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हन्दी
भ वष्य गौड़ - कक्षा 8-एच
रहीम का जीवन
◻ रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुरर्थहीम)
ख़ानख़ाना था। आपका जन्म 17 दसम्बर 1556 को
लाहौर (अब पा कस्तान) में हुआ। रहीम के पता का
नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था,
जो एक क व यत्री थी। उनके पता बैरम ख़ाँ मुगल
बादशाह अकबर के संरक्षक थे। कहा जाता है क रहीम
का नामकरण अकबर ने ही कया था।
◻ रहीम को वीरता, राजनी त, राज्य-संचालन, दानशीलता
तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता- पता से
वरासत में मले थे। बचपन से ही रहीम सा हत्य प्रेमी
और बुद् धमान थे।
रहीम के पता की मृत्यु
उनके पता बैरम खान बादशाह अकबर  के बेहद करीबी थे।
उन्होने अपनी कु शल नी त से अकबर के राज्य को मजबूत बनाने
में पूरा सहयोग दया। कसी कारणवश बैरम खाँ और अकबर के
बीच मतभेद हो गया। अकबर ने बैरम खाँ के वद्रोह को
सफलतापूवर्थक दबा दया और अपने उस्ताद की मान एवं लाज
रखते हुए उसे हज पर जाने की इच्छा जताई। प रणामस्वरुप
बैरम खाँ हज के लए रवाना हो गये।
रहीम के पता की मृत्यु और कब्र 
बैरम खाँ की पत्नी सुल्ताना बेगम अपने कु छ सेवकों
स हत बचकर अहमदाबाद आ गई। अकबर को
घटना के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने
सुल्ताना बेगम को दरबार वापस आने का संदेश भेज
दया। रास्ते में संदेश पाकर बेगम अकबर के दरबार
में आ गई।ऐसे समय में अकबर ने अपने महानता
का सबूत देते हुए इनको बड़ी उदारता से शरण दया
और रहीम के लए कहा “इसे सब प्रकार से खुश रखो
। इसे यह पता न चले क इनके पता खान खानाँ का
साया सर से उठ गया है। 
शक्षा- दीक्षा
रहीम की शक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धमर्थ- नरपेक्ष नी त के अनुकू ल हुई। मुल्ला मुहम्मद
अमीन रहीम के शक्षक थे। इन्होने रहीम को तुकर्की, अरबी व फारसी भाषा की शक्षा व ज्ञान
दया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, क वता, ग णत, तकर्थ शास्त्र तथा फारसी व्याकरण का
ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृ त के शक्षक थे। इसी शक्षा- दक्षा के कारण
रहीम का काव्य आज भी हंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है।
सम्राट अकबर के दरबार मे
अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अजर्थ का पद था। यह पद
पाकर कोई भी व्यिक्त रातों रात अमीर हो जाता था, क्यों क यह पद ऐसा
था, िजससे पहुँचकर ही जनता की फ रयाद सम्राट तक पहुँचती थी और
सम्राट के द्वारा लए गए फै सले भी इसी पद के ज रये जनता तक
पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दनों में नए लोगों को नयुक्त
कया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम-काज सुचारु रुप से
चलाने के लए अपने सच्चे तथा वश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्त कल
मीर अजर्थ नयुक्त कया। यह नणर्थय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया
था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था क वह व्यिक्त जनता एवं
सम्राट दोनों में सामान्य रुप से वश्वसनीय है।
सम्राट अकबर के दरबार मे
28 वषर्थ की उम्र में अकबर ने रहीम को खानाखाना की उपा ध से नवाज़ा
था। इससे पहले यह सम्मान के वल उनके पता बैरम खान को प्राप्त हुआ
था। उन्होंने बाबर की आत्मकथा का तुकर्की से फारसी में अनुवाद कया था।
उन्हें अकबर के नवरत्नों में शा मल कया गया था। वे एक अच्छे
सेनाप त भी थे। इसके साथ रहीम बादशाह अकबर के पुत्र सलीम का
अतालीक (गुरु) रहे थे।
रहीम की शादी
रहीम दास का ववाह मात्र 16 वषर्थ
की वायु में जीजा कोका की बहन
माहबानों से हुवा था। माहबानो से
अब्दुल रहीम को दो बे टयां और तीन
बेटे थे। इसके बाद रहीम ने दो और
ववाह कये थे।
रहीम की मृत्यु और कब्र 
1626 ई. में 70 वषर्थ की अवस्था में इनकी
मृत्यु हो गयी। दल्ली में िस्थत ख़ान ए
ख़ाना के नाम से प्र सद्ध यह मक़बरा
अब्दुरर्थहीम ख़ानख़ाना का है। इस मक़बरे
का नमार्थण रहीम के द्वारा अपनी बेगम की
याद में करवाया गया था, िजनकी मृत्यु
1598 ई. में हो गयी थी। बाद में खुद रहीम
को 1627 ई. में उनके मृत्यु के बाद इसी
मक़बरे में दफनाया गया।
एक नज़र रहीम के ग्रंथो पर
◻ रहीम के ग्रंथो में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, मदनाष्ठ्क, राग
पंचाध्यायी, नगर शोभा, ना यका भेद, श्रृंगार, सोरठा, फु टकर बरवै,
फु टकर छंद तथा पद, फु टकर क वतव, सवैये, संस्कृ त काव्य प्र सद्ध
हैं।
◻ रहीम ने तुकर्की भाषा में लखी बाबर की आत्मकथा “तुजके बाबरी” का
फारसी में अनुवाद कया। “मआ सरे रहीमी” और “आइने अकबरी” में
इन्होंने “खानखाना” व रहीम नाम से क वता की है।*-
रहीम के दोहे
◻ बगरी बात बने नहीं, लाख करो कन कोय.
र हमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय.
◻ अथर्थ: मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चा हए,क्यों क कसी
कारणवश य द बात बगड़ जाती है तो फर उसे बनाना क ठन होता
है, जैसे य द एकबार दूध फट गया तो लाख को शश करने पर भी उसे
मथ कर मक्खन नहीं नकाला जा सके गा.
◻ र हमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय.
टूटे पे फर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय.
◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका
देकर तोड़ना उ चत नहीं होता. य द यह प्रेम का धागा एक बार टूट
जाता है तो फर इसे मलाना क ठन होता है और य द मल भी जाए
तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है.
एक नज़र रहीम के ग्रंथो पर
◻ जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जा हं.
गरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत ना हं.
◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं
घटता, क्यों क ग रधर (कृ ष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी
म हमा में कमी नहीं होती.
◻ समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात.
सदा रहे न हं एक सी, का रहीम प छतात.
◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता
है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा कसी की
अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इस लए दुःख के समय पछताना
व्यथर्थ है.
धन्यवाद
भ वष्य गौड़ - कक्षा 8 - एच

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  • 1. हन्दी भ वष्य गौड़ - कक्षा 8-एच
  • 2. रहीम का जीवन ◻ रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुरर्थहीम) ख़ानख़ाना था। आपका जन्म 17 दसम्बर 1556 को लाहौर (अब पा कस्तान) में हुआ। रहीम के पता का नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था, जो एक क व यत्री थी। उनके पता बैरम ख़ाँ मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक थे। कहा जाता है क रहीम का नामकरण अकबर ने ही कया था। ◻ रहीम को वीरता, राजनी त, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता- पता से वरासत में मले थे। बचपन से ही रहीम सा हत्य प्रेमी और बुद् धमान थे।
  • 3. रहीम के पता की मृत्यु उनके पता बैरम खान बादशाह अकबर  के बेहद करीबी थे। उन्होने अपनी कु शल नी त से अकबर के राज्य को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दया। कसी कारणवश बैरम खाँ और अकबर के बीच मतभेद हो गया। अकबर ने बैरम खाँ के वद्रोह को सफलतापूवर्थक दबा दया और अपने उस्ताद की मान एवं लाज रखते हुए उसे हज पर जाने की इच्छा जताई। प रणामस्वरुप बैरम खाँ हज के लए रवाना हो गये।
  • 4. रहीम के पता की मृत्यु और कब्र  बैरम खाँ की पत्नी सुल्ताना बेगम अपने कु छ सेवकों स हत बचकर अहमदाबाद आ गई। अकबर को घटना के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने सुल्ताना बेगम को दरबार वापस आने का संदेश भेज दया। रास्ते में संदेश पाकर बेगम अकबर के दरबार में आ गई।ऐसे समय में अकबर ने अपने महानता का सबूत देते हुए इनको बड़ी उदारता से शरण दया और रहीम के लए कहा “इसे सब प्रकार से खुश रखो । इसे यह पता न चले क इनके पता खान खानाँ का साया सर से उठ गया है। 
  • 5. शक्षा- दीक्षा रहीम की शक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धमर्थ- नरपेक्ष नी त के अनुकू ल हुई। मुल्ला मुहम्मद अमीन रहीम के शक्षक थे। इन्होने रहीम को तुकर्की, अरबी व फारसी भाषा की शक्षा व ज्ञान दया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, क वता, ग णत, तकर्थ शास्त्र तथा फारसी व्याकरण का ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृ त के शक्षक थे। इसी शक्षा- दक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है।
  • 6. सम्राट अकबर के दरबार मे अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अजर्थ का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यिक्त रातों रात अमीर हो जाता था, क्यों क यह पद ऐसा था, िजससे पहुँचकर ही जनता की फ रयाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लए गए फै सले भी इसी पद के ज रये जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दनों में नए लोगों को नयुक्त कया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम-काज सुचारु रुप से चलाने के लए अपने सच्चे तथा वश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्त कल मीर अजर्थ नयुक्त कया। यह नणर्थय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था क वह व्यिक्त जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रुप से वश्वसनीय है।
  • 7. सम्राट अकबर के दरबार मे 28 वषर्थ की उम्र में अकबर ने रहीम को खानाखाना की उपा ध से नवाज़ा था। इससे पहले यह सम्मान के वल उनके पता बैरम खान को प्राप्त हुआ था। उन्होंने बाबर की आत्मकथा का तुकर्की से फारसी में अनुवाद कया था। उन्हें अकबर के नवरत्नों में शा मल कया गया था। वे एक अच्छे सेनाप त भी थे। इसके साथ रहीम बादशाह अकबर के पुत्र सलीम का अतालीक (गुरु) रहे थे।
  • 8. रहीम की शादी रहीम दास का ववाह मात्र 16 वषर्थ की वायु में जीजा कोका की बहन माहबानों से हुवा था। माहबानो से अब्दुल रहीम को दो बे टयां और तीन बेटे थे। इसके बाद रहीम ने दो और ववाह कये थे।
  • 9. रहीम की मृत्यु और कब्र  1626 ई. में 70 वषर्थ की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी। दल्ली में िस्थत ख़ान ए ख़ाना के नाम से प्र सद्ध यह मक़बरा अब्दुरर्थहीम ख़ानख़ाना का है। इस मक़बरे का नमार्थण रहीम के द्वारा अपनी बेगम की याद में करवाया गया था, िजनकी मृत्यु 1598 ई. में हो गयी थी। बाद में खुद रहीम को 1627 ई. में उनके मृत्यु के बाद इसी मक़बरे में दफनाया गया।
  • 10. एक नज़र रहीम के ग्रंथो पर ◻ रहीम के ग्रंथो में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, मदनाष्ठ्क, राग पंचाध्यायी, नगर शोभा, ना यका भेद, श्रृंगार, सोरठा, फु टकर बरवै, फु टकर छंद तथा पद, फु टकर क वतव, सवैये, संस्कृ त काव्य प्र सद्ध हैं। ◻ रहीम ने तुकर्की भाषा में लखी बाबर की आत्मकथा “तुजके बाबरी” का फारसी में अनुवाद कया। “मआ सरे रहीमी” और “आइने अकबरी” में इन्होंने “खानखाना” व रहीम नाम से क वता की है।*-
  • 11. रहीम के दोहे ◻ बगरी बात बने नहीं, लाख करो कन कोय. र हमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. ◻ अथर्थ: मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चा हए,क्यों क कसी कारणवश य द बात बगड़ जाती है तो फर उसे बनाना क ठन होता है, जैसे य द एकबार दूध फट गया तो लाख को शश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं नकाला जा सके गा. ◻ र हमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय. ◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उ चत नहीं होता. य द यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फर इसे मलाना क ठन होता है और य द मल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है.
  • 12. एक नज़र रहीम के ग्रंथो पर ◻ जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जा हं. गरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत ना हं. ◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्यों क ग रधर (कृ ष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी म हमा में कमी नहीं होती. ◻ समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात. सदा रहे न हं एक सी, का रहीम प छतात. ◻ अथर्थ: रहीम कहते हैं क उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा कसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इस लए दुःख के समय पछताना व्यथर्थ है.
  • 13. धन्यवाद भ वष्य गौड़ - कक्षा 8 - एच