7. वपिा क
े साथ भ्रमण करिा हुआ एक छोटा बालक निरन्िर क्जज्ञाासाए
करिा जािा है। वह वपिा से अिेकािेक ववलक्षण बािें पूछिा है और वपिा
को यथोधचि उत्तरों से अपिे पुि को सन्िुष्ट करिा पड़िा है। गृहतथाश्रम
में जब मैं एक युवा वपिा था िो निरन्िर साथ रहिे वाला मेरा द्वविीय
पुि मुझसे सैकड़ों प्रश्ि पूछिा था। एक हदि हम संध्या को ट्राम में जा रहे
थे कक सामिे एक बाराि निकल रही थी और उस चार वषन क
े बालक िे
सदा की ही भानि यह प्रश्ि ककया कक यह ववशाल शोभा-यिा तया है। बराि
से सम्बक्न्धि उसक
े हजारों प्रश्िों क
े हर सम्भव उत्तर हदए गए और अन्ि
में उसिे पूछा तया उसक
े वपिा का भी वववाह हुआ था!
8. यह प्रश्ि सुिकर उपक्तथि व्रद्ध सज्जि-वृन्द जोर से हस पड़े, यद्यवप
वह बालक आश्चयनचककि था कक हम सब तयों हस रहे हैं। अिाः ककसी
प्रकार बालक को उसक
े वववाहहि वपिा िे सन्िुष्ट ककया। इस घटिा से
यह भशक्षा प्राप्ि होिी है कक तयोंकक मिुष्य एक वववेकी जीव है अिाः
क्जज्ञाासा एवं प्रश्ि करिे क
े भलए ही उसका जन्म होिा है। प्रश्िों की संख्या
क्जििी अधधक होिी है उििी ही अधधक ज्ञााि और ववज्ञााि मे उन्िनि है।
सम्पूणन भौनिक सभ्यिा ही, युवा वगन क
े द्वारा अपिे से बड़ों को पूछे गए
इि प्रचुर मौभलक प्रश्िों पर ही आधाररि है।
9. जब बड़े लोग युवा वगन क
े प्रश्िों का यथोधचि उत्तर देिे हैं, िो सभ्यिा की
क्रमशाः उन्िनि होिी जािी है। ककन्िु सवानधधक बुद्धधमाि मिुष्य, यही
क्जज्ञाासा करिा है कक मृत्यु क
े पश्चाि तया होिा है। अल्प-बुद्धध वाले
व्यक्ति क्जज्ञाासाए कम ककया करिे हैं, परन्िु जो बुद्धधमाि है उिक
े
प्रश्िों का तिर ऊचा होिा जािा है।
10. वेदान्ि सूि की प्रथम सूक्ति है अथािो ब्रह्मक्जज्ञाासा। मिुष्य देह पाकर
अपिे आप से िथा अपिे बुद्धध से अिेक प्रश्ि करिा चाहहए। मिुष्य से
निम्ि जीवों में उिकी बुद्धध जीवि की मूल अवश्यकिाओं - खािे, सोिे,
सम्भोग करिे िथा तवयं की रक्षा करिे - से ऊपर िहीं उठ पिी। क
ु त्ते
त्रबक्ल्लया िथा बाघ भी उििा क
ु छ खािे क
े भलए, कहीं िा कहीं सोिे क
े
भलए, अपिी रक्षा क
े भलए, सफ़लिा पूवनक सम्भोग करिे क
े भलए
प्रयत्िशील रहिे हैं।
11. ककन्िु मिुष्य का शरीर पाकर उसे इििा बुद्धधमाि िो होिा ही चाहहए
कक तवयं से यह पूछे कक मैं कौि हू? मैं इस संसार में तयों आया? मेरा
तया किनव्य है? परम नियन्िा कौि है? जड िथा जिगम में तया अन्िर
है? इत्याहद ऐसे अिेक प्रश्ि हैं। जो बुद्धधमाि हैं उसे िो प्रत्येक वतिु क
े
आहद स्रोि क
े ववषय में क्जज्ञाासा करिी चाहहए - अथािो ब्रह्मक्जज्ञाासा हर
जीव में क
ु छ िा क
ु छ बुद्धध होिी है, ककन्िु मिुष्य का रूप भमलिे पर जीव
को अपिे आध्याक्त्मक तवरूप क
े ववषय में क्जज्ञाासा करिी चहहए।
12. यही वातिववक मािवीय बुद्धध है। कहा गया है कक जो क
े वल अपिे शरीर
क
े ववषय में ही जागरुक रहिा है, वह पशु क
े िुल्य है, भले ही वह मािव
देहदारी हो। भगवद गीिा (१५.१५) में कृ ष्ण कहिे हैं सवनतय चाहम्हृहद
सक्न्िववष्टो मत्ताः तमृनिज्ञाानिमपोहिम्च - मैं सबक
े हृदय में क्तथि हू
और मुझी से तमृनि, ज्ञााि िथा ववसमृनि उत्पन्ि होिे हैं। पशु रूप मे जीव
ईश्वर से अपिे सम्बन्ध को त्रबल्क
ु ल भूला रहिा है। यह अपोहिम्या
ववतमृनि है। ककन्िु मिुष्य रूप में यह चेििा अधधक ववकभसि रहिी है,
अिाः मिुष्य को ईश्वर क
े साथ अपिा सम्बन्ध समझिे का अवसर
भमलिा है।
13. मिुष्य देह धारण करक
े उसे अपिी बुद्धध का उपयोग ऐसे ही प्रश्िों क
े
पूछिे में करिा चाहहए। यह आत्मित्त्व क
े ववषय में क्जज्ञाासा है। निश्कशन
यह निकला कक जब िक जीव आत्मित्त्व (आत्म साक्षात्कार) क
े ववषय में
क्जज्ञाासु िहीं होिा, िब िक वह पशु क
े समाि है।
14. आववष्कार
1. मिुष्य और पशु क
े जीवि में तया समाििाए हैं?
2. तया मिुष्य पशु से भभन्ि है?
जािकारी
1. तया हम अपिे बुद्धध का उधचि प्रयोग कर रहे है?
2. पशु और मिुष्य की चेििा क
े ववकास में अन्िर तयों है?
15. प्रयोग
आप इस कायनक्रम में क
ु छ अपेक्षा लेकर आए होंगे। तया आप
की अपेक्षा की पूनिन हुई? अगर हा िो ककस हद िक? और अगर
िहीं िो, आप इस कायनक्रम से और तया उम्मीद करिे हैं?
या
तया आप समझिे हैं कक हमें यह जाििा ज़रूरी है कक हम इस
जगि में तयों आये हैं? हमारा तया किनव्य है? सब का स्रोि
तया है? तयों ? तयों िहीं?