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तप
सामान्य परिचय एवं लाभ
तप की व्याख्या
मुक्त ज्ञानकोष ववककपीडिया से
• तपस् या तप का मूल अर्थ र्ा प्रकाश अर्वा प्रज्वलन जो सूयथ या अग्नन में
स्पष्ट होता है। ककं तु धीिे-धीिे उसका एक रूढार्थ ववकससत हो गया औि
ककसी उद्देश्य ववशेष की प्राग्तत अर्वा आग्ममक औि शािीरिक अनुशासन के
सलए उठाए जानेवाले दैहहक कष्ट को तप कहा जाने लगा।
• ववषय सुख का मयाग हह तप है|
• साधना के मागथ में आनेवाले कष्टों को सहन किना हह तप है|
तप का अर्थ
तप का अर्थ
तप के प्रकाि
• देवद्ववजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमाजजवम् ।
ब्रह्मचर्जमह ंसा च शारीरं तप उच्र्ते ॥
देवों, ब्राह्मण, गुरुजन-ज्ञानीजनों का
पूजन, पववत्रता, सिलता, ब्रह्मचयथ औि
अहहंसा - यह शिीि का तप कहेलाता है ।
मन का तप
• मनःप्रसादः सौम्र्त्वं मौनमात्मववननग्र ः ।
भावसंशुद्धिररत्र्ेतत्तपो मानसमुच्र्ते ॥
मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन, आममचचंतन, मनोननग्रह, भावों की
शुद्चध - यह मन का तप कहलाता है ।
वाङमयीन तप
अनुद्वेगकरं वाक्र्ं सत्र्ं वप्रर्ह तं च र्त ् ।
स्वाध्र्ार्ाभ्र्सनं चैव वाङमर्ं तप उच्र्ते ॥
उद्वेग को जन्म न देनेवाले, यर्ार्थ, वप्रय औि हहतकािक वचन
(बोलना), (शास्त्रों का) स्वाध्याय औि अभ्यास किना, यह वाङमयीन तप
है ।
बाह्य तप
अनशनमूनोदरता वृत्तेः संक्षेपणं रसत्र्ागः ।
कार्क्लेशः संलीनतेनत बाह्र्ं तपः प्रोक्तम ् ॥
अनशन, कम खुिाक, वृवि को संकोिना, िसमयाग, काया को कष्ट देना,
औि संलीनता – ये सब बाह्य तप कहे गये हैं ।
जैन धमथ के कु छ ववशेष तप
• श्री ११ अंग तप
जैन धमं के इस ववसशष्ठ तप में संयमपूवथक धासमथक अनुष्ठान के सार्
सार् जैन धमं के प्राचीन ११ ग्रंर्ो की भग्क्त आिाधना कक जाती है| इस
ववसशष्ठ तप से धमथ ग्रंर्ो के प्रनत श्रद्धा बढती है जो ज्ञान प्राग्तत में
सहायक है|
वषीतप
• जैन धमथ के प्रर्म तीर्ंकि हुए भगवान ऋषभ। उनको दीक्षा के
पश्चातï् लगभग एक वषथ तक भोजन उपलब्ध नहीं हुआ। अक्षय
तृतीया के हदन ईख (गन्ने का िस) समला, जो एक वषथ की तपस्या के
रुप में जानी जाती है। उसी स्मृनत में लोग वषीतप किते हैं चूंकक
ननयसमत एक वषथ तक भगवान ऋषभ की तिह भूखा नहीं िहा जा
सकता, इससलए एक हदन भोजन एक हदन उपवास के क्रम में यह
ककया जाता है। एक हदन भोजन एक हदन उपवास के क्रम में यह
ककया जाता है।
• २०१२ में अके ले वड़ोदिा शहि में ४४८ तपग्स्वओंने वषीतप कीया|
तप में प्रधान भग्क्त
• मीनः स्नानितः फणी पवनभुक्त मेषस्तु पणाथश्ने
ननिाशी खलु चातकः प्रनतहदनं शेते बबले मूषकः ।
भस्मोध्द्वलनतमपिो ननु खिो ध्यानाचधसिो बकः
सवे ककं न हह याग्न्त मोक्षपदवी भग्क्तप्रधानं तपः ॥
मीन (मछली) ननमय जल में स्नान किती है, सााँप वायु भक्षण किके िहता है;
चातक तृवषत िहता है, चूहा बबल में िहता है, गधा धूल में भस्मलेपन किता है;
बगुला आाँखें मूंदके बैठ ध्यान किता है; पि इन में से ककसी को भी मोक्ष नहीं
समलता, क्यों कक तप में प्रधान "भग्क्त" है ।
• श्रीमद भागवद के तृतीय स्कं ध के इक्कीस वे अध्याय में कदथम ऋवष
के तप का ग्जक्र ककया गया है| जो धािणा, ध्यान समाचध औि
भग्क्तयोग का समन्वय माना जाता है|
तप का असली रूप
• अहहंसा समयवचन मानृशंस्यं दमो घृणा ।
एतत तपो ववदुः धीिाः न शिीिस्य शोषणम ॥
अहहंसा, समयवचन, दयाभाव, दम औि (भोगों के प्रनत) नतिष्काि, इन्हें धीि पुरुष
तप कहते हैं, न कक शिीि के शोषण को ।
Indian Holy Man,
Allahabad, India,
1983
• "A sadhu or holy
man mortifies his
body in a tradition
recalling
Allahabad's ancient
name, Prayaga—
'place of sacrifice.'
He controls his
breathing using
techniques of
yoga."
—From the
National
Geographic
book Great Rivers
of the World, 1984
• Photograph by
George F. Mobley
• दधिची ऋवि ने तप ककर्ा
और अपनी ड्डिर्ां देवो को
सशक्त धिर्ार बनाने के
ललए दान दे दी|
• भगवान बुद्ि ने प ले अपने
शरीर को अत्र्ंत कष्ट हदर्ा
परन्तु बाद में उन् ें माध्र्म
मागज का म त्व समझ में आ
गर्ा
• No Pain
No Gain
Devotees
lie on hot
sand as a
form of
penance on
the
beginning
day of the
Danda
festival at
Sorada
village, in
Ganjam
district,
about 240
kilometres
from
Bhubanesw
ar, India on
Tuesday,
April 2,
2013.
Biswaranjan
Rout/AP
तप की महहमा
• मलं स्वणथगतं वग्ह्नः हंसः क्षीिगतं जलम ।
यर्ा पृर्क्किोमयेवं जन्तोः कमथमलं तपः ॥
जैसे सुवणथ में िहे हुए मल को अग्नन, औि दूध में िहे हुए पानी को हंस पृर्क किता है,
उसी प्रकाि तप प्राणीयों के कमथमल को पृर्क किता है ।
• क्षान्मया शुध्यग्न्त ववद्वांसो दानेना कायथकारिणः ।
प्रच्छन्नपापा जापेन तपसा सवथ एव हह ॥
क्षमा से ववद्वान शुद्ध होते हैं; अयोनय काम किनेवाले दान से, औि गुतत पाप किनेवाले
जप से शुद्ध होते हैं । पि तप से तो सभी शुद्ध होते हैं ।
• यद् दूिं यद् दुिािाध्यं यच्च दूिे व्यवग्स्र्तम ।
तमसवं तपसा साध्यं तपो हह दुिनतक्रमम ॥
जो दूि है, कष्टसाध्य है, औि दूि िहा हुआ है, वह सब तप से साध्य है । तप
अवश्य किने योनय है ।
तप की महहमा
• कान्तािं न यर्ेतिो ज्वलनयतुं दक्षो दवाग्ननं ववना
दावाग्ननं न यर्ेतिः शमनयतुं शक्तो ववनाम्भोधिम ।
ननष्णातं पवनं ववना ननिससतुं नान्यो यर्ाम्भोधिम
कमौघं तपसा ववना ककमपिं हतुं समर्ं तर्ा ॥
ग्जस तिह दावाग्नन के ससवा अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहह, ग्जस तिह दावाग्नन के
शमन में बादलों के ससवा अन्य कोई समर्थ नहह, औि ननष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों
को हटाने शग्क्तमान नहह, वैसे तप के अलावा औि कोई, कमथप्रवाह को नष्ट किने में समर्थ नहह ।
• तनोनत धमं ववधुनोनत कल्मषं
हहनग्स्त दुखं ववदधानत संमदम ।
चचनोनत सत्त्वं ववननहग्न्त तामसं
तपोऽर्वा ककं न किोनत देहहनाम ॥
तप धमथ को फै लाता है, दुःख का नाश किता है, अग्स्मता देता है, सत्त्व का संचय किता है, तमस
का नाश किता है । अर्ाथत यूाँ कहो कक तप क्या नहह किता ?
तप की महहमा
• तनोनत धमं ववधुनोनत कल्मषं
हहनग्स्त दुखं ववदधानत संमदम ।
चचनोनत सत्त्वं ववननहग्न्त तामसं
तपोऽर्वा ककं न किोनत देहहनाम ॥
तप धमथ को फै लाता है, दुःख का नाश किता है, अग्स्मता देता है, सत्त्व का संचय किता है, तमस का नाश
किता है । अर्ाथत यूाँ कहो कक तप क्या नहह किता ?
• यस्माद्ववघ्न पिम्पिा ववघटते दास्यं सुिाः कु वथते
कामः शाम्यनत दाम्यतीग्न्ियगणः कल्याणमुमसपथनत ।
उन्मीलग्न्त महध्दथयः कलयनत ध्वंसं च यमकमथणां
स्वाधीनं बत्रहदवं किोनत च सशवं श्लाध्यं तपस्ततयताम ॥
ग्जस से ववघ्न पिंपिा दूि होती है, देव दास बनते हैं, काम शांत होता है, इंहियों का दमन होता है, कल्याण नजदीक आता है,
बिी संपवि का उदय होता है, जो कमो का ध्वंस किता है, औि स्वगथ का कब्जा हदलाता है, उस कल्याणकािी, प्रशंसनीय तप का
आचिण किो ।
• ववशुध्यनत हुताशेन सदोषमवप काञ्चनम ।
तद्वत तर्ैव जीवोऽयं ततयमानस्तपोऽग्ननना ॥
दोषयुक्त सोना (सुवणथ) भी अग्नन से शुद्ध होता है, वैसे यह (संसाि से ततत) जीव तपरुप अग्नन से शुद्ध होता है ।
तप की महहमा
तप की महहमा
तप एक ववसशष्ट
प्रकाि की गमी
उमपन किता है जो
हमािे कषाय कल्मषो
को गलाने में जरुिी
है| िोग पैदा किने
वाले कीटाणुओं को
माि भागने में भी
यह गमी उपयोगी है|
गत 22 साल से चले आ िहे इस
ससलससले को लोग देखकि हैित
में पड़ जाते है कक दोपहि 12 स
4 बजे तक ककस प्रकाि यह संत
ववश्व कल्याण के सलए अपन
शिीि को कष्ट देता है। यह भी
नही भूलना चाहहए कक संत
वपछले 22 सालो से चचड़ावा
की •्ा्ूसम पि ही तप कि िहे ह
तर्ा संत ग्जस समय तप शुरू
किते हुए उस माह के दौिान
चचड़ावा में तापमान 41 डिग्री स
ऊपि िहता है। इस दौिान संत न
• येष्ठ माह की भीष्ण गमी में
गत 22 वषो से तपकि िहे संत
िामजी महािाज का मु•य उद्देश्य
है कक धमथ प्रधान देश भाित में
कफि से लोगों के बीच धमथ की
जन कल्र्ाण एवं िमज रक्षा का अनोखा तप
प्रचंि िूप में सािु का तप
JUNE 22, 2012
वपलानी, 22 जून। प्रचंि धूप में एक साधु का
तप लोगों के सलए आस्र्ा औि श्रद्धा का कें ि
बना हुआ। वपलानी के मोिवा गांव में देश
की समृद्चध औि खुशहाली के सलए संतोष
चगिी आश्रम के संत बंशी चगिी महािाज की
अचग्र तपस्या को देखकि ग्राम वासी ही नही
बग्ल्क दूि दिाज से आने वाले श्रद्धालु भी
हैित में है। हैित इस बात कक भयंकि गमी
की दोपहि में जहां लोग कू लि-पंखों में भी
आिाम महसूस नहीं कि पा िहे हैं वहीं बंशी
चगिी महािाज 11 से दोपहि 2 बजे तक
उपळो की 31 धूणी जलाकि तप कि िहे है।
महािाज सात मई से 51 हदनों के सलए अचग्र
तप पि है तर्ा 31 धूणी से तपस्या कि िहे
है। अभी तक उन्हे तपस्या किते हुए 42 हदन
हो चुके है तर्ा प्रमयेक हदन के सार् एक
ऊपळों बढ िहा है। लोगों के सलए आस्र्ा का
कें ि बनी इस तपस्या का समापन 25 जून
को जागिण के सार् होगा। आजकल मोिवा
गांव आस्र्ा औि श्रद्धा का कें ि बना हुआ।
संतोष चगिी आश्रम की ओि लोग बड़ी संख्या
में रूख कि िहे है। ऐस अदभुत नजािे को
देखने तर्ा बाबा के अचग्र तपस्या के चािों
औि फे िी लगाने के सलए भी हजािों की
संख्या में लोग उमड़ िहे है।

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  • 2. तप की व्याख्या मुक्त ज्ञानकोष ववककपीडिया से • तपस् या तप का मूल अर्थ र्ा प्रकाश अर्वा प्रज्वलन जो सूयथ या अग्नन में स्पष्ट होता है। ककं तु धीिे-धीिे उसका एक रूढार्थ ववकससत हो गया औि ककसी उद्देश्य ववशेष की प्राग्तत अर्वा आग्ममक औि शािीरिक अनुशासन के सलए उठाए जानेवाले दैहहक कष्ट को तप कहा जाने लगा। • ववषय सुख का मयाग हह तप है| • साधना के मागथ में आनेवाले कष्टों को सहन किना हह तप है|
  • 5. तप के प्रकाि • देवद्ववजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमाजजवम् । ब्रह्मचर्जमह ंसा च शारीरं तप उच्र्ते ॥ देवों, ब्राह्मण, गुरुजन-ज्ञानीजनों का पूजन, पववत्रता, सिलता, ब्रह्मचयथ औि अहहंसा - यह शिीि का तप कहेलाता है ।
  • 6. मन का तप • मनःप्रसादः सौम्र्त्वं मौनमात्मववननग्र ः । भावसंशुद्धिररत्र्ेतत्तपो मानसमुच्र्ते ॥ मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन, आममचचंतन, मनोननग्रह, भावों की शुद्चध - यह मन का तप कहलाता है ।
  • 7. वाङमयीन तप अनुद्वेगकरं वाक्र्ं सत्र्ं वप्रर्ह तं च र्त ् । स्वाध्र्ार्ाभ्र्सनं चैव वाङमर्ं तप उच्र्ते ॥ उद्वेग को जन्म न देनेवाले, यर्ार्थ, वप्रय औि हहतकािक वचन (बोलना), (शास्त्रों का) स्वाध्याय औि अभ्यास किना, यह वाङमयीन तप है ।
  • 8. बाह्य तप अनशनमूनोदरता वृत्तेः संक्षेपणं रसत्र्ागः । कार्क्लेशः संलीनतेनत बाह्र्ं तपः प्रोक्तम ् ॥ अनशन, कम खुिाक, वृवि को संकोिना, िसमयाग, काया को कष्ट देना, औि संलीनता – ये सब बाह्य तप कहे गये हैं ।
  • 9. जैन धमथ के कु छ ववशेष तप • श्री ११ अंग तप जैन धमं के इस ववसशष्ठ तप में संयमपूवथक धासमथक अनुष्ठान के सार् सार् जैन धमं के प्राचीन ११ ग्रंर्ो की भग्क्त आिाधना कक जाती है| इस ववसशष्ठ तप से धमथ ग्रंर्ो के प्रनत श्रद्धा बढती है जो ज्ञान प्राग्तत में सहायक है|
  • 10. वषीतप • जैन धमथ के प्रर्म तीर्ंकि हुए भगवान ऋषभ। उनको दीक्षा के पश्चातï् लगभग एक वषथ तक भोजन उपलब्ध नहीं हुआ। अक्षय तृतीया के हदन ईख (गन्ने का िस) समला, जो एक वषथ की तपस्या के रुप में जानी जाती है। उसी स्मृनत में लोग वषीतप किते हैं चूंकक ननयसमत एक वषथ तक भगवान ऋषभ की तिह भूखा नहीं िहा जा सकता, इससलए एक हदन भोजन एक हदन उपवास के क्रम में यह ककया जाता है। एक हदन भोजन एक हदन उपवास के क्रम में यह ककया जाता है। • २०१२ में अके ले वड़ोदिा शहि में ४४८ तपग्स्वओंने वषीतप कीया|
  • 11. तप में प्रधान भग्क्त • मीनः स्नानितः फणी पवनभुक्त मेषस्तु पणाथश्ने ननिाशी खलु चातकः प्रनतहदनं शेते बबले मूषकः । भस्मोध्द्वलनतमपिो ननु खिो ध्यानाचधसिो बकः सवे ककं न हह याग्न्त मोक्षपदवी भग्क्तप्रधानं तपः ॥ मीन (मछली) ननमय जल में स्नान किती है, सााँप वायु भक्षण किके िहता है; चातक तृवषत िहता है, चूहा बबल में िहता है, गधा धूल में भस्मलेपन किता है; बगुला आाँखें मूंदके बैठ ध्यान किता है; पि इन में से ककसी को भी मोक्ष नहीं समलता, क्यों कक तप में प्रधान "भग्क्त" है । • श्रीमद भागवद के तृतीय स्कं ध के इक्कीस वे अध्याय में कदथम ऋवष के तप का ग्जक्र ककया गया है| जो धािणा, ध्यान समाचध औि भग्क्तयोग का समन्वय माना जाता है|
  • 12. तप का असली रूप • अहहंसा समयवचन मानृशंस्यं दमो घृणा । एतत तपो ववदुः धीिाः न शिीिस्य शोषणम ॥ अहहंसा, समयवचन, दयाभाव, दम औि (भोगों के प्रनत) नतिष्काि, इन्हें धीि पुरुष तप कहते हैं, न कक शिीि के शोषण को ।
  • 13. Indian Holy Man, Allahabad, India, 1983 • "A sadhu or holy man mortifies his body in a tradition recalling Allahabad's ancient name, Prayaga— 'place of sacrifice.' He controls his breathing using techniques of yoga." —From the National Geographic book Great Rivers of the World, 1984 • Photograph by George F. Mobley
  • 14. • दधिची ऋवि ने तप ककर्ा और अपनी ड्डिर्ां देवो को सशक्त धिर्ार बनाने के ललए दान दे दी| • भगवान बुद्ि ने प ले अपने शरीर को अत्र्ंत कष्ट हदर्ा परन्तु बाद में उन् ें माध्र्म मागज का म त्व समझ में आ गर्ा
  • 15. • No Pain No Gain Devotees lie on hot sand as a form of penance on the beginning day of the Danda festival at Sorada village, in Ganjam district, about 240 kilometres from Bhubanesw ar, India on Tuesday, April 2, 2013. Biswaranjan Rout/AP
  • 16. तप की महहमा • मलं स्वणथगतं वग्ह्नः हंसः क्षीिगतं जलम । यर्ा पृर्क्किोमयेवं जन्तोः कमथमलं तपः ॥ जैसे सुवणथ में िहे हुए मल को अग्नन, औि दूध में िहे हुए पानी को हंस पृर्क किता है, उसी प्रकाि तप प्राणीयों के कमथमल को पृर्क किता है । • क्षान्मया शुध्यग्न्त ववद्वांसो दानेना कायथकारिणः । प्रच्छन्नपापा जापेन तपसा सवथ एव हह ॥ क्षमा से ववद्वान शुद्ध होते हैं; अयोनय काम किनेवाले दान से, औि गुतत पाप किनेवाले जप से शुद्ध होते हैं । पि तप से तो सभी शुद्ध होते हैं । • यद् दूिं यद् दुिािाध्यं यच्च दूिे व्यवग्स्र्तम । तमसवं तपसा साध्यं तपो हह दुिनतक्रमम ॥ जो दूि है, कष्टसाध्य है, औि दूि िहा हुआ है, वह सब तप से साध्य है । तप अवश्य किने योनय है ।
  • 17. तप की महहमा • कान्तािं न यर्ेतिो ज्वलनयतुं दक्षो दवाग्ननं ववना दावाग्ननं न यर्ेतिः शमनयतुं शक्तो ववनाम्भोधिम । ननष्णातं पवनं ववना ननिससतुं नान्यो यर्ाम्भोधिम कमौघं तपसा ववना ककमपिं हतुं समर्ं तर्ा ॥ ग्जस तिह दावाग्नन के ससवा अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहह, ग्जस तिह दावाग्नन के शमन में बादलों के ससवा अन्य कोई समर्थ नहह, औि ननष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शग्क्तमान नहह, वैसे तप के अलावा औि कोई, कमथप्रवाह को नष्ट किने में समर्थ नहह । • तनोनत धमं ववधुनोनत कल्मषं हहनग्स्त दुखं ववदधानत संमदम । चचनोनत सत्त्वं ववननहग्न्त तामसं तपोऽर्वा ककं न किोनत देहहनाम ॥ तप धमथ को फै लाता है, दुःख का नाश किता है, अग्स्मता देता है, सत्त्व का संचय किता है, तमस का नाश किता है । अर्ाथत यूाँ कहो कक तप क्या नहह किता ?
  • 18. तप की महहमा • तनोनत धमं ववधुनोनत कल्मषं हहनग्स्त दुखं ववदधानत संमदम । चचनोनत सत्त्वं ववननहग्न्त तामसं तपोऽर्वा ककं न किोनत देहहनाम ॥ तप धमथ को फै लाता है, दुःख का नाश किता है, अग्स्मता देता है, सत्त्व का संचय किता है, तमस का नाश किता है । अर्ाथत यूाँ कहो कक तप क्या नहह किता ? • यस्माद्ववघ्न पिम्पिा ववघटते दास्यं सुिाः कु वथते कामः शाम्यनत दाम्यतीग्न्ियगणः कल्याणमुमसपथनत । उन्मीलग्न्त महध्दथयः कलयनत ध्वंसं च यमकमथणां स्वाधीनं बत्रहदवं किोनत च सशवं श्लाध्यं तपस्ततयताम ॥ ग्जस से ववघ्न पिंपिा दूि होती है, देव दास बनते हैं, काम शांत होता है, इंहियों का दमन होता है, कल्याण नजदीक आता है, बिी संपवि का उदय होता है, जो कमो का ध्वंस किता है, औि स्वगथ का कब्जा हदलाता है, उस कल्याणकािी, प्रशंसनीय तप का आचिण किो । • ववशुध्यनत हुताशेन सदोषमवप काञ्चनम । तद्वत तर्ैव जीवोऽयं ततयमानस्तपोऽग्ननना ॥ दोषयुक्त सोना (सुवणथ) भी अग्नन से शुद्ध होता है, वैसे यह (संसाि से ततत) जीव तपरुप अग्नन से शुद्ध होता है ।
  • 21.
  • 22. तप एक ववसशष्ट प्रकाि की गमी उमपन किता है जो हमािे कषाय कल्मषो को गलाने में जरुिी है| िोग पैदा किने वाले कीटाणुओं को माि भागने में भी यह गमी उपयोगी है|
  • 23.
  • 24. गत 22 साल से चले आ िहे इस ससलससले को लोग देखकि हैित में पड़ जाते है कक दोपहि 12 स 4 बजे तक ककस प्रकाि यह संत ववश्व कल्याण के सलए अपन शिीि को कष्ट देता है। यह भी नही भूलना चाहहए कक संत वपछले 22 सालो से चचड़ावा की •्ा्ूसम पि ही तप कि िहे ह तर्ा संत ग्जस समय तप शुरू किते हुए उस माह के दौिान चचड़ावा में तापमान 41 डिग्री स ऊपि िहता है। इस दौिान संत न • येष्ठ माह की भीष्ण गमी में गत 22 वषो से तपकि िहे संत िामजी महािाज का मु•य उद्देश्य है कक धमथ प्रधान देश भाित में कफि से लोगों के बीच धमथ की जन कल्र्ाण एवं िमज रक्षा का अनोखा तप
  • 25. प्रचंि िूप में सािु का तप JUNE 22, 2012 वपलानी, 22 जून। प्रचंि धूप में एक साधु का तप लोगों के सलए आस्र्ा औि श्रद्धा का कें ि बना हुआ। वपलानी के मोिवा गांव में देश की समृद्चध औि खुशहाली के सलए संतोष चगिी आश्रम के संत बंशी चगिी महािाज की अचग्र तपस्या को देखकि ग्राम वासी ही नही बग्ल्क दूि दिाज से आने वाले श्रद्धालु भी हैित में है। हैित इस बात कक भयंकि गमी की दोपहि में जहां लोग कू लि-पंखों में भी आिाम महसूस नहीं कि पा िहे हैं वहीं बंशी चगिी महािाज 11 से दोपहि 2 बजे तक उपळो की 31 धूणी जलाकि तप कि िहे है। महािाज सात मई से 51 हदनों के सलए अचग्र तप पि है तर्ा 31 धूणी से तपस्या कि िहे है। अभी तक उन्हे तपस्या किते हुए 42 हदन हो चुके है तर्ा प्रमयेक हदन के सार् एक ऊपळों बढ िहा है। लोगों के सलए आस्र्ा का कें ि बनी इस तपस्या का समापन 25 जून को जागिण के सार् होगा। आजकल मोिवा गांव आस्र्ा औि श्रद्धा का कें ि बना हुआ। संतोष चगिी आश्रम की ओि लोग बड़ी संख्या में रूख कि िहे है। ऐस अदभुत नजािे को देखने तर्ा बाबा के अचग्र तपस्या के चािों औि फे िी लगाने के सलए भी हजािों की संख्या में लोग उमड़ िहे है।