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ॐ श्री सद्ुगरु प मरम्मनमनन नम
ग्रीष्मक्लीन अवक्श
मवशनष्ंक h v a r j -u k n h
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“गरुकल क शिक्षकों का अपना माशिक िमाचार पत्र”
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प्रक्शक : ुगरु पकल कन्द्रीय प्रबंधन समममि, संि श्री आश्र्मजी आश्रम, स्बरमिी, अहमद्ब्द-380005.
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वषष : १ अंक: १० अप्रैल २०१२
सम्च्र नए सत्र की शगभ क्मन्एं
चैत्र माह में नवरात्रों में जयपर, भोपाल, छ िं दवाडा, धछु लया,
ु सभी गरुकुलों के सिंचालकों, छशक्षकों, गह्पछर्यों एविं िऄन्त्य
ु ृ
िऄहमदाबाद गरुकुलों के ात्रों ने ७-७ छदन का सारस्वत्य
ु कमि चाट्टरयों को छप ले सत्र २०११-२०१२ में सन्त्दर ु
मन्त्त्र का िऄनष्ठान छकया |
ु सेवा और सहयोग देने के छलए साधोवाद है, धन्त्यवाद है |
छ िं दवाडा गरुकुल के छवद्याछथि यों ने चेटीचिंद महोत्सव (२४
ु छप ले सत्र में जो भी कछमयािं रह गिइ हों िईनपर िऄवलोकन
माचि ) के िईपलक्ष्य में एक भव्य कीर्ि न यात्रा भी छनकाली | कर हम बापजी के बर्ाये मागि पर िआस सत्र २०१२-१३ में
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पूज्य गरुदेव का िऄवर्रण छदवस (११ िऄप्रैल) ‚विश्व सेिा
ु पहले से भी िऄछधक दृढ़र्ा से कदम िअगे बढ़ाने का
वििस” के रूप में देश छवदेश में धूमधाम से मनाया गया | िआस परुषाथि करेंगे | भारर् को विश्िगरु बनाने का पज्य
ु ु ू
छदन िऄहमदाबाद गुरुकुल के ात्रों ने छवकलािंग छवद्याछथि यों के बापूजी का जो सिंकल्प है, िईसमें हम सब भी िऄपनी ोटी
छवद्यालय में जाकर प्रसाद छवर्रण छकया | िईधर सादाबाद िऄिंगली ग्वालबालों की र्रह लगाये रखेंगे | परस्पर सद्
ु
(िई.प्र) और छ न्त्दवाड़ा (म.प्र) गरुकुल के छवद्याछथि यों नें
ु भाव से हम िऄपना दैवी कायि छदनोछदन बढ़ार्े चलें ऎसी
िऄस्पर्ाल में जाकर मरीजों को फल छवर्रण छकया | शभकामना है |
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गर्मी की छट्टियों र्में अपने पाठ्यक्रर्म को दें एक नई ददशा
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मिइ २०११ में पूज्य गरुदेव ‚पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण‛ के बारें में सनकर बहुर् प्रसन्त्न हुए थे और िईन्त्होंने ‘शाबाश है’
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कहकर हम सब को सफल होने का िअशीवाि द भी प्रदान छकया था | जब बापूजी का शभ सिंकल्प और िअशीवाि द हमारे साथ है
ु
र्ो िआस दैवी कायि में हम छनिःसिंशय सफल होंगें | सभी छशक्षकों के छलए यह गमी की ुट्टियााँ िआस िईत्तम सेवा कायि को और बढ़ाने
का सिऄवसर है | िअप से छनवेदन है छक िऄपने छवषय की प्रत्येक पस्र्क के प्रत्येक (िऄथवा कम से कम ५-७) पाठों के के वल
ु ु
मख्य छबिंदओ िं (Main Theme) का सिंछक्षप्त शब्दों में आध्यात्मीकरण कर के हमें भेजें | पाठ को रोचक र्था समझने में िअसान
ु ु
बनाने के छलए िअप कु नए छक्रया-कलाप, छशक्षण सामग्री िऄथवा िअध्याछत्मक खेल भी िआसमें जोड़ सकर्े हैं | पाठों का िआस
र्रह का एक लेसन प्लान र्ैयार कर (पाठ की एक ायाप्रछर् के साथ) िईसे िऄपने सिंचालक को ३१ मिइ र्क दे दें | सिंचालकगण
समस्र् कृछर्यों की एक कॉपी गरुकुल कें द्रीय प्रबिंधन सछमछर् को १० जून र्क भेज दें | जो भी छशक्षक िआस सेवा कायि को
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र्त्परर्ा से करेंगे िईन्त्हें गरुपूछणि मा महोत्सव के दौरान पूज्य बापूजी के विकट िर्शि का लाभ छदलवाने का प्रयास छकया
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जाएगा| चनी हुिइ कृछर्यों को िअपके नाम सछहर् पवाकर िऄन्त्य गरुकुलों में भी प्रयोग हेर्ु भेजा जा सकर्ा हैं |
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ग्रीष्र्म ऋतु संबंदधत स्वास््य कदजयााँ
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गमी के कारण नाक से खून िअने पर र्ाजे धछनये के रस की २-२ बूदे दोनों नथुनों में डालें |
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िअश्रम द्वारा छनछमि र् पलाश के फूलों के शरबर् का प्रयोग करें |
५ चिंद्रभेदी प्राणायाम करने से भी बहुर् लाभ है |
५० ग्राम धछनया, ५० ग्राम सौंफ, ५० ग्राम िअिंवला और ५० ग्राम ही छमश्री को १-२ घिंटे र्क पानी में छभगोने के बाद मसल के
ान लें और पानी के साथ पी लें | िआससे गमी में छवशेष राहर् छमलर्ी है |
निंगे पैर और निंगे सर धप में न जाएाँ र्था धप में बाहर छनकलर्े समय थोडा जल सेवन िऄवश्य करें | िअाँखों में जलन या खजली हो
ू ू ु
र्ो मिंह में पानी भर के एक कटोरी र्ाजे पानी में २५ बार एक िअाँख पट-पटाएाँ छफर कटोरी का पानी बदलकर दूसरी िअाँख को िआसी
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र्रह पटपटाएाँ |
2. दशक्षकों की सर्मस्याएं और सर्माधान गर्मी की छट्टियों र्में बच्चों की रचनात्र्मकता
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(Creativity) एवं सत्संग र्में रूदच जगाने हेतु गहकायय
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प्रश्न: विद्यावथशयों को कक्षा में अवधक लार् वमले उसके वलए
हम क्या करें? श्रीिअशारामायाण, जीवन छवकास, ऋछष प्रसाद िअछद पस्र्कों ु
िईत्तर: पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक पढ़ाने से पहले यछद हम एकाध से ५ सवाक्य छलखवाएिं | िआनका िऄथि समझा दें | छवद्याथी
ु
छमनट चुप होकर िइश्वर में खोकर छवद्याछथि यों के मिंगल की कामना िऄपनी रूछच िऄनसार एक-एक सवाक्य पर िअधाट्टरर् छचत्र,
ु ु
से बोलें र्ो िआष्टदेव हमसे वही बलवाएिंगे छजससे बच्चों का
ु कछवर्ा, कहानी, भजन या खेल िअछद बनाकर लायें | चनी हुिइ
ु
सवाि छधक मिंगल होगा | चार बार नारायण मिंत्र का िईच्चारण करके सन्त्दर कृछर्यों को एकछत्रर् करके िअप छवद्यालय िऄथवा कक्षा
ु
ही छवषय पढ़ाएिं | की पछत्रका बनायें | िआससे बालकों का िअत्मछवश्वास बढ़ेगा |
मशक्षण और संस्क्र ृ े
गहस्थ र्में शांदत और सफलता क उपाय
बच्चों के सवाांगीण छवकास के छलए छशक्षा की छजर्नी िइशान कोण में र्लसी का पौधा रखें व प्रछर्छदन िईसकी २१
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िअवश्यकर्ा है िईससे कहीं िऄछधक िअवश्यकर्ा है िईन्त्हें पट्टरक्रमा करें र्ो घर में सख शािंछर् बढ़ेगी व धन–धान्त्य की
ु
ससिंस्काट्टरर् करने की | सिंस्कारहीन छशक्षा जीवन को सही
ु प्राछप्त में मदद छमलेगी |
छदशा नहीं दे सकर्ी | छशक्षा से बछु ि का और सुसिंस्कारों से घर से बाहर छनकलने से पूवि यछद गीर्ा के १८ वें िऄध्याय
रृदय में सद् भावनाओिं का छवकास होर्ा है | का िअखरी श्लोक का २१ बार पाठ छकया जाए र्ो छजस भी
िअज छवद्याथी को परमाणु छवखिंडन द्वारा छवध्विंस का पाठ र्ो काम के छलए छनकलेंगे, िईसमें सफलर्ा छमलेगी |
पढ़ाया जार्ा है पर रृदय में छवश्व प्रेम का छवकास कै से हो ?
मानवीय सिंवेदना छकसे कहर्े हैं ? िआसका एक िऄिंश भी नहीं आत्र्मा गंजन ु
बर्ाया जार्ा | िऄथि शास्त्र र्ो िईनके छदमाग में भर छदया जार्ा है बल बछु ि र्ेरी की परीक्षा, दिःख िअकर लेय है |
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पर परमाथि शास्त्र से िईन्त्हें िऄनछभज्ञ रखा जार्ा है | सुसिंस्कारों जो पाप पछहले जन्त्म के हैं, दूर सब कर देय है | |
के ना छमलने से जीवन छबन नाछवक की नाव जैसा हो जार्ा है | छनदोष र्झको देय कर, पावन बनार्ा है र्झे |
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िआसीछलये हमारी वैछदक सिंस्कृछर् के ऋछष-मछु नयों ने साक्षर क्या सत्य और िऄसत्य क्या, यह भी छसखार्ा है र्ुझे | |
बनानेवाली छशक्षा के साथ िअध्याछत्मक दीक्षा पर छवशेष बल
छदया था, र्ाछक ‘साक्षरा मछर्’ िऄपने ज्ञान का दरूपयोग करकेु
‘राक्षसा मछर्’ न बने बछल्क महेश्वर र्त्व को जान कर ज्ञान दपपासा
सवि छहर्काट्टरणी ‘ऋर्िंभरा प्रज्ञा’ या ‘र्त्त्वबछु ि’ हो जाए | छप ले िऄिंक में प्रश्न था ‚कु छ बच्चे िो विर्शय होिे हैं और कुछ डर
छजन्त्हें बाल्यावस्था में ससिंस्कार नहीं छमलर्े िऄछधकािंशर्िः ऐसे
ु के कारण बोल िहीं पािे, उिमें विर्शयिा कै से आये ?‛
बालक ही िअगे चलकर िऄपराध के क्षेत्र में कदम रखर्े हैं | जयपर, राजकोट व िऄहमदबाद गरुकुल की छशछक्षकाओिं को
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प्राचीनकाल में गरुकुलों में ात्रों को लौछकक ज्ञान देने के साथ
ु साधोवाद है छजन्त्होंने व्याख्या सछहर् िईत्तर भेजे है |
ससिंस्काट्टरर् भी छकया जार्ा था | िअज छवद्याथी को िऄपूणि
ु पूज्य बापूजी कहर्े हैं छक, ‚जो बच्चे डर के कारण बोल नहीं पार्े
ज्ञान छदया जार्ा है | वषों र्क मेहनर् और छदन-रार् पढ़ािइ िईनको ‘जीवन रसायन’ पस्र्क छदलवा दो | वे िईसे पढ़े और
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करके भी छवद्याथी िअछधभौछर्क ज्ञान का िऄल्पािंश ही जान प्राणायाम करें | ७-१० िऄनलोम-छवलोम प्राणायाम और ७ िअभ्यिंर्र
ु
पार्ा है | िअछधदैछवक ज्ञान व सारे ज्ञानों का मल िअध्याछत्मक
ू कुम्भक व बछहकुिम्भक यक्त प्राणायाम करें, छफर ॎकार का गजन
ु िंु
ज्ञान र्ो िईसकी पहुच से बाहर ही होर्ा है | िऄपूणि ज्ञान प्राप्त
ाँ करें | बस, छकर्ना भी डरपोक बच्चा हो छनभीक हो जायेगा |’
कर िऄर्प्तर्ा में ही जीवन का िऄिंर् होना यह सिंस्कारछवहीन
ृ िआस बार का प्रश्न है :िूसरों का वहि करिा _______ के बराबर
िऄपूणि छशक्षा की देन है | छशक्षा पूणि र्भी कही जायेगी जब वह है और िसरों का अवहि करिा ________ के बराबर है | िऄपना
ू
िअध्याछत्मक सिंस्कारों के साथ प्रदान की जाय | िईत्तर व्याख्या सछहर् िइमेल या पत्र द्वारा हमें भेजें- | प्रश्न का िईत्तर
ऋछष प्रसाद िऄप्रैल २००७ िऄगले िऄिंक में छदया जायेगा |
आपकी कलर्म से :िआस पछत्रका को साथि क बनाने हेर्ु सभी गरुकुल छशक्षकों से िईनके िऄनभव, पाठ् यक्रम के िअध्यात्मीकरण और िईपयोगीकरण के
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िईदाहरण गरुकुल के छक्रयाकलापों पर लेख िअछद िअमिंछत्रर् हैं | यह सब िअप हमें छनम्नछलछखर् पर्े पर डाक िऄथवा E-mail/Fax से भेज सकर्े हैं |
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गरुकुल के न्द्रीय प्रबंधि सवमवि, संि श्री आर्ारामजी आश्रम, साबरमिी, अहमिाबाि-380005.
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E-mail: gurukul@ashram.org, Ph: 079-39877787, 88. Fax: 079-27505012.