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अनुबम
1
ूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपाद
संत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजी
बापू केबापू केबापू केबापू के
स×संगस×संगस×संगस×संग----ूवचनूवचनूवचनूवचन
सामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोत
िनवेदनिनवेदनिनवेदनिनवेदन
पूÏय बापू कȧ सहज बोलचाल मɅ अनुभवसंपÛन गीता£ान कȧ माधुय[ता इस ूकार िनखर
आती है Ǒक ǒवƮान इसमɅ तǂव-अमृत िनहार सकते हɇ, साधक काम-संकãप के काँटɉ को चुनकर
फɅ क सकते हɇ। संसारȣ जीवन जीने वाले स×य कȧ साधना पर अमसर होने को उ×सुक हो सकते
हɇ।
सिमित ने पूÏय बापू कȧ सहज बोलचाल कȧ धारा को संमहȣत करके पुःतक के Ǿप मɅ
आपके करकमलɉ तक पहुँचाने का बालयƤ Ǒकया है। गुणमाहȣ Ǻǒƴ से इसका लाभ उठाने कȧ
कृ पा करɅ। सनातन धम[ के उÍच िशखरɉ के अनुभव संपÛन इन संत कȧ अमृतवाणी औरɉ तक
पहुँचाकर पुÖय के भागी बनɅ।
2
ǒवनीतǒवनीतǒवनीतǒवनीत,,,,
ौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमित
अमदावाद आौमअमदावाद आौमअमदावाद आौमअमदावाद आौम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
अनुबमअनुबमअनुबमअनुबम
िनवेदन
सामØय[ ॐोत 2 पाँच Ǿपये और गधा 53
भूषणɉ का भूषणः शील 8 चूहे का पुǽषाथ[ 55
स×संग-सुधा 23 कच कȧ सेवा-भावना 55
शील का दान 23 िनंकाम गुǽसेवा 57
'चतुराई चूãहे पड़ȣ.... 27 ओखा कȧ शादȣ 60
गीता से आ×म£ान पाया 31 घोड़ȣ गई..... हुÈका रह गया 60
पाँच आƱय[ 34 मथुरा के भंगेड़ȣ 69
आठ पापɉ का घड़ा 36 युǒƠ से कामनाओ को मोड़ो 71
स×संग मǑहमा 37 ःवामी ǒववेकानÛद और नत[कȧ 72
ǒवधेया×मक जीवनǺǒƴ 40 गांधारȣ और ौीकृ ंण 75
तीन दुल[भ चीजɅ 41 मेधावी बालक : शंकराचाय[ 76
गीता मɅ मधुर जीवन का माग[ 49
सुख का ॐोत अपने आप मɅ 81
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोत
रावण के जमाने मɅ एक बड़े सदाचारȣ, शील को धारण करने वाले राजा चÈववेण हुए।
बड़ा सादा जीवन था उनका। राजपाट होते हुए भी योगी का जीवन जीते थे। ूजा से जो कर
आता था, उसको ूजा का खून-सा समझते थे। उसका उपयोग åयǒƠगत सुख, ऐƳय[, ःवाथ[ या
ǒवलास मɅ ǒबãकु ल नहȣं होने देते थे। राजमहल के पीछे खुली जमीन थी, उसमɅ खेती करके
अपना गुजारा कर लेते थे। हल जोतने के िलए बैल कहाँ से लायɅ ? खजाना तो राÏय का था,
अपना नहȣं था। उसमɅ से खच[ नहȣं करना चाǑहए। .....तो राजा ःवयं बैल कȧ जगह जुत जाते
थे और उनकȧ पƤी Ǒकसान कȧ जगह। इस ूकार पित पƤी खेती करते और जो फसल होती
3
उससे गुजारा करते। कपास बो देते। Ǒफर घर मɅ ताना-बुनी करके कपड़े बना लेते, खƧर से भी
मोटे।
चÈववेण राजा के राÏय मɅ Ǒकसी कȧ अकाल मृ×यु नहȣं होती थी, अकाल नहȣं पड़ता था,
ूजा मɅ ईमानदारȣ थी, सुख-शाǔÛत थी। ूजा अपने राजा-रानी को सा¢ात ् िशव-पाव[ती का
अवतार मानती थी। पव[ ×यौहार के Ǒदनɉ मɅ नगर के लोग इनके दश[न करने आते थे।
पव[ के Ǒदन थे। कु छ धनाÕय मǑहलायɅ सज धजकर राजमहल मɅ गɃ। रानी से िमलीं।
रानी के वƸ तो सादे, घर कȧ ताना-बुनी करके बनाये हुए मोटे-मोटे। अंग पर कोई हȣरे-
जवाहरात, सुवण[-अलंकार आǑद कु छ नहȣं। कȧमती वƸ-आभूषणɉ से, सुवण[-अलंकारɉ से सजीधजी
बड़े घराने कȧ मǑहलाएँ कहने लगीं- "अरे रानी साǑहबा ! आप तो हमारȣ लआमी जी हɇ। हमारे
राÏय कȧ महारानी पव[ के Ǒदनɉ मɅ ऐसे कपड़े पहनɅ ? हमɅ बड़ा दुःख होता है। आप इतनी महान
ǒवभूित कȧ धम[पƤी ! .....और इतने सादे, िचथड़े जैसे कपड़े ! ऐसे कपड़े तो हम नौकरानी को
भी पहनने नहȣं देते। आप ऐसा जीवन ǒबताती हो ? हमɅ तो आपकȧ ǔजÛदगी पर बहुत दुःख
होता है।"
आदमी जैसा सुनता है, देर-सबेर उसका ूभाव िचƣ पर पड़ता हȣ है। अगर सावधान न
रहे तो कु संग का रंग लग हȣ जाता है। हãके संग का रंग जãदȣ लगता है। अतः सावधान रहɅ।
कु संग स×पथ से ǒवचिलत कर देता है।
दूसरȣ मǑहला ने कहाः "देखो जी ! हमारे ये हȣरे कै से चमक रहे हɇ ! .... और हम तो
आपकȧ ूजा हɇ। आप हमारȣ रानी साǑहबा हɇ। आपके पास तो हमसे भी Ïयादा कȧमती
वƸालंकार होने चाǑहए ?"
तीसरȣ ने अपनी अंगूठȤ Ǒदखायी। चौथी ने अपने जेवर Ǒदखाये। चÈववेण कȧ पƤी तो एक
और उसको बहकाने वाली अनेक। उनके ƳासोÍछवास, उनके ǒवलासी वायॄेशन से रानी Ǒहल
गई। वे ǔƸयाँ तो चली गɃ लेǑकन चÈववेण के घर मɅ आग लगा गई।
रानी ने बाल खोल Ǒदये और Ƹीचǐरऽ मɅ उतर आई। राजा राज-दरबार से लौटे। देखा तो
देवीजी का Ǿि ःवǾप ! पूछाः
"Èया बात है देवी ?"
"आप मुझे मूख[ बना रहे हɇ। मɇ आपकȧ रानी कै सी ? आप ऐसे महान ् सॆाट और मɇ आप
जैसे सॆाट कȧ पƤी ऐसी दǐरि ? मेरे ये हाल ?"
"तुझे Èया चाǑहए ?"
"पहले वचन दो।"
"हाँ, वचन देता हूँ। माँग।"
"सुवण[-अलंकार, हȣरे जवाहरात, कȧमती वƸ-आभूषण..... जैसे महारािनयɉ के पास होते
हɇ, वैसी हȣ मेरȣ åयवःथा होनी चाǑहए।"
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राजा वःतुǔःथित से £ात हुए। वे समझ गये Ǒकः "वƸालंकार और फै शन कȧ गुलाम
मǑहलाओं ने इसमɅ अपनी ǒवलािसता का कचरा भर Ǒदया है। अपना अÛतःकरण सजाने के बजाय
हाड़-मांस को सजानेवाली अãपमित माइयɉ ने इसे ूभाǒवत कर Ǒदया है। मेरा उपदेश मानेगी
नहȣं।
इसके िलये हȣरे-जवाहरात, गहने-कपड़े कहाँ से लाऊँ ? राÏय का खजाना तो ूजा का
खून है। ूजा के खून का शोषण करके , Ƹी का गुलाम होकर, उससे उसको गहने पहनाऊँ ?
इतना नालायक मुझे होना नहȣं है। ूजा का शोषण करके औरत को आभूषण दूँ ? Èया कǾँ ?
धन कहाँ से लाऊँ ? नीित Èया कहती है ?
नीित कहती है Ǒक अपने से जो बलवान ् हो, धनवान हो और दुƴ हो तो उसका धन ले
लेने मɅ कोई पाप नहȣं लगता। धन तो मुझे चाǑहए। नीितयुƠ धन होना चाǑहए।'
राजा सोचने लगेः Ôधनवान और दुƴ लोग तो मेरे राÏय मɅ भी हɉगे लेǑकन वे मुझसे
बलवान नहȣं हɇ। वे मेरे राÏय के आिौत हɇ। दुब[ल का धन छȤनना ठȤक नहȣं।"
ǒवचार करते-करते अड़ोस-पड़ोस के राजाओं पर नजर गई। वे धनवान तो हɉगे, बेईमान
भी हɉगे लेǑकन बलवान भी नहȣं थे। आǔखर याद आया Ǒक रावण ऐसा है। धनवान भी है,
बलवान भी है और दुƴ भी हो गया है। उसका धन लेना नीितयुƠ है।
अपने से बलवान ् और उसका धन ? याचना करके नहȣं, माँगकर नहȣं, उधार नहȣं, दान
नहȣं, चोरȣ करके नहȣं, युǒƠ से और हुÈम से लेना है।
राजा ने एक चतुर वजीर को बुलाया और कहाः "जाकर राजा रावण को कह दो Ǒक दो
मन सोना दे दे। दान-धम[ के Ǿप मɅ नहȣं, ऋण के Ǿप मɅ नहȣं। राजा चÈववेण का हुÈम है Ǒक
'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दे।"
वजीर गया रावण कȧ सभा मɅ और बोलाः "लंके श ! राजा चÈववेण का आदेश है, Úयान
से सुनो।"
रावणः "देव, दानव, मानव, य¢, ǑकÛनर, गÛधव[ आǑद सब पर लंकापित रावण का
आदेश चलता है और उस रावण पर राजा चÈववेण का आदेश ! हूँऽऽऽ...." रावण गरज उठा।
ǒवभीषण आǑद ने कहाः "राजन ! कु छ भी हो, वह सÛदेशवाहक है, दूत है। उसकȧ बात
सुननी चाǑहए।"
रावणः "हाँ, Èया बोलते हो ?" रावण ने ःवीकृ ित दȣ।
वजीरः "दान के Ǿप मɅ नहȣं, ऋण के Ǿप मɅ नहȣं, लेǑकन राजा चÈववेण का आदेश है
Ǒक 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दो, नहȣं तो ठȤक नहȣं रहेगा। लंका का राÏय खतरे मɅ पड़
जायेगा।" चÈववेण के वजीर ने अपने ःवामी का आदेश सुना Ǒदया।
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रावणः "अरे मÍछर ! इस रावण से बड़े-बड़े चबवतȸ डरते हɇ और वह जरा सा-चÈववेण
राजा ! मुझ पर 'कर' ? हूँऽऽऽ..... अरे ! इसको बाँध दो, कै द मɅ डाल दो।" रावण आगबबूला हो
गया।
सबने सलाह दȣः "महाराज ! यह तो बेचारा अनुचर है, िचÒठȤ का चाकर। इसको कै द
करना नीित के ǒवǾƨ है। आप सोना न दɅ, कोई हज[ नहȣं ǑकÛतु इसको छोड़ हȣ दɅ। हमने राजा
चÈववेण का नाम सुना है। वह बड़ा शीलसàपÛन राजा है। बड़ा सÏजन, सदाचारȣ है। उसके पास
योग-सामØय[, सूआम जगत का सामØय[ बहुत है।"
"तो रावण Èया कम है ?"
"लंके श ! आप भी कम नहȣ है। लेǑकन वह राजा शील का पालन करता है।"
"सबकȧ Èया राय है ?" पूरे मंऽीमÖडल पर रावण ने नजर डालते हुए पूछा।
"या तो दो मन सोना दे दɅ......"
"मɇ सोना दे दूँ ?" सलाहकारɉ कȧ बात बीच से हȣ काटते हुए रावण गरज उठा। "याचक
भीख माँगने आये तो दे दूँ लेǑकन मेरे ऊपर 'कर' ? मेरे ऊपर आदेश ? यह नहȣं होगा।" िसर
धुनकर रावण बोला।
"अÍछा, तो दूत को बाहर िनकाल दो।"
चÈववेण के वजीर को बाहर िनकाल Ǒदया गया। रावण महल मɅ गया तो वाƣा[लाप करता
हुआ वह मÛदोदरȣ से बोलाः
"ǒूये ! दुिनयाँ मɅ ऐसे मूख[ भी राÏय करते हɇ। देव, दानव, मानव, य¢, ǑकÛनर, गÛधव[
आǑद सबके सब ǔजससे भय खाते हɇ, उस लंकापित रावण को Ǒकसी मूख[ चÈववेण ने आदेश
भेज Ǒदया Ǒक 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दो। 'अरे मÛदोदरȣ ! कै से कै से पागल राजा हɇ
दुिनयाँ मɅ !"
"नाथ ! चÈववेण राजा बड़े सदाचारȣ आदमी हɇ। शीलवान ् नरेश हɇ। आपने Èया Ǒकया ?
दो मन सोना नहȣं भेजा उनको ?" मÛदोदरȣ ǒवनीत भाव से बोली।
"Èया 'कर' के Ǿप मɅ सोना दे दूँ ? लंके श से ऊँ चा वह होगा ?" रावण का बोध भभक
उठा।
"ःवामी ! दे देते तो अÍछा होता। उनका राÏय भले छोटा है, आपके पास ǒवशाल
साॆाÏय है, बाƻ शǒƠयाँ हɇ, लेǑकन उनके पास ईƳरȣय शǒƠयाँ हɇ, आ×म-ǒवौाǔÛत से ूाƯ
अदभुत सामØय[ है।"
"अरे मूख[ Ƹी ! रावण के साथ रहकर भी रावण का सामØय[ समझने कȧ अÈल नहȣं
आई? पागल कहȣं कȧ !" रावण ने मÛदोदरȣ कȧ बात उड़ा दȣ।
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कहानी कहती है Ǒक दूसरे Ǒदन सुबह मÛदोदरȣ ने रावण को छोटा-सा चम×कार Ǒदखाया।
रोज सुबह कबूतरɉ को Ïवार के दाने डालने के िलए राजमहल कȧ छत पर जाती थी। उस Ǒदन
रावण को भी साथ ले गई और बोलीः
"महाराज ! देव, दानव, मानव, य¢, गंधव[, ǑकÛनर आǑद सब आपकȧ आ£ा मानते हɇ तो
अपने ूभाव का आज जरा अनुभव कर लो। देखो, इन पǔ¢यɉ पर आपका Ǒकतना ूभाव है ?"
पǔ¢यɉ को दाने डालकर मÛदोदरȣ उÛहɅ कहने लगीः
"हे ǒवहंग ! राजा लंके श कȧ दुहाई है Ǒक जो दाने खायेगा, उसकȧ गरदन झुक जायेगी
और वह मर जायेगा।" सब प¢ी दाने खाते रहे। उÛहɅ कु छ नहȣं हुआ। मÛदोदरȣ बोलीः
"ूाणेश ! आपकȧ दुहाई का ूभाव पǔ¢यɉ पर कु छ नहȣं पड़ा।"
"मूख[ औरत ! पǔ¢यɉ को Èया पता Ǒक मɇ लंके श हूँ ?"
"ःवामी ! ऐसा नहȣं है। अब देǔखए।" Ǒफर से दाने डालकर रानी पǔ¢यɉ से बोलीः "राजा
चÈववेण कȧ दुहाई है। दाने चुगने बÛद कर दो। जो दाने चुगेगा, राजा चÈववेण कȧ दुहाई से
उसकȧ गरदन टेढ़ȣ हो जाएगी और वह मर जाएगा।"
पǔ¢यɉ ने दाना चुगना बÛद कर Ǒदया। पाषाण कȧ मूित[वत ् वे ǔःथर हो गये। एक बहरे
कबूतर ने सुना नहȣं था। वह दाने चुगता रहा तो उसकȧ गरदन टेढ़ȣ हो गई, वह मर गया। रावण
देखता हȣ रह गया ! अपनी Ƹी के Ʈारा अपने हȣ सामØय[ कȧ अवहेलना सह न सका। उसको
डाँटते हुए वह कहने लगा:
"इसमɅ तेरा कोई Ƹीचǐरऽ होगा। हम ऐसे अÛधǒवƳास को नहȣं मानते। ǔजसके घर मɅ
ःवयं वǾणदेव पानी भर रहे हɇ, पवनदेव पंखा झल रहे हɇ, अǔÊनदेव रसोई पका रहे हɇ, मह-न¢ऽ
चौकȧ कर रहे हɇ उस महाबली ǒऽभुवन के ǒवजेता रावण को तू Èया िसखा रहȣ है ?" बु ƨ होकर
रावण वहाँ से चल Ǒदया।
इधर, राजा चÈववेण के मंऽी ने समुि के Ǒकनारे एक नकली लंका कȧ रचना कȧ। काजल
के समान अ×यÛत महȣन िमÒटȣ को समुि के जल मɅ घोलकर रबड़ȣ कȧ तरह बना िलया तथा
तट कȧ जगह को चौरस बनाकर उस पर उस िमÒटȣ से एक छोटे आकार मɅ लंका नगरȣ कȧ
रचना कȧ। घुली हुई िमÒटȣ कȧ बूँदɉ को टपका-टपकाकर उसी से लंका के परकोटे, बुज[ और
दरवाजɉ आǑद कȧ रचना कȧ। परकोटɉ के चारɉ ओर कं गूरे भी काटे एवं उस परकोटे के भीतर
लंका कȧ राजधानी और नगर के ूिसƨ बड़े-बड़े मकानɉ को भी छोटे आकार मɅ रचना करके
Ǒदखाया। यह सब करने के बाद वह पुनः रावण कȧ सभा मɅ गया। उसे देखकर रावण चɋक उठा
और बोलाः
"Èयɉ जी ! तुम Ǒफर यहाँ Ǒकसिलये आये हो ?"
"मɇ आपको एक कौतूहल Ǒदखलाना चाहता हूँ।"
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"Èया कौतूहल Ǒदखायेगा रे ? अभी-अभी एक कौतूहल मÛदोदरȣ ने मुझे Ǒदखाया है। सब
मूखɟ कȧ कहािनयाँ हɇ। उपहास करते हुए रावण बोला।
"मɇने समुितट पर आपकȧ पूरȣ लंका नगरȣ सजायी है। आप चलकर तो देǔखये !"
रावण उसके साथ समुितट पर गया। वजीर ने अपनी कारȣगरȣ Ǒदखायीः
"देǔखये, यह ठȤक-ठȤक आपकȧ लंका कȧ नकल है न ?"
रावण ने उसकȧ अदभुत कारȣगरȣ देखी और कहाः "हाँ ठȤक है। यहȣ Ǒदखाने के िलए मुझे
यहाँ लाया है Èया ?"
"राजन ! धैय[ रखो। इस छोटȣ-सी लंका से मɇ आपको एक कौतूहल Ǒदखाता हूँ। देǔखये,
लंका के पूव[ का परकोटा, दरवाजा, बुज[ और कं गूरे साफ-साफ Ïयɉ-के -×यɉ Ǒदख रहे हɇ न ?"
"हाँ Ǒदख रहे हɇ।"
"मेरȣ रची हुई लंका के पूव[ Ʈार के कं गूरɉ को मɇ राजा चÈववेण कȧ दुहाई देकर जरा-सा
Ǒहलाता हूँ, इसके साथ हȣ आप अपनी लंका के पूव[ Ʈार के कं गूरे Ǒहलते हुए पायɅगे।"
इतना कहकर मंऽी ने राजा चÈववेण कȧ दुहाई देकर अपनी रची हुई लंका के पूव[ Ʈार के
कं गूरे Ǒहलाये तो उसके साथ-हȣ-साथ असली लंका के कं गूरे भी डोलायमान होते Ǒदखाई Ǒदये। यह
देखकर रावण को बड़ा आƱय[ हुआ। उसे मÛदोदरȣ कȧ बात याद आ गई। चÈववेण के वजीर ने
बारȣ-बारȣ से और भी कं गूरे, परकोटे के Ʈार, बुज[ आǑद Ǒहलाकर Ǒदखाया। इसे देखकर रावण दंग
रह गया। आǔखर वजीर ने कहाः
"राजन ! अभी दो मन सोना देकर जान छु ड़ा लो तो ठȤक है। मɇ तो अपने ःवामी राजा
चÈववेण का छोटा सा वजीर हूँ। उनकȧ दुहाई से इन छोटे Ǿप मɅ बनी हुई लंका को उजाडूँगा तो
तुàहारȣ लंका मɅ भी उजाड़ होने लगेगा। ǒवƳास न आता हो तो अभी Ǒदखा दूँ।"
आǔखर रावण भी बड़ा ǒवƮान था। अगम अगोचर जगत ǒवषयक शाƸɉ से पǐरिचत था।
समझ गया बात। वजीर से बोलाः "चल, दो मन सोना ले जा। Ǒकसी से कहना मत।"
दो मन सोना लेकर वजीर राजा के पास पहुँचा। चÈववेण ने कहाः "लंके श जैसे हठȤ और
महा अहंकारȣ ने 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे Ǒदया ? तूने याचना तो नहȣं कȧ ?"
"नहȣं, नहȣं ूभु ! मेरे सॆाट कȧ ओर से याचना ? कदाǒप नहȣं हो सकती।" वजीर गौरव
से मःतक ऊँ चा करके बोला।
"Ǒफर कै से सोना लाया ?" राजा ने पूछा। रानी भी Úयानपूव[क सुन रहȣ थी।
"महाराज ! आपकȧ दुहाई का ूभाव Ǒदखाया। पहले तो मुझे कै द मɅ भेज रहा था, Ǒफर
मंǒऽयɉ ने समझाया तो मुझे दूत समझकर छोड़ Ǒदया। मɇने रातभर मɅ छोटे-छोटे घरɋदे सागर के
तट पर बनाये.... Ǒकला, झरोखे, ूवेशƮार आǑद सब। उसकȧ लंका कȧ ूितमूित[ खड़ȣ कर दȣ।
Ǒफर उसको ले जाकर सब Ǒदखाया। आपकȧ दुहाई देकर ǔखलौने कȧ लंका का मुÉय ूवेशƮार
जरा-सा Ǒहलाया तो उसकȧ असली लंका का Ʈार डोलायमान हो गया। थोड़े मɅ हȣ रावण आपकȧ
8
दुहाई का और आपके सामØय[ का ूभाव समझ गया एवं चुपचाप दो मन सोना दे Ǒदया। दया-
धम[ करके नहȣं Ǒदया वरन ् जब देखा Ǒक यहाँ का डÖडा मजबूत है, तभी Ǒदया।"
रानी सब बात एकाम होकर सुन रहȣ थी। उसको आƱय[ हुआ Ǒकः "लंके श जैसा महाबली
! महा उƧÖड ! देवराज इÛि सǑहत सब देवता, यम, कु बेर, वǾण, अǔÊन, वायु, य¢, ǑकÛनर,
गÛधव[, दानव, मानव, नाग आǑद सब ǔजससे काँपते हɇ, ऐसे रावण पर भी मेरे पितदेव के शील-
सदाचार का इतना ूभाव और मɇ ऐसे पित कȧ बात न मानकर ǒवलासी ǔƸयɉ कȧ बातɉ मɅ आ
गई ? फै शनेबल बनने के चÈकर मɅ पड़ गई ? िधÈकार है मुझे और मेरȣ ¢ुि याचना को ! ऐसे
Ǒदåय पित को मɇने तंग Ǒकया !"
रानी का ǿदय पƱाताप से भर गया। ःवामी के चरणɉ मɅ िगर पड़ȣः "ूाणनाथ ! मुझे
¢मा कȧǔजए। मɇ राह चूक गई थी। आपके शील-सदाचार के माग[ कȧ मǑहमा भूल गई थी
इसीिलए नादानी कर बैठȤ। मुझे माफ कर दȣǔजए। अपना योग मुझे िसखाइये, अपना Úयान मुझे
िसखाइये, अपना आ×महȣरा मुझे भी ूाƯ कराइये। मुझे बाहर के हȣरे-जवाहरात कु छ नहȣं चाǑहए।
जल जाने वाले इस शरȣर को सजाने का मेरा मोह दूर हो गया।"
"तो इतनी सारȣ खटपट करवायी ?"
"नहȣं.... नहȣं... मुझे रावण के सोने का गहना पहनकर सुखी नहȣं होना है। आपने जो
शील का गहना पहना है, आ×म-शांित का, योग कȧ ǒवौांित का जो गहना पहना है, वहȣ मुझे
दȣǔजए।"
"अÍछा..... तो वजीर ! जाओ। यह सोना रावण को वापस दे आओ। उसको बता देना Ǒक
रानी को गहना पहनने कȧ वासना हो आई थी, इसिलए आदमी भेजा था। अब वासना िनवृƣ हो
गई है। अतः सोना वापस ले लो।"
वासनावाले को हȣ परेशानी होती है। जो शील का पालन करता है, उसकȧ वासनाएँ
िनयंǒऽत होकर िनवृƣ होती हɇ। ǔजसकȧ वासनाएँ िनवृƣ हो जाती हɇ वह सा¢ात ् नारायण का अंग
हो जाता है। शील का पालन करते हुए राजा चÈववेण नारायणःवǾप मɅ ǔःथर हुए। उनकȧ
अधाɍिगनी भी उनके पǒवऽ पदिचƹɉ पर चलकर सदगित को ूाƯ हुई।
शीलवान ् भोग मɅ भी योग बना लेता है। यहȣ नहȣं, नƳर संसार मɅ शाƳत ् ःवǾप का
सा¢ा×कार भी कर सकता है।
अनुबम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
भूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शील
Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्
तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।
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Ǒकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛता
ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।
'उƣम-से-उƣम भूषण Èया है ? शील। उƣम तीथ[ Èया है ? अपना िनम[ल मन हȣ परम
तीथ[ है। इस जगत मɅ ×यागने योÊय Èया है ? कनक और काÛता (सुवण[ और Ƹी)। हमेशा
सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन।'
ौी शंकराचाय[ǒवरिचत 'मǔणरƤमाला' का यह आठवाँ Ʋोक है।
बाहर कȧ सब संपǒƣ पाकर भी आदमी वह सुख, वह चैन, वह शांित, वह कãयाण नहȣं
पा सकता, जो शील से पा सकता है। इÛि को ःवग[ के राज-वैभव, नÛदनवन आǑद होते हुए भी
वह आनÛद, वह ूसÛनता न थी, जो ूहलाद के पास थी। इÛि ने अपने गुǾ बृहःपित से यह
बात पूछȤ थी।
ूƽाद के जीवन मɅ शील था इसिलए वह साधनɉ के नहȣं होने के बावजूद भी सुखी रह
सका। ǔजसके पास शील है उसके पास साधन न हɉ तो भी वह सुखी रह सकता है। ǔजसके
जीवन मɅ शील नहȣं है वह साधन होते हुए भी परेशान है।
....तो भूषणɉ का भूषण Èया है ? शील। कई लोग सोने-चाँदȣ के गहने पहनते हɇ, गले मɅ
सुवण[ कȧ जंजीर, पग मɅ झाँझन, कÖठ मɅ चÛदनहार, हाथ-पैरɉ मɅ कड़े, कानɉ मɅ कण[फू ल, उँगली
मɅ अँगूठȤ, नाक मɅ नथ इ×याǑद पहनते हɇ और समझते हɇ Ǒक गहने-आभूषण पहनने से हम
सुशोिभत होते हɇ। लेǑकन शाƸकारɉ का कहना है, बुǒƨमानɉ का अनुभव है Ǒक गहने पहनने से
हम सुशोिभत नहȣं होते। गहने आभूषण से हमारा हाड़-मांस-चामवाला देह थोड़ा सा सुशोिभत हो
सकता है, लेǑकन हमारȣ शोभा इनमɅ नहȣं है। इन अलंकारɉ से तो हमारȣ शोभा दब जाती है।
हमारȣ असली शोभा जो िनखरनी चाǑहए, वह देह का लालन-पालन और बाहरȣ Ǒटप-टॉप करने
कȧ वृǒƣ से दब जाती है। बाहरȣ भूषणɉ से हाड़-चामवाले देह कȧ कृ ǒऽम चमक-दमक Ǒदखती है।
हमारȣ शोभा भूषणɉ से नहȣं है, हमारȣ शोभा है शील से। शीलवान ् पुǾष हो या Ƹी, उसका ूकाश
कु टुàब, मोहãले, जाित आǑद मɅ जैसा पड़ता है, वैसा ूकाश सोने-चाँदȣ के आभूषणɉ का नहȣं
पड़ता। Ǒकसी ने चाहे उपरोƠ सब आभूषणɉ को धारण Ǒकया हो, यǑद शील न हो तो वे सब
åयथ[ हɇ।
मन, वचन और कम[ से अयोÊय Ǒबया न करना, देश-काल के अनुसार योÊयता से,
सरलता से ǒवचारपूव[क बत[ना-इस आचरण को शाƸ मɅ 'शीलोत' कहा गया है। उÛनित का माग[
शील हȣ है। गीता मɅ बताये हुए दैवी संपǒƣ के ल¢ण शीलवाले åयǒƠ मɅ होते हɇ। यǑद
आ×म£ान न भी हो और शील हो तो मनुंय नीच गित को ूाƯ नहȣं होता। शीलवान हȣ
आ×मबोध ूाƯ करके मुƠ हो सकता है। शीलरǑहत पुǾष को कड़ा, कु Öडल आǑद गहने ऊपर कȧ
शोभा भले हȣ देते हɉ, परÛतु सÏजन पुǾषɉ का तो शील हȣ भूषण है।
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शीलरǑहत मूख[ को कड़ा, कु Öडल आǑद बोझǾप हɇ। ये भूषण जीव को जोǔखम मɅ डालने
वाले और भय के कारण है, जबǑक शीलǾपी भूषण लोक और परलोक मɅ उƣम ूकार का सुख
देने वाला है, इस लोक मɅ शोभा और कȧित[ बढ़ानेवाला है, परलोक मɅ अ¢य सुख को ूाƯ कराता
है। मूख[ पहने हुए गहनɉ को भी लजा देता है जबǑक शीलवान ् पहने हुए भूषणɉ को शोभा देता
है।
एक राजपुऽ ने अपने ǒपता कȧ इÍछा के ǒवǾƨ एक Ƹी के साथ ǒववाह कर िलया था
और गुƯ ःथान मɅ उसके साथ रहा करता था। राजा को जब यह समाचार िमला Ǒक मेरा पुऽ मेरे
शऽु कȧ पुऽी के साथ ǒववाह करके गुम हो गया है तो वह बहुत दुःखी हुआ। पुऽ कȧ यह
काय[वाहȣ उसे योÊय न लगी इसिलए दुःखी होते हुए मरण के समीप आ गया। उसको एक हȣ
पुऽ था। मरने के समय उसने कुँ वर को बुलाने के िलए आदमी भेजे और अपनी पǐरǔःथित के
समाचार कहलवाये।
कुँ वर ने अपनी पƤी से कहाः "ǒपता जी मरने कȧ तैयारȣ मɅ हɇ। मुझे उÛहɉने अपने पास
बुलाया है। इस समय मुझे जाना हȣ चाǑहए। मेरे जाने से वे ःवःथ हो जायɅगे तो मुझ पर
ूसÛन हɉगे। अगर वे चल बसɅगे तो मɇ राजा बन जाऊँ गा।"
पƤी बोलीः "तुम राजा बन जाओगे तो मेरा Èया होगा ?"
"मɇ तुझे वहाँ बुला लूँगा और पटरानी बनाऊँ गा।" यह कहकर राजकु मार ने अपनी
नामवाली अँगूठȤ अपनी उँगली से उतारक पƤी को पहनाई और ःवयं राजधानी को चल Ǒदया।
वहाँ आकर देखा तो राजा मृ×युशैáया पर पड़ा था। कुँ वर को देखकर राजा ूसÛन हुआ
और बोलाः "मɇ तुझसे एक बात कहना चाहता हूँ। यǑद तू मेरȣ बात मान लेगा तो मेरे ूाण सुख
से िनकलɅगे। ǒपता के वचन पुऽ को मानने चाǑहए। ौीराम, देवोत भींम आǑद पुऽɉ ने माने हɇ।
यǑद तू मानना ःवीकार करे तो कहूँ।"
"ǒपताजी ! मɇ आपकȧ अÛत समय कȧ आ£ा का पालन कǾँ गा।" कुँ वर ने ःवीकृ ित दȣ।
राजा ने कहाः "हे सुपुऽ ! तू मेरे िमऽ गंधव[राज कȧ कÛया से ǒववाह करना ःवीकार
कर।"
कुँ वर ने बात मान ली। राजा का ूाणांत हो गया। कुँ वर ने गंधव[राज कȧ कÛया से ǒववाह
कर िलया। वह राजा होकर राÏय करने लगा और अपनी पूव[ पƤी से जो बात कहकर आया था,
उसको अ×यÛत सुख मɅ भूल गया।
ूथमवाली राजकÛया ने सुना Ǒक मेरे Ƴसुर का देहाÛत हो गया है, मेरा पित राजा हो
गया है और उसने एक दूसरȣ राजकÛया से ǒववाह कर िलया है। इस राजकÛया के पास एक
बहुत चतुर दासी थी। राजकुँ वर कȧ मुलाकात के िलए वह तीन और कÛयाओं को ले आई और
उसने राजकÛया सǑहत चारɉ को पुǾष कȧ पोशाक पहनाकर राजकुँ वर के पास नौकरȣ करने को
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भेजा। कुँ वर चारɉ युवान पुǾषɉ को देखकर ूसÛन हुआ और चारɉ को अपने र¢कɉ कȧ नौकरȣ
पर रख िलया।
कुँ वर को देखकर राजकÛया के बार-बार आँसू िगरा करते थे। कुँ वर ने कई बार पूछा,
परÛतु उसने कु छ उƣर न Ǒदया।
एक Ǒदन कुँ वर अके ला उƭान मɅ बैठा था तो वह अंगर¢क उदासी से हाथ जोड़कर उसके
सामने जा बैठा। कु मार ने उसकȧ उँगली पर अपने नामवाली अँगूठȤ देखी तो ǒवःमय से पूछाः
"हे िमऽ ! यह अँगूठȤ तुझे कहाँ से ूाƯ हुई ?"
"आपके पास से।"
"मɇने यह अँगूठȤ तुझे कब दȣ थी ?" राजकु मार का आƱय[ बढ़ गया।
"जब तुम मुझे छोड़कर आये और राजा बने तब।"
रहःय खुल गया। वह समझ गया Ǒक यह मेरȣ ूाणेƳरȣ राजकÛया है। ǒूया से ¢मा
माँगते हुए उसने अपने ǒपता कȧ अǔÛतम समय कȧ आ£ा कȧ सारȣ बात कहȣ। तब राजकÛया
बोलीः
"आपने ǒपता कȧ आ£ानुसार जो ǒववाह Ǒकया है, उससे मɇ ूसÛन हूँ। परÛतु आप मेरा
×याग न कȧǔजए। अपने िनवास मɅ दासी के समान रहने दȣǔजए ǔजससे मɇ िन×य आपके दश[न
कर सकूँ ।" कुँ वर ने ःवीकार कर िलया और अÛय तीनɉ को पुरःकार देकर ǒवदा Ǒकया।
गंधव[राज कȧ कÛया यह ǒववाह ǒवषयक बात सुनकर कुँ वर से बोलीः "आपने ǔजसके साथ
पूव[ मɅ ǒववाह Ǒकया है, उसका हक मारा जाये यह मɇ नहȣं चाहती। वहȣ आपकȧ पटरानी होने कȧ
अिधकाǐरणी है। मɇ उसकȧ छोटȣ बहन के समान रहूँगी।"
इस ूकार दोनɉ पǔƤयाँ ूेमपूव[क बहनɉ के समान रहने लगीं। इन दोनɉ ने हȣ शील का
अनुसरण Ǒकया इसिलए दोनɉ हȣ सुखी हुɃ। एक दूसरे का आदर करके सामने वाले के अिधकार
कȧ र¢ा करने लगीं।
जैसे भरतजी कहते थे Ǒक राÏय बड़े भाई ौीराम का है और रामजी कहते थे Ǒक ǒपता
कȧ आ£ानुसार राÏय का अिधकार भरत का है। यह है शील।
सास सोचे कȧ बहू को सुख कै से िमले, उसका कãयाण कै से हो और बहू चाहे Ǒक माता
जी का ǿदय ूसÛन रहे.... तो यह शील है।
अगर सास चाहे Ǒक घर मɅ मेरा कहना हȣ हो और बहू चाहे Ǒक मेरा कहना हȣ हो,
देवरानी चाहे मेरा कहना हȣ हो और जेठानी चाहे मेरा कहना हȣ हो – ऐसा वातावरण होगा तो
देह पर चाहे Ǒकतने हȣ गहने लदे हɉ, Ǒफर भी जीवन मɅ सÍचा रस नहȣं िमलेगा। सÍचा गहना
तो शील है।
स×य बोलना, ǒूय बोलना, मधुर बोलना, Ǒहतावह बोलना और कम बोलना, जीवन मɅ ोत
रखना, परǑहत के काय[ करना - इससे शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता है। ǔजसके शुƨ
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अÛतःकरण का िनमा[ण नहȣं हुआ वह चाहे अपनी ःथूल काया को Ǒकतने हȣ पफ-पाऊडर-लाली
और वƸालंकारɉ से सुसǔÏजत कर दे, लेǑकन भीतर कȧ तृिƯ नहȣं िमलेगी, ǿदय का आनÛद नहȣं
िमलेगा।
ःवामी रामतीथ[ अमेǐरका गये थे। उनके ूवचन सुनने के िलए लोग इकÒठे हो जाते।
एक बार एक मǑहला आई। उसके अंग पर लाखɉ Ǿपये के हȣरेजǑड़त अलंकार लदे थे। Ǒफर भी
वह मǑहला बड़ȣ दुःखी थी। ूवचन पूरा होते हȣ वह ःवामी रामतीथ[ के पास पहुँची और चरणɉ मɅ
िगर पड़ȣ। बोलीः
"मुझे शाǔÛत दो..... मɇ बहुत दुःखी हूँ। कृ पा करो।"
ःवामी रामतीथ[ ने पूछाः "इतने मूãयवान, सुÛदर तेरे गहने, वƸ-आभूषण ! तू इतनी
धनवान ! Ǒफर तू दुःखी कै से ?"
"ःवामी जी ! ये गहने तो जैसे गधी पर बोझ लदा हो ऐसे मुझ पर लदे हɇ। मुझे भीतर
से शांित नहȣं है।"
अगर शीलǾपी भूषण हमारे पास नहȣं है तो बाहर के वƸालंकार, कोट-पैÛट-टाई आǑद
सब फाँसी जैसे काम करते हɇ। िचƣ मɅ आ×म-ूसाद है, भीतर ूसÛनता है तो वह शील से,
सदगुणɉ से। परǑहत के िलए Ǒकया हुआ थोड़ा-सा संकãप, परोपकाराथ[ Ǒकया हुआ थोड़ा-सा काम
ǿदय मɅ शाǔÛत, आनÛद और साहस ले आता है।
अगर अित उƣम साधक है तो उसे तीन Ǒदन मɅ आ×म-सा¢ा×कार हो सकता है। तीन
Ǒदन के भीतर हȣ परमा×म तǂव कȧ अनुभूित हो सकती है। जÛम-मृ×यु के चÈकर को तोड़कर
फɅ क सकता है। पृØवी जैसी सहनशीलता उसमɅ होनी चाǑहए। ऐसा नहȣं Ǒक इधर-उधर कȧ थोड़ȣ-
सी बात सुनकर भागता Ǒफरे।
पृØवी जैसी सहनशǒƠ और सुमन जैसा सौरभ, सूय[ जैसा ूकाश और िसंह जैसी
िनभȸकता, गुǾओं जैसी उदारता और आकाश जैसी åयापकता। पानी मɅ Ǒकसी का गला घɉटकर
दबाये रखे और उसे बाहर आने कȧ जैसी तड़प होती है ऐसी ǔजसकȧ संसार से बाहर िनकलने कȧ
तीो तड़प हो, उसको जब सदगुǾ िमल जाय तो तीन Ǒदन मɅ काम बन जाय। ऐसी तैयारȣ न हो
तो Ǒफर उपासना, साधना करते-करते शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करना होगा।
वेद के दो ǒवभाग है- ूमाण ǒवभाग और िनमा[ण ǒवभाग। जीवा×मा का वाःतǒवक ःवǾप
Èया है ? इसका जो £ान है उसे 'वेदाÛत' कहते हɇ। यह है ूमाण ǒवभाग। दया, मैऽी, कǾणा,
मुǑदता, दान, य£, तप, ःमरण, परǑहत, ःवाÚयाय, आचाय[-उपासना, इƴ-उपासना आǑद जो कम[
हɇ ये शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करते हɇ। ǔजसके शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण नहȣं हुआ वह
ूमाण ǒवभाग को ठȤक से समझ नहȣं पाता, ूमाण ǒवभाग का आनÛद नहȣं ले पाता। स×कम[,
साधन, आचायȾपासना आǑद करते-करते साधक ूमाण ǒवभाग का अिधकारȣ बन जाता है।
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आज कल हम लोग ूायः िनमा[ण ǒवभाग के अिधकारȣ हɇ। कȧत[नाǑद से शुƨ अÛतःकरण
का िनमा[ण होता है, सदभाव भाव का िनमा[ण होता है। सदभाव कहाँ से होता है ? शुƨ
अÛतःकरण से। सोने-चाँदȣ के गहनɉ से देह कȧ सजावट होती है और कȧत[न आǑद से शुƨ
अÛतःकरण का िनमा[ण होता है। देह कȧ अपे¢ा अÛतःकरण हमारे Ïयादा नजदȣक है। बाहर के
गहने खतरा पैदा कर देते हɇ जबǑक कȧत[न, ÚयानǾपी गहने खतरɉ को भी खतरा पहुँचा देते हɇ।
अतः शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करने वाला शील हȣ सÍचा आभूषण है।
शील मɅ Èया आता है ? स×य, तप, ोत, सǑहंणुता, उदारता आǑद सदगुण।
आप जैसा अपने िलए चाहते हɇ, वैसा दूसरɉ के साथ åयवहार करɅ। अपना अपमान नहȣं
चाहते तो दूसरɉ का अपमान करने का सोचɅ तक नहȣं। आपको कोई ठग ले, ऐसा नहȣं चाहते तो
दूसरɉ को ठगने का ǒवचार नहȣं करɅ। आप Ǒकसी से दुःखी होना नहȣं चाहते तो अपने मन, वचन,
कम[ से दूसरा दुःखी न हो इसका Éयाल रखɅ।
ूाǔणमाऽ मɅ परमा×मा को िनहारने का अßयास करके शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करना
यह शील है। यह महा धन है। ःवग[ कȧ संपǒƣ िमल जाय, ःवग[ मɅ रहने को िमल जाय लेǑकन
वहाँ ईंया[ है, पुÖय¢ीणता है, भय है। ǔजसकेǔजसकेǔजसकेǔजसके जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[,,,, पुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणता
या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता। शील आभूषणɉ का भी आभूषण है।
मीरा के पास कौन-से बाƻ आभूषण थे ? शबरȣ ने Ǒकतने गहने पहने हɉगे ? वनवास के
समय िौपदȣ ने कौन-से गहने सजाये हɉगे ? शील के कारण हȣ आज वे इितहास को जगमगा
रहȣ हɇ।
उदारता देखनी हो तो रंितदेव कȧ देखो। दान करते-करते अǑकं चन हो गये। जंगल मɅ पड़े
हɇ भूखे-Üयासे। काफȧ समय के बाद कु छ भोजन िमला और Ïयɉ हȣ मास मुख तक पहुँचा Ǒक
भूखा अितिथ आ गया। ःवयं भूखे रहकर उसे तृƯ Ǒकया। दूसरɉ कȧ ¢ुधािनवृǒƣ के िलए अपने
शरȣर का मांस भी काट-काटकर देने लगे। कै सी अदभुत दानवीरता और उदारता !
साधक मɅ रंितदेव जैसी दानवीरता और उदारता होनी चाǑहए।
उदारता पदाथɟ कȧ भी होती है और ǒवचारɉ कȧ भी होती है। Ǒकसी ने कु छ कह Ǒदया,
अपमान कर Ǒदया तो बात को पकड़ मत रǔखये। जो बीत गई सो बीत गई। उससे छु टकारा नहȣं
पाएँगे तो अपने को हȣ दुःखी होना पड़ेगा। जगत को सुधारने का ठेका हमने-आपने नहȣं िलया
है। अपने को हȣ सुधारने के िलए हमारा आपका जÛम हुआ है। माँ के पेट से जÛम िलया, गुǾ
के चरणɉ मɅ गया और पूरा सुधर गया ऐसा नहȣं होता। जीवन के अनुभवɉ से गुजरते-गुजरते
आदमी सुधरता है, पारंगत होता है और संसार-सागर से पार हो जाता है। åयǒƠ मɅ अगर कोई
दोष न रहे तो उसे अभी िनǒव[कãप समािध लग जाय और वह ॄƺलीन हो जाय।
रामकृ ंण परमहंस बार-बार स×संग से उठकर रसोईघर मɅ चले जाते और बने हुए åयंजन-
पकवानɉ के बारे मɅ पूछताछ करते। शारदा माँ कहतीं:
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"आप तǂविचÛतन कȧ ऊँ ची बात करते हɇ और Ǒफर तुरÛत दाल, सÞजी, चटनी कȧ खबर
लेने आ जाते हɇ ! लोग Èया कहɅगे ?"
रामकृ ंण बोलेः "यह माँ कȧ कोई लीला है। मेरȣ जीवन-नाव तो ॄƺानंद-सागर कȧ ऐसी
मझधार मɅ है Ǒक कोई उसमɅ बैठ न सके । इसीिलए माँ ने मेरे िचƣ को ǔजƾा के रस मɅ शायद
लगा Ǒदया है। ǔजƾारस के जǐरये मɇ बाहर के जगत मɅ आ जाता हूँ। ǔजस Ǒदन यह ǔजƾारस
छू टा तो समझ लेना... उसी Ǒदन हमारȣ जीवन-नाव Ǒकनारा छोड़कर सागर कȧ मझधार मɅ पहुँच
जाएगी। Ǒफर यह देह Ǒटके गी नहȣं।"
....और हुआ भी ऐसा हȣ। एक Ǒदन शारदामǔण देवी भोजन कȧ थाली सजाकर रामकृ ंण
देव के सम¢ लायी। थाली को देखकर परमहंसजी ने मुँह फे र िलया। शारदा माँ को उनकȧ बात
याद आ गयी.... हाथ से थाली िगर पड़ȣ। ढाई-तीन Ǒदन मɅ हȣ उस महान ् ǒवभूित ने अपनी
जीवनलीला समेट ली।
हम लोगɉ मɅ कोई-न-कोई दोष रहता है, आसǒƠ रहती है। दोषɉ से देह जकड़ा रहता है।
अगर दोष अनेक हɉगे तो अनेक जÛमɉ कȧ याऽा करवायɅगे। दोषɉ के साथ ǔजतना तादा×àय
होगा, उतने हम दोषɉ से ूभाǒवत हɉगे। ईƳर के साथ हमारा ǔजतना तादा×àय होगा, आ×मदेव
के साथ ǔजतना तादा×àय होगा, शील के ःवभाव से ǔजतना तादा×àय होगा, इतने ये दोष
िनदȾǒषता मɅ बदलते जाएँगे।
धन का लोभ, सƣा का लोभ, यश का लोभ, काम का ǒवकार ये सब हɇ तो के वल वृǒƣ....
के वल संǒवत ्। धन के ूित कामना जगती है तो वह लोभ बनती है, åयǒƠ के ूित कामना
जगती है तो वह काम बनती है। है वह एक हȣ संǒवत ्। वह संǒवत ् अगर चैतÛयघन परमा×मा के
िचÛतन मɅ लग जाय तो बेड़ा पार कर दे। Ǒफर काम, बोध, लोभ का ूभाव तुàहɅ ूभाǒवत नहȣं
कर सके गा। Ǒफर खाते हुए भी भोजन के ःवाद मɅ बँधोगे नहȣं। लेते-देते हुए भी लेन-देन के
कƣृ[×व अिभमान मɅ बँधोगे नहȣं। तुàहारे शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता जाएगा। ऐसा करते-
करते आ×मःवǾप का बोध हो गया तो अÛतःकरण बािधत हो जायेगा। खा रहे हɇ Ǒफर भी नहȣं
खाते, लेन-देन कर रहे हɇ Ǒफर भी कु छ नहȣं करते।
शील आǑद सदगुणɉ Ʈारा शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण Ǒकया जाता है। कãयाण का दूसरा
उपाय है अÛतःकरण से सàबÛध-ǒवÍछेद करने का। अÛतःकरण से सàबÛध-ǒवÍछेद करने मɅ
सफल हो गये तो वेदाÛत दश[न के सवȾÍच आदशɟ का सा¢ा×कार हो सकता है। शुƨ अÛतःकरण
का िनमा[ण करने मɅ सफल हो गये तो भǒƠ-दश[न के मधुर अमृत का आःवाद ूाƯ हो जाता है।
शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण ईƳर-भǒƠ मɅ बड़ȣ सहाय करता है और ईƳर-तǂव के सा¢ा×कार मɅ
सहायक होता है।
åयǒƠ अगर धािम[क हो तो अपने िलए हȣ नहȣं, पǐरवार और समाज के िलए भी उपयोगी
होता है। ǔजसके जीवन मɅ धम[ नहȣं है, उस पर अशांित के बादल िघरे रहते हɇ। ǔजसके जीवन मɅ
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धम[ है, उसके जीवन मɅ साधना, सहनशǒƠ, साहस के गुण िनखरते रहते हɇ। लड़कȧ धािम[क है
तो माँ-बाप को तसãली रहती है। ससुरालवाले उस पर ǒवƳास करते हɇ। åयǒƠ धािम[क है तो सब
लोग उस पर ǒवƳास करते हɇ। इस ूकार धािम[कता, सÍचाई, शील आǑद परमाथ[ मɅ तो सहायक
हɇ हȣ, हमारे åयवहार-जगत मɅ भी उपयोगी है। Ǒकसी åयǒƠ के पास धन हो, वैभव हो, लेǑकन
शील और सÛतोष न हो तो Ǒकतना भी बड़ा åयǒƠ शराब-कबाब आǑद मɅ फँ स जाता है।
......तो उƣम से उƣम भूषण है शील।
Ǒफर शंकराचाय[ जी आगे कहते हɇ Ǒक उƣम-से-उƣम तीथ[ Èया है ? अपना ǒवशुƨ मन हȣ
उƣम तीथ[ है। गंगा, यमुना, गोदावरȣ, नम[दा, काशी, मथुरा, पुंकर आǑद सब तीथ[ तो हɇ लेǑकन
वे बाहर के तीथ[ हɇ। ǒवशुƨ हुआ मन जब परमा×मदेव मɅ डूबता है तब वह उƣम-से- उƣम तीथ[
मɅ ःनान करता है। यह तीथ[ भी उसे उƣम तीथ[ मɅ अथा[त ् परमा×मदेव मɅ डूबे हुए संत महापुǾषɉ
के Ʈारा िमलता है। ता×पय[ यह है Ǒक उƣम-से-उƣम तीथ[ अपना ǒवशुƨ मन है।
सुनी है एक कहानीः
एक ǒपता के दो बेटे थे। ǒपता का ःवग[वास हुआ। छोटे बेटे ने अपने भाई से कहाः "मɇ
तीथा[टन करने जा रहा हूँ। ǒपताजी कȧ संपǒƣ हम आधी-आधी बाँट लेवɅ।"
बड़ा भाई सहमत होते हुए बोलाः "अÍछा भैया ! तीथ[याऽा करने जाता है तो भले जा।
मेरा यह तुàबा भी साथ मɅ लेते जा। उसे सब तीथɟ मɅ घुमाना, सब जगह ःनान कराना, देव-
दश[न कराना। मेरे बदले मेरा यह तुàबा हȣ तीथा[टन कर आएगा। तीथ[याऽा मɅ जो खच[ होगा,
आधा मɇ दूँगा।"
छोटा भाई बड़े भाई का तुàबा ले गया। तीथɟ मɅ घुमाते, पǒवऽ ःथानɉ मɅ नहलाते,
देवदश[न कराते हुए घर वापस लौटा तो बड़े भाई ने अपना तुàबा वापस िलया और खच[ का
आधा Ǒहःसा चुका Ǒदया। Ǒफर तुàबे को छȤला और भीतर से थोड़ा चखा तो कडुआ-कडुआ । वह
छोटे भाई से बोलाः
"यह तुàबा इतने तीथɟ मɅ घूमा, सǐरताओं मɅ नहाया, देवदश[न Ǒकये, Ǒफर भी कडुआ हȣ
रहा। अभी मधुरता नहȣं आई। यह तो बाहर से हȣ नहाया। भीतर इसका ःनान नहȣं हुआ। इसके
भीतर जो चीज रखɅगे वह भी कडुवी हो जायेगी।"
बड़ा भाई चतुर था। तुàबे को कं कड़-िमÒटȣ-राख आǑद डालकर खूब रगड़ा। Ǒफर पानी से
अÍछȤ तरह धोया तो उसकȧ कडुवाहट दूर हो गयी। अब तुàबे मɅ जो कु छ रखे वह चीज वैसी हȣ
शुƨ बनी रहे। छोटा भाई समझ गया Ǒक देह को बाहर के तीथɟ मɅ ःनान कराना ठȤक है, अÍछा
है लेǑकन अपने भीतर शुƨȣकरण करने से हȣ सÍचा तीथ[×व महसूस होता है।
मन एक तुàबा है। शील, हǐरनामǾपी पाऊडर, काियक-वािचक-मानिसक स×कम[Ǿपी कं कड़
और ूभु-ूेमǾपी पानी उसमɅ डालकर उसे अÍछȤ तरह धो डालो। Ǒफर सा¢ीभाव कȧ िनगाह से
उसे सुखाओ। यह मनǾपी तुàबा जब ठȤक तरह से धुलकर Ǒफर सूख जाता है तब सब वःतुएँ
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उसमɅ अमृत जैसी रहती हɇ। मनǾपी तुàबा जब पǒवऽ हो जाता है तब अमृतमय जीवन का
अनुभव करा देता है।
....तो सब तीथɟ मɅ उƣम तीथ[ है अपना अÛतमु[ख मन, आ×माकार वृǒƣवाला मन। अपने
मन के पǒवऽ होने पर तीथɟ मɅ जाएँगे तो महापुÖय होगा। मन पǒवऽ नहȣं तो तीथ[ मɅ जाने का
पूरा लाभ नहȣं होगा।
पǒवऽ मनवाला मनुंय महापुǾषɉ के पास जाते हȣ तǂव£ान मɅ पहुँच सकता है। अपǒवऽ
मनवाला शंकाशील आदमी घृणा से युƠ होकर स×संग मɅ बǑढ़या-से-बǑढ़या बात सुनेगा तो भी
उसको रंग नहȣं लगेगा। हमारा िचƣ ǔजतना पǒवऽ और िनदȾष होता है उतना हȣ हमɅ तीथ[ का
भी लाभ होता है।
तीसरȣ बातः जगत मɅ ×यागने योÊय Èया है ? कनक और काÛता। कनक माने सुवण[
अथा[त ् धन और काÛता माने Ƹी। ×यागी, ǒवरƠ संÛयासी के िलए ये दोनɉ चीजɅ मूल से और
भाव से ×याग देने योÊय हɇ। गृहःथ इन दोनɉ को मूल से नहȣं ×याग सकता ÈयɉǑक इन दोनɉ
के ǒबना गृहःथ जीवन Ǒटके गा नहȣं। अतः इनकȧ आसǒƠ ×यागɅ। 'कनक-काÛता के ǒबना मɇ जी
नहȣं सकता' – ऐसी धारणा जो घुस गई है उसका भीतर से ×याग करɅ। वाःतव मɅ, हम सब
चीजɉ के ǒबना भी जी सकते हɇ, परÛतु अपने चैतÛयःवǾप आ×मदेव के ǒबना नहȣं जी सकते।
कनक और काÛता का आकष[ण जीव को उÛनित से िगरा देता है। इस आकष[ण ने कई
जपी-तपी-योगी-×यािगयɉ को िगराकर रख Ǒदया है। िगर जाना यह ूमाद है, लेǑकन िगरकर न
उठना यह पाप है।
अÛतःकरण कȧ अवःथाएँ बदलती रहती हɇ। जो अÛतःकरण कȧ अवःथाओं से पार गये हɇ
उन महापुǾषɉ कȧ बात िनराली है, लेǑकन अÛतःकरण के दायरे मɅ जीनेवाले हम लोगɉ को शील
और £ान का अित आदर करके सावधान होकर रहना चाǑहए।
पुǾष साधक के िलए Ƹी का आकष[ण छोड़ना आवँयक है और मǑहला साधक के िलए
पुǾष का आकष[ण छोड़ना आवँयक है। जब तक देह के ǒवकारȣ आकष[णɉ मɅ िचƣ डूबा रहेगा,
तब तक न संसार मɅ रस िमलेगा और न तǂव£ान मɅ रस िमलेगा। बाƻ आकष[ण का रस
ǔजतना कम होता जायेगा उतना आÛतǐरक रस शुǾ होता जायेगा। ǔजतना आÛतǐरक रस बढ़ेगा
उतना बाƻ आकष[ण नहȣं रहेगा। तब तुम संसार मɅ Ǒदखोगे, åयापार-धÛधा-रोजगार करने वाले
Ǒदखोगे, सÛतान को जÛम देने वाले Ǒदखोगे, दूसरɉ कȧ नजरɉ मɅ तमाम Ǒबया-कलाप करते हुए
Ǒदखोगे लेǑकन वाःतव मɅ तुम कहाँ हो यह तुàहȣ जानोगे अथवा कोई और ॄƺवेƣा जानɅगे।
अपने ǒवषय मɅ £ान होता है और दूसरे के ǒवषय मɅ अनुमान होता है। अनुमान से भले
कोई बुरा कह दे लेǑकन तुàहारे Ǒदल मɅ दुःख नहȣं होगा। तुàहɅ कोई भला कह दे लेǑकन भीतर से
भला नहȣं हो तो दूसरɉ का भला कहना भी तुàहɅ तसãली नहȣं देगा। कोई तुàहɅ भला कह दे
इससे इतना भला नहȣं होता ǔजतना तुàहारा मन ǔःथर होने से तुàहारा भला होता है। कोई तुàहɅ
17
बुरा कर दे इससे इतना बुरा नहȣं होता ǔजतना तुàहारा मन अǔःथर, ǒवकारȣ होने से तुàहारा बुरा
होता है। अपनी आ×मिनƵा और अपना ःवǾप हȣ कãयाण का धाम है। देह को सजाना, उसे
ठȤक रखना, देह कȧ मृ×यु से भयभीत होना, िनÛदा से भयभीत होना, ूशंसा के िलए लालाियत
होना, ये सब कãयाण से वंिचत करने वाली बातɅ हɇ। इनमɅ उलझे हुए लोग परेशान रहते हɇ।
¢मा, शौच, ǔजतेǔÛियता ये सब सदगुण शील के अÛतग[त आते हɇ, दैवी संपǒƣ के
अंतग[त आते हɇ। ईƳर-ूािƯ कȧ तीो इÍछा से आधी साधना हो जाती है, तमाम दोष दूर होने
लगते हɇ। जगत के भोग पाने कȧ इÍछामाऽ से आधी साधना नƴ हो जाती है, अÛतःकरण मिलन
होने लगता है।
'ौीयोगवािशƵ महारामायण' मɅ िलखा हैः "इस जीव कȧ इÍछा ǔजतनी-ǔजतनी बढ़ती है
उतना-उतना वह छोटा हो जाता है। ǔजतनी इÍछा और तृंणाओं का ×याग करता है उतना वह
महान ् हो जाता है।"
संसार के सुख पाने कȧ इÍछा दोष ले आती है और आ×मसुख पाने कȧ इÍछा सदगुण ले
आती है। ऐसा कोई दुगु[ण नहȣं जो संसार के भोग कȧ इÍछा से पैदा न हो। åयǒƠ बुǒƨमान हो,
लेǑकन भोग कȧ इÍछा उसमɅ दुगु[ण ले आयेगी। चाहे Ǒकतना भी बुƨू हो, लेǑकन ईƳर-ूािƯ कȧ
इÍछा उसमɅ सदगुण ले आएगी।
बहुत भोिगयɉ के बीच साधक जाता है तो बहुतɉ के संकãप, ƳासोÍछवास साधक को नीचे
ले आते हɇ। उसका पुराना अßयास Ǒफर उसे सावधान कर देता है। अतः योगाßयासी साधकɉ को
चाǑहए Ǒक वे भोिगयɉ के संपक[ से अपने को बचाते रहɅ, आदर से शील का पालन करते रहɅ।
शील को हȣ अपना जीवन बना लɅ। इससे साधना कȧ र¢ा होगी। .....ओर चलते-चलते कौन नहȣं
िगरा ? िगरावट के , पतन के कई ूसंग जीवन मɅ आ जाते हɇ। िगरकर Ǒफर सँभल जाने वाला
साधक कãयाण के माग[ पर आगे बढ़ सकता है।
एक ǒवधवा थी। कामातुर होकर Ǒकसी के साथ संसार-åयवहार कर िलया। बात खुल गई
तो गाँववालɉ ने उसे दुराचाǐरणी घोǒषत कर Ǒदया। गाँव के मुǔखया ने हुÈम कर Ǒदया Ǒक कल
इस पाǒपनी को सजा देने के िलए गाँव के सब लोग एकǒऽत हɉगे और एक-एक प×थर उठाकर
मारɅगे।
सब लोग हाथ मɅ प×थर लेकर मारने के िलए तैयार हो गये तो एक कǒव ने बुलÛद
आवाज मɅ गाया Ǒकः "इस अपरािधनी को अपराध कȧ सजा तो वहȣ देगा, जो ःवयं िनरपराध हो।
ǔजसने अपने जीवन मɅ कभी कोई अपराध न Ǒकया हो वहȣ इसको प×थर मारेगा।"
सबके हाथ से प×थर एक-एक करके नीचे िगर पड़े। अपरािधनी नारȣ ने पƱाताप के
पावन झरने मɅ नहाकर अपना पाप धो िलया।
'सामने वाले åयǒƠ मɅ भी मɇ हȣ हूँ' ऐसा सोच-समझकर उसको सुधरने का मौका देना
चाǑहए। ःवामी रामतीथ[ बोलते थेः "कु छ लोग अãप बुǒƨ के होते हɇ जो दूसरɉ के दोष हȣ देखते
18
रहते हɇ। 'फलाना आदमी ऐसा है....वैसा है....' इस दोषǺǒƴ के कȧचड़ से बाहर हȣ नहȣं िनकलते।
गुणɉ को छोड़कर दोषɉ पर हȣ उनकȧ Ǻǒƴ Ǒटकती है। 'घोड़ा दूध नहȣं देती है इसिलए वह बेकार
है और गाय सवारȣ के काम नहȣं आती इसिलए बेकार है। हाथी चौकȧ नहȣं करता इसिलए बेकार
है और कु ƣे पर शोभायाऽा नहȣं िनकाली जाती इसिलए बेकार है....' आǑद-आǑद।"
अरे भैया ! घोड़े से सवारȣ का काम ले लो और गाय से दूध पा लो। हाथी शोभायाऽा मɅ
ले लो और कु ƣे से चौकȧ करवाओ। सब उपयोगी हɇ। अपनी-अपनी जगह सब बǑढ़या हɇ।
Ǒकसी मɅ सौ गुण हɉ और एक अवगुण हो तो इस अवगुण के कारण उसकȧ अवहेलना
करना यह तो अपने हȣ जीवन-ǒवकास कȧ अवहेलना करने के बराबर है। तुझे जो अÍछा लगे वह
ले ले, बुरे के िलए वह ǔजàमेदार है। दूसरɉ कȧ बुराई का िचÛतन करने से अÛतःकरण तेरा
मिलन होगा भैया ! उस अवगुण के कारण उसका अÛतःकरण तो मिलन हुआ हȣ है लेǑकन तू
उसका िचÛतन करके अपना Ǒदल Èयɉ खराब करता है ?
भगवान बुƨ के पास दो िमऽ आये और बोलेः "भगवान ! यह मेरा साथी कु ƣे को सदा
साथ रखता है। सदा 'टȣपू-टȣपू' Ǒकया करता है। सोता है तो भी साथ मɅ सुलाता है। ...तो
बताइये, मरते समय तक टȣपू का हȣ िचÛतन करेगा तो कु ƣा बनेगा Ǒक नहȣं ?"
दूसरे िमऽ ने कहाः "भÛते ! मेरȣ बात भी सुिनये। मेरा यह िमऽ ǒबãली को सदा साथ मɅ
रखता है, ǔखलाता-ǒपलाता है, घुमाता है, अपने साथ सुलाता है और सदा 'मीनी-मीनी' Ǒकया
करता है। ....तो बताइये, वह ǒबãली बनेगा Ǒक नहȣं ?"
बुƨ मुःकु राकर बोलेः 'नहȣं, वह ǒबãली नहȣं बनेगा। ǒबãली तू बनेगा ÈयɉǑक उसकȧ
ǒबãली का िचÛतन तू Ïयादा करता है। वह तेरे कु ƣे का िचÛतन करता है इसिलए वह कु ƣा
बनेगा।"
Ǒकसी के दोष देखकर हम उसके दोषɉ का िचÛतन करते हɇ। हो सकता है, वह इतना उन
दोषɉ का अपराधी न हो ǔजतना हमारा अÛतःकरण हो जायेगा। इसिलए अपने अÛतःकरण कȧ
सुर¢ा करनी चाǑहए, उसके शुƨȣकरण मɅ लगे रहना चाǑहए। शील और सÛतोषǾपी भूषण से उसे
सजाना चाǑहए। शील हȣ बǑढ़या-से-बǑढ़या आभूषण है। बाहर के आभूषण खतरा पैदा करते हɇ,
बाहर के आभूषण ईंया[ पैदा करते हɇ।
बुƨ एक ǒवशाल मठ मɅ पाँच मास तक ठहरे हुए थे। गाँव के लोग शाम के समय उनकȧ
वाणी सुनने आ जाते। स×संग पूरा होता तो लोग बुƨ के समीप आ जाते। उनके सम¢ अपनी
समःयाएँ रख देते। Ǒकसीको बेटा चाǑहए तो Ǒकसीको धÛधा चाǑहए, Ǒकसीको रोग का इलाज
चाǑहए तो Ǒकसीको शऽु का उपाय चाǑहए। Ǒकसी को कु छ परेशानी, Ǒकसी को कु छ और। िभ¢ुक
आनÛद ने पूछाः
"भगवन ् ! यहाँ ौीमान लोग भी आते हɇ, मÚयम वग[ के लोग भी आते हɇ और छोटे-छोटे
लोग भी आते हɇ। सब दुःखी-हȣ-दुःखी। इनमɅ कोई सुखी होगा ?"
19
"हाँ, एक आदमी सुखी है।"
"बताइये, कौन है वह ?"
"जो आकर पीछे चुपचाप बैठ जाता है और शांित से सुनकर चला जाता है। कल भी
आएगा। उसकȧ ओर संके त करके बता दूँगा।"
दूसरे Ǒदन बुƨ ने इशारे से बताया। आनÛद ǒवǔःमत होकर बोलाः "भÛते ! वह तो मजदूर
है। कपड़ɉ का Ǒठकाना नहȣं और झɉपड़ȣ मɅ रहता है। वह सुखी कै से ?"
"आनÛद ! अब तू हȣ देख लेना।"
बुƨ ने सब लोगɉ से पूछाः "आपको Èया चाǑहए ?"
सबने अपनी-अपनी चाह बतायी। Ǒकसी को धन चाǑहए, Ǒकसी को सƣा चाǑहए, Ǒकसी को
यश चाǑहए, Ǒकसी को ǒवƮता चाǑहए। ǔजसके पास धन था, सƣा थी उसको शांित चाǑहए। सब
लोग Ǒकसी-न-Ǒकसी परेशानी से मःत थे। उनके अÛतःकरण खदबदाते थे। आǔखर मɅ उस मजदूर
को बुलाकर पूछा गयाः
"तुझे Èया चाǑहए ? Èया होना है तुझे ?"
मजदूर ूणाम करते हुए बोलाः "ूभो ! मुझे कु छ चाǑहए भी नहȣं और कु छ होना भी
नहȣं। जो है, जैसा है, ूारÞध बीत रहा है। धन मɅ या धन के ×याग मɅ, वƸ और आभूषणɉ मɅ
सुख नहȣं है। सुख तो है समता के िसंहासन पर और हे भÛते ! वह आपकȧ कृ पा से मुझे ूाƯ हो
रहा है।"
मुझे यह पाना है..... यह करना है..... यह बनना है.... ऐसी खट-खट ǔजसकȧ दूर हो गई
हो, वह अपने राम मɅ आराम पा लेता है।
चौथी बातः "हमेशा सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन।
सागर ǒवशाल जलरािश से भरा है लेǑकन हम उस जल से न चाय बना सकते हɇ, न
ǔखचड़ȣ पका सकते हɇ। वहȣ सागर का पानी सूय[-ूकाश से ऊपर उठकर बादल बन जाता है।
ःवाित न¢ऽ कȧ बूँद बनकर बरसता है तो सीप मɅ मोती बन जाता है।
ऐसे हȣ वेद के वचनɉ कȧ अपे¢ा ॄƺ£ानी सदगुǾओं के वचन Ïयादा मूãयवान होते हɇ।
वेद सागर है तो ॄƺ£ानी गुǾ का वचन बादल है। सदगुǾ वेदɉ मɅ से, शाƸɅ मɅ से वाÈय लेकर
अपने अनुभव कȧ िमठास िमलाकर साधक के ǿदय को परमा×म रस से पǐरतृƯ करते हɇ। वे हȣ
वचन साधक ǿदय मɅ पचकर मोती बन जाते हɇ।
ईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣं,,,, गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान।
£ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं,,,, गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।।
ॄƺ मन एव इǔÛियɉ से परे है। ॄƺ£ानी सदगुǾ जब Ôमɇ उपदेश दे रहा हूँ..Õ इस भाव से
भी परे होते हɇ तब उनका £ान साधक के ǿदय मɅ अपरो¢ होता है। वेद कȧ ऋचाएँ पǒवऽ हɇ,
20
वेद का £ान पǒवऽ है, लेǑकन ॄƺवेƣा आ×म£ानी महापुǾष के वचन तो परम पǒवऽ हɇ। वे
साधक को आ×मानुभूित मɅ पहुँचा देते हɇ।
वेद पढ़ने से Ǒकसी को आ×म-सा¢ा×कार हो जाय यह गारंटȣ नहȣं लेǑकन सदगुǾ के
वचनɉ से आ×म-सा¢ा×कार हो जाय यह कइयɉ के जीवन मɅ घǑटत हुआ है। इसीिलए नानकजी
ने कहा है Ǒकः
गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर।
बानी बीचबानी बीचबानी बीचबानी बीच अमृत सारा।।अमृत सारा।।अमृत सारा।।अमृत सारा।।
गुǽओं कȧ वाणी हȣ गुǾ है। उनकȧ वाणी मɅ हȣ सारा अमृत भरा रहता है।
....हमेशा सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन। ये वचन अगर जीवन मɅ आ
जायɅ तो जीवन बड़ा िनभȸक, िनƮ[ÛƮ और िनǔƱंत बन जाता है। ƮÛƮɉ के बीच, भयɉ के बीच,
िचÛताओं के बीच जीते हुए भी जीवन िनǔƱंत होता है।
मनुंय अपनी आगामी ǔःथित का आप िनमा[ता है, अपने भाÊय का आप ǒवधाता है। वह
जो कु छ सोचता है, बोलता है, सुनता है, देखता है उसका ूभाव उसके जीवन मɅ ूितǒबǔàबत
होता है।
Úविन के ूभाव का िनरȣ¢ण करने के िलए कु छ ूयोग Ǒकये गये। एक कागज पर
बारȣक रेती के कण ǒबछा Ǒदये गये। कागज के नीचे ǒविभÛन ूकार के शÞद और Úविन Ǒकये
गये। हरेक शÞद व Úविन के ूभाव से कागज पर ǒबछे हुए बारȣक कणɉ मɅ अलग-अलग
आकृ ितयाँ बनती देखी गɃ। जैसे ॐ.......का उÍचारण, राम कȧ धुन, अãला हो अकबर... कȧ
बाँग, कोई संगीत कȧ तज[, गÛदȣ गाली इ×याǑद। सूआम यंऽɉ से यह िनरȣ¢ण Ǒकया गया।
रेत के कण पर Úविन का ूभाव पड़ता है तो हमारे रƠकणɉ पर, Ƴेतकणɉ पर, मन पर,
बुǒƨ पर, Úविन के ूभाव पड़े इसमɅ Èया सÛदेह है ? ǒविभÛन Úविनयɉ के ूभाव से हमारȣ
जीवन-शǒƠ का ǒवकास या ǒवनाश अवँय होता है। यह वै£ािनक स×य है।
भारत के ूिसƨ संगीत कार ओमकारनाथ ठाकु र देश के ूितिनिध के Ǿप मɅ इटली गये
हुए थे। भोजन समारंभ के समय वहाँ के शासक मुसोिलनी ने उनसे पूछाः
"मɇने सुना है Ǒक भारत मɅ ौीकृ ंण नामक गायɅ चरानेवाला चरवाहा बंसी मɅ फूँ क मारता
और अंगुिलयाँ घुमाता तो गायɅ एकतान खड़ȣ रह जातीं, बछड़े िथरकने लगते, मोर पंख फै लाकर
नाचने लगते, अनपढ़ Êवालबाल और गोǒपयाँ आनÛद से झूमने लगतीं। मेरȣ समझ मɅ नहȣं
आता। Èया यह सच है ? मुझे इन बातɉ मɅ ǒवƳास नहȣं होता। इसके ǔखलाफ मɇने कई वƠåय
Ǒदये हɇ। आप भारत से आये हɅ। इस ǒवषय मɅ आपका Èया कहना है ?"
Ǒकसी कȧ समझ मɅ आ जाये वहȣ स×य होता है Èया ? स×य असीम है और समझने
वाली बुǒƨ सीिमत है। Ǒफर, बुǒƨ भी सǂवूधान, रजोूधान, तमोूधान हुआ करती है। तमोूधान
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  • 2. 1 ूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपादूातः ःमरणीय पूÏयपाद संत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजीसंत ौी आसारामजी बापू केबापू केबापू केबापू के स×संगस×संगस×संगस×संग----ूवचनूवचनूवचनूवचन सामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोत िनवेदनिनवेदनिनवेदनिनवेदन पूÏय बापू कȧ सहज बोलचाल मɅ अनुभवसंपÛन गीता£ान कȧ माधुय[ता इस ूकार िनखर आती है Ǒक ǒवƮान इसमɅ तǂव-अमृत िनहार सकते हɇ, साधक काम-संकãप के काँटɉ को चुनकर फɅ क सकते हɇ। संसारȣ जीवन जीने वाले स×य कȧ साधना पर अमसर होने को उ×सुक हो सकते हɇ। सिमित ने पूÏय बापू कȧ सहज बोलचाल कȧ धारा को संमहȣत करके पुःतक के Ǿप मɅ आपके करकमलɉ तक पहुँचाने का बालयƤ Ǒकया है। गुणमाहȣ Ǻǒƴ से इसका लाभ उठाने कȧ कृ पा करɅ। सनातन धम[ के उÍच िशखरɉ के अनुभव संपÛन इन संत कȧ अमृतवाणी औरɉ तक पहुँचाकर पुÖय के भागी बनɅ।
  • 3. 2 ǒवनीतǒवनीतǒवनीतǒवनीत,,,, ौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमितौी योग वेदाÛत सेवा सिमित अमदावाद आौमअमदावाद आौमअमदावाद आौमअमदावाद आौम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अनुबमअनुबमअनुबमअनुबम िनवेदन सामØय[ ॐोत 2 पाँच Ǿपये और गधा 53 भूषणɉ का भूषणः शील 8 चूहे का पुǽषाथ[ 55 स×संग-सुधा 23 कच कȧ सेवा-भावना 55 शील का दान 23 िनंकाम गुǽसेवा 57 'चतुराई चूãहे पड़ȣ.... 27 ओखा कȧ शादȣ 60 गीता से आ×म£ान पाया 31 घोड़ȣ गई..... हुÈका रह गया 60 पाँच आƱय[ 34 मथुरा के भंगेड़ȣ 69 आठ पापɉ का घड़ा 36 युǒƠ से कामनाओ को मोड़ो 71 स×संग मǑहमा 37 ःवामी ǒववेकानÛद और नत[कȧ 72 ǒवधेया×मक जीवनǺǒƴ 40 गांधारȣ और ौीकृ ंण 75 तीन दुल[भ चीजɅ 41 मेधावी बालक : शंकराचाय[ 76 गीता मɅ मधुर जीवन का माग[ 49 सुख का ॐोत अपने आप मɅ 81 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोतसामØय[ ॐोत रावण के जमाने मɅ एक बड़े सदाचारȣ, शील को धारण करने वाले राजा चÈववेण हुए। बड़ा सादा जीवन था उनका। राजपाट होते हुए भी योगी का जीवन जीते थे। ूजा से जो कर आता था, उसको ूजा का खून-सा समझते थे। उसका उपयोग åयǒƠगत सुख, ऐƳय[, ःवाथ[ या ǒवलास मɅ ǒबãकु ल नहȣं होने देते थे। राजमहल के पीछे खुली जमीन थी, उसमɅ खेती करके अपना गुजारा कर लेते थे। हल जोतने के िलए बैल कहाँ से लायɅ ? खजाना तो राÏय का था, अपना नहȣं था। उसमɅ से खच[ नहȣं करना चाǑहए। .....तो राजा ःवयं बैल कȧ जगह जुत जाते थे और उनकȧ पƤी Ǒकसान कȧ जगह। इस ूकार पित पƤी खेती करते और जो फसल होती
  • 4. 3 उससे गुजारा करते। कपास बो देते। Ǒफर घर मɅ ताना-बुनी करके कपड़े बना लेते, खƧर से भी मोटे। चÈववेण राजा के राÏय मɅ Ǒकसी कȧ अकाल मृ×यु नहȣं होती थी, अकाल नहȣं पड़ता था, ूजा मɅ ईमानदारȣ थी, सुख-शाǔÛत थी। ूजा अपने राजा-रानी को सा¢ात ् िशव-पाव[ती का अवतार मानती थी। पव[ ×यौहार के Ǒदनɉ मɅ नगर के लोग इनके दश[न करने आते थे। पव[ के Ǒदन थे। कु छ धनाÕय मǑहलायɅ सज धजकर राजमहल मɅ गɃ। रानी से िमलीं। रानी के वƸ तो सादे, घर कȧ ताना-बुनी करके बनाये हुए मोटे-मोटे। अंग पर कोई हȣरे- जवाहरात, सुवण[-अलंकार आǑद कु छ नहȣं। कȧमती वƸ-आभूषणɉ से, सुवण[-अलंकारɉ से सजीधजी बड़े घराने कȧ मǑहलाएँ कहने लगीं- "अरे रानी साǑहबा ! आप तो हमारȣ लआमी जी हɇ। हमारे राÏय कȧ महारानी पव[ के Ǒदनɉ मɅ ऐसे कपड़े पहनɅ ? हमɅ बड़ा दुःख होता है। आप इतनी महान ǒवभूित कȧ धम[पƤी ! .....और इतने सादे, िचथड़े जैसे कपड़े ! ऐसे कपड़े तो हम नौकरानी को भी पहनने नहȣं देते। आप ऐसा जीवन ǒबताती हो ? हमɅ तो आपकȧ ǔजÛदगी पर बहुत दुःख होता है।" आदमी जैसा सुनता है, देर-सबेर उसका ूभाव िचƣ पर पड़ता हȣ है। अगर सावधान न रहे तो कु संग का रंग लग हȣ जाता है। हãके संग का रंग जãदȣ लगता है। अतः सावधान रहɅ। कु संग स×पथ से ǒवचिलत कर देता है। दूसरȣ मǑहला ने कहाः "देखो जी ! हमारे ये हȣरे कै से चमक रहे हɇ ! .... और हम तो आपकȧ ूजा हɇ। आप हमारȣ रानी साǑहबा हɇ। आपके पास तो हमसे भी Ïयादा कȧमती वƸालंकार होने चाǑहए ?" तीसरȣ ने अपनी अंगूठȤ Ǒदखायी। चौथी ने अपने जेवर Ǒदखाये। चÈववेण कȧ पƤी तो एक और उसको बहकाने वाली अनेक। उनके ƳासोÍछवास, उनके ǒवलासी वायॄेशन से रानी Ǒहल गई। वे ǔƸयाँ तो चली गɃ लेǑकन चÈववेण के घर मɅ आग लगा गई। रानी ने बाल खोल Ǒदये और Ƹीचǐरऽ मɅ उतर आई। राजा राज-दरबार से लौटे। देखा तो देवीजी का Ǿि ःवǾप ! पूछाः "Èया बात है देवी ?" "आप मुझे मूख[ बना रहे हɇ। मɇ आपकȧ रानी कै सी ? आप ऐसे महान ् सॆाट और मɇ आप जैसे सॆाट कȧ पƤी ऐसी दǐरि ? मेरे ये हाल ?" "तुझे Èया चाǑहए ?" "पहले वचन दो।" "हाँ, वचन देता हूँ। माँग।" "सुवण[-अलंकार, हȣरे जवाहरात, कȧमती वƸ-आभूषण..... जैसे महारािनयɉ के पास होते हɇ, वैसी हȣ मेरȣ åयवःथा होनी चाǑहए।"
  • 5. 4 राजा वःतुǔःथित से £ात हुए। वे समझ गये Ǒकः "वƸालंकार और फै शन कȧ गुलाम मǑहलाओं ने इसमɅ अपनी ǒवलािसता का कचरा भर Ǒदया है। अपना अÛतःकरण सजाने के बजाय हाड़-मांस को सजानेवाली अãपमित माइयɉ ने इसे ूभाǒवत कर Ǒदया है। मेरा उपदेश मानेगी नहȣं। इसके िलये हȣरे-जवाहरात, गहने-कपड़े कहाँ से लाऊँ ? राÏय का खजाना तो ूजा का खून है। ूजा के खून का शोषण करके , Ƹी का गुलाम होकर, उससे उसको गहने पहनाऊँ ? इतना नालायक मुझे होना नहȣं है। ूजा का शोषण करके औरत को आभूषण दूँ ? Èया कǾँ ? धन कहाँ से लाऊँ ? नीित Èया कहती है ? नीित कहती है Ǒक अपने से जो बलवान ् हो, धनवान हो और दुƴ हो तो उसका धन ले लेने मɅ कोई पाप नहȣं लगता। धन तो मुझे चाǑहए। नीितयुƠ धन होना चाǑहए।' राजा सोचने लगेः Ôधनवान और दुƴ लोग तो मेरे राÏय मɅ भी हɉगे लेǑकन वे मुझसे बलवान नहȣं हɇ। वे मेरे राÏय के आिौत हɇ। दुब[ल का धन छȤनना ठȤक नहȣं।" ǒवचार करते-करते अड़ोस-पड़ोस के राजाओं पर नजर गई। वे धनवान तो हɉगे, बेईमान भी हɉगे लेǑकन बलवान भी नहȣं थे। आǔखर याद आया Ǒक रावण ऐसा है। धनवान भी है, बलवान भी है और दुƴ भी हो गया है। उसका धन लेना नीितयुƠ है। अपने से बलवान ् और उसका धन ? याचना करके नहȣं, माँगकर नहȣं, उधार नहȣं, दान नहȣं, चोरȣ करके नहȣं, युǒƠ से और हुÈम से लेना है। राजा ने एक चतुर वजीर को बुलाया और कहाः "जाकर राजा रावण को कह दो Ǒक दो मन सोना दे दे। दान-धम[ के Ǿप मɅ नहȣं, ऋण के Ǿप मɅ नहȣं। राजा चÈववेण का हुÈम है Ǒक 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दे।" वजीर गया रावण कȧ सभा मɅ और बोलाः "लंके श ! राजा चÈववेण का आदेश है, Úयान से सुनो।" रावणः "देव, दानव, मानव, य¢, ǑकÛनर, गÛधव[ आǑद सब पर लंकापित रावण का आदेश चलता है और उस रावण पर राजा चÈववेण का आदेश ! हूँऽऽऽ...." रावण गरज उठा। ǒवभीषण आǑद ने कहाः "राजन ! कु छ भी हो, वह सÛदेशवाहक है, दूत है। उसकȧ बात सुननी चाǑहए।" रावणः "हाँ, Èया बोलते हो ?" रावण ने ःवीकृ ित दȣ। वजीरः "दान के Ǿप मɅ नहȣं, ऋण के Ǿप मɅ नहȣं, लेǑकन राजा चÈववेण का आदेश है Ǒक 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दो, नहȣं तो ठȤक नहȣं रहेगा। लंका का राÏय खतरे मɅ पड़ जायेगा।" चÈववेण के वजीर ने अपने ःवामी का आदेश सुना Ǒदया।
  • 6. 5 रावणः "अरे मÍछर ! इस रावण से बड़े-बड़े चबवतȸ डरते हɇ और वह जरा सा-चÈववेण राजा ! मुझ पर 'कर' ? हूँऽऽऽ..... अरे ! इसको बाँध दो, कै द मɅ डाल दो।" रावण आगबबूला हो गया। सबने सलाह दȣः "महाराज ! यह तो बेचारा अनुचर है, िचÒठȤ का चाकर। इसको कै द करना नीित के ǒवǾƨ है। आप सोना न दɅ, कोई हज[ नहȣं ǑकÛतु इसको छोड़ हȣ दɅ। हमने राजा चÈववेण का नाम सुना है। वह बड़ा शीलसàपÛन राजा है। बड़ा सÏजन, सदाचारȣ है। उसके पास योग-सामØय[, सूआम जगत का सामØय[ बहुत है।" "तो रावण Èया कम है ?" "लंके श ! आप भी कम नहȣ है। लेǑकन वह राजा शील का पालन करता है।" "सबकȧ Èया राय है ?" पूरे मंऽीमÖडल पर रावण ने नजर डालते हुए पूछा। "या तो दो मन सोना दे दɅ......" "मɇ सोना दे दूँ ?" सलाहकारɉ कȧ बात बीच से हȣ काटते हुए रावण गरज उठा। "याचक भीख माँगने आये तो दे दूँ लेǑकन मेरे ऊपर 'कर' ? मेरे ऊपर आदेश ? यह नहȣं होगा।" िसर धुनकर रावण बोला। "अÍछा, तो दूत को बाहर िनकाल दो।" चÈववेण के वजीर को बाहर िनकाल Ǒदया गया। रावण महल मɅ गया तो वाƣा[लाप करता हुआ वह मÛदोदरȣ से बोलाः "ǒूये ! दुिनयाँ मɅ ऐसे मूख[ भी राÏय करते हɇ। देव, दानव, मानव, य¢, ǑकÛनर, गÛधव[ आǑद सबके सब ǔजससे भय खाते हɇ, उस लंकापित रावण को Ǒकसी मूख[ चÈववेण ने आदेश भेज Ǒदया Ǒक 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे दो। 'अरे मÛदोदरȣ ! कै से कै से पागल राजा हɇ दुिनयाँ मɅ !" "नाथ ! चÈववेण राजा बड़े सदाचारȣ आदमी हɇ। शीलवान ् नरेश हɇ। आपने Èया Ǒकया ? दो मन सोना नहȣं भेजा उनको ?" मÛदोदरȣ ǒवनीत भाव से बोली। "Èया 'कर' के Ǿप मɅ सोना दे दूँ ? लंके श से ऊँ चा वह होगा ?" रावण का बोध भभक उठा। "ःवामी ! दे देते तो अÍछा होता। उनका राÏय भले छोटा है, आपके पास ǒवशाल साॆाÏय है, बाƻ शǒƠयाँ हɇ, लेǑकन उनके पास ईƳरȣय शǒƠयाँ हɇ, आ×म-ǒवौाǔÛत से ूाƯ अदभुत सामØय[ है।" "अरे मूख[ Ƹी ! रावण के साथ रहकर भी रावण का सामØय[ समझने कȧ अÈल नहȣं आई? पागल कहȣं कȧ !" रावण ने मÛदोदरȣ कȧ बात उड़ा दȣ।
  • 7. 6 कहानी कहती है Ǒक दूसरे Ǒदन सुबह मÛदोदरȣ ने रावण को छोटा-सा चम×कार Ǒदखाया। रोज सुबह कबूतरɉ को Ïवार के दाने डालने के िलए राजमहल कȧ छत पर जाती थी। उस Ǒदन रावण को भी साथ ले गई और बोलीः "महाराज ! देव, दानव, मानव, य¢, गंधव[, ǑकÛनर आǑद सब आपकȧ आ£ा मानते हɇ तो अपने ूभाव का आज जरा अनुभव कर लो। देखो, इन पǔ¢यɉ पर आपका Ǒकतना ूभाव है ?" पǔ¢यɉ को दाने डालकर मÛदोदरȣ उÛहɅ कहने लगीः "हे ǒवहंग ! राजा लंके श कȧ दुहाई है Ǒक जो दाने खायेगा, उसकȧ गरदन झुक जायेगी और वह मर जायेगा।" सब प¢ी दाने खाते रहे। उÛहɅ कु छ नहȣं हुआ। मÛदोदरȣ बोलीः "ूाणेश ! आपकȧ दुहाई का ूभाव पǔ¢यɉ पर कु छ नहȣं पड़ा।" "मूख[ औरत ! पǔ¢यɉ को Èया पता Ǒक मɇ लंके श हूँ ?" "ःवामी ! ऐसा नहȣं है। अब देǔखए।" Ǒफर से दाने डालकर रानी पǔ¢यɉ से बोलीः "राजा चÈववेण कȧ दुहाई है। दाने चुगने बÛद कर दो। जो दाने चुगेगा, राजा चÈववेण कȧ दुहाई से उसकȧ गरदन टेढ़ȣ हो जाएगी और वह मर जाएगा।" पǔ¢यɉ ने दाना चुगना बÛद कर Ǒदया। पाषाण कȧ मूित[वत ् वे ǔःथर हो गये। एक बहरे कबूतर ने सुना नहȣं था। वह दाने चुगता रहा तो उसकȧ गरदन टेढ़ȣ हो गई, वह मर गया। रावण देखता हȣ रह गया ! अपनी Ƹी के Ʈारा अपने हȣ सामØय[ कȧ अवहेलना सह न सका। उसको डाँटते हुए वह कहने लगा: "इसमɅ तेरा कोई Ƹीचǐरऽ होगा। हम ऐसे अÛधǒवƳास को नहȣं मानते। ǔजसके घर मɅ ःवयं वǾणदेव पानी भर रहे हɇ, पवनदेव पंखा झल रहे हɇ, अǔÊनदेव रसोई पका रहे हɇ, मह-न¢ऽ चौकȧ कर रहे हɇ उस महाबली ǒऽभुवन के ǒवजेता रावण को तू Èया िसखा रहȣ है ?" बु ƨ होकर रावण वहाँ से चल Ǒदया। इधर, राजा चÈववेण के मंऽी ने समुि के Ǒकनारे एक नकली लंका कȧ रचना कȧ। काजल के समान अ×यÛत महȣन िमÒटȣ को समुि के जल मɅ घोलकर रबड़ȣ कȧ तरह बना िलया तथा तट कȧ जगह को चौरस बनाकर उस पर उस िमÒटȣ से एक छोटे आकार मɅ लंका नगरȣ कȧ रचना कȧ। घुली हुई िमÒटȣ कȧ बूँदɉ को टपका-टपकाकर उसी से लंका के परकोटे, बुज[ और दरवाजɉ आǑद कȧ रचना कȧ। परकोटɉ के चारɉ ओर कं गूरे भी काटे एवं उस परकोटे के भीतर लंका कȧ राजधानी और नगर के ूिसƨ बड़े-बड़े मकानɉ को भी छोटे आकार मɅ रचना करके Ǒदखाया। यह सब करने के बाद वह पुनः रावण कȧ सभा मɅ गया। उसे देखकर रावण चɋक उठा और बोलाः "Èयɉ जी ! तुम Ǒफर यहाँ Ǒकसिलये आये हो ?" "मɇ आपको एक कौतूहल Ǒदखलाना चाहता हूँ।"
  • 8. 7 "Èया कौतूहल Ǒदखायेगा रे ? अभी-अभी एक कौतूहल मÛदोदरȣ ने मुझे Ǒदखाया है। सब मूखɟ कȧ कहािनयाँ हɇ। उपहास करते हुए रावण बोला। "मɇने समुितट पर आपकȧ पूरȣ लंका नगरȣ सजायी है। आप चलकर तो देǔखये !" रावण उसके साथ समुितट पर गया। वजीर ने अपनी कारȣगरȣ Ǒदखायीः "देǔखये, यह ठȤक-ठȤक आपकȧ लंका कȧ नकल है न ?" रावण ने उसकȧ अदभुत कारȣगरȣ देखी और कहाः "हाँ ठȤक है। यहȣ Ǒदखाने के िलए मुझे यहाँ लाया है Èया ?" "राजन ! धैय[ रखो। इस छोटȣ-सी लंका से मɇ आपको एक कौतूहल Ǒदखाता हूँ। देǔखये, लंका के पूव[ का परकोटा, दरवाजा, बुज[ और कं गूरे साफ-साफ Ïयɉ-के -×यɉ Ǒदख रहे हɇ न ?" "हाँ Ǒदख रहे हɇ।" "मेरȣ रची हुई लंका के पूव[ Ʈार के कं गूरɉ को मɇ राजा चÈववेण कȧ दुहाई देकर जरा-सा Ǒहलाता हूँ, इसके साथ हȣ आप अपनी लंका के पूव[ Ʈार के कं गूरे Ǒहलते हुए पायɅगे।" इतना कहकर मंऽी ने राजा चÈववेण कȧ दुहाई देकर अपनी रची हुई लंका के पूव[ Ʈार के कं गूरे Ǒहलाये तो उसके साथ-हȣ-साथ असली लंका के कं गूरे भी डोलायमान होते Ǒदखाई Ǒदये। यह देखकर रावण को बड़ा आƱय[ हुआ। उसे मÛदोदरȣ कȧ बात याद आ गई। चÈववेण के वजीर ने बारȣ-बारȣ से और भी कं गूरे, परकोटे के Ʈार, बुज[ आǑद Ǒहलाकर Ǒदखाया। इसे देखकर रावण दंग रह गया। आǔखर वजीर ने कहाः "राजन ! अभी दो मन सोना देकर जान छु ड़ा लो तो ठȤक है। मɇ तो अपने ःवामी राजा चÈववेण का छोटा सा वजीर हूँ। उनकȧ दुहाई से इन छोटे Ǿप मɅ बनी हुई लंका को उजाडूँगा तो तुàहारȣ लंका मɅ भी उजाड़ होने लगेगा। ǒवƳास न आता हो तो अभी Ǒदखा दूँ।" आǔखर रावण भी बड़ा ǒवƮान था। अगम अगोचर जगत ǒवषयक शाƸɉ से पǐरिचत था। समझ गया बात। वजीर से बोलाः "चल, दो मन सोना ले जा। Ǒकसी से कहना मत।" दो मन सोना लेकर वजीर राजा के पास पहुँचा। चÈववेण ने कहाः "लंके श जैसे हठȤ और महा अहंकारȣ ने 'कर' के Ǿप मɅ दो मन सोना दे Ǒदया ? तूने याचना तो नहȣं कȧ ?" "नहȣं, नहȣं ूभु ! मेरे सॆाट कȧ ओर से याचना ? कदाǒप नहȣं हो सकती।" वजीर गौरव से मःतक ऊँ चा करके बोला। "Ǒफर कै से सोना लाया ?" राजा ने पूछा। रानी भी Úयानपूव[क सुन रहȣ थी। "महाराज ! आपकȧ दुहाई का ूभाव Ǒदखाया। पहले तो मुझे कै द मɅ भेज रहा था, Ǒफर मंǒऽयɉ ने समझाया तो मुझे दूत समझकर छोड़ Ǒदया। मɇने रातभर मɅ छोटे-छोटे घरɋदे सागर के तट पर बनाये.... Ǒकला, झरोखे, ूवेशƮार आǑद सब। उसकȧ लंका कȧ ूितमूित[ खड़ȣ कर दȣ। Ǒफर उसको ले जाकर सब Ǒदखाया। आपकȧ दुहाई देकर ǔखलौने कȧ लंका का मुÉय ूवेशƮार जरा-सा Ǒहलाया तो उसकȧ असली लंका का Ʈार डोलायमान हो गया। थोड़े मɅ हȣ रावण आपकȧ
  • 9. 8 दुहाई का और आपके सामØय[ का ूभाव समझ गया एवं चुपचाप दो मन सोना दे Ǒदया। दया- धम[ करके नहȣं Ǒदया वरन ् जब देखा Ǒक यहाँ का डÖडा मजबूत है, तभी Ǒदया।" रानी सब बात एकाम होकर सुन रहȣ थी। उसको आƱय[ हुआ Ǒकः "लंके श जैसा महाबली ! महा उƧÖड ! देवराज इÛि सǑहत सब देवता, यम, कु बेर, वǾण, अǔÊन, वायु, य¢, ǑकÛनर, गÛधव[, दानव, मानव, नाग आǑद सब ǔजससे काँपते हɇ, ऐसे रावण पर भी मेरे पितदेव के शील- सदाचार का इतना ूभाव और मɇ ऐसे पित कȧ बात न मानकर ǒवलासी ǔƸयɉ कȧ बातɉ मɅ आ गई ? फै शनेबल बनने के चÈकर मɅ पड़ गई ? िधÈकार है मुझे और मेरȣ ¢ुि याचना को ! ऐसे Ǒदåय पित को मɇने तंग Ǒकया !" रानी का ǿदय पƱाताप से भर गया। ःवामी के चरणɉ मɅ िगर पड़ȣः "ूाणनाथ ! मुझे ¢मा कȧǔजए। मɇ राह चूक गई थी। आपके शील-सदाचार के माग[ कȧ मǑहमा भूल गई थी इसीिलए नादानी कर बैठȤ। मुझे माफ कर दȣǔजए। अपना योग मुझे िसखाइये, अपना Úयान मुझे िसखाइये, अपना आ×महȣरा मुझे भी ूाƯ कराइये। मुझे बाहर के हȣरे-जवाहरात कु छ नहȣं चाǑहए। जल जाने वाले इस शरȣर को सजाने का मेरा मोह दूर हो गया।" "तो इतनी सारȣ खटपट करवायी ?" "नहȣं.... नहȣं... मुझे रावण के सोने का गहना पहनकर सुखी नहȣं होना है। आपने जो शील का गहना पहना है, आ×म-शांित का, योग कȧ ǒवौांित का जो गहना पहना है, वहȣ मुझे दȣǔजए।" "अÍछा..... तो वजीर ! जाओ। यह सोना रावण को वापस दे आओ। उसको बता देना Ǒक रानी को गहना पहनने कȧ वासना हो आई थी, इसिलए आदमी भेजा था। अब वासना िनवृƣ हो गई है। अतः सोना वापस ले लो।" वासनावाले को हȣ परेशानी होती है। जो शील का पालन करता है, उसकȧ वासनाएँ िनयंǒऽत होकर िनवृƣ होती हɇ। ǔजसकȧ वासनाएँ िनवृƣ हो जाती हɇ वह सा¢ात ् नारायण का अंग हो जाता है। शील का पालन करते हुए राजा चÈववेण नारायणःवǾप मɅ ǔःथर हुए। उनकȧ अधाɍिगनी भी उनके पǒवऽ पदिचƹɉ पर चलकर सदगित को ूाƯ हुई। शीलवान ् भोग मɅ भी योग बना लेता है। यहȣ नहȣं, नƳर संसार मɅ शाƳत ् ःवǾप का सा¢ा×कार भी कर सकता है। अनुबम ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ भूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शीलभूषणɉ का भूषणः शील Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ्Ǒकं भूषणाɮ भूषणमǔःत शीलम ् तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।तीथɍ परं Ǒकं ःवमनो ǒवशुƨम्।
  • 10. 9 Ǒकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛताǑकमऽ हेयं कनकं च काÛता ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।।ौाåयं सदा Ǒकं गुǾवेदवाÈयम ्।। 'उƣम-से-उƣम भूषण Èया है ? शील। उƣम तीथ[ Èया है ? अपना िनम[ल मन हȣ परम तीथ[ है। इस जगत मɅ ×यागने योÊय Èया है ? कनक और काÛता (सुवण[ और Ƹी)। हमेशा सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन।' ौी शंकराचाय[ǒवरिचत 'मǔणरƤमाला' का यह आठवाँ Ʋोक है। बाहर कȧ सब संपǒƣ पाकर भी आदमी वह सुख, वह चैन, वह शांित, वह कãयाण नहȣं पा सकता, जो शील से पा सकता है। इÛि को ःवग[ के राज-वैभव, नÛदनवन आǑद होते हुए भी वह आनÛद, वह ूसÛनता न थी, जो ूहलाद के पास थी। इÛि ने अपने गुǾ बृहःपित से यह बात पूछȤ थी। ूƽाद के जीवन मɅ शील था इसिलए वह साधनɉ के नहȣं होने के बावजूद भी सुखी रह सका। ǔजसके पास शील है उसके पास साधन न हɉ तो भी वह सुखी रह सकता है। ǔजसके जीवन मɅ शील नहȣं है वह साधन होते हुए भी परेशान है। ....तो भूषणɉ का भूषण Èया है ? शील। कई लोग सोने-चाँदȣ के गहने पहनते हɇ, गले मɅ सुवण[ कȧ जंजीर, पग मɅ झाँझन, कÖठ मɅ चÛदनहार, हाथ-पैरɉ मɅ कड़े, कानɉ मɅ कण[फू ल, उँगली मɅ अँगूठȤ, नाक मɅ नथ इ×याǑद पहनते हɇ और समझते हɇ Ǒक गहने-आभूषण पहनने से हम सुशोिभत होते हɇ। लेǑकन शाƸकारɉ का कहना है, बुǒƨमानɉ का अनुभव है Ǒक गहने पहनने से हम सुशोिभत नहȣं होते। गहने आभूषण से हमारा हाड़-मांस-चामवाला देह थोड़ा सा सुशोिभत हो सकता है, लेǑकन हमारȣ शोभा इनमɅ नहȣं है। इन अलंकारɉ से तो हमारȣ शोभा दब जाती है। हमारȣ असली शोभा जो िनखरनी चाǑहए, वह देह का लालन-पालन और बाहरȣ Ǒटप-टॉप करने कȧ वृǒƣ से दब जाती है। बाहरȣ भूषणɉ से हाड़-चामवाले देह कȧ कृ ǒऽम चमक-दमक Ǒदखती है। हमारȣ शोभा भूषणɉ से नहȣं है, हमारȣ शोभा है शील से। शीलवान ् पुǾष हो या Ƹी, उसका ूकाश कु टुàब, मोहãले, जाित आǑद मɅ जैसा पड़ता है, वैसा ूकाश सोने-चाँदȣ के आभूषणɉ का नहȣं पड़ता। Ǒकसी ने चाहे उपरोƠ सब आभूषणɉ को धारण Ǒकया हो, यǑद शील न हो तो वे सब åयथ[ हɇ। मन, वचन और कम[ से अयोÊय Ǒबया न करना, देश-काल के अनुसार योÊयता से, सरलता से ǒवचारपूव[क बत[ना-इस आचरण को शाƸ मɅ 'शीलोत' कहा गया है। उÛनित का माग[ शील हȣ है। गीता मɅ बताये हुए दैवी संपǒƣ के ल¢ण शीलवाले åयǒƠ मɅ होते हɇ। यǑद आ×म£ान न भी हो और शील हो तो मनुंय नीच गित को ूाƯ नहȣं होता। शीलवान हȣ आ×मबोध ूाƯ करके मुƠ हो सकता है। शीलरǑहत पुǾष को कड़ा, कु Öडल आǑद गहने ऊपर कȧ शोभा भले हȣ देते हɉ, परÛतु सÏजन पुǾषɉ का तो शील हȣ भूषण है।
  • 11. 10 शीलरǑहत मूख[ को कड़ा, कु Öडल आǑद बोझǾप हɇ। ये भूषण जीव को जोǔखम मɅ डालने वाले और भय के कारण है, जबǑक शीलǾपी भूषण लोक और परलोक मɅ उƣम ूकार का सुख देने वाला है, इस लोक मɅ शोभा और कȧित[ बढ़ानेवाला है, परलोक मɅ अ¢य सुख को ूाƯ कराता है। मूख[ पहने हुए गहनɉ को भी लजा देता है जबǑक शीलवान ् पहने हुए भूषणɉ को शोभा देता है। एक राजपुऽ ने अपने ǒपता कȧ इÍछा के ǒवǾƨ एक Ƹी के साथ ǒववाह कर िलया था और गुƯ ःथान मɅ उसके साथ रहा करता था। राजा को जब यह समाचार िमला Ǒक मेरा पुऽ मेरे शऽु कȧ पुऽी के साथ ǒववाह करके गुम हो गया है तो वह बहुत दुःखी हुआ। पुऽ कȧ यह काय[वाहȣ उसे योÊय न लगी इसिलए दुःखी होते हुए मरण के समीप आ गया। उसको एक हȣ पुऽ था। मरने के समय उसने कुँ वर को बुलाने के िलए आदमी भेजे और अपनी पǐरǔःथित के समाचार कहलवाये। कुँ वर ने अपनी पƤी से कहाः "ǒपता जी मरने कȧ तैयारȣ मɅ हɇ। मुझे उÛहɉने अपने पास बुलाया है। इस समय मुझे जाना हȣ चाǑहए। मेरे जाने से वे ःवःथ हो जायɅगे तो मुझ पर ूसÛन हɉगे। अगर वे चल बसɅगे तो मɇ राजा बन जाऊँ गा।" पƤी बोलीः "तुम राजा बन जाओगे तो मेरा Èया होगा ?" "मɇ तुझे वहाँ बुला लूँगा और पटरानी बनाऊँ गा।" यह कहकर राजकु मार ने अपनी नामवाली अँगूठȤ अपनी उँगली से उतारक पƤी को पहनाई और ःवयं राजधानी को चल Ǒदया। वहाँ आकर देखा तो राजा मृ×युशैáया पर पड़ा था। कुँ वर को देखकर राजा ूसÛन हुआ और बोलाः "मɇ तुझसे एक बात कहना चाहता हूँ। यǑद तू मेरȣ बात मान लेगा तो मेरे ूाण सुख से िनकलɅगे। ǒपता के वचन पुऽ को मानने चाǑहए। ौीराम, देवोत भींम आǑद पुऽɉ ने माने हɇ। यǑद तू मानना ःवीकार करे तो कहूँ।" "ǒपताजी ! मɇ आपकȧ अÛत समय कȧ आ£ा का पालन कǾँ गा।" कुँ वर ने ःवीकृ ित दȣ। राजा ने कहाः "हे सुपुऽ ! तू मेरे िमऽ गंधव[राज कȧ कÛया से ǒववाह करना ःवीकार कर।" कुँ वर ने बात मान ली। राजा का ूाणांत हो गया। कुँ वर ने गंधव[राज कȧ कÛया से ǒववाह कर िलया। वह राजा होकर राÏय करने लगा और अपनी पूव[ पƤी से जो बात कहकर आया था, उसको अ×यÛत सुख मɅ भूल गया। ूथमवाली राजकÛया ने सुना Ǒक मेरे Ƴसुर का देहाÛत हो गया है, मेरा पित राजा हो गया है और उसने एक दूसरȣ राजकÛया से ǒववाह कर िलया है। इस राजकÛया के पास एक बहुत चतुर दासी थी। राजकुँ वर कȧ मुलाकात के िलए वह तीन और कÛयाओं को ले आई और उसने राजकÛया सǑहत चारɉ को पुǾष कȧ पोशाक पहनाकर राजकुँ वर के पास नौकरȣ करने को
  • 12. 11 भेजा। कुँ वर चारɉ युवान पुǾषɉ को देखकर ूसÛन हुआ और चारɉ को अपने र¢कɉ कȧ नौकरȣ पर रख िलया। कुँ वर को देखकर राजकÛया के बार-बार आँसू िगरा करते थे। कुँ वर ने कई बार पूछा, परÛतु उसने कु छ उƣर न Ǒदया। एक Ǒदन कुँ वर अके ला उƭान मɅ बैठा था तो वह अंगर¢क उदासी से हाथ जोड़कर उसके सामने जा बैठा। कु मार ने उसकȧ उँगली पर अपने नामवाली अँगूठȤ देखी तो ǒवःमय से पूछाः "हे िमऽ ! यह अँगूठȤ तुझे कहाँ से ूाƯ हुई ?" "आपके पास से।" "मɇने यह अँगूठȤ तुझे कब दȣ थी ?" राजकु मार का आƱय[ बढ़ गया। "जब तुम मुझे छोड़कर आये और राजा बने तब।" रहःय खुल गया। वह समझ गया Ǒक यह मेरȣ ूाणेƳरȣ राजकÛया है। ǒूया से ¢मा माँगते हुए उसने अपने ǒपता कȧ अǔÛतम समय कȧ आ£ा कȧ सारȣ बात कहȣ। तब राजकÛया बोलीः "आपने ǒपता कȧ आ£ानुसार जो ǒववाह Ǒकया है, उससे मɇ ूसÛन हूँ। परÛतु आप मेरा ×याग न कȧǔजए। अपने िनवास मɅ दासी के समान रहने दȣǔजए ǔजससे मɇ िन×य आपके दश[न कर सकूँ ।" कुँ वर ने ःवीकार कर िलया और अÛय तीनɉ को पुरःकार देकर ǒवदा Ǒकया। गंधव[राज कȧ कÛया यह ǒववाह ǒवषयक बात सुनकर कुँ वर से बोलीः "आपने ǔजसके साथ पूव[ मɅ ǒववाह Ǒकया है, उसका हक मारा जाये यह मɇ नहȣं चाहती। वहȣ आपकȧ पटरानी होने कȧ अिधकाǐरणी है। मɇ उसकȧ छोटȣ बहन के समान रहूँगी।" इस ूकार दोनɉ पǔƤयाँ ूेमपूव[क बहनɉ के समान रहने लगीं। इन दोनɉ ने हȣ शील का अनुसरण Ǒकया इसिलए दोनɉ हȣ सुखी हुɃ। एक दूसरे का आदर करके सामने वाले के अिधकार कȧ र¢ा करने लगीं। जैसे भरतजी कहते थे Ǒक राÏय बड़े भाई ौीराम का है और रामजी कहते थे Ǒक ǒपता कȧ आ£ानुसार राÏय का अिधकार भरत का है। यह है शील। सास सोचे कȧ बहू को सुख कै से िमले, उसका कãयाण कै से हो और बहू चाहे Ǒक माता जी का ǿदय ूसÛन रहे.... तो यह शील है। अगर सास चाहे Ǒक घर मɅ मेरा कहना हȣ हो और बहू चाहे Ǒक मेरा कहना हȣ हो, देवरानी चाहे मेरा कहना हȣ हो और जेठानी चाहे मेरा कहना हȣ हो – ऐसा वातावरण होगा तो देह पर चाहे Ǒकतने हȣ गहने लदे हɉ, Ǒफर भी जीवन मɅ सÍचा रस नहȣं िमलेगा। सÍचा गहना तो शील है। स×य बोलना, ǒूय बोलना, मधुर बोलना, Ǒहतावह बोलना और कम बोलना, जीवन मɅ ोत रखना, परǑहत के काय[ करना - इससे शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता है। ǔजसके शुƨ
  • 13. 12 अÛतःकरण का िनमा[ण नहȣं हुआ वह चाहे अपनी ःथूल काया को Ǒकतने हȣ पफ-पाऊडर-लाली और वƸालंकारɉ से सुसǔÏजत कर दे, लेǑकन भीतर कȧ तृिƯ नहȣं िमलेगी, ǿदय का आनÛद नहȣं िमलेगा। ःवामी रामतीथ[ अमेǐरका गये थे। उनके ूवचन सुनने के िलए लोग इकÒठे हो जाते। एक बार एक मǑहला आई। उसके अंग पर लाखɉ Ǿपये के हȣरेजǑड़त अलंकार लदे थे। Ǒफर भी वह मǑहला बड़ȣ दुःखी थी। ूवचन पूरा होते हȣ वह ःवामी रामतीथ[ के पास पहुँची और चरणɉ मɅ िगर पड़ȣ। बोलीः "मुझे शाǔÛत दो..... मɇ बहुत दुःखी हूँ। कृ पा करो।" ःवामी रामतीथ[ ने पूछाः "इतने मूãयवान, सुÛदर तेरे गहने, वƸ-आभूषण ! तू इतनी धनवान ! Ǒफर तू दुःखी कै से ?" "ःवामी जी ! ये गहने तो जैसे गधी पर बोझ लदा हो ऐसे मुझ पर लदे हɇ। मुझे भीतर से शांित नहȣं है।" अगर शीलǾपी भूषण हमारे पास नहȣं है तो बाहर के वƸालंकार, कोट-पैÛट-टाई आǑद सब फाँसी जैसे काम करते हɇ। िचƣ मɅ आ×म-ूसाद है, भीतर ूसÛनता है तो वह शील से, सदगुणɉ से। परǑहत के िलए Ǒकया हुआ थोड़ा-सा संकãप, परोपकाराथ[ Ǒकया हुआ थोड़ा-सा काम ǿदय मɅ शाǔÛत, आनÛद और साहस ले आता है। अगर अित उƣम साधक है तो उसे तीन Ǒदन मɅ आ×म-सा¢ा×कार हो सकता है। तीन Ǒदन के भीतर हȣ परमा×म तǂव कȧ अनुभूित हो सकती है। जÛम-मृ×यु के चÈकर को तोड़कर फɅ क सकता है। पृØवी जैसी सहनशीलता उसमɅ होनी चाǑहए। ऐसा नहȣं Ǒक इधर-उधर कȧ थोड़ȣ- सी बात सुनकर भागता Ǒफरे। पृØवी जैसी सहनशǒƠ और सुमन जैसा सौरभ, सूय[ जैसा ूकाश और िसंह जैसी िनभȸकता, गुǾओं जैसी उदारता और आकाश जैसी åयापकता। पानी मɅ Ǒकसी का गला घɉटकर दबाये रखे और उसे बाहर आने कȧ जैसी तड़प होती है ऐसी ǔजसकȧ संसार से बाहर िनकलने कȧ तीो तड़प हो, उसको जब सदगुǾ िमल जाय तो तीन Ǒदन मɅ काम बन जाय। ऐसी तैयारȣ न हो तो Ǒफर उपासना, साधना करते-करते शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करना होगा। वेद के दो ǒवभाग है- ूमाण ǒवभाग और िनमा[ण ǒवभाग। जीवा×मा का वाःतǒवक ःवǾप Èया है ? इसका जो £ान है उसे 'वेदाÛत' कहते हɇ। यह है ूमाण ǒवभाग। दया, मैऽी, कǾणा, मुǑदता, दान, य£, तप, ःमरण, परǑहत, ःवाÚयाय, आचाय[-उपासना, इƴ-उपासना आǑद जो कम[ हɇ ये शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करते हɇ। ǔजसके शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण नहȣं हुआ वह ूमाण ǒवभाग को ठȤक से समझ नहȣं पाता, ूमाण ǒवभाग का आनÛद नहȣं ले पाता। स×कम[, साधन, आचायȾपासना आǑद करते-करते साधक ूमाण ǒवभाग का अिधकारȣ बन जाता है।
  • 14. 13 आज कल हम लोग ूायः िनमा[ण ǒवभाग के अिधकारȣ हɇ। कȧत[नाǑद से शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता है, सदभाव भाव का िनमा[ण होता है। सदभाव कहाँ से होता है ? शुƨ अÛतःकरण से। सोने-चाँदȣ के गहनɉ से देह कȧ सजावट होती है और कȧत[न आǑद से शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता है। देह कȧ अपे¢ा अÛतःकरण हमारे Ïयादा नजदȣक है। बाहर के गहने खतरा पैदा कर देते हɇ जबǑक कȧत[न, ÚयानǾपी गहने खतरɉ को भी खतरा पहुँचा देते हɇ। अतः शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करने वाला शील हȣ सÍचा आभूषण है। शील मɅ Èया आता है ? स×य, तप, ोत, सǑहंणुता, उदारता आǑद सदगुण। आप जैसा अपने िलए चाहते हɇ, वैसा दूसरɉ के साथ åयवहार करɅ। अपना अपमान नहȣं चाहते तो दूसरɉ का अपमान करने का सोचɅ तक नहȣं। आपको कोई ठग ले, ऐसा नहȣं चाहते तो दूसरɉ को ठगने का ǒवचार नहȣं करɅ। आप Ǒकसी से दुःखी होना नहȣं चाहते तो अपने मन, वचन, कम[ से दूसरा दुःखी न हो इसका Éयाल रखɅ। ूाǔणमाऽ मɅ परमा×मा को िनहारने का अßयास करके शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करना यह शील है। यह महा धन है। ःवग[ कȧ संपǒƣ िमल जाय, ःवग[ मɅ रहने को िमल जाय लेǑकन वहाँ ईंया[ है, पुÖय¢ीणता है, भय है। ǔजसकेǔजसकेǔजसकेǔजसके जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[जीवन मɅ शील होता है उसको ईंया[,,,, पुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणतापुÖय¢ीणता या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता।या भय नहȣं होता। शील आभूषणɉ का भी आभूषण है। मीरा के पास कौन-से बाƻ आभूषण थे ? शबरȣ ने Ǒकतने गहने पहने हɉगे ? वनवास के समय िौपदȣ ने कौन-से गहने सजाये हɉगे ? शील के कारण हȣ आज वे इितहास को जगमगा रहȣ हɇ। उदारता देखनी हो तो रंितदेव कȧ देखो। दान करते-करते अǑकं चन हो गये। जंगल मɅ पड़े हɇ भूखे-Üयासे। काफȧ समय के बाद कु छ भोजन िमला और Ïयɉ हȣ मास मुख तक पहुँचा Ǒक भूखा अितिथ आ गया। ःवयं भूखे रहकर उसे तृƯ Ǒकया। दूसरɉ कȧ ¢ुधािनवृǒƣ के िलए अपने शरȣर का मांस भी काट-काटकर देने लगे। कै सी अदभुत दानवीरता और उदारता ! साधक मɅ रंितदेव जैसी दानवीरता और उदारता होनी चाǑहए। उदारता पदाथɟ कȧ भी होती है और ǒवचारɉ कȧ भी होती है। Ǒकसी ने कु छ कह Ǒदया, अपमान कर Ǒदया तो बात को पकड़ मत रǔखये। जो बीत गई सो बीत गई। उससे छु टकारा नहȣं पाएँगे तो अपने को हȣ दुःखी होना पड़ेगा। जगत को सुधारने का ठेका हमने-आपने नहȣं िलया है। अपने को हȣ सुधारने के िलए हमारा आपका जÛम हुआ है। माँ के पेट से जÛम िलया, गुǾ के चरणɉ मɅ गया और पूरा सुधर गया ऐसा नहȣं होता। जीवन के अनुभवɉ से गुजरते-गुजरते आदमी सुधरता है, पारंगत होता है और संसार-सागर से पार हो जाता है। åयǒƠ मɅ अगर कोई दोष न रहे तो उसे अभी िनǒव[कãप समािध लग जाय और वह ॄƺलीन हो जाय। रामकृ ंण परमहंस बार-बार स×संग से उठकर रसोईघर मɅ चले जाते और बने हुए åयंजन- पकवानɉ के बारे मɅ पूछताछ करते। शारदा माँ कहतीं:
  • 15. 14 "आप तǂविचÛतन कȧ ऊँ ची बात करते हɇ और Ǒफर तुरÛत दाल, सÞजी, चटनी कȧ खबर लेने आ जाते हɇ ! लोग Èया कहɅगे ?" रामकृ ंण बोलेः "यह माँ कȧ कोई लीला है। मेरȣ जीवन-नाव तो ॄƺानंद-सागर कȧ ऐसी मझधार मɅ है Ǒक कोई उसमɅ बैठ न सके । इसीिलए माँ ने मेरे िचƣ को ǔजƾा के रस मɅ शायद लगा Ǒदया है। ǔजƾारस के जǐरये मɇ बाहर के जगत मɅ आ जाता हूँ। ǔजस Ǒदन यह ǔजƾारस छू टा तो समझ लेना... उसी Ǒदन हमारȣ जीवन-नाव Ǒकनारा छोड़कर सागर कȧ मझधार मɅ पहुँच जाएगी। Ǒफर यह देह Ǒटके गी नहȣं।" ....और हुआ भी ऐसा हȣ। एक Ǒदन शारदामǔण देवी भोजन कȧ थाली सजाकर रामकृ ंण देव के सम¢ लायी। थाली को देखकर परमहंसजी ने मुँह फे र िलया। शारदा माँ को उनकȧ बात याद आ गयी.... हाथ से थाली िगर पड़ȣ। ढाई-तीन Ǒदन मɅ हȣ उस महान ् ǒवभूित ने अपनी जीवनलीला समेट ली। हम लोगɉ मɅ कोई-न-कोई दोष रहता है, आसǒƠ रहती है। दोषɉ से देह जकड़ा रहता है। अगर दोष अनेक हɉगे तो अनेक जÛमɉ कȧ याऽा करवायɅगे। दोषɉ के साथ ǔजतना तादा×àय होगा, उतने हम दोषɉ से ूभाǒवत हɉगे। ईƳर के साथ हमारा ǔजतना तादा×àय होगा, आ×मदेव के साथ ǔजतना तादा×àय होगा, शील के ःवभाव से ǔजतना तादा×àय होगा, इतने ये दोष िनदȾǒषता मɅ बदलते जाएँगे। धन का लोभ, सƣा का लोभ, यश का लोभ, काम का ǒवकार ये सब हɇ तो के वल वृǒƣ.... के वल संǒवत ्। धन के ूित कामना जगती है तो वह लोभ बनती है, åयǒƠ के ूित कामना जगती है तो वह काम बनती है। है वह एक हȣ संǒवत ्। वह संǒवत ् अगर चैतÛयघन परमा×मा के िचÛतन मɅ लग जाय तो बेड़ा पार कर दे। Ǒफर काम, बोध, लोभ का ूभाव तुàहɅ ूभाǒवत नहȣं कर सके गा। Ǒफर खाते हुए भी भोजन के ःवाद मɅ बँधोगे नहȣं। लेते-देते हुए भी लेन-देन के कƣृ[×व अिभमान मɅ बँधोगे नहȣं। तुàहारे शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण होता जाएगा। ऐसा करते- करते आ×मःवǾप का बोध हो गया तो अÛतःकरण बािधत हो जायेगा। खा रहे हɇ Ǒफर भी नहȣं खाते, लेन-देन कर रहे हɇ Ǒफर भी कु छ नहȣं करते। शील आǑद सदगुणɉ Ʈारा शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण Ǒकया जाता है। कãयाण का दूसरा उपाय है अÛतःकरण से सàबÛध-ǒवÍछेद करने का। अÛतःकरण से सàबÛध-ǒवÍछेद करने मɅ सफल हो गये तो वेदाÛत दश[न के सवȾÍच आदशɟ का सा¢ा×कार हो सकता है। शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण करने मɅ सफल हो गये तो भǒƠ-दश[न के मधुर अमृत का आःवाद ूाƯ हो जाता है। शुƨ अÛतःकरण का िनमा[ण ईƳर-भǒƠ मɅ बड़ȣ सहाय करता है और ईƳर-तǂव के सा¢ा×कार मɅ सहायक होता है। åयǒƠ अगर धािम[क हो तो अपने िलए हȣ नहȣं, पǐरवार और समाज के िलए भी उपयोगी होता है। ǔजसके जीवन मɅ धम[ नहȣं है, उस पर अशांित के बादल िघरे रहते हɇ। ǔजसके जीवन मɅ
  • 16. 15 धम[ है, उसके जीवन मɅ साधना, सहनशǒƠ, साहस के गुण िनखरते रहते हɇ। लड़कȧ धािम[क है तो माँ-बाप को तसãली रहती है। ससुरालवाले उस पर ǒवƳास करते हɇ। åयǒƠ धािम[क है तो सब लोग उस पर ǒवƳास करते हɇ। इस ूकार धािम[कता, सÍचाई, शील आǑद परमाथ[ मɅ तो सहायक हɇ हȣ, हमारे åयवहार-जगत मɅ भी उपयोगी है। Ǒकसी åयǒƠ के पास धन हो, वैभव हो, लेǑकन शील और सÛतोष न हो तो Ǒकतना भी बड़ा åयǒƠ शराब-कबाब आǑद मɅ फँ स जाता है। ......तो उƣम से उƣम भूषण है शील। Ǒफर शंकराचाय[ जी आगे कहते हɇ Ǒक उƣम-से-उƣम तीथ[ Èया है ? अपना ǒवशुƨ मन हȣ उƣम तीथ[ है। गंगा, यमुना, गोदावरȣ, नम[दा, काशी, मथुरा, पुंकर आǑद सब तीथ[ तो हɇ लेǑकन वे बाहर के तीथ[ हɇ। ǒवशुƨ हुआ मन जब परमा×मदेव मɅ डूबता है तब वह उƣम-से- उƣम तीथ[ मɅ ःनान करता है। यह तीथ[ भी उसे उƣम तीथ[ मɅ अथा[त ् परमा×मदेव मɅ डूबे हुए संत महापुǾषɉ के Ʈारा िमलता है। ता×पय[ यह है Ǒक उƣम-से-उƣम तीथ[ अपना ǒवशुƨ मन है। सुनी है एक कहानीः एक ǒपता के दो बेटे थे। ǒपता का ःवग[वास हुआ। छोटे बेटे ने अपने भाई से कहाः "मɇ तीथा[टन करने जा रहा हूँ। ǒपताजी कȧ संपǒƣ हम आधी-आधी बाँट लेवɅ।" बड़ा भाई सहमत होते हुए बोलाः "अÍछा भैया ! तीथ[याऽा करने जाता है तो भले जा। मेरा यह तुàबा भी साथ मɅ लेते जा। उसे सब तीथɟ मɅ घुमाना, सब जगह ःनान कराना, देव- दश[न कराना। मेरे बदले मेरा यह तुàबा हȣ तीथा[टन कर आएगा। तीथ[याऽा मɅ जो खच[ होगा, आधा मɇ दूँगा।" छोटा भाई बड़े भाई का तुàबा ले गया। तीथɟ मɅ घुमाते, पǒवऽ ःथानɉ मɅ नहलाते, देवदश[न कराते हुए घर वापस लौटा तो बड़े भाई ने अपना तुàबा वापस िलया और खच[ का आधा Ǒहःसा चुका Ǒदया। Ǒफर तुàबे को छȤला और भीतर से थोड़ा चखा तो कडुआ-कडुआ । वह छोटे भाई से बोलाः "यह तुàबा इतने तीथɟ मɅ घूमा, सǐरताओं मɅ नहाया, देवदश[न Ǒकये, Ǒफर भी कडुआ हȣ रहा। अभी मधुरता नहȣं आई। यह तो बाहर से हȣ नहाया। भीतर इसका ःनान नहȣं हुआ। इसके भीतर जो चीज रखɅगे वह भी कडुवी हो जायेगी।" बड़ा भाई चतुर था। तुàबे को कं कड़-िमÒटȣ-राख आǑद डालकर खूब रगड़ा। Ǒफर पानी से अÍछȤ तरह धोया तो उसकȧ कडुवाहट दूर हो गयी। अब तुàबे मɅ जो कु छ रखे वह चीज वैसी हȣ शुƨ बनी रहे। छोटा भाई समझ गया Ǒक देह को बाहर के तीथɟ मɅ ःनान कराना ठȤक है, अÍछा है लेǑकन अपने भीतर शुƨȣकरण करने से हȣ सÍचा तीथ[×व महसूस होता है। मन एक तुàबा है। शील, हǐरनामǾपी पाऊडर, काियक-वािचक-मानिसक स×कम[Ǿपी कं कड़ और ूभु-ूेमǾपी पानी उसमɅ डालकर उसे अÍछȤ तरह धो डालो। Ǒफर सा¢ीभाव कȧ िनगाह से उसे सुखाओ। यह मनǾपी तुàबा जब ठȤक तरह से धुलकर Ǒफर सूख जाता है तब सब वःतुएँ
  • 17. 16 उसमɅ अमृत जैसी रहती हɇ। मनǾपी तुàबा जब पǒवऽ हो जाता है तब अमृतमय जीवन का अनुभव करा देता है। ....तो सब तीथɟ मɅ उƣम तीथ[ है अपना अÛतमु[ख मन, आ×माकार वृǒƣवाला मन। अपने मन के पǒवऽ होने पर तीथɟ मɅ जाएँगे तो महापुÖय होगा। मन पǒवऽ नहȣं तो तीथ[ मɅ जाने का पूरा लाभ नहȣं होगा। पǒवऽ मनवाला मनुंय महापुǾषɉ के पास जाते हȣ तǂव£ान मɅ पहुँच सकता है। अपǒवऽ मनवाला शंकाशील आदमी घृणा से युƠ होकर स×संग मɅ बǑढ़या-से-बǑढ़या बात सुनेगा तो भी उसको रंग नहȣं लगेगा। हमारा िचƣ ǔजतना पǒवऽ और िनदȾष होता है उतना हȣ हमɅ तीथ[ का भी लाभ होता है। तीसरȣ बातः जगत मɅ ×यागने योÊय Èया है ? कनक और काÛता। कनक माने सुवण[ अथा[त ् धन और काÛता माने Ƹी। ×यागी, ǒवरƠ संÛयासी के िलए ये दोनɉ चीजɅ मूल से और भाव से ×याग देने योÊय हɇ। गृहःथ इन दोनɉ को मूल से नहȣं ×याग सकता ÈयɉǑक इन दोनɉ के ǒबना गृहःथ जीवन Ǒटके गा नहȣं। अतः इनकȧ आसǒƠ ×यागɅ। 'कनक-काÛता के ǒबना मɇ जी नहȣं सकता' – ऐसी धारणा जो घुस गई है उसका भीतर से ×याग करɅ। वाःतव मɅ, हम सब चीजɉ के ǒबना भी जी सकते हɇ, परÛतु अपने चैतÛयःवǾप आ×मदेव के ǒबना नहȣं जी सकते। कनक और काÛता का आकष[ण जीव को उÛनित से िगरा देता है। इस आकष[ण ने कई जपी-तपी-योगी-×यािगयɉ को िगराकर रख Ǒदया है। िगर जाना यह ूमाद है, लेǑकन िगरकर न उठना यह पाप है। अÛतःकरण कȧ अवःथाएँ बदलती रहती हɇ। जो अÛतःकरण कȧ अवःथाओं से पार गये हɇ उन महापुǾषɉ कȧ बात िनराली है, लेǑकन अÛतःकरण के दायरे मɅ जीनेवाले हम लोगɉ को शील और £ान का अित आदर करके सावधान होकर रहना चाǑहए। पुǾष साधक के िलए Ƹी का आकष[ण छोड़ना आवँयक है और मǑहला साधक के िलए पुǾष का आकष[ण छोड़ना आवँयक है। जब तक देह के ǒवकारȣ आकष[णɉ मɅ िचƣ डूबा रहेगा, तब तक न संसार मɅ रस िमलेगा और न तǂव£ान मɅ रस िमलेगा। बाƻ आकष[ण का रस ǔजतना कम होता जायेगा उतना आÛतǐरक रस शुǾ होता जायेगा। ǔजतना आÛतǐरक रस बढ़ेगा उतना बाƻ आकष[ण नहȣं रहेगा। तब तुम संसार मɅ Ǒदखोगे, åयापार-धÛधा-रोजगार करने वाले Ǒदखोगे, सÛतान को जÛम देने वाले Ǒदखोगे, दूसरɉ कȧ नजरɉ मɅ तमाम Ǒबया-कलाप करते हुए Ǒदखोगे लेǑकन वाःतव मɅ तुम कहाँ हो यह तुàहȣ जानोगे अथवा कोई और ॄƺवेƣा जानɅगे। अपने ǒवषय मɅ £ान होता है और दूसरे के ǒवषय मɅ अनुमान होता है। अनुमान से भले कोई बुरा कह दे लेǑकन तुàहारे Ǒदल मɅ दुःख नहȣं होगा। तुàहɅ कोई भला कह दे लेǑकन भीतर से भला नहȣं हो तो दूसरɉ का भला कहना भी तुàहɅ तसãली नहȣं देगा। कोई तुàहɅ भला कह दे इससे इतना भला नहȣं होता ǔजतना तुàहारा मन ǔःथर होने से तुàहारा भला होता है। कोई तुàहɅ
  • 18. 17 बुरा कर दे इससे इतना बुरा नहȣं होता ǔजतना तुàहारा मन अǔःथर, ǒवकारȣ होने से तुàहारा बुरा होता है। अपनी आ×मिनƵा और अपना ःवǾप हȣ कãयाण का धाम है। देह को सजाना, उसे ठȤक रखना, देह कȧ मृ×यु से भयभीत होना, िनÛदा से भयभीत होना, ूशंसा के िलए लालाियत होना, ये सब कãयाण से वंिचत करने वाली बातɅ हɇ। इनमɅ उलझे हुए लोग परेशान रहते हɇ। ¢मा, शौच, ǔजतेǔÛियता ये सब सदगुण शील के अÛतग[त आते हɇ, दैवी संपǒƣ के अंतग[त आते हɇ। ईƳर-ूािƯ कȧ तीो इÍछा से आधी साधना हो जाती है, तमाम दोष दूर होने लगते हɇ। जगत के भोग पाने कȧ इÍछामाऽ से आधी साधना नƴ हो जाती है, अÛतःकरण मिलन होने लगता है। 'ौीयोगवािशƵ महारामायण' मɅ िलखा हैः "इस जीव कȧ इÍछा ǔजतनी-ǔजतनी बढ़ती है उतना-उतना वह छोटा हो जाता है। ǔजतनी इÍछा और तृंणाओं का ×याग करता है उतना वह महान ् हो जाता है।" संसार के सुख पाने कȧ इÍछा दोष ले आती है और आ×मसुख पाने कȧ इÍछा सदगुण ले आती है। ऐसा कोई दुगु[ण नहȣं जो संसार के भोग कȧ इÍछा से पैदा न हो। åयǒƠ बुǒƨमान हो, लेǑकन भोग कȧ इÍछा उसमɅ दुगु[ण ले आयेगी। चाहे Ǒकतना भी बुƨू हो, लेǑकन ईƳर-ूािƯ कȧ इÍछा उसमɅ सदगुण ले आएगी। बहुत भोिगयɉ के बीच साधक जाता है तो बहुतɉ के संकãप, ƳासोÍछवास साधक को नीचे ले आते हɇ। उसका पुराना अßयास Ǒफर उसे सावधान कर देता है। अतः योगाßयासी साधकɉ को चाǑहए Ǒक वे भोिगयɉ के संपक[ से अपने को बचाते रहɅ, आदर से शील का पालन करते रहɅ। शील को हȣ अपना जीवन बना लɅ। इससे साधना कȧ र¢ा होगी। .....ओर चलते-चलते कौन नहȣं िगरा ? िगरावट के , पतन के कई ूसंग जीवन मɅ आ जाते हɇ। िगरकर Ǒफर सँभल जाने वाला साधक कãयाण के माग[ पर आगे बढ़ सकता है। एक ǒवधवा थी। कामातुर होकर Ǒकसी के साथ संसार-åयवहार कर िलया। बात खुल गई तो गाँववालɉ ने उसे दुराचाǐरणी घोǒषत कर Ǒदया। गाँव के मुǔखया ने हुÈम कर Ǒदया Ǒक कल इस पाǒपनी को सजा देने के िलए गाँव के सब लोग एकǒऽत हɉगे और एक-एक प×थर उठाकर मारɅगे। सब लोग हाथ मɅ प×थर लेकर मारने के िलए तैयार हो गये तो एक कǒव ने बुलÛद आवाज मɅ गाया Ǒकः "इस अपरािधनी को अपराध कȧ सजा तो वहȣ देगा, जो ःवयं िनरपराध हो। ǔजसने अपने जीवन मɅ कभी कोई अपराध न Ǒकया हो वहȣ इसको प×थर मारेगा।" सबके हाथ से प×थर एक-एक करके नीचे िगर पड़े। अपरािधनी नारȣ ने पƱाताप के पावन झरने मɅ नहाकर अपना पाप धो िलया। 'सामने वाले åयǒƠ मɅ भी मɇ हȣ हूँ' ऐसा सोच-समझकर उसको सुधरने का मौका देना चाǑहए। ःवामी रामतीथ[ बोलते थेः "कु छ लोग अãप बुǒƨ के होते हɇ जो दूसरɉ के दोष हȣ देखते
  • 19. 18 रहते हɇ। 'फलाना आदमी ऐसा है....वैसा है....' इस दोषǺǒƴ के कȧचड़ से बाहर हȣ नहȣं िनकलते। गुणɉ को छोड़कर दोषɉ पर हȣ उनकȧ Ǻǒƴ Ǒटकती है। 'घोड़ा दूध नहȣं देती है इसिलए वह बेकार है और गाय सवारȣ के काम नहȣं आती इसिलए बेकार है। हाथी चौकȧ नहȣं करता इसिलए बेकार है और कु ƣे पर शोभायाऽा नहȣं िनकाली जाती इसिलए बेकार है....' आǑद-आǑद।" अरे भैया ! घोड़े से सवारȣ का काम ले लो और गाय से दूध पा लो। हाथी शोभायाऽा मɅ ले लो और कु ƣे से चौकȧ करवाओ। सब उपयोगी हɇ। अपनी-अपनी जगह सब बǑढ़या हɇ। Ǒकसी मɅ सौ गुण हɉ और एक अवगुण हो तो इस अवगुण के कारण उसकȧ अवहेलना करना यह तो अपने हȣ जीवन-ǒवकास कȧ अवहेलना करने के बराबर है। तुझे जो अÍछा लगे वह ले ले, बुरे के िलए वह ǔजàमेदार है। दूसरɉ कȧ बुराई का िचÛतन करने से अÛतःकरण तेरा मिलन होगा भैया ! उस अवगुण के कारण उसका अÛतःकरण तो मिलन हुआ हȣ है लेǑकन तू उसका िचÛतन करके अपना Ǒदल Èयɉ खराब करता है ? भगवान बुƨ के पास दो िमऽ आये और बोलेः "भगवान ! यह मेरा साथी कु ƣे को सदा साथ रखता है। सदा 'टȣपू-टȣपू' Ǒकया करता है। सोता है तो भी साथ मɅ सुलाता है। ...तो बताइये, मरते समय तक टȣपू का हȣ िचÛतन करेगा तो कु ƣा बनेगा Ǒक नहȣं ?" दूसरे िमऽ ने कहाः "भÛते ! मेरȣ बात भी सुिनये। मेरा यह िमऽ ǒबãली को सदा साथ मɅ रखता है, ǔखलाता-ǒपलाता है, घुमाता है, अपने साथ सुलाता है और सदा 'मीनी-मीनी' Ǒकया करता है। ....तो बताइये, वह ǒबãली बनेगा Ǒक नहȣं ?" बुƨ मुःकु राकर बोलेः 'नहȣं, वह ǒबãली नहȣं बनेगा। ǒबãली तू बनेगा ÈयɉǑक उसकȧ ǒबãली का िचÛतन तू Ïयादा करता है। वह तेरे कु ƣे का िचÛतन करता है इसिलए वह कु ƣा बनेगा।" Ǒकसी के दोष देखकर हम उसके दोषɉ का िचÛतन करते हɇ। हो सकता है, वह इतना उन दोषɉ का अपराधी न हो ǔजतना हमारा अÛतःकरण हो जायेगा। इसिलए अपने अÛतःकरण कȧ सुर¢ा करनी चाǑहए, उसके शुƨȣकरण मɅ लगे रहना चाǑहए। शील और सÛतोषǾपी भूषण से उसे सजाना चाǑहए। शील हȣ बǑढ़या-से-बǑढ़या आभूषण है। बाहर के आभूषण खतरा पैदा करते हɇ, बाहर के आभूषण ईंया[ पैदा करते हɇ। बुƨ एक ǒवशाल मठ मɅ पाँच मास तक ठहरे हुए थे। गाँव के लोग शाम के समय उनकȧ वाणी सुनने आ जाते। स×संग पूरा होता तो लोग बुƨ के समीप आ जाते। उनके सम¢ अपनी समःयाएँ रख देते। Ǒकसीको बेटा चाǑहए तो Ǒकसीको धÛधा चाǑहए, Ǒकसीको रोग का इलाज चाǑहए तो Ǒकसीको शऽु का उपाय चाǑहए। Ǒकसी को कु छ परेशानी, Ǒकसी को कु छ और। िभ¢ुक आनÛद ने पूछाः "भगवन ् ! यहाँ ौीमान लोग भी आते हɇ, मÚयम वग[ के लोग भी आते हɇ और छोटे-छोटे लोग भी आते हɇ। सब दुःखी-हȣ-दुःखी। इनमɅ कोई सुखी होगा ?"
  • 20. 19 "हाँ, एक आदमी सुखी है।" "बताइये, कौन है वह ?" "जो आकर पीछे चुपचाप बैठ जाता है और शांित से सुनकर चला जाता है। कल भी आएगा। उसकȧ ओर संके त करके बता दूँगा।" दूसरे Ǒदन बुƨ ने इशारे से बताया। आनÛद ǒवǔःमत होकर बोलाः "भÛते ! वह तो मजदूर है। कपड़ɉ का Ǒठकाना नहȣं और झɉपड़ȣ मɅ रहता है। वह सुखी कै से ?" "आनÛद ! अब तू हȣ देख लेना।" बुƨ ने सब लोगɉ से पूछाः "आपको Èया चाǑहए ?" सबने अपनी-अपनी चाह बतायी। Ǒकसी को धन चाǑहए, Ǒकसी को सƣा चाǑहए, Ǒकसी को यश चाǑहए, Ǒकसी को ǒवƮता चाǑहए। ǔजसके पास धन था, सƣा थी उसको शांित चाǑहए। सब लोग Ǒकसी-न-Ǒकसी परेशानी से मःत थे। उनके अÛतःकरण खदबदाते थे। आǔखर मɅ उस मजदूर को बुलाकर पूछा गयाः "तुझे Èया चाǑहए ? Èया होना है तुझे ?" मजदूर ूणाम करते हुए बोलाः "ूभो ! मुझे कु छ चाǑहए भी नहȣं और कु छ होना भी नहȣं। जो है, जैसा है, ूारÞध बीत रहा है। धन मɅ या धन के ×याग मɅ, वƸ और आभूषणɉ मɅ सुख नहȣं है। सुख तो है समता के िसंहासन पर और हे भÛते ! वह आपकȧ कृ पा से मुझे ूाƯ हो रहा है।" मुझे यह पाना है..... यह करना है..... यह बनना है.... ऐसी खट-खट ǔजसकȧ दूर हो गई हो, वह अपने राम मɅ आराम पा लेता है। चौथी बातः "हमेशा सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन। सागर ǒवशाल जलरािश से भरा है लेǑकन हम उस जल से न चाय बना सकते हɇ, न ǔखचड़ȣ पका सकते हɇ। वहȣ सागर का पानी सूय[-ूकाश से ऊपर उठकर बादल बन जाता है। ःवाित न¢ऽ कȧ बूँद बनकर बरसता है तो सीप मɅ मोती बन जाता है। ऐसे हȣ वेद के वचनɉ कȧ अपे¢ा ॄƺ£ानी सदगुǾओं के वचन Ïयादा मूãयवान होते हɇ। वेद सागर है तो ॄƺ£ानी गुǾ का वचन बादल है। सदगुǾ वेदɉ मɅ से, शाƸɅ मɅ से वाÈय लेकर अपने अनुभव कȧ िमठास िमलाकर साधक के ǿदय को परमा×म रस से पǐरतृƯ करते हɇ। वे हȣ वचन साधक ǿदय मɅ पचकर मोती बन जाते हɇ। ईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣंईशकृ पा ǒबन गुǾ नहȣं,,,, गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान।गुǾ ǒबना नहȣं £ान। £ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं£ान ǒबना आ×मा नहȣं,,,, गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।।गावǑहं वेदपुरान।। ॄƺ मन एव इǔÛियɉ से परे है। ॄƺ£ानी सदगुǾ जब Ôमɇ उपदेश दे रहा हूँ..Õ इस भाव से भी परे होते हɇ तब उनका £ान साधक के ǿदय मɅ अपरो¢ होता है। वेद कȧ ऋचाएँ पǒवऽ हɇ,
  • 21. 20 वेद का £ान पǒवऽ है, लेǑकन ॄƺवेƣा आ×म£ानी महापुǾष के वचन तो परम पǒवऽ हɇ। वे साधक को आ×मानुभूित मɅ पहुँचा देते हɇ। वेद पढ़ने से Ǒकसी को आ×म-सा¢ा×कार हो जाय यह गारंटȣ नहȣं लेǑकन सदगुǾ के वचनɉ से आ×म-सा¢ा×कार हो जाय यह कइयɉ के जीवन मɅ घǑटत हुआ है। इसीिलए नानकजी ने कहा है Ǒकः गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर।गुǾ कȧ बानी बानी गुर। बानी बीचबानी बीचबानी बीचबानी बीच अमृत सारा।।अमृत सारा।।अमृत सारा।।अमृत सारा।। गुǽओं कȧ वाणी हȣ गुǾ है। उनकȧ वाणी मɅ हȣ सारा अमृत भरा रहता है। ....हमेशा सुनने योÊय Èया है ? सदगुǾ और वेद के वचन। ये वचन अगर जीवन मɅ आ जायɅ तो जीवन बड़ा िनभȸक, िनƮ[ÛƮ और िनǔƱंत बन जाता है। ƮÛƮɉ के बीच, भयɉ के बीच, िचÛताओं के बीच जीते हुए भी जीवन िनǔƱंत होता है। मनुंय अपनी आगामी ǔःथित का आप िनमा[ता है, अपने भाÊय का आप ǒवधाता है। वह जो कु छ सोचता है, बोलता है, सुनता है, देखता है उसका ूभाव उसके जीवन मɅ ूितǒबǔàबत होता है। Úविन के ूभाव का िनरȣ¢ण करने के िलए कु छ ूयोग Ǒकये गये। एक कागज पर बारȣक रेती के कण ǒबछा Ǒदये गये। कागज के नीचे ǒविभÛन ूकार के शÞद और Úविन Ǒकये गये। हरेक शÞद व Úविन के ूभाव से कागज पर ǒबछे हुए बारȣक कणɉ मɅ अलग-अलग आकृ ितयाँ बनती देखी गɃ। जैसे ॐ.......का उÍचारण, राम कȧ धुन, अãला हो अकबर... कȧ बाँग, कोई संगीत कȧ तज[, गÛदȣ गाली इ×याǑद। सूआम यंऽɉ से यह िनरȣ¢ण Ǒकया गया। रेत के कण पर Úविन का ूभाव पड़ता है तो हमारे रƠकणɉ पर, Ƴेतकणɉ पर, मन पर, बुǒƨ पर, Úविन के ूभाव पड़े इसमɅ Èया सÛदेह है ? ǒविभÛन Úविनयɉ के ूभाव से हमारȣ जीवन-शǒƠ का ǒवकास या ǒवनाश अवँय होता है। यह वै£ािनक स×य है। भारत के ूिसƨ संगीत कार ओमकारनाथ ठाकु र देश के ूितिनिध के Ǿप मɅ इटली गये हुए थे। भोजन समारंभ के समय वहाँ के शासक मुसोिलनी ने उनसे पूछाः "मɇने सुना है Ǒक भारत मɅ ौीकृ ंण नामक गायɅ चरानेवाला चरवाहा बंसी मɅ फूँ क मारता और अंगुिलयाँ घुमाता तो गायɅ एकतान खड़ȣ रह जातीं, बछड़े िथरकने लगते, मोर पंख फै लाकर नाचने लगते, अनपढ़ Êवालबाल और गोǒपयाँ आनÛद से झूमने लगतीं। मेरȣ समझ मɅ नहȣं आता। Èया यह सच है ? मुझे इन बातɉ मɅ ǒवƳास नहȣं होता। इसके ǔखलाफ मɇने कई वƠåय Ǒदये हɇ। आप भारत से आये हɅ। इस ǒवषय मɅ आपका Èया कहना है ?" Ǒकसी कȧ समझ मɅ आ जाये वहȣ स×य होता है Èया ? स×य असीम है और समझने वाली बुǒƨ सीिमत है। Ǒफर, बुǒƨ भी सǂवूधान, रजोूधान, तमोूधान हुआ करती है। तमोूधान