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चक्र – एक उर्जा स्त्रोत
घंटाली मित्र िंडल
योग पदमिका अभ्यासक्रि
चक्र – एक उर्जा स्त्रोत
घंटाली मित्र िंडल
योग पदमिका अभ्यासक्रि
चक्र – एक उर्जा स्त्रोत
घंटाली मित्र िंडल
योग पदमिका अभ्यासक्रि
१)चक्र क्या है
२)चक्र मकतने है
३)चक्र कहााँ मथित है
४)चक्र, प्राण और नाडी का सम्बन्ध
५)चक्र और थिाथ्य का सम्बन्ध
६)चक्र और अध्यात्ि का सम्बन्ध
७)चक्र और योग
िूलाधार (Root chakra)
• रीढ़ की हड्डी के सबसे मनचले महथसे पर, गुदा एिं जननेमन्ियों के बीच
• शारीररक अंग: प्रजनन ग्रंमि, पीठ, पााँि, कूल्हों, अण्डाशय, योमन, रीढ़ और पैरों, इम्यून मसथटि,
हड्मडयों के जॉइंट, प्रणत ग्रंमि, आमद।
• शारीररक ऊजाा, आत्िसंरक्षण, तिा िूल मसद्ांतों का कें ि
• यह सुरक्षा, अमथतत्ि और िानि की िौमलक क्षिता से सम्बंमधत
• आमद शमि कुण्डमलनी का मनिास | प्रामणक मिज्ञान िें िूलाधार प्राण की उत्पमि का स्रोत है।
यह चक्र आज्ञा चक्र को जाग्रत करने का मथिच भी है। िूलाधार उत्पादक और आज्ञा मितरक
है। िूलाधार ही ब्रह्म ग्रंमि का थिान है ।
संतुमलत होने पर - आत्ि-कें मित और व्यिहार-मथिरता, थितंत्र, लगन, ऊजाािान, जीिंत,
शमिशाली, उिि पाचन शमि
असंतुमलत होने पर - अकारण भय, क्रोध, असुरक्षा, अमिश्वास, किजोरी, आत्ि-सम्िान का
ह्रास, सुख-साधनो िें अत्यमधक मलप्त होना, िृत्युिन््छाना शारीररक समस्याएं - खून की किी,
हाि पैर ठंडे रहना
तत्त्ि पृ्िी, अन्निय
रंग गहेरा लाल
पंखुमडयां चार
िंत्र लं
थिर सा
िूलाधार (Root chakra)
• योग साधना
• आसन - पिनिुिासन, सेतुबंधासन, शलभासन, पमथचिोिानासन, हथतपादासन, िज्रासन,
योग िुिा, दण्डासन
• आहार - लाल रंग का आहार - टिाटर, लाल मिचा, अनार, तरबूज
• कं दिूल - जड़ िाली समजजयां, गहरे रंग के पिेदार साग, बीन्स, छोले, टोफू, नट्स जैसे खाद्य
पदािा ।
तत्त्व पृथ्वी
रंग लाल
पंखुडियां चार
मंत्र लं
स्वर सा
थिामधष्ठान, मतल्ली, मत्रकामथि चक्र - (Sacral chakra) 'थियं का आिास'।
• िूलाधार के अत्यन्त मनकट, अनुमत्रक पर मथित
• ग्रंमि; एमिनल, इमन्िय: थिाद,
• शारीररक: प्रजनन अियि और ग्रंमि, िूत्राशय, आंत्र तिा मनचली आंतों को मनयंमत्रत करता है, मलिर,
पेनमक्रयाज, एमिनल ग्रंमि
• शमि का एक केंि, इसिें सभी संथकार एिं थिृमतयााँ संगृहीत रहती हैं । िनोमिज्ञान के अनुसार थिामधष्ठान
अिचेतन िन से सम्बद् होता है ।
• जब यह चक्र समक्रय हो जाता है तब भोजन एिं यौन सुख की चाह बढ़ जाती है।
• तीन गुणों के संदभा िें िूलाधार और थिामधष्ठान िुख्यतया तिस, िन्दता एिं अज्ञान से प्रभामित रहते हैं।
• संतुमलत होने पर: व्यमि मिश्वास से पूणा और भािनात्िक थतर पर संतुमलत िहसूस करता है, अपनी रूमच के
अनुसार काया करने िें िन लगेगा, जीिन िें कुछ करने का जुनून होगा, सिाज िें मिलजुल कर रह पाएंगे
• असंतुमलत होने पर - पेशाब से संबंमधत सिथयाएं, मनसंतानता, शुक्राणु का कि होना , एलजी की सिथया होना,
खाने से और पाचन िें संबंमधत सिथयाएं, आत्िमिश्वास की किी, मचंता करना, तनािग्रथत होना , आपके अंदर
की मक्रएमटमिटी खत्ि हो जाना , भािनाओंपर मनयंत्रण नहीं, सेक्स के प्रमत ज़ुनून
तत्त्ि जल, प्राणिय
रंग मसंदूरी
पंखुमडयां छ:
िंत्र िं
थिर रे
थिामधष्ठान, मतल्ली, मत्रकामथि चक्र - (Sacral chakra) 'थियं का आिास'।
• योग साधना
• आसन – उत्कटासन, बकासन, सेतुबंधासन, शलभासन, भिासन, सुप्त िज्रासन, मत्रकोणासन
• आहार : नारंगी रंग के खाद्य पदािा जैसे मक संतरा, गाजर, आि, कद्दू, शकरकं द, और खरबूजा
आपको अपने दूसरे चक्र िें संतुलन बहाल करने िें िदद करेंगे। उ्च जल सािग्री िाले खाद्य
पदािा - सुमनमित करें मक आपका आहार ताजे, जैमिक फलों और समजजयों िें प्रचुर िात्रा िें है
• भोजन के प्रकार जो हि खाते हैं िह आपके मत्रक चक्र के मलए उतना िहत्िपूणा नहीं है मजतना मक
भोजन के साि आपका भािनात्िक संबंध। जब आप अपना भोजन तैयार करते हैं तो
रचनात्िकता का उपयोग करें और अपने पसंदीदा खाद्य पदािा खाते सिय मिमभन्न प्रकार के
थिादों के साि एक सुखद अनुभि का लक्ष्य रखें।
तत्त्ि जल, प्राणिय
रंग मसंदूरी
पंखुमडयां छ:
िंत्र िं
थिर रे
िमणपुर चक्र (सौर जाल) नाभि कें द्र(Solar plexus) 'रत्नों की पुरी
• नामभ के पीछे िेरुदण्ड िें मथित
• धन सम्पदा का प्रतीक (सूया देि का प्रतीक), यह प्राण का भण्डार होता है
• शारीररक अंग: पेंमक्रअस, पेट, जलैडर, रीड की हड्डी का िध्य महथसा, प्लीहा, ऊपरी आंत, ऊपरी
पीठ तिा ऊपरी रीढ़ को संचामलत करता है
• इस चक्र का सम्बन्ध ऊष्िा, जीिनी शमि, गमतशीलता, उत्पादन एिं परररक्षण से होता है।
• िमणपुर सिथत शरीर िें प्रामणक ऊजाा का मिमकरण तिा मितरण करता है
• िमणपुर िुख्यत: रजस, अिाात् मक्रयाशीलता, साि्या एिं इ्छाशमि से प्रभामित होता है।
संतुमलत ओने पर िनुष्य सभी दुखों ि कष्टों से िुमि पा लेता है। दृढ़ मनियी होना तिा ज्ञान की प्रामप्त
होना, हंसी िजाक िाला थिभाि होना, खुद पर आत्ि मनयंत्रण होना, मजज्ञासु होना, अिेयरनेस और
आत्ि सम्िान बढ़ना
असंतुमलत होने पर - शुगर की सिथया, दथत लगना, खाना ठीक से ना पचना, हेपेटाइमटस की
सिथया, पेट से संबंमधत सभी प्रकार की सिथयाएं | व्यमियों के सािने निास हो जाना खुद के
व्यमित्ि के छोटेपन का एहसास होना याददाश्त किजोर होना आत्ि सम्िान िें किी होना लोगों से
मिलने से डर लगना खुद की इिेज खो देने का डर रहना
तत्त्व अग्नि, प्राणमय
रंग चटकीला पीला
पंखुडियां दस
मंत्र रं
स्वर ग
िमणपुर चक्र (सौर जाल) नाभि कें द्र(Solar plexus) 'रत्नों की पुरी
• योग साधना
• आसन – सूयानिथकार, प्लेंक पोथचर, पिन िुिासन, पुिोिानासन, िोणासन, धनुरासन,
मत्रकोणासन, १५ से २० मिनट सूयाप्रकाश लेना, शुमद् मक्रया – कपालभामत, अमननसार
• अपने आहार िें थिथि भोजन शामिल करना आपके यह चक्र को संतुमलत करना शुरू करने का
एक तरीका है क्योंमक भोजन ऊजाा का प्रमतमनमधत्ि करता है, जो हिें शमि देता है।
• आपका चक्र भोजन के पाचन, अिशोषण का कें ि है, और यह आपके द्वारा खाए जाने िाले खाद्य
पदािों को ऊजाा िें बदल देता है मजसे आप जीिन िें उपयोग कर सकते हैं।
• थिथि िमनपुर चक्र पीले रंग के सिान आिृमि पर कं पन करता है, इसमलए पीले रंग के खाद्य
पदािा जैसे के ला, अनानास, नाशपती, अंगूर, आि, अदरक, पीली बीन्स, पीले िटर, िसूर खाने
से आपको िदद मिलेगी अपने तीसरे चक्र िें संतुलन बहाल होगा
तत्त्व अग्नि, प्राणमय
रंग चटकीला पीला
पंखुडियां दस
मंत्र रं
स्वर ग
अनाहत चक्र (हृदय चक्र) (Heart Chakras) जो आघात से उत्पन्न न हुआ हो।
• हृदय के पीछे िेरुदण्ड िें मथित
• शारीररक अंग: यह चक्र िायिस, हृदय, रि, फेफड़े, प्रमतरक्षा, संचार और अन्तःस्रािी प्रणाली से सम्बमन्धत है।
• अनहद नाद के िल ध्यान की उ्च अिथिा िें ही सुनाई देता है।
• यह चक्र शुद् भािनाओंको जगाता है। मजसका अनाहत मिकमसत होता है, िह सािान्यत: दूसरों की भािनाओं
के प्रमत अत्यन्त संिेदनशील होता है।
• संतुमलत: अनाहत चक्र उिरदामयत्ि, पूणा सुरक्षा, मिश्वास तिा सादगी प्रदान करता है। इसी हृदय िें िैमश्वक
बंधुत्ि और समहष्णुता जन्ि लेती है, दूसरों को या तो थपशा से या ऊजाा के मिमकरण द्वारा थिथि मकया जा
सकता है।
• मिष्णु ग्रंमि, जो भािनात्िक आसमि की द्योतक है, यहीं मथित होती है। जब यह ग्रंमि खुल जाती है तब व्यमि
सभी थिािापूणा, अहंकारपूणा और भािनात्िक आसमियों से िुि हो जाता है तिा उसे िानमसक एिं
भािनात्िक मनयन्त्रण, संतुलन और शांमत प्राप्त होती है।
• इस थतर पर व्यमि प्रारजध से िि होकर अपनी मनयमत को मनयमन्त्रत करने लगता है।
• असंतुमलत: सांस लेने की सिथया , फेफड़ों से संबंमधत सिथया , ब्रेथट कैं सर , उपरी किर तिा कं धों िें ददा की
सिथया , प्रेि सम्बन्धी कमठनाइयााँ उत्पन्न होती हैं। लोगों के प्रमत नफरत और घृणा का भाि पैदा होना ,
अनऔदाया, यह असन्तुलन बाल्यग्रंमि तिा अन्त्रःस्रािी ग्रंमि को उिेमजत करता है। ये दोनों ग्रंमियााँ अनाहत
चक्र से संबद् हैं। दिा तिा अन्य हृदय संबंधी मिकार चक्र के मनमष्क्रय होने से उत्पन्न होते हैं।
तत्त्व वायु, मिोमय
रंग हरा
पंखुडियां बारह
मंत्र यं
स्वर म
अनाहत चक्र (हृदय चक्र) (Heart Chakras) जो आघात से उत्पन्न न हुआ हो।
• योग साधना
• आसन – शलभासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्रासन, चक्रासन, पुिोिानासन, िोणासन,
सेतुबंधासन, अधा ित्थयेन्िासन,
• प्राणायाि – उदर श्वसन, अनुलोि मिलोि, कपालभामत, अमननसार,
• आहार - उ्च चक्रों के मलए भौमतक भोजन का अमधक प्रतीकात्िक अिा है। आपके हृदय चक्र
के मलए सबसे अ्छा "भोजन" आनंद, उद्देश्य, करुणा, थिीकृमत और प्रेि से भरा जीिन होगा।
• हृदय चक्र हर भोजन को प्यार से भरकर खुले मदल से शारीररक भोजन करने के बारे िें है।
• फल - एिोकाडो, हरे अंगूर, कीिी, नाशपती, हरे सेब, समजजयां - गहरे रंग के पिेदार साग (के ल,
पालक), ब्रोकोली, अजिाइन, लेट्यूस
तत्त्व वायु, मिोमय
रंग हरा
पंखुडियां बारह
मंत्र यं
स्वर म
मिशुद् चक्र (कण्ठ चक्र) (Throat Chakras) शुमद्करण का केन्ि
• मेरुदण्ि में गले क
े पीछे ग्स्ित
• शारीररक अंग: िाइरॉयड ग्रंमि ि फेफड़ों से जुड़ा होता है। चयापचय, िोकल कोड्ास, फेररंक्स
इसोफैगस को मनयंमत्रत करता है।
• के न्ि: अमभव्यमि को प्रभामित करता है। तरुणाई का स्रोत मािा जाता है।
• यह सहज ज्ञान तिा बुमद्ििा का आधार है।
• संतुमलत: उमचत-अनुमचत का भेद बेहतर कर पाता है, कम्युमनके शन मथकल अ्छी होती है,
लोगों के सािने अपनी बात को कहने की महम्ित आती है व्यमि िें गायन तिा भाषण की
प्रमतभा होती है
• असंतुमलत: गले से संबंमधत सिथयाएं, जीभ से संबंमधत सिथया, दांतों की सिथया, व्यमि ठीक
से अपने आप को एक्सप्रेस नहीं कर पाता, मक्रएमटमिटी कि हो जाती है, मनणाय लेने की क्षिता
िें किी हो जाती है
• मनमष्क्रय: तो सदी-जुकाि, खांसी, िाइरॉयड जैसी सिथयाएाँ उत्पन्न हो जाती हैं तिा संप्रेषण भी
प्रभामित होता है। अमधक समक्रय हो, तो िनुष्य िाचाल हो जाएगा।
तत्त्ि आकाश,मिज्ञानंिय
रंग नीला
पंखुमडयां १६
िंत्र ह्र
थिर प
मिशुमद् चक्र (कण्ठ चक्र) (Throat Chakras) शुमद्करण का केन्ि
• योग साधना - गदान का व्यायाि
• आसन –भुजंगासन, िाजाारासन, शीषाासन, सिंगासना, हलासन, ित्थयासन, मसंहिुिा, ब्रह्मिुिा,
• प्राणायाि – थकं ध श्वसन, अनुलोि मिलोि, उज्जायी, भ्रािरी, कपालभामत,
• धारणा, ध्यान
• आहार – मिशुमद् चक्र आपके शुमद्करण के कें ि के रूप िें जाना जाता है, इसमलए मिमभन्न
प्रकार के उपिास और डीटोक्सीमफके शन तकनीक मिशुमद् के मलए बहुत फायदेिंद हैं।
• अपने भोजन के दौरान दूसरों के साि आदान-प्रदान न करें। धीिी गमत से खाने का लक्ष्य रखें
और अपने भोजन को चबाएं। भोजन के दौरान अपनी इंमियों पर ध्यान दें । भोजन के मलए
अपना आभार व्यि करें। अपने भोजन के मलए के िल उ्चति गुणििा िाली सािग्री चुनें
तत्त्ि आकाश,मिज्ञानंिय
रंग नीला
पंखुमडयां १६
िंत्र ह्र
थिर प
आज्ञा चक्र, ज्ञानचक्षु मत्रिेणी, गुरूचक्र तिा मशि का नेत्र (Ajna Chakras)
• दोनों आंखों की भोहों के िध्य िें, आज्ञा प्रबोधक क
े न्द्र है।
• शारीररक अंग:आज्ञा चक्र प्रत्यक्ष रूप से पीयूष ग्रंमि तिा िमथतष्क से सम्बमन्धत है,हृदजो
अन्तःस्रािी प्रणाली से जुड़ने के मलए हािोन्स स्रामित करता है और इसके अमतररि यह
अधःिेतक के द्वारा कें िीय तंमत्रका तंत्र को जोड़ता है।
• संतुमलत ओने पर व्यमि िें नए-नए आमिष्कार करने की क्षिता पैदा होती है।, टेलीपैिी , िन
हिेशा आनंमदत रहता है।
• असंतुमलत: मसर ददा, िाइग्रेन, आंखों से संबंमधत सिथया, कानों से संबंमधत सिथया, कानों िें
ददा, रात िें डरािने सपने आना, मदिाग ठीक से काि न करना, यादाश्त किजोर होना, व्यमि
कल्पना की दुमनया िें रहने लगता है तिा िमतभ्रि िें पड़ जाता है | मनणाय नहीं ले पाना, मदिाग
िें हिेशा कं फ्यूजन रहना, मडमसमप्लन िें नहीं रहना बात-बात पर इिोशनल हो जाना , मनमष्क्रय
हो तो व्यमि नकारात्िक सोच, िकान तिा उदासीनता से ग्रथत रहता है।
• यह एक द्वार है, जो हिारी चेतना के मलए आगे का िागा प्रशथत करता है, तामक िह गंतव्य तक
पहुंच सके , जो सातिााँ के न्ि है।
• इस चक्र िें मदव्य मचन्तन, प्राणायाि तिा गुरु की कृपा के द्वारा प्रिेश मकया जा सकता है।
तत्त्ि प्रकाश, मिज्ञानंिय
रंग नील
पंखुमडयां २
िंत्र ॐ
थिर ध
आज्ञा चक्र, ज्ञानचक्षु मत्रिेणी, गुरूचक्र तिा मशि का नेत्र (Ajna Chakras)
• योग साधना
• आसन – सूया निथकार, िज्रासन, पद्मासन, योग िुिा, पिनिुिासन, पमििोिानासन, मिपरीत
करणी िुिा, शीषाासन, प्रणािासन, शशांकासन
• प्राणायाि – दीघा श्वसन, अनुलोि मिलोि, उज्जायी, कपालभामत,
• आहार – अत्यमधक कै फीन (और अन्य उिेजक) के सेिन से बचें। शराब और नशीली दिाओं
के सेिन से बचें।
• जलूबेरी, जलैकबेरी, अंगूर, बैंगनी गोभी, अंजीर, आलूबुखारा, बैंगनी, आलू, और मकसी भी
अन्य बैंगनी रंग के खाद्य पदािा।
तत्त्ि प्रकाश, मिज्ञानंिय
रंग नील
पंखुमडयां २
िंत्र ॐ
थिर ध
ललना, मबन्दु चक्र, िन चक्र चन्ि केंि
आिन्द्दमय कोश
• अधःिेतक िें मथित, जहााँ ब्राह्मण मशखा रखते हैं।
• यही िह परि स्रोत है जहााँ से सभी िथतुएाँ प्रकट होती हैं और पुन: इसी िें मिलीन हो जाती हैं।
• मबन्दु शून्य िें प्रिेश करने का द्वार है।
• मबन्दु का प्रतीक अद्ाचन्ि के िध्य अिृत की एक श्वेत बूंद है।
• मबन्दु का चन्ििा प्राणदायक अिृत उत्पन्न करता है और िमणपुर का सूया इसका उपभोग करता
है।
• यह हिारे शरीर का एकिात्र सबसे िहत्िपूणा मबंदु है जहां हिारी सभी शारीररक, भािनात्िक
और आध्यामत्िक भािनाएं मिलती हैं।
• यह एक "थिाथ्य कें ि" है जो शारीररक, िानमसक और आध्यामत्िक थिाथ्य िें सुधार लाता
है,
• संतुमलत ओने पर इस चक्र का काया िहत्िपूणा िमथतष्क तरल पदािों तिा लिणों आमद का
मनिााण करना है, जो चेतना से संबद् हैं।
• ये हिारे मिचारों, भािनाओंऔर संथकृमत को प्रभामित करते हैं। हि इस थिान को 'िन' कह
सकते हैं, जहााँ से सभी मिचार और िनोदशाएं उभरती हैं।
सहस्रार चक्र िुकुट केंि (Crown Chakras) चेतना का सर्वोच्च स्थान
• यह मसर के शीषा पर मथित होता है । िाथति िें यह चक्र नहीं है, क्योंमक यह मचि के क्षेत्र से परे है।
• शारीररक अंग: मदिाग का ऊपरी महथसा, सेरेब्रल, कोरटेक्स, सेरीब्रि, मपट्यूटरी ग्रंमि
• शीषा ग्रंमि से सम्बमन्धत है, जो संिेदनशील है तिा िेलाटोमनन हािोन बनाती है। यह ग्रंमि बचपन िें
बड़ी होती है, परन्तु पररपक्िता िें मसकुड़ जाती है।
• सहस्रार िूलाधार से आज्ञा तक के सभी चक्रों के जागरण को मनयमन्त्रत करने की िुख्य कुं जी है।
• संतुमलत ओने पर यह मनिा तिा जागरण को मनयमित करता है। यह जब अ्छी तरह से काया करती
है, तब व्यमि की िैचाररक शमि तिा बुमद् िें सुधार आता है। सहस्त्रार चक्र परिात्िा और यूमनिसा
से जुड़ा हुआ चक्र है।, इंसान िें त्याग की भािना उत्पन्न होती है।, व्यमि को आत्िानुभूमत और ईश्वर
की अनुभूमत का एहसास होता है।
• आज्ञा चक्र व्यमि को तंमत्रका तंत्र प्रणाली के िाध्यि से परि सत्य की प्रत्यक्ष अनुभूमत िें सहायता
करता है। यह चक्र सभी चक्रों की योनयताओंका सिमन्ित रूप है।
• असंतुमलत: मदिाग से संबंमधत सिथयाएं, त्िचा से संबंमधत सिथया, ट्यूिर जैसी बीिारी होना,
जीिन िें लक्ष्य की किी होना, ईश्वर िें मिश्वास ना होना
• सहस्रार चक्र िें कुण्डमलनी अपने स्रोतों के साि मिलीन हो जाती है तिा परि आनन्द प्राप्त करती है
तत्त्ि चेतना, आनंदिय
रंग बैंगनी
पंखुमडयां सहस्र
िंत्र ॐ
थिर नी
थिामधथठान
िैं अपनी इ्छा का सम्िान करता ह।ं।
िैं अपने शरीर और रूप को लेकर आश्वथत ह।ं
िैं अपनी भािनाओंको व्यि करता ह।ं
६. आज्ञा
िैं अपनी अंतः प्रज्ञा का पालन करता ह।ं
िैं थपष्ट रूप से देखता और सोचता ह।ं
िुझे अपने फैसले पर भरोसा है
7. सहस्रार
िैं मदव्य आत्िा ह।ाँ
िैं अनंत और असीि ह।ाँ
सभी लोग थिथि है
िूलाधार
१)िैं सुरमक्षत ह।ाँ
२)िैं जागरूक ह।ं
३)िेरा शरीर एकदि थिथि है
िमणपुर
िेरी क्षिता असीमित है
िैं साहस के साि काया करता ह।ं
िैं शमिशाली ह।ाँ
४. अनाहत
िैं थियं एिं दूसरों से प्यार करता ह।ं
िैं शांत ह।ाँ
िैं थियं एिं दूसरों को क्षिा करता ह।ं
५. मिशुमद्
िैं सच बोलता ह।ाँ
िेरी आिाज थपष्ट है
िैं ईिानदार ह।ाँ
संकल्प
Resolution
हरि ॐ तत् सत्
हरि ॐ तत् सत्

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Chakra sankalpana - energy source

  • 1. चक्र – एक उर्जा स्त्रोत घंटाली मित्र िंडल योग पदमिका अभ्यासक्रि चक्र – एक उर्जा स्त्रोत घंटाली मित्र िंडल योग पदमिका अभ्यासक्रि चक्र – एक उर्जा स्त्रोत घंटाली मित्र िंडल योग पदमिका अभ्यासक्रि
  • 2. १)चक्र क्या है २)चक्र मकतने है ३)चक्र कहााँ मथित है ४)चक्र, प्राण और नाडी का सम्बन्ध ५)चक्र और थिाथ्य का सम्बन्ध ६)चक्र और अध्यात्ि का सम्बन्ध ७)चक्र और योग
  • 3.
  • 4.
  • 5.
  • 6. िूलाधार (Root chakra) • रीढ़ की हड्डी के सबसे मनचले महथसे पर, गुदा एिं जननेमन्ियों के बीच • शारीररक अंग: प्रजनन ग्रंमि, पीठ, पााँि, कूल्हों, अण्डाशय, योमन, रीढ़ और पैरों, इम्यून मसथटि, हड्मडयों के जॉइंट, प्रणत ग्रंमि, आमद। • शारीररक ऊजाा, आत्िसंरक्षण, तिा िूल मसद्ांतों का कें ि • यह सुरक्षा, अमथतत्ि और िानि की िौमलक क्षिता से सम्बंमधत • आमद शमि कुण्डमलनी का मनिास | प्रामणक मिज्ञान िें िूलाधार प्राण की उत्पमि का स्रोत है। यह चक्र आज्ञा चक्र को जाग्रत करने का मथिच भी है। िूलाधार उत्पादक और आज्ञा मितरक है। िूलाधार ही ब्रह्म ग्रंमि का थिान है । संतुमलत होने पर - आत्ि-कें मित और व्यिहार-मथिरता, थितंत्र, लगन, ऊजाािान, जीिंत, शमिशाली, उिि पाचन शमि असंतुमलत होने पर - अकारण भय, क्रोध, असुरक्षा, अमिश्वास, किजोरी, आत्ि-सम्िान का ह्रास, सुख-साधनो िें अत्यमधक मलप्त होना, िृत्युिन््छाना शारीररक समस्याएं - खून की किी, हाि पैर ठंडे रहना तत्त्ि पृ्िी, अन्निय रंग गहेरा लाल पंखुमडयां चार िंत्र लं थिर सा
  • 7. िूलाधार (Root chakra) • योग साधना • आसन - पिनिुिासन, सेतुबंधासन, शलभासन, पमथचिोिानासन, हथतपादासन, िज्रासन, योग िुिा, दण्डासन • आहार - लाल रंग का आहार - टिाटर, लाल मिचा, अनार, तरबूज • कं दिूल - जड़ िाली समजजयां, गहरे रंग के पिेदार साग, बीन्स, छोले, टोफू, नट्स जैसे खाद्य पदािा । तत्त्व पृथ्वी रंग लाल पंखुडियां चार मंत्र लं स्वर सा
  • 8. थिामधष्ठान, मतल्ली, मत्रकामथि चक्र - (Sacral chakra) 'थियं का आिास'। • िूलाधार के अत्यन्त मनकट, अनुमत्रक पर मथित • ग्रंमि; एमिनल, इमन्िय: थिाद, • शारीररक: प्रजनन अियि और ग्रंमि, िूत्राशय, आंत्र तिा मनचली आंतों को मनयंमत्रत करता है, मलिर, पेनमक्रयाज, एमिनल ग्रंमि • शमि का एक केंि, इसिें सभी संथकार एिं थिृमतयााँ संगृहीत रहती हैं । िनोमिज्ञान के अनुसार थिामधष्ठान अिचेतन िन से सम्बद् होता है । • जब यह चक्र समक्रय हो जाता है तब भोजन एिं यौन सुख की चाह बढ़ जाती है। • तीन गुणों के संदभा िें िूलाधार और थिामधष्ठान िुख्यतया तिस, िन्दता एिं अज्ञान से प्रभामित रहते हैं। • संतुमलत होने पर: व्यमि मिश्वास से पूणा और भािनात्िक थतर पर संतुमलत िहसूस करता है, अपनी रूमच के अनुसार काया करने िें िन लगेगा, जीिन िें कुछ करने का जुनून होगा, सिाज िें मिलजुल कर रह पाएंगे • असंतुमलत होने पर - पेशाब से संबंमधत सिथयाएं, मनसंतानता, शुक्राणु का कि होना , एलजी की सिथया होना, खाने से और पाचन िें संबंमधत सिथयाएं, आत्िमिश्वास की किी, मचंता करना, तनािग्रथत होना , आपके अंदर की मक्रएमटमिटी खत्ि हो जाना , भािनाओंपर मनयंत्रण नहीं, सेक्स के प्रमत ज़ुनून तत्त्ि जल, प्राणिय रंग मसंदूरी पंखुमडयां छ: िंत्र िं थिर रे
  • 9. थिामधष्ठान, मतल्ली, मत्रकामथि चक्र - (Sacral chakra) 'थियं का आिास'। • योग साधना • आसन – उत्कटासन, बकासन, सेतुबंधासन, शलभासन, भिासन, सुप्त िज्रासन, मत्रकोणासन • आहार : नारंगी रंग के खाद्य पदािा जैसे मक संतरा, गाजर, आि, कद्दू, शकरकं द, और खरबूजा आपको अपने दूसरे चक्र िें संतुलन बहाल करने िें िदद करेंगे। उ्च जल सािग्री िाले खाद्य पदािा - सुमनमित करें मक आपका आहार ताजे, जैमिक फलों और समजजयों िें प्रचुर िात्रा िें है • भोजन के प्रकार जो हि खाते हैं िह आपके मत्रक चक्र के मलए उतना िहत्िपूणा नहीं है मजतना मक भोजन के साि आपका भािनात्िक संबंध। जब आप अपना भोजन तैयार करते हैं तो रचनात्िकता का उपयोग करें और अपने पसंदीदा खाद्य पदािा खाते सिय मिमभन्न प्रकार के थिादों के साि एक सुखद अनुभि का लक्ष्य रखें। तत्त्ि जल, प्राणिय रंग मसंदूरी पंखुमडयां छ: िंत्र िं थिर रे
  • 10. िमणपुर चक्र (सौर जाल) नाभि कें द्र(Solar plexus) 'रत्नों की पुरी • नामभ के पीछे िेरुदण्ड िें मथित • धन सम्पदा का प्रतीक (सूया देि का प्रतीक), यह प्राण का भण्डार होता है • शारीररक अंग: पेंमक्रअस, पेट, जलैडर, रीड की हड्डी का िध्य महथसा, प्लीहा, ऊपरी आंत, ऊपरी पीठ तिा ऊपरी रीढ़ को संचामलत करता है • इस चक्र का सम्बन्ध ऊष्िा, जीिनी शमि, गमतशीलता, उत्पादन एिं परररक्षण से होता है। • िमणपुर सिथत शरीर िें प्रामणक ऊजाा का मिमकरण तिा मितरण करता है • िमणपुर िुख्यत: रजस, अिाात् मक्रयाशीलता, साि्या एिं इ्छाशमि से प्रभामित होता है। संतुमलत ओने पर िनुष्य सभी दुखों ि कष्टों से िुमि पा लेता है। दृढ़ मनियी होना तिा ज्ञान की प्रामप्त होना, हंसी िजाक िाला थिभाि होना, खुद पर आत्ि मनयंत्रण होना, मजज्ञासु होना, अिेयरनेस और आत्ि सम्िान बढ़ना असंतुमलत होने पर - शुगर की सिथया, दथत लगना, खाना ठीक से ना पचना, हेपेटाइमटस की सिथया, पेट से संबंमधत सभी प्रकार की सिथयाएं | व्यमियों के सािने निास हो जाना खुद के व्यमित्ि के छोटेपन का एहसास होना याददाश्त किजोर होना आत्ि सम्िान िें किी होना लोगों से मिलने से डर लगना खुद की इिेज खो देने का डर रहना तत्त्व अग्नि, प्राणमय रंग चटकीला पीला पंखुडियां दस मंत्र रं स्वर ग
  • 11. िमणपुर चक्र (सौर जाल) नाभि कें द्र(Solar plexus) 'रत्नों की पुरी • योग साधना • आसन – सूयानिथकार, प्लेंक पोथचर, पिन िुिासन, पुिोिानासन, िोणासन, धनुरासन, मत्रकोणासन, १५ से २० मिनट सूयाप्रकाश लेना, शुमद् मक्रया – कपालभामत, अमननसार • अपने आहार िें थिथि भोजन शामिल करना आपके यह चक्र को संतुमलत करना शुरू करने का एक तरीका है क्योंमक भोजन ऊजाा का प्रमतमनमधत्ि करता है, जो हिें शमि देता है। • आपका चक्र भोजन के पाचन, अिशोषण का कें ि है, और यह आपके द्वारा खाए जाने िाले खाद्य पदािों को ऊजाा िें बदल देता है मजसे आप जीिन िें उपयोग कर सकते हैं। • थिथि िमनपुर चक्र पीले रंग के सिान आिृमि पर कं पन करता है, इसमलए पीले रंग के खाद्य पदािा जैसे के ला, अनानास, नाशपती, अंगूर, आि, अदरक, पीली बीन्स, पीले िटर, िसूर खाने से आपको िदद मिलेगी अपने तीसरे चक्र िें संतुलन बहाल होगा तत्त्व अग्नि, प्राणमय रंग चटकीला पीला पंखुडियां दस मंत्र रं स्वर ग
  • 12. अनाहत चक्र (हृदय चक्र) (Heart Chakras) जो आघात से उत्पन्न न हुआ हो। • हृदय के पीछे िेरुदण्ड िें मथित • शारीररक अंग: यह चक्र िायिस, हृदय, रि, फेफड़े, प्रमतरक्षा, संचार और अन्तःस्रािी प्रणाली से सम्बमन्धत है। • अनहद नाद के िल ध्यान की उ्च अिथिा िें ही सुनाई देता है। • यह चक्र शुद् भािनाओंको जगाता है। मजसका अनाहत मिकमसत होता है, िह सािान्यत: दूसरों की भािनाओं के प्रमत अत्यन्त संिेदनशील होता है। • संतुमलत: अनाहत चक्र उिरदामयत्ि, पूणा सुरक्षा, मिश्वास तिा सादगी प्रदान करता है। इसी हृदय िें िैमश्वक बंधुत्ि और समहष्णुता जन्ि लेती है, दूसरों को या तो थपशा से या ऊजाा के मिमकरण द्वारा थिथि मकया जा सकता है। • मिष्णु ग्रंमि, जो भािनात्िक आसमि की द्योतक है, यहीं मथित होती है। जब यह ग्रंमि खुल जाती है तब व्यमि सभी थिािापूणा, अहंकारपूणा और भािनात्िक आसमियों से िुि हो जाता है तिा उसे िानमसक एिं भािनात्िक मनयन्त्रण, संतुलन और शांमत प्राप्त होती है। • इस थतर पर व्यमि प्रारजध से िि होकर अपनी मनयमत को मनयमन्त्रत करने लगता है। • असंतुमलत: सांस लेने की सिथया , फेफड़ों से संबंमधत सिथया , ब्रेथट कैं सर , उपरी किर तिा कं धों िें ददा की सिथया , प्रेि सम्बन्धी कमठनाइयााँ उत्पन्न होती हैं। लोगों के प्रमत नफरत और घृणा का भाि पैदा होना , अनऔदाया, यह असन्तुलन बाल्यग्रंमि तिा अन्त्रःस्रािी ग्रंमि को उिेमजत करता है। ये दोनों ग्रंमियााँ अनाहत चक्र से संबद् हैं। दिा तिा अन्य हृदय संबंधी मिकार चक्र के मनमष्क्रय होने से उत्पन्न होते हैं। तत्त्व वायु, मिोमय रंग हरा पंखुडियां बारह मंत्र यं स्वर म
  • 13. अनाहत चक्र (हृदय चक्र) (Heart Chakras) जो आघात से उत्पन्न न हुआ हो। • योग साधना • आसन – शलभासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्रासन, चक्रासन, पुिोिानासन, िोणासन, सेतुबंधासन, अधा ित्थयेन्िासन, • प्राणायाि – उदर श्वसन, अनुलोि मिलोि, कपालभामत, अमननसार, • आहार - उ्च चक्रों के मलए भौमतक भोजन का अमधक प्रतीकात्िक अिा है। आपके हृदय चक्र के मलए सबसे अ्छा "भोजन" आनंद, उद्देश्य, करुणा, थिीकृमत और प्रेि से भरा जीिन होगा। • हृदय चक्र हर भोजन को प्यार से भरकर खुले मदल से शारीररक भोजन करने के बारे िें है। • फल - एिोकाडो, हरे अंगूर, कीिी, नाशपती, हरे सेब, समजजयां - गहरे रंग के पिेदार साग (के ल, पालक), ब्रोकोली, अजिाइन, लेट्यूस तत्त्व वायु, मिोमय रंग हरा पंखुडियां बारह मंत्र यं स्वर म
  • 14. मिशुद् चक्र (कण्ठ चक्र) (Throat Chakras) शुमद्करण का केन्ि • मेरुदण्ि में गले क े पीछे ग्स्ित • शारीररक अंग: िाइरॉयड ग्रंमि ि फेफड़ों से जुड़ा होता है। चयापचय, िोकल कोड्ास, फेररंक्स इसोफैगस को मनयंमत्रत करता है। • के न्ि: अमभव्यमि को प्रभामित करता है। तरुणाई का स्रोत मािा जाता है। • यह सहज ज्ञान तिा बुमद्ििा का आधार है। • संतुमलत: उमचत-अनुमचत का भेद बेहतर कर पाता है, कम्युमनके शन मथकल अ्छी होती है, लोगों के सािने अपनी बात को कहने की महम्ित आती है व्यमि िें गायन तिा भाषण की प्रमतभा होती है • असंतुमलत: गले से संबंमधत सिथयाएं, जीभ से संबंमधत सिथया, दांतों की सिथया, व्यमि ठीक से अपने आप को एक्सप्रेस नहीं कर पाता, मक्रएमटमिटी कि हो जाती है, मनणाय लेने की क्षिता िें किी हो जाती है • मनमष्क्रय: तो सदी-जुकाि, खांसी, िाइरॉयड जैसी सिथयाएाँ उत्पन्न हो जाती हैं तिा संप्रेषण भी प्रभामित होता है। अमधक समक्रय हो, तो िनुष्य िाचाल हो जाएगा। तत्त्ि आकाश,मिज्ञानंिय रंग नीला पंखुमडयां १६ िंत्र ह्र थिर प
  • 15. मिशुमद् चक्र (कण्ठ चक्र) (Throat Chakras) शुमद्करण का केन्ि • योग साधना - गदान का व्यायाि • आसन –भुजंगासन, िाजाारासन, शीषाासन, सिंगासना, हलासन, ित्थयासन, मसंहिुिा, ब्रह्मिुिा, • प्राणायाि – थकं ध श्वसन, अनुलोि मिलोि, उज्जायी, भ्रािरी, कपालभामत, • धारणा, ध्यान • आहार – मिशुमद् चक्र आपके शुमद्करण के कें ि के रूप िें जाना जाता है, इसमलए मिमभन्न प्रकार के उपिास और डीटोक्सीमफके शन तकनीक मिशुमद् के मलए बहुत फायदेिंद हैं। • अपने भोजन के दौरान दूसरों के साि आदान-प्रदान न करें। धीिी गमत से खाने का लक्ष्य रखें और अपने भोजन को चबाएं। भोजन के दौरान अपनी इंमियों पर ध्यान दें । भोजन के मलए अपना आभार व्यि करें। अपने भोजन के मलए के िल उ्चति गुणििा िाली सािग्री चुनें तत्त्ि आकाश,मिज्ञानंिय रंग नीला पंखुमडयां १६ िंत्र ह्र थिर प
  • 16. आज्ञा चक्र, ज्ञानचक्षु मत्रिेणी, गुरूचक्र तिा मशि का नेत्र (Ajna Chakras) • दोनों आंखों की भोहों के िध्य िें, आज्ञा प्रबोधक क े न्द्र है। • शारीररक अंग:आज्ञा चक्र प्रत्यक्ष रूप से पीयूष ग्रंमि तिा िमथतष्क से सम्बमन्धत है,हृदजो अन्तःस्रािी प्रणाली से जुड़ने के मलए हािोन्स स्रामित करता है और इसके अमतररि यह अधःिेतक के द्वारा कें िीय तंमत्रका तंत्र को जोड़ता है। • संतुमलत ओने पर व्यमि िें नए-नए आमिष्कार करने की क्षिता पैदा होती है।, टेलीपैिी , िन हिेशा आनंमदत रहता है। • असंतुमलत: मसर ददा, िाइग्रेन, आंखों से संबंमधत सिथया, कानों से संबंमधत सिथया, कानों िें ददा, रात िें डरािने सपने आना, मदिाग ठीक से काि न करना, यादाश्त किजोर होना, व्यमि कल्पना की दुमनया िें रहने लगता है तिा िमतभ्रि िें पड़ जाता है | मनणाय नहीं ले पाना, मदिाग िें हिेशा कं फ्यूजन रहना, मडमसमप्लन िें नहीं रहना बात-बात पर इिोशनल हो जाना , मनमष्क्रय हो तो व्यमि नकारात्िक सोच, िकान तिा उदासीनता से ग्रथत रहता है। • यह एक द्वार है, जो हिारी चेतना के मलए आगे का िागा प्रशथत करता है, तामक िह गंतव्य तक पहुंच सके , जो सातिााँ के न्ि है। • इस चक्र िें मदव्य मचन्तन, प्राणायाि तिा गुरु की कृपा के द्वारा प्रिेश मकया जा सकता है। तत्त्ि प्रकाश, मिज्ञानंिय रंग नील पंखुमडयां २ िंत्र ॐ थिर ध
  • 17. आज्ञा चक्र, ज्ञानचक्षु मत्रिेणी, गुरूचक्र तिा मशि का नेत्र (Ajna Chakras) • योग साधना • आसन – सूया निथकार, िज्रासन, पद्मासन, योग िुिा, पिनिुिासन, पमििोिानासन, मिपरीत करणी िुिा, शीषाासन, प्रणािासन, शशांकासन • प्राणायाि – दीघा श्वसन, अनुलोि मिलोि, उज्जायी, कपालभामत, • आहार – अत्यमधक कै फीन (और अन्य उिेजक) के सेिन से बचें। शराब और नशीली दिाओं के सेिन से बचें। • जलूबेरी, जलैकबेरी, अंगूर, बैंगनी गोभी, अंजीर, आलूबुखारा, बैंगनी, आलू, और मकसी भी अन्य बैंगनी रंग के खाद्य पदािा। तत्त्ि प्रकाश, मिज्ञानंिय रंग नील पंखुमडयां २ िंत्र ॐ थिर ध
  • 18. ललना, मबन्दु चक्र, िन चक्र चन्ि केंि आिन्द्दमय कोश • अधःिेतक िें मथित, जहााँ ब्राह्मण मशखा रखते हैं। • यही िह परि स्रोत है जहााँ से सभी िथतुएाँ प्रकट होती हैं और पुन: इसी िें मिलीन हो जाती हैं। • मबन्दु शून्य िें प्रिेश करने का द्वार है। • मबन्दु का प्रतीक अद्ाचन्ि के िध्य अिृत की एक श्वेत बूंद है। • मबन्दु का चन्ििा प्राणदायक अिृत उत्पन्न करता है और िमणपुर का सूया इसका उपभोग करता है। • यह हिारे शरीर का एकिात्र सबसे िहत्िपूणा मबंदु है जहां हिारी सभी शारीररक, भािनात्िक और आध्यामत्िक भािनाएं मिलती हैं। • यह एक "थिाथ्य कें ि" है जो शारीररक, िानमसक और आध्यामत्िक थिाथ्य िें सुधार लाता है, • संतुमलत ओने पर इस चक्र का काया िहत्िपूणा िमथतष्क तरल पदािों तिा लिणों आमद का मनिााण करना है, जो चेतना से संबद् हैं। • ये हिारे मिचारों, भािनाओंऔर संथकृमत को प्रभामित करते हैं। हि इस थिान को 'िन' कह सकते हैं, जहााँ से सभी मिचार और िनोदशाएं उभरती हैं।
  • 19. सहस्रार चक्र िुकुट केंि (Crown Chakras) चेतना का सर्वोच्च स्थान • यह मसर के शीषा पर मथित होता है । िाथति िें यह चक्र नहीं है, क्योंमक यह मचि के क्षेत्र से परे है। • शारीररक अंग: मदिाग का ऊपरी महथसा, सेरेब्रल, कोरटेक्स, सेरीब्रि, मपट्यूटरी ग्रंमि • शीषा ग्रंमि से सम्बमन्धत है, जो संिेदनशील है तिा िेलाटोमनन हािोन बनाती है। यह ग्रंमि बचपन िें बड़ी होती है, परन्तु पररपक्िता िें मसकुड़ जाती है। • सहस्रार िूलाधार से आज्ञा तक के सभी चक्रों के जागरण को मनयमन्त्रत करने की िुख्य कुं जी है। • संतुमलत ओने पर यह मनिा तिा जागरण को मनयमित करता है। यह जब अ्छी तरह से काया करती है, तब व्यमि की िैचाररक शमि तिा बुमद् िें सुधार आता है। सहस्त्रार चक्र परिात्िा और यूमनिसा से जुड़ा हुआ चक्र है।, इंसान िें त्याग की भािना उत्पन्न होती है।, व्यमि को आत्िानुभूमत और ईश्वर की अनुभूमत का एहसास होता है। • आज्ञा चक्र व्यमि को तंमत्रका तंत्र प्रणाली के िाध्यि से परि सत्य की प्रत्यक्ष अनुभूमत िें सहायता करता है। यह चक्र सभी चक्रों की योनयताओंका सिमन्ित रूप है। • असंतुमलत: मदिाग से संबंमधत सिथयाएं, त्िचा से संबंमधत सिथया, ट्यूिर जैसी बीिारी होना, जीिन िें लक्ष्य की किी होना, ईश्वर िें मिश्वास ना होना • सहस्रार चक्र िें कुण्डमलनी अपने स्रोतों के साि मिलीन हो जाती है तिा परि आनन्द प्राप्त करती है तत्त्ि चेतना, आनंदिय रंग बैंगनी पंखुमडयां सहस्र िंत्र ॐ थिर नी
  • 20.
  • 21.
  • 22. थिामधथठान िैं अपनी इ्छा का सम्िान करता ह।ं। िैं अपने शरीर और रूप को लेकर आश्वथत ह।ं िैं अपनी भािनाओंको व्यि करता ह।ं ६. आज्ञा िैं अपनी अंतः प्रज्ञा का पालन करता ह।ं िैं थपष्ट रूप से देखता और सोचता ह।ं िुझे अपने फैसले पर भरोसा है 7. सहस्रार िैं मदव्य आत्िा ह।ाँ िैं अनंत और असीि ह।ाँ सभी लोग थिथि है िूलाधार १)िैं सुरमक्षत ह।ाँ २)िैं जागरूक ह।ं ३)िेरा शरीर एकदि थिथि है िमणपुर िेरी क्षिता असीमित है िैं साहस के साि काया करता ह।ं िैं शमिशाली ह।ाँ ४. अनाहत िैं थियं एिं दूसरों से प्यार करता ह।ं िैं शांत ह।ाँ िैं थियं एिं दूसरों को क्षिा करता ह।ं ५. मिशुमद् िैं सच बोलता ह।ाँ िेरी आिाज थपष्ट है िैं ईिानदार ह।ाँ संकल्प Resolution
  • 23. हरि ॐ तत् सत् हरि ॐ तत् सत्