भगवान दादा की गिनती हास्य कलाकारों में होती है, क्योंकि उन्होने सैकड़ों फिल्मों में ऐसे रोल किए, लेकिन वे उससे कहीं ज्यादा थे। 19940-50 के दशक में वे फिल्मों के नायक और निर्देशक हुआ करते थे और इतने नृत्य–निपुण थे कि अच्छे–अच्छे नचैयों की छुट्टी कर देते। उनके सधे हुए धीमे स्टेप्स इतने लुभावने थे कि उसकी नकल अमिताभ बच्चन, गोविंदा, मिथुन चक्रवर्ती, ऋषि कपूर आदि कई अभिनेताओं ने सहर्ष की। टीवी सीरियल ‘बाजे पायल’ में आशा पारिख ने उन्हें जानी-मानी नृत्यांगनाओं के समक्ष प्रस्तुत कर उनका उचित सम्मान किया। भगवान किशोरकुमार जैसे हरफनमौला कलाकार थे। बासठ साल के फिल्म करियर में उन्होने वह सब किया जो एक रचनाधर्मी कलाकार कर सकता है। 500 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अदाकारी के जलवे दिखाए और 36 फिल्मों के निर्माता और निर्देशक रहे। अन्य कंपनियों की फिल्मों का निर्देशक भी किया। अपनी कमाई के बल पर वे बंगला, गाड़ी और स्टुडियों के मालिक बने और अंत में सब कुछ गँवाकर फक्कड़ जिंदगी गुजारी, लेकिन कभी कोई गिला शिकवा नहीं किया। अपनी मिसाल वे आप थे।
भगवान दादा ने अपनी निर्माण संस्था जागृति-पिक्चर्स के बैनर तले कई सफल कॉमेड़ी फिल्में बनाईं। वे लो बजट फिल्में बनाते थे। 1938 से 49 तक वे स्टंट और एक्शन फिल्में बनाते रहे, जो श्रमिक वर्ग द्वारा पसंद की जाती। 1951 में उन्होंने नाच-गानों और हँसी मजाक से भरपूर ऐसी फिल्म बनाई, जिसका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। यह थी, ‘अलबेला’ जिसमें सी. रामचंद्र का संगीत था और जिसके गाने लता मंगेशकर और स्वयं सी. रामचंद्र ने चितलकर नाम से गाए थे, जो आज भी बड़े चाव से सुने और पसंद किए जाते हैं। मसलन ‘धीरे से आजा री अँखियन से निंदिया’, ‘शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’, ‘बलमा बड़ा नादान रे’, ‘प्रीत की न जाने पह
अ
नन्नास एक उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है। ब्रोमेलियासीइ परिवार का यह फल आज सर्वव्याप्त, रसीला, जोशीला और स्वादिष्ट फल है। इस फल का वानस्पतिक नाम अनानास कोमोसस है। इसका अनोखा मीठा और खट्टा स्वाद सबको अच्छा लगता है। वैसे तो इसका मौसम मार्च से जून तक रहता है, लेकिन बाजारों में यह पूरे साल उपलब्ध हो जाता है। । अनन्नास का ज्यूस शौक से पीया जाता है। साथ ही इसको ताजा काट कर खाया जाता है और खाने के बाद सलाद के रूप में या फ्रूट-कॉकटेल के रूप में प्रयोग भी किया जाता है।
अनन्नास पाचक तत्वों से भरपूर, शरीर को ताजगी देने वाला, हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देने वाला, कृमि नाशक और स्फूर्तिदायक फल है| ये त्वचा में निखार लाता है| गर्मी में यह ताजगी व ठंडक देता है| अनन्नास के रस में प्रोटीन को पचाने की अपार क्षमता है| यह आँतों को सशक्त बनाता है|
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आ
भगवान दादा की गिनती हास्य कलाकारों में होती है, क्योंकि उन्होने सैकड़ों फिल्मों में ऐसे रोल किए, लेकिन वे उससे कहीं ज्यादा थे। 19940-50 के दशक में वे फिल्मों के नायक और निर्देशक हुआ करते थे और इतने नृत्य–निपुण थे कि अच्छे–अच्छे नचैयों की छुट्टी कर देते। उनके सधे हुए धीमे स्टेप्स इतने लुभावने थे कि उसकी नकल अमिताभ बच्चन, गोविंदा, मिथुन चक्रवर्ती, ऋषि कपूर आदि कई अभिनेताओं ने सहर्ष की। टीवी सीरियल ‘बाजे पायल’ में आशा पारिख ने उन्हें जानी-मानी नृत्यांगनाओं के समक्ष प्रस्तुत कर उनका उचित सम्मान किया। भगवान किशोरकुमार जैसे हरफनमौला कलाकार थे। बासठ साल के फिल्म करियर में उन्होने वह सब किया जो एक रचनाधर्मी कलाकार कर सकता है। 500 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अदाकारी के जलवे दिखाए और 36 फिल्मों के निर्माता और निर्देशक रहे। अन्य कंपनियों की फिल्मों का निर्देशक भी किया। अपनी कमाई के बल पर वे बंगला, गाड़ी और स्टुडियों के मालिक बने और अंत में सब कुछ गँवाकर फक्कड़ जिंदगी गुजारी, लेकिन कभी कोई गिला शिकवा नहीं किया। अपनी मिसाल वे आप थे।
भगवान दादा ने अपनी निर्माण संस्था जागृति-पिक्चर्स के बैनर तले कई सफल कॉमेड़ी फिल्में बनाईं। वे लो बजट फिल्में बनाते थे। 1938 से 49 तक वे स्टंट और एक्शन फिल्में बनाते रहे, जो श्रमिक वर्ग द्वारा पसंद की जाती। 1951 में उन्होंने नाच-गानों और हँसी मजाक से भरपूर ऐसी फिल्म बनाई, जिसका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। यह थी, ‘अलबेला’ जिसमें सी. रामचंद्र का संगीत था और जिसके गाने लता मंगेशकर और स्वयं सी. रामचंद्र ने चितलकर नाम से गाए थे, जो आज भी बड़े चाव से सुने और पसंद किए जाते हैं। मसलन ‘धीरे से आजा री अँखियन से निंदिया’, ‘शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’, ‘बलमा बड़ा नादान रे’, ‘प्रीत की न जाने पह
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नन्नास एक उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है। ब्रोमेलियासीइ परिवार का यह फल आज सर्वव्याप्त, रसीला, जोशीला और स्वादिष्ट फल है। इस फल का वानस्पतिक नाम अनानास कोमोसस है। इसका अनोखा मीठा और खट्टा स्वाद सबको अच्छा लगता है। वैसे तो इसका मौसम मार्च से जून तक रहता है, लेकिन बाजारों में यह पूरे साल उपलब्ध हो जाता है। । अनन्नास का ज्यूस शौक से पीया जाता है। साथ ही इसको ताजा काट कर खाया जाता है और खाने के बाद सलाद के रूप में या फ्रूट-कॉकटेल के रूप में प्रयोग भी किया जाता है।
अनन्नास पाचक तत्वों से भरपूर, शरीर को ताजगी देने वाला, हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देने वाला, कृमि नाशक और स्फूर्तिदायक फल है| ये त्वचा में निखार लाता है| गर्मी में यह ताजगी व ठंडक देता है| अनन्नास के रस में प्रोटीन को पचाने की अपार क्षमता है| यह आँतों को सशक्त बनाता है|
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आ
स्तन कैंसर
स्तन कैंसर स्त्रियों का सबसे भयावह कैंसर है और स्त्रियों में कैंसर से मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। प्रारंभिक अवस्था में यह लक्षणहीन रोग है, कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती है। क्योंकि यह बहुत ही कुटिल रोग है, चुपचाप दबे पांव आता है, धीरे-धीरे पैर फैलाता है, शुरू में स्तन और आसपास के लसिका-पर्वों (Lymph Nodes) पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है, शरीर की रक्षाप्रणाली को कमजोर करता है और संवेदनशील स्थानों पर अपनी सेना और युद्ध-पोत तैनात करता है। इस तरह पूरी तैयारी होने के बाद ही यह युद्ध का बिगुल बजाता है। परन्तु स्वपरीक्षण, सोनोग्राफी, चिकित्सकीय परीक्षण, मेमोग्राफी, सुई द्वारा जीवोति-जाँच (Fine Needle Aspiration Biopsy) द्वारा हम इस रोग को प्रारंभिक अवस्था में चिन्हित कर सकते हैं। बिलकुल प्रारंभिक अवस्था में इस रोग का शल्य द्वारा पूर्ण उपचार (Complete Cure) संभव है।
स्तन कैंसर के उपचार द्वारा हम सूक्ष्म स्थलान्तर रोग (micro metastatic disease) अर्थात स्तन और स्थानीय लसिका-पर्व को लांघ कर बाहर निकल चुकी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं और इस रोग की मृत्यु दर में 35-70% कमी ला सकते हैं। पिछले दो दशकों में इस रोग पर बहुत अनुसंधान हुए हैं और रोग को समझने, बेहतर उपचार खोजने की दिशा में काफी प्रगति हुई है। (ध्यान रहे अर्बुद, कार्सिनोमा और कैंसर पर्यायवाची हैं)
स्तन की संरचना
स्तन स्त्री की छाती के अग्रभाग में वक्षपेशी (pectorals major muscle) के ऊपर अवस्थित दो गोलाकार दुग्ध उत्पादन इकाइयां होती हैं, जो प्रसव के बाद शिशु के पोषण हेतु अमृततुल्य दुग्ध का स्राव करती हैं। यह स्त्री का सबसे सुन्दर अंग है और सभी स्त्री-पुरुष इसकी और आकर्षित रहते हैं, जिसका एक विशेष मनोवैज्ञानिक कारण है। उनका अवचेतन मन जानता है कि जीवन के प्रारम्भिक दौर में उनकी क्षुधा इन्हीं के द्वारा शान्त होती थी और इन
फाइब्रोमायल्जिया (FMS)
फाइब्रोमायल्जिया (FMS) एक चिरकारी (क्रोनिक) रोग है जिसमें शरीर की विभिन्न मांस-पेशियों और लिगामेंट्स में बहुत दर्द रहता है। हल्का सा दबाने या स्पर्श करने से दर्द एकदम बढ़ जाता है। इस रोग में दर्द के साथ थकावट, निद्रा और जोड़ो में जकड़न भी रहती है। कुछ रोगी भोजन निगलने में दिक्कत, मूत्र तथा मल विसर्जन विकार, सिरहन, सुन्नता और संज्ञानात्मक विकार की शिकायत करते हैं। इस रोग को फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम भी कहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित रोगी कुछ सह विकार जैसे अवसाद (Depression), चिंता, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से भी ग्रस्त हो सकता है। इस रोग का आघटन कुल आबादी का 2-4% है। यह मुख्यतः स्त्रियों का रोग है। स्त्री और पुरुष में इसके आघटन का अनुपात 9:1 है। यह रोग 35 से 45 वर्ष की स्त्रियों को शिकार बनाता है। फाइब्रोमायल्जिया नाम लेटिन शब्द, fibro, जिसका मतलब "तंतुमय ऊतक", ग्रीक शब्द myo, इसका शाब्दिक अर्थ मसल और कनेक्टिव टिश्यू और algia का मतलब पेन हुआ।
इस बीमारी के रोगियों के मस्तिष्क में कुछ संरचनात्मक और कार्यात्मक विकृतियां देखी जा सकती हैं। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये विकृतियां इस रोग के कारण होती हैं या किसी अन्य विकार के कारण। कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि मस्तिष्क की ये विकृतियां बचपन में किसी लंबे या गंभीर तनाव के कारण होती हैं। कुछ शोधकर्ता इसे रोग को पेशीकंकालीय (Musculoskeletal) रोग मानते हैं तो कुछ इसे स्नायु-मनोरोग (Neuropsychiatric) बतलाते हैं। इसका निदान लक्षण, उनकी तीव्रता और पेन-इंडेक्स के आधार पर किया जाता है।
अभी तक इस रोग का कोई उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों को दबाने के लिए प्रशामक उपचार दिया जाता है। साथ में व्यवहार चिकित्सा, शिक्षा और व्यायाम की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। यू.एस. नेशनल इंस्टिट
फाइब्रोमायल्जिया (FMS)
फाइब्रोमायल्जिया (FMS) एक चिरकारी (क्रोनिक) रोग है जिसमें शरीर की विभिन्न मांस-पेशियों और लिगामेंट्स में बहुत दर्द रहता है। हल्का सा दबाने या स्पर्श करने से दर्द एकदम बढ़ जाता है। इस रोग में दर्द के साथ थकावट, निद्रा और जोड़ो में जकड़न भी रहती है। कुछ रोगी भोजन निगलने में दिक्कत, मूत्र तथा मल विसर्जन विकार, सिरहन, सुन्नता और संज्ञानात्मक विकार की शिकायत करते हैं। इस रोग को फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम भी कहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित रोगी कुछ सह विकार जैसे अवसाद (Depression), चिंता, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से भी ग्रस्त हो सकता है। इस रोग का आघटन कुल आबादी का 2-4% है। यह मुख्यतः स्त्रियों का रोग है। स्त्री और पुरुष में इसके आघटन का अनुपात 9:1 है। यह रोग 35 से 45 वर्ष की स्त्रियों को शिकार बनाता है। फाइब्रोमायल्जिया नाम लेटिन शब्द, fibro, जिसका मतलब "तंतुमय ऊतक", ग्रीक शब्द myo, इसका शाब्दिक अर्थ मसल और कनेक्टिव टिश्यू और algia का मतलब पेन हुआ।
इस बीमारी के रोगियों के मस्तिष्क में कुछ संरचनात्मक और कार्यात्मक विकृतियां देखी जा सकती हैं। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये विकृतियां इस रोग के कारण होती हैं या किसी अन्य विकार के कारण। कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि मस्तिष्क की ये विकृतियां बचपन में किसी लंबे या गंभीर तनाव के कारण होती हैं। कुछ शोधकर्ता इसे रोग को पेशीकंकालीय (Musculoskeletal) रोग मानते हैं तो कुछ इसे स्नायु-मनोरोग (Neuropsychiatric) बतलाते हैं। इसका निदान लक्षण, उनकी तीव्रता और पेन-इंडेक्स के आधार पर किया जाता है।
अभी तक इस रोग का कोई उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों को दबाने के लिए प्रशामक उपचार दिया जाता है। साथ में व्यवहार चिकित्सा, शिक्षा और व्यायाम की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। यू.एस. नेशनल इंस्टि
क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
HESE SLIDES ARE PREPAREED TO UNDERSTAND about water born diseases IN EASY WAY Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/ youtube channel https://www.youtube.com/c/MYSTUDENTSU... CHANEL PLAYLIST- ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPM3VTGVUXIeswKJ3XGaD2p COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPyslPNdIJoVjiXEDTVEDzs CHILD HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gANcslmv0DXg6BWmWN359Gvg FIRST AID- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMvGqeqH2ZTklzFAZhOrvgP HCM- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAM7mZ1vZhQBHWbdLnLb-cH9 FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPFxu78NDLpGPaxEmK1fTao COMMUNICABLE DISEASES- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOWo4IwNjLU_LCuhRN0ZLeb ENVIRONMENTAL HEALTH- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPkI6LvfS8Zu1nm6mZi9FK6 MSN- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOdyoHnDLAoR_o8M6ccqYBm HINDI ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAN4L-FJ3s_IEXgZCijGUA1A ENGLISH ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMYv2a1hFcq4W1nBjTnRkHP facebook profile- https://www.facebook.com/suresh.kr.lrhs/ FACEBOOK PAGE- https://www.facebook.com/My-Student-S... facebook group NURSING NOTES- https://www.facebook.com/groups/24139... FOR MAKING EASY NOTES YOU CAN ALSO VISIT MY BLOG – BLOGGER- https://mynursingstudents.blogspot.com/ Instagram- https://www.instagram.com/mystudentsu... Twitter- https://twitter.com/student_system?s=08 #PEM, #water,#prification#largescale,#nurses,#ASSESSMENT, #APPEARENCE,#PULSE,#GRIMACE,#REFLEX,#RESPIRATION,#RESUSCITATION,#NEWBORN,#BABY,#VIRGINIA, #CHILD, #OXYGEN,#CYANOSIS,#OPTICNERVE, #SARACHNA,#MYSTUDENTSUPPORTSYSTEM, #rashes,#nursingclasses, #communityhealthnursing,#ANM, #GNM, #BSCNURING,#NURSINGSTUDENTS, #WHO,#NURSINGINSTITUTION,#COLLEGEOFNURSING,#nursingofficer,#COMMUNITYHEALTHOFFICE
मुर्गियों में बीमारियां से बचाव और टीकाकरण :
मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिमारियों से बचाव के लिए समय -समय पर मुर्गियों का टीकाकरण बहुत ही जरुरी है ,कुछ बीमारियां की रोक-थाम केवल टीकाकरण से ही संभव है। मुर्गियों में बिमारियों से बचाव के लिए बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियमों ) का पालन करना बहुत ही जरुरी और महत्वपूर्ण है।
बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) :
ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से ब्रायलर मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।
ब्रायलर मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) का प्रयोग करें।
मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों।
This a miraculous news of the day. Rekha Jain of Pali, India phoned me and narrated the whole story. She is 46 and suffers from Pituitary Adenoma with hyperprolactinemia (Brain Tumor) since 25 years.
On my recommendation she started using Flaxseed about two years back. After just six months her brain tumor was vanished completely which was confirmed by MRI scan. Even many doctors admitted that it is a miracle.
THESE SLIDES ARE PREPAREED TO UNDERSTAND CHILD HEALTH DISORDERS IN EASY WAY Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/ youtube channel https://www.youtube.com/c/MYSTUDENTSU... CHANEL PLAYLIST- ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPM3VTGVUXIeswKJ3XGaD2p COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPyslPNdIJoVjiXEDTVEDzs CHILD HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gANcslmv0DXg6BWmWN359Gvg FIRST AID- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMvGqeqH2ZTklzFAZhOrvgP HCM- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAM7mZ1vZhQBHWbdLnLb-cH9 FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPFxu78NDLpGPaxEmK1fTao COMMUNICABLE DISEASES- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOWo4IwNjLU_LCuhRN0ZLeb ENVIRONMENTAL HEALTH- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPkI6LvfS8Zu1nm6mZi9FK6 MSN- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOdyoHnDLAoR_o8M6ccqYBm HINDI ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAN4L-FJ3s_IEXgZCijGUA1A ENGLISH ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMYv2a1hFcq4W1nBjTnRkHP facebook profile- https://www.facebook.com/suresh.kr.lrhs/ FACEBOOK PAGE- https://www.facebook.com/My-Student-S... facebook group NURSING NOTES- https://www.facebook.com/groups/24139... FOR MAKING EASY NOTES YOU CAN ALSO VISIT MY BLOG – BLOGGER- https://mynursingstudents.blogspot.com/ Instagram- https://www.instagram.com/mystudentsu... Twitter- https://twitter.com/student_system?s=08 #PEM, #hemophilia,#NEW,#BORN,#ASSESSMENT, #APPEARENCE,#PULSE,#GRIMACE,#REFLEX,#RESPIRATION,#RESUSCITATION,#NEWBORN,#BABY,#VIRGINIA, #CHILD, #OXYGEN,#CYANOSIS,#OPTICNERVE, #SARACHNA,#MYSTUDENTSUPPORTSYSTEM, #rashes,#nursingclasses, #communityhealthnursing,#ANM, #GNM, #BSCNURING,#NURSINGSTUDENTS, #WHO,#NURSINGINSTITUTION,#COLLEGEOFNURSING,#nursingofficer,#COMMUNITYHEALTHOFFICER
This is a presentation in Hindi. This presentation has major birth defects. It has a in detail description of the defects. I really had a good time in making this presentation as i could learn many things about the defects. I would really thank all the people who helped me in completing this presentation by arranging and editing my presentation to perfection. It contain in detail description.
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
पीसीओडी या पीसीओएस एक ऐसी स्थिति है जो महिलाओं के अंडाशय को प्रभावित करती है, प्रजनन अंग जो प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करते हैं जो मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने में मदद करते हैं और थोड़ी मात्रा में हार्मोन इनहिबिन, रिलैक्सिन और पुरुष हार्मोन का उत्पादन भी करते हैं जिन्हें एण्ड्रोजन कहा जाता है।
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Electrohomeopathy was devised by Cesare Mattei (1809–1896) in the latter part of the 19th century. Mattei, a nobleman living in a castle in the vicinity of Bologna,[2] studied natural science, anatomy, physiology, pathology, chemistry and botany. He ultimately focused on the supposed therapeutic power of "electricity" in botanical extracts. Massei made bold, unsupported claims for the efficacy of his treatments, including the claim that his treatments offered a nonsurgical alternative to cancer.[3] His treatment regimens were met with scepticism by mainstream medicine:
The electrohomeopathic system is an invention of Count Mattei who prates of "red," "blue," and "green" electricity, a theory that, in spite of its utter idiocy, has attracted a considerable following and earned a large fortune for its chief promoter Remedies are derived from what are said to be the active micro nutrients or mineral salts of certain plants. One contemporary account of the process of producing electrohomeopathic remedies was as follows:
As to the nature of his remedies we learn...that...they are manufactured from certain herbs, and that the directions for the preparation of the necessary dilutions are given in the ordinary jargon of homeopathy. The globules and liquids, however, are " instinct with a potent, vital, electrical force, which enables them to work wonders." This process of "fixing the electrical principle" is carried on in the secret central chamber of a Neo-Moorish castle which Count Mattei has built for himself in the Bolognese Apennines...The "red electricity" and "white electricity" supposed to be "fixed" in these "vegetable compounds" are in their very nomenclature and suggestion poor and miserable fictions According to Mattei's own ideas however, every disease originates in the change of blood or of the lymphatic system or both, and remedies can therefore be mainly divided into two broad categories groups to be used in response to the dominant affected system. Mattei wrote that having obtained plant extracts, he was "able to determine in the liquid vegetable electricity". Allied to his theories and therapies were elements of Chinese medicine, of medical humours, of apparent Brownianism, as well as modified versions of Samuel Hahnemann's homeopathic principles.[8] Electrohomeopathy has some associations with spagyric medicine, a holistic medical philosophy claimed to be the practical application of alchemy in medical treatment, so that the principle of modern electrohomeopathy is that disease is typically multi-organic in cause or effect and therefore requires holistic treatment that is at once both complex and natural.
रूमेटॉयड आर्थ्राइटिस एक दीर्घकालिक स्व-प्रतिरक्षित (Autoimmune) रोग है जो शरीर के जोड़ों और अन्य ऊतकों में विकृति पैदा करता है। इस रोग में हाथ और पैरों के जोड़ प्रदाह ग्रस्त (Inflammed) हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप उनमें सूजन और दर्द होता है और धीरे-धीरे जोड़ों में क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
• शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों और संयोजी ऊतक (Connective Tissue) को नष्ट करती है।
• सुबह उठने पर या विश्राम के बाद जोड़ों (सामान्यतः हाथ और पैरों के छोटे जोड़ों) में दर्द और जकड़न होती है जो एक घंटे से अधिक समय तक रहती है।
• बुखार, कमजोरी और अन्य अंगों में खराबी आ सकती है।
• इस रोग का निदान मुख्यतः रोगी में लक्षणों के आधार पर किया जाता है, लेकिन रक्त में रूमेटॉयड फेक्टर की जांच और एक्स-रे भी निदान में सहायक होते हैं।
• इस रोग के उपचार में कसरत, स्प्लिंट, दवाइयों (नॉन-स्टीरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेट्री दवाइयां, एंटीरूमेटिक दवाइयां और इम्युनोसप्रेसिव दवाइयां) और शल्य चिकित्सा की मदद ली जाती है।
विश्व की 1% आबादी रूमेटॉयड आर्थ्राइटिस का शिकार बनती है। स्त्रियों में इस रोग का आघटन पुरुषों से दो या तीन गुना अधिक होता है। वैसे तो यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन इसकी शुरुआत प्रायः 35 से 50 वर्ष के बीच होती है। इस रोग का एक प्रारूप छोटे बच्चों में भी होता है, जिसे जुविनाइल इडियोपेथिक आर्थ्राइटिस (Juvenile Idiopathic Arthritis) कहते हैं।
इस रोग का कारण अभी तक अज्ञात है, लेकिन इसे स्व-प्रतिरक्षित रोग (Autoimmune Disease) माना जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों के अस्तर या खोल (Synovial Membrane) पर प्रहार करती है, साथ में शरीर के अन्य अंगों के संयोजी ऊतक जैसे रक्तवाहिकाएं और फेफड़े भी क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। और इस तरह जोड़ों के कार्टिलेज, अस्थियां और लिगामेन्ट्स का क्षरण होने लगता है, जिससे जोड़ व
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
स्तन कैंसर
स्तन कैंसर स्त्रियों का सबसे भयावह कैंसर है और स्त्रियों में कैंसर से मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। प्रारंभिक अवस्था में यह लक्षणहीन रोग है, कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती है। क्योंकि यह बहुत ही कुटिल रोग है, चुपचाप दबे पांव आता है, धीरे-धीरे पैर फैलाता है, शुरू में स्तन और आसपास के लसिका-पर्वों (Lymph Nodes) पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है, शरीर की रक्षाप्रणाली को कमजोर करता है और संवेदनशील स्थानों पर अपनी सेना और युद्ध-पोत तैनात करता है। इस तरह पूरी तैयारी होने के बाद ही यह युद्ध का बिगुल बजाता है। परन्तु स्वपरीक्षण, सोनोग्राफी, चिकित्सकीय परीक्षण, मेमोग्राफी, सुई द्वारा जीवोति-जाँच (Fine Needle Aspiration Biopsy) द्वारा हम इस रोग को प्रारंभिक अवस्था में चिन्हित कर सकते हैं। बिलकुल प्रारंभिक अवस्था में इस रोग का शल्य द्वारा पूर्ण उपचार (Complete Cure) संभव है।
स्तन कैंसर के उपचार द्वारा हम सूक्ष्म स्थलान्तर रोग (micro metastatic disease) अर्थात स्तन और स्थानीय लसिका-पर्व को लांघ कर बाहर निकल चुकी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं और इस रोग की मृत्यु दर में 35-70% कमी ला सकते हैं। पिछले दो दशकों में इस रोग पर बहुत अनुसंधान हुए हैं और रोग को समझने, बेहतर उपचार खोजने की दिशा में काफी प्रगति हुई है। (ध्यान रहे अर्बुद, कार्सिनोमा और कैंसर पर्यायवाची हैं)
स्तन की संरचना
स्तन स्त्री की छाती के अग्रभाग में वक्षपेशी (pectorals major muscle) के ऊपर अवस्थित दो गोलाकार दुग्ध उत्पादन इकाइयां होती हैं, जो प्रसव के बाद शिशु के पोषण हेतु अमृततुल्य दुग्ध का स्राव करती हैं। यह स्त्री का सबसे सुन्दर अंग है और सभी स्त्री-पुरुष इसकी और आकर्षित रहते हैं, जिसका एक विशेष मनोवैज्ञानिक कारण है। उनका अवचेतन मन जानता है कि जीवन के प्रारम्भिक दौर में उनकी क्षुधा इन्हीं के द्वारा शान्त होती थी और इन
फाइब्रोमायल्जिया (FMS)
फाइब्रोमायल्जिया (FMS) एक चिरकारी (क्रोनिक) रोग है जिसमें शरीर की विभिन्न मांस-पेशियों और लिगामेंट्स में बहुत दर्द रहता है। हल्का सा दबाने या स्पर्श करने से दर्द एकदम बढ़ जाता है। इस रोग में दर्द के साथ थकावट, निद्रा और जोड़ो में जकड़न भी रहती है। कुछ रोगी भोजन निगलने में दिक्कत, मूत्र तथा मल विसर्जन विकार, सिरहन, सुन्नता और संज्ञानात्मक विकार की शिकायत करते हैं। इस रोग को फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम भी कहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित रोगी कुछ सह विकार जैसे अवसाद (Depression), चिंता, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से भी ग्रस्त हो सकता है। इस रोग का आघटन कुल आबादी का 2-4% है। यह मुख्यतः स्त्रियों का रोग है। स्त्री और पुरुष में इसके आघटन का अनुपात 9:1 है। यह रोग 35 से 45 वर्ष की स्त्रियों को शिकार बनाता है। फाइब्रोमायल्जिया नाम लेटिन शब्द, fibro, जिसका मतलब "तंतुमय ऊतक", ग्रीक शब्द myo, इसका शाब्दिक अर्थ मसल और कनेक्टिव टिश्यू और algia का मतलब पेन हुआ।
इस बीमारी के रोगियों के मस्तिष्क में कुछ संरचनात्मक और कार्यात्मक विकृतियां देखी जा सकती हैं। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये विकृतियां इस रोग के कारण होती हैं या किसी अन्य विकार के कारण। कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि मस्तिष्क की ये विकृतियां बचपन में किसी लंबे या गंभीर तनाव के कारण होती हैं। कुछ शोधकर्ता इसे रोग को पेशीकंकालीय (Musculoskeletal) रोग मानते हैं तो कुछ इसे स्नायु-मनोरोग (Neuropsychiatric) बतलाते हैं। इसका निदान लक्षण, उनकी तीव्रता और पेन-इंडेक्स के आधार पर किया जाता है।
अभी तक इस रोग का कोई उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों को दबाने के लिए प्रशामक उपचार दिया जाता है। साथ में व्यवहार चिकित्सा, शिक्षा और व्यायाम की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। यू.एस. नेशनल इंस्टिट
फाइब्रोमायल्जिया (FMS)
फाइब्रोमायल्जिया (FMS) एक चिरकारी (क्रोनिक) रोग है जिसमें शरीर की विभिन्न मांस-पेशियों और लिगामेंट्स में बहुत दर्द रहता है। हल्का सा दबाने या स्पर्श करने से दर्द एकदम बढ़ जाता है। इस रोग में दर्द के साथ थकावट, निद्रा और जोड़ो में जकड़न भी रहती है। कुछ रोगी भोजन निगलने में दिक्कत, मूत्र तथा मल विसर्जन विकार, सिरहन, सुन्नता और संज्ञानात्मक विकार की शिकायत करते हैं। इस रोग को फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम भी कहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित रोगी कुछ सह विकार जैसे अवसाद (Depression), चिंता, मानसिक तनाव और तनाव संबंधी रोग जैसे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से भी ग्रस्त हो सकता है। इस रोग का आघटन कुल आबादी का 2-4% है। यह मुख्यतः स्त्रियों का रोग है। स्त्री और पुरुष में इसके आघटन का अनुपात 9:1 है। यह रोग 35 से 45 वर्ष की स्त्रियों को शिकार बनाता है। फाइब्रोमायल्जिया नाम लेटिन शब्द, fibro, जिसका मतलब "तंतुमय ऊतक", ग्रीक शब्द myo, इसका शाब्दिक अर्थ मसल और कनेक्टिव टिश्यू और algia का मतलब पेन हुआ।
इस बीमारी के रोगियों के मस्तिष्क में कुछ संरचनात्मक और कार्यात्मक विकृतियां देखी जा सकती हैं। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये विकृतियां इस रोग के कारण होती हैं या किसी अन्य विकार के कारण। कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि मस्तिष्क की ये विकृतियां बचपन में किसी लंबे या गंभीर तनाव के कारण होती हैं। कुछ शोधकर्ता इसे रोग को पेशीकंकालीय (Musculoskeletal) रोग मानते हैं तो कुछ इसे स्नायु-मनोरोग (Neuropsychiatric) बतलाते हैं। इसका निदान लक्षण, उनकी तीव्रता और पेन-इंडेक्स के आधार पर किया जाता है।
अभी तक इस रोग का कोई उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों को दबाने के लिए प्रशामक उपचार दिया जाता है। साथ में व्यवहार चिकित्सा, शिक्षा और व्यायाम की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। यू.एस. नेशनल इंस्टि
क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
HESE SLIDES ARE PREPAREED TO UNDERSTAND about water born diseases IN EASY WAY Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/ youtube channel https://www.youtube.com/c/MYSTUDENTSU... CHANEL PLAYLIST- ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPM3VTGVUXIeswKJ3XGaD2p COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPyslPNdIJoVjiXEDTVEDzs CHILD HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gANcslmv0DXg6BWmWN359Gvg FIRST AID- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMvGqeqH2ZTklzFAZhOrvgP HCM- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAM7mZ1vZhQBHWbdLnLb-cH9 FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPFxu78NDLpGPaxEmK1fTao COMMUNICABLE DISEASES- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOWo4IwNjLU_LCuhRN0ZLeb ENVIRONMENTAL HEALTH- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPkI6LvfS8Zu1nm6mZi9FK6 MSN- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOdyoHnDLAoR_o8M6ccqYBm HINDI ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAN4L-FJ3s_IEXgZCijGUA1A ENGLISH ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMYv2a1hFcq4W1nBjTnRkHP facebook profile- https://www.facebook.com/suresh.kr.lrhs/ FACEBOOK PAGE- https://www.facebook.com/My-Student-S... facebook group NURSING NOTES- https://www.facebook.com/groups/24139... FOR MAKING EASY NOTES YOU CAN ALSO VISIT MY BLOG – BLOGGER- https://mynursingstudents.blogspot.com/ Instagram- https://www.instagram.com/mystudentsu... Twitter- https://twitter.com/student_system?s=08 #PEM, #water,#prification#largescale,#nurses,#ASSESSMENT, #APPEARENCE,#PULSE,#GRIMACE,#REFLEX,#RESPIRATION,#RESUSCITATION,#NEWBORN,#BABY,#VIRGINIA, #CHILD, #OXYGEN,#CYANOSIS,#OPTICNERVE, #SARACHNA,#MYSTUDENTSUPPORTSYSTEM, #rashes,#nursingclasses, #communityhealthnursing,#ANM, #GNM, #BSCNURING,#NURSINGSTUDENTS, #WHO,#NURSINGINSTITUTION,#COLLEGEOFNURSING,#nursingofficer,#COMMUNITYHEALTHOFFICE
मुर्गियों में बीमारियां से बचाव और टीकाकरण :
मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिमारियों से बचाव के लिए समय -समय पर मुर्गियों का टीकाकरण बहुत ही जरुरी है ,कुछ बीमारियां की रोक-थाम केवल टीकाकरण से ही संभव है। मुर्गियों में बिमारियों से बचाव के लिए बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियमों ) का पालन करना बहुत ही जरुरी और महत्वपूर्ण है।
बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) :
ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से ब्रायलर मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।
ब्रायलर मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) का प्रयोग करें।
मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों।
This a miraculous news of the day. Rekha Jain of Pali, India phoned me and narrated the whole story. She is 46 and suffers from Pituitary Adenoma with hyperprolactinemia (Brain Tumor) since 25 years.
On my recommendation she started using Flaxseed about two years back. After just six months her brain tumor was vanished completely which was confirmed by MRI scan. Even many doctors admitted that it is a miracle.
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This is a presentation in Hindi. This presentation has major birth defects. It has a in detail description of the defects. I really had a good time in making this presentation as i could learn many things about the defects. I would really thank all the people who helped me in completing this presentation by arranging and editing my presentation to perfection. It contain in detail description.
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
पीसीओडी या पीसीओएस एक ऐसी स्थिति है जो महिलाओं के अंडाशय को प्रभावित करती है, प्रजनन अंग जो प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करते हैं जो मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने में मदद करते हैं और थोड़ी मात्रा में हार्मोन इनहिबिन, रिलैक्सिन और पुरुष हार्मोन का उत्पादन भी करते हैं जिन्हें एण्ड्रोजन कहा जाता है।
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Electrohomeopathy was devised by Cesare Mattei (1809–1896) in the latter part of the 19th century. Mattei, a nobleman living in a castle in the vicinity of Bologna,[2] studied natural science, anatomy, physiology, pathology, chemistry and botany. He ultimately focused on the supposed therapeutic power of "electricity" in botanical extracts. Massei made bold, unsupported claims for the efficacy of his treatments, including the claim that his treatments offered a nonsurgical alternative to cancer.[3] His treatment regimens were met with scepticism by mainstream medicine:
The electrohomeopathic system is an invention of Count Mattei who prates of "red," "blue," and "green" electricity, a theory that, in spite of its utter idiocy, has attracted a considerable following and earned a large fortune for its chief promoter Remedies are derived from what are said to be the active micro nutrients or mineral salts of certain plants. One contemporary account of the process of producing electrohomeopathic remedies was as follows:
As to the nature of his remedies we learn...that...they are manufactured from certain herbs, and that the directions for the preparation of the necessary dilutions are given in the ordinary jargon of homeopathy. The globules and liquids, however, are " instinct with a potent, vital, electrical force, which enables them to work wonders." This process of "fixing the electrical principle" is carried on in the secret central chamber of a Neo-Moorish castle which Count Mattei has built for himself in the Bolognese Apennines...The "red electricity" and "white electricity" supposed to be "fixed" in these "vegetable compounds" are in their very nomenclature and suggestion poor and miserable fictions According to Mattei's own ideas however, every disease originates in the change of blood or of the lymphatic system or both, and remedies can therefore be mainly divided into two broad categories groups to be used in response to the dominant affected system. Mattei wrote that having obtained plant extracts, he was "able to determine in the liquid vegetable electricity". Allied to his theories and therapies were elements of Chinese medicine, of medical humours, of apparent Brownianism, as well as modified versions of Samuel Hahnemann's homeopathic principles.[8] Electrohomeopathy has some associations with spagyric medicine, a holistic medical philosophy claimed to be the practical application of alchemy in medical treatment, so that the principle of modern electrohomeopathy is that disease is typically multi-organic in cause or effect and therefore requires holistic treatment that is at once both complex and natural.
रूमेटॉयड आर्थ्राइटिस एक दीर्घकालिक स्व-प्रतिरक्षित (Autoimmune) रोग है जो शरीर के जोड़ों और अन्य ऊतकों में विकृति पैदा करता है। इस रोग में हाथ और पैरों के जोड़ प्रदाह ग्रस्त (Inflammed) हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप उनमें सूजन और दर्द होता है और धीरे-धीरे जोड़ों में क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
• शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों और संयोजी ऊतक (Connective Tissue) को नष्ट करती है।
• सुबह उठने पर या विश्राम के बाद जोड़ों (सामान्यतः हाथ और पैरों के छोटे जोड़ों) में दर्द और जकड़न होती है जो एक घंटे से अधिक समय तक रहती है।
• बुखार, कमजोरी और अन्य अंगों में खराबी आ सकती है।
• इस रोग का निदान मुख्यतः रोगी में लक्षणों के आधार पर किया जाता है, लेकिन रक्त में रूमेटॉयड फेक्टर की जांच और एक्स-रे भी निदान में सहायक होते हैं।
• इस रोग के उपचार में कसरत, स्प्लिंट, दवाइयों (नॉन-स्टीरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेट्री दवाइयां, एंटीरूमेटिक दवाइयां और इम्युनोसप्रेसिव दवाइयां) और शल्य चिकित्सा की मदद ली जाती है।
विश्व की 1% आबादी रूमेटॉयड आर्थ्राइटिस का शिकार बनती है। स्त्रियों में इस रोग का आघटन पुरुषों से दो या तीन गुना अधिक होता है। वैसे तो यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन इसकी शुरुआत प्रायः 35 से 50 वर्ष के बीच होती है। इस रोग का एक प्रारूप छोटे बच्चों में भी होता है, जिसे जुविनाइल इडियोपेथिक आर्थ्राइटिस (Juvenile Idiopathic Arthritis) कहते हैं।
इस रोग का कारण अभी तक अज्ञात है, लेकिन इसे स्व-प्रतिरक्षित रोग (Autoimmune Disease) माना जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों के अस्तर या खोल (Synovial Membrane) पर प्रहार करती है, साथ में शरीर के अन्य अंगों के संयोजी ऊतक जैसे रक्तवाहिकाएं और फेफड़े भी क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। और इस तरह जोड़ों के कार्टिलेज, अस्थियां और लिगामेन्ट्स का क्षरण होने लगता है, जिससे जोड़ व
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
1. 1 | P a g e
होज�कन्स िलन्फोम(Hodgkin's lymphoma)
होज�कन्स िलम्फोमा यHL (िजसे पहले होज�कन्स रोग के नाम से जाना जाता
था) �ेतर�-कोिशका� का क�सर (lymphoid malignancy) है, इस क�सर क�
संरचना और लक्षण िविश� ह� और इसकापूणर्तः उपचार संभव है। सबसे पह
सन् 1832 म� थॉमस हॉज�कन्स ने इस रोग का िवस्तार से अध्ययन �कया
इसे होज�कन्स रोग नाम से प�रभािषत �कया था। एक लाख लोग� म�2-3 इस
रोग के िशकार बनते ह�।
बायोप्सी �ारा लिसक-�ंिथ को िनकाल कर ( excisional lymph node
biopsy) उसक� सू�म-संरचना को देख कर ही इसका िनदान �कया जाता है।
सी.टी.स्के, एम.आर.आई.तथा अन्य जांच के आधार पर इसे िविभ� चरण� म� वग�कृत �कया जाता है।
सू�म-संरचना के आधार पर डब्ल्.एच.ओ. �ारा इसक� पांच सामान्य( classic) �कस्म� उल्लेिखत क� गई ह�।
पहली चार �कस्म�
1- नो�ूलर स्क्लीरोिसNS (80%)
2- िमक्स्ड सेल्यूल� MS (15%)
3- िलम्फोसाइट िडप्लीटेLD (02%)
4- िलम्फोसाइट �रच(03%) LR सामान्य ह�।
Pop corn Cells
ले�कन पांचव� अनूठी �कस्म के लक्षण भी िविश� ह� और उपचार भी अलग है। इसक� �ापक5 % है। इसम�
िविश� रीड-स्टनर्बगर् कोिशकाएं ब�त ही कम होती ह�। इनक� जगह �दाह कोिशका� के बीच िलम्फोसाइट
िहिस्टयोसाइट सेल्स य ''पॉपकॉनर् कोिशक'' िजसका दानेदार न्यूिक्लयस म�ा के िसकेभु�े क� तरह �दखा
देता है। ये बी-सेल एन्टीजन जैसे CD19 और CD20 के िलए घनात्मक और CD15 और CD30 के िलए
ऋणात्मक होते ह�।
5- नो�ूलर िलम्फोसाइट ि�डोिमनेन्ट होज�कन्(NLPHD)
सामान्य होज�कन्स िलम्फोमा म� िविश� �कार क� ब(20-50 नेनोमीटर) तथा ि�-नािभक�य ''रीड-स्टनर्बग
कोिशका'' होती है, हालां�क इनक� तादाद 1-2 % ही होती है, शेष स��य व िमि�त �दाह कोिशकाएं
िलम्फोसाइ, प्लाज्मा से, न्यू�ो�फ, इओिसनो�फल और िहिस्टयोसाइट्स होती ह�। र-स्टनर्बगर् सेल्स
कोिशका �� ( cytoplasm) �चुर, सम�प, ि�रंगा, महीन दानेदार (abundant, homogeneous,
amphophilic, finely granular ) होता है और नािभक ''उल्लू क� आंख '' जैसा (अथार्त इसम� दो एक जैसे
एिसडो�फिलक न्यूिक्लयाई होते ) और मोटी िभि� वाला होता है।
2. 2 | P a g e
अिधकांश रीड-स्टनर्बगर् कोिशका� क� उत्पि-कोिशका से होती ह�, ये लिसका-पवर्( lymph node) के गभर्
से िनकलती ह� पर ये एंटीबॉडीज नह� बनाती ह�। कुछ िवरले �कार के होज�कन्स िलम्फोमा म� इन र-स्टनर्बग
सेल्स का उ�व ट-कोिशका से भी होता है।
रीड-स्टनर्बगर् से CD30 (Ki-1) और CD15 एंटीजन से
सम्बंिधत है। CD30 रीड-स्टनर्बगर् सेल्स क� सतह म� ि
िलम्फोसाइट क� स��यता का माकर्र , जो क�सर िलम्फोयड
कोिशका� क� स��यता को �द�शत करता है। CD15 प�रप�
�ेन्यूलोसाइ, मोनोसाइट और स��य टी-सेल्स का माकर्र ह
ि�-नािभक�य रीड-स्टनर्बगर् से
कारण
होज�कन्स िलम्फोमा के स्प� कारण हम� मालूम नह� ह�। एप्-बार वायरस ( EBV) क� भूिमका महत्वपूणर
मानी गई है। 50% तक रोिगय� के क�सर सेल्स EBV-positive हो सकते ह�। लगभग 100 % एच.आई.वी. के
रोगी EBV-positive होते ह�।
होज�कन्स िलम्फो म� रक्-िवभाग क� बी-कोिशका के डी.एन.ए. म� िवकृत-िवभाजन ( mutation) शु� होता
है। िवकृत-िवभाजन ( mutation) कोिशका� को तेजी से िवभािजत होते रहने और लम्बे समय तक जीिवत
रहने के आदेश देता है। और प�रणाम स्व�प बड़, असाधारण बी-कोिशकाएं भारी तादाद म� जमा हो जाती ह�
जो स्वस्थ कोिशका� का ितरस्कार और उपहास करती ह
जोिखम घटक
• �लग – पु�ष
• उ� – 15-40 और 55 से ऊपर
• पा�रवा�रक
• इन्फेक्शस मोनोन्यूिक्लएि(कारक वाइरस – एप्स्ट-बार वाइरस Epstein-Barr virus)
• कमजोर रक्-�णाली – HIV, AIDS
• �ोथ हाम�न का लम्बे समय तक �योग
लक्षण और संक (Symptoms & Signs )
होज�कन्स िलम्फोमा म� िन� लक्षण होते
• सबसे मुख्य लक्षण क (Axilla), गदर्न या वंक्( groin) क� एक या
अिधक लिसका-�ंिथय� क� ददर्हीन संवृि� (Lymphnode
Enlargement) होना अथार्त शरीर म� गांठ� बन जाना है। स्पशर् करने
ये �ंिथयां बढ़ी �ई और रबर जैसी महसूस होती ह�।
• वैल्डेयर �रग(गले के िपछले िहस्स, ट�िसल), िसर का िपछला और
3. 3 | P a g e
िनचला भाग (occipital) या कोहनी के समीप बांह के अंदर का भाग (epitrochlear) क� लिसका-�ंिथया
बढ़ सकती ह�।
• सामान्य लक्षण जैसे सद� लग कर बुखार , भूख न लगना, कमजोरी, वजन कम होना, रात म� पसीना
आना, खुजली आ�द।
• 10% रोिगय� म� िवशेष तरह का िमयादी बुखार (Pel-Ebstein fever) होता है। 1-2 स�ाह तक तेज
बुखार आता है �फर 1-2 स�ाह रोगी का तापमान सामान्य रहता है और यह च� चलता रहता है।
• छाती या फे फड� म� िवव�धत लिसका-�ंिथयां ह� तो छाती म� ददर, खांसी, स्वासक� या खांसी के साथ खून
आना (hemoptysis) जैसे लक्षण हो सकते ह
• 10% रोिगय� क� गांठ� म� ददर् हो सकता है। कई बार म�दरापान के बाद �ंिथय� म� ददर् होता है
• �बबाणु कम हो जाने से त्वचा म� र��ाव के कारण लाल दाने या चक�े हो सकते ह�
• पीठ या हि�य� म� भी ददर् हो सकता है।
• प्लीहा(30% रोिगय� म�) और/या यकृत (5% रोिगय� म�) बढ़ जाता है।
• रोग का �भाव छाती म� हो तो उध्वर् महािशरा �स�ो(Superior vena cava syndrome)।
• क��ीय तंि�का तं� रोग – सेरीबेलर डीजनरेशन, न्यूरोपैथ, गुिलयन बैरी �स�ोम या मल्टीफोकल
ल्यूकोएन्के फेलोपैथी
िनदान
छायांकन (Imaging)
सी.टी.स्केन– पेट, छाती और �ोिण ( Pelvis) के स्केन �ारा
लिसकापवर, यकृत व प्लीहा क� संवृि� और फेपड़� का गांठ� तथा
प्लूरल इफ्यूजन क� जानकारी िमल जाती है
पी.ई.टी.स्केन– रोग के चरण िनधार्रण हेतु ज�री जांच है
छाती म� गांठ (mediastinal mass) का भी पता चल जाता है।
एम.आर.आई. – य�द क��ीय तंि�का तं� के िवकार क� संभावना
हो तो एम.आर.आई. और लम्बर पंक्चर �कया जाता ह
सू�मदशर्न(Microscopy)
FNAC -रोग का अिन्तम िनदान सू�मदशर्न �ारा ही �कया जात
है। पहले सुई �ारा गांठ का पानी िनकाल कर स्लाइड बनाई जाती ह, �फर उसे रंग कर सू�मदश� �ारा देखा
जाता है।
Biopsy FNAC के बाद िलम्फनोड का आंिशक या पूणर् उच्छे(Excision) करके बायोप्सी क� जाती है।
Bone marrow Biopsy वृ� या अिन्तम अवस्था के रोिगय� म� क� जाती है। दोन� तरफ क� बायोप्सी कर
उिचत रहता है। पहले और दूसरे चरण के रोिगय� म� इसे टाला जा सकता है य�द र� के परीक्षण ठीक आये ह�
र� परीक्ष
सी.बी.सी. और र� क� रसायिनक जांच – होज�कन्स िलम्फोमा म� -अल्पता( anemia), िलम्फोसाइट
घटना (lymphopenia), न्यू�ो�फल्स या इयोिसनो�फल्स बढ़ना आ�द सामान्य
4. 4 | P a g e
ई.एस.आर. - ई.एस.आर. शरीर म� �दाह का मोटा पैमाना है। इसका बढ़ना बुरे फलानुमान ( worse
prognosis) का संकेत है। हालां�क यह कई रोग� म� बढ़ सकता है और इसका कोई नैदािनक महत्व नह� है।
एल.डी.एच.– सामान्यतः बढ़ा रहता है। यह भी रोग फलानुमान म� महत्वपूणर्
एच.आई.वी.
य�द होज�कन्स िलम्फोमा के साथ ने�ो�टक �स�ोम भी ह(िजसक� संभावना ब�त
ही कम रहती है) तो ��ये�टनीन बढ़ सकता है। य�द रोग ह�ी और यकृत तक प�ँच
चुका है तो एल्केलाइन फोस्फेटे( ALP) भी बढ़ सकता है। अन्य िवकृितय� म�
कैिल्शयम और सोिडयम का बढ़ना और अल-र�शकर्रा आ�द मुख्य ह�
साइटोकाइन्स इन्टरल्यू� IL-6, IL-10 और घुलनशील CD25 ( IL-2 प ्ेपट )
रोग क� गम्भीरता से सम्बंिधत है
स्टे�जग ले�ोटोमी
चरण (Stages)
रोग के चरण का िनधार्रण िच�कत्सक�य इितह, शारी�रक परीक्, छायांकन, सू�मदशर्न तथा अन्य जांच
के आधार पर �कया जाता है। एन आबर्र वग�करण(1971) क� मदद से इसको चार चरण� म� वग�कृत �कया
गया है।
चरण I - म� एक िलम्फनोड या अन्य क्षे� �भािवत होता
चरण II – म� डाय�ाम के एक ही तरफ के दो या अिधक िलम्फनोड या क्षे� �भािवत होते ह
चरण III - म� डाय�ाम के दोन� ही तरफ के िलम्फनोड या क्षे� �भािवत होते ह
चरण IV - म� कई जगह के िलम्फनोड या क्षे� �भािवत होते ह यकृत या अिस्-म�ा (bone marrow) का
रोग�स्त होना भी इसी चरण को दशार्ता है
चरण िनधार्रण म� प्लीह(spleen) को िलम्फनोड माना जाता है।
उपचार
शल्य– इसके उपचार म� शल्-��या तभी क� जाती है जब कोई िलम्फनोड कोई बड़ी शारी�रक समस्या क
कारण बन रहा हो।
अिस्-म�ा या स्टेमसेल �त्यारोप–
इस उपचार म� रोगी के अिस्-म�ा/ स्टेमसेल िनकाल िलए जाते ह�। क�मोथैरेपी(cyclophosphamide,
melphalan, BCNU, Ara-C, methotrexate und etoposide) अिस्-म�ा/ स्टेमसे पुनः �त्यारोपण
कर �दये जाते ह�। यह उपचार युवा रोिगय� को �दया जाता है, क्य��क यह मंहगा भी ह, वृ� रोिगय� म�
जोिखम भी रहता है।
5. 5 | P a g e
रेिडयोथैरेपी –
होज�कन्स िलम्फोमा के उपचार के िलए रेिडयोथैरेपी और सामान्यतः क�मोथैरेपी दी जाती है। गंभीर रोिग
म� रेिडयोथैरेपी क� मा�ा 30-36 Gy रखी जाती है। सामान्य रोिगय� के िलए20-30 Gy रखी जाती है। य�द
िसफर् रेिडयो ही दी जाती है तो मा�ा30-44 Gy रखी जाती है।
कामोथैरपी –
�ारंिभक उपचार म� िन� क�मो िन� सू�ानुसार दी जाती है।
• MOPP (mechlorethamine, vincristine, procarbazine, prednisone)
• ABVD (Adriamycin [doxorubicin], bleomycin, vinblastine, dacarbazine)
• Stanford V (doxorubicin, vinblastine, mustard, bleomycin, vincristine, etoposide, prednisone)
• BEACOPP (bleomycin, etoposide, doxorubicin, cyclophosphamide, vincristine, procarbazine,
prednisone)
�ेडिनसोलोन और �ोकाब�जीन को छोड़ कर उपरो� सारी दवाइयां िशरा म� दी जाती ह�। MOPP पहला उपचार था जो िवन्स�ट
िडिवटा और सािथय� �ारा िवकिसत �कया गया था। ABVD बेहतर है और नपुंसकता और ि�तीयक ल्यूक�िमया क� संभावना कम
रहती है। Stanford V म� 12 स�ाह तक दवाएं दी जाती ह�।
MOPP हर 28 �दन म� �दया जाता है। कुल 6 च� इस �कार �दये जाते ह�।
• Mechlorethamine: 6 mg/m2
, days 1 and 8
• Vincristine: 1.4 mg/m
2
, days 1 and 8
• Procarbazine: 100 mg/m
2
, days 1-14
• Prednisone: 40 mg/m2
, days 1-14, cycles 1 and 4 only
ABVD 28 �दन म� �दया जाता है। कुल 6 च� इस �कार �दये जाते ह�।
• Adriamycin: 25 mg/m2
, days 1, 15
• Bleomycin: 10 mg/m2
, days 1, 15
• Vinblastine: 6 mg/m
2,
days 1, 15
• Dacarbazine: 375 mg/m
2
, days 1, 15
The Stanford V इस �कार दी जाती है।
• Vinblastine: 6 mg/m
2
, weeks 1, 3, 5, 7, 9, 11
• Doxorubicin: 25 mg/m
2
, weeks 1, 3, 5, 9, 11
• Vincristine: 1.4 mg/m
2
, weeks 2, 4, 6, 8, 10, 12
• Bleomycin: 5 units/m
2
, weeks 2, 4, 8, 10, 12
• Mechlorethamine: 6 mg/m
2
, weeks 1, 5, 9
• Etoposide: 60 mg/m2
twice daily, weeks 3, 7, 11
• Prednisone: 40 mg/m2
, every other day, weeks 1-10, tapered weeks 11, 12
• XRT to bulky sites 2-4 weeks following the end of chemotherapy
BEACOPP तीन स�ाह दी जाती है, कुल 8 च� �दये जाते ह�।
• Bleomycin: 10 mg/m
2
, day 8
• Etoposide: 200 mg/m
2
, days 1-3
6. 6 | P a g e
• Doxorubicin: 35 mg/m
2
, day 1
• Cyclophosphamide: 1,250 mg/m2
, day 1
• Vincristine: 1.4 mg/m2
, day 8
• Procarbazine: 100 mg/m2
, days 1-7
• Prednisone: 40 mg/m
2
, days 1-14
सालवेज क�मोथैरेपी
य�द �ारंिभक क�मो उपचार काम न करे तो सालवेज क�मोथैरेपी दी जाती है। इनम� तीन मुख्य ह�।
• ICE (ifosfamide, carboplatin, etoposide)
• DHAP (cisplatin, cytarabine, prednisone)
• ESHAP (etoposide, methylprednisolone, cytarabine, cisplatin)
सालवेज क�मोथैरेपी िवस्तार म�
ICE इस तरह दी जाती है।
• Ifosfamide: 5 g/m
2
, day 2
• Mesna: g/m2
, day 2
• Carboplatin: AUC 5, day 2
• Etoposide: 100 mg/m
2
, days 1-3
DHAP इस तरह दी जाती है।
• Cisplatin: 100 mg/m
2
, day 1
• Cytarabine: 2 g/m
2
, given twice on day 2
• Dexamethasone: 40 mg, days 1-4
EPOCH म� etoposide, vincristine, and doxorubicin एक साथ 96 घन्टे तक िनरन्तर िशरा मागर् से दी जाती है
• Etoposide: 50 mg/m
2
, days 1-4
• Vincristine: 0.4 mg/m
2
, days 1-4
• Doxorubicin: 10 mg/m
2
, days 1-4
• Cyclophosphamide: 750 mg/m
2
, day 5
• Prednisone: 60 mg/m
2
, days 1-6
फलानुमान (Prognosis)
आज कल इसके उपचार म� ब�त �गित �ई है और पांच वष�य जीवनदर 85% से 98% है। िन� घटक बुरे संकेत देते ह�।
• उ� > 45 वषर्
• चरण IV
• हीमोग्लोिबन< 10.5 g/dl
• िलम्फोसाइट काउंट< 600/ µL or <8%
• पु�ष
• एलब्यूिमन< 4.0 g/dl
• िलम्फोसाइट गणनांक>15000/ µL
वैकिल्पक उपचार
• बुडिवग �ोटकोल
• एक्यूपंक्
• एरोमाथैरेपी