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नाटक
 परिभाषा- आचार्य धनंजर् ने नाटक की परिभाषा इस प्रकाि बताई है- अवस्था की
अनुकृ तत नाटक है, र्ह परिभाषा सातकय है, व्र्वारिक औि उपर्ोगी है।
 नाटक की गिनती काव्यों में है। काव्य दो प्रकार के माने िये हैं— श्रव्य और दृश्य। इसी
दृश्य काव्य का एक भेद नाटक माना िया है।
 जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीीं अपितु दृष्टट द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूतत
कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं।
Hint – (It is need to make own definition in a short with help of these lines)
नाटक के प्रमुख तत्व ( Main first 3)
 कथावस्तु
कथावस्तु को ‘नाटक’ ही कहा जाता है अंग्रेजी में इसे ‘प्लॉट’ की संज्ञा दी जाती है जजसका
अथय आधाि र्ा भूमम
वास्तव में नाटक को अपनी कथावस्तु की र्ोजना में पात्रों औि घटनाओं में इस रुप में
संगतत बैठानी होती है कक पात्र कार्य व्र्ापाि को अच्छे ढंग से अमभव्र्क्त कि सके ।
 िात्र
नाटक में नाटक का अपने ववचािों , भावों आदद का प्रततपादन पात्रों के माध्र्म से ही किना
होता है। अतः नाटक में पात्रों का ववशेष स्थान होता है। प्रमुख पात्र अथवा नार्क कला का
अधधकािी होता है तथा समाज को उधचत दशा तक ले जाने वाला होता है।
पात्रों का सजीव औि प्रभावशाली चरित्र ही नाटक की जान होता है।
 अभभनय
र्ह नाटक की प्रमुख ववशेषता है। नाटक को नाटक के तत्व प्रदान किने का श्रेर्
इसी को है।
- Others
1- उद्देश्य
सामाजजक के हृदर् में िक्त का संचाि किना ही नाटक का उद्देश्र् होता है। नाटक के
अन्र् तत्व इस उद्देश्र् के साधन मात्र होते हैं। भाितीर् दृजटटकोण सदा आशावादी िहा है
इसमलए संस्कृ त के प्रार्ः सभी नाटक सुखांत िहे हैं।
(पजश्चम नाटककािों ने र्ा सादहत्र्कािों ने सादहत्र् को जीवन की व्र्ाख्र्ा मानते हु ए
उसके प्रतत र्थाथय दृजटटकोण अपनार्ा है उसके प्रभाव से हमािे र्हां भी कई नाटक
दुखांत में मलखे गए हैं , ककं तु सत्र् है कक उदास पात्रों के दुखांत अंत से मन ्खन्न हो
जाता है। अतः दुखांत नाटको का प्रचाि कम होना चादहए।)
2- भाषा र्ैली
नाटक सवयसाधािण की वस्तु है अतः उसकी भाषा शैली सिल , स्पटट औि सुबोध होनी
चादहए
(जजससे नाटक में प्रभाववकता का समावेश हो सके तथा दशयक को जक्लटट भाषा के कािण
बौद्धधक श्रम ना किना पडे अन्र्था िस की अनुभूतत में बाधा पहु ंचेगी। अतः नाटक की
भाषा सिल व स्पटट रूप में प्रवादहत होनी चादहए।)
3- सींवाद
नाटक में नाटकाि के पास अपनी औि से कहने का अवकाश नहीं िहता। वह संवादों
द्वािा ही वस्तु का उद्घाटन तथा पात्रों के चरित्र का ववकास किता है। अतः इसके संवाद
सिल , सुबोध , स्वभाववक तथा पात्रअनुकू ल होने चादहए।
4- रस
नाटक में नविसों में से आठ का ही परिपाक होता है। शांत िस नाटक के मलए
तनवषद्ध माना गर्ा है। वीि र्ा शृंगाि में से कोई एक नाटक का प्रधान िस होता है।
5- देर्काल वातावरण
इसके अंतगयत पात्रों की वेशभूषा तत्कामलक धाममयक , िाजनीततक , सामाजजक परिजस्थततर्ों
में र्ुग का ववशेष स्थान है। अतः नाटक के तत्वों में देशकाल वाताविण का अपना
महत्व है।
(Types of Play/ Drama)
 काव्र् नाटक- काव्र्-नाट्र्, नाटक औि काव्र् की एक ममली-जुली ववधा है। इसमें काव्र्
औि नाटक दोनों के तत्वों का समन्वर् िहता है.
 एकांकी- एक अंक वाले नाटकों को एकांकी कहते हैं।
 तमाश-तमाशा महािाटर का प्रमसध्द लोकनाटक है। श्रेणी:महािाटर के लोक नृत्र्
 नौटंकी- नौटंकी (Nautanki) उत्ति भाित, पाककस्तान औि नेपाल के एक लोक नृत्र् औि
नाटक शैली का नाम है।
 िाम लीला- िामलीला का एक दृश्र्। िामलीला उत्तिी भाित में पिम्पिागत रूप से खेला
जाने वाला िाम के चरित पि आधारित नाटक है। र्ह प्रार्ः ववजर्ादशमी के अवसि पि
खेला जाता है। .
 िासलीला- िासलीला र्ा कृ टणलीला में र्ुवा औि बालक कृ टण की गततववधधर्ों का मंचन
होता है
दहन्दी नाटक
दहंदी में नाटकों का प्रािंभ भाितेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। (उस काल के भाितेन्दु तथा उनके समकालीन
नाटककािों ने लोक चेतना के ववकास के मलए नाटकों की िचना की इसमलए उस समर् की सामाजजक
समस्र्ाओ ं को नाटकों में अमभव्र्क्त होने का अच्छा अवसि ममला।)
लोकनाट्र्
संस्कृ त नाटकों का र्ुग ढलने लगा तब चौदहवीं शताब्दी से उन्नीसवी शताब्दी तक उनका स्थान ववमभन्न
भाितीर् भाषाओ ं में लोक नाटकों (folk theatre) ने मलर्ा।
आज अलग-अलग प्रदेशों में लोक नाटक मभन्न-मभन्न नामों से जाना जाता है।
 रामलीला - उत्तिी भाित में
 जात्रा - बंगाल, उडीसा, पूवी बबहाि
 'तमार्ा' - महािाटर
 नौटींकी - उत्ति प्रदेश, िाजस्थान, पंजाब
 भवई - गुजिात
 यक्षिान - कणायटक
 थेरुबुट्टू - तममलनाडु
 नाचा – छत्तीसगढ
नाटक का इततहास
 प्राचीन काल-
भाित में अमभनर्-कला औि िंगमंच का वैददक काल में ही तनमायण हो चुका था। तत्पश्चात ् संस्कृ त िंगमंच तो
अपनी उन्नतत की पिाकाटठा पि पहुुँच गर्ा था-भित मुतन का नाट्र्शास्त्र इसका प्रमाण है।
 मध्र्काल
- में प्रादेमशक भाषाओ ं में लोकतंत्र का उदर् हुआ। र्ह ववधचत्र संर्ोग है कक मुजस्लमकाल में जहाुँ शासकों
की धमयकट्टिता ने भाित की सादहजत्र्क िंग-पिम्पिा को तोड डाला वहाुँ लोकभाषाओ ं में लोकमंच का
अच्छा प्रसाि
 आधुतनक काल
- में अंग्रेजी िाज्र् की स्थापना के साथ िंगमंच को प्रोत्साहन ममला। फलत: समूचे भाित में व्र्ावसातर्क
नाटक मंडमलर्ाुँ स्थावपत
- (दहन्दी िंगमंचीर् सादहजत्र्क नाटकों में सबसे पहला दहन्दी गीततनाट्र् अमानत कृ त ‘इंदि सभा’ कहा
जा सकता है जो सन ् 1853 ई. में लखनऊ के नवाब वाजजद अलीशाह के दिबाि में खेला गर्ा था।
इसमें उदूय-शैली का वैसा ही प्रर्ोग था जैसा पािसी नाटक मंडमलर्ों ने अपने नाटकों में अपनार्ा। सन ्
1862 ई. में काशी में ‘जानकी मंगल’ नामक ववशुद्ध दहन्दी नाटक खेला गर्ा था।)

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  • 1. नाटक  परिभाषा- आचार्य धनंजर् ने नाटक की परिभाषा इस प्रकाि बताई है- अवस्था की अनुकृ तत नाटक है, र्ह परिभाषा सातकय है, व्र्वारिक औि उपर्ोगी है।  नाटक की गिनती काव्यों में है। काव्य दो प्रकार के माने िये हैं— श्रव्य और दृश्य। इसी दृश्य काव्य का एक भेद नाटक माना िया है।  जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीीं अपितु दृष्टट द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूतत कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। Hint – (It is need to make own definition in a short with help of these lines) नाटक के प्रमुख तत्व ( Main first 3)  कथावस्तु कथावस्तु को ‘नाटक’ ही कहा जाता है अंग्रेजी में इसे ‘प्लॉट’ की संज्ञा दी जाती है जजसका अथय आधाि र्ा भूमम वास्तव में नाटक को अपनी कथावस्तु की र्ोजना में पात्रों औि घटनाओं में इस रुप में संगतत बैठानी होती है कक पात्र कार्य व्र्ापाि को अच्छे ढंग से अमभव्र्क्त कि सके ।  िात्र नाटक में नाटक का अपने ववचािों , भावों आदद का प्रततपादन पात्रों के माध्र्म से ही किना होता है। अतः नाटक में पात्रों का ववशेष स्थान होता है। प्रमुख पात्र अथवा नार्क कला का अधधकािी होता है तथा समाज को उधचत दशा तक ले जाने वाला होता है। पात्रों का सजीव औि प्रभावशाली चरित्र ही नाटक की जान होता है।  अभभनय र्ह नाटक की प्रमुख ववशेषता है। नाटक को नाटक के तत्व प्रदान किने का श्रेर् इसी को है। - Others 1- उद्देश्य सामाजजक के हृदर् में िक्त का संचाि किना ही नाटक का उद्देश्र् होता है। नाटक के अन्र् तत्व इस उद्देश्र् के साधन मात्र होते हैं। भाितीर् दृजटटकोण सदा आशावादी िहा है इसमलए संस्कृ त के प्रार्ः सभी नाटक सुखांत िहे हैं।
  • 2. (पजश्चम नाटककािों ने र्ा सादहत्र्कािों ने सादहत्र् को जीवन की व्र्ाख्र्ा मानते हु ए उसके प्रतत र्थाथय दृजटटकोण अपनार्ा है उसके प्रभाव से हमािे र्हां भी कई नाटक दुखांत में मलखे गए हैं , ककं तु सत्र् है कक उदास पात्रों के दुखांत अंत से मन ्खन्न हो जाता है। अतः दुखांत नाटको का प्रचाि कम होना चादहए।) 2- भाषा र्ैली नाटक सवयसाधािण की वस्तु है अतः उसकी भाषा शैली सिल , स्पटट औि सुबोध होनी चादहए (जजससे नाटक में प्रभाववकता का समावेश हो सके तथा दशयक को जक्लटट भाषा के कािण बौद्धधक श्रम ना किना पडे अन्र्था िस की अनुभूतत में बाधा पहु ंचेगी। अतः नाटक की भाषा सिल व स्पटट रूप में प्रवादहत होनी चादहए।) 3- सींवाद नाटक में नाटकाि के पास अपनी औि से कहने का अवकाश नहीं िहता। वह संवादों द्वािा ही वस्तु का उद्घाटन तथा पात्रों के चरित्र का ववकास किता है। अतः इसके संवाद सिल , सुबोध , स्वभाववक तथा पात्रअनुकू ल होने चादहए। 4- रस नाटक में नविसों में से आठ का ही परिपाक होता है। शांत िस नाटक के मलए तनवषद्ध माना गर्ा है। वीि र्ा शृंगाि में से कोई एक नाटक का प्रधान िस होता है। 5- देर्काल वातावरण इसके अंतगयत पात्रों की वेशभूषा तत्कामलक धाममयक , िाजनीततक , सामाजजक परिजस्थततर्ों में र्ुग का ववशेष स्थान है। अतः नाटक के तत्वों में देशकाल वाताविण का अपना महत्व है। (Types of Play/ Drama)  काव्र् नाटक- काव्र्-नाट्र्, नाटक औि काव्र् की एक ममली-जुली ववधा है। इसमें काव्र् औि नाटक दोनों के तत्वों का समन्वर् िहता है.  एकांकी- एक अंक वाले नाटकों को एकांकी कहते हैं।  तमाश-तमाशा महािाटर का प्रमसध्द लोकनाटक है। श्रेणी:महािाटर के लोक नृत्र्  नौटंकी- नौटंकी (Nautanki) उत्ति भाित, पाककस्तान औि नेपाल के एक लोक नृत्र् औि नाटक शैली का नाम है।
  • 3.  िाम लीला- िामलीला का एक दृश्र्। िामलीला उत्तिी भाित में पिम्पिागत रूप से खेला जाने वाला िाम के चरित पि आधारित नाटक है। र्ह प्रार्ः ववजर्ादशमी के अवसि पि खेला जाता है। .  िासलीला- िासलीला र्ा कृ टणलीला में र्ुवा औि बालक कृ टण की गततववधधर्ों का मंचन होता है दहन्दी नाटक दहंदी में नाटकों का प्रािंभ भाितेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। (उस काल के भाितेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककािों ने लोक चेतना के ववकास के मलए नाटकों की िचना की इसमलए उस समर् की सामाजजक समस्र्ाओ ं को नाटकों में अमभव्र्क्त होने का अच्छा अवसि ममला।) लोकनाट्र् संस्कृ त नाटकों का र्ुग ढलने लगा तब चौदहवीं शताब्दी से उन्नीसवी शताब्दी तक उनका स्थान ववमभन्न भाितीर् भाषाओ ं में लोक नाटकों (folk theatre) ने मलर्ा। आज अलग-अलग प्रदेशों में लोक नाटक मभन्न-मभन्न नामों से जाना जाता है।  रामलीला - उत्तिी भाित में  जात्रा - बंगाल, उडीसा, पूवी बबहाि  'तमार्ा' - महािाटर  नौटींकी - उत्ति प्रदेश, िाजस्थान, पंजाब  भवई - गुजिात  यक्षिान - कणायटक  थेरुबुट्टू - तममलनाडु  नाचा – छत्तीसगढ नाटक का इततहास  प्राचीन काल- भाित में अमभनर्-कला औि िंगमंच का वैददक काल में ही तनमायण हो चुका था। तत्पश्चात ् संस्कृ त िंगमंच तो अपनी उन्नतत की पिाकाटठा पि पहुुँच गर्ा था-भित मुतन का नाट्र्शास्त्र इसका प्रमाण है।  मध्र्काल
  • 4. - में प्रादेमशक भाषाओ ं में लोकतंत्र का उदर् हुआ। र्ह ववधचत्र संर्ोग है कक मुजस्लमकाल में जहाुँ शासकों की धमयकट्टिता ने भाित की सादहजत्र्क िंग-पिम्पिा को तोड डाला वहाुँ लोकभाषाओ ं में लोकमंच का अच्छा प्रसाि  आधुतनक काल - में अंग्रेजी िाज्र् की स्थापना के साथ िंगमंच को प्रोत्साहन ममला। फलत: समूचे भाित में व्र्ावसातर्क नाटक मंडमलर्ाुँ स्थावपत - (दहन्दी िंगमंचीर् सादहजत्र्क नाटकों में सबसे पहला दहन्दी गीततनाट्र् अमानत कृ त ‘इंदि सभा’ कहा जा सकता है जो सन ् 1853 ई. में लखनऊ के नवाब वाजजद अलीशाह के दिबाि में खेला गर्ा था। इसमें उदूय-शैली का वैसा ही प्रर्ोग था जैसा पािसी नाटक मंडमलर्ों ने अपने नाटकों में अपनार्ा। सन ् 1862 ई. में काशी में ‘जानकी मंगल’ नामक ववशुद्ध दहन्दी नाटक खेला गर्ा था।)