2. Introduction
आयुर्वेद में शरीर की सम्पूर्ण क्रियात्मकता क्रिगुर् , क्रिदोष
पंचमहाभूत ,सप्तधातु ,ओजस, अक्रि तथा स्रोतस पर
आधाररत है आयुर्वेद में स्रोत शब्द का अथण उन प्रार्क्रियो
से क्रिया जाता है क्रजनक
े द्वारा शरीर में र्वहन कमण होता है
3. Srotas
स्रोतस शब्द संस्क
ृ त धातु - "श्रु-गतौ" (श्रु + तक्रस = स्रोतस) से बना है
क्रजसका अथण है सोखना, छानना, बहना, ररसार्व करना, स्राक्रर्वत करना
आक्रद।
चरक ने इसे इस प्रकार पररभाक्रषत क्रकया है "श्रर्वर्ता स्रोतसमक्रस"
अथाणत र्वह संरचना क्रजसक
े माध्यम से श्रर्वर्म (स्रार्व/क्रर्वक्रनमय) होता
है।
चिपाक्रर् ने बताया है क्रक श्रर्वर्त् का अथण है रसाक्रद पोष्य धातु का
श्रर्वर्।
स्रोत शब्द का प्रयोग एक सामान्य शब्द क
े रूप में क्रकया जाता है जो
जीक्रर्वत जीर्व में सक्रिय सभी स्थूि और सूक्ष्म चैनिों और मागों को
दशाणता है।
4. सर्वे भार्वा पुरुषे नान्तरेर् स्रोतांस्यक्रभक्रनर्वणतणन्ते, क्षयं
र्वाऽप्यक्रभगच्छन्तन्त |स्रोतांक्रस खिु पररर्ाममापद्यमानानां
धातूनामक्रभर्वाहीक्रन भर्वन्त्ययनाथेन ||(Ch. Vi. 5/3)
पुरुषो में सभी भार्व क्रबना स्रोतों क
े उत्पन्न नहीं होते या न
शीर्ण होते हैं क्ोंक्रक स्रोत पररर्ाम प्राप्त धातुओं को
अन्यि िे जाने क
े क्रिए र्वहन करने र्वािे होते है
5. Srotas
"श्रोतोमयं क्रह शरीरम्" का अथण है क्रक जीक्रर्वत शरीर एक
चैनि प्रर्ािी है और/या स्थूि और सूक्ष्म, जैक्रर्वक और
ऊजाणर्वान क्रर्वक्रभन्न कायों क
े क्रिए आंतररक पररर्वहन
प्रर्ािी क
े रूप में क्रिजाइन क्रकए गए असंख्य चैनिों से
युक्त है।
6. क्रबसानाक्रमर्व सूक्ष्माक्रर् दू रं प्रक्रर्वसृताक्रन च ।
द्वाराक्रर् स्रोतसां देहे रसो यैरुपचीयते || (A.Hri. Sha. 3/46)
शरीर में स्रोतसो क
े मुख कमि नाि क
े सूक्ष्म क्रछद्रो की भांक्रत
दू र तक फ
ै िे हुए हैं क्रजनक
े द्वारा रस शरीर में पहुंचता है
(अ.हृ.शा.3/46)
7. Synonyms of Srotas
क्रसरा
धामनी
रसायनी
रसर्वाक्रहनी
नािी
पंथा (मागण)
स्थान (स्थि, क्रिकाना)
आशाएं
क्रनक
े ता
मागण
संर्वृत-असमर्वृत
शरीर क्रछद्र
स्रोतांक्रस, क्रसरााः, धमन्याः रसायन्याः रसर्वाक्रहन्याः,
नाइयाः,पन्थानाः, मागाणाः, शरीरन्तच्छद्राक्रर्,
संर्वृतासंर्वृताक्रन,स्थानाक्रन आशयााः, क्रनक
े ताश्चेक्रत
शरीरधात्वर्वकाशानांिक्ष्यािक्ष्यार्ां नामाक्रन भर्वन्तन्त |
(Ch. Vi.5/9)
ये पयाणयर्वाची शब्द स्त्रोतों क
े क्रर्वक्रभन्न कायाणत्मक
पहिुओं को संदक्रभणत करते हैं। स्थूि स्त्रोतों का नाम
उन क्रर्वक्रशष्ट पदाथों क
े नाम पर रखा गया है क्रजनमें र्वे
मौजूद हैं। इसक
े कई महत्वपूर्ण पयाणयर्वाची शब्दों क
े
क्रर्वश्लेषर् से पता चिता है क्रक स्रोतस शब्द का
उपयोग सामान्य शब्द क
े रूप में क्रकया जाता है जो
जीर्वन में काम करने र्वािे सभी स्थूि और सूक्ष्म चैनिों
और मागों को दशाणता है।
8. Classification of Srotas:
पुरुष में जितने मूजतिमंत भाव जवशेष हैं उतने
ही इस पुरुष में स्रोतों क
े प्रकार भेद हैं
कई जवद्वान सवित्र व्याप्त होने क
े कारण दोषों क
े
प्रकोप और शमन आहरो क
े सवि शरीर में गमन
करने क
े कारण स्रोतसो क
े समुदाय को ही
पुरुष मानते हैं।
जक
ं तु यह ऐसा नहीं है क्ोंजक जिससे यह स्रोतस
जनजमित हैं जिसे ये वहन करते हैं जिसका
आवाहन करते है और िहा ये स्थित हैं यह
पुरुष उन स्रोतों से जभन्न है
स्रोतों क
े बहुत अजिक होने से उन्हें असंख्य
मानते हैं और दू सरे क
ु छ आचायि संख्य मानते
हैं
यार्वन्ताः पुरुषे मूक्रतणमन्तो भार्वक्रर्वशेषास्तार्वन्त
एर्वान्तिन्स्स्रोतसां प्रकारक्रर्वशेषा: (Ch.Vi.5/3)
अक्रप चैक
े स्रोतसामेर्व समुदयं पुरुषक्रमच्छन्तन्त,
सर्वणगतत्वात्सर्वणसरत्वाच्च दोषप्रकोपर्प्रशमनानाम्
|न त्वेतदेर्वं यस्य क्रह स्रोतांक्रस यच्च र्वहन्तन्त,
यच्चार्वहन्तन्तयि चार्वन्तस्थताक्रन सर्वण तदन्यतेभ्याः
॥अक्रतबहुत्वात् खिु क
े क्रचदपररसङ्ख् ख्येयान्याचक्षते
स्रोतांक्रस,पररसङ्ख् ख्येयाक्रन पुनरन्ये ||(Ch.Vi.5/4,5)
11. Characteristics of Srotas:
1.Colour- Colour of Srotas is similar to that of
dhatu they carry.
2. Size- Anu (atomic in size or
microscopic),Sthula (Gross or macroscopic)
3.Shape- Vritta (circular)Deergha (long) eg.
Muscle fiber Pratana (reticulated)eg. Neuron
इन स्रोतों का वणि अपने अंदर बहने वाली िातु क
े
समान होता है कोई स्रोत गोल कोई मोटा कोई सूक्ष्म
होता है स्रोतस आक
ृ जत में लंबे और पत्र की रेखा क
े
समान होते हैं
स्वधातुसमर्वर्ाणक्रन
र्वृत्तस्थूिान्यर्ूक्रन चस्रोतांक्रस
दीर्ाणण्याक
ृ त्या
प्रतानसदृशाक्रन च ||(A.Hri.
Sha. 3/43)
12. Pranavaha strotas
ति प्रार्र्वहानां स्रोतसां हृदयं मूिं महास्रोतश्च, प्रदुष्टानां तु खल्वेषाक्रमदं क्रर्वशेषक्रर्वज्ञानंभर्वक्रताः
तद्यथा- अक्रतसृष्टमक्रतबद्धं क
ु क्रपतमल्पाल्पमभीक्ष्र्ं र्वासशब्दशूिमुच्छ्वसन्तं दृष्ट्वा
प्रार्र्वहान्यस्य स्रोतांक्रस प्रदुष्टानीक्रत क्रर्वद्यात्] (ChVi.5/7)
प्राणवह। स्रोतों का मूल हृदय और महास्रोतस है । इनक
े दुष्ट होने पर ये जवशेष लक्षण होते हैं
िैसे अजिक जनकलना अजिक बंिा हुआ , क
ु जपत ,िोडे िोडे , बार बार शब्द और शूल क
े साि
स्वास लेते हुए मनुष्य को देखकर इस मनुष्य क
े प्राणवह स्रोत दुष्ट हो गए हैं ऐसा समझे
13. उदकर्वह स्रोतस
उदकर्वहानां स्रोतसां तािुमूिं क्लोम च, प्रदुष्टानां तु
खल्वेषाक्रमदंक्रर्वशेषक्रर्वज्ञानं भर्वक्रताः तद्यथा- क्रजर्वाताल्वोष्ठकण्ठक्लोमशोषं
क्रपपासांचाक्रतप्रर्वृद्धां दृष्ट्वोदकर्वहान्यस्य स्रोतांक्रस प्रदुष्टानीक्रत क्रर्वद्यात्
॥(Ch.Vi.5/8)
उदकर्वह स्रोतों का मूि तािू और क्लोम हैं इसक
े दुष्ट होने पर क्रजह्वा तािू
ओस्ट क
ं ि और क्लोम नक्रिका का सूखना और क्रपपासा का अत्यंत बढा
हुआ होना
14. Annavaha Srotas
अन्नर्वहानां स्रोतसामामाशयो मूिं र्वामं च पार्श्ण प्रदुष्टानां
तुखल्वेषाक्रमदं क्रर्वशेषक्रर्वज्ञानं भर्वक्रत तद्यथा-
अनन्नाक्रभिषर्मरोचकक्रर्वपाको छक्रदण च दृष्ट्वाऽन्नर्वहान्यस्य
स्रोतांक्रसप्रदुष्टानीक्रत क्रर्वद्यात् | (Ch.Vi.5/8)
अन्नवह स्रोतस का मूल आमाशय और वामपार्श्ि हैं दुष्ट होने पर
अन्न खाने की इच्छा न होना अरुजच अन्न का ठीक से पाचन न
होना वमन का होना
15. Rasavaha Srotas
रसवहानां स्रोतसां हृदयं मूलं दश च िमन्यिः | (Ch. Vi.5 / 8 )
रसवह स्रोत का मूल हृदय और दस िमजनया हैं
रसवह स्रोतों क
े दुष्ट होने से तंद्रा अरुजच पांड
ू ज्वर मंदाजि
पाजलत्य मुख में सूखापन जिमचलाना
16. Raktavaha Srotasa
शोक्रर्तर्वहानां स्रोतसां यक
ृ न्मूिं प्लीहा च | (Ch.Vi. 5/8).
रक्तवह स्रोतों का मूल यक
ृ त और प्लीहा हैं
रक्तवह स्रोतों की दृजष्ट होने से क
ु ष्ठ जवसपि रक्तजपत्त कामला
रक्तप्रदर मुखपाक पामा जर्श्त्र आजद रोग होते हैं
17. Mansavaha Srotasa
मांसवहानां च स्रोतसां स्नायुमूिलं त्वक
् च (Ch.Vi.5/8)
मांसवह स्रोतों का मूल स्नायु और त्वचा हैं मांसवह स्रोतों
क
े दुष्ट होने से अरबुद गंडमाला अलिी गलशुंडी आजद
रोग होते हैं
18. Medovaha Srotas
मेदोवहानां स्रोतसां वृक्कौ मूलं वपावहनं च
(Ch.Vi.5/8)
मेदोवह स्रोतों का मूल वृक और वसा हैं
मेदोवह स्रोतों क
े दुष्ट होने से व्यस्क्त अजतथिुल या
अजतक
ृ ष होता है
19. Asthivaha Srotas
अस्थिवहानां स्रोतसां मेदो मूलं िघनं च |(Ch.Vi.5/8)
अस्थिवह स्रोतों का मूल मेद और िघन है
अस्थिवह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर अस्थि भेद अस्थिशूल
दंतभेद दंतशूल होते हैं
20. Majjavaha srotas
मज्जवहानां स्रोतसामथिीजन मूलं सन्धयश्च|
मज्जवह स्रोतों का मूल अस्थि और संजियां हैं
मज्जवह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर भ्रम मूछाि तमो दशिन आजद
होते हैं
21. Shukravaha Srotasa
शुक्रवहानां स्रोतसां वृषणौ मूलं शेफश्च|
(Ch.Vi.5/8)▸
मुत्रवह स्रोतों का मूल बस्ती और वंक्षण हैं
शुक्रवह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर क्लैब्य अहषिण आजद होते हैं
22. Pureeshavaha Srotas
पुरीषर्वहानां स्रोतसां पक्वाशयो मूिं स्थूिगुदं च प्रदुष्टानां तु
खल्वेषाक्रमदंक्रर्वशेषक्रर्वज्ञानं भर्वक्रताः तद्यथा- क
ृ च्छ
रेर्ोल्पाल्पं
सशब्दशूिमक्रतद्रर्वमक्रतग्रक्रथतमक्रतबहुचोपक्रर्वशन्तं दृष्ट्वा
पुरीषर्वहान्यस्य स्रोतांक्रस प्रदुष्टानीक्रतण क्रर्वद्यात्] (Ch.Vi.5/8)
पुरीषर्वह स्रोतों का मूि पकर्वाशय और स्थुिागुद हैं
पुरीषर्वह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर कक्रिनता से थोडा थोडा
शब्द और शूि क
े साथ अत्यंत पतिा गांिदार अत्यक्रधक
मि त्याग करता है
23. Mutravaha Srotasa (Urinary System)
मूत्रवहानां स्रोतसां बस्स्तमूिलं वङ्क्षणौच, प्रदुष्टानां तु खल्वेषाजमदंजवशेषजवज्ञानं भवजत तद्यिा-
अजतसृष्टमजतबद्धप्रक
ु जपतमल्पाल्पमभीक्ष्णं वा बहलं सशूलं मूत्रयन्तं दृष्ट्वामूत्रवहान्यस्य स्रोतांजस
प्रदुष्टानीजत जवद्यात् | (ch.vi 5/8)
मुत्रवह स्रोतों का मूल बस्ती और वंक्षण हैं
मुत्रवह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर मूत्र का अजिक होना रुक रुक कर आना जवक
ृ त मूत्र आना िोडा
िोडा गाडा मूत्र आना
24. Svedavaha Srotas
स्वेदवहानां स्रोतसां मेदो मूलं लोमक
ू पाश्च, प्रदुष्टानां तु
खल्वेषाजमदंजवशेषजवज्ञानं भवजत तद्यिा-
अस्वेदनमजतस्वेदनंपारुष्यमजतश्लक्ष्णतामङ्गस्य पररदाहं लोमहषं च
दृष्ट्वास्वेदवहान्यस्य स्रोतांजस प्रदुष्टानीजत जवद्यात् || (Ch.Vi.5/8)
स्वेदवह स्रोतों का मूल मेद तिा रोम क
ू प हैं
स्वेदवह स्रोतों क
े दुष्ट होने पर स्वेद का आना या न आना शरीर में अजिक कजठनता अजिक
जचकनापन त्वचा में दाह और रोमांच होता है
25. Srotodushti causes (Factors responsible
forvitiation of Srotas )
आहारश्च जवहारश्च यिः स्याद् घोषगुणैिः समिः |िातुजभजविगुणश्चाजप स्रोतसां से प्रदू षकिः|| (Ch.Vi.5/ 23
)
1- Diet and behavior having qualities similar to those of Dosha causesvitiation
of dosh.
2- Diet and behavior having qualities contradictory to Dhatu.
Vitiated Dosha causes vitiation of Dhatus and vice-versa.
When vitiated Doshas gets lodged in deformed Srotamsi produce the stage
ofSthansamshraya
26. Srotovaigunya (Srtucural and
functionalderangement of Srotas)
अजतप्रवृजत्तिः सङ्गो वा जसराणां ग्रन्थयोsजप वा |जवमागिगमनं चाजप स्रोतसां
दुजष्टलक्षणम्||(Ch.Vi.5/24)
There are four categories of pathological manifestation of SthulaSrotas viz.
1. 1- Atipravritti (hyperfunctiong or excessive flow)
2. 2- Sanga (hypofunctioning, reduced flow,obstruction)
3. 3- Sira-granthi (Glandular growth in blood vessels)
4. 4- Vimargagaman (flow other than its own channel)
27. Srotovaigunya (Srtucural and
functionalderangement of Srotas)
These four categories of pathology can be identified in differentsystems of
the body, both at gross as well as subtle level.
The Srotodushti is considered as the sheet of all pathologicalprocesses.
The range of above mentioned causative factors precipitate apathology
mediating through the phenomenon of Agni and Srotas.
Diarrhea, GER, Constipation, Vesicoureteral reflex, Reverseperistalsis,
Abnormal presentation, Udavarta, Intestinal obstruction,Ectopic Pregnancy,
VSD, Patent ductus arteriosus
28. Srotovaigunya (Srtucural and
functionalderangement of Srotas)
Arundutta has illustrated the phenomenon ofAtipravritti with the example of-
Mutravaha Srotas, an excessive flow of urine -bahumutrata-as in
pramehaPurishvaha Srotas, excessive flow of feces in atisaraSanga as found-
in Mutrakrichra (less flow or retention of urine)- in Udavarta (retention of
feces)or voiding of small quantities of feces at frequent interval.
29. Conclusion:
The description of Srotas refers to a range of structures, functions and
concepts in differentcontext. Srotas could not be expressed by any single
structure or entity as it is a Physio-anatomical term referring from extreme
gross to most subtle entity in living body as
to whole body as a single complex Srotas.
each gross physiological system such as gastrointestinal system.
Major tracts in bodyas one Srotas a single tubular structure like nephron,
each single cell of the body or sub-cellular structures & membrane
the receptor mechanism and networks,pathways carrying emotions and
Chetna.
30. Conclusion:
Srotamsi represent the inner transport system of the body in addition to that
ofCirculatory System. Srotamsi indicate all macro, micro level descriptions
pertaining toexchange, transportation, excretion.
Srotamsi include all range of structural and functional units from gross to
subtlestdesigned to carry specific material, molecules, messages, impulses,
emotions andthoughts.
31. Conclusion:
Sthula srotas along with their Mulam have been described for the purpose
ofthe study of pathology and clinical medicine.The transport of biological
entities, physiological regulatory factors,nourishment of tissues, and
bioavailability of medicaments depends on theintegrity of Srotamsi.
Understanding the concept of Srotamsi and Srotovaigunya facilitates
theVaidya to take decisions accurately with respect to treatment and
prognosis.