8. वििाह हेतु आयु : ििू
• ऋग्िेद : किसी िी अिस्त्था में वििाह
• गुह्यसूत्र + िमषसूत्र : युिािस्त्था ि
े ननिट वििाह / यौिना होने से पूिष वििाह
• गौतम + िभशष्ठ : िन्या िर से अिस्त्था में छोट होनी चाहहए
• महािारत : ऐसी िन्या िी उपमा जो 60 िषष ि
े पुरुष से वििाह हेतु तैयार नह ं
• गौतम : यहद वििाह योग्य िन्या वपता द्िारा वििाहहत नह ं िी जा सि
े तो िह 3
मास िी अिधि पार िर अपने मन अनुि
ू ल पनत िा िरण िर सिती है
9. वििाह हेतु पात्रता
• िश्जषत ननिट संबंिी : सगोत्र-सवपंड
• अल्पियस्त्ि नह ं : िय सीमा अस्त्पष्ट
• शार ररि-मानभसि रूप से अस्त्िस्त्थ नह ं : व्यिहाररि ननषेि
• बड़ा िाई अवििाहहत नह ं
• पत्नी जीवित
10. वििाह हेतु पात्रता : िन्या
• याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या ह योग्य
• वििाह ि
े भलए िचनबद्ि िन्या से अन्य िा वििाह नह ं
• सििा-विििा नह ं
• प्रिट-सूक्ष्म दुगुषण यु्त
• बड़ी बहन अवििाहहत
• याज्ञिल््य : भ्राताह न नह ं
• मनु : िन्या िले ह आजीिन अवििाहहत रह जाए परंतु वपता उसिा सद्गुणविह न व्यश््त
से वििाह ना िरे
• बौिायन िमषसूत्र : िन्या िा वििाह शीघ्र िले ह िर गुण ह न
• याज्ञिल््य + मनु : अक्षत योनन िाल सजातीय िन्या
11. वििाह विधि
• िाग्दान : वपता / िाई द्िारा िचन
• स्त्िीिृ नत : दोनों पक्षों िी सहमनत-
िचनबद्िता
• िैिाननि महत्त्ि स्त्िीिृ नत िा ज्यादा
• भमताक्षरा : विशेष श्स्त्थनत में िचन िंग
िा प्राििान –अपराि नह ं
• महािारत : पाणण ग्रहण ति िन्या िो
िोई िी मांग सिता है
12. वििाह ि
े िैिाननि पररणाम
• पनत-पत्नी िा एि दूसरे पर आधिपत्य
• परंतु अधििारों िी समानता नह ं
• िाभमषि क्षेत्र ि
े अनतरर्त पृथि अश्स्त्तत्ि
• िैिाहहि अधििारों ि
े उल्लंघन पर प्रनतिार िी
अनुमनत
• पनत ि
े क्र
ू र/ ननष्ठु र व्यिहार पर पत्नी िो िैिाहहि
अधििारों ि
े सम्पादन हेतु बाध्य नह ं िर सिते
• व्याभिचार : घोर पाप-िीषण अपराि = िठोर दंड
• व्याभिचार िा क्षेत्र व्यापि : एिांत में िाताषलाप,
िस्त्त्रािूषण छ
ू ना
13. पत्नी ि
े सांपवत्ति अधििार
• मनु : पत्नी, पुत्र, दास िी सामान्य तौर पर अपनी िोई संपवत्त नह ं । िह िो जो
िन िमाये िह स्त्िामी िा।
• आपस्त्तंि : पनत-पत्नी ि
े बीच वििाजन िा िोई प्रचन ह नह ं उठता
• पनत िी अनुपश्स्त्थनत में यहद पत्नी औधचत्यपूणष ढंग से िेंट दे तो िह चोर नह ं
• पत्नी संयु्त संपवत्त मे अंशहर
• याज्ञिल्ि : स्त्त्री िन ि
े अिाि मे पुत्र ि
े समान िाग प्रातत
• भमताक्षरा : यहद स्त्त्री िन प्रातत तो पुत्र ि
े िाग िा आिा िाग प्रातत
• दायिाग : ि
े िल पुत्रह न पश्त्नयों िो ह अधििार माना है
14. बहुपत्नीत्ि
• हहन्दू विधि ि
ु छ विशेष पररश्स्त्थतधथयों में ह पुरुष िो एि से अधिि जीवित
पश्त्नयाँ रखने िा वििान िरती है।
• बहुपत्नीत्ि वििाह किसी िी दशा में विधि विरुद्ि नह ं था
• ननषेि व्यािहाररि नह ं मात्र ननदेशात्मि
• शास्त्त्र : अवप्रय बोलने मात्र से ह िोई पुरुष अपनी पत्नी िी उपेक्षा िरि
े दूसरा
वििाह िर सिता है
• मनु : प्रथम वििाह अपनी ह जानत िी स्त्त्री ि
े साथ मान्य किन्तु यहद िोई पुरुष
दूसरा वििाह िरना चाहे तो अपने से ननम्न जानत िी स्त्त्री ि
े साथ ह िर सिता
है
15. ऋण िुगतान
• याज्ञिल््य : पनत-पत्नी एि दूसरे ि
े ऋण ि
े भलए उत्तरदायी अगर ऋण
पाररिाररि हहत हेतु भलया गया है
• नारद : पत्नी बाध्य नह ं ऋण िुगतान हेतु
• िात्यायन : पत्नी/माता ि
े ऋण पर पनत/पुत्र तिी उत्तरदायी जब उनिी
स्त्िीिृ नत से ऋण भलया गया हो या िह ऋण पाररिाररि हहत हेतु हो.
16. संतान संबंिी वििाह विधि
• संतानोत्पनत वििाह िा अननिायष ितषव्य
• वििाह िा प्रिार संतान िी िैिता ननिाषररत िरता है
• शास्त्त्रानुमोहदत ढंग से उत्पन्न पुत्र िैि
• िैि संतानों िा स्त्िािाविि संरक्षि
• संतानों पर पूणष अधििार : दत्ति देने िा अधििार
• दायिाग : तब ति संतान िा िरण-पोषण जब ति असहाय-असमथष
• भमताक्षरा : संतान िा िरण-पोषण जीिन िर = पुत्र अंशहर
17. वििाह विच्छेद
• सामान्य सािारण अथष में विच्छेद अज्ञात
• हहन्दू वििाह = िाभमषि संस्त्िार =पवित्र गठबंिन : संविदा नह ं
• मृत्यु पयंत िा संबंि
• मनु : ना विक्रय द्िारा, ना पररत्याग द्िारा पत्नी िो अलग िर सिता है पनत
• पनत िी मृत्यु पचचात िी पत्नी िो वििाह िी अनुमनत नह ं
• पराशर + नारद : विशेष पररश्स्त्थनत में पुत्र उत्पवत्त हेतु वििाह िी अनुमनत प्रदान
• परंतु ऐसे वििाह से उत्पन्न पुत्र िी सामाश्जि उपेक्षा ि
े प्रमाण
• पत्नी पररत्याग िा उल्लेख
18. पत्नी पररत्याग ि
े मान्य आिार
• मादि द्रव्यों िा सेिन
• अनैनति व्यिहार : साहस / संग्रहण (बल से, िोखे से, िामवपपासा से)
• संतानोत्पवत्त मे असमथष
• दुरिाषी
• मनु : स्त्िेच्छाचाररणी पत्नी िा पररत्याग िर सिते है परंतु उसिा िि नह ं
िर सिते है
19. परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट
• ि
ु छ िमष शास्त्त्रों में स्त्त्री द्िारा परगमन िो ि
े िल उप-पाति (हलि
े -फ
ु ल्ि
े पाप) िी श्रेणी
में रखा गया है
• सामान्यतः पारगमन पाप - ि
ु छ ग्रंथों में प्रायश्चचत िा वििान
• अन्य में यह माना गया कि परगमन से उत्पन्न दोष माभसि िमष पचचात स्त्ियं दूर हो
जाता है
• नारद स्त्मृनत : यहद िोई स्त्त्री पारगमन िी श्स्त्थनत में पिड़ी जाए तो उसिा मुंडन िरा
देना चाहहए, ह न शय्या, सामान्य िोजन देना चाहहये तथा उसे घर िी साफ सफाई में
समय व्यतीत िरना चाहहये
• विधि,ऐसे अपराि में भलतत व्यश््त िी सामाश्जि श्स्त्थनत पर िी ननिषर
20. परगमन : िैिाननि दृश्ष्ट
• स्त्मृनत ग्रंथ : पत्नी ि
े परगमन पर पनत द्िारा उसिा पररत्याग
• आपस्त्तंि : वििाहहत नार ि
े साथ संिोग िरने िाले िा भशचन एिं अंड
िाटने िा वििान
• नारद : भशचन ितषन िा दंड
• मत्स्त्य पुराण : ब्राह्मण िो छोड़िर िर अन्य जानत ि
े पुरुष िो प्राण दंड /
भशचन ितषन
• िौहटल्य + याज्ञिल््य : प्रव्रश्जतागमन पर मात्र 24 पण िा दंड
21. पनत पररत्याग ि
े मान्य आिार
• पनत अनुपश्स्त्थत
• ि
े िल ननदषयता, नतरस्त्िार, क्र
ू र व्यिहार पररत्याग ि
े न्यायोधचत
आिार नह ं
• मनु : पनत पागल ,जघन्य अपरािी, नपुंसि हो तो उसिी उपेक्षा िी
जा सिती है परंतु पररत्याग नह ं
• पाराशर + नारद : ऐसी श्स्त्थनत में पनत ि
े पूणष पररत्याग िी छ
ू ट
22. पररत्याग : पत्नी ि
े अधििार
• बबना औधचत्य ि
े पनत िा त्याग िरने पर पत्नी गुजारा पाने िी हिदार नह ं
• पनत यहद पत्नी द्िारा पररत्याग िरने पर आपवत्त नह ं िरता और बाद मे यहद पत्नी पुनः पनत ि
े
पास आना चाहे और पनत इसि
े भलए तैयार ना हो तो िह पत्नी िी पनत से गुजारा पाने िी
हिदार
• यहद िफादार-ितषव्यपरायण पत्नी िा पररत्याग पनत िरे तो पत्नी संपवत्त ि
े 1/3 हहस्त्सा अपने
गुजारे ि
े रूप मे मांग सिती है।
• यह पत्नी स्त्ियं पनत िा पररत्याग िरे तो सशतष गुजरा
• दुचचररत पत्नी िो गुजारे से िंधचत रखा गया है
• गुजारा भमलने ि
े पचचात अगर पत्नी दुराचार हुई तो गुजारा िापस लेने िा ननयम
• नारद : िृ तघ्न पत्नी िो दंड स्त्िरूप ह न शय्या, तुच्छ िोजन, ननिृ ष्ट आिास
23. स्त्त्री िन: स्त्िरूप
• हहन्दू विधि िा श््लष्टम अंश
• अत्यंत दुरूह एिम व्यापि स्त्िरूप: िई व्याख्याएँ उपलब्ि
• पयाषतत मतिेद = संघषष िा उिषर क्षेत्र
• स्त्त्रीिन िई स्त्त्रोतों से प्रातत = िेंट / क्रय / उत्तराधििार
• उपिोग ि
े अधििार स्त्त्रीिन ि
े प्रिार पर आिाररत
• दुरोपयोग पर दंड िा प्राििान
• विशेष श्स्त्थनत में स्त्ित्ि िी समाश्तत = राजिेद, परपुरुष गमन , समाज विरोिी
व्यसन
• स्त्त्री िन ि
े उत्तराधििार िा पृथि दायाद क्रम
24. उत्पवत्त
• िाणे + िेदालन्िार : िैहदि युग में वििाह ि
े समय द गई िेंट
• अ.स.अल्तेिर : शुल्ि प्रथा=िर द्िारा वििाह हेतु ििूपक्ष से भलया गया िन
• शुल्ि प्रथा िैहदि िाल न नह ं
• ग़ौतम ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िा उल्लेख किया परंतु पररिावषत नह ं
• िौहटल्य ने सिषप्रथम स्त्त्री िन िी पररिाषा द
25. अथष
• िौहटल्य : िृवत्त + आबध्य
• िृवत्त = जीिनिृवत्त: िू-संपवत्त, सोना। अधिि से अधिि 2000 पण
• आबध्य = जो शर र में बांिा जा सि
े - आिूषण, िस्त्त्र। िोई सीमा नह ं
• िात्यायन + व्यास : िौहटल्य से सहमत
• पी.िी.िाणे : िह िन श्जसे स्त्त्री वििाहोपरांत स्त्ियं ि
े श्रम से अश्जषत िरती है
िह स्त्त्री िन नह ं है
• विज्ञानेचिर : किसी िी प्रिार िा िन स्त्त्री िन बन सिता है चाहे िह स्त्त्री
द्िारा किसी पुरुष िी विििा ि
े रूप मे उत्तराधििार में प्रातत हो या किसी पुरुष
िी माता/पत्नी िी हैभसयत से वििाजन में।
26. स्त्त्री िन : दायिाग ि
े अनुसार
• स्त्त्रीिन िह है श्जसिा पनत से स्त्ितंत्र रहते पत्नी दान,विक्रय एिं उपिोग िर सि
े .
• भशल्प, िौशल, श्रम से अश्जषत संपवत्त/िन स्त्त्री िन नह ं
• संबंिी से भिन्न व्यश््त से प्रातत िेंट स्त्त्री िन नह ं
• उत्तराधििार मे प्रातत स्त्थािर संपवत्त स्त्त्री िन नह ं
27. स्त्त्री िन ि
े प्रिार
• मनु : 6 प्रिार
• अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि
े समक्ष हदया गया
• अध्यािहननि = विदाई में हदया गया
• प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया
• प्रीनतिमष = माता वपता िाई द्िारा हदया गया
• अन्िािेय = वििाह ि
े बाद भमलने िाल िेंट
• आधििेदननि = पनत द्िारा दूसरा वििाह िरने पर प्रथम पत्नी िो
हदया गया
28. स्त्त्री िन ि
े प्रिार
• िात्यायन : 6 प्रिार
• अध्याश्ग्न = वििाह में अश्ग्न ि
े समक्ष हदया गया
• अध्यािहननि = विदाई में हदया गया
• प्रीनतदत्त = स्त्नेहिश हदया गया
• अन्िािेय = पनत ि
ु ल से प्रातत िेंट
• शुल्ि = गृहस्त्थी से संबंधित िेंट - बतषन, पशु, सेिि
• सौदानयि = िन्या ि
े रूप मे मायि
े से प्रातत + पत्नी ि
े रूप मे ससुराल से प्रातत
29. स्त्त्री िन ि
े प्रिार
व्यिहार मयूख : 2 प्रिार
• पाररिावषि = िह स्त्त्री िन श्जसिो ऋवषयों ने बताया
• अपाररिावषि = िह िन जो वििाजन/भशल्प से प्रातत
अन्य :
• सौदानयि : िन्या ि
े रूप मे मायि
े से प्रातत + पत्नी ि
े रूप मे ससुराल से
प्रातत
• असौदानयि : भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन
31. स्त्त्री िन िा उपिोग : अन्य द्िारा
• विपवत्त िाल में िी वपता, पनत, पुत्र स्त्त्री िन िा उपयोग नह ं िर सिते
• िात्यायन : यहद पनत, वपता, पुत्र, िाई स्त्त्रीिन िा उपयोग उसिी इच्छा ि
े विरुद्ि
बल पूिषि िरते है तो िे न ि
े िल ब्याज सहहत इस िन िो लौटाने ि
े भलए ह
बाध्य है बश्ल्ि िे इस अनाधििृ त िायष ि
े भलए दंड ि
े िी िोगी है
• यहद िे स्त्त्री िी अनुमनत से स्त्त्री िन िा उपयोग िरते है तो िनी होने पर उन्हे
िन िापस िर देना चाहहए
• मनु : स्त्त्री िन िा अनाधििृ त उपयोग िरने िाले दायदों ि
े भलए राज्य द्िारा दंड
िा वििान
32. असौदानयि स्त्त्रीिन िा उपिोग
• असौदानयि स्त्त्रीिन = भशल्प / श्रम / संबंधियों से प्रातत िन
• िात्यायन : भशल्प एिं संबंधियों से प्रातत िन पर पनत िा स्त्िाभमत्ि
• दायिाग : इस िन िा उपयोग पनत विपवत्त में ना रहने पर िी स्त्िेच्छा से
िर सिता है
• पनत िी मृत्यु ि
े पचचात ह स्त्त्री असौदानयि स्त्त्रीिन िा व्यय स्त्िेच्छा से
िर सिती है
• उसिी मृत्यु उपरांत उस िन ि
े दायाद पनत ि
े नह ं उसि
े उत्तराधििार होंगे
33. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• एिरूप व्यिस्त्था नह ं
• लोिाचार एिं िालानुक्रम ि
े अनुसार
• गौतम : स्त्त्रीिन सिषप्रथम पुबत्रयों िो भमलता है। ि
ु मार िन्याओं िो
िर यता तथा वििाहहतों में सम्पन्न िी तुलना में विपन्न िो िर यता
• बौिायन, नारद, याज्ञिल्ि, िात्यायन: स्त्त्रीिन िी उत्तराधििार पुत्री
• भमताक्षरा : पुरुष िा िन पुत्र िो तथा स्त्त्री िा िन पुत्री िो भमलना चाहहए
• िालांतर मे सिी प्रिार िी पुबत्रयों िो समान अधििार
34. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• मनु : स्त्त्री िन पर पुत्र-पुत्री िा साथ-साथ एिं समान अधििार
• पराशर : स्त्त्रीिन िी एिमात्र उत्तराधििाररणी ि
ु मार िन्या। उसि
े अिाि
में वििाहहत पुत्री तथा पुत्र बराबर ि
े अधििार
• नारद : मृत िन्याओ िी संतानों िो पुत्रों िी तुलना में प्राथभमिता
• भमताक्षरा : िन्या ि
े अिाि में पुत्रों िो दायाद माना
• दायिाग : िन्या एिं पुत्र बराबर ि
े अधििार
35. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
िात्यायन:
• स्त्त्रीिन ि
े उत्तराधििार में िर यता ि
ु मार िन्या िो
• ि
ु मार िन्या ि
े अिाि मे वििाहहत िन्या अपने िाई ि
े साथ दायाद
• इन दोनों ि
े ना रहने पर विििा िन्या दायाद
• वपतृ एिं मातृ ि
ु ल ि
े संबंधियों द्िारा हदया िन उन्ह िो प्रातत और उनि
े अिाि
मे पनत िो प्रातत
• ननस्त्संतान मरने पर अचल संपवत्त िाई िो
• शास्त्त्रानुमोहदत वििाह नह ं होने पर ननस्त्संतान स्त्त्री िा स्त्त्रीिन उसि
े माता वपता िो
प्रातत
36. स्त्त्रीिन िा उत्तराधििार: दायाद क्रम
• मनु : ब्रह्म,दैि,आषष,प्राजापत्य,गांििष वििाह प्रिारों से वििाहहत स्त्त्री ि
े
ननस्त्संतान मरने पर स्त्त्री िन उसि
े पनत िो भमलता है। परंतु आसुर, राक्षस
एिं पैशाच वििाह प्रिार से वििाहहत स्त्त्री ि
े संतानह न मरने पर उसिा
स्त्त्रीिन उसि
े माता वपता िो प्रातत
• याज्ञिल्ि : समान प्रारूप। गांििष िी धगनती आसुर ि
े साथ
• िौहटल्य : पुत्र-पुत्री स्त्त्रीिन बाँट लेते है। पुत्र ि
े अिाि में पुबत्रयाँ आपस में
बाँट लेती है। पुत्री-पुत्र ि
े अिाि में पनत िो प्रातत। परंतु शुल्ि, अन्िािेय,
बंिु दत्त-उसि
े संबंधियों िो प्रातत