परागण (Pollination): परागकणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे के जायांग (Gynoecium) के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।
परागण के प्रकार Type of Pollination:
परागण दो प्रकार के होते हैं-
स्वपरागण (self Pollination): जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर या उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, तो इसे स्वपरागण कहते हैं।
पर-परागण (Cross pollination): जब एक पुष्प का परागकण उसी जाति के दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, तो उसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण कई माध्यमों से होता है। पर परागण पौधों के लिए उपयोगी होता है। पर-परागण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। वायु, कीट, जल या जन्तु इस आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
परागण की विधियां (Methods of pollination): परागण की निम्नलिखित विधियां हैं–
वायु परागण (Anemophilous): वायु द्वारा परागण
कीट परागण (Entomophilous): कीट द्वारा परागण
जल परागण (Hydrophilous): जल द्वारा परागण
जन्तु परागण (zoophilous): जन्तु द्वारा परागण
पक्षी परागण (Ornithophilous): पक्षियों द्वारा परागण
मेलेकोफिलस (Malacophilous): घोंघे द्वारा परागण
चिरोप्टोफिलस (Chiroptophilous): चमगादड़ द्वारा परागण
निषेचन (Fertilization): परागण के पश्चात निषेचन की क्रिया प्रारम्भ होती है। परागनली (Pollen tube) बीजाण्ड (ovule) में प्रवेश करके बीजाण्डासन को भेदती हुई भ्रूणपोष (Endosperm) तक पहुँचती है और परागकणों को वहीं छोड़ देती है। इसके पश्चात् एक नर युग्मक एक अण्डकोशिका से संयोजन करता है। इसे ही निषेचन कहते हैं। अब निषेचित अण्ड (Fertilized egg) युग्मनज (zygote) कहलाता है। यह युग्मनज बीजाणुभिद की प्रथम इकाई है।
निषेचन के पश्चात बीजाण्ड से बीज, युग्मनज से भ्रूण (embryo) तथा अण्डाशय से फल का निर्माण होता है। आवृत्तबीजी पौधों (Angiospermic plants) में निषेचन को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं।
2. परागण (Pollination)
परागकणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जातत के पौधे के
जायाांग (Gynoecium) के वततिकाग्र (stigma) तक पहुुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।
3. परागण के प्रकार Types of Pollination:
1.स्वपरागण (self Pollination): जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वततिकाग्र पर या उसी
पौधे पर स्थित क्रकसी अन्य पुष्प के वततिकाग्र पर पहुुँचता है, तो इसे थवपरागण कहते हैं।
2.पर-परागण (Cross pollination): जब एक पुष्प का परागकण उसी जातत के दूसरे पौधे पर
स्थित पुष्प के वततिकाग्र पर पहुुँचता है, तो उसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण कई माध्यमों
से होता है। पर परागण पौधों के लिए उपयोगी होता है। पर-परागण के लिए क्रकसी माध्यम
की आवश्यकता होती है। वायु, कीट, जि या जन्तु इस आवश्यकता की पूतति करते हैं।
4. परागण की ववधियाां (Methods of pollination):
1.वायु परागण (Anemophilous): वायु द्वारा परागण
2.कीट परागण (Entomophilous): कीट द्वारा परागण
3.जल परागण (Hydrophilous): जि द्वारा परागण
4.जन्तु परागण (Animophilous): जन्तु द्वारा परागण
5.पक्षी परागण (Ornithophilous): पक्षियों द्वारा परागण
6.मेलेकोफिलस (Malacophilous): घोंघे द्वारा परागण
7.धिरोप्टोफिलस (Chiroptophilous): चमगादड़ द्वारा
परागण
5. निषेिि (Fertilization):
परागण के पश्चात तनषेचन की क्रिया प्रारम्भ होती है।
परागनिी (Pollen tube) बीजाण्ड (ovule) में प्रवेश करके
बीजाण्डासन को भेदती हुई भ्रूणपोष (Endosperm) तक
पहुुँचती है और परागकणों को वहीां छोड़ देती है। इसके
पश्चात् एक नर युग्मक एक अण्डकोलशका से सांयोजन
करता है। इसे ही तनषेचन कहते हैं। अब तनषेचचत अण्ड
(Fertilized egg) युग्मनज (zygote) कहिाता है। यह
युग्मनज बीजाणुलभद की प्रिम इकाई है।
तनषेचन के पश्चात बीजाण्ड से बीज, युग्मनज से भ्रूण
(embryo) तिा अण्डाशय से फि का तनमािण होता है।
6. निषेिि के पश्िात ् पुष्प में होिे वाले
पररवतति:
1. बाह्य दलपुांज (Calyx): यह प्रायः मुरझाकर चगर जाता है। अपवाद-लमचि।
2. दलपुांज (Corolla): यह मुरझाकर चगर जाता है।
3. पुांके सर (stamen): यह मुरझाकर झड़ जाता है।
4. वनततकाग्र (stigma): यह मुरझा जाती है।
5. वनततका (style): यह मुरझा जाती है।
6. अण्डाशय (Ovary): यह फि में पररवततित हो जाती है।
7. अण्डाशय भिवि (Ovary wall): यह फिालभत्ति (Pericarp) में पररवततित हो जाती
है।
8. अण्डकोभशका (Egg cells): यह भ्रूण (embryo) में पररवततित हो जाता है।
9. बीजाण्डसि (Nucellus): यह पेरीथपमि (Perisperm) में पररवततित हो जाती है।
10. बीजाण्ड (Ovule): यह बीज (seed) में पररवततित हो जाती है।
7. िल का निमातण (Formation of Fruits):
फि का तनमािण अण्डाशय (Ovary) से होता है। पररपक्व अण्डाशय को ही फि (Fruit) कहा जाता है।
पररपक्व अण्डाशय की लभत्ति फि-लभत्ति (Pericarp) का तनमािण करती है। फि-लभत्ति मोटी या पतिी हो
सकती है। मोटी फिलभत्ति में प्रायः तीन थतर हो जाते हैं। बाहरी थतर को बाह्य फिलभत्ति (Epicarp),
मध्य थतर को मध्य फिलभतत (Mesocarp) तिा सबसे अन्दर के थतर को अन्त:फिलभतत (Endocarp)
कहते हैं।