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हुविष्क का मथुरा पाषाण लेख-िषष 28
Dr.Priyanka Singh
Banaras Hindu University
हुविष्क का मथुरा पाषाण लेख-िषष 28
प्राप्ति स्थल मथुरा, उत्तरप्रदेश
ििषमान प्स्थति मथुरा संग्रहालय
भाषा संस्कृ ि प्रभाविि प्राकृ ि
ललवप क
ु षाण ब्राह्मी
आधार-उपादान पाषाण स्िम्भ
पंप्ति 13
तिथथ संित्सर 28, गुप्तपषय मास, प्रथम
ददिस
उद्देश्यः अलभलेख उत्कीणषन का उद्देश्य िकनपति द्वारा
विलभन्न श्रेणणयों क
े पास हुविष्क क
े शासन काल क
े 28िें
िषष क
े गुप्तपषय मास क
े प्रथम ददिस को एक पुण्यशाला क
े
तनलमत्त अक्षयनीिी जमा करने का उल्लेख करना है। इस
अक्षयनीिी क
े ब्याज से प्रति मास शुतल पक्ष की चिुदषशी
को पुण्यशाला में सौ ब्राह्मणों को भोजन िथा अनाथों क
े
ललये सत्तू, लिण, पानी इत्यादद की व्यिस्था करने की
सूचना उत्कीणष है।
िकनपति: इस अलभलेख की द्वििीय पंप्ति में प्राथचनी कन सरूकमान
पुत्र खरासलेर पतिन िकन पतिना का उल्लेख है। डी0 सी0 सरकार ने
खरसलेर और िकन को स्थान नाम बिाया है। िकन को मध्य एलशया
क
े िखन से समीकृ ि ककया है। िकनपति शब्द मथुरा क
े माट ग्राम से
प्राति विमकडकिसेस प्रतिमा लेख िथा एक अन्य खप्ण्डि प्रतिमा लेख
में लमलिा है। विमकडकिसेस प्रतिमा लेख बकनपति हुमष्पल िथा
खप्ण्डि प्रतिमा लेख में भगनपति का उल्लेख है। हुविष्क क
े मथुरा
पाषण लेख में िकनपति शब्द उप्ल्लणखि है। िीनो शब्दों की ििषनी में
आलशंक लभन्निा है। ल्यूडसष ने िकनपति को ईरानी शब्द बिाया है
प्जसका अथष है अथधकारी। एच0 िेली ने इस शब्द को ईरानी मूल
मानिे हुये इसे मंददर का प्रभारी माना है।
गुप्तपषय मासः
इस अलभलेख में यिनो द्िारा व्यिहृि गुप्तपषय मास का
प्रयोग तिथथ अंकन क
े ललये ककया गया है। ब्राह्मी ललवप में
उत्कीणष क
ु षाण कालीन अलभलेखों में ग्रीक महीनों का नाम
कम लमलिा है। इनमें प्रायः भारिीय मास पद्धति का प्रयोग
ककया गया है। ऋिु, पक्ष एिं मास क
े द्वारा तिथथ का उल्लेख
है। शक-क
ु षाणों क
े पप्श्मोत्तर भारि से प्राति खरोष्ठी
अलभलेखों में विलभन्न ग्रीक महीनों क
े नाम उत्कीणष है-
अलभलेख ग्रीक महीनो क
े नाम
पतिक का िक्षलशला िाम्रपत्र लेख िषष-78 पनेमस
क
ु रषम िाम्र मंजूषा लेख िषष-21 अिदुनकस
कतनष्क का सुई-विहार िाम्रपत्र लेख िषष-11 दइलसक
हुविष्क का िदषक कांस्य पात्र लेख िषष-51 अथषलमलसय
राजनीतिक महत्िः
. इस अलभलेख में हुविष्क क
े 28िें राज्य िषष का उल्लेख है।
. हुविष्क की राजकीय उपाथध देिपुत्र षादह लेख में उत्कीणष है।
क
ु षाण शासको की मुद्राओं पर षाओनानो षाओ की उपाथध लमलिी है
जो क्षयथथय क्षयथथयानाम क
े अनुकरण पर आधाररि है। क्षयथथय
क्षयथथयानाम की उपाथध अकमीतनयन शासको क
े अलभलेखों में
लमलिी है। समुद्रगुति की प्रयाग प्रशप्स्ि में दैिपुत्र षादहषाहानुषादह
का उल्लेख है।
. मथुरा पर क
ु षाणों का आथधपत्य सूथचि होिा है।
आथथषक महत्ि: यह अलभलेख ित्कालीन श्रेणी संगठनों क
े संगठनात्मक
स्िरूप िथा मुद्रा व्यिस्था क
े विषय में महत्िपूणष जानकारी प्रदान
करिा है।
श्रेणीः
प्राचीन काल में व्यापाररक एिं औद्योथगक कियाकलाप संस्थाओं एिं
संघों द्वारा संचाललि होिे थे। इन संघों को श्रेणी, पूग, व्राि, नैगम,
कहा गया।
पुराणः
मनुस्मृति में पुराण को रजि मुद्रा बिाया गया है प्जसका भारमान
16 माषक अथिा 32 रत्ती था।
अक्षयनीिीः
दान का आशय उस दान से है प्जसका कभी क्षय न हो
और उसका अनिरि लाभ दान ग्रहीिा को लमलिा रहे।
अक्षयनीिी एक स्थायी तनथध होिी थी जो ककसी व्यापाररक
प्रतिष्ठान में जमा कर दी जािी थी। इसका मात्र ब्याज
उपयोग में लाया जािा था। मूलधन सुरक्षक्षि होिा था। इस
अलभलेख में दो श्रेणणयों क
े पास अक्षयनीिी जमा करने का
उल्लेख है। प्रथम श्रेणी का नाम क
ु छ अक्षरों क
े नष्ट होने
क
े कारण अपाठ्य है। दूसरी श्रेणी सलमतिकारो की थी।
धालमषक महत्िः
यह अलभलेख धालमषक दृप्ष्ट से महत्िपूणष है। क
ु षाण
शासक एिं उनक
े अथधकाररयों द्वारा उत्कीणष अथधकांश
अलभलेख बौद्ध धमष से सम्बप्न्धि है। यह अलभलेख
धमषशाला की व्यिस्था एिं ब्राह्मणों को भोजन उपलबध
कराने से सम्बप्न्धि है िथा भारिीय धालमषक मान्यिा क
े
अनुसार दान क
े माध्यम से पुण्याजषन की कामना का भी
उल्लेख है। स्पष्ट है कक विदेशी शासकों ने भी भारिीय
संस्कृ ति को आत्मासाि् करना प्रारम्भ कर ददया था।

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  • 1. हुविष्क का मथुरा पाषाण लेख-िषष 28 Dr.Priyanka Singh Banaras Hindu University
  • 2. हुविष्क का मथुरा पाषाण लेख-िषष 28 प्राप्ति स्थल मथुरा, उत्तरप्रदेश ििषमान प्स्थति मथुरा संग्रहालय भाषा संस्कृ ि प्रभाविि प्राकृ ि ललवप क ु षाण ब्राह्मी आधार-उपादान पाषाण स्िम्भ पंप्ति 13 तिथथ संित्सर 28, गुप्तपषय मास, प्रथम ददिस
  • 3.
  • 4.
  • 5. उद्देश्यः अलभलेख उत्कीणषन का उद्देश्य िकनपति द्वारा विलभन्न श्रेणणयों क े पास हुविष्क क े शासन काल क े 28िें िषष क े गुप्तपषय मास क े प्रथम ददिस को एक पुण्यशाला क े तनलमत्त अक्षयनीिी जमा करने का उल्लेख करना है। इस अक्षयनीिी क े ब्याज से प्रति मास शुतल पक्ष की चिुदषशी को पुण्यशाला में सौ ब्राह्मणों को भोजन िथा अनाथों क े ललये सत्तू, लिण, पानी इत्यादद की व्यिस्था करने की सूचना उत्कीणष है।
  • 6. िकनपति: इस अलभलेख की द्वििीय पंप्ति में प्राथचनी कन सरूकमान पुत्र खरासलेर पतिन िकन पतिना का उल्लेख है। डी0 सी0 सरकार ने खरसलेर और िकन को स्थान नाम बिाया है। िकन को मध्य एलशया क े िखन से समीकृ ि ककया है। िकनपति शब्द मथुरा क े माट ग्राम से प्राति विमकडकिसेस प्रतिमा लेख िथा एक अन्य खप्ण्डि प्रतिमा लेख में लमलिा है। विमकडकिसेस प्रतिमा लेख बकनपति हुमष्पल िथा खप्ण्डि प्रतिमा लेख में भगनपति का उल्लेख है। हुविष्क क े मथुरा पाषण लेख में िकनपति शब्द उप्ल्लणखि है। िीनो शब्दों की ििषनी में आलशंक लभन्निा है। ल्यूडसष ने िकनपति को ईरानी शब्द बिाया है प्जसका अथष है अथधकारी। एच0 िेली ने इस शब्द को ईरानी मूल मानिे हुये इसे मंददर का प्रभारी माना है।
  • 7. गुप्तपषय मासः इस अलभलेख में यिनो द्िारा व्यिहृि गुप्तपषय मास का प्रयोग तिथथ अंकन क े ललये ककया गया है। ब्राह्मी ललवप में उत्कीणष क ु षाण कालीन अलभलेखों में ग्रीक महीनों का नाम कम लमलिा है। इनमें प्रायः भारिीय मास पद्धति का प्रयोग ककया गया है। ऋिु, पक्ष एिं मास क े द्वारा तिथथ का उल्लेख है। शक-क ु षाणों क े पप्श्मोत्तर भारि से प्राति खरोष्ठी अलभलेखों में विलभन्न ग्रीक महीनों क े नाम उत्कीणष है-
  • 8. अलभलेख ग्रीक महीनो क े नाम पतिक का िक्षलशला िाम्रपत्र लेख िषष-78 पनेमस क ु रषम िाम्र मंजूषा लेख िषष-21 अिदुनकस कतनष्क का सुई-विहार िाम्रपत्र लेख िषष-11 दइलसक हुविष्क का िदषक कांस्य पात्र लेख िषष-51 अथषलमलसय
  • 9. राजनीतिक महत्िः . इस अलभलेख में हुविष्क क े 28िें राज्य िषष का उल्लेख है। . हुविष्क की राजकीय उपाथध देिपुत्र षादह लेख में उत्कीणष है। क ु षाण शासको की मुद्राओं पर षाओनानो षाओ की उपाथध लमलिी है जो क्षयथथय क्षयथथयानाम क े अनुकरण पर आधाररि है। क्षयथथय क्षयथथयानाम की उपाथध अकमीतनयन शासको क े अलभलेखों में लमलिी है। समुद्रगुति की प्रयाग प्रशप्स्ि में दैिपुत्र षादहषाहानुषादह का उल्लेख है। . मथुरा पर क ु षाणों का आथधपत्य सूथचि होिा है।
  • 10.
  • 11. आथथषक महत्ि: यह अलभलेख ित्कालीन श्रेणी संगठनों क े संगठनात्मक स्िरूप िथा मुद्रा व्यिस्था क े विषय में महत्िपूणष जानकारी प्रदान करिा है। श्रेणीः प्राचीन काल में व्यापाररक एिं औद्योथगक कियाकलाप संस्थाओं एिं संघों द्वारा संचाललि होिे थे। इन संघों को श्रेणी, पूग, व्राि, नैगम, कहा गया। पुराणः मनुस्मृति में पुराण को रजि मुद्रा बिाया गया है प्जसका भारमान 16 माषक अथिा 32 रत्ती था।
  • 12. अक्षयनीिीः दान का आशय उस दान से है प्जसका कभी क्षय न हो और उसका अनिरि लाभ दान ग्रहीिा को लमलिा रहे। अक्षयनीिी एक स्थायी तनथध होिी थी जो ककसी व्यापाररक प्रतिष्ठान में जमा कर दी जािी थी। इसका मात्र ब्याज उपयोग में लाया जािा था। मूलधन सुरक्षक्षि होिा था। इस अलभलेख में दो श्रेणणयों क े पास अक्षयनीिी जमा करने का उल्लेख है। प्रथम श्रेणी का नाम क ु छ अक्षरों क े नष्ट होने क े कारण अपाठ्य है। दूसरी श्रेणी सलमतिकारो की थी।
  • 13. धालमषक महत्िः यह अलभलेख धालमषक दृप्ष्ट से महत्िपूणष है। क ु षाण शासक एिं उनक े अथधकाररयों द्वारा उत्कीणष अथधकांश अलभलेख बौद्ध धमष से सम्बप्न्धि है। यह अलभलेख धमषशाला की व्यिस्था एिं ब्राह्मणों को भोजन उपलबध कराने से सम्बप्न्धि है िथा भारिीय धालमषक मान्यिा क े अनुसार दान क े माध्यम से पुण्याजषन की कामना का भी उल्लेख है। स्पष्ट है कक विदेशी शासकों ने भी भारिीय संस्कृ ति को आत्मासाि् करना प्रारम्भ कर ददया था।