31. परिभाषा
हृदयाय मनसे हितम ् हृदयम् । (गंगाधर)
हृदयाय हितम ् हृदयम ् (चक्रपाणण)
आम्रआम्रातकशलकु चकरमदकवक्षाम्लाम्लवेतसकु वलबदरदाड़िममातुलुंगानीतत दशेमातन
ह्रद्यानी भवस्न्द्त ।(च.सू.४/१०)
इस मिाकषाय में वणणकत सभी द्रव्यों में अम्ल रस की प्रधानता िैं। अम्ल रस के
लक्षणों में ‘ मनोबोधयतत, हृदयं तपययतत ’ कहा है ।
सुश्रुत में वर्णयत परुषकादद गण के द्रव्य ह्रद्य ही है ।
अम्लं हृदयनां (च.सू.२५/४०)।
83. परिभाषा
अनिमात्रं िुिः िुिश्च िवििमािं मूत्रं संग्रहणािीनि मूत्रसंग्रहणीयम् ।
जो द्रव्य बार बार एवं अनि मात्रा में निकलिे वाले मूत्र को रोके ।
जम््वाम्रप्लक्षविकिीििोडुमबराश्वत्थभल्लािकाशमंिकसोमवल्का इनि दशेमानि
मूत्रसंग्रहणीयानि भवष्ति । । (च.सू.४/३३)
105. पररभाषा
जो द्रव्य शरीर की थकािट को दूर करे ।
द्राक्षा-खजूनर-वियाल-िदर-दाड़िम-फल्गु-िरुषक-इक्षु-यि-षन्ष्टका इतत दशेमातन श्रमहराणण भिन्तत ।
(च.सू.४/४०)
109. परिभाषा
दाहं प्रशमयतीतत दाहप्रशमनम् ।(यो.)
जो द्रव्य बाह्य या आभयांतर दाह को शांत करे ।
सुश्रुत ने साररवादद, अंजनादद, न्यग्रोधादद, गुडूच्यादद और उत्पलादद गण को दाहनाशक
कहा ।
लाजा-चन्दन-काश्मययफल-मधूक-शकय रा-नीलोत्पल-उशीर-साररवा-गुडूची-ह्रीबेराणीतत दशेमातन
दाहप्रशमनातन भवन्न्त ।(च.सू.४/४१)
133. परिभाषा
प्रजोपघातकं दोषं हत्वा प्रजां स्थापयतीतत प्रजास्थापनम् । (च.द.)
जो द्रव्य संतान का प्रततबंध करने वाले दोषों व रोगों को दूर कर प्रजा या संतान उत्पतत
म सहायक हों ।
प्रजां गभय स्थापयतत दोषं तनरस्येतत प्रजास्थापनम् । (यो.र.)
ऐन्द्री-ब्राह्मी-शतवीयाय-सहस्रवीयाय-अमोघा-अव्यथा-शशवा-अररष्टा-वाट्यापुष्पी-पवष्वकसेनकान्ता
इतत दशेमातन अंगमदयप्रशमनातन भवन्न्त ।(च.सू.४/४९)