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मेघ आए
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना मूलतः कवर्व एर्वं सावित्यकार थे,पर जब उन्हंने
वदनमान का काययभार संभाला तब समकालीन पत्रकाररता क
े समक्ष
उपस्थथत चुनौवतयहं कह समझा और सामावजक चेतना जगाने में अपना
अनुकरणीय यहगदान वदया। सर्वेश्वर मानते थे वक वजस देश क
े पास
समृद्ध बाल सावित्य निीं िै, उसका भवर्वष्य उज्ज्वल निीं रि सकता ।
सर्वेश्वर की यि अग्रगामी सहच उन्ें एक बाल पवत्रका क
े सम्पादक क
े
नाते प्रवतवित और सम्मावनत करती िै ।
जीर्वन पररचय
जन्म:
15 वसतंबर, 1927 कह बस्ती में वर्वश्वेश्वर दयाल क
े घर।
शिक्षा:
इलािाबाद से उन्हंने बीए और सन 1949 में एमए की परीक्षा
उत्तीणय की।
काययक्षेत्र
1949 में प्रयाग में उन्ें एजी आविस में प्रमुख विस्पैचर क
े पद
पर कायय वमल गया। यिााँ र्वे 1955 तक रिे।
तत्पश्चात आल इंविया रेवियह क
े सिायक संपादक (विंदी समाचार
वर्वभाग) पद पर आपकी वनयुस्ि िह गई। इस पद पर र्वे वदल्ली में
र्वे 1960 तक रिे।
सन 1960 क
े बाद र्वे वदल्ली से लखनऊ रेवियह स्टेशन आ गए।
1964 में लखनऊ रेवियह की नौकरी क
े बाद र्वे क
ु छ समय
भहपाल एर्वं इंदौर रेवियह में भी काययरत रिे।
सन 1964 में जब वदनमान पवत्रका का प्रकाशन आरंभ हुआ तह
र्वररि पत्रकार एर्वं सावित्यकार सस्िदानन्द िीरानन्द र्वात्स्यायन
'अज्ञेय' क
े आग्रि पर र्वे पद से त्यागपत्र देकर वदल्ली आ गए और
वदनमान से जुड़ गए। 1982 में प्रमुख बाल पवत्रका पराग क
े
सम्पादक बने। नर्वंबर 1982 में पराग का संपादन संभालने क
े
बाद र्वे मृत्युपययन्त उससे जुड़े रिे।
शनधन 23 वसतंबर 1983 कह नई वदल्ली में उनका वनधन िह
गया।
सर्वेश्वर का रचना संसार
काव्य –
1. तीसरा सप्तक – सं. अज्ञेय, 1959
2. काठ की घंवियां – 1959
3. बांस का पुल – 1963
4. एक सूनी नार्व – 1966
5. गमय िर्वाएं – 1966
6. क
ु आनह नदी – 1973
7. जंगल का ददय – 1976
8. खूंवियहं पर िंगे लहग – 1982
9. क्या कि कर पुकार
ं – प्रेम कवर्वताएं
10. कवर्वताएं (1)
11. कवर्वताएं (2)
12. कहई मेरे साथ चले
कथा-साशित्य
1. पागल क
ु त्तहं का मसीिा (लघु उपन्यास) – 1977
2. सहया हुआ जल (लघु उपन्यास) – 1977
3. उड़े हुए रंग – (उपन्यास) यि उपन्यास सूने चौखिे नाम से 1974 में प्रकावशत हुआ था
।
4. किी सड़क – 1978
5. अंधेरे पर अंधेरा – 1980
6. अनेक किावनयहं का भारतीय तथा यूरहपीय भाषाओं में अनुर्वाद
सहवर्वयत कथा संग्रि 1978 में सात मित्वपूणय किावनयहं का रसी अनुर्वाद ।
नाटक
1. बकरी – 1974 (इसका लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुर्वाद तथा मंचन)
2. लड़ाई – 1979
3. अब गरीबी ििाओ – 1981
4. कल भात आएगा तथा िर्वालात –
(एकांकी नािक एम.क
े .रैना क
े वनदेशन में प्रयहग द्वारा 1979 में मंवचत
5. रपमती बाज बिादुर तथा िहरी धूम मचहरी मंचन 1976
यात्रा संस्मरण
1. क
ु छ रंग क
ु छ गंध – 19791
बाल कशर्वता
1. बतूता का जूता – 1971
2. मिंगू की िाई – 1974
बाल नाटक 1. भहं-भहं खहं-खहं – 1975 2. लाख की नाक – 1979
संपादन
1. शमशेर (मलयज क
े साथ – 1971)
2. रपांबरा – (सं. अज्ञेय जी – 1980 में सिायक संपादक
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
3. अंधेरहं का विसाब – 1981
4. नेपाली कवर्वताएं – 1982
5. रिबीज – 1977
पाठ-प्रर्वेश
संकवलत कवर्वता में मेघहं क
े आने की
तुलना सजकर आए प्रर्वासी अवतवथ
(दामाद) से की िै। ग्रामीण संस्क
ृ वत में
दामाद क
े आने पर उल्लास का जह
र्वातार्वरण बनता िै , मेघहं क
े आने का
र्वणयन करते हुए कवर्व ने उसी उल्लास
कह वदखाया िै।
मेघ आए
बड़े बन ठन क
े साँर्वर क
े ।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरर्वाजे स्खड़वकयााँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क
े
मेघ आए
बिे बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए,
आाँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी घूाँघि सरक
े
मेघ आए
बड़े बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
मेघ आए
बूढे पीपल ने आगे बढ़ जुिार की,
बरस बाद सुवध लीन्ीं
बहली अक
ु लाई लता ओि िह वकर्वार की,
िरसाया ताल, लाया पानी परात भर क
े
मेघ आए
बिे बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
वक्षवतज-अिारी गिराई दावमनी दमकी,
'क्षमा करह गााँठ खुल गई अब भरम की',
बााँधा िू िा झर-झर वमलन क
े अश्रु ढरक
े
मेघ आए
बड़े बन-ठन क
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मेघ आए बड़े बन-ठन क
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पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क
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आगे –आगे नाचती-
गाती बयार चली ,
दरर्वाजे-स्खड़वकयााँ
खुलने लगीं गली-गली
मेघ आए
बड़े बन ठन क
े साँर्वर क
े ।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरर्वाजे स्खड़वकयााँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क
े
मेघ आए
बिे बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
कवर्व ने मेघहं की तुलना सजकर आए अवतवथ (दामाद) से
करते हुए किा िै वक मेघ शिर से आए अवतवथ की भााँवत
सज-धज कर आए िैं। वजस तरि मेिमान क
े आने पर गााँर्व
क
े लड़क
े -लड़वकयााँ भाग कर सबकह इसकी सूचना देते िैं,
उसी तरि मेघ क
े आने की सूचना देने क
े वलए िर्वा तेज
गवत से बिने लगी िै। मेिमान कह देखने क
े वलए वजस तरि
लहग स्खड़की-दरर्वाजहं से झााँकते िैं, उसी तरि मेघहं क
े
दशयन क
े वलए भी लहग उत्सुकतापूर्वयक स्खड़की-दरर्वाजहं से
बािर आकाश की तरफ़ देखने लगे िैं। इस तरि छहिे-बड़े,
काले-भूरे-सि
े द रंग क
े मेघ अपने दल-बल क
े साथ
आकाश में ऐसे छा गए िैं मानह कहई शिरी मेिमान सज-
धज कर गााँर्व में आया िह।
पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए
आाँधी चली
धूल भागी घाघरा उठाए
बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी, घूाँघि सरक
े ।
पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए,
आाँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी, घूाँघि सरक
े ।
मेघ आए बड़े बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
कवर्व किता िै वक मेिमान क
े आने पर गााँर्व क
े लहग
गरदन उठा-उठा कर देखने लगे। छहिे बिे खुशी से
घर-घर खबर पहुाँचाने क
े वलए दौड़ पड़े। गााँर्व की
युर्ववतयााँ तथा नई नर्वेली दुल्हनें आते-जाते रुक-रुक
कर घूाँघि सरकाकर मेिमान कह देखने की कहवशश
करने लगीं।
इसकी तुलना बादलहं से करता हुआ कवर्व किता िै वक
बादलहं क
े आने पर धूल भरी आाँवधयााँ चलने लगीं वजससे
पेड़हं की िावलयााँ झुकने लगीं। सूखी हुई नवदयााँ
उत्सुकतापूर्वयक आकाश की ओर देखने लगीं और र्वषाय
िहने की संभार्वनाओं से प्रसन्न वदखाई देने लगीं।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुिार की
‘ बरस बाद सुवध लीन्ीं ’ –
बहली अक
ु लाई लता ओि िह वकर्वार की,
िरसाया ताल लाया पानी परात भर क
े ।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुिार की,
‘ बरस बाद सुवध लीन्ीं ’ –
बहली अक
ु लाई लता ओि िह वकर्वार की,
िरसाया ताल लाया पानी परात भर क
े ।
मेघ आए बड़े बन-ठन क
े साँर्वर क
े ।
कवर्व किता िै वक बहुत वदनहं क
े बाद मेिमान (दामाद) क
े आने
पर गााँर्व का र्वॄद्ध तथा मुस्खया उसक
े सम्मान क
े वलए आगे आया
और िाथ जहड़कर उसने अवतवथ का आदर-सत्कार वकया।
मेिमान क
े घर पहुाँचने पर बरसहं से उसकी राि तक रिी पत्नी
अपनी व्याक
ु लता न वछपा सकी और वकर्वाड़ की ओि में रिकर
उसने पूछ िी वलया वक आपकह बरसहं बाद िमारी याद आई। घर
का एक सदस्य अपनी प्रसन्नता जाविर करते हुए आवतथ्य सत्कार
करने क
े उद्देश्य से पानी का एक लहिा उसक
े सामने रख देता
िै।
दू सरे अथय में कवर्व किता िै वक
आकाश में बादलहं क
े छा जाने पर आाँधी चली वजससे बूढ़े पीपेल
क
े पेड़ की िावलयााँ झुकने लगीं और उससे वलपिी लता में भी
िरकत िहने लगी। सूखे हुए तालाब में बचा-खुचा पानी था,
बादलहं कह देखकर र्वषाय िहने की आशा में उसमें भी िलचल िहने
लगी।
वक्षवतज अिारी गिराई दावमनी दमकी , ‘ क्षमा करह गााँठ खुल गई अब भरम की ’
बााँध िू िा झर-झर
वमलन क
े अश्रु ढरक
े
कवर्व किता िै वक मेिमान (दामाद) क
े आने पर उसकी
पत्नी क
े चेिरे पर छाई उदासी दू र िह गई और उसका
चेिरा चमक उठा। अब उसक
े गााँर्व र्वापस न आने की
शंका दू र िह गई िै। पत्नी ने ऐसे वर्वचार मन में रखने क
े
कारण क्षमा याचना की। अब सब्र का बााँध िू ि गया और
दहनहं का वमलन िह गया। खुशी क
े कारण दहनहं की
आाँखहं से झर-झर आाँसू बिने लगे।
वक्षवतज पर बादल गिराने लगे और वबजली
चमकने लगी। अब र्वषाय न िहने का भ्रम दू र िह गया।
बादलहं क
े आपस में िकराने से र्वषाय शुरु िह गई।
मूसलाधार बाररश ने सबक
े मन कह शांत और तृप्त कर
वदया।
गृि कायय
• क
े दारनाथ वसंि की ‘ बादल ओ ’ सुवमत्रानंदन
पंत की ‘ बादल ’ और वनराला की ‘ बादल राग ’
कवर्वताओं कह पवढ़ए।
• र्वषाय क
े आने पर अपने आसपास क
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देखकर एक अनुच्छे द वलस्खए।
प्रस्तुवत
सीमांचल गौड़
स्नात्तकहत्तर वशक्षक
बाघमारा, साउथ गारह विल्स, मेघालय
धन्यर्वाद !
ि
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लहं
से
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या
ल
कह
न
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सा
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शु
भ
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  • 4. जीर्वन पररचय जन्म: 15 वसतंबर, 1927 कह बस्ती में वर्वश्वेश्वर दयाल क े घर। शिक्षा: इलािाबाद से उन्हंने बीए और सन 1949 में एमए की परीक्षा उत्तीणय की। काययक्षेत्र 1949 में प्रयाग में उन्ें एजी आविस में प्रमुख विस्पैचर क े पद पर कायय वमल गया। यिााँ र्वे 1955 तक रिे। तत्पश्चात आल इंविया रेवियह क े सिायक संपादक (विंदी समाचार वर्वभाग) पद पर आपकी वनयुस्ि िह गई। इस पद पर र्वे वदल्ली में र्वे 1960 तक रिे।
  • 5. सन 1960 क े बाद र्वे वदल्ली से लखनऊ रेवियह स्टेशन आ गए। 1964 में लखनऊ रेवियह की नौकरी क े बाद र्वे क ु छ समय भहपाल एर्वं इंदौर रेवियह में भी काययरत रिे। सन 1964 में जब वदनमान पवत्रका का प्रकाशन आरंभ हुआ तह र्वररि पत्रकार एर्वं सावित्यकार सस्िदानन्द िीरानन्द र्वात्स्यायन 'अज्ञेय' क े आग्रि पर र्वे पद से त्यागपत्र देकर वदल्ली आ गए और वदनमान से जुड़ गए। 1982 में प्रमुख बाल पवत्रका पराग क े सम्पादक बने। नर्वंबर 1982 में पराग का संपादन संभालने क े बाद र्वे मृत्युपययन्त उससे जुड़े रिे। शनधन 23 वसतंबर 1983 कह नई वदल्ली में उनका वनधन िह गया।
  • 6. सर्वेश्वर का रचना संसार काव्य – 1. तीसरा सप्तक – सं. अज्ञेय, 1959 2. काठ की घंवियां – 1959 3. बांस का पुल – 1963 4. एक सूनी नार्व – 1966 5. गमय िर्वाएं – 1966 6. क ु आनह नदी – 1973 7. जंगल का ददय – 1976 8. खूंवियहं पर िंगे लहग – 1982 9. क्या कि कर पुकार ं – प्रेम कवर्वताएं 10. कवर्वताएं (1) 11. कवर्वताएं (2) 12. कहई मेरे साथ चले
  • 7. कथा-साशित्य 1. पागल क ु त्तहं का मसीिा (लघु उपन्यास) – 1977 2. सहया हुआ जल (लघु उपन्यास) – 1977 3. उड़े हुए रंग – (उपन्यास) यि उपन्यास सूने चौखिे नाम से 1974 में प्रकावशत हुआ था । 4. किी सड़क – 1978 5. अंधेरे पर अंधेरा – 1980 6. अनेक किावनयहं का भारतीय तथा यूरहपीय भाषाओं में अनुर्वाद सहवर्वयत कथा संग्रि 1978 में सात मित्वपूणय किावनयहं का रसी अनुर्वाद । नाटक 1. बकरी – 1974 (इसका लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुर्वाद तथा मंचन) 2. लड़ाई – 1979 3. अब गरीबी ििाओ – 1981 4. कल भात आएगा तथा िर्वालात – (एकांकी नािक एम.क े .रैना क े वनदेशन में प्रयहग द्वारा 1979 में मंवचत 5. रपमती बाज बिादुर तथा िहरी धूम मचहरी मंचन 1976
  • 8. यात्रा संस्मरण 1. क ु छ रंग क ु छ गंध – 19791 बाल कशर्वता 1. बतूता का जूता – 1971 2. मिंगू की िाई – 1974 बाल नाटक 1. भहं-भहं खहं-खहं – 1975 2. लाख की नाक – 1979 संपादन 1. शमशेर (मलयज क े साथ – 1971) 2. रपांबरा – (सं. अज्ञेय जी – 1980 में सिायक संपादक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना) 3. अंधेरहं का विसाब – 1981 4. नेपाली कवर्वताएं – 1982 5. रिबीज – 1977
  • 9. पाठ-प्रर्वेश संकवलत कवर्वता में मेघहं क े आने की तुलना सजकर आए प्रर्वासी अवतवथ (दामाद) से की िै। ग्रामीण संस्क ृ वत में दामाद क े आने पर उल्लास का जह र्वातार्वरण बनता िै , मेघहं क े आने का र्वणयन करते हुए कवर्व ने उसी उल्लास कह वदखाया िै।
  • 10. मेघ आए बड़े बन ठन क े साँर्वर क े । आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरर्वाजे स्खड़वकयााँ खुलने लगीं गली-गली, पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क े मेघ आए बिे बन-ठन क े साँर्वर क े । पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए, आाँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी घूाँघि सरक े मेघ आए बड़े बन-ठन क े साँर्वर क े । मेघ आए
  • 11. बूढे पीपल ने आगे बढ़ जुिार की, बरस बाद सुवध लीन्ीं बहली अक ु लाई लता ओि िह वकर्वार की, िरसाया ताल, लाया पानी परात भर क े मेघ आए बिे बन-ठन क े साँर्वर क े । वक्षवतज-अिारी गिराई दावमनी दमकी, 'क्षमा करह गााँठ खुल गई अब भरम की', बााँधा िू िा झर-झर वमलन क े अश्रु ढरक े मेघ आए बड़े बन-ठन क े साँर्वर क े ।
  • 12. मेघ आए बड़े बन-ठन क े साँर्वर क े । पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क े ।
  • 13. आगे –आगे नाचती- गाती बयार चली , दरर्वाजे-स्खड़वकयााँ खुलने लगीं गली-गली
  • 14. मेघ आए बड़े बन ठन क े साँर्वर क े । आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरर्वाजे स्खड़वकयााँ खुलने लगीं गली-गली, पाहुन ज्हं आए िहं गााँर्व में शिर क े मेघ आए बिे बन-ठन क े साँर्वर क े ।
  • 15. कवर्व ने मेघहं की तुलना सजकर आए अवतवथ (दामाद) से करते हुए किा िै वक मेघ शिर से आए अवतवथ की भााँवत सज-धज कर आए िैं। वजस तरि मेिमान क े आने पर गााँर्व क े लड़क े -लड़वकयााँ भाग कर सबकह इसकी सूचना देते िैं, उसी तरि मेघ क े आने की सूचना देने क े वलए िर्वा तेज गवत से बिने लगी िै। मेिमान कह देखने क े वलए वजस तरि लहग स्खड़की-दरर्वाजहं से झााँकते िैं, उसी तरि मेघहं क े दशयन क े वलए भी लहग उत्सुकतापूर्वयक स्खड़की-दरर्वाजहं से बािर आकाश की तरफ़ देखने लगे िैं। इस तरि छहिे-बड़े, काले-भूरे-सि े द रंग क े मेघ अपने दल-बल क े साथ आकाश में ऐसे छा गए िैं मानह कहई शिरी मेिमान सज- धज कर गााँर्व में आया िह।
  • 16. पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए
  • 17. आाँधी चली धूल भागी घाघरा उठाए
  • 18. बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी, घूाँघि सरक े ।
  • 19. पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाए, आाँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बााँकी वचतर्वन उठा, नदी वठठकी, घूाँघि सरक े । मेघ आए बड़े बन-ठन क े साँर्वर क े ।
  • 20. कवर्व किता िै वक मेिमान क े आने पर गााँर्व क े लहग गरदन उठा-उठा कर देखने लगे। छहिे बिे खुशी से घर-घर खबर पहुाँचाने क े वलए दौड़ पड़े। गााँर्व की युर्ववतयााँ तथा नई नर्वेली दुल्हनें आते-जाते रुक-रुक कर घूाँघि सरकाकर मेिमान कह देखने की कहवशश करने लगीं। इसकी तुलना बादलहं से करता हुआ कवर्व किता िै वक बादलहं क े आने पर धूल भरी आाँवधयााँ चलने लगीं वजससे पेड़हं की िावलयााँ झुकने लगीं। सूखी हुई नवदयााँ उत्सुकतापूर्वयक आकाश की ओर देखने लगीं और र्वषाय िहने की संभार्वनाओं से प्रसन्न वदखाई देने लगीं।
  • 21. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुिार की
  • 22. ‘ बरस बाद सुवध लीन्ीं ’ – बहली अक ु लाई लता ओि िह वकर्वार की, िरसाया ताल लाया पानी परात भर क े ।
  • 23. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुिार की, ‘ बरस बाद सुवध लीन्ीं ’ – बहली अक ु लाई लता ओि िह वकर्वार की, िरसाया ताल लाया पानी परात भर क े । मेघ आए बड़े बन-ठन क े साँर्वर क े ।
  • 24. कवर्व किता िै वक बहुत वदनहं क े बाद मेिमान (दामाद) क े आने पर गााँर्व का र्वॄद्ध तथा मुस्खया उसक े सम्मान क े वलए आगे आया और िाथ जहड़कर उसने अवतवथ का आदर-सत्कार वकया। मेिमान क े घर पहुाँचने पर बरसहं से उसकी राि तक रिी पत्नी अपनी व्याक ु लता न वछपा सकी और वकर्वाड़ की ओि में रिकर उसने पूछ िी वलया वक आपकह बरसहं बाद िमारी याद आई। घर का एक सदस्य अपनी प्रसन्नता जाविर करते हुए आवतथ्य सत्कार करने क े उद्देश्य से पानी का एक लहिा उसक े सामने रख देता िै। दू सरे अथय में कवर्व किता िै वक आकाश में बादलहं क े छा जाने पर आाँधी चली वजससे बूढ़े पीपेल क े पेड़ की िावलयााँ झुकने लगीं और उससे वलपिी लता में भी िरकत िहने लगी। सूखे हुए तालाब में बचा-खुचा पानी था, बादलहं कह देखकर र्वषाय िहने की आशा में उसमें भी िलचल िहने लगी।
  • 25. वक्षवतज अिारी गिराई दावमनी दमकी , ‘ क्षमा करह गााँठ खुल गई अब भरम की ’
  • 26. बााँध िू िा झर-झर वमलन क े अश्रु ढरक े
  • 27. कवर्व किता िै वक मेिमान (दामाद) क े आने पर उसकी पत्नी क े चेिरे पर छाई उदासी दू र िह गई और उसका चेिरा चमक उठा। अब उसक े गााँर्व र्वापस न आने की शंका दू र िह गई िै। पत्नी ने ऐसे वर्वचार मन में रखने क े कारण क्षमा याचना की। अब सब्र का बााँध िू ि गया और दहनहं का वमलन िह गया। खुशी क े कारण दहनहं की आाँखहं से झर-झर आाँसू बिने लगे। वक्षवतज पर बादल गिराने लगे और वबजली चमकने लगी। अब र्वषाय न िहने का भ्रम दू र िह गया। बादलहं क े आपस में िकराने से र्वषाय शुरु िह गई। मूसलाधार बाररश ने सबक े मन कह शांत और तृप्त कर वदया।
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  • 29. गृि कायय • क े दारनाथ वसंि की ‘ बादल ओ ’ सुवमत्रानंदन पंत की ‘ बादल ’ और वनराला की ‘ बादल राग ’ कवर्वताओं कह पवढ़ए। • र्वषाय क े आने पर अपने आसपास क े र्वातार्वरण में हुए पररर्वतयनहं कह ध्यान से देखकर एक अनुच्छे द वलस्खए।
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