मन और बुद्धि किसी भी मनुष्य के लिए एक समान हो सकते हैं परंतु दोनों के काम करने का तरीका और कार्यक्षेत्र भिन्न होते हैं।
तो आइए जानते हैं मन और बुद्धि के फर्क के साथ ही मन की कार्यशैली और मन से उपजे भावों और उनसे संभालने के उपायों के बारे में।
लेखक मन और बुद्धि के बारे में परिचय करते हुए कहते हैं जबसे मनुष्य अस्तित्व में आया तबसे हर गुजरते वक्त के साथ उसमें विकास हुआ साथ ही मनुष्य बुद्धि का विकास हुआ, अपने जीवन को संवारने के लिए मनुष्य ने उसी बुद्धि का उपयोग करके हर चीज का आविष्कार किया, अपने लिए घर बनाने से लेकर आधुनिक युग की हर टेक्नोलॉजी के पीछे बुद्धि का इस्तेमाल ही तो है।
मनुष्य के आनंद, वैभव से लेकर चिकित्सा क्षेत्र में बहुत विकास किया। परंतु आपका ध्यान आकर्षित करने वाली बात यह है कि इतना सब कुछ पाने के बाद भी क्या मनुष्य के जीवन में सुख, शांति या आनंद या गए हैं? आज भी मनुष्य के जीवन में वही क्रोध, अहंकार, दुख, असफलता, चिंता, तनाव, हिंसा सभी कुछ है जैसा कि आदिकाल में था आखिर इसका कारण क्या है?
लेखक इस बारे में बताते हैं कि यह सब मनुष्य के भीतर उठने वाले भावों के कारण है और इन सब भावों का ताल्लुक मन से है।
मन और बुद्धि किसी भी मनुष्य के लिए एक समान हो सकते हैं परंतु दोनों के काम करने का तरीका और कार्यक्षेत्र भिन्न होते हैं।
तो आइए जानते हैं मन और बुद्धि के फर्क के साथ ही मन की कार्यशैली और मन से उपजे भावों और उनसे संभालने के उपायों के बारे में।
लेखक मन और बुद्धि के बारे में परिचय करते हुए कहते हैं जबसे मनुष्य अस्तित्व में आया तबसे हर गुजरते वक्त के साथ उसमें विकास हुआ साथ ही मनुष्य बुद्धि का विकास हुआ, अपने जीवन को संवारने के लिए मनुष्य ने उसी बुद्धि का उपयोग करके हर चीज का आविष्कार किया, अपने लिए घर बनाने से लेकर आधुनिक युग की हर टेक्नोलॉजी के पीछे बुद्धि का इस्तेमाल ही तो है।
मनुष्य के आनंद, वैभव से लेकर चिकित्सा क्षेत्र में बहुत विकास किया। परंतु आपका ध्यान आकर्षित करने वाली बात यह है कि इतना सब कुछ पाने के बाद भी क्या मनुष्य के जीवन में सुख, शांति या आनंद या गए हैं? आज भी मनुष्य के जीवन में वही क्रोध, अहंकार, दुख, असफलता, चिंता, तनाव, हिंसा सभी कुछ है जैसा कि आदिकाल में था आखिर इसका कारण क्या है?
लेखक इस बारे में बताते हैं कि यह सब मनुष्य के भीतर उठने वाले भावों के कारण है और इन सब भावों का ताल्लुक मन से है।
The Smart Way Of Learning English Fast volume 2
খুব সহজে ইংরেজিতে কথা বলা শিখুন !!কম সময়ে, কম পরিশ্রমে - বেশী গ্রামার না জেনেও ইংরেজিতে মোটামুটি সুন্দর কথা বলতে চান বা স্মার্টলি কথা বলতে!!!
আপনি যদি মোস্ট কমন বা সবচেয়ে বেশি ব্যবহৃত ইংরেজি বাক্যাংশ বা এক্সপ্রেশন গুলোতে দক্ষ হয়ে থাকেন তাহলে স্পোকেন ইংলিশ তথা ইংলিশে কথা বলা আপনার জন্য কোন ঘটনাই হবে না। এই বইতে মোস্ট কমন সব ইংলিশ এক্সপ্রেশন ক্যাটাগরি আকারে বাংলা অর্থসহ দেওয়া আছে।
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समय की सीख समय पर ले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी महापुरुषों का मार्गदर्शन है।
कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामोनिशान नहीं है।
अतः पहली बात यह कि अपने जीवन के कर्तव्यों को ऐसा निभाया जाये कि करने को कुछ शेष कभी भी न रह जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यह है कि सदा सत्कर्म ही करें।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अंकेक्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन हमारा सबसे निकट है, कौन दूर है, कौन शत्रु है और कौन हितशत्रु हैं यह हमें समय ही सिखाता है।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
On the occasion of of the Sadhu Sadhavi Sammelan 2015, I am sharing my ideas and strategies for strengthening Shraman Sangh for the cause of nation building and the way forward
Similar to नैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdf (20)
5. नै तकता का सुख
परम पावन दलाई लामा
अनुवादक: त जन र व वमा
Bharati Prakashan
Banaras, India
6. Contents
तावना 3
अनुवादक क
े दो श द 5
अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश 7
अ याय २ - न जा न रह य 14
अ याय ३ - ती यसमु पाद एवम् यथाथ का व प 21
अ याय ४ - ल य का पुन नधारण 28
अ याय ५ - एक सव म भावना 36
अ याय ६ - संयम क नै तकता 44
अ याय ७ - स ण क नै तकता 53
अ याय ८ - क णा क नै तकता 63
अ याय 9 - नै तकता एवं ःख 67
अ याय १० - ववेक क आव यकता 72
अ याय ११ - वै क उ रदा य व 78
अ याय १२ - न ा क
े सोपान 83
अ याय १३ - समाज म नै तकता 86
अ याय १४ - शां त एवं नःश ीकरण 96
अ याय १५- आधु नक समाज म धम क भू मका 103
अ याय १६ - एक वन आ ह 107
7. तावना
सोलह वष क अव ा म अपना देश खो कर एवं चौबीस वष क अव ा म शरणाथ बन
मने अपने जीवन म बड़ी क ठनाइय का सामना कया है । जब म उनक
े वषय म सोचता
ँ तो लगता है क उनसे बचने का मेरे पास न तो कोई साधन था न ही उनका कोई अ ा
समाधान संभव था । फर भी, जहाँ तक मेरी मान सक शां त एवं वा य का है, म
दावा कर सकता ँ क मने उनका सामना भली भां त कया है । इसक
े फल व प म अपने
सारे साधन --मान सक, शारी रक, एवं आ या मक--क
े साथ उन क ठनाइय का सामना
करने म सफल रहा ँ। अगर म चता से धराशायी हो जाता, तो मेरे वा य पर इसका
बुरा असर होता। मेरे काय म भी बाधा होती ।
[1]
जब अपने आसपास देखता ँ तो पाता ँ क सफ हम त बत क
े शरणाथ और व ा पत
समुदाय क
े लोग ही नह क ठनाइय का सामना करते ह। हर जगह एवं हर समाज म लोग
क एवं वपदा झेलते ह, वे भी जो वतं ता एवं भौ तक समृ का आन द लेते ह। वा तव
म, मुझे ऐसा लगता है क हम मनु य का अ धकांश ःख हमारे वयं का कया है।
इसी लए एक स ा त क
े प म कम से कम इससे बचना संभव है। म यह भी देखता ँ
क सामा यतया ऐसे जनका वहार नै तक प से सकारा मक होता है, वे
यादा स एवम् स तु रहते ह उन लोग क तुलना म जो नै तकता क अवहेलना करते
ह। इससे मेरी धारणा क पु है क अगर हम अपने वचार एवं अपने वहार म बदलाव
ला सक, तो हम न तो सफ क का सामना यादा आसानी से करना सीखगे, हम ब त
सारे ख को उ प होने से भी रोक सकगे।
[2]
म इस पु तक म यह दखाने का यास क ँ गा क पा रभा षक पद “सकारा मक नै तक
वहार” से मेरा या ता पय है। ऐसा करने म म मानता ँ क नै तकता एवं सदाचार क
सफलता से सामा यीकरण करना अथवा एकदम न त ा या क ठन है। ब त ही
वरले, अगर कभी हो भी तो, कोई घटना एकदम ेत या याम होती है । एक ही काय भ
प र तय म भ नै तकता एवं सदाचार क
े रंग एवं मा ा का होता है। उसी समय, यह
आव यक है क इसम हम इस बात पर एकमत ह क सकारा मक काय या है और
नकारा मक काय या है, सही या है और गलत या है, उ चत या है और अनु चत या
है। पहले लोग म धम क
े लए जो आदर था उसका अथ था क एक या सरे धम क
े
अ यास से ब सं यक लोग नै तक आचार बनाये रखते थे। ले कन अब ऐसा नह है ।
8. इस लए हम मूलभूत नै तक स ांत क ापना करने क
े लए न य ही कोई सरा
उपाय ढूंढना चा हए ।
[3]
पाठक गण यह नह सोच क दलाई लामा क
े प म मेरे पास देने क
े लए कोई वशेष
समाधान है। इन पृ म ऐसा क
ु छ नह है जो पहले नह कहा गया हो । वा तव म मुझे
लगता है क जो चतन एवं वचार यहाँ तुत कये गये ह, उ ह वे ब त सारे लोग मानते ह
जो हम मनु य क सम या एवं क क
े समाधान क
े बारे म सोचते ह और यास करते
ह। मेरे क
ु छ म क
े सुझाव क
े उ र म एवं पाठक को यह पु तक तुत करने म मेरी
आशा है क उन करोड़ लोग को आवाज़ मलेगी ज ह सावज नक प से अपने वचार
को कट करने का मौका नह मलता है तथा ज ह म मूक ब सं यक मानता ँ ।
[4]
ले कन पाठक यह भी याद रख क मेरी व धवत श ा पूण प से धा मक एवं
आ या मक रही है। बचपन से ही मेरी श ा का मुख (और नर तर) वषय बौ दशन
एवं मनो व ान रहा है। खास तौर से मने गेलुक था क
े धा मक, दाश नक व ान क
े काय
का अ ययन कया है, जस पर रा से सारे दलाई लामा आते रहे ह। धा मक ब लवाद म
पूणतया व ास होने क
े कारण मने अ य बौ पर रा क
े मु य शा का भी अ ययन
कया है । पर तु इसक तुलना म मुझे आधु नक धम नरपे दशन को जानने का कम मौका
मला है। फर भी यह एक धा मक पु तक नह है । यह बौ धम क
े बारे म भी नह है।
मेरा ल य नै तकता क
े लए एक ऐसे माग का आ ान करना है, जो वै क स ांत पर
आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर।
[5]
इस कारण वश, सामा य पाठक गण क
े लए पु तक लखना बना चुनौ तय क
े नह आ
है, एवं यह एक समूह क
े प र म का फल है। एक खास सम या इस कारण से ई क
त बती भाषा क
े कई अ नवाय श द का आधु नक भाषा म अनुवाद करना क ठन है। इस
पु तक का उ े य एक दशनशा का आलेख बनना नह था, इस लए मने यास कया है
क म इन त य का ऐसे वणन क ँ ता क जो वशेष पाठक नह ह वे भी समझ सक
एवं उनका अ य भाषा म भी अनुवाद हो सक
े । ऐसा करने म, एवं उन लोग क
े
लए सु ा या करने म जनक भाषा एवं सं क
ृ त मेरे से काफ भ हो, यह संभव
है क त बती भाषा क गूढ़ता खोयी हो, और क
ु छ अनचाहे अथ जुड़ गये ह । मेरा व ास
है क सतक संपादन ने ऐसा यूनतम कर दया हो । जब भी कोई ऐसी गलती सामने आती
है, मुझे आशा है क आने वाले सं करण म म उनका सुधार क ँ गा । इस बीच म, इस
9. वषय म उनक सहायता क
े लए, इसे इं लश म अनुवाद करने क
े लए, एवं उनक
े
अन गनत सुझा क
े लए म डॉ टर थु टेन ज पा को ध यवाद देता ँ। म ी ए आर
नामन को भी संशोधन क
े लए ध यवाद देता ँ। यह ब मू य रहा है। अंत म, म उन सब
को ध यवाद देना चाहता ँ ज ह ने इस पु तक को सफल बनाने म सहायता क है।
[6]
धमशाला, फ़रवरी १९९९
मनन यो य
१. “सकारा मक नै तक वहार” से लेखक का या ता पय है?
२. आप नै तकता क
े ऐसे माग क स ावना क
े बारे म या सोचते ह जो वै क स ांत
पर आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर।
10. अनुवादक क
े दो श द
मेरा इस पु तक से स ब पं ह साल से यादा हो गया है, पहले पाठक क
े प म फर
अनुवाद क
े दौरान। बौ माग और परम पावन दलाई लामा जी से प रचय, दोन ही
सौभा य मुझे इस पु तक क
े ारा मला। जीवन क
े क का सामना करने म इस पु तक से
इतनी मदद मली है क अफसोस होता क यह मुझे वष पहले य नह मली। अनुवादन
म यास लगाने क पीछे मेरी कामना है क मेरी मातृ भू म म ब त से लोग को इससे वही
लाभ मलेगा जो मुझे मला है।
इस पु तक से मुझे जो पहली सीख मली वह यह क, नै तक आचरण मेरे ही हत म है।
यह वा य शायद काफ सामा य लगे ले कन इस पु तक को पढ़ने क
े पहले मेरी यह धारणा
थी क नै तकता अ बात है, पर तु नै तक वहार से कता क क
ु छ न क
ु छ हा न ही
होती है। शायद क
ु छ लोग ऐसे को मूख भी समझ। इस वषय पर हद क
े यात
ंगकार ी ह र शंकर परसाई जी का नबंध “बेचारा भला आदमी” पढ़ने यो य है। परम
पावन दलाई लामा जी क इस कालजयी रचना क
े तुत ह द अनुवाद क
े स ब म मेरा
वचार है क य द लोग नै तक आचरण म स ः न हत अपने हत-लाभ को समझगे तो
इससे लोग म नै तक आचरण क
े त उ साह बढ़ेगा और जगत का क याण होगा।
मुझे सरी समझ यह मली क नै तकता एक ज टल एवम् सू म वचार का वषय है।
सफ यह कह देना पया त नह है क “झूठ बोलना पाप है” अथवा “चोरी करना अनु चत
है”। ी दलाई लामा जी नै तकता क ववेचना, हमारे आचरण क
े सर पर पड़ने वाले
भाव क
े संग म करक
े , हम सब को इस वषय पर नवीन कोण से सोचने समझने का
अवसर देते ह।
मने एक बार ी दलाई लामा जी से सुना था क, वाथ दो तरह को होता है - बु मानी
वाला वाथ एवं मूखता वाला वाथ । नै तक आचरण का अ यास बु मानी वाला वाथ है
। चूँ क वाथ सुनने म थोड़ा कठोर लगता है, अतः मेरे एक म ने सुझाव दया क हम इसे
जाग कता स हत वयम् का हत करने का भाव कह ।
यादातर लोग ी दलाई लामा जी को एक धमगु क
े प म जानते ह एवं अ सर
धमगु क पु तक वचन वाली होती ह क तु यह पु तक वचन नह है । म इस
पु तक को अपनी भौ तक शा , रासायन शा एवं ग णत आ द वषय क पु तक क
े
साथ रखता ँ । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने अपने अनुभव क
े आधार पर मानव
मा को जीवन जीने क शैली सखाई है जसका हम अपने दै नक जीवन म योग करक
े
वयम् इस न कष पर प ँच सकते ह क हम इससे या लाभ हो रहा है, या नह ।
11. इस पु तक को पढ़ने से यह होता है क जस का आचरण नै तकता, नेह एवं
क णा यु होता है वह उन लोग से यादा सुखी होता है जो इन धारणा क अवहेलना
करते ह । साथ ही यह त य भी होता है क, नै तक वहार ारा और क
े क याण म
ही हमारा वयम् का क याण भी न हत है ।
इस पु तक म आप ःख एवं पीड़ा का कई बार उ लेख देखगे । सामा यतया हम इन श द
को पयायवाची समझते ह । पर तु इस पु तक म दोन का ता पय भ है । पीड़ा का अथ
है, अ नवाय शारीरक क जैसे ज म, रोग, वृ ाव ा, घटना इ या द एवं ःख का ता पय
मान सक अव ा से है । ःख वह है जो ऐसे को भी होता है जसका पेट भरा होता
है, जसक
े तन पर अ े व होते ह, बक म पया त धन होता है। ःख ऐसी चीज़ है जो
वातानुक
ू लत क म बैठने वाले को भी थत करती है । ी दलाई लामा जी इस
मान सक ःख को थ का लेश कहते ह । इस पु तक म उ ह ने वह सारे उपाय बताय ह
जसक सहायता से हम अपने इन थ ःख का उ मूलन कर सकते ह । ी दलाई लामा
जी ने एक बार कहा था पीड़ा अ नवाय है ले कन ःख क
ृ म है । इस पु तक म उ ह ने
एक जीवन शैली का वणन कया है जससे हम ःख क स ावना को यूनतम कर सकते
ह ।
म श ा एवं वसाय से इंजी नयर ँ एवं हम इंजी नयर का वभाव है क हम कसी भी
श ा को बना तक क
े वीकार नह कर सकते। इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने सफ
उ चत एवं अनु चत क प रभाषा ही नह द है, ब क उ ह ने उ चत को सट क तक व
उदाहरण ारा समझाया भी है। मेरे लए यह पु तक उपयोगी रही है य क उ चत एवं
अनु चत क प रभाषा क
े साथ उ ह ने एक अ य त सहज जीवन शैली क श ा द है
जससे हम सभी अपने मान सक ःख को कम कर सकते ह ।
ी दलाई लामा जी पूरे व म अ य त लोक य ह । मने उ ह पहली बार सैन ां स को,
अमे रका म देखा था । म दशक म उनक
े लए नेह एवं आदर को देख कर अच त था ।
यह भले हा य द लगे, मने कई लोग म इस बात को लेकर ई या का भाव देखा एवं कई
लोग को ी दलाई लामा जी जैसे स बनने का यास करते ये भी देखा है । इस
पु तक म उ ह ने वह सारे रह य बताये ह जनक
े कारण उनका व इतना चुंबक य ह
। लोग छोट से छोट बात पर भी उनक
े ठहाक
े लगाकर हंसने क मता से आ यच कत
रहते ह । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने वह सारे सुझाव दये ह जनका पालन करने
से जीवन क सारी क ठनाइय क
े प ात भी उनक तरह स च रह सकता है ।
ी दलाई लामा जी ने अपने जीवन म जन वराट क ठनाईय का सामना कया है वह हम
सबको पता है, इन सब क
े बावजूद उनक स ः व मान हँसी सभी को मं मु ध कर
देती है।
12. वतं ता क
े प ात भारतवष म समृ बढ़ है । म बहार क
े पछड़े इलाक म काफ समय
तीत करता ँ एवं देखता ँ क वहां भी लोग क
े रहन सहन क
े तर म काफ बदलाव
आ है । बड़े शहर म यह बदलाव और भी अ धक है । आज भारत क
े बड़े नगर म
अमे रका एवं यूरोप क
े सुख-साधन आसानी से उपल ह । भा यवश शारी रक या
भौ तक सुख एवं मान सक सुख म ब त गहरा स ब नह है । यह य काफ क द
होता है क एक सारी शारी रक व भौ तक सुख सु वधा क
े बावज़ूद मन से च तत एवं
खी रहता है ।
आज भारत क
े हर ऐसे समृ , जसे पया त शारी रक व भौ तक सुख ा त है, को
नै तकता क समझ क ब त आव यकता है ता क वह मान सक प से भी सुखी हो सक
। परम पावन ी दलाई लामा जी क यह पु तक हर आधु नक भारतीय क
े लए
अ नवाय होनी चा हए ।
मुझे इस यास म कई लोग से बड़ी मदद मली है। उसमे से मु य ह भारतीय ौ ो गक
सं ान, कानपुर क
े ोफ
े सर अ ण क
ु मार शमा जी, सारनाथ त क
े य त बती
अ ययन व व ालय क
े ोफ
े सर नवांग समतेन जी एवं राजेश क
ु मार म जी, क टहार
क
े नभ क प कार राजर न कमल जी एवं भारती काशन, वाराणसी क
े अ ध ाता ी
आशुतोष पा डेय जी। ोफ
े सर अ ण शमा जी ल बे समय से मेरे मागदशक, म एवं
भाई क तरह रहे ह। उ ह ने एवं ोफ
े सर नवांग समतेन जी ने अपना ब मू य समय देकर
मेरे अनुवाद क गल तय को सुधारा है। क टहार क
े नभ क प कार ी राजर न कमल
जी को म अपना काय सबसे पहले भेजता था और म डरता थे क वे मेरी हद क
अशु य से परेशान होते ह गे, ले कन उ ह ने मुझे कभी ऐसा महसूस नह होने दया।
सारनाथ त क
े य त बती अ ययन व व ालय क
े ंथालय क
े मुख ी राजेश
क
ु मार म क
े लए अपनी क
ृ त ता करने क
े लए मेरे पास श द नह ह । उनक
े पता
ी शव साद म जी एवं उ ह ने इस यास म काफ सहायता क है। राजेश जी ने ही
मेरा प रचय भारती काशन क
े अ ध ाता ी आशुतोष पा डेय जी से करवाया । ी
आशुतोष पा डेय जी से मेरा स ब होना म अपना सौभा य समझता ँ। उनक
े नर तर
तकाज़ा करने क
े कारण म यह काय समय से पूण कर पाया। ऐसी पु तक क
े काशक
आशुतोष जी जैसे लोग ही हो सकते ह जनक
े लए काशन सफ वसाय नह है ब क
वह इस मा यम से देश का क याण भी करना चाहते ह ।
अंत म म परम पावन ी दलाई लामा जी को नमन करता ँ । स ूण मानवता क
े लए
नै तकता का ऐसा नेहपूण एवं धम नरपे ा यान उनक
े जैसा महापु ष ही कर सकता
है।
र व वमा
13. क टहार, बहार, भारत एवं रॉक लन, क
ै लफ़ो नया, संयु गणरा य अमे रका
14. अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश
अ य लोग क तुलना म म आधु नक समाज का नवागंतुक ँ। य प म अपनी मातृभू म
को एक लंबे समय पूव 1959 म छोड़ चुका ँ, और य प भारत म एक शरणाथ क
अव ा मुझे वतमान समाज क
े काफ पास लायी है। अपने जीवन क
े आर क
े वष म
म बीसव शता द क
े यथाथ से अलग थलग ही रहा। क
ु छ हद तक इसक वजह रही है
मेरी दलाई लामा क
े प म नयु । म ब त छोट उ म भ ु बन गया था। इस से यह
भी दखता है क हम त बत क
े लोग को अपने देश को बाक नया से अलग-थलग
पहाड़ क ऊ
ँ ची ृंखला क
े पीछे रखने का नणय मेरी म गलत था।
[1]
क तु आज क
े दन म काफ या ा करता ँ और म इसे अपना सौभा य समझता ँ क म
लगातार नये लोग से मलता रहता ँ। इसक
े अ त र यह भी है क जीवन क
े अनेक े
क
े लोग मुझसे मलने आते ह। ब त से लोग ब त क उठाकर, क
ु छ ढूंढते ए, धमशाला
आते ह जो एक पवतीय पयटन ल है और वास क अव ध म मेरा नवास ल है। इन
लोग म ऐसे भी होते ह ज ह ने बड़े क सहे ह, क
ु छ लोग क
े माता पता का देहांत
हो चुका होता है; क
ु छ क
े प रवार क
े सद य अथवा म ने आ मह या क होती है; क
ु छ
कसर अथवा एड्स जैसी बीमा रय से त होते ह। इसक
े अलावा, वभावतः मेरे साथी
त बत क
े लोग होते ह जनक क ठनाइयाँ एवं परेशा नय क अपनी एक दा ताँ होती है।
भा य से, कई लोग क यह अवा त वक अपे ा होती है क मेरे पास क
ु छ अ त श है
या म क
ु छ वरदान दे सकता ँ। ले कन म सफ एक साधारण मनु य ँ। म यादा से यादा
यह कर सकता ँ क म उनक
े ःख म ह सा ले उनक मदद करने का य न कर सक
ूँ ।
[2]
जहाँ तक मेरा है, सारी नया एवं जीवन क
े अनेक े क
े ब त से लोग से मल कर
मुझे यह एहसास होता क हम सभी मनु य एक जैसे ह। यह स य है क म जतना यादा
नया को देखता ँ उतनी ही यह बात साफ दखती है क हमारी त जो भी हो, हम
समृ ह या गरीब, श त ह या अ श त, हमारी जा त, लग, धम जो भी हो, हम सभी
चाहते ह क हम खुश रह एवं हम ःख न हो। हमारे सारे सोच समझ कर कये गए काय
को और एक कार से अपनी वतमान त क सीमा क
े प र े य म हमारे जीवनयापन
क
े सारे नणय को हम इस वृहत क
े प म देख सकते ह जो हम सभी क
े सामने है,
“म क
ै से सुखी रह सकता ँ?”
[3]
15. मुझे लगता है क हम सुख क एक वृहत खोज म आशा क
े सहारे टक
े ए ह। हम जानते
ह भले हम इस बात को वीकार ना कर, इस बात क कोई न तता नह है क हमारे
भ व य क
े दन हमारे वतमान क तुलना म अ े ह गे। एक पुरानी त बती कहावत है
अगला दन या अगला ज म, हम कभी न त नह हो सकते क पहले या आयेगा।
ले कन हम ल बे समय तक जी वत रहने क आशा करते ह। हम आशा वत रहते ह क
हमारे इस काय अथवा उस काय से हम सुख ा त होगा। हम जो भी करते ह--न ही सफ
गत तर पर, सामा जक तर पर भी--उसे हम मौ लक आकां ा क
े तौर पर देख
सकते ह। वा तव म, हम सभी ाणी इस कामना क
े साझीदार ह। खुशी रहने क एवं ःख
से बचने क कामना या इ ा वै क है। यह हमारी क
ृ त म है। इस बात को यायो चत
ठहराने क
े लए कसी तक क ज रत नह है और यह सामा य त य से मा य होता है क
हम वाभा वक प से खुशी चाहते ह और यह उ चत भी है।
[4]
चाहे अमीर देश हो या गरीब देश, हम हर जगह बलक
ु ल ऐसा ही दखाई देता है। हर
जगह, हर स व साधन से, लोग अपने जीवन को सुधारने म लगे ए ह। फर भी आ य
से मुझे ऐसा लगता है क आ थक प से वक सत रा म रहने वाले लोग, तमाम
कारखान क
े साथ, क
ु छ मामल म पछड़े ए देश क तुलना म कम संतु , कम खुश, एवं
क
ु छ हद तक यादा क भोगते ह। सच तो यह है, जब हम अमीर क तुलना गरीब लोग
से करते ह, तो लगता है क जनक
े पास क
ु छ नह है, वा तव म वे सबसे कम च तत होते
ह, जब क वह शारी रक पीड़ा और क से सत रहते ह। जहाँ तक अमीर लोग का
है, उनम से क
ु छ लोग को अव य ही अपने धन का बु मानी से उपयोग करना आता है
अथात वला सता म ल त रहने क
े बजाय ज रतमंद लोग क सहायता क
े लए,
यादातर को ऐसा करना नह आता है। वे और धन जमा करने क
े च कर म ऐसे उलझे
रहते ह क उनक
े जीवन म कसी अ य चीज़ क
े लए ान ही नह होता है। वे ऐसे डूबे
रहते ह क वे अपने उन खुशी क
े सपन को ही भूल जाते ह जो उ ह समृ दान करते ।
इसक
े फल व प, भ व य म होने वाली घटना क आशंका और यादा धन क
े लालच म
फ
ं स कर वे हमेशा उ पी ड़त रहते ह एवं मान सक और भावा मक क से सत होते ह
भले ही बाहर से वे सफल एवं आरामदायक जीवन तीत करते ए दखते ह । इसका
माण यह है क हम आ थक प से वक सत देश क जनता म ापक प से तनाव,
असंतु , क
ुं ठा, अ न तता, मान सक वषाद, एवं नराशा मलती है। इसक
े अ त र
इस अंदर क पीड़ा का सीधा स बंध सदाचार क
े अथ एवं बु नयाद क
े बारे म बढ़ती ई
ा त से है।
[5]
16. मुझे इस वरोधाभास का बोध अ सर होता है जब म वदेश मण पर जाता ँ। ायः
ऐसा होता है क जब म कसी नये देश म प ँचता ँ, पहले तो सब क
ु छ काफ अ ा और
सु दर लगता है। म जनसे भी मलता ँ वे काफ सौहाद से पेश आते ह। कसी बात क
े
लए शकायत करने का कारण नह होता। ले कन दनानु दन जैसे म लोग से मलता ँ, म
लोग क सम या , उनक परेशा नय एवं चता क
े बारे म सुनता ँ। ऊपरी सतह क
े
नीचे अनेकानेक लोग अपने जीवन से असंतु एवं परेशान होते ह। उ ह अक
े लापन लगता
है जसक
े बाद मान सक वषाद आता है । इसका प रणाम है लेश का वातावरण, जो
वक सत रा का वशेष ल ण सा हो गया है।
[6]
शु म मुझे यह सब देख कर बड़ा आ य होता था। हालाँ क, मने कभी ऐसा नह सोचा
था क सफ भौ तक धन से सभी ख का नवारण हो सकता है, त बत, जो भौ तक प
से सवदा गरीब रहा है, म रहकर म वीकार करता ँ क म सोचता था क समृ ने मनु य
क पीड़ा को कम करने म यादा योगदान दया होगा, जो वा तव म सही नह नकला। मेरी
आशा थी क शारी रक क ठनाइय क
े कम होने से, जैसा क हर वक सत रा म रहने
वाले यादातर लोग क
े लए वा त वकता है, सुख क ा त आसानी से होती होगी,
ब न बत उन लोग क
े जो काफ वकट प र त म रहते ह। इसक
े बजाय, ऐसा लगता है
क
े व ान एवम् तं क अ त ग त से सफ सां यक य सुधार से यादा क
ु छ नह आया
है। कई उदाहरण म ग त का मतलब सफ यह आ क शहर म शानदार भवन और
उनक
े बीच चलने वाले वाहन क सं या बढ़ है। यक नन, क
ु छ तरह क
े क म कमी ई
है, खासकर क
े क
ु छ ा धयाँ कम ई ह। ले कन मुझे लगता है क सब मलाजुला कर
हमारा ःख कम नह आ है।
[7]
इस स दभ म मुझे अपनी शु क प म क या ा क एक बात अ तरह याद है। म
एक ब त समृ प रवार का मेहमान था जो एक बड़े वैभवशाली घर म रहते थे। हर
काफ सौ य और वन था। हर क हर ज रत क
े लए नौकर तैनात थे और म
सोचने लगा क यही सही माण है क धन खुशी का ोत हो सकता है। मेरे मेजबान
वाकई तनाव मु एवं आ म व ासी दखते थे। ले कन जब मने उनक
े नानागार म
आलमारी क
े थोड़े से खुले ए दरवाजे से न द एवं दमाग को शांत करने वाली दवाइय क
कतार देखी, तब मुझे इस बात का जोर से आभास आ क जो बाहर से दखता है और जो
अंदर क स ाई है, उनक
े बीच अ सर काफ बड़ी खाई होती है।
[8]
17. यह वरोधाभास पूरे प म क
े रा म प से व मान है जनम भौ तक संप ता क
े
रहते ए आंत रक ःख--या जसे हम मान सक अथवा भावा मक ःख कह सकते ह--
इतना यादा पाया जाता है। वा तव म, यह इतना ापक है क हम संदेह कर सकते ह क
पा ा य स यता म क
ु छ ऐसी बात है जससे वहाँ रहने वाले लोग क
े ऐसे क म होने क
वृ है? म इसम संदेह करता ँ। इसम कई बाते ह। है क भौ तक ग त ही का
इसम थोड़ा हाथ है। हम यह भी कह सकते ह क आधु नक समाज क
े बढ़ते शहरीकरण
क वजह से यादा तादाद म लोग एक सरे क
े काफ पास पास रहने लगे ह। इस स दभ
म यह सो चये क हम एक सरे पर नभर होने क
े बजाय, आज, जहाँ तक स व होता है,
हम मशीन अथवा बाहरी मदद का सहारा लेते ह। जब क पहले कसान फसल काटने म
मदद क
े लए अपने प रवार क
े सद य को बुला लेते थे, आज क
े दन वे टेलीफोन कर
कसी ठे क
े दार को बुला लेते ह। वे पाते ह क हमारा आधु नक जीवन ऐसे सु नयो जत है
क यह सर पर कम से कम सीधी नभरता क मांग करता है। कमोबेश ापक
मह वाकां ा यही लगती है क हर क
े पास अपना घर हो, अपनी कार हो, अपना
क
ं यूटर हो, ता क हर जहाँ तक स व हो आ म नभर हो जाए। यह वाभा वक है
और आसानी से समझ म आ जाती है। व ान एवं तकनीक ग त से जो हम वाय ता
मली है, उसक
े कई फायदे ह। वा तव म वतमान समय म यह संभव है क हम पहले क
अपे ा कह अ धक आ म नभर हो सकते ह । ले कन इस ग त क
े साथ ऐसी
मान सकता भी पैदा ई है क मेरा भ व य मेरे पड़ोसी पर नह ब क मेरी नौकरी पर, ब त
यादा आ तो मेरे नयो ा पर नभर है। यह हम यह मानने क
े लए ो साहन देती है क
सरे लोग हमारी खुशी क
े लए ज री नह ह और सर क खुशी हमारे लए कोई मायने
नह रखती।
[9]
मेरे वचार म हम लोग ने ऐसा समाज बना लया है, जसम लोग क
े लए एक सरे क
ओर साधारण नेह दखाना भी क ठन एवं क ठनतर हो गया है। सामू हकता एवं अपनेपन
क जगह, जो कम समृ वाले समाज (जो यादातर ामीण होते ह ) का आ त करने
वाला वभाव हम पाते ह, समृ देश म काफ अक
े लापन और उदासीनता पाते ह। करोड़
लोग क
े एक सरे क
े बलक
ु ल पास पास रहने क
े बावजूद, देखने म आता है क ब त से
लोग क
े लए, वशेषकर बूढ़े लोग क
े लए, उनसे बात करने वाला, उनक
े क
ु े ब लय
क
े अलावा कोई नह है। मुझे अ सर आधु नक समाज एक वशाल खुद-ब-खुद चलने
वाली मशीन क तरह लगता है। बजाय इसक
े क एक मानव इसका नयं ण करे, हर
मनु य इसका अदना सा मह वहीन ह सा बन गया है, जसक
े पास मशीन क
े साथ-साथ
चलने क
े अलावा और कोई चारा नह है।
18. [10]
वतमान समय म वकास और आ थक वकास क बात, जो लोग क
े अंदर त धा एवं
ई या को बढ़ावा देती है, ने इस सम या को और भी वकराल बना दया है। इसक
े साथ
आती है दखावे को बनाये रखने क ज रत--जो खुद ही सम या, तनाव, एवं ःख का बड़ा
कारण है। फर भी मान सक एवम् भावा मक क जो हम पा ा य स यता म ा त पाते
ह, एक सां क
ृ तक खामी से यादा मूलभूत मानवीय वृ त को त ब बत करता है।
वा तव म मने ऐसे आंत रक क पा ा य रा से बाहर भी देखा है। द ण-पूव ए शया क
े
कई ह स म ऐसा देखा गया है क जैसे जैसे लोग क
े पास संप बढ़ है, पार रक
वचार प तय का लोग पर भाव कम हो रहा है। इसक
े साथ हम पाते ह क प मी
रा म अव त लेश से मलते जुलते ल ण यहाँ भी उभर रहे ह। यह सुझाव देता है क
यह स ावना हम सभी म व मान है, जैसे शारी रक ा धयां अपने प रवेश को
त ब बत करती ह वैसे ही मान सक एवं भावना से संबं धत लेश भी खास प र त क
े
स दभ म उ प होते ह। इस कार से हम द ण, अ वक सत, अथवा “तृतीय व ” क
े
रा म वे सम याएँ पाते ह जो यादातर उसी नया क
े उसी ह से तक सी मत होती ह,
जैसे व ता का अभाव। वक सत देश म हम गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारी क
े
बदले, तनाव संबं धत रोग अ धक पाते ह। इनका संक
े त यह है और ऐसा मानने का बल
तक है क बाहरी ग त पर अ य धक यान दये जाने एवं आधु नक समाज म ा त ःख,
चता , और असंतोष क
े बीच एक गहरा स ब है।
[11]
यह सुनने म एक नराशावाद मू यांकन लग सकता है। ले कन जबतक हम लोग अपनी
सम या क
े प रमाण एवं क
ृ त को वीकार नह करगे, हमलोग उनका सामना करने क
शु आत भी नह कर सकते।
[12]
है क आधु नक समाज क
े भौ तक वकास से उ प तृ णा का मु य कारण व ान
एवं तकनीक क सफलता ही है। अब मनु य क
े इन यास क शंसनीय बात यह है क
ये अ वल ब संतु देते ह। यह ाथना क तरह नह ह जनका प रणाम यादातर
अ य होता है--वह भी जब ाथनाएँ सफल होती ह । हम फल से भा वत होते ह। इससे
सामा य बात और या हो सकती है? भा य से, यह तृ णा हम यह मानने क
े लए
ो सा हत करती है क खुशी क क
ुं जी एक तरफ तो भौ तक समृ म है, एवं सरी तरफ
उस श म जो ान से ा त होती है। इस सब म यह साफ है क जो भी इस बात पर
सावधानीपूवक गौर करता है, पाता है क पहली वाली बात अपने आप ही खुशी नह दे
सकती है और सरी वाली बात का भाव उतना यादा नह है। स ाई तो यह है क
19. ान अपने आप वह खुशी नह दे सकता जो आंत रक वकास से आती है और जो बाहरी
चीज पर नभर नह करती। वा तव म, बाहरी त य क
े बारे म हमारा व तृत ान एक
ब त बड़ी सफलता है, क तु इसी म सी मत रह जाने क चाह हम खुशी देने क
े बजाय
वा तव म काफ खतरनाक हो सकती है। यह हम मानव क
े अनुभव क
े एक वृहत स य से
र कर सकती है, खास करक
े हमारी पार रक नभरता क
े बोध से।
[13]
हम यह भी समझना चा हये क जब हम व ान क बाहरी उपल य पर ब त यादा
नभर होते ह तब इसका प रणाम या होता है। उदाहरण क
े लए, जैसे जैसे हम पर धम
का भाव कम होने लगता है, वैसे वैसे अपने आचरण क
े को लेकर हमारे म त क म
एक म क त बढ़ती जाती है। पहले क
े दन म धम एवं नै तकता क
े बीच म काफ
घ न स ब था। आज क
े दन कई लोग ऐसा मानकर क व ान ने धम क
े अ त व को
नकार दया है, यह पूवधारणा करते ह क आ या मक स ा का कोई सु न त माण नह
है और नै तकता को सफ एक गत नणय मा होना चा हए। जब क पूव म वै ा नक
एवं दाश नक लोग एक ऐसी ठोस न व को ढूंढने क बड़ी ज रत समझते थे जस पर
अप रवतनशील नयम एवं परम स य क ापना क जा सक
े । आज क
े दन ऐसी खोज
को बेकार समझा जाता है। इसक वजह से अब हम एक वपरीत, अ तवाद दशा म चले
गए ह जहां पर अंततः क
ु छ नह बचता है, और जहां स य क
े वचार पर ही उठने लगता
है। यह त हम क
े वल एक अ व ा क ओर ही ले जा सकती है।
[14]
ऐसा कह कर मेरा उ े य वै ा नक उ ोग क आलोचना करना नह है। वै ा नक से मल
कर मने ब त क
ु छ सीखा है और म उनसे वातालाप करने म कोई सम या नह देखता ँ,
चाहे उनका कोण अ तवाद भौ तकवाद वाला ही य न हो। वा तव म जहाँ तक मुझे
याद है, म व ान क
े प र ान से हमेशा मं मु ध रहा ँ। जब म छोटा ब ा था, धा मक एवं
दाश नक पढ़ाई से भी यादा, म दलाई लामा क
े ी म गृह क
े भंडार घर म पड़े ए पुराने
फ म ोजे टर को चलाने क
े बारे म जानने का अ धक इ ुक था। मेरी चता क
े वल इस
बात को लेकर है क हम लोग म व ान क सीमा को नजरंदाज करने क वृ है।
धम को ान क
े परम ोत क
े ान से हटाने क
े यास म व ान वयं समाज म एक अ य
धम जैसा दखने लगता है। इसक
े साथ फर वैसा ही खतरा सामने आता है जब व ान क
े
क
ु छ अनुयायी इसक
े स ांत पर आँख मूँद कर व ास करने लग जाते ह तथा सरे
वचार क तरफ अस ह णु हो जाते ह। व ान क अ त उपल य को देख कर, धम का
व ान ारा व ा पत होना आ य क बात नह लगती है। आदमी को चाँद पर प ँचाने
क साम य से कौन भा वत नह होगा? फर भी यह सच है क अगर, उदाहरण क
े लए,
20. हम एक परमाणु वै ा नक क
े पास जाएँ और पूछ, म एक नै तक वधा से गुजर रहा ँ,
या आप बता सकते ह क मुझे या करना चा हए, तो वह क
े वल अपना सर हला देगा
और हम एक जवाब क
े लए कह और देखने का सुझाव देगा। सामा य प से, वै ा नक
इस संबंध म एक वक ल से कसी बेहतर त म नह है। व ान और कानून, दोन ही
हम अपने काय क
े स ा वत प रणाम क भ व यवाणी करने म मदद कर सकते ह, क तु
दोन म से कोई भी हम यह नह बता सकता क हम नै तक प से क
ै से काय कर। इसक
े
अलावा, हम वै ा नक अनुस ान क खुद क सीमा को पहचानने क ज रत है।
उदाहरण क
े लए, हालाँ क हम स दय से मानव क चेतना क
े बारे म पता है, और यह पूरे
इ तहास म जांच का वषय रही है, वै ा नक क
े सबसे अ े यास क
े बावजूद, वे अभी
भी यह नह समझ सक
े ह क वा तव म यह या है, यह य मौजूद है, यह क
ै से काय
करती है और इसक मूलभूत क
ृ त या है। न तो व ान हम यह बता सकता है क
चेतना का मूलभूत कारण या है, न ही यह क इसका भाव या है। न य ही चेतना
ऐसे त व क
े वग म आती है जसका कोई प, , या रंग नह है। यह कसी बाहरी
मा यम से जांच करने क
े लायक नह ह। ले कन इसका मतलब यह नह है क इसका
अ त व नह है, सफ इतना है क व ान इसे ढूंढने म असफल रहा है।
[15]
तब या इस लए क वै ा नक जांच नाकाम रही है, हम इसका प र याग कर देना चा हए?
बलक
ु ल नह । न ही मेरा सुझाव समृ क
े ल य को नकारने का है। हमारी क
ृ त ही ऐसी
है क हमारे शारी रक एवं भौ तक अनुभव हमारे जीवन म अहम भू मका नभाते ह।
प से व ान एवम तकनीक उपल यां हमारी बेहतर एवं आरामदायक अ त व क
कामना को दशाती ह। यह ब त अ ा है। कौन आधु नक च क सा क ग त क सराहना
करने से वयं को रोक सकता है?
[16]
इसक
े साथ ही, म सोचता ँ यह न त प से स य है क पारंप रक ामीण समुदाय क
े
सद य क
े पास आधु नक शहर म बसे लोग क तुलना म स ाव और शां त का अ धक
आनंद है। उदाहरण क
े लए, उ री भारत क
े ी त े म ानीय लोग म यह रवाज है
क वे बाहर जाने क
े समय अपने घर पर ताला नह लगाते । ऐसी आशा क जाती है क घर
को खाली पाने वाले आगंतुक मेजबान का इंतजार करते समय घर क
े अंदर जा कर क
ु छ खा
और पी सकते ह। पहले क
े दन त बत म भी ऐसा पाया जाता था। ऐसा नह क ऐसे
ान पर अपराध क घटनाएं नह होती थी। त बत क
े अ त मण क
े पहले ऐसी घटनाएं
कभी कभी होती थी, और जब ऐसा होता था, लोग आ यच कत होते थे। ऐसी घटनाएं
21. वरले और असामा य होती थी। इसक
े वपरीत, क
ु छ आधु नक शहर म अगर एक दन भी
ह या न हो तो यह असाधारण बात होती है। शहरीकरण क
े साथ आपसी झगड़े बढ़े ह।
[17]
हम पुरानी जीवन शैली क यादा शंसा करने म सावधानी बरतनी चा हए। अ वक सत
गाँव म रहने वाले समुदाय क
े बीच गहरे सहयोग का कारण स ावना से यादा उनक
आव यकता थी। लोग को यह मालूम था क पार रक सहयोग क
े अभाव म जीवन
यादा क द होगा। इसक
े साथ, जसे हम संतु समझते ह शायद उसका मु य कारण
अ ानता हो। जीवन यापन का कोई सरा रा ता भी है, यह लोग शायद न समझ सकते ह
और न ही शायद इसक कोई क पना ही कर सकते ह । अगर वो ऐसा कर पाते काफ
स व था तो क वे ऐसे जीवन को उ साह से अपनाते। इस लए चुनौती हमारे सामने यह है
क हम ऐसे उपाय ढूंढ़ जनसे हम नया क इस सह ा द क
े आर क
े भौ तक वकास
का पूरा फायदा उठाते ए उसी सौहा ता एवं शां त का आनंद ले सक, जो पार रक
समाज क
े लोग को उपल है। क
ु छ और कहने का अथ तो यही होगा क अ वक सत
समाज म रहने वाले लोग अपने जीवन तर को सुधारने क कोई को शश नह कर।
उदाहरण क
े लए, म एकदम न त मत ँ क त बत क खानाबदोश जा त म यादातर
लोग जाड़ क
े लए आधु नक गरम कपड़े, खाना बनाने क
े लए बना धुंएँ वाला धन,
आधु नक दवाइयाँ, एवं अपने त बू म उठा ले जाने वाले टेली वजन को पा कर खुश ह गे।
म तो बलक
ु ल ऐसा नह चा ंगा क
े वे इन सु वधा से वं चत रह जाएँ।
[18]
आधु नक समाज, अपनी सारी सु वधा एवं दोष क
े साथ, अन गनत कारण एवं
प र तय क वजह से गट आ है। ऐसा सोचना गलत होगा क सफ भौ तक वकास
को याग कर हम अपनी सभी सम या का समाधान कर लगे। ऐसा करना उसक
े
मूलभूत कारण को अनदेखा करना होगा। इसक
े अलावा, आधु नक नया म भी ब त
क
ु छ ऐसा है, जससे हम आशा वत हो सकते ह।
[19]
सबसे वक सत रा म भी अन गनत ऐसे लोग ह जो सर क
े हत क चता म स य ह।
अपने देश म ही, मेरी जानकारी म ब त से ऐसे लोग ह जनक खुद क अव ा ब त ठ क
नह होते ए भी उ ह ने हम त बत क
े लोग क
े त बड़े उपकार कये ह। उदाहरण क
े तौर
पर, हमारे ब को उन भारतीय श क क नः वाथ सेवा से ब त फायदा आ है,
जनम से कई को ब को पढ़ाने क
े लए काफ क ठन अव ा म अपने प रवार से र
रहना पड़ा है। बड़े पैमाने पर, हम व म मौ लक मानवा धकार क बढ़ती सराहना को भी
22. यान म रख सकते ह। मेरी धारणा है क यह एक ब त अ ग त है। जस तरह से
अंतरा ीय समाज ाक
ृ तक आपदा क
े उ र म शी ा तशी पी ड़त लोग क मदद
करता है वह इस आधु नक व क
े लए एक शंसनीय बात है। ऐसे ही इस बात क बढ़ती
ई समझदारी क हम अपने ाक
ृ तक पयावरण क
े साथ बना इसक
े प रणाम भुगते
लगातार यादती नह कर सकते ह, एक आशा का कारण है। इसक
े अलावा, मेरा मानना है
क बढ़ते ए संचार क वजह से शायद लोग म मानव क व वधता को वीकार करने क
मता म वृ ई है, और स ूण व म आज सा रता एवं श ा क
े मानक पहले से
कह यादा है। इन सभी सकारा मक वकास क
े काय को म हम मनु य क मता क
े
प म देखता ँ।
[20]
हाल म मुझे इं लड म रानी माँ (रानी ए लजाबेथ) से मलने का मौका मला। वह मेरे पूरे
जीवन म एक प र चत रह ह, इस लए उनसे मल कर म ब त खुश आ। ले कन
सबसे उ सा हत करने वाली बात यह लगी क, एक ऐसी ी, जनक आयु बीसव
शता द क
े ही बराबर है, क
े वचार म आजकल क
े लोग सर क
े बारे म काफ जाग क
ह, ब न बत उस समय क
े जब वह युवती थ । उ ह ने कहा क उन दन लोग यादातर
अपने ही रा क भलाई क सोचते थे, जब क वतमान म लोग अ य देश म रहने वाले
लोग क
े हत क
े बारे म काफ यादा चता करने लगे ह। जब मने उनसे पूछा क या वह
भ व य को लेकर आशावाद ह, उ ह ने बना हचक क
े हाँ म उ र दया।
[21]
अव य ही यह वा त वकता है क वतमान समाज म हम नतांत नकारा मक वाह क
तरफ संक
े त कर सकते ह। इसम संदेह का कोई कारण नह है क ह या, हसा,एवं
बला कार क घटना क सं या म हर साल बढ़ो री हो रही है। इसक
े अ त र , हम
नर तर समाज एवम् प रवार म हो रहे अ याचार, सामा जक शोषण, युवा लोग म बढती
म दरा एवं अ य मादक क लत, एवं अ धका धक सं या म वैवा हक स ब क
े
संबंध व ेद क
े कारण ब पर हो रहे भाव क
े बारे म सुनते ह । यहाँ तक क हमारा
छोटा सा शरणाथ समुदाय भी इससे नह बच सका है। उदाहरण क
े लए जब क पूव म
त बत म आ मह या क घटनाएँ नह क
े बराबर थ , क
ु छ समय से हमारे शरणाथ समाज
म भी एक दो आ मह या क खद घटनाएँ ई ह। ऐसे ही जब क पछली पीढ़ म त बत
क
े युवक क
े बीच नशे क लत नह थी, अब क
ु छ नशे क घटनाएँ भी देखने को मलती ह,
जो अ धकतर उन ान पर आधु नक शहरी जीवन क
े भाव क
े कारण उ प ई ह।
[22]
23. फर भी, रोग, वृ ाव ा, एवं मृ यु क
े क को छोड़कर इनम से कोई भी सम या वभाव
से अप रहाय नह है। न ही इनका कारण ान का अभाव है। जब हम इन पर यानपूवक
वचार करते ह तो पाते ह क ये सभी नै तकता क सम याएं ह। इनम से हर एक--सही या
गलत या है, सकारा मक या नकारा मक या है, तथा उ चत या अनु चत या है--क
समझ को दशाती ह। ले कन इसक
े आगे हम एक मूलभूत त य क तरफ इशारा कर सकते
ह जो है एक ऐसी चीज़ क अवहेलना जसे म आंत रक आयाम कहता ँ।
[23]
मेरा इससे या ता पय है? मेरी समझ क
े अनुसार भौ तक साम य पर ब त यादा यान
देना हमारी इस धारणा को दशाता है क हम जो खरीद सकते ह, वह अपने आप
हम ऐसी सारी संतु दे सकता है जसक हम आव यकता है। ले कन वा तव म
वभावानुसार भौ तक व तुएँ हम उतना ही सुख दान कर सकती ह, जतना इं य से
ा है। अगर ऐसा होता क हम मनु य पशु से भ नह ह तो फर यह ठ क था।
ले कन हमारी जा त क ज टलता को लेकर, वशेषकर इस स य को देखने से क हमारे
अंदर वचार एवं भावना क
े साथ साथ क पना एवम व ेषण करने क भी मता है, यह
हो जाता है क हमारी आव यकताएँ इ य सीमा से कह परे है। जन लोग क
मौ लक आव यकताएँ पूरी हो चुक ह, उनम ा त तनाव, चता, ाक
ु लता, अ न तता,
एवं नराशा क ब लता इसका संक
े त है। हमारी दोन कार क सम याएँ, ज ह हम
बाहर से अनुभव करते ह जैसे यु , अपराध, एवं हसा एवं वे ज ह हम आंत रक प से
भुगतते ह जैसे हमारे भावा मक एवं मान सक ःख, उन सभी का समाधान तब तक स व
नह होगा जब तक हम इस भूल को नह सुधार लेते ह। यही कारण है क पछले सौ या
उससे भी अ धक वष क महान ां तयाँ-- जातं , उदारवाद, समाजवाद --सभी अ त
वचार क
े बावजूद व यापी क याण दान करने म असफल रही ह, जैसी क उनसे
आशा क जाती थी। न य ही एक नवीन ा त क आव यकता है। ले कन वह ां त
राजनै तक-आ थक नह होगी, यहाँ तक क ौ ो गक य भी नह होगी। पछली सद म
हम इसका काफ अनुभव आ क मनु य क ग त क
े लए पूणतः भौ तक माग पया त
नह है। म आपक
े सम एक आ या मक ां त का ताव रखना चाहता ँ।
[24]
मनन यो य
१. लेखक का उन लोग क
े बारे म या राय है जनक
े पास भौ तक समृ है तथा जो
आराम वाली ज़ दगी जीते दखाई देते ह?
२ लेखक क धारणा म धम एवं नै तकता म या स ब है?
24. ३. लेखक क धारणा म “नै तक सम या” का या फल होता है?
25. अ याय २ - न जा न रह य
तो या आ या मक ा त क बात कर आ खर म एक अपनी सम या क
े धा मक
समाधान क बात कर रहा ँ? एक ऐसा मनु य जसक आयु स र साल क
े पास है, मने
इतना अनुभव अव य ा त कर लया है क म पूण व ास क
े साथ कह सकता ँ क
भगवान बु क श ा मनु य क
े लए ासं गक और उपयोगी है। अगर कोई इस
श ा को वहार म लाता है तो यह न त है क ना सफ वह अपना क याण करेगा
ब क सरे लोग भी इससे लाभा वत ह गे। नया भर क
े व भ लोग से मलकर मुझे
यह समझने म सहायता मली है क नया म कई धम ह, कई सं क
ृ तयां ह , जो लेाग
को एक सकारा मक एवम् संतोषजनक जीवनयापन करने क दशा म ले जाने क
े लये मेरी
सं क
ृ त से कसी कार से कम नह है। इसक
े अ त र म इस नतीजे पर प ंचा ं क
मनु य कसी धम म आ ा रखता है या नह इससे यादा फक नह पड़ता है। सबसे
मह वपूण बात यह है क वह अ ा मनु य हो।
[1]
म यह बात इस त य को वीकार करते ए कहता ँ क इस धरती क
े छह सौ करोड़ लोग
भले इस या उस धम को मानने का दावा करते ह , क तु धम का लोग क ज दगी पर
भाव काफ कम है, खास कर क
े वक सत रा म । मुझे स देह है क इस नया म
शायद एक सौ करोड़ भी ऐसे ह ज ह म सम पत धा मक अनु ाता कह सक
ूं , जो अपने
दै नक जीवन म धम क
े स ा त एवम् नयम का पालन न ा पूवक करते ह । इस अथ म
बाक क
े लोग धम का पालन नह करने वाले लोग म से ह । जो सम पत अनु ाता ह, वे
ब त से धम का पालन करते ह। इससे यह बात साफ होती है क हमारी व वधता क
े
कारण कोई एक धम सारे मनु य क
े लये पया त नह हो सकता है। हम यह न कष भी
नकाल सकते ह क मनु य बना कसी धम का सहारा लये भी अपना जीवनयापन भली
भां त कर सकता है।
[2]
ऐसी बात एक धा मक क
े मुख से अटपट लग सकती ह, ले कन दलाई लामा से
थम म एक त बती ं, एवम् त बती होने क
े पूव म एक मनु य ँ । एक तरफ दलाई
लामा क
े प म मेरे ऊपर त बत क
े लोग क
े लये खास ज मेदारी है, सरी ओर एक
भ ु क
े प म सभी धम क
े बीच म स ावना बढ़ाने क भी मेरी वशेष ज मेदारी है।
इसक
े साथ एक मनु य होने क
े नाते भी मुझ पर पूरे मानव प रवार क एक और भी बड़ी
ज मेदारी है, जो वा तव म हम सभी का उ रदा य व है। य क ब सं यक लोग कसी
26. धम का पालन नह करते ह, मेरा उ े य एक ऐसा रा ता ढूंढने का है, जससे म कसी
धा मक आ ा का सहारा लए बना सारी मानवता का क याण कर सक
ूँ ।
[3]
वा तव म मेरा व ास है क अगर हम लोग व क
े मुख धम को बड़े नज रये से देख तो
हम पायगे क उन सभी - बौ , ईसाई, ह , इ लाम, य द , सख, पारसी एवं अ य - का
ल य मनु य को एक सतत सुख क ा त करने म सहायता करना है। उसक
े साथ मेरे
वचार से उनम से हर एक इस ल य को ा त कराने म स म है । इन प र तय म हम
यह कह सकते ह क धम क ( जन सबम एक ही आधारभूत मू य ह) व वधता अभी
एवं उपयोगी है।
[4]
ऐसा नह है क म हमेशा ऐसा ही सोचता था। जब म छोटा था और त बत म रहता था, म
अपने मन म सोचता था क बौ धम सबसे उ म माग है। म खुद से कहता था क कतना
सुंदर होगा अगर पूरा व धमा त रत हो कर बौ धम का पालन करने लगे। ले कन यह
मेरी अ ानता थी। हम त बती लोग ने अव य ही अ य धम क
े बारे म सुना था। ले कन
उनक
े बारे म हम जो भी थोड़ा ब त जानते थे, उसका आधार बौ धम क
े ही त बती
भाषा म अनू दत तीय ोत थे। वाभा वक प से उनका यान उन त य पर था, जन
पर बौ कोण से वाद ववाद संभव था। ऐसा नह था क बौ व ान जानबूझकर कर
अपने पूवप का उपहास करना चाहते थे। वा तव म इससे यह बात द शत होती है क
उनक
े लये उन त य को स बो धत करने क आव यकता नह थी, जन पर उनक
े बीच म
कोई ववाद नह था य क जन शा पर चचा होती थी वे भारत म, जहाँ उन क रचना
यी थी, पूण प से उपल थे। भा य से त बत म यह बात नह थी। अ य शा क
े
अनुवाद त बती भाषा म उपल नह थे।
[5]
जैसे जैसे म बड़ा आ, धीरे धीरे म अ य धम क
े बारे म जानने लगा। खासकर क
े वास म
जाने क
े बाद म ऐसे लोग से मलने लगा, जो अपना जीवन व भ धम को सम पत कर-
क
ु छ लोग ाथना करते ए, क
ु छ यान करते ए, क
ु छ लोग और क सेवा करते ए,
अपनी अपनी पर रा का ग ीर अनुभव ा त कर चुक
े थे। ऐसे गत संपक से
मुझे यह सहायता मली क म सारी मुख पर रा क
े वृहत मू य से अवगत आ
जससे मुझम उनक
े लये गहरे आदर क भावना पैदा ई। मेरे लये बौ धम सबसे
मह वपूण माग है। यह मेरे व से मेल खाता है। ले कन इसका मतलब यह नह है क
27. म इसे सब क
े लए सव म माग मानता ँ, उससे भी यादा न ही म यह सोचता ँ क हर
को कसी न कसी धम का अनुयायी होना चा हए।
[6]
अव य ही एक त बती एवं एक भ ु क
े प म मेरा पालन पोषण, मेरी श ा, बौ धम क
े
स ांत एवं नयम तथा अनुशीलन क
े अनुसार ई है। इस लये म इस बात को नकार नह
सकता ँ क मेरी सोच पर भगवान बु क
े अनुयायी होने का भाव नह पड़ा है। फर भी
इस पु तक म मेरा यास यह है क म अपने धम क औपचा रक सीमा क
े बाहर जा कर
लोग तक प ंचूँ। म यह दखाना चाहता ँ क नया म वाकई ऐसे वै ीय नै तक स ांत
ह, जो हर मनु य को वही सुख देने म सफल हो सकते ह, जनक हम सभी कामना करते
ह। क
ु छ लोग यह स देह कर सकते है क म परो प से बौ धम क
े चार का यास कर
रहा ँ । जहाँ यह मेरे लए नकारना मु कल है, ले कन यह स य नह है।
[7]
वा तव म मेरा व ास है क धम एवं आ या मकता म गंभीर अंतर है। मेरा धम क
े बारे म
यह सोचना है क इसका स ब एक या सरे धा मक परंपरा क
े मु क
े दावे म व ास
से है, जो कसी प म वग या नवाण जैसी अभौ तक अथवा अलौ कक त य को
वीकार करता है तथा इसक
े साथ म जुड़ी ई ह धा मक श ा, ढ़याँ, री तयां, ाथनाएँ
इ या द। मेरा मानना है क आ या मकता का संबंध मै ी, क णा, धैय, सहनशीलता,
माशीलता, संतु , उ रदा य व क भावना, एवं सौहा ता क भावना जैसे मानवीय
गुण से है, जनसे वयं क
े साथ अ य लोग को भी सुख क ा त होती है। री तयां,
ाथनाएं, नवाण एवं मु क बात धम वशेष म व ास से स बं धत ह, पर तु मै ी एवं
क णा जैसे आंत रक गुण का धम से स ब होने क आव यकता नह है। इस लए
इसका कोई कारण नह है क इन गुण को उ तर तक बना कसी धा मक या
अलौ कक व ास का सहारा लये अपने अंदर बढ़ाने का यास नह करे। इस लए म कभी
कभी कहता ँ क धम एक ऐसी चीज है, जसक
े बना शायद हम अपना काम चला
सकते है। ले कन इन मूल आ या मक गुण क
े बना नह ।
[8]
जो कसी धम क
े अनुयायी ह, वाभा वक प से ऐसा कह सकते ह क ये गुण धम को
स े मन से पालन करने का फल ह और इस लए इन आंत रक गुण को वक सत करना
धम से ही संभव है, जसे हम आ या मक यास कह सकते ह। ले कन हम इस त य को
प से समझना चा हए। धम क
े अवल बी होने पर आ या मक अनुशीलन आव यक
है। फर भी ऐसा लगता है क धम क
े अनुया यय एवं धम क
े अ व ासी, दोन म इस बात
28. को लेकर असहम त रहती है क वा तव म इसका मतलब या है। जन गुण क ा या
मने “आ या मक” प से क उनको संयु प से प रल त कर क
ु छ हद तक अ य
लोग क
े हत क च ता करने को कह सकता ँ । त बती भाषा म हम इसे शेन फ
े न क
सेम कहते ह, जसका अथ है सर का क याण करने क कामना । जब हम इनक
े बारे म
सोचते ह तो पाते ह क इन पूव नै तक गुण क प रभाषा म परो प से सर क
े
क याण क भावना व मान है। इससे भी यादा जो क णामय, नेहशील,
धैयवान, सहनशील, माशील आ द ह वे क
ु छ हद तक अपने काय का और पर होने वाले
भाव को देखते ए अपने वहार क व ा करते ह। अतः आ या मक अनुशीलन क
प रभाषा एक ओर यह होती है क हमारे काय और क
े हत को यान म रखते ए ह एवम
सरी ओर यह हम तब करता है क हम अपने म वह प रवतन लाय जससे ऐसा
करना हमारे लये सहज हो जाए। आ या मक अनुशीलन क प रभाषा अ य कसी कार
से करना थ है।
[9]
इस कार मेरी आ या मक ां त का आ ान धा मक ां त का आ ान नह है। ना ही यह
कसी पारलौ कक जीवन क
े बारे म है और कोई जा या रह य तो कतई नह है। ब क
यह वयं क
े अंदर एक ां तकारी प रवतन का आ ान है, जो हम सदैव वाथ पूण चतन
म ल त रहने क आदत से र करे । जन ा णय क
े वृहत समाज से हम जुड़े ए ह,
उसक
े त यह हमारा यान मोड़ने का आ ान है एवं अपने हत क
े साथ और क
े हत का
भी यान रखने का आ ान है।
[10]
यहां पर पाठकगण यह आप कर सकते ह क च र म ऐसा प रवतन न त प से
वांछनीय है एवं यह भी अ ा है क लोग अपने अंदर क णा एवं नेह को वक सत कर
परंतु आधु नक व क व वध एवम बड़ी सम या को हल करने म आ या मक ां त
शायद ही पया त हो। इसक
े अलावा यह भी तक दया जा सकता है क सम याएं जैसे
घरेलू हसा, नशे एवं शराब क आदत, प रवार का बखरना आ द को समझने का उ म
उपाय यह है क हम उ ह एक एक कर समझ एवं उनका नदान ढूंढ। फर भी जब हम
ऐसा देखते ह क ऐसी सम या का समाधान इससे हो सकता है क लोग एक सरे से
यादा नेह कर और अ य जीव क
े त यादा क णा रख - भले ही यह बात कतनी भी
असंभव लगे - हम उ ह आ या मक सम या क
े प म देख सकते ह जनका समाधान
आ या मक यास से हो सकता है। इसका मतलब यह नह है क हम सफ आ या मक
मू य का वकास कर और ये सम याएं वतः गायब हो जायगी। इसक
े वपरीत ऐसी
येक सम या क
े लये वशेष समाधान क आव यकता है। ले कन हम पाते ह क
29. आ या मक आयाम क अवहेलना करने से हम इन सम या क
े ायी समाधान क
आशा नह कर सकते ह।
[11]
जरा वचार कर क ऐसा य है। बुरी खबर मलना जीवन क स ाई है। जब भी हम
अखबार उठाते ह या टेलीवीजन अथवा रे डयो लगाते ह, हम अनेक खद खबर का
सामना करना पड़ता है। एक दन भी ऐसा नह जाता है जब इस नया म कह पर कोई
ऐसी घटना न ई हो, जसे सभी एक मत से भा यपूण मानते ह, भले हम लोग कह क
े
रहने वाले ह , भले हमारा जीवनदशन कोई हो, कम और यादा, हम सर का ख
सुनकर खी होते ह।
[12]
इन घटना को दो ापक वभाग म बांटा जा सकता है। ऐसी घटनाएं जो मु यतः
ाक
ृ तक कारण से होती ह - भूक , सूखा, बाढ़ इ या द, एवं ऐसी जो मानव क
ृ त ह।
यु , अपराध, हर तरह क हसा, ाचार, गरीबी, धेाखा, एवं सामा जक, राजनै तक, एवं
आ थक अ याय सभी नकारा मक मानवीय वहार का प रणाम ह। और कौन इन कम
का उ रदायी है? हम ह। राजा, रा प त, धानमं ी, एवं राजनेता से लेकर शासन क
े
लोग, वै ा नक, च क सक, वक ल, अकाद मक, छा , पुजारी, भ ु णयां एवं मेरे जैसे
भ ु से लेकर उ ोगप त, कलाकार, कानदार, तकनीक कमचारी, बढ़ई, मज र, और
बेरोजगार, कोई ऐसा वग अथवा समाज का ह सा नह है, जसका इन त दन क बुरी
खबर म योगदान न हो।
[13]
सौभा य से ाक
ृ तक वपदा से भ , जन पर हमारा ब त कम अथवा कोई नयं ण
नह है, मानव क
ृ त सम याएं, जो वा तव म नै तकता क सम याएं ह, सबका समाधान
संभव है। वा तव म यह त य क समाज क
े हर वग एवं तर क
े तमाम लोग इसका
समाधान ढूंढने क दशा म कायरत ह, मानव क वृ को दशाता है। ऐसे तमाम लोग ह,
जो याय क
े प धर सं वधान को बनाने क
े लये राजनी तक पा टय म ह सा लेते ह, ऐसे
लोग ह, जो याय क
े लए वक ल बनते है, ऐसे लेाग ह , जो ऐसी सं ा म ह सा लेते ह
जो गरीबी र करने क
े लए काम करती ह, ऐसे लोग ह जो पैसे क
े लए अथवा बना पैसे
क
े लए पी ड़त लोग क
े हत क
े लये काम करते ह। वा तव म, हम सभी अपनी समझ
और अपने तरीक क
े अनुसार इस व को, जहाँ हम रहते ह, पहले से बेहतर बनाने का
यास करते ह।
[14]
30. भा य से हम पाते ह क भले ही हमारी या यक व ा कतनी ही अ हो और भले
ही बाहरी वषय पर वक सत नयं ण क
े कतने भी साधन य न ह , अपने आप यह
सब सभी सम या का समाधान नह कर सकते। दे खये क आजकल हमारे
पु लसक मय क
े पास ऐसे आधु नक यं ह जनक पचास साल पहले हम क पना भी
नह कर सकते थे। इनक
े पास नगरानी क
े ऐसे तकनीक साधन है, जनसे इ ह वह सब
दख जाता है, जो पहले गोचर नह होता था। इनक
े पास डीएनए मलाने क मता है,
परी ण क योगशालाएं ह, सूंघने वाले क
ु े ह, एवम् अव य ही इनक
े साथ काफ
श त कमचारी ह। ले कन इन क
े साथ साथ अपराध करने क
े तरीक
े भी इतने ही
वक सत हो गए ह क हम कसी बेहतर प र त म नह ह। जहां पर नै तक नयं ण का
अभाव हो, वहाँ पर बढ़ते ए अपराध जैसी सम या क
े समाधान क कोई आशा नह है।
वा तव म हम पाते ह क ऐसे आंत रक अनुशासन क
े बना जन साधन का योग हम इन
सम या क
े समाधान क
े लए करते ह, वही समाधान हमारी सम या का कारण बन जाते
ह। अपरा धय एवं पु लस दोन क
े नरंतर वक सत हो रहे साधन एक दोषपूण च क
तरह एक सरे को बढ़ावा देते ह।
[15]
फर आ या मकता एवं नै तक आचार म या संबंध है? य क नेह, क णा एवं इसी
तरह क
े गुण अपनी प रभाषा क
े अनुसार सरेां क
े हत क चता करने क क
ु छ तर तक
अपे ा करते ह एवम् इन सब म नै तक संयम अपे त है। हमलोग वनाशकारी वृ य
एवं इ ा पर नयं ण कये बना नेहशील एवं क णामय नह हो सकते ह।
[16]
जहां तक नै तक आचरण क न व का है, ऐसा माना जा सकता है कम से कम यहां म
धम क
े माग क वकालत करता ँ। सच है क हर मुख धा मक पर रा म एक वक सत
नै तक प त व मान है। फर भी हमारी सही और गलत क समझ को धम से जोड़ने क
सम या यह है क हम पूछना पड़ता है, ‘ कस धम से जोड़?‘ कस धम क
े पास एक संपूण
नै तकता क प त है, जो आसानी से उपल है एवं जो सबसे यादा वीकाय है? यह
एक ऐसा ववाद है जो कभी ख म नह हो सकता है। इसक
े अलावा ऐसा करना इस बात
को अनदेखा करना होगा क ऐसे ब त सारे लोग ह जो धम को अ वीकार करते ह सोच
समझ कर ढ न य से, न क इस लए क उनक
े मन म मनु य क
े अ तव क
े बारे म गूढ़
क परवाह नह है। ऐसा मानना गलत होगा क ऐसे लोग म सही और गलत एवम
नै तक प से या उ चत है क समझ नह है, सफ इस लए क क
ु छ धम वरोधी लोग
अनै तक ह । इसक
े अलावा धम म व ास रखना नै तकता क कोई गारंट नह है। जब
31. हम अपनी जा त का इ तहास देखते ह, हम अपने बीच ब त बड़े वनाशकारी लोग म
ऐसे ह ज ह ने अपने साथी मनु य क
े साथ हसक, ू र एवम वनाशकारी वहार
कया। इनम से कई ऐसे रहे ह ज ह ने अ सर काफ जोर से धम म अपना व ास
जताया था। धम मूलभूत नै तक स ांत क ापना म मदद कर सकता है। ले कन
हमलोग नै तकता एवं सदाचार क बात बना धम का सहारा लये कर सकते ह।
[17]
पुनः इस पर आप हो सकती है क अगर हमलोग धम को नै तकता का ोत नह मानते
तो फर हम यह वीकार करना होगा क या सही है या गलत है, या अ ा है, या बुरा
है, या नै तक प से उ चत है एवम या अनु चत है, या सदाचार है एवम या राचार
है, क समझ प र तय क
े अनुसार भ हो सकती है एवं यहाँ तक क भ य क
े
लए भी भ हो सकती है। ले कन यहां पर म कहना चा ँगा क कसी को ऐसा नह
समझना चा हए क कभी ऐसा संभव हो पाएगा क ऐसे कानून या नयम क व ा क
जा सक
े जससे हर नै तक वधा का उ र मल सक
े , चाहे हम धम को नै तकता का
आधार य न मान ल। मनु य क
े समृ एवम् व वध अनुभव को समझने क
े लये ऐसे
सू ब उपाय क कभी क पना नह क जा सकती है। इससे ऐसे तक को भी सहारा
मलेगा क हमारा उ रदा य व सफ कानून का श दशः पालन करने का है एवं हम अपने
आचरण क
े लये उ रदायी नह ह।
[18]
मेरे कहने का ता पय यह नह है क ऐसे स ांत को समझाना थ है, जो नै तक प से
बा यकारी ह । इसक
े वपरीत अगर हम अपनी सम या क
े समाधान क कोई आशा है
तो यह आव यक है क हम ऐसा करने का माग ढूंढ। हम कोई ऐसा उपाय अव य ढूंढना
चा हए जससे हम, उदाहरण व प, राजनै तक सुधार क
े लए आतंकवाद एवं महा मा
गांधी क
े शां तपूवक वरोध क
े स ांत क
े बीच उ चत-अनु चत का नणय कर सक। हम
इसक
े लये स म होना चा हए क सर क
े त हसा का योग गलत है। फर भी हम
कोई ऐसा रा ता ढूंढना चा हए जो एक तरफ अस य तानाशाही से एवं सरी ओर तु
सापे तावाद क अ तवाद सीमा से बचे।
[19]
मेरा अपना वचार जो न तो पूणतया धा मक व ास पर आधा रत है और न ही कोई
मौ लक दशन है ब क जो सामा य वहा रक ान पर आधा रत है, वह यह है क ऐसे
बा यकारी नै तक स ांत क ापना तब संभव है जब हम अपने वचार क शु आत
इस अवधारणा से करते ह क हम सभी सुख चाहते ह और ख से र रहना चाहते ह।