2. क्रिर्ात्मक अनुसन्धान
शिऺा भें क्रिमात्भक अनुसन्धान का उऩमोग १९२६ से हो यहा हैं| फक्रकॊ घभ ने अऩने ऩुस्तक रयसर्च
पॉय टीर्सी भें इसका उल्रेख सर्चप्रधान क्रकमा| क्रिमात्भक अनुसन्धान , जेसा क्रक इसके नाभ से
स्ष्ट हैं, ऐसा अनुसन्धान जो सैधाॊततक ऩऺ से सॊफॊधधत हो| क्रिमात्भक अनुसन्धान के भाध्मभ
से शिऺा की ऐसी दैतनक सभस्माओॊ का अध्माऩक स्र्मॊ ही अऩने सहमोधगमों की सहामता से
ऐसा प्रबार्सारी एर्ॊ उद्देश्मऩूर्च हर तनकरता है जो शिऺा को छात्रों के शरए अधधक हहतकय र्
उऩमोगी फनता है एर्ॊ िैक्षऺक सभस्माओॊ का र्ैऻातनक, र्स्तुतन्ठ एर्ॊ प्राभाणर्क हर प्रस्तुत
कयता है|
स्टीपन एभ कोये => जफ कबी कोई कामचकताच अऩने तनर्चमों एर्ॊ क्रिमाओॊ को तनदेशित कयने ,
ऩरय्कृ त कयने एर्ॊ भूल्माॉकन कयने के शरए अऩनी सभस्माओॊ का र्ैऻातनक वर्धध से स्र्मॊ हर
खोजते हैं तो उसे क्रिमात्भक अनुसन्धान कहा जाता है|
उद्देश्र्
1) वर्द्मारम की कामचस्स्ितत भें सुधाय कयना |
2) अध्माऩकों एर्ॊ प्रिासकों भें वर्द्मारमी कामों भें उत्कृ ्टता राने हेतु आर्श्मक मोग्मता
एर्ॊ सभझ वर्कशसत कयना |
3) अध्माऩकों एर्ॊ प्रिासकों भें र्ैऻातनक अशबर्ृतत का वर्कास कय छात्रों भें र्ैऻातनक
दृस््टकोर् वर्कशसत कयना |
4) वर्द्माधिचमों की उऩशरब्ध एर्ॊ आकाॊऺा स्तय भें र्ृद्धध कयना |
5) वर्द्मारम के उन्नभन हेतु प्रबार्ी एर्ॊ स्र्स्ि ऩमाचर्यर् का तनभाचर् कयना |
6) वर्द्मारम के ऩायॊऩरयक र् माॊत्रत्रक को दूय कयना |
7) वर्द्मारम भें अधधगभ र्ातार्यर् का तनभाचर् कयना |
8) वर्द्मारम भें जनतास्न्त्रक भूल्मों को फर देता|
9) वर्द्मारम से सॊफॊधधत व्मस्ततमों की वर्शबन्न दैतनक सभस्माओॊ का व्मर्हारयक एर्ॊ
तथ्मऩूर्च सभाधान कयना |
10)ऩाठ्मिभ को सभाज की भान्मताओॊ भाॊगों एर्ॊ भूल्मों के अनुकू र फनाकय वर्द्मारम को
सभाज के प्रततत्रफॊफ के रूऩ भें प्रततेस््टत कयना |
3. 11)वर्द्मारम भें उऩस्स्ित सभस्मार्ों को हर कयने के शरए र्ैऻातनक र् र्स्तुतन्ट वर्धध को
अऩनाने के शरए प्रोत्साहहत कयना |
क्रिर्ात्मक अनुसंधान की प्रक्रिर्ा र्ा सोऩान
क्रिमात्भक अनुसॊधान की विधी व्नन्जातनक होती है| इसके भूल्म सोऩान तनम्भशरणखत हैं |
1) सभस्मा की ऩहर्ान
इसके अॊतगचत सभस्मा ऺेत्र को ऩहर्ानने का प्रमास क्रकमा जाता है| जो अध्माऩक
सॊर्ेदनिीर होते हैं तिा कामच को उत्कृ ्ट तयह से कयना र्ाहते हैं ,उनके शरए सभस्मा
ऺेत्र को ऩहर्ानना आसन है | अतः सभस्मा का र्मन व्मस्ततगत सॊर्ेदनिीरता ऩय
तनबचय कयता हैं| सभस्मा का र्ुनार् कयते र्तत स्भयर् यहे क्रक –
i) सभस्मा वर्द्मारम से सॊफॊधधत हो |
ii) सभस्मा का ऺेत्र न अधधक व्माऩक हो औय न अधधक सॊकु धर्त |
iii) सभस्मा अनुसॊधान कताच को दामये भें हो |
iv) उसके सभाधान की आर्श्मकता भहसूस हो |
2) सभस्मा का ऩरयबािीकयर् एर्ॊ सीभाॊकन
सभस्मा को ऩहर्ानने के फाद उसका कें द्र त्रफॊदु तनस्श्र्त क्रकमा जाना आर्श्मक होता हैं |
ऩरयबािीकयर् से तात्ऩमच है सभस्मा भें प्रस्तुत िब्दों तिा अिों को वर्शि्ट कयना,स्जससे
उनके अनेक अिच न तनकरे |
3) सॊबावर्त कायर् एर्ॊ कायर्ों का वर्श्रेिर्
सभस्मा का वर्शि्ट रूऩ तनस्श्र्त हो जाने ऩय अनुसॊधानकताच सभस्मा से सॊफॊधधत कायर्ों
ऩय वर्र्ाय कयता है| एर्ॊ कायर्ों का ऩता रगाने के शरए र्ह अनेक प्रकाय के साक्ष्मों को
एकत्रत्रत कयता हैं |
4) क्रिमात्भक उऩकल्ऩना का तनभाचर्
सभस्मा के कायर्ों का ऩता रगाने के फाद सभस्मा के सभाधान हेतु क्रिमात्भक
उऩकल्ऩनाएॊ का तनभाचर् क्रकमा जाता है | उऩकल्ऩनाएॊ क्रकसी सभस्मा का सफसे सॊबावर्त
सभाधान होती है | क्रिमात्भक अनुसॊधान की सपरता का आधाय क्रिमात्भक उऩकल्ऩना
ही होती है| क्रिमात्भक उऩकल्ऩना स्जतनी स्ऩ्ट एर्ॊ तथ्मों ऩय आधारयत होगी ,
अनुसॊधान भें उतनी ही सपरता की आिा की जा सकती है |
5) क्रिमात्भक आकल्ऩ तनभाचर्
ऩरयकल्ऩना तनभाचर् के ऩश्र्ात ् एक क्रिमात्भक आकल्ऩ का तनभाचर् कयना र्ाहहए जो
अनुसॊधान के त्रफन्दुओॊ जैसे प्रस्तावर्त गततवर्धधमों का उल्रेख उन गततवर्धधमों को
4. सॊऩन्न कयने की प्रमुक्र्त उऩकयर् वर्धध र् उसभें रगाने र्ारा सभम आहद को स्ऩ्ट कयें
|
6) भूल्माॊकन
अशबकल्ऩ के अनुसाय अनुसॊधान को क्रिमास्न्र्त क्रकमा जाता है एर्ॊ ऩूर्च क्रक स्स्तधि र्
फाद क्रक स्स्तधि भें तुरना कयके क्रिमात्भक उऩकल्ऩना के सॊफॊध भें अॊततभ तनर्चम शरमा
जाता है| महद क्रिमात्भक उऩकल्ऩना सत्म शसद्ध होती हैं तो मह तन्किच तनकरता हैं क्रक
सभस्मा के सभाधान का मही सभुधर्त तायीका हैं अन्मिा अनुसॊधानकताच को नमी
उऩकल्ऩना का तनभाचर् कयना ऩड़ता है| इसके शरए – अर्रोकन साऺात्काय ,प्रश्नार्री ,
जाॊर् सूर्ी ,येहटॊग स्के र ,ऩयीऺर् र् साॊस्यमकीम वर्धधमों का प्रमोग कयते है |
क्रिर्ात्मक अनुसंधान के गुण
1) क्रिमात्भक अनुसॊधान सैद्धाॊततक अनुसॊधान के रूऩ भें रक्षऺत होता है |
2) क्रिमात्भक अनुसॊधान वर्द्मारम की र्ास्तवर्क सभस्मा हर कयने का एक प्रमास है |
3) क्रिमात्भक अनुसॊधान सॊफॊधधत व्मस्तत को स्र्मॊ सभस्मा का हर कयने के शरए प्रेरयत
कयता है |
4) क्रिमात्भक अनुसॊधान शिऺक को दैतनक जीर्न की सभस्माओॊ के ऐसे साभान्म एर्ॊ सयर
सभाधानों से अर्गत कयता है स्जसे र्ह स्र्मॊ छात्राओॊ के शरए प्रमोग कय सकता है |
5) क्रिमात्भक अनुसॊधान शिऺक के व्मर्हाय औय शिऺर् प्रक्रिमा भें ऩरयर्तचन कयने से ऩूर्च
उसके वर्र्ाय औय दृस््टकोर् ऩरयर्तचन कयता हैं |
क्रिर्ात्मक अनुसंधान के दोष
1) क्रिमात्भक अनुसॊधान कयनेर्ारे व्मस्तत अनुसॊधान की र्ास्तवर्कता से ऩरयधर्त न होने के
कायर् सभस्मा औय उसके आधारयत कायर्ों को ऩूर्च रूऩ से नहीॊ सभझ ऩाता है | अतः
र्ह सभस्मा का र्ास्तवर्क हर नहीॊ खोज ऩाता |
2) क्रिमात्भक अनुसॊधान शिऺकों को अततरयतत बाय रगाता हैं , अतः र्े इसके प्रतत इतने
वर्श्र्सनीम नहीॊ यह ऩाते हैं |
3) क्रिमात्भक अनुसॊधान कयनेर्ारा व्मस्तत वर्द्मारम की सभस्माओॊ से इतना व्मस्ततगत
रूऩ से सॊफॊधधत यहता है क्रक सभाधान कयते सभम र्ह अऩने प्रमोग भें र्स्तुतन्टता नहीॊ
रा ऩाता |