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                                                 ॐ श्री सद्ुगरु प मरम्मनमनन नम
           ग्रीष्मक्लीन अवक्श
                   मवशनष्ंक                   h v a r j -u k n h
                                                 े
                                      “गरुकल क शिक्षकों का अपना माशिक िमाचार पत्र”
                                        ु ु
                                 न
             प्रक्शक : ुगरु पकल कन्द्रीय प्रबंधन समममि, संि श्री आश्र्मजी आश्रम, स्बरमिी, अहमद्ब्द-380005.
                              ग

                                                 वषष : १ अंक: १०                                           अप्रैल २०१२
                            सम्च्र                                                नए सत्र की शगभ क्मन्एं
     चैत्र माह में नवरात्रों में जयपर, भोपाल, छ िं दवाडा, धछु लया,
                                     ु                                    सभी गरुकुलों के सिंचालकों, छशक्षकों, गह्पछर्यों एविं िऄन्त्य
                                                                                  ु                               ृ
      िऄहमदाबाद गरुकुलों के ात्रों ने ७-७ छदन का सारस्वत्य
                         ु                                                कमि चाट्टरयों को छप ले सत्र २०११-२०१२ में सन्त्दर     ु
      मन्त्त्र का िऄनष्ठान छकया |
                       ु                                                  सेवा और सहयोग देने के छलए साधोवाद है, धन्त्यवाद है |
     छ िं दवाडा गरुकुल के छवद्याछथि यों ने चेटीचिंद महोत्सव (२४
                     ु                                                    छप ले सत्र में जो भी कछमयािं रह गिइ हों िईनपर िऄवलोकन
      माचि ) के िईपलक्ष्य में एक भव्य कीर्ि न यात्रा भी छनकाली |          कर हम बापजी के बर्ाये मागि पर िआस सत्र २०१२-१३ में
                                                                                        ू
     पूज्य गरुदेव का िऄवर्रण छदवस (११ िऄप्रैल) ‚विश्व सेिा
                 ु                                                        पहले से भी िऄछधक दृढ़र्ा से कदम िअगे बढ़ाने का
      वििस” के रूप में देश छवदेश में धूमधाम से मनाया गया | िआस            परुषाथि करेंगे | भारर् को विश्िगरु बनाने का पज्य
                                                                            ु                                 ु                   ू
      छदन िऄहमदाबाद गुरुकुल के ात्रों ने छवकलािंग छवद्याछथि यों के        बापूजी का जो सिंकल्प है, िईसमें हम सब भी िऄपनी ोटी
      छवद्यालय में जाकर प्रसाद छवर्रण छकया | िईधर सादाबाद                 िऄिंगली ग्वालबालों की र्रह लगाये रखेंगे | परस्पर सद्
                                                                                ु
      (िई.प्र) और छ न्त्दवाड़ा (म.प्र) गरुकुल के छवद्याछथि यों नें
                                            ु                             भाव से हम िऄपना दैवी कायि छदनोछदन बढ़ार्े चलें ऎसी
      िऄस्पर्ाल में जाकर मरीजों को फल छवर्रण छकया |                       शभकामना है |
                                                                              ु

                                 गर्मी की छट्टियों र्में अपने पाठ्यक्रर्म को दें एक नई ददशा
                                           ु
    मिइ २०११ में पूज्य गरुदेव ‚पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण‛ के बारें में सनकर बहुर् प्रसन्त्न हुए थे और िईन्त्होंने ‘शाबाश है’
                                 ु                                             ु
    कहकर हम सब को सफल होने का िअशीवाि द भी प्रदान छकया था | जब बापूजी का शभ सिंकल्प और िअशीवाि द हमारे साथ है
                                                                                        ु
    र्ो िआस दैवी कायि में हम छनिःसिंशय सफल होंगें | सभी छशक्षकों के छलए यह गमी की ुट्टियााँ िआस िईत्तम सेवा कायि को और बढ़ाने
    का सिऄवसर है | िअप से छनवेदन है छक िऄपने छवषय की प्रत्येक पस्र्क के प्रत्येक (िऄथवा कम से कम ५-७) पाठों के के वल
           ु                                                            ु
    मख्य छबिंदओ िं (Main Theme) का सिंछक्षप्त शब्दों में आध्यात्मीकरण कर के हमें भेजें | पाठ को रोचक र्था समझने में िअसान
      ु         ु
    बनाने के छलए िअप कु नए छक्रया-कलाप, छशक्षण सामग्री िऄथवा िअध्याछत्मक खेल भी िआसमें जोड़ सकर्े हैं | पाठों का िआस
    र्रह का एक लेसन प्लान र्ैयार कर (पाठ की एक ायाप्रछर् के साथ) िईसे िऄपने सिंचालक को ३१ मिइ र्क दे दें | सिंचालकगण
    समस्र् कृछर्यों की एक कॉपी गरुकुल कें द्रीय प्रबिंधन सछमछर् को १० जून र्क भेज दें | जो भी छशक्षक िआस सेवा कायि को
                                            ु
    र्त्परर्ा से करेंगे िईन्त्हें गरुपूछणि मा महोत्सव के दौरान पूज्य बापूजी के विकट िर्शि का लाभ छदलवाने का प्रयास छकया
                                   ु
    जाएगा| चनी हुिइ कृछर्यों को िअपके नाम सछहर् पवाकर िऄन्त्य गरुकुलों में भी प्रयोग हेर्ु भेजा जा सकर्ा हैं |
              ु                                                       ु

                                                ग्रीष्र्म ऋतु संबंदधत स्वास््य कदजयााँ
                                                                                    ंु
        गमी के कारण नाक से खून िअने पर र्ाजे धछनये के रस की २-२ बूदे दोनों नथुनों में डालें |
                                                                          िं
        िअश्रम द्वारा छनछमि र् पलाश के फूलों के शरबर् का प्रयोग करें |
        ५ चिंद्रभेदी प्राणायाम करने से भी बहुर् लाभ है |
        ५० ग्राम धछनया, ५० ग्राम सौंफ, ५० ग्राम िअिंवला और ५० ग्राम ही छमश्री को १-२ घिंटे र्क पानी में छभगोने के बाद मसल के
            ान लें और पानी के साथ पी लें | िआससे गमी में छवशेष राहर् छमलर्ी है |
        निंगे पैर और निंगे सर धप में न जाएाँ र्था धप में बाहर छनकलर्े समय थोडा जल सेवन िऄवश्य करें | िअाँखों में जलन या खजली हो
                                 ू                   ू                                                                    ु
         र्ो मिंह में पानी भर के एक कटोरी र्ाजे पानी में २५ बार एक िअाँख पट-पटाएाँ छफर कटोरी का पानी बदलकर दूसरी िअाँख को िआसी
                ु
         र्रह पटपटाएाँ |
दशक्षकों की सर्मस्याएं और सर्माधान                                     गर्मी की छट्टियों र्में बच्चों की रचनात्र्मकता
                                                                                         ु
                                                                          (Creativity) एवं सत्संग र्में रूदच जगाने हेतु गहकायय
                                                                                                                           ृ
प्रश्न: विद्यावथशयों को कक्षा में अवधक लार् वमले उसके वलए
हम क्या करें?                                                            श्रीिअशारामायाण, जीवन छवकास, ऋछष प्रसाद िअछद पस्र्कों ु
िईत्तर: पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक पढ़ाने से पहले यछद हम एकाध              से ५ सवाक्य छलखवाएिं | िआनका िऄथि समझा दें | छवद्याथी
                                                                                  ु
छमनट चुप होकर िइश्वर में खोकर छवद्याछथि यों के मिंगल की कामना            िऄपनी रूछच िऄनसार एक-एक सवाक्य पर िअधाट्टरर् छचत्र,
                                                                                            ु               ु
से बोलें र्ो िआष्टदेव हमसे वही बलवाएिंगे छजससे बच्चों का
                                     ु                                   कछवर्ा, कहानी, भजन या खेल िअछद बनाकर लायें | चनी हुिइ
                                                                                                                             ु
सवाि छधक मिंगल होगा | चार बार नारायण मिंत्र का िईच्चारण करके             सन्त्दर कृछर्यों को एकछत्रर् करके िअप छवद्यालय िऄथवा कक्षा
                                                                            ु
ही छवषय पढ़ाएिं |                                                         की पछत्रका बनायें | िआससे बालकों का िअत्मछवश्वास बढ़ेगा |


                   मशक्षण और संस्क्र                                              ृ                          े
                                                                                 गहस्थ र्में शांदत और सफलता क उपाय
बच्चों के सवाांगीण छवकास के छलए छशक्षा की छजर्नी                         िइशान कोण में र्लसी का पौधा रखें व प्रछर्छदन िईसकी २१
                                                                                             ु
िअवश्यकर्ा है िईससे कहीं िऄछधक िअवश्यकर्ा है िईन्त्हें                    पट्टरक्रमा करें र्ो घर में सख शािंछर् बढ़ेगी व धन–धान्त्य की
                                                                                                      ु
ससिंस्काट्टरर् करने की | सिंस्कारहीन छशक्षा जीवन को सही
    ु                                                                     प्राछप्त में मदद छमलेगी |
छदशा नहीं दे सकर्ी | छशक्षा से बछु ि का और सुसिंस्कारों से               घर से बाहर छनकलने से पूवि यछद गीर्ा के १८ वें िऄध्याय
रृदय में सद् भावनाओिं का छवकास होर्ा है |                                 का िअखरी श्लोक का २१ बार पाठ छकया जाए र्ो छजस भी
िअज छवद्याथी को परमाणु छवखिंडन द्वारा छवध्विंस का पाठ र्ो                 काम के छलए छनकलेंगे, िईसमें सफलर्ा छमलेगी |
पढ़ाया जार्ा है पर रृदय में छवश्व प्रेम का छवकास कै से हो ?
मानवीय सिंवेदना छकसे कहर्े हैं ? िआसका एक िऄिंश भी नहीं                                          आत्र्मा गंजन ु
बर्ाया जार्ा | िऄथि शास्त्र र्ो िईनके छदमाग में भर छदया जार्ा है                  बल बछु ि र्ेरी की परीक्षा, दिःख िअकर लेय है |
                                                                                                                ु
पर परमाथि शास्त्र से िईन्त्हें िऄनछभज्ञ रखा जार्ा है | सुसिंस्कारों              जो पाप पछहले जन्त्म के हैं, दूर सब कर देय है | |
के ना छमलने से जीवन छबन नाछवक की नाव जैसा हो जार्ा है |                            छनदोष र्झको देय कर, पावन बनार्ा है र्झे |
                                                                                           ु                               ु
िआसीछलये हमारी वैछदक सिंस्कृछर् के ऋछष-मछु नयों ने साक्षर                     क्या सत्य और िऄसत्य क्या, यह भी छसखार्ा है र्ुझे | |
बनानेवाली छशक्षा के साथ िअध्याछत्मक दीक्षा पर छवशेष बल
छदया था, र्ाछक ‘साक्षरा मछर्’ िऄपने ज्ञान का दरूपयोग करकेु
‘राक्षसा मछर्’ न बने बछल्क महेश्वर र्त्व को जान कर                                                 ज्ञान दपपासा
सवि छहर्काट्टरणी ‘ऋर्िंभरा प्रज्ञा’ या ‘र्त्त्वबछु ि’ हो जाए |          छप ले िऄिंक में प्रश्न था ‚कु छ बच्चे िो विर्शय होिे हैं और कुछ डर
छजन्त्हें बाल्यावस्था में ससिंस्कार नहीं छमलर्े िऄछधकािंशर्िः ऐसे
                           ु                                            के कारण बोल िहीं पािे, उिमें विर्शयिा कै से आये ?‛
बालक ही िअगे चलकर िऄपराध के क्षेत्र में कदम रखर्े हैं |                 जयपर, राजकोट व िऄहमदबाद गरुकुल की छशछक्षकाओिं को
                                                                               ु                                ु
प्राचीनकाल में गरुकुलों में ात्रों को लौछकक ज्ञान देने के साथ
                   ु                                                    साधोवाद है छजन्त्होंने व्याख्या सछहर् िईत्तर भेजे है |
ससिंस्काट्टरर् भी छकया जार्ा था | िअज छवद्याथी को िऄपूणि
      ु                                                                 पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक, ‚जो बच्चे डर के कारण बोल नहीं पार्े
ज्ञान छदया जार्ा है | वषों र्क मेहनर् और छदन-रार् पढ़ािइ                 िईनको ‘जीवन रसायन’ पस्र्क छदलवा दो | वे िईसे पढ़े और
                                                                                                        ु
करके भी छवद्याथी िअछधभौछर्क ज्ञान का िऄल्पािंश ही जान                   प्राणायाम करें | ७-१० िऄनलोम-छवलोम प्राणायाम और ७ िअभ्यिंर्र
                                                                                                      ु
पार्ा है | िअछधदैछवक ज्ञान व सारे ज्ञानों का मल िअध्याछत्मक
                                                       ू                कुम्भक व बछहकुिम्भक यक्त प्राणायाम करें, छफर ॎकार का गजन
                                                                                                    ु                                        िंु
ज्ञान र्ो िईसकी पहुच से बाहर ही होर्ा है | िऄपूणि ज्ञान प्राप्त
                      ाँ                                                करें | बस, छकर्ना भी डरपोक बच्चा हो छनभीक हो जायेगा |’
कर िऄर्प्तर्ा में ही जीवन का िऄिंर् होना यह सिंस्कारछवहीन
            ृ                                                           िआस बार का प्रश्न है :िूसरों का वहि करिा _______ के बराबर
िऄपूणि छशक्षा की देन है | छशक्षा पूणि र्भी कही जायेगी जब वह             है और िसरों का अवहि करिा ________ के बराबर है | िऄपना
                                                                                   ू
िअध्याछत्मक सिंस्कारों के साथ प्रदान की जाय |                           िईत्तर व्याख्या सछहर् िइमेल या पत्र द्वारा हमें भेजें- | प्रश्न का िईत्तर
                                        ऋछष प्रसाद िऄप्रैल २००७         िऄगले िऄिंक में छदया जायेगा |

आपकी कलर्म से :िआस पछत्रका को साथि क बनाने हेर्ु सभी गरुकुल छशक्षकों से िईनके िऄनभव, पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण और िईपयोगीकरण के
                                                      ु                          ु
िईदाहरण गरुकुल के छक्रयाकलापों पर लेख िअछद िअमिंछत्रर् हैं | यह सब िअप हमें छनम्नछलछखर् पर्े पर डाक िऄथवा E-mail/Fax से भेज सकर्े हैं |
         ु
                  गरुकुल के न्द्रीय प्रबंधि सवमवि, संि श्री आर्ारामजी आश्रम, साबरमिी, अहमिाबाि-380005.
                   ु
                                   E-mail: gurukul@ashram.org, Ph: 079-39877787, 88. Fax: 079-27505012.

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Antarnaad april final_2012

  • 1. + ॐ श्री सद्ुगरु प मरम्मनमनन नम ग्रीष्मक्लीन अवक्श मवशनष्ंक h v a r j -u k n h े “गरुकल क शिक्षकों का अपना माशिक िमाचार पत्र” ु ु न प्रक्शक : ुगरु पकल कन्द्रीय प्रबंधन समममि, संि श्री आश्र्मजी आश्रम, स्बरमिी, अहमद्ब्द-380005. ग वषष : १ अंक: १० अप्रैल २०१२  सम्च्र  नए सत्र की शगभ क्मन्एं  चैत्र माह में नवरात्रों में जयपर, भोपाल, छ िं दवाडा, धछु लया, ु सभी गरुकुलों के सिंचालकों, छशक्षकों, गह्पछर्यों एविं िऄन्त्य ु ृ िऄहमदाबाद गरुकुलों के ात्रों ने ७-७ छदन का सारस्वत्य ु कमि चाट्टरयों को छप ले सत्र २०११-२०१२ में सन्त्दर ु मन्त्त्र का िऄनष्ठान छकया | ु सेवा और सहयोग देने के छलए साधोवाद है, धन्त्यवाद है |  छ िं दवाडा गरुकुल के छवद्याछथि यों ने चेटीचिंद महोत्सव (२४ ु छप ले सत्र में जो भी कछमयािं रह गिइ हों िईनपर िऄवलोकन माचि ) के िईपलक्ष्य में एक भव्य कीर्ि न यात्रा भी छनकाली | कर हम बापजी के बर्ाये मागि पर िआस सत्र २०१२-१३ में ू  पूज्य गरुदेव का िऄवर्रण छदवस (११ िऄप्रैल) ‚विश्व सेिा ु पहले से भी िऄछधक दृढ़र्ा से कदम िअगे बढ़ाने का वििस” के रूप में देश छवदेश में धूमधाम से मनाया गया | िआस परुषाथि करेंगे | भारर् को विश्िगरु बनाने का पज्य ु ु ू छदन िऄहमदाबाद गुरुकुल के ात्रों ने छवकलािंग छवद्याछथि यों के बापूजी का जो सिंकल्प है, िईसमें हम सब भी िऄपनी ोटी छवद्यालय में जाकर प्रसाद छवर्रण छकया | िईधर सादाबाद िऄिंगली ग्वालबालों की र्रह लगाये रखेंगे | परस्पर सद् ु (िई.प्र) और छ न्त्दवाड़ा (म.प्र) गरुकुल के छवद्याछथि यों नें ु भाव से हम िऄपना दैवी कायि छदनोछदन बढ़ार्े चलें ऎसी िऄस्पर्ाल में जाकर मरीजों को फल छवर्रण छकया | शभकामना है | ु गर्मी की छट्टियों र्में अपने पाठ्यक्रर्म को दें एक नई ददशा ु मिइ २०११ में पूज्य गरुदेव ‚पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण‛ के बारें में सनकर बहुर् प्रसन्त्न हुए थे और िईन्त्होंने ‘शाबाश है’ ु ु कहकर हम सब को सफल होने का िअशीवाि द भी प्रदान छकया था | जब बापूजी का शभ सिंकल्प और िअशीवाि द हमारे साथ है ु र्ो िआस दैवी कायि में हम छनिःसिंशय सफल होंगें | सभी छशक्षकों के छलए यह गमी की ुट्टियााँ िआस िईत्तम सेवा कायि को और बढ़ाने का सिऄवसर है | िअप से छनवेदन है छक िऄपने छवषय की प्रत्येक पस्र्क के प्रत्येक (िऄथवा कम से कम ५-७) पाठों के के वल ु ु मख्य छबिंदओ िं (Main Theme) का सिंछक्षप्त शब्दों में आध्यात्मीकरण कर के हमें भेजें | पाठ को रोचक र्था समझने में िअसान ु ु बनाने के छलए िअप कु नए छक्रया-कलाप, छशक्षण सामग्री िऄथवा िअध्याछत्मक खेल भी िआसमें जोड़ सकर्े हैं | पाठों का िआस र्रह का एक लेसन प्लान र्ैयार कर (पाठ की एक ायाप्रछर् के साथ) िईसे िऄपने सिंचालक को ३१ मिइ र्क दे दें | सिंचालकगण समस्र् कृछर्यों की एक कॉपी गरुकुल कें द्रीय प्रबिंधन सछमछर् को १० जून र्क भेज दें | जो भी छशक्षक िआस सेवा कायि को ु र्त्परर्ा से करेंगे िईन्त्हें गरुपूछणि मा महोत्सव के दौरान पूज्य बापूजी के विकट िर्शि का लाभ छदलवाने का प्रयास छकया ु जाएगा| चनी हुिइ कृछर्यों को िअपके नाम सछहर् पवाकर िऄन्त्य गरुकुलों में भी प्रयोग हेर्ु भेजा जा सकर्ा हैं | ु ु ग्रीष्र्म ऋतु संबंदधत स्वास््य कदजयााँ ंु  गमी के कारण नाक से खून िअने पर र्ाजे धछनये के रस की २-२ बूदे दोनों नथुनों में डालें | िं  िअश्रम द्वारा छनछमि र् पलाश के फूलों के शरबर् का प्रयोग करें |  ५ चिंद्रभेदी प्राणायाम करने से भी बहुर् लाभ है |  ५० ग्राम धछनया, ५० ग्राम सौंफ, ५० ग्राम िअिंवला और ५० ग्राम ही छमश्री को १-२ घिंटे र्क पानी में छभगोने के बाद मसल के ान लें और पानी के साथ पी लें | िआससे गमी में छवशेष राहर् छमलर्ी है |  निंगे पैर और निंगे सर धप में न जाएाँ र्था धप में बाहर छनकलर्े समय थोडा जल सेवन िऄवश्य करें | िअाँखों में जलन या खजली हो ू ू ु र्ो मिंह में पानी भर के एक कटोरी र्ाजे पानी में २५ बार एक िअाँख पट-पटाएाँ छफर कटोरी का पानी बदलकर दूसरी िअाँख को िआसी ु र्रह पटपटाएाँ |
  • 2. दशक्षकों की सर्मस्याएं और सर्माधान गर्मी की छट्टियों र्में बच्चों की रचनात्र्मकता ु (Creativity) एवं सत्संग र्में रूदच जगाने हेतु गहकायय ृ प्रश्न: विद्यावथशयों को कक्षा में अवधक लार् वमले उसके वलए हम क्या करें? श्रीिअशारामायाण, जीवन छवकास, ऋछष प्रसाद िअछद पस्र्कों ु िईत्तर: पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक पढ़ाने से पहले यछद हम एकाध से ५ सवाक्य छलखवाएिं | िआनका िऄथि समझा दें | छवद्याथी ु छमनट चुप होकर िइश्वर में खोकर छवद्याछथि यों के मिंगल की कामना िऄपनी रूछच िऄनसार एक-एक सवाक्य पर िअधाट्टरर् छचत्र, ु ु से बोलें र्ो िआष्टदेव हमसे वही बलवाएिंगे छजससे बच्चों का ु कछवर्ा, कहानी, भजन या खेल िअछद बनाकर लायें | चनी हुिइ ु सवाि छधक मिंगल होगा | चार बार नारायण मिंत्र का िईच्चारण करके सन्त्दर कृछर्यों को एकछत्रर् करके िअप छवद्यालय िऄथवा कक्षा ु ही छवषय पढ़ाएिं | की पछत्रका बनायें | िआससे बालकों का िअत्मछवश्वास बढ़ेगा | मशक्षण और संस्क्र ृ े गहस्थ र्में शांदत और सफलता क उपाय बच्चों के सवाांगीण छवकास के छलए छशक्षा की छजर्नी  िइशान कोण में र्लसी का पौधा रखें व प्रछर्छदन िईसकी २१ ु िअवश्यकर्ा है िईससे कहीं िऄछधक िअवश्यकर्ा है िईन्त्हें पट्टरक्रमा करें र्ो घर में सख शािंछर् बढ़ेगी व धन–धान्त्य की ु ससिंस्काट्टरर् करने की | सिंस्कारहीन छशक्षा जीवन को सही ु प्राछप्त में मदद छमलेगी | छदशा नहीं दे सकर्ी | छशक्षा से बछु ि का और सुसिंस्कारों से  घर से बाहर छनकलने से पूवि यछद गीर्ा के १८ वें िऄध्याय रृदय में सद् भावनाओिं का छवकास होर्ा है | का िअखरी श्लोक का २१ बार पाठ छकया जाए र्ो छजस भी िअज छवद्याथी को परमाणु छवखिंडन द्वारा छवध्विंस का पाठ र्ो काम के छलए छनकलेंगे, िईसमें सफलर्ा छमलेगी | पढ़ाया जार्ा है पर रृदय में छवश्व प्रेम का छवकास कै से हो ? मानवीय सिंवेदना छकसे कहर्े हैं ? िआसका एक िऄिंश भी नहीं आत्र्मा गंजन ु बर्ाया जार्ा | िऄथि शास्त्र र्ो िईनके छदमाग में भर छदया जार्ा है बल बछु ि र्ेरी की परीक्षा, दिःख िअकर लेय है | ु पर परमाथि शास्त्र से िईन्त्हें िऄनछभज्ञ रखा जार्ा है | सुसिंस्कारों जो पाप पछहले जन्त्म के हैं, दूर सब कर देय है | | के ना छमलने से जीवन छबन नाछवक की नाव जैसा हो जार्ा है | छनदोष र्झको देय कर, पावन बनार्ा है र्झे | ु ु िआसीछलये हमारी वैछदक सिंस्कृछर् के ऋछष-मछु नयों ने साक्षर क्या सत्य और िऄसत्य क्या, यह भी छसखार्ा है र्ुझे | | बनानेवाली छशक्षा के साथ िअध्याछत्मक दीक्षा पर छवशेष बल छदया था, र्ाछक ‘साक्षरा मछर्’ िऄपने ज्ञान का दरूपयोग करकेु ‘राक्षसा मछर्’ न बने बछल्क महेश्वर र्त्व को जान कर ज्ञान दपपासा सवि छहर्काट्टरणी ‘ऋर्िंभरा प्रज्ञा’ या ‘र्त्त्वबछु ि’ हो जाए | छप ले िऄिंक में प्रश्न था ‚कु छ बच्चे िो विर्शय होिे हैं और कुछ डर छजन्त्हें बाल्यावस्था में ससिंस्कार नहीं छमलर्े िऄछधकािंशर्िः ऐसे ु के कारण बोल िहीं पािे, उिमें विर्शयिा कै से आये ?‛ बालक ही िअगे चलकर िऄपराध के क्षेत्र में कदम रखर्े हैं | जयपर, राजकोट व िऄहमदबाद गरुकुल की छशछक्षकाओिं को ु ु प्राचीनकाल में गरुकुलों में ात्रों को लौछकक ज्ञान देने के साथ ु साधोवाद है छजन्त्होंने व्याख्या सछहर् िईत्तर भेजे है | ससिंस्काट्टरर् भी छकया जार्ा था | िअज छवद्याथी को िऄपूणि ु पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक, ‚जो बच्चे डर के कारण बोल नहीं पार्े ज्ञान छदया जार्ा है | वषों र्क मेहनर् और छदन-रार् पढ़ािइ िईनको ‘जीवन रसायन’ पस्र्क छदलवा दो | वे िईसे पढ़े और ु करके भी छवद्याथी िअछधभौछर्क ज्ञान का िऄल्पािंश ही जान प्राणायाम करें | ७-१० िऄनलोम-छवलोम प्राणायाम और ७ िअभ्यिंर्र ु पार्ा है | िअछधदैछवक ज्ञान व सारे ज्ञानों का मल िअध्याछत्मक ू कुम्भक व बछहकुिम्भक यक्त प्राणायाम करें, छफर ॎकार का गजन ु िंु ज्ञान र्ो िईसकी पहुच से बाहर ही होर्ा है | िऄपूणि ज्ञान प्राप्त ाँ करें | बस, छकर्ना भी डरपोक बच्चा हो छनभीक हो जायेगा |’ कर िऄर्प्तर्ा में ही जीवन का िऄिंर् होना यह सिंस्कारछवहीन ृ िआस बार का प्रश्न है :िूसरों का वहि करिा _______ के बराबर िऄपूणि छशक्षा की देन है | छशक्षा पूणि र्भी कही जायेगी जब वह है और िसरों का अवहि करिा ________ के बराबर है | िऄपना ू िअध्याछत्मक सिंस्कारों के साथ प्रदान की जाय | िईत्तर व्याख्या सछहर् िइमेल या पत्र द्वारा हमें भेजें- | प्रश्न का िईत्तर ऋछष प्रसाद िऄप्रैल २००७ िऄगले िऄिंक में छदया जायेगा | आपकी कलर्म से :िआस पछत्रका को साथि क बनाने हेर्ु सभी गरुकुल छशक्षकों से िईनके िऄनभव, पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण और िईपयोगीकरण के ु ु िईदाहरण गरुकुल के छक्रयाकलापों पर लेख िअछद िअमिंछत्रर् हैं | यह सब िअप हमें छनम्नछलछखर् पर्े पर डाक िऄथवा E-mail/Fax से भेज सकर्े हैं | ु गरुकुल के न्द्रीय प्रबंधि सवमवि, संि श्री आर्ारामजी आश्रम, साबरमिी, अहमिाबाि-380005. ु E-mail: gurukul@ashram.org, Ph: 079-39877787, 88. Fax: 079-27505012.