http://spiritualworld.co.in एक तपस्वी का भ्रम दूर करना:
श्री गुरु रामदास जी प्रभु प्यार में सदैव मगन रहते| अनेकों ही सिख आप जी से नामदान लेकर गुरु-२ जपते थे|गुरु सिखी कि ऐसी रीति देख कर एक इर्शालु तपस्वी आपके पास आया| गुरु जी ने उसे सत्कार देकर अपने पास बिठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी किस तरह आए हो? तपस्वी ने कहा मैंने सारे धर्मों के भक्तों को देखा है, तीर्थों कि यात्रा करते हुए भी बहुत लोग देखे हैं परन्तु आपके सिखो जैसा मैंने कोई अभिमानी नहीं देखा| क्योंकि यह ओर किसी मत के साधु सन्त को नहीं मानते और ना ही यह वेद शास्त्रों की शुभ रीति को ग्रहण करते हैं| आपके सिख तो केवल आपको और आपकी बाणी को ही मानते हैं और पूजा भी करते हैं|
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2. श्री गुर रामदास जी प्रभु प्यार मे सदैव मगन रहते|
अनेको ही िसख आप जी से नामदान लेकर गुर-२ जपते
थे|गुर िसखी िक ऐसी रीित देख कर एक इर्शार्शालु तपस्वी
आपके पास आया| गुर जी ने उसे सत्कार देकर अपने
पास िबिठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी िकस तरह
आए हो? तपस्वी ने कहा मैंने सारे धर्मो के भक्तो को
देखा है, तीथो िक यात्रा करते हुए भी बिहुत लोग देखे हैं
परन्तु आपके िसखो जैसा मैंने कोई अिभमानी नही देखा|
क्योिक यह ओर िकसी मत के साधर्ु सन्त को नही मानते
और ना ही यह वेद शास्त्रो की शुभ रीित को ग्रहण करते
हैं| आपके िसख तो केवल आपको और आपकी बिाणी को
ही मानते हैं और पूजा भी करते हैं| इर्स प्रकार वेद बिाणी
का त्याग करके इर्नका उद्धार िकस तरह होगा?
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3. गुर जी ने पूछा तपस्वी जी! तीथ र स्नान व वेद बाणी के
पाठ का क्या फल होता है? तपस्वी ने कहा इनका फल
बहुत बड़ा है| तीथ र स्नान से सभी पाप नष हो जाते है
और अन्तिम न्तम समय स्वगर की प्रािम प होती है| अन्तगर बात
करे वेदो की तो वेदो के पाठ से आत्मज्ञान की प्रािम प होती
है| गुर जी ने कहा तपस्वी जी! हमारे िम सख संगतो की
सेवा करके जो सुख प्राप करते है वह आपको भी प्राप
नही होता| आपने मूल तत्व की पहचान नही की और
अन्तपनी सारी आयु तीथ र स्नान और वेद पाठ के झूठे
अन्तहंकार मे लगा दी| यह अन्तहंकार गुर के िम मलने से ही दूर
होता है| तपस्वी ने आगे से िफर कहा जब तीथ र स्नान की
मिम हमा को सब ऋषिम ष मुिम नयो ने उत्तम माना है और आप
इसको तुच्छ और साधु संगत की मिम हमा को बड़ा िकस
तरह कहते हो?
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4. इस प्रथ ाए गुर रामदास जी ने इस शब्द का उच्चारण
िकया:
मलार महला ४||
गंगा जमुना गोदावरी सरसुती ते करिम ह उदमु धुिर साधु
की ताई ||
िकलिम वख मैलु भरे परे हमरै िम विम च हमरी मैलु साधू की
धूिर गवाई ||१||
तीरिम थ अन्तठसिठ मजनु नाई ||
सिम त संगिम त की धूिर परी उिम ड नेत्री सभ दुरमिम त मैलु
गवाई ||१|| रहाउ ||
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5. जा हरनवी तपै भागीरिथ आणी केदार थािपओ महसाई
||
कांसी क्रीसनु चरावत् गाऊ िमिल हिर जन सोभा पाई||
२||
िजतने तीरथ देवी थापे सिभ िततने लोचिह धूरिर साधूर
की ताई||
हिर का संतु िमलै गुर साधूर लै ितसकी धूरिर मुिख लाई ||
३||
िजतनी सृसिट तुमरी मेरे सुआमी सभ िततनी लोचै धूरिर
साधूर को ताई||
नानक िललािट होवै िजसु िलिखआ साधूर धूरिर दे पािर
लंघाई ||४||२||
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6. इस शब्द के भाव समझकर तपस्वी ने कहा मेरा
सौभाग्य है जो मैंने आपके वचन सुने हैं मेरा भ्रम
दूरर हो गया है| इसके उपरांत गुर जी के वचनो पर
श्रद्धा धारण करके तपस्वी ने िसखी धारण कर ली
और सदा सत्संग करता रहा|
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7. इस शब्द के भाव समझकर तपस्वी ने कहा मेरा
सौभाग्य है जो मैंने आपके वचन सुने हैं मेरा भ्रम
दूर हो गया है| इसके उपरांत गुर जी के वचनो पर
श्रद्धा धारण करके तपस्वी ने िसखी धारण कर ली
और सदा सत्संग करता रहा|
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