More Related Content
Similar to Rajaswalaa paricharyaa
Similar to Rajaswalaa paricharyaa (20)
More from Aaptashri Ayurved & Panchakarma Clinic,Pune
More from Aaptashri Ayurved & Panchakarma Clinic,Pune (20)
Rajaswalaa paricharyaa
- 7. भावप्रकाश संहिता
िूवतखण्ड
(गभतप्रकरण)
अष्टाङग हृदय
शारीरस्थान १/२४-२५
(गभातवक्रास्त्न्तशारीर)
सुश्रुत संहिता
शारीरस्थान २/२५-२७
(शुक्रशोणणतशुपिशारी
रं)
चरक संहिता
शारीरस्थान ८/५
(जाततसूत्रीयशारीरा
र्धयाय)
ब्रह्मचर्यपालन ब्रह्मचर्यपालन ब्रह्मचर्यपालन ब्रह्मचर्यपालन
शर्ीत दर्यशय्र्ा दर्यसंस्तरशायर्नी अधःशार्ीयन
स्नान वर्जर्य स्नान वर्यर्ेत स्नान वर्जर्य
पश्र्ेदपप पयतं न च
करे शरावे पर्णे वा
हपवष्र्ं त्र्र्हमाहरेत।
पर्णे शरावे हस्ते
वा र्ुञ्र्ीत।
पाणर्णभ्र्ामन्नर्र्यर
पात्राद र्ुञ्र्ान
अश्रुपात रोदन वर्जर्य
नखच्छेद नख कतयन वर्जर्य न काञ्ञ्चन्मृर्ाम
आपद्र्ते।
अभ्र्ङ्ग अभ्र्ङ्ग वर्जर्य
अनुलेप अलङ्काररहहत चंदनाहद लेप वर्जर्य
के शप्रसाधन वर्जर्य
अञ्र्न अञ्र्न वर्जर्य
- 8. भावप्रकाश संहिता
िूवतखण्ड (गभतप्रकरण)
अष्टाङग हृदय
शारीरस्थान १/२४-२५
(गभातवक्रास्त्न्तशारीर)
सुश्रुत संहिता
शारीरस्थान २/२५-२७
(शुक्रशोणणतशुपिशारीरं)
चरक संहिता
शारीरस्थान ८/५
(जाततसूत्रीयशारीरार्धया
य)
हदवास्वाप हदवास्वाप वर्जर्य
प्रधावन धावन वर्जर्य
अत्र्ुच्चशब्दश्रवर्ण अयतशब्दश्रवर्ण वर्जर्य
हसनं हसन वर्जर्य
बहुर्ाषर्ण बहुर्ाषर्ण वर्जर्य
आर्ास आर्ास वर्जर्य
र्ूममखनन
प्रवात वर्यर्ेत वात सेवन वर्जर्य
क्षैरेर्ं र्ावकं स्तोकं
कोष्ठशोधन
कषयर्णम।
अहहंसा कल्र्ार्णध्र्ायर्नी
- 9. भावप्रकाश (भा.प्र.िू.गभतप्रकरण) सुश्रुत (शा.२ शुक्रशोणणतशुपिशारीरं)
रडल्र्ाने - नेत्र पवकृ यत हदवास्वाप - यनद्रालु
नख कापल्र्ाने - खराब नख वाला अञ्र्न लावल्र्ाने - आंधळा
तेल लावल्र्ाने - कु ष्ठ असलेला मशशु रडल्र्ाने - नेत्र पवकृ यत
लेप आणर्ण स्नान के ल्र्ाने - सदा दुःखी
असलेला
स्नान, अनुलेपन - दुःखशील ( चचडखोर)
अञ्र्न लावल्र्ाने - आंधळा तेल लावल्र्ाने - कु ष्ठी ( त्वचा रोग)
हदवास्वाप ने - यनद्रालु नख कापल्र्ाने – कु नखी
पळाल्र्ाने - चल स्वर्ावाचा पळाल्र्ाने - चल स्वर्ावाचा
मोठा आवार् ऐकल्र्ाने - बहहरा र्ास्त बोलल्र्ाने - बडबडा
हसल्र्ाने - ञ्र्व्हा, तालु, दंत,
ओष्ठ, श्र्ाव वर्णायचे होतात.
अयतशब्द ऐकल्र्ाने - बचधर
- 10. भावप्रकाश (भा.प्र.िू.गभतप्रकरण) सुश्रुत (शा.२ शुक्रशोणणतशुपिशारीरं)
र्ास्त बोलल्र्ाने - बडबडा अवलेखन - खामलत्र्
पररश्रम के ल्र्ाने - वेडा, उन्मादी वार्ुसेवन, पररश्रम - उन्मत्त
माती उकरल्र्ाने - लंगडत चालता
चालता पडर्णारा
वार्र्ाच्र्ा हठकार्णी बसल्र्ाने -
गर्यस्थ मशशु उन्मादी होतो.
- 12. आर्ुः क्षर्र्र्ाद्भताय प्रथमे हदवसे ञ्स्त्रर्म ॥१३॥
द्पवतीर्ऽपप हदने रत्र्ै त्र्र्ेदृतुमतीं तथा ।
तत्र र्श्चहहतो गर्ो र्ार्मानो न र्ीवयत ॥१४॥
अहहतो र्स्तृयतर्ेऽञ्ह्न स्वल्पार्ुपवयकलाङ्गकः ।
प्रथमेऽहयन चाण्डाली द्पवतीर्े ब्रह्मघायतनी ।
तृतीर्े रर्की पुंसां र्था वर्जर्ाय तथाङ्गना ॥२४॥