1. राम रामेित रामेित (Meaning of the verse Rāma Rāmeti Rāmeti)
Editor’s note: This article by Jagadguru Rāmānandācārya Svāmī Rāmabhadrācārya explains the meaning of the
beautiful verse at the end of Śrīrāmarakṣāstotram (᮰ीरामरᭃा᭭तोᮢम्).
राम रामेित रामेित रमे रामे मनोरमे।
सह᮲नाम तᱫु᭨यं रामनाम वरानने॥
िजस ᮧकार भगवान् वेद िनर᭭त सम᭭तपुंदोषशंकापंककलंकावकाश तथा भगवि᳖᳡ास होने से ᮪म, ᮧमाद, िवᮧिल᭡सा,
करणापाटव आᳰद दूषणᲂ से सवᭅथा दूर तथा भगवान् कᳱ सᱫा मᱶ परमᮧमाण और भगवᮤूप ही हᱹ उसी ᮧकार वेदाथᭅ के
उपबृंहण ᱨप पुराण, संिहता एवं रामायण, महाभारत मᱶ कहे ᱟए मंᮢᮤ᳥ा महᳶषयᲂ के वाय भी वेद ही कᳱ भाँित परम
ᮧामािणक हᱹ। इतना अ᭠तर अव᭫य है ᳰक वेदᲂ मᱶ ᭭वतः ᮧामा᭛य है तथा ᭭मृित, पुराण, इितहास आᳰद मᱶ परतः ᮧामा᭛य है
अथाᭅत् ᭭मृित आᳰद का ᮧामा᭛य वेदसापेᭃ है और वेदᲂ के ᮧामा᭛य मᱶ ᳰकसी कᳱ कोई अपेᭃा नहᱭ है। पर जैसे वेद ᭭वयं कᳱ
कृपा से ही समझ मᱶ आ सकते हᱹ उन पर मानव कᳱ बुि का कोई बस नहᱭ चलता उसी ᮧकार पुराण आᳰद भी अपनी बुि के
बल पर नहᱭ समझे जा सकते। वे तो अपनी अहैतुकᳱ अनुक᭥पा से ही साधकᲂ को कभी-कभी अपना मर्म बता देते हᱹ। इसका
एक अनुभव मुझे अभी-अभी अथाᭅत् ८-९-९८ कᳱ ᮩᳬवेला मᱶ ᱟआ। ᮰ीरामरᭃा᭭तोᮢ का ᮧायः बᱟतेरे आि᭭तक जन िनर᭠तर
पाठ करते हᱹ और मुझे भी ᮰ीरामरᭃा का पाठ करते चालीस वषᭅ हो गये पर᭠तु ᮰ीरामरᭃा᭭तोᮢ के अि᭠तम ᳣ोक का लाखᲂ
ᮧय᳀ करने पर भी मुझे अब तक अथᭅ ᭭प᳥ नहᱭ हो पाया। यह ᳣ोक वेद᳞ास िवरिचत प᳑पुराण का है। इसकᳱ कथा इस
ᮧकार है—
एक बार भूतभावन भगवान् शंकर ने अपनी ᮧाणव᭨लभा पावᭅती जी से अपने ही साथ भोजन करने का अनुरोध ᳰकया।
भगवती पावᭅती जी ने यह कहकर टाला ᳰक वे िव᭬णुसह᮲नाम का पाठ कर रही हᱹ। थोड़ी देर तक ᮧतीᭃा करके िशवजी ने
जब पुनः पावᭅती जी को बुलाया तब भी पावᭅती जी ने यही उᱫर ᳰदया ᳰक वे िव᭬णुसह᮲नाम के पाठ के िव᮰ाम के प᳟ात् ही
आ सकᱶगी। िशव जी को शीᮖता थी। भोजन ठ᭛डा हो रहा था। अतः भगवान् भूतभावन ने कहा- पावᭅित! राम राम कहो। एक
बार राम कहने से िव᭬णुसह᮲नाम का स᭥पूणᭅ फल िमल जाता है। यᲂᳰक ᮰ीराम नाम ही िव᭬णु सह᮲नाम के तु᭨य है।
इस ᮧकार िशवजी के मुख से ‘राम’ इस दो अᭃर के नाम का िव᭬णुसह᮲नाम के समान सुनकर ‘राम’ इस ᭃर नाम का जप
करके पावᭅती जी ने ᮧस᳖ होकर िशवजी के साथ भोजन ᳰकया।
सहस नाम सम सुिन िशव बानी। जिप जेई िपय संग भवानी॥
– मानस १-१९-६
यहाँ जेई श᭣द का अथᭅ है भोजन करना। अथाᭅत् िशवजी कᳱ वाणी से राम नाम को सह᮲नाम के समान सुनकर तथा उसे ही
जपकर पावᭅती जी ने अपने िᮧयतम भगवान् शंकर के साथ जीमन ᳰकया।
यह तो रही मूल कथाव᭭तु। अब ‘राम रामेित’ ᳣ोक कᳱ व᭭तुि᭭थित पर िवचार करते हᱹ। इसमᱶ रमे, रामे, मनोरमे,
सह᮲नामतᱫु᭨यं, वरानने इन चार अंशᲂ पर िवचार करना होगा। सामा᭠य ᱨप से रमे, रामे, मनोरमे, वरानने, ये चारᲂ
पावᭅती जी के िवशेषण माने जाते रहे हᱹ। इनमᱶ रमाश᭣द ल᭯मी जी का वाचक है। वह पावᭅती जी के िलए कैसे ᮧयुᲦ होगा?
2. ‘रामा’ य᳒िप सु᭠दरी नविववािहत ᳫी के अथᭅ मᱶ ᮧयुᲦ होता है पर ᮰ीराम के जप के उपदेश काल मᱶ िशवजी ऐसे शृंगारपरक
श᭣द का ᮧयोग यᲂ करᱶगे? यही ि᭭थित ‘मनोरमा’ श᭣द कᳱ भी है। भला िजनका मन राम मᱶ रमता हो वे पावᭅती जी को
‘मनोरमे’ यᲂ कहᱶगे? इसी ᮧकार ‘सह᮲नाम’ श᭣द नपुंसकᳲलग ᮧथमा एकवचन का जान पड़ता है जबᳰक उसका कताᭅकारक
मᱶ रहना उिचत नहᱭ है। यᲂᳰक तु᭨य श᭣द के योग मᱶ तृतीया अथवा ष᳧ी होनी चािहए। जैसाᳰक भगवान् पािणिन भी कहते
हᱹ— ‘तेन तु᭨यं ᳰᮓया चे᳇ितः’ (पासू ५-१-११५)। इस दृि᳥ से सह᮲ना᳜ा तᱫु᭨यं अथवा सह᮲ना᳜ः तᱫु᭨यं होना चािहए था,
जबᳰक ऐसा अभी तक ᳰकसी पु᭭तक मᱶ भी नहᱭ देखा गया। सामा᭠यतः ‘सह᮲नाम तᱫु᭨यं’ यही पाठ िमलता है। इस ᮧ᳤ पर
लगभग चालीस वषᭅ तक उलझे रहने के प᳟ात् ᮰ी राघवे᭠ᮤ सरकार ने कृपा करके परसᲂ कᳱ सुबह जब मᱹ ᳩान करके
िनयमाथᭅ उ᳒त ᱟआ सहसा एक नवीन अथᭅ मेरे मन मᱶ ᭭फु ᳯरत कराया। व᭭तुतः केवल ‘वरानने’ श᭣द ही केवल पावᭅती जी का
िवशेषण है। वरौ रेफमकारौ ᮰े᳧ौ वणᲆ आनने य᭭याः सा वरानना त᭜स᭥बुौ हे वरानने। अथाᭅत् िजनके मुख मᱶ रेफ और
मकार दोनᲂ ᮰े᳧ वणᭅ िवराजमान रहते हᱹ वे पावᭅती व᭭तुतः वरानना हᱹ। उ᭠हᱭ का स᭥बोधन ‘वरानने’ है। ‘रामे’ राम श᭣द का
स᳙मी एकवचना᭠त ᱨप है। ‘मनोरमे’ यह स᳙᭥य᭠त राम श᭣द का िवशेषण है। ‘रमे’ रम् धातु के आ᭜मनेपद लट् लकार उᱫम
पुᱧष एकवचन का ᱨप है। और सह᮲नाम श᭣द लु᳙ तृतीयैकवचना᭠त है अथाᭅत् सह᮲ना᳜ा के ᭭थान पर सह᮲नाम श᭣द का
ᮧयोग ᱟआ है। अवैᳰदक होने पर भी ‘बᱟलं छ᭠दिस’ (पासू ७-१-१०) सूᮢ से बᱟल श᭣द कᳱ अनुवृिᱫ करके Ფिचद᭠यदेव के
आधार पर छा᭠दस ᮧयोग के अितᳯरᲦ लोक मᱶ भी ‘सुपां सुलुपूवᭅसवणाᭅ᭒छेयाडाᲽायाजालः’ (पासू ७-१-३९) सूᮢ से टा
िवभिᲦ का लोप हो गया है। इस ᮧकार इस ᳣ोक का अ᭠वय िन᳜ ᮧकार से होगा—
(हे) वरानने! राम राम इित राम इित (जप)। (अहं) मनोरमे रामे रमे। तत् रामनाम सह᮲नाम तु᭨यम्। अथाᭅत् हे ᮰ीराम नाम
के मुख मᱶ िवराजमान होने से सु᭠दर पावᭅित। राम, राम, राम इसी ᭃर नाम का जाᮕत, ᭭व᳘, सुषुि᳙ इन तीनᲂ अव᭭थाᲐ
मᱶ जप करो। हे पावᭅित! मᱹ भी इ᭠हᱭ मनोरम राम मᱶ रमता रहता ᱠँ। यह राम नाम िव᭬णु सह᮲नाम के तु᭨य है। अहो! यह
ᳰकतना रमणीय अथᭅ है पर मेरे राघव ने मुझे इसके िलए ᳰकतना तड़पाया। कोई बात नहᱭ। देर ᱟई पर अ᭠धेर नहᱭ। लगता है
ᳰक मेरी आगामी छठे अनु᳧ान कᳱ पूवᭅ भूिमका मᱶ ही ᮧभु ᮰ीसीताराम जी ने मुझे इस अथᭅ के योय समझा।
नाम ᮧतीित नाम बल नाम सनेᱟ। जनम जनम रघनु᭠दन तुलिसᳲह देᱟ॥
– बरवैरामायण ७-६८
॥ ᮰ीराघवः श᭠तनोतु ॥