3. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 1
शोध, समी ा तथा आलोचना क अंतरा ीय पि का
वष : 8, अंक : 30, ैमािसक : जुलाई-िसत बर 2023
िव िव ालय अनुदान आयोग ारा अनुमोिदत पि का
(UGC Approved Journal - UGC Care Review)
RNI NUMBER :- MPHIN/2016/67929
ISSN : 2455-9717
संर क एवं सलाहकार संपादक
सुधा ओम ढ गरा
संपादक
पंकज सुबीर
कायकारी संपादक एवं क़ानूनी सलाहकार
शहरयार (एडवोकट)
सह संपादक
शैले शरण, आकाश माथुर
िडज़ायिनंग
सनी गो वामी, सुनील पेरवाल, िशवम गो वामी
संपादक य एवं यव थापक य कायालय
पी. सी. लैब, शॉप नं. 2-7
स ाट कॉ लै स बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर
म य देश 466001
दूरभाष : +91-7562405545
मोबाइल : +91-9806162184 (शहरयार)
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ऑनलाइन 'िशवना सािह यक '
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फसबुक पर 'िशवना सािह यक ’
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एक ित : 50 पये, (िवदेश हतु 5 डॉलर $5)
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संपादन, काशन एवं संचालन पूणतः अवैतिनक, अ यावसाियक।
पि का म कािशत साम ी लेखक क िनजी िवचार ह। संपादक
तथा काशक का उनसे सहमत होना आव यक नह ह। पि का म
कािशत रचना म य िवचार का पूण उ रदािय व लेखक पर
होगा। पि का जनवरी, अ ैल, जुलाई तथा अ टबर माह म कािशत
होगी। सम त िववाद का याय े सीहोर (म य देश) रहगा।
आवरण किवता
अशोक कमार पा डय
आवरण िच
पंकज सुबीर
4. 2
çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 2023
आवरण किवता / अशोक कमार पा डय
संपादक य / शहरयार / 3
यं य िच / काजल कमार / 4
शोध आलोचना
सजना का मांग य
योित जैन / सूयकांत नागर / 5
समपयािम
डॉ. नमदा साद उपा याय / डॉ. ग रमा संजय दुबे / 10
क म पु तक
दादे-सफ़र
कलाश मंडलेकर, रखा भािटया, डॉ.सीमा शमा, पंकज सोनी
पंकज सुबीर / 13
पु तक समी ा
पाँव क पंख
डॉ. उषा िकरण / िशखा वा णय / 21
िसफ़ न शे क़दम रह गये...
िवनय उपा याय / याम मुंशी / 23
िह दी यं य क वृि याँ और प रवेश
शैले शरण / कलाश मंडलेकर / 25
स ग वाले गधे
सुधीर ओखदे / ेम जनमेजय / 27
हाँडी भर यातना
डॉ. उपमा शमा / शोभानाथ शु / 29
न व क प थर
िवजय कमार ितवारी / दीपक िगरकर / 31
कभी देर नह होती
गोिव द सेन / आशा पा डय / 33
िकरिकरी
सृ उपा याय / ममता िसंह / 35
करवट
रमेश शमा / संजय कमार िसंह / 37
सुद म हरसूद
अजय बोिकल / वसंत सकरगाए / 39
मन क नदी से भीगे श द
ममता यागी / रखा भािटया / 40
िखड़िकय से झाँकती आँख
कमल चं ा / सुधा ओम ढ गरा / 41
ख़त मौसम का बाँच
काश कांत / ओम वमा / 42
न कोई मील न कोई प थर
नीरज नीर / डॉ. िव ाभूषण / 43
शोध आलेख
वतमान यथाथ क तुितः नीरज क ग़ज़ल / डॉ. आकाश वमा / 44
सुधा ओम ढ गरा क कहािनय म... / स रता िजलेदार िब द / 46
अदब क िसर पर मुकट-सा ह इलाहाबाद / डॉ. महश दवंगे / 48
नागाजुन: यथाथ चेतना एवं लोक / स रता कमारी / 51
भारत म सा यवादी दल एवं सा यवादी दल... / अिभषेक सचान / 54
जबलपुर म थािपत प का रता का... / गोिव द पा डय / 57
िह दी कथा सािह य अ यन: िक र िवमश / राखी / 60
नागाजुन क उप यास क ... / डॉ. पे कमार झा / 63
अमृतलाल नागर क कहािनय का अनुशीलन / डॉ. िनशान िसंह / 66
मधु कांक रया क कथा सािह य म... / ेह लता / 69
किष िवपणन क म डय का समी ा मक अ ययन / दीपा वमा / 72
दिलत समाज म िनिहत अंतिवरोध... / अिवनाश बनज / 75
गीतांजिल ी क उप यास 'माई' म... / सीमा कमारी साव / 78
िकसान आ मह या, कारण एवं िनदान... / वषा रानी पाटले / 81
गांधीवादी किवता क आदश... / राजीव कमार दास / 84
बदली मानिसकता का आगाज़... / डॉ. मेरली. क. पु ूस / 87
संगठन क िलए आपदा बंधन... / डॉ. अजय डी पटल / 90
जनजातीय े भरमौर... / भरत िसंह, नवनीत कौशल / 93
उ -िश ा म म य देश... / अनुज कमार पा डय / 96
िनराला क कहािनय म... / ह रओम कमार ि वेदी / 98
कोरोना... / डॉ. अ ण कमार, डॉ. राजीव रजन क यप / 100
सामािजक यथाथ और िनराला / डॉ. ज़रीना सईद / 102
िह दी ग़ज़ल क सामािजक चेतना / िवनीत कमार यादव / 104
वै ीकरण क प र े य म... / किवता / 107
समकालीन िह दी किवता... / डॉ. ि यंका कमारी / 110
संत सािह य म जीवन-मू य : एक िववेचन / डॉ. भरत लाल / 113
िपतृस ा मक समाज म.../ पूनम िसवाच / 116
वातं यो र िह दी उप यास और मैला आँचल / िब दु डनसेना / 119
मोहनलाल महतो िवयोगी... / शािलन सा / 122
िह दी किवता म भूम डलीकरण... / उिमला / 125
िह दी किवता म भूम डलीकत... / संतोष कमारी / 128
सुभ ा कमारी चौहान... / िद वजयिसंह सी. झाला / 131
िशवमिह नः तो म िशवत व / डॉ. आर. डी. पटल / 134
िह दी क आंचिलक उप यास म... / सोलंक द ा बहन / 136
भारत म िह दी क थित / डॉ. िवनीता कमारी / 138
भारत म सां कितक प रवतन... / पवन कमार / 140
RussiaUkraineWar/Dr.PareshbhaiJ.Rabari/142
Great Personality of theWorlds Mohands Karamchand
Gandhi/Dr.ChhayabenR.Suchak/145
PritiSengupta'sTravel /Dr.PritiLavkeshPatel/147
Socio Political And Cultural Analysis Of Khushwant
Singh's Train To Pakistan / Patel Priyankaben
Manglabhai/150
इस अंक म
5. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 3
शहरयार
िशवना काशन, पी. सी. लैब,
स ाट कॉ लै स बेसमट
बस टड क सामने, सीहोर, म. .
466001,
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संपादक य
लेखक क भाषा को हमेशा से उस भाषा म मानक का दजा िदया जाता रहा ह। उसक वतनी
को देख कर दूसर लोग अपनी वतनी सुधारते रह ह, तथा श द को ठीक कार से िलखना
सीखते रह ह। पहले कछ समाचार प भी ऐसे होते थे, िजनको भाषा का मानक समझा जाता
था। यिद िकसी श द को लेकर कोई उलझन होती थी, तो लोग उन समाचार प म उस श द
को तलाशते थे, और वहाँ श द िजस कार िलखा होता था उसे ही मानक मान लेते थे। या िफर
िकसी लेखक को तलाशते थे, सही और ग़लत का फ़सला करने क िलए। तब न तो हर िकसी क
पास श दकोश होते थे, और इटरनेट जैसी सुिवधा भी नह थी, िक वहाँ तलाश कर िलया जाये।
िक तु अब थित वैसी नह ह, अब न तो लेखक क भाषा मानक रह गयी ह और न िकसी
समाचार प क । ब क लेखक क भाषा और वतनी तो अब सामा य य क भाषा और
वतनी से भी यादा ख़राब हो गयी ह, जबिक अब तो लेखक क पास ऑनलाइन श दकोश क
सुिवधा उपल ध ह, जहाँ तुरत िकसी भी श द का मानक ा प तलाश िकया जा सकता ह।
लेिकन लेखक ने अब यह मान िलया ह िक लेखक होने क िलए बस एक बात ही आव यक
होती ह और वह ह िलखना। लेखक होने क िलए भाषा क परपरा, उसको यवहार म लाने का
तरीक़ा, श द का उपयोग, श द क सही वतनी, जैसी बात क कोई आव यकता ही नह ह।
जब भी िकसी भाषा का लेखक भाषा क उपयोग म लावरवाह होने लगता ह, तब उस भाषा पर
सबसे यादा संकट होता ह। इस से देखा जाये तो िह दी इस समय सबसे अिधक संकट म
ह। भाषा ऐसे ही समा होती ह। भाषा क मानक प क संवाहक होते ह लेखक और प कार।
प का रता क तो बात छोड़ ही दी जाये, य िक अब तो हर समाचार प क कायालय म
प कार क ठीक सामने एक सूची लगी होती ह िक िह दी क िकस श द का उपयोग नह करना
ह, तथा उसक थान पर अब अं ेज़ी क िकस श द का उपयोग करना ह। यथा- अब
महािव ालय नह िलखा जा सकता, कॉलेज ही िलखना होगा, िव िव ालय नह िलखा जा
सकता, यूिनविसटी ही िलखना होगा। यिद कोई प कार अपने समाचार म महािव ालय या
िव िव ालय का उपयोग कर लेता ह तो उसे तुरत कारण बताओ प ा हो जाता ह।
प का रता क भाषा तो दस-प ह साल पहले से ही ख़राब होनी ारभ हो चुक थी, मगर अब
िपछले कछ साल से लेखक क भाषा भी ख़राब होनी शु हो गयी ह। बात कवल टकण क
दौरान ई ुिटय क हो तो लेखक को मा िकया जा सकता ह, लेिकन जो ुिटयाँ सामने आ
रही ह, उनको कवल टकण क ुिटयाँ कह कर टाला नह जा सकता ह। थित इतनी गंभीर हो
चुक ह िक 'और' तथा 'ओर' म लेखक को अंतर नह पता, 'म' तथा 'म' म उसको अंतर नह
पता। वह एक ही रचना म श द को अलग-अलग तरीक़ से उपयोग करता ह। िकसी श द पर
कह वह चं िबंदु लगाता तो उसी रचना म आगे कह उसी श द पर कवल िबंदु लगा कर काम
चला लेता ह। कह अनुनािसक म एक थान पर कवल िबंदु लगा देता ह तो कह बाक़ायदा
आधे वण का उपयोग करता ह। उदाहरण क प म- वह कह 'भूकप' िलखता ह तो कह
'भूक प'। बात सही और ग़लत क नह ह, बात कवल िनरतरता क ह। कम से कम एक रचना
म तो वतनी क योग क िनरतरता बनाये रिखए। सबसे िदलच प बात यह ह िक आजकल
लेखक हाथ से नह ब क क बोड से िलखते ह, जहाँ ग़लितय क सुधार क अिधक सुिवधा
होती ह, जबिक पहले क लेखक जो हाथ से िलखते थे, उनक रचनाएँ आज भी जब
ह तिलिखत ा होती ह, तो वतनी क िकसी भी ुिट से एकदम मु , िबलकल साफ होती ह।
चाह हाथ से िलख या क बोड से, बस इतना यान रह िक आपका िलखा मानक माना जाता ह,
आपक एक 'ग़लती' समाज म 'सही' होकर थािपत होगी।
जब िकसी भाषा क
लेखक क ही भाषा
ख़राब होने लगे, तो
समिझए उस भाषा
पर गहन संकट ह
आपका ही
शहरयार
7. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 5
दुिनया म स य कई लोग िलखते या कहते ह, लेिकन जब सच सलीक़ से िलखा जाए यािन
सलीक़ से साहस क साथ स य िलखा जाए तब जो सृजन होता ह, डॉ. नमदा साद उपा याय क
श द म- 'वही मिणकांचन संयोग का सृजन होता ह।' ऐसा ही सृजन रचा ह उ को धता बताते
सािह य क सश ह ता र व र सािह यकार सूयकांत नागर ने, 'सजना का मांग य' िनबंध
सं ह म। पहले ही िनबंध 'सािह य का सां कितक िववेक' म सूयकांत नागर प कर देते ह िक
सािह य का काम समाज क बौि क, नैितक, सामािजक और सां कितक चेतना जागृत करना
ह। हम समझ सकते ह िक सािह यकार क िज़ मेदारी िकतनी मह वपूण ह। गंगातट से लेकर
ल ाख तक, तो तुलसी से लेकर ेमचंद, िदनकर, नरश मेहता से नईम तक क कित व पर
आपने कलम चलाई ह।
दूसरा िनबंध 'ि वेदीजी क िनबंध म सां कितक सुगंध' ह, िजसम सूयकांत नागर ने आचाय
जी क कित ेम क बार म भी बात क ह। हम िनसंदेह ये जानते ह िक आचाय हजारी साद
ि वेदी भारतीय सं कित और सािह य क कांड िव ान थे, िकतनी ही भाषा पर उनका समान
अिधकार था। आचाय हजारी साद ि वेदी जी का कित ेम सविविदत ह, तभी शायद इसी
पृ भूिम क कारण अशोक क फल, िश रष क फल, कटल, देवदा , आम िफर बौरा गए और
वसंत आ गया जैसे िनबंध पर उनका िवशेष ेम रहा। आचाय जी क कित व और य व पर
तो सूयकांत नागर ने कलम चलाई ही ह, साथ ही आचाय जी क य व क बार म भी बात क
ह। उनका िव ास था िक सािह य का मु य ल य जो ह उसका सीधा संबंध मनु यता से ह और
एक बेहतर इसान क िनमाण से ह। और कछ उनक ह क फ क रचना लगती ह लेिकन इसी
रचना क बहाने आचाय जी ने लेखक और आलोचक पर करारा यं य िकया ह िजसका शीषक
था िक या आपने मेरी रचना पढ़ी?
तीसरा िनबंध ह जनवादी का य का ितिनिध किव: नागाजुन। इसम बाबा नागाजुन यािन
बैजनाथ िम क बार म ब त सारा, उनक रचना संसार क बार म, उनक संवाद क बार म
सूयकांत नागर ने ब त िव तार से इस िनबंध म िलखा ह। फ कड़ा यायावार और म त तबीयत
क माने-जाने वाले, लेिकन बाद म बीमा रय से जूझते गितशील किव नागाजुन ने िनजी जीवन
म भी क , भूख और द र ता नह झेली, सािह य-जग ने भी कई अवसर पर उनक साथ
अ छा सलूक नह िकया। कई बार उनक का य साम य और ितब ता को लेकर सवाल खड़
िकए, िजसक बार म सूयकांत नागर ने इस िनबंध म िव तार से िलखा ह। जैसा िक मने कहा िक
सच िलखना भी ब त साहस का काय ह। और बाबा नागाजुन सच िलखकर भी त कालीन
धानमं ी इ दरा गांधी क कोपभाजन भी बने और 'मं ' किवता क िव उ ह काशी क पंिडत
का भी िवरोध झेलना पड़ा। और यही नह दुख:मोचन उप यास क काशन क बाद पटना क
क युिन ट ने िबना पृ भूिम जाने नाराज़गी य क । पा पु तक म भी िनरालाजी, िदनकर
जी आिद थान पा गए लेिकन बाबा नागाजुन उपेि त ही रह। उनक दद को, उनक पीड़ा को
सूयकांत नागर ने अपने इस िनबंध म भलीभाँित उकरा ह।
अगला िनबंध िह दी आलोचना: आज पर उ ह ने िलखा ह। वैसे तो आलोचना िववादा पद
और ऐसी िवधा मानी गई ह जो िब कल उवरक नह ह। इसिलए उस पर सम ता से िवचार
करना आव यक ह। और आज आलोचक क सबसे बड़ी चुनौती िव ास क ह। रचना क
साथ याय करने क िलए आलोचक का भरपूर ान होना अिनवाय ह। य िक आलोचना
आचाय रामच शु से ारभ ई तो आचाय हजार साद ि वद
े ी, नंद दुलार वाजपय
े ी, राम
िनवास शमा, िव ािनवास िम और डॉ. नामवर िसंह से होते ए वतमान मुकाम पर प ची ह।
आचाय शु क बौि क थान से िह दी आलोचना को वैचा रक आधार िमला और उसका
ाफ धीर-धीर उपर उठता गया। पर आलोचना कभी भी योिजत नह हो, तभी वो वयं क साथ
याय कर पाती ह। कई आलोचक पूवा ह से िसत रहते ह। लेिकन इस संदभ म बाबा नागाजुन
अपनी किवता म िलखा भी ह िक- अगर क ित का फल चखना ह तो आलोचक को श रखना
शोध-आलोचना
योित जैन
1432/24,नंदानगर
इ दौर-452011
मोबाइल- 9300318182
(िनबंध सं ह)
सजना का मांग य
समी क : योित जैन
लेखक : सूयकांत नागर
काशक : अि क काशन, नई
िद ी
8. 6
çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 2023
ह...।" लेिकन लेखक को आलोचक क
िवपरीत िट पणी से ना श नह होना चािहए
ब क उसे व थ सोच से लेना चािहए।
अपने अगले िनबंध म लेखक ने
अ ेय:एक अ वेषी किव क का य क
बार म बात क ह। िनसंदेह अ ेय िह दी
किवता म योगवादी नूतन का य धारा क
वतक क प म जाने जाते ह। अ ेय ारा
संपािदत तार स क 1943 म काश म आया
और इन संकलन म स मिलत किवय
मु बोध, रामिवलास शमा, भरतदुषण
अ वाल, रघुवीर सहाय आिद क किवता
से पाठक को नई किवता क येय और
भावबोध का पता चला, िजसम पुरानी
परपरा को नकारकर योग को ही का य
जीवन माना गया। अ ेय क रचना क
क म मनु य रह लेिकन साथ ही वे रचनामय
अिव कार करते चलते ह। नए-नए श द का,
नए िश प का और नए िवचार का। अ ेय ने
एक नई का य भाषा को रचा। वे समाज क
बात कम और सं कित क यादा करते रह।
वैसे इितहास, पुराण, धम, दशन आिद क
गहन अ ययन से उनका रचना मक संसार
यापक आ ह। उ ह ने िलखा था िक किव
का साहस उसक आवाज़ का स य ह और
यह स य य ब नह यापक ह। और
स य िजतना यापक होगा, का य उतना ही
उ कषकारी होगा। िकतनी सुंदर बात अ ेय
जी क यहाँ सूयकांत नागर ने उ ेिखत क
ह। उनक डाय रय क अ ययन से समझा जा
सकता ह िक किव क िचंतन क िदशा या ह।
किव क कला या ह। वो कौन से
सरोकार ह जो उनक सृजना मक संघष को
धारदार बनाते ह। डाय रय से किव का
सृजनशील य व सामने आता ह। वे कहते
ह िक लेखक क नाते अ ेय अपनी रचना
या ा को काफ अकले मानते थे लेिकन या
रचनाकार सचमुच अकला होता ह। शायद
नह , य िक वो अनुभव को भोगते ए, उस
पर िचंतन करते ए वो पूर िव को अपने
साथ ले लेता ह। तो िन त प से रचना
िनजी न होकर िव तार पा लेती ह। अ ेय क
अनेक रचना म ेमानुभूित क भी
अिभ य ई ह और ऐसी कितपय ारिभक
रचना म छायावादी वृि याँ तो बात क
किवता म योगवाद और अ त ववाद क
वृितयाँ देखने को िमली। वे जानते थे िक
जीवनिश प को जाने िबना रचनािश प क
बात करना यथ ह और इसीिलए कला और
जीवन को अलग-अलग करक नह देखा जा
सकता।
सूयकांत नागर का अगला आलेख
उ राधुिनकता को लेकर ह। उ र
आधुिनकता:एक िचंतन ह। िजसक मा यम से
आधुिनकतावाद क समथक क िवचार तुत
करते ए वे कहते ह िक गांधी जी ने भी
प मी आधुिनकता को छोड़कर थानीयता
पर यान िदया। य िक उ राधुिनकता का या
पो ट मॉडिन म को एक िन त म वक म
बाँधकर प रभािषत करना मु कल ह। य िक
उ रआधुिनकता वाद पर िवमश गंभीर,
जिटल, िववादा पद, ब आयामी और
अनेकाथ ह। और साथ ही कछ अंतरिवरोध
भी ह। वैसे भारतीय संदभ म आधुिनकता बोध
एकदम नई अवधारणा नह ह। कारण िक
इसक बीच गांधी जी क िह द वराज ारा देश
को वतं कराने क िस ात
ं म ही पड़ गए थे।
वे कहते ह िक या हमारा रा ीय आंदोलन
जो वदेशी क त था आधुिनक और यूिनक
नह था...? और बारीक से अ ययन िकया
जाए तो आधुिनकता का बोध तो ेमचं क
रचना म भी आ चुका था। उदाहरण क
िलए कफन कहानी म आधुिनक सोच को इस
कार रखांिकत िकया गया िक यव था जब
लंबे समय तक शोषण करती ह तो मनु य
िकस हद तक असंवेदनशील, दयहीन और
अमानवीय हो जाता ह िक प नी क कफन क
िलए जुटाए गए पैस क भी शराब पी जाती ह।
इसी तरह उनक कई रचना म पाखंड को
उजागर करने क कोिशश क गई ह। साथ ही
महाजनी स यता ने िजस तरह से सवाहारा वग
पर अ याचार िकए उसी तरह क़ज़ म डबे
िकसान आज भी तो आ मह या कर रह ह।
महानगरी जीवन म जहाँ-जहाँ भी िवसंगितय
का िच ण तब आ था वो सं ास, वो घुटन
और वो अवसाद आज भी देखा जाता ह।
भूमंडलीय करण और उससे उपजे बाज़ारवाद
ने उ राधुिनकता क िलए उ ेरक का काम
िकया ह। सं कित, सािह य, राजनीित यहाँ
तक क ी िवमश भी.. कोई भी इससे
अछता नह रहा ह और युवा पीढ़ी इसक
चकाच ध से अ ांत ह उदारीकरण का मूल
उ े य बराबरी लाना होता ह, लेिकन यह
समझना आव यक होगा यहाँ िक ब रा ीय
कपिनय का येय बराबरी लाना नह ब क
अिवकिसत देश म अपने पैर पसारना ह और
अिधक मुनाफा कमाना ह। वै ीकरण या
लोबलाइजेशन का लाभ कवल कछ लोग
को िमल रहा ह सब लोग को नह ।
उ राधुिनकता वाद म नारीवादी िवमश का
प भी बदल गया ह और ी क हर तर पर
आज़ाद होने क बात कही जा रही ह। यह
समाज म पु ष क स ा को समा करने का
यास ह। ऐसा कह सकते ह, िजसम ाय:
पु ष ी पर अपना भु व जमाता ह और
आज का नारीवादी आंदोलन इसी असमानता
को दूर करने पर िटका आ ह। उ राधुिनकता
का एक ओर प ह िवखंडनवाद या
िडक स शन। यह माना जाता ह िक
अिभजा य वग ारा दिलत और शोिषत को
अपने लेखन म उपेि त रखा गया, उ ह हीन
माना गया ह। उ राधुिनकता वाद अिभजा य
वग क इस ष ं को तोड़ना चाहता ह। न
इतना रहता ह िक उ राधुिनकता हो या अथ
तं से जुड़ा कोई ओर मुददा उ ह हम अपनी
प र थितय और आव यकतानुसार िकतना
और कसे हण कर। इसिलए आ ह इतना
भर ह िक उ राधुिनकता पर उसक सम ता
म िवचार कर और इस यु का अनुसरण
कर िक- " सार-सार को गही लह.. थोता देई
उड़ाय।"
सृजन एक बेचैन कवायद म लेखक ने
सृजन क छटपटाहट को.. उसक बेचैनी को
उकरा ह। वह कहते ह िक वैसे तो लेखक
खुली आँख से चीज़ को देखता ह और
िचिड़या क च च क तरह ब त सारी चीज़ म
से काम क चीज़ को उठाकर, चुनकर अपने
अंदर ज ब कर लेता ह। यह रचना का पहला
ज म होता ह। लंबे अनुभव तक जब वह भाव
9. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 7
अंदर पकता ह और सृजन का प प
होकर बाहर आता ह, यह रचना का दूसरा
ज म होता ह। और वही अनुभूित जब कागज़
पर उतरती ह तो रचना का तीसरा ज म होता
ह। लगता ह लेखन वयं ही एक बेचैन
कवायद होती ह।
गत चार दशक म ी जीवन क या ा
का लेखा-जोखा नारी संवेदना क नए ार
खोलता ी लेखन इस िनबंध म सूयकांत
नागर ने िलया ह। मेरा मानना ह िक कवल ी
गभधारण करती ह, सव पीड़ा सहती ह और
िशशु को अमृतपान कराती ह। इसीिलए पु ष
और ी लेखन क संवेदना क बीच म
एक बाल बराबर फक तो आ ही जाता ह।
य िक इस संदभ म ी क अनुभव अिधक
गहर और मािणक होते ह। रचना मकता
यादा िव सनीय होती ह। हालािँ क यह
आव यक नह ह िक ये िचंतन य ारा ही
हो, पु ष क ारा भी होता ह लेिकन िफर भी
ी लेखन क बार म सूयकांत नागर ने यहाँ
खुलकर बात क ह। सुधा अरोड़ा से लेकर
सुयबाला, म ु भंडारी, मै ेयी पु पा आिद
लेिखका क बार म िलखते ए कहते ह िक
अिधकांश लेिखका ने पु षवादी सोच क
िख़लाफ़ अपने मत य िकए ह और
ितरोध भी। ितरोध का वर कह ती ह जो
लगता ह िक अपनी मयादा का उ ंघन कर
रहा ह लेिकन कह मयादा म रहते ए भी ह।
यहाँ वे कहते ह िक पु ष नह चाहता िक
औरत का कद उससे बड़ा हो। ी लता
बनकर वृ से िलपट, िलपटकर चाह वृ क
ऊपरी िसर पर प च जाए, चलेगा लेिकन यिद
पेड़ बन जाए तो लोग क हाड़ी उठाकर उसे
काटने को दौड़ते ह। िववाह क समय भी
लडक़ क यो यता उसक देहय , प, रग
से आँक जाती ह न िक उसक ितभा से और
ये नारी अ मता का िन त प से अपमान
ह। अनेक लेिखका ने इस वृि का िवरोध
अपने लेखन म िकया ह और वो अिनवाय भी
ह य िक व तुत: भारतीय समाज म आरभ से
लड़क क कडीशिनंग क जाती ह। हम
कहते ह िक हालात बदले ह लेिकन या पूरी
तरह...? नह ! आज भी औरत का एक पैर
चौखट क अंदर ह, एक पैर बाहर ह। और
देखने म आता ह िक भारतीय समाज म
लड़क को अपने िह से का आकाश देने म भी
कजूसी बरती जाती ह। आज भी कई े म
ठहाक मारकर लड़क या औरत को हसते
देखकर लोग आ य चिकत होकर उसक
तरफ घूरकर देखते ह। ये मत करो, ये मत
करो, ये मत करो, ये मत करो, हर चीज़ म
रहता ह ये मत करो। या करना ह ये कोई नह
सोचता। मिहला रचनाकार क संसार क बार
म सूयकांत नागर ने िव तार से बात करते ए
उषा िकरण खान, नािसरा शमा, िनहा रका
आिद लेिखका क बार म बात करते ह।
ी अिधकार और नारी स ा क भाव क तह
अनेक कथा लेिखका ने अपनी कहािनय
म नारी मु और देह आज़ादी का मु ा
उठाया ह। क णा जी क आ मकथा का िज़
करते ए वो पु ष क भोगवादी वृि और
ी क भावना मक कमज़ोरी का िच ण
करते ह। कथा लेिखका क बार म बात
करते ए सूयकांत नागर ब त साहस क साथ
ये सच कहते ह िक कथा लेिखका क
िवशाल समूह म प ी मालती जोशी अलग
खड़ी िदखाई देती ह। उनक कथा संसार
भारतीय प रवेश क जीवंत प रवेश ह। वे
म यमवग य नारी क व ा ह, ब पिठत ह
लेिकन साथ ही उनक जो नाियकाएँ ह बेशक
म यमवग य ह या घरलू ह लेिकन उनक नारी
ताकत क साथ अपनी बात कहती ह। अपनी
अ मता को बचाए रखने का.... बनाए रखने
का पुरज़ोर यास करती ह। वो सकारा मक
रहती ह। मालती जी कहािनय क नाियकाएँ
बेशक उघड़ी नह िदखती ह... लेिकन उनका
िदमाग़ खुला आ ह। मालती जी क
नाियकाएँ देह नह , संवेदना और िदमाग़ पर
अिधक ज़ोर देती ह। मालती जी कहती भी ह
िक िजस प रवेश का उ ह अनुभव नह , वे उस
पर य िलख? य िक वे उधार क दुिनया पर
नह िलखती। उिमला िशरीष आज भी सि य
ह और जडर क आधार पर लेखन क प धर
नह ह, बावजूद इसक वे मानती ह िक मिहला
कथाकार क रचना म ी जीवन क
अनुभूितयाँ अिधक घनीभूत होती ह। सूयकांत
नागर कहते ह िक नई नारी का उदय आज क
मिहला लेखन क सबसे बड़ी सफलता ह।
एक गीत क एक पं ह िक िजस किव
क क पना म िज़ंदगी हो ेम गीत तो उस
किव को आज तुम नकार दो, लेिकन इन
सबको नकारते ए सूयकांत नागर का अगला
िनबंध ह, यार का कोई याकरण नह होता।
ये सच ह िक यार वो अहसास ह जो लगता ह
िक पूरा जीवन ही ह। कछ देखा, कछ
अनदेखा, कछ य , कछ अ य । मुझे
लगता ह जब मुखरता ना हो मौन हो तब भी
यार, यार ह और जब मौन मुखर हो जाए तो
भी वो यार ही रहता ह। बेशक स े यार म
शोर नह होता। लेखन हो या यार दोन क
भावी अिभ य म शोर बाधक ह। बेशक
दशनकारी होने पर ेम अपनी मह ा शुिचता
और पु य ही खो देता ह। ेम दय से होता ह
और इज़हार आँख से। बाँ कभी होती ह
कभी नह । यार अनायास का अवदान ह जो
िक िबना दरवाज़े पर घंटी बजाए वेश कर
जाता ह और वह सशत भी नह होता। कहते ह
न िक यार म सौदा नह । ये िब कल सच ह
और ेम वो ह िजसम सतकता नह होती,
अगर सतकता ह तो ेम नह ह। ऑ िलयाई
लेखक क कथन से वे कहते भी ह िक दुिनया
क सबसे मह वपूण चीज़ ह ेम। ेम क
अलग-अलग प ह एक ेत ह एक अ ेत
का ह। दुिनया से जुड़ा होने क बावजूद वहाँ
एकाक प म और तुम का भाव होता ह।
क ण ने गोिपय को इसी भाव से छोड़ा था िक
वे ेत क िनमल तेज़ वी त व से गूँथी ह और
अ ेत क सीमा म बंधी एंि क कामना से मु
हो सक। क ण क ित राधा और गोिपय का
ेम आ या मक ह और सोलह ंगार क
अंतगत सूय ने उनक ेम को अलग ही प
िदया ह। मीरा का क ण ेम आ या मक था।
लौिकक अथ से िभ । मीरा क ण रग म इस
कदर रगी ई थी िक उ ह पित मान द को
उ ह को समिपत कर िदया। उस ेम म देह
क लामी का बंधन नह था। मीरा ने उस
काल म ी अ मता का जो उदाहरण पेश
िकया उसका सानी इितहास म िमलना
मु कल या असंभव ही ह। लोक लाज और
10. 8
çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 2023
सामािजक आलोचना क िचंता िकए बगैर वे
क ण ेम म डबी रह और राजसी ऐ य को
ठकराया। ी वातं और ेम क श का
िबगुल तो उ ह ने करीब 500 वष पहले ही
बजा िदया था। िक मेर तो िगरधर गोपाल दूसरा
न कोई। उनक भ म का य म ा ह।
मीरा का का य दरअसल आ ममु का
का य ह और वो ये बता देता ह िक ेम का
कभी कोई याकरण नह होता। ेम क
प रभाषा नह होती। कोई नाम न िदया जाए
तब भी ेम, ेम ही रहगा।
मुिखया मुख सो चिहए खान-पान म एक,
पाले-पोसे सकल अंग तुलसी सिहत िववेक।
ऐसे श द क कशल कथा -िश पी तुलसी ये
सूयकांत नागर का अगला िनबंध ह, वे कहते
ह िक रामच रत मानस जैसा वृह ंथ रचकर
तुलसीदास ने िस कर िदया िक वे न कवल
एक िस किव ह ब क कशल कथाकार भी
थे। लगभग साढ़ चार सौ वष पूव रची गई उस
कहानी, आज क कहानी क समान त व चाह
न ह मगर कहानी का मूल त व उसम ह। वैसे
आ था क िलए िकसी भी तक और ा क
ित संदेह क गुंजाइश नह होती ह। पूरी कथा
म िनरतरता और अिविछ ता िव मान ह,
कह जोड़ नह िदखाई देते। तुलसी क
िवशेषता थी िक कथा म आए पुराने संग को
नए संग से िकस तरह जोड़ना। इस तरह
जोड़ना िक कह कोई कमी महसूस न हो।
उ ह ने ज दबाज़ी न करते ए धैय पूवक
कथा को आगे बढ़ाया और यह धैय ही एक
कथाकार को पूण बनाता ह। सीता जी को जब
हनुमान भगवा राम क मुि का भट करते ह
तब वे स ता और दुख को िकस तरह
महसूस करती ह, तुलसी दास यहाँ िलखते ह
िक- "चिकत िचत मुि का पहचानी/ हष
िवषाद हदय अकलानी।" मुि का िमलने पर
हष क साथ िवषाद य कर आ। य िक
सीताजी क मन म यह आशंका उपजी िक
कह राम को मारकर या चोट प चाकर तो
मुि का नह लाई गई। इसिलए वे पहले
मुि का देखकर स होती ह और बाद म
दुखी होती ह। तुलसी क मानस म मनु य
जीवन को लेकर कई संग ह। शील और गुण
से रिहत ा हण भी पूजने यो य ह शू भले ही
गुण क खान और ानवान हो, उनक पज
ू ा
नह करनी चािहए, ऐसा तुलसी कहते ह।
लेखक समकालीन वेश और प र थितय से
भािवत होता ह और इस प को यान म रख
तो शेष राम कथा एक उ क स प
किव कथाकार क साथक सृजन क प म
हमार सम आती ह। रामच रत मानस क
िगनती िव क सव े भ सािह य म यूँ
ही नह हो जाती।
अपने अगले िनबंध म सूयकांत नागर
अख़बारी प का रता पर चंद सवाल उठाते ह।
सवाल उठाते ए वे कहते ह िक प का रता
िमशन न रहकर अब यवसाय बन गई ह।
एक उ ोग, एक उ पाद। अब प का रता
लोकतांि क और नैितक मू य क थापना
जन संघष म भागीदारी और रा ीय िववेक क
अिभर क बनने क अपनी भूिमका से िवमुख
होती जा रही ह। बड़-बड़ सं थान प
पि का क काशन को एक उ ोग क
तरह लेने लगे ह। हम देखते ह िक जो
पि काएँ घाट का सौदा थ वे बेहतरीन
पि काएँ, सव े पि काएँ, िदनमान,
रिववार, नंदन, धमयुग जैसी पि काएँ काल
क वत हो गई ह, इसी वजह से। य िक
अख़बार म अब िववेकशील संपादक क
बजाय पीआरओ क आव यकता अिधक ह,
जो अख़बार क िब बढ़ाने और िव ापन
बटोरने म सहायक हो सक। ऐसे-ऐसे उप
संपादक िनयु िकए जा रह ह, जो िक
ब रा ीय कपिनय ारा लॉ च िकए जा रह
ोड ट क लॉ चंग समारोह को कवर कर
सक। एक ब त बड़ी चुनौती ह व छ
प का रता करना, य िक कछ धंधेबाज़
प कार प का रता को कलंिकत करते ह,
यहाँ तक िक यापा रय को डरा-धमकाकर
और रसूख का च र हनन कर उ ह
लैकमेल तक करते ह। समाचार प क
बढ़ती ित पधा म जो िगरावट आई ह,
उसका एक कारण यह भी ह िक अपनी लक र
बड़ी करना तो दूसर क लक र को पहले
िमटा दो जबिक होना ये चािहए िक आप
अपनी लक र बड़ी करने म िनरतर सृजनरत
रह। लेिकन ऐसा हो नह रहा, य िक ल मी
पु सर वती पु बनने क कोिशश कर रहा
ह, तो इस तरह का संकट आना वाभािवक
ह। पहले समाचार प से जुड़ लोग
सािह यकार भी होते थे, सािह यक पि का
क संपादक लगभग सभी सािह यकार भी होते
थे। सािह य क उ ह समझ रहती थी। वतमान
म लंत न अिभ य क वतं ता का
भी ह। कछ लोग अिभ य क वतं ता पर
खतरा मानते ह लेिकन बावजूद इसक वो कछ
भी िलख देते ह, छपता ह और उन पर कोई
कारवाई नह होती। लेिकन िफर भी चिूँ क
सरकार का िवरोध करना ह तो ये कहना
अिनवाय हो जाता ह िक अिभ य क
वतं ता खतर म ह। अफवाह को सच क
तरह परोसने क कोिशश क जाती ह।
इसक साथ ही आज मीिडया पर भाषा को
करने का भी आरोप ह। कई िह दी
समाचार प म अं ेज़ी श द क भरमार ह।
अख़बार अं ेज़ी का मोह नह याग पा रहा ह,
या यूँ कह लीिजए िक िह दी को अपना नह पा
रह। रा भाषा क ित जो वािभमान होना
चािहए, अपनी भाषा को े मानने का जो
भाव होना चािहए वह नह ह। आज अपनी
साख बनाने क िलए यह भी अिनवाय ह िक
दुिनया क मज़बूत और समृ पं म खड़ा
होना ह तो िह दी को अपनी ताक़त और नए
तेवर क साथ िव पटल पर फलाना होगा,
य िक हम देख रह ह िक िव समझ चुका ह
िक िह दी का या मह व ह। हम इले ॉिनक
मीिडया क कई चीज़ म देखते ह िक िह दी
अनुवाद ए जा रह ह य िक दुिनया जानती ह
िक इन चीज़ को िह दी म लाना ही अिनवाय
ह, तब ही उनक ताक़त बढ़गी। लेिकन
िवडबना ह िक हम ही िह दी क ताक़त को
नह पहचान पा रह ह। अपनी भाषा और
सं कित क भाव को फलाने क िलए िह दी
को मजबूत बनाना अिनवाय होगा।
अपने िनबंध सािह यक प का रता:
चुनौितयाँ अनेक ह म लेखक ने अख़बारी
प का रता और सािह यक प का रता म
अंतर बताया ह िक एक सच
ू ना मुख ह तो
दूसरी िवचार मुख। हम यह यान रखना
11. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 9
होगा िक हमार यहाँ प का रता क शु आत
मु यत सािह यक प का रता से ही ई थी।
भारते दु हरीशच से लेकर िनराला, साद,
िदवेदी, ेमचंद जैसे िद गज ने सािह यक
पि का का संपादन िकया था। डॉ.
िव ािनवास िम ने कहा भी था िक
प का रता सािह य पर आधा रत होगी तो वह
नए मू य का िनमाण करगी। वे सािह यक
पि काएँ िन त प से अिधक मा य और
िस होती ह िजनका संपादन सािह य क
यसन क तरह होता ह। आज हम देख रह ह
िक सािह य समाचार प से तो नदारद ही हो
रहा ह। पहले भरपूर पेज सािह य क िलए होते
थे अब वे या तो िवलु हो चुक ह या िसमट
कर ब त छोट होते जा रह ह। जबिक पि का
क हर पृ पर संपादक य होना चािहए,
अब ऐसा हो नह रहा ह। सारी कवायद श द
को घटाने म लगी रहती ह और इस तरह का
एिडट रचना को कई बार तहस नहस कर देता
ह। कई बार संपादक पर उनक मािलक का
दबाव होने लगा ह। अब तो समाचार प
देखकर साफ समझ आता ह िक ये स ा क
प म िलख रह ह या िवप म ह। कई
अख़बार आप देखकर ही समझ जाते ह िक ये
सरकार क िव ही कमर कस क खड़ा आ
ह। और कई अख़बार देखकर समझ म आ
जाता ह िक ये सरकार या स ा क चरण पश
या सा ांग दंडवत करने को आतुर ह। यही
चुनौती आज प का रता क सामने ह। इससे
िकस तरह से बाहर िनकल जाए? संपादक क
ितब ता क उदाहरण आजकल िवरले ही
िमलते ह और इसीिलए इनक िबना न तो
सािह य का भला होता ह न पाठक का भला।
गोपाल का वेणू म सूयकांत नागर ने ब त
ही बसूरती क साथ बाँसुरी क या या क
ह। क ण क सार नाम का उ ेख करते ए
वे कहते ह िक उनक सार नाम सांकितक और
अथ बोधक होते थे। गो-पालनहार,गोपाल,
गोिवंद गोवधन पवत धारण करने वाले
िगरधारी, मुरलीधर या बंसीधर, िनलवण या
यामवण होने क कारण याम सुंदर। इसी
कार वेणू श द सं कत का ह, िजसका अथ
ह बाँस। और जब बाँस से सुर िनकलने लगे तो
बाँसुरी। इसीिलए हर संग म बाँसुरी क िलए
वेणू श द का योग आ ह। व तुत: वेणू
क ण भ क तीक ह। वेणू म िछ का
बड़ा मह व ह। हम आमतौर देखते ह िक
िकसी व तु म छद हो जाना अ छा ल ण नह
माना जाता, वह चाह कपड़ म हो, छाते म,
जूते म। िनधनता और द र ता का तीक माना
जाता ह छद। लेिकन बाँसुरी म िछ क
भूिमका ब त मह वपूण ह, िजसम उगिलय
का ह का सा पश पाकर रािगिनयाँ िखल
उठती ह। वे बंसी बजाते ए क ण का िच ण
भी ब त बारीक से करते ह। ेम और भ
क रसानुभुित कराती वेणू क इस परपरा को
आधुिनक काल क हमार मूध य बाँसुरी
वादक ने जीिवत रखा आ ह। नए-नए योग
भी ए ह, पर मूल भाव तो वही ह। इसी िदशा
म वे मूध य बाँसुरी वादक ी प ालाल घोष,
ी रघुनाथ सेठ,पंिडत ह र साद चौरिसया,
पंिडत िन यानंद ह दीपुर आिद का उ ेख
करते ह। वे कहते ह िक चाह मुरली मुरलीधर
क हो या लोक जीवन क , जब अधर का
पश पाकर िथरकती ह तो ोता को
आनंदाितरक से भर देती ह। एक अलग ही
िव म ले जाती ह जहाँ कवल ेम ह,
ानंद ह और समरसता ह।
सूयकांत नागर क अगले िनबंध म यही
पीड़ा उजागर होती ह िक कहािनय से लोक
िवलु होता जा रहा ह। ामीण प रवेश पर
िलखी जाने वाली कहािनयाँ कम होती जा रही
ह। कारण लगता ह िक गाँव से िनकले
लेखक महानगर म आ बसे और धीर-धीर
अपनी ज़मीन से कटते गए। कहािनय म गाँव
अब नाम मा को रह गया ह। जबिक ेमचं
क कहािनय म तो गाँव आ मा तक जुड़ा
आ था। या शायद गाँव क यादातर लोग
पहले भोले, सहज और संवेदनशील होते थे,
जो शायद अब नह ह। या शहर अपने पैर गाँव
म पसारता जा रहा ह। ामीण प रवेश क
कहािनयाँ िब कल अलग िडजाइन क होती
थी, जब हम कहािनयाँ पढ़ते थे तो आँख क
सामने उस वणन से ही गाँव जीवंत हो उठता
था। उनक घर का, बरामद का, पहनावे और
मेले का जब भी वणन करते तो आँख क
सामने गाँव आकर क खड़ा हो जाता था। खेत
खिलहान, खेत क मेड़, कएँ, सार कथा का
िह सा आ करते थे। अभी वो धीर-धीर कम
होते जा रह ह या समा होते जा रह ह।
अपने अंितम िनबंध नई चमक क साथ
उप थत ह किवता म कछ ऐसे ही भाव
सूयकांत नागर ने अिभ य िकए ह। किवता
क ासंिगकता क ित उनक िचंता
वाभािवक ह। य िक एक समय था जब
का यानुशासन क अंतगत छद यु
छायावादी लेखन आम बात थी। पंत, साद,
िनराला, महादेवी वमा इस धारा क ितिनिध
किव थे। छायावाद क छाया सुभ ा कमारी
चौहान क कछ रचना म देखी जा सकती
ह, लेिकन वहाँ न उस तरह क आ या मकता
ह, न रह य। उनक भाषा और शैली सहज
और अकि म ह। मु बोध ने कहा भी था िक
सुभ ाजी का छायावादी य व एक िवशेष
कार क भाव सघनता लेकर हमार सामने
उप थत होता ह। देश िवभाजन से उपजी
ासदी म तब सा दाियकता क संबंध म
उ दा किवताएँ िलखी गई थी। काल और
प र थित क साथ चीज़ बदलती ह। प रवितत
प र थतय का भाव सािह य और समाज
दोन पर पड़ता ह। सािह य क िवधा कोई भी
हो वह अपने समय से संवाद करती ह इसिलए
बदलते यथाथ क साथ किवता क रचना मक
व प को सामने लाने क िलए उसम
पा मक प रवतन भी आ। किवता अपने
समय का सच ह। किवता क िब ब , तीक
और पक को लेकर भी बहस िछड़ी ह, जहाँ
इसक समथक का तक ह िक इन उपकरण
क मा यम से भी िवचार या अनुभव संि
और भावी हो जाते ह वही िवप का मत ह
िक इसक िबना भी सश अिभ य संभव
ह।
कल िमलाकर एक सौ अ ाईस पृ मे
प ह िनबंध िव तार से शोधप क भाँित
िलखे गए ह। मेरा मानना ह िक यह पूरी
पु तक एक पाठशाला ह, जो हर लेखक को
इस पु तक पी पाठशाला का िव ाथ
बनकर पढ़ना चािहए।
000
12. 10
çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 2023
लिलत िनबंध का क मनु य ही ह और उसका मूल वर यही ह िक मनु यता का िनरतर
उ यन कसे हो, प र कार कसे हो, िवकास कसे हो। इस प र े य म डॉ. ग रमा संजय दुबे क ये
िनबंध इस िनकष पर मुझे खर तीत होते ह। इनम य क अ यथना नह ह, य क
मा यम से अपने समय को िदए गए वर ह, अपने समय क पहचान ह तथा यह लालसा भी िक
इस समय को और कसे सुंदर बनाया जाए। उनक इन िनबंध म सव अपनी माटी क महक ह
और उससे जुड़ रहने क उ कठा और आ ह। अलग-अलग वभाव क इन िनबंध का सौ व
ग रमाजी क लेखन क प रप ता का ही नह ब क उनक ब आयामी सोच को भी अिभ य
करता ह। येक िनबंध का अपना वभाव ह, शैली ह और वर भी य िक ये िनबंध इतने मुखर
ह िक इ ह पढ़ो तो ये कान म गूँजने लगते ह। साथक लेखन वरिवहीन नह होता। उनका एक
िनबंध ह, ' य िक काँट को मुरझाने का ख़ौफ़ नह होता', इस िनबंध म उ ह ने सैलाना क
क टस गाडन म देखी गई नागफिनय को क म रखा ह। िविभ कार क िवलोम क गणना
क ह और एक फतासी भी रची ह िक कसे रग-िबरगे सुगंिधत फल को देखकर जब काँट और
कटीले पौधे अपने धूसर रग और गंधहीन होने पर दुःखी ए और वे अपनी यथा लेकर जब
िवधाता क पास प चे तो िवधाता ने इनम वह अमूत सौ दय ित त कर िदया जो आँख को
सबसे अिधक लुभाता ह। इस िनबंध म क टस क इसी सौ दय को उ ह ने अपनी वहमान शैली
म भाव क उ ाम वेग क साथ रच िदया ह। य यंजक िनबंध क यही िवशेषता भी ह।
इसी तरह उनका एक और िनबंध शरद को लेकर ह, ' ेत शुभ शरद: तू वसंत से या कम
ह'। िह दी म ऋतु को लेकर ब त लेखन आ ह लेिकन इस िनबंध म जहाँ एक ओर कित
क स प ता का वणन ह तो दूसरी ओर आ या मक आभा से पू रत इस ऋतु का आ यान भी।
इसम यिद िदनकर और शैले जैसे किवय क उप थित ह, तो कास का शोभागान करते
कािलदास भी तथा शरद म खंजन क आगमन का अिभनंदन करते तुलसीदास भी। इसम यिद
मानसरोवर क हस ह तो योितष क हस योग और सर वती योग भी। इस िनबंध म आयुवद से
लेकर च मा क उस व प को भी तुत िकया गया ह िजसम च मा वै भी ह और योगी
भी।
शोध-आलोचना
डॉ. नमदा साद उपा याय
85, इिदरा गांधी नगर,
पुराने आर टी ओ क पास
कसरबाग रोड़,
इदौर 452005 म
मोबाइल - 9425092893
(िनबंध सं ह)
समपयािम
समी क : डॉ. नमदा साद
उपा याय
लेखक : डॉ. ग रमा संजय दुबे
काशक : िशवना काशन, स ाट
कॉ लै स बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
मोबाइल - 9806162184
ईमेल- shivna.prakashan@gmail.com
13. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 11
सव शु ता क शुभ का आ यान करने
वाला यह िनबंध अपनी वाहमान तथा सुंदर
भाषा िश प क रहते सहज और सं ेषणीय ह।
इस िनबंध म झरते पात का सौ दय भी ह
और उसक शु ता का िननाद भी। इस िनबंध
से लिलत िनबंधकार क मन क उस कलांच
का अनुमान लगाया जा सकता ह िजसका
उ ेख मने आरभ म िकया ह।
आम पर क त उनका िनबंध कह आम
को सामा य से जोड़ने क पहल ह िजसम वे
कहती ह िक, 'हमने तो आम से एक ही दशन
सीखा ह। अगर ख़ास होना ह तो आम हो
जाइए, िदल पर राज करने का बस यही एक
रा ता ह।'
चाँद को लेकर उनक क पना म कई
िब ब आते ह और ये िब ब ऐसे ह जो अनेक
उपादान को जोड़ते ए च मा को यंिजत
कर देते ह। उनक म चाँद हमारा सबसे
ाचीन िखलौना ह, िकसी भी ब े क आँख
म उभरने वाला पहला कौतुक।
एक िनबंध ह 'सुवणलता क इ छा'। यह
िनबंध एक िभ कित का िनबंध ह िजसम
कहानी क त व ह, ी िवमश भी। लेिकन
जब वे इस पा को यंिजत करती ह तो यह
यंजना एक सहज मनोवै ािनक न
उप थत करती ह। खुिशय क बात करते ए
वे कहती ह, भीतर क िवचलन क िचिक सा
या बाहर से संभव ह? वे आगे कहती ह,
'पहाड़ पर रहने वाला समंदर को देखने को
भागता ह, समंदर क क़रीब वाला रिग तान
क रत का मुरीद ह और रामे र वाले कदार
क ओर दौड़ते ह। पयटन तक तो बात समझ
म आती ह लेिकन उससे जीवन म खुशी आ
जाएगी या िक आपक भीतर क िवचलन संयत
हो जाएँगे यह नह कहा जा सकता।
इस कित म एक िनबंध ह, 'इन िदन सब
मुझसे बात करते ह'। यह एक आ मपरक
िनबंध ह िजसम वतमान कोरोना काल क
संबंध म जो अनुभूितयाँ ह उ ह य िकया
गया ह। च मे पर िलखा गया िनबंध 'अथः ी
ऐनक कथा', उनक वयं क आपबीती का
िच ण ह। इसम एक यंजक वा य ह,
'मा टस करते-करते च मा िकशोर हो गया
तब लड़क क उ इ क स वष थी।' इस
संवाद म यंजना का सहज अनुभव िकया जा
सकता ह। हम वयं च मा बनकर या
अनुभव कर सकते ह और िफर उस अनुभव
से अपने आपको कसे जोड़कर अपना
अनुभव य कर सकते ह यह देखने यो य
ह।
बुि क बार म अपने िनबंध 'बुि का
अितरक खुिशय का श ु' म वे कहती ह िक
बुि का भी आतंक होता ह जो खुिशय का
क़ ल कर देता ह। अफसोस िक खुिशय क
इस तरह सरआम क़ ल पर कोई खुशी आयोग
सि य नह ह।
इस सं ह म एक िदलच प फटसी ह
गौर या पर। िनबंध का शीषक ह, 'पृ वी का
भिव य और गौर या'। इसम एक थल पर वे
कहती ह, 'अगले िदन यूिज़यम म जाना तय
आ। मुझे हसी आई हम सब भी तो यूिज़यम
क चीज़ ह।'
जैसा िक मने संकत िकया ह उनक िनबंध
क िभ -िभ िवषय ह। एक सुंदर िनबंध ह
िजसका भाषा सौ व और िश प ब त
आक करता ह, वह ह अनलॉक िज़ दगी
पर। इसम उनका कथन ह, 'जीवन क आमद
ने, िजजीिवषा क उदाहरण ने आ त िकया
तो मृ यु क पंज ने डराया भी, लेिकन जीवन
च क वाभािवक म ने हम सां वना भी
दी। उड़ती िचिड़या क पंख कह रह थे कछ भी
लॉक नह ह, हाँ कवल हमारी अनाव यक
बाहरी दौड़ ठहरी थी, आपाधापी, भागम-भाग
पर िवराम लगा था। फल िखल रह थे, कित
गा रही थी, निदयाँ बह रही थ , बादल छाए,
अमलतास क झूमर और गुलमोहर क चटख
रग पर कौन सा लॉकडाउन था भला। सब
कछ अनलॉक ही था इसिलए ताले तो खुलने
ही थे।'
उनका एक िनबंध ह, 'िमल जा कह
समय से पर'। इसम वे कहती ह, 'कछ
धारणाएँ कभी भी बुि का िवषय न होकर
अनुभव का िवषय होती ह और वै ािनक प
से उसका कोई ठोस उ र नह होता। होता भी
ह तो वह जन सामा य को संतु नह कर
पाता। या पता योगशाला म सािबत
करने वाले वै ािनक को भी चिकत करता हो,
िक तु वे अपनी वै ािनकता क अहकार म ऐसे
िल रहते ह िक चम कार या कौतुक उनक
िलए होते ही नह । सच भी ह एक सामा य
इ सान क िलए सब चम कार और एक
वै ािनक क िलए सब िव ान।' यह कथन
एक सामा य य और एक वै ािनक सोच
वाले य क बीच क प िवभाजक रखा
ह। इस िनबंध म उ ह ने शू य, गु वाकषण
और तरग से लेकर टाइम मशीन तक क चचा
क ह। वे अतीत क उन घटना से
सा ा कार करना चाहती ह जो िविभ युग म
घिटत । वे अतीत क इन मह वपूण युग को
एक बार जीना चाहती ह। इसे नॉ ट जया
कहा जा सकता ह, लेिकन यह भी लगता ह
जैसे यह एक नवजागरण क िलए देखा जा रहा
व न भी हो।
एक िनबंध चेतना क आवागमन पर ह जो
माँ पर क त ह। इस िनबंध म वे पु ष और
ी क संबंध म उनक चेतना क ा ड क
ऊजा से जुड़ने को लेकर एक मह वपूण त य
रखांिकत करती ह। वे कहती ह िक ी इस
ा ड क ऊजा से दो बार जुड़ती ह। एक
बार तब जब वह ूण क प म होती ह और
एक बार तब जब वह माँ बनने क ि या म
होती ह। यह िनबंध उस आ या मक अनुभव
क उस तर से प रचय कराता ह जो अनुभव
सजना मकता का ोत ह।
उनका एक िनबंध िशव क नारीवादी होने
को लेकर क त ह। यह एक मह वपूण
िनबंध ह िजसम उ ह ने िशव व क आ मत व
को तुत िकया ह। वे िशव क िजन गुण क
अ यथना करती ह वा तव म वे गुण िशव को
नारी ग रमा क आिद अिध ाता क प म
ित त करते ह। उ ह ने इस िनबंध म िशव
य पित क प म सवािधक वीकाय ह यह
भी प िकया ह। वा तव म शंकर, राम और
क ण से िभ ह। राम क जीवन म िवराग नह
िववशता से उपजा िबछोह ह और क ण क
पास तो थरता ही नह ह वे तो अनुराग और
िवराग क बीच दोलायमान बने रहते ह। उनम
राग का चरम ह, अनुराग का भी और िवराग
का भी। शंकर म िवराग का परम उ कष ह
14. 12
çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 2023
इसीिलए अनुराग क चरम अिभ य ह और
अनुराग का यह वाह इतना अिवरल ह िक
वह िशव और पावती क आदश दा प य क
सृ करता ह और इसीिलए कािलदास कहते
ह िक वे वाणी और अथ क तरह अिभ ह।
अ नारी र व प क यंजना यही ह िक
अनुराग तभी अनुराग ह जब उसम पु ष और
कित दोन क बराबर सहभािगता हो।
अनुराग अपनी िच मय अ मता म एकाक
कहाँ होता ह ? हो भी नह सकता। िशव और
पावती क दा प य को उ ह ने इस िनबंध म
सुंदर िव तार िदया ह।
राम और सीता को लेकर भी उ ह ने एक
िनबंध रचा ह, 'राम सीता क बाद और शेष
या ?' इसम रामायण क बार म उनका कथन
ह िक रामायण पु षाथ, धम, अथ, काम,
मो क मयादा, मनु य जीवन क सू ,
भारतीय पर परा क मौिलक मू य, अिहसा,
शांित, स ावना, च र , मयादा, ेम, याय,
याग, तप या, चय क मह व को पुनः
ित त करती ह। वा तव म राम अिवराम
ह। वे हमार जीवन वाह म िनरतर बहते ह
और िजन गुण का रामायण क संदभ म
ग रमाजी उ ेख करती ह व तुतः उन गुण
क ित ा ही राम व का पयाय ह।
िवसजन क मांगिलक प पर भी उनका
िनबंध ह, 'िवसजन मांगिलक हो'। इसम वे
कहती ह िक 'भारतीय धम म समापन क
जगह िवसजन श द का योग िकया जाता ह
य िक शा त स ा म समापन जैसा कछ ह
ही नह ।' िवसजन उसी तरह ह जैसे राग क
आगे िव संयु हो तो वह िवराग हो जाता ह।
सजन या सृजन ही िवसजन क मूल म ह।
इसिलए िवसजन का आशय कह सृजन का
समापन नह ह ब क वह पुनः सृजन क प
म कट होने क उ ावना ह।
सं ह म एक िनबंध क ण पर ह, 'क णम
व दे जग गु म'। इसम वे सच कहती ह िक
क ण भारत क ा ह, मेधा ह, उनका
स पूण जीवन ही एक पाठशाला ह। क ण क
बार म ब त िव तार से िलखा और पढ़ा गया
ह। उनक जैसा िनराला और ब आयामी च र
हमारी पर परा म इकलौता ह। वे िवरोध क
ए य ह। अ ुत ह क ण। डॉ. राममनोहर
लोिहया ने िलखा था िक राम क पीछ चलने
का मन होता ह लेिकन क ण को यार करने
क िववशता होती ह। यह इस देश क वभाव
म ह, और जहाँ यार करने क िववशता ह वह
िववशता व तु नह भाव ह इसिलए
िव ािनवासजी इितहासपु ष क ण को
भावपु ष कहते ह। क ण का अथ अनेक
कार से कट िकया जाता ह। वह िजसका
वभाव आक करने का हो, वह जो हरी भरी
फसल क तरह यामल हो, वह जो काश क
सघन क िब दु होने क करण आँख को न
िदखाई दे और इसिलए याम हो और वह
िजसका अथ हो ख चना, धरती म बीज वहन
करने क मता उ प करना, वह जो थित
और गित दोन को ख चने म समथ हो, वह जो
तमाम आवरण और अिभमान को नकार दे
और वह जो सबसे अिधक आ मीय भी हो
और सबसे अिधक इस आ मीयता क बंधन
का भंजक भी। क ण क उप थित और
अनुप थित क अनेक भाव भागवत से लेकर
गीतगोिव द तक म विणत ह। वे सोलह
कला वाले पूणतर पु ष ह। क ण सबक
िलए अपने व का िवजसन करने का पयाय
ह।
इसिलए क ण पर िजतना भी सोच या
िलख वह अधूरा ही होगा य िक क ण वयं
अधूरपन का ही पयाय ह भले वे सोलह
कला वाले पूण पु ष ह । वे राधा जैसी
अिभलाषा क िचरअिभलाषा करने वाले ऐसे
मानव ह िज ह हम ई र कह देते ह। क ण क
साथ ही साथ उ ह ने राम का भी मरण अपने
िनबंध 'िवरह तप जब फले' म िकया ह। यह
िनबंध रामच रतमानस पर ह िजसे वह िवरह
ंथ कहती ह। इसम उ ह ने राम क िवरह प
को बड़ सुंदर प म यंिजत िकया ह। जैसा
िक मने पूव म क ण क संबंध म उ ेख
िकया वैसे ही राम क बार म भी िव तार से
ब त िलखा और पढ़ा गया ह और रामच रत
मानस वह ंथ ह जो राम क य व और
कित व को सम ता म बड़ स े णीय प म
हमार सम तुत करता ह और यह तुलसी
का ही चम कार ह िक वे लोकातीत सौ दय से
लेकर लोकातीत मनोदशा तक को भाषा म
बाँध देते ह। उनका यास लोक को राममय
बनाने का ह और राममय बनाने का अथ लोक
को मंगलमय बनाना ह। अपने िनबंध म वे राम
क िजस प का आ यात करती ह वह राम क
च र का एक मह वपूण प ह।
अ यंग जैसी थूल ि या ारा अभंग का
संधान करने वाला िनबंध अपने आप म अनूठा
ह और एक बार पुनः आ या मक भाव भूिम
पर लिलत िनबंध क सृजन का मनोहारी
उदाहरण ह, यह अदभूत जानकारी परक
िनबंध भी ह। सावन का रोचक वणन ह तो,
बसंत पर िलखे िनबंध म उ ह ने बसंत, नारी
िदवस व महािशवराि क संगम से ब त सुंदर
य ख चे ह, िशव क क याण व प, ी
अ मता व देवी सर वती क आ ान क साथ
बसंत ऋतु का सौ दय वणन पाठक को
अलौिकक अनुभूित देता ह। सम ता म ये
िनबंध िविवधता से भरपूर ह जो इस कित क
िनबंध क िवशेषता ह।
जैसे हर एक फल का रग, प, गंध और
आकार अलग-अलग होता ह तथा एकािकता
म उसक पहचान भी एक अलग सं ा होती ह
लेिकन जब ऐसे फल एक साथ उपवन म
िखलते ह तो उनक सं ा पाटल, जूही, मोगरा,
च पा या मौल ी नह होती, उपवन हो जाती
ह। उसी तरह इस कित म ये िनबंध पु प
िखलकर श द उपवन हो गए ह। समपयािम
इस िनबंध सं ह का शीषक मेरी इस बात को
स य सािबत करता ह िक इन गठ रय म िभ
िभ भाव क ित समपण क महक
उप थत ह।
पहचान उ स से नह बनती, वाहमान
या ा से बनती ह। गंगो ी क गोमुख से और
अमरकटक क नमदा क ड से फटने वाली
जलधार गंगा या रवा नह ह वह इस फटने
वाली जलधार क वाहमान या ा ही ह जो
गंगा और रवा क सं ा से गंगो ी और
नमदा क ड को िवभूिषत कर देती ह।
इन िनबंध को पढ़कर मुझे लगा जैसे एक
या ा आरभ ई और इस या ा क कारण
इसक या ी को पहचान िमली।
000
15. çàæßÙæ âæçãUçˆØ·¤è जुलाई-िसत बर 13
कलाश मंडलेकर
15-16, क णपुरम कॉलोनी, जेल रोड,
माता चौक खंडवा म. . 450001
मोबाइल- 9425085085, 9425086855
ईमेल- kailash.mandlekar@gmail.com
रखा भािटया
9305 Linden Tree Lane, Charlotte,
North Carolina -28277, U.S.A.
मोबाइल - 704-975-4898
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डॉ. सीमा शमा
शा ीनगर, मेरठ, उ. . - 250004
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ईमेल- sseema561@gmail.com
पंकज सोनी
आयांश, 172, साकार िसटी, अ बेडकर
वाड, मंगली पेठ, िसवनी, 480661 म
मोबाइल- 8226030402
ईमेल- pankajsoni20052001@gmail.com
क म पु तक
(उप यास)
दादे-सफ़र
समी क : कलाश मंडलेकर, रखा
भािटया, डॉ.सीमा शमा, पंकज सोनी
लेखक : पंकज सुबीर
काशक : िशवना काशन, स ाट
कॉ लै स बेसमट, सीहोर, म
466001, फ़ोन-07562405545
दाद-
े सफ़र - देहदान क अंतकथा
कलाश मंडलेकर
पंकज सुबीर हमार आसपास क कथाकार ह। उनक कथा संसार म र त क सघन ताने बाने
और आपसदारी क महक ह। उनक औप यािसकता म न तो महानगरीय सं ास िदखाई देता ह
और न वे मंगल ह से जुड़ी कोई अबूझ फटसी साधते ह। वे हद दज क लोकल ह। उनक पा
अ सर हमार इद िगद देवास, क ोद अथवा बैतूल क बािशंदे ह जो िकसी भी हाट बाज़ार म
झोला लटकाए स जी खरीदते ए नमूदार हो सकते ह। च िकए नह , कभी आप भी उनक कथा
क िकरदार हो सकते ह। पंकज सुबीर से सावधान रहने क ज़ रत ह। यिद आपने उनक पहले
उप यास "अकाल म उ सव" से लेकर " दादे-सफ़र" तक क औप यािसक फलक को देखा
ह तो इस बात क ताईद करनी होगी िक पंकज क कथा भूिम का िव तार सीहोर से भोपाल तक
लगभग 30 से 40 िकलोमीटर क ए रये म श त ह। दरअसल एक जेनुइन और समयिस
रचनाकार को सीमा और दायर क परवाह नह होती। वह गली कच म भी अपने पा ढढ़
लेता ह जहाँ म यिव प रसर म असं य कथानक िबखर होते ह। अपने अंचल क लोग क
ित यह ेम, स मोहन और आश पंकज को एक बड़ कथाकार क हिसयत दान करती ह,
और यिद न भी कर तो उ ह इस बात क परवाह नह ह। वे नेमावर क घाट पर पट क पाय
ँ चे
चढ़ाकर नमदा क उथले जल म चु ू से पानी पीते ए पूरी तरह तृ हो सकते ह और अपने
पाठक को भी इस तृ का एहसास िदला सकते ह। पंकज क कथा कौशल म थािनकता का
यह आ ह, "आंचिलकता" क पारप रक मुहावर क यामोह का बायस नह ह, ब क इसक
पीछ एक ईमानदार कथाकार का नेचुरल क फट ह जो अपनी जानी बूझी जगह और च र क
आचरण और मनो यवहार का आ यान रचता ह।
" दादे-सफ़र" पंकज सुबीर क नई औप यािसक कित ह। दादे-सफ़र का मूल
कथानक य तो देहदान पर क त ह पर रचना का औप यािसक फ़लक अपने भीतर अनेक
उपकथाएँ सज
ँ ोये ए ह। भारतीय समाज म म य िव प रवार म माता िपता और संतान क बीच
र त क महीन बुनावट, इस कथा म एक ऐसे भा य को रचती ह जो वतमान दौर क सामािजक
टटन क बरअ स ेम और वा स य तथा बंधन और मु जैसे मू य क थापना क िलए
किटब ह। कथा का समूचा ताना बाना इस तरह बुना गया ह िक सार पा सजीव लगते ह और
पढ़ने वाले को लगता ह, मान वह सामने न पर सब कछ घिटत होते ए देख रहा ह।
कितपय थल पर भावुक कर देने वाले संग भी आते ह जो आँख गीली कर जाते ह। िफ शन
को यथाथ म त दील कर देने वाली इस भाषा और िव यास पर चिकत आ जा सकता ह। पर
यह कथा िसफ च काने भर क िलए नह ह, इसम य और समाज का वह चेहरा भी िदखाई
देता ह जो इधर सोशल मीिडया क चार तं से भािवत ह। दरअसल, देहदान क संदभ म
भारतीय च र क एक ख़ािसयत यह भी ह िक वह य तो देह क न रता का राग सिदय से
अलापता रहा ह और अ सर देहदान क सावजिनक तौर पर घोषणा भी कर डालता ह पर मृ यु