3. जिस प्रकार एक सुन्दरी
विभिन्न आिूषणों द्िारा अपने शरीर
को सिाती है, उसी प्रकार कवि िी
अपनी कविता को विविध शब्द ि
अर्थ योिनाओं से सिाता है। िे
सुसजजित शब्द ि अर्थ योिनाएँ ही
काव्य में अलंकार कहलाती हैं।
4. राम नाम मनन द्िीप
बरू िीह-देहरी द्िार।
माटी कहे कु म्हार से, तू
क्या रोंदे मोय।
एक ददन ऐसा आएगा, मैं
रोंदोंगी तोय।।
5. पायो जी मैंने राम
रतन धन पायो।
ककतनी करुणा ककतने संदेश।
पर् में बबछ िाते बन पराग।।
7. अलंकार के दो िेद हैं
१. शब्द अलंकार
२. अर्थ अलंकार
8. शब्दालंकर
शब्दालिंकर शब्द द्वारा काव्य
में चमत्कार उत्पन्न करते ैं। यहद
जजस शब्द द्वारा चमत्कार उत्पन्न
ो र ा ै, उसे टाकर अन्य समान
शब्द व ााँ रख हदया जाए, तो व ााँ
अलिंकार न ीिं र ता।
10. 1. अनुप्रास
* ज ााँ व्यिंजनों की आवृत्ति ध्वनन-
सौंदयय को बढाए, व ााँ अनुप्रास
अलिंकार ोता ै। व्यिंजनों की आवृत्ति
एक त्तवशेष क्रम से ोनी चाह ए।
सौंदयय-वधयक व्यिंजन शब्दों के प्रारिंभ
, मध्य, या अिंत में आने चाह ए।
11. उदाहरण
1. मोहन की मधुर मुरली
मेरे मन मयूर को मस्त
करती है।
2. चारू चंद्र की चंचल
ककरणें खेल रही हैं िल
र्ल में।
इस काव्य में ‘म’ की आिृवि
बार-बार हुई हैं।
इस काव्य में ‘च,ल’ की
आिृवि बार-बार हुई हैं।
12. 2.यमक
ज ााँ पर एक शब्द की
बार-बार आवृत्ति ोती ै और
उतनी ी बार उसका अर्य
अलग- अलग ोता ै, व ााँ
यमक अलिंकार ोता ै।
13. उदाहरण
काली घटा का घमंड घटा।
इस दोहें में प्रर्म घटा का अर्थ हैं काले
बादल
और दूसरे घटा क अर्थ हैं कम होना।
14. श्लेष
िहाँ एक ही शब्द के
द्िारा एक से अधधक
अर्थ का बोध हो, िहाँ
श्लेष अलंकर होता है।
15. इस काव्य मे पानी के तीन अर्थ है
1.समान्य िल
2.मोती की चमक
3.मनुष्य का सम्मान
16. अर्ाथलंकार
अर्ाथलंकार में सौंदयथ 'िाि' से
संबंधधत होता है, 'शब्द्' से नहीं।
अर्ाथलंकार चमत्प्कार की बिाय िाि
की अनुिूनत में तीव्रता लाते हैं
अर्िा िाि संबंधी चमत्प्कार
उत्प्पन्न करते हैं।
19. उपमा
िहाँ पर दो िस्तुओं की
तुलना उनके रुप, रंग ि
गुण के अनुसार की िाए
उसको उपमा अलंकार कहते
हैं।
20. चाँद सा सुन्दर मुख'
'
उपमेय ‘मुख’
उपमान ‘चाँद’
साधारण धमथ ‘सुंदर’
िाचक शब्द ‘सा’
21. जह ाँ उपमेय पर उपम न क आरोप
ककय ज य,वह ाँ रूपक अलंक र होत है
, य नी उपमेय और उपम न में कोई
अन्तर न किख ई पडे ।
2.रूपक अलंकार
22. पायो जी मैंने राम
रतन धन पायो।
मीरा ने प्रिु राम को आत्प्मा
से अपने िीिन मे रतन रूपी
धन माना है
23. बीती वििािरी िागरी
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा-नागरी।
प्रातः काल के समय आकाश की
छाया पनघट में ददखाई देती हैं।
24. जह ाँ उपमेय को ही उपम न म न
कलय ज त है य नी अप्रस्तुत को
प्रस्तुत म नकर वर्णन ककय ज त है।
वह उत्प्प्रेक्ष अलंक र होत है। यह ाँ
किन्नत में अकिन्नत किख ई ज ती है।
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
25. कहती हुई यों उिरा के
,नेत्र िल से िर गए।
दहम के कणों से पूणथ
मानो ,हो गए पंकि नए।।
आँसू से िरे उिरा के नेत्र मानो ओस िरे कमल लग रहे
हैं।
26. िहाँ ककसी अचेतन
िस्तु को मानि की तरह
गनतविधध करता ददखाया
िाए ,िहाँ मानिीकरण
अलंकार होता है।
27. मेघ आए बड़े बन-ठन
के सँिर के ।
इस काव्य मे मेघों को मनुष्य
की तरह सिे संिरे कहाँ गया
है।
28. ददिसािसन का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या-सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।
इस काव्य मे संध्या के समय के डूबते सूरि की
तुलना आकाश से उतरती परी से की है।