Types of Taxation in Ancient India प्राचीन भारत में करों के प्रकार
1. AIHC & Arch-C-601: Ancient Indian Polity and Administration
Unit V : Principle and Process of Taxation
13. Types of Taxation
कराधान क
े प्रकार
Sachin Kr. Tiwary
2.
3. • भारतीय इततहास क
े अध्ययन से पता चलता है कक प्राचीन काल में
समाज का उत्कर्ष एवं ववकास मनुष्य क
े आर्थषक जीवन की
संपनता,सम्मुनती और सुख-सुववधा से प्रभाववत होता था ।
• साथ ही राज्य को चलाने क
े ललए उसकी आर्थषक स्थथतत का मज़बूत
होना आवश्यक था।
• राज्य की आर्थषक स्थथतत को दृढ़ करने का पररणामकरक उपाय
करों का संग्रहण था।
• कर प्रणाली की शुरूवात राजसत्ता क
े उदय क
े साथ हुई।
• भारत में करों क
े प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद से प्राप्त होते है।
• भारतीय इततहास क
े कालानुरूप बदलाव क
े साथ-साथ करों एवं
कर-प्रकारों में कई बदलाव ददखाई देते है।
• इन करों तथा कर-प्रणाली का उल्लेख अनेक थरोतों में प्राप्त है
स्जनमे ऋग्वेद, अथवषवेद, धमषशाथर, थमृतत ग्रन्थ, अथषशाथर,
ववनयवपटक, जातक कथाएँ तथा अलभलेख महत्वपूणष है।
प्रथतावना
4. प्राचीन भारत में कर की अवधारणा
• भूलम पर राजकीय थवालमत्व की अवधारणा क
े जन्म क
े
साथ ही कर-प्रणाली का जन्म हुआ।
• कर-संग्रहण क़बीला प्रमुख/ राजा का ववशेर्ार्धकार माना
गया।
• गौतम और नारद दोनों ने कर को राजा द्वारा प्रजा की
रक्षा करने क
े पाररश्रलमक क
े रूप में थवीकार ककया है।
• राज्य की आय का प्रमुख थरोत कर होता था।
• धमष सूरों क
े अनुसार राजा क
े वल वैध करों को ही वसूल
कर सकता है स्जससे उत्पादकों क
े पास भी जीवनयापन
हेतु पयाषप्त धन शेर् रहे।
• प्राचीन भारतीय कर प्रणाली में पक्षपात मुक्त
पररस्थथततनुसार कर वसूली पर बल ददया गया है।
5. प्राचीन भारत में कर का थवरूप
• प्रारम्भ में, ऋग्वेदीक काल में कर ऐस्छिक था। कालांतर में
कर अतनवायष हो गया।
• कर-प्रणाली वणष व्यवथथा क
े अनुसार थी।
• ब्राह्मण एवं क्षरीय, करों से मुक्त थे क्यूँकक वे अपनी सेवाएँ
राजा को क्रमशः आध्यास्त्मक एवं सुरक्षा क
े रूप में प्रदान
करते थे।
• धमष शाथरों क
े अनुसार करों को वैध तथा उर्चत होना चादहए।
• कर नक़द, अन्न, पशु तथा बेगार क
े रूप में ललया जाता था।
• करों की दर उपज, भूलम प्रकार तथा पररस्थथतत पर आधाररत
थी।
• करों में ि
ू ट एवं जुमाषने का भी प्रावधान था।
7. भाग
• भूलम की उपज पर लगाए जाने वाला प्रमुख कर भाग कहलाता था।
• महाभारत क
े अनुसार राजा प्रजा से १/१० से लेकर १/६ भाग तक कृ वर् कर लेता था।
• कौदटल्य कहते है कक राजा को उपज का िटा भाग “कर” क
े रूप में लेना चादहए।
• मेगथथनीज़ कहते है राजा भूलम की उपज का चौथा भाग कृ र्क से प्राप्त करता
था।
• अशोक अपने रुम्मीनदेई लेख में कहता है कक उसने लुस्म्बनी ग्राम बलल से पूणषतः मुक्त
कर ददया और भाग को र्ंडभाग (१/६) से कम करक
े अष्टभाग (१/८)कर ददया।
• रुद्रदामन का जूनागढ अलभलेख कर, ववस्ष्ट, प्रणय और शुल्क क
े अततररक़्त भाग
का उल्लेख करता है।
• सोमेश्वर क
े अनुसार भूलम की उवषरता क
े आधार पर १/६, १/८ या १/१२ भाग राजा
को प्राप्त होता था।
• अत: यह थपष्ट होता है कक भाग, प्रायः १/६ र्ंडंश:वृवत्त थी।
• भाग का साधारण अनुपात १/६ था इसीललए राजा को र्डभाऱ्िन अथवा र्ंडशवृवत्त
कहा जाता था।
• भाग कर क
े उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुगीन काल तक प्राप्त होते है।
8. बलल
• बलल यह राजथव क
े ललए उल्लेणखत प्राचीनतम शब्द है।
• ऋग्वेद में राजा द्वारा वसूल ककए गए कर क
े अततररक्त देवताओं को देय पूजन सामग्री पशुबली/
ववववध राजाओं से प्राप्त उपहार भेंट को बलल कहा गया है।
• प्रारम्भ में बलल प्रजा की थवेछिा पर तनभषर थी, जो बाद में अतनवायष हो गयी।
• अथषशाथर क
े अनुसार भाग क
े अततररक्त भूलम से प्राप्त कर बलल कहलाता था।
• अशोक क
े रुस्म्मनदेई थतंभलेख में वणणषत बलल का तनवाषचन एक प्रकार से धालमषक कर क
े रूप में
ककया गया है।
• लमललंदपन्हो में बलल को आपातकालीन कर कहा गया है।
• वैददक और बौद्ध युग में वणणषत बलल नामक कर गुप्तयुर्गन अलभलेखों में और धमषशाथरों में भी उस्ल्लणखत
है, स्जससे उसक
े दीघषकालीन व्यास्प्त का प्रमाण लमलता है।
• कालांतर में बलल धालमषक कर माना गया और इसका उल्लेख क
े वल धालमषक अनुष्टानो से
सम्बंर्धत रह गया।
9. शुल्क
• शुल्क एक वाणणस्ज्यक कर था, जो व्यापाररयों से वसूला जाता था।
• शुल्क आंतररक और बाह्य दोनो प्रकार क
े व्यापारों में लगता था।
• यह कर राज्यों की सीमाओं पे, नददयों क
े आर-पार, शहरों क
े मुख्य द्वारों
पर, पत्तनो और बंदरगाहो में, बाज़ारों में वसूल ककया जाता था।
• महाभारत क
े शांततपवष क
े अनुसार, वथतुओं क
े लाभांश का बीसवाँ भाग शुल्क
क
े रूप में वसूला जाता था।
• अथषशाथर में उल्लेख है की अलग-अलग वथतुओं पर अलग-अलग अंशो में
शुल्क लगाना चादहए।
• अथषशाथर में इसकी वसूली अर्धकारी को ”शुल्काध्यक्ष” कहते थे।
• अथषशाथर में इसका उपयोग चुंगी क
े रूप में ककया गया है।
• मनु क
े अनुसार शुल्क वसूल ककए जाने वाली जगह को “शुल्कथथान” कहते
थे।
• शुक्रनीतत में कहा गया है जो व्यापारी बबना कर क
े चोरी-तिपे बाज़ार में पहुँचते
थे, उन्हें शुल्क से आठ गुना ज़्यादा दण्ड देना होता था तथा वथतुओं पर
शुल्क क
े वल एक बार लगाया जाए, दुबारा नही।
• समुद्रगुप्त क
े बबहार थतंभ अलभलेख में शुल्क इक्कठा करने वाले अर्धकारी
को “शौस्ल्कक” कहा गया है।
10. कर
• गौतम धमषसूर में “कर” शब्द का प्रयोग है।
• पाणणतन की अष्टाध्यायी में कर और क्षेरकर शब्द का
उल्लेख है।
• वासुदेव शरण अग्रवाल कहते है की कर और क्षेरकर, का
उल्लेख खेतों को नापकर कृ वर्योग्य करने वाले भूलममापक
अर्धकारी क
े सन्दभष में आया है।
• कततपय ववद्वान कर को संपती पर वावर्षक कर भी मानते
है।
• कर तनश्चयही उत्पीडक होता होगा इसीललए, रुद्रदामन
जूनागड अलभलेख में कहता है, उसने प्रजा से कभीभी कर,
ववस्ष्ट या प्रणय जैसा कोई कर वसूल नहीं ककया।
• समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्थत में भी “कर” का उल्लेख है।
• “कर” क
े उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुगीन काल तक
प्राप्त होते है।
11. प्रणय कर
• यह आपात क़ालीन कर था।
• जब राज्य को अततररक्त कर की आवश्यकता होती थी, तब
साधारण करों क
े अततररक्त अधीक कर को “प्रणय” कहते थे।
• अथषशाथर क
े अनुसार जब राज्य को आर्थषक संकट हो तब,
ककसानो, व्यापाररयों, लशस्ल्पयों और पशुपालकों से प्रणय कर
वसूल करते थे।
• ककसानो से प्रणय कर भूलम की उपज क
े अनुसार चौथाई से ततहाई
भाग तक ललया जाता था।
• मनु क
े अनुसार प्रणय चौथाई से अर्धक नहीं होना चादहए।
• यह कर तनश्चय ही अन्यायकारक था इसीललए, रुद्रदामन
जूनागढ अलभलेख में कहता है, उसने प्रजा से कभी भी कर,
ववस्ष्ट या प्रणय जैसा कोई कर वसूल नहीं ककया।
12. ववस्ष्ट
• ववस्ष्ट अत्यंत प्राचीन और व्यापक कर था। महाभारत में इसक
े
उल्लेख प्राप्त है।
• ववस्ष्ट का अथष बेगार है।
• ग्रीक लेखक एररयन क
े अनुसार लशल्पी और कारीगर कर क
े थथान
पर बेगारी करते थे।
• अथषशाथर क
े अनुसार इस प्रकार की सेवाओं का उपयोग राज्य क
े
कारखाने में हो सकता है।
• मनु कहते है, शूद्र, लशल्पी और कारीगर अपनी सेवाएँ क
े रूप में
राज्य को कर दे सकते थे, उसे ववस्ष्ट कहते थे। मनु ववस्ष्ट की
अनुशंसा करते है।
• तनश्चय ही ववस्ष्ट एक कष्टदायक कर था ईसीललए, इसे अततररक्त
करों की सूची में रखा गया था।
• कृ र्कों, चरवाहों और मज़दूरी करनेवालों से आवशक्यता अनुसार
ववस्ष्ट ली जा सकती थी।
• रुद्रदामन जूनागढ अलभलेख में कहता है, उसने प्रजा से ववस्ष्ट कर
वसूल ककए बबना “सुदशषन झील” का तनमाषण कायष कराया।
• ववस्ष्ट शायद महीने में एक ददन की मज़दूरी होती थी।
13. दहरण्य
• ऐसा प्रतीत होता है कक प्रारम्भ में दहरण्य भूलम से संबंर्धत कोई तनयलमत कर न होकर
एक अतनयलमत देय था, जो शायद कभी-कभी लगाया जाता रहा होगा।
• महाभारत क
े शांततपवष और अथषशाथर में इसका अनुपात १/१० बताया गया है।
• थमृततया इसे १/५० का अनुपात बताती है।
• अथषशाथर में कहा गया है की समाहताष नामक अर्धकारी अलग-अलग करों क
े साथ दहरण्य
कर का वववरण ललखे।
• गुप्तकाल में यह तनयलमत कर हो गया।
• हिरण्य का अथष थवणष है इसललए उपेन्द्रनाथ घोर्ाल क
े अनुसार “हिरण्य ऐसा कर था जो सभी
फ़सलो पर ना लेते हुए क
े वल ववशेर् (बहुमूल्य) प्रकार की फ़सलो पर ललया जाता था”।
• ऐसा प्रतीत होता है कक यह कर नगद धन क
े रूप में वसूल ककया जाता था।
• दहरण्य कर क
े उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुग तक प्राप्त होते है।
14. उदगभाग
• खेती की लसंचाई पर लगने वाले कर को उदगभाग कहते
थे।
• राज प्रशासन लसंचाई व्यवथथा का प्रबंध करती थी।
• चँद्रगुप्त क
े राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य की सुदशषन झील
इसका उत्तम उदाहरण है।
• उदगभाग शायद १/३, १/४ और १/५ से वसूल होता था।
• राज्य की बंजर, नयी भूलम पर खेती करने क
े ललए लोगों
को प्रवृत्त ककया जाता था। इस हेतु उदगभाग से ककसानो
को कई प्रकार की ि
ू ट दी जाती थी।
• ईततहासकर एम गोपाल, अततंद्र बोस, वी पाठक उदगभाग
क
े अस्थतत्व को थवीकार करते है
• परंतु लल्लनजी गोपाल मानते है की इस काल में लसंचाई
क
े ललए कोई कर नहीं ललया गया।
• मौयष काल क
े बाद इस कर क
े उल्लेख प्राप्त नही होते।
15. पशु कर
• मेगथथनीज़ ने ललखा है कक पशु पालक मौयष राजाओं को अपने
पशुओं पर कर देते थे।
• थमृततयों क
े अनुसार यह कर पशुओं क
े मूल्य का १/५० भाग
होता था।
• पशुओं की बबक्री पर भी सरकार कर लेती थी।
• अथषशाथर क
े अनुसार……….
1. मुर्गषयों ओर सूअरों पर उनक
े मूल्य का १/२
2. गाय, भैंस, गधा, खछचर पर उनक
े मूल्य का १/१०
3. ऊ
ँ ट पर उसक
े मूल्य का १/१० तथा
4. िोटे पशुओं पर पर उनक
े मूल्य का १/६ कर लगता था।
• पशु कर शब्द का उल्लेख बाद क
े काल में अप्राप्त है।
• यद्यवप परवती काल में हस्थतदंड और वरवली जैसे पशु पर
लगने वाले करों क
े उल्लेख लमलते है।
16. उत्संग
• ककसी उत्सव क
े समय प्रजा राजा को जो भेंट देती थी उसे उत्संग
कहा गया है।
• जातको में वणषन है की राजक
ु मार क
े जन्म पर प्रजा-जन
में से प्रत्येक जन एक-एक कार्ापषण लाया था।
• इसी प्रकार राज्यालभर्ेक क
े अवसर पर बहुत भेंटे राजा
को प्राप्त होती थी।
• ववदेशों से आए राज्यपाल भी बहुत भेंटे लाया करते थे।
• उत्सव कर अतनवायष या एस्छिक था इसक
े बारे में
वववरण अप्राप्त है।
17. उपररकर
• उपररकर गुप्त युग और उसक
े बाद क
े कालों में वणणषत है।
• गुप्तपूवष काल में इसका वणषन या उल्लेख प्राप्त नहीं
होता।
• उपररकर का क्या तात्पयष था इसक
े ववर्य ववद्वानो में
मतभेद है।
• उपरर शब्द का संथकृ त में अथष होता है अततररक्त,
इसीललए ये संभवतः अन्य करो से अलग अततररक्त कर
रहा होगा।
18. उद्रंग
• उद्रंग का का तात्पयष था इसक
े ववर्य में ववद्वानो में
मतभेद है।
• राजतरंर्गणी में द्रंग पुललस चौकी क
े अथष में प्रयुक्त हुआ
है।
• एस मैती क
े अनुसार उद्रंग कर यह पुललस कर या सुरक्षा
कर होता था।
• गुप्त पूवष काल में इसका वणषन या उल्लेख प्राप्त नहीं
होता तथावप इसका तनत्य उल्लेख गुप्त युग और उसक
े
बाद क
े कालों में वणणषत है।
19. हललकाकर
• मध्य भारत में िटी शती में प्राप्त ताम्रपरों में हललकाकर का
उल्लेख है।
• घोर्ाल क
े अनुसार इसका अथष हल पे लगाया हुआ कर हो
सकता है।
• यह अततररक्त कर भी हो सकता है जो उस क्षेर पर लगाया
जाता था, स्जसकी जुताई हल द्वारा एक ऋतु में की जाती
थी।
• मैती का मत है की, हल द्वारा जोती गयी ज़मीन पर
लगनेवाला कर।
• यह उल्लेखनीय है की, मु़िल काल तक हल पर “कर” लगता
था।
20. भूतवात-प्रत्याय
• भूतवात-प्रत्याय नामक कर क
े उल्लेख सातवी शती क
े
अलभलेखों/ताम्रपरों से प्राप्त होते है।
• घोर्ाल इसे तत्व और वायु से प्राप्त होने वाले राजथव क
े
रूप में इसकी पहचान करते है।
• अल्तेकर इसे अस्थतत्व में आने वाली वथतु पर कर तथा
आयात की जाने वाली वथतुओं पर कर कहते है।
• यह कर संभवतः वाणणज्य - व्यापार की वथतुओं पर
लगाया जाता होगा।
21. क्लुप्त –उपक्लुप्त
• अथषशाथर में क्लुप्त का उल्लेख राजथव क
े ववववध स्रोतों
क
े रूप ए ककया गया है।
• शाम शाथरी इसे एक कर मानते है।
• सरकार क
े अनुसार…….
क्लुप्त: थथायी ककसानो से ललया जाने वाला कर और
उपक्लुप्त: अथथायी ककसानो से ललया जाने वाला कर हो
सकता है।
• वाकाटक काल में रानी प्रभावती गुप्त क
े पूना ताम्रपर और
राजा प्रवसेन द्ववतीय क
े चम्मक ताम्रपर में इनका
उल्लेख है।
22. घाटकर
• प्राचीन भारत में जल प्रबंधन महत्वपूणष रहा है, इसी संदभष में घाटकर ललया जाता
• नदी को पार करने क
े ललये ललए जाने वाले कर को घाटकर कहा जाता था।
• ऊर्वदत्त क
े नालसक गुहा अलभलेख में वणणषत है कक ऊर्वदत्त ने तनशु:ल्क नदी पार करने
की व्यवथथा की थी।
• ववष्णुसेन क
े िटी शती क
े ताम्रलेख वे नावों द्वारा नदी घाटों पर सामग्री क
े
उतारने का दर तनम्नललणखत प्रकार से है।
1. नाव भर धातु क
े बतषनो की उतराई १२ रजत मुद्रा थी, लेककन उद्देश धालमषक
होने पर मार ११/४ रजत मुद्रा थी।
2. भैंस तथा ऊ
ँ ट से भरी नाव का कर ५१/४ था।
3. बैलो से भरी नाव का ककराया २ रजत मुद्रा था, लेककन उद्देश धालमषक होने
पर ककराया मार २ रजत मुद्रा थी।
थमृतत ग्रन्थ और अथषशाथर में भी घाटकर को महत्वपूणष राजकीय आय का थरोत
कहा गया है।
23. चुंगी और धान्य
• चुंगी का उल्लेख मौयष काल आया है।
• यह संभवतः व्यापाररयों, बाहरी ववदेशी लोगों से
राज्य में प्रवेश करते समय ललया जाता रहा होगा
• गुप्तकाल क
े क
ु ि अलभलेखों में धान्य शब्द प्रयुक्त
हुआ है।
• धान्य का अथष है अनाज में राजा का दहथसा।
• यह कर शायद धान्य क
े रूप में ललया जाता होगा।
24. कराधान क
े लसद्धांत
1. अथषशाथर क
े अनुसार जैसे बैल पर धीरे-धीरे बोझ बढ़ाते है, वैसे
ही कर को धीरे –धीरे बढ़ाना चादहए।
2. मधुमक्खी जैसे थोडा-थोडा रस ित्ते क
े ललए इकट्ठा करती है,
वैसे ही राजा को प्रजा पर थोडा-थोडा कर लगाना चादहए।
3. मनु क
े अनुसार कर शाथरानुसार वसूले जाने चादहए।
4. कामन्दक क
े अनुसार राजा को कर ग्वाले या माली जैसे
वसूलना चादहए।
5. नालसक गुहा अलभलेख में गौतलमपुर सातकणी को धमाषनुसार
कर लेनेवाला कहा गया है।
6. रुद्रदामन क
े जूनागढ़ अलभलेख से इस बात की पुस्ष्ट होती है
की उसने सुदशषन झील क
े बांध का तनमाषण प्रजा पे अततररक्त
कर लगाए बबना कराया था।
7. इससे थपष्ट होता है की प्राचीन भारत में करों की दरे
प्रजादहत ध्यान में रखकर तनधाषररत की जाती थी।
25. करों का तनधाषरण और दरें
• प्राचीन भारत क
े राज्यशास्थरयों ने, अथषशास्थरयों ने और धमष
शास्थरयों ने करों अथवा देयकों की थपष्ट व्यवथथा दी थी, प्राचीन
भारत क
े ग्रंथो में प्रजारक्षण को राजधमष का पयाषयवाची कहा गया
है।
• अथषशाथर में वणणषत है कक, कर तनधाषरण से पहले अर्धकाररयों
द्वारा वथतु का प्रचललत मूल्य,पूततष और माँग का उत्पन व्यय
आदद अनेक बातों पर ववचार ककया जाता था।
• मनुथमृतत क
े अनुसार,उत्पाददत वथतुओं का क्रयमूल्य, ववक्रयमूल्य,
राह क
े खचे, कारार्गरो क
े खचे आदद का आकलन करक
े करो
का तनधाषरण होना चादहए।
• भाग: यह भू-राजथव प्रमुखता से १/६ भाग होता था, कभी -कभी
१/८, १/१०, १/१२ होता था।
• शुल्क: १/२० से १/५० तक होती थी।
• ववस्ष्ट: महीने में एक ददन की मज़दूरी।
26. करमुस्क्त
• प्राचीन भारत में करमुस्क्त क
े प्रयोजन थे।
• करमुस्क्त, अल्पकाललक, आंलशक या थथायी हो सकती थी।
• समाज क
े ऋवर्यों, पुरोदहतों, स्थरयों, ववद्यथीयो, धमषसंथथानो,
ब्राम्हनों को करमुस्क्त थी।
• अंधो, बर्धरों, पंगु, ववकलांगो, थथववरों,श्रोततयो और जो ककसी
प्रकार की जीववका ना रखे हो उन्हें करमुस्क्त थी।
• नददयों क
े पर करने में लगने वाला ववद्यथीयो ब्राम्हनों, दो मास
से अर्धक गभषवती थरी, मुतन को नही लगता था।
• जब फसल खराब हो
• नेसर्गषक आपदा आने पर
• जब ककसान बंजर ज़मीन जोत रहा हों तब तनधाषररत काल क
े ललए
भू-राजथव में ि
ू ट दी जाती थी।
• लुस्म्बनी ग्राम बलल से पूणषतः मुक्त कर ददया था।
27. • प्राचीन भारतीय कर व्यवथथा अपने थवरूप में एक प्रगततशील व्यवथथा थी।
• लशलालेखों में वणणषत है की राजा धमाषनुसार ही कर वसूल करते थे।
रुद्रदामन और गौतलमपुर सातकणी जैसे राजा प्रजा का दहत ध्यान में
रखकर ही कर की वसूली करते थे।
• करों क
े बदले क
ें ददय व्यवथथा सुरक्षा, शांतत और प्रजा को सुववधाए
प्रदान करती थी।
• भारतीय इततहास क
े कालानुरूप बदलाव और व्यापार-वाणणज्य में
ववकास क
े साथ करों एवं कर-प्रकारों में कई बदलाव ददखाई देते है।
• प्रर्चन भारत में कराधान क
े लसद्धांत वववेकपूणष तो थे ही साथ ही वे
आर्थषक और नैततक भी प्रतीत होते है।
• सातवी शती तक करों की प्रवृवत्त न्यायसंगत ददखाई देती है, इस काल
क
े पश्चात कर उत्पीडक हो गए।
तनष्कर्ष