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जावरी मंदिर
क
ं दरिया महादेव मंददि क
े बाद बनने वाले जवारी मंदिर में दिल्प की
उत्क
ृ ष्टता है। यह मंददि ३९' लंबा औि २१' चौडा, यह दनंधािप्रासाद,
अर्द्धमंडप, मंडप, अंतिाल औि गर्धगृह से युक्त है। वास्तु औि दिल्प क
े
आधाि पि इस मंददि का दनमाधणकाल आददनाथ तथा चतुर्ुधज मंददि ं क
े मध्य
(९५०- ९७५ ई.) दनधाधरित दकया जा सकता है। इसका अलंक
ृ त मकित िण
औि पतला तथा उसुंग मन िम दिखि इसक वास्तु ित्न बनाया है। इसकी
सामान्य य जना तथा िचना िैली दू सिे मंददि ं से इसक अलग किती है।
इसक
े अदतरिक्त द दवलक्षण वास्तु दविेषताओं क
े कािण यह खजुिाह समूह
क
े मंददि ं में अपना दवदिष्ट स्थान िखता है। गृर्गृह मे र्गवान दवष्णु की
खण्डित प्रदतमा हैं।
दविेषता
•इस मंददि की जंघा की उष्णीयसज्जा में क
ू ट- छाद्य िीषधयुक्त
र्िदणय ं औि कप त ं का प्रय ग हुआ है, ज गुजिात क
े
मध्यकालीन मंददि ं का एक दवदिष्ट लक्षण है।
•जंघा की दनचली पंण्डक्त की देव- प्रदतमाएँ , ऐसी िदथकाओं में
दविाजमान है, दजनक
े वृताकाि अर्द्धस्तंर् ं क
े दकिीट ं पि हीिक है
औि त िण मेहिाब ं से अच्छाददत है। इस मंददि की सुि- सुंदरिय ं
का क
े ि दवन्यास धण्डिल प्रकाि का नहीं है औि उनमें से अदधकांि
द लड ंवाली मेखलाएँ पहने हैं। इसक
े दिखि की गवाक्षनुमा चैत्य
मेहिाबें र्ािी तथा पेदचदा है। अंत में इसक
े द्वाि की देहली पि
दनदमधत सरितदेदवयाँ गंगा- यमुना नृत्य मुद्रा में प्रतीत ह ती हैं।
गर्ध गृह
मंददि क
े गर्धगृह में दवष्णु एक पद्यपीठ पि समर्ंग खडे
हैं। उनका मस्तक तथा चाि ं हाथ खंदडत हैं। वे सामान्य
खजुिाह अलंकाि ं से अलंक
ृ त है। उनकी प्रर्ाववली क
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ऊपि ब्रह्मा, दवष्णु औि दिव की छ टी- छ टी प्रदतमाएँ
अंदकत की गई है। छत क
े उद्गम ं की िदथकाएँ प्रदतमा
दवहीन है। पार्श्ध िदथकाओं पि युग्म प्रदतमाएँ एवं नािी
प्रदतमाएँ हैं। उत्तिी मंडप क
े उद्गम पि दिव- पावधती
प्रदतमा, अनेक देव तथा गणेि इस िदथका क
े मुत्तािंकण
का र्ाग है। गर्धगृह की छत की िदथका का पूवीचंद्र देव
युग्म, एक नािी तथा युग्म प्रदतमाओं का अलंकिण दकया
गया है। चतुर्ुधज देवी क
ु बेि पत्नी क
े रूप में अंदकत है।
जाविी मंददि
REFRENCE
THANK YOU

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जावरी मंदिर [HINDI]

  • 2. क ं दरिया महादेव मंददि क े बाद बनने वाले जवारी मंदिर में दिल्प की उत्क ृ ष्टता है। यह मंददि ३९' लंबा औि २१' चौडा, यह दनंधािप्रासाद, अर्द्धमंडप, मंडप, अंतिाल औि गर्धगृह से युक्त है। वास्तु औि दिल्प क े आधाि पि इस मंददि का दनमाधणकाल आददनाथ तथा चतुर्ुधज मंददि ं क े मध्य (९५०- ९७५ ई.) दनधाधरित दकया जा सकता है। इसका अलंक ृ त मकित िण औि पतला तथा उसुंग मन िम दिखि इसक वास्तु ित्न बनाया है। इसकी सामान्य य जना तथा िचना िैली दू सिे मंददि ं से इसक अलग किती है। इसक े अदतरिक्त द दवलक्षण वास्तु दविेषताओं क े कािण यह खजुिाह समूह क े मंददि ं में अपना दवदिष्ट स्थान िखता है। गृर्गृह मे र्गवान दवष्णु की खण्डित प्रदतमा हैं।
  • 3. दविेषता •इस मंददि की जंघा की उष्णीयसज्जा में क ू ट- छाद्य िीषधयुक्त र्िदणय ं औि कप त ं का प्रय ग हुआ है, ज गुजिात क े मध्यकालीन मंददि ं का एक दवदिष्ट लक्षण है। •जंघा की दनचली पंण्डक्त की देव- प्रदतमाएँ , ऐसी िदथकाओं में दविाजमान है, दजनक े वृताकाि अर्द्धस्तंर् ं क े दकिीट ं पि हीिक है औि त िण मेहिाब ं से अच्छाददत है। इस मंददि की सुि- सुंदरिय ं का क े ि दवन्यास धण्डिल प्रकाि का नहीं है औि उनमें से अदधकांि द लड ंवाली मेखलाएँ पहने हैं। इसक े दिखि की गवाक्षनुमा चैत्य मेहिाबें र्ािी तथा पेदचदा है। अंत में इसक े द्वाि की देहली पि दनदमधत सरितदेदवयाँ गंगा- यमुना नृत्य मुद्रा में प्रतीत ह ती हैं।
  • 4. गर्ध गृह मंददि क े गर्धगृह में दवष्णु एक पद्यपीठ पि समर्ंग खडे हैं। उनका मस्तक तथा चाि ं हाथ खंदडत हैं। वे सामान्य खजुिाह अलंकाि ं से अलंक ृ त है। उनकी प्रर्ाववली क े ऊपि ब्रह्मा, दवष्णु औि दिव की छ टी- छ टी प्रदतमाएँ अंदकत की गई है। छत क े उद्गम ं की िदथकाएँ प्रदतमा दवहीन है। पार्श्ध िदथकाओं पि युग्म प्रदतमाएँ एवं नािी प्रदतमाएँ हैं। उत्तिी मंडप क े उद्गम पि दिव- पावधती प्रदतमा, अनेक देव तथा गणेि इस िदथका क े मुत्तािंकण का र्ाग है। गर्धगृह की छत की िदथका का पूवीचंद्र देव युग्म, एक नािी तथा युग्म प्रदतमाओं का अलंकिण दकया गया है। चतुर्ुधज देवी क ु बेि पत्नी क े रूप में अंदकत है।
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