2. पुत्र की अवधारणा
• व्युत्पवि : पुत्र ‘पुत’ नरमक न क से वपतर को बचरतर है
•
• शरस्त्त्र ग्रंथ : हहन्दू वववरह कर मूल उद्देश्य पुत्र प्ररप्तत
• शतपथ ब्ररह्मण : पुत्रोंत्पवि द्वर र ही वपतृ ऋण से मुप्तत
•
• यरज्ञवल्कतय : पुत्र स्त्वर्गलोक प्ररतत क रने वरलर
• पुत्र द्वर र आध्यरप्त्मक, िरर्मगक एवं लौककक उद्देश्यों की पूर्तग
3. SON’S SIGNIFICANCE AS PER TEXTS
• Endless are the worlds of those who have sons : Vasi DS. 17.2
• There is no place for the man who is destitute of male offspring: Ait. Br. 33.1.
• May our enemies be destitute of offspring : Vasi DS. 17.3; quoted from RV. 1-
21-5).
• May I obtain O Agni, immortality through offspring : Vasi DS. 17-4
• Through a son he a grandson he obtains immortality, but th obtains the
world of the sun : Vasi DS. 17.5, Manusmriti 9.137, Vishnu Sm.15.46
5. औरस Self-begotten
• शरस्त्त्र र्नयमरनुसर वववरहहत पत्नी से पर्त द्वर र उत्पन्न पुत्र = औ स
• शरस्त्त्र धनुसर ये ही एकमरत्र मुख्य पुत्र
• शेष पुत्र प्रकर र्ौण धथवर प्रर्तर्नधि पुत्र
• ककसी भी प्स्त्थर्त में औ स पुत्र कर ववकल्कप नहीं बन सकते धन्य पुत्र प्रकर
• पैतृक संपवि कर वरस्त्तववक र्नववगवरहदत उि रधिकर ी
• आपस्त्तंभ ने क
े वल औ स पुत्र को ही मरन्यतर दी है
6. पुत्रीकापुत्र
• दो प्रकर -
• पुत्रीकर: जब पुत्रहीन वपतर द्वर र पुत्री ही पुत्र क
े समरन र्नयुतत की जरए
• पुत्रीकरपुत्र : जब पुत्रहीन वपतर द्वर र पुत्री क
े पुत्र को पुत्र र्नयुतत ककयर जरए
• वैहदक करल से ऐसे संदभग प्ररतत
• र्नरुतत + यरस्त्क : भरई ववहीन कन्यर से वववरह नहीं तयोंकक वह धपने वपतर
कर पुत्र हो जरती है
• ऋग्वेद : भ्ररतृ ववहीन कन्यरओं क
े वववरह क
े र्लए कहिनरइयराँ । बहुदर वे वपतर
क
े घ ही क
ुं वर ी जीवन व्यतीत क ती है
• मनु + यरज्ञवल्कतय ने भी वववरह हेतु इस दृप्टि से सरविरन हने को कहर है
• शरस्त्त्रकर ों ने पुत्रीकरपुत्र को औ स क
े सरदृश्य ही मरनर है
• मनु : पुत्रीकरपुत्र क
े सरंपविक धधिकर औ स क
े तुल्कय
• करत्यरयन : पुत्रीकरपुत्र को औ स पुत्र कर तीस र/चौथर भरर् प्ररतत होतर है
7. क्षेत्रज
• वह पुत्र जो ककसी मृत , तलीव धथवर धसरध्य ोर्ी पुरुष की पत्नी शरस्त्त्र प्रर्तपरहदत
व्यवस्त्थर क
े धनुसर र्नयुतत धन्य पुरुष से उत्पन्न क ती है
• उत्पवि : बहुमरन्य एवं मयरगहदत र्नयोर् प्रथर से .
• धत्यंत कड़े र्नयम = धधिकर ों कर दुरुपयोर् नर हो
• क्षेत्रज को र्ौण पुत्रों में ऊ
ं चर स्त्थरन प्ररतत
• मनु + यरज्ञवल्कक +नर द : क्षेत्रज औ स क
े समरन ही दरयरद
• धधिकरंशतः शरस्त्त्रकर ों ने इसे पुत्रीकरपुत्र क
े बरद स्त्थरन हदयर है
• क्षेत्रज पुत्र प धधिकर संबंिी तीन शरस्त्त्र सम्मत मत-
1. र्नयोर् क
े र्लए र्नयुतत पुरुष कर
2. उस स्त्त्री कर वरस्त्तववक पर्त कर
3. दोनों कर सप्म्मर्लत धधिकर
8. क्षेत्रज पुत्र प धधिकर : र्नयोर् क
े र्लए र्नयुतत पुरुष
कर (बीजी)
• ऋग्वेद 7.4.8: औ स क
े धलरवर धन्य पुत्र धपने उत्परदक वपतर क
े
घ लौि आते है
• यरस्त्क + आपस्त्तंभ + बौिरयन : उत्परदक कर धधिकर
9. क्षेत्रज पुत्र प धधिकर : उस स्त्त्री कर वरस्त्तववक पर्त
कर (क्षेत्रत्रक)
• वर्शटि : यहद ककसी व्यप्तत कर बैल, दूस े व्यप्तत की र्रय से 100 बछड़े
उत्पन्न क े, तो वे बछड़े र्रयों क
े मरर्लक क
े होंर्े नर की बैल क
े स्त्वरमी क
े
• मनु : बरढ़-हवर द्वर र लरयर र्यर बीज प्जसक
े खेत में उर्तर है, उसक
े फल
कर वही स्त्वरमी नर की उसे बोने वरले कर
• मनु : प्जस वस्त्तु प ककसी कर पहले से धधिकर हो जरतर है, बरद में उस प
दूस े कर धधिकर नहीं हो सकतर। जैसे पृथ्वी प कई रजर हुए प पृथु
पहलर रजर थर औ उसक
े नरम प ही पृथ्वी कहलरती है
• मनु : मृर् पहले प्जस ती से मर जरतर है, उसी कर र्शकर कहलरतर है
10. क्षेत्रज पुत्र प धधिकर : सप्म्मर्लत धधिकर
• हर ीत : बीज क
े त्रबनर फल नहीं पैदर हो सकतर, क्षेत्र क
े त्रबनर बीज नहीं पैदर
हो सकतर । धतः दोनों कर समरन धधिकर
• बौिरयन + कौहिल्कय : क्षेत्रज दो वपतरओं कर पुत्र , उसक
े दो र्ोत्र होते है,
दोनों वपतरओं को वपंड देतर है, दोनों की संपवि लेतर है
• र्मतक्ष र : दो वपतरओं कर पुत्र होने क
े कर ण इस पुत्र को द्वयरमुषयरयण
कहर र्यर
11. क्षेत्रज पुत्र प धधिकर : संहदग्ि
• मनु : उत्परदन की दृप्टि से भले ही बीज प्रिरन है , ककन्तु स्त्वरर्मत्व
की दृप्टि से क्षेत्रज ही प्रिरन है
• मनु 9.190: पुत्र प उत्परदक कर धधिकर
• महरभर त : क्षेत्रत्रक कर धधिकर
• महरभर त : पुत्र उस पुरुष कर जो उसे उत्पन्न क तर है
12. र्नयोर् से प्ररतत पुत्र प धधिकर ककसकर ?
• क्षेत्रज कर धधिकर मरननर उपयुगतत
• यहद उसकर धधिकर नहीं, तो र्नयोर् कर धथग औ उद्देश्य ही
समरतत हो जरएर्र
13. दिक
• पुत्र नर होने प समरन जरतीय ककसी पुरुष को संकल्कप से धपने पुत्र को देने से वह
पुत्र दिक बन जरतर है
• दिक बनरने / देने / दिक की योग्यतर संबंिी र्नयमरवली उपलब्ि
• सरमरन्य रूप से दिक को औ स पुत्र क
े समरन ही धधिकर
• मनु : दिक धपने जनक वपतर क
े र्ोत्र एवं र तथ कर ह ण नहीं क तर नर ही उसकर
वपंड दरन क सकतर है
14. कृ त्रत्रम
• जब र्ुण-दोष क
े ववचर मे चतु , पुत्रों क
े र्ुणों से युतत, समरन जरतीय
ककसी व्यप्तत को पुत्र बनरयर जरए तो वह कृ त्रत्रम पुत्र कहलरतर है
• िमग शरस्त्त्र : वह व्यप्तत जो मरतृ –वपतृ हीन हो औ संपवि क
े लरलच से
स्त्वयं धपनी सहमर्त से ककसी कर पुत्र बनतर है
• दिक से र्भन्न – बरर्लर् होनर आवश्यक + मरतर वपतर द्वर र नहीं हदयर
र्यर
15. गूढ़ज
• वह पुत्र जो ककसी क
े घ मे पैदर होतर है प ंतु प्जसक
े वपतर कर पतर नहीं होतर
• ऐसी प्स्त्थर्त में वह उस व्यप्तत कर पुत्र समझ जरतर है प्जसकी पत्नी से वह
उत्पन्न होतर है।
• मेन : वह पुत्र प्जसक
े पुत्रत्व प सन्देह व्यतत क हदयर र्यर हो
• ह दि वेदरलनकर : प्रमरणणत व्यर्भचर वरलर नहीं ककन्तु संहदग्ि वपतृत्व वरलर
पुत्र
• यरज्ञवल्कतय : र्ूढ़ज को जर ज नहीं मरनर है
• मनु, र्ौतम, नर द, बौिरयन : र तथहर ों में स्त्थरन हदयर है
16. अपत्तवद्ध
• पुत्रत्रक ण कर एक रूप
• मरतर-वपतर यर उनमे से ककसी एक क
े द्वर र त्यरर्र हुआ
व्यप्तत प्जसे कोई धन्य धपने पुत्र क
े समरन ग्रहण क े वह
धपववद्ि कहलरतर है
• धनरथ
17. कानीन
• करनीन = कन्यर (धवववरहहत) कर पुत्र
• धथवगवेद + वरजसनेर्य संहहतर : क
ु मर ी पुत्र
• Baudh DS. (2.2.24); Visņu Sm. (15.11): Offspring of an unmarried maiden
• Vasi DS. ( 17 22) : the son whom an unmarried damsel gives birth at her father's house
is called the son of the unmarried damsel {kanina).
• Yaj.Sm. (2.129 ) Vasi DS. ( 17.22): The kanina corresponds to the Vedic kumariputrá i.e.
son of an unmarried maiden'
• नर द : उस व्यप्तत कर पुत्र मरनर है जो उसकी मराँ से वववरह क तर है
• यह पुत्र धपनी मरतर क
े पर्त की संपवि कर दरयरद बनतर है
18. Inheritance for Kanin
• In majority of the texts the kantna is a rikthabhaj or a dayad except a few.
• Vasi DS ( 17.23): If an unmarried daughter may bear a son begotten by a man of equal
caste, the maternal grandfather has a son through him; he shall offer the funeral ball
and take the wealth ( of his maternal grandfather)
• Nār.Sm.13.18:when maternal grandfather had no male issue, Kanin takes his share.
• Gaut DS. ( 28.32): the kanina is not a heir, but still in the absence of a legitimate son
receive one fourth of the estate.
• परर जरत : करनीन, धपनी मरतर क
े पुत्रहीन वपतर = नरनर कर दरयरद होतर है ककन्तु
यहद नरनर पुत्रवरन है तो वह धपनी मरतर क
े पर्त कर पुत्र होतर है। यहद दोनों पुत्रहीन
है तो वह दोनों कर पुत्र होतर है.
19. सहोढ़
• सहोढ़ = विू क
े सरथ प्ररतत होने वरलर पुत्र
•
• यह उस स्त्त्री कर पुत्र है वो वववरह क
े समय र्भगवती हती है
•
• चरहे ये बरत होने वरले पर्त को ज्ञरत हो यर नर, यह उसी कर पुत्र कहलरतर है
• नर द : सहोढ़, मरतर क
े पर्त की संपवि प्ररतत क तर है
• परर जरत : सहोढ़, धपनी मरतर क
े पुत्रहीन वपतर = नरनर कर दरयरद होतर है
ककन्तु यहद नरनर पुत्रवरन है तो वह धपनी मरतर क
े पर्त कर पुत्र होतर है। यहद
दोनों पुत्रहीन है तो वह दोनों कर पुत्र होतर है.
20. क्रीत
• वह पुत्र प्जसे पुत्र बनरने क
े र्लए व्यप्तत उसे उसक
े मरतर वपतर से
ख ीदतर है
• वर्शटि ने शुन:शेप को क्रीत पुत्र कहर है
21. पौनर्भव
• वह पुत्र प्जसको वविवर पुनववगवरह क
े उप रंत जन्म देती है
• वैिरर्नक रूप से यह औ स पुत्र क
े समरन ही है
• प ंतु हहन्दू समरज में वविवर वववरह को हेय दृप्टि से देखने क
े कर ण
इस प्रकर क
े पुत्र को र्ौण पुत्रों मे भी स्त्थरन हदयर र्यर
22. स्वयंदि
• पुत्रत्रक ण कर एक प्रकर
• वह पुत्र जो मरतर वपतर क
े र्निन क
े पश्चरत धथवर उनक
े द्वर र त्यरर्े
जरने प स्त्वयं को ककसी पुरुष को दे देतर है
• यह कृ त्रत्रम क
े समरन ही
• प ंतु जहराँ कृ त्रत्रम मे पुत्रत्रक ण कर प्रस्त्तरव वपतर की ओ से आतर है,
वही स्त्वयंदि मे यह प्रस्त्तरव स्त्वयं लड़क
े की ओ से ककयर जरतर है
23. पारशव या शौद्र
• ब्ररह्मण वपतर द्वर र शूद्र पत्नी से उत्पन्न पुत्र
• पर शव = जीववत हते हुए भी शव क
े समरन
• धनुलोम वववरह शरस्त्त्र वप्जगत होने क
े कर ण उत्पन्न पुत्र की धवहेलनर
• एकमरत्र कौहिल्कय ही पर शव क
े सम्पविक धधिकर को मरन्यतर देते है
• कौहिल्कय : पर शव को पैतृक संपवि कर तीस र भरर् र्मलनर चरहहए
• धन्य शरस्त्त्रकर ों ने पर शव को धदरयद मरनर है
24.
25. पुत्रों कर वर्ीक ण
1. आत्मज : वपतर द्वर र पत्नी से स्त्वयं उत्परहदत पुत्र = औ स, पुत्रीकर,
पौनभगव, पर शव
2. लब्ि : दूस े से प्ररतत पुत्र= दिक, क्रीत, कृ त्रत्रम, स्त्वयंदि, धपववद्ि
3. प ज : धपनी पत्नी द्वर र दूस े कर पुत्र उत्पन्न= क्षेत्रज
4. यरदृप्छछक : धवैिरर्नक संसर्ग से उत्पन्न संतरन= र्ूढ़ज, करनीन,
सहोढ़
26. त्तवधध अनुसार पुत्रों का वगीकरण
र्ौतम + बौिरयन : 2 वर्ों मे ववभरप्जत ककयर है
र तथभरज : वे पुत्र प्जन्हे वपतर की संपवि में तथर वपतर क
े र्ोत्र में
धधिकर प्ररतत यथर – औ स, क्षेत्रज, दिक, कृ त्रत्रम, र्ूढ़ोत्पन्न, धपववद्ि
र्ोत्रभरज : वे पुत्र जो क
े वल वपतर कर र्ोत्र ि ण क ते है प ंतु उनकी संपवि
में धधिकर नहीं परते यथर पुत्रत्रकरपुत्र, करनीन, पौनभगव, सहोढ़, क्रीत,
स्त्वयंदि
27. उि रधिकर
• औ स को पूणग धधिकर
• धन्य को दरयरद क्रम/ शरसत्ररनुसर र तथरधिकर
• र्ौतम : र्ोत्रभरज पुत्र र तथभरज पुत्रों क
े धभरव में वपतर की संपवि कर ¼
भरर् परते है
• कौहिल्कय + करत्यरयन : सजरतीय र्ौण पुत्र, औ स पुत्र क
े जन्म क
े बरद
1/3 हहस्त्सर परते है औ धसजरतीय र्ौण पुत्र ऐसी प्स्त्थर्त मे क
े वल
भोजन-वस्त्त्र क
े धधिकर ी
28. ज्येष्ठ पुत्र क
े साम्पत्तिक अधधकार
• ज्येटि पुत्र को पैतृक संपवि में धन्य की तुलनर में क
ु छ धधिक/ववशेष धधिकर प्ररतत
• कर ण : परर वरर क उि दरर्यत्वों + कतगव्यों क
े प्रर्तपरदन कर बोझ ज्येटि पुत्र प ही
• ऋग्वेद : इन्द्र औ ववटणु क
े बीच 1000 र्रयों क
े बिवर ें में 2 भरर् इन्द्र को 1 भरर् ववटणु
को
• जैर्मनीय उपर्नषद ब्ररह्मण : ज्येटि पुत्र को वपतर इछछरनुसर संपवि क
े श्रेटि धंश प्रदरन क े
• उद्िर = पैतृक संपवि में से चुनर हुआ यर र्नकलर हुआ ववशेष धंश जो पहले ज्येटि पुत्र को
तथर बरद मे र्ुणवरन पुत्र को
• मैत्ररयणी संहहतर : वृत्र वि क ने क
े कर ण इन्द्र को उद्िर प्ररतत हुआ
• करलरंत में ज्येटि पुत्र क
े ये समस्त्त धधिकर समरतत
29. ज्येष्ठ पुत्र क
े त्तवशेषाधधकार
1. धन्य पुत्रों की तुलनर में संपवि कर धधिक भरर् प्ररतत
2. संपवि कर मनोवरंर्छत व ण
3. धग्रजरधिकर = पैतृक संपवि प एकरधिकर
30. उपसंहार
• पुत्रों क
े वर्ीक ण कर ववस्त्तृत प्रर्तपरदन
• Detailed outline of classification of sons
• पुत्रत्व ववधि समरज एवं शरस्त्त्र आिरर त
• Law of sonship rooted in dharma & society
• शरस्त्त्र एवं समरज द्वर र मरन्य पुत्रों क
े धधिकर सु क्षक्षत थे
• Rights of various types of sons safeguarded by legal texts & society
• Position and status of the various kinds of sons, except that of auras were not fixed.
• In the ancient texts there is a good deal of contradiction and confusion in this regard
• धन्य पुत्र प्रकर ों क
े सरंपविक एवं र्ोत्र धधिकर सीर्मत
• Limited rights for other types of sons
• Adoption was followed mainly in the absence of legitimate son