President Obama’s speech in Cairo on America’s relationship with Muslim communities around the world. June 4th, 2009. http://www.whitehouse.gov/blog/newbeginning/
व्यावहारिक मनोविज्ञान का अर्थ इतिहास (Meaning and History of Applied Pschology)Dr Rajesh Verma
हेनरी इलियट के अनुसार “यह मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें शुद्ध और विशेषकर प्रायोगिक मनोविज्ञान की विधियों एवं परिणामों को व्यहारिक समस्याओं और व्यवहारिक जीवन पर प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है”
Nepali autosuggestions to overcome negative thoughtsSSRF Inc.
नकारात्मक विचारहरू हटाउन धेरै गाह्रो हुनुको कारण हो, हामी समस्याहरूलाई केवल शारीरिक र मानसिक समाधानको साथ सम्बोधन गर्न खोजदछौं । प्राय धेरै जसो समयमा, समस्या आध्यात्मिक स्तरमा हुन्छ यस कारण कम प्रभावकारी हुन जान्छ ।
व्यावहारिक मनोविज्ञान का अर्थ इतिहास (Meaning and History of Applied Pschology)Dr Rajesh Verma
हेनरी इलियट के अनुसार “यह मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें शुद्ध और विशेषकर प्रायोगिक मनोविज्ञान की विधियों एवं परिणामों को व्यहारिक समस्याओं और व्यवहारिक जीवन पर प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है”
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नकारात्मक विचारहरू हटाउन धेरै गाह्रो हुनुको कारण हो, हामी समस्याहरूलाई केवल शारीरिक र मानसिक समाधानको साथ सम्बोधन गर्न खोजदछौं । प्राय धेरै जसो समयमा, समस्या आध्यात्मिक स्तरमा हुन्छ यस कारण कम प्रभावकारी हुन जान्छ ।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
Assamppt IN HINDI असम पीपीटी इन हिंदी {ART INTEGRATED PROJECT} description ...KALPESH-JNV
THIS PPT IS BASED ON ASSAM. EVERY THING ABOUT IT. IT CULTURE , HERITAGED.
इस PPT को ASSAM पर आधारित है। इसके बारे में सब कुछ। आईटी संस्कृति, हेरिटेज। सम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा २४° १' उ॰अ॰-२७° ५५' उ॰अ॰ तथा ८९° ४४' पू॰दे॰-९६° २' पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है।नाम की उत्पत्ति कामाख्या मन्दिर (नीलाचल, गुवाहाटी) कारेंगघर, आहोम राजा का महल
देवी डोल (शिवसागर)
राजाओं के मैदाम
रंग घर
तलातल घर
कलिया भोमोरा सेतु
चन्द्रकान्ता हस्तकला भवन (जोरहट)
डिब्रूगढ़ की एक चाय बगान
असम चाय
चित्र:Krishnakshi Kashyap Sattriya Dancer.jpg
कृष्णाक्षी कश्यप, सत्रीया नृत्यांगना
एक सींग वाला गैंडा
विशेषज्ञों के अनुसार 'आसाम' नाम काफी परवर्ती है। पहले इस राज्य को 'असम' कहा जाता था।
सामान्य रूप से माना जाता है कि असम नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है, वो भूमि जो समतल नहीं है। कुछ लोगों की मान्यता है कि "आसाम" संस्कृत के शब्द "अस्म " अथवा "असमा", जिसका अर्थ असमान है का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों का मानना है कि 'असम' शब्द संस्कृत के 'असोमा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्न जातियां प्राचीन काल से इस प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहाँ की मिश्रित संस्कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्कृति और सभ्यता की समृद्ध परंपरा रही है।
कुछ लोग इस नाम की व्युत्पत्ति 'अहोम' (सीमावर्ती बर्मा की एक शासक जनजाति) से भी बताते हैं।
आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बंगलादेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था तथा उक्त नाम विषम भौम्याकृति के संदर्भ में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता था क्योंकि हिमालय की नवीन मोड़दार उच्च पर्वतश्रेणियों तथा पुराकैब्रियन युग के प्राचीन भूखंडों सहित नदी (ब्रह्मपुत्) निर्मित समतल उपजाऊ मैदान तक इसमें आते थे। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों की अपनी संस्कृति आदि पर आधारित अलग अस्तित्व की माँगों के परिणामस्वरूप वर्तमान आसाम राज्य का लगभग ७२ प्रतिशत क्षेत्र ब्रहपुत्र की घाटी (असम की घाटी) तक सीमित रह गया है जो पहले लगभग ४० प्रतिशत मात्र ही था।
इतिहास
मुख्य लेख: असम का इतिहास
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता था। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराणके अनुसार उषाने अपनी सखी चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धको अपहरण करवाया | यह बात यहाँ की दन्तकथाओं में भी पाया जाता है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है।
Jane se phele niche vali video dekh lo (VERY IMP)
https://www.youtube.com/watch?v=V5qMCRAZTN8
The document summarizes a review of over 200 climate studies that determined:
1) The 20th century was neither the warmest nor had the most extreme weather of the past 1000 years.
2) The Medieval Warm Period from 800-1300AD and Little Ice Age from 1300-1900AD occurred globally, not just in Europe/North America.
3) Many areas saw greater warmth during the Medieval Warm Period than the 20th century.
1) EPA denied a petition to regulate greenhouse gas emissions from motor vehicles, citing three reasons: it lacks authority under the Clean Air Act; Congress assigned fuel economy regulation to DOT; and regulation would be inappropriate now.
2) President Bush announced a voluntary approach in 2002 to reduce greenhouse gas intensity by 18% over 10 years through fuel efficiency improvements and climate programs.
3) EPA launched programs like Climate Leaders and SmartWay to reduce emissions from transportation and encourage fuel efficiency.
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
Assamppt IN HINDI असम पीपीटी इन हिंदी {ART INTEGRATED PROJECT} description ...KALPESH-JNV
THIS PPT IS BASED ON ASSAM. EVERY THING ABOUT IT. IT CULTURE , HERITAGED.
इस PPT को ASSAM पर आधारित है। इसके बारे में सब कुछ। आईटी संस्कृति, हेरिटेज। सम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है। यह भारत की पूर्वोत्तर सीमा २४° १' उ॰अ॰-२७° ५५' उ॰अ॰ तथा ८९° ४४' पू॰दे॰-९६° २' पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल ७८,४६६ वर्ग कि॰मी॰ है। भारत - भूटान तथा भारत - बांग्लादेश सीमा कुछ भागो में असम से जुडी है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है।नाम की उत्पत्ति कामाख्या मन्दिर (नीलाचल, गुवाहाटी) कारेंगघर, आहोम राजा का महल
देवी डोल (शिवसागर)
राजाओं के मैदाम
रंग घर
तलातल घर
कलिया भोमोरा सेतु
चन्द्रकान्ता हस्तकला भवन (जोरहट)
डिब्रूगढ़ की एक चाय बगान
असम चाय
चित्र:Krishnakshi Kashyap Sattriya Dancer.jpg
कृष्णाक्षी कश्यप, सत्रीया नृत्यांगना
एक सींग वाला गैंडा
विशेषज्ञों के अनुसार 'आसाम' नाम काफी परवर्ती है। पहले इस राज्य को 'असम' कहा जाता था।
सामान्य रूप से माना जाता है कि असम नाम संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है, वो भूमि जो समतल नहीं है। कुछ लोगों की मान्यता है कि "आसाम" संस्कृत के शब्द "अस्म " अथवा "असमा", जिसका अर्थ असमान है का अपभ्रंश है। कुछ विद्वानों का मानना है कि 'असम' शब्द संस्कृत के 'असोमा' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्न जातियां प्राचीन काल से इस प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में समय-समय पर आकर बसीं और यहाँ की मिश्रित संस्कृति में अपना योगदान दिया। इस तरह असम में संस्कृति और सभ्यता की समृद्ध परंपरा रही है।
कुछ लोग इस नाम की व्युत्पत्ति 'अहोम' (सीमावर्ती बर्मा की एक शासक जनजाति) से भी बताते हैं।
आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बंगलादेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था तथा उक्त नाम विषम भौम्याकृति के संदर्भ में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता था क्योंकि हिमालय की नवीन मोड़दार उच्च पर्वतश्रेणियों तथा पुराकैब्रियन युग के प्राचीन भूखंडों सहित नदी (ब्रह्मपुत्) निर्मित समतल उपजाऊ मैदान तक इसमें आते थे। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों की अपनी संस्कृति आदि पर आधारित अलग अस्तित्व की माँगों के परिणामस्वरूप वर्तमान आसाम राज्य का लगभग ७२ प्रतिशत क्षेत्र ब्रहपुत्र की घाटी (असम की घाटी) तक सीमित रह गया है जो पहले लगभग ४० प्रतिशत मात्र ही था।
इतिहास
मुख्य लेख: असम का इतिहास
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता था। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराणके अनुसार उषाने अपनी सखी चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धको अपहरण करवाया | यह बात यहाँ की दन्तकथाओं में भी पाया जाता है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है।
Jane se phele niche vali video dekh lo (VERY IMP)
https://www.youtube.com/watch?v=V5qMCRAZTN8
The document summarizes a review of over 200 climate studies that determined:
1) The 20th century was neither the warmest nor had the most extreme weather of the past 1000 years.
2) The Medieval Warm Period from 800-1300AD and Little Ice Age from 1300-1900AD occurred globally, not just in Europe/North America.
3) Many areas saw greater warmth during the Medieval Warm Period than the 20th century.
1) EPA denied a petition to regulate greenhouse gas emissions from motor vehicles, citing three reasons: it lacks authority under the Clean Air Act; Congress assigned fuel economy regulation to DOT; and regulation would be inappropriate now.
2) President Bush announced a voluntary approach in 2002 to reduce greenhouse gas intensity by 18% over 10 years through fuel efficiency improvements and climate programs.
3) EPA launched programs like Climate Leaders and SmartWay to reduce emissions from transportation and encourage fuel efficiency.
This document is a forwarded email with talking points about an unspecified state. It was forwarded from Phil Cooney at the White House Council on Environmental Quality to Tony Podesta and others. The original message contained state talking points from Jackie Hadfield but no further context was provided.
Nelson Mandela fought for equal rights between blacks and whites in apartheid South Africa, spending many years imprisoned on Robben Island for his anti-apartheid activism. After the end of apartheid, he became president and worked to transform the government into a multi-racial democracy that included the white demographic. Mandela played a pivotal role in the struggle for equality and democratic rule in South Africa.
This document discusses a project investigating coupling schemes between computational fluid dynamics (CFD) and computational aeroacoustics (CAA) models within a multidisciplinary design optimization (MDO) framework for Airbus. It includes images showing sample 2D and 3D grids for flow simulations, flow streamlines around a wing, and plots of frequency spectra and directivity for analyzing dipole noise sources.
This document discusses several issues related to the Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) negotiations on the Third Assessment Report:
1. It outlines recommendations for restructuring the US attendance at upcoming IPCC meetings to replace representatives from the Clinton/Gore administration with scientists skeptical of climate change risks.
2. It raises issues with deferring portions of the Third Assessment Report to allow more input from the new Bush Administration on the reports and conclusions.
3. It discusses disagreements between climate model projections of increased tropospheric warming and satellite temperature data showing less warming than surface temperatures, calling the ability to correctly model tropospheric temperature changes critically important.
This document proposes a project to implement By-Product Synergy (BPS) in New Jersey. BPS aims to reduce waste and pollution by identifying opportunities for one company's byproducts to be used as resources by other companies. The project will involve organizing companies to discover such synergies. The Center for Clean Air Policy seeks funding to estimate emissions reductions from implemented BPS projects in New Jersey. The project would begin in June and involve six phases over multiple years to identify synergies, recruit companies, analyze data, implement projects, and monitor benefits including reduced emissions.
Letter from Steel Manufactures Association 11.21.02Obama White House
The Steel Manufacturers Association (SMA) expressed interest in participating in the Bush Administration's voluntary climate change Business Challenge. The SMA represents over 50% of US steel production, primarily from electric arc furnace (EAF) mini-mills that produce steel from scrap metal. EAF production is more energy efficient and recycles more than integrated mills. The SMA has tracked members' greenhouse gas emissions and believes it can refine reporting with DOE. SMA members promote cost-effective technologies to reduce emissions and will continue sharing information and research to support the voluntary initiative.
The document is an email from Clare Breidenich notifying recipients that there are formatting issues with the GHG Inventory chapter of the US National Communication to the UNFCCC that was previously distributed. She offers to send an updated version that fixes the problems and asks if anyone needs the full set of graphic files.
This project aims to build a hydraulic model of a penis to educate youth about proper condom use. The model will use hydraulic and electrical systems to demonstrate how to correctly put on a condom. It is an educational tool meant to prevent early pregnancies and transmission of STDs by showing teenagers how to use protection properly. The summary will be constructed using hydraulic, condoms, and educate in 3 sentences or less.
The document discusses the benefits of meditation for reducing stress and anxiety. Regular meditation practice can help calm the mind and body by lowering heart rate and blood pressure. Studies have shown that meditating for just 10-20 minutes per day can have significant positive impacts on both mental and physical health over time.
Clarion Care is a benefits administration platform that aims to save employers and employees time and money on healthcare costs. It allows employers to make a single monthly payment into employee Clarion Care accounts, giving employees tax-free money to purchase qualified health insurance and pay medical expenses. On average, employers can save over $9300 per employee annually in healthcare costs by using Clarion Care. It streamlines benefits administration and gives employees easy-to-use tools to manage their health spending and insurance choices.
This document summarizes and evaluates various news filtering applications on the web. It provides a table listing common news filtering applications and their URLs. It then analyzes the features and drawbacks of each application, noting that while many rely on community recommendations to surface relevant stories, the systems themselves are limited in their ability to do so implicitly without direct user feedback. The document concludes with suggestions for possible enhancements, such as free previews, tutorials, related content feeds, statistics tracking, and improved personalized recommendation capabilities.
This document discusses various topics in a disorganized manner, moving between different subjects without clear transitions. It mentions topics like AAA, A's, numbers, and symbols with no obvious overall meaning or purpose. The writing is challenging to follow and decipher.
The document is an op-ed piece arguing that the EPA has no authority under the Clean Air Act to regulate carbon dioxide as a pollutant. It summarizes arguments made by state attorneys general that the CAA requires EPA to regulate CO2, and rebuts those arguments. The op-ed argues that the CAA provides authority only for specific air pollution programs, not a general climate program, and that attempting to regulate CO2 under existing CAA provisions would be an "absurd exercise in futility." It concludes the attorneys general are engaged in a "transparent power grab" to expand their enforcement authority.
Le marché Italien , si proche de nous, est mal connu. Or les PME Italiennes montrent une superbe énergie et un dynamisme (surtout à l'export), dont nous devons nous inspirer !
Comme au temps de la Renaissance !
The letter urges President Bush to withdraw the Climate Action Report 2002 and reassign administration employees who do not fully support his policies on global warming and energy. It argues the report relies on "junk science" and "discredited products" from the previous administration. It says the report undermines the President's position against the Kyoto Protocol and policies that would implement similar energy restrictions. The letter urges the President to produce a new report based on "sound science" that is consistent with his agenda.
The document discusses the benefits of exercise for mental health. Regular physical activity can help reduce anxiety and depression and improve mood and cognitive functioning. Exercise causes chemical changes in the brain that may help protect against mental illness and improve symptoms.
White House State of the Union 2016 - Enhanced GraphicsObama White House
On January 12, 2016, President Obama delivered his final State of the Union address to Congress and the nation.
Check out the slides from the enhanced broadcast of his address, featuring charts, graphs, and images that help explain the policies and issues he discussed.
Learn more at WhiteHouse.gov/SOTU.
President Obama penned a letter to Congressman Nadler of New York outlining how the Iran deal is a key piece of our strategy to help our allies in the Middle East counter Iran's destabilizing activities.
This document appears to be notes from a meeting on drought and wildfire between Western governors and White House officials. The agenda includes presentations on drought and wildfires, followed by discussion. The document outlines various federal efforts to address drought, including disaster assistance for workers, water conservation programs, strategic investments, and fire preparedness. It also discusses the impacts of drought on forests and unsustainable increases in wildfire suppression funding.
Everyday acts of kindness and giving back can drive positive change in our nation and address global challenges when people come together through movements like #GivingTuesday. This document encourages supporting neighbors in need through charitable donations and kindness this holiday season to cultivate understanding that we are all part of something greater and can have an impact around the world.
Abraham Lincoln (1809–1865). "Nicolay Copy," Gettysburg Address, 1863. Page 1 and 2. Holograph manuscript. Manuscript Division, Library of Congress. Gift of Hay family, 1916 (2.5). Courtesy of the National Archives and Library of Congress.
Message: Commemorating the 50th Anniversary of the White House FellowsObama White House
This is the President's message commemorating the establishment of the White House Fellows, a prestigious program dedicated to giving the nation’s most promising leaders insight into the inner workings of the Federal government. To learn more visit: http://www.whitehouse.gov/about/fellows.
The minimum wage helps support family incomes, reducing inequality and poverty, but as a slide deck from the Council of Economic Advisers shows, as the real value of the minimum wage has been allowed to erode, it has stopped serving this important purpose.
White House State of the Union 2014 Enhanced Graphics PosterObama White House
On January 28, President Obama delivered the 2014 State of the Union Address to Congress and the nation.
Check out the slides from the enhanced broadcast of his address, featuring charts, graphs, and images that help explain the policies and issues he discussed.
White House State of the Union 2014 Enhanced GraphicsObama White House
On January 28, President Obama delivered the 2014 State of the Union Address to Congress and the nation.
Check out the slides from the enhanced broadcast of his address, featuring charts, graphs, and images that help explain the policies and issues he discussed.
See more at WhiteHouse.gov/SOTU.
President Obama's Handwritten Tribute to the Gettysburg AddressObama White House
150 years after President Lincoln delivered the Gettysburg Address, President Obama penned a handwritten tribute to President Lincoln's historic remarks.
President Obama believes we have a moral obligation to lead the fight against carbon pollution. Share the details of his plan to help make sure people in your community get the facts.
The document outlines the President's plan to reduce the deficit by more than $4 trillion total through 2023. It details that over $2.5 trillion in deficit reduction has already been signed into law. This includes $1.4 trillion in spending cuts and more than $600 billion in new tax revenue from the wealthy. The President has also offered Speaker Boehner an additional $1.5 trillion in deficit reduction, including $930 billion in spending cuts to defense, health care, and entitlement programs, as well as $580 billion from limiting tax deductions for the wealthy.
Now Is the Time: President Obama's Plan to Reduce Gun ViolenceObama White House
The President’s plan to protect our children and our communities by reducing gun violence.
Learn More: http://www.whitehouse.gov/issues/preventing-gun-violence
The document discusses President Obama's proposal to extend middle-class tax cuts. It proposes extending tax cuts for families making under $250,000 per year. This would benefit 114 million middle-class families. Failing to extend the cuts would increase taxes by an average of $1,600 for each of these families. The plan aims to reduce the federal deficit by $1.16 trillion over 10 years by not extending high-income tax cuts for those making over $250,000 annually.
The Obama Administration recognizes that the interconnected challenges in high-poverty neighborhoods require interconnected solutions. The Neighborhood Revitalization Initiative is a community-based approach to help neighborhoods in distress transform themselves into neighborhoods of opportunity.
White House Neighborhood Revitalization Initiative
The President’s Speech in Cairo: A New Beginning - Hindi
1. राष्टरपति बराक ओबामा का व्यक्तव्य
्
एक नई शुरूआत
क़ाहिरा विश्वविद्यालय
क़ाहिरा, मिस्र
दोपहर 1.10 (स्थानीय)
राषटरपति ओबामा: बहुत धन्यवाद. गुड आफ्टरनून
् ्
मैं इस बात से बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि शाश्वत नगरी क़ाहिरा में हूं,
और दो विशिष्ट संस्थानों के अतिथि के रूप में यहां आया हूं। एक हज़ार से भी अधिक
वर्ष से अल-अज़हर इस्लामी शिक्षा की एक मशाल बनकर खड़ा है और एक शताब्दी
से भी अधिक समय से क़ाहिरा विश्वविद्यालय मिस्र की प्रगति का एक स्रोत रहा है।
और आप दोनों मिलकर परम्परा और प्रगति के बीच सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करते
हैं। मैं आपके अतिथि-सत्कार के लिये और मिस्र की जनता के अतिथि सत्कार के लिए
बहुत आभारी हूं। और मुझे इस बात का गर्व है कि मैं अमरीकी जनता की सद्भावना
अपने साथ लाया हूं, और अपने देश के मुस्लिम समुदायों का शांति अभिवादन लाया
हूं----“अस्सलाम आलेकुम” (तालियाँ)
हम एक ऐसे समय पर मिल रहे हैं जो कि अमेरिका और विश्व भर के मुस्लिमों के
बीच भारी तनाव का समय है Ñ तनाव जिसकी जड़ें उन ऐतिहासिक ताक़तों में जमी हुई
हैं जो नीति सम्बन्धी किसी भी मौजूदा बहस से कहीं परे तक जाती है। इस्लाम और
ं
पश्चिम के बीच के सम्बन्धों में सह –अस्तित्व और सहयोग की शताब्दियां शामिल हैं,
तो साथ ही संघर्ष और धार्मिक युद्ध भी। निकट अतीत में उपनिवेशवाद ने इस तनाव
को सींचा जिसने बहुत से मुसलमानों को अधिकारों और अवसरों से वंचित रखा और
उस शीत युदध ने सींचा जिसमें देशों को, उनकी अपनी आकांकषांओं की परवाह किये
् ्
बग़ैर , अक्सर प्रतिनिधियों के रूप में देखा गया। इसके अतिरिक्त, आधुनिकता और
वैश्वीकरण की वजह से आए व्यापक परिवर्तन के कारण बहुत से मुसलमान पश्चिम
को इस्लाम की परम्पराओं के विरोधी के रूप में देखने लगे ।
मुसलिमों के एक छोटे अल्पसंखयक खंड के हिंसक अतिवादियों ने इन तनावों का
् ्
अनुचित लाभ उठाया है। 11 सितम्बर, 2009 के हमलों और नागरिकों के ख़िलाफ़ हिंसा
के इन अतिवादियों के लगातार जारी प्रयासों के कारण मेरे देश में कुछ लोगों को यह
लगने लगा कि इस्लाम न केवल अमेरिका और पश्चिमी देशों का, बल्कि मानवाधिकारों
का भी अनिवार्य रूप से विरोधी है। इस सब से और अधिक भय तथा अविश्वास पैदा
2. हुआ है।
जबतक हमारे मतभेद हमारे सम्बन्धों को परिभाषित करते रहेंगे, हम उन लोंगो को बल
प्रदान करेगे जो शांति के बजाए घृणा के बीज बोते है, जो संघर्ष को बढ़ावा देते है,
ं ं ं
सहयोग को नहीं, जो हमारे सभी लोगों को खुशहाली प्राप्त करने में सहायता कर सकता
है। सन्देह और फूट का यह ऐसा चक्र है जिसका हमें अंत करना होगा।
मैं संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर के मुसलमानों के बीच एक नई शुरूआत की
खोज में यहां आया हूं जो पारस्परिक हित और पारस्परिक सम्मान पर आधारित हो-
जो इस सत्य पर आधारित हो कि अमरीका और इस्लाम अनन्य नहीं कि जहां एक हो
वहां दूसरा नहीं, और उनमें प्रतिस्पर्धा ज़रूरी नहीं है। बल्कि उनमें समानताएं हैं,
समान सिद्धांतों में विश्वास है Ñ न्याय और प्रगति के सिद्धांत, सहिष्णुता और हर
मानव की मान-प्रतिष्ठा के सिद्धांत।
मैं यह जानता हूँ की परिवर्तन रातोंरात नहीं हो सकता। मै जनता हूँ कि इस भाषण
का काफी प्रचार किया गया है , लेकिन कोई भी एक भाषण वर्षों के अविश्वास को नहीं
मिटा सकता, ना ही मैं इस शाम जितना समय मेरे पास है उसमें उन सभी पेचीदा
सवालों के जवाब दे सकता हूँ जो हमें इस मुक़ाम तक ले आये हैं। लेकिन मुझे
विशवास है कि आगे बढ़ने के लिये हमें खुले रूप में वह कहना होगा जो हमारे दिलों में
ह, और जो अक्सर बंद दरवाज़ों के पीछे ही कहा जाता है। एक दूसरे की बात सुनने का,
ै
एक दूसरे से सीखने का, एक दूसरे का सम्मान करने का, और सहमति का आधार ढ़ूंढ़ने
का सतत प्रयास होना चाहिये। जैसा कि पवित्र कुरान हमें बताती है “ईश्वर के प्रति
सजग रहो और हमेशा सच बोलो” (तालियाँ) . आज मैं यही करने की कोशिश
करूगा--- जितना ज़्यादा से ज़्यादा कर सकता हू, सच बोलूगा, जो बड़ा काम हमारे
ं ं ँ
सामने है उसके आगे नतमस्तक होते हुए और मनमें दृढ़ विश्वास के साथ कि मानवों
के रूप में हमारे जो साझे हित हैं वे उन ताक़तों से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं जो हमें
एक दूसरे से जुदा करती हैं।
इस दृढ़ विश्वास की जड़ें आंशिक रूप में मेरे अपने अनुभव में जमी हुई हैं। मैं एक
ईसाई हूं। मेरे पिता केन्या के एक ऐसे परिवार से हैं जिसमें मुसलमानों की पीढ़ियां
शामिल हैं। एक बालक के रूप में मैंने कई वर्ष इंडोनेशिया में बिताए और सुबह भोर के
समय और शाम को सूरज छुपने के समय मै अज़ान सुना करता था। एक युवक के रूप
में, मैंने शिकागो के समुदायों में काम किया जहां बहुतों ने अपने मुस्लिम मज़हब में
गरिमा और शांति प्राप्त की।
इतिहास का छात्र होने के नाते, मैं यह भी जानता हूं कि सभ्यता पर इस्लाम का बड़ा
ऋण है। अल-अज़हर विश्वविद्यालय जैसे स्थलों पर वह इस्लाम ही था जिसने कई
3. शताब्दियों तक शिक्षा की मशाल जलाए रखी, जिससे यूरोप के पुनर्जागरण और
ज्ञानोदय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
यह मुस्लिम समुदायों का नवाचार ही था (तालियाँ) जिसने बीजगणित के नियमों का
विकास किया, हमारे चुम्बकीय दिग्सूचक और जहाज़रानी के उपकरणों, लेखनी और
मुद्रण पर हमारी प्रवीणता और बीमारी कैसे फैलती है और उसे कैसे दूर किया जा
सकता है इस बारे में हमारी समझबूझ का विकास किया। इस्लामी संस्कृति ने हमें
राजसी मेहराब और गगनचुंबी मीनारें दी हैं, शाश्वत काव्य और दिल में बस जानेवाला
संगीत दिया है, शानदार हस्तलेख और शांतिपूर्ण चिंतन के स्थल दिए हैं। और
सम्पूर्ण इतिहास में इस्लाम ने शब्दों और कृत्यों के ज़रिये धार्मिक सहिष्णुता और
जातीय समानता की संभावनाओं को प्रर्दशित किया है। (तालियाँ)
मैं यह भी जानता हूं कि इस्लाम अमेरिका की कहानी का भी हमेशा से हिस्सा रहा है।
मेरे देश को मान्यता देने वाला पहला देश था – मोरक्को। सन् 1796 में त्रिपोली की
संधि पर हस्ताक्षर करते समय हमारे दूसरे राष्ट्रपति जौन ऐडम्स ने लिखा था
“संयुक्त राज्य अमेरिका के चरित्र में मुसलमानों के क़ानूनों, धर्म या शांतिमयता के
विरुद्ध कोई बैर भाव नहीं है” और “धार्मिक विचारों के कारण कभी भी कोई ऐसा
बहाना खड़ा नहीं होगा जो हमारे दोनों देशों के बीच मौजूद मैत्री और मेल–मिलाप में
व्यवधान डाल सके”। हमारी स्थापना के समय से अमरीकी मुसलमानों ने संयुक्त
राज्य अमेरिका को समृदध बनाया है। वे हमारे युद्धों में लड़े हैं, सरकार की सेवा की है,
्
नागरिक अधिकारों के लिये खड़े हुए है, व्यापार शुरू किये हैं, हमारे विश्वविद्यालयों में
ं
पढ़ाया है, हमारे खेल के मैदानों में शानदार प्रदर्शन किये हैं, नोबेल पुरस्कार जीते हैं,
हमारी सबसे ऊंची इमारतों का निर्माण किया है, और ओलम्पिक मशाल जलायी है। यह
कहानी सदियों तक फैली हुई है जिसका तब प्रदर्शन हुआ जब पहला मुसलमान-
अमरीकी हाल ही में संसद के लिये चुना गया और संविधान की रक्षा करने की शपथ
लेने के लिये उसी क़ुरान का इस्तेमाल किया जिसे हमारे संस्थापक पितामहों में से एक
– टॉमस जेफ़रसन – ने अपने निजी पुस्तकालय में रखा हुआ था। (तालियाँ)
तो इस क्षत्र में आने से पहले जहां इस्लाम उद्घाटित हुआ, तीन महाद्वीपों में
इस्लाम से मेरा परिचय हो चुका है। यह अनुभव मेरे इस दृढ़ विश्वास को निर्देशित
करता है कि अमेरिका और इस्लाम के बीच साझेदारी इस्लाम क्या है इस पर आधारित
होनी चाहिये, जो वह नहीं है उस पर नहीं। और मैं अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में इसे
अपने दायित्व का एक अंग मानता हूं कि जहां कहीं भी इस्लाम की नकारात्मक
रूढ़िबद्ध धारणाएं दिखाई दें, उनके विरुद्ध लडूं । (तालियाँ)
किंतु यही सिद्धांत अमेरिका के बारे में मुस्लिम अवधारणाओं पर भी लागू होना चाहिये।
4. (तालियाँ) जैसे कि मुसलमान एक अपरिष्कृत रूढ़िबद्ध धारणा में फिट नहीं होते, उसी
तरह अमेरिका भी स्वहित-संलग्न साम्राज्य की अपरिष्कृत रूढ़िबद्ध धारणा का
प्रतीक नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका प्रगति के विश्व के सबसे महान स्रोतों में से
एक रहा है। मेरा देश एक साम्राज्य के विरुद्ध क्रांति से जन्मा था। हमारी स्थापना
इस आदर्श के अंतर्गत हुई थी कि सभी को समान बनाया गया है, और हमने इन
शब्दों को सार्थक करने के लिये सदियों संघर्ष किया है और ख़ून बहाया है - अपनी
सीमाओं के भीतर और विश्वभर में। इस धरती के हर कोने से आयी हर संस्कृति ने
हमें रूप दिया है और हम इस सीधी-सादी विचारधारा को समर्पित हैं- ई प्लूरिबस उनम
“अनेक में से, एक” ।
इस तथ्य को लेकर बहुत कुछ कहा सुना गया है कि एक अफ्रीकी-अमरीकी जिसका नाम
बरक हुसैन ओबामा है, अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जा सका। (तालियाँ) लेकिन मेरी
व्यक्तिगत कहानी इतनी अनूठी नहीं है। सभी लोगों के लिये अवसर का स्वप्न अमेरिका
के हर व्यक्ति के लिए साकार नहीं हुआ है, लेकिन इसकी आशा हमारे तट पर आनेवाले
सभी लोगों के लिए विद्यमान है - और इसमें लगभग सत्तर लाख अमरीकी मुसलमान
शामिल हैं जो आज हमारे देश में मौजूद हैं। और असल में अमरीकी औसत के मुकाबले
अमरीकी मुसलमान अधिक ऊंचे स्तर की आय और शिक्षा का आनंद ले रहे हैं ।
(तालियाँ)
इसके अतिरिक्त, अमेरिका में आज़ादी को अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी से
अलग नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि हमारे राष्ट्र के हर राज्य में एक
मस्जिद है और हमारी सीमाओं के भीतर 1,200 से भी अधिक मस्जिदें हैं। यही कारण है
कि अमरिका सरकार ने हिजाब पहनने के महिलाओं और लड़कियों के अधिकार की रक्षा
के लिये और उन्हंे ऐसे अधिकार से वंचित करनेवालों को सज़ा देने के लिए अदालत का
दरवाज़ा खटखटाया। (तालियाँ)
तो इस बारे में कोई सन्देह नहीं रहना चाहिये कि इस्लाम अमेरिका का अंग है । और
मेरा विश्वास है कि अमेरिका ने अपने भीतर इस सत्य को आत्मसात कर रखा है कि
जाति, धर्म या जीवन में स्थान कुछ भी हो, हम सब की यह साझी आकांकषाएं हैं –
्
शांति और सुरक्षा में रहें, शिक्षा प्राप्त करें और सम्मान के साथ काम करें, अपने
परिवारों, अपने समुदायों और अपने ईश्वर से प्यार करें । हममें ये सब चीज़ें साझी हैं।
और सम्पूर्ण मानवता की यही आशा है ।
यह सही है कि अपनी साझी मानवता को पहचान लेने से ही हमारा काम ख़त्म नहीं हो
जाता। वास्तव में यह तो सिर्फ़ शुरूआत है। केवल शब्द हमारी जनता की
5. आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। आनेवाले वर्षों में हमें निडर होकर कार्य
करना होगा। और हमें इस बात को समझते हुए काम करना होगा कि विश्वभर में लोगों
के सामने जो चुनौतियां हैं वे समान हैं, और अगर हम इन चुनौतियों का सामना करने
में असफल रहते हैं तो हम सबको नुक़सान होगा।
उपने हाल के अनुभव से हमने यह देख लिया है कि जब बैंक एक देश में ऋण नहीं दे
पाते, तो हर जगह की खुशहाली को आघात पहुचाता है। जब एक नया फ्लू इन्सान को
ं
बीमार करता है तो हम सबके लिये जोखिम पैदा हो जाता है। जब एक राष्ट्र परमाणु
अस्त्र हासिल करने में लग जाता है तो सभी राष्ट्रों के लिए परमाणु आक्रमण का
खतरा बढ़ जाता है। जब हिंसक आतंकवादी एक पहाड़ी इलाके में सक्रिय होते हैं तो
सागर पार के लोगों के लिये ख़तरा खड़ा हो जाता है। और जब बौसनिया और दारफुर
में लोगों की हज़ारों की संख्या में हत्या की जाती है तो यह हमारी सामूहिक अंतरात्मा
पर दाग़ बन जाता है। (तालियाँ) 21 वीं शताब्दी में इस विश्व में साझेदारी होने का
यह अर्थ है। मानव होने के नाते एक-दूसरे के प्रति यह है हमारी ज़िम्मेदारी ।
और यह गले लगाने के लिये एक कठिन ज़िम्मेदारी है। मानव इतिहास अक्सर ऐसे
राष्ट्रों और क़बीलों -- और हाँ, धर्मों -- की दास्तान रहा है जिन्हों ने अपने स्वयं के
हितों के लिये एक-दूसरे को अपने क़ब्ज़ों में लिया। लेकिन इस नए युग में ऐसे नज़रिए
स्व-पराजयकारी हैं। हमारी परस्पर अंतर-निर्भरता को देखते हुए, ऐसा कोई भी विश्व
ढ़ांचा जिसमें एक देश या लोगों के एक समूह को किसी दूसरे से ऊपर रखा जाए
अवशयमभावी रूप से असफल हो जाएगा। तो हम अतीत के बारे में चाहे कुछ भी सोचें,
् ्
हमें उसका बन्दी नहीं बनना चाहिये। हमें अपनी समस्याओं का हल साझेदारी के ज़रिये
खोजना होगा और हमारी प्रगति में सबकी हिस्सेदारी होनी चाहिए।
इसका यह अर्थ नहीं है कि हम तनाव के स्रोतों की अनदेखी करें। असल में बात ठीक
विपरीत है: हमें खुल कर उनका सामना करना होगा। इसी भावना के साथ, जितने साफ़
और सीधे शब्दों में कह सकता हूं, उन विशिष्ट विषयों के बारे में बात करना चाहता हूं
जिनका हमें मिलकर सामना करना होगा ।
पहला विषय जिसका हमें सामना करना है वह है अपने हर रूप में हिंसक अतिवाद।
अंकरा में मैंने यह स्पष्ट कर दिया था कि अमेरिका का इस्लाम से न तो कोई युद्ध है,
और न कभी होगा। (तालियाँ) लेकिन हम उन हिंसक अतिवादियों का मुक़ाबला
अवश्य करेंगे जो हमारी सुरक्षा के लिए गम्भीर ख़तरा प्रस्तुत करते हैं। क्यों कि हम
भी उस चीज़ को नकारते है, जिसे सभी धर्मों के लोग नकारते है: निर्दोष पुरषों,
ं ं ु
महिलाओं और बच्चों की हत्या।
अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति अमेरिका के लक्ष्यों और मिल कर काम करने की हमारी
6. आवश्यकता दोनों को प्रदर्शित करती है। सात वर्ष से भी अधिक समय पहले अमरीका
ने व्यापक अंतर्राष्टरीय समर्थन के साथ अल-क़ायदा औए तालिबान का पीछा किया।
्
हम अपनी पसंद से वहां नहीं गये थे, बल्कि मजबूरी से गये थे। मैं जानता हूं कि कुछ
लोग 9/11 की घटनाओं के बारे में सवाल उठाते हैं, यहाँ तक कि उसे सही ठहराने की
कोशिश करते हैं। लेकिन हमें यह बात साफ़ तौर पर समझ लेनी चाहिये: अल-क़ायदा ने
11 सितम्बर 2001 को लगभग 3,000 लोगों को मार डाला। जो लोग शिकार हुए वे
अमेरिका और कई अन्य राष्ट्रों के निर्दोष स्त्री-पुरुष और बच्चे थे जिन्होंने किसी को
नुकसान पहुचाने के लिए कुछ नहीं किया था । लेकिन फिर भी अल-क़ायदा ने निर्मम
ं
तरीके से इन लोगों की हत्या कर दी। इस हमले का श्रेय लेने का दावा किया, और वह
बार–बार यह कहता आ रहा है कि वह फिर विशाल पैमाने पर हत्या करने के लिये कृत
संकल्प है। बहुत से देशों में उनके साथी हैं और वे अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर
रहे हैं। यह कोई विचार नहीं है कि जिस पर बहस की जाए- ये तथ्य हैं जिनसे निबटना
होगा।
इस बारे में कोई सन्देह नहीं रहना चाहिये- हम अफ़ग़ानिस्तान में अपने सैनिक नहीं
रखना चाहते। हम वहां कोई सैनिक अड्डे स्थापित नहीं करना चाहते। वहां अपने युवा
स्त्री पुरुषों को खोना दिलको विचलित कर देने वाली बात है। इस संघर्ष को जारी
रखना ख़र्चीला भी है और राजनीतिक रूप से कठिन भी। हम बड़ी खुशी से वहां से अपने
एक एक सैनिक को वापस स्वदेश ले जाएं अगर हमें यह विश्वास हो सके कि
अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में ऐसे हिंसक चरमपंथी नहीं हैं जो जितने ज़्यादा से
ज़्यादा अमरीकियों को मार सकते हैं, मार डालने पर आमदा हैं। लेकिन अभी वे ऐसा कर
नहीं पाए हैं
यही कारण है कि हम 46 देशों के साथ साझेदारी कर रहे हैं। और इस पर आने वाली
लागत के बावजूद अमेरिका की वचनबद्धता कमज़ोर नहीं होगी। असल में हम से किसी
को भी इन अतिवादियों को बर्दाश्त नहीं करना चाहिये। उन्होंने बहुत से देशों में लोगों
की हत्याएं की हैं। उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों को मारा है, और किसी भी अन्य
धर्म के मुक़ाबले उन्होंने ज़्यादा मुसलमानों को मारा है। उनके कृतयों का मानवों के
्
अधिकारों, राष्ट्रों की प्रगति और इस्लाम से कोई तालमेल नहीं है। पवित्र क़ुरान हमें
यह पाठ पढ़ाती है कि जो कोई किसी निर्दोष को मारता है वह ऐसा है जैसे उसने सारी
मानवता को मार डाला; (तालियाँ) और जो कोई किसी इंसान को बचाता है, वह ऐसा
है जैसे उसने सारी मानवता को बचा लिया। (तालियाँ) । एक सौ करोड़ से भी अधिक
लोगों का ख़ूबसूरत मज़हब, इन कुछक लोगों की संकीर्ण घृणा से कहीं अधिक बड़ा है। मैं
े
जानता हूं कि इस्लाम हिंसक अतिवाद से लड़ने में समस्या का हिस्सा नहीं है, यह
7. शांति को बढावा देने में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हम यह भी जानते हैं कि अकेले सैन्य शक्ति से ही अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में
समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। इसीलिए पाकिस्तानियों के साथ मिलकर
स्कूल और अस्पताल व्यापार और सड़कें बनाने पर हम अगले पांच सालों तक हर वर्ष
1.5 बिलियन डॉलर ख़र्च करने और जो लोग बेघर हो गये हैं उनकी सहायता के लिए
सैकडों मिलियन डॉलर खर्च करने की योजना बना रहे हैं। और यही कारण है कि हम
अफ़ग़ान लोगों को उनकी अर्थव्यवस्था के विकास और लोगों की ज़रूरत की सेवाएं
उपलब्ध कराने के लिए 2.8 बिलियन डॉलर से भी अधिक की सहायता दे रहे हैं।
मैं ईराक के बारे में भी बात करना चाहता हू। अफ़ग़ानिस्तान के विपरीत ईराक का युदध
ं ्
ऐसा था जिसे चुना गया और जिसने मेरे देश में और विश्वभर में कड़े मतभेद पैदा किये
हैं। हालांकि मैं यह मानता हूं कि अंतत: ईराकी लोगों के लिए यह अच्छा है कि वे
सद्दाम हुसैन के आतंक से मुक्त हैं, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि ईराक की घटनाओं
ने हमें कूटनीति का इस्तेमाल करने की आवशयकता का और जब भी संभव हो अपनी
समस्याओं के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहमती बनाने की आवश्यकता का
स्मरण कराया है (तालियाँ)। वास्तव में हम अपने महान राष्ट्रपतियों में से एक,
टॉमसजेफ़र्सन के शब्दों को याद कर सकते हैं जिन्हों ने कहा था- “मैं आशा करता हूं
कि हमारी शक्ति के साथ साथ हमारी बुद्धिमत्ता भी बढ़ेगी जो हमें यह पाठ पढ़ायेगी
कि हम अपनी शक्ति का जितना कम इस्तमाल करें उतना ही अच्छा होगा”।
े
आज अमेरिका की दोहरी ज़िम्मेदारी है: ईराक को ईराकियों के लिए छोड़ दें और एक
बेहतर भविष्य के निर्माण में उनकी मदद करें, और मैंने ईराकी लोगों से यह स्पष्ट
कह दिया है (तालियाँ)É मैंने ईराकी लोगों से कह दिया है कि हम वहां कोई अड्डे नहीं
चाहते, उनकी भूमि या उनके संसाधनों पर हमारा कोई दावा नहीं है। ईराक की
प्रभुसत्ता उसकी अपनी है। इसीलिए मैंने आदेश दिया है कि अगले अगस्त तक ईराक
से हमारी सभी लड़ाका ब्रिगेड हटा ली जाएं। इसीलिए हम ईराक की लोकतांत्रिक रूप से
चनी गई सरकार के साथ किए गए इस समझौते का सम्मान करेंगे कि जुलाई तक
ु
ईराकी शहरों से लड़ाका सैनिक हटा लें और सन् 2012 तक ईराक से अपने सभी सैनिक
हटा लें (तालियाँ)। हम ईराक के अपने सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण देने और अपने
अर्थव्यवस्था का विकास करने में सहायता करेग। लेकिन हम एक सुरक्षित तथा
ं े
एकीकृत ईराक का एक साझेदार के रूपमें समर्थन करेग, संरक्षणदाता के रूप में कभी
ं े
नहीं।
और अंत में यह कि जैसे अमेरिका अतिवादियों द्वारा हिंसा को कभी बर्दाश्त नहीं
करेगा वैसे ही हमें कभी अपने सिद्धांत भी बदलने या भूलने नहींचाहिये। 9/11 की
8. घटना हमारे देश के लिये एक भयंकर आघात थी। इसने जिस भय और क्रोध को
जन्म दिया वह समझ में आता है, लेकिन कुछ मामलों में इसके परिणाम में हमने
अपनी परम्पराओं, अपने आदर्शों के विपरीत क़दम उठाये। हम दिशा बदलने के लिये
ठोस क़दम उठा रहे हैं। मैंने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा यातना के इस्तेमाल की
मनाही कर दी है और मैंने आदेश दे दिया है कि ग्वानटनामो खाड़ी स्थित क़ैदख़ाना
अगले वर्ष के पूरवार्ध तक बंद कर दिया जाय। (तालियाँ)।
्
अन्य देशों की प्रभुसत्ता और क़ानून के शासन का सम्मान करते हुए अमेरिका अपनी
हिफ़ाज़त करेगा। और हम ऐसा मुस्लिम समुदायों की साझेदारी में करेंगे जिनके लिये
ख़ुद भी ख़तरा है- क्यों कि जितनी जल्दी अतिवादियों को अलग-थलग किया जाता है
और मुस्लिम समुदायों में उन्हें स्वागत-योग्य नहीं माना जाता उतनी ही जल्दी हम
सुरक्षित होंगे और उतनी ही जल्दी अमरीकी सैनिक घर लौट आयेंगे।
तनाव का दूसरा बड़ा स्रोत जिसकी मैं चर्चा करूंगा वह है इस्रायलियों, फिलिस्तीनियों
और अरब विश्व के बीच की स्थिति ।
इस्रायल के साथ अमरीका के मज़बूत रिश्ते सर्वविदित है। यह बंधन अटूट है। यह
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों पर और इस मान्यता पर आधारित है कि यहूदी
राष्ट्र की महत्वाकांक्षा की जड़ें उस त्रासद इतिहास से जुड़ी हुई है जिससे इंकार नहीं
किया जा सकता।
विश्व भर में, यहूदी लोगों को शताब्दियों तक सताया गया और यहूदी विरोध की
पराकाष्टा हुई, एक अभूतपूर्व नर-संहार से। कल मैं बूकनबॉल्ड की यात्रा करूंगा जो उन
शिविरों के ताने-बाने का अंग था जहां तद्कालीन जर्मन शासन द्वारा यहूदियों को दास
बनाया जाता था, यातनाएं दी जाती थी, गोली मार दी जाती थी या गैस सुंघा कर मार
डाला जाता था। 60 लाख यहूदियों को मार डाला गया - यह संख्या आजके इस्रायल की
संपूर्ण यहूदी आबादी से भी अधिक है। इस तथ्य को नकारना आधारहीन, अनभिज्ञ
और घृणापूर्ण है। इस्रायल को नष्ट करने की धमकी देना या यहूदियों के बारे में
घृणास्पद रूढ़िवादी बातों को दोहराना, इस्रायलियों के मन में इन सबसे ज़्यादा दुखदायी
स्मृतियों को झकझोर देता है और उस शांति को अवरुद्ध कर देता है जिसका इस
क्षतर के लोगों को हक़ है ।
े ्
दूसरी ओर, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि फिलिस्तीनी लोगों ने भी - जिनमें
मुसलमान भी हैं और ईसाई भी - एक राष्ट्र की खोज में बहुत कुछ सहा है। 60 से
अधिक वर्ष से उन्होंने विस्थापित होने के दर्द को झेला है। पश्चिम तट, ग़ाज़ा और
आसपास की भूमि पर शरणार्थी शिविरों में बहुत से लोग शांति और सुरक्षा के उस
जीवन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो वे कभी प्राप्त नहीं कर पाये। वे प्रतिदिन छोटे- बड़े
9. अपमान झेलते हैं जो दूसरों के आधिपत्यों से पैदा होते हैं। तो इसमें भी कोई संदेह नहीं
होना चाहिये की फिलिस्तीनी लोगों की स्थिति भी असहनीय है। अमेरिका समान अवसर
और अपना खुद का देश होने की फिलिस्तीनियों की वैध आकांक्षा से मुंह नहीं मोड़ेगा।
(तालियाँ)।
वर्षों से गतिरोध रहा है। दो समुदाय जिनकी वैध आकांक्षाएं हैं, दोनों का दुखद इतिहास
रहा है जो समझौतों को पहुंच में आने से रोकता है। एक दूसरे पर उंगली उठाना
आसान है - फिलिस्तीनी इस्रायल की स्थापना के कारण पैदा हुए विस्थापन की ओर
इशारा कर सकते हैं, और इस्रायली अपने पूरे इतिहास में अपनी सीमाओं के भीतर से
और बाहर से निरंतर हमलों और दुश्मनी की ओर इशारा कर सकते हैं। लेकिन अगर
हम इस संघर्ष को केवल इस ओर से या उस ओर से देखें तो हमें सच्चाई नज़र नहीं
आ सकेगी – एक मात्र समाधान यही है कि दो राज्यों के माध्यम से दोनों पक्षों की
आकांक्षाएं पूरी हो जिसमें कि इस्रायली और फिलिस्तीनी दोनों शांति और सुरक्षा के
साथ रह सकें। (तालियाँ)।
यह इस्रायल के हित में है, फिलिस्तीनियों के हित में है, और अमेरिका के हित में है,
और विश्व के हित में हैf। यही कारण है कि मैं व्यक्तिगत रूप से इसी परिणाम की
प्राप्ति के लिए काम करूंगा, उस पूरे धैर्य के साथ जिसकी इस काम के लिए ज़रूरत है।
(तालियाँ)। रोड-मैप योजना के अंतर्गत पक्षों ने जिन दायित्वों को स्वीकारा है वे
स्पष्ट हैं। शांति की स्थापना के लिए उनके लिए भी - और हम सबके लिए भी - अपने
दायित्वों को निभाने का समय आ गया है।
एक ओर फिलिस्तीनियों को हिंसा को त्यागना होगा। हिंसा और हत्या के ज़रिये
प्रतिरोध ग़लत है और सफल नहीं होता। शताब्दियों तक अमरीका में कालों ने दासों की
रूप में कोड़े खाये और पृथकता की शर्मिंदगी सही। लेकिन अंतत: जिसने पूर्ण और
समान अधिकार जीते वह हिंसा नहीं थी। वह था शांतिपूर्ण और दृढ़ निश्चय के साथ
उन आदर्शों के प्रति आग्रह जो अमरीका की स्थापना के केन्द्र में है। यही कहानी
दक्षिण अफ्रीका से लेकर दक्षिण एशिया तक के लोग, और पूर्वी यूरोप से लेकर
इंडोनेशिया तक के लोग दोहरा सकते हैं । यह कहानी इस सीधे सादे सच की है की हिंसा
कहीं नहीं ले जाती, उससे कुछ हासिल नहीं होता। यह न तो साहस का संकेत और न
शक्ति का कि सोते हुए इस्रायली बच्चों पर रॉकेट दागे जाये या एक बस पर वृदध
्
महिलाओं को बम से उड़ा दिया जाय। इससे नैतिक अधिकार हासिल नहीं होता, इससे
तो वह अधिकार हाथ से निकल जाता है।
अब समय आ गया है जब फिलिस्तीनियों को इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना है कि
10. वे क्या निर्मित कर सकते हैं। फिलिस्तीनी प्राधिकरण को शासन चलाने की अपनी
क्षमता का विकास करनी होगा, ऐसे संसथानों के ज़रिये जो लोगों की आवश्यकताओं को
्
पूरा करें। हमास को कुछ फिलिस्तीनी लोगोंमें समर्थन प्राप्त है, लेकिन उनकी
ज़िम्मेदारियां भी हैं और फिलिस्तीनी महत्वाकांक्षाओ में कोई भूमिका निभाने के लिये
और फिलिस्तीनियों को एकजुट करने के लिये हमास को हिंसा का अंत करना होगा,
पिछले समझौतों का पालन करने से इंकार को त्यागना होगा और इस्रायल के अपना
अस्तित्व बनाए रखने के अधिकार को मान्यता देनी होगी।
साथ ही इस्रायल को यह स्वीकार करना होगा कि जैसे इस्रायल के अपना अस्तित्व
बनाए रखने के अधिकार को नहीं नकारा जा सकता वैसे ही फिलिस्तीनियों के अधिकार
को भी नहीं नकारा जा सकता। अमेरिका उन लोगों की वैधता स्वीकार नहीं करता जो
इस्रायल को सागर में धकेल देने की बात करते हैं, लेकिन हम इस्रायली बस्तियां जारी
रहने की वैधता को भी स्वीकार नहीं करते। (तालियाँ)। यह निर्माण-कार्य पिछले
समझौतों का उल्लंघन करता है और शांति प्राप्त करने के प्रयासों में व्यवधान पैदा
करता है। अब समय आ गया है जब ये बस्तियां बसाना बंद होना चाहिए। (तालियाँ)।
इस्रायल को अपने इस दायित्वको भी निभाना चाहिए की फिलिस्तीनी आराम से रह
सकें , काम कर सकें , और अपने समाज का विकास कर सके। ग़ाज़ा में निरंतर बना
ं
हुआ मानवीय संहार जहां फिलिस्तीनी परिवारों को तहस–नहस करता है, वहीं यह
इस्रायल की सुरक्षा के हित में भी नहीं है और यही बात पश्चिमी तट पर अवसरों के
निरंतर अभाव के बारे में भी सही है। फिलिस्तीनी लोगों के दैनिक जीवान में प्रगति,
शांति की राह का एक अंग होनी चाहिए, और इस्रायल को ऐसी प्रगति संभव बनाने के
लिए ठोस क़दम उठाने चाहिये।
अंतिम बात यह कि अरब देशों को यह समझना चाहिए की अरब- शांति पहल एक
महत्वपूर्ण शुरूआत थी, उनकी ज़िम्मेदारियों का अंत नहीं। आइंदा अरब इस्रायली
संघर्ष का, अरब राष्टरों के लोगों का अन्य समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए
्
इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसकी बजाय यह इस बात का कारण बनना चाहिये
की फिलिस्तीनी लोगों की ऐसे संसथान विकसित करने में मदद की जाए जो उनके राज्य
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को संभाल सके, इस्रायल की वैधता को स्वीकार किया जाए और अतीत पर ध्यान
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कनदरित करने की बजाए जिससे कुछ हासिल नहीं होता, प्रगति को चुना जाए ।
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अमरिका उनका पूरण साझेदार बनेगा और उनके साथ अपनी नीतियां समन्वित करेगा
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जो शांति की तलाश में है। और हम सार्वजनिक तौर पर भी वही कहेंगे जो हम अकेले
में इस्रायली, फिलिस्तीनियों और अरबों से कहते हैं। (तालियाँ)। हम शांति थोप नहीं
सकते। लेकिन निजी तौर पर बहुत से मुसलमान यह समझते हैं कि इस्रायल कहीं चला
11. नहीं जायेगा, इसी तरह बहुत से इस्रायली भी फिलिस्तीनी राज्य की आवश्यकताओं को
समझते हैं। जो लोग अपनी ज़िम्मेदारी निभाने से इनकार करते हैं, हम उनसे आग्रह
करेंगे कि अपने दायित्व निभाने का समय आ गया है। ये केवल शब्द ही नहीं है ये वो
क़दम है जो हम उस दिशामें उठायेंगे जो हर कोई जानता कि सच है।
बहुत आंसू बह चुके हैं। बहुत खून बह चुका है। हम सबकी यह ज़िम्मेदारी है कि उस
दिन को साकार करने की दिशा में काम करें, जब इस्रायलियों और फिलिस्तीनियों की
माताएं अपने बच्चों को भय के बिना परवान चढ़ते हुए देख सके, जब तीन महान धर्मों
की पवित्र भूमि वैसी शांति का स्थल हो जैसा ईश्वर ने चाहा था, जब यारुशलम
यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए एक सुरक्षित और स्थायी घर हो औए
एब्राहम की सभी संतानें उसी तरह मिलजुल कर शांतिपूर्वक रह सकें (तालियाँ)।
जैसे कि इसरा की कहानी में जबकि मोज़ेज़, जीज़स और मोहम्म्द ने (उन पर शांति की
मेहर हो) मिलकर प्रार्थना की थी। (तालियाँ)।
तनाव का तीसरा स्रोत जिससे निबटना होगा वह है राष्ट्रों के अधिकारों और
उत्तरदायित्वों, विशेष रूप से परमाणु अस्त्रों के संबंध में उनके अधिकारों और
उत्तरदायित्वों की पहचान में हमारे साझा हित।
यह विषय अमेरिका और ईरान के इस्लामी गणराज्य के बीच हाल के तनाव का एक
विशेष स्रोत रहा है। बहुत वर्षों से ईरान मेरे देश से विरोध को अपनी परिभाषा का अंग
बनाए हुए है। और यह सही है कि ईरान और हमारे बीच एक उग्र इतिहास रहा है।
शीत युदध के मध्य में अमरीका ने ईरान की वैध और लोकतांतरिक रूप से चुनी गयी
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सरकार के तख़्तापलट में भूमिका निभाई। इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान बंधक
बनाने और अमरीकी सैनिकों और नागरिकों के विरुद्ध हिंसा के कृत्यों में भूमिका
निभाता रहा है यह इतिहास किसी से छिपा नहीं है। अतीत में ही फंसे रहने की बजाए
मैंने ईरान के नेताओं और ईरान की जनता के सम्मुख यह स्पष्ट कर दिया है कि मेरा
देश आगे बढ़ने को तैयार है। अब सवाल यह नहीं है कि ईरान किसके ख़िलाफ़ है, बल्कि
यह है कि वह कैसे भविष्य का निर्माण करना चाहता है।
मै यह जानता हूँ कि दशकों के अविश्वास से पार पाना आसान नहीं होगा लेकिन हम
साहस, धैर्य, नैतिकता और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ेंगे। हमारे दोनों देशों के बीच
वार्तालाप के लिए बहुत से विषय होंगे, और हम पूर्व-शर्तों के बिना और पारस्परिक
आदर के आधार पर आगे बढ़ने को तैयार हैं। लेकिन परमाणु अस्त्रों के बारे में सभी
समृद्ध पक्षों के लिए यह स्पष्ट है कि हम निर्णायक बिंदु पर पहुंच चुके हैं। यह
केवल अमरीका के हित की बात नहीं, यह मध्य पूरव में एक ऐसी परमाणु दौड़ को
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रोकने का मामला है जो इस क्षेत्र और विश्व को बहुत ही ख़तरनाक मार्ग पर ले जा
12. सकती है और परमाणु अस्त्र प्रसार रोकने के विश्वव्यापी ढ़ांचे को तहस-नहस कर
सकती है।
मैं उनकी बात समझ सकता हूं जो यह शिकायत करते हैं कि कुछ देशों के पास ऐसे
हथियार हैं जो अन्य के पास नहीं है। किसी भी अकेले राष्ट्र को यह नहीं चुनना चाहिये
कि किन देशों के पास परमाणु हथियार होंगे। इसीलिये मैंने सशक्त रूप में अमेरिका की
इस वचनबद्धता की पुन: पुषटि की है कि हम एक ऐसा विश्व निर्मित करनेका प्रयास
्
करेंगे जिसमें किसी भी राष्ट्र के पास परमाणु हथियार न हों। और हर देश को –
जिसमें ईरान भी शामिल है - शांतिपूर्ण ऊर्जा तक पहुंच का अधिकार होना चाहिये
बशर्ते कि वह परमाणु अप्रसार संधि के तहत अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करता हो । यह
वचनबद्धता इस संधि के केन्द्र में है और उन सब की ख़ातिर जो इसका पालन करते
हैं उसे बनाये रखना होगा।
और मैं जिस चौथे विषय पर बात करना चाहूंगा वह है लोकतंत्र। (तालियाँ)।
मैं सरकार की ऐसी पद्धति में विश्वास करता हूं जो लोगों को वाणी दे, न्याय के शासन
का सम्मान करे और सभी मानवों के अधिकारों का आदर करे। मैं जानता हूं कि हाल के
वर्षो में लोकतंत्र के संवर्धन को लेकर विवाद रहा है और उस विवाद का अधिकांश
ईराक मुद्दे से जुड़ा हुआ है। तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं: किसी भी देश पर किसी
दूसरे देश द्वारा सरकार की कोई भी पद्धति थोपी नहीं जा सकती और थोपी नहीं जानी
चाहिये।
लेकिन इससे उन सरकारों के प्रति मेरी वचनबद्धता कम नहीं होती जो जनता की
इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। हर देश एक सिद्धांत को अपने ढंग से और अपने लोगों
की परंपरा के अधार पर साकार करता है। अमेरिका यह दावा नहीं करता कि उसे यह
पता है हरएक के लिये सबसे अच्छा क्या है, वैसे ही जैसे वह किसी शांतिपूर्ण चुनाव के
नतीजे का चयन नहीं कर सकता। लेकिन मेरा यह पक्का विश्वास है कि सभी लोग कुछ
विशिष्ट चीज़ें चाहते है: अपनी बात खुलकर कहने का अवसर, आप पर शासन कैसे किया
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जायेगा उसके बारे में कुछ कहने का अधिकार, क़ानून के शासन में और बराबरी वाले
न्याय में विश्वास, ऐसी सरकार जो पारदर्शी हो और अपने लोगों से ही कुछ न चुराये,
जैसे आप चाहें वैसे रहने की स्वतंत्रता। यह केवल अमरीकी विचार नहीं है यह मानव
के अधिकार हैं और इसीलिये अमरीका हर कहीं इनका समर्थन करेगा। (तालियाँ)।
इस स्वप्न को साकार करने का कोई सीधा रास्ता नहीं है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि
जो सरकारें इन अधिकारों की रक्षा करती हैं अंततः वे अधिक टिकाऊ, सफल, और
सुरक्षित होती हैं। विचारों को दबाना, कभी भी उन्हें मिटाने में कामयाब नहीं होता।
अमरीका इस अधिकार का सम्मान करता है कि विश्वभर में सभी शांतिपूर्ण और
13. कानून का पालन करने वाली आवाज़ें सुनी जानी चाहिये, चाहे हम उनसे असहमत ही
क्यों न हों। और हम सभी चुनी हुई शांतिपूर्ण सरकारों का स्वागत करेंगे, बशर्ते की वे
अपने सभी लोगों के प्रति सम्मान के साथ शासन चलाये।
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यह बात महत्वपूर्ण है क्यों कि कुछ लोग हैं जो तभी लोकतंत्र की वकालत करते हैं
जब वे सत्ता से बाहर हों और सत्ता में आते ही अन्य लोगों के अधिकारों को बुरी
तरह दबाते हैं। (तालियाँ)। चाहे देश कोई भी हो, जनता की और जनता द्वारा चुनी
गई सरकार उन सबके लिये एक मानक स्थापित करती है जिनके हाथ में शासन है कि
आपको अपनी सत्ता डरा-धमका कर नहीं, सर्व-सम्मति से ही बनाए रखनी होगी,
आपको अल्पसंखकों के अधिकारों का सम्मान करना होगा, और अपनी जनता के हित
को अपनी पार्टी के हित से ऊपर रखना होगा। इन तत्वों के बिना केवल चुनावों से ही
सच्चा लोकतंत्र नहीं आता
सभा में उपस्थित एक दर्शक: बराक ओबामा वी लव यू !
राष्ट्रपति ओबामा: धन्यवाद (तालियाँ)। जिस पांचवे विषय से हमें निबटना होगा वह
है धार्मिक स्वातंत्र्य।
इस्लाम की सहिष्णुता की एक गौरवपूर्ण परंपरा है। हमें अन्दलूबा और कोरडोबा के
इतिहास में इसके दर्शन होते हैं। मैंने एक बालक के रूप में इंडोनेशिया में स्वयं उसे
देखा है जहां एक भारी पैमाने पर मुस्लिम बहुल देश में ईसाई स्वतंत्र रूप से पूजा
करते थे। आज हमें इसी भावना की ज़रूरत है। हर देश में लोगों को अपने मन-मस्तिष्क
और आत्मा की आवाज़ के अनुसार किसी भी धर्म को चुनने और उसके अनुसार जीवन
जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिये, चाहे वह धर्म कोई भी क्यों न हो। यह सहिष्णुता
धर्म के फलने फूल्ने के लिये अनिवार्य है लेकिन कई तरह से उसे चुनौति दी जा रही
है।
मुसलमानों के भीतर कई जगह परेशान करनेवाली यह प्रवृत्ति दिखाई देती है की अपने
विश्वास को नापने के लिए दूसरे के विश्वास को नकारने का तरीका अपनाया जाता है।
धार्मिक विविधता की समृदधि को मान्यता दी जानी चाहिये चाहे वह लेबनोन में
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मैरोनाइट हों मिस्र में कॉप्ट, और (तालियाँ)। और अगर हम ईमानदारी से बात करें तो
मुसलमानों के बीच की दरार को भी पाटा जाना चाहिए क्यों कि शिया और सुननियों के
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बीच के विभाजन ने कई जगह पर, खासतौर पर ईराक में, त्रासद हिंसा को जन्म दिया
है।
लोग मिलजुल कर साथ रह सके इसके लिये धार्मिक स्वातंत्र्य बहुत ज़रूरी है। हमें
हमेशा यह देखना चाहिए कि हम इनकी हिफाज़त कैसे कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर
अमेरिका में धर्मार्थ दान सम्बन्धी नियमों ने मुसलमानों के लिए धर्मार्थ दान का
14. दायित्वा पूरा कर पाना अधिक मुश्किल बना दिया है। इसलिए मैं वचनबद्ध हूँ कि
अमेरिकी मुसलमानों के साथ मिलकर काम करते हुए यह सुनिश्चित किया जाये कि वे
ज़कात का दायित्व पूरा कर सके।
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इसी तरह , पश्चिम के देशों के लिए यह महतवपूर्ण है कि मुसलमान जैसे चाहें अपने
धर्म का पालन करे इसमें कोइ व्यवधान पैदा करने से बचें। मिसाल के तौर पर ऐसी
हिदायतों से बचें कि मुसलमान महिलाओं को क्या वस्त्र पहनने या नहीं पहनने
चाहियें। सीधे तौर पर कहें तो किसी भी धर्म के प्रति वैर भाव को उदारता के दिखावे
की आड़ में नहीं छुपा सकते।
लोग मिलजुल कर साथ रह सकें इसके लिये धार्मिक स्वातंत्र्य बहुत ज़रूरी है। और
अंतत: विश्वास, आस्था, एक ऐसा तत्व है जो हमें एक दूसरे के निकट ला सकता है।
इसीलिय हम अमरीका में ऐसी नई सेवा परियोजनाएं चला रहे हैं जो ईसाइयों, मुसलमानो
और यहूदियों को एक साथ लाती है। यही कारण है कि नरेश अबदुल्लाह के अन्तर-
धार्मिक वार्तलाप और तुर्की के सभ्यताओं की मैत्री जैसे प्रयासों का हम स्वागत
करते हैं। विश्वभर में हम विभिन्न धर्मों, मान्यताओं के बीच वार्तालाप को उनके बीच
सेवा में बदल सकते हैं, ताकि लोगों के बीच सेतु निर्मित हो और हमारी साझी
मानवता का सम्वर्धन हो - चाहे वह अफ्रीका में मलेरिया से लड़ने का संघर्ष हो, या
प्राकृतिक विपदा के बाद राहत सहायता पहुचाने का प्रयास।
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और छठा विषय जिस पर मैं बात करना चाहता हूँ वोह है महिलाओं के अधिकार।
(तालियाँ)। मैं जानता हूँ -- और आप इस औडिएंस से ही समझ सकते हैं कि इस
विषय पर यहाँ स्वस्थ बहस चल रही है मैं पश्चिम के कुछ लोगों के इस विचार को
स्वीकार नहीं करता कि जो महिला अपना सिर ढंकना चाहती है वह किसी तरह कम
समान है, लेकिन मैं यहाँ अवश्य मानता हूं कि अगर किसी महिला को शिक्षा से
वंचित रखा जाता है तो उसे बराबरी से वंचित रखा जा रहा है। (तालियाँ)। और यह
महज़ संयोग की बात नहीं है कि जिन देशों में महिलाएं अच्छी पढ़ी लिखी हैं वहां
समदधि मौजूद होने की संभावनाएं अधिक हैं।
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और मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि महिलाओं की बराबरी का मामला किसी भी तरह
सिर्फ़ इस्लाम से ही सम्बद्ध नहीं है। हमने मुस्लिम बहुल देशों तुर्की, पाकिस्तान,
बांग्लादेश और इंडोनेशिया में वह होते देखा है जो अभी तक अमरीका ने नहीं किया है -
नेतृत्व के लिये एक महिला का चुनाव । इस बीच महिलाओं की बराबरी का संघर्ष
अमरीकी जन जीवन कई पहलुओं में और विश्व भर के देशों में अब भी जारी है ।
मेरा पक्का विश्वास है कि हमारी बेटियां भी समाज में उतना ही योगदान कर सकती हैं
जितना कि हमारे बेटे। (तालियाँ)। और सम्पूर्ण मानवता -- स्त्री और पुरुष-- को
15. अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने का मौक़ा देने से हमारी साझी खुशहाली में वृद्धि
होगी । यही वजह है कि अमेरिका मुस्लिम बहुल किसी भी देश के साथ लड़कियों में
साक्षरता बढ़ाने के लिए साझेदार बनने को तैयार है।
और अंतत: मैं आर्थिक विकास और अवसरों की उपलब्धता में अपने साझे हित की बात
करना चाहता हूं।
मैं जानता हूं कि बहुतों के लिये वैश्वीकरण का चेहरा विरोधाभास वाला है। इंटरनैट और
टेलीविज़न ज्ञान और सूचना ला सकते है, लेकिन साथ ही भद्दी अश्लीलता और
बेसोची समझी हिंसा भी ला सकते हैं। व्यापार धन-दौलत और अवसर ला सकता है, तो
बड़ी उथल-पुथल और समुदायों में बड़े परिवर्तन भी। सभी देशों में, जिनमें मेरा देश भी
शामिल है, यह परिवर्तन डर पैदा कर सकता है। यह डर कि आधुनिकता के कारण हम
आर्थिक रूप से क्या चुनें इस पर से, राजनीति पर से, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि
अपनी पहचान पर से, अपने समुदायों, अपने परिवरों, अपनी आस्था के बारे में जो हमें
सब से प्रिय है उन पर से, हम अपना नियंत्रण खो बैठेंगे। लेकिन मैं जानता हूं कि
मानव प्रगति को रोका नहीं जा सकता । विकास और परंपराओं के बीच विरोधाभास की
ज़रूरत नहीं है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने अपनी विशिष्ट संस्कृतियां
बनाए रखते हुए भी आर्थिक विकास हासिल किया । यही बात कुआला लम्पुर से लेकर
दुबई तक इस्लाम के भीतर के देशों के बारे में भी सही है । पुराने ज़माने में, और
आज भी मुस्लिम समुदायों ने यह दिखाया है कि वे नवाचार और शिक्षा की अग्रिम
पंक्ति में खड़े हो सकते हैं।
और यह महत्वपूर्ण है क्योंकि विकास की कोइ भी रणनीति केवल उन्ही वस्तुओं पर
आश्रित नहीं हो सकती जो भूमि से निकलती हैं और ना ही उसे तब बनाए रखा जा
सकता ही जब युवा लोग बेरोजगार हों। खाड़ी के बहुत से देश केवल तेल के बल पर
समृद्धी प्राप्त कर सके। किन्तु हम सबको यह समझना चाहिये कि शिक्षा और
नवाचार 21वीं शताब्दी के सिक्के होंगे। मैं अमेरिका में भी इस पर बल दे रहा हूं ।
अतीत में हम विश्व के इस भू भाग में तेल और गैस पर ही ध्यान केन्द्रित करते रहे
है, लेकिन अब हम अधिक व्यापक साझेदारी का प्रयास करेग।
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शिक्षा के क्षेत्र में हम आदान-प्रदान कार्यक्रम बढ़ायेंगे और छात्रवृत्तियां बढ़ायेंगे,
वैसी ही जैसी मेरे पिता को अमेरिका लाई, (तालियाँ)। और साथ ही हम अमरीकियों
को मुस्लिम समुदायों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। हम विश्व
भर के अध्यापकों और बच्चों के लिए ओन लाइन पढाई की व्यवस्था करेगे और ओन
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लाइन का ऐसा ताना बाना निर्मित करेगे की कंसास का युवक काहिरा के युवक से
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तुंरत संचार कर सके. आर्थिक विकास के क्षेत्र में हम व्यापार स्वयं-सेवियों के एक
16. नए दल का निर्माण करेंगे जो मुसलमान-बहुल देशों में उसी स्तर के लोगों के साथ
साझेदारी करें।
विज्ञान और टेक्नालाजी के क्षेत्र में हम मुस्लिम-बहुल देशों में तकनीकी विकास को
समर्थन देने के लिए एक नया कोष स्थापित करेगे और विचारों को मंडी तक पहुचाने
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में सहायता करेंगे ताकि उनसे रोज़गार पैदा हों। हम अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण
पूर्व एशिया में वैज्ञानिक विशिष्टता केन्द्र खोलेंगे और ऊर्जा के नए स्रोतों के
विकास में सहायता देने वाले कार्यक्रमों में सहभागिता के लिए नए विज्ञान दूत
नियुक्त करेंगे। और आज मैं इस्लामी सम्मेलन संगठन (ओ आई सी) के साथ मिलकर
पोलियो उन्मूलन के लिये एक नए विश्वव्यापी प्रयास का एलान कर रहा हूं। और हम
बाल स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए मुस्लिम समदायों के
साथ सहभागिता का भी विस्तार करेंगे। अमेरिका में लगभग सत्तर लाख मुसलमान हैं,
यानी ओ-आई-सी के कई सदस्य देशों से भी ज़्यादा। इसीलिए मैं अनुरोध कर रहा हूं
कि अमेरिका को इस्लामी सम्मेलन संगठन में स्थायी प्रेक्षक का दर्जा दिया जाए।
यह सभी कार्य साझेदारी में किये जाने चाहियें। अमेरिकी विश्व भर के मुस्लिम
समुदायों में नागरिकों और सरकारों, सामुदायिक संगठनों, और धार्मिक नेताओं, तथा
व्यापारों के साथ मिल कर काम करने को तैयार हैं ताकि लोगों की बेहतर जीवन प्राप्त
करने की कोशिश में सहायक बन सकें
जिन विषयों की मैने चर्चा की उनसे निबटना आसान नहीं होगा। लेकिन हम ऐसा
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विश्व चाहते हैं जिसमें अतिवादी हमारी जनता के लिए ख़तरा न रहें, अमरीकी सैनिक
स्वदेश लौटें, इस्रायली और फिलिस्तीनी अपने-अपने क्षेत्र में सुरक्षित हों, परमाणु
ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के ही लिए हो, जहां सरकारें जनता की सेवा
करें, और ईश्वर की सभी संतानों के अधिकारों का सम्मान हो। तो ऐसे विश्व के
निर्माण के लिए मिलकर काम करना हमारा दायित्व है। ये हमारे साझे हित हैं।
मैं जानता हूं कि मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस बारे में सवाल
उठाते हैं कि क्या हम ये नई शुरूआत कर सकते हैं। बहुतों के मन में इस बारे में शंका
है कि क्या वास्तविक परिवर्तन हो सकता है। इतना भय इतना अविश्वास मौजूद है।
लेकिन अगर हम अतीत से बंधे रहना चुनते हैं तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते। और
मैं खास तौर पर हर धर्म और हर देश के युवा लोगों से यह बात कहना चाहता हूँ
कि और किसी से भी ज्यादा आपमें यह क्षमता है की आप दुनिया की नई परिकल्पना
करे, दुनिया को नए सांचे में ढाल दे।
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हम सब इस धरा पर क्षण भर के लिए साझेदार होते हैं। सवाल यह है कि क्या
17. हम उस समय को उन बातों पर ध्यान लगाने में गंवाना चाहते हैं जो हमें जुदा करती
हैं, या हम इस सतत प्रयास की ओर समर्पित होना चाहते हैं कि साझा आधार ढूँढें
और समस्त मानवजाति के प्रति आदर के साथ, अपने बच्चों के लिए हम जो
भविष्य चाहते हैं उसे साकार करने पर धयान लगायें।
यह सब इतना सरल नहीं है। युद्ध शुरू करना आसान होता है उसे समाप्त करना
मुश्किल। दूसरों को दोष देना आसान होता है अपने अंदर झांकना मुश्किल।
भिन्नताओं को देखना आसान होता है क्या समान यह देखना मुश्किल। किन्तु हमें
सही रास्ता चुनना चाहिए, मात्र आसान रास्ता नहीं। हर धर्म के मूल में एक
सिद्धांत मौज़ूद कि हम दूसरों के लिए वही करें जो हम चाहते हैं कि वे हमारे लिए करें।
(तालियाँ)। ये सत्य सार्वभौम है, राष्ट्रों और समुदायों से बढ़ कर है। यह
विश्वास नया नहीं है; यह काला, गोरा या भूरा नहीं है, ये ईसाई, मुसलमान या यहूदी
नहीं है। यह एक आस्था है जो सभ्यता के पालने में स्पंदित हुई और यही आज भी
करोड़ो लोगों के दिलो में धड़क रही है। अन्य लोगों में यही विश्वास आज मुझे यहां
लाया है ।
हम जैसा विश्व चाह्ते हैं उसका निर्माण करने की शक्ति हम में है, बशर्ते कि हममें
एक नई शुरूआत करने का साहस हो, उसे ध्यान में रखते हुए जो लिखा जा चुका है।
पवित्र क़ुरान हमें बताती है: “हे मानव! हमने पुरुष और स्त्री बनाए; और हमने तुम्हें
राष्ट्रों और क़बीलों में बांटा ताकि तुम एक दूसरे को जान सको” ।
तालमुड हमें बताती है: “संपूर्ण यहूदी शास्त्र का लक्ष्य है शांति को बढ़ावा देना”।
पवित्र बाइबल हमें बताती है: “शांति-संस्थापक धन्य हैं क्यों कि वे ही ईश्वर के पुत्र
कहलायेग”। (तालियाँ)।
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विश्व के लोग शांति पूर्वक रह सकते हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर का स्वप्न भी यही
है। तो अब यहां धरती पर हमारा काम भी यही होना चाहिये। धन्यवाद। और आप पर
ईश्वर का शांति आशीर्वाद हो। बहुत धन्यवाद। धन्यवाद (तालियाँ)।
समाप्त दोपहर 2.05 (स्थानीय)