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बौद्ध दर्शन की परिभाषा
बौद्ध दर्शन की तत्व मीमाांसा, ज्ञान एवां तक
श मीमाांसा औि
मूल्य एवां आचाि मीमाांसा क
े आधाि पि हम उसे
ननम्ननिखित रूप में परिभानषत कि सकते हैं- बौद्ध दर्शन
भाितीय दर्शन की वह नवचािधािा है जो इस ब्रह्माण्ड को न
तो क
े वि वस्तुजन्य मानती है औि न क
े वि आध्याखिक
तत्व द्वािा नननमशत, यह इसे परिणामर्ीि मानती है। यह
आिा-पिमािा क
े अखस्तत्व को स्वीकाि नहीां किती औि
यह प्रनतपादन किती है नक मनुष्य जीवन का अांनतम उद्देश्य
ननवाशण की प्राखि है, नजसे चाि आयश सत्ोां क
े ज्ञान एवां आयश
अष्ाांग मागश तथा निित्न क
े पािन द्वािा प्राि नकया जा
सकता है।
बौद्ध दर्शन क
े मूि नसद्धाांत
बौद्ध दर्शन की तत्व मीमाांसा, ज्ञान एवां तक
श मीमाांसा औि
मूल्य एवां आचाि मीमाांसा को यनद हम नसद्धाांतोां क
े रूप में
क्रमबद्ध किना चाहें तो ननम्ननिखित रूप में कि सकते हैं-
1. यह ब्रह्माण्ड परिणामर्ीि है
श्रौत दर्शन क
े अनुसाि इस ब्रह्माण्ड का मूि तत्व
आध्याखिक है औि चावाशक दर्शन क
े अनुसाि यह ब्रह्माण्ड
चाि मूिभूतोां (भौनतक पदाथों) से नननमशत है। िेनकन बुद्ध ने
इनक
े नवपिीत परिणाम की सत्ता स्वीकाि की है। बुद्ध क
े
अनुयानययोां ने भी इस पि अपने-अपने नवचाि व्यक्त नकए
हैं। वैभानषकोां एवां सौिाांनतकोां क
े अनुसाि यह ब्रह्माण्ड
स्वांफधोां क
े घात-प्रनतघात का प्रनतफि है। योगाचाि नवज्ञान
को इस ब्रह्माांड का मूि तत्व मानते हैं औि माध्यनमक र्ून्य
को। पिांतु एक बात ये भी मानते हैं नक यह जगत
परिणामर्ीि है।
2. वस्तु जगत औि माननसक जगत दोनोां की
सत्ता है
वैभानषकोां क
े अनुसाि यह इांनियग्राह्य जगत सत् है औि
इसक
े साथ-साथ मन ;नचत्त अथवा नवज्ञानद्ध क
े जगत की
भी सत्ता है, पिांतु है सब परिवतशनर्ीि। योगाचाि औि
माध्यनमक इस वस्तु जगत की स्वतांिा सत्ता स्वीकाि नहीां
किते। योगाचाि दर्शन क
े अनुसाि यह बाह्य जगत नवज्ञान
(मन अथवा नचत्त) की अनभव्यखक्त है औि माध्यनमक दर्शन
क
े अनुसाि यह बाह्य जगत र्ून्य (अननवशचनीय पिम तत्व)
की अनभव्यखक्त है। ये दोनोां सांप्रदाय वस्तु जगत की क
े वि
व्यावहारिक सत्ता मानते हैं।
3. आिा-पिमािा की आध्याखिक सत्ता नहीां है
बौद्ध दर्शन आध्याखिक तत्व आिा-पिमािा क
े अखस्तत्व
में नवश्वास नहीां किता। उसक
े स्थान पि वैभानषक एवां
सौिाांनतक नक्रयार्ीि तत्व की सत्ता में नवश्वास किते हैं,
योगाचाि नवज्ञान की सत्ता में औि माध्यनमक र्ून्य की सत्ता
में।
4. मनुष्य स्क
ां धोां का सांघात मािा है
हीनयाननयोां का मत है नक सांसाि क
े समस्त पदाथश पााँच
स्क
ां धोां से नननमशत हैं। ये पांच स्क
ां ध हैं-रूप, वेदना, सांज्ञा,
सांस्काि औि नवज्ञान। महायानी इसे नवज्ञान अथवा र्ून्य की
प्रतीनत मानते हैं। दोनोां सांप्रदाय यह बात स्वीकाि किते हैं
नक प्राणी (मनुष्य) पूवश कमों क
े कािण उत्पन्न होने वािे धमों
का सांघात मािा है, यह तो उसका भ्रम है नक उसक
े अांदि
कोई आिा है। आष्ाांनगक मागश से व्यखक्त को वस्तुओां की
अननत्ता का आभास हो जाता है।
5. मनुष्य का नवकास बाह्य एवां आांतरिक
नक्रयाओां द्वािा होता है
बौद्ध मताविांबी कािण-कायश नसद्धाांत में नवश्वास किते हैं।
इनकी दृनष् से मनुष्य का नवकास पूवशजन्म में नकए गए कमों,
वतशमान में नकए जा िहे कमों औि भनवष्य में नकए जाने वािे
कमों, तीनोां पि ननभशि किता है। हीनयान क
े अनुसाि मानव
क
े नवकास का चिम रूप अहशत पद की प्राखि है औि
महायान क
े अनुसि बुद्धत्व की प्राखि।
6. मनुष्य जीवन का अांनतम उद्देश्य ननवाशण की
प्राखि है
हीनयानी ननवाशण को दुिोां का अभाव मािा मानते हैं, पिांतु
महायानी ननवाशण को आनांद रूप मानते हैं। वैभानषक एवां
सौिाांनतकोां क
े अनुसाि इांनिय भोग से नवमुि होना अथाशत्
तृष्णा क
े नविोध से दुिोां का अांत ही ननवाशण है। इनक
े
अनुसाि ननवाशण क
े दो रूप हैं-सोपनधर्ेष औि
ननरूपनधर्ेष। इनक
े नवपिीत योगाचाि का मत है नक
क्लेर्ाविण तथा ज्ञेयाविण की ननवृनत्त से ननवाशण िाभ हो
सकता है। माध्यनमक पिमाथश तत्व ‘र्ून्य’ की अनुभूनत को
ननवाशण मानते हैं। इस प्रकाि ननवाशण का अथश बौद्ध दर्शन क
े
नभन्न-नभन्न सांप्रदायोां में नभन्न-नभन्न है।
7. ननवाशण क
े निए अष्ाांग मागश आवश्यक है
हीनयानी (वैभानषक औि सौिाांनतक) बुद्ध द्वािा बताए मागश
का अनुसिण किते हैं। उनक
े अनुसाि चाि आयश सत्ोां क
े
ज्ञान औि अष्ाांग मागश का अनुसिण किने से ननवाशण की
प्राखि होती है। महायानी (योगाचािी औि माध्यनमक)
ननवाशण क
े निए चाि आयश सत्ोां क
े ज्ञान औि अष्ाांग मागश क
े
अनुसिण क
े साथ-साथ भखक्त पि भी बि देते हैं।
8. आयश अष्ाांग मागश पि चिने क
े निए निित्न का
पािन आवश्यक है
बौद्ध दर्शन में निित्न-र्ीि, समानध औि प्रज्ञा को मानव
आचिण का मूि माना गया है। र्ीिोां में भी पांचर्ीि
(अनहांसा, अस्तेय, सत् भाषण, ब्रह्मचयश औि नर्ा न किना)
तो गृहस्थ औि नभक्षुक दोनोां क
े निए आवश्यक बताए गए
हैं। समानध अथाशत् नचत्त की नैसनगशक एकाग्रता औि प्रज्ञा को
भी ननवाशण क
े निए आवश्यक माना गया है।
9. िाजा का मूि कतशव्य प्रजा का पािन औि
उसे सत् मागश पि िगाना है
बुद्ध र्ाक्य गणानधपनत र्ुद्धोधन क
े पुि थे। उनकी दृनष् से
िाजा का कतशव्य है प्रजा का पािन किना। साधु क
े रूप में
उन्ोांने इस प्रजा पािन में प्रजा को सद्मागश पि िगाने की
बात भी िाजा क
े कतशव्योां में जोड़ दी। आगे चिकि बौद्ध
धमश औि दर्शन क
े प्रचाि में भी िाज्य का सहयोग प्राि
नकया गया। नकसी भी खस्थनत में बौद्ध दार्शननक िाजा अथवा
िाज्य से यह आर्ा किते िहे नक वह प्रजा क
े आचिण पि
ननयांिण ििे।
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  • 1. thokth fo’ofo|ky;]Xokfy;j izkphu Hkkjrh; bfrgkl] laLd`fr ,oa iqjkrRo v/;;u’kkyk lsfeukj QkbZy fo”k;& बौद्ध दर्शन l=&2021-22 ekxZn’kZd izLrqrdrkZ Mk¡- ,l. ds. f}osnh ;ksxs’k Mk¡- ‘kkafrnso fllksfn;k ,e‐,‐ f}rh; lsesLVj
  • 2. बौद्ध दर्शन की परिभाषा बौद्ध दर्शन की तत्व मीमाांसा, ज्ञान एवां तक श मीमाांसा औि मूल्य एवां आचाि मीमाांसा क े आधाि पि हम उसे ननम्ननिखित रूप में परिभानषत कि सकते हैं- बौद्ध दर्शन भाितीय दर्शन की वह नवचािधािा है जो इस ब्रह्माण्ड को न तो क े वि वस्तुजन्य मानती है औि न क े वि आध्याखिक तत्व द्वािा नननमशत, यह इसे परिणामर्ीि मानती है। यह आिा-पिमािा क े अखस्तत्व को स्वीकाि नहीां किती औि यह प्रनतपादन किती है नक मनुष्य जीवन का अांनतम उद्देश्य ननवाशण की प्राखि है, नजसे चाि आयश सत्ोां क े ज्ञान एवां आयश अष्ाांग मागश तथा निित्न क े पािन द्वािा प्राि नकया जा सकता है।
  • 3. बौद्ध दर्शन क े मूि नसद्धाांत बौद्ध दर्शन की तत्व मीमाांसा, ज्ञान एवां तक श मीमाांसा औि मूल्य एवां आचाि मीमाांसा को यनद हम नसद्धाांतोां क े रूप में क्रमबद्ध किना चाहें तो ननम्ननिखित रूप में कि सकते हैं-
  • 4. 1. यह ब्रह्माण्ड परिणामर्ीि है श्रौत दर्शन क े अनुसाि इस ब्रह्माण्ड का मूि तत्व आध्याखिक है औि चावाशक दर्शन क े अनुसाि यह ब्रह्माण्ड चाि मूिभूतोां (भौनतक पदाथों) से नननमशत है। िेनकन बुद्ध ने इनक े नवपिीत परिणाम की सत्ता स्वीकाि की है। बुद्ध क े अनुयानययोां ने भी इस पि अपने-अपने नवचाि व्यक्त नकए हैं। वैभानषकोां एवां सौिाांनतकोां क े अनुसाि यह ब्रह्माण्ड स्वांफधोां क े घात-प्रनतघात का प्रनतफि है। योगाचाि नवज्ञान को इस ब्रह्माांड का मूि तत्व मानते हैं औि माध्यनमक र्ून्य को। पिांतु एक बात ये भी मानते हैं नक यह जगत परिणामर्ीि है।
  • 5. 2. वस्तु जगत औि माननसक जगत दोनोां की सत्ता है वैभानषकोां क े अनुसाि यह इांनियग्राह्य जगत सत् है औि इसक े साथ-साथ मन ;नचत्त अथवा नवज्ञानद्ध क े जगत की भी सत्ता है, पिांतु है सब परिवतशनर्ीि। योगाचाि औि माध्यनमक इस वस्तु जगत की स्वतांिा सत्ता स्वीकाि नहीां किते। योगाचाि दर्शन क े अनुसाि यह बाह्य जगत नवज्ञान (मन अथवा नचत्त) की अनभव्यखक्त है औि माध्यनमक दर्शन क े अनुसाि यह बाह्य जगत र्ून्य (अननवशचनीय पिम तत्व) की अनभव्यखक्त है। ये दोनोां सांप्रदाय वस्तु जगत की क े वि व्यावहारिक सत्ता मानते हैं।
  • 6. 3. आिा-पिमािा की आध्याखिक सत्ता नहीां है बौद्ध दर्शन आध्याखिक तत्व आिा-पिमािा क े अखस्तत्व में नवश्वास नहीां किता। उसक े स्थान पि वैभानषक एवां सौिाांनतक नक्रयार्ीि तत्व की सत्ता में नवश्वास किते हैं, योगाचाि नवज्ञान की सत्ता में औि माध्यनमक र्ून्य की सत्ता में।
  • 7. 4. मनुष्य स्क ां धोां का सांघात मािा है हीनयाननयोां का मत है नक सांसाि क े समस्त पदाथश पााँच स्क ां धोां से नननमशत हैं। ये पांच स्क ां ध हैं-रूप, वेदना, सांज्ञा, सांस्काि औि नवज्ञान। महायानी इसे नवज्ञान अथवा र्ून्य की प्रतीनत मानते हैं। दोनोां सांप्रदाय यह बात स्वीकाि किते हैं नक प्राणी (मनुष्य) पूवश कमों क े कािण उत्पन्न होने वािे धमों का सांघात मािा है, यह तो उसका भ्रम है नक उसक े अांदि कोई आिा है। आष्ाांनगक मागश से व्यखक्त को वस्तुओां की अननत्ता का आभास हो जाता है।
  • 8. 5. मनुष्य का नवकास बाह्य एवां आांतरिक नक्रयाओां द्वािा होता है बौद्ध मताविांबी कािण-कायश नसद्धाांत में नवश्वास किते हैं। इनकी दृनष् से मनुष्य का नवकास पूवशजन्म में नकए गए कमों, वतशमान में नकए जा िहे कमों औि भनवष्य में नकए जाने वािे कमों, तीनोां पि ननभशि किता है। हीनयान क े अनुसाि मानव क े नवकास का चिम रूप अहशत पद की प्राखि है औि महायान क े अनुसि बुद्धत्व की प्राखि।
  • 9. 6. मनुष्य जीवन का अांनतम उद्देश्य ननवाशण की प्राखि है हीनयानी ननवाशण को दुिोां का अभाव मािा मानते हैं, पिांतु महायानी ननवाशण को आनांद रूप मानते हैं। वैभानषक एवां सौिाांनतकोां क े अनुसाि इांनिय भोग से नवमुि होना अथाशत् तृष्णा क े नविोध से दुिोां का अांत ही ननवाशण है। इनक े अनुसाि ननवाशण क े दो रूप हैं-सोपनधर्ेष औि ननरूपनधर्ेष। इनक े नवपिीत योगाचाि का मत है नक क्लेर्ाविण तथा ज्ञेयाविण की ननवृनत्त से ननवाशण िाभ हो सकता है। माध्यनमक पिमाथश तत्व ‘र्ून्य’ की अनुभूनत को ननवाशण मानते हैं। इस प्रकाि ननवाशण का अथश बौद्ध दर्शन क े नभन्न-नभन्न सांप्रदायोां में नभन्न-नभन्न है।
  • 10. 7. ननवाशण क े निए अष्ाांग मागश आवश्यक है हीनयानी (वैभानषक औि सौिाांनतक) बुद्ध द्वािा बताए मागश का अनुसिण किते हैं। उनक े अनुसाि चाि आयश सत्ोां क े ज्ञान औि अष्ाांग मागश का अनुसिण किने से ननवाशण की प्राखि होती है। महायानी (योगाचािी औि माध्यनमक) ननवाशण क े निए चाि आयश सत्ोां क े ज्ञान औि अष्ाांग मागश क े अनुसिण क े साथ-साथ भखक्त पि भी बि देते हैं।
  • 11. 8. आयश अष्ाांग मागश पि चिने क े निए निित्न का पािन आवश्यक है बौद्ध दर्शन में निित्न-र्ीि, समानध औि प्रज्ञा को मानव आचिण का मूि माना गया है। र्ीिोां में भी पांचर्ीि (अनहांसा, अस्तेय, सत् भाषण, ब्रह्मचयश औि नर्ा न किना) तो गृहस्थ औि नभक्षुक दोनोां क े निए आवश्यक बताए गए हैं। समानध अथाशत् नचत्त की नैसनगशक एकाग्रता औि प्रज्ञा को भी ननवाशण क े निए आवश्यक माना गया है।
  • 12. 9. िाजा का मूि कतशव्य प्रजा का पािन औि उसे सत् मागश पि िगाना है बुद्ध र्ाक्य गणानधपनत र्ुद्धोधन क े पुि थे। उनकी दृनष् से िाजा का कतशव्य है प्रजा का पािन किना। साधु क े रूप में उन्ोांने इस प्रजा पािन में प्रजा को सद्मागश पि िगाने की बात भी िाजा क े कतशव्योां में जोड़ दी। आगे चिकि बौद्ध धमश औि दर्शन क े प्रचाि में भी िाज्य का सहयोग प्राि नकया गया। नकसी भी खस्थनत में बौद्ध दार्शननक िाजा अथवा िाज्य से यह आर्ा किते िहे नक वह प्रजा क े आचिण पि ननयांिण ििे।