समावेशी शिक्षा
किसी भी समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति उस समाज विशेष का ही भाग होते हैं। व्यक्ति तथा समाज, दोनों, एक-दूसरे पर अन्योनाश्रित हैं। यदि व्यक्ति को समाज अनुरूप कार्य करना अपेक्षित है तो समाज भी व्यक्ति की क्षमता/अक्षमता से अछूता नहीं है। आधुनिक काल में शिक्षा के प्रसार तथा समाज के परिवर्तित होते मूल्यों के कारण एक नए दृष्टिकोण का उद्भव हो रहा है।
शिक्षा में अंतर्भेद, विषमता, वर्ग-भेद इत्यादि का कोई स्थान नहीं है। इसलिए शिक्षा को वर्ग-विशेष के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर सभी को समान समझते हुए समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृव्य एवं न्याय के साथ अपने कर्त्तव्यों का निष्पादन करना होगा।
विभिन्न योग्यता वाले बालकों की सक्षमता का अधिकतम उपयोग आवश्यक है। इस कार्य हेतु समेकित शिक्षा प्रणाली द्वारा सामान्य विद्यालयों की कक्षा में, विभिन्न योग्यता वाले बालकों को समन्वित कर शिक्षण उपक्रम किए जाएँ। बालकों के अनुसार विद्यालय स्वयं में परिवर्तन करें ताकि बालकों को क्षमतानुसार अधिकाधिक विकास के अवसर सुलभ हों, उनमें आत्मविश्वास, आशा, कर्मठता तथा जीवन के प्रति आकर्षण का भाव जागृत हो तथा शिक्षा अपने मानवीय दायित्व के निर्वहन में सक्षम हो। जीवन को समाजोपयोगी बनाया जा सके।
आधुनिक समाज के बदलते जीवन-मूल्यों के फलस्वरूप आज विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी परिवर्तन हो रहे हैं। समेकित शिक्षा भी इसी प्रकार का नवीनतम तथा अति-महत्त्वपूर्ण प्रयास है। यह शिक्षा, विभिन्न योग्यता वाले बालकों के कल्याण के लिए क्रियात्मक पक्ष का विवेचन करती है। समेकित शिक्षा की अवधारणा का उद्भव शिक्षा प्राप्ति के लिए समानता के अधिकार से हुआ है। सरकार द्वारा निःशक्त जन विधेयक-1995 समान अधिकार, अधिकार संरक्षण और पूर्ण सहभागिता के अन्तर्गत सम्मिलित शिक्षा (समन्वित शिक्षा) को समाज के सामान्य स्कूलों में चलाने की योजना का निर्माण किया गया।
समावेशी शिक्षा की परिभाषा-
1.समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा (Integrated Education) की ओर इंगित करती है, जिसके अंतर्गत-बिना
किसी भेदभाव व अंतर के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके, एक स्तर पर लाया जा सके।
2.संयुक्त राष्ट्रसंघ, 1993 में, सभी को समान अवसर (Equalisation of opportunities) के द्वारा सभी वंचितों की शिक्षा कराने का सभी राज्यों को आवश्यक दायित्व सौंपा गया है, जिसके अंतर्गत सभी वंचित वर्ग, शारीरिक रूप से अक्षम, अंधत्व, बधिर, विकलांग, बौद्धिक स्तर पर वंचित संवेदी, मांसपेशीय अस्थि या अन्य विकलांगता, भाषा, बोली, कामगार, जातिगत् समूह, धार्मिक अल्पसंख्यक, स्त्री-पुरुष भेदभाव को दूर करके, सर्वजन के सम्पूर्ण विकास हेतु शिक्षा का प्रावधान है।
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त
1.बालकों में एक-सी अधिगम की प्रवृत्ति है।
2 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है।
3. सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री धन तथा सभी संसाधन उठाकर स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ायें।
4.शिक्षण में सभी वर्गों, शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।
समेकित शिक्षा की आवश्यकता तथा चुनौतियाँ
शरीर की विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा भी जीवन की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। शिक्षा व्यक्ति में उपस्थित विभिन्न योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास कर उसमें समाज से समायोजन की योग्यता को विकसित करती है। व्यक्ति को विभिन्न कौशल प्रदान कर स्वावलम्बन की दिशा में प्रेरित करते
समावेशी शिक्षा
किसी भी समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति उस समाज विशेष का ही भाग होते हैं। व्यक्ति तथा समाज, दोनों, एक-दूसरे पर अन्योनाश्रित हैं। यदि व्यक्ति को समाज अनुरूप कार्य करना अपेक्षित है तो समाज भी व्यक्ति की क्षमता/अक्षमता से अछूता नहीं है। आधुनिक काल में शिक्षा के प्रसार तथा समाज के परिवर्तित होते मूल्यों के कारण एक नए दृष्टिकोण का उद्भव हो रहा है।
शिक्षा में अंतर्भेद, विषमता, वर्ग-भेद इत्यादि का कोई स्थान नहीं है। इसलिए शिक्षा को वर्ग-विशेष के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर सभी को समान समझते हुए समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृव्य एवं न्याय के साथ अपने कर्त्तव्यों का निष्पादन करना होगा।
विभिन्न योग्यता वाले बालकों की सक्षमता का अधिकतम उपयोग आवश्यक है। इस कार्य हेतु समेकित शिक्षा प्रणाली द्वारा सामान्य विद्यालयों की कक्षा में, विभिन्न योग्यता वाले बालकों को समन्वित कर शिक्षण उपक्रम किए जाएँ। बालकों के अनुसार विद्यालय स्वयं में परिवर्तन करें ताकि बालकों को क्षमतानुसार अधिकाधिक विकास के अवसर सुलभ हों, उनमें आत्मविश्वास, आशा, कर्मठता तथा जीवन के प्रति आकर्षण का भाव जागृत हो तथा शिक्षा अपने मानवीय दायित्व के निर्वहन में सक्षम हो। जीवन को समाजोपयोगी बनाया जा सके।
आधुनिक समाज के बदलते जीवन-मूल्यों के फलस्वरूप आज विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी परिवर्तन हो रहे हैं। समेकित शिक्षा भी इसी प्रकार का नवीनतम तथा अति-महत्त्वपूर्ण प्रयास है। यह शिक्षा, विभिन्न योग्यता वाले बालकों के कल्याण के लिए क्रियात्मक पक्ष का विवेचन करती है। समेकित शिक्षा की अवधारणा का उद्भव शिक्षा प्राप्ति के लिए समानता के अधिकार से हुआ है। सरकार द्वारा निःशक्त जन विधेयक-1995 समान अधिकार, अधिकार संरक्षण और पूर्ण सहभागिता के अन्तर्गत सम्मिलित शिक्षा (समन्वित शिक्षा) को समाज के सामान्य स्कूलों में चलाने की योजना का निर्माण किया गया।
समावेशी शिक्षा की परिभाषा-
1.समावेशी शिक्षा एक प्रकार की समेकित शिक्षा (Integrated Education) की ओर इंगित करती है, जिसके अंतर्गत-बिना
किसी भेदभाव व अंतर के समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा प्रदान करके, एक स्तर पर लाया जा सके।
2.संयुक्त राष्ट्रसंघ, 1993 में, सभी को समान अवसर (Equalisation of opportunities) के द्वारा सभी वंचितों की शिक्षा कराने का सभी राज्यों को आवश्यक दायित्व सौंपा गया है, जिसके अंतर्गत सभी वंचित वर्ग, शारीरिक रूप से अक्षम, अंधत्व, बधिर, विकलांग, बौद्धिक स्तर पर वंचित संवेदी, मांसपेशीय अस्थि या अन्य विकलांगता, भाषा, बोली, कामगार, जातिगत् समूह, धार्मिक अल्पसंख्यक, स्त्री-पुरुष भेदभाव को दूर करके, सर्वजन के सम्पूर्ण विकास हेतु शिक्षा का प्रावधान है।
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त
1.बालकों में एक-सी अधिगम की प्रवृत्ति है।
2 बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है।
3. सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन, सामग्री धन तथा सभी संसाधन उठाकर स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ायें।
4.शिक्षण में सभी वर्गों, शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।
समेकित शिक्षा की आवश्यकता तथा चुनौतियाँ
शरीर की विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा भी जीवन की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। शिक्षा व्यक्ति में उपस्थित विभिन्न योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास कर उसमें समाज से समायोजन की योग्यता को विकसित करती है। व्यक्ति को विभिन्न कौशल प्रदान कर स्वावलम्बन की दिशा में प्रेरित करते
A report presentation on villagr survey by group of girls.The village name is ramana .Its covers all the facilities of this village and weakness of this village.
1. प्रारम्भिक शिक्षा क
े लोकव्यापीकरण की वर्त्तमान म्भथिशि का
आलोचनात्मक मूल्ाांकन
प्रस्तुतकतता- श्रुशि पांचगौड
एम एड (प्रिम सेमेस्टर) २०२१-२३
मतर्ादर्ान- श्री अम्भिलेि यादव
सहायक प्राध्यापक
शर्क्षत शिभतर्
महात्मा ग ांधी अांिरराष्ट्र ीय शहन्दी शवश्वशवद्यालय, वधात महाराष्ट्र
2. प्रारांशिक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण का अित
सावतिौमीकरण का अित होिा है – सब क
े शलए उपलब्ध कराना।
प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण क
े अन्तगति देि क
े सिी बच्ोां क
े
शलए पहली से आठवीां कक्षा िक शन:िुल्क और अशनवायत शिक्षा का
प्रावधान करने का उद्देश्य सुशनशिि शकया गया। इसमें इस बाि पर जोर
शदया गया शक इस अशनवायत शिक्षा क
े शलए स्क
ू ल बच्ोां क
े घर क
े समीप
हो ििा चौदह वर्त िक बच्े स्क
ू ल न छोडें।
3. पररिार्ा
• जे. पी. नतयक क
े अनुसतर-“शिक्षा को सामाशजक पररवितन का एक सिक्त माध्यम बनाने
ििा इसे राष्ट्र ीय शवकास से सम्बद्ध करने की आवश्यकिा है। शिक्षा को िारि क
े
जनसाधारण क
े उस वगत की ओर उन्मुि करना है, जो गरीबी की रेिा से नीचे जीवनयापन
कर रहे हैं, शजससे उनमें आत्म-चेिना जाग्रि हो सक
े और उनकी उत्पादक क्षमिाएँ
प्रस्फ
ु शिि होकर उन्हें राष्ट्र शनमातण क
े कायत में प्रिावी रूप से सहिागी बनने योग्य बनाया जा
सक
े ।”
• एस. चक्रिती क
े र्ब्दोंमें-“सामाशजक पुनशनतमातण करने की दृशष्ट् से, शजसक
े शलए देि की
प्रशिबद्धिा है, प्रािशमक शिक्षा क
े सावतजनीकरण की समस्या का शन:सन्देह शनणतयात्मक
महत्त्व है।”
4. प्रारम्भिक शिक्षा का सावतिौमीकरण
•प्रािशमक शिक्षा सावतजशनक शिक्षा का दू सरा रूप है। इस प्रकार
प्रािशमक शिक्षा को प्रत्येक नागररक क
े शलए सुलि बनाना शिक्षा को
लोकव्यापी या सावतिौशमक बनाना है।
•क
े . जी. सैयदेन क
े अनुसतर, “प्रािशमक शिक्षा का सम्बन्ध शकसी वगत
या समूह से नहीांहै, अशपिु इसका सम्बन्ध देि की समस्त जनिा से है।
यह प्रत्येक स्तर पर जीवन का स्पित करिी है।”
•इसी प्रकतर हण्टर आयदर् ने कहत है शक “प्रािशमक शिक्षा को
जनसाधारण की शिक्षा मानना चाशहये।”
5. प्रारांशिक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण क
े शलए वक्तव्य
• िारिीय सांशवधान क
े अनुच्छे द 45 में कहा गया है शक “राज्य इस सांशवधान क
े प्रारांि से दस
वर्त की अवशध क
े िीिर सिी बच्ोां को 14 वर्त की आयु पूरी करने िक शनिःिुल्क और
अशनवायत शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।
• राष्ट्र ीय शिक्षा नीशि, 1986 – “यह सुशनशिि शकया जाएगा शक हमारे इक्कीसवीांसदी में प्रवेि
करने से पहले 14 वर्त िक क
े सिी बच्ोां को सांिोर्जनक गुणवर्त्ा की मुफ्त और अशनवायत
शिक्षा प्रदान की जाए।”
• उन्नीक
ृ ष्णन शनणतय, 1993 – "इस देि क
े प्रत्येक बच्े/नागररक को चौदह वर्त की आयु पूरी
करने िक मुफ्त शिक्षा का अशधकार है।"
6. प्रारांशिक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण क
े शलए वक्तव्य
•मुफ्त’ की अवधारणा का अित है शक सरकार द्वारा सांचाशलि िैक्षशणक
सांथिानोां में प्रारांशिक शिक्षा प्राप्त करने क
े शलए बच्ोां से कोई िुल्क नहीां
शलया जाएगा।
• ‘अशनवायत’ अवधारणा का अित है शक 6 वर्त की आयु प्राप्त करने वाले
सिी बच्ोां को कक्षा I में नामाांशकि शकया जाना है और 14 वर्त की आयु
में आठवीांकक्षा पूरी करने िक जारी रहना चाशहए।
• हम 6 से 14 वर्त क
े आयु वगत क
े शलए शिक्षा को सावतिौशमक, मुफ्त और
अशनवायत बनाने क
े शलए प्रशिबद्ध हैं।
7. यूईई क
े चरण
शिक्षा क
े सावतिौमीकरण का िात्पयत पाांच चीजोां से है:-
1. प्रावधान का सावतिौशमकरण
2. नामाांकन का सावतिौशमकरण
3. प्रशिधारण का सावतिौशमकरण
4. िागीदारी का सावतिौमीकरण
5. उपलम्भब्ध का सावतिौमीकरण
8. प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण क
े उद्देश्य
प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण या सावतजनीकरण क
े शनम्नशलम्भिि उद्देश्य हैं-
1.ज्ञानाजतन का उद्देश्य
2. बौम्भद्धक एवां मानशसक शवकास का उद्देश्य
3.िारीररक शवकास का उद्देश्य
4. नैशिक एवां चाररशिक शवकास का उद्देश्य
5. साांस्क
ृ शिक शवकास का उद्देश्य
6. सामाशजक क
ु िलिा क
े शवकास का उद्देश्य
7. व्यम्भक्तत्व क
े सवाांगीण शवकास का उद्देश्य
8. जीशवकोपाजतन का उद्देश्य
9. प्रािशमक शिक्षा की समस्याएां
• राज्योां की अशनशिि नीशि
• क
ें द्र की दोर्पूणत नीशि
• राजनीशिक बाधाएां
• प्रिासन की समस्या
• अध्यापकोां की समस्या
• आशितक समस्या
• शवद्यालयोां की थिापना की समस्या
• अशििावकोां की शनरक्षरिा
10. सावतिौशमकिा में समस्याएँ
सांशवधान की धारा 45 क
े अनुसार 10 वर्त क
े अन्दर 6 से 14 वर्त िक आयु क
े सिी बच्ोां को
शनिःिुल्क शिक्षा देने का सांकल्प शलया गया, जो प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण हेिु
आवश्यक है। इस सावतिौशमकिा में शनम्नशलम्भिि िीन समस्याएँ पायी गयीां-
1. सुशवधाओां की सावतिौशमकिा का अिाव
2. नामाांकन की सावतिौशमकिा का अिाव
3.शिक्षा को बीच में छोडने की सावतिौशमकिा
11. प्रारांशिक शिक्षा का सावतिौमीकरण दो प्रशियाओां को दिातिा है
1. पहांच
2. सफलिा
पहोंच: इसका अित है प्रािशमक शवद्यालयोां का सावतिौशमक प्रावधान और 6 से 14 आयु वगत क
े
बच्ोां का सावतिौशमक नामाांकन। 6 से 14 आयु वगत क
े सिी बच्ोां की प्रािशमक शवद्यालयोां िक
पहांच होनी चाशहए। शलांग, धमत, जाशि, थिान या सामाशजक आशितक म्भथिशि क
े सांबांध में कोई
िेदिाव नहीांहोना चाशहए।
सफलतत: क
े वल प्रािशमक शवद्यालयोां िक पहांच प्रदान करक
े हम यह दावा नहीांकर सकिे
शक हमने प्रारांशिक शिक्षा को सावतिौशमक बना शदया है। स्क
ू लोां िक पहांच क
े साि-साि हमें
स्क
ू लोां में पयातप्त प्रावधान करने चाशहए, िाशक बच्ोां को प्रारांशिक शिक्षा में शवशिन्न प्रकार क
े
अनुिव प्राप्त हो सक
ें ।
12. प्रारांशिक शिक्षा का सावतिौमीकरण दो प्रशियाओां को दिातिा है
• प्रारांशिक शिक्षा को सफलिापूवतक पूरा करने क
े शलए प्रत्येक स्क
ू ल में
पयातप्त सांख्या में प्रशिशक्षि शिक्षक, गुणात्मक शिक्षण और शिक्षण
सामग्री, सहायिा और उपकरण, कक्षाएां आशद उपलब्ध कराई जानी
चाशहए।
•सफलिा का शनधातरण न्यूनिम स्तर की शिक्षा (एमएलएल) की प्राम्भप्त क
े
सांदित में शकया जाना है, शजसका अित है। अशधकाांि छाि अशधकाांि
दक्षिाओां को प्राप्त कर लेंगे।
13. प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण की आवश्यकिा एवां महत्त्व
• साक्षरिा प्रसार क
े शलये
• दैशनक जीवन की आवश्यकिाओां की पूशित क
े शलये
• स्व-शिक्षा क
े शलये
• व्यम्भक्त क
े शवकास क
े शलये
• जनिन्त्र को सफल बनाने क
े शलये
• राजनैशिक जागरूकिा क
े शलये
• सामाशजक समानिा और सामाशजक न्याय की िावना में सहायक
• साम्प्रदाशयकिा क
े शवनाि क
े शलये आवश्यक
15. प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण से सम्बम्भन्धि क
ु छ प्रमुि
कायतिम
• ऑपरेिन ब्लैक बोडत,
• न्यूनिम शिक्षा स्तर,
• मध्याह्न िोजन स्कीम,
• पोर्ाहार सहायिा कायतिम,
• शजला प्रािशमक शिक्षा कायतिम,
• सवतशिक्षा अशियान,
• कस्तूरबा गाँधी बाशलका शवद्यालय
16. िारि में प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौमीकरण क
े उपाय
• अशनवायत शिक्षा की म्भथिर नीशि
• शिक्षकोां की समस्या का हल
• शिक्षा प्रसार में सुधार
• आशितक समस्या का हल
• पाठय्क्िम में सुधार
• धाशमतक सहयोग
• कक्षा में छािोां की सांख्या में वृम्भद्ध
• जनिा का सहयोग
• िार्ा की समस्या का समाधान
• सामाशजक बाधाओां का समाधान
17. शनष्कर्त
•व्यापक साक्षरिा क
े शलये सावतिौशमक प्रािशमक शिक्षा क
े लक्ष्य को प्राप्त
करना अत्यांि महत्त्वपूणत है, क्ोांशक यह आशितक शवकास, सामाशजक
सांरचना क
े आधुशनकीकरण और लोकिाांशिक सांथिानोां क
े प्रिावी
कामकाज हेिु एक बुशनयादी आवश्यकिा है।
•साि ही यह सिी नागररकोां को अवसर की समानिा प्रदान करने क
े
शलये आवश्यक अशनवायत पहला कदम होगा। ऐसे में समग्र रूप से
िारिीय समाज द्वारा प्रािशमक शिक्षा क
े सावतिौशमकरण को प्राप्त करने
क
े शलये आवश्यक कदम उठाए जाने चाशहये।