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प्रश्न 2. भक्तिकाल की पृष्ठभूमियो को स्पष्ट कीक्िए I
1. भक्तिकाल की समय-सीमा से परिचिि हो सक
ें गे;
2. भक्तिकाल की िाजनीतिक पृष्ठभूमम को जान सक
ें गे;
3. भक्तिकाल की आचथिक एवं सामाक्जक पृष्ठभूमम का वववेिन कि सक
ें गे;
4. भक्तिकाल की धाममिक क्थथति की ििाि कि सक
ें गे;
5. भक्तिकाल की दार्ितनक पृष्ठभूमम का परििय दे सक
ें गे;
6. हहन्दी साहहत्य में भक्ति क
े उदय की व्याख्या कि सक
ें गे;
7. दक्षिण भािि में भक्ति-आंदोलन क
े उदय क
े कािण औि भक्ति-आंदोलन क
े अखिल भाििीय
थवरूप का ववश्लेषण कि सक
ें गे।
ऐतिहामसक दृक्ष्ि से भक्ति-आंदोलन क
े ववकास को दो ििणों में बााँिा जा सकिा है।
पहले ििण क
े अंिगिि दक्षिण भािि का भक्ति-आंदोलन आिा है। इस आंदोलन का काल छठी
र्िाब्दी से लेकि िेिहवीं र्िाब्दी िक का है। दूसिे ििण में उत्ति भािि का भक्ति आंदोलन
आिा है। इसकी समय-सीमा िेिहवीं र्िाब्दी क
े बाद से सत्रहवीं र्िाब्दी िक है। इसी ििण में
उत्ति भािि इथलाम क
े संपक
ि में आया। हहंदी साहहत्य क
े भक्तिकाल का संबंध उत्तिी भािि क
े
भक्ति-आंदोलन से है। आिायि’ िामिन्र र्ुतल ने भक्तिकाल की समय सीमा सन् 1318-1643
ई. मानी है। आगे क
े इतिहासकािों ने भी इसी समय-सीमा को थवीकािा है। भक्तिकाल क
े काल
ववभाजन की ववथिृि जानकािी हम इस पाठ्यक्रम क
े िंड-1 की पहली इकाई में आपको दे िुक
े
हैं।
1. रािनीतिक पृष्ठभूमिÁ¹
िाजनीतिक दृक्ष्ि से भक्ति काल का ववथिाि मुख्य रूप से िुगलक वंर् से लेकि मुगल
वंर् क
े बादर्ाह र्ाहजहााँ क
े र्ासन काल िक है। इसमलए भक्तिकाल की िाजनीतिक पृष्ठभूमम
को समझने क
े मलए। ित्कालीन िाजनीतिक गतिववचधयों को समझना आवश्यक है। दसवीं
र्िाब्दी क
े उत्तिार्दिध में पक्श्िमोत्ति मागि से िुकों का भािि पि आक्रमण हुआ। िाजपूि िाजाओं
की पािथपरिक फ
ू ि िथा र्त्रुिा क
े परिणामथवरूप पृथ्वीिाज िौहान मुहम्मद गौिी क
े हाथों िथा
जयिंद क
ु िुबुर्ददीन ऐबक क
े र्दवािा मािा . गया। इसक
े पश्िाि् ही हदल्ली सल्िनि की थथापना
हुई। िुक
ि आक्रमणकारियों र्दवािा र्ामसि िाज्य को हदल्ली सल्िनि क
े नाम से पुकािा जािा है।
हदल्ली सल्िनि का इतिहास मुहम्मद गौिी क
े र्दवािा भािि पि आक्रमण से र्ुरू होिा है।
सन् 1206 में िुकी गुलाम क
ु िुबर्ददीन ऐबक भािि में मुहम्मद गौिी का उत्तिाचधकािी
बना। गौिी का ही एक दूसिा गुलाम यल्दोज़ गज़नी का उत्तिाचधकािी बना। यल्दोज़ ने हदल्ली
पि भी अपने अचधकाि का दावा ककया। िभी से हदल्ली सल्िनि ने गज़नी से अपना संबंध िोड़
मलया। भािि क
े मलए यह फलदायी मसर्दध हुआ। इस ििह वह मध्य-एमर्या की िाजनीति से
अलग हो गया औि भािि दूसिे देर्ों पि तनभिि हुए बबना हदल्ली-सल्िनि में अपना थविंत्र
ववकास कि सका। र्ुरू क
े सौ वषों िक हदल्ली-सल्िनि को अपने िाज्य की सुििा क
े मलए
प्रयास किना पड़ा। हदल्ली-सल्िनि को ववदेर्ी आक्रमण, िुकी अमीिों क
े आंिरिक वविोध,
ववक्जि िाजपूि र्ासकों औि सिदािों र्दवािा कफि से िाज्य को वापस लेने का िििा था। िुकी
र्ासकों ने इन बाधाओं पि ववजय पायी। िेिहवीं सदी क
े अंि िक हदल्ली-सल्िनि का ववथिाि
न मसफ
ि मालवा औि गुजिाि िक, बक्ल्क दतकन औि दक्षिण भािि िक हो गया।
सन् 1206-1290 ई. िक हदल्ली-सल्िनि का इतिहास उिाि-िढाव का िहा। 1281 ई.
में बलवन की मृत्यु क
े बाद कफि से अिाजकिा फ
ै ल गई। इस अिाजकिा का फायदा उठाकि
जलालुर्ददीन क
े नेिृत्व में क
ु छ सिदाि सन् 1290 ई. में बलवन क
े अयोग्य उत्तिाचधकारियों को
मसंहासन से वंचिि किने में सफल हुए। यहीं से खिलजी वंर् की र्ुरुआि हुई। जलालुर्ददीन
खिलजी का र्ासन काल छह वषि का िहा। इस अल्प र्ासन काल में ही उसने बलवन क
े कठोि
र्ासन में निमी लाने का प्रयास ककया। उसने िाज्य का आधाि ‘प्रजा का समथिन’ माना। उसकी
धािणा क
े अनुसाि िूंकक भािि की अचधकांर् जनिा हहंदू थी इसमलए सही अथि में यहााँ कोई
इथलामी िाज्य नहीं हो सकिा था। सहहष्णुिा औि सिल दंड-ववधान की नीति से उसने थथानीय
र्ासक वगि का समथिन प्राप्ि किने की कोमर्र् की। अगला र्ासक अलाउर्ददीन खिलजी बना।
उसने जलालुर्ददीन की नीति को बबलक
ु ल बदल डाला। क्जन्होंने उसका वविोध किने का साहस
ककया उन्हें कठोि दंड हदया गया। अलाउर्ददीन ने बड़े पैमाने पि अपने वविोचधयों की हत्या की।
उसने थथानीय र्ासकों को अपने ववरुर्दध षड्यंत्र ििने पि िोक लगाने क
े मलए कई कानून
बनाए।
अलाउर्ददीन क
े मिणोपिांि गयासुर्ददीन िुगलक ववरोह क
े बाद हदल्ली-सल्िनि की
गर्ददी पि बैठा। गयासुर्ददीन ने एक नए वंर् की थथापना की क्जसका नाम िुगलक वंर् था।
िुगलक वंर् का र्ासन 1320-1412 ई. िक िहा। इस वंर् में िीन महत्वपूणि र्ासक हुए –
गयासुर्ददीन, उसका पुत्र मुहम्मद बबन िुगलक (1324-1351 ई.) औि उसका भिीजा कफिोज़
िुगलक (1351-1388 ई.)। आिंमभक दो र्ासकों का र्ासन लगभग संपूणि भािि पि था। कफिोज
क
े मिने क
े बाद हदल्ली-सल्िनि ववघहिि हो गयी। यर्दयवप िुगलक र्ासकों ने सन् 1412 ई.
िक र्ासन ककया िथावप सन् 1398 ई. में िैमूि र्दवािा हदल्ली पि आक्रमण को िुगलक
साम्राज्य का अंि माना गया है।
क
ु ल ममलाकि हदल्ली-सल्िनि का र्ासन काल साम्राज्य क
े ववथिाि औि क
ें रीकिण
की दृक्ष्ि से महत्वपूणि है। अलाउर्ददीन खिलजी क
े सत्ता में आने से पच्िीस वषों क
े भीिि
हदल्ली-सल्िनि की सेनाओं ने गुजिाि औि मालवा पि अचधकाि कि मलया। साथ ही िाजथथान
क
े अचधकांर् िाजाओं को हिाने क
े बाद दक्षिण भािि में दतकन औि मदुिै िक क
े िेत्रों को
जीि मलया गया। आगे इस ववथिृि िेत्र को सीधे हदल्ली प्रर्ासन क
े अधीन ििने का प्रयास
ककया गया। ववथिाि की नीति की र्ुरुआि अलाउर्ददीन खिलजी क
े र्दवािा हई। उसक
े
उत्तिाचधकारियों ने भी इस नीति को जािी ििा । मुहम्मद बबन िुगलक क
े काल में यह नीति
अपने ििम पि पहुंि गई।
िैमूि आक्रमण क
े बाद सुलिान महमूद िुगलक हदल्ली से भाग गया। जब िक वह
वापस हदल्ली लौिा िब िक हदल्ली क
े आस-पास ही कई थथानीय र्ासकों औि जमींदािों ने थवयं
को थविंत्र घोवषि कि हदया था। हदल्ली सल्िनि क
े पिन क
े बाद र्की सुलिानों ने एक बड़े भू-
िंड पि कानून औि व्यवथथा को बनाए ििा। इस बीि क
ु छ समय क
े मलए हदल्ली पि सैयद वंर्
का औि कफि 1451 ई. में अफगान सिदाि बहलोल लोदी का र्ासन थथावपि हुआ। अफगानों की
मदद से बहलोल ने र्कक
ि यों को हिा हदया। इस ििह उत्ति भािि में अफगानों का वििथव कायम
हुआ। सबसे महत्वपूणि लोदी सुलिान मसकन्दि लोदी (1489-1517 ई.) था। मसकन्दि लोदी ने
धौलपुि औि ग्वामलयि को जीिकि अपने िाज्य का प्रसाि ककया। अपने ववजय अमभयान क
े
दौिान 1506 ई. में उसने आगिा र्हि की नींव डाली। इस र्हि का तनमािण पूवी िाजथथान क
े
िेत्रों िथा व्यापारिक मागों पि तनयंत्रण थथावपि किने क
े उर्ददेश्य से ककया गया था। कालान्िि
में आगिा एक बड़े र्हि क
े रूप में ववकमसि हुआ। आगे िलकि आगिा लोहदयों की दूसिी
िाजधानी भी बनी। 1517 ई. में मसकन्दि लोदी की मृत्यु क
े बाद इब्राहीम लोदी गर्ददी पि बैठा।
इब्राहीम क
े ववर्ाल साम्राज्य थथावपि किने क
े प्रयत्न से अफगान औि िाजपूि दोनों उसक
े
दुश्मन बन गए। इस कािण दौलि िााँ लोदी औि िाणा सांगा क
े तनमंत्रण पि बाबि भािि की
ओि आया।
1525 ई. में जब बाबि पेर्ावि में था उसे िबि ममली कक दौलि िााँ लोदी ने अपना
पलड़ा बदल हदया है, िब बाबि औि दौलि िााँ क
े बीि युर्दध हुआ। दौलि िााँ पिाक्जि हुआ औि
पंजाब पि बाबि का अचधकाि हो गया। पंजाब पि ववजय प्राप्ि किने क
े बाद 20 अप्रैल 1526
ई. में बाबि की इब्राहीम लोदी से पानीपि की ऐतिहामसक लड़ाई हुई। इब्राहीम लोदी मािा गया।
इस ििह अगला युर्दध िाणा सांगा क
े साथ 1527 ई. में िनवा में हुआ। सांगा भी पिाक्जि हुआ।
उसकी मृत्यु क
े साथ ही बाबि क
े साम्राज्य का ववथिाि िाजथथान िक हो गया। उसने ग्वामलयि,
धौलपुि, अलवि आहद पि कब्जा कि मुगल साम्राज्य का ववथिाि ककया। आगिा से काबुल जािे
समय लाहौि में बाबि की मृत्यु हो गई। िब 1530 ई. में हुमायूाँ बाबि का उत्तिाचधकािी बना।
हुमायूाँ ने आिंभ में कई युर्दधों में सफलिा प्राप्ि की, लेककन कालांिि में अपने अधीनथथ
अफगान सिदाि र्ेि िााँ से पिाक्जि हुआ।
कई युर्दधों क
े बाद अंिि: हुमायूाँ को र्ेि िााँ ने हदल्ली क
े र्ासन से अपदथथ कि
हदया। हदल्ली की गर्ददी पि बैठिे ही उसने अपना नाम र्ेिर्ाह िि मलया। वह एक क
ु र्ल
योर्दधा औि र्ासक िहा। र्ेिर्ाह का र्ासन 1555 ई. िक िहा। उसने न मसफ
ि अपने साम्राज्य
का ववथिाि पूिे भािि में ककया अवपिु क
ु र्ल प्रर्ासन औि क
ें रीकिण क
े परिणामथवरूप व्यापाि
को भी बढाया। र्ेिर्ाह क
े असामतयक तनधन क
े बाद 1555 ई. में हुमायूाँ हदल्ली पि कफि से
अचधकाि किने में सफल हुआ। लेककन क
ु छ ही हदनों में हुमायूाँ का तनधन (1556 ई.) हो गया।
1556 ई. में 13 वषि की छोिी अवथथा में ही अकबि को गर्ददी ममली।
अकबि क
े उथिाद औि हुमायूाँ क
े थवामीभति औि योग्य अचधकािी बैिम िााँ ने कहठन
परिक्थथति का क
ु र्लिा औि धैयि से सामना ककया। अकबि क
े नेिृत्व में आगे िलकि ववर्ाल
औि क्थथि मुगल साम्राज्य की थथापना हुई। उसका साम्राज्य उत्ति-पक्श्िमी अफगान देर् से
असम िक औि उत्ति में कश्मीि से लेकि दक्षिण में अहमदनगि िक फ
ै ला हुआ था। अकबि क
े
र्ासनकाल में िाज्य मूलि: धमितनिपेि, सामाक्जक ववषयों में उदाि िथा सांथकृ तिक एकिा को
प्रोत्साहहि किने वाला बन गया। अकबि क
े बाद 17वीं सदी का पूवािर्दिध क
ु ल ममलाकि प्रगति
औि ववकास का काल था। इस अवचध में मुगल साम्राज्य जहााँगीि (1605-1627 ई.) िथा
र्ाहजहााँ (1628-1658 ई.) इन दो र्ासकों क
े क
ु र्ल नेिृत्व में िहा। इन र्ासकों ने अकबि
र्दवािा ववकमसि प्रर्ासतनक व्यवथथा का औि भी अचधक प्रसाि ककया। र्ाहजहााँ क
े अंि क
े साथ
ही हहंदी साहहत्य क
े भक्ति काल की भी समाक्प्ि हो गई। इसक
े बाद हहंदी साहहत्य क
े इतिहास
में िीतिकाल का दौि र्ुरू हो गया।
2. आर्थिक एवं सािाक्िक पृष्ठभूमिÁ¹
1. क
ें द्रीकृ ि शासन-व्यवस्था
िुकों क
े र्दवािा भािि में र्ासन कायम किने से लेकि र्ाहजहााँ िक क
े िाजनीतिक
इतिहास में सबसे महत्वपूणि िथ्य क
ें रीकृ ि र्ासन व्यवथथा है। िुकों क
े पिन औि मुगल
साम्राज्य क
े थथावपि होने क
े बीि क
े क
ु छ वषों को छोड़ दें िो पूिा उत्ति भािि एक क
ें रीकृ ि
र्ासन व्यवथथा क
े अधीन िहा। कभी-कभी िो साम्राज्य का ववथिाि दक्षिण भािि औि बंगाल
िक फ
ै ल गया। क
ें रीकृ ि औि क्थथि र्ासन का अथि-व्यवथथा पि सबसे अच्छा प्रभाव पड़िा है।
इसे हम उत्ति भािि क
े संदभि में भी देि सकिे हैं।
िुकों ने र्ासन-व्यवथथा को सुिारू रूप से िलाने क
े मलए क
ें रीय प्रर्ासन औि थथानीय
प्रर्ासन की व्यवथथा की। आय औि व्यय का हहसाब ििने क
े मलए अचधकारियों की तनयुक्तियााँ
की गईं। साम्राज्य को ववमभन्न सूबों में बााँिा गया औि कफि सूबों को भी ववभाक्जि ककया गया,
क्जसे उस समय मर्क कहा जािा था। मर्क क
े नीिे पिगने होिे थे। गााँव में िुि, मुकर्ददम,
पिवािी क
े माध्यम से भू-िाजथव की वसूली की जािी थी। इस ििह क
ें र से लेकि गााँव िक एक
सुिारू व्यवथथा कायम हुई। िुकों र्दवािा थथावपि प्रर्ासतनक व्यवथथा आगे क
े र्ासकों र्दवािा भी
क
ु छ सुधािों क
े साथ अपनाई जािी िही।
2. शहरी सिाि एवं व्यापार
िुकों क
े आने क
े बाद दूसिा महत्वपूणि परिवििन र्हिों का उदय है। हदल्ली, आगिा,
बनािस, इलाहाबाद, पिना आहद कई र्हिों का उदय हुआ। ये र्हि आगे िलकि प्रमुि व्यापाि
क
ें र बने। र्हिों क
े साथ-साथ छोिे-छोिे कथबों का भी उदय हुआ। व्यापाि क
े माध्यम से गााँव,
कथबे औि र्हिों से संबंध थथावपि हुआ। इस ििह गााँव का अलगाव दूि हुआ।
िुकों क
े साथ नई िकनीक भािि आई। इनमें िििा, धुनकी, िहि, कागज, िुम्बकीय
क
ु िुबनुमा, समय-सूिक उपकिण, घुड़सवाि सेना, प्रौर्दयोचगकी प्रमुि हैं। नई िकनीकों का प्रभाव
उर्दयोग िथा व्यापाि पि पड़ा।
िििे क
े आने से वथत्र उर्दयोग में काफी बढोििी हुई। कािीगि की िमिा बढ जाने से
वथत्र उर्दयोग भािि का सबसे बड़ा उर्दयोग हो गया। इसी काल में धुनकी भी आयी। धुनकी क
े
आने से रुई से बीज तनकालने की प्रकक्रया में भी िेजी आई। नील एवं अन्य वनथपतिक िंजकों से
अनेक िमकीले िंग बनाए जािे थे। इस ििह देिें िो वथत्र उर्दयोग से भािी संख्या में लोगों को
िोज़गाि ममला। मुहम्मद बबन िुगलक क
े काििानों में 4000 िेर्मकमी थे जो मभन्न-मभन्न
प्रकाि की पोर्ाकों औि वथत्रों की बुनाई औि कसीदाकािी कििे थे। कबीिदास का संबंध इसी
उर्दयोग से था। कबीि क
े साहहत्य में कई रूपक बुनाई उर्दयोग से हैं। “झीनी झीनी बीनी िदरिया”
इसका प्रमसर्दध उदाहिण है।
इस दौि में सड़कों क
े तनमािण का कायि बड़े पैमाने पि हुआ। िुक
ि र्ासक र्ेिर्ाह, मुगल
र्ासक सभी ने सड़क
ें बनवायीं औि सड़कों क
े ककनािे सिाय बनाकि याबत्रयों क
े ठहिने की
व्यवथथा की। इसका सीधा प्रभाव व्यापाि पि हुआ। इन र्ासकों ने व्यापाि क
े ववकास पि बहुि
ध्यान हदया । उन्होंने व्यापारिक मागों पि सुििा की व्यवथथा की। िाहजनी की घिनाओं को
िोकने क
े मलए ववर्ेष कानून बनाया गया, क्जसका सख्िी क
े साथ पालन ककया जािा था। इस
काल में र्ुरू होने वाला नया उर्दयोग कागज तनमािण का था। इसका सीधा प्रभाव व्यापाि पि
हुआ। हुंडी क
े माध्यम से सुिक्षिि व्यापाि का िाथिा िुल गया। इसक
े अतिरिति भवन-तनमािण
उस काल में काफी हुआ। िुकों क
े आने क
े बाद से लेकि मुगल काल िक कई नगि बसे। ककलों
औि महलों का तनमािण भी बहुि हुआ, क्जसक
े परिणामथवरूप िाजममथत्री एवं पत्थि ििामर्यों का
महत्व काफी बढ गया। क
ु ल ममला कि देिें िो इस काल में नए मर्ल्पी वगि का उदय हुआ।
भक्तिकाल क
े कई संि कवव इस मर्ल्पी वगि से आिे हैं।
िुकों से लेकि मुगल काल िक उत्ति भािि में देर्ीय व्यापाि क
े साथ-साथ अंििािष्रीय
व्यापाि भी बढ गया। यहााँ से सूिी वथत्र का तनयािि बहुि ही बड़े पैमाने पि होिा था। भािि में
ऐसे बहुि से बंदिगाह थे जहााँ से ववमभन्न देर्ों से व्यापाि होिा था। भािि दक्षिण-पूवी एवं
पक्श्िमी एमर्या क
े कई देर्ों को िीनी, िावल आहद जैसे िार्दय पदाथि भेजिा था। इस पूिे दौि
में व्यापाि औि उर्दयोग में काफी वृर्दचध हुई क्जसक
े परिणामथवरूप व्यापािी समुदाय आचथिक रूप
से काफी सम्पन्न हुआ। मुगल काल क
े क
ु छ र्ासक िुद व्यापाि कििे थे। एक ििह से सामंिी
समाज व्यवथथा (जो भू-िाजथव पि आधारिि होिी है) क
े भीिि पूाँजीवाद (जो उर्दयोग एवं
व्यापाि पि आधारिि होिा है) का ववकास हो िहा था। इसक
े बावजूद नगिों में बड़ी संख्या में
गिीब लोग मौजूद थे क्जनका जीवन मुक्श्कल से िलिा था।
3. ग्रािीण सिाि
गााँव क
े ककसानों की आचथिक क्थथति अच्छी नहीं थी। बाि-बाि उन्हें अकाल का सामना
किना पड़िा था। मसंिाई क
े साधनों (िहि आहद) क
े आने से उत्पादन में बढोत्तिी हुई औि गााँव क
े
लोग वथत्र उर्दयोग से जुड़े, कफि भी क्थथति में कोई बड़ा परिवििन नहीं हुआ। कई बाि िो ककसानों
ने ववरोह भी ककया, लेककन ववरोहों को बुिी ििह से क
ु िल हदया जािा था। जमींदाि औि व्यापािी
वगि की िुलना में उनकी क्थथति बहुि ििाब थी। िुलसीदास क
े साहहत्य में यह पीड़ा मौजूद है।
अकाल औि भूि की पीड़ा का माममिक चित्रण िुलसीदास ने ककया है।
“कमल बािहहं बाि दुकाल पिै। बबनु अन्न दुिीं सब लोग मिै।”
िेिी न ककसान को, मभिािी को न भीि, बमल,
बतनक को बतनज, न िाकि को िाकिी।
जीववका ववहीन लोग सीर्दयमान सोि बस,
कहै एक एकन सों ‘कहााँ जाई का किी’।।”
जमींदािों क
े र्दवािा ककसानों का र्ोषण होिा था। उस समय क
े ऐसे ककसान क्जनक
े
पास अपनी जमीन थी, कहठन जीवन क
े बावजूद िाने की औि दूसिी साधािण आवश्यकिाओं को
पूिा किने में समथि थे। ककं िु भूममहीन ककसानों, दथिकािों औि तनिली श्रेणी क
े काम किने वालों
की दर्ा औि भी दयनीय थी। दरिरिा का दुि िुलसी की तनम्नमलखिि पंक्तियों में देिा जा
सकिा है –
“नहहं दरिर सम दुि जग माहीं।”
4. िाति व्यवस्था
ग्यािहवीं र्िाब्दी क
े आसपास हहंदू धमि को कमिकांड क
े माध्यम से एकीकृ ि किने की
कोमर्र् हुई। जाति व्यवथथा बनी िही। जाति औि सामाक्जक िीति-रिवाज की दृक्ष्ि से हहंदू
थमृतिकािों ने ब्राह्मणों को समाज में ऊ
ाँ िा थथान देना जािी ििा। अब भी थमृति ग्रंथों में इस
बाि पि जोि हदया जािा िहा कक अपिाचधयों को दंडडि किना औि अच्छे को आाँिों की पुिली
समझना िबत्रयों का धमि है। प्रजा की ििा क
े मलए र्थत्र धािण किना भी उन्हीं का कििव्य है।
र्ूरों का कििव्य दूसिी जातियों की सेवा किना था। र्ूरों क
े साथ अछ
ू ि का व्यवहाि जािी िहा।
मुक्थलम समाज भी नथल औि जातिगि वगों में ववभाक्जि िहा। िुको, इिातनयों, अफगानों औि
भाििीय मुसलमानों में एक दूसिे क
े साथ वैवाहहक संबंध नहीं होिा था। मुसलमानों में श्रेष्ठिा
की भावना, पािथपरिक वववाहों का धाममिक तनषेध औि एक साथ बैठकि भोजन न किने क
े
कािण हहंदुओं औि मुसलमानों क
े बीि सामाक्जक मेल-ममलाप अचधक नहीं था। इन प्रतिबंधों क
े
बावजूद हहंदुओं औि मुसलमानों क
े बीि सामाक्जक संपक
ि बना िहा। भक्ति आंदोलन की कृ ष्ण
मागी धािा में कई भति मुसलमान थे। जाति व्यवथथा का वविोध नाथों औि मसर्दधों ने ककया
औि आगे इस पिंपिा में संि भतिों की वाखणयों को देिा जा सकिा है।
कबीि कठोि र्ब्दों में पूछिे हैं :
“जे िूं बाभन बाभनी का जाया । िौ आन बाि होई कहै न आया।”
िुलसीदास क
े साहहत्य में वणि-व्यवथथा को लेकि अंिववििोध है। कहीं िो वे वणि-व्यवथथा का
समथिन कििे हैं औि कहीं इस वणि-व्यवथथा से िुब्ध होकि मलििे हैं –
“धूि कहो अवधूि कहौ, िजपूि कहौ, जोलहा कहौ कोउ।
काहू की बेिी सों बेिा न ब्याहब, काहू की जाति बबगाि न सोउ।।
िुलसी सिनाम गुलाम है िामु को, जाको रुिै सौ कहै कछ
ु ओऊ।
मााँचग क
े िैबो मसीि को सोइबो, लैबो एक
ु न देबे को दोऊ।।”
5. धामििक पृष्ठभूमि
िुकों का आगमन िथा हदल्ली सल्िनि की थथापना, ववकास औि िलबली दोनों साथ
लेकि आया। ववजय क
े आिंमभक ििण में अनेक र्हिों को लूिा गया औि मंहदिों को िोड़ा गया।
कई मंहदिों को िोड़कि मक्थजद में परिवतििि कि हदया गया। साम्राज्य क
े ववथिाि क
े साथ यह
प्रकक्रया कई ििणों में जािी िही। ककं िु जैसे ही कोई प्रदेर् जीि मलया गया वैसे ही र्ांति औि
ववकास की प्रकक्रया आिंभ हो गई। भािि में जमने क
े बाद िुकों ने अपने मक्थजदों का तनमािण
ककया। हहंदुओं औि जैतनयों आहद क
े पूजाथथल क
े प्रति उनकी नीति मुक्थलम कानून (र्िीअि)
पि आधारिि थी जो अन्य धमों क
े नए पूजा थथलों क
े तनमािण की इजाजि नहीं देिा कफि भी
गााँव में जहााँ इथलाम का प्रिाि नहीं था, मंहदिों क
े तनमािण पि कोई प्रतिबंध नहीं था। ककं िु युर्दध
काल में इस उदाि नीति का पालन नहीं ककया जािा था।
साधािणि: इस युग में इथलाम थवीकाि किने क
े मलए बल का प्रयोग नहीं ककया जािा
था। धमि परिवििन कि इथलाम थवीकाि किने का कािण िाजनीति औि आचथिक लाभ की आर्ा
अथवा सामाक्जक प्रतिष्ठा प्राप्ि किने की ललक थी। कभी-कभी जब कोई प्रमसर्दध र्ासक या
जनजाति का प्रधान धमि परिवििन कििा था िो उसकी प्रजा उसका अनुकिण कििी थी।
मुसलमान र्ासकों ने अनुभव ककया था कक हहंदुओं में धाममिक ववश्वास इिना दृढ है कक बल
प्रयोग र्दवािा उसे नष्ि नहीं ककया जा सकिा था। मुसलमानों की उस समय कम जनसंख्या
इसका प्रमाण है।
हहंदू धमि का इथलाम से संपक
ि िुकों क
े आने से बहुि पहले आिंभ हो िुका था। िुकों
क
े भािि आगमन क
े बाद यह प्रकक्रया िेज हो गई। हहंदू औि मुसलमान दोनों में क
ु छ कट्िि
लोग धमाांधिा फ
ै ला िहे थे। वे लोग दोनों धमों क
े बीि आभामसि होने वाली पिथपि वविोधी
प्रकृ ति को िेिांककि कि िहे थे। इस सबक
े बावजूद पािथपरिक सामंजथय औि मेल-ममलाप की
धीमी प्रकक्रया आिंभ हुई। यह प्रकक्रया वाथिुकला, साहहत्य, संगीि, आहद िेत्रों में अचधक थपष्ि
रूप से हदिाई पड़ िही थी। आगे िलकि यह प्रकक्रया धमि क
े िेत्र में भक्ति-आंदोलन औि
सूफीवाद क
े रूप में हदिाई देने लगी। यह प्रकक्रया 15वीं सदी में िेजी से िली औि मुगल काल
(16वीं-17वीं सदी) में काफी प्रबल हो गई। इिना होिे हुए भी यह मान लेना गलि होगा कक
िकिाव ित्म हो गया था। बक्ल्क मेल-ममलाप की प्रकक्रया एवं िकिाव साथ-साथ िलिे िहे। क
ु छ
र्ासकों क
े काल में मेल-ममलाप की इस प्रकक्रया को धतका लगिा था, जबकक क
ु छ अन्य र्ासकों
क
े काल में अचधक िेजी से इसका ववकास होिा था। यह िकिाव औि मेल ममलाप ववर्ेषाचधकािी
एवं र्क्तिर्ाली लोगों िथा मानविावादी वविािों से प्रभाववि आम जनिा क
े बीि संघषि का रूप
था। भक्ति आंदोलन क
े सभी भति कवव सबसे पहले मानविावादी थे।
सारांश
अभी िक हम लोगों ने भक्ति काल की िाजनीतिक, आचथिक, सामाक्जक, धाममिक एवं
दार्ितनक पृष्ठभूमम को समझिे हुए उत्ति भािि में भक्ति क
े उदय क
े कािणों को ववमभन्न दृक्ष्ि
से देिा। हमने यह भी ििाि की कक जहााँ र्ुतलजी की दृक्ष्ि में ित्कालीन सामाक्जक-िाजनीतिक
परिक्थथति महत्वपूणि है. वहीं र्दवववेदी जी का बल पिंपिा पि अचधक है। र्दवववेदी जी ित्कालीन
परिक्थथति को नकाििे नहीं हैं। आगे िलकि क
े , दामोदिन औि डॉ. िामववलास र्माि ने पिविी
इतिहास में हए र्ोध तनष्कषों क
े सहािे भक्ति काल की नए ढंग से व्याख्या की। इस व्याख्या
की ववर्ेषिा आचथिक पहलू है। िुकों औि मुगलों क
े भािि में आने से इतिहास में कई महत्वपूणि
परिवििन हुए। सामाक्जक संििना पि उसका प्रभाव पड़ना थवाभाववक था। र्ुतलजी औि र्दवववेदी
जी क
े समय िक इस ििह का र्ोध-तनष्कषि सामने नहीं आया था। आगे िलकि डॉ. िामववलास
र्माि ने इन तनष्कषों का सहािा लेकि भक्ति आंदोलन की पुनव्यािख्या की।
भक्ति आंदोलन को एकांगी दृक्ष्ि से नहीं समझा जा सकिा है। इसका सबसे बड़ा
कािण है इस आंदोलन का बहुमुिी प्रभाव । भक्ति आंदोलन का प्रभाव सामाक्जक, िाजनीतिक,
धाममिक संदभो पि िो िहा ही साथ ही साथ कला औि संथकृ ति पि भी इसका प्रभाव बहुि ही
गहिा पड़ा। इस आंदोलन में अवणि से लेकि सवणि िक, महहला से लेकि पुरुष िक, मर्क्षिि से
लेकि अमर्क्षिि िक औि हहंदू से लेकि मुसलमान िक सभी र्ाममल थे। यह आंदोलन अपने
थवभाव में जनिांबत्रक था। इसक
े साथ ही इस आंदोलन का थवरूप अखिल भाििीय था। भक्ति
साहहत्य इसी आंदोलन की देन है। इसमलए भक्ति साहहत्य को पढिे हुए इस आंदोलन की प्रकृ ति
औि थवरूप को ध्यान में ििना जरूिी है।

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  • 1. प्रश्न 2. भक्तिकाल की पृष्ठभूमियो को स्पष्ट कीक्िए I 1. भक्तिकाल की समय-सीमा से परिचिि हो सक ें गे; 2. भक्तिकाल की िाजनीतिक पृष्ठभूमम को जान सक ें गे; 3. भक्तिकाल की आचथिक एवं सामाक्जक पृष्ठभूमम का वववेिन कि सक ें गे; 4. भक्तिकाल की धाममिक क्थथति की ििाि कि सक ें गे; 5. भक्तिकाल की दार्ितनक पृष्ठभूमम का परििय दे सक ें गे; 6. हहन्दी साहहत्य में भक्ति क े उदय की व्याख्या कि सक ें गे; 7. दक्षिण भािि में भक्ति-आंदोलन क े उदय क े कािण औि भक्ति-आंदोलन क े अखिल भाििीय थवरूप का ववश्लेषण कि सक ें गे।
  • 2. ऐतिहामसक दृक्ष्ि से भक्ति-आंदोलन क े ववकास को दो ििणों में बााँिा जा सकिा है। पहले ििण क े अंिगिि दक्षिण भािि का भक्ति-आंदोलन आिा है। इस आंदोलन का काल छठी र्िाब्दी से लेकि िेिहवीं र्िाब्दी िक का है। दूसिे ििण में उत्ति भािि का भक्ति आंदोलन आिा है। इसकी समय-सीमा िेिहवीं र्िाब्दी क े बाद से सत्रहवीं र्िाब्दी िक है। इसी ििण में उत्ति भािि इथलाम क े संपक ि में आया। हहंदी साहहत्य क े भक्तिकाल का संबंध उत्तिी भािि क े भक्ति-आंदोलन से है। आिायि’ िामिन्र र्ुतल ने भक्तिकाल की समय सीमा सन् 1318-1643 ई. मानी है। आगे क े इतिहासकािों ने भी इसी समय-सीमा को थवीकािा है। भक्तिकाल क े काल ववभाजन की ववथिृि जानकािी हम इस पाठ्यक्रम क े िंड-1 की पहली इकाई में आपको दे िुक े हैं।
  • 3. 1. रािनीतिक पृष्ठभूमिÁ¹ िाजनीतिक दृक्ष्ि से भक्ति काल का ववथिाि मुख्य रूप से िुगलक वंर् से लेकि मुगल वंर् क े बादर्ाह र्ाहजहााँ क े र्ासन काल िक है। इसमलए भक्तिकाल की िाजनीतिक पृष्ठभूमम को समझने क े मलए। ित्कालीन िाजनीतिक गतिववचधयों को समझना आवश्यक है। दसवीं र्िाब्दी क े उत्तिार्दिध में पक्श्िमोत्ति मागि से िुकों का भािि पि आक्रमण हुआ। िाजपूि िाजाओं की पािथपरिक फ ू ि िथा र्त्रुिा क े परिणामथवरूप पृथ्वीिाज िौहान मुहम्मद गौिी क े हाथों िथा जयिंद क ु िुबुर्ददीन ऐबक क े र्दवािा मािा . गया। इसक े पश्िाि् ही हदल्ली सल्िनि की थथापना हुई। िुक ि आक्रमणकारियों र्दवािा र्ामसि िाज्य को हदल्ली सल्िनि क े नाम से पुकािा जािा है। हदल्ली सल्िनि का इतिहास मुहम्मद गौिी क े र्दवािा भािि पि आक्रमण से र्ुरू होिा है।
  • 4. सन् 1206 में िुकी गुलाम क ु िुबर्ददीन ऐबक भािि में मुहम्मद गौिी का उत्तिाचधकािी बना। गौिी का ही एक दूसिा गुलाम यल्दोज़ गज़नी का उत्तिाचधकािी बना। यल्दोज़ ने हदल्ली पि भी अपने अचधकाि का दावा ककया। िभी से हदल्ली सल्िनि ने गज़नी से अपना संबंध िोड़ मलया। भािि क े मलए यह फलदायी मसर्दध हुआ। इस ििह वह मध्य-एमर्या की िाजनीति से अलग हो गया औि भािि दूसिे देर्ों पि तनभिि हुए बबना हदल्ली-सल्िनि में अपना थविंत्र ववकास कि सका। र्ुरू क े सौ वषों िक हदल्ली-सल्िनि को अपने िाज्य की सुििा क े मलए प्रयास किना पड़ा। हदल्ली-सल्िनि को ववदेर्ी आक्रमण, िुकी अमीिों क े आंिरिक वविोध, ववक्जि िाजपूि र्ासकों औि सिदािों र्दवािा कफि से िाज्य को वापस लेने का िििा था। िुकी र्ासकों ने इन बाधाओं पि ववजय पायी। िेिहवीं सदी क े अंि िक हदल्ली-सल्िनि का ववथिाि न मसफ ि मालवा औि गुजिाि िक, बक्ल्क दतकन औि दक्षिण भािि िक हो गया।
  • 5. सन् 1206-1290 ई. िक हदल्ली-सल्िनि का इतिहास उिाि-िढाव का िहा। 1281 ई. में बलवन की मृत्यु क े बाद कफि से अिाजकिा फ ै ल गई। इस अिाजकिा का फायदा उठाकि जलालुर्ददीन क े नेिृत्व में क ु छ सिदाि सन् 1290 ई. में बलवन क े अयोग्य उत्तिाचधकारियों को मसंहासन से वंचिि किने में सफल हुए। यहीं से खिलजी वंर् की र्ुरुआि हुई। जलालुर्ददीन खिलजी का र्ासन काल छह वषि का िहा। इस अल्प र्ासन काल में ही उसने बलवन क े कठोि र्ासन में निमी लाने का प्रयास ककया। उसने िाज्य का आधाि ‘प्रजा का समथिन’ माना। उसकी धािणा क े अनुसाि िूंकक भािि की अचधकांर् जनिा हहंदू थी इसमलए सही अथि में यहााँ कोई इथलामी िाज्य नहीं हो सकिा था। सहहष्णुिा औि सिल दंड-ववधान की नीति से उसने थथानीय र्ासक वगि का समथिन प्राप्ि किने की कोमर्र् की। अगला र्ासक अलाउर्ददीन खिलजी बना। उसने जलालुर्ददीन की नीति को बबलक ु ल बदल डाला। क्जन्होंने उसका वविोध किने का साहस ककया उन्हें कठोि दंड हदया गया। अलाउर्ददीन ने बड़े पैमाने पि अपने वविोचधयों की हत्या की। उसने थथानीय र्ासकों को अपने ववरुर्दध षड्यंत्र ििने पि िोक लगाने क े मलए कई कानून बनाए।
  • 6. अलाउर्ददीन क े मिणोपिांि गयासुर्ददीन िुगलक ववरोह क े बाद हदल्ली-सल्िनि की गर्ददी पि बैठा। गयासुर्ददीन ने एक नए वंर् की थथापना की क्जसका नाम िुगलक वंर् था। िुगलक वंर् का र्ासन 1320-1412 ई. िक िहा। इस वंर् में िीन महत्वपूणि र्ासक हुए – गयासुर्ददीन, उसका पुत्र मुहम्मद बबन िुगलक (1324-1351 ई.) औि उसका भिीजा कफिोज़ िुगलक (1351-1388 ई.)। आिंमभक दो र्ासकों का र्ासन लगभग संपूणि भािि पि था। कफिोज क े मिने क े बाद हदल्ली-सल्िनि ववघहिि हो गयी। यर्दयवप िुगलक र्ासकों ने सन् 1412 ई. िक र्ासन ककया िथावप सन् 1398 ई. में िैमूि र्दवािा हदल्ली पि आक्रमण को िुगलक साम्राज्य का अंि माना गया है।
  • 7. क ु ल ममलाकि हदल्ली-सल्िनि का र्ासन काल साम्राज्य क े ववथिाि औि क ें रीकिण की दृक्ष्ि से महत्वपूणि है। अलाउर्ददीन खिलजी क े सत्ता में आने से पच्िीस वषों क े भीिि हदल्ली-सल्िनि की सेनाओं ने गुजिाि औि मालवा पि अचधकाि कि मलया। साथ ही िाजथथान क े अचधकांर् िाजाओं को हिाने क े बाद दक्षिण भािि में दतकन औि मदुिै िक क े िेत्रों को जीि मलया गया। आगे इस ववथिृि िेत्र को सीधे हदल्ली प्रर्ासन क े अधीन ििने का प्रयास ककया गया। ववथिाि की नीति की र्ुरुआि अलाउर्ददीन खिलजी क े र्दवािा हई। उसक े उत्तिाचधकारियों ने भी इस नीति को जािी ििा । मुहम्मद बबन िुगलक क े काल में यह नीति अपने ििम पि पहुंि गई।
  • 8. िैमूि आक्रमण क े बाद सुलिान महमूद िुगलक हदल्ली से भाग गया। जब िक वह वापस हदल्ली लौिा िब िक हदल्ली क े आस-पास ही कई थथानीय र्ासकों औि जमींदािों ने थवयं को थविंत्र घोवषि कि हदया था। हदल्ली सल्िनि क े पिन क े बाद र्की सुलिानों ने एक बड़े भू- िंड पि कानून औि व्यवथथा को बनाए ििा। इस बीि क ु छ समय क े मलए हदल्ली पि सैयद वंर् का औि कफि 1451 ई. में अफगान सिदाि बहलोल लोदी का र्ासन थथावपि हुआ। अफगानों की मदद से बहलोल ने र्कक ि यों को हिा हदया। इस ििह उत्ति भािि में अफगानों का वििथव कायम हुआ। सबसे महत्वपूणि लोदी सुलिान मसकन्दि लोदी (1489-1517 ई.) था। मसकन्दि लोदी ने धौलपुि औि ग्वामलयि को जीिकि अपने िाज्य का प्रसाि ककया। अपने ववजय अमभयान क े दौिान 1506 ई. में उसने आगिा र्हि की नींव डाली। इस र्हि का तनमािण पूवी िाजथथान क े िेत्रों िथा व्यापारिक मागों पि तनयंत्रण थथावपि किने क े उर्ददेश्य से ककया गया था। कालान्िि में आगिा एक बड़े र्हि क े रूप में ववकमसि हुआ। आगे िलकि आगिा लोहदयों की दूसिी िाजधानी भी बनी। 1517 ई. में मसकन्दि लोदी की मृत्यु क े बाद इब्राहीम लोदी गर्ददी पि बैठा। इब्राहीम क े ववर्ाल साम्राज्य थथावपि किने क े प्रयत्न से अफगान औि िाजपूि दोनों उसक े दुश्मन बन गए। इस कािण दौलि िााँ लोदी औि िाणा सांगा क े तनमंत्रण पि बाबि भािि की ओि आया।
  • 9. 1525 ई. में जब बाबि पेर्ावि में था उसे िबि ममली कक दौलि िााँ लोदी ने अपना पलड़ा बदल हदया है, िब बाबि औि दौलि िााँ क े बीि युर्दध हुआ। दौलि िााँ पिाक्जि हुआ औि पंजाब पि बाबि का अचधकाि हो गया। पंजाब पि ववजय प्राप्ि किने क े बाद 20 अप्रैल 1526 ई. में बाबि की इब्राहीम लोदी से पानीपि की ऐतिहामसक लड़ाई हुई। इब्राहीम लोदी मािा गया। इस ििह अगला युर्दध िाणा सांगा क े साथ 1527 ई. में िनवा में हुआ। सांगा भी पिाक्जि हुआ। उसकी मृत्यु क े साथ ही बाबि क े साम्राज्य का ववथिाि िाजथथान िक हो गया। उसने ग्वामलयि, धौलपुि, अलवि आहद पि कब्जा कि मुगल साम्राज्य का ववथिाि ककया। आगिा से काबुल जािे समय लाहौि में बाबि की मृत्यु हो गई। िब 1530 ई. में हुमायूाँ बाबि का उत्तिाचधकािी बना। हुमायूाँ ने आिंभ में कई युर्दधों में सफलिा प्राप्ि की, लेककन कालांिि में अपने अधीनथथ अफगान सिदाि र्ेि िााँ से पिाक्जि हुआ।
  • 10. कई युर्दधों क े बाद अंिि: हुमायूाँ को र्ेि िााँ ने हदल्ली क े र्ासन से अपदथथ कि हदया। हदल्ली की गर्ददी पि बैठिे ही उसने अपना नाम र्ेिर्ाह िि मलया। वह एक क ु र्ल योर्दधा औि र्ासक िहा। र्ेिर्ाह का र्ासन 1555 ई. िक िहा। उसने न मसफ ि अपने साम्राज्य का ववथिाि पूिे भािि में ककया अवपिु क ु र्ल प्रर्ासन औि क ें रीकिण क े परिणामथवरूप व्यापाि को भी बढाया। र्ेिर्ाह क े असामतयक तनधन क े बाद 1555 ई. में हुमायूाँ हदल्ली पि कफि से अचधकाि किने में सफल हुआ। लेककन क ु छ ही हदनों में हुमायूाँ का तनधन (1556 ई.) हो गया। 1556 ई. में 13 वषि की छोिी अवथथा में ही अकबि को गर्ददी ममली।
  • 11. अकबि क े उथिाद औि हुमायूाँ क े थवामीभति औि योग्य अचधकािी बैिम िााँ ने कहठन परिक्थथति का क ु र्लिा औि धैयि से सामना ककया। अकबि क े नेिृत्व में आगे िलकि ववर्ाल औि क्थथि मुगल साम्राज्य की थथापना हुई। उसका साम्राज्य उत्ति-पक्श्िमी अफगान देर् से असम िक औि उत्ति में कश्मीि से लेकि दक्षिण में अहमदनगि िक फ ै ला हुआ था। अकबि क े र्ासनकाल में िाज्य मूलि: धमितनिपेि, सामाक्जक ववषयों में उदाि िथा सांथकृ तिक एकिा को प्रोत्साहहि किने वाला बन गया। अकबि क े बाद 17वीं सदी का पूवािर्दिध क ु ल ममलाकि प्रगति औि ववकास का काल था। इस अवचध में मुगल साम्राज्य जहााँगीि (1605-1627 ई.) िथा र्ाहजहााँ (1628-1658 ई.) इन दो र्ासकों क े क ु र्ल नेिृत्व में िहा। इन र्ासकों ने अकबि र्दवािा ववकमसि प्रर्ासतनक व्यवथथा का औि भी अचधक प्रसाि ककया। र्ाहजहााँ क े अंि क े साथ ही हहंदी साहहत्य क े भक्ति काल की भी समाक्प्ि हो गई। इसक े बाद हहंदी साहहत्य क े इतिहास में िीतिकाल का दौि र्ुरू हो गया।
  • 12. 2. आर्थिक एवं सािाक्िक पृष्ठभूमिÁ¹ 1. क ें द्रीकृ ि शासन-व्यवस्था िुकों क े र्दवािा भािि में र्ासन कायम किने से लेकि र्ाहजहााँ िक क े िाजनीतिक इतिहास में सबसे महत्वपूणि िथ्य क ें रीकृ ि र्ासन व्यवथथा है। िुकों क े पिन औि मुगल साम्राज्य क े थथावपि होने क े बीि क े क ु छ वषों को छोड़ दें िो पूिा उत्ति भािि एक क ें रीकृ ि र्ासन व्यवथथा क े अधीन िहा। कभी-कभी िो साम्राज्य का ववथिाि दक्षिण भािि औि बंगाल िक फ ै ल गया। क ें रीकृ ि औि क्थथि र्ासन का अथि-व्यवथथा पि सबसे अच्छा प्रभाव पड़िा है। इसे हम उत्ति भािि क े संदभि में भी देि सकिे हैं।
  • 13. िुकों ने र्ासन-व्यवथथा को सुिारू रूप से िलाने क े मलए क ें रीय प्रर्ासन औि थथानीय प्रर्ासन की व्यवथथा की। आय औि व्यय का हहसाब ििने क े मलए अचधकारियों की तनयुक्तियााँ की गईं। साम्राज्य को ववमभन्न सूबों में बााँिा गया औि कफि सूबों को भी ववभाक्जि ककया गया, क्जसे उस समय मर्क कहा जािा था। मर्क क े नीिे पिगने होिे थे। गााँव में िुि, मुकर्ददम, पिवािी क े माध्यम से भू-िाजथव की वसूली की जािी थी। इस ििह क ें र से लेकि गााँव िक एक सुिारू व्यवथथा कायम हुई। िुकों र्दवािा थथावपि प्रर्ासतनक व्यवथथा आगे क े र्ासकों र्दवािा भी क ु छ सुधािों क े साथ अपनाई जािी िही।
  • 14. 2. शहरी सिाि एवं व्यापार िुकों क े आने क े बाद दूसिा महत्वपूणि परिवििन र्हिों का उदय है। हदल्ली, आगिा, बनािस, इलाहाबाद, पिना आहद कई र्हिों का उदय हुआ। ये र्हि आगे िलकि प्रमुि व्यापाि क ें र बने। र्हिों क े साथ-साथ छोिे-छोिे कथबों का भी उदय हुआ। व्यापाि क े माध्यम से गााँव, कथबे औि र्हिों से संबंध थथावपि हुआ। इस ििह गााँव का अलगाव दूि हुआ। िुकों क े साथ नई िकनीक भािि आई। इनमें िििा, धुनकी, िहि, कागज, िुम्बकीय क ु िुबनुमा, समय-सूिक उपकिण, घुड़सवाि सेना, प्रौर्दयोचगकी प्रमुि हैं। नई िकनीकों का प्रभाव उर्दयोग िथा व्यापाि पि पड़ा।
  • 15. िििे क े आने से वथत्र उर्दयोग में काफी बढोििी हुई। कािीगि की िमिा बढ जाने से वथत्र उर्दयोग भािि का सबसे बड़ा उर्दयोग हो गया। इसी काल में धुनकी भी आयी। धुनकी क े आने से रुई से बीज तनकालने की प्रकक्रया में भी िेजी आई। नील एवं अन्य वनथपतिक िंजकों से अनेक िमकीले िंग बनाए जािे थे। इस ििह देिें िो वथत्र उर्दयोग से भािी संख्या में लोगों को िोज़गाि ममला। मुहम्मद बबन िुगलक क े काििानों में 4000 िेर्मकमी थे जो मभन्न-मभन्न प्रकाि की पोर्ाकों औि वथत्रों की बुनाई औि कसीदाकािी कििे थे। कबीिदास का संबंध इसी उर्दयोग से था। कबीि क े साहहत्य में कई रूपक बुनाई उर्दयोग से हैं। “झीनी झीनी बीनी िदरिया” इसका प्रमसर्दध उदाहिण है।
  • 16. इस दौि में सड़कों क े तनमािण का कायि बड़े पैमाने पि हुआ। िुक ि र्ासक र्ेिर्ाह, मुगल र्ासक सभी ने सड़क ें बनवायीं औि सड़कों क े ककनािे सिाय बनाकि याबत्रयों क े ठहिने की व्यवथथा की। इसका सीधा प्रभाव व्यापाि पि हुआ। इन र्ासकों ने व्यापाि क े ववकास पि बहुि ध्यान हदया । उन्होंने व्यापारिक मागों पि सुििा की व्यवथथा की। िाहजनी की घिनाओं को िोकने क े मलए ववर्ेष कानून बनाया गया, क्जसका सख्िी क े साथ पालन ककया जािा था। इस काल में र्ुरू होने वाला नया उर्दयोग कागज तनमािण का था। इसका सीधा प्रभाव व्यापाि पि हुआ। हुंडी क े माध्यम से सुिक्षिि व्यापाि का िाथिा िुल गया। इसक े अतिरिति भवन-तनमािण उस काल में काफी हुआ। िुकों क े आने क े बाद से लेकि मुगल काल िक कई नगि बसे। ककलों औि महलों का तनमािण भी बहुि हुआ, क्जसक े परिणामथवरूप िाजममथत्री एवं पत्थि ििामर्यों का महत्व काफी बढ गया। क ु ल ममला कि देिें िो इस काल में नए मर्ल्पी वगि का उदय हुआ। भक्तिकाल क े कई संि कवव इस मर्ल्पी वगि से आिे हैं।
  • 17. िुकों से लेकि मुगल काल िक उत्ति भािि में देर्ीय व्यापाि क े साथ-साथ अंििािष्रीय व्यापाि भी बढ गया। यहााँ से सूिी वथत्र का तनयािि बहुि ही बड़े पैमाने पि होिा था। भािि में ऐसे बहुि से बंदिगाह थे जहााँ से ववमभन्न देर्ों से व्यापाि होिा था। भािि दक्षिण-पूवी एवं पक्श्िमी एमर्या क े कई देर्ों को िीनी, िावल आहद जैसे िार्दय पदाथि भेजिा था। इस पूिे दौि में व्यापाि औि उर्दयोग में काफी वृर्दचध हुई क्जसक े परिणामथवरूप व्यापािी समुदाय आचथिक रूप से काफी सम्पन्न हुआ। मुगल काल क े क ु छ र्ासक िुद व्यापाि कििे थे। एक ििह से सामंिी समाज व्यवथथा (जो भू-िाजथव पि आधारिि होिी है) क े भीिि पूाँजीवाद (जो उर्दयोग एवं व्यापाि पि आधारिि होिा है) का ववकास हो िहा था। इसक े बावजूद नगिों में बड़ी संख्या में गिीब लोग मौजूद थे क्जनका जीवन मुक्श्कल से िलिा था।
  • 18. 3. ग्रािीण सिाि गााँव क े ककसानों की आचथिक क्थथति अच्छी नहीं थी। बाि-बाि उन्हें अकाल का सामना किना पड़िा था। मसंिाई क े साधनों (िहि आहद) क े आने से उत्पादन में बढोत्तिी हुई औि गााँव क े लोग वथत्र उर्दयोग से जुड़े, कफि भी क्थथति में कोई बड़ा परिवििन नहीं हुआ। कई बाि िो ककसानों ने ववरोह भी ककया, लेककन ववरोहों को बुिी ििह से क ु िल हदया जािा था। जमींदाि औि व्यापािी वगि की िुलना में उनकी क्थथति बहुि ििाब थी। िुलसीदास क े साहहत्य में यह पीड़ा मौजूद है। अकाल औि भूि की पीड़ा का माममिक चित्रण िुलसीदास ने ककया है।
  • 19. “कमल बािहहं बाि दुकाल पिै। बबनु अन्न दुिीं सब लोग मिै।” िेिी न ककसान को, मभिािी को न भीि, बमल, बतनक को बतनज, न िाकि को िाकिी। जीववका ववहीन लोग सीर्दयमान सोि बस, कहै एक एकन सों ‘कहााँ जाई का किी’।।”
  • 20. जमींदािों क े र्दवािा ककसानों का र्ोषण होिा था। उस समय क े ऐसे ककसान क्जनक े पास अपनी जमीन थी, कहठन जीवन क े बावजूद िाने की औि दूसिी साधािण आवश्यकिाओं को पूिा किने में समथि थे। ककं िु भूममहीन ककसानों, दथिकािों औि तनिली श्रेणी क े काम किने वालों की दर्ा औि भी दयनीय थी। दरिरिा का दुि िुलसी की तनम्नमलखिि पंक्तियों में देिा जा सकिा है – “नहहं दरिर सम दुि जग माहीं।”
  • 21. 4. िाति व्यवस्था ग्यािहवीं र्िाब्दी क े आसपास हहंदू धमि को कमिकांड क े माध्यम से एकीकृ ि किने की कोमर्र् हुई। जाति व्यवथथा बनी िही। जाति औि सामाक्जक िीति-रिवाज की दृक्ष्ि से हहंदू थमृतिकािों ने ब्राह्मणों को समाज में ऊ ाँ िा थथान देना जािी ििा। अब भी थमृति ग्रंथों में इस बाि पि जोि हदया जािा िहा कक अपिाचधयों को दंडडि किना औि अच्छे को आाँिों की पुिली समझना िबत्रयों का धमि है। प्रजा की ििा क े मलए र्थत्र धािण किना भी उन्हीं का कििव्य है। र्ूरों का कििव्य दूसिी जातियों की सेवा किना था। र्ूरों क े साथ अछ ू ि का व्यवहाि जािी िहा। मुक्थलम समाज भी नथल औि जातिगि वगों में ववभाक्जि िहा। िुको, इिातनयों, अफगानों औि भाििीय मुसलमानों में एक दूसिे क े साथ वैवाहहक संबंध नहीं होिा था। मुसलमानों में श्रेष्ठिा की भावना, पािथपरिक वववाहों का धाममिक तनषेध औि एक साथ बैठकि भोजन न किने क े कािण हहंदुओं औि मुसलमानों क े बीि सामाक्जक मेल-ममलाप अचधक नहीं था। इन प्रतिबंधों क े बावजूद हहंदुओं औि मुसलमानों क े बीि सामाक्जक संपक ि बना िहा। भक्ति आंदोलन की कृ ष्ण मागी धािा में कई भति मुसलमान थे। जाति व्यवथथा का वविोध नाथों औि मसर्दधों ने ककया औि आगे इस पिंपिा में संि भतिों की वाखणयों को देिा जा सकिा है।
  • 22. कबीि कठोि र्ब्दों में पूछिे हैं : “जे िूं बाभन बाभनी का जाया । िौ आन बाि होई कहै न आया।” िुलसीदास क े साहहत्य में वणि-व्यवथथा को लेकि अंिववििोध है। कहीं िो वे वणि-व्यवथथा का समथिन कििे हैं औि कहीं इस वणि-व्यवथथा से िुब्ध होकि मलििे हैं – “धूि कहो अवधूि कहौ, िजपूि कहौ, जोलहा कहौ कोउ। काहू की बेिी सों बेिा न ब्याहब, काहू की जाति बबगाि न सोउ।। िुलसी सिनाम गुलाम है िामु को, जाको रुिै सौ कहै कछ ु ओऊ। मााँचग क े िैबो मसीि को सोइबो, लैबो एक ु न देबे को दोऊ।।”
  • 23. 5. धामििक पृष्ठभूमि िुकों का आगमन िथा हदल्ली सल्िनि की थथापना, ववकास औि िलबली दोनों साथ लेकि आया। ववजय क े आिंमभक ििण में अनेक र्हिों को लूिा गया औि मंहदिों को िोड़ा गया। कई मंहदिों को िोड़कि मक्थजद में परिवतििि कि हदया गया। साम्राज्य क े ववथिाि क े साथ यह प्रकक्रया कई ििणों में जािी िही। ककं िु जैसे ही कोई प्रदेर् जीि मलया गया वैसे ही र्ांति औि ववकास की प्रकक्रया आिंभ हो गई। भािि में जमने क े बाद िुकों ने अपने मक्थजदों का तनमािण ककया। हहंदुओं औि जैतनयों आहद क े पूजाथथल क े प्रति उनकी नीति मुक्थलम कानून (र्िीअि) पि आधारिि थी जो अन्य धमों क े नए पूजा थथलों क े तनमािण की इजाजि नहीं देिा कफि भी गााँव में जहााँ इथलाम का प्रिाि नहीं था, मंहदिों क े तनमािण पि कोई प्रतिबंध नहीं था। ककं िु युर्दध काल में इस उदाि नीति का पालन नहीं ककया जािा था।
  • 24. साधािणि: इस युग में इथलाम थवीकाि किने क े मलए बल का प्रयोग नहीं ककया जािा था। धमि परिवििन कि इथलाम थवीकाि किने का कािण िाजनीति औि आचथिक लाभ की आर्ा अथवा सामाक्जक प्रतिष्ठा प्राप्ि किने की ललक थी। कभी-कभी जब कोई प्रमसर्दध र्ासक या जनजाति का प्रधान धमि परिवििन कििा था िो उसकी प्रजा उसका अनुकिण कििी थी। मुसलमान र्ासकों ने अनुभव ककया था कक हहंदुओं में धाममिक ववश्वास इिना दृढ है कक बल प्रयोग र्दवािा उसे नष्ि नहीं ककया जा सकिा था। मुसलमानों की उस समय कम जनसंख्या इसका प्रमाण है।
  • 25. हहंदू धमि का इथलाम से संपक ि िुकों क े आने से बहुि पहले आिंभ हो िुका था। िुकों क े भािि आगमन क े बाद यह प्रकक्रया िेज हो गई। हहंदू औि मुसलमान दोनों में क ु छ कट्िि लोग धमाांधिा फ ै ला िहे थे। वे लोग दोनों धमों क े बीि आभामसि होने वाली पिथपि वविोधी प्रकृ ति को िेिांककि कि िहे थे। इस सबक े बावजूद पािथपरिक सामंजथय औि मेल-ममलाप की धीमी प्रकक्रया आिंभ हुई। यह प्रकक्रया वाथिुकला, साहहत्य, संगीि, आहद िेत्रों में अचधक थपष्ि रूप से हदिाई पड़ िही थी। आगे िलकि यह प्रकक्रया धमि क े िेत्र में भक्ति-आंदोलन औि सूफीवाद क े रूप में हदिाई देने लगी। यह प्रकक्रया 15वीं सदी में िेजी से िली औि मुगल काल (16वीं-17वीं सदी) में काफी प्रबल हो गई। इिना होिे हुए भी यह मान लेना गलि होगा कक िकिाव ित्म हो गया था। बक्ल्क मेल-ममलाप की प्रकक्रया एवं िकिाव साथ-साथ िलिे िहे। क ु छ र्ासकों क े काल में मेल-ममलाप की इस प्रकक्रया को धतका लगिा था, जबकक क ु छ अन्य र्ासकों क े काल में अचधक िेजी से इसका ववकास होिा था। यह िकिाव औि मेल ममलाप ववर्ेषाचधकािी एवं र्क्तिर्ाली लोगों िथा मानविावादी वविािों से प्रभाववि आम जनिा क े बीि संघषि का रूप था। भक्ति आंदोलन क े सभी भति कवव सबसे पहले मानविावादी थे।
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  • 28. सारांश अभी िक हम लोगों ने भक्ति काल की िाजनीतिक, आचथिक, सामाक्जक, धाममिक एवं दार्ितनक पृष्ठभूमम को समझिे हुए उत्ति भािि में भक्ति क े उदय क े कािणों को ववमभन्न दृक्ष्ि से देिा। हमने यह भी ििाि की कक जहााँ र्ुतलजी की दृक्ष्ि में ित्कालीन सामाक्जक-िाजनीतिक परिक्थथति महत्वपूणि है. वहीं र्दवववेदी जी का बल पिंपिा पि अचधक है। र्दवववेदी जी ित्कालीन परिक्थथति को नकाििे नहीं हैं। आगे िलकि क े , दामोदिन औि डॉ. िामववलास र्माि ने पिविी इतिहास में हए र्ोध तनष्कषों क े सहािे भक्ति काल की नए ढंग से व्याख्या की। इस व्याख्या की ववर्ेषिा आचथिक पहलू है। िुकों औि मुगलों क े भािि में आने से इतिहास में कई महत्वपूणि परिवििन हुए। सामाक्जक संििना पि उसका प्रभाव पड़ना थवाभाववक था। र्ुतलजी औि र्दवववेदी जी क े समय िक इस ििह का र्ोध-तनष्कषि सामने नहीं आया था। आगे िलकि डॉ. िामववलास र्माि ने इन तनष्कषों का सहािा लेकि भक्ति आंदोलन की पुनव्यािख्या की।
  • 29. भक्ति आंदोलन को एकांगी दृक्ष्ि से नहीं समझा जा सकिा है। इसका सबसे बड़ा कािण है इस आंदोलन का बहुमुिी प्रभाव । भक्ति आंदोलन का प्रभाव सामाक्जक, िाजनीतिक, धाममिक संदभो पि िो िहा ही साथ ही साथ कला औि संथकृ ति पि भी इसका प्रभाव बहुि ही गहिा पड़ा। इस आंदोलन में अवणि से लेकि सवणि िक, महहला से लेकि पुरुष िक, मर्क्षिि से लेकि अमर्क्षिि िक औि हहंदू से लेकि मुसलमान िक सभी र्ाममल थे। यह आंदोलन अपने थवभाव में जनिांबत्रक था। इसक े साथ ही इस आंदोलन का थवरूप अखिल भाििीय था। भक्ति साहहत्य इसी आंदोलन की देन है। इसमलए भक्ति साहहत्य को पढिे हुए इस आंदोलन की प्रकृ ति औि थवरूप को ध्यान में ििना जरूिी है।