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अधिवेशन संख्या -1
धवषय : ध ंदी
समास
समास की परिभाषा
समास विग्रह
समास क
े भेद
अव्ययीभाि समास
इस लेख में हम समास औि समास क
े भेद ों क उदाहिण
सवहत जानेंगे।
समास वकसे कहते हैं?
सामावसक शब्द वकसे कहते हैं?
पूिवपद औि उत्तिपद वकसे कहते हैं?
समास विग्रह क
ै से ह ता है?
समास औि सोंवि में क्या अोंति है?
समास क
े वकतने भेद हैं?
समास
समास की परिभाषा
समास का तात्पयव ह ता है- संधिप्तीकिण। इसका शाब्दब्दक अर्व ह ता है-
छोटा रूप। अर्ावत् जब द या द से अविक शब्द ों से वमलकि ज नया औि
छ टा शब्द बनता है उस शब्द क समास कहते हैं।
दू सिे शब्ों में- द या द से अविक शब्द ों से वमलकि बने हुए एक निीन
एिों सार्वक शब्द (वजसका क ई अर्व ह ) क समास कहते हैं।
जैसे –
‘िस ई क
े वलए घि’ इसे हम ‘िस ईघि’ भी कह सकते हैं।
समास क
े वनयम ों से वनवमवत शब्द सामावसक शब्द कहलाता है।
इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास ह ने क
े बाद विभब्दिय ों
क
े विह्न गायब ह जाते हैं।
जैसे -
िस ई क
े वलए घि = िस ईघि
हार् क
े वलए कडी = हर्कडी
नील औि कमल = नीलकमल
िाजा का पुत्र = िाजपुत्र
सामाधसक शब्
पूववपद औि उत्तिपद
समास ििना में द पद ह ते हैं, पहले पद क ‘पूिवपद’कहा जाता
है औि दू सिे पद क ‘उत्तिपद’कहा जाता है। इन द न ों से ज
नया शब्द बनता है ि समस्त पद कहलाता है।
जैसे-
पूजाघि (समस्तपद) – पूजा (पूिवपद) + घि (उत्तिपद) - पूजा
क
े वलए घि (समास-विग्रह)
िाजपुत्र (समस्तपद) – िाजा (पूिवपद) + पुत्र (उत्तिपद) - िाजा
का पुत्र (समास-विग्रह)
समास धवग्र
सामावसक शब्द ों क
े बीि क
े सम्बन्ध क स्पष्ट किने क समास-
विग्रह कहते हैं। विग्रह क
े बाद सामावसक शब्द गायब ह जाते हैं
अर्ातव जब समस्त पद क
े सभी पद अलग-अलग वकय जाते हैं,
उसे समास-विग्रह कहते हैं।
जैसे -
माता-वपता = माता औि वपता।
िाजपुत्र = िाजा का पुत्र।
समास औि संधि में अंति
संधि का शाब्दब्क अर्व ोता ै- मेल। सोंवि में उच्चािण क
े वनयम ों का विशेष महत्व ह ता है।
इसमें द िणव ह ते हैं, इसमें कहीों पि एक त कहीों पि द न ों िणों में विया विच्छे द कहलाती है।
सोंवि में वजन शब्द ों का य ग ह ता है, उनका मूल अर्व नहीों बदलता।परिितवन ह जाता है औि
कहीों पि तीसिा िणव भी आ जाता है। सोंवि वकये हुए शब्द ों क त डने की
जैसे - पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।
समास का शाब्दब्क अर्व ोता ै- सोंक्षेप। समास में िणों क
े स्र्ान पि पद का महत्व ह ता है।
इसमें द या द से अविक पद वमलकि एक समस्त पद बनाते हैं औि इनक
े बीि से विभब्दिय ों
का ल प ह जाता है। समस्त पद ों क त डने की प्रविया क विग्रह कहा जाता है। समास में बने
हुए शब्द ों क
े मूल अर्व क परििवतवत वकया भी जा सकता है औि परििवतवत नहीों भी वकया जा
सकता है।
जैसे - विषिि = विष क िािण किने िाला अर्ातव वशि।
समास क
े भेद
समास क
े मुख्यतः छः भेद माने जाते हैं–
1. अव्ययीभाि समास
2. तत्पुरुष समास
3. कमविािय समास
4. विगु समास
5. िोंि समास
6. बहुब्रीवह समास
अव्ययीभाव समास
वजस समास का पूिव पद प्रिान ह , औि िह अव्यय ह उसे
अव्ययीभाि समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप वलोंग,
ििन, कािक, में नहीों बदलता है, ि हमेशा एक जैसा िहता है।
दू सिे शब्द ों में यवद एक शब्द की पुनिािृवत्त ह औि द न ों शब्द
वमलकि अव्यय की तिह प्रय ग ह ों, िहााँ पि अव्ययीभाि समास
ह ता है। सोंस्क
ृ त में उपसगव युि पद भी अव्ययीभाि समास ही
मने जाते हैं।
इसमें पहला पद उपसगव ह ता है जैसे अ, आ, अनु, प्रवत, हि, भि,
वन, वनि, यर्ा, याित आवद उपसगव शब्द का ब ि ह ता है।
1. यर्ाशब्दि = शब्दि क
े अनुसाि
2. प्रवतवदन = प्रत्येक वदन
3. आजन्म = जन्म से लेकि
4. घि-घि = प्रत्येक घि
5. िात ों िात = िात ही िात में
6. आमिण = मृत्यु तक
अव्ययीभाव समास
7. अभूतपूिव = ज पहले नहीों हुआ
8. वनभवय = वबना भय क
े
9. अनुक
ू ल = मन क
े अनुसाि
10. भिपेट = पेट भिकि
11. बेशक = शक क
े वबना
12. खुबसूित = अच्छी सूित िाली
जैसे -
अधिवेशन संख्या -2
धवषय : ध ंदी
समास
तत्पुरुष समास
कमविािय समास
िोंि समास
तत्पुरुष समास
वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह औि पूिवपद गौण ह उसे तत्पुरुष
समास कहते हैं। यह कािक से जुडा समास ह ता है। इसमें ज्ञातव्य-
विग्रह में ज कािक प्रकट ह ता है उसी कािक िाला ि समास ह ता
है। इसे बनाने में द पद ों क
े बीि कािक विन् ों का ल प ह जाता है,
उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
इस समास में सािािणतः प्रर्म पद विशेषण औि वितीय पद विशेष्य
ह ता है। वितीय पद, अर्ावत बादिाले पद क
े विशेष्य ह ने क
े कािण
इस समास में उसकी प्रिानता िहती है।
जैसे -
तत्पुरुष समास
1. िमव का ग्रन्थ = िमवग्रन्थ
2. िाजा का क
ु माि = िाजक
ु माि
3. तुलसीदासक
ृ त = तुलसीदास िािा क
ृ त
इसमें कताव औि सोंब िन कािक क छ डकि शेष छ: कािक विन् ों
का प्रय ग ह ता है। जैसे- कमव कािक, किण कािक, सम्प्रदान
कािक, अपादान कािक, सम्बन्ध कािक, अविकिण कािक इस
समास में दू सिा पद प्रिान ह ता है।
कमव तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि में कमवकािक वछपा हुआ ह ता है।
कमवकािक का विह्न ‘क ’ ह ता है। ‘क ’ क कमवकािक की विभब्दि भी कहा
जाता है। उसे कमव तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘क ’ क
े ल प से यह समास बनता
है।
जैसे - ग्रोंर्काि = ग्रन्थ क वलखने िाला।
किण तत्पुरुष- जहााँ पि पहले पद में किण कािक का ब ि ह ता है। इसमें द
पद ों क
े बीि किण कािक वछपा ह ता है। किण कािक का विह्न या विभब्दि ‘क
े
िािा’ औि ‘से’ ह ता है। उसे किण तत्पुरुष कहते हैं। ‘से’ औि ‘क
े िािा’ क
े ल प
से यह समास बनता है।
जैसे -िाब्दिवकिवित = िािीवक क
े िािा िवित।
सम्प्रदान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि सम्प्रदान कािक वछपा ह ता है।
सम्प्रदान कािक का विन् या विभब्दि ‘क
े वलए’ ह ती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष
समास कहते हैं। ‘क
े वलए’ का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - सत्याग्रह = सत्य क
े वलए आग्रह
अपादान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि में अपादान कािक वछपा ह ता है।
अपादान कािक का विन् या विभब्दि ‘से अलग’ ह ता है। उसे अपादान तत्पुरुष
समास कहते हैं। ‘से’ का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - पर्भ्रष्ट = पर् से भ्रष्ट
सम्बन्ध तत्पुरुष- इसमें द पद ों क
े बीि में सम्बन्ध कािक वछपा ह ता है। सम्बन्ध
कािक क
े विन् या विभब्दि ‘का, ‘क
े , ‘की’ ह ती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास
कहते हैं। ‘का, ‘क
े , ‘की’ आवद का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - िाजसभा = िाजा की सभा
अधिकिण तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि अविकिण कािक वछपा
ह ता है। अविकिण कािक का विन् या विभब्दि ‘में, ‘पि’ ह ता है।
उसे अविकिण तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘में’ औि ‘पि’ का ल प ह ने
से यह समास बनता है।
जैसे - जलसमावि = जल में समावि
तत्पुरुष समास क
े प्रकाि
1. नञ् तत्पुरुष समास- इसमें पहला पद वनषेिात्मक ह ता
है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे -
1. असभ्य = न सभ्य।
2. अनावद = न आवद।
3. असोंभि = न सोंभि।
4. अनोंत = न अोंत।
2. कमविािय समास
वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह ता है, वजसक
े वलोंग, ििन भी सामान ह ते हैं। ज समास में
विशेषण-विशेष्य औि उपमेय-उपमान से वमलकि बनते हैं, उसे कमविािय समास कहते हैं।
कमविािय समास में व्यब्दि, िस्तु आवद की विशेषता का ब ि ह ता है। कमविािय समास क
े
विग्रह में ‘है ज , ‘क
े समान है ज ’ तर्ा ‘रूपी’ शब्द ों का प्रय ग ह ता है। जैसे -
1. िन्द्रमुख - िन्द्रमा क
े सामान मुख िाला - (विशेषता)
2. दहीिडा - दही में ड
ू बा बडा - (विशेषता)
3. गुरुदेि - गुरु रूपी देि - (विशेषता)
4. ििण कमल - कमल क
े समान ििण - (विशेषता)
5. नील गगन - नीला है ज असमान - (विशेषता)
द्वंद्व समास
इस समास में द न ों पद ही प्रिान ह ते हैं इसमें वकसी भी पद का गौण नहीों ह ता
है। ये द न ों पद एक-दू सिे पद क
े विल म ह ते हैं लेवकन ये हमेशा नहीों ह ता है।
इसका विग्रह किने पि औि, अर्िा, या, एिों का प्रय ग ह ता है उसे िोंि समास
कहते हैं। िोंि समास में य जक विन् (-) औि 'या' का ब ि ह ता है।
जैसे -
1. जलिायु = जल औि िायु। 2. अपना-पिाया = अपना या पिाया।
3. पाप-पुण्य = पाप औि पुण्य। 4. िािा-क
ृ ष्ण = िािा औि क
ृ ष्ण।
5. अन्न-जल = अन्न औि जल। 6. नि-नािी = नि औि नािी।
7. गुण-द ष = गुण औि द ष। 8. देश-विदेश = देश औि विदेश।
अधिवेशन संख्या -3
धवषय : ध ंदी
समास
बहुब्रीवह समास
विगु समास
3. धद्वगु समास
विगु समास में पूिवपद सोंख्यािािक ह ता है औि कभी-कभी उत्तिपद भी
सोंख्यािािक ह ता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुि सोंख्या वकसी
समूह क दशावती है, वकसी अर्व क नहीों। इससे समूह औि समाहाि का ब ि
ह ता है। उसे विगु समास कहते हैं।
जैसे –
1. निग्रह = नौ ग्रह ों का समूह। 2. द पहि = द पहि ों का समाहाि।
3. वत्रिेणी = तीन िेवणय ों का समूह। 4. पोंितन्त्र = पाोंि तोंत्र ों का समूह।
5. वत्रल क = तीन ल क ों का समाहाि। 6. शताब्दी = सौ अब्द ों का समूह।
7. सप्तऋवष = सात ऋवषय ों का समूह। 8. वत्रक ण = तीन क ण ों का समाहाि।
9. सप्ताह = सात वदन ों का समूह। 10. वतिोंगा = तीन िोंग ों का समूह।
11. ितुिेद = िाि िेद ों का समाहाि।
बहुब्रीध समास
इस समास में क ई भी पद प्रिान नहीों ह ता। जब द पद वमलकि तीसिा पद
बनाते हैं तब िह तीसिा पद प्रिान ह ता है। इसका विग्रह किने पि “िाला, है,
ज , वजसका, वजसकी, वजसक
े , िह” आवद आते हैं, िह बहुब्रीवह समास कहलाता
है।
दू सिे शब्ों में- वजस समास में पूिवपद तर्ा उत्तिपद द न ों में से क ई भी पद
प्रिान न ह कि क ई अन्य पद ही प्रिान ह , िह बहुव्रीवह समास कहलाता है।
वजस समस्त-पद में क ई पद प्रिान नहीों ह ता, द न ों पद वमल कि वकसी तीसिे
पद की ओि सोंक
े त किते है, उसमें बहुव्रीवह समास ह ता है। 'नीलक
ों ठ', नीला है
क
ों ठ वजसका अर्ावत वशि। यहााँ पि द न ों पद ों ने वमल कि एक तीसिे पद 'वशि'
का सोंक
े त वकया, इसवलए यह बहुव्रीवह समास है।
इस समास क
े समासगत पद ों में क ई भी प्रिान नहीों ह ता, बब्दि पूिा समस्तपद
ही वकसी अन्य पद का विशेषण ह ता है।
जैसे -
1. गजानन = गज का आनन है वजसका (गणेश)
2. वत्रनेत्र = तीन नेत्र हैं वजसक
े (वशि)
3. नीलक
ों ठ = नीला है क
ों ठ वजसका (वशि)
4. लम्ब दि = लम्बा है उदि वजसका (गणेश)
5. दशानन = दश हैं आनन वजसक
े (िािण)
6. ितुभुवज = िाि भुजाओों िाला (विष्णु)
7. पीताम्बि = पीले हैं िस्त्र वजसक
े (क
ृ ष्ण)
8. िििि= िि क िािण किने िाला (विष्णु)
जैसे –
1. 'िििि' िि क िािण किता है ज अर्ावत 'श्रीक
ृ ष्ण’।
2. नीलक
ों ठ - नीला है ज क
ों ठ - (कमविािय)
3. नीलक
ों ठ - नीला है क
ों ठ वजसका अर्ावत वशि - (बहुव्रीवह)
4. लोंब दि - म टे पेट िाला - (कमविािय)
5. लोंब दि - लोंबा है उदि वजसका अर्ावत गणेश - (बहुव्रीवह)
6. महात्मा - महान है ज आत्मा - (कमविािय)
7. महात्मा - महान आत्मा है वजसकी अर्ावत विशेष व्यब्दि - (बहुव्रीवह)
8. कमलनयन - कमल क
े समान नयन - (कमविािय)
9. कमलनयन - कमल क
े समान नयन हैं वजसक
े अर्ावत विष्णु - (बहुव्रीवह)
10. पीताोंबि - पीले हैं ज अोंबि (िस्त्र) - (कमविािय)
11. पीताोंबि - पीले अोंबि हैं वजसक
े अर्ावत क
ृ ष्ण - (बहुव्रीवह)
धद्वगु औि बहुव्रीध समास में अंति
विगु समास का पहला पद सोंख्यािािक विशेषण ह ता है औि दू सिा पद विशेष्य
ह ता है जबवक बहुव्रीवह समास में समस्त पद ही विशेषण का कायव किता है।
जैसे-
1. ितुभुवज - िाि भुजाओों का समूह - विगु समास।
2. ितुभुवज - िाि है भुजाएाँ वजसकी अर्ावत विष्णु - बहुव्रीवह समास।
3. पोंििटी - पााँि िट ों का समाहाि - विगु समास।
4. पोंििटी - पााँि िट ों से वघिा एक वनवित स्र्ल - बहुव्रीवह समास।
5. वत्रल िन - तीन ल िन ों का समूह - विगु समास।
6. वत्रल िन - तीन ल िन हैं वजसक
े अर्ावत वशि - बहुव्रीवह समास।
7. दशानन - दस आनन ों का समूह - विगु समास।
8. दशानन - दस आनन हैं वजसक
े अर्ावत िािण - बहुव्रीवह समास।
धद्वगु औि कमविािय में अंति
(i) विगु का पहला पद हमेशा सोंख्यािािक विशेषण ह ता है ज दू सिे पद की
वगनती बताता है जबवक कमविािय का एक पद विशेषण ह ने पि भी
सोंख्यािािक कभी नहीों ह ता है।
(ii) विगु का पहला पद ही विशेषण बन कि प्रय ग में आता है जबवक कमविािय
में क ई भी पद दू सिे पद का विशेषण ह सकता है। जैसे-
1. निित्न - नौ ित्न ों का समूह - विगु समास
2. ितुिवणव - िाि िणो का समूह - विगु समास
3. पुरुष त्तम - पुरुष ों में ज है उत्तम - कमविािय समास
4. िि त्पल - िि है ज उत्पल - कमविािय समास
प्रस्तुतीकिण
अधदधत धमश्र (स) २०२३

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  • 2. अधिवेशन संख्या -1 धवषय : ध ंदी समास समास की परिभाषा समास विग्रह समास क े भेद अव्ययीभाि समास
  • 3. इस लेख में हम समास औि समास क े भेद ों क उदाहिण सवहत जानेंगे। समास वकसे कहते हैं? सामावसक शब्द वकसे कहते हैं? पूिवपद औि उत्तिपद वकसे कहते हैं? समास विग्रह क ै से ह ता है? समास औि सोंवि में क्या अोंति है? समास क े वकतने भेद हैं? समास
  • 4.
  • 5. समास की परिभाषा समास का तात्पयव ह ता है- संधिप्तीकिण। इसका शाब्दब्दक अर्व ह ता है- छोटा रूप। अर्ावत् जब द या द से अविक शब्द ों से वमलकि ज नया औि छ टा शब्द बनता है उस शब्द क समास कहते हैं। दू सिे शब्ों में- द या द से अविक शब्द ों से वमलकि बने हुए एक निीन एिों सार्वक शब्द (वजसका क ई अर्व ह ) क समास कहते हैं। जैसे – ‘िस ई क े वलए घि’ इसे हम ‘िस ईघि’ भी कह सकते हैं।
  • 6. समास क े वनयम ों से वनवमवत शब्द सामावसक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास ह ने क े बाद विभब्दिय ों क े विह्न गायब ह जाते हैं। जैसे - िस ई क े वलए घि = िस ईघि हार् क े वलए कडी = हर्कडी नील औि कमल = नीलकमल िाजा का पुत्र = िाजपुत्र सामाधसक शब्
  • 7. पूववपद औि उत्तिपद समास ििना में द पद ह ते हैं, पहले पद क ‘पूिवपद’कहा जाता है औि दू सिे पद क ‘उत्तिपद’कहा जाता है। इन द न ों से ज नया शब्द बनता है ि समस्त पद कहलाता है। जैसे- पूजाघि (समस्तपद) – पूजा (पूिवपद) + घि (उत्तिपद) - पूजा क े वलए घि (समास-विग्रह) िाजपुत्र (समस्तपद) – िाजा (पूिवपद) + पुत्र (उत्तिपद) - िाजा का पुत्र (समास-विग्रह)
  • 8. समास धवग्र सामावसक शब्द ों क े बीि क े सम्बन्ध क स्पष्ट किने क समास- विग्रह कहते हैं। विग्रह क े बाद सामावसक शब्द गायब ह जाते हैं अर्ातव जब समस्त पद क े सभी पद अलग-अलग वकय जाते हैं, उसे समास-विग्रह कहते हैं। जैसे - माता-वपता = माता औि वपता। िाजपुत्र = िाजा का पुत्र।
  • 9. समास औि संधि में अंति संधि का शाब्दब्क अर्व ोता ै- मेल। सोंवि में उच्चािण क े वनयम ों का विशेष महत्व ह ता है। इसमें द िणव ह ते हैं, इसमें कहीों पि एक त कहीों पि द न ों िणों में विया विच्छे द कहलाती है। सोंवि में वजन शब्द ों का य ग ह ता है, उनका मूल अर्व नहीों बदलता।परिितवन ह जाता है औि कहीों पि तीसिा िणव भी आ जाता है। सोंवि वकये हुए शब्द ों क त डने की जैसे - पुस्तक+आलय = पुस्तकालय। समास का शाब्दब्क अर्व ोता ै- सोंक्षेप। समास में िणों क े स्र्ान पि पद का महत्व ह ता है। इसमें द या द से अविक पद वमलकि एक समस्त पद बनाते हैं औि इनक े बीि से विभब्दिय ों का ल प ह जाता है। समस्त पद ों क त डने की प्रविया क विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्द ों क े मूल अर्व क परििवतवत वकया भी जा सकता है औि परििवतवत नहीों भी वकया जा सकता है। जैसे - विषिि = विष क िािण किने िाला अर्ातव वशि।
  • 10.
  • 11. समास क े भेद समास क े मुख्यतः छः भेद माने जाते हैं– 1. अव्ययीभाि समास 2. तत्पुरुष समास 3. कमविािय समास 4. विगु समास 5. िोंि समास 6. बहुब्रीवह समास
  • 12.
  • 13. अव्ययीभाव समास वजस समास का पूिव पद प्रिान ह , औि िह अव्यय ह उसे अव्ययीभाि समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप वलोंग, ििन, कािक, में नहीों बदलता है, ि हमेशा एक जैसा िहता है। दू सिे शब्द ों में यवद एक शब्द की पुनिािृवत्त ह औि द न ों शब्द वमलकि अव्यय की तिह प्रय ग ह ों, िहााँ पि अव्ययीभाि समास ह ता है। सोंस्क ृ त में उपसगव युि पद भी अव्ययीभाि समास ही मने जाते हैं। इसमें पहला पद उपसगव ह ता है जैसे अ, आ, अनु, प्रवत, हि, भि, वन, वनि, यर्ा, याित आवद उपसगव शब्द का ब ि ह ता है।
  • 14. 1. यर्ाशब्दि = शब्दि क े अनुसाि 2. प्रवतवदन = प्रत्येक वदन 3. आजन्म = जन्म से लेकि 4. घि-घि = प्रत्येक घि 5. िात ों िात = िात ही िात में 6. आमिण = मृत्यु तक अव्ययीभाव समास 7. अभूतपूिव = ज पहले नहीों हुआ 8. वनभवय = वबना भय क े 9. अनुक ू ल = मन क े अनुसाि 10. भिपेट = पेट भिकि 11. बेशक = शक क े वबना 12. खुबसूित = अच्छी सूित िाली जैसे -
  • 15. अधिवेशन संख्या -2 धवषय : ध ंदी समास तत्पुरुष समास कमविािय समास िोंि समास
  • 16.
  • 17. तत्पुरुष समास वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह औि पूिवपद गौण ह उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यह कािक से जुडा समास ह ता है। इसमें ज्ञातव्य- विग्रह में ज कािक प्रकट ह ता है उसी कािक िाला ि समास ह ता है। इसे बनाने में द पद ों क े बीि कािक विन् ों का ल प ह जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास में सािािणतः प्रर्म पद विशेषण औि वितीय पद विशेष्य ह ता है। वितीय पद, अर्ावत बादिाले पद क े विशेष्य ह ने क े कािण इस समास में उसकी प्रिानता िहती है।
  • 18. जैसे - तत्पुरुष समास 1. िमव का ग्रन्थ = िमवग्रन्थ 2. िाजा का क ु माि = िाजक ु माि 3. तुलसीदासक ृ त = तुलसीदास िािा क ृ त इसमें कताव औि सोंब िन कािक क छ डकि शेष छ: कािक विन् ों का प्रय ग ह ता है। जैसे- कमव कािक, किण कािक, सम्प्रदान कािक, अपादान कािक, सम्बन्ध कािक, अविकिण कािक इस समास में दू सिा पद प्रिान ह ता है।
  • 19. कमव तत्पुरुष - इसमें द पद ों क े बीि में कमवकािक वछपा हुआ ह ता है। कमवकािक का विह्न ‘क ’ ह ता है। ‘क ’ क कमवकािक की विभब्दि भी कहा जाता है। उसे कमव तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘क ’ क े ल प से यह समास बनता है। जैसे - ग्रोंर्काि = ग्रन्थ क वलखने िाला। किण तत्पुरुष- जहााँ पि पहले पद में किण कािक का ब ि ह ता है। इसमें द पद ों क े बीि किण कािक वछपा ह ता है। किण कािक का विह्न या विभब्दि ‘क े िािा’ औि ‘से’ ह ता है। उसे किण तत्पुरुष कहते हैं। ‘से’ औि ‘क े िािा’ क े ल प से यह समास बनता है। जैसे -िाब्दिवकिवित = िािीवक क े िािा िवित।
  • 20. सम्प्रदान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क े बीि सम्प्रदान कािक वछपा ह ता है। सम्प्रदान कािक का विन् या विभब्दि ‘क े वलए’ ह ती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘क े वलए’ का ल प ह ने से यह समास बनता है। जैसे - सत्याग्रह = सत्य क े वलए आग्रह अपादान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क े बीि में अपादान कािक वछपा ह ता है। अपादान कािक का विन् या विभब्दि ‘से अलग’ ह ता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘से’ का ल प ह ने से यह समास बनता है। जैसे - पर्भ्रष्ट = पर् से भ्रष्ट
  • 21. सम्बन्ध तत्पुरुष- इसमें द पद ों क े बीि में सम्बन्ध कािक वछपा ह ता है। सम्बन्ध कािक क े विन् या विभब्दि ‘का, ‘क े , ‘की’ ह ती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘का, ‘क े , ‘की’ आवद का ल प ह ने से यह समास बनता है। जैसे - िाजसभा = िाजा की सभा अधिकिण तत्पुरुष - इसमें द पद ों क े बीि अविकिण कािक वछपा ह ता है। अविकिण कािक का विन् या विभब्दि ‘में, ‘पि’ ह ता है। उसे अविकिण तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘में’ औि ‘पि’ का ल प ह ने से यह समास बनता है। जैसे - जलसमावि = जल में समावि
  • 22. तत्पुरुष समास क े प्रकाि 1. नञ् तत्पुरुष समास- इसमें पहला पद वनषेिात्मक ह ता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - 1. असभ्य = न सभ्य। 2. अनावद = न आवद। 3. असोंभि = न सोंभि। 4. अनोंत = न अोंत।
  • 23.
  • 24. 2. कमविािय समास वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह ता है, वजसक े वलोंग, ििन भी सामान ह ते हैं। ज समास में विशेषण-विशेष्य औि उपमेय-उपमान से वमलकि बनते हैं, उसे कमविािय समास कहते हैं। कमविािय समास में व्यब्दि, िस्तु आवद की विशेषता का ब ि ह ता है। कमविािय समास क े विग्रह में ‘है ज , ‘क े समान है ज ’ तर्ा ‘रूपी’ शब्द ों का प्रय ग ह ता है। जैसे - 1. िन्द्रमुख - िन्द्रमा क े सामान मुख िाला - (विशेषता) 2. दहीिडा - दही में ड ू बा बडा - (विशेषता) 3. गुरुदेि - गुरु रूपी देि - (विशेषता) 4. ििण कमल - कमल क े समान ििण - (विशेषता) 5. नील गगन - नीला है ज असमान - (विशेषता)
  • 25.
  • 26. द्वंद्व समास इस समास में द न ों पद ही प्रिान ह ते हैं इसमें वकसी भी पद का गौण नहीों ह ता है। ये द न ों पद एक-दू सिे पद क े विल म ह ते हैं लेवकन ये हमेशा नहीों ह ता है। इसका विग्रह किने पि औि, अर्िा, या, एिों का प्रय ग ह ता है उसे िोंि समास कहते हैं। िोंि समास में य जक विन् (-) औि 'या' का ब ि ह ता है। जैसे - 1. जलिायु = जल औि िायु। 2. अपना-पिाया = अपना या पिाया। 3. पाप-पुण्य = पाप औि पुण्य। 4. िािा-क ृ ष्ण = िािा औि क ृ ष्ण। 5. अन्न-जल = अन्न औि जल। 6. नि-नािी = नि औि नािी। 7. गुण-द ष = गुण औि द ष। 8. देश-विदेश = देश औि विदेश।
  • 27. अधिवेशन संख्या -3 धवषय : ध ंदी समास बहुब्रीवह समास विगु समास
  • 28.
  • 29. 3. धद्वगु समास विगु समास में पूिवपद सोंख्यािािक ह ता है औि कभी-कभी उत्तिपद भी सोंख्यािािक ह ता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुि सोंख्या वकसी समूह क दशावती है, वकसी अर्व क नहीों। इससे समूह औि समाहाि का ब ि ह ता है। उसे विगु समास कहते हैं। जैसे – 1. निग्रह = नौ ग्रह ों का समूह। 2. द पहि = द पहि ों का समाहाि। 3. वत्रिेणी = तीन िेवणय ों का समूह। 4. पोंितन्त्र = पाोंि तोंत्र ों का समूह। 5. वत्रल क = तीन ल क ों का समाहाि। 6. शताब्दी = सौ अब्द ों का समूह। 7. सप्तऋवष = सात ऋवषय ों का समूह। 8. वत्रक ण = तीन क ण ों का समाहाि। 9. सप्ताह = सात वदन ों का समूह। 10. वतिोंगा = तीन िोंग ों का समूह। 11. ितुिेद = िाि िेद ों का समाहाि।
  • 30.
  • 31. बहुब्रीध समास इस समास में क ई भी पद प्रिान नहीों ह ता। जब द पद वमलकि तीसिा पद बनाते हैं तब िह तीसिा पद प्रिान ह ता है। इसका विग्रह किने पि “िाला, है, ज , वजसका, वजसकी, वजसक े , िह” आवद आते हैं, िह बहुब्रीवह समास कहलाता है। दू सिे शब्ों में- वजस समास में पूिवपद तर्ा उत्तिपद द न ों में से क ई भी पद प्रिान न ह कि क ई अन्य पद ही प्रिान ह , िह बहुव्रीवह समास कहलाता है। वजस समस्त-पद में क ई पद प्रिान नहीों ह ता, द न ों पद वमल कि वकसी तीसिे पद की ओि सोंक े त किते है, उसमें बहुव्रीवह समास ह ता है। 'नीलक ों ठ', नीला है क ों ठ वजसका अर्ावत वशि। यहााँ पि द न ों पद ों ने वमल कि एक तीसिे पद 'वशि' का सोंक े त वकया, इसवलए यह बहुव्रीवह समास है।
  • 32. इस समास क े समासगत पद ों में क ई भी प्रिान नहीों ह ता, बब्दि पूिा समस्तपद ही वकसी अन्य पद का विशेषण ह ता है। जैसे - 1. गजानन = गज का आनन है वजसका (गणेश) 2. वत्रनेत्र = तीन नेत्र हैं वजसक े (वशि) 3. नीलक ों ठ = नीला है क ों ठ वजसका (वशि) 4. लम्ब दि = लम्बा है उदि वजसका (गणेश) 5. दशानन = दश हैं आनन वजसक े (िािण) 6. ितुभुवज = िाि भुजाओों िाला (विष्णु) 7. पीताम्बि = पीले हैं िस्त्र वजसक े (क ृ ष्ण) 8. िििि= िि क िािण किने िाला (विष्णु)
  • 33.
  • 34. जैसे – 1. 'िििि' िि क िािण किता है ज अर्ावत 'श्रीक ृ ष्ण’। 2. नीलक ों ठ - नीला है ज क ों ठ - (कमविािय) 3. नीलक ों ठ - नीला है क ों ठ वजसका अर्ावत वशि - (बहुव्रीवह) 4. लोंब दि - म टे पेट िाला - (कमविािय) 5. लोंब दि - लोंबा है उदि वजसका अर्ावत गणेश - (बहुव्रीवह) 6. महात्मा - महान है ज आत्मा - (कमविािय) 7. महात्मा - महान आत्मा है वजसकी अर्ावत विशेष व्यब्दि - (बहुव्रीवह) 8. कमलनयन - कमल क े समान नयन - (कमविािय) 9. कमलनयन - कमल क े समान नयन हैं वजसक े अर्ावत विष्णु - (बहुव्रीवह) 10. पीताोंबि - पीले हैं ज अोंबि (िस्त्र) - (कमविािय) 11. पीताोंबि - पीले अोंबि हैं वजसक े अर्ावत क ृ ष्ण - (बहुव्रीवह)
  • 35. धद्वगु औि बहुव्रीध समास में अंति विगु समास का पहला पद सोंख्यािािक विशेषण ह ता है औि दू सिा पद विशेष्य ह ता है जबवक बहुव्रीवह समास में समस्त पद ही विशेषण का कायव किता है। जैसे- 1. ितुभुवज - िाि भुजाओों का समूह - विगु समास। 2. ितुभुवज - िाि है भुजाएाँ वजसकी अर्ावत विष्णु - बहुव्रीवह समास। 3. पोंििटी - पााँि िट ों का समाहाि - विगु समास। 4. पोंििटी - पााँि िट ों से वघिा एक वनवित स्र्ल - बहुव्रीवह समास। 5. वत्रल िन - तीन ल िन ों का समूह - विगु समास। 6. वत्रल िन - तीन ल िन हैं वजसक े अर्ावत वशि - बहुव्रीवह समास। 7. दशानन - दस आनन ों का समूह - विगु समास। 8. दशानन - दस आनन हैं वजसक े अर्ावत िािण - बहुव्रीवह समास।
  • 36. धद्वगु औि कमविािय में अंति (i) विगु का पहला पद हमेशा सोंख्यािािक विशेषण ह ता है ज दू सिे पद की वगनती बताता है जबवक कमविािय का एक पद विशेषण ह ने पि भी सोंख्यािािक कभी नहीों ह ता है। (ii) विगु का पहला पद ही विशेषण बन कि प्रय ग में आता है जबवक कमविािय में क ई भी पद दू सिे पद का विशेषण ह सकता है। जैसे- 1. निित्न - नौ ित्न ों का समूह - विगु समास 2. ितुिवणव - िाि िणो का समूह - विगु समास 3. पुरुष त्तम - पुरुष ों में ज है उत्तम - कमविािय समास 4. िि त्पल - िि है ज उत्पल - कमविािय समास