प्रस्तावना
जीवन परिचय - व्यक्तिगत
जीवन परिचय - पारिवारिक
कथा
विश्वामित्र का अंहकार
देवताओं का विरोध
राजा का स्वप्न
राज्य का दान
दक्षिणा का प्रबंध
स्वर्ण मुद्रा का खोना
राजा, रानी और पुत्र का बिकना
यक्ष का आना
प्रेरणा और सीख
2. प्रस्तािना
प्रकृ ति के अन्य प्राणियों की िुलना में मनुष्य में चेिना-शक्ति
की प्रबलिा होिी ही हैI
वह अपने ही नहीीं औरों के हहिाहहि का भी खयाल रखने में,औरों
के ललए भी कु छ कर सकने में समर्थ होिा हैIपशु चरागाह में
जािे हैं, अपने-अपने हहस्से का चर आिे है, पर मनुष्य ऐसा नहीीं
करिाI वह जो कमािा है,जो भी कु छ उत्पाहिि करिा है, वह औरों
के ललए भी करिा है, औरों के सहयोग से करिा हैI
भारि के एतिहास मे भी कु छ ऐसा महान पुरुष हुए है ,जैसे
रींतििेव, िधीचच, उशीनर क्षििीश, किथ, महात्मा बुद्ध,
ववक्रमाहित्य क्जन्होंने लसर्थ अपने बारे में नहीीं अवपिु औरों के
ललए ज्यािा सोचाI ऐसे ही महान पुरूष र्े क्जनका नाम र्ा राजा
हरिश्चंद्र I पेश है उनकी कहानी-
3. िाजा हरिश्चंद्र का जन्म श्री िाम के िंश (इक्ष्िाकु िंश ) ि सूयाा महवषा गोथिाम के
घि पि हुआ I
हिीशचंद्र इक्ष्िाकु िंश के 36 िें िाजा थे साथ ही एक पिाक्रमी िाजा भी I
ये अपनी सत्यननष्ठा के लिए अद्वितीय हैं औि इसके लिए इन्हें अनेक कष्ट
सहने पडे।
उनकी कीनता दूि-दूि तक फै िी हुई थी। उनके पुिोहहत महवषा िलशष्ठ थे, उनका
इंद्र की सभा में आना-जाना था।
देि-दानि सभी उनकी सत्यननष्ठा के प्रशंसक थे। प्रजा उनके शासनकाि में हि
तिह से संतुष्ट िहती थी।
उनके िाज्य में न तो ककसी
की अकाि मृत्यु होती थी औि न ही दुलभाक्ष पडता था।
जब भी कोई महिाज की प्रशंसा किता तो िे उसे कहते
‘यह मेिे गुरुदेि महवषा िलशष्ठ की कृ पा का फि हैं।’
ऐसा िे मात्र कहते नहीं थे, गुरु चिणों में उनकी
अत्यधिक श्रद्िा थी।
4. हरिश्चंद्र बहुि हिनों िक पुत्रहीन रहे पर अींि में अपने
कु लगुरु वलशष्ठ के उपिेश से इन्होंने वरुििेव की उपासना की
िो इस शिथ पर पुत्र जन्मा कक उसे हरिश्चंद्र यज्ञ में बलल िे िें।
पुत्र का नाम रोहहि रखा गया और जब राजा ने वरुि के कई
बार आने पर भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी न की िो उन्होंने हररश्चींद्र
को जलोिर रोग होने का शाप िे हिया।
राजा हररश्चन्द्र िर्ा उनकी पत्नी और बेटे
का बबककर अलग होना (राजा रवव वमाथ
द्वारा चचबत्रि)
इनकी पत्नी का नाम िारा र्ाI
राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के मागथ
पर चलने के ललये अपनी पत्नी
और पुत्र के सार् खुि को बेच
हिया र्ा। कहा जािा है- “चन्द्र
टरै सूरज टरै, टरै जगि
व्यवहार,पै दृढ श्री हररश्चन्द्र का
टरै न सत्य ववचार।”
5. कर्ा
ववश्वालमत्र का अींहकार
एक हिन इींद्र की सभा में ववश्वालमत्र और वलशष्ठ के अलावा िेवगि, गींधवथ, और
वपिर और यि आहि बैठे हुए चचाथ कर रहे र्े कक इस धरिी पर सबसे बडा िानी,
धमाथत्मा और सत्यवािी कौन है ?
महवषथ वलशष्ठ ने कहा, ‘‘सींसार में ऐसे पुरुष एक मात्र मेरे लशष्य हरिश्चंद्र हैं।
हरिश्चंद्र जैसा सत्यवािी, िािा, प्रजावत्सल, प्रिापी, धमथतनष्ठ राजा न िो पृथ्वी पर
पहले कभी हुआ है और न ही कभी होगा।’’
जब ककसी के प्रति वैमनस्य की भावना हो, िो िूसरे की छोटी-से-छोटी बाि वविेप
का कारि हो जािी है। इसललए ववश्वालमत्र क्रोचधि हो उठे, ‘‘एक पुरोहहि की दृक्ष्ट
में उसके यजमान में ही समस्ि गुिों का तनवास होिा है। मैं जानिा हूूँ राजा
हरिश्चंद्र को। मैं स्वयीं उनकी परीिा लूूँगा। इससे वलशष्ठ के यजमान की पोल
अपने आप खुल जाएगी।’’
महवषथ वलशष्ठ के ललए ववश्वालमत्र के कहे गए वचन िेविाओीं
को अच्छे लगे। इनमें उन्हें ववश्वालमत्र के अींहकार की स्पष्ट
गींध आ रही र्ी। वे सोच रहे र्े कक ऋवष भी अगर ऐसी
भाषा का प्रयोग करेंगे िो सामान्य व्यक्ति का तया होगा ?
6. देिताओं का वििोि
िेवराज जानिे र्े कक िो ऋवषयों के बीच हुए वववाि में र्ूँ सने से कोई
लाभ होने वाला नहीीं है। वे िोनों महवषथयों के स्वभाव से भली-भाूँति
पररचचि र्े। इींद्र भली-भाूँति जानिे र्े कक ववश्वालमत्र के मन में तयों
वलशष्ठ के प्रति ईष्याथ का भाव है। महवषथ वलशष्ठ ने अत्यींि शाींि और
गींभीर वािी में ववश्वालमत्र से कहा, ‘‘आप ठीक कहिे है ! परीिा ही
व्यक्ति को दृढ़ बनािी है। पररिा से ककसी को अपनी योग्यिा का ज्ञान
होिा है। वैसे िो प्रत्येक स्वयीं को लोगों के बीच यही लसद्ध करिा है
कक वही योग्य है बस !’’
महवषथ के इन वातयों का ववश्वालमत्र पर ववपरीि प्रभाव पडा। उन्हें लगा,
मानो सब कु छ उन्हीीं को के न्द्र में रखकर कहा गया है। महवषथ वलशष्ठ
ने आगे कहा, ‘‘आप स्वयीं परीिा लीक्जए ! सत्य सामने आ जाएगा।’’
अब ववश्वालमत्र की सहनशीलिा समाप्ि हो गई र्ी। वे वहाूँ से उठकर
चल हिए।
7. ऋवष ववश्वालमत्र ने राजा
हररश्चींद्र की परीिा लेने का
तनश्चय ककया। उसी राि राजा
हररश्चींद्र ने एक सपना िेखा।
सपने में उन्होंने िेखा, ऋवष
ववश्वालमत्र को राजा ने अपना
पूरा राज-पाट िान में िे हिया
है।
8. आूँख खुलने पर राजा ने सोचा, अगर सपने में भी उन्होंने अपना
साम्राज्य मुतन ववश्वालमत्र को िान में िे हिया, िब अपने
साम्राज्य पर उनका कोई अचधकार नहीीं रह गया है। प्रािःकाल
ववश्वालमत्र साधु के वेष में राजा के महल में पहु ींचे। राजा हररश्चींद्र
ने उन्हें प्रिाम कर पूछा-
”मेरे ललए तया आज्ञा है मुतनवर?“
”जो माूँगूूँगा िे सकोगे राजन ्?“ मुस्कराकर ऋवष ने पूछा-
”मेरा सब कु छ आपका ही है ऋवषवर। बिाइए तया सेवा करूूँ ?
राजा हररश्चींद्र ऋवष ववश्वालमत्र को पहचान गए र्े।“
”मुझे िुम्हारा पूरा राज्य, धन-सींपवि और खजाना चाहहए।“
”यह सब िो पहले ही आपको िे चुका हूूँ एऋवषवर।“ मुस्करा कर
राजा ने कहा।
9. ”वह कै से राजन ्?“ ऋवष ववश्वालमत्र आश्चयथ में पड गए।
”आज राि सपने में ही अपना पूरा राज-पाट, धन-सींपवि
आपको िे चुका हूूँ, मुतनवर।
अब मेरा सब कु छ आपका है।“
”मुझे खुशी है, िुम अपने वचन के पतके
हो राजन ्। चलो, िुम्हारा साम्राज्य अब
मेरा हुआ। अब बिाओ िक्षििा में िुम
तया िोगे?“ ऋवष उनकी पूरी परीिा
ले रहे र्े।राजा सोच में पड गए।
वह जानिे र्े िक्षििाके बबना िान पूरा
नहीीं होिा।
10. दक्षक्षणा का प्रबंि
राजा िक्षििा एक माह में लौटाना
का वचन िेिे हैंI इस कारिवश
उनके पुरे पररवार को बहुि
कहठन पररक्स्र्ति का सामना
करना पडिा हैI उन्हें काम की
बहुि जरूरि होिी हैI
भाग्यवश उन्हें काम लमल जािा
हैIतनरींिर काम कर के वे ककसी
हालि में िक्षििा चुकाने योग्य
रकम जुटा लेिे हैंI
11. िक्षििा की रकम पूरी होने के बाि
रानी ने ववश्वालमत्र को िक्षििा
लौटाने का र्ै सला ककयाI उससे पहले
वे काशी जाना चाहिी र्ीI, िभी
ववश्वालमत्र ने उनकी एक और
पररिा लेनी चाहहI िीनों नाव से निी
पार कर रहे र्े िभी अचानक सोने
की मुद्रा निी में चगर गईIहररश्चींद्र
बहुि परेशान हो गएIउन्होने खोजने
का बहुि प्रयास ककया,ककीं िु मुद्रा न
लमल पाईI ववश्वालमत्र ने मुद्रा की
माूँग की, कारिवश हररश्चींद्र और
परेशान हो गएI
12. काशी में राजा हररश्चन्द्र ने कई
स्र्लों पर स्वयीं को बेचने का
प्रयत्न ककया पर सर्लिा न लमली.
सायींकाल िक राजा को शमशान
घाट के माललक डोम ने ख़रीिाI
राजा अपनी रानी व पुत्र से अलग
हो गयेI रानी िारामिी को
एक साहूकार के यहाूँ घरेलु काम –
काज करने को लमला और राजा को
मरघट की रखवाली का कामI इस
प्रकार राजा ने प्राप्ि धन से
ववश्वालमत्र की िक्षििा चुका िीI
राजा हररश्चन्द्र िर्ा उनकी पत्नी और बेटे
का बबककर अलग होना (राजा रवव वमाथ
द्वारा चचबत्रि)
13. िारामिी जो पहले महारानी र्ी,
क्जसके पास सैकडो िास – िालसयाूँ
र्ी, अब बिथन माजने और चौका
लगाने का कम करने लगीI स्विथ
लसींहासन पर बैठने वाले राजा
हररश्चन्द्र शमशान पर पहरा िेने
लगेI जो लोग शव जलाने मरघट पर
आिे र्े, उनसे कर वसूलने का कायथ
राजा को हिया गयाI अपने माललक
की डाींट – र्टकार सहिे हुए भी
तनयम व ईमानिारी से अपना कायथ
करिे रहेI उन्होंने अपने कायथ में
कभी भी कोई त्रुटी नहीीं होने िी |
14. समय बबििा गया और राजा के तनरींिर
प्रयासों के कारि उनका कर भी कम
होने लगा। एक और पररिा लेने के
ललए ववश्वालमत्र ने यि को भेजाI
राजा की उिारिा िेखकर यि प्रसन्न
होिे हैं और राजा को बतश िेिे हैंI
िभी इींद्र की राजसभा मे ववश्वालमत्र से
ये अनुरोध ककया जािा है कक वे
हररश्चींद्र को मार् कर िेI पर ववश्वालमत्र
यह कहिे है कक उनकी आखरी लशिा
अभी बाकी हैI
15. एक बार हररश्चींद्र का पुत्र और उनकी पत्नी कु एीं के पास काम कर
रहे होिे हैI िभी अचानक कोई साूँप राजकु मार को काट लेिा है
और उनकी मृत्यु हो जािी हैI हररश्चींद्र और पत्नी शोकाकु ल हो
जािे हैंI उनके शोक को िेख कर ववश्वालमत्र भी अपने आप को
रोक नहीीं पािे I वह उनके पुत्र को िोबारा जीववि कर िेिे हैI
ववश्वालमत्र ने राजा हररश्चींद्र के पास जाकर कहा-
“िुम्हारी परीिा पूरी हुई राजन्। िुम परीिा में खरे उिरे। वचन-
पालन, िान और सच्चाई के ललए िुम्हारा नाम हमेशा आिर के
सार् ललया जािा रहेगा। मैं िुम्हें िुम्हारा पूरा साम्राज्य वापस
लौटािा हूूँ।“
16. ”नहीीं मुतनवर, हिया हुआ िान वापस लेना अधमथ है। अब इस
साम्राज्य पर मेरा कोई अचधकार नहीीं है।“ हार् जोडकर राजा ने
अपना राज्य वापस लेना अस्वीकार कर हिया।
”मैं ऋवष होकर इस साम्राज्य का तया करूूँ गा, राजन्। िुम राजा की
िरह शेष जीवन बबिाओ।“
”यह असींभव है ऋवषवर। अब मैं राज-पाट त्याग कर, भगवान की
सेवा करूूँ गा।“
बहुि कहने पर भी राजा हररश्चींद्र
ने अपना साम्राज्य वापस नहीीं
ललया। अींि में राजकु मार रोहहि
को युवराज बनाया गया। राजा
हररश्चींद्र ने रानी के सार्
वानप्रस्र् ग्रहि कर ललया।
राजा हररश्चींद्र का त्याग और
वचन-पालन,आिशथ है। वचन-पालन
और त्याग के ललए राजा हररश्चींद्र
को आज भी याि ककया जािा है।
17. राजा जो पुरे राज्य को चलािा है उसे भरे बाजार में अपने-
आप को बेचना पडिा है वह भी के वल एक चीज के ललए
- मनुष्यिाI ये लसर्थ एक महान व्यक्ति ही कर सकिा जो
अपने-आप से ज्यािा महत्व िूसरों को िेिा है, जो िूसरों
के ललए खुि पीडा सेहन करने के ललए िैयार हैI जो लसर्थ
एक ही व्यक्ति कर सकिा है-राजा हररश्चींद्रI राजा हररश्चींद्र
का जीवन लसर्थ एक ही चीज लसखािा है और वह है
परोपकार I कभी भी कालमयाबी का पीछा नही करना
चाहहए, लसर्थ काबबल बनने की कोलशश करनी चाहहएI
कहानी हमें यह लसखािा है कक मनुष्य को कभी घमींड नहीीं
करना चाहहए चाहे ककिनी ही सर्लिा प्राप्ि कर लेI