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ॐ श्रीद्गु� परमात्मने नम

                                         D varj- ukn D
                                 े
                       “ग�कल क िश�कों क अपना मािसक समाचार पत”
                         ु ु
                     े
      प्रकाश: गु�कल कन्द्रीय प्रबंधन सिमित, संत श्री आशारामजी आश्रम, साबरमती,-380005.
                  ु


       ‘गीता जयंती िवशेषांक’                              वषर ् :१, अंक : ५              नवम्ब - २०११
                        अहमदावाद मे सात िदवसीय िवद्याथ� अनु�ान िशि 
२६ अक्टूबर से१ नवम्बर२०११ को अहमदाबाद आश्रम के पावन साित्वक वातावरण में पहली बार आयोिजत िकये गये िवद
अन�ान िशिवर का देश भर के १५०० से ऊपर बच्च-बिच्चयों ने लाभ िल | इसमें िविभन्न गु�कुलों के िवद्या शािमल ह�ए |
    ु
िदवाली के िदनों में पटाखों और िमठा के लालच को छोड़ अपने ग�देव के श्री चरणों में अनु�ान के िलये आये इन िदव्य
                                                                 ु
िवद्यािथर्यों को सातों िदन पूज्य गु�देव का दशर्न सत्संग �पी असली �ानमयी िदवाली का लाभ िमला | पूज्य गु�देिथर्यों क
सावधान करते ह�ए कहा िक अगर बड़ी िडग्री पाने अथवा धन कमाने के िलही जप-तप करंगे तो वह िमलेगा तो सही परन्तु जीवन म
                                                                                  े
दःख बना रहेगा | इसके बजाये यिद हम ईश् र प्राि� में लगेंगे तो व्यावहा�रक उपलिब्धयां हमें सहज में ही िबना मांगे िमल जाए
  ु
ईश् र प्राि� कर हम िनदुख पद भी पा लेंग | बापूजी ने िवद्यािथर्योंक�ा में एकाग्रबढ़ाने क� यिु � बताते ह�ए कहा िक जीभ तालू
में लगा क िश�क को एकटक देखकर िवषय समझे और न समझ आने पर पश्  अवश्यपूछे |
ित्रकालसंध्या के म पर ग�देव ने अत्यिधक जोर देते ह�एबताया िक भगवान श्री राम के गु�देव श्री विश� जी भी अन्य सब
                           ु
छोड़ संध्या के समय सभा को िवसिजर्त कर संध्या (प्राणायाम, जप और ध्यान) अवश्य करततीनो संध्या म जप करने के पहले २
बार टंक िवद्या कंठ से ॐ क� ध्विन करते ह�ए गदर्ऊपर नीचे करना ) करने से स्ृित शि�के साथ साथ सख - दःख में सम रने
                                                                             म                      ु     ु
क� योग्यता भी बढ़त है और जप-ध्यान में भी मन लगता ह|

  पूज् बापजी का अहमदाबाद ग�कल मे
          ू                 ु ु                                        गीता क� रीत: हार हो या जीत
            पहली बार पदापर्                                                 गाओ प्रभुके ग
२९ अक्टूबर क�शाम को ४ बजे ग�देव अहमदाबाद आश्र
                                ु                           िजस तरह आजकल क� आधिु नक स्पधार्एं करवाई जातीहैं उ
में ग�कुल के समीप िनमार णाधीन ब्र�कुण्ड के िन�र�ण हे
       ु                                                    मानिसक िहंसा होती है | हारने वाले क� मान-हािन होती है और
आये | ग�कुल के िवद्यािथर्यों और सेवाधा�रयों क� तड़प
         ु                                                  जीतने वाले का अहंकार पोिषत िकया जाता है | िवद्यािथर्यों
संकल्पों क� बिलहारी थी कग�देव ने ग�कुल में भी जाने का
                           ु          ु                     उन्नित में यह दोनों ही बाधा�प | इसिलए िवद्यािथर्यों में
िनणर ्य ले िलया| ग�दव के पदापर्ण के िलए सालों से तरस रह
                  ु े                                       मे सदभाव बढ़े, इस हेतु कोई भी स्पधा करवाने से पहले और बाद
                                                                   ्
अहमदाबाद ग�कुल के तो मानो भाग्य ही खल गये | वहाँ
              ु                           ु                 मेंश्रीमद भगवद गीता पर आधा� आध्याित्मक �ान  –
ग�देव ने िविभन्न क�ांओ , प्रयोगशालाओं  को अपने श्र
 ु                                                          “स्पधार् में जीत के साथ हार भी होती | हार और जीत तो शरीर-
चरणों सेपिवत्रतिकया और साथ ही ग�कुल के िवकास हेतु
                                    ु                       मन-बिु द्ध तक ही सीिमत  | जीतने-हारने वाले दोनों एक ही शु-
सझाव भी िदये | ग�कुल के िश�कों व उपिस्थत िवद्यािथ
     ु             ु                                        िनमर ्ल आत्मा, इसिलए परस्पर एक दूसरे में परमात्मा दशर्न|”
को भी ग�देव के दशर्न का पुण्य लाभ प्रा� ह हमारी
           ु                                                पूज्य बापू जी भी बतलाते हैं  ईश् र जीताकर हमारा हौंसला
ग�चरणों म यही प्राथर्है िक इसी तरह ग�कुलों को अपनी
   ु                                    ु                   बलंद करते हैं और हराकर हमेअिधक अभ्यास करने क� प्रे देते
                                                              ु
चरणरज से पावन करते रहें                                     है | जीत और हार दोनों हीईश् र क� लीला है |
                                                                        गीता जयंती (६ िदसम्बर२०११)
             र
          सिद्यों में शरीर में                              श्रीमद भगवद गीता िव� का एकमा त्र ऐसा ग्रन्थ है
               होने पर क्या करे                             वािषर ्क जयंती मनाई जाती है | िव� क� ५७८ से अिधक
तरंत श् वस बाहर िनकाल कर िजस अंग (कमर अथवा कंधा
  ु                                                         भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है | इस िदन ग�कुल में
                                                                                                           ु
आिद) में ददर हो, उसे हलके -हलके िहलाए ँ या मािलश करं |
                                                   े        िवशेष सभा का आयोजन कर िनम्निलिख कायर ्क्कर सकते हैं:
िदन में ३-४ बार यह प्रयोग कर सकतेहैं | भोजन के -
                                                              पूज्य बापूजी का गीता पर आधा�रत िविडयो सत्संग श्
बीच में थोड़ा अदरक का रस या सौंठ औ२-३ बूद िनम्बू का
                                             ँ
रस िमला ह�आ १ िगलास गनगना पानी िपयें | भजन में
                            ु ु                               कमर् योग, भि�योग और �ान योग पर िवद्यािथर्यों एवं ि
चटक� भर अजवायन का प्रय करें  खाली पेट ३-५
    ु                                                            में परस्पर चचार् और िवचार
सूयर्भेदी प्राणायाम कर                                        गीता क� िश�ा दशार्ती लघु नािटका आि
ै
                                             िश � ण को क से ब ना ये ं कमर्योग
दःख का मूल है अ�ान | उसके िनवारण के
  ु                                           छात्रों वास्तिवक कल्या हो, इसके िलए        कायर् कमर्योग होगा जैस भगवन ने गीता में
िलए आवश्य है �ान का प्रक | पर �ान             हमारी िश�ण प्रणाली मएक छोटा से बदलाव       कहा है |
कै सा- . लौिकक या आध्याित् ? िश�क के          क� आवश्यकता है| इसके िलए िश�कों को         आपका एक िवद्याथ� भअगर कमर ्योगी बनने
�प मे हमारे पास िकसी िवषय का लौिकक            चािहए िक अपने लौिकक �ान को माध्यम          क� राह पर चल पड़ता है तो आपका िश�क
�ान तो बह�त है पर क्य वह �ान हमारा खद    ु    बनाकर गु�देव द्वारा िदए जा रह भगवत         होना साथर्क हो जायेगा | आपके द्वारा मानव
का दःख दूर कर पाने मे समथर रहा है ?
       ु                                      प्रीित केसंस्का को िवद्यािथर्यों           क� बह�त बड़ी सेवा हो जायेगी | तो संकल्प करे
आध्याित् �ान के िबना शाश् त सख क�     ु       पह�चाये | आत्मा परमात्मा क� प्रीउसका
                                                 ँ                                       क� आज से अपना जीवन बापू जी के सत्संग
प्रा संभव ही नही है | तो िफर िजस लौिकक        �ान और उसका आनंद पाने क� रीत               अमृत से पावन करेंग और अपने िवद्यािथर्का
�ान से हम खद ही पूणर सखी नही है वह हम
              ु           ु                   िवद्िथर्यों को सीखा दें इसमें आपका         भी जीवन उन्नत करें |
िवद्यािथर को पूरा का पूरा दे दे तो भी उनका    मागर्दशर्न करेग पाठ् यक्रम क               --------------------------------------------------------------------------
पूणर मंगल और पूणर्िहत नहीं हो पायेगा |अतः     आध्यात्मीक िजसमें लौिकक िवषयों क           “ भोग, मो�, िनल�पता, िनभर ्यता आिद तमाम
हम िश�को के िलए आवश्य है ग�देव द्वाु          कमर्योग से जोड़ने क� कला िसखाई जाती है|     िदव्य गुणों का िवकास कराने वाला यगीताग्रं
बताये जा रहे िदव्�ान को जीवन मे उतार          ऐसे ई�र प्रेमी िवद्, “वासदवं सव� इित” के
                                                                        ुे               िव� में अिद्वतीय | ” – ब्र�लीन ब्र�
कर अपने कमर् को कमर्योबनाएँ |                 भाव से समाज मेंजो भी कायर ् करगे तो उनका   पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी मह

   जयपुर गु�कल ने िकया CBSE Cluster क�
             ु                                                                       े
                                                                         आध्यात्मीक क उदाहरण
    खो-खो प्रितयोिगता का सफल आयो                       िव�ान – चम्ब : लोहे के छोटे-बड़े कणो को अपनी ओर आकिषर ् करता है |
                                                                   ु
                                                       लोहा जब अके ला पड़ा हो तब अन् लोहे के कण उससे आकिषर् नही होते, परन्त
                                                       वही लोहा जब िकसी चम्ब से जड़ जाता है, तब अपने सम्पक मे आने वाले लोहे
                                                                             ु      ु
                                                       के हर कण को अपने से जोड़ लेता है | ठीक उसी प्रक जब हम ई�र �पी चम्ब
                                                                                                                       ु
                                                       से िवमख होते हैं तब हमार जीवन िनस्ते व �खा होता है | परन्त ई�र-�पी
                                                             ु
                                                       चम्ब से जड़े रहने पर लौिकक जगत क� हर सफलता, वस्त, व्यि हमारी ओर
                                                         ु       ु
                                                       आकिषर ् होने लगते हैं|                 - प्रणव भाई, अहमदाबाद गु�क
                                                       पयार्वर - यातायात के साधन- यातायात के साधनो का प्रय करके हम अपने
                                                       गंतव् तक पह�चते हैं  गंतव् अगर िसनेमा हाल है तो साधन वही ँ पह�चायेगा,
                                                                                                                     ँ
                                                       पह�ंचकर हम अपने समय-शि�-बिु द का नाश करेंगे  गंतव् िवद्या होगा तो हम
                                                       नई-नई िवद्या सीखेंगे  इसी प्रक शारीर �पी साधन का प्रय कर हम अपना
                                                       ल�य तच् बनायेंग तो वैसा ही जीवन होगा और महान ल�य आत्म-सा�ात्का
                                                               ु
 २०-२२ िसतम्बर २०११ को जयपर ग�कुल में
                                 ु ु                   क� ओर लगेंग तो हमारी आवश्यकताए तो परमात्म सहज मे ही पूणर कर देते हैं 
 सीबीएसई के २८ िवद्यालयों के िलए-खो                    शरीर �पी साधन का हम सदव सदपयोग करे | – सदस् साधक िश�क संगठन
                                                                                ै     ु
 प्रितयोिगता का आयोजन िकया गया | इस ती
 िदवसीय कायर्क्रम १९२ छात्रों १४४ छात्राओ                                          �ान िपपासा
 ने ग�कुल और आश्रम के िद-साित्वक वातावरण मे
     ु                                                 िपछले अंक मेंप्रश था - “ मैंशरीर, मन, बिु द्ध नहीं पर िजस शर मन और बिु द्
 रहने का भी लाभ िलया | इस प्रितयोिगता  जयपरु           के माध्यम से सद् ग� से परम कल्याणमयी मंत्र दी�ा क� प्राि� ह�ई है, उन शरीर
 ग�कुल के छात्र ने िद्वतीय स्थान प्रा� कर रा
  ु                                                    और बिु द्ध के प्रित अपनी कृत�ता कैसे प्रकट क?” – इस का सही उ�र
 स्तर क� प्रििगता के िलए प्रवेश पाकर गु�कुल क          िकसी भी िश�क से नहीं िमला |उ�र ऋिष प्रसाद के क २११ में इस प्रक
 नाम रोशन िकया है |                                    िदया है : इस शरीर, मन और बिु द्ध को परमात्मा, सदग� क� सेवा में लगा िदया
                                                                                                            ु
                                                       जाय – यही कृत�ता है | सेवा क्या है? पाव दबाने का नाम सेवा नहीं ह, न पानी
                                                                                              ँ
“िजन गूढ़ प्रश् का समाधान पाश् चत्  लोग अभी             भरने का, उनके िवचार में अपना िवचा, उनके संकल्प में अपना संक, उनक�
तक नहीं खोजपाए हैं, उनका समाधान गीताग्रंथ              पसंदगी में पनी पसंदगी िमला देने का नाम सेवा है, यही सच्ची सेवा है|
शद्ध एवं सरल रीित सदे िदया है |”
  ु                                                    इस बार का प्रश है : जीवन में सुख आये तो क्या करना चािहए और दुःख आय
                       – एफ एच मोलेम ( इंग्लैं         तो क्या करना चािहए

 आपक� कलम से : इस पित्रका को साथर्क बनाने हेतु सभी गु �कुल िश�कों से उनके अनुभव, पाठ्यक्रम के आध्यात्मीकरणगीकरण के
 उदाहरण, ग�कुलों के िक्रयाकलापो लेख आिद आमंित्रतहै यह सब आप हमें िम्निलिखत पते पर डा अथवा E-mail/Fax से भेज सकते हैं 
          ु
                  ग�कुल केन्द्रीयप्रबंधन सिमित, संत श्री आशारामजी आश्रम, साबरमती,-380005.
                   ु
                         E-mail: gurukul@ashram.org, Ph: 079-39877787, 88. Fax: 079-27505012.

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  • 1. ॐ श्रीद्गु� परमात्मने नम D varj- ukn D े “ग�कल क िश�कों क अपना मािसक समाचार पत” ु ु े प्रकाश: गु�कल कन्द्रीय प्रबंधन सिमित, संत श्री आशारामजी आश्रम, साबरमती,-380005. ु ‘गीता जयंती िवशेषांक’ वषर ् :१, अंक : ५ नवम्ब - २०११  अहमदावाद मे सात िदवसीय िवद्याथ� अनु�ान िशि  २६ अक्टूबर से१ नवम्बर२०११ को अहमदाबाद आश्रम के पावन साित्वक वातावरण में पहली बार आयोिजत िकये गये िवद अन�ान िशिवर का देश भर के १५०० से ऊपर बच्च-बिच्चयों ने लाभ िल | इसमें िविभन्न गु�कुलों के िवद्या शािमल ह�ए | ु िदवाली के िदनों में पटाखों और िमठा के लालच को छोड़ अपने ग�देव के श्री चरणों में अनु�ान के िलये आये इन िदव्य ु िवद्यािथर्यों को सातों िदन पूज्य गु�देव का दशर्न सत्संग �पी असली �ानमयी िदवाली का लाभ िमला | पूज्य गु�देिथर्यों क सावधान करते ह�ए कहा िक अगर बड़ी िडग्री पाने अथवा धन कमाने के िलही जप-तप करंगे तो वह िमलेगा तो सही परन्तु जीवन म े दःख बना रहेगा | इसके बजाये यिद हम ईश् र प्राि� में लगेंगे तो व्यावहा�रक उपलिब्धयां हमें सहज में ही िबना मांगे िमल जाए ु ईश् र प्राि� कर हम िनदुख पद भी पा लेंग | बापूजी ने िवद्यािथर्योंक�ा में एकाग्रबढ़ाने क� यिु � बताते ह�ए कहा िक जीभ तालू में लगा क िश�क को एकटक देखकर िवषय समझे और न समझ आने पर पश् अवश्यपूछे | ित्रकालसंध्या के म पर ग�देव ने अत्यिधक जोर देते ह�एबताया िक भगवान श्री राम के गु�देव श्री विश� जी भी अन्य सब ु छोड़ संध्या के समय सभा को िवसिजर्त कर संध्या (प्राणायाम, जप और ध्यान) अवश्य करततीनो संध्या म जप करने के पहले २ बार टंक िवद्या कंठ से ॐ क� ध्विन करते ह�ए गदर्ऊपर नीचे करना ) करने से स्ृित शि�के साथ साथ सख - दःख में सम रने म ु ु क� योग्यता भी बढ़त है और जप-ध्यान में भी मन लगता ह| पूज् बापजी का अहमदाबाद ग�कल मे ू ु ु गीता क� रीत: हार हो या जीत पहली बार पदापर् गाओ प्रभुके ग २९ अक्टूबर क�शाम को ४ बजे ग�देव अहमदाबाद आश्र ु िजस तरह आजकल क� आधिु नक स्पधार्एं करवाई जातीहैं उ में ग�कुल के समीप िनमार णाधीन ब्र�कुण्ड के िन�र�ण हे ु मानिसक िहंसा होती है | हारने वाले क� मान-हािन होती है और आये | ग�कुल के िवद्यािथर्यों और सेवाधा�रयों क� तड़प ु जीतने वाले का अहंकार पोिषत िकया जाता है | िवद्यािथर्यों संकल्पों क� बिलहारी थी कग�देव ने ग�कुल में भी जाने का ु ु उन्नित में यह दोनों ही बाधा�प | इसिलए िवद्यािथर्यों में िनणर ्य ले िलया| ग�दव के पदापर्ण के िलए सालों से तरस रह ु े मे सदभाव बढ़े, इस हेतु कोई भी स्पधा करवाने से पहले और बाद ् अहमदाबाद ग�कुल के तो मानो भाग्य ही खल गये | वहाँ ु ु मेंश्रीमद भगवद गीता पर आधा� आध्याित्मक �ान – ग�देव ने िविभन्न क�ांओ , प्रयोगशालाओं को अपने श्र ु “स्पधार् में जीत के साथ हार भी होती | हार और जीत तो शरीर- चरणों सेपिवत्रतिकया और साथ ही ग�कुल के िवकास हेतु ु मन-बिु द्ध तक ही सीिमत | जीतने-हारने वाले दोनों एक ही शु- सझाव भी िदये | ग�कुल के िश�कों व उपिस्थत िवद्यािथ ु ु िनमर ्ल आत्मा, इसिलए परस्पर एक दूसरे में परमात्मा दशर्न|” को भी ग�देव के दशर्न का पुण्य लाभ प्रा� ह हमारी ु पूज्य बापू जी भी बतलाते हैं ईश् र जीताकर हमारा हौंसला ग�चरणों म यही प्राथर्है िक इसी तरह ग�कुलों को अपनी ु ु बलंद करते हैं और हराकर हमेअिधक अभ्यास करने क� प्रे देते ु चरणरज से पावन करते रहें है | जीत और हार दोनों हीईश् र क� लीला है | गीता जयंती (६ िदसम्बर२०११) र सिद्यों में शरीर में श्रीमद भगवद गीता िव� का एकमा त्र ऐसा ग्रन्थ है होने पर क्या करे वािषर ्क जयंती मनाई जाती है | िव� क� ५७८ से अिधक तरंत श् वस बाहर िनकाल कर िजस अंग (कमर अथवा कंधा ु भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है | इस िदन ग�कुल में ु आिद) में ददर हो, उसे हलके -हलके िहलाए ँ या मािलश करं | े िवशेष सभा का आयोजन कर िनम्निलिख कायर ्क्कर सकते हैं: िदन में ३-४ बार यह प्रयोग कर सकतेहैं | भोजन के -  पूज्य बापूजी का गीता पर आधा�रत िविडयो सत्संग श् बीच में थोड़ा अदरक का रस या सौंठ औ२-३ बूद िनम्बू का ँ रस िमला ह�आ १ िगलास गनगना पानी िपयें | भजन में ु ु  कमर् योग, भि�योग और �ान योग पर िवद्यािथर्यों एवं ि चटक� भर अजवायन का प्रय करें खाली पेट ३-५ ु में परस्पर चचार् और िवचार सूयर्भेदी प्राणायाम कर  गीता क� िश�ा दशार्ती लघु नािटका आि
  • 2. िश � ण को क से ब ना ये ं कमर्योग दःख का मूल है अ�ान | उसके िनवारण के ु छात्रों वास्तिवक कल्या हो, इसके िलए कायर् कमर्योग होगा जैस भगवन ने गीता में िलए आवश्य है �ान का प्रक | पर �ान हमारी िश�ण प्रणाली मएक छोटा से बदलाव कहा है | कै सा- . लौिकक या आध्याित् ? िश�क के क� आवश्यकता है| इसके िलए िश�कों को आपका एक िवद्याथ� भअगर कमर ्योगी बनने �प मे हमारे पास िकसी िवषय का लौिकक चािहए िक अपने लौिकक �ान को माध्यम क� राह पर चल पड़ता है तो आपका िश�क �ान तो बह�त है पर क्य वह �ान हमारा खद ु बनाकर गु�देव द्वारा िदए जा रह भगवत होना साथर्क हो जायेगा | आपके द्वारा मानव का दःख दूर कर पाने मे समथर रहा है ? ु प्रीित केसंस्का को िवद्यािथर्यों क� बह�त बड़ी सेवा हो जायेगी | तो संकल्प करे आध्याित् �ान के िबना शाश् त सख क� ु पह�चाये | आत्मा परमात्मा क� प्रीउसका ँ क� आज से अपना जीवन बापू जी के सत्संग प्रा संभव ही नही है | तो िफर िजस लौिकक �ान और उसका आनंद पाने क� रीत अमृत से पावन करेंग और अपने िवद्यािथर्का �ान से हम खद ही पूणर सखी नही है वह हम ु ु िवद्िथर्यों को सीखा दें इसमें आपका भी जीवन उन्नत करें | िवद्यािथर को पूरा का पूरा दे दे तो भी उनका मागर्दशर्न करेग पाठ् यक्रम क -------------------------------------------------------------------------- पूणर मंगल और पूणर्िहत नहीं हो पायेगा |अतः आध्यात्मीक िजसमें लौिकक िवषयों क “ भोग, मो�, िनल�पता, िनभर ्यता आिद तमाम हम िश�को के िलए आवश्य है ग�देव द्वाु कमर्योग से जोड़ने क� कला िसखाई जाती है| िदव्य गुणों का िवकास कराने वाला यगीताग्रं बताये जा रहे िदव्�ान को जीवन मे उतार ऐसे ई�र प्रेमी िवद्, “वासदवं सव� इित” के ुे िव� में अिद्वतीय | ” – ब्र�लीन ब्र� कर अपने कमर् को कमर्योबनाएँ | भाव से समाज मेंजो भी कायर ् करगे तो उनका पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी मह जयपुर गु�कल ने िकया CBSE Cluster क� ु े आध्यात्मीक क उदाहरण खो-खो प्रितयोिगता का सफल आयो िव�ान – चम्ब : लोहे के छोटे-बड़े कणो को अपनी ओर आकिषर ् करता है | ु लोहा जब अके ला पड़ा हो तब अन् लोहे के कण उससे आकिषर् नही होते, परन्त वही लोहा जब िकसी चम्ब से जड़ जाता है, तब अपने सम्पक मे आने वाले लोहे ु ु के हर कण को अपने से जोड़ लेता है | ठीक उसी प्रक जब हम ई�र �पी चम्ब ु से िवमख होते हैं तब हमार जीवन िनस्ते व �खा होता है | परन्त ई�र-�पी ु चम्ब से जड़े रहने पर लौिकक जगत क� हर सफलता, वस्त, व्यि हमारी ओर ु ु आकिषर ् होने लगते हैं| - प्रणव भाई, अहमदाबाद गु�क पयार्वर - यातायात के साधन- यातायात के साधनो का प्रय करके हम अपने गंतव् तक पह�चते हैं गंतव् अगर िसनेमा हाल है तो साधन वही ँ पह�चायेगा, ँ पह�ंचकर हम अपने समय-शि�-बिु द का नाश करेंगे गंतव् िवद्या होगा तो हम नई-नई िवद्या सीखेंगे इसी प्रक शारीर �पी साधन का प्रय कर हम अपना ल�य तच् बनायेंग तो वैसा ही जीवन होगा और महान ल�य आत्म-सा�ात्का ु २०-२२ िसतम्बर २०११ को जयपर ग�कुल में ु ु क� ओर लगेंग तो हमारी आवश्यकताए तो परमात्म सहज मे ही पूणर कर देते हैं सीबीएसई के २८ िवद्यालयों के िलए-खो शरीर �पी साधन का हम सदव सदपयोग करे | – सदस् साधक िश�क संगठन ै ु प्रितयोिगता का आयोजन िकया गया | इस ती िदवसीय कायर्क्रम १९२ छात्रों १४४ छात्राओ �ान िपपासा ने ग�कुल और आश्रम के िद-साित्वक वातावरण मे ु िपछले अंक मेंप्रश था - “ मैंशरीर, मन, बिु द्ध नहीं पर िजस शर मन और बिु द् रहने का भी लाभ िलया | इस प्रितयोिगता जयपरु के माध्यम से सद् ग� से परम कल्याणमयी मंत्र दी�ा क� प्राि� ह�ई है, उन शरीर ग�कुल के छात्र ने िद्वतीय स्थान प्रा� कर रा ु और बिु द्ध के प्रित अपनी कृत�ता कैसे प्रकट क?” – इस का सही उ�र स्तर क� प्रििगता के िलए प्रवेश पाकर गु�कुल क िकसी भी िश�क से नहीं िमला |उ�र ऋिष प्रसाद के क २११ में इस प्रक नाम रोशन िकया है | िदया है : इस शरीर, मन और बिु द्ध को परमात्मा, सदग� क� सेवा में लगा िदया ु जाय – यही कृत�ता है | सेवा क्या है? पाव दबाने का नाम सेवा नहीं ह, न पानी ँ “िजन गूढ़ प्रश् का समाधान पाश् चत् लोग अभी भरने का, उनके िवचार में अपना िवचा, उनके संकल्प में अपना संक, उनक� तक नहीं खोजपाए हैं, उनका समाधान गीताग्रंथ पसंदगी में पनी पसंदगी िमला देने का नाम सेवा है, यही सच्ची सेवा है| शद्ध एवं सरल रीित सदे िदया है |” ु इस बार का प्रश है : जीवन में सुख आये तो क्या करना चािहए और दुःख आय – एफ एच मोलेम ( इंग्लैं तो क्या करना चािहए आपक� कलम से : इस पित्रका को साथर्क बनाने हेतु सभी गु �कुल िश�कों से उनके अनुभव, पाठ्यक्रम के आध्यात्मीकरणगीकरण के उदाहरण, ग�कुलों के िक्रयाकलापो लेख आिद आमंित्रतहै यह सब आप हमें िम्निलिखत पते पर डा अथवा E-mail/Fax से भेज सकते हैं ु ग�कुल केन्द्रीयप्रबंधन सिमित, संत श्री आशारामजी आश्रम, साबरमती,-380005. ु E-mail: gurukul@ashram.org, Ph: 079-39877787, 88. Fax: 079-27505012.