2. योगाभ्यास क्यों ?
• ननिस्त-मन्मथातङ्कं योगजं सुखमुत्तमम् ।
शमात्मकं स्स्थिं स्वस्थं जन्ममृत्युजिापहम् ।।४६७।।
• अन्वय :- योगजं सुखं उत्तमं ननिस्त-मन्मथ-आतङ्कं शमात्मकं स्वस्थं
स्स्थिं (तथा) जन्ममृत्युजिापहम् (अस्स्त) ।
• सरलार्थ :- योग से उत्पन्न हुआ जो सुख है वह उत्तम, कामदेव के
आतंक से/ववषय वासना की पीडा से िहहत, शास्न्तस्वरूप,
ननिाकु लतामय, स्स्थि, स्वात्मस्स्थत औि जन्म-जिा तथा मृत्यु का
ववनाशक है । -योगसाि चूललका-अधिकाि गाथा 467
3. आसन परिभाषा एवं लाभ
स्थर्रं सुखम्आसनम्–पातंजलल योग २/४६
सुखपूवथक स्थर्रता के सार् बैठना हि आसन किलाता िै|
आसन वि िै स्जसके करने से मन एवं शरीर में स्थर्रता आए और सुख का अनुभव
िो.
ततो द्वन्दानोलभघात –पातंजलल योग २/४८
आसानो के लसद्ध िोने पर द्वन्दो का आघात नहि िोता िै|
कु याथत तदसनम्थर्ेयथम आरोग्यम्च अङ्गग्लाघवं – ि. प्र.
4. नौकासन
इससे पाचन क्रिया, छोटी-बडी आँत में लाभ लमलता है। अँगूठे से अँगुललयों तक खखंचाव होने के कािण शुद्ि िक्त तीव्र गनत से
प्रवाहहत होता है, स्जससे काया ननिोगी बनी िहती है। हननिया िोग में भी यह आसन लाभदायक माना गया है। ननद्रा अधिक
आती हो तो उसे ननयंत्रित किने मे ये नौका आसन सहायक है!
5. शवासन
शिीि को लशधथल किने में लाभदायी है| शिीि जब लशधथल होता है,
मन शांत हो जाता है तो आप अपनी चेतना के प्रनत सजग हो जाते
हैं। इस प्रकाि आप अपनी प्राण ऊजाि को क्रिि से स्थावपत कि पाते
हैं। इससे आपके शिीि की ऊजाि पुनः प्राप्त हो जाएगी।
6. मकरासन
यह कमि ददि, पीठ ददि, सिवाइकल में आिाम देता है.
दमा या सांस संबंिी िोगों में लाभ लमलता है.
8. शशांकासन
पेट के सभी िोग तथा कब्ज को दूि किने में सहायक है।
साइहटका के स्नायुओं को लशधथल किता है तथा एड्रिनल ग्रंधथ
के कायि को ननयलमत किता है।
9. गोमुखासन
यकृ त तथा गुदों को बल देता हें | अंडकोष
वृधि के ललए ववशेष लाभदायक हें | गहठया
को दूि किने में भी असिकािी हें |
इससे हाथ-पैि की मांसपेलशयां चुस्त औि
मजबूत बनती है। तनाव दूि होता है। कं िे
औि गदिन की अकडन को दूिकि कमि,
पीठ ददि आहद में भी लाभदायक। छाती को
चौडा कि िे िडों की शस्क्त को बढ़ाता है
स्जससे श्वास संबंिी िोग में लाभ लमलता
है।
यह आसन सस्न्िवात, गठीया, कब्ज,
अंडकोषवृद्धि, हननिया, यकृ त, गुदे, िातु
िोग, बहुमूि, मिुमेह एवं स्िी िोगों में बहुत
ही लाभदायक लसद्ि होता है।
10. गदिन, कं िा, िीढ़, हाथ व पैिों के
स्नायु मजबूत होते हैं।
प्राणतंि सक्रिय, नेिज्योनत में
वृद्धि, सीना सुडौल व िडकन की
अननयलमतता दूि होती है। मुख्य
िक्तवाहक नाड्रडयों को बल लमलता
है तथा खखसकी हुई नालभ यथास्थान
स्स्थत हो जाती है।
शािीरिक दुबिलता, स्थायी
लसिददि, कब्ज, पेटददि व मंदास्नन में
अत्यधिक लाभकािी है। झुके हुए
कं िे, कू बड, पीठददि, कमिददि, दमा,
मिुमेह, हृदयिोग – इन सबके
उपचाि में यह अत्यंत सहायक है।
उष्ट्रासन
11. सुप्त वज्रासन
इस आसन का अभ्यास किने से प्रायः तमाम अंतःस्रावी ग्रस्न्थयों को, जैसे शीषिस्थ ग्रस्न्थ,
कण्ठस्थ ग्रस्न्थ, मूिवपण्ड की ग्रन्थी, ऊर्धविवपण्ड तथा पुरूषाथि ग्रस्न्थ आहद को पुस्ष्ट्ट लमलती है।
िलतः व्यस्क्त का भौनतक एवं आर्धयास्त्मक ववकास सिल हो जाता है। तन-मन का स्वास््य
प्रभावशाली बनता है।
जठिास्नन प्रदीप्त होती है। मलाविोि की पीडा दूि होती है। िातुक्षय, स्वप्नदोष, पक्षाघात, पथिी,
बहिा होना, तोतला होना, आँखों की दुबिलता, गले के टास्न्सल, श्वासनललका का सूजन, क्षय, दमा,
स्मिणशस्क्त की दुबिलता आहद िोग दूि होते हैं।
12. मत्स्यासन
यह पेट के ललए उत्तम आसान हें | जो आतो को सक्रिय किके कब्ज क्रक
ननवृनत किता हें | थायिाइड पैिा-थायिाइड एवं एस्ब्डनल को स्वस्थ
बनाता हें | िे िडों के िोग दमा, श्वास आहद को ननवृत किता हें |
13. चिासन
िीढ़ की हड्डी को लचीला
बनाकि वृर्धदावस्था नहीं आने
देता । जठि एवं आंतो को
सक्रिय किता है । शिीि में
स्िू नति, शस्क्त एवं तेज की
वृस्र्धद किता है। कहटपीडा,
श्वास िोग, लसिददि, नेि
ववकािों में ववशेष हहतकािी है।
हाथ पैिों क्रक मांसपेलशयों को
सबल बनाता है। महहलाओं
के गभािशय के ववकािों को
दूि किता है।
14. पादपस्चचमोत्तानासन
जो स्िी-पुरूष काम ववकाि से अत्यंत पीड्रडत हों उन्हें इस आसन का अभ्यास किना चाहहए। इससे शािीरिक
ववकाि दब जाते हैं। इस आसन के अभ्यास से मन्दास्नन, मलाविोि, अजीणि, उदििोग, कृ लमववकाि, वातववकाि,
हहचकी, कोढ़, मूििोग, मिुप्रमेह, पैि के िोग, स्वप्नदोष, वीयिववकाि, िक्तववकाि, पाण्डूिोग, अननद्रा, दमा,
बवासीि, नल की सूजन, गभािशय के िोग, अननयलमत तथा कष्ट्टदायक मालसक, बौनापन आहद अनेक िोग दूि
होते हैं। पेट पतला बनता है। जठिास्नन प्रदीप्त होती है। कि औि चिबी नष्ट्ट होते हैं।
15. मयूरासन
1.मयूिासन किने से ब्रह्मचयि-पालन में सहायता लमलती है। पाचन तंि के अंगों की
िक्त का प्रवाह अधिक बढ़ने से वे अंग बलवान औि कायिशील बनते हैं।
2.पेट के भीति के भागों में दबाव पडने से उनकी शस्क्त बढ़ती है। उदि के अंगों की
लशधथलता औि मन्दास्नन दूि किने में मयूिासन बहुत उपयोगी है।
16. पादहस्तासन
यह आसन पाचन अंगो की माललस कि
उन्हें शस्क्त प्रदान किता है| उदाि-वायु,
कब्ज तथा अजीणि को दूि किता है|
लशि को जमीन की औि किने से
मस्स्तस्क में िक्त संचाि में वृद्धि होती
है| कमि लचीली होती है।
17. अिि मत्स्येन्द्रासन
अिि मत्स्येन्द्रासन उदि के अंगो
की माललस किता है| पाचनक्रिया
को मजबूत किता है| यह मिुमेह
के ललए अनत लाभकािी है यह
इन्सुललन के स्राव में महत्वपूणि
भूलमका है। जठिास्नन तीव्र होती
है।
18. हलासन
हलासन थायिाइड ग्रस्न्थ को
प्रभाववत किता है। इस आसन के
किने से कण्ठकू पों पि दवाब
पडता है स्जससे थाइिाइड संबंिी
समस्याएं दूि होती हैं। इस आसन
से पाचन तंि औि मांसपेलशयों को
शस्क्त लमलती है। इसके अभ्यास
से पाचन तंि ठीक िहता है। इस
आसन के ननयलमत अभ्यास से
ववशुद्ि चि जाग्रत होता है। गले
औि वाणी से संबंधित बीमारियां
19. गरुडासन
गरुडासन से िीढ़ की हड्डी में
लचीलापन आता है, कमि पतली होती है
तथा हाथ-पैिों की मांसपेलशयां व नसें,
नाड्रडयां चुस्त बनती है। इससे पैि, घुटने
व जांघों को मजबूती लमलती हैं। आसन
से कं िे, हाथों तथा कोहननयों आहद में
ददि व कम्पन को ठीक किता है साथ ही
शिीि का कम्पन भी दूि हो जाता है।