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भक्ति वृक्ष
भगवद गीता क
े ज्ञान का हमारे जीवन में प्रयोग
BHAKTI VRIKSHA KORAMANGALA
सप्ताह २ :
पुनरागमन
आइस ब्रेकर - १५ ममनट
आपका स्वागत है !
"जब आप तनावपूर्ण हो जाते हैं तो
आप क्या करते हैं या कहााँ जाते हैं?"
या वैकक्तिक रूप से:"आपकी
आदर्ण एक महीने की छु ट्टी क्या
होगी?"
कीततन- १५ ममनट
एक सरल धुन क
े साथ मधुर
कीतणन
गुरु प्रणाम मंत्र
● ॐ अज्ञानतततमरान्धस्य
ज्ञानाञ्जनर्लाकया ।चक्षुरुन्मीतलतं येन तस्मै
श्रीगुरवे नमः
● मैं गहरे अंधकार में जन्मा था और मेरे
गुरुदेव ने ज्ञान क
े मर्ाल से मेरी आंखें खोली.
मैं आदर क
े साथ उन्हें प्रर्ाम करता हाँ
श्रीला प्रभुपाद प्रणाम मंत्र
नमः ॐ विष्णु पादय, कृ ष्ण पृष्ठाय भूतले,
श्रीमते भक्तत िेदाांत स्िाममन इतत नाममने ।
नमस्ते सरस्िते देिे गौर िाणी प्रचाररणे,
तनवििशेष शून्य-िादी पाश्चात्य देश ताररणे ।।
मैं क
ृ ष्णक
ृ पाश्रीमूततण श्री श्रीमद ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
को सादर प्रर्ाम करता हाँ जो तदव्य नाम की र्रर् लेने क
े कारर्
इस पृथ्वी पर भगवान् श्रीक
ृ ष्ण को अत्यंत तप्रय हैं
हे गुरुदेव! सरस्वती गोस्वामी क
े दास ! आपको मेरा सादर तवनम्र
प्रर्ाम है. आप क
ृ पा करक
े श्रीचैतन्य महाप्रभु क
े सन्देर् का प्रचार
कर रहे हैं तथा तनरकारवाद एवं र्ून्यवाद से व्याप्त पाश्चात्य देर्ों
का उद्धार कर रहे हैं
पंच तत्त्व मंत्र
जय श्री क
ृ ष्ण चैतन्य, प्रभु
मनत्यानंद,
श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आमद
गौर भक्त वृन्द ।।
हरे क
ृ ष्ण महा मन्त्र हरे क
ृ ष्ण हरे क
ृ ष्ण, क
ृ ष्ण क
ृ ष्ण हरे हरे
|| हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे||
जप- १५ ममनट
पमवत्र नाम का अमृत कमलयुग में एकमात्र
आशा है
इस युग में लोगों की आयु कम है और वे आध्याक्तिक
जीवन को समझने में धीमे हैं। दरअसल, मानव जीवन
आध्याक्तिक मूल्ों को समझने क
े तलए है, लेतकन क्योंतक
इस युग में हर कोई र्ूद्र है, कोई भी तदलचस्पी नहीं
रखता है। लोग जीवन क
े वास्ततवक उद्देश्य को भूल गए
हैं।
CONTD >>>
मंद र्ब्द का अथण धीमा और बुरा दोनों है, और इस युग में हर कोई या तो बुरा या
धीमा है या दोनों का संयोजन है। लोग दुभाणग्यर्ाली और इतनी सारी चीजों से
परेर्ान हैं। श्रीमद्भागवतम् क
े अनुसार, अंततः वर्ाण नहीं होगी और फलस्वरूप
भोजन की कमी होगी। सरकारें बहुत भारी कर लगाएं गी। श्रीमद भगवतम द्वारा
भतवष्यवार्ी की गई इस युग की तवर्ेर्ताओं को पहले से ही क
ु छ हद तक अनुभव
तकया जा रहा है। चूाँतक कतलयुग बहुत ही दयनीय युग है, चैतन्य महाप्रभु, जो स्वयं
श्रीक
ृ ष्ण हैं, हर तकसी को हरे क
ृ ष्ण का जाप करने की सलाह देते हैं।
हरेनातम हरेनातम हरेनातमैव क
े वलं|कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव
नास्त्यैव गमतरन्यथा||
[Cc. Ädi 17.21]
CONTD >>>
"कली क
े इस युग में आध्याक्तिक प्रगतत का पतवत्र नाम, पतवत्र नाम, प्रभु
क
े पतवत्र नाम की तुलना में कोई तवकि नहीं है, कोई तवकि नहीं है,
कोई तवकि नहीं है।" (बृहर् नारदीय पुरार्) यह प्रतिया चैतन्य महाप्रभु
का आतवष्कार नहीं है, लेतकन र्ास्त्र, पुरार्ों द्वारा सलाह दी गई है। इस
कलयुग क
े तलए प्रतिया बहुत सरल है। क
े वल हरे क
ृ ष्ण महामंत्र का जप
करना चातहए।
माता देवहुमत क
े पुत्र भगवान् कमपल की मशक्षाएं
चचात क
े मलए प्रकरण : पुनरागमन
दो बालक एक ही तदन एक ही समय में जन्म लेते हैं. . . पहले क
े माता तपता संपन्न
और तर्तक्षत हैं और उन्होंने वर्ों तक अपनी पहली संतान क
े तलए तचंता क
े साथ
प्रतीक्षा की है. . . उनकी संतान एक लड़का है , बुक्तद्धमान , स्वस्थ्य और मनोहर
और वो तजसका भतवष्य अनेक संभावनाओं से पूर्ण है . . . . तनतश्चत ही उसकी
भाग्यलक्ष्मी उस पर प्रसन्न है
दू सरा बालक तभन्न ही प्रकार क
े जगत में प्रवेर् करता है. . . . वह ऐसी माता से
पैदा होता है जो गभण की अवतध में ही त्याग दी गयी थी. . . गरीबी में अपने बीमार
नवजात क
े पालन क
े तलए उसे तकसी उत्साह का अनुभव नहीं होता. . . आगे का
जीवन कतिनाइयों और किोरताओं से पररपूर्ण है , और इनसे उबरना आसान नहीं
होता
CONTD >>>
संसार इस प्रकार की तवर्मताओं से भरपूर है. . तनतांत असमानताएं
तजनसे बहुधा प्रश्न उि खड़े होते हैं” तवधाता इस प्रकार अन्याय क
ै से कर
सकता है? जॉजण और मैरी का पुत्र अाँधा क
ै से पैदा हो गया ? ये तो भले
लोग हैं. . . . भगवान् इतना हृदयहीन है? “
तथातप , पुनजणन्म क
े तसद्धांत सनातन क
े दृतिकोर् से जीवन क
े तवर्य में
तवचार करने क
े तलए तवर्ाल पररपेक्ष परतुत करते हैं.. इस दृतिकोर् से
एक संतक्षप्त जीवन को हमारी सत्ता का प्रारम्भ नहीं समझा सकता , वरंच
ये काल की एक क ंध से अतधक क
ु छ नहीं और हम समझ सकते हैं की
आपाततः एक पुण्यािा जीव जो बहुत कि उिा रहा है इस जीवन अथवा
इससे भी पूवण जीवनों में तकये गए पापों का फल भोग रहा है . . .
तवश्वव्यापी न्याय की इस वृहद् दृति से हम देख सकते हैं की प्रत्येक जीव
तकस प्रकार अपने कमों क
े तलए उत्तरदायी होता है
CONTD >>>
कमों की तुलना बीजों से की जाती है, प्रारम्भ में इन कमों को तकया जाता है
अथवा बोया जाता है और समय आने पर वे फलीभूत होते हैं. . और उनकी
पररर्ामी प्रतततिया प्रारम्भ हो जाती है
इस प्रकार की प्रतततियाएं जीव क
े तलए सुखद अथवा दुखद हो सकती हैं
और इनमे वह या तो अपने आचरर् को सुधार लेता है अथवा अतधकातधक
पर्ुवत व्यवहार करता है
CONTD >>>
एक अपराधी कानून तोड़ने क
े कारर् जेल में प्रवेर् करने का
तवकि चुनता है, लेतकन एक अन्य व्यक्ति को उसकी सेवा की
उत्क
ृ िता क
े कारर् सवोच्च न्यायालय में बैिने क
े तलए तनयुि तकया
जा सकता है।
मानव जीवन का यह तवतर्ि वरदान है उस समय भी जब वो अपने
पूवण जन्म - जन्मान्तरों में तकये गए पापकमों क
े तलए भयंकर कि
उिाने क
े तलए तववर् है , कोई भी मानव श्री क
ृ ष्णभावना क
े अभ्यास
को स्वीकार करक
े अपने कमण को बदल सकता है . . . मानव र्रीर
में आिा , तवकास कमण में मध्य तबंदु पर खड़ा है यहााँ से वो चाहे तो
पतन की अथवा पुनजणन्म से मोक्ष की आकांक्षा कर सकता है
CONTD >>>
इसतलए यतद कोई जीव अपने वत्तणमान जीवन में यत तक
ं तचत भी आध्याक्तिक
प्रगतत करता है तब अपने अगले जीवन में उसे उस तबंदु से आगे बढ़ने तदया
जाता है . . श्री भगवान् अपने तर्ष्य अजुणन से भगवद गीता में कहते हैं , “इस
प्रयास ( श्री क
ृ ष्ण भावना) में न तो कोई हातन होती है न कोई हीनता आती है
वरंच इस मागण में थोड़ी से प्रगतत महा भय से बचा सकती है . . . ( अगले
जीवन में मानव से तनम्न रूप में तगरने का भय)” आिा इस प्रकार अनेक
जन्मों में आभ्यांतररक आध्याक्तिक गुर्ों का तवकास कर सकता है , जब तक
की उसे भ ततक र्रीर में जन्म लेने की आवश्यिा न रहे और वो परमािा क
े
लोक में अपने मूल तनवास को न ल ट जाये.
पुनरागमन , पुनजतन्म का मवज्ञान
क
ु छ असमानताओं का उल्लेख करें जो हम जीवन में
मवमभन्न लोगों क
े बीच अपने आनंद और दुख में पाते
हैं।
खोज
1. कभी-कभी धमतपरायण लोग भी क्ों पीम़ित होते हैं?
2. समझाएं मक प्रत्येक व्यक्तक्त अपने कमत क
े मलए क्ों
मजम्मेदार है
3. हम अपने दुख और बुरे कमत को क
ै से दू र कर सकते हैं?
4. क
ृ ष्ण चेतना लेने क
े क्ा फायदे हैं?
समझ
प्रयोग
1. क्या आपने अभी तक पुनजणन्म पर तवश्वास तकया है?
क्यों या क्यों नहीं?
2. क्या आप अपने कमण को बदलना चाहते हैं? क्या
आपको लगता है तक क
ृ ष्ण चेतना आपको हातसल करने
में मदद करेगी? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
प्रचार ही सार है
क
ृ ष्ण भावनामृत का प्रचार करना सभी जीवों पे
असली दया है
“अगर कोई जीव क
ृ ष्ण भावनामृत में आगे
बढ़ता है और वह दू सरों पे दयालु है और अगर
उसका आि बोध का आध्याक्तिक ज्ञान उत्तम है
, तो वह तुरंत भ ततक जीवन क
े जाल से मुि
हो जाएगा .”
CONTD >>>
इस श्लोक में 'दया जेवेर्ु' , अथाणत दू सरों क
े प्रतत दया का अथण यह है
की एक जीव को दू सरों क
े प्रतत दयालु होना चातहए अगर वो आि
ज्ञान क
े पथ पर आगे बढ़ना चाहता है । इसका अथण यह है तक उसे
स्वयं को तसद्ध करने और क
ृ ष्ण क
े एक अनन्त सेवक क
े रूप में
अपनी क्तथथतत को समझने क
े बाद इस ज्ञान का प्रचार करना चातहए।
इस ज्ञान का प्रचार करना वास्ततवक रूप से दू सरों पे दया तदखाना
है। अन्य प्रकार क
े मानवीय कायण र्रीर क
े तलए अथथायी रूप से
लाभकारी हो सकते हैं, लेतकन, क्योंतक एक जीव आिा है, अंततः
कोई भी अपने आध्याक्तिक अक्तस्तत्व क
े ज्ञान को प्रकट करक
े
वास्ततवक दया तदखा सकता है।
Srimad Bhagvatam 4.29.1b
भगवान चैतन्य महाप्रभु
भगवन चैतन्य क
े प्रगट होने से पहले- झूठा धमत
हठ योग वैभवपूणत मववाह समारोह
❏ वैष्णवों का मवलाप
❏ जप 0%
❏ भगवान मवष्णु क
े मलए कोई प्रेम नहीं
❏ ममथ्या धमत
❏ भौमतक वातावरण
❏ मदखावे क
े मलये धमत
“देतहनोऽक्तस्मन्यथा देहे क मारं
य वनं जरा |
तथा देहान्तरप्राक्तप्तधीरस्तत्र न
मुह्यतत || १३ ||”
तजस प्रकार र्रीरधारी आिा इस
(वतणमान) र्रीर में बाल्ावथथा से
तरुर्ावथथा में और तफर वृद्धावथथा में
तनरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी
प्रकार मृत्यु होने पर आिा दू सरे र्रीर
में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे
पररवतणन से मोह को प्राप्त नहींहोता |
अनुवाद
भगवद गीता २. १३
भक्तक्त वृक्ष कोरमंगला
धन्यवाद!
हरे क
ृ ष्ण!

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  • 2. आइस ब्रेकर - १५ ममनट आपका स्वागत है ! "जब आप तनावपूर्ण हो जाते हैं तो आप क्या करते हैं या कहााँ जाते हैं?" या वैकक्तिक रूप से:"आपकी आदर्ण एक महीने की छु ट्टी क्या होगी?"
  • 3. कीततन- १५ ममनट एक सरल धुन क े साथ मधुर कीतणन
  • 4. गुरु प्रणाम मंत्र ● ॐ अज्ञानतततमरान्धस्य ज्ञानाञ्जनर्लाकया ।चक्षुरुन्मीतलतं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ● मैं गहरे अंधकार में जन्मा था और मेरे गुरुदेव ने ज्ञान क े मर्ाल से मेरी आंखें खोली. मैं आदर क े साथ उन्हें प्रर्ाम करता हाँ
  • 5. श्रीला प्रभुपाद प्रणाम मंत्र नमः ॐ विष्णु पादय, कृ ष्ण पृष्ठाय भूतले, श्रीमते भक्तत िेदाांत स्िाममन इतत नाममने । नमस्ते सरस्िते देिे गौर िाणी प्रचाररणे, तनवििशेष शून्य-िादी पाश्चात्य देश ताररणे ।। मैं क ृ ष्णक ृ पाश्रीमूततण श्री श्रीमद ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को सादर प्रर्ाम करता हाँ जो तदव्य नाम की र्रर् लेने क े कारर् इस पृथ्वी पर भगवान् श्रीक ृ ष्ण को अत्यंत तप्रय हैं हे गुरुदेव! सरस्वती गोस्वामी क े दास ! आपको मेरा सादर तवनम्र प्रर्ाम है. आप क ृ पा करक े श्रीचैतन्य महाप्रभु क े सन्देर् का प्रचार कर रहे हैं तथा तनरकारवाद एवं र्ून्यवाद से व्याप्त पाश्चात्य देर्ों का उद्धार कर रहे हैं
  • 6. पंच तत्त्व मंत्र जय श्री क ृ ष्ण चैतन्य, प्रभु मनत्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आमद गौर भक्त वृन्द ।।
  • 7. हरे क ृ ष्ण महा मन्त्र हरे क ृ ष्ण हरे क ृ ष्ण, क ृ ष्ण क ृ ष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे||
  • 8. जप- १५ ममनट पमवत्र नाम का अमृत कमलयुग में एकमात्र आशा है इस युग में लोगों की आयु कम है और वे आध्याक्तिक जीवन को समझने में धीमे हैं। दरअसल, मानव जीवन आध्याक्तिक मूल्ों को समझने क े तलए है, लेतकन क्योंतक इस युग में हर कोई र्ूद्र है, कोई भी तदलचस्पी नहीं रखता है। लोग जीवन क े वास्ततवक उद्देश्य को भूल गए हैं।
  • 9. CONTD >>> मंद र्ब्द का अथण धीमा और बुरा दोनों है, और इस युग में हर कोई या तो बुरा या धीमा है या दोनों का संयोजन है। लोग दुभाणग्यर्ाली और इतनी सारी चीजों से परेर्ान हैं। श्रीमद्भागवतम् क े अनुसार, अंततः वर्ाण नहीं होगी और फलस्वरूप भोजन की कमी होगी। सरकारें बहुत भारी कर लगाएं गी। श्रीमद भगवतम द्वारा भतवष्यवार्ी की गई इस युग की तवर्ेर्ताओं को पहले से ही क ु छ हद तक अनुभव तकया जा रहा है। चूाँतक कतलयुग बहुत ही दयनीय युग है, चैतन्य महाप्रभु, जो स्वयं श्रीक ृ ष्ण हैं, हर तकसी को हरे क ृ ष्ण का जाप करने की सलाह देते हैं। हरेनातम हरेनातम हरेनातमैव क े वलं|कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गमतरन्यथा|| [Cc. Ädi 17.21]
  • 10. CONTD >>> "कली क े इस युग में आध्याक्तिक प्रगतत का पतवत्र नाम, पतवत्र नाम, प्रभु क े पतवत्र नाम की तुलना में कोई तवकि नहीं है, कोई तवकि नहीं है, कोई तवकि नहीं है।" (बृहर् नारदीय पुरार्) यह प्रतिया चैतन्य महाप्रभु का आतवष्कार नहीं है, लेतकन र्ास्त्र, पुरार्ों द्वारा सलाह दी गई है। इस कलयुग क े तलए प्रतिया बहुत सरल है। क े वल हरे क ृ ष्ण महामंत्र का जप करना चातहए। माता देवहुमत क े पुत्र भगवान् कमपल की मशक्षाएं
  • 11. चचात क े मलए प्रकरण : पुनरागमन दो बालक एक ही तदन एक ही समय में जन्म लेते हैं. . . पहले क े माता तपता संपन्न और तर्तक्षत हैं और उन्होंने वर्ों तक अपनी पहली संतान क े तलए तचंता क े साथ प्रतीक्षा की है. . . उनकी संतान एक लड़का है , बुक्तद्धमान , स्वस्थ्य और मनोहर और वो तजसका भतवष्य अनेक संभावनाओं से पूर्ण है . . . . तनतश्चत ही उसकी भाग्यलक्ष्मी उस पर प्रसन्न है दू सरा बालक तभन्न ही प्रकार क े जगत में प्रवेर् करता है. . . . वह ऐसी माता से पैदा होता है जो गभण की अवतध में ही त्याग दी गयी थी. . . गरीबी में अपने बीमार नवजात क े पालन क े तलए उसे तकसी उत्साह का अनुभव नहीं होता. . . आगे का जीवन कतिनाइयों और किोरताओं से पररपूर्ण है , और इनसे उबरना आसान नहीं होता
  • 12. CONTD >>> संसार इस प्रकार की तवर्मताओं से भरपूर है. . तनतांत असमानताएं तजनसे बहुधा प्रश्न उि खड़े होते हैं” तवधाता इस प्रकार अन्याय क ै से कर सकता है? जॉजण और मैरी का पुत्र अाँधा क ै से पैदा हो गया ? ये तो भले लोग हैं. . . . भगवान् इतना हृदयहीन है? “ तथातप , पुनजणन्म क े तसद्धांत सनातन क े दृतिकोर् से जीवन क े तवर्य में तवचार करने क े तलए तवर्ाल पररपेक्ष परतुत करते हैं.. इस दृतिकोर् से एक संतक्षप्त जीवन को हमारी सत्ता का प्रारम्भ नहीं समझा सकता , वरंच ये काल की एक क ंध से अतधक क ु छ नहीं और हम समझ सकते हैं की आपाततः एक पुण्यािा जीव जो बहुत कि उिा रहा है इस जीवन अथवा इससे भी पूवण जीवनों में तकये गए पापों का फल भोग रहा है . . . तवश्वव्यापी न्याय की इस वृहद् दृति से हम देख सकते हैं की प्रत्येक जीव तकस प्रकार अपने कमों क े तलए उत्तरदायी होता है
  • 13. CONTD >>> कमों की तुलना बीजों से की जाती है, प्रारम्भ में इन कमों को तकया जाता है अथवा बोया जाता है और समय आने पर वे फलीभूत होते हैं. . और उनकी पररर्ामी प्रतततिया प्रारम्भ हो जाती है इस प्रकार की प्रतततियाएं जीव क े तलए सुखद अथवा दुखद हो सकती हैं और इनमे वह या तो अपने आचरर् को सुधार लेता है अथवा अतधकातधक पर्ुवत व्यवहार करता है
  • 14. CONTD >>> एक अपराधी कानून तोड़ने क े कारर् जेल में प्रवेर् करने का तवकि चुनता है, लेतकन एक अन्य व्यक्ति को उसकी सेवा की उत्क ृ िता क े कारर् सवोच्च न्यायालय में बैिने क े तलए तनयुि तकया जा सकता है। मानव जीवन का यह तवतर्ि वरदान है उस समय भी जब वो अपने पूवण जन्म - जन्मान्तरों में तकये गए पापकमों क े तलए भयंकर कि उिाने क े तलए तववर् है , कोई भी मानव श्री क ृ ष्णभावना क े अभ्यास को स्वीकार करक े अपने कमण को बदल सकता है . . . मानव र्रीर में आिा , तवकास कमण में मध्य तबंदु पर खड़ा है यहााँ से वो चाहे तो पतन की अथवा पुनजणन्म से मोक्ष की आकांक्षा कर सकता है
  • 15. CONTD >>> इसतलए यतद कोई जीव अपने वत्तणमान जीवन में यत तक ं तचत भी आध्याक्तिक प्रगतत करता है तब अपने अगले जीवन में उसे उस तबंदु से आगे बढ़ने तदया जाता है . . श्री भगवान् अपने तर्ष्य अजुणन से भगवद गीता में कहते हैं , “इस प्रयास ( श्री क ृ ष्ण भावना) में न तो कोई हातन होती है न कोई हीनता आती है वरंच इस मागण में थोड़ी से प्रगतत महा भय से बचा सकती है . . . ( अगले जीवन में मानव से तनम्न रूप में तगरने का भय)” आिा इस प्रकार अनेक जन्मों में आभ्यांतररक आध्याक्तिक गुर्ों का तवकास कर सकता है , जब तक की उसे भ ततक र्रीर में जन्म लेने की आवश्यिा न रहे और वो परमािा क े लोक में अपने मूल तनवास को न ल ट जाये. पुनरागमन , पुनजतन्म का मवज्ञान
  • 16. क ु छ असमानताओं का उल्लेख करें जो हम जीवन में मवमभन्न लोगों क े बीच अपने आनंद और दुख में पाते हैं। खोज
  • 17. 1. कभी-कभी धमतपरायण लोग भी क्ों पीम़ित होते हैं? 2. समझाएं मक प्रत्येक व्यक्तक्त अपने कमत क े मलए क्ों मजम्मेदार है 3. हम अपने दुख और बुरे कमत को क ै से दू र कर सकते हैं? 4. क ृ ष्ण चेतना लेने क े क्ा फायदे हैं? समझ
  • 18. प्रयोग 1. क्या आपने अभी तक पुनजणन्म पर तवश्वास तकया है? क्यों या क्यों नहीं? 2. क्या आप अपने कमण को बदलना चाहते हैं? क्या आपको लगता है तक क ृ ष्ण चेतना आपको हातसल करने में मदद करेगी? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
  • 19. प्रचार ही सार है क ृ ष्ण भावनामृत का प्रचार करना सभी जीवों पे असली दया है “अगर कोई जीव क ृ ष्ण भावनामृत में आगे बढ़ता है और वह दू सरों पे दयालु है और अगर उसका आि बोध का आध्याक्तिक ज्ञान उत्तम है , तो वह तुरंत भ ततक जीवन क े जाल से मुि हो जाएगा .”
  • 20. CONTD >>> इस श्लोक में 'दया जेवेर्ु' , अथाणत दू सरों क े प्रतत दया का अथण यह है की एक जीव को दू सरों क े प्रतत दयालु होना चातहए अगर वो आि ज्ञान क े पथ पर आगे बढ़ना चाहता है । इसका अथण यह है तक उसे स्वयं को तसद्ध करने और क ृ ष्ण क े एक अनन्त सेवक क े रूप में अपनी क्तथथतत को समझने क े बाद इस ज्ञान का प्रचार करना चातहए। इस ज्ञान का प्रचार करना वास्ततवक रूप से दू सरों पे दया तदखाना है। अन्य प्रकार क े मानवीय कायण र्रीर क े तलए अथथायी रूप से लाभकारी हो सकते हैं, लेतकन, क्योंतक एक जीव आिा है, अंततः कोई भी अपने आध्याक्तिक अक्तस्तत्व क े ज्ञान को प्रकट करक े वास्ततवक दया तदखा सकता है। Srimad Bhagvatam 4.29.1b
  • 22. भगवन चैतन्य क े प्रगट होने से पहले- झूठा धमत हठ योग वैभवपूणत मववाह समारोह
  • 23. ❏ वैष्णवों का मवलाप ❏ जप 0% ❏ भगवान मवष्णु क े मलए कोई प्रेम नहीं ❏ ममथ्या धमत ❏ भौमतक वातावरण ❏ मदखावे क े मलये धमत
  • 24. “देतहनोऽक्तस्मन्यथा देहे क मारं य वनं जरा | तथा देहान्तरप्राक्तप्तधीरस्तत्र न मुह्यतत || १३ ||” तजस प्रकार र्रीरधारी आिा इस (वतणमान) र्रीर में बाल्ावथथा से तरुर्ावथथा में और तफर वृद्धावथथा में तनरन्तर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आिा दू सरे र्रीर में चला जाता है | धीर व्यक्ति ऐसे पररवतणन से मोह को प्राप्त नहींहोता | अनुवाद भगवद गीता २. १३