गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जुलाई -2019 GURUTVA JYOTISH E-MAGAZINE JULY-2019
July-2019 Shravan Special 2019, shravan mahina in hindi 2019 , Shiv Pooja Special Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जुलाई -2019 में प्रकशित लेख
श्रावण मास विशेष
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जुलाई -2019 GURUTVA JYOTISH E-MAGAZINE JULY-2019
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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका जुलाई -2019 में प्रकशित लेख
श्रावण मास विशेष
2. गाथा 1 : िंगलाचरण
1. जाो सिद्ध, शुद्ध एवं अकलंक हं एवं
2. जजनको िदा गुणरूपी रताों को भूषणाों का उदय रहता ह,
3. एोिो श्री जजनोन्द्रवर नोमिचंर स्वािी काो निस्कार करको
4. जीव की प्ररूपणा काो कहंगा ।
सिद्धं िुद्धं पणमिय जजणणंदवरणोमिचंदिकलंकं ।
गुणरयणभूिणुदयं जीवस्ि परूवणं वाोच्छं॥
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3. िम्मामिच्ुदयोण य, जत्तंतरिव्वघाददकज्जोण।
ण य िम्मं मिच्छं पप य, िम्म्मस्िाो हाोदद पररणािाो ॥21 ॥
अथथ - जजिका प्रततपक्षी अात्मा को गुण काो िवथथा घातनो का
कायथ दूिरी िवथघातत प्रकृ ततयाों िो पवलक्षण जातत का ह उि
जात्यन्द्तर िवथघातत िम्यम्मिथ्यात्व प्रकृ तत को उदय िो को वल
िम्यक्त्वरूप या मिथ्यात्वरूप पररणाि न हाोकर जाो मिश्ररूप
पररणाि हाोता ह, उिकाो मिश्र गुणस्थान कहतो हं ॥21 ॥
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4. दहहगुडमिव वा मिस्िं, पुहभावं णोव काररदुं िकं ।
एवं मिस्ियभावाो, िम्मामिच्छाो त्तत्त णादव्वाो ॥22 ॥
अथथ - जजि प्रकार दही अार गुड काो परस्पर इि तरह िो
मिलानो पर पक पिर उन दाोनाों काो पृथक् -पृथक् नहीं कर िकों ,
उि मिश्रश्रत रव्य का रि मिश्ररूप (खट्टा अार िीठा मिला हुअा)
हाोता ह। उिी प्रकार मिश्रपररणािाों िों भी एक ही काल िों
िम्यक्त्व अार मिथ्यात्वरूप पररणाि रहतो हं, एोिा ििझना
चाहहयो ॥22 ॥
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5. मिश्र गुणस्थान
तनमित्त
िम्यम्मिथ्यात्व
किथ का उदय
जात्यंतर
िवथघातत प्रकृ तत
पररणाि
मिश्र
िम्यक् भी,
मिथ्या भी
उदाहरण
गुड-मिश्रश्रत दही
का स्वाद
न सििथ खट्टा,
न सििथ िीठा,
इिीमलए खट्टा िीठा
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6. किथ स्स्थतत
उपशि िम्यक्त्व का काल
मिश्र गुणस्थान का काल
मिश्र प्रकृ तत का उदय
मिथ्यात्व का अनुदय
मिथ्यात्व
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7. िाो िंजिं ण गगण्हदद, दोिजिं वा ण बंधदो अाउं।
िम्मं वा मिच्छं वा, पदडवत्तज्जय िरदद णणयिोण ॥23 ॥
अथथ - तृतीय गुणस्थानवतीथ जीव िकल िंयि या दोशिंयि
काो ग्रहण नहीं करता अार न इि गुणस्थान िों अायुकिथ का
बंध ही हाोता ह तथा इि गुणस्थान वाला जीव यदद िरण
करता ह ताो तनयि िो िम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूप पररणािाों
काो प्राप्त करको ही िरण करता ह ॥23 ॥
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8. मिश्र गुणस्थान - तनयि
िकल-िंयि अथवा दोश-िंयि काो ग्रहण नहीं करता
अायु नहीं बांधता ह
इि गुणस्थान िों िरण नहीं हाोता ह
यहााँ िारणाम्न्द्तक ििुद्घात नहीं हाोता ह
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9. िम्मत्त-मिच्छपररणािोिु जहहं अाउगं पुरा बद्धं।
तहहं िरणं िरणंतििुमघादाो पव य ण मिस्िम्म्म ॥24 ॥
अथथ - तृतीय गुणस्थानवतीथ जीव नो तृतीय गुणस्थान काो प्राप्त करनो िो
पहलो िम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूप पररणािाों िों िो जजि जातत को
पररणाि काल िों अायुकिथ का बंध पकया हाो उि ही तरह को
पररणािाों को हाोनो पर उिका िरण हाोता ह, पकन्द्तु मिश्र गुणस्थान िों
िरण नहीं हाोता अार न इि गुणस्थान िों िारणाम्न्द्तक ििुद्घात ही
हाोता ह ॥24 ॥
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11. िम्मत्तदोिघाददस्िुदयादाो वोदगं हवो िम्मं।
चलिमलनिगाढं तं, णणच्चं कम्मक्खवणहोदु ॥25 ॥
अथथ - दोशघातत िम्यक्त्व प्रकृ तत को उदय हाोनो पर जाो अात्मा
को पररणाि हाोतो हं उनकाो वोदक या क्षायाोपशमिक िम्यमदशथन
कहतो हं।
वो पररणाि चल, िमलन या अगाढ हाोतो हुए भी तनत्य ही
अथाथत् जघन्द्य अन्द्तिुथहतथ िो लोकर उत्कृ ष्ट 66 िागर पयथन्द्त
किाोों की तनजथरा को कारण हं ॥25 ॥
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12. क्षयाोपशि पकिो कहतो हं?
• वतथिानकालीन िवथघातत स्पधथकाों का उदयाभावी
क्षय
क्षय
• भपवष्य िों उदय िों अानो याोमय िवथघातत स्पधथकाों
का िदवस्थारूप उपशि
उपशि
•वतथिानकालीन दोशघाती स्पधथकाों का उदयउदय
इन 3 रूप किथ की अवस्था काो क्षयाोपशि कहतो हं |visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 12
13. उदयाभावी क्षय
िवथघाती प्रकृ ततयाों का अनंत गुणा हीन हाोकर दोशघाती िों
पररवततथत हाोकर उदय िों अानो काो उदयाभावी क्षय कहतो हं |
इििों िवथघातत स्पधथक उदय िों अानो को एक ििय पूवथ
दोशघाती िों पररवततथत हाोतो हं |
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14. अनुभाग का अनंत गुणा हीन हाोना
िवथघातत का दोशघातत रूप उदय हाोना
उदयाभावी क्षय
लता
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15. िदवस्थारूप उपशि
वतथिान ििय काो छाोडकर भपवष्य िों
उदय िों अानो वालो किाोों को ित्ता िों
रहनो काो िदवस्थारूप उपशि कहतो हं ।
उदीरणा
न हाोना
किथ
स्स्थतत
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16. क्षायाोपशमिक िम्यक्त्व किो ?
मिथ्यात्व, िम्यम्मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी ४ का
उदयाभावी क्षय िदवस्थारूप उपशि
तत्त्वाथथ श्रद्धान
िम्यक्त्व प्रकृ तत का
उदय
चल िलादद दाोष
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17. क्षयाोपशि िम्यक्त्व िों दाोष
चल
जल की तरंगाों की
तरह चंचल
अाप्त, अागि, पदाथाोों
को पवषय िों चंचलपना
िल
बाह्य िल िो िहहत
शुद्ध िाोना
शंकादद िल िहहत
िम्यक्त्व
अगाढ
वृद्ध को हाथ की
लाठी
अाप्तादद की प्रतीतत िों
श्रशमथलता
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18. ित्तण्हं उवििदाो, उविििम्माो खयादु खइयाो य।
पवददयकिायुदयादाो, अिंजदाो हाोदद िम्माो य ॥26 ॥
अथथ - दशथनिाोहनीय की तीन अथाथत् मिथ्यात्व, मिश्र अार िम्यक्त्व
प्रकृ तत तथा चार अनंतानुबंधी कषाय - इन िात प्रकृ ततयाों को उपशि
िो अापशमिक अार िवथथा क्षय िो क्षागयक िम्यमदशथन हाोता ह।
इि चतुथथगुणस्थानवतीथ िम्यमदशथन को िाथ िंयि पबलकु ल नहीं हाोता
काोंपक यहााँ पर दूिरी अप्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय रहा करता
ह। इिी िो इि गुणस्थानवतीथ जीव काो अिंयत िम्यमृष्टष्ट कहतो हं
॥26 ॥
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19. अापशमिक िम्यक्त्व
दशथन िाोहनीय की 1 या 2 या 3 प्रकृ ततयाों का प्रशस्त उपशि करनो
पर तथा
अनन्द्तानुबन्द्धी की 4 प्रकृ ततयाों का अप्रशस्त उपशि हाोनो पर
हाोनो वालो जीव को िम्यक्त्व पररणाि काो अापशमिक िम्यक्त्व कहतो
हं ।
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20. उपशि पकिो कहतो हं?
1. किाोों का अपनो पररणािाों को तनमित्त िो अागो-पीछो करना
वह उपशि (प्रशस्त उपशि) कहलाता ह |
2. उििो जाो gap/empty space बनोगा तब उि gap /
empty space िों उि-उि किथ प्रकृ तत का उदय नहीं
रहोगा |
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21. अनादद मिथ्याृष्टष्ट को चतुथथ गुणस्थान िों
जानो की प्रपिया
४ लस्धध प्राप्त कर
५ वी लस्धध को ३
करण पररणाि कर
उपशि िम्यक्त्व
प्राप्त करो
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22. किाोों काो पहलो उदय िों लाना
किाोों को उदय काो अागो करना
अापशमिक िम्यक्त्व
(किथ को उदय का अभाव)
अंतिुथहतथ काल
मिथ्यात्व किथ
प्रथिाोपशि िम्यक्त्व
का प्रथि ििय
15
14
13
12
11
10
9
8
7
6
5
4
3
2
1
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23. अापशमिक िम्यक्त्व िो जानो को 4 िागथ
अापशमिक
िम्यक्त्व
मिथ्यात्व
िािादन िम्यम्मिथ्यात्व
क्षायाोपशमिक
िम्यक्त्व
अनंतानुबंधी का
उदय अानो पर
िम्यक्त्व प्रकृ तत का
उदय अानो पर
मिथ्यात्व प्रकृ तत का
उदय अानो पर
िम्यम्मिथ्यात्व प्रकृ तत का
उदय अानो पर
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24. क्षागयक िम्यक्त्व
अनन्द्तानुबन्द्धी की 4 प्रकृ ततयाों की पविंयाोजना करको
दशथन िाोहनीय की 3 प्रकृ ततयाों का क्षय करनो पर
हाोनो वालो जीव को िम्यक्त्व पररणाि काो क्षागयक िम्यक्त्व कहतो हं
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26. िम्माइट्ठी जीवाो, उवइट्ठं पवयणं तु िद्दहदद।
िद्दहदद अिधभावं, अजाणिाणाो गुरुणणयाोगा ॥27 ॥
अथथ - जाो जीव अहथन्द्ताददकाों द्वारा उपदोश्रशत एोिा जाो प्रवचन अथाथत्
अाप्त, अागि, पदाथथ यो तीन, उन्द्हों श्रद्धता ह, उनिों रुमच करता ह, उन
अाप्ताददकाों िों अिद्भावं अथाथत् अतत्त्व अन्द्यथारूप, उिकाो भी अपनो
पवशोष ज्ञान को अभाव िो को वल गुरु ही को तनयाोग िो जाो इि गुरु नो
कहा, िाो ही अहथन्द्त की अाज्ञा ह, इिप्रकार प्रतीतत िो श्रद्धान करता ह,
वह भी िम्यमृष्टष्ट ही ह, काोंपक अहथन्द्त की अाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता
ह ॥27 ॥visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 26
27. िुत्तादाो तं िम्मं, दरसिज्जंतं जदा ण िद्दहदद।
िाो चोव हवइ मिच्छाइट्ठी जीवाो तदाो पहुदी ॥28 ॥
अथथ - उि प्रकार अित्य अथथ का श्रद्धान करनोवाला अाज्ञा िम्यमृष्टष्ट जीव,
जजि काल प्रवीण अन्द्य अाचायाोों द्वारा, पूवथ िों ग्रहण पकया हुअा अित्याथथरूप
श्रद्धान िो पवपरीत भाव ित्याथथ, िाो गणधराददकाों को िूत्र ददखाकर िम्यक्
प्रकार िो तनरूपण पकया जाए, उिका खाोटो हठ िो श्रद्धान न करो ताो, उि
काल िो लोकर, वह जीव मिथ्याृष्टष्ट हाोता ह। काोंपक िूत्र को अश्रद्धान िो जजन
अाज्ञा को उल्लंघन का िुप्रसिद्धपना ह, उि कारण िो मिथ्याृष्टष्ट हाोता ह ॥28
॥ visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 27
28. णाो इंददयोिु पवरदाो, णाो जीवो थावरो तिो वापप।
जाो िद्दहदद जजणुत्तं, िम्माइट्ठी अपवरदाो िाो ॥29 ॥
अथथ - जाो इम्न्द्रयाों को पवषयाों िो तथा त्रि स्थावर जीवाों की हहंिा
िो पवरत नहीं ह, पकन्द्तु जजनोन्द्रदोव द्वारा कमथत प्रवचन का श्रद्धान
करता ह वह अपवरतिम्यमृष्टष्ट ह ॥29 ॥
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29. अपवरत िम्यक्त्व
अपवरत
पवरत नहीं ह
• 6 काय को जीवाों की हहंिा िो
• 5 इम्न्द्रय अार िन को पवषयाों िों प्रवृत्तत्त िो
िम्यक्त्व
जजनोन्द्र दोव को
वचनाों िों श्रद्धान ह
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30. पच्चक्खाणुदयादाो, िंजिभावाो ण हाोदद णवररं तु।
थाोववदाो हाोदद तदाो, दोिवदाो हाोदद पंचिअाो ॥30 ॥
अथथ - यहााँ पर प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय रहनो िो पूणथ िंयि
ताो नहीं हाोता, पकन्द्तु यहााँ इतनी पवशोषता हाोती ह पक
अप्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय न रहनो िो एकदोश व्रत हाोतो हं।
अतएव इि गुणस्थान का नाि दोशव्रत या दोशिंयि ह। यही पंचि
गुणस्थान कहलाता ह ॥30 ॥
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31. दोशपवरत गुणस्थान
पररणाि
दोशपवरत (अणुव्रत पालन-
रूप)
पूणथ िंयि का अभाव
तनमित्त
दाो कषाय चाकडी का
अनुदय
प्रत्याख्यानावरण कषाय का
उदय
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43. • िंयि पवरुद्ध कथा काो पवकथा कहतो हं ।पवकथा
• िंयि गुण काो घातो, उिो कषाय कहतो हं ।कषाय
• िंयि पवराोधी इंदरयाों की पवषय प्रवृत्तत्त काो इम्न्द्रय कहतो
हं ।इंदरय
• स्त्यानगृणद्ध अाददक 3 अथवा तनरा, प्रचला को तीव्र उदय िो पदाथाोों का
िािान्द्यिात्र ग्रहण काो राोकनो वाली जडरूप अवस्था तनरा ह ।तनरा
• बाह्य पदाथाोों िों िित्वरूप भाव स्नोह ह ।प्रणयvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 43
44. िंखा तह पत्थाराो, पररयट्टण णट्ठ तह ििुदद्दट्ठं।
एदो पंच पयारा, पिदििुहकत्तणो णोया ॥35 ॥
अथथ - प्रिाद को पवशोष वणथन को पवषय िों इन पााँच प्रकाराों काो
ििझना चाहहयो। िंख्या, प्रस्तार, पररवतथन, नष्ट अार ििुदद्दष्ट ।
अालापाों को भोदाों की गणना काो िंख्या, िंख्या को रखनो या तनकालनो
को िि काो प्रस्तार, एक भोद िो दूिरो भोद पर पहाँचनो को िि काो
पररवतथन, िंख्या को द्वारा भोद को तनकालनो काो नष्ट अार भोद काो
रखकर िंख्या तनकालनो काो ििुदद्दष्ट कहतो हं ॥35 ॥
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45. प्रिाद काो ििझनो को उपाय
• अालाप को भोदाों की गणनािंख्या
•िंख्या को रखनो या तनकालनो को िि काो प्रस्तार कहतो हं।प्रस्तार
•एक भोद िो दूिरो भोद पर पहुाँचनो काो पररवतथन कहतो हं।पररवतथन
• िंख्या को द्वारा भोद तनकालनो काो नष्ट कहतो हं।नष्ट
•भोद को द्वारा िंख्या तनकालनो काो ििुदद्दष्ट कहतो हं ।ििुदद्दष्टvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 45
46. िव्वो पप पुव्वभंगा, उवररिभंगोिु एकिोको िु।
िोलंतत त्तत्त य कििाो, गुणणदो उप्पज्जदो िंखा ॥36 ॥
अथथ - पूवथ को िब ही भंग अागो को प्रत्योक भंग िों मिलतो हं,
इिमलयो िि िो गुणा करनो पर िंख्या उत्पन्न हाोती ह ॥36॥
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47. िंख्या (भंग का जाोड किो लायों )
1. िवथ प्रिाद-पपण्ड काो रखकर अापि िों गुणा करनो पर िंख्या प्राप्त हाोती ह |
2. िवथ प्रिादाों की िंख्या = 80
पवकथा
कषाय
इम्न्द्रय
तनरा
स्नोह
4 4 5 1 1
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48. पढिं पिदपिाणं, किोण णणक्खपवय उवररिाणं च।
पपंडं पदड एको कं , णणम्क्खत्तो हाोदद पत्थाराो ॥37 ॥
अथथ - प्रथि प्रिाद को प्रिाण का पवरलन कर िि िो
तनक्षोपण करको उिको एक-एक रूप को प्रतत अागो को
पपण्डरूप प्रिाद को प्रिाण का तनक्षोपण करनो पर प्रस्तार हाोता
हं ॥37 ॥
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49. िंख्या काो तनकालनो/ििझनो
की पवष्टध दाो प्रकार ह ।
इिो प्रथि प्रस्तार व
हद्वतीय प्रस्तार कहतो हं ।
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50. Step 1: प्रथि प्रिाद पपण्ड का पवरलन कराो ।
Step 2: इि पवरलन पर हद्वतीय प्रिाद पपण्ड रखाो ।
यो जाो 16 अाए, अब इिो प्रथि प्रिाद पपण्ड ििझना । अागो का प्रिाद पपण्ड दूिरा कहलायोगा ।
प्रथि प्रस्तार
पवकथा
(4)
1 1 1 1
स्री भक्त राज अवतन
कषाय (4) 4 4 4 4
पवकथा (4)
1 1 1 1
स्री भक्त राज अवतन
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51. 1. Step 3: इि प्राप्त प्रथि पपण्ड का पवरलन कराो ।
Step 4: इिको ऊपर अगलो पपण्ड (5 इम्न्द्रय) का पवरलन कराो ।
इिका जाोड = 80 । अागो तनरा व प्रणय 1-1 ही हं| उन्द्हों उपयुथि पवष्टध िो रखनो पर भी भंग 80
ही हाोतो हं ।
1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1
क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो
स्त्री स्त्री स्त्री स्त्री भ भ भ भ रा रा रा रा अ अ अ अ
कषाय-ववकथा (16)
5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5
1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1
क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो क्रो मा मा लो
स्त्री स्त्री स्त्री स्त्री भ भ भ भ रा रा रा रा अ अ अ अ
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52. इन 80 भंगाों काो किो बाोला जायोगा ?
1. स्नोहवान—तनरालु—स्पशथन इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
2. स्नोहवान—तनरालु— रिना इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
3. स्नोहवान—तनरालु— घ्राण इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
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53. णणम्क्खत्तु पवददयिोत्तं, पढिं तस्िुवरर पवददयिोको कं ।
पपंडं पदड णणक्खोअाो, एवं िव्वत्थ कायव्वाो ॥38 ॥
अथथ - दूिरो प्रिाद का जजतना प्रिाण ह उतनी जगह पर
प्रथि प्रिाद को पपण्ड काो रखकर, उिको ऊपर एक-एक
पपण्ड को प्रतत अागो को प्रिाद िों िो एक-एक का तनक्षोपण
करना अार अागो भी िवथत्र इिी प्रकार करना ॥38 ॥
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57. तददयक्खाो अंतगदाो, अाददगदो िंकिोदद पवददयक्खाो।
दाोम्ण्ण पव गंतूणंतं, अाददगदो िंकिोदद पढिक्खाो ॥39 ॥
अथथ - प्रिाद का तृतीय स्थान अन्द्त काो प्राप्त हाोकर जब पिर िो
अाददस्थान काो प्राप्त हाो जाय तब प्रिाद का दूिरा स्थान भी बदल जाता
ह। इिी प्रकार जब दूिरा स्थान भी अन्द्त काो प्राप्त हाोकर पिर अादद
काो प्राप्त हाो जाय तब प्रथि प्रिाद का स्थान बदलता ह। तनरा अार
स्नोह इनका दूिरा भोद नहीं ह, इिमलयो इनिों अक्षिंचार नहीं हाोता
॥39 ॥
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58. अक्ष पररवतथन—प्रथि प्रस्तार की अपोक्षा
Step 1: अंत को अक्ष काो प्रथि भोद िो लोकर अंतति भोद तक लो जाना । जिो
1. स्नोहवान—तनरालु—स्पशथन इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
2. स्नोहवान—तनरालु— रिना इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
3. स्नोहवान—तनरालु—घ्राण इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
4. स्नोहवान—तनरालु— चक्षु इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
5. स्नोहवान—तनरालु— कणथ इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
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59. Step 2: जब अक्ष अंतति स्थान काो प्राप्त हाो जाए तब—
a) इि अक्ष काो पुनः प्रथि स्थान िो प्रारंभ कराो । तथा
b) पूवथ अक्ष काो अगलो स्थान पर लो जाअाो । जिो —
5. स्नोहवान—तनरालु— कणथ इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-स्री कथालापी
6. स्नोहवान—तनरालु—स्पशथन इम्न्द्रय को वशीभूत—िानी-स्री कथालापी
7. स्नोहवान—तनरालु— रिना इम्न्द्रय को वशीभूत—िानी-स्री कथालापी
8. स्नोहवान—तनरालु—घ्राण इम्न्द्रय को वशीभूत—िानी-स्री कथालापी
9. स्नोहवान—तनरालु— चक्षु इम्न्द्रय को वशीभूत—िानी-स्री कथालापी
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60. Step 3: एोिा करतो हुए जब तृतीय व हद्वतीय अक्ष अंत स्थान पर पहुंच जाए तब
a) हद्वतीय व तृतीय अक्ष को प्रथि स्थान काो स्थापपत कराो ।
b) प्रथि अक्ष काो अगलो स्थान पर लो जाअाो । जिो —
20. स्नोहवान—तनरालु— कणथ इम्न्द्रय को वशीभूत—लाोभी-स्री कथालापी
21. स्नोहवान—तनरालु—स्पशथन इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-भि कथालापी
22. स्नोहवान—तनरालु— रिना इम्न्द्रय को वशीभूत—िाोधी-भि कथालापी
Step 4: एोिा िभी अक्ष स्थानाों को अंतति भोद प्राप्त हाोनो तक कराो ।
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61. पढिक्खाो अन्द्तगदाो, अाददगदो िंकिोदद पवददयक्खाो।
दाोम्ण्ण पव गंतूणंतं, अाददगदो िंकिोदद तददयक्खाो ॥40 ॥
प्रथिाक्ष जाो पवकथारूप प्रिाद स्थान वह घूिता हुअा जब िि िो अंत
तक पहुंचकर पिर स्त्रीकथारूप अादद स्थान पर अाता ह तब दूिरा
कषाय का स्थान िाोध काो छाोडकर, िान पर अाता ह |
इिी प्रकार जब दूिरा कषाय स्थान भी अंत काो प्राप्त हाोकर पिर
अादद(िाोध) स्थान पर अाता ह तब तीिरा इम्न्द्रय स्थान बदलता ह
अथाथत स्पशथन काो छाोडकर रिना पर अाता ह |
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62. 3. अक्ष पररवतथन—हद्वतीय प्रस्तार
Step 1: प्रथि अक्ष को प्रथि भोद िो लोकर अंत को भोद तक जाअाो ।
यथा—
1. स्त्रीकथालापी—िाोधी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
2. भिकथालापी—िाोधी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
3. राजकथालापी—िाोधी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
4. अवतनपाल-कथालापी—िाोधी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
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63. Step 2: जब प्रथि अक्ष अन्द्त स्थान काो प्राप्त हाो गया, तब
a) प्रथि अक्ष काो पुन: प्रथि भोद पर लो जाअाो, तथा
b) हद्वतीय अक्ष काो अगलो भोद पर लो जाअाो । यथा—
4. अवतनपाल-कथालापी—िाोधी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
5. स्त्रीकथालापी—िानी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
6. भिकथालापी—िानी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
7. राजकथालापी—िानी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
8. अवतनपाल-कथालापी—िानी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
9. स्त्रीकथालापी—िायावी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
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64. Step 3: एोिा करतो हुए जब प्रथि एवं हद्वतीय अक्ष अंत स्थान काो प्राप्त हाो
जाए, तब—
a) प्रथि व हद्वतीय अक्ष काो प्रथि भोद पर लो जाअाो, तथा
b) तृतीय अक्ष काो अगलो भोद पर लो जाअाो ।
16.अवतनपाल-कथालापी—लाोभी—स्पशथन इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
17.स्त्रीकथालापी—िाोधी—रिना इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
18.भिकथालापी—िाोधी—रिना इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
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65. Step 4: एोिा तब तक करतो रहना, जब तक पक िारो अक्षाों को अन्द्त स्थान प्राप्त
न हाो जावों । यथा –
77. स्त्रीकथालापी—लाोभी—कणथ इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
78. भिकथालापी—लाोभी—कणथ इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
79. राजकथालापी—लाोभी—कणथ इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
80. अवतनपाल-कथालापी—लाोभी—कणथ इम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान ।
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66. िगिाणोहहं पवभत्तो िोिं लम्क्खत्तु जाण अक्खपदं।
लद्धो रूवं पम्क्खव िुद्धो अंतो ण रूवपक्खोवाो ॥41 ॥
अथथ - पकिी नो जजतनोवा प्रिाद का भंग पूछा हाो उतनी िंख्या काो रखकर
उििों िि िो प्रिाद-प्रिाण का भाग दोना चाहहयो।
भाग दोनो पर जाो शोष रहो, उिकाो अक्षस्थान ििझ जाो लधध अावो उििों एक
मिलाकर, दूिरो प्रिाद को प्रिाण का भाग दोना चाहहयो अार भाग दोनो िो जाो
शोष रहो, उिकाो अक्षस्थान ििझना चाहहयो।
पकन्द्तु शोष स्थान िों यदद शून्द्य हाो ताो अन्द्त का अक्षस्थान ििझना चाहहयो
अार उििों एक नहीं मिलाना चाहहयो ॥41 ॥
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67. नष्ट
अालाप िंख्या बताकर
अालाप का नाि बताना
नष्ट कहलाता ह ।
जिो—5वों तीथोंकर, ताो उत्तर अाया—िुिततनाथ ।
एोिो ही 10वां प्रिाद का भंग, ताो उत्तर ?
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68. नष्ट पवष्टध – प्रथि प्रस्तार अपोक्षा
Step 1: जजतनोवा प्रिाद का भंग ह उिो अंतति प्रिाद पपण्ड को प्रिाण िो भाग
दाो ।
जिो—15 वां प्रिाद भंग कान-िा ह ?
यहााँ 15 काो प्रिाद पपण्ड इम्न्द्रय का भाग ददया
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟏𝟓
𝟓
3 0
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69. Step 2: प्राप्त लधध काो अगलो प्रिाद पपण्ड का भाग दाो । (यानो कषाय का)
नाोट: यदद शोष 0 नहीं ह, ताो लधध िों एक मिलाना ।
Step 3: प्राप्त लधध काो अगलो प्रिाद पपण्ड का भाग दाो (यानो पवकथा का)
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟑
𝟒
0 3
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟎+𝟏
𝟒
=
𝟏
𝟒
0 1
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70. Step 4: जाो-जाो शोष िों िंख्या ह, वह-वह उि प्रिाद पपण्ड का भोद ग्रहण करना । यदद शोष
0 ह, ताो अंतति भोद ग्रहण करना ।
इिी काो हद्वतीय प्रस्तार िो भी तनकालना । परन्द्तु भाग लगानो का िि पवपरीत करना ।
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟏𝟓
𝟓
3 0 = कणथ इम्न्द्रय
𝟑
𝟒
0 3 = तीिरी कषाय =
िाया
𝟎+𝟏
𝟒
=
𝟏
𝟒
0 1 = प्रथि पवकथा = स्त्री
कथा
पूरा भंग हुअा स्नोहवान—तनरालु—कणोथम्न्द्रय वशीभूत—िायावी—स्रीकथालापी
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71. नष्ट पवष्टध – हद्वतीय प्रस्तार अपोक्षा
Step 1: जजतनोवा प्रिाद का भंग ह उिो प्रथि प्रिाद पपण्ड को प्रिाण िो भाग दाो ।
जिो—15 वां प्रिाद भंग कान-िा ह ?
यहााँ 15 काो प्रिाद पपण्ड पवकथा का भाग ददया
नाोट: यदद शोष 0 नहीं ह, ताो लधध िों एक मिलाना ।
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟏𝟓
𝟒
3 3
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72. Step 2: प्राप्त लधध काो अगलो प्रिाद पपण्ड का भाग दाो । (यानो कषाय का)
Step 3: प्राप्त लधध काो अगलो प्रिाद पपण्ड का भाग दाो (यानो इम्न्द्रय का)
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟑+𝟏
𝟒
=
𝟒
𝟒
1 0
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟏
𝟓
0 1
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73. Step 4: जाो-जाो शोष िों िंख्या ह, वह-वह उि प्रिाद पपण्ड का भोद ग्रहण करना ।
यदद शोष 0 ह, ताो अंतति भोद ग्रहण करना ।
लधध (quotient) शोष (remainder)
𝟏𝟓
𝟒
3
3 = तीिरी पवकथा =
राजकथा
𝟑+𝟏
𝟒
=
𝟒
𝟒
1
0 = अंतति कषाय =
लाोभ
𝟏
𝟓
0
1 = प्रथि इम्न्द्रय =
स्पशथन
पूरा भंग हुअा राजकथालापी-लाोभी-स्पशथनोंदरय वशीभूत - तनरालु- स्नोहवान
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74. Home-work
इन अालापाों काो बनाकर लाइयो—
25, 40, 65, 78
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75. िंठापवदूण रूवं, उवरीदाो िंगुणणत्तु िगिाणो।
अवणणज्ज अणंपकदयं, कु ज्जा एिोव िव्वत्थ ॥42 ॥
अथथ - एक का स्थापन करको
अागो को प्रिाद का जजतना प्रिाण ह, उिको िाथ गुणाकार करना
चाहहयो।
अार उििों जाो अनंपकत (शोष रहो प्रिाद) हाो, उिकाो घटाएाँ।
इिी प्रकार अागो भी करनो िो उदद्दष्ट का प्रिाण तनकलता ह ॥42 ॥
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76. उदद᳭दष्ट
अालाप रखकर िंख्या तनकालनो काो उदद᳭दष्ट
कहतो हं ।
जिो—धिथनाथ कान-िो तीथोंकर हं ? ताो उत्तर ददया— 15वों
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77. अंपकत स्थान— अनंपकत स्थान
कषाय — िाोध िान िाया लाोभ
इनिों िो यदद िाोध का अालाप कहा ताो िाोध अंपकत ह, शोष 3 स्थान अनंपकत हं ।
यदद िान का अालाप कहा ताो िान अंपकत हं, शोष 2 अनंपकत ह ।
यदद िाया का अालाप कहा ताो िाया अंपकत ह, शोष 1 अनंपकत ह ।
यदद लाोभ का अालाप कहा ताो लाोभ अंपकत ह, 0 अनंपकत ह।
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78. पकि प्रिाद पपण्ड का गुणा पहलो करना?
1. जाो धीरो-धीरो बदलता ह, उिका गुणा पहलो करना |
2. अथाथत् प्रथि प्रस्तार िों पवकथा िबिो धीिो बदलती ह, अतः उदद्दष्ट
तनकालतो ििय िबिो पहलो पवकथा का गुणा करना, पिर कषाय
का, पिर इम्न्द्रय का
3. हद्वतीय प्रस्तार िों इम्न्द्रय िबिो धीिो बदलती ह, अतः उदद्दष्ट
तनकालतो ििय िबिो पहलो इम्न्द्रय का गुणा करना, पिर कषाय
का, पिर पवकथा का
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79. प्रथि प्रस्तार: स्नोहवान-तनरालु-श्राोत्रइम्न्द्रय वशीभूत-िायावी-
भक्तकथालापी का कान-िा भंग ह ?
एक का स्थापन कराो1. 1
प्रथि प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो2. 1 4 = 4
पवकथा को अनंपकत स्थान घटाअाो ।3. 4 ̶ 2 = 2
अगलो प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो ।4. 2 4 = 8
कषाय को अनंपकत स्थान घटाअाो ।5. 8 ̶ 1 = 7
अगलो प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो ।6. 7 5 = 35
इम्न्द्रय को अनंपकत स्थान घटाअाो ।7. 35 ̶ 0 = 35
अथाथत् यह 35 वां भंग हं ।
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80. हद्वतीय प्रस्तार:
भक्तकथालापी-िायावी-श्राोत्रइम्न्द्रय वशीभूत-तनरालु-स्नोहवान
का कान-िा भंग ह ?
1. 1 का स्थापन कराो । 1
अंतति प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो ।2. 1 5 = 5
इम्न्द्रय को अनंपकत स्थान घटाअाो ।3. 5 ̶ 0 = 5
हद्वतीय प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो ।4. 5 4 = 20
कषाय को अनंपकत स्थान घटाअाो ।5. 20 ̶ 1 = 19
प्रथि प्रिाद पपण्ड का गुणा कराो ।6. 19 4 = 76
पवकथा को अनंपकत स्थान घटाअाो ।7. 76 ̶ 2 = 74
अथाथत् यह8. 74 वां भंग ह ।
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81. Home Work
इन भंगाों की िंख्या बताइए —
1. भि कथालापी- लाोभी – रिना इम्न्द्रय को वशीभूत – तनरालु – स्नोहवान
2. अवतनपाल कथालापी – िायावी – चक्षु इम्न्द्रय को वशीभूत – तनरालु –
स्नोहवान
3. राष्टर कथालापी – िानी – कणथ इम्न्द्रय को वशीभूत – तनरालु – स्नोहवान
4. स्त्री कथालापी – िाोधी – स्पशथन इम्न्द्रय को वशीभूत – तनरालु – स्नोहवान
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82. इगगपवततचपणखपणदशपण्णरिं खवीितालिट्ठी य।
िंठपवय पिदठाणो, णट्ठुदद्दट्ठं च जाण ततट्ठाणो ॥43 ॥
अथथ - तीन प्रिादस्थानाों िों िि िो प्रथि पााँच इम्न्द्रयाों को स्थान पर एक, दाो, तीन,
चार, पााँच काो िि िो स्थापन करना। चार कषायाों को स्थान पर शून्द्य पांच, दश,
पन्द्रह स्थापन करना। तथा पवकथाअाों को स्थान पर िि िो शून्द्य बीि, चालीि,
िाठ, स्थापन करना।
एोिा करनो िो नष्ट उदद्दष्ट अच्छी तरह ििझ िों अा िकतो हं। काोंपक जाो भंग
पववसक्षत हाो उिको स्थानाों पर रखी हु िंख्या काो परस्पर जाोडनो िो, यह पकतनोवां
भंग ह अथवा इि िंख्या वालो भंग िों कान कान-िा प्रिाद अाता ह, यह ििझ िों
अा िकता ह ॥43 ॥visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 82
84. इगगपवततचखचडवारि् खिाोलरागट्ठदालचउिटट्ठं।
िंठपवय पिदठाणो, णट्ठुदद्दट्ठं च जाण ततट्ठाणो ॥44 ॥
अथथ - दूिरो प्रस्तार की अपोक्षा तीनाों प्रिादस्थानाों िों िि िो प्रथि पवकथाअाों को
स्थान पर 1।2।3।4 स्थापन करना अार कषायाों को स्थान पर 0।4।8।12
स्थापन करना अार इम्न्द्रयाों की जगह पर 0।16।32।48।64 स्थापन करना
एोिा करनो िो दूिरो प्रस्तार की अपोक्षा भी पूवथ की तरह नष्टाोदद्दष्ट ििझ िों अा
िकतो हं ॥44 ॥
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86. इन यंत्राों का प्रयाोग करनो की पवष्टध
नष्ट तनकालनो को मलयो
(िंख्या िो भंग)
जजन काोठाों का जाोड मिलानो िो
वह िंख्या मिलो उन काोठाों को
प्रिादाों का भंग हाोगा ।
उदद्दष्ट तनकालनो को मलयो
(भंग िो िंख्या)
जजन काोठाों िों प्रिाद को उत्तर
भोद हाों उन काोठाों को अंकाों काो
जाोडनो पर िंख्या मिलोगी ।
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