"विश्व शान्ति का स्वप्न और संकल्प न जाने कितने शाँति प्रियजनों ने देखा और लिया किन्तु यह केवल एक दिवास्वप्न ही रह गया। स्वप्न और संकल्प वास्तविक रूप से फलीभूत क्यों नहीं हुआ, इसका विश्लेषण किसी ने नहीं किया। शायद हर एक ने केवल बौद्धिक स्तर पर विचार और प्रचार करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। आज भी यही हो रहा है। विश्व शांति विषय को लेकर बड़ी-बड़ी चर्चायें, गोष्ठियां, कार्यशालाएं आयोजित हो रही हैं। विभिन्न विषयों के श्रेष्ठ विद्वान एवं वैज्ञानिक भाषण दे रहे हें, विचार विमर्श हो रहे हैं, सुझाव दिए जा रहे हैं किन्तु शाँति अभी बहुत दूर दिखती है। जब तक मनुष्य में आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों क्षेत्रों की शांति नहीं होगी, तब तक समाज, राष्ट्र और विश्व परिवार में शांति स्थापित नहीं हो सकेगी। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी ने विश्वशांति की स्थापना का कार्यक्रम बना दिया है और हम उसके क्रियान्वयन के लिए प्रयासरत हैं। इसमें समाज के प्रत्येक वर्ग के सहयोग की आवश्यकता है। विश्वशांति केवल भारतवर्ष से ही हो सकती है क्योंकि भारत के पास उसके लिए आवश्यक ज्ञान है, तकनीक है, सामर्थ्य है और सदिच्छा है।’’ ये विचार महर्षि जी के परम् प्रिय तनोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने महर्षि विश्व शाँति आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।