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श्री शंकराचार्य महाविद्र्ालर् भिलाई (छ.ग.)
ह िंदी विभाग
परदा (क ानी)
कहानीकार- र्शपालद्िारा
ड ं.अचयना झा
वििागाध्र्क्ष
श्री शंकराचार्य महाविद्र्ालर् जुनिानी भिलाई (छ.ग.)
क ानी की रूपरेखा
र्शपाल की परदा कहानी हहंदी सहहत्र् की एक श्रेष्ठ सामाजजक कहानी है जजसमें उन्होंने एक ऐसे
मध्र्िगय के एक पररिार की कहानी को प्रस्तुत ककर्ा है जो समाज के सामने अपनी पुरानी
ख़ानदानी इज्जत को बनाए रखना चाहता है। अब र्ह पररिार पहले की तरह अमीर नहीं रहा, घर-
पररिार की मूलिूत आिश्र्कताओं की पूर्तय के भलए कजय लेना पड़ता है। लाख कोभशश करने के
बाद िी कजय की रकम बढ़ाती जाती है लेककन पीरबख्श अब िी र्ही चाहता है कक घर की औरतें
घर की दहजीज के िीतर ही रहें क्र्ोंकक उनके र्हााँ घर की औरतों का बाहर र्नकलना अच्छा नहीं
माना जाता। लेखक ने झूठी इज्ज़त के नाम पर हदखािा करने और सफे द पोशी के परदे के पीछे
र्छपी दीनता और दररद्रता का माभमयक चचत्र प्रस्तुत ककर्ा है।
कथानक
इसके कथानक की जब हम बात करते हैं तो र्ह कहानी चौधरी पीरबख्श के पररिार
की है जजनके दादा अपने समर् में चुंगी के दरोगा थे और उन्होंने अपना मकान िी बनिार्ा
था, ककं तु दो ही पीहढ़र्ों में उनके िंशज पीरबख्श अत्र्ंत र्नधयन हो गए।
कहानी का आरंि पीर बख्श के पररिार से होता है। उसके पश्चात जीिन की विषम
पररजस्थर्तर्ों से जूझते हुए पीरबख्श के चररत्र के रूप में कथानक का विकास होता है। खान से
भलर्ा गर्ा उधार न चुका सकने के कारण जस्थर्त और िी गंिीर हो जाती है जो िर्ानक का
रूप धारण करती है। इसे कहानी के विकास की अिस्था की दृजष्ि से संघषय की अिस्था कहा
जा सकता है। परदा कहानी में चरम सीमा की अिस्था तब आती है जब पीरबख्श के द्िारा
कजय का पैसा न लौिाने पर खान क्रोध से पीरबख्श के घर की ड्र्ोढ़ी पर लिका हुआ िाि का
फिा पुराना, गला हुआ पदाय तोड़कर आंगन में फें क देता है। उस समर् का माभमयक और
प्रिािशाली दृश्र् पाठक पर गहरे अिसाद की अभमि छाप छोड़ देता है। इस प्रकार कहानी का
कथानक अत्र्ंत संक्षक्षप्त है।
चौधरी पीरबख्श एक अच्छे घराने के आदमी है पर धीरे धीरे बहुत तंगी में आ जाते हैं घर की
इज्जत ढकने के भलए ककिाड़ों पर पदाय लगाए रखते हैं, एक बार मुसीबत में आकर िे एक खान से
थोड़े से रुपए कजय ले लेते हैं, लेककन िे समर् पर कजय चुका नहीं पाते क्र्ोंकक पररिार के बढ़ने से
धीरे-धीरे पीरबख्श की आचथयक हालत बहुत माली हो जाती है। घर में खाने के िी लाले पड़ जाते
हैं। घर की मूलिूत आिश्र्कताओं को पूरा करने हेतु धीरे धीरे घर के गहने और दूसरी बहुमूल्र्
िस्तुओं को बेचा जाने लगा। घर की महहलाओं को घर से बाहर र्नकलने की इजाज़त नहीं थी।
इसभलए आसपास के लोगों को पीरबख्श की माली हालत की कोई खबर नहीं थी। पीरबख्श की
खानदानी इज्ज़त को घर की ड्र्ोढ़ी पर पड़ा परदा बचार्े रखता है। लेककन जब खान क्रोध से
ककिाड़ों पर िंगे परदे को खखंचता है जैसे ही परदे की डोर िूिती है िैसे ही चौधरी जमीन पर चगर
पड़ते है ।परदा हिने पर िहााँ उपजस्थत सिी लोग शमय से अपनी नजरे झुका लेते है।पंजाबी खान
का कठोर हृदर् िी वपघल जाता है और परदा िहीं छोड़े िहााँ से "लाहौल बबला..." कहकर लौि जाता
है। जस्त्रर्ां घर के िीतर अधयनग्न अिस्था में भसकु ड़कर खड़ी रहती है।
पात्र और चररत्र चचत्रण
कहानीकार कहानी की कथािस्तु को ध्र्ान में रखकर पात्रों को चचबत्रत करता है। र्े पात्र कहानी में
व्र्ाप्त र्ुगीन समस्र्ाओं की और संके त करते हुए कहानी को जीिंतता प्रदान करते है। संपूणय
कहानी का कें द्रीर् चररत्र पीर बख्श है। उसका दूसरा विरोधी चररत्र है- खान का, खान के माध्र्म
से लेखक ने चौधरी पीर बख्श के चररत्र की विषमताओं को अचधक उिारने का प्रर्ास ककर्ा है,
खान की कठोरता, र्नियर्ता, सूदखोरी की आदत तथा िाणी की किुता एक प्रकार से समाज के
संपूणय शोषक, पूंजीपर्त िगय का प्रर्तर्नचधत्ि करती है। चौधरी पीर बख्श का चररत्र चचत्रण बहुत ही
सजीि हुआ है, उनका चररत्र ककस प्रकार अपने घर पररिार के संस्कार से प्रिावित होता है और
िह अपनी इज्जत की झूठी िािना से परेशान होते हैं। इसका बहुत ही िैज्ञार्नक चचत्र र्हां खींचा
गर्ा है। िस्तुतः पीर बख्श का चररत्र िारतीर् समाज के करोड़ों र्नम्न मध्र्िगीर् लोगों की दीन-
हीन हदशा की ओर संके त करता है। परदा कहानी के पात्र व्र्जक्तगत न होकर िगयगत हैं। इस
कहानी के चररत्र चचत्रण की र्ह विशेषता है कक लेखक ने पात्रों के बाहरी व्र्जक्तत्ि और स्ििाि
के साथ-साथ अंतरग चचत्र को िी बड़ी सजीता से अंककत ककर्ा है|
कथोपकथन
परदा कहानी में कथा कल्पना का बहुत अल्प प्रर्ोग हुआ है। कहानी का अचधकांश िाग िणयनात्मक
है। िणयनात्मक होने के कारण परदा कहानी के संिादों का िी कम विकास हुआ है ।परंतु जहां कहीं
िी संिाद आए हैं िह अत्र्ंत स्िािाविक और पात्र अनुकू ल बन पड़े हैं। जैसे-
खान आग बबूला हो रहा था- "पैसा नहीं देने के िास्ते र्छपता है......**** खान क्रोध में डंडा फिकार
कर कह रहा था- पैसा नहीं देना था, भलर्ा क्र्ों?.... तनख्िाह ककधर में जाता ....।
इस तरह संिाद नाम मात्र के होते हुए िी रोचक और पात्रों के अनुकू ल हैं।
देशकाल पररस्थथति और िािािरण
देशकाल और िातािरण की दृजष्ि से परदा कहानी में चचबत्रत चौधरी पररिार की आचथयक दुदयशा
के िल उनकी ही नहीं है बजल्क समस्त मध्र्म िगीर् पररिार की है। आज सिी मध्र्मिगीर्
पररिार में अिाि के कारण तनाि का माहोल बना रहता है। नर्े पुराने के बीच संघषय होता है,
आपसी रंजजशे उत्पन्न होती है। पैसों के अिाि के कारण चौधरी का पररिार अलग -अलग स्थानों
पर रहने चले जाते है, कहानी में पीरबख्श अपने पररिार के साथ गंदे से मुहल्ले में रहने के भलए
बाध्र् है । आचथयक पररजस्थर्त खराब होने के घर के सामान बेचने पड़ते है। औरतो के शरीर पर
नाम मात्र कपडे है। ऐसी दशा में दरिाजे पर लिका परदा ही पीरबख्श की आबरू बचाता है।
"बैठक न रहने पर िी घर की इज्जत का ख्र्ाल था इसभलए परदा बोरी के िाि का
नही, बहढ़र्ा ककस्म का रहता।"
इस प्रकार परदा की एक प्रर्तक के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत ककर्ा गर्ा है,
पूरी कहानी में हम देखते है कक ककस प्रकार लेखक ने परदे के महत्ि को शुरू से अंत तक
बतार्ा है।परदा िूिने का डर चौधरी पररिार में सिी को है। पूरी घिनाओं में सिी को है। पूरी
घिनाओं का र्हद मूल्र्ांकन करें तो हम पाते है कक लेखक ने परदा कहानी में जजस िातािरण को
बतार्ा है िह कहानी में सबसे महत्त्िपूणय बन पड़ा है। पीरबख्श का गंदे मुहल्ले में रहना, िहााँ की
गंदगी, बदबू आहद तरह की समस्र्ाओं से कहानी के माध्र्म से समाज का कड़िा सच सामने
आता है। ितयमान के मध्र्मिगीर् समाज की मजबूरी तनाि, ददय की जो अभिव्र्क्ती आचथयक
दुदयशा के कारण हुई है िह र्ुगानुरूप है। आज माँहगाई आसमान छू रही है , पररिार में एक
कमानेिाला और पूरे पररिार को पालना इसकी सच्ची तस्िीर कहानी में दी गई है ।
भाषा शैली
परदा कहानी की सफलता का रहस्र् र्ह है उसकी सहज स्िािाविक िाषा िाषा की स्िािाविकता के
कारण ही कहानी र्थाथय के अचधक र्नकि और माभमयक बन पड़ी है कहानी की पृष्ठिूभम मुसलमानी जीिन
से संबंचधत है अतः लेखक में कथा का िणयन करते समर् और िातािरण का चचत्रण करते समर् जस्थर्त
और पात्रों के अनुकू ल ही मुसलमान पररिारों में प्रर्ोग होने िाली उदूय शब्दािली का अथायत् िाषा का प्रर्ोग
ककर्ा है जैसे महकमा ओहदा माहिार कु नबा इज्जत आहद िाषा प्रर्ोग में र्शपाल में पात्रों की अनुकू लता
का िी विशेष ध्र्ान रखा है पीरबख्श की बातों में नम्रता और गंिीरता है जबकक खान की िाषा में पठानों
के स्ििाि के अनुकू ल अिपिी और बबगड़ी हुई शब्दािली की अचधकता है जजसमें कठोरता और उद्दंडता
स्पष्ि दृजष्िगोचर होती है| कहानी की शैली िणयनात्मक और चचत्रात्मक है र्द्र्वप कथात्मक शैली नीरस
होती है ककं तु िाषा की सरलता स्िािाविकता के कारण परदा कहानी की शैली ममयस्पशी बन गई है|
क ानी का उद्देश्य
परदा कहानी में लेखक ने आचथयक विषमता गरीबी अिाि से ग्रस्त जीिन जीने के भलए असहार् ि
मजबूर लोगो का विश्लेषण है । पंजाबी खान जैसे शोषणिादी प्रिृवि िाले समाज के शोषक है, जो
गरीबों को प्रताड़ड़त करते है । एक के बदले चार हहसाब लगाकर पूाँजीिाद हदन-ब-हदन अमीर बनता
जाता है। पीरबख्श जैसे लोग कजय चुकाते-चुकाते भिखारी बन जाते है। घर के सारे सामान बबक
जाने पर िी र्े उच्च िगय के लोगो को मानिता का िी ख्र्ाल नही आता है।
इस प्रकार लेखक का उद्देश्र् गरीबो अिाि की जजन्दगी को दशायते हुए पूाँजीपर्तर्ों
और पंजाबी खान जैसे लोगों की शोषणिादी प्रिृवि के खखलाफ विद्रोह के व्र्क्त ककर्ा है। अपने
क्रांर्तकारी विचारों से पाठकों के सामने समाज का किु सत्र् रखा है।
तनष्कषष
क ानी में चौधरी पीरबख्स की आचथषक पररस्थथति का चचत्रण ै। लेखक ने क ानी के माध्यम से
समाज पर करारा व्यिंग्य कसा ै कक ककस प्रकार पिंजाबी खान और जमीदार और सभी उच्च िगष के
व्यस्ति जो गरीबों पर शोषण करिे ै, और उपर से नकाब लगाकर रखा ै कक कोई उसे प चान न
सके पिंजाबी खान इसी िर का व्यस्ति ै। जो बबना ककसी सामान के लोगों को उधार देिा ै। बाद
में पैसे समय पर न ममलने पर ककसी भी द िक गुजरिा ै।
इस प्रकार क ानी में चौधरी पीरबख्श के माध्यम से उच्च िगष की शोषणिादी
प्रिृवि को बिाया गया ै।
सिंदभष ग्रिंथ
यशपाल के कथा-साह त्य में सामास्जक चेिना - सरोज बजाज
यशपाल की क ातनयााँ : कथ्य और मशल्प - चन्द्रभानु सीिाराम सोनिणे
यशपाल की क ातनयााँ : समीक्षात्मक मूल्यािंकन - िी. के . राजन
यशपाल की क ानी-कला - कु मारी अनु विग
https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/93217/9/09_chap
ter%205.pdf
https://old.mu.ac.in/wp-content/uploads/2020/10/FYBA-Paper-No.-I-Hindi-
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http://hindsaa.blogspot.com/2019/12/parada-kahani.html
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  • 1. श्री शंकराचार्य महाविद्र्ालर् भिलाई (छ.ग.) ह िंदी विभाग परदा (क ानी) कहानीकार- र्शपालद्िारा ड ं.अचयना झा वििागाध्र्क्ष श्री शंकराचार्य महाविद्र्ालर् जुनिानी भिलाई (छ.ग.)
  • 2. क ानी की रूपरेखा र्शपाल की परदा कहानी हहंदी सहहत्र् की एक श्रेष्ठ सामाजजक कहानी है जजसमें उन्होंने एक ऐसे मध्र्िगय के एक पररिार की कहानी को प्रस्तुत ककर्ा है जो समाज के सामने अपनी पुरानी ख़ानदानी इज्जत को बनाए रखना चाहता है। अब र्ह पररिार पहले की तरह अमीर नहीं रहा, घर- पररिार की मूलिूत आिश्र्कताओं की पूर्तय के भलए कजय लेना पड़ता है। लाख कोभशश करने के बाद िी कजय की रकम बढ़ाती जाती है लेककन पीरबख्श अब िी र्ही चाहता है कक घर की औरतें घर की दहजीज के िीतर ही रहें क्र्ोंकक उनके र्हााँ घर की औरतों का बाहर र्नकलना अच्छा नहीं माना जाता। लेखक ने झूठी इज्ज़त के नाम पर हदखािा करने और सफे द पोशी के परदे के पीछे र्छपी दीनता और दररद्रता का माभमयक चचत्र प्रस्तुत ककर्ा है।
  • 3. कथानक इसके कथानक की जब हम बात करते हैं तो र्ह कहानी चौधरी पीरबख्श के पररिार की है जजनके दादा अपने समर् में चुंगी के दरोगा थे और उन्होंने अपना मकान िी बनिार्ा था, ककं तु दो ही पीहढ़र्ों में उनके िंशज पीरबख्श अत्र्ंत र्नधयन हो गए। कहानी का आरंि पीर बख्श के पररिार से होता है। उसके पश्चात जीिन की विषम पररजस्थर्तर्ों से जूझते हुए पीरबख्श के चररत्र के रूप में कथानक का विकास होता है। खान से भलर्ा गर्ा उधार न चुका सकने के कारण जस्थर्त और िी गंिीर हो जाती है जो िर्ानक का रूप धारण करती है। इसे कहानी के विकास की अिस्था की दृजष्ि से संघषय की अिस्था कहा जा सकता है। परदा कहानी में चरम सीमा की अिस्था तब आती है जब पीरबख्श के द्िारा कजय का पैसा न लौिाने पर खान क्रोध से पीरबख्श के घर की ड्र्ोढ़ी पर लिका हुआ िाि का फिा पुराना, गला हुआ पदाय तोड़कर आंगन में फें क देता है। उस समर् का माभमयक और प्रिािशाली दृश्र् पाठक पर गहरे अिसाद की अभमि छाप छोड़ देता है। इस प्रकार कहानी का कथानक अत्र्ंत संक्षक्षप्त है।
  • 4. चौधरी पीरबख्श एक अच्छे घराने के आदमी है पर धीरे धीरे बहुत तंगी में आ जाते हैं घर की इज्जत ढकने के भलए ककिाड़ों पर पदाय लगाए रखते हैं, एक बार मुसीबत में आकर िे एक खान से थोड़े से रुपए कजय ले लेते हैं, लेककन िे समर् पर कजय चुका नहीं पाते क्र्ोंकक पररिार के बढ़ने से धीरे-धीरे पीरबख्श की आचथयक हालत बहुत माली हो जाती है। घर में खाने के िी लाले पड़ जाते हैं। घर की मूलिूत आिश्र्कताओं को पूरा करने हेतु धीरे धीरे घर के गहने और दूसरी बहुमूल्र् िस्तुओं को बेचा जाने लगा। घर की महहलाओं को घर से बाहर र्नकलने की इजाज़त नहीं थी। इसभलए आसपास के लोगों को पीरबख्श की माली हालत की कोई खबर नहीं थी। पीरबख्श की खानदानी इज्ज़त को घर की ड्र्ोढ़ी पर पड़ा परदा बचार्े रखता है। लेककन जब खान क्रोध से ककिाड़ों पर िंगे परदे को खखंचता है जैसे ही परदे की डोर िूिती है िैसे ही चौधरी जमीन पर चगर पड़ते है ।परदा हिने पर िहााँ उपजस्थत सिी लोग शमय से अपनी नजरे झुका लेते है।पंजाबी खान का कठोर हृदर् िी वपघल जाता है और परदा िहीं छोड़े िहााँ से "लाहौल बबला..." कहकर लौि जाता है। जस्त्रर्ां घर के िीतर अधयनग्न अिस्था में भसकु ड़कर खड़ी रहती है।
  • 5. पात्र और चररत्र चचत्रण कहानीकार कहानी की कथािस्तु को ध्र्ान में रखकर पात्रों को चचबत्रत करता है। र्े पात्र कहानी में व्र्ाप्त र्ुगीन समस्र्ाओं की और संके त करते हुए कहानी को जीिंतता प्रदान करते है। संपूणय कहानी का कें द्रीर् चररत्र पीर बख्श है। उसका दूसरा विरोधी चररत्र है- खान का, खान के माध्र्म से लेखक ने चौधरी पीर बख्श के चररत्र की विषमताओं को अचधक उिारने का प्रर्ास ककर्ा है, खान की कठोरता, र्नियर्ता, सूदखोरी की आदत तथा िाणी की किुता एक प्रकार से समाज के संपूणय शोषक, पूंजीपर्त िगय का प्रर्तर्नचधत्ि करती है। चौधरी पीर बख्श का चररत्र चचत्रण बहुत ही सजीि हुआ है, उनका चररत्र ककस प्रकार अपने घर पररिार के संस्कार से प्रिावित होता है और िह अपनी इज्जत की झूठी िािना से परेशान होते हैं। इसका बहुत ही िैज्ञार्नक चचत्र र्हां खींचा गर्ा है। िस्तुतः पीर बख्श का चररत्र िारतीर् समाज के करोड़ों र्नम्न मध्र्िगीर् लोगों की दीन- हीन हदशा की ओर संके त करता है। परदा कहानी के पात्र व्र्जक्तगत न होकर िगयगत हैं। इस कहानी के चररत्र चचत्रण की र्ह विशेषता है कक लेखक ने पात्रों के बाहरी व्र्जक्तत्ि और स्ििाि के साथ-साथ अंतरग चचत्र को िी बड़ी सजीता से अंककत ककर्ा है|
  • 6. कथोपकथन परदा कहानी में कथा कल्पना का बहुत अल्प प्रर्ोग हुआ है। कहानी का अचधकांश िाग िणयनात्मक है। िणयनात्मक होने के कारण परदा कहानी के संिादों का िी कम विकास हुआ है ।परंतु जहां कहीं िी संिाद आए हैं िह अत्र्ंत स्िािाविक और पात्र अनुकू ल बन पड़े हैं। जैसे- खान आग बबूला हो रहा था- "पैसा नहीं देने के िास्ते र्छपता है......**** खान क्रोध में डंडा फिकार कर कह रहा था- पैसा नहीं देना था, भलर्ा क्र्ों?.... तनख्िाह ककधर में जाता ....। इस तरह संिाद नाम मात्र के होते हुए िी रोचक और पात्रों के अनुकू ल हैं।
  • 7. देशकाल पररस्थथति और िािािरण देशकाल और िातािरण की दृजष्ि से परदा कहानी में चचबत्रत चौधरी पररिार की आचथयक दुदयशा के िल उनकी ही नहीं है बजल्क समस्त मध्र्म िगीर् पररिार की है। आज सिी मध्र्मिगीर् पररिार में अिाि के कारण तनाि का माहोल बना रहता है। नर्े पुराने के बीच संघषय होता है, आपसी रंजजशे उत्पन्न होती है। पैसों के अिाि के कारण चौधरी का पररिार अलग -अलग स्थानों पर रहने चले जाते है, कहानी में पीरबख्श अपने पररिार के साथ गंदे से मुहल्ले में रहने के भलए बाध्र् है । आचथयक पररजस्थर्त खराब होने के घर के सामान बेचने पड़ते है। औरतो के शरीर पर नाम मात्र कपडे है। ऐसी दशा में दरिाजे पर लिका परदा ही पीरबख्श की आबरू बचाता है। "बैठक न रहने पर िी घर की इज्जत का ख्र्ाल था इसभलए परदा बोरी के िाि का नही, बहढ़र्ा ककस्म का रहता।" इस प्रकार परदा की एक प्रर्तक के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत ककर्ा गर्ा है,
  • 8. पूरी कहानी में हम देखते है कक ककस प्रकार लेखक ने परदे के महत्ि को शुरू से अंत तक बतार्ा है।परदा िूिने का डर चौधरी पररिार में सिी को है। पूरी घिनाओं में सिी को है। पूरी घिनाओं का र्हद मूल्र्ांकन करें तो हम पाते है कक लेखक ने परदा कहानी में जजस िातािरण को बतार्ा है िह कहानी में सबसे महत्त्िपूणय बन पड़ा है। पीरबख्श का गंदे मुहल्ले में रहना, िहााँ की गंदगी, बदबू आहद तरह की समस्र्ाओं से कहानी के माध्र्म से समाज का कड़िा सच सामने आता है। ितयमान के मध्र्मिगीर् समाज की मजबूरी तनाि, ददय की जो अभिव्र्क्ती आचथयक दुदयशा के कारण हुई है िह र्ुगानुरूप है। आज माँहगाई आसमान छू रही है , पररिार में एक कमानेिाला और पूरे पररिार को पालना इसकी सच्ची तस्िीर कहानी में दी गई है ।
  • 9. भाषा शैली परदा कहानी की सफलता का रहस्र् र्ह है उसकी सहज स्िािाविक िाषा िाषा की स्िािाविकता के कारण ही कहानी र्थाथय के अचधक र्नकि और माभमयक बन पड़ी है कहानी की पृष्ठिूभम मुसलमानी जीिन से संबंचधत है अतः लेखक में कथा का िणयन करते समर् और िातािरण का चचत्रण करते समर् जस्थर्त और पात्रों के अनुकू ल ही मुसलमान पररिारों में प्रर्ोग होने िाली उदूय शब्दािली का अथायत् िाषा का प्रर्ोग ककर्ा है जैसे महकमा ओहदा माहिार कु नबा इज्जत आहद िाषा प्रर्ोग में र्शपाल में पात्रों की अनुकू लता का िी विशेष ध्र्ान रखा है पीरबख्श की बातों में नम्रता और गंिीरता है जबकक खान की िाषा में पठानों के स्ििाि के अनुकू ल अिपिी और बबगड़ी हुई शब्दािली की अचधकता है जजसमें कठोरता और उद्दंडता स्पष्ि दृजष्िगोचर होती है| कहानी की शैली िणयनात्मक और चचत्रात्मक है र्द्र्वप कथात्मक शैली नीरस होती है ककं तु िाषा की सरलता स्िािाविकता के कारण परदा कहानी की शैली ममयस्पशी बन गई है|
  • 10. क ानी का उद्देश्य परदा कहानी में लेखक ने आचथयक विषमता गरीबी अिाि से ग्रस्त जीिन जीने के भलए असहार् ि मजबूर लोगो का विश्लेषण है । पंजाबी खान जैसे शोषणिादी प्रिृवि िाले समाज के शोषक है, जो गरीबों को प्रताड़ड़त करते है । एक के बदले चार हहसाब लगाकर पूाँजीिाद हदन-ब-हदन अमीर बनता जाता है। पीरबख्श जैसे लोग कजय चुकाते-चुकाते भिखारी बन जाते है। घर के सारे सामान बबक जाने पर िी र्े उच्च िगय के लोगो को मानिता का िी ख्र्ाल नही आता है। इस प्रकार लेखक का उद्देश्र् गरीबो अिाि की जजन्दगी को दशायते हुए पूाँजीपर्तर्ों और पंजाबी खान जैसे लोगों की शोषणिादी प्रिृवि के खखलाफ विद्रोह के व्र्क्त ककर्ा है। अपने क्रांर्तकारी विचारों से पाठकों के सामने समाज का किु सत्र् रखा है।
  • 11. तनष्कषष क ानी में चौधरी पीरबख्स की आचथषक पररस्थथति का चचत्रण ै। लेखक ने क ानी के माध्यम से समाज पर करारा व्यिंग्य कसा ै कक ककस प्रकार पिंजाबी खान और जमीदार और सभी उच्च िगष के व्यस्ति जो गरीबों पर शोषण करिे ै, और उपर से नकाब लगाकर रखा ै कक कोई उसे प चान न सके पिंजाबी खान इसी िर का व्यस्ति ै। जो बबना ककसी सामान के लोगों को उधार देिा ै। बाद में पैसे समय पर न ममलने पर ककसी भी द िक गुजरिा ै। इस प्रकार क ानी में चौधरी पीरबख्श के माध्यम से उच्च िगष की शोषणिादी प्रिृवि को बिाया गया ै।
  • 12. सिंदभष ग्रिंथ यशपाल के कथा-साह त्य में सामास्जक चेिना - सरोज बजाज यशपाल की क ातनयााँ : कथ्य और मशल्प - चन्द्रभानु सीिाराम सोनिणे यशपाल की क ातनयााँ : समीक्षात्मक मूल्यािंकन - िी. के . राजन यशपाल की क ानी-कला - कु मारी अनु विग https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/93217/9/09_chap ter%205.pdf https://old.mu.ac.in/wp-content/uploads/2020/10/FYBA-Paper-No.-I-Hindi- Ancillary.pdf http://hindsaa.blogspot.com/2019/12/parada-kahani.html https://www.youtube.com/watch?v=KPkF7Xp2APA https://www.youtube.com/watch?v=bVSHY__5wy8-