4. रस स्थायी भाव
1. शंगार रहत
2. िास्य िास
3. करुण शोक
4. रौद्र क्रोध
5. वीर उत्साि
6. भयानक भय
7. वीभत्स घृणा
8. अद् भुत हवस्मय
9. शांत हनवेद
10 वात्सल्य वत्सल प्रेम
11. भक्ति भगवद् प्रेम
5. रस क
े अंग-
1. भाव
2. हवभाव
3. अनुभाव
1. भाव-
मन क
े हवकारों या आवेगों को भाव किते िैं। ये िर प्राणी में िोते िैं।
इनक
े दो प्रकार िैं-
क. स्थायी भाव
ख. संचारी भाव
6. क. स्थायी भाव- ये भाव प्रत्येक मनुष्य हृदय में
स्थायी रूप से सोई हुई अवस्था में रिते िैं। अनुक
ू ल
पररक्तस्थयााँ पाकर ये जाग्रत िोते िैं। इनकी संख्या 11
िै।
ये िैं-रहत, िास, शोक, क्रोध, उत्साि, भय, घृणा,
हवस्मय, वैराग्य, वत्सल प्रेम व भगवद् प्रेम।
7. ख. संचारी भाव- संचारी भाव का अथथ िै-आते-
जाते रिने वाले भाव। अथाथत् जो भाव स्थायी
भावों क
े साथ पानी की लिरों की तरि मन में
आते-जाते रिते िैं, उन्हें संचारी भाव किते िैं।
ये क्षहणक िोते िैं। इनकी संख्या 33 िै।
8. 2. हवभाव-
हवभाव का अथथ िै-भावों क
े कारण। अथाथत् वि वस्तु, व्यक्ति अथवा
हवषय हजसे देखकर या हजसक
े बारे में पढ़कर मन में स्थायी भाव
जाग्रत िोते िैं, हवभाव किलाते िैं।
10. आलंबन हवभाव- वे वस्तु अथवा हवषय हजनक
े सिारे या हजन पर हनभथर रिकर स्थायी
भाव जागते िैं, आलंबन हवभाव किलाते िैं।
आलंबन हवभाव क
े दो भेद िैं-
1. आश्रय
2. हवषय
1. आश्रय- हजस व्यक्ति क
े हृदय में स्थायी भाव जागते िैं, उसे आश्रय किते िैं।
उपयुथि उदािरण में नाहयका आश्रय िैं।
11. 2-हवषय-
हजस व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर आश्रय क
े हृदय में स्थायी भाव जाग्रत िोते िैं, उसे
हवषय किते िैं। नीचे क
े उदािरण में नायक हवषय िैं। नायक को देखकर िी नाहयका
क
े हृदय में ’रहत’ स्थायी भाव जाग्रत हुआ।
12. I - उद्दीपन हवभाव-आश्रय क
े मन में भावों को जाग्रत करने वाले हवषय की बािरी चेष्टाएाँ व बािर क
े
वातावरण को उद्दीपन हवभाव किते िैं।
13. 3. अनुभाव- ‘अनु’ अथथ िै-पीछे , और भाव का अथथ िै -हक्रयाएाँ । अथाथत् स्थायी भाव जाग्रत
िोने क
े बाद आश्रय की चेष्टाएाँ अनुभाव किलाती िैं। उदािरण में नाहयका का नायक की
ओर देखना, मुसकराना व बातचीत करने क
े हलए लालाहयत िोना आहद अनुभाव की
श्रेणी में आते िैं।
14. 1.शंगार रस-
पहत-पत्नी या प्रेमी-प्रेहमका क
े परस्पर प्रेम का वणथन पढ़कर या सुनकर
सहृदय क
े मन में ’रहत’ नामक स्थायी भाव जाग्रत िोता िै, विााँ शंगार रस
िोता िै। यि सभी प्रहणयों में पाया जाता िै, इसहलए इसे ’रसराज’ भी किा
जाता िै।
16. शंगार क
े दो भेद िैं-
क.संयोग शंगार ख. हवयोग शंगार
क. संयोग शंगार-जब नायक-नाहयका क
े परस्पर हमलन, दशथन, आहद का
वणथन िोता िै, विााँ संयोग शंगार िोता िै।
उदािरण- कित, नटत, रीझत, क्तखझत, हमलत, क्तखलत, लहजयात।
भरे भौन में करत िैं, नैनन िीं सो बात।।
स्थायी भाव- रहत
आश्रय-नायक
हवषय-नाहयका
उद्दीपन-नाहयका का लजाना, इनकार करना आहद।
अनुभाव-नायक का रीझना आहद।
संचारी भाव-लज्जा, रीझना, मना करना आहद।
17. ख. हवयोग शंगार-
जब नायक-नाहयका का हमलन संभव निीं िोता,वे एक-दू सरे से दू र िोते िैं, तब हवयोग
शंगार रस िोता िै।
स्थायी भाव-रहत , आश्रय-नाहयका, हवषय-नायक
उद्दीपन-नायक का जाना, अक
े लापन, अनुभाव-नाहयका का दुखी िोना।
18. 2. िास्य रस-हकसी व्यक्ति की हवषेष आक
ृ हत-बनावट, वेषभूषा, अनोखी बातें व चेष्टाएाँ
देखकर हृदय में जब ’िास’ नामक स्थायी भाव जाग्रत िोता िै, विााँ िास्य रस िोता िै।
स्थायी भाव-िास
आश्रय-दशथक
हवषय-हवहचत्र ढंग से
चुटकले सुनना ।
उद्दीपन-हवहचत्र ढंग
से प्रस्तुहतआहद
अनुभाव-दशथकों का
िाँस-िाँसकर लोटपोट
िोना।
19. 3.करुण रस-जिााँ अपने हकसी हप्रयजन क
े अहनष्ट की आशंका से ’शोक’ नामक स्थायी
भाव जाग्रत िोता िै, विााँ करुण रस िोता िै।
3.करुण स्थायी भाव-शोक
आश्रय-कटप्पा
हवषय-बाहुबली
उद्दीपन-शोक का वातावरण
अनुभाव-रोना हवलाप करना
आहद।
20. 4.रौद्र रस- जिााँ अपना या समाज का अहित करने वाले या दुश्मन को देखकर हृदय में
’क्रोध’ नामक स्थायी भाव जाग्रत िोता िै, विााँ रौद्र रस िोता िै।
स्थायी भाव-क्रोध
आश्रय-जय
हवषय-दशरथ हसंि
उद्दीपन-अपाहिज लड़की की मृत्यु
का ह़िक्र
अनुभाव-शरीर का कााँपना, क्रोध
करना आहद।
21. 5.वीर रस- जिााँ युद्ध, दया, दान आहद कायों को करते हुए ’उत्साि’ नामक स्थायी भाव
जाग्रत िोता िै, विााँ वीर रस िोता िै।
स्थायी भाव-उत्साि
आश्रय-भगत हसंि
हवषय-अंग्रेज
उद्दीपन-शत्रुओं क
े
अत्याचार
अनुभाव-भगत हसंि का
कथन
22. 6. भयानक रस-जिााँ हकसी भयानक दृश्य को देखकर या उसक
े बारे में
सुनकर या हिंसक जीव को देखकर मन में ’भय’ नामक स्थायी भाव जाग्रत
िोता िै, विााँ भयानक रस िोता िै।
स्थायी भाव-भय
आश्रय-क़समोर
हवषय-भूत
उद्दीपन-संगीत व पररवेश ।
अनुभाव-डरना।
23. 7.वीभत्स रस-जिााँ घृहणत वस्तु या दृष्य को देखकर या उसक
े हवषय में सुनकर हृदय में
’जुगुप्सा’ या ’घृणा’ नामक स्थायी भाव जाग्रत िोता िै, विााँ वीभत्स रस िोता िै।
स्थायी भाव-घृणा
आश्रय-दशथक
हवषय-रि-मांस आहद।
उद्दीपन-उसे काटना, रि का
बिना आहद
अनुभाव-आाँखें बंद करना,
घृणा उत्पन्न िोना।
24. 8. अद् भुत रस-हकसी असाधारण वस्तु या घटना को देखकर, सुनकर मन
हवस्मय से भर जाता िै, विााँ अद् भुत रस िोता िै। इसका स्थायी भाव ’हवस्मय’
िै।
स्थायी भाव-आश्चयथ
आश्रय-दशथक
हवषय- नायक
उद्दीपन- नायक का अद् भुत
पराक्रम
अनुभाव-दशथकों का हदल
थामकर ह़िल्म देखना।
25. 9.शांत रस-संसार की समस्त वस्तुओं को नष्ट िोने वाला जानकर, संसार से
हवरि या दू र िोने का भाव जाग्रत िोता िै, विााँ शांत रस िोता िै। शांत रस
का स्थायी भाव ’हनवेद’ िै।
स्थायी भाव-हनवेद,
आश्रय-सुनने वाले
हवषय- संसार की असारता
उद्दीपन- सांसाररक वस्तुओं
का नष्ट िोना,
अनुभाव-मन में हनराशा व
संसार से मोि खत्म िोना।
26. 10-वात्सल्य रस-हजस कहवता में हशशु क
े हक्रया-कलाप, बोली, चेष्टाएाँ आहद माता-हपता,
अन्य सगे-संबंहधयों व पाठक-श्रोता क
े हृदय में स्नेि का भाव जाग्रत करती िैं, विााँ
वात्सल्य रस िोता िै। इसका स्थायी भाव ‘वत्सल-प्रेम’ िै।
स्थायी भाव-वत्सल भाव,
आश्रय-नाहयका
हवषय- क्तखलौना, बच्चा
उद्दीपन- बच्चे की स्मृहतयााँ
अनुभाव-बच्चे का स्मरण,
उसकी हक्रयाओं का स्मरण
27. 11.भक्ति रस- जिााँ कहवता में भगवद् प्रेम प्रकट हकया गया िो, विााँ भक्ति
रस िोता िै। इसका स्थायी भाव भगवद् ‘प्रेम’ िै।
स्थायी भाव-भगवत् प्रेम
आश्रय-देवी भि
हवषय- देवी मााँ
उद्दीपन- भिों का हवश्वास
अनुभाव-देवी मााँ क
े प्रहत प्रेम
उमड़ना ।