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BA V Sem
BHU
वििाह विधि
By
Prachi Virag Sontakke
वििाह
• पवित्र
• लौकिि-पारलौकिि महत्ता
• प्रिार : अपनी सीमाएँ , गुण , दोष
• शास्त्त्र सम्मत एिं मान्य : ब्रह्म ,आषष, दैि,
प्राजापत्य
• गांििष , आसुर
• ननिृ ष्ट : राक्षस , पैशाच
• अन्य प्रिार : स्त्ियंिर, अनुलोम-प्रनतलोम
Kalyana-sundara-murti
Vamana Temple, Khajuraho.
Kalyanasundar-murti, Ellora.
Kalyanasundara-murti,Elephanta Caves
धर्म पालन संतानोत्पत्ति
रतत सुख पूततम ऋण र्ुक्तत
त्तििाह क
े
उद्देश्य
वििाह हेतु आयु : िर
• िोई ननश्चचत आयु नह ं
• िेदाध्ययन ि
े उपरांत
• िेदाध्ययन समाश्तत िी अिधि भिन्न : 12, 24, 36,48
• मनु : 30 िषष िा पुरुष 12 िषष िी लड़िी या 24 िा पुरुष 8 िषष िी
लड़िी से वििाह िर सिता है
• विष्णुपुराण : िन्या एिं िर िी आयु िा अनुपात 1:3 होना चाहहए
वििाह हेतु आयु : ििू
• ऋग्िेद : किसी िी अिस्त्था में वििाह
• गुह्यसूत्र + िमषसूत्र : युिािस्त्था ि
े ननिट वििाह / यौिना होने से पूिष वििाह
• गौतम + िभशष्ठ : िन्या िर से अिस्त्था में छोट होनी चाहहए
• महािारत : ऐसी िन्या िी उपमा जो 60 िषष ि
े पुरुष से वििाह हेतु तैयार नह ं
• गौतम : यहद वििाह योग्य िन्या वपता द्िारा वििाहहत नह ं िी जा सि
े तो िह 3
मास िी अिधि पार िर अपने मन अनुि
ू ल पनत िा िरण िर सिती है
वििाह हेतु पात्रता
• िश्जषत ननिट संबंिी : सगोत्र-सवपंड
• अल्पियस्त्ि नह ं : िय सीमा अस्त्पष्ट
• शार ररि-मानभसि रूप से अस्त्िस्त्थ नह ं : व्यिहाररि ननषेि
• बड़ा िाई अवििाहहत नह ं
• पत्नी जीवित
वििाह हेतु पात्रता : िन्या
• याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या ह योग्य
• वििाह ि
े भलए िचनबद्ि िन्या से अन्य िा वििाह नह ं
• सििा-विििा नह ं
• प्रिट-सूक्ष्म दुगुषण यु्त
• बड़ी बहन अवििाहहत
• याज्ञिल््य : भ्राताह न नह ं
• मनु : िन्या िले ह आजीिन अवििाहहत रह जाए परंतु वपता उसिा सद्गुणविह न व्यश््त
से वििाह ना िरे
• बौिायन िमषसूत्र : िन्या िा वििाह शीघ्र िले ह िर गुण ह न
• याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या
वििाह विधि
• िाग्दान : वपता / िाई द्िारा िचन
• स्त्िीिृ नत : दोनों पक्षों िी सहमनत-
िचनबद्िता
• िैिाननि महत्त्ि स्त्िीिृ नत िा ज्यादा
• भमताक्षरा : विशेष श्स्त्थनत में िचन िंग
िा प्राििान –अपराि नह ं
• महािारत : पाणण ग्रहण ति िन्या िो
िोई िी मांग सिता है
वििाह ि
े िैिाननि पररणाम
• पनत-पत्नी िा एि दूसरे पर आधिपत्य
• परंतु अधििारों िी समानता नह ं
• िाभमषि क्षेत्र ि
े अनतरर्त पृथि अश्स्त्तत्ि
• िैिाहहि अधििारों ि
े उल्लंघन पर प्रनतिार िी
अनुमनत
• पनत ि
े क्र
ू र/ ननष्ठु र व्यिहार पर पत्नी िो िैिाहहि
अधििारों ि
े सम्पादन हेतु बाध्य नह ं िर सिते
• व्याभिचार : घोर पाप-िीषण अपराि = िठोर दंड
• व्याभिचार िा क्षेत्र व्यापि : एिांत में िाताषलाप,
िस्त्त्रािूषण छ
ू ना
पत्नी ि
े सांपवत्ति अधििार
• मनु : पत्नी, पुत्र, दास िी सामान्य तौर पर अपनी िोई संपवत्त नह ं । िह िो जो
िन िमाये िह स्त्िामी िा।
• आपस्त्तंि : पनत-पत्नी ि
े बीच वििाजन िा िोई प्रचन ह नह ं उठता
• पनत िी अनुपश्स्त्थनत में यहद पत्नी औधचत्यपूणष ढंग से िेंट दे तो िह चोर नह ं
• पत्नी संयु्त संपवत्त मे अंशहर
• याज्ञिल्ि : स्त्त्री िन ि
े अिाि मे पुत्र ि
े समान िाग प्रातत
• भमताक्षरा : यहद स्त्त्री िन प्रातत तो पुत्र ि
े िाग िा आिा िाग प्रातत
• दायिाग : ि
े िल पुत्रह न पश्त्नयों िो ह अधििार माना है
बहुपत्नीत्ि
• हहन्दू विधि ि
ु छ विशेष पररश्स्त्थतधथयों में ह पुरुष िो एि से अधिि जीवित
पश्त्नयाँ रखने िा वििान िरती है।
• बहुपत्नीत्ि वििाह किसी िी दशा में विधि विरुद्ि नह ं था
• ननषेि व्यािहाररि नह ं मात्र ननदेशात्मि
• शास्त्त्र : अवप्रय बोलने मात्र से ह िोई पुरुष अपनी पत्नी िी उपेक्षा िरि
े दूसरा
वििाह िर सिता है
• मनु : प्रथम वििाह अपनी ह जानत िी स्त्त्री ि
े साथ मान्य किन्तु यहद िोई पुरुष
दूसरा वििाह िरना चाहे तो अपने से ननम्न जानत िी स्त्त्री ि
े साथ ह िर सिता
है
ऋण िुगतान
• याज्ञिल््य : पनत-पत्नी एि दूसरे ि
े ऋण ि
े भलए उत्तरदायी अगर ऋण
पाररिाररि हहत हेतु भलया गया है
• नारद : पत्नी बाध्य नह ं ऋण िुगतान हेतु
• िात्यायन : पत्नी/माता ि
े ऋण पर पनत/पुत्र तिी उत्तरदायी जब उनिी
स्त्िीिृ नत से ऋण भलया गया हो या िह ऋण पाररिाररि हहत हेतु हो.
संतान संबंिी वििाह विधि
• संतानोत्पनत वििाह िा अननिायष ितषव्य
• वििाह िा प्रिार संतान िी िैिता ननिाषररत िरता है
• शास्त्त्रानुमोहदत ढंग से उत्पन्न पुत्र िैि
• िैि संतानों िा स्त्िािाविि संरक्षि
• संतानों पर पूणष अधििार : दत्ति देने िा अधििार
• दायिाग : तब ति संतान िा िरण-पोषण जब ति असहाय-असमथष
• भमताक्षरा : संतान िा िरण-पोषण जीिन िर = पुत्र अंशहर
वििाह विच्छेद
• सामान्य सािारण अथष में विच्छेद अज्ञात
• हहन्दू वििाह = िाभमषि संस्त्िार =पवित्र गठबंिन : संविदा नह ं
• मृत्यु पयंत िा संबंि
• मनु : ना विक्रय द्िारा, ना पररत्याग द्िारा पत्नी िो अलग िर सिता है पनत
• पनत िी मृत्यु पचचात िी पत्नी िो वििाह िी अनुमनत नह ं
• पराशर + नारद : विशेष पररश्स्त्थनत में पुत्र उत्पवत्त हेतु वििाह िी अनुमनत प्रदान
• परंतु ऐसे वििाह से उत्पन्न पुत्र िी सामाश्जि उपेक्षा ि
े प्रमाण
• पत्नी पररत्याग िा उल्लेख
पत्नी पररत्याग ि
े मान्य आिार
• मादि द्रव्यों िा सेिन
• अनैनति व्यिहार : साहस / संग्रहण (बल से, िोखे से, िामवपपासा से)
• संतानोत्पवत्त मे असमथष
• दुरिाषी
• मनु : स्त्िेच्छाचाररणी पत्नी िा पररत्याग िर सिते है परंतु उसिा िि नह ं
िर सिते है
परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट
• ि
ु छ िमष शास्त्त्रों में स्त्त्री द्िारा परगमन िो ि
े िल उप-पाति (हलि
े -फ
ु ल्ि
े पाप) िी श्रेणी
में रखा गया है
• सामान्यतः पारगमन पाप - ि
ु छ ग्रंथों में प्रायश्चचत िा वििान
• अन्य में यह माना गया कि परगमन से उत्पन्न दोष माभसि िमष पचचात स्त्ियं दूर हो
जाता है
• नारद स्त्मृनत : यहद िोई स्त्त्री पारगमन िी श्स्त्थनत में पिड़ी जाए तो उसिा मुंडन िरा
देना चाहहए, ह न शय्या, सामान्य िोजन देना चाहहये तथा उसे घर िी साफ सफाई में
समय व्यतीत िरना चाहहये
• विधि,ऐसे अपराि में भलतत व्यश््त िी सामाश्जि श्स्त्थनत पर िी ननिषर
परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट
• स्त्मृनत ग्रंथ : पत्नी ि
े परगमन पर पनत द्िारा उसिा पररत्याग
• आपस्त्तंि : वििाहहत नार ि
े साथ संिोग िरने िाले िा भशचन एिं अंड
िाटने िा वििान
• नारद : भशचन ितषन िा दंड
• मत्स्त्य पुराण : ब्राह्मण िो छोड़िर िर अन्य जानत ि
े पुरुष िो प्राण दंड /
भशचन ितषन
• िौहटल्य + याज्ञिल््य : प्रव्रश्जतागमन पर मात्र 24 पण िा दंड
पनत पररत्याग ि
े मान्य आिार
• पनत अनुपश्स्त्थत
• ि
े िल ननदषयता, नतरस्त्िार, क्र
ू र व्यिहार पररत्याग ि
े न्यायोधचत
आिार नह ं
• मनु : पनत पागल ,जघन्य अपरािी, नपुंसि हो तो उसिी उपेक्षा िी
जा सिती है परंतु पररत्याग नह ं
• पाराशर + नारद : ऐसी श्स्त्थनत में पनत ि
े पूणष पररत्याग िी छ
ू ट
पररत्याग : पत्नी ि
े अधििार
• बबना औधचत्य ि
े पनत िा त्याग िरने पर पत्नी गुजारा पाने िी हिदार नह ं
• पनत यहद पत्नी द्िारा पररत्याग िरने पर आपवत्त नह ं िरता और बाद मे यहद पत्नी पुनः पनत ि
े
पास आना चाहे और पनत इसि
े भलए तैयार ना हो तो िह पत्नी िी पनत से गुजारा पाने िी
हिदार
• यहद िफादार-ितषव्यपरायण पत्नी िा पररत्याग पनत िरे तो पत्नी संपवत्त ि
े 1/3 हहस्त्सा अपने
गुजारे ि
े रूप मे मांग सिती है।
• यह पत्नी स्त्ियं पनत िा पररत्याग िरे तो सशतष गुजरा
• दुचचररत पत्नी िो गुजारे से िंधचत रखा गया है
• गुजारा भमलने ि
े पचचात अगर पत्नी दुराचार हुई तो गुजारा िापस लेने िा ननयम
• नारद : िृ तघ्न पत्नी िो दंड स्त्िरूप ह न शय्या, तुच्छ िोजन, ननिृ ष्ट आिास
स्त्त्री िन: स्त्िरूप
• हहन्दू विधि िा श््लष्टम अंश
• अत्यंत दुरूह एिम व्यापि स्त्िरूप: िई व्याख्याएँ उपलब्ि
• पयाषतत मतिेद = संघषष िा उिषर क्षेत्र
• स्त्त्रीिन िई स्त्त्रोतों से प्रातत = िेंट / क्रय / उत्तराधििार
• उपिोग ि
े अधििार स्त्त्रीिन ि
े प्रिार पर आिाररत
• दुरोपयोग पर दंड िा प्राििान
• विशेष श्स्त्थनत में स्त्ित्ि िी समाश्तत = राजिेद, परपुरुष गमन , समाज विरोिी
व्यसन
• स्त्त्री िन ि
े उत्तराधििार िा पृथि दायाद क्रम
उत्पवत्त
• िाणे + िेदालन्िार : िैहदि युग में वििाह ि
े समय द गई िेंट
• अ.स.अल्तेिर : शुल्ि प्रथा=िर द्िारा वििाह हेतु ििूपक्ष से भलया गया िन
• शुल्ि प्रथा िैहदि िाल न नह ं
• ग़ौतम ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िा उल्लेख किया परंतु पररिावषत नह ं
• िौहटल्य ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िी पररिाषा द
अथष
• िौहटल्य : िृवत्त + आबध्य
• िृवत्त = जीिनिृवत्त: िू-संपवत्त, सोना। अधिि से अधिि 2000 पण
• आबध्य = जो शर र में बांिा जा सि
े - आिूषण, िस्त्त्र। िोई सीमा नह ं
• िात्यायन + व्यास : िौहटल्य से सहमत
• पी.िी.िाणे : िह िन श्जसे स्त्त्री वििाहोपरांत स्त्ियं ि
े श्रम से अश्जषत िरती है
िह स्त्त्री िन नह ं है
• विज्ञानेचिर : किसी िी प्रिार िा िन स्त्त्री िन बन सिता है चाहे िह स्त्त्री
द्िारा किसी पुरुष िी विििा ि
े रूप मे उत्तराधििार में प्रातत हो या किसी पुरुष
िी माता/पत्नी िी हैभसयत से वििाजन में।
स्त्त्री िन : दायिाग ि
े अनुसार
• स्त्त्रीिन िह है श्जसिा पनत से स्त्ितंत्र रहते पत्नी दान,विक्रय एिं उपिोग िर सि
े .
• भशल्प, िौशल, श्रम से अश्जषत संपवत्त/िन स्त्त्री िन नह ं
• संबंिी से भिन्न व्यश््त से प्रातत िेंट स्त्त्री िन नह ं
• उत्तराधििार मे प्रातत स्त्थािर संपवत्त स्त्त्री िन नह ं
स्त्त्री िन ि
े प्रिार
• मनु : 6 प्रिार
• अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि
े समक्ष हदया गया
• अध्यािहननि = विदाई में हदया गया
• प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया
• प्रीनतिमष = माता वपता िाई द्िारा हदया गया
• अन्िािेय = वििाह ि
े बाद भमलने िाल िेंट
• आधििेदननि = पनत द्िारा दूसरा वििाह िरने पर प्रथम पत्नी िो
हदया गया
स्त्त्री िन ि
े प्रिार
• िात्यायन : 6 प्रिार
• अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि
े समक्ष हदया गया
• अध्यािहननि = विदाई में हदया गया
• प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया
• अन्िािेय = पनत ि
ु ल से प्रातत िेंट
• शुल्ि = गृहस्त्थी से संबंधित िेंट - बतषन, पशु, सेिि
• सौदानयि = िन्या ि
े रूप मे मायि
े से प्रातत + पत्नी ि
े रूप मे ससुराल से प्रातत
स्त्त्री िन ि
े प्रिार
व्यिहार मयूख : 2 प्रिार
• पाररिावषि = िह स्त्त्री िन श्जसिो ऋवषयों ने बताया
• अपाररिावषि = िह िन जो वििाजन/भशल्प से प्रातत
अन्य :
• सौदानयि : िन्या ि
े रूप मे मायि
े से प्रातत + पत्नी ि
े रूप मे ससुराल से
प्रातत
• असौदानयि : भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन
स्त्त्री िन िा उपिोग: स्त्ियं द्िारा
िात्यायन :
• ि
ु मार स्त्त्री = सिी प्रिार ि
े स्त्त्री िन िा मनोनुि
ू ल उपिोग िर सिती है
• विििा = पनत द्िारा प्रदत्त अचल संपवत्त िो छोड़िर सिी प्रिार ि
े स्त्त्री िन
िा उपयोग िर सिती है
• सििा स्त्त्री : ि
े िल सौदानयि स्त्त्रीिन िा ह व्यय िर सिती है
देिल :
सौदानयि + िन + शुल्ि + लाि + आिूषण – सिी िा पूणष उपिोग
स्त्त्री िन िा उपिोग : अन्य द्िारा
• विपवत्त िाल में िी वपता, पनत, पुत्र स्त्त्री िन िा उपयोग नह ं िर सिते
• िात्यायन : यहद पनत, वपता, पुत्र, िाई स्त्त्रीिन िा उपयोग उसिी इच्छा ि
े विरुद्ि
बल पूिषि िरते है तो िे न ि
े िल ब्याज सहहत इस िन िो लौटाने ि
े भलए ह
बाध्य है बश्ल्ि िे इस अनाधििृ त िायष ि
े भलए दंड ि
े िी िोगी है
• यहद िे स्त्त्री िी अनुमनत से स्त्त्री िन िा उपयोग िरते है तो िनी होने पर उन्हे
िन िापस िर देना चाहहए
• मनु : स्त्त्री िन िा अनाधििृ त उपयोग िरने िाले दायदों ि
े भलए राज्य द्िारा दंड
िा वििान
असौदानयि स्त्त्रीिन िा उपिोग
• असौदानयि स्त्त्रीिन = भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन
• िात्यायन : भशल्प एिं संबंधियों से प्रातत िन पर पनत िा स्त्िाभमत्ि
• दायिाग : इस िन िा उपयोग पनत विपवत्त में ना रहने पर िी स्त्िेच्छा से
िर सिता है
• पनत िी मृत्यु ि
े पचचात ह स्त्त्री असौदानयि स्त्त्रीिन िा व्यय स्त्िेच्छा से
िर सिती है
• उसिी मृत्यु उपरांत उस िन ि
े दायाद पनत ि
े नह ं उसि
े उत्तराधििार होंगे
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• एिरूप व्यिस्त्था नह ं
• लोिाचार एिं िालानुक्रम ि
े अनुसार
• गौतम : स्त्त्रीिन सिषप्रथम पुबत्रयों िो भमलता है। ि
ु मार िन्याओं िो
िर यता तथा वििाहहतों में सम्पन्न िी तुलना में विपन्न िो िर यता
• बौिायन, नारद, याज्ञिल्ि, िात्यायन: स्त्त्रीिन िी उत्तराधििार पुत्री
• भमताक्षरा : पुरुष िा िन पुत्र िो तथा स्त्त्री िा िन पुत्री िो भमलना चाहहए
• िालांतर मे सिी प्रिार िी पुबत्रयों िो समान अधििार
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• मनु : स्त्त्री िन पर पुत्र-पुत्री िा साथ-साथ एिं समान अधििार
• पराशर : स्त्त्रीिन िी एिमात्र उत्तराधििाररणी ि
ु मार िन्या। उसि
े अिाि
में वििाहहत पुत्री तथा पुत्र बराबर ि
े अधििार
• नारद : मृत िन्याओ िी संतानों िो पुत्रों िी तुलना में प्राथभमिता
• भमताक्षरा : िन्या ि
े अिाि में पुत्रों िो दायाद माना
• दायिाग : िन्या एिं पुत्र बराबर ि
े अधििार
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
िात्यायन:
• स्त्त्रीिन ि
े उत्तराधििार में िर यता ि
ु मार िन्या िो
• ि
ु मार िन्या ि
े अिाि मे वििाहहत िन्या अपने िाई ि
े साथ दायाद
• इन दोनों ि
े ना रहने पर विििा िन्या दायाद
• वपतृ एिं मातृ ि
ु ल ि
े संबंधियों द्िारा हदया िन उन्ह िो प्रातत और उनि
े अिाि
मे पनत िो प्रातत
• ननस्त्संतान मरने पर अचल संपवत्त िाई िो
• शास्त्त्रानुमोहदत वििाह नह ं होने पर ननस्त्संतान स्त्त्री िा स्त्त्रीिन उसि
े माता वपता िो
प्रातत
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• मनु : ब्रह्म,दैि,आषष,प्राजापत्य,गांििष वििाह प्रिारों से वििाहहत स्त्त्री ि
े
ननस्त्संतान मरने पर स्त्त्री िन उसि
े पनत िो भमलता है। परंतु आसुर, राक्षस
एिं पैशाच वििाह प्रिार से वििाहहत स्त्त्री ि
े संतानह न मरने पर उसिा
स्त्त्रीिन उसि
े माता वपता िो प्रातत
• याज्ञिल्ि : समान प्रारूप। गांििष िी धगनती आसुर ि
े साथ
• िौहटल्य : पुत्र-पुत्री स्त्त्रीिन बाँट लेते है। पुत्र ि
े अिाि में पुबत्रयाँ आपस में
बाँट लेती है। पुत्री-पुत्र ि
े अिाि में पनत िो प्रातत। परंतु शुल्ि, अन्िािेय,
बंिु दत्त-उसि
े संबंधियों िो प्रातत
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• भमताक्षरा : स्त्त्री िन ि
े प्रिार ि
े आिार अनुसार दायाद क्रम िा ननिाषरण
• शुल्ि = सगे िाई िो प्रातत। सगे िाई ि
े अिाि में माता िो
• ि
ु मार िन्या िा स्त्त्रीिन = सहोदर िाई, माता, वपता , ननिटतम सवपंड
• अन्य प्रिार = ि
ु मार िन्या, ननिषन वििाहहत िन्या, िनी वििाहहत िन्या,
पुत्री िी पुबत्रयाँ,पुत्री ि
े पुत्र,सब पुत्र, पौत्र, पनत,पनत ि
े उत्तराधििार
• व्याभिचाररणी स्त्त्री िी उत्तराधििार पा सिती है किन्तु ि
ु मार पुबत्रयों ि
े
पचचात ह
स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार : दायाद क्रम
दायिाग
• शुल्ि = सहोदर िाई, माता,वपता
• यौति = अवििाहहत एिं आिाग्दत्ता पुबत्रयाँ, िाददत्त पुबत्रयाँ, पुत्रिती वििाहहत
िन्या, विििा पुत्री, पुत्र, पुबत्रयों ि
े पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र,विमाता पुत्र, विमाता पौत्र,
विमाता प्रपौत्र
• अन्िािेय= ि
ु छ अंतर ि
े साथ समान क्रम
• िह िन्या स्त्त्रीिन िी उत्तराधििार जो साध्िी हो.
स्त्त्रीिन िा महत्ि
• स्त्त्री िन वििाहहत हहन्दू स्त्त्री िा विशेष अधििार
• विधि एिं िमष सम्मत स्त्त्री िा सम्पवत्ति अधििार
• भिन्न प्रिार ि
े स्त्त्रोतों द्िारा प्रातत भिन्न भिन्न प्रिार िी संपवत्त िा द्योति
• ि
ु छ पर पूणषरूपेण स्त्त्री िा स्त्ित्ि, ि
ु छ पर पनत ि
े साथ सह स्त्िाभमत्ि
• उपिोग हेतु विशेष प्राििान
• ननयम उल्लंघन पर दंड वििान
• स्त्त्रीिन ि
े उत्तराधििार िा विशेष दायाद क्रम

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  • 1. BA V Sem BHU वििाह विधि By Prachi Virag Sontakke
  • 2. वििाह • पवित्र • लौकिि-पारलौकिि महत्ता • प्रिार : अपनी सीमाएँ , गुण , दोष • शास्त्त्र सम्मत एिं मान्य : ब्रह्म ,आषष, दैि, प्राजापत्य • गांििष , आसुर • ननिृ ष्ट : राक्षस , पैशाच • अन्य प्रिार : स्त्ियंिर, अनुलोम-प्रनतलोम
  • 6. धर्म पालन संतानोत्पत्ति रतत सुख पूततम ऋण र्ुक्तत त्तििाह क े उद्देश्य
  • 7. वििाह हेतु आयु : िर • िोई ननश्चचत आयु नह ं • िेदाध्ययन ि े उपरांत • िेदाध्ययन समाश्तत िी अिधि भिन्न : 12, 24, 36,48 • मनु : 30 िषष िा पुरुष 12 िषष िी लड़िी या 24 िा पुरुष 8 िषष िी लड़िी से वििाह िर सिता है • विष्णुपुराण : िन्या एिं िर िी आयु िा अनुपात 1:3 होना चाहहए
  • 8. वििाह हेतु आयु : ििू • ऋग्िेद : किसी िी अिस्त्था में वििाह • गुह्यसूत्र + िमषसूत्र : युिािस्त्था ि े ननिट वििाह / यौिना होने से पूिष वििाह • गौतम + िभशष्ठ : िन्या िर से अिस्त्था में छोट होनी चाहहए • महािारत : ऐसी िन्या िी उपमा जो 60 िषष ि े पुरुष से वििाह हेतु तैयार नह ं • गौतम : यहद वििाह योग्य िन्या वपता द्िारा वििाहहत नह ं िी जा सि े तो िह 3 मास िी अिधि पार िर अपने मन अनुि ू ल पनत िा िरण िर सिती है
  • 9. वििाह हेतु पात्रता • िश्जषत ननिट संबंिी : सगोत्र-सवपंड • अल्पियस्त्ि नह ं : िय सीमा अस्त्पष्ट • शार ररि-मानभसि रूप से अस्त्िस्त्थ नह ं : व्यिहाररि ननषेि • बड़ा िाई अवििाहहत नह ं • पत्नी जीवित
  • 10. वििाह हेतु पात्रता : िन्या • याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या ह योग्य • वििाह ि े भलए िचनबद्ि िन्या से अन्य िा वििाह नह ं • सििा-विििा नह ं • प्रिट-सूक्ष्म दुगुषण यु्त • बड़ी बहन अवििाहहत • याज्ञिल््य : भ्राताह न नह ं • मनु : िन्या िले ह आजीिन अवििाहहत रह जाए परंतु वपता उसिा सद्गुणविह न व्यश््त से वििाह ना िरे • बौिायन िमषसूत्र : िन्या िा वििाह शीघ्र िले ह िर गुण ह न • याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या
  • 11. वििाह विधि • िाग्दान : वपता / िाई द्िारा िचन • स्त्िीिृ नत : दोनों पक्षों िी सहमनत- िचनबद्िता • िैिाननि महत्त्ि स्त्िीिृ नत िा ज्यादा • भमताक्षरा : विशेष श्स्त्थनत में िचन िंग िा प्राििान –अपराि नह ं • महािारत : पाणण ग्रहण ति िन्या िो िोई िी मांग सिता है
  • 12. वििाह ि े िैिाननि पररणाम • पनत-पत्नी िा एि दूसरे पर आधिपत्य • परंतु अधििारों िी समानता नह ं • िाभमषि क्षेत्र ि े अनतरर्त पृथि अश्स्त्तत्ि • िैिाहहि अधििारों ि े उल्लंघन पर प्रनतिार िी अनुमनत • पनत ि े क्र ू र/ ननष्ठु र व्यिहार पर पत्नी िो िैिाहहि अधििारों ि े सम्पादन हेतु बाध्य नह ं िर सिते • व्याभिचार : घोर पाप-िीषण अपराि = िठोर दंड • व्याभिचार िा क्षेत्र व्यापि : एिांत में िाताषलाप, िस्त्त्रािूषण छ ू ना
  • 13. पत्नी ि े सांपवत्ति अधििार • मनु : पत्नी, पुत्र, दास िी सामान्य तौर पर अपनी िोई संपवत्त नह ं । िह िो जो िन िमाये िह स्त्िामी िा। • आपस्त्तंि : पनत-पत्नी ि े बीच वििाजन िा िोई प्रचन ह नह ं उठता • पनत िी अनुपश्स्त्थनत में यहद पत्नी औधचत्यपूणष ढंग से िेंट दे तो िह चोर नह ं • पत्नी संयु्त संपवत्त मे अंशहर • याज्ञिल्ि : स्त्त्री िन ि े अिाि मे पुत्र ि े समान िाग प्रातत • भमताक्षरा : यहद स्त्त्री िन प्रातत तो पुत्र ि े िाग िा आिा िाग प्रातत • दायिाग : ि े िल पुत्रह न पश्त्नयों िो ह अधििार माना है
  • 14. बहुपत्नीत्ि • हहन्दू विधि ि ु छ विशेष पररश्स्त्थतधथयों में ह पुरुष िो एि से अधिि जीवित पश्त्नयाँ रखने िा वििान िरती है। • बहुपत्नीत्ि वििाह किसी िी दशा में विधि विरुद्ि नह ं था • ननषेि व्यािहाररि नह ं मात्र ननदेशात्मि • शास्त्त्र : अवप्रय बोलने मात्र से ह िोई पुरुष अपनी पत्नी िी उपेक्षा िरि े दूसरा वििाह िर सिता है • मनु : प्रथम वििाह अपनी ह जानत िी स्त्त्री ि े साथ मान्य किन्तु यहद िोई पुरुष दूसरा वििाह िरना चाहे तो अपने से ननम्न जानत िी स्त्त्री ि े साथ ह िर सिता है
  • 15. ऋण िुगतान • याज्ञिल््य : पनत-पत्नी एि दूसरे ि े ऋण ि े भलए उत्तरदायी अगर ऋण पाररिाररि हहत हेतु भलया गया है • नारद : पत्नी बाध्य नह ं ऋण िुगतान हेतु • िात्यायन : पत्नी/माता ि े ऋण पर पनत/पुत्र तिी उत्तरदायी जब उनिी स्त्िीिृ नत से ऋण भलया गया हो या िह ऋण पाररिाररि हहत हेतु हो.
  • 16. संतान संबंिी वििाह विधि • संतानोत्पनत वििाह िा अननिायष ितषव्य • वििाह िा प्रिार संतान िी िैिता ननिाषररत िरता है • शास्त्त्रानुमोहदत ढंग से उत्पन्न पुत्र िैि • िैि संतानों िा स्त्िािाविि संरक्षि • संतानों पर पूणष अधििार : दत्ति देने िा अधििार • दायिाग : तब ति संतान िा िरण-पोषण जब ति असहाय-असमथष • भमताक्षरा : संतान िा िरण-पोषण जीिन िर = पुत्र अंशहर
  • 17. वििाह विच्छेद • सामान्य सािारण अथष में विच्छेद अज्ञात • हहन्दू वििाह = िाभमषि संस्त्िार =पवित्र गठबंिन : संविदा नह ं • मृत्यु पयंत िा संबंि • मनु : ना विक्रय द्िारा, ना पररत्याग द्िारा पत्नी िो अलग िर सिता है पनत • पनत िी मृत्यु पचचात िी पत्नी िो वििाह िी अनुमनत नह ं • पराशर + नारद : विशेष पररश्स्त्थनत में पुत्र उत्पवत्त हेतु वििाह िी अनुमनत प्रदान • परंतु ऐसे वििाह से उत्पन्न पुत्र िी सामाश्जि उपेक्षा ि े प्रमाण • पत्नी पररत्याग िा उल्लेख
  • 18. पत्नी पररत्याग ि े मान्य आिार • मादि द्रव्यों िा सेिन • अनैनति व्यिहार : साहस / संग्रहण (बल से, िोखे से, िामवपपासा से) • संतानोत्पवत्त मे असमथष • दुरिाषी • मनु : स्त्िेच्छाचाररणी पत्नी िा पररत्याग िर सिते है परंतु उसिा िि नह ं िर सिते है
  • 19. परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट • ि ु छ िमष शास्त्त्रों में स्त्त्री द्िारा परगमन िो ि े िल उप-पाति (हलि े -फ ु ल्ि े पाप) िी श्रेणी में रखा गया है • सामान्यतः पारगमन पाप - ि ु छ ग्रंथों में प्रायश्चचत िा वििान • अन्य में यह माना गया कि परगमन से उत्पन्न दोष माभसि िमष पचचात स्त्ियं दूर हो जाता है • नारद स्त्मृनत : यहद िोई स्त्त्री पारगमन िी श्स्त्थनत में पिड़ी जाए तो उसिा मुंडन िरा देना चाहहए, ह न शय्या, सामान्य िोजन देना चाहहये तथा उसे घर िी साफ सफाई में समय व्यतीत िरना चाहहये • विधि,ऐसे अपराि में भलतत व्यश््त िी सामाश्जि श्स्त्थनत पर िी ननिषर
  • 20. परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट • स्त्मृनत ग्रंथ : पत्नी ि े परगमन पर पनत द्िारा उसिा पररत्याग • आपस्त्तंि : वििाहहत नार ि े साथ संिोग िरने िाले िा भशचन एिं अंड िाटने िा वििान • नारद : भशचन ितषन िा दंड • मत्स्त्य पुराण : ब्राह्मण िो छोड़िर िर अन्य जानत ि े पुरुष िो प्राण दंड / भशचन ितषन • िौहटल्य + याज्ञिल््य : प्रव्रश्जतागमन पर मात्र 24 पण िा दंड
  • 21. पनत पररत्याग ि े मान्य आिार • पनत अनुपश्स्त्थत • ि े िल ननदषयता, नतरस्त्िार, क्र ू र व्यिहार पररत्याग ि े न्यायोधचत आिार नह ं • मनु : पनत पागल ,जघन्य अपरािी, नपुंसि हो तो उसिी उपेक्षा िी जा सिती है परंतु पररत्याग नह ं • पाराशर + नारद : ऐसी श्स्त्थनत में पनत ि े पूणष पररत्याग िी छ ू ट
  • 22. पररत्याग : पत्नी ि े अधििार • बबना औधचत्य ि े पनत िा त्याग िरने पर पत्नी गुजारा पाने िी हिदार नह ं • पनत यहद पत्नी द्िारा पररत्याग िरने पर आपवत्त नह ं िरता और बाद मे यहद पत्नी पुनः पनत ि े पास आना चाहे और पनत इसि े भलए तैयार ना हो तो िह पत्नी िी पनत से गुजारा पाने िी हिदार • यहद िफादार-ितषव्यपरायण पत्नी िा पररत्याग पनत िरे तो पत्नी संपवत्त ि े 1/3 हहस्त्सा अपने गुजारे ि े रूप मे मांग सिती है। • यह पत्नी स्त्ियं पनत िा पररत्याग िरे तो सशतष गुजरा • दुचचररत पत्नी िो गुजारे से िंधचत रखा गया है • गुजारा भमलने ि े पचचात अगर पत्नी दुराचार हुई तो गुजारा िापस लेने िा ननयम • नारद : िृ तघ्न पत्नी िो दंड स्त्िरूप ह न शय्या, तुच्छ िोजन, ननिृ ष्ट आिास
  • 23. स्त्त्री िन: स्त्िरूप • हहन्दू विधि िा श््लष्टम अंश • अत्यंत दुरूह एिम व्यापि स्त्िरूप: िई व्याख्याएँ उपलब्ि • पयाषतत मतिेद = संघषष िा उिषर क्षेत्र • स्त्त्रीिन िई स्त्त्रोतों से प्रातत = िेंट / क्रय / उत्तराधििार • उपिोग ि े अधििार स्त्त्रीिन ि े प्रिार पर आिाररत • दुरोपयोग पर दंड िा प्राििान • विशेष श्स्त्थनत में स्त्ित्ि िी समाश्तत = राजिेद, परपुरुष गमन , समाज विरोिी व्यसन • स्त्त्री िन ि े उत्तराधििार िा पृथि दायाद क्रम
  • 24. उत्पवत्त • िाणे + िेदालन्िार : िैहदि युग में वििाह ि े समय द गई िेंट • अ.स.अल्तेिर : शुल्ि प्रथा=िर द्िारा वििाह हेतु ििूपक्ष से भलया गया िन • शुल्ि प्रथा िैहदि िाल न नह ं • ग़ौतम ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िा उल्लेख किया परंतु पररिावषत नह ं • िौहटल्य ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िी पररिाषा द
  • 25. अथष • िौहटल्य : िृवत्त + आबध्य • िृवत्त = जीिनिृवत्त: िू-संपवत्त, सोना। अधिि से अधिि 2000 पण • आबध्य = जो शर र में बांिा जा सि े - आिूषण, िस्त्त्र। िोई सीमा नह ं • िात्यायन + व्यास : िौहटल्य से सहमत • पी.िी.िाणे : िह िन श्जसे स्त्त्री वििाहोपरांत स्त्ियं ि े श्रम से अश्जषत िरती है िह स्त्त्री िन नह ं है • विज्ञानेचिर : किसी िी प्रिार िा िन स्त्त्री िन बन सिता है चाहे िह स्त्त्री द्िारा किसी पुरुष िी विििा ि े रूप मे उत्तराधििार में प्रातत हो या किसी पुरुष िी माता/पत्नी िी हैभसयत से वििाजन में।
  • 26. स्त्त्री िन : दायिाग ि े अनुसार • स्त्त्रीिन िह है श्जसिा पनत से स्त्ितंत्र रहते पत्नी दान,विक्रय एिं उपिोग िर सि े . • भशल्प, िौशल, श्रम से अश्जषत संपवत्त/िन स्त्त्री िन नह ं • संबंिी से भिन्न व्यश््त से प्रातत िेंट स्त्त्री िन नह ं • उत्तराधििार मे प्रातत स्त्थािर संपवत्त स्त्त्री िन नह ं
  • 27. स्त्त्री िन ि े प्रिार • मनु : 6 प्रिार • अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि े समक्ष हदया गया • अध्यािहननि = विदाई में हदया गया • प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया • प्रीनतिमष = माता वपता िाई द्िारा हदया गया • अन्िािेय = वििाह ि े बाद भमलने िाल िेंट • आधििेदननि = पनत द्िारा दूसरा वििाह िरने पर प्रथम पत्नी िो हदया गया
  • 28. स्त्त्री िन ि े प्रिार • िात्यायन : 6 प्रिार • अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि े समक्ष हदया गया • अध्यािहननि = विदाई में हदया गया • प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया • अन्िािेय = पनत ि ु ल से प्रातत िेंट • शुल्ि = गृहस्त्थी से संबंधित िेंट - बतषन, पशु, सेिि • सौदानयि = िन्या ि े रूप मे मायि े से प्रातत + पत्नी ि े रूप मे ससुराल से प्रातत
  • 29. स्त्त्री िन ि े प्रिार व्यिहार मयूख : 2 प्रिार • पाररिावषि = िह स्त्त्री िन श्जसिो ऋवषयों ने बताया • अपाररिावषि = िह िन जो वििाजन/भशल्प से प्रातत अन्य : • सौदानयि : िन्या ि े रूप मे मायि े से प्रातत + पत्नी ि े रूप मे ससुराल से प्रातत • असौदानयि : भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन
  • 30. स्त्त्री िन िा उपिोग: स्त्ियं द्िारा िात्यायन : • ि ु मार स्त्त्री = सिी प्रिार ि े स्त्त्री िन िा मनोनुि ू ल उपिोग िर सिती है • विििा = पनत द्िारा प्रदत्त अचल संपवत्त िो छोड़िर सिी प्रिार ि े स्त्त्री िन िा उपयोग िर सिती है • सििा स्त्त्री : ि े िल सौदानयि स्त्त्रीिन िा ह व्यय िर सिती है देिल : सौदानयि + िन + शुल्ि + लाि + आिूषण – सिी िा पूणष उपिोग
  • 31. स्त्त्री िन िा उपिोग : अन्य द्िारा • विपवत्त िाल में िी वपता, पनत, पुत्र स्त्त्री िन िा उपयोग नह ं िर सिते • िात्यायन : यहद पनत, वपता, पुत्र, िाई स्त्त्रीिन िा उपयोग उसिी इच्छा ि े विरुद्ि बल पूिषि िरते है तो िे न ि े िल ब्याज सहहत इस िन िो लौटाने ि े भलए ह बाध्य है बश्ल्ि िे इस अनाधििृ त िायष ि े भलए दंड ि े िी िोगी है • यहद िे स्त्त्री िी अनुमनत से स्त्त्री िन िा उपयोग िरते है तो िनी होने पर उन्हे िन िापस िर देना चाहहए • मनु : स्त्त्री िन िा अनाधििृ त उपयोग िरने िाले दायदों ि े भलए राज्य द्िारा दंड िा वििान
  • 32. असौदानयि स्त्त्रीिन िा उपिोग • असौदानयि स्त्त्रीिन = भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन • िात्यायन : भशल्प एिं संबंधियों से प्रातत िन पर पनत िा स्त्िाभमत्ि • दायिाग : इस िन िा उपयोग पनत विपवत्त में ना रहने पर िी स्त्िेच्छा से िर सिता है • पनत िी मृत्यु ि े पचचात ह स्त्त्री असौदानयि स्त्त्रीिन िा व्यय स्त्िेच्छा से िर सिती है • उसिी मृत्यु उपरांत उस िन ि े दायाद पनत ि े नह ं उसि े उत्तराधििार होंगे
  • 33. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम • एिरूप व्यिस्त्था नह ं • लोिाचार एिं िालानुक्रम ि े अनुसार • गौतम : स्त्त्रीिन सिषप्रथम पुबत्रयों िो भमलता है। ि ु मार िन्याओं िो िर यता तथा वििाहहतों में सम्पन्न िी तुलना में विपन्न िो िर यता • बौिायन, नारद, याज्ञिल्ि, िात्यायन: स्त्त्रीिन िी उत्तराधििार पुत्री • भमताक्षरा : पुरुष िा िन पुत्र िो तथा स्त्त्री िा िन पुत्री िो भमलना चाहहए • िालांतर मे सिी प्रिार िी पुबत्रयों िो समान अधििार
  • 34. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम • मनु : स्त्त्री िन पर पुत्र-पुत्री िा साथ-साथ एिं समान अधििार • पराशर : स्त्त्रीिन िी एिमात्र उत्तराधििाररणी ि ु मार िन्या। उसि े अिाि में वििाहहत पुत्री तथा पुत्र बराबर ि े अधििार • नारद : मृत िन्याओ िी संतानों िो पुत्रों िी तुलना में प्राथभमिता • भमताक्षरा : िन्या ि े अिाि में पुत्रों िो दायाद माना • दायिाग : िन्या एिं पुत्र बराबर ि े अधििार
  • 35. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम िात्यायन: • स्त्त्रीिन ि े उत्तराधििार में िर यता ि ु मार िन्या िो • ि ु मार िन्या ि े अिाि मे वििाहहत िन्या अपने िाई ि े साथ दायाद • इन दोनों ि े ना रहने पर विििा िन्या दायाद • वपतृ एिं मातृ ि ु ल ि े संबंधियों द्िारा हदया िन उन्ह िो प्रातत और उनि े अिाि मे पनत िो प्रातत • ननस्त्संतान मरने पर अचल संपवत्त िाई िो • शास्त्त्रानुमोहदत वििाह नह ं होने पर ननस्त्संतान स्त्त्री िा स्त्त्रीिन उसि े माता वपता िो प्रातत
  • 36. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम • मनु : ब्रह्म,दैि,आषष,प्राजापत्य,गांििष वििाह प्रिारों से वििाहहत स्त्त्री ि े ननस्त्संतान मरने पर स्त्त्री िन उसि े पनत िो भमलता है। परंतु आसुर, राक्षस एिं पैशाच वििाह प्रिार से वििाहहत स्त्त्री ि े संतानह न मरने पर उसिा स्त्त्रीिन उसि े माता वपता िो प्रातत • याज्ञिल्ि : समान प्रारूप। गांििष िी धगनती आसुर ि े साथ • िौहटल्य : पुत्र-पुत्री स्त्त्रीिन बाँट लेते है। पुत्र ि े अिाि में पुबत्रयाँ आपस में बाँट लेती है। पुत्री-पुत्र ि े अिाि में पनत िो प्रातत। परंतु शुल्ि, अन्िािेय, बंिु दत्त-उसि े संबंधियों िो प्रातत
  • 37. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम • भमताक्षरा : स्त्त्री िन ि े प्रिार ि े आिार अनुसार दायाद क्रम िा ननिाषरण • शुल्ि = सगे िाई िो प्रातत। सगे िाई ि े अिाि में माता िो • ि ु मार िन्या िा स्त्त्रीिन = सहोदर िाई, माता, वपता , ननिटतम सवपंड • अन्य प्रिार = ि ु मार िन्या, ननिषन वििाहहत िन्या, िनी वििाहहत िन्या, पुत्री िी पुबत्रयाँ,पुत्री ि े पुत्र,सब पुत्र, पौत्र, पनत,पनत ि े उत्तराधििार • व्याभिचाररणी स्त्त्री िी उत्तराधििार पा सिती है किन्तु ि ु मार पुबत्रयों ि े पचचात ह
  • 38. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार : दायाद क्रम दायिाग • शुल्ि = सहोदर िाई, माता,वपता • यौति = अवििाहहत एिं आिाग्दत्ता पुबत्रयाँ, िाददत्त पुबत्रयाँ, पुत्रिती वििाहहत िन्या, विििा पुत्री, पुत्र, पुबत्रयों ि े पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र,विमाता पुत्र, विमाता पौत्र, विमाता प्रपौत्र • अन्िािेय= ि ु छ अंतर ि े साथ समान क्रम • िह िन्या स्त्त्रीिन िी उत्तराधििार जो साध्िी हो.
  • 39. स्त्त्रीिन िा महत्ि • स्त्त्री िन वििाहहत हहन्दू स्त्त्री िा विशेष अधििार • विधि एिं िमष सम्मत स्त्त्री िा सम्पवत्ति अधििार • भिन्न प्रिार ि े स्त्त्रोतों द्िारा प्रातत भिन्न भिन्न प्रिार िी संपवत्त िा द्योति • ि ु छ पर पूणषरूपेण स्त्त्री िा स्त्ित्ि, ि ु छ पर पनत ि े साथ सह स्त्िाभमत्ि • उपिोग हेतु विशेष प्राििान • ननयम उल्लंघन पर दंड वििान • स्त्त्रीिन ि े उत्तराधििार िा विशेष दायाद क्रम