।''10 इस प्रकार अपनी
स्वाथथ के ललए पररे समाज को भ्रष्ट कर रहे है।
आजकल के चुनाव में नारे लगाने की तर का खास व्यस्क्तयों को लेकर या धालमथक
भावनाओं को लेकर चल रहे है। लम्बे भाषण देने से लोग न सुनते हैं, उल्टा ऊब जाते हैं। छोटे-
छोटे नारे है तो अच्छा रहता है। जनता में उ्साह बढा सकते हैं। स्वतंत्र आंदोलन में बड़े-बड़े
लोग पवलभन्न नारे देकर संपरणथ भारतवालसयों को स्वतंत्र संग्राम की ओर आकपषथत ककया। परन्तु
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6. आज स्वाथथ राजनीतत से गलत नारे देकर खुद अपने कारोबार बढा रहे है। जनता को दोखा दे रहे
है। ‘राग दरबार ' में श्रीलाल शुक्ल ने इस पवषय को अ्यंत व्यंग्यपरणथ शैल में धचबत्रत ककया है।
यथा - “जय बोलने के मामले में हहन्दुथतानी का भला कोई मुकाबला कर सकता है। बात
मसयावर रामििंद्र से शुरू हुई, फिर पवनसुत हनुमान की जय। फिर न जाने कै से, वह जय सिाक्
से महात्मा गाँधी पर िूिी : बोल महात्मा गाँधी की जय। फिर तो हरी झण्डी हदख गयी। पिंडडत
जवाहरलाल नेहरू को एक जय दी गयी। एक–एक जय प्रदेशीय नेताओिं को। एक–एक जय स्जले
के नेताओिं को और फिर असली जय : बोले, वैद्य महाराज की जय।”11 इस प्रकार नेतागण वोट
पाने के ललए धालमथक भावनाएुँ या बड़े लोगों के नाम पर नारे लगाने की तर का आज प्रलसद्ध हो
गयी है।
राजनीतत के नाम पर आज अनेक हड़ताल चल रहे हैं। एक नेता, दरसरे नेता को मारना
या कायथकताथओं को मारना ये सब एक तरह से गुंडागदी कह सकते हैं। इससे समाज में चैन चले
जा रहे हैं। हर एक ददल में डर था कक चुनाव के समय कौन, कब मरता है ककसी को भी पता
नह ं चल रहा है। पता चलने पर भी पररे कानरन नेताओं के हाथ में रहने के कारण जनता ह
इसका बोझ ले रहे है। कोई नेता मरने से दरसरे नेताओं को मारना, इसके साथ अपना स्ता
जमाने के ललए जनता को डराना आज राजनीतत में साधारण पवषय हो गया है। इसका जीवंत
धचत्रण श्रीलालशुक्ल के प्रमुख उपन्यास ‘राग दरबार ’ में इस प्रकार प्रस्तुत ककया है कक
"ररपुदमन मसिंह ने अपने छोिे भाई सववदमन को बुलाकर प्रेम से कहा फक भाई, अगर इस लडाई
में मेरी जान तनकल जाय और मेरे साि में पच्िीस आदममयों की भी जान तनकल जाय, तो तुम
क्या करेंगे?........ भाई की बात का जवाब सववदमन ने आत्मववश्वास की वास्जब मािा के साि
हदया। बोले, भाई, अगर तुम और तुम्हारे पच्िीस आदमी इस लडाई में मारे गये तो दूसरी तरि
शिुघ्नमसिंह और उनके पिीस आदमी भी मारे जायेंगे। इतना तो हहसाब से होगा, उसके बाद जैसा
बताओिं, वैसा फकया जाये।''12 इस प्रकार ह आज हमार व्यवस्था चल रह है। ऐसे ह नह ं
राजनीतत को आज अ्याधुतनक और खतरनाक हधथयार बना ददया। नेतागण अपने चुनाव के
ललए चंदा लेने की तर का आज ददन-ब-ददन बढ रहे है। एक तरह से गुंडागदी कह सकते है।
इसका जीवंत धचत्रण 'बबस्रामपुर का संत' उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल इस प्रकार प्रस्तुत ककया है
कक “बम्बाई कलकत्ता के सेठों तक ही िुनाव-ििंदे को सीममत नहीिं रखते, वे ववदेशी वाणणज्य–
व्यापार में लूि की सिंभावनाओिं का अनुसिंधान कर रहे है। वे थमािव हैं। वे पािी को और खुद
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7. अपने को सरसब्ज कर रहे हैं। ध्रुव प्रदेशों और रेचगथतानों तक से पैसा तनिोडने की नयी
प्राववचधकी का वे आववष्ट्कार कर रहे हैं। एक-एक दाँव में करोडों डॉलर बिोरकर वे राजनीतत को
एक अत्याधुतनक और खतरनाक हचियार बना िुके हैं।"13
राजनैततक नेता हो या कोई यरतनयन की नेता हो समाज को लरटकर अपने जेब भरते है।
ये संस्कृ तत बहुत पहले से आ रहा है। इसका जीवंत धचत्रण 'पहला पड़ाव' उपन्यास में श्रीलाल
शुक्ल बड़े व्यंग्य के साथ प्रस्तुत ककया है। यिा : “मजदूर यूतनयन की हालत देणखए। उसके
नेताओिं ने मुआवजे के बारे में काँस-काँस कर इतना सोिा और अपनी कल्पना की राइिल से
स्जसे बडी दूर का तनशाना समझकर गोली िलाई, ....... उस होिल की अिंतरावष्ट्रीय श्रृिंखला हचिया
ली, इतने खराब रूपयों से उस आँिल किं पनी के अचधकािंश शेयरों को अपने बीिके स में डाल
मलया। िारों ओर भले ही मेरी पहुँि के बाहर हो, रूपए की नहदयों उिनाती हुई बह रही है। माना
फक उनमें गिंगा से भी लाख गुना ज्यादा प्रदूषण है पर उनका यह प्रदूषण ही हमारी सभ्यता का
ववभूषण है। कहीिं दूर नहीिं, यह सब सारे जहाँ से अच्छे अपने हहिंदोथतान में हो रहा है।''14 इसका
एक नमरना ‘राग दरबार ' उपन्यास में देख सकते हैं। राजनैततक नेता योजनाओं के रूप में ककसी
पुराने चीजों को थोड़ा-सा साफ करके , ककताबों में ललखते है कक ये चीज नया-नया बनाया। इसके
सम्बंधी धन नेताओं के जेब में चले जाते है। इस प्रकार सरकार धन लरट रहे है। इसका जीवंत
धचत्रण ‘राग दरबार ' उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल समझाते है कक “वाथतव में कु ओिं या तो वहाँ
पहले ही से, पर उन्होंने उसका जीणोद्धार करके , जमाने के िलन के हहसाब से सरकारी कागजों
से कू प-तनमावण का इन्दराज करा हदया िा जो फक अच्छा अनुदान खीिंिने के मलए नैततक तो
नहीिं, पर एक प्रकार की राजनीततक कारववाई िी”।15
नेतागण वोट माुँगते समय जातत के नाम पर अपना-पराया भेदभाव पैदा करवाकर अपना
उल्लर सीधा कर रहे हैं। लेककन इस प्रकार के भेदभाव के कारण जनता के बीच झगड़े पैदा होकर
आपस में एक दरसरे को मार रहे हैं। इस प्रकार अपने स्वाथथ के ललए राजनीततक नेतागण पररे
समाज को भ्रष्ट कर रहे हैं। दहन्दर-मुस्स्लम, लशव-वैष्णव, ब्राह्मण-शरद्र, अमीर-गर ब, धमथ और
जाततयों के आधार पर नेतागण चुनाव में जीत रहे हैं। इस प्रकार की कु रूततया ‘राग दरबार '
उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल ने प्रस्तुत ककया है कक – “ब्राह्मण उम्मीदवार ने सवणो के बीि
ऋग्वेद के पुरुष-सूक्त को कई बार पाठ फकया और समझाया फक ब्राहमण ही पुरुष-ब्रह्म का मुिंह
है। उसने यह भी बताया फक शूद्र पुरुष-ब्रह्म का पैर है। प्रधान के पद के बारे में उसने कई
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8. उदाहरण देकर बताया फक उसका सम्बन्ध मेधा और वाणी से है जो पैर में नहीिं होती, मसर में
होती है, स्जसमें मुिंह भी होता है। अतः ब्राह्मण को थवाभाववक रूप से प्रधान बनना िाहहए, न
फक शूद को। ब्राह्मण उम्मीदवार ने शूद्रों का ततरथकार करने के मलए। प्रिमलत गाली-गलौज का
सहारा नहीिं मलया िा, वह अपनी बात को इसी साथकृ ततक थतर पर समझाता रहा। उसने
ररआयत के तौर पर यह भी मान मलया फक कोई दौड-धूप का ऐसा काम, स्जसमें पैरों की
आवश्यकता हो - जैसे न्याय-पिंिायत के िपरासी का काम तनस्श्ित रूप से शूद्र को ही ममलना
िाहहए, पर प्रधान के पद के मलए शूद्र का खडा होना वेद-ववपरीत बात होगी।....... बताओ ठाकु र
फकसनमसिंह, क्या अब तुम उस....। उस के बाद कु छ गॉमलयाँ, बाद में वाक्य का दूसरा अिंश.........
को ही वोि दोगे?''16 चुनाव में जीतने के बाद अपने पद की मयाथदा के ललए गाुँधी के लसद्धांतों को
लेकर बात करते हैं। इसका धचत्रण ‘राग दरबार ’ उपन्यास में वैद्यजी के माध्यम से श्रीलाल
शुक्ल प्रस्तुत करता है कक – “वैद्यजी ने गम्भीरता से कहा, पद की मयावदा रखनी िाहहए।
प्रधानमिंिी बनाने के बाद गाँधी जी नेहरू जी का फकतना सम्मान करते िे। पारथपररक सम्बिंध
की बात दूसरी है, फकन्तु लोक-व्यवहार में पद की मयावदा रखनी िाहहए”।17 इस प्रकार
राजनीततक नेतागण अपनी इच्छा से व्यवहार कर देश के पवकास में बाधक बन रहे हैं। अपने
घर भरने के ललए न के वल व्यस्क्त, पररे समाज को लरट रहे है।
हमारे देश के सरकार गाुँवों के पवकास के ललए जो सहायता ग्रामीण जनता को द गई है,
उसका सदुपयोग नह ं हो रहा है। गाुँव के ललए मंजरर हुई सहकार आंदोलन का पररा लाभ
राजनैततक नेता उठा रहे हैं। आजकल राजनैततक नेता सहकार फामथ बनाकर, मुगी पालकर,
वनमहो्सव या सामुदातयक लमलन कें द्र आदद खोलकर सरकार सहायता लरट रहे हैं। आज के
सरकार ग्राटट साधारण जनता तक नह ं पहुंच रहे हैं। पररे समाज भ्रष्टाचार के कु चक्र में बुर
तरह से फुँ स गया हैं। श्रीलाल शुक्ल अपने उपन्यासों में इसका धचत्रण बडी व्यंग्या्मक रूप से
प्रस्तुत ककया है। ‘राग दरबार ' उपन्यास में काललका प्रसाद का पेशा सरकार ग्राटट और कजे
खाना था। इसका धचत्रण इस प्रकार है कक - "उनका पूरा कमवयोग सरकारी थकीमों की फिलासिी
पर हिका िा। मुगीपालन के मलए ग्राण्ि ममलने का तनयम बना तो उन्होंने मुचगवयाँ पालने का
ऐलान कर हदया। एक हदन उन्होंने कहा फक जातत-पािंतत त्रबल्कु ल बेकार की िीज है और हम
बाँभन और िमार एक है। यह उन्होंने इसीमलए कहा फक िमडा कमाने की ग्राण्ि ममलनेवाली िी।
िमार देखते ही रह गये और उन्होंने िमडा कमाने की गाण्ि लेकर अपने िमडे का ज्यादा
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9. चिकना बनाने में खिव भी कर डाली। खाद के गड्ढे को पक्का करने के मलए घर में त्रबना धुएँ
का िूल्हा लगवाने के मलए नये ढिंग का सिंडास बनवाने के मलए - कामलका प्रसाद ने ये सब
ग्राण्िे ली और इनके एवज में कारगुजारी की जैसी ररपोिव उनसे माँगी गयी वैसी ररपोिव उन्होंने
त्रबना फकसी हहिक के मलखकर दे दी।''18 यह नह ं कॉललज के ललए भी खेल-कर द सम्बंधी ग्राटट
माुँगते है। वन-महो्सव में पेड़ लगाने में भी सरकार ग्राटट को लरट रहे हैं। राजनैततक नेतागण
देश को आगे बढाने के अलावा पतनोन्मुख ददशा की ओर ले जा रहे है। इस प्रकार देश की
स्स्थतत ऐसे ह रहने से आगे बढाने में तकल फ पहुुँचते हैं। सरकार ग्राटट पाने के ललए ककस
प्रकार तड़प रहे हैं, ‘राग दरबार ' उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल बड़े मालमथक व्यंग्य के साथ प्रस्तुत
ककया है कक – “हर साल गाँव में वन–महोत्सव का जलसा होता िा, स्जसका अिव जिंगल में
वपकतनक करना नहीिं बस्ल्क बिंजर में पेड लगाना है और तब कभी-कभी तहसीलदार साहब, और
लाजमी तौर से बी.डी.ओ साहब, गाजे-बाजे के साि, उस पर पेड लगाने जाते िे। इस जमीन को
कामलज की सम्पस्त्त बनाकर इण्िरमीडडएि में कृ वष-ववज्ञान की कक्षाएँ खोली गयी िीिं। इसी को
अपना खेलकू द का मैदान बताकर गाँव के नवयुवक, युवक-मिंगल दल के नाम पर, हर साल
खेलकू द सम्बन्धी ग्राण्ि ले आया करते िे। इसी जमीन को सनीिर ने अपने कमवक्षेि के मलए
िुना।"19 इस प्रकार की स्स्थतत में सरकार व्यवस्था सहकार फामथ ककस प्रकार आगे बढ रहे हैं,
स्जसका जीवंत धचत्रण 'बबस्रामपुर का संत' उपन्यास में श्रीलाल शुक्ल मालमथक ढंग से प्रस्तुत
ककया है कक - "........सहकारी िामव अब एक उजाड बिंजर भर है, बीहड में बदल रहा है। इसके
कई सदथय इथतीिा देकर बाहर िले गये है। वे शहर में ईंिगारा ढो रहे हैं, ररक्शा िला रहे हैं।
िामव की जमीन पर झाडडयाँ उग आयी हैं, नदी की तरि भरके तनकल रहे हैं। िामव की सममतत
के पास यह साधन नहीिं है फक नीिे की तरि बिंधा बनवाये, पानी का इिंतजाम करे, सारी जमीन
को रैक्िर से जुताया जाए और खाद देकर उसमें खेती करायी जाए। अब इसका उद्धार इसी में है
फक सरकार अपनी एक नयी योजना में इसे लेकर कु छ साल खुद उन्नत ढिंग की खेती कराये।
इस योजना का नाम बीहड-सुधार-योजना है। वे बुलडोजर िलाकर जमीन को हमवार करेंगे,
किान रोकने के मलए नदी की तरि बाँध बनाएँगे, उस पर घनी घास और झाडडयाँ उगाऐिंगे,
मसिंिाई का इिंतजाम करेंगे और जब जमीन पर दो-तीन िसलें कि िुकें गी तब भूदान सममतत के
प्रथताव के अनुसार उसे आप लोगों को अपनी-अपनी तनजी खेती के मलए बाँि देंगे। इस वक्त जो
हालत है, उसमें अपने आप कोई बदलाव नहीिं आएगा। मुदाव छोडे को िाहे स्जतने कोडे मारो, वह
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10. िल िोडे ही पाएगा।''20 इस प्रकार सरकार ग्राटट आजकल के नेतागण के हाथ में आ रहे है।
इसका स्पष्ट उदाहरण आजकल के समाज ह है।
तनष्ट्कषव :
जनता के प्रतततनधध्व के रूप में संपवधान में बैठे नेतागण देश के पवकास में अग्रसर
होना है। लेककन अपने स्वाथथ की परततथ के ललए नेतागण जी रहे है। स्वाथथ के कारण समाज के
प्रतत अपने दातय्व भरल रहे है। चुनाव जीतने के ललए क्या क्या कर रहे है, स्जसका जीवंत धचत्रण
श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में धचबत्रत ककया है। गाुँव की राजनैततक स्जंदगी, नेतागण वोट माुँगते
समय जातत के नाम पर अपना-पराया भेदभाव पैदा करवाना, ककसानों के प्रतत सहानुभरतत बातें...
उनके भलाई के अलावा शोषण, चुनाव के ललए चंदा लेने की तर का, गुंडागदी, भ्रष्टाचार कु चक्र
में बुर तरह से फुँ स गया हैं। श्रीलाल शुक्ल अपने उपन्यासों में इसका धचत्रण बडी व्यंग्या्मक
रूप से प्रस्तुत ककया है।
सिंदभव सूिी :
1. आुँचललक उपन्यास : और – . ज्ञानचंद्र गुप्त – पृ. 74
2. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 6
3. बबस्रामपुर का संत – श्रीलालशुक्ल – पृ. 6
4. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 15
5. बबस्रामपुर का संत – श्रीलालशुक्ल – पृ. 10
6. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 198
7. पहला पड़ाव - श्रीलालशुक्ल – पृ. 167
8. पहला पड़ाव - श्रीलालशुक्ल – पृ. 133
9. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 57
10. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 143
11. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 140
12. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 202
13. बबस्रामपुर का संत – श्रीलालशुक्ल – पृ. 86
14. पहला पड़ाव - श्रीलालशुक्ल – पृ. 193
15. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 198
16. रागदरबार – श्रीलालशुक्ल – पृ. 204
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