नैमिषारण्य तीर्थ विश्व का सबसे प्राचीन तीर्थ है क्योंकि सतयुग के प्रारम्भ में जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा नामक प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री को मैथुनी सृष्टि के लिये प्रकट किया तब इन दोनांे ने पृथ्वी लोक पर दीर्घ समय तक एक क्षत्र राज्य किया और प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनेको ऐश्वर्यो का भोग कर अपना राज्य अपने पुत्र को खुशी - खुशी देकर आत्म संतुष्टि के लिये चल पड़े। सम्पूर्ण विश्व की वन्दनीय, दिव्य ऋषि मुनियाे से सेवित नैमिषारण्य नामक तपोभूमि में आकर तपस्या की।
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नैमिषारण्य तीर्थ विश्ि का सबसे प्राचीन तीर्थ है
क्योंकक सतयुग के प्रारम्भ िें जब सृष्टिकताथ
ब्रह्िा ने िनु और सतरूपा नािक प्रर्ि पुरुष
और प्रर्ि स्त्री को िैर्ुनी सृष्टि के मिये प्रकि
ककया तब इन दोनाांेे ने पृथ्िी िोक पर दीर्थ
सिय तक एक क्षर राज्य ककया और प्रकृ तत
द्िारा प्रदत्त अनेको ऐश्ियो का भोग कर अपना
राज्य अपने पुर को खुशी - खुशी देकर आत्ि
सांतुष्टि के मिये चि पड़े। सम्पूर्थ विश्ि की
िन्दनीय, ददव्य ऋवष िुतनयाेे से सेवित
नैमिषारण्य नािक तपोभूमि िें आकर तपस्त्या
की।
2. ब्रह्माण्ड पुराण
सिस्त्त िहापुरार्ों िें 'ब्रह्माण्ड पुराण' अष्न्ति पुरार् होते हुए भी अत्यन्त
िहत्त्िपूर्थ है। सिस्त्त ब्रह्िाण्ड का साांगोपाांग िर्थन इसिें प्राप्त होने के कारर् ही
इसे यह नाि ददया गया है। िैज्ञातनक दृष्टि से इस पुरार् का विशेष िहत्त्ि है।
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3. गरुड़ पुराण
क्या मृत्यु के समय ही करना चाहहए गरुड़ पुराण?
अठारह पुरार्ों िें गरुड़िहापुरार् का अपना एक
विशेष िहत्ि है। इसके अधिटठातृदेि भगिान
विटर्ु है। अतः यह िैटर्ि पुरार् है। गरूड़
पुराण िें विटर्ु-भष्क्त का विस्त्तार से िर्थन है।
भगिान विटर्ु के चौबीस अितारों का िर्थन
ठीक उसी प्रकार यहाां प्राप्त होता है, ष्जस
प्रकार 'श्रीिद्भागित' िें उपिब्ि होता है।
आरम्भ िें िनु से सृष्टि की उत्पवत्त, ध्रुि चररर
और बारह आददत्यों की कर्ा प्राप्त होती है।
उसके उपरान्त सूयथ और चन्र ग्रहों के िांर,
मशि-पािथती िांर, इन्र से सम्बष्न्ित िांर,
सरस्त्िती के िांर और नौ शष्क्तयों के विषय िें
विस्त्तार से बताया गया है। इसके अततररक्त
इस पुरार् िें श्राद्ि-तपथर्, िुष्क्त के उपायों
तर्ा जीि की गतत का विस्त्तृत िर्थन मििता
है।
4. ब्रह्मवैवतत पुराण
ब्रह्मवैवतत पुराण िेदिागथ का दसिााँ पुरार् है। इसिें भगिान श्रीकृ टर् की िीिाओांका विस्त्तृत िर्थन, श्रीरािा की
गोिोक-िीिा तर्ा अितार-िीिाका सुन्दर वििेचन, विमभन्न देिताओां की िदहिा एिां एकरूपता और उनकी
सािना-उपासनाका सुन्दर तनरूपर् ककया गया है। अनेक भष्क्तपरक आख्यानों एिां स्त्तोरोंका भी इसिें अद्भुत
सांग्रह है। इस पुरार् िें चार खण्ड हैं। ब्रह्िखण्ड, प्रकृ ततखण्ड, श्रीकृ टर्जन्िखण्ड और गर्ेशखण्ड। इन चारों खण्डों
से युक्त यह पुरार् अठारह हजार श्िोकों का बताया गया है। यह िैटर्ि पुरार् है।