1. श्रीराम
जब भगवान श्रीकृ ष्ण कौरवों के पास गए तो उन्होंने कहा अगर आप आधा राज्य नही दे सकते तो के वल 5 गाांव दे दीजजए और इतना बडा
हजततनापुर का साम्राज्य है 5 ग्राम देना कोई बडी बात नहीं है । मैं 5 गाांवों पर पाांडवो को मना लांगा और इस भीषण जवध्वांसक युद्ध को
दुयोधन टाला जा सकता है पर दुयोधन ने भगवान श्री कृ ष्ण को अपमाजनत कर के भगा जदया और बोल जदया की ग्वाले यहाां से भाग जा और
उन पाांचों पाांडवों को बता देना जक जबना युद्ध के मैं सुई की नोक के बराबर भी जमीन नही दांगा ।
भगवान ने युजधजिर से आकर के कहा जक अब तुम्हारे सामने युद्ध ही शेष है वनाा तुम्हारे पास कु छ नही बचता ।
और यहाां से पांजियाां जन्म लेती है। कु रु क्षेत्र का मैदान है। एक तरफ कौरवों की सेना है और एक तरफ पाांडवो की सेना है। यहाां से कजवता
जन्म लेती है जक -
तलवार,धनुष और पैदल सैजनक कु रुक्षेत्र मे खडे हुये,
एक जबम्ब बनाता हां एक जचत्र बनाता हां जक -
तलवार,धनुष और पैदल सैजनक कु रुक्षेत्र मे खडे हुये,
रि जपपास महारथी इक दजे सम्मुख अडे हुये |
कई लाख सेना के सम्मुख पाांडव पााँच जबचारे थे,
एक तरफ थे योद्धा सब,एक तरफ समय के मारे थे |
महा समर की प्रजतक्षा में...
महा समर की प्रजतक्षा में सारे ता...क रहे थे जी,
और पाथा के रथ को तवयां के शव हााँक रहे थे जी ।
और पाथा के रथ को तवयां के शव हााँक रहे थे जी ||
रणभुजम के सभी नजारे देखन मे कु छ खास लगे,
माधव ने अजुान को देखा,अजुान उन्हे उदास लगे |
कु रुक्षेत्र का महा समर एक पल मे तभी सजा डाला,
पाचजन्य उठा कृ ष्ण ने मुख से लगा बजा डाला |
हुआ शांखनाद जैसे ही सबका गजान शुरु हुआ,
रि जबखरना हुआ शुरु और सबका मदान शुरु हुआ |
कहा कृ ष्ण ने उठ पाथा
कहा कृ ष्ण ने उठ पाथा और एक आाँख को मीच जरा,
गाजडडव पर रख बाणो को.... प्रत्यांचा को खींच जरा |
और आज जदखा दे रणभुजम मे
आज जदखा दे रणभुजम मे योद्धा की तासीर यहााँ,
इस धरती पर कोई नही, अजुान के जैसा वीर यहााँ ।
2. इस धरती पर कोई नही, अजुान के जैसा वीर यहााँ ||
सुनी बात माधव की तो अजुान का चेहरा उतर गया,
सुनी बात माधव की तो अजुान का चेहरा उतर गया,
एक धनुधाारी की जवद्या मानो चुहा कु तर गया |
बोले पाथा सुनो कान्हा -
बोले पाथा सुनो कान्हा - जजतने ये सम्मुख खडे हुये है,
हम तो इन से सीख-सीख कर सारे भाई बडे हुये है |
इधर खडे बाबा भीष्म ने मुझको गोद जखलाया है,
गुरु द्रोण ने धनुष बाण का सारा ग्यान जसखाया है |
सभी भाई पर प्यार लुटाया कुां ती मात हमारी ने,
कमी कोई नही छोडी थी, प्रभ ! माता गाांधारी ने |
ये जजतने गुरुजन खडे हुये है सभी पजने लायक है,
माना दुयोधन दुसासन थोडे से नालायक है |
मैं अपराध क्षमा करता हाँ
अरे मैं अपराध क्षमा करता हाँ, बेशक हम ही छोटे है,
ये जैसे भी है... आजखर माधव, सब ताऊ के बेटे है ।
जक जैसे भी है आजखर माधव, सब ताऊ के बेटे है ||
और छोटे से भ भाग की खाजतर जहांसक नही बनुांगा मैं,
इांद्रप्रतथ के इतने बडे राज्य को एक धमा से भटका हुआ योद्धा अजुान एक जमीन का टुकडा बताता है और भगवान से कहता है जक -
छोटे से भ भाग की खाजतर जहांसक नही बनुांगा मैं,
छोटे से भ भाग की खाजतर जहांसक नही बनुांगा मैं,
तवणा ताककर अपने कु ल का जवध्वांसक नही बनुांगा मैं ।
अरे खन सने हाथो को होता, राज भोग अजधकार नही,
पररवार मार कर गद्दी जमले तो जसांहासन तवीकार नही ।
पररवार मार कर गद्दी जमले तो जसांहासन तवीकार नही ।
और रथ पर बैठ गया अजुान
रथ पर बैठ गया अजुान, मुाँह माधव से मोड जदया,
आाँखो मे आाँस भरकर गाजडडव हाथ से छोड जदया ।
3. आाँखो मे आाँस भरकर गाजडडव हाथ से छोड जदया ||
गाजडडव हाथ से जब छु टा माधव भी कु छ अकु लाए थे,
भगवान ने सोचा जक इसने तो बेज्जती करा दी इससे अच्छा तो मैं शांखनाद नही करता पर भगवान अपनी बेइज्जती कभी तवीकार नहीं
करते -
जक गाजडडव हाथ से जब छु टा माधव भी कु छ अकु लाए थे,
जशष्य पाथा पर गवा हुआ मन ही मन हषााए थे |
भगवान ने सोचा इसका सब कु छ जा रहा है लेजकन ये अभी भी पररवार की बात कर रहा है सांतकार की बात कर रहा तो कही न कही मेरे जदए
हुए सांतकार हैं।
की गाजडडव हाथ से जब छु टा माधव भी कु छ अकु लाए थे,
जशष्य पाथा पर गवा हुआ मन ही मन हषााए थे |
मन मे सोच जलया अजुान की बुजद्ध ना सटने दांगा,
समर भुजम मे पाथा को कमजोर नही पडने दांगा |
धमा बचाने की खाजतर इक नव अजभयान शुरु हुआ,
उसके बाद जगत गुरु (मेरे जगदीश) का गीता ग्यान शुरु हुआ ।
उसके बाद जगत गुरु का गीता ग्यान शुरु हुआ ||
एक नजर में ! एक नजर में ! एक नजर में !
एक नजर में, रणभजम के कण-कण डोल गये माधव,
टक-टकी बाांधकर देखा अजुान एकदम बोल गये माधव -
पाथा मुझे पहले बतलाते
हे! पाथा मुझे पहले बतलाते मै सांवाद नही करता,
पाथा मुझे पहले बतलाते मै सांवाद नही करता ,
तुम सारे भाईयो की खाजतर कोई जववाद नही करता ।
पाांचाली के तन पर जलपटी साडी खींच रहे थे वो,
दोषी वो भी उतने ही है जबडा भींच रहे थे जो |
घर की इज्जत तडप रही कोई दो टक नही बोले,
पौत्र बह को नग्न देखकर गांगा पुत्र नही खौले |
तुम कायर बन कर बैठे हो ये पाथा बडी बेशमी है,
सांबांध उन्ही से जनभा रहे जो लोग यहााँ अधमी है |
4. धमा के ऊपर यहााँ आज भारी सांकट है खडा हुआ,
और तेरा गाांडीव पाथा, रथ के कोने में पडा हुआ |
धमा पे सांकट के बादल तुम छाये कै से देते हो,
कायरता के भाव को मन में आने कै से देते हो |
हे पाांड के पुत्र ! अरे हे पाांड के पुत्र !
धरम का कै सा कजा उतारा है,
अरे शोले होने थे आांखो में पर बहती जल धारा है !
शोले होने थे आांखो में
शोले थे होने आांखो में
शोले होने थे आांखो में ! शोले थे होने आांखो में !
शोले होने थे आाँखो में पर बहती जल धारा है ||
और गाजडडव उठाने मे पाथा
गाजडडव उठाने मे पाथा जजतनी भी देर यहााँ होगी,
गाजडडव उठाने मे पाथा जजतनी भी देर यहााँ होगी,
इांद्रप्रतथ के राज भवन मे उतनी अांधेर वहााँ होगी |
गाजडडव उठाने मे पाथा जजतनी भी देर यहााँ होगी,
इांद्रप्रतथ के राज भवन मे उतनी अांधेर वहााँ होगी ।
धमा-अधमा की गहराई मे खुद को नाप रहा अजुान,
धमा-अधमा की गहराई मे खुद को नाप रहा अजुान,
अश्रधार जफर तेज हुई और थर-थर कााँप रहा अजुान |
इसके बाद अजुान श्रीकृ ष्ण से कहता ही जक -
हे के शव ! ये रि तवयां का पीना नहीं सरल होगा,
और जवजय यजद हुए हम जीना सरल नहीं होगा |
हे माधव ! मुझे बतलाओ कु ल नाशक कै से बन जााँऊ ?
रख जसांहासन लाशो पर मै, शासक कै से बन जााँऊ ,
कै से उठेंगे कर उन पर ? जो कर पर अधर लगाते है ।
5. कर का मतलब होता है हाथ।
अधर का मतलब होता है होठ जो मेरे हाथों को चमते थे उन पर हाथ कै से उठाऊ ?
जक कै से उठेंगे कर उन पर
कै से उठेंगे कर उन पर जो कर पर अधर लगाते है ?
करने को जजनका तवागत, ये कर भी तवयां जुड जाते है |
इन्ही करो ने बाल्य काल मे सबके पैर दबाये है,
इन्ही करो को पकड करो मे, जपतामाह मुतकाये है |
अपनी बाणो की नोंक जो इनकी ओर करुां गा मै.... ,
के शव मुझको म्रत्यु दे दो उससे पवा मरुां गा मै |
के शव मुझको म्रत्यु दे दो उससे पवा मरुां गा मै ||
बाद युद्ध के मुझे ना कु छ भी पास जदखाई देता है,
माधव ! इस रणभजम मे,बस नाश जदखाई देता है ।
माधव ! इस रणभजम मे,बस नाश जदखाई देता है |
बात बहुत भावुक थी जकां तु जगत गुरु मुतकाते थे,
और ग्यान की गांगा जनरांतर चक्रधारी बरसाते थे |
इसके बाद कृ ष्ण बोलते हैं -
जन्म-मरण की यहााँ योद्धा जबल्कु ल चाह नही करते,
क्या होगा अांजाम युद्ध का ये परवाह नही करते ।
पाथा ! यहााँ कु छ मत सोचो बस कमा मे ध्यान लगाओ तुम,
बाद युद्ध के क्या होगा ये मत अनुमान लगाओ तुम ।
इस दुजनया के रिपात मे कोई तो अहसास नही,
जनज जीवन का करे फ
ै सला नर के बस की बात नही ।
तुम ना जीवन देने वाले नही मारने वाले हो ,
ना जीत तुम्हारे हाथो मे, तुम नही हारने वाले हो।
ये जीवन दीपक की भाांजत, युां ही चलता रहता है ,
पवन वेग से बुझ जाता है, वरना जलता रहता है ।
मानव वश मे शेष नही कु छ, जफर भी मानव डरता है,
मानव वश मे शेष नही कु छ, जफर भी मानव डरता है,
6. वह मर कर भी अमर हुआ, जो धरम की खाजतर मरता है ।
वह मर कर भी अमर हुआ, जो धरम की खाजतर मरता है ||
ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानो से होता है,
अभी यहाां पर शहीदों की बात की। दुजनयाां का सबसे बडा सम्मान क्या होता है? पाथा ने गीता में अजुान को बताया
जक -
ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानो से होता है,
जीवन का सार सफल के वल, बस बजलदानो से होता है ।
जीवन का सार सफल के वल, बस बजलदानो से होता है |
देहदान योद्धा ही करते है,
जब हमारे सेना के जवान, पुजलस के जवान अपनी शहादत देते हैं तो उनको झांडे में लपेटकर लाया जाता है। ये सबसे बडा सम्मान है वही
पांजियाां माधव ने कहा -
ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानो से होता है
जीवन का सार सफल के वल, बस बजलदानो से होता है
और देहदान
देहदान योद्धा ही करते है
देहदान योद्धा ही करते है
ना कोई दजा जाता है,
देहदान योद्धा ही करते है
ना कोई दजा जाता है,
रणभजम मे वीर मरे तो शव भी पजा जाता है ।
देहदान योद्धा ही करते है
ना कोई दजा जाता है,
रणभजम मे वीर मरे तो शव भी पजा जाता है ||
और योद्धा की प्रव्रजत्त जैसे खोटे शस्त्र बदलती है,
गीता में भगवान कृ ष्ण बताना क्या चाहते हैं जक -
योद्धा की प्रव्रजत्त जैसे खोटे शस्त्र बदलती है,
वैसे मानव की जदव्य आत्मा दैजहक वस्त्र बदलती है
7. वैसे मानव की जदव्य आत्मा दैजहक वस्त्र बदलती है |
इसके बाद अजुान बोलते हैं -
ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ,
जीवन म्रत्यु क्या है माधव ? रण मे जीवन दान बताओ ।
काम , क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ,
अरे ! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ |
खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ |
इतना सुनते ही माधव का धीरज परा डोल गया,
तीन लोक का तवामी जफर बेहद गुतसे मे बोल गया ।
सारे सृजि को भगवन बेहद गुतसे में लाल जदखे,
देवलोक के देव डरे सबको माधव में काल जदखे |
इसके बाद श्रीकृ ष्ण बोलते हैं -
अरे ! कान खोल कर सुनो पाथा मै ही त्रेता का राम हाँ ,
कान खोल कर सुनो पाथा मै ही त्रेता का राम हाँ ,
कृ ष्ण मुझे सब कहता है, मै द्वापर का घनशयाम हाँ ||
रुप कभी नारी का धरकर मै ही के श बदलता हाँ ,
धमा बचाने की खाजतर, मै अनजगन वेष बदलता हाँ |
जवष्ण जी का दशम रुप मै परशुराम मतवाला हाँ ,
नाग काजलया के फन पे मै मदान करने वाला हाँ |
बााँकासुर और मजहसासुर को मैने जजांदा गाड जदया,
बााँकासुर और मजहसासुर को मैने जजांदा गाड जदया,
नरजसांह बन कर धमा की खाजतर जहरडयकश्यप को फाड जदया |
नरजसांह बन कर धमा की खाजतर जहरडयकश्यप को फाड जदया |
और रथ नही तजनक भी चलता है
रथ नही तजनक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढता हाँ ,
गाजडडव हाथ मे तेरे है, पर रणभुजम मे मैं लडता हाँ ||
जक रथ नही तजनक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढता हाँ ,
गाजडडव हाथ मे तेरे है, पर रणभुजम मे मैं लडता हाँ ||
8. इतना कहकर मौन हुए, खुद ही खुद सकु चाये के शव,
पलक झपकते ही अपने जदव्य रूप में आये के शव |
जदव्य रूप मेरे के शव का सबसे अलग दमकता था,
कई लाख सरज जजतना चेहरे पर तेज़ चमकता था |
इतने ऊ
ाँ चे थे भगवन सर में अम्बर लगता था,
और हज़ारों भुजा देख अजुान को डर लगता था ||
मााँ गांगा का पावन जल उनके कदमों को चम रहा था,
और तजानी ऊ
ाँ गली में भी चक्र सुदशान घम रहा था |
नजदयों की कल कल सागर का शोर सुनाई देता था,
के शव के अांदर परा ब्रम्हाांड जदखाई देता था ||
जैसे ही मेरे माधव का कद थोडा-सा बडा हुआ,
सहमा-सहमासा था अजुान एक-दम रथ से खडा हुआ |
मााँ गीता के ग्यान से सीधे ह्रदय पर प्रहार हुआ,
म्रत्यु के आजलांगन हेतु जफर अजुान तैयार हुआ ||
म्रत्यु के आजलांगन हेतु जफर अजुान तैयार हुआ ||
जक जजतने यहााँ अधमी है चुन-चुनकर उन्हे सजा दुांगा,
इतना रि बहाऊ
ां गा धरती की प्यास बुझा दुांगा ||
अजुान की आखों में धरम का राज जदखाई देता था,
पाथा में के शव को बस यमराज जदखाई देता था |
रण में जाने से पहले उसने एक काम जकया,
चरणों में रखा शीश अजुान ने, के शव को प्रणाम जकया |
जजधर चले बाण पाथा के सब पीछे हट जाते थे,
रडभुजम के कोने कोने लाशो से पट जाते थे |
9. करुक्षेत्र की भजम पे नाच नचाया अजुान ने,
साडी धरती लाल हुई कोहराम मचाया अजुान ने |
बडे बडे महारजथयों को भी नानी याद जदलाई थी,
मृत्यु का वो ताांडव था जो मृत्यु भी घबराई थी ||
ऐसा लगता था सबको मृत्यु से प्यार हुआ है जी !
ऐसा धमायुद्ध दुजनया में पहली बार हुआ है जी !!
अधमा समचा नि जकया पाथा ने कसम जनभाई थी,
इन्द्रप्रथ के राजभवन पर धमा भुजा लहराई थी |
धमाराज के शीश के ऊपर राज मुकु ट की छाया थी,
भगवान ने युद्ध जजतवा जदया । युजधजिर का राज्याजभषेक हुआ कजवता की अांजतम पांजियाां -
जक धमाराज के शीश के ऊपर राज मुकु ट की छाया थी,
पर सारी दुजनया जानती थी ये बस के शव की माया थी ||
जक धमाराज के शीश के ऊपर राज मुकु ट की छाया थी,
पर सारी दुजनया जानती थी ये बस के शव की माया थी ||
और धरम जकया तथाजपत जजसने
धरम जकया तथाजपत जजसने दाता दया जनधान की जय !
हाथ उठा कर सारे बोलो चक्रधारी जवष्णु भगवान की जय !!
वाचन की अशुद्धियों क
े द्धिए क्षमा चाहता हूँ अगर कोई अशुद्धि प्रवाह मे द्धनकि गई हो तो हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ।
धन्यवाद!!