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शिक्षण विधियाँ(Teaching Methods in
Hindi)
शिक्षण विधि का उद्देश्य,शिक्षण विधियों क
े प्रयोग का महत्व एवं उपयोगिता,शिक्षण
विधि की विशेषताएं,अनुसंधान विधि। समस्या समाधान विधि। प्रोजेक्ट विधि।
आगमन विधि। निगमन विधि। विश्लेषण विधि। संश्लेषण विधि।
शिक्षण विधियाँ
शिक्षण विधि या पद्धति शब्द कक्षा निर्देश क
े लिए उपयोग
किए जाने वाले सामान्य सिद्धांतों, शिक्षाशास्त्र और प्रबंधन
रणनीतियों को संदर्भित करता है।आपकी शिक्षण पद्धति का
चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आपक
े लिए क्या
उपयुक्त है - आपका शैक्षिक दर्शन, कक्षा जनसांख्यिकीय,
विषय क्षेत्र (क्षेत्र) और स्क
ू ल मिशन विवरण।
शिक्षण सिद्धांतों को दो प्रमुख मापदंडों क
े आधार
पर चार श्रेणियों में व्यवस्थित किया जा सकता है:
एक शिक्षक-क
ें द्रित दृष्टिकोण व एक छात्र-क
ें द्रित
दृष्टिकोण, और उच्च तकनीक सामग्री का उपयोग
व कम-तकनीकी सामग्री का उपयोग।
शिक्षण विधियाँ
शिक्षण विधि का उद्देश्य(Objective of Teaching Method)
शिक्षण विधियाँ व्यापक तकनीक
ें हैं
जिनका उपयोग छात्रों को सीखने क
े परिणाम प्राप्त करने में मदद करने क
े लिए किया
जाता है, जबकि गतिविधियाँ इन विधियों को लागू करने क
े विभिन्न तरीक
े हैं। शिक्षण
विधियाँ छात्रों की मदद करती हैं: पाठ्यक्रम की सामग्री में महारत हासिल करना।
विशेष संदर्भों में सामग्री को लागू करना।
शिक्षण विधियों क
े प्रयोग का महत्व एवं उपयोगिता(Importance and
Usefulness of Using Teaching Methods)
वे छात्रों क
े दिमाग को सीखने क
े लिए प्रेरित करते हैं। बच्चों में रुचियाँ।
शिक्षण की तकनीकों क
े उचित उपयोग से बच्चों को सिखाई गई विषय वस्तु अधिक अच्छी तरह से
याद रहती है।
शिक्षण की विभिन्न तकनीक
ें शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षण क
े सामान्य सिद्धांतों और सिद्धांतों का
पालन करने क
े अलावा विभिन्न उपकरणों, तकनीकों, रणनीतियों या युक्तियों का उपयोग शामिल
होता है। इन तकनीकों का उपयोग मूलतः मौखिक शिक्षण क
े लिए किया जाता है। वे इस प्रकार हैं।
कथन: कथन ज्ञान संप्रेषित करने की महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक है। वर्णन का उद्देश्य बच्चों क
े
सामने सीखने की घटनाओं का स्पष्ट, जीवंत, रोचक और व्यवस्थित क्रम प्रस्तुत करना है। वर्णन
करना शिक्षकों क
े लिए अपने शिक्षण को और अधिक रोचक बनाने क
े लिए घटनाओं का विवरण
देकर अपने पाठ को कहानी क
े रूप में प्रस्तुत करने की एक कला है। एक अच्छा वर्णनकर्ता बनने क
े
लिए, शिक्षक को कक्षा में उचित भाषा और भाषण का उपयोग करने का कौशल आना चाहिए।
विवरण: विवरण वर्णन की तरह है। विवरण को "किसी चीज़ को शब्दों, गुणों की मात्रा या
किसी चीज़ की उपस्थिति द्वारा दर्शाने की क्रिया" क
े रूप में परिभाषित किया गया है।
शिक्षण विधि की विशेषताएं(Characteristics of Teaching Methods)
1. सक्रिय सीखने की तकनीक
ें ।
सीखने का बढ़िया माहौल ।
2. स्पष्ट संचार।
3. शिक्षक और छात्र क
े बीच।
4. अच्छे संबंध।
5. महत्वपूर्ण सोच।
6. समस्या को सुलझाना।
परंपरागत एवं आधुनिक शिक्षण विधियां
पारंपरिक शिक्षण विधियां क
े अंतर्गत परंपरा क
े
बारे में जानकारी दी जाती है एवं संस्कृ ति और
संस्कृ त क
े बारे में एवं संस्कृ ति क
े विविधता क
े
बारे में जानकारी दी जाती है । आधुनिक शिक्षण
विधि में कौशल एवं विद्यार्थी क
े भाभी जीवन की
शिक्षा दी जाती है शिक्षण कार्य क
े संपादन क
े लिए
निम्नलिखित
शिक्षण विधियां का उपयोग किया जाता है जो
निम्न प्रकार है:-
1. अनुसंधान विधि। क
े प्रतिपादक क
े आर्मस्ट्रांग है।
2. समस्या समाधान विधि। क
े प्रतिपादक सुकरात सेंट थॉमस है।
3. प्रोजेक्ट विधि। क
े प्रतिपादक विलियम किल पैट्रिक है।
4. आगमन विधि। क
े प्रतिपादक बेकन है।
5. निगमन विधि। क
े प्रतिपादक अरस्तु हैं।
6. विश्लेषण विधि। क
े प्रतिपादक जॉन ऑस्टिन है।
7. संश्लेषण विधि।क
े प्रतिपादक जॉन ऑस्टिन।
1. अनुसंधान विधि(Research Method in Hindi)
प्रतिपादन:- प्रोफ
े सर एडवर्ड आर्मस्ट्रांग
Hurestic method शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा क
े Hurescie शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ है मैं
खोजता हूं अर्थात I find me इस विधि क
े जन्मदाता एचडी आर्मस्ट्रांग है।
आर्मस्ट्रांग प्रयोगशाला क
े विशिष्ट प्रशिक्षण अनुसंधान आत्मक प्रशिक्षण क
े मुख्य संपर्क थे।
इस विधि में विद्यार्थी स्वयं अन्वेषक या खोजकर्ता क
े रूप में कार्य करते हैं। व समस्याओं का समाधान
करते हैं। इस विधि द्वारा विद्यार्थी में वैज्ञानिक व गणितीय दृष्टिकोण का विकास होता है।
हर्बर्ट स्पेंसर ने इस विधि क
े लिए लिखा है कि बालकों को कम से कम बताया जाए तथा जितना अधिक
संभव हो उनको खोजने क
े लिए प्रोत्साहित किया जाए।
अनुसंधान विधि की परिभाषाएं(Definitions of Research Method)
अनुसंधान शिक्षण विधि की परिभाषा अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी है जो निम्न
है:-
प्रोफ
े सर आर्मस्ट्रांग क
े अनुसार
यह शिक्षक की वह विधि है जिसक
े द्वारा बालक किया विद्यार्थी को एक अच्छे अनुसंधानकर्ता क
े रूप में
देखा जा सकता है।
Vektave वे क
े अनुसार
अनुसंधान विधि कार्य विधि मैं प्रशिक्षण प्रदान करती है। इसमें ज्ञान को दूसरे स्थान पर रखा जाता है।
इस प्रकार इस विधि का मुख्य उद्देश्य एक अनुसंधान करता या फौजी बनना है। इसमें तथ्यों सिद्धांतों
आदि की शिक्षा की अपेक्षा ज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार की जा सकती है इस प्रबल दिया जाता है।
उदाहरण क
े लिए एक नगर की जनसंख्या 50000 है यदि जनसंख्या की वृद्धि 4% वार्षिक हो तो 2 वर्ष
बाद उसे नगर की जनसंख्या ज्ञात करो?
Ans. शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्न विद्यार्थी द्वारा संभावित उत्तर
Teacher
दिए गए प्रश्न में हमें क्या ज्ञात करना है।
Student
2 वर्ष बड़नगर की जनसंख्या
Teacher
इसको हम किस प्रकार ज्ञात कर सकते हैं
Student
पहले 1 वर्ष की जनसंख्या ज्ञात करेंगे।
Teacher
प्रतिवर्ष जनसंख्या में कितनी वर्दी हो रही है?
स्टूडेंट
4% की वृद्धि वार्षिक
Teacher
इस प्रकार प्रथम प्रथम वर्ष क
े अंत में जनसंख्या कितनी होगी?
Student
50000 × 4 / 100 =2000
Teacher
इस प्रकार प्रथम वर्ष क
े अंत में जनसंख्या कितनी होगी
Student
50000 + 2000 = 52000
Teacher
द्वितीय वर्ष क
े लिए जनसंख्या किस प्रकार निकाली जाएगी?
स्टूडेंट
द्वितीय वर्ष की जनसंख्या का 4%
52000 × 4 / 100 = 2080
Teacher
यह वृद्धि क
ै से ज्ञात करेंगे
द्वितीय वर्ष की जनसंख्या का 4%
52000 × 4 / 100 = 2080
Teacher
इस प्रकार 2 वर्ष पश्चात नगर की जनसंख्या कितनी होगी?
Student
इस प्रकार विद्यार्थी स्पष्ट करेंगे की 2 वर्ष बाद नगर की जनसंख्या 2080 होगी।
इस प्रकार दी गई दी गई समस्याओं का हाल अनुसंधान विधि से कर सकते हैं इसी प्रकार अन्य
समस्याओं का हल्बी कर सकते हैं। इस विधि से कम आने वाली पुस्तक भी अनुसंधान ढंग से लिखी होनी
चाहिए जिससे कार्य करते समय विद्यार्थियों को सुगमता रहे।
अनुसंधान विधि क
े गुण(Merits of research method)
● यह एक मैं मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता
एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
● इस विधि में विद्यार्थियों को गृह कार्य देने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि विद्यार्थी स्वयं
कार्य करक
े समस्याओं का हाल करता है।
● क्रियाशीलता क
े सिद्धांत पर आधारित है। इस विधि में विद्यार्थी सक्रिय होकर शिक्षक द्वारा दी
गई सूचनाओं एवं ज्ञान ग्रहण करते हैं।
● इस विधि में विद्यार्थी क्रियाशील रहता है।
● उच्च स्तरीय अनुसंधान में सहायक है।
● इस विधि में विद्यार्थी तथ्यों एवं सिद्धांतों को तर्क क
े बाद ही स्वीकार करते हैं।
● यह आदत उनको उच्च स्तरीय अनुसंधान में उपयोगी तथा सहायक सिद्ध होती है।
अनुसंधान विधि क
े दोष
1. प्रारंभिक स्तर क
े विद्यार्थियों द्वारा नए ज्ञान की खोज करना संभव नहीं है इसलिए यह विधि
छोटी कक्षाओं क
े लिए उपयुक्त नहीं है।
2. एक विशेष कक्ष में सभी विद्यार्थी सामान क्षमता तथा समाज योग्यता क
े नहीं होते हैं। अतः इस
विधि का प्रयोग वर्तमान परिस्थितियों में संभव नहीं है।
3. यह अधिक खर्चीली विधि है गणित क
े संपूर्ण पाठ्यक्रम को इसक
े द्वारा नहीं पढ़ाया जा सकता।
4.
5. इस विधि द्वारा अध्यापन करने क
े लिए कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या कम होनी चाहिए।
6.
7. इस विधि क
े लिए समस्याओं का निर्धारण करना कठिन कार्य है इसक
े लिए प्राप्त प्रशिक्षण तथा
कौशल की आवश्यकता होती है।
8. विधि पर आधारित पाठ्य पुस्तक का अभाव है।
समस्या समाधान विधि(problem solving method)
समस्या समाधान विधि क
े अंतर्गत व्यक्ति समस्या क
े समाधान क
े लिए नियोजित तरीक
े से समस्या पर
निष्कर्ष प्राप्त करने क
े उद्देश्य से प्रहार करता है। समस्या समाधान तथा प्रयोजन विधि में पर्याप्त
समानता है। दोनों में अंतर क
े वल इतना है की समस्या समाधान में मानसिक चिंतन एवं मानसिक
निष्कर्ष पर बोल दिया जाता है जबकि प्रयोजन विधि में क
े वल प्रायोगिक कार्य को महत्व दिया जाता है।
समस्या समाधान में शिक्षक क
े अंतर्गत शैक्षणिक क
े दृष्टि से उपयोगी समस्याओं का ही चुनाव किया
जाता है तथा विद्यार्थियों तथा शिक्षक मिलकर वैज्ञानिक तरीक
े से समस्या का समाधान करने में प्रयास
करते हैं।
समस्या समाधान विधि का उद्देश्य
समस्या समाधान विधि द्वारा शिक्षक करने का यह उद्देश्य होता है कि विद्यार्थियों में समस्या
समाधान की योग्यता का विकास हो जिससे सभी भावी जीवन में विद्यार्थियों को आने वाली समस्याओं
से विद्यार्थी भयभीत होकर पलायन न करें। समस्याओं का वैज्ञानिक तरीक
े से समाधान ने निकाले
अपितु समस्याओं का नियोजित तरीक
े से तथा वैज्ञानिक विधि से समाधान ढूंढे। यह विधि इस
मनोवैज्ञानिक मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में समस्याओं क
े अपने तरीक
े से समाधान की
योग्यता तर्क देने की योग्यता होती है। आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति में समस्या का वैज्ञानिक
दृष्टिकोण से हाल खोजने की क्षमता का विकास किया जाए।
समस्या समाधान विधि की विशेषता
अतः समस्या समाधान विधि की मुख्य विशेषता मानसिक क्रियाएं एवं चिंतन है।
समस्या समाधान विधि की परिभाषा
समस्या समाधान विधि की परिभाषा विभिन्न वैज्ञानिकों क
े अनुसार
गेने क
े अनुसार
घटनाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें मानव किसी विशिष्ट उद्देश्य की उपलब्धि क
े लिए अधिनियमों
अथवा सिद्धांतों का उपयोग करता है।
C. V Good क
े अनुसार
समस्या समाधान विधि में विद्यार्थी चुनौती पूर्ण स्थितियों क
े निर्माण द्वारा सीखने की ओर प्रेरित होता
है यह एक ऐसी विधि है जिसमें लघु किं तु संबंधित समस्याओं क
े सामूहिक समाधान क
े माध्यम से एक
बड़ी संख्या का समाधान किया जा सकता है।
जॉनसन क
े अनुसार
समस्या समाधान विधि मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की सर्वोत्तम विधि है जिसक
े द्वारा मस्तिष्क क
े
समक्ष वास्तविक समस्याएं उत्पन्न की जाती है और उसका समाधान निकालने क
े लिए अवसर तथा
स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।
स्किनर क
े अनुसार
समस्या समाधान विधि एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें संरचनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।
गेट्स क
े अनुसार
समस्या समाधान विधि शिक्षक का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।
समस्या समाधान विधि क
े सोपान या पद या स्टेप्स :-
समस्या समाधान विधि में 6 या 7 सोपान या चरण या पद होते हैं।
क
ु छ शिक्षाविद समस्या समाधान विधि क
े 6 पद मानते हैं जो निम्न प्रकार है
1. समस्या का चयन।
2. समस्या का प्रस्तुतीकरण।
3. उपकल्पनाओं या परिकल्पनाओं का निर्माण या संभावित या अनुमानित उत्तर।
4. पर्दत्त संग्रह।
5. प्रदत विश्लेषण।
6. निष्कर्ष।
समस्या का चयन
समस्या का चयन करते समय अध्यापक को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की समस्या ऐसी हो
जिसका की समाधान करने की आवश्यकता शिक्षार्थी महसूस कर सक
ें समस्या का चयन शिक्षक तथा
शिक्षार्थी दोनों को मिलकर करना चाहिए।
यहां जहां तक हो सक
े शिक्षार्थियों द्वारा सुनाई गई विभिन्न समस्याओं में से ही किसी समस्या को
शिक्षक को लेना चाहिए समस्या क
े निर्धारण में यह भी ध्यान रखना चाहिए की समस्या अधिक व्यापक
ना हो।
2. समस्या का प्रस्तुतीकरण
समस्या का चयन करने क
े पश्चात शिक्षक को समस्या का पूरा विश्लेषण विद्यार्थियों क
े सम्मुख करना
होता है। यह विश्लेषण विचार विमर्श द्वारा भी हो सकता है तथा इस पद में शिक्षण शिक्षार्थियों को
बताता है की समस्या क
े समाधान में पढ़ती क्या होगी प्रदत्त संकलन कहां से और क
ै से किया जाएगा इस
पद क
े ठीक प्रकार से पूर्ण होने क
े पश्चात विद्यार्थियों को समस्या की पूरी जानकारी हो जाती है समस्या
समाधान क
े तरीकों की जानकारी हो जाती है।
3.उपकल्पनाओं का या परिकल्पनाओं का निर्माण:-
समस्या क
े चयन क
े उपरांत समस्या की परिकल्पनाओं का निर्माण किया जाता है की समस्या क
े क्या
संभावित कारण हो सकते हैं उनकी सूची बनाई जाती है उपकल्पनाएं या परिकल्पनाएं इस प्रकार की
बनाई जानी चाहिए जिसका परीक्षण किया जा सक
े ।
4. प्रदत संग्रह
परिकल्पनाओं क
े निर्माण क
े उपरांत निर्धारित परिकल्पनाओं का परीक्षण करने हेतु पदार्थ का संकलन
करते हैं। पर्दत्त संकलन में शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को दिशा निर्देशित करें कि प्रदत्त
संकलन कहां से और क
ै से किया जाए शिक्षक द्वारा बताए गए संदर्भों से विद्यार्थी आवश्यक पदार्थ का
संकलन करते हैं।
5. प्रदत्त विश्लेषण
समस्या समाधान विधि क
े इस पद में तृतीय सोपान पर निर्मित उपकल्पनाओं का परीक्षण किया जाता है
पड़ कर में किए गए आंकड़ों का विभिन्न सांख्यिकी वीडियो से विश्लेषण किया जाता है तथा पद्धतों क
े
विश्लेषण क
े द्वारा उनका अर्थ निकाला जाता है पद्धतों में छिपे संबंधों को ज्ञात किया जाता है।
6. निष्कर्ष
पंडित विश्लेषण क
े उपरांत अंतिम निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं जो परिकल्पनाएं प्राप्त विश्लेषण में सही
पाई गई उनक
े आधार पर ही समस्या समाधान क
े निष्कर्ष दिए जाते हैं। यदि आवश्यक हो तो इन
निष्कर्ष को नवीन परिस्थितियों में लागू कर उनकी सत्यता की जांच की जा सकती है।
क
ु छ वैज्ञानिक क
े शिक्षा विधि समस्या समाधान विधि क
े 7 प्रकार मानते हैं जो निम्न
प्रकार है
1. समस्या का चयन।
2. समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन।
3. समस्या का महत्व स्पष्ट करना।
4. विद्यार्थियों द्वारा समस्या क
े हल क
े प्रभाव।
5. तथ्यों की जांच एवं संभावित हल को खोजना।
6. समाजीकरण एवं निष्कर्ष या सामान्यकारण।
7. निष्कर्ष का मूल्यांकन एवं रिकॉर्ड रखना।
समस्या समाधान विधि क
े गुनिया लाभ
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
यह विधि विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती है विद्यार्थी क
े वल पर पुस्तक क
े ज्ञान
का ही उपयोग नहीं करते हैं अपितु व्यवहारिक ज्ञान का उपयोग करते हैं।
अनुशासन से कार्य करने की आदत विकसित करना:-
इस विधि से विद्यार्थियों में स्वयं अध्ययन करने की आदत विकसित होती है यह आदत भविष्य में उच्च
अध्ययन करने और विश्व का गहन ज्ञान प्राप्त करने में उपयोगी होती है अनुशासन पूर्ण कार्य करने की
आदत विकसित करता है। यह आदत विद्यार्थी को स्वयं अनुशासन क
े लिए प्रेरित करती है।
स्वाध्याय की आदत विकसित करना
इस विधि में विद्यार्थी मैं स्वयं अध्ययन करने की आदत विकसित होती है यह आदत भविष्य में उच्च
अध्ययन करने और विषय का गहन ज्ञान प्राप्त करने में उपयोगी होती है।
प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है
इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी समस्या क
े प्रारंभ से अंत तक क
े सभी
शोपनो में स्वयं कार्य करते हुए गुजरता है अतः उन्हें आने वाली कठिनाइयों और प्रक्रियाओं की गहन
जानकारी हो जाती है।
जीवन की समस्याओं का सामना करने में उपयोगी
विद्यार्थियों को इस विधि क
े द्वारा अध्ययन करने से जीवन की समस्याओं का समाधान करने और
उनका सामना करने का कौशल विकसित होता है।
अच्छे गुना का विकास होता है
समस्या समाधान विधि से विद्यार्थियों में सामाजिकता सहनशीलता उत्तरदायित्व की भावना व्यापकता
दूरदर्शिता आदि गुना का विकास होता है।
समस्या समाधान विधि क
े दोष या सीमा
1. इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम क
े चयनित अंशु का ही अध्ययन अध्यापन किया जा सकता है।
2. इस विधि द्वारा अध्यापन में अध्यापक क
े सामने सबसे बड़ी समस्या संदर्भ साहित्य क
े उपलब्ध
होने की होती है।
3. इस विधि में शिक्षक को स्वयं सामग्री तैयार करनी होती है जो क
े वल अनुभवी अध्यापक ही तैयार
कर सकते हैं।
4. समस्या समाधान विधि से शिक्षण में समय अधिक लगता है।
5. इस विधि का उपयोग क
े वल उच्च कक्षाओं में ही किया जा सकता है।
6. समस्या समाधान विधि क
े लिए समस्या सीमा का चुनाव स्वयं में एक समस्या है।
प्रोजेक्ट या प्रयोजन विधि
प्रोजेक्ट विधि दर्शन क
े प्रयोजनवाद पर आधारित है।
इस विधि क
े प्रतिपादन क
े W. H.किलपैट्रिक हैं। इस विधि का मुख्य आधार है की विद्यार्थी कोई भी कार्य
परस्पर सहयोग क
े साथ करना चाहते हैं अतः इस विधि क
े तीन प्रमुख आधार हैं:-
पहला सहयोग सहयोग करना
दूसरा क्रियाशील रहना
और तीसरा परस्पर संबंध बनाए रखना।
प्रयोजन विधि की परिभाषा
स्टीवेंसन क
े अनुसार
प्रोजेक्ट एक समस्या मूलक कार्य है जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों क
े अंतर्गत पूर्णता को प्राप्त
करता है।
बैलर्ड क
े अनुसार
प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटा सा भाग है जिसे विद्यालय में लाया गया है।
प्रोजेक्ट विधि की उपरोक्त परिभाषाओं क
े आधार पर स्पष्ट है कि परियोजना एक समस्या मूल्य क
े कार्य
है और इस समस्या का समाधान ढूंढने क
े लिए व्यक्ति स्वयं योजना बनाते हैं। तथा स्वाभाविक
परिस्थितियों क
े अंतर्गत कार्य संपादित किया जाता है। प्रोजेक्ट क
े अंतर्गत समस्या को व्यवहारिक तथा
वास्तविक रूप प्रदान किया जाता है।
प्रयोजन विधि क
े मनोवैज्ञानिक आधार
प्रोजेक्ट विधि निम्न मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है।
तत्परता का नियम:- इस नियम क
े अनुसार विद्यार्थी इस कार्य को करने क
े लिए तत्पर रहता है जिसमें
उनकी रुचि होती है।
अभ्यास का नियम:- इस नियम क
े अनुसार विद्यार्थी अभ्यास क
े माध्यम से अच्छी तरह सीखते हैं।
प्रभाव का नियम:- अधिगम का स्थाई होना उनकी सफलता या असफलता पर निर्भर करता है इस विधि
में विद्यार्थी को स्वयं अपनी सफलता या सफलता क
े बारे में ज्ञान रहता है।
प्रोजेक्ट विधि क
े सिद्धांत
प्रोजेक्ट विधि क
े 6 सिद्धांत होते हैं।
1. अनुभव का सिद्धांत।
2. उद्देश्य पूर्णत का सिद्धांत।
3. स्वतंत्रता का सिद्धांत।
4. वास्तविकता का सिद्धांत।
5. उपयोगिता का सिद्धांत।
6. क्रियाशीलता का सिद्धांत।
अनुभव का सिद्धांत:-
इस विधि में विद्यार्थी जो क
ु छ भी सीखना है अनुभव से सीखते हैं अनुभव सहयोग एवं सामाजिकता की
भावना विद्यार्थियों में विकसित होते हैं। स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट विधि अनुभव द्वारा सीखने और कार्य
करने पर आधारित है।
उद्देश्य पूर्णत का सिद्धांत:-
इस विधि में विद्यार्थियों क
े समक्ष अपनी क्रियो की दिशा देने क
े लिए स्पष्ट लक्ष्य होते हैं इस कारण वह
दिशा भ्रमित नहीं होते हैं एवं उनकी शक्ति का इधर-उधर अपव्यय नहीं होता।
स्वतंत्रता का सिद्धांत:-
प्रोजेक्ट एक स्वयं कार्य करने का कार्य है इसमें विद्यार्थी स्वयं या दो-तीन क
े समूह में कार्य विभाजन कर
अपने-अपने कार्य को बांट लेते हैं इस विधि में विद्यार्थियों को क्रियो क
े चयन करने की स्वतंत्रता होती है।
इस कारण वह रुचि एवं उत्साह से कार्य करते हैं।
वास्तविकता का सिद्धांत:-
इस विधि में विद्यार्थियों द्वारा किया गया कार्य वास्तविक होता है पूर्ण वास्तविकता क
े कारण
विद्यार्थियों और उनक
े क्रियाकलापों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं।
उपयोगिता का सिद्धांत :-
यह सर्वमान्य तथ्य है कि वही कार्य विद्यार्थी अधिक रुचि से करते हैं जो उपयोगी हो प्रोजेक्ट विधि में
चुने गए कार्य विद्यार्थियों क
े तात्कालिक एवं भाभी जीवन से जुड़े होते हैं।
क्रियाशीलता का सिद्धांत :-
प्रोजेक्ट विधि में विद्यार्थी अपने-अपने कार्यों को स्वयं अपनी गति से पूर्ण करते हैं इस विधि में
सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा क्रियाशीलता प्रबल दिया जाता है।
प्रोजेक्ट विधि क
े चरण या सोपान
प्रोजेक्ट विधि क
े पांच सोपान या चरण होते हैं:-
1. प्रोजेक्ट की स्थिति उत्पन्न करना।
2. प्रोजेक्ट क
े उद्देश्य निर्धारित करना।
3. प्रोजेक्ट को पूर्ण करना या निष्पादित करना।
4. प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करना।
5. प्रोजेक्ट या परियोजना की रिकॉर्डिंग करना।
यह भी जाने-
प्रोजेक्ट एक स्वयं कार्य करने का कार्य है इसमें विद्यार्थी स्वयं या दो-तीन क
े समूह में कार्य विभाजन कर
अपने-अपने कार्य को बांट लेते हैं इस विधि में विद्यार्थियों को क्रियो क
े चयन करने की स्वतंत्रता होती है।
इस कारण वह रुचि एवं उत्साह से कार्य करते हैं।
वास्तविकता का सिद्धांत:-
इस विधि में विद्यार्थियों द्वारा किया गया कार्य वास्तविक होता है पूर्ण वास्तविकता क
े कारण
विद्यार्थियों और उनक
े क्रियाकलापों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं।
उपयोगिता का सिद्धांत :-
यह सर्वमान्य तथ्य है कि वही कार्य विद्यार्थी अधिक रुचि से करते हैं जो उपयोगी हो प्रोजेक्ट विधि में
चुने गए कार्य विद्यार्थियों क
े तात्कालिक एवं भाभी जीवन से जुड़े होते हैं।
क्रियाशीलता का सिद्धांत :-
प्रोजेक्ट विधि में विद्यार्थी अपने-अपने कार्यों को स्वयं अपनी गति से पूर्ण करते हैं इस विधि में
सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा क्रियाशीलता प्रबल दिया जाता है।
प्रोजेक्ट विधि क
े चरण या सोपान
प्रोजेक्ट विधि क
े पांच सोपान या चरण होते हैं:-
1. प्रोजेक्ट की स्थिति उत्पन्न करना।
2. प्रोजेक्ट क
े उद्देश्य निर्धारित करना।
3. प्रोजेक्ट को पूर्ण करना या निष्पादित करना।
4. प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करना।
5. प्रोजेक्ट या परियोजना की रिकॉर्डिंग करना।
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  • 1.
  • 2. शिक्षण विधियाँ(Teaching Methods in Hindi) शिक्षण विधि का उद्देश्य,शिक्षण विधियों क े प्रयोग का महत्व एवं उपयोगिता,शिक्षण विधि की विशेषताएं,अनुसंधान विधि। समस्या समाधान विधि। प्रोजेक्ट विधि। आगमन विधि। निगमन विधि। विश्लेषण विधि। संश्लेषण विधि। शिक्षण विधियाँ शिक्षण विधि या पद्धति शब्द कक्षा निर्देश क े लिए उपयोग किए जाने वाले सामान्य सिद्धांतों, शिक्षाशास्त्र और प्रबंधन रणनीतियों को संदर्भित करता है।आपकी शिक्षण पद्धति का चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आपक े लिए क्या उपयुक्त है - आपका शैक्षिक दर्शन, कक्षा जनसांख्यिकीय, विषय क्षेत्र (क्षेत्र) और स्क ू ल मिशन विवरण। शिक्षण सिद्धांतों को दो प्रमुख मापदंडों क े आधार पर चार श्रेणियों में व्यवस्थित किया जा सकता है: एक शिक्षक-क ें द्रित दृष्टिकोण व एक छात्र-क ें द्रित दृष्टिकोण, और उच्च तकनीक सामग्री का उपयोग व कम-तकनीकी सामग्री का उपयोग।
  • 3. शिक्षण विधियाँ शिक्षण विधि का उद्देश्य(Objective of Teaching Method) शिक्षण विधियाँ व्यापक तकनीक ें हैं जिनका उपयोग छात्रों को सीखने क े परिणाम प्राप्त करने में मदद करने क े लिए किया जाता है, जबकि गतिविधियाँ इन विधियों को लागू करने क े विभिन्न तरीक े हैं। शिक्षण विधियाँ छात्रों की मदद करती हैं: पाठ्यक्रम की सामग्री में महारत हासिल करना। विशेष संदर्भों में सामग्री को लागू करना। शिक्षण विधियों क े प्रयोग का महत्व एवं उपयोगिता(Importance and Usefulness of Using Teaching Methods) वे छात्रों क े दिमाग को सीखने क े लिए प्रेरित करते हैं। बच्चों में रुचियाँ।
  • 4. शिक्षण की तकनीकों क े उचित उपयोग से बच्चों को सिखाई गई विषय वस्तु अधिक अच्छी तरह से याद रहती है। शिक्षण की विभिन्न तकनीक ें शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षण क े सामान्य सिद्धांतों और सिद्धांतों का पालन करने क े अलावा विभिन्न उपकरणों, तकनीकों, रणनीतियों या युक्तियों का उपयोग शामिल होता है। इन तकनीकों का उपयोग मूलतः मौखिक शिक्षण क े लिए किया जाता है। वे इस प्रकार हैं। कथन: कथन ज्ञान संप्रेषित करने की महत्वपूर्ण तकनीकों में से एक है। वर्णन का उद्देश्य बच्चों क े सामने सीखने की घटनाओं का स्पष्ट, जीवंत, रोचक और व्यवस्थित क्रम प्रस्तुत करना है। वर्णन करना शिक्षकों क े लिए अपने शिक्षण को और अधिक रोचक बनाने क े लिए घटनाओं का विवरण देकर अपने पाठ को कहानी क े रूप में प्रस्तुत करने की एक कला है। एक अच्छा वर्णनकर्ता बनने क े लिए, शिक्षक को कक्षा में उचित भाषा और भाषण का उपयोग करने का कौशल आना चाहिए। विवरण: विवरण वर्णन की तरह है। विवरण को "किसी चीज़ को शब्दों, गुणों की मात्रा या किसी चीज़ की उपस्थिति द्वारा दर्शाने की क्रिया" क े रूप में परिभाषित किया गया है। शिक्षण विधि की विशेषताएं(Characteristics of Teaching Methods) 1. सक्रिय सीखने की तकनीक ें । सीखने का बढ़िया माहौल । 2. स्पष्ट संचार। 3. शिक्षक और छात्र क े बीच। 4. अच्छे संबंध। 5. महत्वपूर्ण सोच। 6. समस्या को सुलझाना। परंपरागत एवं आधुनिक शिक्षण विधियां पारंपरिक शिक्षण विधियां क े अंतर्गत परंपरा क े बारे में जानकारी दी जाती है एवं संस्कृ ति और
  • 5. संस्कृ त क े बारे में एवं संस्कृ ति क े विविधता क े बारे में जानकारी दी जाती है । आधुनिक शिक्षण विधि में कौशल एवं विद्यार्थी क े भाभी जीवन की शिक्षा दी जाती है शिक्षण कार्य क े संपादन क े लिए निम्नलिखित शिक्षण विधियां का उपयोग किया जाता है जो निम्न प्रकार है:- 1. अनुसंधान विधि। क े प्रतिपादक क े आर्मस्ट्रांग है। 2. समस्या समाधान विधि। क े प्रतिपादक सुकरात सेंट थॉमस है। 3. प्रोजेक्ट विधि। क े प्रतिपादक विलियम किल पैट्रिक है। 4. आगमन विधि। क े प्रतिपादक बेकन है। 5. निगमन विधि। क े प्रतिपादक अरस्तु हैं। 6. विश्लेषण विधि। क े प्रतिपादक जॉन ऑस्टिन है। 7. संश्लेषण विधि।क े प्रतिपादक जॉन ऑस्टिन। 1. अनुसंधान विधि(Research Method in Hindi) प्रतिपादन:- प्रोफ े सर एडवर्ड आर्मस्ट्रांग Hurestic method शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा क े Hurescie शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ है मैं खोजता हूं अर्थात I find me इस विधि क े जन्मदाता एचडी आर्मस्ट्रांग है। आर्मस्ट्रांग प्रयोगशाला क े विशिष्ट प्रशिक्षण अनुसंधान आत्मक प्रशिक्षण क े मुख्य संपर्क थे। इस विधि में विद्यार्थी स्वयं अन्वेषक या खोजकर्ता क े रूप में कार्य करते हैं। व समस्याओं का समाधान करते हैं। इस विधि द्वारा विद्यार्थी में वैज्ञानिक व गणितीय दृष्टिकोण का विकास होता है। हर्बर्ट स्पेंसर ने इस विधि क े लिए लिखा है कि बालकों को कम से कम बताया जाए तथा जितना अधिक संभव हो उनको खोजने क े लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  • 6. अनुसंधान विधि की परिभाषाएं(Definitions of Research Method) अनुसंधान शिक्षण विधि की परिभाषा अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी है जो निम्न है:- प्रोफ े सर आर्मस्ट्रांग क े अनुसार यह शिक्षक की वह विधि है जिसक े द्वारा बालक किया विद्यार्थी को एक अच्छे अनुसंधानकर्ता क े रूप में देखा जा सकता है। Vektave वे क े अनुसार अनुसंधान विधि कार्य विधि मैं प्रशिक्षण प्रदान करती है। इसमें ज्ञान को दूसरे स्थान पर रखा जाता है। इस प्रकार इस विधि का मुख्य उद्देश्य एक अनुसंधान करता या फौजी बनना है। इसमें तथ्यों सिद्धांतों आदि की शिक्षा की अपेक्षा ज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार की जा सकती है इस प्रबल दिया जाता है। उदाहरण क े लिए एक नगर की जनसंख्या 50000 है यदि जनसंख्या की वृद्धि 4% वार्षिक हो तो 2 वर्ष बाद उसे नगर की जनसंख्या ज्ञात करो? Ans. शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्न विद्यार्थी द्वारा संभावित उत्तर Teacher दिए गए प्रश्न में हमें क्या ज्ञात करना है। Student 2 वर्ष बड़नगर की जनसंख्या Teacher इसको हम किस प्रकार ज्ञात कर सकते हैं Student पहले 1 वर्ष की जनसंख्या ज्ञात करेंगे। Teacher प्रतिवर्ष जनसंख्या में कितनी वर्दी हो रही है? स्टूडेंट 4% की वृद्धि वार्षिक Teacher इस प्रकार प्रथम प्रथम वर्ष क े अंत में जनसंख्या कितनी होगी? Student 50000 × 4 / 100 =2000 Teacher इस प्रकार प्रथम वर्ष क े अंत में जनसंख्या कितनी होगी Student 50000 + 2000 = 52000
  • 7. Teacher द्वितीय वर्ष क े लिए जनसंख्या किस प्रकार निकाली जाएगी? स्टूडेंट द्वितीय वर्ष की जनसंख्या का 4% 52000 × 4 / 100 = 2080 Teacher यह वृद्धि क ै से ज्ञात करेंगे द्वितीय वर्ष की जनसंख्या का 4% 52000 × 4 / 100 = 2080 Teacher इस प्रकार 2 वर्ष पश्चात नगर की जनसंख्या कितनी होगी? Student इस प्रकार विद्यार्थी स्पष्ट करेंगे की 2 वर्ष बाद नगर की जनसंख्या 2080 होगी। इस प्रकार दी गई दी गई समस्याओं का हाल अनुसंधान विधि से कर सकते हैं इसी प्रकार अन्य समस्याओं का हल्बी कर सकते हैं। इस विधि से कम आने वाली पुस्तक भी अनुसंधान ढंग से लिखी होनी चाहिए जिससे कार्य करते समय विद्यार्थियों को सुगमता रहे। अनुसंधान विधि क े गुण(Merits of research method) ● यह एक मैं मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। ● इस विधि में विद्यार्थियों को गृह कार्य देने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि विद्यार्थी स्वयं कार्य करक े समस्याओं का हाल करता है। ● क्रियाशीलता क े सिद्धांत पर आधारित है। इस विधि में विद्यार्थी सक्रिय होकर शिक्षक द्वारा दी गई सूचनाओं एवं ज्ञान ग्रहण करते हैं। ● इस विधि में विद्यार्थी क्रियाशील रहता है। ● उच्च स्तरीय अनुसंधान में सहायक है। ● इस विधि में विद्यार्थी तथ्यों एवं सिद्धांतों को तर्क क े बाद ही स्वीकार करते हैं। ● यह आदत उनको उच्च स्तरीय अनुसंधान में उपयोगी तथा सहायक सिद्ध होती है। अनुसंधान विधि क े दोष 1. प्रारंभिक स्तर क े विद्यार्थियों द्वारा नए ज्ञान की खोज करना संभव नहीं है इसलिए यह विधि छोटी कक्षाओं क े लिए उपयुक्त नहीं है। 2. एक विशेष कक्ष में सभी विद्यार्थी सामान क्षमता तथा समाज योग्यता क े नहीं होते हैं। अतः इस विधि का प्रयोग वर्तमान परिस्थितियों में संभव नहीं है।
  • 8. 3. यह अधिक खर्चीली विधि है गणित क े संपूर्ण पाठ्यक्रम को इसक े द्वारा नहीं पढ़ाया जा सकता। 4. 5. इस विधि द्वारा अध्यापन करने क े लिए कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या कम होनी चाहिए। 6. 7. इस विधि क े लिए समस्याओं का निर्धारण करना कठिन कार्य है इसक े लिए प्राप्त प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता होती है। 8. विधि पर आधारित पाठ्य पुस्तक का अभाव है। समस्या समाधान विधि(problem solving method) समस्या समाधान विधि क े अंतर्गत व्यक्ति समस्या क े समाधान क े लिए नियोजित तरीक े से समस्या पर निष्कर्ष प्राप्त करने क े उद्देश्य से प्रहार करता है। समस्या समाधान तथा प्रयोजन विधि में पर्याप्त समानता है। दोनों में अंतर क े वल इतना है की समस्या समाधान में मानसिक चिंतन एवं मानसिक निष्कर्ष पर बोल दिया जाता है जबकि प्रयोजन विधि में क े वल प्रायोगिक कार्य को महत्व दिया जाता है। समस्या समाधान में शिक्षक क े अंतर्गत शैक्षणिक क े दृष्टि से उपयोगी समस्याओं का ही चुनाव किया जाता है तथा विद्यार्थियों तथा शिक्षक मिलकर वैज्ञानिक तरीक े से समस्या का समाधान करने में प्रयास करते हैं। समस्या समाधान विधि का उद्देश्य समस्या समाधान विधि द्वारा शिक्षक करने का यह उद्देश्य होता है कि विद्यार्थियों में समस्या समाधान की योग्यता का विकास हो जिससे सभी भावी जीवन में विद्यार्थियों को आने वाली समस्याओं से विद्यार्थी भयभीत होकर पलायन न करें। समस्याओं का वैज्ञानिक तरीक े से समाधान ने निकाले अपितु समस्याओं का नियोजित तरीक े से तथा वैज्ञानिक विधि से समाधान ढूंढे। यह विधि इस मनोवैज्ञानिक मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में समस्याओं क े अपने तरीक े से समाधान की योग्यता तर्क देने की योग्यता होती है। आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति में समस्या का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हाल खोजने की क्षमता का विकास किया जाए। समस्या समाधान विधि की विशेषता अतः समस्या समाधान विधि की मुख्य विशेषता मानसिक क्रियाएं एवं चिंतन है। समस्या समाधान विधि की परिभाषा समस्या समाधान विधि की परिभाषा विभिन्न वैज्ञानिकों क े अनुसार
  • 9. गेने क े अनुसार घटनाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें मानव किसी विशिष्ट उद्देश्य की उपलब्धि क े लिए अधिनियमों अथवा सिद्धांतों का उपयोग करता है। C. V Good क े अनुसार समस्या समाधान विधि में विद्यार्थी चुनौती पूर्ण स्थितियों क े निर्माण द्वारा सीखने की ओर प्रेरित होता है यह एक ऐसी विधि है जिसमें लघु किं तु संबंधित समस्याओं क े सामूहिक समाधान क े माध्यम से एक बड़ी संख्या का समाधान किया जा सकता है। जॉनसन क े अनुसार समस्या समाधान विधि मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की सर्वोत्तम विधि है जिसक े द्वारा मस्तिष्क क े समक्ष वास्तविक समस्याएं उत्पन्न की जाती है और उसका समाधान निकालने क े लिए अवसर तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। स्किनर क े अनुसार समस्या समाधान विधि एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें संरचनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं। गेट्स क े अनुसार समस्या समाधान विधि शिक्षक का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है। समस्या समाधान विधि क े सोपान या पद या स्टेप्स :- समस्या समाधान विधि में 6 या 7 सोपान या चरण या पद होते हैं। क ु छ शिक्षाविद समस्या समाधान विधि क े 6 पद मानते हैं जो निम्न प्रकार है 1. समस्या का चयन। 2. समस्या का प्रस्तुतीकरण। 3. उपकल्पनाओं या परिकल्पनाओं का निर्माण या संभावित या अनुमानित उत्तर। 4. पर्दत्त संग्रह। 5. प्रदत विश्लेषण। 6. निष्कर्ष। समस्या का चयन समस्या का चयन करते समय अध्यापक को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की समस्या ऐसी हो जिसका की समाधान करने की आवश्यकता शिक्षार्थी महसूस कर सक ें समस्या का चयन शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों को मिलकर करना चाहिए।
  • 10. यहां जहां तक हो सक े शिक्षार्थियों द्वारा सुनाई गई विभिन्न समस्याओं में से ही किसी समस्या को शिक्षक को लेना चाहिए समस्या क े निर्धारण में यह भी ध्यान रखना चाहिए की समस्या अधिक व्यापक ना हो। 2. समस्या का प्रस्तुतीकरण समस्या का चयन करने क े पश्चात शिक्षक को समस्या का पूरा विश्लेषण विद्यार्थियों क े सम्मुख करना होता है। यह विश्लेषण विचार विमर्श द्वारा भी हो सकता है तथा इस पद में शिक्षण शिक्षार्थियों को बताता है की समस्या क े समाधान में पढ़ती क्या होगी प्रदत्त संकलन कहां से और क ै से किया जाएगा इस पद क े ठीक प्रकार से पूर्ण होने क े पश्चात विद्यार्थियों को समस्या की पूरी जानकारी हो जाती है समस्या समाधान क े तरीकों की जानकारी हो जाती है। 3.उपकल्पनाओं का या परिकल्पनाओं का निर्माण:- समस्या क े चयन क े उपरांत समस्या की परिकल्पनाओं का निर्माण किया जाता है की समस्या क े क्या संभावित कारण हो सकते हैं उनकी सूची बनाई जाती है उपकल्पनाएं या परिकल्पनाएं इस प्रकार की बनाई जानी चाहिए जिसका परीक्षण किया जा सक े । 4. प्रदत संग्रह परिकल्पनाओं क े निर्माण क े उपरांत निर्धारित परिकल्पनाओं का परीक्षण करने हेतु पदार्थ का संकलन करते हैं। पर्दत्त संकलन में शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों को दिशा निर्देशित करें कि प्रदत्त संकलन कहां से और क ै से किया जाए शिक्षक द्वारा बताए गए संदर्भों से विद्यार्थी आवश्यक पदार्थ का संकलन करते हैं। 5. प्रदत्त विश्लेषण समस्या समाधान विधि क े इस पद में तृतीय सोपान पर निर्मित उपकल्पनाओं का परीक्षण किया जाता है पड़ कर में किए गए आंकड़ों का विभिन्न सांख्यिकी वीडियो से विश्लेषण किया जाता है तथा पद्धतों क े विश्लेषण क े द्वारा उनका अर्थ निकाला जाता है पद्धतों में छिपे संबंधों को ज्ञात किया जाता है। 6. निष्कर्ष पंडित विश्लेषण क े उपरांत अंतिम निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं जो परिकल्पनाएं प्राप्त विश्लेषण में सही पाई गई उनक े आधार पर ही समस्या समाधान क े निष्कर्ष दिए जाते हैं। यदि आवश्यक हो तो इन निष्कर्ष को नवीन परिस्थितियों में लागू कर उनकी सत्यता की जांच की जा सकती है।
  • 11. क ु छ वैज्ञानिक क े शिक्षा विधि समस्या समाधान विधि क े 7 प्रकार मानते हैं जो निम्न प्रकार है 1. समस्या का चयन। 2. समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन। 3. समस्या का महत्व स्पष्ट करना। 4. विद्यार्थियों द्वारा समस्या क े हल क े प्रभाव। 5. तथ्यों की जांच एवं संभावित हल को खोजना। 6. समाजीकरण एवं निष्कर्ष या सामान्यकारण। 7. निष्कर्ष का मूल्यांकन एवं रिकॉर्ड रखना। समस्या समाधान विधि क े गुनिया लाभ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास यह विधि विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती है विद्यार्थी क े वल पर पुस्तक क े ज्ञान का ही उपयोग नहीं करते हैं अपितु व्यवहारिक ज्ञान का उपयोग करते हैं। अनुशासन से कार्य करने की आदत विकसित करना:- इस विधि से विद्यार्थियों में स्वयं अध्ययन करने की आदत विकसित होती है यह आदत भविष्य में उच्च अध्ययन करने और विश्व का गहन ज्ञान प्राप्त करने में उपयोगी होती है अनुशासन पूर्ण कार्य करने की आदत विकसित करता है। यह आदत विद्यार्थी को स्वयं अनुशासन क े लिए प्रेरित करती है। स्वाध्याय की आदत विकसित करना इस विधि में विद्यार्थी मैं स्वयं अध्ययन करने की आदत विकसित होती है यह आदत भविष्य में उच्च अध्ययन करने और विषय का गहन ज्ञान प्राप्त करने में उपयोगी होती है। प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी समस्या क े प्रारंभ से अंत तक क े सभी शोपनो में स्वयं कार्य करते हुए गुजरता है अतः उन्हें आने वाली कठिनाइयों और प्रक्रियाओं की गहन जानकारी हो जाती है। जीवन की समस्याओं का सामना करने में उपयोगी
  • 12. विद्यार्थियों को इस विधि क े द्वारा अध्ययन करने से जीवन की समस्याओं का समाधान करने और उनका सामना करने का कौशल विकसित होता है। अच्छे गुना का विकास होता है समस्या समाधान विधि से विद्यार्थियों में सामाजिकता सहनशीलता उत्तरदायित्व की भावना व्यापकता दूरदर्शिता आदि गुना का विकास होता है। समस्या समाधान विधि क े दोष या सीमा 1. इस विधि द्वारा पाठ्यक्रम क े चयनित अंशु का ही अध्ययन अध्यापन किया जा सकता है। 2. इस विधि द्वारा अध्यापन में अध्यापक क े सामने सबसे बड़ी समस्या संदर्भ साहित्य क े उपलब्ध होने की होती है। 3. इस विधि में शिक्षक को स्वयं सामग्री तैयार करनी होती है जो क े वल अनुभवी अध्यापक ही तैयार कर सकते हैं। 4. समस्या समाधान विधि से शिक्षण में समय अधिक लगता है। 5. इस विधि का उपयोग क े वल उच्च कक्षाओं में ही किया जा सकता है। 6. समस्या समाधान विधि क े लिए समस्या सीमा का चुनाव स्वयं में एक समस्या है। प्रोजेक्ट या प्रयोजन विधि प्रोजेक्ट विधि दर्शन क े प्रयोजनवाद पर आधारित है। इस विधि क े प्रतिपादन क े W. H.किलपैट्रिक हैं। इस विधि का मुख्य आधार है की विद्यार्थी कोई भी कार्य परस्पर सहयोग क े साथ करना चाहते हैं अतः इस विधि क े तीन प्रमुख आधार हैं:- पहला सहयोग सहयोग करना दूसरा क्रियाशील रहना और तीसरा परस्पर संबंध बनाए रखना। प्रयोजन विधि की परिभाषा स्टीवेंसन क े अनुसार प्रोजेक्ट एक समस्या मूलक कार्य है जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों क े अंतर्गत पूर्णता को प्राप्त करता है।
  • 13. बैलर्ड क े अनुसार प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटा सा भाग है जिसे विद्यालय में लाया गया है। प्रोजेक्ट विधि की उपरोक्त परिभाषाओं क े आधार पर स्पष्ट है कि परियोजना एक समस्या मूल्य क े कार्य है और इस समस्या का समाधान ढूंढने क े लिए व्यक्ति स्वयं योजना बनाते हैं। तथा स्वाभाविक परिस्थितियों क े अंतर्गत कार्य संपादित किया जाता है। प्रोजेक्ट क े अंतर्गत समस्या को व्यवहारिक तथा वास्तविक रूप प्रदान किया जाता है। प्रयोजन विधि क े मनोवैज्ञानिक आधार प्रोजेक्ट विधि निम्न मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। तत्परता का नियम:- इस नियम क े अनुसार विद्यार्थी इस कार्य को करने क े लिए तत्पर रहता है जिसमें उनकी रुचि होती है। अभ्यास का नियम:- इस नियम क े अनुसार विद्यार्थी अभ्यास क े माध्यम से अच्छी तरह सीखते हैं। प्रभाव का नियम:- अधिगम का स्थाई होना उनकी सफलता या असफलता पर निर्भर करता है इस विधि में विद्यार्थी को स्वयं अपनी सफलता या सफलता क े बारे में ज्ञान रहता है। प्रोजेक्ट विधि क े सिद्धांत प्रोजेक्ट विधि क े 6 सिद्धांत होते हैं। 1. अनुभव का सिद्धांत। 2. उद्देश्य पूर्णत का सिद्धांत। 3. स्वतंत्रता का सिद्धांत। 4. वास्तविकता का सिद्धांत। 5. उपयोगिता का सिद्धांत। 6. क्रियाशीलता का सिद्धांत। अनुभव का सिद्धांत:-
  • 14. इस विधि में विद्यार्थी जो क ु छ भी सीखना है अनुभव से सीखते हैं अनुभव सहयोग एवं सामाजिकता की भावना विद्यार्थियों में विकसित होते हैं। स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट विधि अनुभव द्वारा सीखने और कार्य करने पर आधारित है। उद्देश्य पूर्णत का सिद्धांत:- इस विधि में विद्यार्थियों क े समक्ष अपनी क्रियो की दिशा देने क े लिए स्पष्ट लक्ष्य होते हैं इस कारण वह दिशा भ्रमित नहीं होते हैं एवं उनकी शक्ति का इधर-उधर अपव्यय नहीं होता। स्वतंत्रता का सिद्धांत:- प्रोजेक्ट एक स्वयं कार्य करने का कार्य है इसमें विद्यार्थी स्वयं या दो-तीन क े समूह में कार्य विभाजन कर अपने-अपने कार्य को बांट लेते हैं इस विधि में विद्यार्थियों को क्रियो क े चयन करने की स्वतंत्रता होती है। इस कारण वह रुचि एवं उत्साह से कार्य करते हैं। वास्तविकता का सिद्धांत:- इस विधि में विद्यार्थियों द्वारा किया गया कार्य वास्तविक होता है पूर्ण वास्तविकता क े कारण विद्यार्थियों और उनक े क्रियाकलापों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं। उपयोगिता का सिद्धांत :- यह सर्वमान्य तथ्य है कि वही कार्य विद्यार्थी अधिक रुचि से करते हैं जो उपयोगी हो प्रोजेक्ट विधि में चुने गए कार्य विद्यार्थियों क े तात्कालिक एवं भाभी जीवन से जुड़े होते हैं। क्रियाशीलता का सिद्धांत :- प्रोजेक्ट विधि में विद्यार्थी अपने-अपने कार्यों को स्वयं अपनी गति से पूर्ण करते हैं इस विधि में सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा क्रियाशीलता प्रबल दिया जाता है। प्रोजेक्ट विधि क े चरण या सोपान प्रोजेक्ट विधि क े पांच सोपान या चरण होते हैं:- 1. प्रोजेक्ट की स्थिति उत्पन्न करना। 2. प्रोजेक्ट क े उद्देश्य निर्धारित करना।
  • 15. 3. प्रोजेक्ट को पूर्ण करना या निष्पादित करना। 4. प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करना। 5. प्रोजेक्ट या परियोजना की रिकॉर्डिंग करना। यह भी जाने- प्रोजेक्ट एक स्वयं कार्य करने का कार्य है इसमें विद्यार्थी स्वयं या दो-तीन क े समूह में कार्य विभाजन कर अपने-अपने कार्य को बांट लेते हैं इस विधि में विद्यार्थियों को क्रियो क े चयन करने की स्वतंत्रता होती है। इस कारण वह रुचि एवं उत्साह से कार्य करते हैं। वास्तविकता का सिद्धांत:- इस विधि में विद्यार्थियों द्वारा किया गया कार्य वास्तविक होता है पूर्ण वास्तविकता क े कारण विद्यार्थियों और उनक े क्रियाकलापों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते हैं। उपयोगिता का सिद्धांत :- यह सर्वमान्य तथ्य है कि वही कार्य विद्यार्थी अधिक रुचि से करते हैं जो उपयोगी हो प्रोजेक्ट विधि में चुने गए कार्य विद्यार्थियों क े तात्कालिक एवं भाभी जीवन से जुड़े होते हैं। क्रियाशीलता का सिद्धांत :- प्रोजेक्ट विधि में विद्यार्थी अपने-अपने कार्यों को स्वयं अपनी गति से पूर्ण करते हैं इस विधि में सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा क्रियाशीलता प्रबल दिया जाता है। प्रोजेक्ट विधि क े चरण या सोपान प्रोजेक्ट विधि क े पांच सोपान या चरण होते हैं:- 1. प्रोजेक्ट की स्थिति उत्पन्न करना। 2. प्रोजेक्ट क े उद्देश्य निर्धारित करना। 3. प्रोजेक्ट को पूर्ण करना या निष्पादित करना। 4. प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करना। 5. प्रोजेक्ट या परियोजना की रिकॉर्डिंग करना। written by :- bgsharmamaths.blogspot.com